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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक ग्रंथ इतिहास इस बात का साक्षी है कि इस परम्परा को समूल नष्ट करने का अत्याचारी यवनोंने अनेक बार प्रयत्न किया।
इस प्राचीन सूत्र-शास्त्रसम्मत और पूर्वजों से समाचरित परम्परा के अनुसार ज्योतिर्धर विश्वपूज्य प्रभु श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने मरुधर और मालवे के कतिपय प्राचीन तीर्थों का और सैंकड़ों ग्रामनगरों के मन्दिरों का पुनरुद्धार और जिन ग्रामनगरों में देव. दर्शनार्थ मन्दिर नहीं थे वहाँ नूतन मन्दिरों का निर्माण करवा कर, उनकी यथाविधि प्रतिष्ठाएँ करवाई । आपने ऐसे तो अनेक स्थलों पर प्रतिष्ठांजनशलाकाएँ करवाई हैं, किन्तु उनमें जो विशेष प्रसिद्ध हैं वे इस प्रकार हैं
१- जालोर (सोनगिरि) के पर्वत पर गढ़ में प्राचीन समय के १ श्रीअष्टापदावतारचौमुख मन्दिर । २ यक्षवसति-महावीर मन्दिर । ३ और श्री कुमारवसति-पार्श्वनाथ मन्दिर ये तीन मन्दिर हैं। कालप्रभावतः इन पर सरकारी अधिकार हो गया था। राज्यभृत्योंने इन शान्तिस्थलों ( मन्दिरों) में युद्धसामग्री भर दी थी और वे स्वयं भी उनमें रहने लगे थे। सं. १९३३ के ज्येष्ठ में जब गुरुदेव इस पर्वत की कन्दराओं में रह कर तपस्या करते हुये आत्मचिंतन में लीन थे, सहसा उनकी ईप्सा पर्वत की उच्चतम चौटी पर जा कर धूप में आतापना लेने की हुई। तत्काल वे पर्वत की चौटी पर गये। देखा कि विशालकाय मन्दिर राजकीय भृत्यों के निवासस्थान बने हुये हैं। उनके समीप गये और नौकरों को उपदेश दिया। परन्तु जोधपुरनरेश की आज्ञा के बिना कुछ नहीं हो सकता था और श्रावकवर्ग को स्थिति से ज्ञात किया तथा स्वयं ने कठिनतम वीर-प्रतिज्ञा लेकर आंदोलन किया। आठ महिनों तक अविरल परिश्रम करने पर मन्दिर प्राप्त हुये। और सं. १९३३ के माघ शुक्ला ७ रविवार को इन मन्दिरों का उद्धार करवा कर प्रतिष्ठा की ।
२-मरुधर से उत्कट विहार कर के १७ दिन में मध्यभारतस्थ जावरा पधारे । यहाँ श्रीछोटमलजी पारख के बनवाये हुये द्विमंजिले मन्दिर में श्रीआदिनाथ भगवान आदि ३१ जिनप्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा की।
३-मालवस्थ धार-जिल्ले के कुक्षी नगर में श्रीशान्तिनाथ भगवान् का प्राचीन मन्दिर है । उसका श्रीसंघने आपके सदुपदेश से जीर्णोद्धार करवाया और उसके चारों तरफ चौवीस देवकुलिकाएँ (लघुमन्दिर) बनवाई। वि. सं. १९३५ के वै. शुक्ला. ७ को महामहोत्सव सह श्रीआदिनाथादि २१ प्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा कर उनको उक्त मन्दिर में स्थापित किया और सब शिखरों पर कलश और दंडध्वज चढ़वाये ।।
४-आहोर के दक्षिणोद्यान में आहोर श्रीसंघ के बनवाये हुये जिनालय में सं. १९३६