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गुरुदेव के जीवन का विहंगावलोकन |
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( ४९ ) सं० १९५८ का आहोर में चौमासा । गुलाबविजयजी आदि को बड़ी दीक्षा । माघ शु० १३ गुरुवार को सियाणा में २०१ दौ सौ एक जिनप्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा और सुविधिनाथ चैत्य की प्रतिष्ठा ।
(५०) सं० १९५९ में मरुधरीय कुणीपट्टी में विहार । श्रीकोरटातीर्थ के मंदिरों का उद्धार । श्रीसंघकारित महामहोत्सवपूर्वक २०१ जिनप्रतिमाओं की बै० शु० १५ को प्रतिष्ठा । चौमासा जालोर में । आहोर में माघ कृ० १ को श्री शान्तिनाथजी मंदिर की प्रतिष्ठा और सुविख्यात 'श्रीराजेन्द्र जैनागम वृहद् ज्ञानभंडार' की स्थापना | बाली में चन्द्रविजय और नरेन्द्रविजय को दीक्षा । हितविजयजी पंन्यास के साथ चर्चा और विजयप्राप्ति । केसरियाजी, तारंगाजी, भोयणी, सिद्धाचल आदि तीर्थों की यात्रा तथा खंभात और भरुच होते हुए सूरत में पदार्पण |
( ५१ ) सं० १९६० का सूरत में चौमासा । इस चौमासे में विपक्षियोंने आप से अनेक प्रश्न पूछे और आपने उनके उत्तर सप्रमाण दिये । 'श्री अभिधान राजेन्द्र कोष' की रचना यहीं समाप्त हुई । चातुर्मास में ही 'राजेन्द्र सूर्योदय' की रचना । चातुर्मास के पश्चात् मालवे में पदार्पण |
(५२) सं० १९६९ का कूकसी में चौमासा 'प्राकृत व्याकृति व्याकरण', 'प्राकृत शब्द - प्रतिमाओं रूपावली' और ' दीपमालिका देववंदन' की रचना | बाद में मार्ग ० शु० ५ को सात ७ प्राणप्रतिष्ठा और उनको सौधशिखरी मंदिर में स्थापन कराई । माघ शु० ५ गुरुवार को राजगढ़ के खजान्ची दौलतराम चुन्नीलालनिर्मित अष्टापदावतार चैत्य के लिए ५१ जिनप्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा कर उनको मंदिर में स्थापन कराई । राणापुर में फाल्गुन शु० ३ गुरुवार को १९ जिनप्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा और मंदिर में उनकी स्थापना । यहीं कमलश्री की दीक्षा हुई। ( ५३ ) सं० १९६२ ज्येष्ठ शु० ४ को सरसी में प्रतिष्ठा । चौमासा खाचरोद में । श्रावण शु० १३ को ढाइसौ वर्षों से जाति-व्यवहार- वंचित चिरोलावाले जैनों को जाति में सम्मिलित करवाये । मार्ग ० शु० २ को राजगढ़ में तीन प्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा करके उनको दौलतराम हीराचंद निर्मित ज्ञानमंदिर में स्थापना कराईं। जावरा में लक्ष्मीचंदजी लोढ़ा के बनवाये हुये मंदिर की पौष शु० ७ को प्रतिष्ठा ।
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( ५४ ) सं० १९६३ का बड़नगर में चातुर्मास । 'महावीर पंच कल्याणक पूजा' और 'कमलप्रभा शुद्ध रहस्य' की रचना । मार्गशिर मास में मंडपाचलतीर्थ की यात्रार्थ ससंघ प्रयाण । मार्ग में ज्वर की बीमारी होने से राजगढ़ में ही पदार्पण | गुरुदेव की शारीरिक परिस्थिति के