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संस्कृति पूर्वेशिया में भारतीय संस्कृति ।
३८३ आज जापान में बौद्धधर्म के अनेक सम्प्रदाय है। प्रथम जो दो सम्प्रदाय, वे पश्चिमवर्ती भारतदेश की सुखावती नाम स्वर्गभूमि के माननेवाले हैं । अमिताभ बुद्ध इनके रक्षक हैं । जैन अथवा ध्यान सम्प्रदाय, योद्धा और क्षत्रियों में बहुत प्रचलित हैं। ध्यानाभ्यास से वे कठोर यातनाएं अपने आदर्श के पालन के लिए सहन कर सकते हैं । निचिरेन सम्प्रदाय सद्धर्मपुण्डरीक नाम के जप को ही सर्वकल्याण का साधन मानता है। तेन्दाई और तान्त्रिक शिंगोन का प्रभाव उच्च कुलों में अधिक है। तथा जोदो और शिंसु साधारण जनता में फैले हुए हैं।
__ कोरिया और जापान से भारत का सीधा समुद्र द्वारा तथा चीन द्वारा सम्पर्क अवश्य रहा, किन्तु वहां जानेवाले भारतीय आचार्यों, शिल्पियों और व्यापारियों आदि के नाम और चरितों की सूचना का अभी तक कोई स्रोत उपलब्ध नहीं हुआ।
___ यदि भगवान् आप को पूर्वेशिया के देशों के पर्यटन का सौभाग्य प्रदान करें आर आप तिब्बत से अपना भ्रमण आरम्भ करें तो समस्त तिब्बत, मंगोलिया बाह्य तथा आभ्यन्तर, मंचूरिया, कोरिया, चीन और जापान के ग्रामों, पर्वतों और नदी नालों के तटस्थित मन्दिरों तथा भक्तों के भवनों में देवनागरी अक्षरों में लिखे हुए संस्कृत मन्त्रों को देख कर अपने दो सहस्र वर्ष प्राचीन पूर्वपुरुषों के लगाये हुए पुण्य वृक्ष के फलफूलों से अपनी आत्मा की तृप्ति कर सकते हैं, और यदि अपने कर्तव्य का तनिक ध्यान हो तो भारतमाता को फिर एक बार उन्नति के मार्ग पर ले जाने के लिए कटिबद्ध हो सकते हैं।
भद्रं श्रोतृभ्यः।