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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक -ग्रंथ
कभी किसी का अनिष्ट नहीं करते, चींटी तक को कष्ट नहीं पहुंचाते । ' इसलिये श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरि अपना भिन्न दृष्टिकोण रख कर संयम में विचरे और विशाल एवं व्यापक क्षेत्र में अपना साहित्यिक समस्त जीवन यापन किया । महान् विदूषी एनीविसेन्ट और चार्ल्स एण्ड्रयूज़ को कौन नहीं जानता ! वह भारतीय संस्कृति में ऐसे रंगे गए कि उन्हें अपना देश छोड़ कर भारतीय बनना पड़ा । विदेशों में भारतीय संस्कृति के प्रति उच्च धारणा बनाने में इनका विशेष हाथ है ।
जैन दर्शन के प्रचार की अभी बड़ी आवश्यकता है और खास कर इस हाइड्रोजन और एटम बम के युग में । कुछेक साहित्य - मनीषियोंने अपने उन्नत मस्तिष्क और अथक परिश्रम से विश्व को आश्चर्य में डाल दिया है । वास्तव में काम भी ऐसा ही किया है जो दूसरों की शक्ति के बाहर की चीज है । श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वर ने 'बृहद् - राजेन्द्र - विश्व कोष ' सात भागों में लिख कर विदेशी विद्वानों की आंखें खोल दीं, उनमें इसके दर्शन के प्रति उत्साह बढ़ा । विश्व के सभी बड़े पुस्तकालयों में इस ग्रन्थराज की प्रतियाँ सुरक्षित हैं जो विदेशी विद्वानों को जैन दर्शन और साहित्य की जानकारी कराने में सहायता करती हैं और उनके ऐसे मार्ग को सुगम बनाती है ।
आचार्यश्री ने अपने जीवनकाल में लगभग इकसठ ग्रन्थों की रचना की जो उनके गंभीर अध्ययन, मनन और उनकी बुद्धिमत्ता एवं विद्वत्ता का परिचायक हैं । आचार्यश्री आज हमारे मध्य नहीं हैं; पर उनके द्वारा विरचित साहित्य उनके नाम का सदैव विश्व में जयघोष करता रहेगा ।
अब ' अभिधान राजेन्द्र प्राकृत महाकोष' पर संक्षेप में विचार किया जाता है । इस कोष की रचना बहुत सुन्दरता से की गई है अर्थात् जो बात देखना हो वह उसी शब्द पर मिल सकती है । संदर्भ इसका इस प्रकार रखा गया है। पहले तो अकारादि वर्णानुक्रम से प्राकृत शब्द, उसके बाद उनका संस्कृत में अनुवाद, फिर व्युत्पत्ति, लिङ्गनिर्देश और उनका अर्थ जैसा जैनागमों में मिल सकता है दिखला दिया गया है । बड़े बड़े शब्दों पर अधिकार - सूची नम्बरवार दी गई है जिससे हरएक बात सुगमता से मिल सकती है । जैनागमों का ऐसा कोई भी विषय नहीं रहा जो इस महा कोष में न आया हो । केवल इस कोष के ही देखने से सम्पूर्ण जैनागमों का बोध हो सकता है । और अकारादि वर्णानुक्रम से हजारों प्राकृत शब्दों का संग्रह है । इस महाकोष पर विचार करते समय मिल्टन की यह पंक्ति अनायास ही याद आजाती हैं :
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