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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ अद्वैतखण्डनम् , ईश्वरव्यापकत्वखण्डनम् , एकेन्द्रियाणाम् भावेन्द्रियज्ञानसमर्थनेन भावश्रुत समर्थ. नम् आदि विषयों पर बहुत विवेचन किया गया है। यहां यदि इन सब पर प्रकाश डालने की कोशिश की जाय तो अलग ही एक बडा ग्रंथ बनजाने की संभावना है। अतः जिनको ये विषय देखना हो वे इस अभिधान राजेन्द्र कोष में देख सकते हैं।
आचार्यश्री हेमचंद्राचार्य महाराजने अपने जीवन में लगभग ३॥ करोड श्लोकों की रचना की है। साथ ही उस समय में जितने भी विषय उपलब्ध थे उन सब विषयों पर अपनी रचनायें की हैं । यह उनके सब विषयों के ग्रंथों को देखने से अच्छी तरह पता लगता है। इन्हीं आचार्य हेमचंद्रने 'सिद्धहेमशब्दानुशासनम् ' नामक एक व्याकरण की बहुत बड़ी रचना की है। उसका आठवां अध्याय प्राकृत व्याकरण का निर्मित किया है । उस प्राकृत व्याकरण के ऊपर आचार्य श्रीराजेन्द्रसूरिजीने एक २ सूत्र को लेकर संस्कृत में श्लोकबद्ध चार पादों में टीका रची है जिससे प्राकृत व्याकरण के अध्ययन करनेवालों को बहुत ही सरलता से प्राकृत भाषा का ज्ञान हो सके। इस ग्रंथ की रचना विक्रम संवत् १९२९ के वर्ष में की है।
__ इस प्राकृत व्याकरण में कौनसा सूत्र किस स्थान पर है यह सरलता से जान लेने के लिये अकारादि क्रम से पृष्ठसंख्या, सूत्रों के नाम और सूत्रों की संख्या दे दी गई है।
___अभ्यासार्थियों के लिये प्राकृत व्याकरण की प्राकृत शब्दरूपावलि भी इस में देदी है जिसमें सातों विभक्ति और सम्बोधन के रूप अच्छी तरह बतला दिये गये हैं ! प्राकृत भाषा में एकवचन और बहुवचन ही होता है, संस्कृत की तरह एकवचन, द्विवचन व बहुवचन इस तरह तीन वचन नहीं माने गये हैं। यह भाषा कठिन दिखाई देती है, किंतु यदि अध्ययन किया जाय तो यह संस्कृत से बहुत सरल है। अंत में आचार्यश्रीने नपुंसकलिंगों के रूप देकर इसकी परिसमाप्ति की है।
___ अब अभिधान राजेन्द्र कोष का यह प्रथम भाग 'अ' अक्षर से प्रारंभ किया है और ' अहोहिम ' इस शब्द पर समाप्त किया है। इस भाग में केवल एक 'अ' अक्षर से बननेवाले शब्दों के ८९३ पृष्ठ हैं और उसी एक 'अ' अक्षर के शब्दों में ही यह प्रथम भाग समाप्त हो गया है। ___अब इस भाग में जो मुख्यतः शब्दों के विषय आये हैं उन्हें संक्षेप में यहां दिया जा रहा है ताकि पाठकों को इस भाग की माहिती सरलता से हो सके:
___ 'अंतर' इस शब्द पर द्वीर, पर्वतों के परस्पर अंतर, जंबूद्वारों में परस्पर अंतर, जिनेश्वरों के परस्पर अंतर, भगवान् ऋषभदेव से महावीर तक का अंतर, ज्योतिष्कों का और चंद्रमण्डल का परस्पर अंतर, चंद्रसूर्यों का परस्पर अंतर आदि अनेक विषयों पर प्रकाश डाला है।