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श्री अभिधान राजेन्द्र कोश और उसके कर्ता ।
अभिधान राजेन्द्र कोष का छठा भाग। यह अभिधान राजेन्द्र कोष का छट्ठा भाग 'म' अक्षर से प्रारंभ हुआ है और 'व्यासु ' इस शब्द पर इस भाग की परिसमाप्ति हुई है। इस भाग में १४६५ पृष्ठ हैं।
इस भाग में म, र, ल, व केवल इन चार अक्षरों के शब्दों पर ही पूरा विस्तार किया है। जिसमें व अक्षर से प्रारंभ होनेवाले शब्दों पर तो ७०८ पृष्ठों में शब्दों का वर्णन किया है।
____ अब इस भाग में जिन २ शब्दों के विषयों पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है उन विषयों का संक्षिप्त सार नीचे दिया जारहा है जिससे इस भाग की माहिती में अधिक सरलता प्राप्त हो।
'मग्ग ' ( मार्ग ) इस शब्द पर मार्ग के दो भेद द्रव्यस्तव और भावस्तव, मार्ग का निक्षेप, मार्ग के स्वरूप का विवेचन आदि अनेक विषय दिये हैं।
'मरण ' ( मृत्यु ) मृत्यु के भेद, मरण की विधि, अकाम मरण, सकाम मरण, बालमरण विमोक्षाध्ययनोक्त मरण विधि आदि दिये हैं।
'मल्लि ' ( मल्लिनाथ ) इस शब्द से उन्नीसवें तीर्थंकर श्रीमल्लिनाथ भगवान के पूर्व व तीर्थकर-भव का सविस्तार अच्छा वर्णन किया है ।
'मोक्स ' ( मोक्ष ) इस शब्द पर मोक्ष की सिद्धि, निर्वाण की सत्ता है या नहीं इसकी सिद्धि, मोक्ष, ज्ञान और क्रिया से ही मिलता है, धर्माचरण करने का फल मोक्ष ही है. मोक्ष पर अन्य दर्शनार्थियों की मान्यताएं, स्त्री मोक्ष में जासकती है इसका विवेचन, मोक्ष के क्या २ उपाय हैं आदि विषयों पर बहुत विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला है ।
'रओहरण ' ( रजोहरण ) इस शब्द पर दिखाया गया है कि रजोहरण क्या चीज है, इसका क्या उपभोग है, इसकी क्या व्युत्पत्ति है, चर्मचक्षुवाले जीवों को सूक्ष्म जीव नज़र नहीं आ सकते हैं इसलिये उन्हें रजोहरण धारण करना चाहिये। इसके प्रमाण आदि विषय का विवेचन है।
'राइभोयन' (रात्रिभोजन) इश शब्द पर रात्रिभोजन का त्याग, रात्रिभोजन करने. वाला अनुद्घातिक है, रात्रिभोजन के चार प्रकार, रात्रिभोजन का प्रायश्चित, औषधि के रात्रि में लेने के विचार आदि विषय दिये हैं।
__ 'लेस्सा ' ( लेश्या) इस शब्द पर लेश्या का स्वरूप, लेश्या के भेद, कौन लेश्या कितने ज्ञानों में मिलती है, लेश्या किस वर्ण से साबित होती है, मनुष्यों की लेश्या, लेश्याओं में गुणस्थानक, धर्मध्वनियों के लेश्या आदि का वर्णन है।