Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञानसन्द्रिका टीका-व्याख्याप्रज्ञप्तिस्वरूपवर्णनमः भवति, एवं ज्ञाता भवति, एवं विज्ञाता भवति । एवम्-उपयुक्तप्रकारेण चरणकरणप्ररूपणाऽत्र आख्यायते ६ । 'परीता वाचनाः' इत्याग्भ्य 'चरण करणप्ररूपणा आख्यायते' इत्यन्तानां पदानां व्याख्या आचाराङ्गस्वरूपनिरूपणावसरे कृता, ततो ऽबसेया। प्रकृतमुपसंहरन्नाह-' से तं विवाहे ' सैषा व्याख्या इति ॥ सू०४९॥
अथ षष्ठाङ्गज्ञाताधर्मकथास्वरूपमाहमलम-से किं तं नायाधम्मकहाओ ? नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराइं १,उजाणाइं २, चेइयाइं ३, वणसंडा ४, समोसरणाइं ५, रायाणी ६, अम्मापियरो७, धम्मायरिया ८, धम्मकहाओ ९, इहलोइयपरलोइया इढिविससा १०, भोगपरिच्चा. या११, पव्वजाओ१२, परिआया १३, सुयपरिग्गहा १४, तवोवहाणाई १५, संलहणाओ १६,भत्त पञ्चक्खाणाइं १७, पाओवगमः तथा उपदर्शन हुआ है । जो व्यक्ति इस अंग का अच्छी तरह से अध्ययन करता है वह प्राणी आत्मस्वरूप हो जाता है, ज्ञाता हो जाता है, एवं विज्ञाता हो जाता है। इस तरह से हम अंगमें उपयुक्त प्रकार से चरण और करण की प्ररूपणा आख्यात हई है. प्रज्ञापित हुई है, प्ररूपित हुई है, दर्शित हुइ है निदर्शित हुई है. उपदर्शित हुई है। इस प्रकार यह व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग का स्वरूप है।-" परीता वाचनाः" इन पदों से लेकर " चरण करण प्ररूपणा आख्यायते" यहां तक के ये जितने भी पद हैं उन सब की व्याख्या आचारांग के स्वरूप निरूपण करते समय सूत्र ४५ में की जा चुकी है अतः वहाँ से जान लेना चाहिये । सू० ४९॥ થયું છે. જે વ્યક્તિ આ અંગનું સારી રીતે અધ્યયન કરે છે તે વ્યક્તિ આત્મસ્વરૂપ થઈ જાય છે, જ્ઞાતા થાય છે અને વિજ્ઞાતા થાય છે. આ રીતે આ અંગમાં ઉપર પ્રમાણે ચરણ અને કરણની પ્રરૂપણા થઈ છે, પ્રજ્ઞાપિત થઈ છે, પ્રરૂપિત થઈ છે, દશિત કરાઈ છે, નિદર્શિત થઈ છે ઉપદર્શિત થઈ છે. આ પ્રમાણે આ व्याच्या प्रति मनु स्व३५ छ. “परितावाचनाः" मे पहाथी सन " चरण करण प्ररूपणा आल्यायते" सुधीन। २i ५४ छत अधानी व्याच्या मायाરાંગનું સ્વરૂપ નિરૂપણ કરતી વખતે ૪૫માં સૂત્રમાં કરી નાખેલ છે, તે ત્યાંથી સમજી લેવી. સૂ૦ ૪૯ છે
શ્રી નન્દી સૂત્ર