________________
:.२८ :
श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : उद्यान में पधारे हुए श्रीमहावीरस्वामी के चरणकमल को वन्दना करने के लिये वह भी वहां गया। वहां पर श्रीमहावीरस्वामी सर्व जीवों के हित के लिये समय से लगा कर सर्व काल के स्वरूप का निरूपण कर रहे थे । उसको सुन कर विस्मय से भरे हुए सुदर्शन श्रेष्ठीने प्रभु से पूछा कि "हे भगवन् ! काल कितने प्रकारका है ?" स्वामीने उत्तर दिया कि “ हे सुदर्शन ! काल चार प्रकार का है। प्रमाणकाल, यथायुनिवृत्तिकाल, मृत्युकाल और अद्धाकाल ।" " हे स्वामी ! प्रमाणकाल किसे कहते हैं ?" "प्रमाणकाल दो प्रकार का है। चार पहर का दिन और चार पहर की रात्रि आदि ।" "हे स्वामी ! यथायुनिवृत्ति काल किसे कहते हैं ?" "हे सुदर्शन ! नारकी जीव तथा देवतागणने जिस प्रमाण में आयुष्य बांधा होगा उसही प्रमाण में पूरा पूरा वे भोगेगें इसको यथायुनिवृत्तिकाल कहते हैं।" " हे स्वामी ! मृत्युकाल किसे कहते हैं ?" " हे श्रेष्ठी ! जीव का शरीर से अलग होना अथवा शरीर का जीव से पृथक होना मृत्युकाल कहलाता है।" "हे भगवन् ! अद्धाकाल किसे कहते हैं ?" "हे श्रेष्ठी! अद्धाकाल कई प्रकार का है। समयकाल और आवलिका काल से आरम्भ होकर उत्सपिणी अपसर्पिणी तक का सर्वकाल अद्धाकाल कहलाता है।" इसको सुनकर उसने प्रश्न किया कि "हे भगवन् ! पल्योपम और सागरोपम जैसा बड़ा काल किस प्रकार पूर्ण