Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञानचन्द्रिकाटीका-ईहामेदाः । सा षडुविधा प्रज्ञप्ता । तद् यथा-श्रोत्रेन्द्रियेहा-इत्यादि । श्रोत्रेन्द्रियेण ईहा-श्रोत्रे. न्द्रियार्थावग्रहमधिकृत्य या प्रवृत्ता ईहा सा श्रोत्रेन्द्रियेहा, इत्यर्थः । एवं शेषाश्चक्षुरिन्द्रयेहादयोऽपि साधनीयाः। 'तीसे गं०' इत्यादि । तस्याः ईहायाः । अन्यत् सुगमम् । नवरं सामान्यापेक्षया एकार्थकानि । विशेषचिन्तायां तु भिन्नार्थकानि ।
‘से किं तं ईहा ?' इत्यादि।
शिष्य पूछता है कि हे भदंत ! पूर्वनिर्दिष्ट ईहा का क्या स्वरूप है ? उत्तर-ईहा छह प्रकार की बतलाई गई है। वह इस प्रकार है-श्रोत्र इन्द्रिय ईहा १, चक्षु इन्द्रिय ईहा, घ्राण इन्द्रिय ईहा ३, जिह्वा इन्द्रिय ईहा ४, स्पर्शइन्द्रिय ईहा ५, नो इन्द्रिय ईहा ६। उसके ये नाना घोषवाले तथा नाना व्यंजनावाले एकार्थक पांच नाम है । जैसे-आभोगनता, मार्गणता २, गवेषणता ३, चिन्ता ४, और विमर्श ५, इस प्रकार ये पांच ईहा के नाम हैं । वस्तु के निर्णय के लिये जो विचारणा होती है उसका नाम ईहा है । श्रोत्रेन्द्रिय से जन्य अर्थावग्रह के बाद जो विचारणा चलती है उसका नाम श्रोत्रेन्द्रिय ईहा है। इसी तरह अवशिष्ट इन्द्रियों की ईहा भी उन २ इन्द्रियों के अर्थावग्रह के बाद हुई विचारणा स्वरूप जाननी चाहिये । इस ईहा के जो पांच नाम एकार्थक बतलाये गये हैं वे सामान्य की अपेक्षा ही बतलाये गये जानना चाहिये, विशेष की अपेक्षा नहीं, कारण-विशेष की अपेक्षा ये सब भिन्न २ अर्थवाले हो
" से कि त ईहा ?" त्याहशिष्यपूछछे-डे महन्त! पूनिट “ईहा"नु शु १३५छे ?
उत्तर-ईहा ना छ प्रारमताव्याछे. ते माप्रमाणे छ-(१) श्रीन्द्रिय डा, (२) यधन्द्रिय डा, (3) प्राणेन्द्रिय डा, (४) वन्द्रिय हा, (५) સ્પર્શેન્દ્રિય ઈહા, અને (૬) ને ઈન્દ્રિય ઈહા. તેના વિવધઘષવાળા તથા विविधव्या साथ पांयनमछ. २i 3 (१) मानता, (२) भागता, (3) गवेषाता, (४) चिन्ता, मने (५) विभश. २मा प्रा डान। પાંચ નામ છે. વસ્તુના નિર્ણયમાટે જે વિચારણા થાય છે તેનું નામ ઈહા છે.
શ્રોત્રેન્દ્રિયજનિતઅર્થાવગ્રહબાદ જે વિચારણા થાય છે તેનું નામ શ્રોન્દ્રિય ઈહા છે. એજ રીતે બાકીની ઈન્દ્રિયની ઈહા પણ તે તે ઈન્દ્રિયેના અર્થાવગ્રહ બાદ થયેલવિચારણાસ્વરૂપસમજીલેવી. આ ઇહાના જે પાંચ એકાઈક નામ બતાવ્યા છે, તે સામાન્યની અપેક્ષાએ જ બતાવેલમાનવા જોઈએ, વિશેષની અપેક્ષાઓનહીં, કારણ કે વિશેષની અપેક્ષાએ એ બધાં ભિન્નભિન્ન
શ્રી નન્દી સૂત્ર