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सरस्वतीपुत्र श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि । कुछ विदेशी विद्वानों के लेख और संदेश जो प्राप्त हुये हैं उन से भी इस सरस्वतीपुत्र का मान बहिरदेशीय साहित्यिक अभिरुचि और क्रियावाले क्षेत्रों में कम है ! ऐसा नहीं माना जा सकता । हेमवर्ग से डॉ० सुब्रीम लिखते हैं
" यह स्मारक ग्रंथ उस महान् और निरभिमान विद्वान् की स्मृति को सदा के लिये रखनेवाला एक ग्रंथ होगा।"
रोम से प्रो. टस्सी ( Tucci ) के जनरल सेक्रेट्री लिखते हैं
"हमारे अध्यक्ष को जो, इस दिवंगतात्मा विद्वान् के सच्चे प्रशंसक हैं किसी विषय पर लिखने में बहुत आनंद होता।"
आचार्यश्री की विद्वत्ता ज्योतिष-क्षेत्र में भी कम नहीं रही है। आप का कोई भी मुहूर्त विघ्न-बाधाओं से विफल नहीं हुआ। आपने कई बार भविष्य वाणियां भी की जो सच्ची सिद्ध हुई । कुक्षीनगर का दहन, अहमदाबाद के रतनपोल में रही हुई नगरसेठ की अट्टालिका में अग्नि-प्रकोप का होना आपने पहिले ही भाषित कर दिया था। इस संबंध में अधिक परिचय पाने के लिये श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरिजी महाराज साहब द्वारा लिखित लेख ' श्रीगुरु देव के चमत्कारिक संस्मरण ' को देखें तो विश्वास हो जायगा कि साधना से वह कौन ज्ञान अथवा विद्या एवं कला हैं जो प्राप्त नहीं की जा सकतीं।
अंत में मैं महान् तपस्वी, दृढ़ संकल्पी, अमर साहित्यसेवी, युग-युग तक अमर रहनेवाले श्रीमद् राजेन्द्रसूरि के संस्मरण में यह अपना श्रद्धापुष्प अर्पित करता हुआ वर्तमान
और भावी पीढियों से आग्रहभरी विनती करता हूँ कि वे प्रत्येक विद्वान् को समझें और विशाल दृष्टिकोण रखकर उससे लाभ लें।