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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-प्रेय 'वत्थ ' ( वस्त्र ) इस शब्द पर निग्रन्थियों के वस्त्र लेने के प्रकार, कितनी प्रतिमा से वस्त्र का गवेषण करना, वर्षाकाल में वस्त्र लेने पर विचार, आचार्य की अनुज्ञा से ही साधु या साध्वी को वस्त्र लेना चाहिये, वस्त्र का प्रमाण, वस्त्रों के रंगने का निषेध, वस्त्र के सीने पर विचार, वसों के संबंध में और भी कई तरह से विचार किया गया है।
'वसहिं ' ( निवास ) इस शब्द पर साधुओं को किस प्रकार के उपाश्रय में रहना चाहिये । मुनि के लिये दोषरहित उपाश्रय होना चाहिये, अविधि से उपाश्रय के प्रमार्जन में दोष, मुनियों को किन २ स्थानों पर निवास करना चाहिये इसके संबंध में बहुत ही सुंदर विवेचन किया है।
'विहार ' ( विचरण ) इस शब्द पर आचार्य और उपाध्याय के एकाकी विहार करने का निषेध, किनके साथ विहार करना और किनके साथ नहीं करना इसका विवेचन, वर्षाकाल में विहार पर विचार व निषेध, नदी के पार जाने में विधि, साधु-साधियों का रात्रि में या विकाल में विहार करने का विचार इत्यादि विषयों पर प्रकाश डाला है।
इस भाग में जिन जिन शब्दों पर कथा उपकथाएं आई हैं उनका भी अच्छी तरह विवेचन किया है।
अभिधान राजेन्द्र कोष का सातवां भाम । अभिधान राजेन्द्र कोष का यह अंतिम सातवां भाग है । इस भाग में 'श' इस अक्षर से शब्दों का वर्णन शुरू हुआ है और 'ह' इस शब्द पर समाप्त हुआ है। इस भाग में १२५१ पृष्ठ हैं।
इस भाग में श, ष, स और ह इन वार अक्षरों के शब्दों पर ही केवल मात्र विवेचन किया है जिसमें 'स' इस अक्षर पर से प्रारंभ होनेवाले शब्दों पर तो ११६९ पृष्ठों में वर्णन है।
इस भाग में जिन २ शब्दों पर आवश्यक विषयों का सुंदर विवेचन किया है उन २ शब्दों की थोड़ी २ सी माहिती यहां दी जारही है ताकि इस भाग की संक्षिप्त जानकारी की जा सके।
'संथार ' ( संसार ) इस शब्द पर संसार की व्यग्रदशा, संसार की असार अवस्था, संसार में मनुष्य अपने जीवन को किस प्रकार दुर्व्यवस्था से व्यतीत करता है आदि अच्छा विवेचन दिया है।
'सक' (शक ) इंद्र की ऋद्धि, स्थान, विकुर्वणा और पूर्वभव, इनका विमान, इंद्र किस भाषा में बोलते हैं इसका अच्छी तरह विवेचन किया है।