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गुरुदेव-साहित्य परिचय । कराते हैं । इस संग्रह के स्तुत्य प्रयास का श्रेय वयोवृद्ध संयमस्थविर मुनिश्री लक्ष्मीविजयजी को है । इसका प्रकाशन श्री भूपेन्द्रसूरि साहित्य-समिति, आहोर से हुवा है।
१ चैत्यवन्दन चतुर्विंशतिका, २ जिनस्तुति चतुर्विंशतिका और ३ जिनस्तवन चतु. विंशतिका । ४ आवश्यक विधिगर्भित श्री शांतिनाथ-स्तवन । ५ पुंडरिकाध्ययन-सज्झाय । ६ साधु वैराग्याचार-सज्झाय । ७, २३ पदवीविचार-सज्झाय ! ८ चोपड़खेलन स्वरूपसज्झाय और श्रीकेशरियानाथविनतिकरण वृद्ध स्तवन भी इसी ग्रन्थ में ही मुद्रित हैं।
(२१-२२) श्री सिद्धचक्रपूजा और श्री महावीर पंचकल्याणकपूजा-प्रथम पूजा में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप इन (९) पदों का और द्वितीय पूजा में चरम तीर्थपति अहिंसावतार श्रमण भगवान् श्री महावीर देव के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष इन पांच कल्याणकों की सरस और मनोहर रागों में वर्णनात्मक-रचना की है। ये पूजाएँ श्री ' जिनेन्द्र पूजामहोदधि' और 'श्री जिनेन्द्र पूजासंग्रह ' में मुद्रित हो चुकी हैं।
(६३) एक सौ आठ बोल का थोकड़ा-क्राउन १६ पेजी साइज । पृष्ठसंख्या ११६ । अमूल्य । इस पुस्तक में मननीय १०८ बातों का अनुपम संग्रह है। अल्पमती जीवों को यह पुस्तक अत्यधिक उपयोगी है।
(२४) श्री राजेन्द्रसूर्योदय (गूर्जर ) आकार डेमी अष्ट पेजी। पृष्ठसंख्या ५८ । परमपूज्य गुरुदेवने अपने विद्वान् शिष्यमंडल सहित वि. सं. १९६० का चातुर्मास गुजरात के प्रसिद्ध नगर सूरत (सूर्यपुर) में किया था। इस वर्षावास में चतुर्थस्तुतिक मतावलम्बियों से चर्चा-वार्ता हुई थी, उसका इसमें प्रमाणों के साथ सत्य-सत्य वर्णन आलेखित है। जिज्ञासु को यह पुस्तक अवश्य पढ़ना चाहिये । इसी वर्षावास में आपने विख्यात श्री अभिधान राजेन्द्र कोष को सम्पूर्ण किया था। (२५) कमलप्रमा-शुद्धरहस्य
___ आकार डेमी अष्ट पेजी । पृ. सं. ५१ । स्थानकवासी साध्वी श्री पार्वतीजी की सत्यार्थचन्द्रोदय पुस्तक में श्री महानिशीथ सूत्रोक्त कमलप्रभाचार्य के लिये जो असत्य प्रलाप किया गया है उसीका ही इस में प्रमाण सहित मार्मिक भाषा में खंडन किया गया है।
गुरुदेवने इस प्रकार अपने जीवनकाल में ६१ छोटे-बड़े ग्रन्थ निर्मित किये हैं। जिन में से उपर लिखे ग्रन्थ मुद्रित हो गये हैं। शेष अमुद्रित श्री राजेन्द्र जैनागम बृहद् ज्ञानभंडार, आहोर ( मारवाड़-राजस्थान ) में तथा अन्य स्थानों पर सुरक्षित हैं।