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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज से जब व्याख्यान में अपने कृत पापों का प्रायश्चित मांगा और गुरुदेवने जो इस रमणीय-शान्तिपद स्थान पर श्री आदिनाथ प्रभुका चैत्य बनवाने का उपदेश दिया, उसके फलस्वरूप यह बना है। संघवीजीने यह विशाल जिनालय शीघ्रातिशीघ्र बनवा कर गुरुदेव के कर-कमलों से महामहोत्सव पूर्वक सं. १९४० मगसर सुदि ७ गुरुवार को इसको प्रतिष्ठासम्पन्न करवाया । इस मन्दिर की मूलनायक प्रतिमा श्री आदिनाथ भगवान की है, जो सवा हाथ बड़ी श्वेत वर्ण की है । मूल चैत्य के ठीक पीछे ही आरसोपल की मनोरम छत्री है। जिसमें श्री ऋषभदेव प्रभु के चरण-युगल प्रस्थापित हैं। इस मन्दिर से दक्षिण में एक मन्दिर ओर है, जिसमें श्री पार्श्वनाथ भगवान की तीन प्रतिमाएं विराजमान हैं । मूल मन्दिर में ओइल पेंट कलर के विविध चित्र अंकित हैं।
उक्त मन्दिरों के ठीक सामने तीर्थस्थापनोपदेश-कर्ता जैनाचार्य प्रभु श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज का समाधि-मन्दिर है, जहाँ गुरुदेव का विक्रम संवत् १९६३ पौष सु. ७ मोहनखेड़ा (राजगढ़ )में श्रीसंघने उनके पार्थिव शरीर का अंत्येष्टि-संस्कार किया था। समाधि-मन्दिर के बनजाने पर इस में गुरुदेव की प्रतिमा स्थापित की गई। इस सुन्दर समाधि-मन्दिर की भित्तों पर गुरुदेव के विविध जीवन-चित्र आलेखित हैं। इस तीर्थ का उद्धार-कार्य हाल ही में वर्तमानाचार्य श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के उपदेश से सम्पन्न हुवा है। वि. सं. २०१३ चैत्र सु. १० को दोनों मन्दिर और समाधिमन्दिर पर आपके ही करकमलों से ध्वज-दंड समारोपित हुए हैं।
जब वि. सं. २०१२ ज्येष्ठ पूर्णिमा को लगभग १८ वर्षों के पश्चात् गुरुदेव श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज का मुनिमण्डल सह यहां पर पदार्पण हुवा उस समय मालव-निवासी श्री संघ तीर्थदर्शन एवं गुरुदेव की मंगलमय वाणी को सुनने की उत्कण्ठा से लगभग चार हजार की संख्या में उपस्थित हुवा था । गुरुदेव का श्री संघ को यही उपदेश हुवा कि समाज की आध्यात्मिक उन्नति के लिये समाज में श्रेष्ठ गुरुकुलों का होना अत्यावश्यक है; क्योंकि इस भौतिकवाद के युग में मानवमात्र को शान्ति की प्राप्ति यदि किससे भी हो सकती है तो वह एक मात्र धार्मिक सुशिक्षा से ही जो केवल गुरुकुल द्वारा ही प्रसारित की जा सकती है।
गुरुदेव की आज्ञा को शिरोधार्य कर श्री संघने श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में ही ' श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन गुरुकुल ' नामकी शिक्षण-संस्था का सर्वानुमति से खोलना तत्काल घोषित कर दिया। इस समय यह संस्था राजगढ़ में चल रही है और वह मोहनखेड़ा में भवन बन जाने पर निकट भविष्य में ही वहाँ प्रारंभ हो जायगी ॥ इति ॥
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