Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञानवन्द्रिकाटीका-शानभेदाः । (स्त्रोमोक्षसमर्थनम् )
२७७ ननु ' यत्राभिनिबोधिकज्ञानं तत्र श्रुतज्ञानम् ' इत्युक्ते सति ' यत्र श्रुतज्ञानं तत्राभिनिबोधिकज्ञान'-मिति ज्ञातं भवत्येव किं पुनस्तदुपादानेनेति चेत् , अत्रो. च्यते-नियमतो न ज्ञायते तस्मानियमावधारणार्थं ' यत्र श्रुतज्ञानं तत्राभिनिबोधिकज्ञान'-मित्युच्यते । नियमावधारणमेव स्पष्टयति-'दोवि एयाइं०' इत्यादि । द्वे अप्येते आभिनिवोधिकश्रुते अन्योन्यमनुगते परस्परं संबद्धे, अनयोनियमेन सहभावोऽस्तीति भावः।
ननु यद्यनयोः परस्परं नियमेन सहभावस्तर्हि अनयोरभेद एवास्तु, कथं भेदेन व्यवहारो भवतीत्यत आह-तह वि०' इत्यादि । यद्यप्येते उभे ज्ञाने अन्योन्यानुगते
शंका--" जत्थ आभिणिबोहियनाणं तत्थ सुयनाणं" "जहां आभिनिबोधिकज्ञान होता है वहां श्रुतज्ञान होता है, और जहां श्रुतज्ञान होता है वहां आभिनिबोधिकज्ञान होता है तो फिर सूत्रकार को इस बातको प्रकट करने के लिये सूत्र में " जत्थ सुयनाणं तत्य आभिणिबोहियनाणं" फिर इन पदों के रखने की क्या आवश्यकता थी १।
उत्तर-नियम से यह बात नहीं जानी जाती है इसलिये इस प्रकार के नियम के निर्णय के लिये “ जत्थ सुयनाणं तत्थ आभिनिवोहियनाणं " ऐसा कहा है । इसी नियम का निर्णय वे ' दोऽवि एयाइं अण्णमण्णमणुगयाई' इन पदों से करते हैं। इसमें बतलाया गया है कि ये दोनों ज्ञान परस्पर संबद्ध हैं, अर्थात् नियमतः इनका सहयोग है। __ शंका-यदि इनका परस्पर में नियमतः सहभाव है तो फिर इनमें कोई भेद नहीं रहना चाहिये, और भेद से जो इनका व्यवहार होता है
श-" जत्थ आभिणिबोहियनाण तत्थ मुयनाणं" या मालिनिमाधि જ્ઞાન હોય છે ત્યાં શ્રુતજ્ઞાન હોય છે” આટલું કહેવાથી જ જ્યારે એ વાત જાણી શકાય છે કે જ્યાં શ્રતજ્ઞાન હોય છે ત્યાં આભિનિબેધિકજ્ઞાન હોય છે તે પછી सूत्रमारने 21 पात प्रगट ४२१॥ भाटे सूत्रमा “जत्थ सुयनाण तत्थ आभिणिबोहियाण " से पहोने भूजवानी ४३२ शी ती ?
ઉત્તર–નિયમથી આ વાત જાણી શકાતી નથી તેથી આ પ્રમાણેના નિયभना निणय भाट “ जत्थ सुयनाण तत्थ आभिनिबोहियानाण" सेम घुछ. मेर नियमन निर्णय ते “दोऽवि एयाई अण्णमण्णमणुगयाई" से पहाथी रे છે. તેમાં બતાવ્યું છે કે એ બને જ્ઞાન પરસ્પર સંબદ્ધ છે, એટલે કે નિયमत: तमन। सहयोग छ.
શંકા- જે તેમને પરસ્પરમાં નિયમતઃ સહભાવ છે તે પછી તેમનામાં કેઈ ભેદ રહેવા જોઈએ નહીં, અને ભેદથી જે તેમને વ્યવહાર થાય છે તે નષ્ટ
શ્રી નન્દી સૂત્ર