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गुरुदेव के जीवन का विहंगावलोकन ।
लेखिका साध्वीजी श्रीमहिमाश्रीजी (१) वि० सं० १८८३ पौष शुक्ला ७ गुरुवार को भरतपुर में जन्म । (२) वि० सं० १८९५ में जैन तीर्थों की यात्रा। (३) वि० सं० १८९९ में व्यापारार्थ सिंहलद्वीप को गमन ।
(४) सं० १९०२ में भरतपुर में श्रीप्रमोदसूरिजी का आगमन और उनके उपदेश से वैराग्य का उद्भव ।
(५) सं० १९०४ में उदयपुर ( मेवाड़ ) में वैशाख शु० ५ शुक्रवार को श्रीहेमविजयजी के पास यति-दीक्षा और नाम श्रीरत्नविजयजी ।
(६) सं० १९०४ का चौमासा आकोला ( बरार ) में प्रमोदसूरिजी के साथ किया । (७) शेषकाल में विहार और अभ्यास । (८) सं० १९०५ का चातुर्मास प्रमोदसूरिजी के साथ इन्दौर में |
(९) खरतरगच्छीय यति श्रीसागरचंद्रजी के पास अध्ययनार्थ गमन और उनके पना। सं० १९०६ का उज्जैन, सं० १९०७ का मन्दसौर, सं० १९०८ का चौमासा उदयपु. में, श्रीहेमविजयजी के द्वारा सं० १९०९ वैशाख शुक्ला ३ को उदयपुर में बड़ी दीक्षा और पंन्यासपद की प्राप्ति ।
(१०) सं० १९०९ को नागोर में चौमासा किया । सं० १९१० में सागरचन्द्रजी के साथ चौमासा जैसलमेर में ।
(११) शेषकाल में विहार और अभ्यास । सं० १९११ का चौमासा पाली में, सं० १९१२ का चौमासा जोधपुर में श्रीपूज्य देवेन्द्रसूरिजी के साथ । सं० १९१३ का चौमासा किशनगढ़ में किया।
(१२) सं० १९९३ में देवेन्द्रसूरि का निज बालशिष्य श्रीपूज्य धरणेन्द्रसूरि को अभ्यास करवा कर योग्य बनाने का आपको आदेश ।
(१३ ) सं० १९१४ से १९१९ तक धरणेन्द्रसूरि को और इकावन ५१ यतियों को विद्याभ्यास कराया। सं० १९१४ चित्रकूट, १९१५ सोजत, १९१६ शम्भूगढ़, १९१७ बीकानेर, १९१८ सादड़ी, १९१९ भीलवाड़ा में चौमासा । १९२० में आहोर में श्रीविजयप्रमोदसूरिजी