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मरुधर और मालवे के पांच तीर्थ । यद्यपि कोरटा एवं इस तीर्थ के सम्बन्ध में कतिपय लेखकोंने इतिहास लिखा है, किन्तु उपरोक्त वास्तविक घटनाओं को वर्णित नहीं करने का जो भाव रखता है वह अशोभनीय है। ४ तालनपुर तीर्थ ( मध्य भारत )
आलिराजपुर से कुक्षी जानेवाली सड़क की दाहिनी ओर यह तीर्थ है। यह तीर्थस्थान बहुत प्राचीन है और ऐसा कहा जाता कि पूर्वकाल में यहाँ २१ जिनमन्दिर और ५००० श्रमणोपासकों के घर थे। यहाँ खण्डहर रूप में बावड़ी, तालाब और भूगर्भ से प्राप्त होनेवाले पत्थरों और जिनप्रतिमाओं से इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है । शोधकर्ताओं का कहना है कि किसी समय यह नगर दो-तीन कोश के घेरे में आबाद था । वि. सं. १९१६ में एक भिलाले के खेत से आदिनाथबिम्ब आदि २५ प्रतिमाएँ प्राप्त हुई। जिन्हें समीपस्थ कुक्षी नगर के जैन श्री संघने विशाल सौधशिखरी जिनालय बनवा कर उसमें विराजमान की; इन में से किसी प्रतिमा पर लेख नहीं हैं; अतः यह कहना कठिन है कि ये किस शताब्दी की हैं। अनुमान और प्रतिमाओं की बनावट से ज्ञात होता है कि ये प्रतिमाएँ एक हजार वर्ष से भी प्राचीन हैं।
। यहाँ जैन श्वेताम्बरों के दो मन्दिर हैं । एक तो उक्त ही है और दूसरा उसी के पास श्री गौड़ीपार्श्वनाथजी का है । पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा वि. सं. १९२८ के मग. सु. पूर्णिमा को सवा प्रहर दिन चढ़े पुरानी गोरवडावाव से निकली थी। यह श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा सं. १०२२ फा. सु. ५ गुरुवार को श्री श्रीबप्पभट्टीसूरिजी के करकमलों से प्रतिष्ठित है।
इस प्रतिमा को वि. सं. १९५० महा वदि २ सोमवार को महोत्सवपूर्वक श्री श्री विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने प्रतिष्ठित की। इस स्थल के तुंगीयापुर, तुंगीयापत्तन और तारन ( तालन ) पुर ये तीन नाम हैं।
५ श्री मोहनखेड़ा तीर्थ ( मध्य भारत)
(श्री शत्रुजयदिशि वंदनार्थ प्रस्थापित तीर्थ) महामालव की प्राचीन राजधानी धारा से पश्चिम में १४ कोश दूर माही नदी के दाहिने तट पर राजगढ नगर आबाद है । यहाँ जैनों (श्वेताम्बरों) के २५० घर और ५ जिन चैत्य हैं । यहाँ से ठीक १ मील दूर पश्चिम में यह श्री मोहनखेड़ा तीर्थ स्थित है। यह तीर्थ श्री सिद्धाचलदिशिवंदनार्थ संस्थापित किया गया है। इसके निर्माता राजगढ के निवासी संघवी दल्लाजी लुणाजी प्राग्वाटने विश्वपूज्य चारित्रचूड़ामणी, शासनसम्राट श्रीमद्विजय
१ स्वस्ती श्री पार्श्वजिन प्रशादात्संवत् १०२२ वर्षे मासे फाल्गुने सुदि पक्षे ५ गुरुवासरे श्रीमान् श्रेष्ठी श्री सुखराज राज्ये प्रतिष्ठितं श्री बप्पभट्टी(१) सूरिभिः तुगियापत्तने ॥