________________
ज्ञानचन्द्रिका टीका-आचाराङ्गस्वरूपवर्णनम्.
तथा-संख्येयानि अक्षराणि-वेष्टकादीनां संख्येयत्वात् संख्येयान्यक्षराणि । अनन्ता गमाः, गमाः-अर्थगमाः-अर्थपरिच्छेदा इत्यर्थः, ते च अनन्ताः-अन्तरहिताः आनन्त्यं चैषाम्-' एगे आया० ' इत्यादि रूपात् एकस्मादेवसूत्रात्तत्तद्धर्मविशिष्टानन्तधर्मात्मक वस्तुप्रतिपत्तेः । यद्वा-अभिधानाभिधेयवशाद् गमा भवन्ति । ते चानन्ता भवन्ति । आनन्त्यं चैषामभिधेयवशादेवं विज्ञेयम्___ "संखेज्जा अक्खरा' आचारांगमें अक्षरों का प्रमाण संख्यात है, कारण वेष्टक आदिक स्वयं संख्यात हैं। तथा गमा-पदार्थों का निर्णय अनंत हैं-अन्त रहित हैं। इनका जो आनन्त्य कहा गया है उसका कारण यह है कि-"एगे आया०" इत्यादिरूप एक ही सूत्र से तत्तदनंत धर्मात्मक वस्तु का बोध श्रोता को होता है। तात्पर्य कहने का यह है जिवादिक समस्त वस्तुएँ अनंत धर्मात्मक हैं-कोई भी वस्तु एकान्तरूप से एक धर्म विशिष्ट नहीं है ऐसी मान्यता जैनधर्म की है, अतः जब सिद्धान्तानुसार किसी भी सूत्रद्वारा जीवादिक वस्तुओं का प्रतिपादन होगा तो वह उसी रूपमें होगा जैसे-“एगे आया" आत्मा एक है " यह सूत्र आत्मामें एकता को प्रदर्शित करता हुवा यह निरुपण करता है-कि आत्मा त्रिकालवर्ती अनंत पर्यायो से युक्त है, तथा वह अनंतशक्तिरूप अनंतधर्मवाला है । 'अनंता गमा' इस तरह से अर्थपरिच्छेदजीवादिक पदार्थों का ज्ञान इस सूत्र द्वारा होता है, अतःयह मानना पड़ता है कि इस सूत्र में इस प्रकार से अर्थबोधकता रही हुई है।
“संखेज्जा अक्खरा" यागमा २१क्षरानुं प्रमाण सध्यात , ४।२९५ કે વેકાદિક પિતે જ સંખ્યાત છે. તથા ગમા–પદાર્થોનો નિર્ણય અનંત છે. तमनी मनतता वामां मावी छे तेनुं ॥२९१ मे छ है " एगेआया." ઈત્યાદિ રૂપ એક જ સૂત્રથી તે તે અનંત ધર્માત્મક વસ્તુનો બોધ શ્રેતાને થાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે જીવાદિક સમસ્ત વસ્તુઓ અનંત ધર્માત્મક છે–કઈ પણ વસ્તુ એકાન્ત રૂપથી એક ધર્મ વિશિષ્ટ નથી, એવી જૈન ધર્મની માન્યતા છે, તેથી સઘળા સિદ્ધાંત ગ્રન્થના કેઈ પણ સૂત્ર દ્વારા જીવાદિક १२तुम्मान प्रतिपादन थशे तो ते ४ ३पे थशे, म , एगे आया" ॥ સૂત્ર આત્મામાં એકતા બતાવતા એ બતાવે છે-કે આત્મા ત્રિકાળવતી અનેક पर्यायाथी युद्धत छ तथा ते मनात शति३५ मनतवाणी छे. " अनंतागमा" આ રીતે અર્થ પરિચછેદ જીવાદિક પદાર્થોનું જ્ઞાન આ સૂત્ર દ્વારા થાય છે, તેથી એમ માનવું પડે છે કે આ સૂત્રમાં આ પ્રકારે અર્થ બેધકતા રહેલી છે. એજ
શ્રી નન્દી સૂત્ર