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संस्कृति जीवों की वेदना ।
२७९ प्रकृतियां मन्दफलदा हो जाती हैं और अशुभ अध्यवसाय एवं अशुभ अनुष्ठान से मन्दफलदा प्रकृतियां तीव्रफलदा हो जाती हैं।
(भग० श० ५, उ० ५.) वेदना के तीन भेद
शारीरिक, मानसिक और शारीरिक-मानसिक ' दोनों एक साथ ।' रोगों से होनेवाली वेदना शारीरिक, पश्चाताप या चिन्ताजन्य वेदना मानसिक और रोग एवं चिंता से एक साथ होनेवाली वेदना शारीर-मानसी कही जाती हैं। नरक, देव, गर्भज, तिथंच और मनुष्यों को. तीनों वेदना होती हैं और समस्त संमूर्छिम जीवों को केवल शारीरिक वेदना होती है।
(पन्न० पद ३५.) स्पर्शज वेदना के तीन भेद
___" शीत, उष्ण और शीतोष्ण " ये तीनों वेदना क्षेत्र और काल की अपेक्षा से सुखद और दुःखद होती हैं । शीतऋतु में शीत स्पर्श दुःखद और उष्ण स्पर्श सुखद होता है । ग्रीष्मऋतु में उष्ण स्पर्श दुःखद और शीत स्पर्श सुखद होता है । वसंत या वर्षा में शीतोष्ण स्पर्श सुखद होता है । देव, मनुष्य और तिर्यंच में ये तीनों वेदनाएं होती हैं। प्रथम तीन नरकों में उष्ण वेदना, चौथी, पांचवी और छठी में शीत और उष्ण दो वेदना और सातवीं नरक में एकान्त शीत वेदना होती है।
(पन्न पद ३५.) मानसिक वेदना के दो भेद
" निदा और अनिदा"
" नितरां निश्चितं वा सम्यग्दीयते चित्तमस्यामिति निदा" इस व्युत्पत्ति से यह सिद्ध है कि जिस वेदना में मन का व्यापार निश्चित हो वह निदा नेदना कही जाती है । तीव्र मानसिक संकल्प से जब वेदना का अनुभव होता है वह निदा वेदना और मन्द मानसिक संकल्प से जब वेदना का अनुभव होता है अनिदा वेदना कही जाती है ।
जो जीव पूर्व जन्म में और ईह जन्म में गर्भज होते हैं वे निदा वेदनावाले होते हैं, जो जीव पूर्व जन्म में और ईह जन्म में समूर्छिम ' मनरहित' होते हैं वे अनिदा वेदनावाले होते हैं और जो जीव पूर्व जन्म में संमूर्छिम और ईह जन्म में गर्भज होते हैं वे निदा-अनिदा दोनों वेदनावाले होते हैं। अथवा विवेकवान् की वेदना निदा और अविवेकी की वेदना अनिदा कही जाती है । नैरयिक, भवनपति, वाणव्यन्तर, गर्मज, तिथंच और मनुष्य निदा अनिदा, कहीं दोनों वेदनावाले होते हैं । संमूर्छिम तिर्यंच और मनुष्य केवल अनिदा वेदनावाले होते हैं । ज्योतिषी और वैमानिक सम्यग्दृष्टि देवों की निदा वेदना और मिथ्यादृष्टि देवों की अनिदा वेदना होती है।
(पन्न० पद ३५)