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श्री अभिधान राजेन्द्र कोश और उसके कर्ता । १ वीरस्तव पइन्ना, २ ऋषिभाषित सूत्र, ३ सिद्धिप्रामृत सूत्र, ४ दीवसागरपन्नति संग्रहणी और इसकी अलग टीका, ५ अङ्गविज्जा पइन्ना, ६ ज्योतिषकरण्डक पइन्ना और इसकी टीका मलयगिरिकृत तथा प्राभृतक, ७ गच्छाचारपइन्ना इस पर टीका विजयविमलगणिरचित और इसमें चार अधिकार, ८ अङ्गचूलिकायें हैं।
___ इस अङ्गचूलिका ग्रंथ में आर्य सुधर्मास्वामी से उनके शिष्य जंबूस्वामी पूछते हैं कि इन ग्यारह अंगों की अङ्गचूलिका किस लिये बनाई गई है। सुधर्मास्वामीने जवाब दिया कि जिस प्रकार आभूषणों से अङ्ग सुशोभित होता है, उसी प्रकार अङ्गचूलिका से एकादशाङ्गी सुशोभित होती है, इसलिये साधु-साध्वियों को इसका संपूर्ण अध्ययन करना चाहिये और गुरुपरंपरागम से इसे ग्रहण करना चाहिये । पुनः जम्बूस्वामीने प्रश्न किया कि हे स्वामी ! गुरुपरंपरागम का क्या अर्थ है ! सुधर्मास्वामीने जवाब दिया किः-आगम तीन प्रकार के हैं१ अन्तागम, २ अनन्तरागम और ३ परंपरागम । __अर्हन्त भगवानने जो उपदेश दिया है और उस उपदेश का जो अर्थ है वह गणधरोंने ग्रहण किया, साथ ही उस अर्थ की गणधरोंने सूत्ररूप में संकलना की इसे अन्तागम माना जाता है। इसके पश्चात् गणवरों के शिष्योंने जो रचनाएं की हैं वे अन्तरागम रूप में मानी जाती हैं। उसके पश्चात् जितने भी ग्रंथों की रचना हुई है उन्हें परंपरागम रूप में ग्रहण करना चाहिये । अअशिष्ट भाग जो कुछ है वह उपाङ्ग चूलिका में मिलता है ।
छः छेद ग्रंथ और उन पर की हुई ग्रंथों की रचनाएं। १ निशीथ सूत्र-इसके २० उद्देश और इसकी श्लोकसंख्या ८१५ है और इस पर लघुभाष्य ७४०० है । इस पर जिनदासगणिविरचित चूर्णि और बृहद्भाष्य है यह टीका के नाम से सुप्रसिद्ध है। इस निशीथसूत्र पर भद्रबाहुस्वामीने भी नियुक्ति की रचना की है। शीलभद्रसूरि के शिष्य चन्द्रसूरिने भी विक्रम संवत् ११७४ भली इस प्रकार व्याख्या की है। जिन दासगणिने इस निशीथसूत्र पर अनुयोगद्वारचूर्णि, निशीथचूर्णि, बृहत्कल्पभाष्य, आवश्यकचूर्णि आदि कईं. एक ग्रंथों का निर्माण किया है।
२ महानिशीथसूत्र-इसकी मूळ श्लोकसंख्या ४५०० मानी जाती है । कई २ विद्वानों के मतानुसार इसकी तीन वाचनायें बताई जाती हैं-१ लघुवाचना, २ मध्यवाचना, ३ बृहद्वाचना।
३ बृहत्कल्पसूत्र-इसकी मूळ श्लोकसंख्या ४७३ है। इस पर विक्रम संवत् १३३२ में श्रीक्षेमकीर्तिसूरिने ४२ हजार श्लोक की एक बहुत बड़ी टीका बनाई है। इस पर जिनदासगणिने एक भाष्य, लघुभाष्य, चूर्णि आदि की रचनायें की हैं।