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संस्कृति
अहिंसा-भगवती अहिंसा का दूसरा नाम अनुकम्पा है। अनुकम्पा बोधि ( समकित ) का कारण है। इसलिए अहिंसा को 'बोधि' कहा गया है । ( १७ ) बुद्धि-अहिंसा बुद्धिदायिनी होने से 'बुद्धि' कहलाती है । जैसा कि कहा है
बावत्तरिकलाकुसला पंडियपुरिसा अपंडिया चेव ।
सव्व कलाणं पवरं जे धम्मकलं न याणंति ।। अर्थात्-सब कलाओं में प्रधान अहिंसा रूप धर्मकला से अनभिज्ञ पुरुष शास्त्र में वर्णित पुरुष की ७२ कलाओं में प्रवीण होते हुए भी अपण्डित हैं।
(१८) धृति-चित्त की दृढ़ता देनेवाली। (१९) समृद्धि-समृद्धि देनेवाली । (२०) ऋद्धि-आत्मिक ऋद्धि देनेवाली । (२१) वृद्धि-आत्मिक गुणों की वृद्धि करनेवाली । ( २२ ) स्थिति-मोक्ष में स्थिति करानेवाली । ( २३ ) पुष्टि-आत्मिक गुणों को पुष्ट करनेवाली । ( २४ ) नन्दा-आनन्द देनेवाली। (२५) भद्रा-कल्याण देनेवाली । (२६) विशुद्धि-पाप का क्षय करके जीव को निर्मल बनानेवाली । (२७ ) लब्धि-केवलज्ञानादि लब्धि को देनेवाली ।
( २८ ) विशिष्टदृष्टि-सब धर्मों में अहिंसा ही विशिष्ट दृष्टि अर्थात् प्रधान धर्म माना गया है। जैसा कि कहा है
किं तए पढियाए पयकोडीए पलालभ्याए ।
जत्थेतियं ण णायं, परस्स पीडा ण कायदा ॥ अर्थात्-प्राणियों को किसी प्रकार की पीड़ा न पहुंचानी चाहिए, यदि यह तत्त्व न सीखा गया तो करोड़ों पद अर्थात् सैकड़ों शास्त्र पढ़ लेने से भी क्या प्रयोजन ! क्योंकि अहिंसा के बिना वे सब पलालभूत अर्थात् निःसार हैं।
(२९) कल्याण-कल्याण की प्राप्ति करानेवाली।
(३०) मंगल-मं पापं गालयतीति मंगलं' अर्थात् जो पापों को नष्ट करे वह मंगल कहलाता है । अथवा- ' मंग-श्रेयः लाति ददातीति मंगलं' अर्थात् कल्याण को देनेवाला मंगल कहलाता है । पापविनाशिनी होने से अहिंसा ' मंगल' कहलाती है।
(३१) प्रमोद-प्रमोद को देनेवाली। (३२) विभूति-सब विभूतियों को देनेवाली। ( ३३ ) रक्षा-सब जीवों की रक्षा करनेवाली ।