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श्रीगुरुदेव के चमत्कारी संस्मरण ।
बाप बेटा ने लुगाई दोनुं, छोड़ी जावण लागा छे छानुं ॥ ३४ ॥
पोत पोतारे पेटरी लागी,
बेरत धणीने छोड़ीने भागी । इणीपरे पापी ए छप्पनो पड़ियो,
मोटा लोगारो गर्वज गलियो ।। ३५ ।।
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धेनूनी परे ते ताणीने नाखे, कुटुंब नेह तो जरा न राखे । भूखे मरंता ने ठंडे सुकाता,
नित नित मरे छे अन्न बिण खाता ॥ ५१ ॥ झाड़नी छाल तो उतारी लावे,
खांड़ी पीसीने अन्न ज्युं खावे | अंते झाड़ोनी छाल खुटाणी,
पूरो न मले पीवाने पाणी ॥ ५२ ॥
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गुरुदेव के समाधि - ध्यान में किसी भाँति का दंभ नहीं था । इसी ध्यानबल से उनको भावी कहने की शक्ति प्राप्त हुई थीं। उनमें ऊंचे स्तर का आध्यात्मिक मनोबल था । इसीसे आप की सब बातें सत्य - सत्य सिद्ध होती थीं । गुरुदेव का ज्योतिष - ज्ञान भी टीपनापूरता ही नहीं था, किन्तु ऊंचा अनुभवजन्य था । आप के दिये हुए मुहूर्त्त में कभी किसी अच्छे से अच्छे ज्योतिषज्ञने भी दोष नहीं निकाले ।
८ आप जानते हैं कि शेर का नाम सुनकर ही मनुष्यों का कलेजा कांप उठता है, जंगल में चलते समय मनुष्यों के पैर लड़खड़ाते हैं । एक समय जालोर के पहाड़ में गुरुदेवने अपनी साधना पूर्ण करने की ठानी। भक्तोंने नम्र निवेदन किया कि गुरुदेव ! जिस पहाड़ में आप अपनी साधना करना चाहते हैं उसमें बहुत बड़ा शेर रहता है, अतः आप अपनी साधना के लिये अन्य स्थान निश्चित करें । गुरुदेवश्रीने फरमाया कि मैंने अपनी साधना के योग्य यही स्थान चुना है । आप निश्चित रहीये । गुरुदेव की कृपा से हिंसक शेर मेरी साधना में किसी भी प्रकार का विघ्न नहीं करेगा ।
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