________________
संस्कृति
३९१
विशिष्ट योगविद्या । (२) बाहर से वायु भीतर खींचना 'पूरक ' प्राणायाम है । (३) हवा को नाभिमंडल में कुम्भ की तरह स्थिर करना ' कुम्भक ' प्राणायाम है ।
(४) वायु को नाभि आदि स्थानों से खींच कर हृदयादि में लेजाना ' प्रत्याहार' प्राणायाम है।
(५) तालु, नाक तथा मुख में वायु को रोकना । ' शान्त ' प्राणायाम है।
(६) बाहर से हवा को खींच कर ऊपर ही हृदयादि में अवरुद्ध करना — उत्तर' प्राणायाम है।
(७) बाहर से खींची हुई हवा को नीचे ले जाना अधर' प्राणायाम है ।
उक्त प्राणायाम से साधन कर्ता को शारीरिक लाभ मिलता है। इसका विस्तृत वर्णन श्री हेमचन्द्रसूरिप्रणीत श्रीयोगशास्त्र के पांचवें प्रकाश से जानना चाहिये । हाँ, प्राणायाम का विषय जैनागमों में विस्तार से कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होता, किन्तु श्री आवश्यक सूत्र नियुक्ति में “ ऊसासं ण गिरंभइ" कह कर श्वासोश्वास को बलात्-रोकना निषिद्ध किया गया है । जैन योग मार्ग में प्राणायाम को अनावश्यक माना गया है। प्राणायाम को जितना हठयोग में स्थान मिला है उतना राजयोग में नहीं। प्राणायाम का सच्चा अर्थ यों है:-बाह्यभाव का त्याग रेचक है; अन्तर्भाव की पूर्णता पूरक और समभाव में स्थिरता तथा विषमभाव का त्याग कुम्भक है । वास्तव में इस भाव प्राणायाम का जितना अभ्यास श्रेष्ठ और हित-साध्य है उतना उक्त द्रव्य (रेचक पूरकोदि ) प्राणायाम से नहीं।
५ प्रत्याहार-योग का पॉनवां अंग प्रत्याहार है । चित्त और इन्द्रियों को समस्त बाह्य एवं शब्द, रूप, रस, गन्ध, वर्ण और स्पर्शादि से निवृत्त कर अन्तर्मुख करना प्रत्या. हार है । " प्रतिकूलः आहारवृतिः प्रत्याहारः" अर्थ यह कि इन्द्रियों की बाह्यमुखता क्षय हो जाने पर वे सब अन्तर्मुख हो जाती हैं, तब प्रत्याहार सम्पन्न होता है । प्रत्याहार के अभ्यास से आत्मा समभाव में स्थिर हो कर निज ध्येय पर स्थित होने के योग्य हो जाती है । यह इस योगांग-प्रत्याहार की विशेषता है । जैनागमों में प्रत्याहार के स्थान पर प्रतिसंलीनता शब्द आया है । यह बारह तपों में से छः प्रकार के बाह्यतपों में छट्ठा तप है। इसका वही अर्थ है जो प्रत्याहार का है । प्रति संलीनता चार प्रकार की है:
"१ इन्द्रियप्रतिसंलीनता, २ कषायप्रतिसंलीनता, ३ योगप्रतिसंलीनता और ४ विविक्तशय्यासनसेवनता !"
१९ से किं तं पडिसलीणया? चउब्धिहा पण्णत्ता तंजहाः-१ इंदियपडिसलीणया २ कषायपडिसलीणया ३ जोगपडिसलीणया ४ विवित्तसयणासणसेवणया. आदि
(औपपातिक सूत्र)