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गुरुदेव की योगसिद्धि कदापि अस्वीकार नहीं करेगा। गुरुदेवने कहा कि आप लोग किसी तरह से हताश न हों और आपका कार्य शीघ्र ही संपन्न होगा। गुरुदेव के इस कथन में शासनप्रेम और धर्मजागृति भरी भावना को देखकर उन्हें बड़ा भारी संतोष हुआ और उन्होंने कहा कि इस विषय में जो मान, अपमान, दण्ड आदि जैसा भी आपकी आज्ञा से मिलेगा हम सहर्ष शिरोधार्य करेंगे।
_ गुरुदेव की योगशक्ति और तप-त्यागमय जीवन का समाज पर इतना प्रबल प्रभाव था कि-जो व्यक्ति किसी तरह भी लाख रुपये के दण्ड से और समाज-पंचों के जूते शिर पर उठाने पर भी माफी देने के लिये कदापि तैय्यार नहीं थे और इस कार्य को जो असंभव ही मानते थे वे ही व्यक्ति गुरुदेव के प्रभावशाली वचनों और धर्ममर्भ की व्याख्या से इतने आकर्षित हुए कि उन्हें आखिर में अपना निर्णय बदलना ही पड़ा । फलतः अन्त में बिना किसी दण्ड के प्रेम एवं स्वधर्मी के नाते सारी मालवा-प्रान्तीय समाजने उनका पुनरुद्धार करके उनको पूर्ववत् अपने में मिला लिया। यह गुरुदेव के आदेय वचन और उनकी अलौकिक तप-त्यागमय आदर्श जीवन का ही उदाहरण है । इसी तरह से अन्य भी कई प्रकार की आश्चर्यकारी घटनाएँ आपके जीवन से संबन्धित हैं । कितने ही राजा, महाराजा बड़े-बड़े विद्वान् , योगी, संन्यासी, साधु और जैन-जनेतर धर्माचार्यों ने आपकी सात्विक योगसिद्धि, सत्यनिष्ठता, निःस्पृहता एवं कठिनतम साध्वाचार पालन की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है। गुरुदेवने अपने जीवन में जिस क्रान्ति और सत्य वस्तु के प्रचार से समाज में आनेवाली शिथिलता को दूर की है वह इतिहास के पृष्ठों पर और जैन समाज में चिरकाल के लिये स्मरणीय बनी रहेगी। आपकी अटल धैर्यशालिनी शान्त मुद्रा, लुभावनी मनमोहिनी आकृति प्रत्येक व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी । कई योग्य व्यक्ति गुरुदेव के भक्त या शिष्य कहलाने में अपना बड़ा भारी महत्त्व मानते थे और उनकी भक्ति कर जीवन को सफल हुआ समझते थे।
इस अर्द्धशताब्दी के नायक आप हैं जो विक्रमीय वीसवीं शताब्दी के महान् पुरुषों में से एक हैं । जैन और जैनेतर समाज में आपके त्याग, तपोबल और योगशक्ति की कई-एक कथायें प्रचलित हैं । आपकी विद्वत्ता और समयज्ञता के विषय में तो लिखना ही क्या है । आपकी अनेक प्रकार की विशेषताओं को अन्तकरण में स्मरण कर भक्तिभरी श्रद्धा से शिर चरणों में सहसा नत हो जाता है । विद्वत्ता के परिचयार्थ तो आप का रचित साहित्य ही पर्याप्त है जिसमें श्री अभिधान राजेन्द्र कोष सर्वोपरि एक प्राकृत महाकोष है।
‘स जीवति यशो यस्य ' इस सूक्ति के अनुसार गुरुदेव का निर्मल यश सदा के लिये अमर बन चुका है । 'त्रिस्तुतिः' का पुनरुद्धार करना आपके ही सार्मथ्य में था। शुभम्