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संस्कृति आचार्य मल्लवादी का नयचक्र ।
२०९ इस समभिरूढ की चर्चा में कहा गया है कि एक-एक नय के शत-शत भेद होते हैं, तदनुसार समभिरूढ के भी सौ भेद हुए। उनमें से यह गुण समभिरूढ एक है। गुणसमभि. रूढ के भी विधि आदि बारह भेद हैं। उनमें से यह नियमविधि नामक गुण समभिरूढ है।
इस नय का निर्गम आगम के-" कई विहे णं भन्ते ! भावपरमाणु पनते ! गोयमा ! चउबिहे पण्णते-वण्णवन्ते, गंधवंते, फासवंते रसवंते " इस वाक्य से है।
(११) समभिरूढ का मन्तव्य गुणोत्पत्ति से था। तब उसके विरुद्ध एवंभूत का उत्थान हुआ । उसका कहना है कि उत्पत्ति ही विनाश है। क्योंकि वस्तुमात्र क्षणिक हैं। यहां बौद्धसंमत निर्हेतुक विनाशवाद के आश्रय से सर्वरूपादि वस्तु की क्षणिकता सिद्ध की गई है और प्रदीपशिखा के दृष्टान्त से वस्तु की क्षणिकता का समर्थन किया गया है।
(१२) एवंभूत नयने जब यह कहा कि जाति-उत्पत्ति ही विनाश है, तब उसके विरुद्ध कहा गया कि-" जातिरेव हि भावानामनाशे हेतुरिष्यते” अर्थात् स्थितिवाद का उत्थान क्षणिकवाद के विरुद्ध इस अर में है । अत एव कहा गया कि-" सर्वेप्यक्षणिका भावाः क्षणिकानां कुतः क्रिया ।" यहां आचार्यने इस नय के द्वारा यह प्रतिपादित कराया है कि पूर्व नय के वक्ताने ऋषियों के वाक्यों की धारणा ठीक नहीं की; अत एव जहां अनाश की बात थी वहां उसने नाश समझा और अक्षणिक को क्षणिक समझा । इस प्रकार विनाश के विरुद्ध जब स्थितिवाद है और स्थितिवाद के विरुद्ध जब क्षणिकवाद है, तब उत्पत्ति और स्थिति न कह कर शून्यवाद का ही आश्रय क्यों न लिया जाय यह आचार्य नागार्जुन के पक्ष का उत्थान है। इस शून्यवाद के विरुद्ध विज्ञानवादी बौद्धोंने अपना पक्ष रखा और विज्ञानवाद की स्थापना की । विज्ञानवाद का खण्डन फिर शून्यवाद की दलीलों से किया गया।
और स्याद्वाद के आश्रय से वस्तु को अस्ति और नास्तिरूप सिद्ध करके शून्यवाद के विरुद्ध पुरुषादि वादों की स्थापना करके उसका निरास किया गया ।
और इस अरके अन्त में कहा गया कि वादों का यह चक्र चलता ही रहता है। क्यों कि पुरुषादि वादों का भी निरास पूर्वोक्त क्रम से होगा ही। मल्लवादी का समय
आचार्य मल्लवादी के समय के बारे में एक गाथा के अलावा अन्य कोई सामग्री मिलती नहीं। किन्तु नयचक्र के अंतर का अध्ययन उस सामग्री का काम दे सकता है । नयचक्र की उत्तरावधि तो निश्चित हो ही सकती है और पूर्वावधि भी। एक ओर दिग्नाग है जिनका उल्लेख नयचक्र में है और दूसरी ओर कुमारिल और धर्मकीर्ति के उल्लेखों का अभाव है जे