Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्ताव १ : पीठबन्ध
कथा के प्रकार
लोक में कथा के चार प्रकार कहे गये हैं---अर्थ, काम, धर्म और संकोण (मिश्रित)। [२५]
साम आदि (साम, दाम, दण्ड, भेद) नीति सम्बन्धी, धातुवाद और कृषि विद्या का प्रतिपादन करने वाली तथा धनोपार्जन करने के उपायों से भरी हुई को अर्थ कथा कहा जाता है। यह अर्थ कथा मन को दूषित करने वाली और पाप के साथ सम्पर्क बढ़ाने वाली होने से दुर्गति की ओर ले जाने वाली है। काम-वासना के उपादानों से गर्भित, कामक्रीडावस्था के नैपुण्य को बताने वाली, अनुराग और इंगितादि चेष्टाओं से वासना को उद्दीप्त करने वाली कथाएँ काम कथा कही गई है। यह काम कथा मलिन विषयों में राग को बढ़ाने वाली तथा विपरीत मार्ग में ले जाने वाली होने से दुर्गति का कारण बनती है। दया, दान, क्षमा आदि धर्म के अंगों में प्रतिष्ठित और धर्म की उपादेयता को बताने वाली कथा को बुद्धिमानों ने धर्म कथा कहा है। यह धर्म कथा चित्त की निर्मलता के कारण पुण्य व निर्जरा का विधान करती है, अतः इसे स्वर्ग और मोक्ष का कारण समझना चाहिये। अर्थ, काम, धर्म इन तीनों की प्राप्ति के उपाय बताने वाली, नव रसों से यक्त और निष्कर्ष वाली मिश्रित कथा को संकीर्ण कथा कहते हैं । यह कथा विचित्र एवं नाना प्रकार के अभिप्रायों से युक्त होने के कारण विविध प्रकार के फल देने वाली है तथा सभी विधाओं में पारंगत बनाने में सहायक होती है [२६-३३] श्रोता के प्रकार
इस प्रकार को कथाओं के श्रोता भी चार प्रकार के होते हैं, संक्षेप में उनके लक्षण बताता हूँ। माया, शोक, भय, क्रोध, लोभ, मोह और मद से परिपूर्ण अर्थसम्बन्धी कथा के जो इच्छुक हैं, वे तामस् प्रकृति वाले अधम श्रेणी के मनुष्य हैं। राग-ग्रस्त मन वाले विवेकहीन होकर जो काम कथा की इच्छा करते हैं वे राजस् प्रकृति के मध्यम श्रेणी के व्यक्ति हैं। एक मात्र मोक्ष की प्राकांक्षा वाले शुद्ध हृदय से जो विशुद्ध धर्मकथा को ही सुनना चाहते हैं, वे सात्विक प्रकृति के श्रेष्ठ मानव हैं। उभय लोक की कामना करने वाले किञ्चित् सत्त्वधारी मनुष्य संकीर्ण कथा को सुनने की इच्छा करते हैं, वे श्रेष्ठ मध्यम श्रेणी के हैं। [३४-३८]
रज और तम के अनयायी सत्वशाली जीव, अर्थ और काम के निवारण में समर्थ धर्मशासक और धर्म शास्त्रों की अवहेलना कर, स्वयं अर्थ और काम के रंग में रंग जाते हैं । अर्थ एवं काम-रूपी घी की प्राति से उनकी राग, द्वेष और मोह रूपी अग्नि-ज्वाला बहुत बढ़ जाती है । जैसे मयूरी के केकारव से मयूर के शरीर में रोमांच बढ़ जाता है वैसे ही काम और अर्थ कथा के श्रवण से पाप कार्यों में उत्साह बढ़
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