________________
संस्कृति
भारतीय संस्कृति के आधार ।
३७३
ये धारणाएं अवैदिक हैं, यह सुनकर हमारे अनेक भाई चौंक उठेंगे, पर हमारे मत में तो वस्तुस्थिति यही दीखती है ।
इन्हीं दो प्रकार की विचारधाराओं को, बहुत अंशों में, हम क्रमशः ऋषि - सम्प्रदाय - और मुनि - सम्प्रदाय भी कह सकते हैं । ' ऋषि ' तथा ' मुनि ' शब्दों के मौलिक प्रयोगों के आधार पर हम इसी परिणाम पर पहुंचते हैं । ' मुनि ' शब्द का प्रयोग भी वैदिकसंहिताओं में बहुत ही कम हुआ है । होने पर भी उसका 'ऋषि' शब्द से कोई सम्बन्ध नहीं है । ऋषि-सम्प्रदाय और मुनि - सम्प्रदाय के सम्बन्ध में, संक्षेप में, हम इतना ही यहाँ कहना चाहते हैं कि दोनों की मौलिक दृष्टियों में हमें महानू मेद प्रतीत होता है । जहाँ एक का झुकाव आगे चलकर हिंसा-मूलक मांसाहार और तन्मूलक असहिष्णुता की ओर रहा है; वहाँ दूसरे का अहिंसा तथा तन्मूलक निरामिषता तथा विचार - सहिष्णुता ( तथा अनेकान्तवाद ) की ओर रहा है । जहाँ एक की परम्परा में वेदों को सुनने के कारण ही शूद्रों के कान में सीसा पिलाने का विधान है, वहाँ दूसरी ओर उसने संसार भर के शूद्राति• शूद के भी, हित की दृष्टि से बौद्ध, जैन तथा सन्त सम्प्रदायों को जन्म दिया है । इनमें एक मूल में वैदिक और दूसरी मूल में प्राग्वैदिक प्रतीत होती है ।
४. इसी प्रकार हमारे समाज में वर्ण और जाति के आधार पर सामाजिक भेदों का द्वैविध्य दीखता है, वह भी इसी प्रकार का एक द्वन्द्व प्रतीत होता है ।
५. पुरुषविधि देवताओं के साथ - साथ स्त्रीविधि देवताओं की पूजा, उपासना भी इसी प्रकार के द्वन्द्वों में से एक है ।
६. हम एक और द्वन्द्व का उल्लेख करके अपने लेख के उपसंहार की ओर आते हैं । वह द्वन्द्व ग्राम और नगर का है । यह ध्यान देने योग्य बात है कि जहाँ ' ग्राम' शब्द वैदिक संहिताओं में अनेकत्र आया है, वहाँ ' नगर' शब्द का प्रयोग हमें एक बार भी नहीं मिला । वैदिक साहित्य और धर्मसूत्रों में भी वैदिक सभ्यता ग्राम प्रधान दीखती है । दूसरी ओर, नगरों के निर्माण में मय जैसे असुरों का उल्लेख पुराणों आदि में मिलता है । नगरों के साथ ही नागरिक शिल्प और कला - कौशल का विचार संबद्ध है । यह विचारणीय बात है कि वैदिक संस्कृति के वाहक ऊपरी तीनों वर्णों में कला और शिल्प का कोई स्थान नहीं है। इन कामों को करनेवालों की तो लोग ' शूदों में गणना करते हैं । इस प्रवृत्ति की व्याख्या हमारी समझ में उपर्युक्त ग्राम तथा नगर के द्वन्द्व में, जो कि वैदिक और प्राग्वैदिक परिस्थितियों की ओर संकेत करता है, मिल सकती है ।