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व्याख्यान ३ :
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हो सकता है ? " प्रभुने कहा कि " हे सुदर्शन ! पहले तूने भी ऐसा काल व्यतीत किया है । पूर्वभव में तूं ब्रह्म देवलोक में दस सागरोपम के आयुष्यवाला देव था " आदि उसके पूर्वभव का वृत्तान्त प्रभुने सुनाया, जिसको सुनकर सुदर्शन को वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसने तुरन्त ही स्वामीद्वारा दीक्षा ग्रहण की ।
इस प्रकार उस महाबल के जीव सुदर्शनने दूसरे भव में दीक्षा ग्रहण कर फिर चउदह पूर्व का अभ्यास किया और अन्त में अनुक्रम से सर्व कर्मों का क्षयकर केवलज्ञान प्राप्तकर मोक्षपद को प्राप्त किया ।
देव, गुरु और धर्मरूप तत्व के लिये जिसकी कामधेनु के समान यथार्थबुद्धि होती है उसको सर्व समृद्धियां अनायास ही प्राप्त हो सकती है, जैसे कि सम्यग्दर्शन से महाबल राजा को मोक्षपर्यन्त की समृद्धि प्राप्त हो गई थी । " इत्यब्ददिनपरिमितोपदेशप्रासादग्रंथस्य वृत्तौ प्रथमस्थभे द्वितीयं व्याख्यानम् ॥ २ ॥
व्याख्यान ३ समकित प्राप्ति के दो हेतु । तीर्थकृत्प्रोक्ततत्त्वेषु, रुचि सम्यक्त्वमुच्यते । लम्यते तत्स्वभावेन, गुरूपदेशतोऽथवा ॥१॥