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गुरुदेव-साहित्य-परिचय । प्राचीन जनभाषा शास्त्रीय-भाषा ही रह गई है। इसका प्रचार जनता में नहीं रहा, अतः इसके आधुनिक अभ्यासियों को अभ्यास करते समय शब्दों के शुद्धरूप याद करने में अत्यधिक कठिनता का सामना करना पड़ता है। करुणासागर गुरुदेवने विद्यार्थियों के अभ्यासकाठिन्य को सरल बनाने के शुभाशय से इसकी संकलना की है। इसमें प्रत्येक शब्द के विभक्ति पर अनेक वैकल्पिक रूप भी यथास्थान दिखलाये हैं । यह · अभिधान राजेन्द्र कोष' के प्रथम भाग में तृतीय परिशिष्ट पर मुद्रित है।
(११) श्रीतत्वविवेक-रचना संवत् १९४५ । रॉयल षट् पेजी साईज । पृष्ठसंख्या १२८ । इस पुस्तक में परमपूज्य गुरुदेवने देव, गुरु और धर्म इन तीन तत्वों पर श्रेष्ठतर विवेचन बालगम्य भाषा में किया है । सरल रीति होने के कारण साधारण मेधावी व्यक्ति को भी त्रितत्व समझने के लिये यह अत्युत्तम ग्रन्थ है।
(१२) श्री देववन्दनमाला:-क्राउन १६ पेजी साइज । पृ. सं. १३३ । इस पुस्तक में ज्ञानपंचमी, चौमासी, सिद्धाचल, नवपद और दिवाली के देववन्दन हैं । यह देव. वन्दनमाला नाम के देववन्दनों का संग्रह इतनी प्रिय पुस्तक है कि इसके चार-चार संस्करण प्रकाशित होने पर भी आज यह ग्रन्थ अप्राप्य-सा है। यही इसकी उपादेयता का सबल प्रमाण है।
(१३) श्री जिनोपदेशमंजरी:-क्राउन १६ पेजी साइज। पृष्ठसंख्या ७० । इस पुस्तक में रोचक कथानकों से प्रभुप्रणीत तत्वों को यथार्थ प्रकार से समझाया गया हैं। इसके प्रत्येक कथानक की शैली उस समय की लोकभोग्य शैली है।
(१४-१५) धनसार-अघटकुमार चौपाई:-रचना सं. १९३२ रॉयल १६ पेजी साइज । पृष्ठसंख्या ४० । प्रथम चौपाई चैत्यभक्ति-फलदर्शक और द्वितीय चौपाई पुन्यफलदर्शक है । प्रथम का प्रमाण दोहों सहित ११ ढालें और दूसरी का प्रमाण दोहों सहित १२ दालें हैं । प्रत्येक दाल भिन्न-भिन्न देशी रागों में वर्णित है, जो व्यवस्थित प्रकार से गाने योग्य है।
(१६) प्रश्नोत्तर पुष्पवाटिका-रचना सं. १९३६ । पृ. सं. ६२ । डेमी १२ पेजी साइज । इस ग्रन्थ में उस समय के विवादास्पद प्रश्नों का तथा और भी इतर प्रश्नों का सुन्दरतम शैली से निराकरण किया गया है । प्रश्नों के प्रत्युत्तर में गुरुदेवने शास्त्रीय आज्ञा को श्रेष्ठ, तम रूप से जनता के समक्ष रक्खा है । इसकी भाषा लोक( जन )भोग्य भाषा है, जिसके कारण साधारण व्यक्ति भी सरलता से समझ सकता है।