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श्री गुरुदेव के चमत्कारी संस्मरण । आप धार चलिये । शेठ धार गये और सभी माल ज्यों का त्यों लेकर घर आये । यह है अच्छे मुहूर्त का एवं वास्तविक गुरुश्रद्धा का परिणाम ।
५-मध्यभारत-धार-जिले के राजगढ़ में शांतिनाथजी के घर-जिनालय में प्रतिमास्थापन का मुहूर्त गुरुदेवने सं० १९५४ मार्गशिर सुदि १० का दिया था। कार्यारम्भ चालू हुआ, चारों ओर से दर्शक गण आये और विधि-विधान सानन्द चालू हो गया ।
. यह उत्सव यहाँ के कुछ अन्धद्वेषप्रिय जैनों को बहुत अखरा । उन्होंने इसको रोकने के लिये पुलिस और दंडाबाजी का आश्रय लिया। गुरुदेवने सब को चेताया कि किसी को एक पाई देने की आवश्यकता नहीं है और न डरने की। मुहूर्त का समय आने के पहले ही यह सभी उपद्रव अपने आप शांत हो जायगा । हुआ भी ऐसा ही। निर्धारित मुहूर्त पर सभी विरोधी लोग अनुकूल हो गये और प्रतिष्ठाकार्य शांति के साथ निर्विघ्न संपन्न हो गया ।
६-मारवाड़-राजस्थान में आहोरनगर के बाहर पश्चिम उद्यान में श्रीगोड़ीपार्श्वनाथ का उत्तुंग और भारी विशाल शिखरबद्ध जिन-मन्दिर है-जिसके मूलनायक भगवान् बड़े प्रभाव. शाली और चमत्कारी हैं। इसके चारों ओर स्थानीय संघने ५२ देवकुलिकाएँ सशिखर नई बनवाई थीं। इसके प्रवेशद्वार के बांये तरफ भगवान् वीरप्रभु का त्रिशिखरी आरसपाषाण का जिनालय है जो बहुत ही सुन्दर एवं दर्शनीय है।
इन देवकुलिकाओं और जिनालय में स्थापन करने तथा आवश्यकता के समय अन्य ग्रामों के संघों को देने के लिये नूतन १५० जिनबिम्बों की अंजनशलाका के निमित्त आहोरश्रीसौधर्मबृहत्तपागच्छीय संघने गुरुदेव से सं० १९५५ फाल्गुन वदि ५ गुरुवार का शुभ मुहूर्त नियत करवाया। विशाल दर्शनीय मंडप और प्राण-प्रतिष्ठा योग्य समस्त सामग्री जुट जाने के एवं सर्वत्र कुंकुंपत्रिकाएँ वितरण हो जाने के पश्चात् शुभकारी मुहूर्त में ही दशदिनावधिक महोत्सव गुरुदेव की तत्त्वावधानता में प्रारंभ हुआ। प्रतिदिन का क्रिया-विधान बड़ी सावधानी से होने लगा और भारी जुलूश के साथ वरघोड़े निकलने लगे। ___मारवाड में सैंकड़ों वर्षों के पश्चात् यह पहला ही इतना बड़ा प्राण-प्रतिष्ठोत्सव था । अतः एव इसे देखने के लिये ३५ हजार के उपरान्त जैन जनता उपस्थित हुई । यह उत्सव निर्विघ्न, सराहनीय और बडे ही दर्शनीय ढंग से संपन्न हुआ था जिसका वर्णन लेखिनी से नहीं लिखा जा सकता । किसी को किसी तरह का न कष्ट हुआ, न किसी की वस्तु चोरी गई और गुम ही हुई।
इस प्रकार यह प्राण-प्रतिष्ठा भारी उत्साह एवं शांति से हुई। निर्धारित मुहूर्त लमांश में गुरुदेवने सब बिंबों की अंजनशलाका करके उनको यथास्थान बिराजमान करवायीं और