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संस्कृति
अपरिग्रह। चाण्डाल-यदि चाण्डाल के कर्तव्य को त्याग देता है तो वह उसी जन्म में महान् हो सकता है। और जो उत्तम कुल तथा जातिका है उन्हीं ही चाण्डाल कर्तव्यों से अधम हो सकता है । अतः किसी से जुगुप्सा न कर के पाप सम्पादन करने वाले भावों से जुगुप्सा करो। ये तुच्छ हैं, नीच जातिवाले हैं-यह सोचकर जुगुप्सा मत करो । परमार्थ से जुगुप्सा हेय है । हेय का अर्थ-जुगुप्सा न करो ॥ ( इति जुगुप्सापरिग्रह )
___ इसी प्रकार स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद ये परिग्रह हैं । इन की महिमा किसी से गुप्त नहीं । स्त्रीवेद के उदय में पुरुषरमण की अभिलाषा होती है। पुरुषवेद के उदय में स्त्रीरमण की अभिलाषा होती है और नपुंसकवेद के उदय में उभयरमण की अभिलाषा होती है । जगत् मात्र के प्राणी इन के जाल में फंसे हुये हैं । अतः इस विषय में विशेष विवेचन करना कोई उपयोगी नहीं । ( इति स्त्रीवेद-पुंवेद-नपुंसकवेदपरिग्रह )
__इसे प्रकार मिथ्यात्वादि चतुर्दश परिग्रह के भेद है। इन्हीं को अन्तरङ्ग परिग्रह कहते हैं । ( इति अन्तरंगपरिग्रह)
धन धान्यादि बाह्य दश परिग्रह हैं । यद्यपि ये बाह्य हैं, और न आत्मद्रव्य में इनका अस्तित्व है और न इन में परिग्रह का लक्षण ही जाता है। फिर भी परिग्रह के लक्षण पर विचार कर के इन को ' मूर्छा परिग्रह ' कर के लिखा है ।
___ अर्थात् मूर्छा को परिग्रह कहते हैं । ( ममेदं ) यह मेरा-ऐसा जो भाव है उसे ही मूर्छा कहते हैं । यह भाव आत्मा में होता है । उसी से यह आत्मा धनादिको निज मानता है । यह लक्षण जड़ पदार्थों में नहीं जाता। अतः उन्हें परिग्रह मानना सर्वथा अनुचित है। ठीक है, परन्तु उन्हें जो परिग्रह कहा है उसका तात्पर्य है कि धनादि पदार्थ मूर्छा में निमित्त पड़ते हैं और इसी से उन्हें परिग्रह कहा है। बंध का कारण तो अन्तरंग मूर्छा है-बाह्म पदार्थ मूर्छा नहीं; अत एव बन्ध का जनक नहीं । इसी से आचार्योंने बंध के कारण योग और कषाय को कहा है । श्री १०८ भगवान् कुन्दकुन्दाचार्यने समयसार में लिखा है:
वत्थु पडुच्च जं पुण अन्झवसाणोदु होदि जीवस्स । ___णहि वत्थुदो दुबंधो अज्झवसाणेण बंधोदु ॥ यद्यपि वस्तु की प्रतीति कर जीव को अध्यवसान भाव होता है तथापि वस्तु बंध का जनक नहीं । अध्यवसान भाव ही बंध का जनक है। यदि ऐसा है, तब बाह्य वस्तु के त्याग का उपदेश क्यों दिया जाता है ! उत्तर-अध्यवसान त्याग के लिये ही बाह्य वस्तु का त्याग कराया गया है । अध्यवसान में नियम से कोई न कोई विषय होना चाहिये । अन्यथा जैसे