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ज्ञानचन्द्रिका टीका-आचाराङ्गस्वरूपवर्णनम्. तम् २, अथवा श्रुतं मया आयुष्मता ३, अथवा श्रुतं मया भगवत्पादारविन्दयुगलमामृशता ४, अथवा श्रुतं मया गुरुकुलमावसता ५, अथवा श्रुतं मया हे आयुप्यमन् ! ' तेणं' तत् , प्रथमार्थे तृतीया, भगवता एवमाख्यातम् ६, अथवा-श्रुतं मया हे आयुष्मन् ! ' तेणं' तदा भगवता एवमाख्यातम् ७, अथवा-श्रुतं मया बोधक हो जाता है २ । तीसरा अर्थबोध इस प्रकार से है " श्रुतं मया आयुष्मता" मुझ आयुष्मान द्वारा सुना गया है" इस कथनमें यह "आयुष्मता" विशेषण सुधर्मास्वामी के साथ प्रयुक्त होता हुआ प्रतीत होता है ३ । " श्रुतं मया आमृशता" यहां “आउसंतेणं" की छाया "आमशता' हुई है, इसलिये चतुर्थ अर्थ ऐसा होता है कि "भगवान् के पादारविन्दयुगल को स्पर्श करने वाले मैंने सुना है" ४ । अथवा-"आउसंतेणं" की छाया 'आवसता' भी होती है जिसका अर्थ होता है कि "गुरुकुलमें निवास करते हुए मैंने सुना है" ५। "तेणं" यह पद जब प्रथमा के अर्थमें तृतीयारूप से प्रयुक्त हुआ माना जावेगा तब "तेणं" की छाया "तत्" होगी, तब ऐसा अर्थ बोध होगा कि-"श्रुतं मया आयुष्मन् । तत् भगवता एवमाख्यातम्" हे आयुष्मन् ! मैं ने सुना है जिन जीवादिवस्तुओं को भगवान् ने इस प्रकार से प्रतिपादित किया है ६। अथवा"तेणं" यह पद "तदा" के रूपमें प्रयुक्त हुआ जब माना जावेगा तब "श्रुतं मया आयुष्मन् तदा भगवता एवमाख्यातम्" ऐसा अर्थ बोध होगा" अर्थात्-हे आयुष्मन् ! जंबू ! मैं ने तब सुना था जब भगवान्ने ऐसा પદ ભગવાન મહાવીર સ્વામીનું બેધક બની જાય છે (૨) ત્રીજો અર્થબોધ આ प्रमाणे छ-" श्रुतं मया आयुष्मता" " आयुष्मान सेवा भारा द्वारा समायु छ, २॥ ४थनमा - " आयुष्मता" विशेष सुधास्वाभानी साथे १५सयुं होय तेभ सागेछ (3) श्रुतं मया आमृशता" ही “आउसंतेणं" नी छाय। "आमृशता" छे, तेथी याये। म यो थाय छ " भगवानन पा॥२. वियुसन २५ ४२नार में सामन्यु छ.” (४) अथवा “ आउसंतेणं" नी छाया “आवसता" ५५ थाय छ रेन। मे। मर्थ थाय छे “शुरुमा निवास ४२ता सेवा में सामन्यु छ” (५). “ तेणं, २॥ पहले प्रथमाना सभा तृतीया३३ ५५शयेर मानवामां मावे तो " तेणं"नी छाया " तत् " थशे, त्यारे २ प्रमाणे मथनी मोध थशे -" श्रुतं मया आयुष्मन् ! तत् भगवता एवमाख्यातम्' है आयुष्मान ! 2 वस्तुमान लगवाने मारे प्रति. पाहित ४२ छ त में सामन्यु तु. (६) अथवा "तेणं” २॥ ५६ तदा न ३२ शयेने भानी सेवाय त " श्रुतं मया आयुष्मन् तदा भगवता अवमा
શ્રી નન્દી સૂત્ર