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नन्दीसूत्रे सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामिनं प्रत्याह-" सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं" इति । तत्रायमर्थः-श्रुतं मया हे आयुष्मन् ! तेन भगवतावर्धमानस्वामिना एवमाख्यातम् (१) । अथवा श्रुतं मया आयुष्मदन्ते-आयुष्मतो भगवतो वर्धमानस्वामिनोऽन्ते-समीपे, 'णं' इति वाक्यालङ्कारे, तथाच-भगवता एवमाख्यायही गम है और ऐसे गम इस आचारांग श्रुतमें अनंत हैं । अथवाइसका तात्पर्य यह भी होता है कि अभिधान तथा अभिधेय के अनुसार ही गम अर्थ बोध होता है और वह अनंत रूपमें होता है-एक रूपमें नहीं । जैसे-सुधर्मास्वामी ने जंबूस्वामी से कहा-“सुयंमे आउस तेणं भगवया एवमक्खायं ""श्रुतंमया आयुष्मन् ! तेन भगवता एवम् आख्यातम्" हे आयुष्मन् ! जम्बू मैने सुना है कि उन भगवान वर्धमान स्वामीने ऐसा कहा है एक तो इन पदों का यह तात्पर्य होता है १। दूसरा अर्थ इस प्रकार होता है कि "सुयं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं" "श्रुतं मया आयुष्मदन्ते भगवता एवम आख्यातम्" मैंने आयुष्मान भगवान महावीर स्वामी के पास सुना है कि उन्होंने ऐसा कहा है। इस प्रकार के वाच्यार्थमें "णं" यह शब्द वाक्यालंकार रूप से प्रयुक्त मान लिया जावेगा २ । पहिले अर्थमें “आउसं" यह पद जंबूस्वामी का “आयुष्मन्" रूप से विशेषणरूपमें प्रयुक्त हुआ था, अब इस द्वितीय अर्थमें “आयुष्मदन्ते" यह पद भगवान वर्धमान स्वामीका
" म" छ भने सवा 'आम' 24॥ मायागसूत्रमा भने छे. अथवा तेनु તાત્પર્ય એ પણ થાય છે કે અભિધાન તથા અભિધેયના અનુસાર જ ગમઅર્થ બંધ થાય છે, અને તે અનંતરૂપે થાય છે, એક રૂપે નહીં જેમ કે સુધર્મા स्वामी स्वाभान यु-“ सुयं मे आउस तेणं भगवया एवमक्खायं" "श्रुतं मया आयुष्यमान् ! तेन भगवता एवम् आख्यातम्” “3 सायुम्भन में સાંભળ્યું છે કે તે ભગવાન વર્ધમાન સ્વામીએ એવું કહ્યું છેએક તો એ पहानु 24॥ ५र्य थाय छे. (१) पीने म २॥ प्रारे थाय छ “सुयं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं" " श्रुतं मया आयुष्मदन्ते भगवता एवं आख्यातम्" મેં આયુષ્માન્ ભગવાન મહાવીર સ્વામી પાસે સાંભળ્યું છે કે તેમણે આમ કહ્યું છે. આ પ્રકારના વાગ્યાથમાં “” આ શબ્દ વાક્યાલંકારરૂપે વપરાયેલ માની and (२) पडे। अर्थमा “आउसं" मे ५६ भ्यूस्वामीना “ आयुष्मन्" ३५था विशेष५३५ १५२ उतु, वे सा मी01 अर्थ भा “ आयुष्मदन्ते" ।
શ્રી નન્દી સૂત્ર