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भारतीय संस्कृति के आधार डॉ० मंगलदेव शास्त्री, एम० ए०, डी० फिल० ( ऑक्सन ) जिस रूप में भारतीय संस्कृति का प्रश्न आज देश के सामने है, उस रूप में उसका इतिहास अधिक प्राचीन नहीं है । तो भी यह कहा जा सकता है कि स्वतन्त्रता-प्राप्ति के अनन्तर इस पर विशेष ध्यान गया है।
वर्तमान भारत में यह प्रश्न क्यों उठा ! यह विषय रुचिकर होने के साथ-साथ मनन करने के योग्य भी है। हमारे मत में तो इसका उत्तर यही है कि, विदेशीय संघटित विचारधारा तथा राजनैतिक शक्ति के आक्रमण का प्रतिरोध करने की दृष्टि से, हमारे मनीषियोंने अनुभव किया कि सहस्रों वर्षों की क्षुद्र तथा संकीर्ण सांप्रदायिक विचार-धाराओं और भावनाओं के विघटनकारी दुष्प्रभाव को देश से दूर करने के लिए आवश्यक है कि जनता के सामने विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों में एक सूत्र-रूप से व्यापक, मौलिक तथा समन्वयात्मक विचार-धारा रखी जाय । भारतीय संस्कृति की भावना को उन्होंने ऐसा ही समझा । वर्तमान भारत में भारतीय संस्कृति के प्रश्न के उठने का यही कारण हमारी समझ में आता है। संस्कृति शब्द का अर्थ
'संस्कृति ' शब्द का अर्थ क्या है ! इस प्रश्न के झगड़े में हम इस समय पड़ना नहीं चाहते । सब लोग इसका कुछ-न-कुछ अर्थ समझ कर ही प्रयोग करते हैं। तो भी प्रायः निर्विवाद रूप से इतना कहा जा सकता है कि
"कस्यापि देशस्य समाजस्य वा विभिन्नजीवनव्यापारेषु सामाजिकसम्बन्धेषु वा मानवीयत्वदृष्ट्या प्रेरणाप्रदानां तत्तदादर्शानां समष्टिरेव संस्कृतिः । वस्तुतस्तस्यामेव सर्वस्यापि सामाजिकजीवनस्योत्कर्षः पर्यवस्यति । तयैव तुलया विभिन्नसभ्यतानामुत्कर्षापकर्षों मीयेते। किंबहुना ! संस्कृतिरेव वस्तुतः । सेतुर्विधृतिरेषां लोकानामसंभेदाय ' (छान्दोग्योपनिषद् ८ । ४ । १) इत्येवं वर्णयितुं शक्यते । अतएव च सर्वेषां धर्माणां संप्रदायानामाचाराणां च परस्परं समन्वयः संस्कृतेरेवाधारेण कर्तुं शक्यते । " (प्रबन्धप्रकाश, भाग २, पृ. ३)।
१. इस विषय का विशेष विवेचन, शीघ्र प्रकाशित होनेवाली हमारी नवीन पुस्तक। 'भारतीय संस्कृति का विकास' में मिलेगा।
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