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गुरुदेव के जीवन का विहंगावलोकन |
(३२) सं० १९३९ का कूकसी में चौमासा । मार्गशिर शुक्ला २ को मोहनविजयजी को बड़ी दीक्षा ।
( ३३ ) सं० १९४० का चौमासा राजगढ में किया । मार्गशिर शुक्ला ७ गुरुवार को दल्लाजी लूणाजी के बनवाये हुये श्रीमोहनखेड़ा के मन्दिर की प्रतिष्ठा और ४१ जिनप्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा । धामणदा में फाल्गुण शु० ३ को प्रतिष्ठा तथा दसाई में फाल्गुण शु० ७ को प्रतिष्ठा । — श्रीकल्पसूत्रबालावबोध' की रचना । गुजरात में विहार |
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( ३४ ) सं० १९४१ का चौमासा अहमदाबाद ( पांजरापोल ) में श्री विजयानन्दसूरिजी के साथ त्रिस्तुतिक सिद्धान्त पर चर्चा । सौराष्ट्र में विहार । श्रीगिरिनार व शत्रुञ्जय आदि तीर्थराजों की यात्रा । ' सिद्धान्त बोलसागर ' की रचना |
(३५) सं. १९४२ का धोराजी में चौमासा । श्री आवश्यक विधि गर्भित ' श्री शान्तिनाथ स्तवन' की रचना । श्री उदयविजयजी को दीक्षा । सौराष्ट्र से उत्तर गुजरात में पदार्पण । थराद्री प्रान्त में भ्रमण ।
( ३६ ) १९४३ का चौमासा घानेरा में। चौमासे की समाप्ति के बाद श्री भीलडीया पार्श्वनाथ की यात्रा । शेष काल में थराद्री प्रान्त में विहार ।
( ३७ ) १९४४ का चौमासा राजधानी थराद में किया। चौमासे के बाद पारख अम्बावीदास मोतीचंदने आपके उपदेश से श्री शत्रुञ्जय और गिरिनार का संघ निकाला । इस संघ में एक लाख रुपये व्यय हुए थे ।
( ३८ ) सं. १९४५ का चौमासा वीरमगाम में । श्री ' तत्त्वविवेक' ( तत्त्वत्रयस्वरूप ) ग्रन्थ की रचना । मरुधर में पदार्पण | शिवगंज में माघ शु० ५ को दो सौ पच्चास जिनप्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा और आदिनाथ ( चौमुख ) और श्री अजितनाथजी के मंदिर की प्रतिष्ठा ।
( ३९ ) सं. १९४६ वैशाष शु० में मेघविजयजी को दीक्षा | चौमासा सियाणा में । ' श्रीपंचसप्ततीशतस्थान चतुष्पदी' और ' विहरमाणजिनचतुष्पदी' की रचना । ' पुण्डरीकाध्ययन सज्झाय' और 'साधु वैराग्याचार सज्झाय' की रचना तथा विश्वविख्यात ' श्रीअभिधान राजेन्द्र कोष' की रचना का प्रारम्भ ।
(४०) सं. १९४७ का चौमासा गुड़ा में किया ।
४१) सं. १९४८ श्रीऋषभविजयजी को दीक्षा | चौमासा आहोर में किया । तत्पश्चात् वे में पदार्पण ।
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