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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ देवड़ा ठक्कर विजयसिंहे, कोरंटस्थ वीरजीर्णबिम्बम् । उत्थाप्य राधशुक्ले निधिशरनवेन्दुके पूर्णिमा गुरौ ॥ ३ ॥ सुस्थिरवृषमे लग्ने, तस्य सौधर्मबृहत्तपोगच्छीयः। श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरिः प्रतिष्ठांजनशलाके चक्रे ॥४ ॥ कोरंटवासि मृता मोखासुत कस्तूरचन्द्रयशराजौ। दत्वोदधिशतमेकं श्रीमहावीरप्रतिमामतिष्ठिपत्ताम् हरनाथसुतष्टेकचन्द्रस्तचैत्यकोपरि । कलशारोपणं चक्रे, भूवाणगुणदायकः पोमावापुरवासी हरनाथात्मजः खुमाजी श्रेष्ठी। पृथ्वीशरसमुद्रां प्रदाय ध्वजामारोपयामास ओसवालरतनसुता हीरचेन नवलकस्तूरचन्द्रा । शशिवसुकरदा दंड-मतिष्ठिपन् कलापुरावासिनस्ते ॥८॥ राजेन्द्रसूरिशिष्यवाचकः मोहनविजयाभिधो धीरः। लिलेख प्रशस्तिमेना, गुरुपदकमलध्यानशुभंयुः ॥ इति श्रीकोरंटपुरमंडन-श्रीमहावीरजिनालयस्य प्रतिष्ठाप्रशस्तिः ॥
- सं० १९५९ वैशाख सुदि १५ । मु० कोरटा मारवाड - (२) श्रीभाण्डवा तीर्थ ( भांडवपुर )
यह भाण्डवा अथवा भाण्डवपुर नाम का ग्राम जोधपुर से राणीवाड़ा जानेवाली रेल्वे के मोदरा स्टेशन से २२ मील दूर उत्तर-पश्चिम में चारों ओर से रेगिस्थान से घिरा हुवा है । यहाँ जैनेतरों के २०० घर आबाद हैं ! यह ग्राम और मंदिर बहुत प्राचीन हैं। सर्व प्रथम जालोर ( जाबालीपुर ) के परमार भाण्डुसिंह ने इसको बसा कर इस पर शासन किया था ! उसके वंशजोने भी कितनी ही पीढ़ियों तक शासन किया। वि. सं. १३२२ में बावतरा के दय्या राजपूत बुहड़सिंहने परमारों को परास्त कर इस पर अपना अधिकार स्थापित किया था। इसके वंशजोंने शनैः शनैः इस प्रान्त में सर्वत्र स्थान-स्थान पर अपना शासन जमा लिया जिससे कालान्तर में इस प्रान्त का नाम ही दियावट-पट्टी हो गया । बाद में इस पर जोधपुर-नरेश का अधिकार हो जाने पर विक्रम संवत् १८०३ में जोधपुराधिप रामसिंह ने दय्या लुम्बाजी से इसे छीन कर समीपस्थ आणाग्राम के ठाकुर मालमसिंह को दिया। आज भी उक्त ठाकुर के वंशज भगवानसिंहजी यहाँ के जागीदार हैं।