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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-पंथ दर्शन और
उपसंहार इस प्रकार जैन, जैनेतर दर्शनों में सुख-दुःख के कर्ता, कारण और अनुभवसंबंधी विचारों में कितना अन्तर है यह जाना जा सकता है। एक और भगवान् महावीर पुरुषार्थवाद को महत्व देते हैं तो दूसरी और अन्य दर्शन देववाद को महत्व देते हैं। भगवान् महावीर कहते हैं-" उद्विए नो पमायए" उठो प्रमाद न करो। (आचा०)
अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य ।
अप्पा मित्तममित्तं च, दुपट्टि अ सुपडिओ ॥ (उत्त०) अपने सुख-दुःख के कर्ता तुम स्वयं हो, यदि चाहो तो पुरुषार्थ से अप्रमाद से दुःख को सुख में बदल सकते हो, और इसके लिये तुम्हें शुभ अध्यवसाय एवं शुभानुष्ठान में निष्ठा करनी होगा।
हमारे हाथ क्या है !-भगवान् करेगा वैसा होगा, वे जिस प्रकार रखेंगे रहना पड़ेगा, भगवान् की मरजी के बिना पत्ता भी हिल नहीं सकता, इत्यादि । अथवा बालाजी, भेरुजी, माताजी आदि देवों से प्रार्थना करना कि-हे देव ! हमें परिवार और पैसा दो, हमारी रक्षा करो, सम्पत्ति दो और विपत्तियों से बचाओ, शत्रुओं का संहार करो और स्वजनों के सहायक बनो, आदि। ___भगवान महावीर के पुरुषार्थवाद में ऐसी दीन-हीन प्रार्थनाओं का सर्वथा निषेध है। अत एव
शिवमस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः ।
दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ॥ २॥ इस भव्य भावना के साथ प्राणीमात्र स्वसुख के लिए साधनामय जीवन का मंगलाचरण करें। शुभम् ।