________________
सृष्टिकर्ता ईश्वर नहीं। मुनिराज श्री हंसविजयजी महाराज के शिष्य मुनिश्री कांतिविजयजी
ईश्वर को सृष्टि का कर्ता माननेवाले लोगों का मन्तव्य है कि संसार में अनेक प्रकार के पदार्थ रहे हुए हैं। और वे किसी न किसीके बनाये हुए अवश्य हैं। जिस प्रकार रेल्वे, एरोप्लेन, मोटर, तार, टेलिफोन, अणुबम, वायरलेस आदि वस्तुएं बुद्धिमान मनुष्य की बनाई हुई दृष्टिगोचर हो रही हैं, उसी प्रकार ईश्वरने इस सृष्टि की रचना की । ईश्वर चाहे सो कर सकता है क्यों कि ईश्वर महान् शक्तिशाली है।
सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयात्मशक्क्या,
वृक्षान् सरीसृपपशून् खगदंशमत्स्यान् । तैस्तैरतुष्टहृदयः पुरुषं विधाय,
__ब्रह्मावबोधधिषणं मुदमाप देवः ॥ अर्थात् ईश्वरने अपनी शक्ति से वृक्ष, सरीसृप, पशुसमूह, पक्षी-दंश और मत्स्य इत्यादि नाना प्रकार के शरीरों का निर्माण किया । इतना करने पर भी ईश्वर के हृदय में सन्तोष यानी तृप्ति नहीं हुई। तब भगवानने मनुष्यदेह का निर्माण किया, क्यों कि मनुष्य में बुद्धि है। अर्थात् वह ब्रह्म साक्षात् स्वरूप उत्पन्न होता है। सृष्टि का वर्णन करते हुए श्रुति में कहा है कि-" स वै नैव रेमे तस्मादेकाकी नैव रमते स द्वितीयमैच्छत् " ( बृहदारण्यक उप० ) इस ईश्वर को तृप्ति नहीं होती थी, क्यों कि वे अकेले थे। जिस प्रकार कोई मनुष्य मकान में अकेला होता है तब उसका दिल नहीं लगता, वह दूसरे साथी की इच्छा करता है; उसी प्रकार ईश्वर के दिल में ऐसी इच्छा हुई कि दूसरा होना चाहिये । दूसरा न होने के कारण ईश्वर को शान्ति नहीं मिलती थी-मन नहीं लगता था। उस ईश्वरने संकल्प किया कि 'बहुस्यां प्रजायेय '.-मैं बहुत रूप में होऊँ और जन्म धारण करूँ। भगवद्गीता में भी कहा है कि
यदा यदा हि धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत !
अभ्युत्थानाय धर्मस्य, तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ अर्थात् जब-जब इस पृथ्वी पर हिंसा, झूठ, चोरी, जारी, अन्याय, अत्याचार आदि
(४६)