Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञानचन्द्रिकाटीका-श्रुतनिश्रितमति शानभेदाः।
३२१ एतादृशं ज्ञानम् ‘ईहा' इत्युच्यते, निश्चयाभिमुखत्वेन संशयादुत्तीर्णत्वात् , सर्वथा निश्चयेऽवायप्रसङ्गेन निश्चयादधोवर्तित्वाचेति संशयेहयोः प्रतिविशेषः।
यथा वा-'अयं मनुष्यः' इत्यवगृहीते सति, तत्र सद्भूतविशेषार्थपर्यालोचनं भवति, यथा तत्र-'किमयं दाक्षिणात्यः ? किं वाऽयमौदीच्यः?' इति संशयस्य निराकरणार्थं भवति । अयं दाक्षिणात्यो भवितुमर्हति, तद्देशीयवेषादिसमन्वितत्वात् ,इति २। ___ अर्थात्-यह निर्जन अरण्य है, सूर्य भी अस्त हो गया है, इसलिये इस समय यहां मनुष्य की संभावना नहीं है, अतः घोसले और लताओं से युक्त यह स्थाणु ही होना चाहिये ॥१॥
इस श्लोक में जो ‘स्मरारातिसमाननाम्ना' यह पद है, उसका अर्थ है-स्मराराति-महादेव के नाम सदृश नामवाला अर्थात् स्थाणु ।
इस प्रकार जो वस्तु के निर्णय करने की ओर झुकता हुआ ज्ञान है उसी का नाम ईहा है। संशय में और ईहा में इस तरह भेद हो जाता है-संशय में निर्णय की तरफ झुकाव नहीं है तब कि ईहा में है। ईहा में सर्वथा निश्चय नहीं है। ऐसा निश्चय तो अवायज्ञान में है, इसीलिये ईहा को अवायज्ञान से पहिले माना है। इसी तरह जब अवग्रहज्ञान का विषय 'यह मनुष्य है' ऐसा होता है तब वहां पर भी सद्भूत विशेष अर्थ की पर्यालोचना होती है जैसे यह मनुष्य दणिक्ष का है अथवा उत्तर का है। जब इस प्रकार का अवग्रह के पश्चात् संशयज्ञान होता है तब उसके निराकरण के लिये जो ऐसा ज्ञान होता है कि-'यह
એટલે કે-આ નિર્જન વન છે, સૂર્ય પણ અસ્ત પામે છે, તેથી આ સમયે અહીં મનુષ્યની સંભાવના નથી, તેથી માળાઓ અને લતાઓથી યુક્ત સ્થાણુ જ डामध्ये २0 मारे "स्मराराति समाननाम्ना" से ५४ छे, तेना म मा प्रमाणे छ-स्मरोराति महावना नाम समान नामवाणु स्थान. २ रीत स्तुन નિર્ણ કરવાની તરફ ઢળતું જે જ્ઞાન છે તેનું નામ છે. સંશયમાં અને ઈહામાં माशते तशक्त ५ छ-संशयमा नियनी त२६ पापा नथी त्यारे ईहा માં છે. ઈહામાં તદ્દન નિશ્ચય નથી. એ નિશ્ચય તે જવાયજ્ઞાન માં જ છે. તેથી ईहा ने अवायज्ञान नी माग मानेर छे. मे रीते न्यारे अवघड ज्ञानना વિષય “આ મનુષ્ય છે” એ હોય છે ત્યારે તેમાં પણ સદ્ભૂત વિશેષ અર્થની પર્યાલચના થાય છે, જેમકે “આ મનુષ્ય દક્ષિણને છે કે ઉત્તર છે” જ્યારે આ પ્રકારના અવગ્રહ પછી સંશયજ્ઞાન થાય છે ત્યારે તેના નિવારણને માટે જે એવું જ્ઞાન થાય છે કે-“એ દક્ષિણ દેશનો હોવો જોઈએ, કારણ કે દક્ષિણદેશમાં न० ४१
શ્રી નન્દી સૂત્ર