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श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय गुर्वावली । ४६ श्रीधर्मघोषसूरिजी । ४७ श्री सोमप्रभसूरिजी । ४८ श्रीसोम तिलकसूरिजी ।
३२ श्रीप्रद्युम्न सूरिजी । ३३ श्रीमान देवसूरिजी । ३४ श्रीविमलचन्द्रसूरिजी । ३५ श्री उद्योतनसूरिजी । ३६ श्रीसर्वदेवेसूरिजी । ३७ श्रीदेवसूरिजी । ३८ श्रीसर्वदेवसूरिजी ।
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४९ श्रीदेवसुन्दरसूरिजी । ५० श्रीसोमसुन्दरसूरिजी । ५१ श्रीमुनिसुन्दरसूरिजी । ५२ रत्नशेखरसूरिजी । ५३ श्रीलक्ष्मी सागरसूरिजी ।
३९ [ श्रीयशोभद्रसूरिजी । | श्रीनेमिचन्द्रसूरिजी । ४० श्रीमुनिचन्द्रसूरिजी ।
५४ श्रीसुमतिसाधुसूरिजी ।
श्री हेमविमलसूरिजी ।
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श्री अजितदेवसूरिजी ।
श्री आनन्द विमलसूरिजी ।
४२
श्री विजय सिंह सूरिजी ।
५७ श्री विजयदानसूरिजी ।
४३
श्री सोमप्रभसूरिजी । श्रीमणिरत्नसूरिजी । ४४ श्रीजगन्चन्द्रसूरिजी ।
५८ श्रीहीरविजयसूरिजी । ५९ श्रीविजयसेनस्सूरि ।
६०
[ श्रीदेवेन्द्रसूरिजी ।
श्री विजय देवसूरिजी । ६१ श्रीविजय सिंह सूरिजी । ६२ श्रीविजयप्रभसूरिजी ।
श्री विद्यानन्द सूरिजी । ६३ - श्री विजयरत्न सूरिजी :- :- जन्म संवत् १७१२ शीकर में, पिता ओशवंशीय श्रीसौभाग्यचंदजी, माता शृंगारबाई, जन्मनाम रत्नचन्द्रजी । आपने अति रूपवती सूरिबाई नामक श्रेष्ठीकन्या के साथ हुए सगपन को छोड़ कर सोलह वर्ष की किशोर वय में श्रीविजयप्रभसूरिजी महाराज के पास दीक्षा ग्रहण की थी । स्त्रगुरु के पास विद्याभ्यास कर वि. संवत् १७३३ ज्येष्ठ ० ६ के रोज नागोर ( मारवाड़) में आचार्यपद प्राप्त किया । संवत् १७७० को जोधपुर में चातुर्मास रह कर महाराजा अजितसिंहजी को उपदेश दे कर मेड़ता में मुसलमानों ने
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१- ये श्रीउपधानवाञ्चनग्रन्थ के कर्ता हैं । २-ये वि. सं. १०१० मे हुये हैं । इन्होंने ' रामसैन्यपुर में श्री ऋषभदेव चैत्य में श्रीचन्द्रप्रभस्वामी की प्रतिष्ठा की थी । चन्द्रावती में कुंकगमंत्री को प्रतिबोध दे कर उसको दीक्षा दी थी । ये श्रीगौतमस्वामीवत् लब्धि-सम्पन्न थे । ३ - आपने अर्बुदाचल पर्वत के समीपस्थ ग्राम ‘ ढेलड़ी ' में यशोभद्र, नेमिचन्द्र आदि आठ मुनिवरों को एक साथ आचार्यपद दिया था । ४ आपने व्यन्तरदेवकृत उपद्रवों के नाशार्थ 'संतिकरस्तोत्र' बनाया । ५ इन पट्टधर महर्षियों का परिचय जानने के लिये जिज्ञासुओं को श्रीतपागच्छ पट्टावली अवलोकन करना चाहिये ।
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