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संस्कृति विश्व के विचार-प्रांगण में जैन तत्त्वज्ञान की गंभीरता । २५१ भी प्रत्येक आत्मा में रहे हुए विकारों और कषायों के बल पर 'जड़-औषधि के गुण-दोष अनुसार ' अपना फल यथा समय में और यथा रूप में प्रदर्शित कर दिया करते हैं।
इस कर्म-सिद्धान्त का विशेष स्वरूप कर्मवाद के ग्रंथों से जानना चाहिये । यहाँ तो इतना ही पर्याप्त होगा कि कर्म-वाद के बल पर जैन-धर्मने पाप-पुण्य की व्यवस्था का प्रामाणिक और वास्तविक सिद्धान्त कायम किया है । पुनर्जन्म, मृत्यु, मोक्ष आदि स्वाभाविक घटनाओं की संगति कर्म-सिद्धान्त के आधार पर प्रतिपादित की है । सांसारिक अवस्था में आत्मासंबंधी सभी दशाओं और सभी परिस्थितियों में कर्म-शक्ति को ही सब कुछ बतलायो है। फिर भी आत्मा यदि जागृत और सचेत हो जाय तो कर्म-शक्ति को परास्त करके अपना संविकास करने में स्वयं समर्थ हो सकती है।
___ कर्म-सिद्धान्त जनता को ईश्वर-कर्तृत और ईश्वर-प्रेरणा जैसे अंध-विश्वास से मुक्त करता है और इसके स्थान पर आत्मा की स्वतंत्रता का, स्व-पुरुषार्थ का, सर्व-शक्तिसंपन्नता का और आत्मा की परिपूर्णता का ध्यान दिलाता हुआ इस रहस्य का उल्लेख करता है कि प्रत्येक आत्मा का अंतिम ध्येय और अंतिम विकास ईश्वरत्व-प्राप्ति ही है।
जैन-धर्मने प्रत्येक सांसारिक आत्मा की दोष-गुण-संबंधी और हास-विकास-संबंधी आध्यात्मिक-स्थिति को जानने के लिये, निरीक्षण के लिये और परीक्षण के लिये 'गुणस्थान' के रूप में एक आध्यात्मिक जाँच प्रणाली अथवा माप-प्रणाली भी स्थापित की है, जिस की सहायता से समीक्षा करने पर और मीमांसा करने पर यह पता चल सकता है कि कौनसी सांसारिक आत्मा कषाय आदि की दृष्टि से कितनी अविकास-शील है और कौनसी आत्मा चारित्र आदि की दृष्टि से कितनी विकास-शील है !
यह भी जाना जा सकता है कि प्रत्येक सांसारिक आत्मा में मोह की, माया की, ममता की, तृष्णा की, क्रोध की, मान की और लोभ आदि वृत्तियों की क्या स्थिति है ! ये दुर्वृतियाँ कम मात्रा में हैं अथवा अधिक मात्रा में ! ये उदय अवस्था में हैं अथवा उपशम अवस्था में हैं ! इन वृत्तियों का क्षय हो रहा है अथवा क्षयोपशम हो रहा है ! इन वृत्तियों की परस्पर में उदीरणा और संक्रांति भी हो रही है अथवा नहीं ! सत्तारूप से इन वृत्तियों का खजाना कितना और कैसा है ! कौनसी आत्मा सात्विक वृत्तिवाली है और कौनसी आत्मा तामसिक वृत्तिवाली ! तथा कौनसी राजस् प्रकृति की है ! अथवा अमुक आत्मा में इन तीनों प्रकृतियों की संमिश्रित स्थिति कैसी क्या है ! कौनसी आत्मा देवत्व और मानवता के उच्च गुणों के नजदीक है और कौन आत्मा इनसे दूर है ! ___उपरोक्त अति गम्भीर आध्यात्मिक समस्या के अध्ययन के लिये जैनदर्शनने 'गुण