Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञानचन्द्रिका टीका-अतिगदृष्टान्तः, अजादृष्टान्तः
६९९ कथमेतत् ? । रोहकः प्राह-भवान् पृथिवीपतिः, अतो मया पृथिवी समानीता तेन न रिक्त हस्तोऽहम् , मृत्खण्डस्य तुच्छरूपत्वान्नाप्यरिक्तहस्तोऽहम् । प्रथमदर्शनसमये रोहकस्य मङ्गलवचः श्रुत्वा राजा परितुष्टोऽभवत् । ग्रामवासिनो लोका अपि ग्रामं गतवन्तः।
॥ इति दशमोऽतिगदृष्टान्तः ॥ १० ॥ यद्वा-' अइया' इत्यस्य 'अजिका' इतिच्छाया। 'अजा' एव अजिका। तथा च-अजा दृष्टान्त इति बोध्यम् । स चैवम्
अथ राजा परितुष्टः सन् रात्रौ रोहकं स्वसमीपे शायितवान् । अन्येऽपि लोका इतस्ततस्तत्समीपे शायिताः। रजन्याः प्रथम-यामान्ते रोहकं प्राह-रे रोहक ! कहा-यह कैसे ? रोहक ने उत्तर दिया-मिट्टी का ढेला हाथमें लेकर आयो हुं राजा ने कहा यह कैसे ? रोहकने उत्तर दिया-आप पृथिवी पति हैं अतः मैं पृथिवी लेकर आया हूं इस लिये मैं रिक्त हस्त-खाली हाथ नहीं आया हूं, और मिट्टी का ढेला तुच्छ रूप होने से अरिक्त हस्त-भरे हाथ भी नहीं आया हूं। इस तरह प्रथम दर्शनकाल में रोहक के इस प्रकार के मंगलीक वचन सुनकर राजा बहुत सन्तुष्ट हुआ। ग्रामवासी लोग अपने ग्राम की तरफ चले गये॥
॥ यह दसवां अतिगदृष्टान्त हुआ ॥१०॥ यहां मूलमें 'अइया' पद है उस की छाया 'अजिका' ऐसी भी होती है इसलिये फिर दसवां अजादृष्टान्त है
तुष्ट हुए राजा ने रोहक को रात्रिमें अपने पास सुलाया, तथा और जो लोग थे उन्हें इधर उधर उसके पास सुलाया। रात्रि का जब प्रथम પણ આવ્યું નથી. ” રાજાએ કહ્યું, “એ કેવી રીતે ?” રેહકે જવાબ આપ્યો " २५ पृथ्वीपति छो. तेथी हुँ पृथ्वी (भाटी) सन २०ये। छु, तेथी ખાલી હાથે આવ્યો નથી અને માટીનું ઢેકું તુછ હોવાથી ભર્યા હાથે પણ આવ્યો નથી.” આ રીતે પ્રથમ દર્શનકાળે રેહકનાં આ પ્રકારના માંગલિક વચન સાંભળીને રાજા ઘણે અંતેષ પામે. ગામવાસી લેકે પોતાને ગામ ચાલ્યા ગયા.
॥मा हुसभु अतिग हटांत समात ॥१०॥ मडी भूगमा “अइया" ५६ छ. तेनी छाया "अजिका" ५५ थाय छे. तथी शथी इस अजादृष्टांत भूज्यु छ- સંતુષ્ટ થયેલ રાજાએ રોહકને રાત્રે પોતાની પાસે સુવા, અને બીજા જે લેકે હતા તેમને અહીં તહીં તેની પાસે સુવાડયા, જ્યારે રાત્રિને પહેલે
શ્રી નન્દી સૂત્ર