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विमलार्य और उनका पउमचरियं ज्योतिप्रसाद जैन, एम. ए. एलएल बी. पी एच. डी. लखनऊ
रामकथा प्राचीन अनुश्रुति की एक सर्व प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय कथा है। भारतीय संस्कृति की ब्राह्मण, बौद्ध और जैन तीनों ही प्राचीन धाराओं ने नियमित इतिहास के प्रारंभकाल से बहुत पूर्व होनेवाले भारतीय नररत्न श्रीराम के चरित को अपनी २ परम्परा अनुश्रतियों में स्मृत रक्खा और लेखनकला का प्रचार बढ़ने पर उसे रचनानिबद्ध करके अपने-अपने धार्मिक साहित्य का महत्वपूर्ण अंग बनाया।
महाकवि वाल्मीकि की संस्कृत रामायग ब्राह्मण परंपरा की सब से प्राचीन ज्ञात एवं उपलब्ध रामकथा है । इसके रचनाकाल के संबंध में अनेक मतभेद हैं। बहुमत उसे दूसरी शती ईस्वी पूर्व के लगभग रचा गया अनुमान करता है। वाल्मीकि के ग्रन्थ से ही रामकथा का प्रचार देश में बढ़ा और उसका रामायण नाम रूढ़ हुआ |
बौद्धधर्म के पालि त्रिपिटक का संकलन ईस्वीसन के प्रारंभ के कुछ पूर्व सिंहल देश में हुआ था । उसके कुछ कालोपरान्त बौद्धों की परंपरा अनुश्रुतियें भी जातक प्रन्थों के रूप में लिपिवद्ध होने लगी । उन्हीं में से · दशरथजातक ' पालि भाषा में बौद्ध परंपरा की रामकथा का प्रतिनिधित्व करता है ।
जैन परंपरा में प्राचीन तीर्थङ्करों के मुखद्वार से प्रवाहित होती आई रामकथा का अंतिम व्याख्यान अंतिम तीर्थङ्कर वर्द्धमान महावीर (५९९-५२७ ई० पू०) ने किया था। महावीर के निर्वाणोपरान्त लगभग पांच शताब्दियों पर्यन्त ज्ञान-ध्यान-तपलीन जैन साधु संघने महावीर द्वारा उपदेशित तत्वज्ञान, धर्माचार एवं परंपरा अनुश्रुतियों को गुरुशिष्य परंपरा में मौखिकद्वार से सुरक्षित रक्खा । दूसरी शती ईस्वी पूर्व के मध्य के लगभग कलिंग चक्रवर्ती सम्राट् खारवेल की प्रेरणा से मथुरासंघ के जैन गुरुओं के नेतृत्व में परंपरागम श्रुतज्ञान को संकलित एवं लिपिबद्ध करने तथा अपने धार्मिक साहित्य का प्रणयन करने के लिये एक प्रबल · सरस्वती आन्दोलन ' प्रारंभ हो गया था। फलस्वरूप पहली शताब्दी ई० पू० के उत्तरार्ध से ही जैन संघ में पुस्तक साहित्य प्रणयन का ॐ नमः हो
१. देखिये, लेखक की · स्टडीज इन दी जैन सोर्सेज ऑफ दी हिस्ट्री ऑफ एन्सेन्ट इंडिया ' का पचमं परिच्छेद-' सरस्वती मूवमेन्ट'।