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ऐ नमः
सिद्धर्षि गरिण की प्रस्तावना मंगलाचरण
जिन्होंने महामोह की समस्त शीत पीड़ाओं का नाश कर दिया है और जो लोकालोक का विशुद्ध दर्शन कराने में सूर्य के समान हैं, ऐसे परमात्मा को नमस्कार हो । जो विशुद्ध धर्म में रत हैं, आत्म-स्वरूप के स्वभाव की पराकाष्ठा को प्राप्त कर चुके हैं. संसार के विकार-समूह का नाश कर चुके हैं और महासत्त्व के पुञ्ज हैं, उन परमात्मा को मेरा नमस्कार हो। नाभिराजा के पुत्र प्रादिनाथ भगवान् जिन्होंने विश्व को सन्तप्त करने वाले राग-केसरी को विदीर्ण कर दिया है, जो प्रशमामत का पान कर तृप्त हो गये हैं, उनको नमस्कार हो। अजितनाथ से लेकर पार्श्वनाथ पर्यन्त निर्मल आत्म-स्वरूप के धारक जिनेन्द्रों को, जिन्होंने सिंह के समान द्वष-गजेन्द्र रूप शत्रु के कुम्भस्थल का भेदन कर दिया है, उनको नमस्कार हो, जिन्होंने समस्त दोषों का दलन कर दिया है, मिथ्या-दर्शन का जड़ से उच्छेदन कर दिया है, कामदेव का नाश कर दिया है और समस्त शत्रुओं का नाश कर शत्रु रहित हो चुके हैं, उन महावीर स्वामी को नमस्कार हो। जिस किसी महात्मा ने खेल-खेल में समस्त प्राणियों को सन्ताप देने वाले अन्तरंग कषायादि महासैन्य का हनन कर दिया है, उनको मैं नमस्कार करता हूँ। जो समस्त वस्तु [पदार्थ समूह का विचार कर सकती है, विश्व के समस्त रहस्यों का उद्घाटन कर सकती है और समस्त पापों का प्रक्षालन कर सकती है ऐसी जिनेश्वर देव की वाणी को मैं वन्दन करता हूँ। मुखचन्द्र की किरणों से दीपित, विकसित कमल की धारक और अपूर्व तेज से शोभित सरस्वती देवी को नमस्कार करता हूँ। जिनके प्रभाव से मेरे जैसा--(सामान्य) व्यक्ति भी परोपदेश में प्रवीण हो जाता है उन सद्गुरुओं को मेरा विशेष रूप से नमस्कार हो।
3[१-६] * पृष्ठ १ इस चिह्नान्तर्गत पृष्ठांक सर्वत्र श्रोष्ठि देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फण्ड
से प्रकाशित उपमिति भव प्रपञ्चा कथा, सन् १९१८ के संस्करण के समझे।
卐 [ ] कोप्ठकान्तर्गत संख्या सर्वत्र उपयुक्त संस्करण की श्लोक संख्या को सूचक हैं। 1. मोह की पीड़ा को शीत-ठण्डी पीड़ा कहा जाता है, क्योंकि यह प्रेम से उत्पन होती है और
अन्त में असह्य सन्तापदायक होती है । किन्तु इस पीड़ा का उद्भव (स्रोत) ठण्डा पड़ जाता है। ठण्डी पीड़ा सर्वदा कठोर और त्रासदायक होती है।
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