Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञानचन्द्रिकाटीका-ज्ञानभेदाः। दयः प्रयोगा न स्युः, अव्ययीभावस्य सदा नपुंसकत्वादिति वाच्यम् , प्रत्यक्षमस्यास्तीत्यर्थेऽर्श आदित्वादच्-प्रत्यये कृते तत्सिद्धिसंभवादिति चेत् अत्रोच्यतेएवमपि 'प्रत्यक्षो बोधः' 'प्रत्यक्षा बुद्धिः' इत्यादिप्रयोगाणां साधुत्वं न स्यात् , न ह्यत्र मखीयार्थों घटते, प्रत्यक्षात्मकज्ञानस्यैव बोधबुद्धिशब्दाभ्यामभिधानादिह तत्पुरुषसमासाश्रयणमेव श्रेय इति । किया जायगा तो “प्रत्यक्षोऽयं घटः प्रत्यक्षा चेयं लता" इत्यादिक प्रयोग नहीं बन सकेगे, कारण कि जो अव्ययीभाव समास होता है वह सदा नपुंसकलिङ्ग होता है सो ऐसी आशंका भी ठीक नहीं है, कारण कि “प्रत्यक्षमस्यास्तीति" इस अर्थमें “अर्शआदिभ्योऽच" इस सूत्रद्वारा अच-प्रत्यय होने पर "प्रत्यक्षः प्रत्यक्षा" इन शब्दों की सिद्धि हो जाती है तो फिर तत्पुरुष समास की आवश्यकता नहीं रहती।
उत्तर-अव्ययीभाव समास की सिद्धिके निमित्त ऐसा समाधान देना ठीक नहीं है । कारण कि ऐसा मानने पर भी “प्रत्यक्षो बोधः " "प्रत्यक्षा बुद्धिः" इत्यादि प्रयोगों में साधुता नहीं आ सकती है, क्यों कि यहां मत्वीय अर्थ घटित ही नहीं होता है। यहां तो प्रत्यक्षात्मक ज्ञानका ही बोध एवं बुद्धि शब्दों के द्वारा कथन किया गया है, इस लिये “प्रत्यक्ष" यहां तत्पुरुषसमास ही ठीक मानना चाहिये; अव्ययीभाव समास नहीं। स्वीकृत ४२वामा माशे तो “ प्रत्यक्षोऽयं घटः, प्रत्यक्षा चेयं लता" वगेरे प्रयोग બની શકશે નહીં, કારણ કે જે અવ્યયીભાવ સમાધ્ય હોય છે તે સદા નાજેતર नतिमा डाय छ तो सेवी २ ४ ५ ५२२५२ नथी, ४२११ , “ प्रत्यक्षमस्यास्तीति" २॥ अर्थमा 'अर्श आदिभ्योऽच ' 20 सूत्रा२'अच्' प्रत्यय
पाथी 'प्रत्यक्षः प्रत्यक्षा' से होनी सिद्धि य जय छ तो पछी तर५३५ સમાસની આવશ્યકતા રહેતી નથી.
ઉત્તર–અવ્યયીભાવ સમાસની સિદ્ધિના નિમિત્તે એવું સમાધાન દેવું सशस२ नथी. २५ मे भानवा छतi ५५ 'प्रत्यक्षो बोधः ''प्रत्यक्षा बुद्धिः' વગેરે પ્રયોગમાં સાધુતા આવી શકતી નથી, કારણ કે અહીં માત્વીય અર્થ બંધબેસતે જ થતું નથી. અહીં તે પ્રત્યક્ષાત્મક જ્ઞાનનું બેધ અને બુદ્ધિ શબ્દના દ્વારા કથન કરાયું છે. તેથી “પ્રત્યક્ષ” અહીં તપુરૂષસમાસ જ એગ્ય માન नये, मव्ययाला समास नही.
શ્રી નન્દી સૂત્ર