Book Title: Devvandanbhashyam
Author(s): Devendrasuri, Dharmkirtisuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ।। कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ।। ।। अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः ।। ।। योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ॥ । गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः ।। ॥चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। आचार्य श्री कैलाससागरसूरिज्ञानमंदिर पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प ग्रंथांक:१ बन आराधना महावीर जो कोबा. अमतं तु विद्या श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079) 23276252, 23276204 फेक्स : 23276249 Websiet : www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर परिवार डाइनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ (079)26582355 For Private And Personal Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir HAROKHOONDRIODSOTROO श्रीमजिनेश्वरोपज्ञागमानुसारितपोगच्छधुरंधरश्रीमद्देवेन्द्रसूरिप्रणीतम् श्रीदेववन्दन (चैत्यवन्दन) भाष्यम् श्रीमदेवेन्द्रसूर्यन्तिषत्श्रीमद्धर्मकीर्तिसूत्रितश्रीसंघाचारविध्याख्यवृत्तियुतम AUDIO मुद्रयित्री-मालवदेशान्तर्गतश्रीरत्नपुरीयश्रीऋषभदेवकेशरीमलजी इत्यभिधाना श्वेताम्बरसस्था मुद्रकः-मोहनलाल मगनलाल बदामी. श्री 'जैनानंद' प्रिन्टींग प्रेस, दरिया महेल-सुरत. वीरसंवत् २४६४॥ पण्यम् रु. ५-०-० प्रतयः ५०० विक्रमसंवत् १९९४ सर्वेऽधिकाराः१८७७ तमनियमानुसारेण स्वायत्तीकृताः क्राइष्टसन् १९३८ For Private And Personal Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir Printed by:-Mohanlal Maganlal Badami. at the Jainanand P. Press, Surat, Published by:-Shree Rushabhdevaji Kesharimalji Jain Pedhi Ratlam For Private And Personal Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ II Acharya Shri Kal Shri M a h Aradhana Kendra www.kobatirth.org u ri Gyanmandir भाष्यं श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ श्रीचैत्यवंदनभाष्यमूलम् . गाथांकापत्रांकः । वंदित्तु वंदणिजे सव्वे चिइवंदणाइसुवियारं । बहु-वित्ति-भास-चुण्णी-सुयाणुसारेण वुच्छामि दहतिग१ अहिगमपणगर दुदिसि३ तिहुग्गह४ तिहा उ वंदणया५। पणिवाय६ नमुकारा७ वन्ना सोलसय सीयाला८ २ २६ इगसीइसयं तु पया९सगनउई संपयाओ १० पण दंडा११॥ बार अहिगार१२चउ वंदणिज१३सरणिज१४ चउह जिणा१५३ , चउरो थुई१६ निमित्तट्ठ१७वार हेऊ१८ असोल आगारा१९ गुणवीस दोस२० उस्सग्गमाण२१ थुत्तं२२ च सगवेला२३४ दसआसायणचाओ२४सव्वे चिइवंदणाइठाणाई । चउवीसदुवारेहिं दुसहस्सा हुंति चउसयरा तिन्नि निसीही तिनि उ पयाहिणार तिन्नि चेव य पणामा३ । तिविहा पूया४ य तहा अवत्थतियभावणं चेव५ ।। तिदिसिनिरिक्खणविरई६ पयभूमिपमजणं च तिखुत्तो। वन्नाइतियं८ मुद्दातियं च ९तिविहं च पणिहाणं१० घर-जिणहर-जिणपूयावावारच्चायओ निसीहितिगं अग्ग-दारे मज्झे तइया चिइवंदणासमए अंजलिबद्धो अद्धोणओ अ पंचंगओ अतिपणामा। सव्वत्थ वा तिवारं सिराइनमणे पणामतियं अंगग्गभावभेया पुप्फाहारत्थुइहिं पूयतिगं । पंचुवयारा अट्ठोवयार सम्बोवयारा वा १० ६१ भाविज अवत्थतियं पिंडत्थपयत्थरूवरहियत्तं । छउमत्थ केवलितं सिद्धत्तं चेव तस्सत्थो न्हवणञ्चगेहिं छउमत्थवत्थ पडिहारगेहिं केवलियं । पलियंकुस्सग्गेहि य जिणस्स भाविज सिद्धत्तं १२ ११० ॥१॥ NUMINOPHIRAL For Private And Personal Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shi n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Gyanmandit भाष्य श्रीदें चैत्य श्री धर्म० संघाचारविधी ॥ २ ॥ उड्ढाहोतिरिआणं तिदिसाण निरिक्षणं चइजऽहवा । पच्छिमदाहिणवामण जिणमुहन्नत्यदिहिजुओ वन्नतियं वनत्थालंबणमालंबणं तु पडिमाई । जोगजिणमुत्तसुत्तीमुद्दाभेएण मुद्दतियं अन्नुभंतरिअंगुलिकोसागारेहिं दोहिं हत्थेहिं। पिट्टोवरिकुप्परसंठिएहिं तह जोगमुद्दत्ति चत्तारि अंगुलाई पुरओ ऊणाई जत्थ पच्छिमओ। पायाणं उस्सग्गो एसा पुण होइ जिणमुद्दा मुत्तासुत्ती मुद्दा जत्थ समा दोवि गम्भिआ हत्था । ते पुण निलाडदेसे लग्गा अन्ने अलग्गत्ति पंचंगो पणिवाओ थयपाढो होइ जोगमुद्दाए। वंदण जिणमुद्दाए पणिहाणं मुत्तसुत्तीए पणिहाणतिगं चेइअमुणिवंदणपत्थणासरूवं वा । मणवयकाएगत्तं सेसतियत्थो य पयडुत्ति सच्चित्तदव्यमुझणश्मच्चित्तमणुज्झणं२ मणेगत्तं३ । इगसाडिउत्तरासंग४ अंजली सिरसि जिणदिढे ५ इअ पंचविहाभिगमो अहवा मुचंति रायचिण्हाई । खग्गं१ छत्तोरवाणह३ मउडं४ चमरे५ अ पंचमए | वंदति जिणे दाहिणदिसिट्ठिया पुरिस वामदिसि नारी । नवकर जहन्नु सट्टिकर जिट्ट मझुग्गहो सेसो नवकारेण जहन्ना चिइवंदण मज्झ दंडथुइजुअला । पणदंडथुइचउक्कगथयपणिहाणेहिं उक्कोसा अन्ने विति इगेणं सकथएणं जहन्नवंदणया। तदुगतिगेण मज्झा उक्कोसा चउहि पंचहि वा | पणिवाओ पंचंगो दो जाणू करदुगुत्तमंगं च । सुमहत्थनमुक्कारा इग दुग तिग जाव अट्ठसयं | अडसदि६८ अट्ठवीसा२८ नवनउयसयं१९९ च दुसयसगनउया२९७। For Private And Personal Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma r adhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kailas Gyanmandir भाष्य श्रीदे चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥ ३॥ दोगुणतीस२२९ दुसट्ठा२६० दुसोल२१६ अडनउयसय१९८ दुवनसयं१५२ इअ नवकारखमासमणईरिअसक्कथाइदंडेसु । पणिहाणेसु अ अदुरुत्त वन सोलसय ९४७ सीयाला नव बत्तीस तितीसा तिचत्त अडवीस८ सोल' वीस२० पया। मंगलइरियासकत्थयाइसुं एगसीइसयं अट्ठट्ट (नवट्ठय ८ अट्ठवीस२८ सोलस" य वीस२० वीसामा। कमसो मंगलइरियासकत्थयाइसु सगनउई | वण्णट्ठसहि ८ नव पय नवकारे अट्ट संपया तत्थ। सग संपय पयतुल्ला सतरक्खर अट्ठमी दुपया | पणिवाय अक्खराई अट्ठावीसं२८ तहा य इरियाए। नवनउमक्खरसयं दुतीस.२ पय संपया अट्टर | दुगदुगइग'चउइग'पण'इगार"छग६इरियसंपयाइ पया । इच्छा१इरिरगम३पाणा४जे मे५एगिदि६अमितस्स८ ३२ | अब्भुवगमो निमित्तं ओहेअरहेउ संगहे पंच । जीवविराहणपडिकमणभेयओ तिनि चूलाए ३३ २४९ | दुरति३चउ४पण५पणपण५दुरचउ४तिपय३सकत्थयसंपयाइ पया। नमु आइग पुरिसो लोगुअभयधम्म-प्प-जिण-सव्वं ३४ थोअन्वसंपया ओहइयरहेऊ-वओग-तद्धेऊ । सविसेसुवओग सरूवहेउ नियसमफलय मुक्खे दो सगनउआ२८७ वना नव संपय पय तितीस सक्कथए। चेइयथय? संपय तिचत्त पय वन दुसयगुणतीसा२२६ ३६ दुछ सग नव तिय छ'चउ छप्पय चिइसंपयापया पढमा। अरिहं वंदण सद्धा अन्न सुहुम एव जा ताव अन्वगमो निमित्तं हेऊ इग-बहु-वयंत आगारा । आगंतुग आगारा उस्सग्गावहि सरूवट्ठ | नामथयाइसु संपय पयसम अडवीस२८ सोला वीस कमा। अदुरुत्त वन्न दोस:२६० दुसयसोल नउअसयं५८ ३९ ३२ ३८ " For Private And Personal Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma h Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kaila r Gyanmandir भाष्य श्रीदे चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ पणिहाणि दुवनसय १५२ कमेण सगति३ चउवीस२४ तित्तीसा। गुणतीस२९ अट्ठवीसा२८ चउतीसि३४ गतीस३१ बार१२ गुरुवन्ना ४० ३४४ | पण दंडा सकस्थय चेइअ नाम सुअ सिद्धत्थय इत्थ । दो इग दो दो पंच" य अहिगारा वारस कमेण ४१ ३५७ नमु' जे अइ अरिहं लोग सब्ब' पुक्ख' तम सिद्ध जो देवा । उजि चत्ता वेआवचग २ अहिगार पढमपया ४२ ३५८ पढमहिगारे वंदे भावजिणे बीयए उ दन्वजिणे। इगचेइयठवणजिणे तइय चउत्थंमि नामजिणे तिहुअणठवणजिणे पुण पंचमए विहरमाणजिण छठे । सत्तमए सुयनाणं अट्ठमए सव्वसिद्धथुई तित्थाहिवचीरथुई नवमे दसमे य उज्जयंतथुई । अट्ठावय थुइ इगदिसि सुदिद्विसुरसमरणा चरिमे नव अहिगारा इह ललिअवित्थरावित्तिमाइअणुसारा । तिन्नि सुयपरंपरया बीओ दसमो इगारसमो आवस्सयचुण्णीए जं भणियं सेसया जहिच्छाए । तेणं उजिताइवि अहिगारा सुयमया चेव वीओ सुयत्थया इइ अत्थओ वनिओ तहिं चेव । सक्कथयते पढिओ दव्वारिहवसरि पयडत्थो ३८८ असढाइन्नणवजं गीअत्थअवारिअंति मज्झत्था । आयरणाविहु आणत्तिवयणओ सुबहु मन्नति चउवंदणिज जिण मुणि सुय सिद्धा' इह सुरा हु सरणिज्जा । चउह जिणा नाम ठवण दव्य भाव जिणभेएणं ५० ३९१ नामजिणा जिणनामा ठवणजिणा पुण जिणिंदपडिमाओ | दवजिणा जिणजीवा भावजिणा समवसरणत्था ५१ ३९३ अहिगयजिण पढमथुई बीया सव्वाण तइ नाणस्स । वेयाचगराणं उबओगत्थं चउत्थथुई ५२ ३९४ filamNRITAMARIA ॥४॥ For Private And Personal Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ III Shri M radhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash d ri Gyanmandir भाष्य श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ andililil ५६ v illiAll | पावखवणस्थ इरिआइ वंदणयवत्तिाइ छ निमित्ता। पवयणसुरसरणत्थं उस्सग्गो इअ निमित्तह ५३ ४०० चउ तस्स उत्तरीकरणपमुह सद्धाइआ य पण' हेऊ । वेयावञ्चगरत्ताइ तिन्नि इअ हेउबारसग१२ ५४ ४०९ अनत्थयाइ बारसार आगारा एवमाइया "चउरो। अगणि पणिंदिच्छिदण बोहीखोभाहिडको य घोडग१ लयर खंभाई३ मालु४द्धी५ निअल६ सबरि७ खलिण८ वहू९ । लंबुत्तर१० थण११ संजइ१२ भमुहंगुलि१३ वायस१४ कविढे १५ सिरकंप मू७ वारुणि८ पेहत्ति चइज दोस उस्सग्गे। लंबुत्तर थण संजइ न दोस समणीण सबहु सड्रीणं ५७ , इरिउस्सग्गपमाणं पणवीसुस्सास अट्ट सेसेसु । गंभीरमहुरसई महत्थजुत्तं हवइ थुत्तं ૧૮ ક૨૮ पडिकमणे चेइय जिमण चरिम पडिक्कमण" सुअण' पडिबोहे चिइवंदण इअ जइणो सत्त उ वेला अहोरते ५९ ४३४ पडिकमओ गिहिणोवि हु सगवेला पंचवेल इअरस्स । पूआसु तिसंझासु अ होइ तिवेला जहनेणं ६. ४३६ तंबोल१ पाण२ भोयण३ वाणह४ मेहुन्न५ सुअण६ निठ्ठहणं । मुत्तु८च्चारं९ जूअं१० वजे जिणनाहजगईए ६१ ४४२ इरि नमुकार नमुत्युण अरिहं थुइ लोग सव्व थुइ पुक्ख । थुइ सिद्धा वेआ थुइ नमुत्थु जावंति थय जयवी ६२ ४५० | सब्बोवाहिविसुद्धं एवं जो वंदए सया देवे । देविंदविंदमहिअं परमपयं पावइ लहुं सो ६३ ४५३) प्रक्षिप्ताः काश्चिदत्र न चांकनियततोन्मुद्रणे इति मुद्रिता गाथाः, सोपयोगाश्च । For Private And Personal Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrine Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kaila r i Gyanmandir ION लध्वनुक्रमः T श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ पत्रांकः। पत्रांकः ICINATIMIRECIS १३ १२८ श्रीसंघाचारविधेः संक्षिसोऽनुक्रमः पत्रांक टीकाकारमंगलादि विजयदेवकथा ५५ प्रमार्जनात्रिकम् १२२ | मूलकारमंगलादि (गाथा १) ३ पूजात्रिकं (गाथा १०) पुष्कलीश्रावककथा १२५ अर्हवंदनमंगले श्रीविजयकथा मृगब्राह्मणदृष्टान्तः वर्णादित्रिकम् १२७ अभिधेयादिः सीमनगसम्बन्धः चंद्रनरेन्द्रकथा मृगावतीकथा अवस्थात्रिकम् (गाथा ११) मुद्रात्रिकम् (गाथा १४ तः १७) १३१ चतुर्विंशतिराणि (गाथा २ तः५) २६ छमस्थाऽवस्थाभावना प्रणामत्रिकम् (गाथा १८) त्रिकदशकम् (गाथा ६तः७) ३३ नमिविनमिकथा धर्मरुचिकथा १३५ नषेधिकीत्रिकम् (गाथा ८) कैवल्यावस्था प्रणिधानत्रिकम् भुवनमल्लकथा देवदत्तकथा नरवाहनकथा प्रदक्षिणात्रिकं ४७ सिद्धत्वावस्था (गाथा १२) ११० शेषत्रिकातिदेशः (गाथा १९) १५१ हरिकूटसम्बन्धः ४७ सुमतिकथा अभिगमपंचकम् (गाथा २०तः२१)१५२ निर्माल्यलक्षणम् त्रिदिनिरीक्षणवर्जनम्(गाथा१३) ११५ श्रीषेणनृपतिश्रीपतिश्रेष्ठिकथा १५३ प्रणामत्रिकम् (गाथा ९ प्र०) ५४ | गान्धारश्रावककथा ११५ इति प्रथमः प्रस्ताव RAIPMEANINEPARA १४१ १४२ MINSATTITHIshrumusalman IN For Private And Personal Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mein Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्री - धर्म० संघाचारविधौ ॥ ७ ॥ नरनार्यवस्थानदिशे श्रीदत्ताकथा अवग्रहत्रिकम् (गाथा २२ ) अमिततेजःकथा चैत्यवंदन भेदाः (गाथा २३) दंडक पंचकम् प्रणिपातस्वरूपम् सुरेन्द्रदत्तकथा नमस्कारसंख्या ( गाथा २५ ) www.kobatirth.org रत्नसारकथा वन्दनाविषये मतभेदः (गाथा २४) १९४ स्कन्दककथा १९६ विक्रमसेनकथा १९७चिलातीपुत्रकथा १५९ कुणालकथा २०८ | मरीचिकथा ३०४ १६१ पंचपरमेष्ठ्यक्षरादिसंख्या (गा. ३०) २०९ चैत्यस्तवपदसंख्यादि (३७:३८) ३१२ १६६ बंधुदत्तकथा २१९ | भानुष्ठिकथा ३१५ १६७ | प्रणिपाताक्षरादि २४३ नामस्तवादिसंपदा ( गाथा ३९) ३२० २४५ अशकटापिताकथा १७६ सोमशूरकथा ३२९ ३३३ ३३५ १८२ | ईर्यापथिक्यावर्णादि (गा. ३१-३२) २४८ महावीरनामकरणं १८४ | अभ्युपगमादयः (गाथा ३३) २४९ | घनश्रेष्ठिकथा २५० श्रीगौतमकथा २७२ दर्दुङ्ककथा ३३८ ३४२ ३४४ विजयकुमरकथा इति द्वितीय प्रस्तावः मंगलाद्यक्षरादिसंख्या (गाथा २६ तः २९) ( गाथा ४० ) २०१ शक्रस्तवपदसंख्या ( गाथा ३४-३५) २८४ २०२ शक्रस्तववर्णसंपत्पदसंख्या (३६) २८४ कुणालकथा २८७ | दंडकपंचकम् गुणसागरकथा २९१ अश्वावबोधकथा गणधरवादः २७९ | प्रणिधानवर्णादि (गुरुवर्णाश्च) For Private And Personal Acharya Shri Kailasuri Gyanmandir ३४७ ३५० ३५१ लध्वनुक्रमः || 6 || Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrink in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kail u ri Gyanmandir । लध्वनुक्रमः ४२३ श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधी ॥ ८ ॥ ४२४ \HD."naaithimins H ३६६ ४३६ नारमाकथा अधिकाराः (गाथा ४१) ३५७ अधिकारप्रामाण्यम् (गाथा ४८) ३८८ रामनागदत्तकथा ४२० अधिकाराद्यपदानि (गाथा ४२) ३५८ | उज्जयन्ताद्यधिकारप्रामाण्यम् ३९१ कायोत्सर्गप्रमाणं ब्रह्मदत्तकथा ३५८ (गाथा ४९) शशिनृपकथा |जिनादिचतुष्कस्य वन्दनीयता ३६६ शक्रस्तवान्ते द्रव्याहवंदनम् ३९१ स्तोत्रलक्षणम् (गाथा ५८) ४२८ सुमतिकन्याकथा (गाथा ५०) विजयकुमारकथा ४२८ सुराणां स्मरणीयता ३७० आचरणायाः आज्ञात्वं (गाथा ५१) ३९३ चैत्यवंदनासप्तकम् (गाथा ५९) ४३४ सुदर्शनप्रियामनोरमाकथा स्तुतिचतुष्कम् (गाथा ५२) ३९४ गृहस्थचैत्यवंदनसंख्या(गाथा६०) जिनचातुर्विध्यं (गाथा ४३-४४) ३७५ निमित्ताष्टकद्वारम् (गाथा ५३) ४०० कान्ति श्रीकथा द्रव्यजिनाराधनायां ईश्वरराजकथा ३७६ श्रीगुप्तकथा आशातनात्यागः (गाथा ६१) प्रभावतीकथा ४४२ अधिकारेवाधिकाराः (गाथा हेतुद्वादशकम् (गाथा ५४) ४०१ चैत्यवन्दनविधिः (गाथा ६२) ४५० ४५-४७) ३७८ सुदर्शननृपकथा उपसंहारः (गाथा ६३) ४५३ मरुदेवातत्प्रतिमाकारकभरतः ३८० | आकारषोडशकं (गाथा ५५) ४१३ मेघरथकथा ४५४-४६२ चत्तारीति गाथाया अर्थविस्तारः ३८३ नरसुंदरकथा ४१४ ___ सम्पूर्णा लव्यनुक्रमणिका मथुराक्षपककथा ३८६ कायोत्सर्गदोषाः(गाथा ५६-५७) ४१९ | For Private And Personal ४३६ -ATHIS ४४२ HTHAPRATANIMALPATIL ४१० R USHIHIRANIm Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kcbatrth.org a yanmandir |बृहद् विषयानुक्रमः १३ Shi n Aradhana Kendra Acharya Shri K श्रीदे. तपोगच्छधुरंधरश्रीदेवेन्द्रसूरिसूत्रितस्य तत्रभवदन्तेवासिधर्मघोषसूर्युपज्ञवृत्तियुतस्य श्रीचैत्यवन्दनभाष्यस्य चैत्यश्री (श्रीसंघाचारविधेः) बृहद् विषयानुक्रमः धर्म०संघाचारविधौन मंगले वीरनमस्कारः आचारविधिकथनप्रतिज्ञा पत्र १ पौषधेन रक्षा, श्रेयांसनाथस्तुतिः (चतुष्कम् १९) मूर्तेपरोपकारधर्मस्व कर्त्तव्यता, देशनायाः भावो रुपरि विद्युत् , मणिमयी यक्षप्रतिमा, अमिततेजआगमः, पकारत्वं संघाचारविरुपदेश्यता परमेष्ठिकाव्यं वंदनीयवंदनादिना मंगलादि (१ गाथा) | चैत्यशब्दार्थः गुरुसाक्षिक्यपि चैत्यवंदना संक्षेपप्रयोजनं परमेष्ठिनमस्कारे हेतवः | परापरफले,सूत्रादिलक्षणं,नियुक्त्यादिप्रामाण्यं जीतप्रामाण्यं, अर्हवंदनादिमंगलत्वे विजयनृपकथा, अभिनन्दनज- परम्परायां मृगावतीदृष्टान्तः,कौशाम्ब्यां शतानीकः मृगागन्नंदनदेशना, जिनशेषप्रतीष्टा वासुदेवऋद्धिवर्णनं, वती,सभाकरणं, सोमेन चित्रणम् ,साकेते सुरप्रियः,वरदानं ग्रामादीनां लक्षणं, त्रिपृष्ठेन स्वयंप्रभायाः विवाहः, | वस्त्रपावित्र्यम् यक्षपूजा आराधनक्षामणं संदंशच्छेदः पुनश्रीविजयपुत्रः, २६-३१ (श्रीविजयवर्णनं) नैमि- वरः, प्रद्योतेन चित्रवर्णनं, दृतप्रेषणं, अपमानं, अतिसारेण त्तिकागमः, विजयसेनरोषः, जिनसमयनिमित्तसत्यता, शतानीकमरणं, मृगावतीमाया, उज्जयिनीष्टिकानयनं, निमित्तभेदाः, अवश्यंभावे शिखिद्विजकथा, सप्तदिनी- आशादोषाः, वैराग्य, श्रीवीराऽऽगमः,श्रीवीरस्तुतिः,यासा AmandamanimaluminatanAMITI IRAND IMMIGAMANIAHINSAINTINUTRIPATHIRAIAPTAHILI A TE IAS ENTERTAINM autamMINITION For Private And Personal Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavign Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir a श्रीदे० बृहद् विषयानुक्रमः चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधौ mNRIPARImaAIIANA MAITIHIRAINMENT Pallu TIMILAIMIRMIRITAINMilinealth सासादृष्टान्तः, चंपायामनङ्गसेनः, स्त्रीणां पञ्चशती, दर्पत्रिकदशकाऽक्षरार्थः (६-७ गाथे) | णेन घातः, प्रथमा द्विजसुतः, सुवर्णकारो भगिनी, सप- नषेधिकीत्रिकस्थानम् , भुवनमल्लनरेन्द्रकथा, नगरीनृपकु ल्या घातः, विषयनिन्दा, मृगावत्यादिदीक्षा, कौशाम्ब्या- मारवर्णनम् करभागमनं,रत्नमालायै गमनं,सिद्धार्थपुरनृपामुदयनः २५ गमः, मूर्छा, अभयघोषदेशना, मदनरेखाया मूलदेवत्वं, पूर्वधरधर्मघोषं यावत्परंपरा रत्नसारस्य भुवनमल्लत्वं, गुर्वनुशास्तिः,वरुणातीरे ऋषभइष्टिकादृष्टान्तोपनयनं २५ भवनं, वानरमाया, अमितगत्यसुरः, सुमतिकेवलिदेशना, चैत्यवंदनायाः मूलत्वं कृतमंगलायां धनश्रेष्ठिसुता जयसुन्दरी, नैषेधिकीभङ्गः, चतुर्विंशतिद्वाराणि चतुःसप्तत्यधिकसहस्रद्वयं स्थानानि च व्याघ्रयौ, नरके भ्रातृजाया शूरसुता, ननान्दा दुहिता, (२ तः ५ गाथाः) २६ योगिनयनं, देवार्चनादिफलम् , पश्चादानयनं, वधूधर्माः, क्षमाश्रमणादिपदसंख्यानुक्तिः २८ विजयपताकायाः रत्नमालायाश्च विवाहः, स्वयंवामण्डपः नामस्तवादिषु संपदसंगतिः २८ गोलकपातेन वेधक्रमः, आस्थाने धर्मचर्चा, क्षुलकोक्तं चूलिकास्तुतिसिद्धिः ३० गोलकद्वयं, श्रावकधर्मः, दीक्षा, सामाचारीतत्परत्वम् नमस्कारस्तुतिस्तोत्रभेदः ३२ प्रदक्षिणासिद्धिः हरिकूटपर्वतसम्बन्धः, चित्रविचित्रवेगौ, आशातनासंख्याविचारः ३२ विमळगुप्तोपदेशः,भृतककथा,देवतुष्टिः, चिन्तामणिप्राप्तिः, NEUTAINEMATIREILINDRAKALINITITMERAMINALILMPIEDAINIRA For Private And Personal ॥॥१०॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M .Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Sheik Gyarmansit 1A बृहद् विष यानुक्रमः श्रीदे० सागरे रत्नपातः, द्रव्यभावार्चनस्वरूपं, विमलपुत्रदेशना, | विद्यापहारः वीतशोकपुरं, वैजयन्तसत्यश्रियौ, संजयन्तचैत्यश्री- विचित्रवेगाराधना, शोकनिवारणं, चित्रवेगमुनिप्रतिमा, जयन्ती, स्वयंभूर्जिनः, उपदेशः, आवश्यकायुक्तो बलिधर्म संघा- बहिःपूजा, वार्षिकोत्सवः, वसुदेवेनोद्घाटनं, युगादिदेव- | विधिः, जयन्तस्य धरणेन्द्रता, संजयन्तस्य जिनकल्प. चारवियौ । स्तुतिः, कपाटार्चनं परिकर्मः, केवलं, सिंहपुरं, सिंहसेनः,रामकृष्णा, सुबुद्धिः निर्माल्यलक्षणं ५४ सचिवः, श्रीभूतिः पुरोहितः, भव्यमित्रसार्थवाहः,न्यासाप्रणामत्रिकस्वरूपं, (९ गाथा प्र०) विजयदेवकथा, राज- | र्पणं, पोतभङ्गः, नकुलानर्पणं, प्रवज्याविचारः, व्याघ्रया धानी,प्रासादावतंसकादिस्वरूपं,प्रतिमायाःमानं स्वरूपश्च, भक्षणं, सिंहचन्द्रकुमारः, अगन्धनदासः, हीमत्युपदेशः, पुस्तकरत्नं, पूजाविधिः, चित्रस्तुतिचतुष्क, सकथिपूजा ६१ रामकृष्णाकेवल्युपदेशः, कोशलायां मृगः, मदिरा प्रिया, पूजात्रिक (९ गाथा) ६१ वारुणी दुहिता, नैवेद्यकरणं,दानं, पच्छन्नार्पणास्त्रीत्वं,वापुष्पस्योपलक्षणता, मूलबिंबत्वसिद्धिः, मृत्तिकाप्रतिमायाः रुण्याः पूर्णचन्द्रत्वं,मदिरायाःहीमतीत्वं,अशनिवेगो हस्ती, पुष्पादिपूजा, अशनादिना बलिः, प्रदीपारात्रिकसिद्धिः, सिंहस्य हस्तित्वं, पुरोहितस्य वृषधरत्वं, मुत्यूपसर्गः जाश्रावकाणां कायोत्सर्गस्तुत्यादिसिद्धिः, बलीप्रदीपपूजासि- तिस्मरणं, सिंहचंद्रोपदेशः, गजस्य धर्मिता, सर्पदंशः द्धिः, यथाच्छंदकल्पनानिषेधः, मृगब्राह्मणकथा, गगन- आराधना, शुक्रे देवः, सर्पः पञ्चम्यां, सिंहचंद्रः ग्रैवेयके, वल्लभ, विद्युदंष्ट्रः, प्रतिमाप्रतिपन्नापहारः धरणेन्द्ररोषः, पूर्णचंद्रस्य श्राद्धता, नित्यालोके यशोधरा, जिनस्तुति HINADHISUCHHMIS HORORSHANILITIA AURANIPATNA BHAIRA HINDI ॥ १ ॥ For Private And Personal Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥ १२ ॥ Jain Aradhana Kendra चतुष्कं गुणवती आर्या, यशोधरायाः सुरत्वं, रश्मिवेगश्रावकत्वं, हरिमुनिचंद्रदेशना रश्मिवेगसाधुः, पुरोहितोऽजगरः मुनिर्लान्तके, धूमायामजगरः सिंहसेनो वज्रायुधः, पूर्णचन्द्रो रत्नायुधः, वज्रायुधदेशना, वज्रायुधकायोत्सर्गः, पुरोहितजीवोऽतिकष्टः, वज्रायुधः सर्वार्थे, अतिकष्टोऽप्रतिष्ठाने, रत्नायुधकृता पूजा, रत्नायुधरत्नमाले अच्युते, वीतभयविभीषणौ बलविष्णू, विभीषणः शर्करायां, बीतभयो लान्तके, विभीषणोऽयोध्यायां श्रीदाम, दीक्षा, बलदेवलोकः, पुरोहितो मल्लभृङ्गः, निदानात् विद्युद्दष्टः, वज्रायुधः संजयन्तः, श्रीदामो जयन्तः, धरणेन्द्रः, वीतभयसुतधरणभवाः, वारुणीभवाः, रत्नमालाभवाः, सिंहसेनभवाः, संजयन्तचैत्यं, खेचरव्यवस्था, हीमती वसुदेवः, धरणोद्भेदचैत्यं, नाभेयाचलचैत्यानि, अनिलयशाविवाहः, वर्षमहः, चैत्ये रात्रिदीपसिद्धिः, नाटयं च, स्तुति www.kobatirth.org चतुष्कं Acharya Shri Kaisuri Gyanmandir ८८ ९० पिण्डस्थादिछयस्थादित्रिके, (११ गाथा) ध्यान विवरणं, ८९ जन्मराज्यश्रामण्यानि, नमिविनमिवृत्तान्तः, कोशलावर्णनं, श्रीऋषभवर्णनं, राज्यार्पण, लोकान्तिकागमः, वार्षिकदानं, दीक्षाभिषेकः, कच्छादीनां तापसत्वं, नमिविनमिप्रार्थना, त्रिसंध्यं सेवा, धरणेन्द्रागमः निश्चलता, इष्टकग्राहिदृष्टान्तः गौर्यादि - दानं, वैताढये चैत्यानि, श्री ऋषभस्तुतिः, गजपुरे श्रेयांसतः पारणं, निर्नामिकासम्बन्धः, धरणेन्द्रस्थापना, पुण्डरीके मोक्षः, प्रातिहार्यवर्णनं, पुष्पवृष्टौ मतभेदः, देवदत्तकथा, भरतवर्णनं, चंपायां जितारिः, शिवदत्तवसन्तसेने, निरपत्यता, देव्याराधनं, दरिद्रपुत्रप्रार्थना, कारागृहे | मन्त्री, मत्रितत्पत्नीसंलापः विदेशगमनं, मुनिसमागमः, For Private And Personal ९८ १०० बृहद् विषयानुक्रमः ॥ १२ ॥ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri lain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kaille u ri Gyanmandir बृहद् विष यानुक्रमः "म श्रीदे चैत्य० श्री. धर्म० संघाचारविधौ ॥१३॥ नंदसुन्दरीस्कन्दशीलवत्यः, सार्थवाहमीलनं, नन्दीपुरे नि- र्यापथिकीसिद्धिः, पुष्कलीश्रावकसम्बन्धः १२३ धानलाभः, वञ्चना, प्रतिभवं दारिद्रय, कुणालायां जन्म, नमस्काराद्यध्ययनक्रमः,पाक्षिकपौषधः,साधर्मिकवात्सल्यं, समवसरणप्रकरणं, राजसन्मानादि, प्रव्रज्या, सनत्कुमारे बुद्धादिजागरिका, वर्णादित्रिकम् , चन्द्रनरेन्द्रकथा, कनदेवः, क्षितिप्रतिष्ठिते सोमः पार्श्वगणधरः | कपुरे चन्द्रनृपः, कुसुमपुरे सुलभनृपः, वैराग्य, (देहादेः सिद्धावस्था, आसनद्वयम् (गाथा १२) सुमतिकथा, भद्दिले | कारागारादित्वं) दाहशान्तिः दीक्षा, चन्द्रनृपस्य भाविचक्रायुधः, सुमतिपुत्रो व्याधिमान् , पार्श्वजिनागमः, मल्लितीर्थे मोक्षः मल्लिजिनायतनं, चन्द्रनृपदीक्षा, देवत्वं, देशना, नीरोगस्य सुदर्शनाभिधा, पार्थनिर्वाणादुद्वेगः, | मिथिलायामानन्दः, दीक्षा, ध्यान, केवलं, योगनिरोधः, सिद्धशिला, सिद्धध्यानं, स्तुतिचतुष्कं, ज्ञानभानुमुनिः, मुद्रात्रिकं (गाथा १४ तः १७) देशना, सुमतेर्दीक्षा, सिद्धिश्च ११५ मुद्राविषयविभागः (गाथा १८) त्रिदिनिरीक्षणविरतिः (गाथा १३) गान्धारश्रावककथा, मुद्रात्रिकव्यवस्था, (प्रणिपाते क्षितिनिहितजानुयुगलत्व) गन्धसमृद्धे गान्धारः, जिनजन्मादिभूमिवंदनं, चतुर्विश- मुनिमतवैचित्र्यं, धर्मरुचिकथा,चम्पायां,सोमादयो विप्राः, तिस्तुतिः,(चतुष्कम् ) अष्टशतगुटिकाऽर्पणं, सुवर्णगुलिका- कटुतुम्बकदानं, धर्मरुचेराराधना,सर्वार्थे गमनं, नागश्रिया ऽधिकारः, उदायनप्रद्योतयुद्धं, पर्युषणाक्षामणा, दशपुर- निर्वासनं, पोडश रोगाः, पष्ठ्यां नारकः, सुकुमालिका, निवेशः, संवत्सरसंख्या, भाइल पूजा, त्रिः प्रमार्जनम् , | गोपालिकाशिष्या, स्वच्छन्दता, निदान, द्रौपदी, जिनपूजा, PHHATTISGARHIRINA १३२ INADIMANAS For Private And Personal Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrine in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kaili herturi Gyanmandir श्रीदे. चत्य श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१४॥ hinidianimation In d uriHHA Himalam mammy नारदद्वेषः, दीक्षा, विमलाचलेऽनशनं, दृष्टान्तोपनयः १४० वमन्दिरे कीर्तिधरः, दमितारिः वासुदेवः, कनकश्रीपुत्री, बृहद् विषप्रणिधानत्रिक,विदिशि नरवाहनः,प्रियदर्शना,अमोघरथः, नर्तकानयनाज्ञा,कनकश्रियोऽपहारः, दमितारिवधः, चैत्य यानुक्रमः सुव्रताचार्यः, प्रतिमापूज्यता, देवगुरुधर्मसिद्धिः, धर्मकथा- पूजा, कीर्तिधरोपदेशः. शंखपुरे श्रीदत्ता, श्रीपर्वते मुनिः, निषेधः, गजलक्षणम् , विन्ध्ये गमनं,सुधर्मगुरूपदेशः, स- उपदेशः, चैत्यवदन्दनदेशना,सुव्रतसाधुपारणं, सर्वयशोमु. म्यक्त्वं, सुधर्माऽऽगमनं मोहयुद्धं, (उपमितिवत् ) नरवाह- निवन्दना, दोपवर्जन, अवग्रह भेदाः (गाथा २२) १६६ नदीक्षा देवत्वं ॥ शेषत्रिकातिदेशः(गाथा १९) १५१ अमिततेजः, ज्योतिष्प्रभा, कुरङ्गेनापहारः, देवीमृत्युदर्शअभिगमपंचकं (गाथा २०) १५२ नम् , अशनिघोषपराजयः,धरणजयन्तप्रतिमापुरतो विद्यास्त्रियां भेदः, राजचिह्नपञ्चकं (गाथा २१) १५३ | साधनं, युद्धं, अमितेजसा मारणं, सीमनगे ऋषभमन्दिरं, वसन्तपुरे श्रीषेणः, श्रीपतिश्रेष्ठी, विक्रमध्वजागमः, सैन्ये अचलकेवलं, अचलमुनेरुपदेशः, रत्नपुरे सत्यभामा, अशउपद्रवः केयूराच्छान्तिः,देवोक्तिः,हेमपुरे विजयः,वध्याज्ञा, निघोपदीक्षा, रत्नपुरे श्रीषेणामिनन्दिते, कपिलोऽचला च, जलार्पणं, परमेष्ठिस्मरणं, देवत्वं, श्रीषणजपः, युगादिदेव- सत्यभामा, कपिलस्यामुरता, श्रीशान्तिस्तुतिः चरणोपचैत्ये महा गमनं, श्रावकवेषाभिमरैर्घातः भुवनभानो- देशः, अष्टाहिकात्रयनियमः, विपुलमत्युपदेशः, पादपोरागमः, उपदेशः।। इति प्रथमः प्रस्तावः १२८ पगमनं, प्राणते, दिव्यचूलमणिचूलौ, नरनारी दिवस्थाननियमः, विधिसिद्धिः श्रीदत्ताकथा, शि- चैत्यवन्दनभेदाः, (चूलिकास्तुतिसिद्धिः) (गाथा २३) १७६ || ॥२४॥ For Private And Personal IMIRITamitm.inml"JAIPUPIAHINILEThe IAAIIMINARAINARDA SHI ANDINITHILD Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Jain Aradhana Kendra श्रीदे० चेत्य० श्री धर्म० संघाचारविधौ ।। १५ ।। www.kobatirth.org प्रवृत्तिसिद्धिः, उत्कृष्टचैत्यवंदनालक्षणं १८२ रत्नसारकथा, हस्तिनापुरे श्रीषेण श्रीमत्यौ, रत्नसारः, सुमतिमित्रम्, संगमसूरिदेशना, सौवीरे प्रतापशूरमदनरेखे, सुरशर्मकापालिकेनापहारः कलिङ्गप्रभुसिंहसेनेन युद्धम्, संग्रामादपक्रमणं, रत्नसारगमनं, देवेन रथार्पणं, मदनरेखाप्रत्यानयनं, अनेककन्याविवाहः, विमलबोधाचार्यागमनं, देशना, विरोधहेतुपृच्छा, पुण्डरीकिण्यां आनंदपद्मावत्यौ, शीलवती पुत्री, अनन्तसिंहेनापहारः, बालाविलापः कृतजिनप्रतिमावन्दनं देशावकाशिकञ्च, अजगरग्रसनं, प्रहारनिवारणं, सामानिकदेवत्वं, रत्नसारः, अनङ्गसिंहस्य सिंहसेनत्वं खचरस्य प्रतापशूरत्वं, अजगरदेवकृतं साहाय्यं प्रतापशूरमदनरेखादीक्षा, शत्रुञ्जयवर्णनं, सिद्धगण्डिका, चतुर्विंशतिः स्तुतिः, वैतादये नयनं, विजयवर्मक्षोभः, श्रीपुरे कनकमालाविवाहः, पुरे Acharya Shri Kaisuri Gyanmandir १९४ प्रवेशः, अकलंकसूर्यागमनं, दीक्षा मोक्षथ, चैत्यवन्दने मतान्तराणां व्याख्या ( गाथा २४ ) पञ्चाङ्गानि पञ्चाङ्गप्रणामे सुरेन्द्रदत्तकथा, मथुरायां समरसिंहललिते, सुरेन्द्रदत्तः गुणंधराचार्यः, देशना, पञ्चाङ्गाभिग्रहः, हरिवाहन पुत्र्यष्टकपरिणयनं, देशना, पालिभद्रे सिंहकुलपुत्रः, रोहणे रत्नप्राप्तिः मर्कटहरणं, योगिसमागमः, रसापहारः, प्रभासमुनिदेशना, मलयपुरे ऋषभप्रणिपातः, इष्टप्राप्तिः अमरनरभवाः नमस्कारसंख्या ( गाथा २५) विजयकुमारकथा, हस्तिनागपुरे विजयबलः, सौभाग्य| तिलकसुन्दर्यो, पद्मविजयौ, तिलकसुन्दर्या जलोदरम्, कुलदेवी, पद्मखण्डे अभयकुमारशान्तिमत्यौ, विरसान्नदानं, पर्यन्तानशनं, वडकुमारी, आराधना, कालसेनजयः, विजयस्य युवराजत्वं, कार्मणं, पत्रालये शक्रावतार For Private And Personal २०१ २०२ बृहद् विषयानुक्रमः ।। १५ ।। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mah n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaliururi Gyanmandir श्रीदे० TANHAIdiom चैत्यश्री बृहद् विषयानुक्रमः धर्म० संघाचारविधौ | umaramINIATNEPARAMITRAPARImEJRATI MARAaniliHINARRIAllTAINTIMINISnoot चैत्यं, चतुर्विंशतिस्तुतिः, मणिचूलखेचरागमः, पाटवीये श्रावककृत्यानि, रथयात्राबिधिः, पुत्रीशिक्षा, पाटवी, राज्य, पद्ममृत्युः, शोकनिवारणं, सोभाग्यसुन्दरीपापप्रका- प्रियदर्शनानयनं, पश्चात्तापः, चौरपतिमूर्छा, स्वरक्षाकशनं, विजयस्य राज्यार्पणं, दीक्षा, सौधर्मे देवः, पार्श्व- थनम् , बन्धुदत्तान्वेषणं, सुतजन्म, पद्मावतीवलिः, मातु| जिनसोमगणधरः॥ इति द्वितीयः प्रस्तावः २०८ लगृहजिगमिषा, धनदत्तदारिय, रत्नकरण्डकग्रहणं, बन्दिकुणालकुमारकथा, नमस्कारे वर्णपदसंपदः, (गाथा २६) गृहः, कारागृहे क्षेपः, परिव्राजकग्रहणं, मुषितद्रव्यापणं, (पृथक् पृथग् वर्णादिदर्शिका गाथाः चतस्रः) हवइ इति पुण्ड्रवर्धने नारायणः, शेषलोकोक्तिः, गञ्जनपुरे चन्द्रदेपाठसिद्धिः, पंचपरमेष्ठ्यर्थः, महासार्थवाहादित्वं, २१८ वः, योगात्मा परिबाट, मालिकेन वीरमत्या गमनं, अबन्धुदत्तकथा, नागपुर्या सूरतेजाः धनपतिसुन्दयौं, बन्धु- लीकं, योगात्मवधः,जिह्वाच्छेदः, गुरुदत्ता विद्या, मृषोक्ती दत्तः, सर्पदंशेन चन्द्रलेखामरणं, अन्यस्याः विसूचिकया, जापः,इष्टविरहस्य कथनं, सागरश्रेष्ठिचौर्य, विद्याविस्मृतिः, विलापः, देशान्तराटनगुणाः, सिंहले धनार्जनं, प्रवहण- मातुलभागिनेयमोक्षः, ईर्यापथिक्याः पृथक् मते सिद्धिः २४२ भङ्गः, नेमिप्रतिमावन्दनं, मुनिदेशना, चित्राङ्गदवात्सल्यं, क्षमाश्रमणस्य अक्षराणि, अर्थश्च, सोमशूरकथा, रत्नपुरे अङ्गदसुतागमनं, कौशाम्ब्यां मानभङ्गनृपः, जिनदत्त- सोमशूरी, अटव्यां चारणश्रमणदर्शनं, निधानलाभे युद्धं, वसुमत्यौ, ज्ञानदृष्टवचनं, पार्श्वनाथचैत्यपवित्रिता कौशा- कौशाम्ब्यां विजयधनी, रोहणरत्नग्रन्थये युद्ध, धनस्ताम्रम्बी, पूजनं, श्रीपार्श्वस्तुतिः, विधिप्रशंसा,वात्सल्यमहिमा, लियां जयः, विजयो हरिः, धनः कुलपुत्रः वानरोऽन्यः, imaamanaPHARA For Private And Personal H Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Gyanmandit Shi श्रीदे० चैत्यश्री । बृहद् विषयानुक्रमः धर्म संघाचारविधौ ॥१७॥ PHERDASHIANDIDAI वराहहरिणी, रोरद्विजपुत्रौ, जातिस्मरणं, शिखण्डिनौ, सुरपदे चक्रायुधनर्मदे, विजयसेनः, निर्वासनं, पल्लिपतित्वं, जातिस्मरौ, विद्याधरपुत्रौ, दीक्षा मोक्षश्च सार्थः समन्तभद्राचार्यः वर्धनवचनेन गुरुरक्षा,केवलं, महिईर्यापथिक्या अक्षराणि (गाथा ३१) २४८ |मा,आश्चर्य समन्तभद्रदेशना,मिथ्यादुष्कृतप्रभावः,सत्संगसंपदादिपदानि, (गाथा ३२) २४८ प्रार्थना,वर्द्धनप्रशंसा,मनोरथाः, सुरपुरे गमनं, गुरुस्तुतिः, अभ्युपगमाद्यष्ट निमित्तानि, जिनबिंबस्याचार्यत्वमपि, २५० देशना, (सामाचारी) प्रव्रज्या, प्राणते देवः, मिथिलायां स्कन्दकमुनिकथा, कृतार्गलानगयाँ स्कन्दाऽऽगमः, श्राव- नारिषेणः,पार्श्वगणधरः,तस्योत्तरीसूत्रस्यार्थः,प्रायश्चित्तनिस्त्यां पिङ्गलकप्रश्नाः, पर्षनिर्गमनं, श्रामण्यप्रश्नः,स्वाग- रुक्तिः, चिलातिपुत्रचरित्रं,राजगृहे मुंसुमा, चिलातेनिष्कातकरणं, श्रीवीरवर्णनं, चिन्तितार्थकथनं,द्रव्यादिमिर्लोक- शनं, पल्लिपतित्वं, सुंसुमाहरणं, शिरश्छेदः, धनविलापः, सिद्धिसिद्धमरणव्याख्यान, निर्ग्रन्थप्रवचनप्रतीत्यादि, भा- श्रीवीरागमनं, क्षितिप्रतिष्ठिते यज्ञदेवः, सर्वज्ञसिद्धिः प्रवण्डोपमया आत्मनिस्तारविज्ञप्तिः, स्वयं प्रव्राजनादिः, मि- ज्या, स्वीकृतं कार्मणं, यज्ञदेवश्चिलातिः, दयिता सुंसुमा, क्षुप्रतिमा, गुणरत्नं, विपुले अनशनं, आराधना, अच्युते | चारणमुनिदर्शनं,उपशमादिपदार्थः,कीटिकोपद्रवः, देवत्वं, देवः, ईर्यापथिक्या नव्यव्याख्या २६२ कायोत्सर्गसूत्रार्थः २८३ ईर्यापथिक्या न देवसिकादित्वं २६४ शक्रस्तवपदसंपदादिपदानि (गाथा ३४) २८४ संपद्यन्यमतं(गाथा३३) ईर्यापथिकीव्याख्या, विक्रमसेनकथा | वर्णसंपत्पदादिसंख्या, शक्रस्तवार्थः, अर्हत्पदविशेषार्थः, A HAMROINOD u mIIRAMISHRARIALPROIMILAINITE MARHTTAmaNGINNIVARTAINABR nar I ॥१७॥ For Private And Personal Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Gyanmandit श्रीदें. बृहद् विषयानुक्रमः अश्वावबोधः, निशि षष्टियोजनी, जितशत्रुवाहस्य जाति- दीपप्रज्वालनं, चारुमुन्यागमनं, नमिप्रबन्धः, श्रावस्त्यां चैत्यश्री- स्मरणं, सागरदत्तो माहेश्वरः, शिवायतनकरणं, जिनमन्दिरं सिद्धार्थः, प्राणते देवः, शिथिलायां नमिः, भविष्यत्पुत्रधर्म संघा प्रतिमा च, लिङ्गपूरणे विराधना,तिरस्कारः,धर्मबान्धवता, कथनं, चारुदत्तनाम, अंगमन्दिरे महिमा, पुष्पार्चनं, चारविधौ । सहस्रारे, देवः, तीर्थपूजा, स्तूपप्रतिमे, अश्वावबोधतीर्थ, स्तवन, धर्मरत्नवृत्यतिदेशः, भानुदीक्षा ॥१८॥ गणधराणां वादाः २९१थी३०० सन्मानादिपदार्थः द्रव्यजिनवन्दनं भरतचक्रिकथा, अयोध्या, चक्रिऋद्धिः, कायोत्सर्गसूत्रार्थः श्रीऋपभागमनं, अर्धत्रयोदशसुवर्ण प्रीतिदानं, महा कायोत्सर्गदोषाः निर्गमः, श्रीऋषभदेशना,भाविजिनचक्रिवलहरिप्रतिहरीणां स्तुत्युच्चारणविधिः नामपुरादि, पर्पदि भाविजिनः, वन्दनस्तुत्यादिः, द्रव्यव- नामस्तवादेः संपत्पदाक्षराणि (गाथा ३९) न्दनगाथायाः शक्रस्तवान्तर्गतत्वं, चैत्यस्तवे संपदादि, वरसमाधौ जिनदत्तकथा, वैशाल्यां जिनदत्तः, कायो(गाथा ३७) ___ ३१२ सर्गस्थश्रीवीरसेवा, मनोरथश्रेणिः, अभिनवगेहे पारणं, वंदनादिपदानामर्थः, साधोः कारणानुमतिसिद्धिः, आधि- ... केवलिकथिता जीर्णभावना । त्रैलोक्यचैत्यप्रतिमासंख्या ३२७ क्यार्थ श्राद्धस्य ३१४ श्रुतस्तवार्थः ३२८ भानुश्रेष्ठिकथा, चंपायां भानुश्रेष्ठी, भद्रा भार्या निरपत्या, अशकटापिताकथा, भ्रात्रोरेकः सूरिः मूर्खगुणविचारः, ००० Edit PERMIS TANIHITHINilamin HIRAIMAHINILAMPIRIRANGILITATI MAITRIANILEBRU Remenism ॥१८॥ For Private And Personal Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrine www.kobatirth.org kuri Gyanmandir बृहद् विषयानुक्रमः श्रीदे चैत्यश्री धर्म संघाचारविधी ॥१९॥ Sailithi TRAII. R ARRENar lin Aradhana Kendra Acharya Shri Kai पण्डितगुणाः, आभीरः, नगरगमनं, शकटभङ्गः, दीक्षा, लोकविरुद्धानिसप्रणिधानोत्कृष्टा वंदना ३४२ योगरुचिः, सर्वश्रुतपारगः, ३३१ दद्रांककथा, राजगृहे श्रीवीरः, दर्दुरांकागमनं नाटय,रासिद्धस्तवार्थः ३३२ जगृहे नन्दः, अष्टमभक्तं, जलचरानुमोदना, वाप्यादिकआमलक्रीडा । गजपुरे धनः,धर्मजागरिका, संघमेलापकः, रणं, दर्दुरः, जातिस्मरणं, पश्चात्तापः, षष्ठाभिग्रहः, वन्दवीरदेवालयः, चैत्यपूजा, मुनिवन्दनं, वात्सल्यं, दानं, श- नाय गमनं, श्रेणिकाश्वेन मृत्युः, देवत्वं, ३४४ त्रुञ्जये अष्टाहिका, उज्जयन्ते नेमिदर्शनं, अष्टमंगलान्ता प्रणिधानेषु दंडकेषु च वर्णगुरुवर्णसंख्या (गाथा ४०) ३४४ पूजा, चन्द्रोदयदानं, महाराष्ट्रीयवरुणबोटिकेन विवादः, (श्रीहरिभद्रकृतपञ्चस्थानकगाथाः) उज्जयन्तादिगाथा, अपाठे जमालिसमानता ३३७| कुणालकुमारकथा, पाटलिपुत्रे अशोकश्रीः उज्जयिन्यां कुअष्टापदतीर्थसम्बन्धः, ३३८ णालस्थानं, अध्ययनादेशः, अन्धत्वं, पाटलिपुत्रे गानं, शालादीनां केवलं, अष्टापदवन्दनमनोरथः, सम्भवादिजि- सम्प्रतेनपत्वं, रथयात्रा, रथकर्षणं, सुहस्तिदर्शनात् जानवन्दनं,सायं निर्गमः,पुण्डरीकाध्ययनधारकः सामानिकः, तिस्मृतिः, सामायिकफलकथनं, पूर्वभवोदन्तकथनं, सूरिपञ्चदशशततापसकेवलं,वैयावृत्यकारकायोत्सर्गस्तुतिः,चै- स्तुतिः, रथयात्रादि, त्यप्रणिधानसूत्रार्थः, त्रिलोकचैत्यप्रतिमासंख्या,साधुप्रणि- दण्डकपञ्चकं ३५१ धानसूत्रार्थः, प्रार्थनाप्रणिधानसूत्रार्थः, सर्वजननिन्दादीनि गुणसागरकथा, वीरपुरे रणवीरः, गुणसागरकुमारः धरणो m NineTER For Private And Personal Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobarth.org Acharya S W IGyarmandir बृहद् विष| यानुक्रमः श्रीदे. चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधौ ॥२०॥ मित्रं, गुणधरमुनिदेशना,पुष्करणीदृष्टान्त,सम्यक्त्वमहिमा | पुत्रस्य सर्पदंशः, निर्विषयाज्ञा, बाहुना स्तम्भनं, क्षामणं, | चैत्यवंदना, अपहारः रत्नावलीपरिणयनं, अमरचन्द्रसूर्या- | सर्वाङ्गामर्शः, मुनेः सनत्कुमारगमनं, भावविकलत्वात् गमनं, देशना, प्रत्यङ्गिरा विद्यासिद्धिः, हारार्पणं, धरणेनन मुवाहोर्लब्धयः, ब्रह्मदत्तस्य दीक्षा मोक्षश्च, अनीतौ वादः, अपरो मन्त्री,प्रव्रज्या मोक्षश्च, ३५७ जिनमुनिश्रुतसिद्धानां वन्द्यता द्वादश अधिकाराः (गा.४१)अधिकाराद्यपदानि,(गा.४२) ३५८ सुमतिकन्याकथा, सुभगायां बलविष्णू, मुमतिकन्या,पाब्रह्मदत्तकथा, ताम्रलिप्यां जिनदत्तभद्रे, ब्रह्मदत्तः पुत्रः, रणे वरदत्तप्रतिलाभनं, स्वयंवरः, देव्यागमनं, नन्दनवने धनभ्रंशः, केवलिपृच्छा, सिद्धदेवकुमारः धर्मयशोमित्रं, | महेन्द्रः, कनकश्रीधनश्रियौ, नन्दनगिरिमुनिदेशना, वीरादानस्य सारता, देशान्तरे गमनं, कुशाग्रे विजयदेवपुत्री- ङ्गदेनापहारः, नद्यां पातः, आराधना, इन्द्रवैश्रमणाग्रमपरिणयनं, करेणुदत्तनिग्रहः, युवराजत्वं, नृपशिक्षा, वीत- | हिष्यौ,संकेतादागमनं,जिनमहिमादिस्मारणं, सुत्रताऽर्याभये धर्मामिलापः, प्रभासाचार्यागमः, देशना, अप्रमादः पार्श्वे पश्चशत्या व्रतं, सिद्धिः, सिद्धदेवः, धर्मयशाः सप्रमादः नृपशिक्षा, निर्भावनं मुराणां स्मरणीयता चैत्यबन्दनं, विधिप्राधान्यं, सुरदेवदृष्टान्तः, कुणा- गुणोत्कीर्तनस्मारणसारणादिसिद्धिः ३७१ लायां सुरदेवः, वसुमित्रसरिपाचे बाहुसुबाह्वोः दीक्षा, मनोरमाकथा, चंपायां ऋषभदासः,महिषीचारकः सुभगः, विकृत्यभिग्रहः, विकृतिदोपाः, मुनेरनशनं, नृपव्युग्रहः, | नमोऽरिहंताणपठनं,नमस्कारेण आराधना,सुदर्शनश्रेष्ठित्वं, minimum MINSAntamil ॥२०॥ For Private And Personal Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥ २१ ॥ Jain Aradhana Kendra मनोरमा पत्नी, कपिलाया रक्षा, अभयोपहासः, रमणप्रति - ज्ञा, अन्तःपुरे आनयनं, अक्षोभः पूत्कारः, वध्याज्ञा, मनोरमाकायोत्सर्गः, शूलायाः स्वर्णकमलता, नृपक्षामणं, अभयाया मरणं, कुसुमपुरे पण्डिता, देवदत्तागृहे प्रवेशनं, अक्षोभः, व्यन्तर्युपद्रवः, केवलं, नामादिभिश्चतुर्विधा जिनाः, गाथा (४३-४४ ) | ईश्वरराजकथा, राजकुले ईश्वरराजः, पार्श्वजिनदर्शनं, मूर्च्छा, जातिस्मरणं, दत्तः कुष्ठीः चारण श्रमणोपदेशः, गुणसागरकेवलिपृच्छा, सम्यक्त्वमहिमा, कर्माविचलता, कुकुटः, ईश्वरजन्मनि बोधिः, रोगापगमः, कुर्कुटेश्वरचैत्यं, सर्व गमनं पूजनश्च, अधिकारस्तवनीयाः, (गाथा ४५-४७) सिद्धप्रतिमापूजासिद्धिः मरुदेवाप्रबन्धः, पुरिमताले केवलं, चक्री, गमनं, मरुदेवा www.kobatirth.org ३७५ सिद्धि:, देवपूजा, प्रभुदेशना, पुण्डरीकादीनां दीक्षादिः, अष्टापदे मोक्षः, चितामूर्तिस्तूपकरणं, द्रव्याईदादिवन्दनं, उज्जयन्तगाथा पाठसिद्धिः, चत्तारिअट्टप्रकरणं, सुरप्रशंसादि, औचित्यसिद्धिः मथुराक्षपककथा, कुसुमपुरे दृढरथः, अनित्यताज्ञानं, दीक्षा, मथुरायामागमः, देवीप्रार्थना, सुमेरुवन्दनेच्छा, स्तूपविनिर्माणं, सुदर्शनक्षपकः, प्रार्थना, अनुचितज्ञता, स्तूपविवादः, श्वेतपताका, शासनजयः, Acharya Shri Kailuri Gyanmandir अधिकारेषु प्रमाणनिर्देशः, वैयावृत्य सूत्रस्य पाठनैयत्यं, देवसाक्षिता, आचरणानिषेधे जिनाशातना, उज्जयन्तादीनां श्रुतमत्वं ( गाथा ४९) ३७८ | शक्रस्तवान्ते द्रव्यार्हद्वंदनं, ३७९ जीतसिद्धिः आचरणाबहुमानः, (गाथा ५० ) For Private And Personal ३८६ ३९१ ३९१ ३९२ ३९३ बृहद् विषयानुक्रमः ॥ २१ ॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Me n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kails the uri Gyanmandir श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म०संघाचारविधौ | " I MAHARA स्तुतिचतुष्कसिद्धिःविविधदेवकायोत्सर्गाः स्तुतिचतुर्विंशतिः३९५ नरसुन्दरकथा,काञ्च्यां नरसुन्दरः,सुमतिर्मन्त्री,चन्द्रसेनेन वृहद् विषनिमित्ताष्टकं (गाथा ५३) ४०. नृपघातकारणं, दिव्यशक्तिप्रश्नः,रात्र्यादिपरावर्तादिकथनं, यानुक्रमः सुरस्मरणसिद्धिः श्रीगुप्तिश्रेष्ठीकथा ४०० विम्यानयन, पवनधारणा, विपदानं, श्मशाने नयनं, विजयायां नलनृपः, महीधरश्रेष्ठी, श्रीगुप्तस्य व्यसनिता, नरपतिप्रश्नः, मुनिपवनप्रभावः, शशिप्रभाचार्यः, आत्मखात्रदानं, द्रव्यार्पणं, धीजकरणं, शिरोग्रहः, मन्त्रेण स्त- सिद्धिः, नृपपश्चात्तापः,क्रमागतात्यागे लोहग्राहकदृष्टान्तः, म्भः, शुद्धयुद्घोषणा, कुशलशुद्ध्यागमनं,धीजे पाणिदाहः, पूर्वभवाः,अर्जनकुलपुत्रः, शुभंकरश्राद्धः सुधर्मगुरुदेशना, निर्विषयता, गजपुरे योगिघातः, उल्लंबन,पाशत्रुटिः,स्वा- | शुभंकरदीक्षा, अर्जुनस्य छगलत्वादि, मुन्युपदेशः, नरध्यायश्रवणं, पूर्वभवपृच्छा, जयपुरे वरुणः षडावश्यकमू- सुन्दरदीक्षा, आगमाराधनं, सर्वार्थसिद्धे । लानि, प्रच्छन्नवैपरीत्यं, कीरत्वं, पुण्डरीकगिरिमहिमा, कायोत्सर्गदोषाः (व्यवस्था च) (गाथा ५६) (शत्रुञ्जयकल्पः) श्रीगुप्तकृता प्रशंसा, निमित्तशुद्धथुपदेशः, रामनागदत्तकथा, शीलंध्रशैले गमनं, महाबलकायोत्सर्गः, नगरे नयनं, अमिभवोत्सर्गः, कीरसुरागमनं, विमलबोध. सर्पापराभवः, कायोत्सर्गभेदाः, कायोत्सर्गफलं, साकेते दीक्षा द्वयोर्विदेहेषु मोक्षः, चन्द्रावतंसकः, प्रदीपाभिग्रहः, देवत्वं, दीक्षामहिमा, अहेतुद्वादशकं, (गाथा ५४) उत्तरकरणाद्यर्थः,सुदर्शनकथा ४०९ भिभवकायोत्सर्गकरणं, नागदत्तस्य प्रमादः, देवी, जय. आकारपोडकं (गाथा ५५) ४१३ विजयौ, अनन्तकेवली, जयस्य दीक्षा, कायोत्सर्गप्रमाणं ४२३ ||1|| ॥२२॥ For Private And Personal m ४१० manaPHIRIHARI Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥ २३ ॥ Jain Aradhana Kendra ध्येयस्यानियमः, शशिनृपकथा, सिद्धपुरे सुरप्रभः, शशिकुमारः, बहुरूपो वराहः, मुनेर्गृहिधर्मग्रहणं, मुनिदेशना, (कायोत्सर्गमानफले) उदितोदयः, श्रीकान्ता, धर्मरुचियाच्या ससैन्यस्यागमः, नृपभावना, अभिभबकायोत्सर्गः, वैश्रमणागमः, पीडानिषेधनं, ससैन्यपरावृत्तिः, सुरप्रभस्य निर्वासनं, तापसदीक्षा, व्यन्तरः, लीनं दृष्ट्वाऽनुमोदनं स्तोत्रस्वरूपं ( गाथा ५८). विजयकुमारकथा, चक्रपुर्यां बलभद्रः, श्रीगुप्तः कृपणः, विजयः सुतः, निधिखननं, जीर्णोद्धारचिन्ता, जयन्त्यां भूतिलः, श्रीपतिव्यन्तरपराभवः, राज्ञे निवेदनं, राजनिध्यधिष्ठायकाः, शान्तिजिन चैत्योद्धारः, चौररक्षा, युगन्धरयोगी अदृश्यांजनं, शान्तिस्तुतिः ( अन्त्येयुग्मं ) स्वचरित्रनिवेदनं, शान्ति चैत्योद्धारः, दशग्रामार्पणं, चारुतो दीक्षा, मिथुनरागाद्भूतता, स्वयंभूदत्तः, निर्वासनं, काम www.kobatirth.org Acharya Shri Kailuri Gyanmandir रूपे योगित्वं, कथननिषेधः, दीक्षा, शासनदर्शनात् प्रतीतिः, स्वयंभूदत्तोपदेशः, नृपस्य देशविरतिः, ग्रामदशकार्पणं, सम्मेते मोक्षः, विजयः सौधर्मे चैत्यवन्दनसप्तकं (गाथा ५९ ) चैत्यवन्दनस्यावश्यकता चैत्यवंदने प्रायश्चित्तं For Private And Personal ४३५ ४३५ ४३५ ४३६ ४२८ | गृहिचैत्यवंदनसंख्या ( गाथा ६० ) चैत्यवंदनत्रय नियमः कान्तिश्रीकथा, शत्रुञ्जयवर्णनं, पुण्डरीकस्वाम्यागमः, सपुत्रिकायाः स्त्रिया आगमः, दुष्कृतप्रश्नः, धनावहः श्रेष्ठो, चंद्रश्रीमित्रश्रियौ, मर्यादाभङ्गे पतिशिक्षा, कार्मणं, दौर्भाग्यार्जनं, कान्तिश्री पुत्रीत्वं, पुत्रीदुःखं, पाशनिवारणं, प्रव्रज्याऽनशनाभिलाषः, व्यन्तरस्थितिपृच्छा, निर्धनो धनः दीक्षा, रोषादयो दुर्गुणाः, विनयफलं, युगपत्संलेखनानशने, व्यन्तरत्वं, पश्चात्तापः, वैयावृत्यं, पुण्ड बृहद् विषयानुक्रमः ॥ २३ ॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Man Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चार विधौ || 28 || www.kobatirth.org ४४२ रीकगणधरस्तुतिः, सोपक्रमनिरुपक्रमकर्मणी चैत्यवंदनानियमः, पुण्डरीकमोक्षः, तीर्थोत्पत्तिः, कान्तिश्रिया मोक्षः, आशातनात्यागः (गाथा ६१) प्रभावतीकथा, चम्पायां कुमारनन्दी, हासाप्रहासागमनं, भारण्डेन पश्चशैले, चम्पोद्याने मोचनं, अग्निसाधनारम्भः, नागिलोपदेशः, नागिलप्रव्रज्या अच्युतदेवः, पटहलगनं, कायोत्सर्गस्थवीरप्रतिमा, वीतभये पेटार्पणं, परशुवहनाभावः, प्रभावत्या गमनं देवतायतनं, रात्रौ नाटयं, आशातनाश्चतुरशीतिः, मरणभयाभावः, वस्त्ररक्ततेक्षणं, प्रत्रज्या, सौधर्मे देवः, तापसव्यथा, मुन्याश्वासनं, प्रतिबोधः, गान्धारश्रावकः, वैताढ्थे प्रतिमावन्दनं, स्तवस्तुतिमिरहोरात्रं, अष्टशतगुटिकार्पणं, वीतभये ग्लानता, गुटिकार्पणं, सुवर्णगुटिकाप्रसिद्धिः, प्रद्योतनेच्छा, सुवर्णगुलिकाहरणं, प्रतिज्ञालोपः, प्रद्योतपराजयः, भाविपांशूपद्रवः, Acharya Shri Kailassa दशपुरं, रसवतीपृच्छा, क्षामणं, पहबंधः उदायनधर्मजागरिका, जामेयाय राज्यदानं दधिग्रहणं, त्रिर्विषापहारः, मोक्षः, कुलालः कुम्भकारकटे, चैत्यवन्दनकरणविधिः (गाथा ६२ ) चैत्यवंदनं, स्तुतिविधिः, उपसंहारः ( गाथा ६३) For Private And Personal ४५० ४५३ | चैत्यवंदनाफलं, मेघरथकथा, पुण्डरीकिण्यां घनरथः, मेघरथकुमारः, कुकुटयुद्धं, धनवसुदत्तौ, एकद्रव्यामिलापः, विद्याधराधिष्ठितौ चन्द्रसूरकुमारौ सागरचन्द्रः, पूर्वभवप्रश्नः अभयघोषविजयवैजयन्ताः, अनन्तजिनागमः, प्रत्रज्या, जिनत्वं, अच्युते, अभयघोषस्य घनरथता, विजयवैजयन्तौ विद्याधरौ, जातिस्मरणं, भूतप्रभू, जगदाभोग| प्रार्थना, कनकगिर्यादिचैत्यानां वंदनं, प्रेक्षणके भूतम| हिमा, युग्मप्रश्नः, विद्युद्रथदीक्षा, सिंहरथस्य देशनामि iGyanmandir वृहद् विषयानुक्रमः ॥ २४ ॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥ २५ ॥ Aradhana Kendra लाषा, अमितवाहनजिनात् श्रवणं, विमानस्खलनं, वामकराक्रमणं, करुणा, नाटयं, रज्जुगुप्तशंखिके, सर्वगुप्तमुनिः, द्वात्रिंशत्कल्याणतपः, धृतिधरप्रतिलाभनं, आचामाम्लवर्द्धमानतपः, ब्रह्मलोके देवः, निर्वाणगामिनौ, पौषधः, पारापतागमः, श्येनशिक्षा, श्येनप्रार्थनादि, स्वमांसार्पणं, अर्हद्वंद नादेमंगलत्वे श्रीविजयनृप कथा परम्परायां मृगावतीदृष्टान्तः नैषेधिक्यां भुवनमल्लकथा प्रणामे विजयदेवकथा www.kobatirth.org मन्त्रिवचः, देवप्रादुर्भावः, प्रशंसा सहनं, पक्षी, देवपूर्वभवः, सागरदत्त विजयसेने, धनप्रभनन्दनौ, रत्नार्थे युद्धं श्येनपारापतौ, सुभगायां अपराजिताऽनन्तवीर्यौ, अष्टापदे सुरूपः, देवः, जातिस्मरणं, भवनपतिषु, घनरथागमः, प्रव्रज्या, जिनत्वं, सिंहनिक्रीडिततपः, सर्वार्थे, शांतिजिनः ४६२ इति श्रीसंघाचारविधेर्वृहद्विषयानुक्रमः श्रीसंघाचारदष्टान्ताः 1114 फलबलिनैवेद्यपूजायां मृगब्राह्मण पत्रांकः ५ दृष्टान्तः १६ हरिकूट पर्वतसम्बन्धः ३६ नमिविनमिदृष्टान्तः ५५ | प्रातिहार्ये देवदत्तकथा Acharya Shri Kaila E. For Private And Personal सिद्धावस्थायां सुमतिकथा त्रिदिग्निरीक्षण विरतौ गान्धार श्रावककथा ६८ ८५ ९१ गमनागमनालोचने पुष्कलीश्रावक १०० कथा ११० ११५ १२३ ri Gyanmandir क्रमदृष्टान्ताः ।। २५ ।। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavt bain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ku r suri Gyanmandir दृष्टान्तानुक्रमः श्रीदे. चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥२६॥ १४२ १५४ कथा m ३२५ ४०० वर्णादित्रिके चन्द्रनरेन्द्रकथा १२७ | कायोत्सर्गे चिलातिपुत्रकथा २७९ | सुरदेवदृष्टान्तः ३६३ | मुद्रायां धर्मरुचिकथा १३५ | अष्टापदे भरतचक्रिकथा ३०४ जिनादीनां वन्द्यत्वे सुमतिकन्याकथा३६६ प्रणिधानत्रिके नरवाहनकथा प्रदीपफलनैवेद्यपूजायां भानुश्रेष्टि- देवानुशास्तौ मनोरमाकथा ३७२ अभिगमे श्रीषेणश्रीपतिकथा ३१४ द्रव्यजिनाराधने ईश्वरराजफथा ३७६ दिगनियमे श्रीदत्ताकथा १६० | समाधौ जिनदत्तकथा औचित्ये मथुराक्षपककथा अवग्रहे अमिततेजाकथा १६७ प्रमादे अशकटापिताकथा सुरस्मरणे श्रीगुप्तश्रेष्ठिकथा | चैत्यवंदने रत्नसारकथा १८४ | महावीरत्वे आमलकीक्रीडा निमित्तेषु सुदर्शनकथा ४१० पश्चाङ्गप्रणामे सुरेन्द्रदत्तकथा ४१४ आकारेषु नरसुन्दरकथा १९७ उज्जयन्तगाथायां धनश्रेष्ठिकथा ३३५ द्रव्यजिनवंदने विजयकुमारकथा २०२ अष्टापदवन्दनप्रवन्धः कायोत्सर्गे रामनागदत्तकथा ४२० कायोत्सर्गमाने शशिनृपकथा ४२४ अधिकाक्षरदोषे कुणालकुमारकथा २०८ प्रणिधाने दर्दुरांककथा ३४२ स्तोत्रे विजयकुमारकथा ४२८ परमेष्ठिफले बन्धुदत्तकथा २१९ अधिकाक्षरदोषे कुणालकुमारकथा ३४७ त्रिकालचैत्यवंदने कान्तिश्रीकथा ४३६ प्रणिपाते सोमसुरकथा २४५ दण्डकैवंदने गुणसागरकथा आशातनात्यागे प्रभावतीकथा ४४३ जिनाचार्यत्वे स्कन्दकमुनिकथा २५० पुष्करणीदृष्टान्तः चैत्यवन्दनफले मेघरथकथा ४५८ | प्रणिपाते विक्रमसेनकथा २७२ अधिकारिषु बलिदत्तकथा ३५८ ३३८ For Private And Personal Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य • श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥ २७ ॥ श्रीश्रेयांसनाथस्तुतिचतुष्कम् पंचपरमेष्ठिस्तुतिः श्रीवीरस्तुतिः श्री ऋषभस्तुतिः (अर्धसंस्कृते) युगादिदेवस्तुतिः चित्रस्तुति: (चतुष्कम् ) जिनस्तुतिः (चतुष्कम् ) स्तुतिचतुष्कम् श्री ऋषभस्तुतिः www.kobatirth.org स्तुतिस्थानानि पत्र १९ | समवसरण प्रकरणम् १२ श्रीपार्श्वस्तुतिः २२ | चतुर्विंशतिस्तुतिः मल्ली जनस्तुतिः ३९ ५१ श्री शान्तिस्तुतिः ५९ शत्रुञ्जयवर्णनं ८० ८८ स्तुतिचतुर्विंशतिका ९५ | चतुर्विंशतिस्तुतिः For Private And Personal १०५ | नेमिजिनस्तुतिः ११३ श्रीपार्श्वस्तुतिः ११६ गुरुस्तुतिः १२९ सूरिस्तुतिः १७२ स्तुतिचतुर्विंशतिः १९० शान्तिनाथस्तुतिः १९१ शत्रुञ्जयवर्णनं २०५ पुण्डरीकगणधरस्तुतिः Acharya Shri Kaisuri Gyanmandir २२२ २२५ २७६ ३५० ३९५ ४३१ ४३६ ४०० स्तुतिस्थानानि ॥। २७ ॥ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M श्रीदे० चैत्य० श्री - धर्म० संघाचारविधौ ॥ २८ ॥ Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashlari Gyanmandir देवगुरुस्तुतयः अस्सेयदेविं दलियंबमुक्त्ती,सेज्जंसमेयं सुयधम्मकितिं । करिंसुमेयं जमिहं अविजाणंदोलगिण्हंपि तमञ्ज ! कुञ्ज ॥ ८८ ॥ जे धम्म कित्तिसिवसंतिविमुत्तिविजाणंदप्पयाणप्पणिहाणविहाणसजा | देविंद विंदपरिविंद पयारविंदा, ते मुत्तिजुत्तिमिह दिंतु जिणिंदचंदा ८९ । तेसिं सप्पुस धम्मकीत्तियमिणं देविंदचकित्तणं, संपुण्णेसरियाइसाहणगुणं लोगुत्तमुक्कित्तणं । विआणंद पहाणमुत्तिपयवीसंपायणं सव्त्रया, झायंतीह जिनिंदचंदवणं जे सव्वया सव्वया ।। ९० ।। निचं देविंदसूरी जियमहविहवा जे सुयंगीइ नाम, झायंता हुंति सत्ता तमतिमिरमिया धम्म किचिल्लयं तं । जं पारीणत्तणंभोधिविय अइरा सव्वसत्थुत्तमाण, विजाणंदे व एसा जिणवरवयणे भत्तिराणं नराणं ।। ९९ ।। पत्र ११ देवेन्द्रादिनमस्कृतानथ नृपः स्तौत्यर्हतः सिद्धमद्विद्यानंदसुखाद्यनंतकविधान् सिद्धान् समृद्धान् शुभैः । आचार्यान् श्रुतधघोषणगुणान् स्वाचारचारून सदोपाध्यायान् यतधर्मकीर्तितविधेः साधून् समासाधकान् ॥ १११ ॥ पत्र १२ जयश्रीसर्वसिद्धार्थ !, सिद्धार्थनृपनंदन ! । सुमेरुधीरगंभीर !, महावीरजिनेश्वर ! ॥ ९७॥ योऽप्रमेयप्रमाणोऽपि, सप्तहस्तप्रमो मतः । पूर्णेन्दुवर्ण्यवर्णोऽपि, स्वर्णवर्णः सुवर्णकः ॥९७॥ सदृशं कौशिके शक्रे, सर्वे च क्रमसंस्पृशि । पीयूषवृष्टिसृष्ट्या यं दृष्ट्या | दिष्ट्या विदुर्बुधाः ॥ ९८ ॥ विष्टपत्रितयोत्संगरंगदुत्तुंग कीर्तिना । सनार्थं येन नाथेन, विश्वं विश्वंभरातलम् ।। ९९ ।। यस्मै चक्रे | नमः सेवा हेवाकोत्सुकमानसैः । वीराय गतवैराय, मर्त्यामत्यांसुरेश्वरैः || १०० || यस्माद् विषादयो दोषाः, क्षिप्रं क्षीणाः क्षमाखनेः। For Private And Personal स्तुतयः ।। २८ ।। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥ २९ ॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash@@ruri Gyanmandir T दोषापूपमयूखेभ्यः, इह हर्यक्षलक्षणात् ॥ १०९ ॥ यद्देहधुतिसन्दोहे, संदेहितवपुर्दधौ । रविः खद्योतपोतद्युत्याडंबर विडंबनाम् ॥ १०२ ॥ भविनां यत्र चित्तस्थे, स्युर्धी श्रीवृद्धिसिद्धयः । तं वर्धमानमानौमि त्वां वर्धमानभावनः ।। १०३ ।। इति यस्तव स्तवं पठति वीरजिनचंद्र ! जातरोमांचः । सोऽर्ध्वत्यपवर्गमखर्वगर्वसर्वारिवर्गजयी ॥ १०४ ॥ पत्र २२ विश्वदर्शन ! सहस्रदर्शननतक्रमजिनेन्द्र !। सवर्णतपत्तदंसण ! अनंतदंसण चिरं जयसु ॥ ५३ ॥ पूर्वाकृतसुकृतानां पूर्वा| शीलितविशुद्धशीलानाम् । अविहियतवाण पुत्रि न होइ तुह दंसणं चेत्र ।। ५४ || भवशतकृतमपि पापं त्वद्दर्शन तो विलीयते नाथ ! । पिंडीभूअंपिव घथं दुअं जहा जलिरजलणाओ ||२५|| समयोऽयमेव शस्यः सलक्षणोऽसौ क्षणस्तदहरनघम् । पक्खोऽवि सो सपक्खो जयबंधव ! दीससे जत्थ ॥५६॥ द्रष्टुमदृष्टे वांछा दृष्टे त्वयि नाथ ! विरहजं दुःखम् । इय जइ दुहावि न सुहं तहावि तुह दंसणं होउ || ५७|| पूर्वार्जितसुकृतकृतं भाविशुभनिबंधनं हरति चैनः । इय कालत्तयसुहयं जियाण तुह दंसणं दुलहं ॥ ५८|| स्वामिन् ! स्वदर्शनं कुरु तथा यथा स्यात् पुनर्न तदभावः । जच्चंधवेयणाओ चक्खुक्खयवेयणा दुसहा ॥ ५९ ॥ नामापि नाथ ! यस्ते वरमंत्रसधर्म्म कीर्त्तयति तस्य । मिच्छादंसणदोसो लहु नासह किं परं भणिमो १ ।। ६० ।। य इति जिन ! त्वामन्यूनदर्शनं न्यूनदर्शनो नौति । स विशुद्धदर्शनः श्रयति सत्वरं सर्वदर्शित्वम् ||६१|| पत्र ३९ सज्ज्ञानलक्ष्याः सुनिवेशनार्थ, सन्मंडपत्याशु समा ( दा) गमोत्था । लसद्यदंसोपरि केशवल्ली, सदा मुदे वः स युगादिदेवः ॥७१॥ त्रैलोक्यलक्ष्म्या वृतये स्वयं या, सन्मंडपत्याईत चैत्यराजी । साऽनित्यनित्या नमतां नृणां स्यादनित्यनित्याय सुखाय नित्यम् ॥७२॥ अनित्या - कृत्रिमा नित्या - शाश्वता अनित्यं सुखं स्वर्गान्तं नित्यं मुक्तिसंभवं । सत्तीर्थलक्ष्म्या विशतौ हि रंगात्, श्रीमंड For Private And Personal स्तवस्तुतयः ॥ २९ ॥ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mama Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kalu r i Gyanmandir स्तवस्तुतयः श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ| ॥३०॥ वृद्धये किं नामावाधासिंधुप्रतरणमा ते ॥४॥ पत्र ५२ पत्यास्तृतमत्रितं यत् । तदस्तु मे जैनीवचः प्रपंचि, सुवाचनं प्रावचनं सुवाचौ ॥७३॥ श्रीसंघलक्ष्म्या सुचिरं सदा ये,समंडपंतीह | सुरासुरीमिः। संख्यावृतव्यावृतभावभावाः, सुदृष्टयः संतु सुदृष्टये ते ॥७४॥ पत्र ५२ श्रस्ताशर्मावृतसुमहिमावीरितस्वांतजन्मावाधासिंधुप्रतरणसहावासनावस्थितानाम् । अप्येको द्वौ किमुत बहवो वाऽनिशं ध्येयभावं, गाते येषां जिनवरवृषा वृद्धये किं न तेषां ? ॥१॥ दुरापास्तसमस्तकुत्सनतमावीताखिलांतारजावामोल्लासविलासशोभनमहावृद्ध्यग्रिमौकावरम् । स्फूर्जद्भावृषभाभिरामनयनिर्दग्धाशुभैधावरं,गातामेक उभौ समे जिनवृषा वृद्धं प्रसादं मम ||२|| संप्राप्तब्रह्मसीमावतनुसुमुखमावर्यमद्वैतधामावीक्ष्यातीताप्तहेमाविततदुरितहावृष्टमासावितारं । एको द्वौ वापि सर्वे प्रतिदिनमरिहा वांछित श्रेयसे द्राक, प्रज्ञाप्तश्रीललामावरमिह भविनामीशतान्नम्रकाणां ॥३।। इत्येको द्वौ समे वा त्रिभिरभियतिभिः काव्यराजैः क्रियादिश्लेषैः श्रीधर्मघोषरमिनुतमहिमावर्यभावप्रकाशैः। त्रिच्छत्रीदंडकैर्वांतररिपुविजयन्यस्तविश्वत्रयांतः, कीर्तिस्तंभैरिव श्रीजिनवरवृषभावीक्षयाध्यासतां मां ॥ ४ ॥ पत्र ५९ सिरिविजाणंदपरा सेवंति जणंपि सेविणं जस्स । तमहं सधम्मकीत्तिं देविंदणयं थुणामि जिणं ॥२०० ॥ सुयधम्मकीतिनयमयविजाणं देसए सया विसए । वंदे विदेण सुराण वंदिए सव्वजिणचंदे ॥२०११॥ देविंदाइपयं तिणसधम्मकित्तियमिमस्स जो निचं । झायइ जिणिंदवयणं वरविजाणंदपयकरणं ॥२०२॥ समरह सुयदेविं देहि मोहहरधम्मकित्तियं जीए। नामपि ठाणमागमविजाणं देइ सन्नाणं ॥२०३॥ देवेन्द्रवन्धो जिनसर्वविद्यानंद विधत्ते त्वयि वीक्षते यः । सदा समासादितधर्मकीर्तिः,शिवं श्रयेताशिवशासनेऽसौ ॥१॥ ते सर्वदेवेन्द्रगुरोः सविद्या, नंदति नूनं सुमनःसभासु । ये दर्शितार्थ श्रुतधर्मकीर्तीन् !, नमंति देवान् For Private And Personal Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kai rouri Gyanmandir श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म० संघा- चारविधौ ॥३१॥ IS IPL PARINEETITI DAINIK परमात्ममूर्तीन् ॥२॥ यद्भक्तितः श्रीरपि सार्वविद्यानंदस्थित पुंसि सधर्मकीर्ती। ससंपदेवेन्द्रवति प्रकाम, तस्मै नमो जैनवराग स्तवस्तुतयः माय ॥३॥ तेषां मुदेऽवेन्द्रसधर्मकीर्ते, वलक्षमूर्ते श्रुतदेवते त्वम् । ये ते गुणानस्तविसार्यविद्यानंदोलयंति स्तवनेन नित्यम् ॥४॥ पत्र ८८ सुइकसिणचउत्थीए उत्तरसाढाहिं जो सुरिंदेहिं । कहिओ मरुदेवीए ओयरिओ भावितिजयपह ॥८३।। चित्तकसिणट्ठमीए. जं जम्मणमजणक्खणे सव्वे । सुरसेले भचीए हविसु पूइंसु देविंदा।।८५|| जेण हरिविहियरजाभिसेयविहिणा अहेसि जयपहुणो। इह वसुमई वसुमई सुनयसणाहा सणाहा य ।। ८५॥ रजावसरे चिरधरियनलिणिपत्ताभिसेयसलिलेहिं । मिहुणेहिं न्हवणगेहि व जप्पयपउमा य अभिरुइया ।।८६।। नाणं वरविन्नाणं कलाउ सकला जओ पहुत्तंसा । रजं पहुत्तसज्झं पावेसि जणो य सयणो य| ।।८७॥ लोयंति मग्गणा इव नमजणा सजणा न के हुज्जा ? । संवच्छरियमवुच्छं किमिच्छियं जस्स दितस्स ||८८॥ चिचाइमट्टमीए महया महयामि गिहिरे जंमि । के के न बुहा विबुहा महिमं महिमंडले कासी? ॥८९॥ सो जयउ दुविहमोणो अजो अब्जे | जणंतुऽणजेवि । कइया पुण दच्छामो तं तिजइंदं तिजयभाणुं ? ॥९० ॥ तेण अदेवावि जणा देवाविव दिव्वरिद्धिणो विहिया । | होउ तया य सयाविहु नमो नमो नमिरअमराय ॥९१ ॥ तत्तो तत्ततवाओ हुत्था सत्थावि अत्थसुकयत्था। तस्सेव किंकरा मो दासा पेसा य मिच्चा य ।।९२॥ तंमि छउमत्थवत्थे विहरंते महियलं पवित्र्तते । वरधम्मकित्तिपत्ता होउ सुभत्ती सया अम्ह ।।१३।। इस सचविभत्तिविभत्तिविभत्तिभत्तीइ संथुओ रिसहो । वियरउ संपइ संपइ सया विभत्तिं गयविभत्तिं ॥९४॥ पत्र ९५ थुणिमो केवलिञ्वत्थं वरविजाणंदधम्मकित्तित्थं । देविंदनयपयत्थं तित्थयरं समवसरणत्थं ॥१॥ पयडियसमत्तभावो केव- ॥३१॥ For Private And Personal Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobairthorg Acharya Si Kallheghiuri Gyanmandir स्तवस्तुतयः श्रीदे० चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधी ॥३२॥ लिभावो जिणाण जत्थ भवे । सोहिंति सबओ तहिं महिमाजोयणमनिलकुमरा ॥२॥ वरिसंति मेहकुमरा सुरहिजलं उउसुरा कुसुमपसरं। विरयंति वणा मणि१ कणय२ रयण३ चित्तं महियलं तो॥३॥ अम्भितर? मज्झर बहिं३ तिवप्प मणि १ रयण२ कणय३कविसीसा । रयणज्जुणरुप्पमया वेमाणियजोइभवणकया ॥४॥ वटुंमि दुतीसंगुल तित्तीसधणुपिहुलपणसयधणुचा। धणुसयइगकोसंतरालरयणमयचउदारा ॥५॥ चउरंसे इगधणुसयपिहुवप्पा पढमबीय अंतरयं (सड़कोसअंतरिया प्र०)। कोसद्धं विद तइए (पढमबियावियतइया प्र०) कोसंतर पुन्वमित्र सेसं ॥६॥ सोवाण सहस्सदसकरपिहुच गंतुं भुवो पढमवप्पो। तो पन्नाधणुपयरो तओ य सोवाणपणसहसा ॥७॥ तो वियवप्पो पन्नाधणुपयरु सोवाणसहस्सपण तत्तो। तइओ वप्पो छसहस्सधणु इगकोसेहिं तो पीदें ॥८| चउदारतिसोवाणं मज्झे मणिपेढियं जिणतणुच्चं । दो घणुसयपिहु दीहं सहदुकोसेहिं धरणियला ।।९।। जिणतणुबारगुणुच्चो समहियजोयणपिहू असोगतरू। तहिं होइ देवछंदे चउ सीहासण सपयपीदा।।१०॥ तदुवरि चउछत्ततिया पडिरूवतिगं तहट्ठचमरधरा । पुरओ कणयकुसेसयट्ठियफालियधम्मचक्कचऊ ॥११॥ झयछत्तमयरमंगलपंचालीदामवेइवरकलसे । पइदारं मणितोरणतिय धूवघडी कुणंति वणा ।।१२।। जोयणसहस्सदंडा चउज्झया धम्ममाणगयसीहा । ककुभाइजुआ सव्वं माणमिणं जिण (निय प्र०) निअकरेण ॥१३॥ पविसिय पुन्वाइ पह पयाहिणं पुन्धआसणनिविट्ठो । पयपीढ ठविअ पाओ पणमियतित्थो कहइ धम्म ॥१४॥ मुणि १ वेमाणिणि २ समणी ३ सभवण १ जोइ २ वण ३ देव ३ देवितियं ३। कप्पसुर १ नरित्थि ३ तियं ठंतिग्गेयाइविदिसामु १५॥ चउदेवि समणि उद्धट्ठिया ५ निविट्ठा नरित्थि सुरसमणा ७ । इय पण सग परिस सुगंति देसणं पदमवप्पंतो ॥१६॥ इय आवस्सवुत्तीवुत्तं चुन्नीइ पुण मुणि निविट्ठा । वेमाणिणि समणी दो उद्धा सेसा ठिआ उ नव ॥१७॥ वीयंतो तिरि For Private And Personal ||३२॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahan Aradhana Kendra www.kobatirth.org ईसाणी देवच्छंदो य जाण तइयंतो । तह चउरंसे दुदुवावि कोणेषु उ वहि इक्किका || १८ || पीयसियरत्तसामा सुवणजोइभवणा रयणवपे । धणुदंडपासगयइत्थसोमजमवरुण धणदक्खा || ११ || जयविजयाजियअवराजियत्ति सियअरुणपीयनीलाभा। बीए देवीजुअला. अभयंकुसपासमगरकरा ॥ २० ॥ तहय बहि सुरा तुंबरू १ खग्गं ( )गि २ कवाल ३ जडमउडधरा ४ । पुव्वाइदारवाला तुंबरूदेवो य पडिहारो ||२१|| सामनसमोसरणे एस विही एइ जइ महिदिसुरो । सव्वमिगं एगोऽविहु स कुणइ भयणेयर सुरें ||२२|| पुव्वमजायं जत्थ उ जत्थे सुरो महिड्डिमघवाई । तत्थोसरणं नियमा सययं पुण पाडिहेराई ||२३|| दुत्थियजणपत्थियअत्थसत्थसाहणपञ्चलसुसमत्थो । इत्थं धुओ लहु जणं तित्थयरो कुणउ सपयत्थं ||२४|| समवसरणस्तवनं समाप्तम् विध्वस्ता खिलकर्म्मजालममलज्ञानं लसद्दर्शनं, ज्योतीरूपमरूपगंधमरसं स्पर्शादिभिर्वर्जितम् । सिद्धावस्थमवस्थितातुलसुखं वर्यैकवीर्यात्मकं, निःसीमातिशयप्रभावभवनं श्रीपार्श्वनाथं स्तुवे ||४५ || क्कायं ते जिनराजराजिकिरणग्रामामिराम स्तवः ?, काई प्रातिभसौरभ स्फुरदुरुप्रज्ञाविहीनः प्रभो ! । किंतु त्वद्गुणराशिरक्तहृदय स्तोत्रप्रवृत्तोऽस्म्यहं शक्याशक्यविचारणासु विकलः प्रायोहि रागी जनः || ४६ || विध्वस्तामय ! निर्जितेन्द्रियहय ! प्रक्षीणकर्माशय !, श्रीलीलालय ! निर्मितस्मरजय ! स्याद्वादविद्यामय ! | मिथ्यात्वप्रलय ! प्रहीणविषय ! स्फूर्जस्त्रिलोकीदय !, श्रीपार्श्व ! स्मररोप ! दोपकुनयध्वंसिन् ! सदा त्वं जय ||४७|| किं कारु यी ? किमुत्सवमयी १ किं विश्वमैत्रीमयी १, किंवाऽऽनंदमयी ? किमुन्नतिमयी ? किं सौख्यरेखामयी ? । इत्थं यत्प्रतिमां समीक्ष्य भविनश्चेतश्विरं तन्वते, स श्रीपार्श्वजिनस्तनोतु विशदश्रेयांसि भूयांसि वः || ४८ || आधिव्याधिविरोधिवारिधियुधि व्यालस्फुटालोरगे, भूतप्रेत मलिम्लुचादिषु भयं तस्येह नो जायते । नित्यं चेतसि पार्श्वनाथ इति हि स्वर्गापवर्गप्रदं, सन्मंत्रं चतुरक्षरं प्रति श्रीदे० चैत्य० श्री - धर्म० संघाचारविधौ ॥ ३३ ॥ For Private And Personal Acharya Shri Kailasi Gyanmandir स्तुतिसंग्रहः ॥ ३३ ॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mal Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kaia eri Gyanmandir स्तुतिसंग्रहः श्रोदे. चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधी ॥३४॥ | कलं यः पाठसिद्धं पठेत् ।।४९।। त्वं देवः शरणं त्वमेव जनकस्त्वं नायकस्त्वं गुरुस्त्वं बंधुस्त्वमसि प्रभुस्त्वमभयस्त्वं मे गतिस्त्वं मतिः । तत् किं पार्श्वविभो ! पुरःस्थितमपि त्वत्सेवकं किंकर,मामद्यापि लसद्दयारसिकया दृष्ट्याऽपि नो वीक्षसे ? ॥५०॥ शस्योऽयं | समयः क्षणोऽयमनघः पुण्या त्वियं शर्वरी, श्लाघ्योऽयं दिवसो लवोऽयममलः पक्षोऽयमर्चास्पदम् । मासोऽयं विशदः समाः स्फुटमिमाः श्रीपार्श्वविश्वप्रभो!, यत्र त्वद्वदनं व्यलोक्यत मया निःशेषसौख्यावहम् ।।५१ ॥ धन्योऽहं कृतकृत्य एष नृभवस्तीर्णो भवांभोनिधिविध्वस्तांतरवैरिवारविषयो लन्धस्त्रिलोकोत्सवः। श्रीमत्पावविभो ! सदा त्रिजगतीविश्रामभूरप्यहो, यस्त्वं हंस इवाधुना विदधसे मन्मानसे संस्थितिम् ॥५२॥ इत्थं त्वां सितधर्मकीर्तिभवनं स्तुत्वेदमभ्यर्थये, श्रीमत्पावजिन ! त्वयाऽपि हि सदा यस्मै | कृते तत्यजे । प्राज्यं राज्यमनाविला च कमला शुद्धांतबंधवादिकं, विद्यानंदपदाय सुस्पृहयति त्यस्मै मदीयं मनः ॥५३॥ ११३ नम्राखंडलमौलिमंडलमिलन्मंदारमालोच्छत्सांद्रामद्रमरंदपूरसुरभीभूतक्रमांभोरुहान् । श्रीनामिप्रभवप्रभुप्रभृतिकांस्तीर्थकरान् शंकरान् , स्तोष्ये सांप्रतकाललब्धजननान् भक्त्या चतुर्विंशतिम् ॥ १॥ नंद्यान्नाभिसुतः सुरेश्वरनतः संसारपारं गतः, क्रोधाद्यैरजितं स्तुवेऽहमजितं त्रैलोक्यसंपूजितम् । सेनाकुक्षिभवः पुनातु विभवः श्रीशंभवः संभवः,पायान् मामभिनंदनः सुवदनः स्वामी जनानंदनः ॥ २॥ लोकेशः सुमतिस्तनोतु मम निःश्रेयःश्रियं सन्मतिर्दभद्रोः कलभं मदेभशरभं प्रस्तौमि पद्मप्रभम् । श्रीपृथ्वीतनयं सुपार्श्वमभयं वंदे विलीनामय,श्रेयस्तस्य न दुर्लभं शशिनिभं यः स्तौति चंद्रप्रभम् ॥३।। बोधि नः सुविधे ! विधेहि सुविधेः कर्मद्रुमौषप्रधे, जीयादंबुजकोमलक्रमतलः श्रीमान् जिनः शीतलः। श्रीश्रेयांस ! जय स्फुरद्गुणचयश्रेयः श्रियामाश्रयः, संपूज्यो जगतां श्रियं वितनुतां श्रीवासुपूज्यः सताम् ॥४॥ मोक्षं मे विमलो ददातु विमलो मोहांबुवाहानिलोऽनंतोऽनंतगुणः सदागतरणः Hallistianimalitimes ॥३४॥ For Private And Personal Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mb Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaita e ri Gyanmandir श्रीदे. चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥३५॥ | कुर्यात् क्षयं कर्मणः। धर्मो मे विपदं च्युताच्छिवपदं दद्यात् सुखैकास्पदं, शांतिस्तीर्थपतिः करोत्विभगतिः शांति कृतांतक्षितिः स्तुतिसंग्रहः ॥२॥ कुंथुर्मघरवो भवादवतु वो मानेभकण्ठीरवो, भक्त्या नम्रतरामरं जिनवरं प्रास्तस्मरं नौम्यरम् । श्रीमल्लेखनतक्रमोज्झिततमो मल्लेस्तु तुल्यं नमो, विश्वायर्यो भवतः स पातु भवतः श्रीसुव्रतः मुव्रतः।।६।। लोभांभोजतमेश्वरोपम! नमे ! धर्मे धियं धेहि मे, | वंदेऽहं वृषगामिनं प्रशमिनं श्रीनेमिनं स्वामिनम् । श्रीमत्पार्श्वजिनं स्तुवेऽस्तवृजिनंदान्ताक्षदुर्वाजिनं,नौमि श्रीत्रिशलांगजं गतरुज मायालताया गजम् ।।७॥ इत्थं धर्म्यवचोवितानरचितं वयं स्तवं मुद्युतः,सद्धर्मद्रुमसेकसंवरमुचां भक्त्याईतां नित्यशः। श्रेयाकोतिकरं नरः स्मरति यः संसारमाकृत्य सोऽतीतातिः परमे पदे चिरमितः प्राप्तोत्यनंतं सुखम् ।।८॥ कर्तृनामगर्भाप्टदलकमलं ॥ जिन! तव गुणकीर्ते ! विश्वविध्वस्तकीर्ने !, विगलदपरकीर्तेयंगिरा धर्मकीर्तेः। सितकरसितकीनें ! शुद्धधमैककीर्तेः,स्तुतिमहमचिकीर्ते तां कृतानंगकीर्ते ! ॥१॥ जय वृषभजिनाभिष्ट्रयसे निम्ननामिर्जडिमरविसनाभिर्यः सुपर्वांगनाभिः। तम इह किल | नामिक्षोणिभृत्सुनुनाभिद्रुतभुवनमनाभि क्षांतिसंपत्कुनाभिः।।२।। प्रकृटितवृषरूप ! त्यक्तनिःशेषरूपप्रभृतिविषयरूप प्राप्तचैतन्यरूप जय चिरमसरूप पापपंकाम्बुरूप ! त्वमजित ! निजरूपप्राप्तसञ्जातरूपः।।३॥ जय मदगजवारीसंभवांतर्भवारीव्रजभिदि हतवारिश्रीन । केनाऽप्यवारि। यदधिकृतभवारिश्रंसनश्रीभवारिः,प्रशमशिखरिवारि प्राणमदानवारिः||४|| अकृतशुभनिवारं यत्र रागादिवार,मुविनतमघवारं संवराह्वः सुवारम् । मदनदहनवारं दोलितांतर्भवारं,नमत सपरिवारं तं जिनं सर्ववारम् ॥५॥ तव जिन! सुमते ! नप्रत्यहं | तन्यते न,स्तुतिरिति सुमतेन कत्तमोनिष्कृतेन । यदिह जगति तेन द्राग्मया संयमेन,ध्रुवमितदुरितेन श्रीश! भाव्यं हि तेन ॥६॥ परिगतनृपपद्म! श्रीजिनाधीशपद्मप्रभः सदरुणपद्म धुत्तमोहंसपद्म । त्वदखिलभविपद्मवातसंबोधपद्म,स्वजनगतविपद्माप्येऽनुशर्मीकपद्म।।७॥ ॥३५॥ RAMANANT PatanAmmatitleMudiNeemHIIIINDE ARNIRALAnandMILITY For Private And Personal Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir स्तुतिसंग्रहः श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ | T AIRLINE.MIHIRITEh RANSPIRAIL MAHIMIRE mananditillth दुरितनिभगमोऽहंपूर्विकार्यक्रमोहं त्यजति समतमोऽहंकारजियः समोहम् । कृतकरणदमोहतास्तलोभं तुमोह,मतिहृतमसमोहं तं सु- पावं तमोहम् ।।९॥ समणमणिभावः ज्ञातनिःशेषभावः,प्रहतसकलभावप्रत्यनीकप्रभाव !। कृतमदपरिभाव श्रीशचंद्रप्रभावद्विजयति | तनुभावत्यक्तकामस्वभाव ।।९।। जिनपतिसुविधेयः स्याचदानाविधेयप्रवण इह विधेयः प्रस्फुरद्भागधेयः। श्रीजगदनभिधेय श्लाघ| सन्नामधेयः,श्रयति शुभविधेयस्तं लसद्रूपधेयः॥१०॥ य इह निहतकामं मुक्तराज्यादिकामं,प्रणतसुरनिकामं त्यक्तसद्भोगकामम् । नमति स निजकामं शीतल ! त्वां प्रकाम,श्रयितकि तमकामं सार्विका श्रीः स्वकामम् ॥११॥ विषमविशिषदोषा चारिचारप्रदोषा, प्रतिविधति सदोषाऽप्यस्य किं कालदोषा? । य इह वदनदोषापार्चिषा शालिदोषा, तनुकमलमदोषा श्रेयसा शस्तदोपा ॥ १२ ॥ कृतकुमतपिधानं सत्वरक्षाविधानं, विहितदमविधानं सर्वलोकप्रधानम् । असमशमनिधानं शं जिनं संदधानं, नमत सदुपधानं वा. सुपूज्याभिधानम् ॥१३॥ भवदवजलवाहः कर्मकुंभाद्यवाहः, शिवपुरपथवाहस्त्यक्तलोकप्रवाहः। विमल ! जय सुवाहः सिद्धिकांताविवाहः,शमितकरणवाहः शांतहव्यवाहः॥१४॥ जिनवर ! विनयेन श्रीशशुद्धाशयेन, प्रवरतरनयेन त्वं नतोऽनंत येन । भविकमलचयेन स्फूर्जदूर्जस्ययेन, द्विरदगतिनयेन त्वेन भाव्यं नयेन ॥१५॥ जडिमरविसधर्मान्नुक्तदानादिधर्म, त्रुटितमदनधर्म न्य कृताप्राज्ञधर्म । जय जिनवरधर्म! त्यक्तसंसारिधर्म, प्रतिनिगदितधर्मद्रव्यमुख्यार्थधर्म ॥१६॥ यदि नियतमशांतिं नेतुमिच्छोपशांति,समभिलषत शांतिं तद्विधा प्रत्तशांतिम् । प्रहतजगदशांतिं जन्मतोऽप्यात्तशांति,नमत विगतशांतिं हे जनादेवशान्तिम्॥१७॥ ननु सुरवरनाथ त्वां ननाथे नृनाथ !,त्वमपि विगतनाथः किं त्वहं कुंथुनाथः। प्रकुरु जिन सनाथः स्यां यथायोपनाथ,प्रणतवियुधनाथ प्राज्यसच्छिष्य(च्छ्रीश)नाथ ! ॥१८॥ अवगमसवितारं विश्वविश्वेशितारं, तनुरुचिजिततारं सहयासांद्रतारम् । जिनमभिन For Private And Personal PATI AIRIRANI Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrine Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kaita r i Gyanmandir स्तुतिसंग्रहः श्रीदे० चैत्य श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥३७॥ मतारं भव्यलोकावतारं, यदि पुनरवतारं संसृतौ नेच्छतारम् ।।१९॥ अनिशमिह निशान्तं प्राप्य यः सन्निशान्तं, नमति शिवनिशांतं मल्लीनाथं प्रशान्तम् । अधिपमिह विशांतं श्रीर्गता चावशांतं, यति दुरितशांतं प्रोज्झ्य नित्यं वशांतम् ।। २० ॥ न्यदधत मघवा सत्प्रोल्लसत्शुद्धवासः, परिहतगृहवासस्यांशके यस्य वासः । विहितशिवनिवासः प्रत्तमोहप्रवासः, समन इह भवासः सुव्रतो | मेऽध्युवास ॥२२॥ समनमयत बालः शात्रवान् योऽप्यबालप्रकृतिरसितवालः श्रस्तरुश्चक्रवालः । जयतु नमिरवालः सोऽधरास्तप्रवालः, श्वसितविजितवालः पुण्यवल्लयालवालः ॥२२॥ जितमदन मुने मे नानिशं नाथ नेमे !, निरुपमशमिनेमे येन तुभ्यं विनेमे । निकृतिजलधिनेमे सीरमोहदुनेमे, प्रणिदधति न नेमे तं परा अप्यनेमे ॥२३।। अहिपतिवृतपार्श्व छिन्नसंमोहपार्श्व, दुरितहरणपाच संनमद्यक्षपार्श्वम् । अशुभतमउपार्श्व न्यत्कृतामंशु(शर्म)पावं,जिनविपिनपार्श्व श्रीजिनं नौमि पार्श्वम् ।।२४॥ त्रिदशविहितमानं सप्तहस्तांगमानं, दलितमदनमानं सद्गुणैर्वर्धमानम् । अनवरतममानं क्रोधमत्यस्यमानं, जिनवरमसमानं संस्तुवे वर्द्धमानम् ॥२५॥ विगलितवृजिनानां नौमि राजी जिनानां, सरसिजनयनानां पूर्णचन्द्राननानाम् । गजवरगमनानां वारिवाहस्तनानां, हतमदमदनानां मुक्तजीवासनानाम् ॥२६॥ अविकलकलतारा प्राणनाथांशुतारा, भवजलनिधितारा सर्वदाविप्रतारा । सुरनरविनतारा त्वाईती गीर्वतारादनवरतमितारा ज्ञानलक्ष्मी सुतारा ॥ २७ ॥ नयनजितकुरंगीमिंदुसद्रोचिरंगीमिह कुलमहुरंगीकृत्यचित्तांतरंगी। स्मरति हि सुचिरांगीर्देवतां यस्तरंगी, कुरुत इममरंगीत्यादिकृद् बंधुरंगी ॥२८॥ इति द्विवर्णयमिताहियत्यष्टकस्तुतयः। पत्र ११६ श्रीकुंभभूपालविशालवंशनभोउंगणोद्भासनशुभ्रभानुम् । प्रभावतीकुक्षिसरोमरालं, वनाम्यहं मल्लिजिनेन्द्रचन्द्रम् ॥२७॥ जन्माऽभिषेके किल यस्य शरैः, प्रलोठितैः क्षीरसमुद्रनीरैः। विराजितो राजितवान् सुमेरुमल्लिर्मुदे सोऽस्तु ममावलंबम् ॥२८|| अचिं Imporon HINETION Home For Private And Personal Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalahastri Gyanmandir स्तुतिसंग्रहः श्रीदे० | चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ । ॥३८॥ HTRUITA mali S त्यमाहात्म्यनिरस्तसर्वप्रत्यर्थिजालंवनवैभवं तत् । स्वदर्शनं मल्लिजिन! प्रयच्छ, प्रसीद मेऽहंमतिभेदि देव ॥ २९॥ अनन्यसामान्यवरेण्यपुण्यप्रागल्भ्यलभ्यं भुवनाभिरामम् । त्वदर्शनं नाथ! कदा समस्तं, श्रिया विशालं वनजं श्रयिष्ये ॥३०॥ नीलेन्द्रकालंवनवाहमुच्चैस्तत्वावबोधक्रमसेवनेऽहम् । श्रीमल्लिनाथं जगतीशरण्य, भावारिभीतः शरणं श्रयामि ॥ ३१ ॥ सदा चिदानंदमयास्तमोहमल्लेन मल्ले! भवितासि देव!। कदा निरालंब निरंजन त्वं, कुंभांकितः केवलसंविदे मे ॥३२॥ अध्यासिता हे जिन! मुक्तिकांता, हृदंतरालंबनजोपमानम् । श्रीमल्लिनाथांहियुगं कदा तेऽवतंसयित्वा प्रणतोत्तमांगः ॥३३॥ मल्ले नमल्लेखभवांधकूपे, पतंतमालंबनवर्जितं माम् । स्वभारतीवर्यवर ! त्वया त्वमालंबयालंबनविष्टपस्य ॥३४॥ मल्लीशमल्लीसमधर्मकीर्ते, महोकश्मीरजलिप्तविश्वः। अलेरिवालं निजपादपद्ममालंबनं मे मनसः प्रयच्छ ॥३५।। पत्र १२९ सिरिविस्ससेणअइरासुयं मयंक थुणामि संतिजिणं । बारसभव कित्तणओ सगणहरं चत्तधणुमाणं ॥ ९४ ।। रयणपुरे आसि तुमं सिरिसेणनिवोऽभिनंदियादइओ। पढमभवे बीए पुण उत्तरकुरुजुअलनर दोऽवि ॥९५।। तइए सोहम्मसुरा चउत्थए अमियतेअसिरिविजया। इह जाया मे होहिह पंचमए पाणए अमरा ॥९६॥ छटे सुभापुरीए अबराइअणंतविरियबलविण्हू । सत्तमए तं अच्चुयइंदो इयरो पढमनरए ॥९७॥ तो उव्यट्टिय होउं विजाहररायमेहनाउत्ति । होही अच्चुअअप्पे सो तुइ सामाणिओ देवो ॥२८॥ तं वजाउहचकी अट्ठमए रयणसंचयाइ इमो । सहसाउहो तुह सुभो नवमे दो तइअगेविजे ॥९९ ॥ पुंडरिगिणीइ सावकभायरा मेहरहदढरहत्ति । दसमे इक्कारसमे दोनिवि देवा उ सबढे ॥१००॥ चरिमे पंचमचक्की संती सोलसजिणो गयउरे तं । चक्काउहुत्ति एसो सुओ गणहरो य तुह पढमो॥ ११॥ पोससिअनवमि नाणं तुह भदवबहुलसत्तमीचवणं । जिट्ठस्स बहुलतेरसि जंमु GIViraim HRIRALALPlus a hillintinuindilim LEAPatiline RRIDHI LHI HITRINASHISHIHIHIMARITALIRAHANISATIHARImmwaryana ॥३८॥ For Private And Personal Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M EDIAn Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kalaha ri Gyanmandir स्तुतिसंग्रहः श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघाचारविधी ॥३९॥ | सावणचउदसीइ वयं ॥ १०२ ॥ एवं देविंदमुणिंदवंदिओ संतिनाहतित्थयरो । ससिहरसधम्मकित्ती भवेसि भत्रियाण संतिकरो ॥१०३ ।। पत्र १७२ सो आह सामि! एसो अट्ठावयपव्वओ जयपसिद्धो। इह दससहस्समुणिवरसहिओ सिद्धो रिसहनाहो ।। ९५ ॥ एयस्सुवरि सिरिभरहकारियं एगजोयणपमाणं । जिणभवणमस्थि कलियं चउवीमजिणिंदपडिमाहिं ।।१६।। तह एगो मह थूभो नवनवईभायनवनवइथूभो । संति इह सामि ! इक्खागसेसमुणीणं तिथूभा य॥९७॥ तह सत्तुंजयसिद्धा भरहवंसनिवई सुबुद्धिणा सिट्ठा । जह सगरसुयाणऽट्ठावएत्थ तह कित्तियं थुणिमो ॥ ९८। (इह अट्ठावयसेले सगरसुयाणं सुबुद्धिमचिवेण । जह भरहवंसजनिवा सिट्ठा तह किंचि कित्तेमि) ॥९९|| आइच्चजसाइ सिवे चउदसलक्खा उ एगु सबढे । एवं जा इक्किका असंख इय दुगतिगाईवि ।। १.००। जा पन्नासमसंखा तो सब्बटुंमि लक्खचउदसगं । एगो सिवे तहेव य अस्संखा जाव पण्णासं ।। १०१ ॥ तो दो लक्खा मुक्खे दुलक्ख सव्वढि मुक्खि लक्खतियं । इय इगलक्खुत्तरिया जा लक्ख असंख दोसु समा ।।१०२।। तो इगु सिवे सव्वढि दुन्निति सिमि चउर सबढे । इय एगुत्तखुड़ी जाव असंखा पुढो दोसु ॥१०३॥ तो इगु मुक्खे सव्वढि तिन्नि पण मुक्खि इय दुरुत्तरिया। जा दोसुऽविय असंखा एमेव तिउत्तरा सेढी ।।१०४॥ विसमुत्तरसेढीर हिटुवरि ठविय अउणतीसतिया । पढमे नत्थि क्खेवो सेसेसु सिया इमो खेवो ॥१०५।। दुग पण नवगं तेरस सतरस बावीस छच्च अद्वैव । बारस चउदस तह अट्ठवीस छब्बीस पणवीसा ॥१०६॥ एगारस तेवीसा सीयाला सयरि सत्तहत्तरिया । इगदुगसत्तासीई इगहत्तरिमेव बावट्ठी ।।१०७॥ अउणुत्तरि चउ(ग्रंथ३००) वीसा छायाला तह सयं तु छब्बीसा । मेलित्तु इगंतरिया सिद्धीए तह य सबढे ॥१.०८॥ अंतिल्लंक आई ठविउ बीयाइ MORNIA ॥३९॥. For Private And Personal Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarri Gyanmandir श्रीदे चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधौ ॥४०॥ खे वगा तहय। एवमसंखा नेया जा अजियपिया समुप्पन्नो॥१०९।। अस्संखकोडिलक्खा सिद्धा सबढगावि ठविय तओ। गिहि-स्तुतिसंग्रहः यचरणा देविंदवंदिया सिवपयं पत्ता ॥ ११० ।। किं बहुणा नणु इमिणा गिरिणा सुरअसुरखयरनिलएण | सयले वि महीवलए अन्नो तुल्लो गिरी नत्थि ॥१११॥ पत्र १९० श्रीनाभिमरुदेवांगप्रभवं कनकत्विषम् । वृषांकं वृषभं वंदे, पंचचापशतीमितम् ।।११४।। गजांको रुक्मरुक् सार्धचतुर्धन्वशतोन्नतः। | श्रिये स्तादजितस्वामी, विजयाजितशत्रुभूः ॥ ११५ ॥ चतुश्चापशतोत्तुंगं, हेमाभं वाहवाहनम् । जितारिराजसेनांगसंभवं शंभवं स्तुवे ॥११॥ निष्कत्विषं प्लवंगांकं, सिद्धार्थसंवरागजम् । सार्धत्रिशतधन्वाङ्गं, सेवेऽहममिनंदनम् ।।११७। कोदंडत्रिशतीमानः, क्रौंचलक्ष्माऽर्जुनद्युतिः। मुदे सुमतिनाथोऽस्तु, मंगलामेघभूपभूः ॥११८।। सार्द्धत्रिशतचापोच्चं, सुसीमाधरनंदनम् । सरोजलक्षितं शोणप्रभं पद्मप्रभं स्तुवे ॥११९।। पृथ्वीप्रतिष्ठसंभृतिदिधन्वशतविग्रहः। सुपार्श्वनाथ ! रैरोचिः स्वस्ति स्वस्तिकचिह्न ते॥१२०॥ चंद्राभं चंद्रलक्ष्माण, लक्ष्मणामहसेनजम् । सार्द्धचापशतोच्छ्रायं, नौमि चंद्रप्रभ प्रभुम् ।।१२।। सुग्रीवरामातनयं, मकरांक हिमच्छविम् । सुविधि विधिना वंदे, धनुःशतसमुच्छ्रयम् ॥ १२२ ॥ पायानवतिधन्वोचः, स्वच्छः श्रीवत्सलांछितः । नंदादृढरथोद्भूतः, शीतलः कनकद्युतिः ॥१२३।। कल्याणकांतिः श्रीविष्णुविष्णुदेवीतनूरुहः । धन्वशीतिमितः पातु, श्रेयांसः खगिलांछनः।।१२४॥ वसुपूज्यजयानुर्महिषांकोऽरुणप्रभः। चापसप्ततिदेहोऽव्याद्, वासुपूज्यजिनेश्वरः।।१२५|| श्रीश्यामाकृतवर्मागजन्मा षष्टिधनुस्तनुः। शूकरांको हिरण्याभः, शिवाय विमलोऽस्तु मे ॥१२६॥ पंचाशद्धनुरुच्छ्रायः, सुयशःसिंहसेनजः । श्येनांकः स्वर्णवर्णः स्तादनंतोऽनंतसंपदे ।।१२७।। सुव्रताभानुभूः पंचचत्वारिंशद्धनुम्मितः । जातरूपरुचिर्व नचिह्नोऽव्याद् धर्मतीर्थकृत् ॥१२८॥ चत्वारिंशद्धनुर्देहो MARATHI ॥४०॥ For Private And Personal Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri bin Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shika r i Gyanmandir श्रीदे. हेमधामा मृगध्वजः। विश्वसेनाचिरासूनुः, श्रीशांतिः शांतयेऽस्तु नः ॥१२९॥ छागांकः स्वर्णरुक् पंचत्रिंशत्कामुकमृतिभृत् । श्री-| स्तुतिसग्रहः चैत्यश्री कुंथुःश्रेयसे सूरश्रीराजीतनयोऽस्तु मे।.१३०।। नंदाव कितं त्रिंशद्धन्वमानं वसुच्छविम् । अरनाथं स्तुवे देवीसुदर्शनसमुद्भवम्।।१३१॥ धर्म० संघा-ANI | नीलं कुंभांकितं कुंभप्रभावत्यंगसंभवम् । पंचविंशतिकोदंडमूर्ति मल्लिमुपास्महे ॥१३२।। पद्मासुमित्रयोः पुत्रं,घनाभं कूर्मलक्षणम् । चारविधौ चापविंशतिमानांगं,स्तवीमि मुनिसुव्रतम् ।। १३३ ॥ वप्राविजयसंभृतं,नमिनीलोत्पलांकितम् । शातकौंभप्रभं पञ्चदशधन्वतनुं श्रये ॥४१॥ ॥१३४॥ शंखांको दशचापोच्चः,समुद्रविजयात्मजः। शिवायास्तु शिवामूनुर्ने मिर्नवधनविषिध।१३।।नवहस्तवपुर्वालतमालदलदी धितिः। वामाश्वसेनभूर्भूत्यै,श्रीपार्थोऽस्तु फणिधजः।।१३०॥ सप्तहस्तमितं सिंहलांछनं कांचमविषम् । सिद्धार्थत्रिशलमूर्नु,श्रीवीरं प्रणिदध्यहे ॥१३७।। एवं स्तुताः स्ववर्णाकमानांबापितनामभिः। स्युः सदा धर्मकीर्तिश्रीनायका जिननायकाः।।१३८॥ पत्र १९१ नंद्यान्नामिसुतः सुरेश्वरनतः संसारपारं गतः, क्रोधाद्यैरजितं स्तुवेऽहजितं त्रैलोक्यसंपूजितम् । सेनाकुक्षिभवः पुनातु विभवः श्रीसंभवः शंभवः, पायान्मामभिनन्दनः सुवदनः स्वामी जनानंदनः ॥५१॥ लोकेशः सुमतिस्तनोतु नमति श्रेयःश्रियं सन्म तिर्दभद्रोः कलभं मदेभशरभं प्रस्तौमि पद्मप्रभम् । श्रीपृथ्वीतनयं सुपार्श्वमभयं वंदे विलीनामयं, श्रेयस्तस्य न दुर्लभ शशिनिभं यः स्तौति चंद्रप्रभम् ॥ ५२ ।। बोधि नः सुविधे ! विधेहि सुविधे कर्मद्रुमोघजे(मौघप्रधे), जीयादंबुजकोमलक-IN मतलः श्रीमान् जिनः शीतलः। श्रीश्रेयांस! जय स्फुरद्गुणचयः श्रेयःश्रियामाश्रयः, संपूज्यो जगतां श्रियं वितनुतां श्रीवासुपूज्यः सताम् ॥५३॥ मोक्षं वो विमलो ददातु विमलो मोहाम्बुवाहानिलोऽनान्तोऽनंतगुणः सदागतरणः कुर्यात् क्षयं कर्मणः। धर्मो मेऽविपदं जवाच्छिवपदं दद्यात् सुखैकास्पदं, शांतिस्तीर्थपतिः करोत्विभगतिः शांतिं कृताधक्षतिः॥ ५४ ॥ कुंथुर्मेघरवो) |॥४१॥ AP For Private And Personal Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maher in Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्री धर्म० संघा - चारविधौ ॥ ४२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailanuri Gyanmandir भवादवतु वो मानेभकंठीखो, भक्त्या नम्रनरामरं जिनवरं प्रासस्मरं नौम्यरम् । श्रीमलेखनतक्रमोज्झिततमो मल्लेऽस्तु तुभ्यं नमो, विश्वाय भवतः स पातु भवतः श्रीमुत्रतः सुव्रतः || ५५ || लोभां भोजतमेश्वरोपम ! नमे धम्र्मे धियं धेहि मे, वंदेऽहं वृषगामिनं प्रशमिनं श्रीनेमिनं स्वामिनम् । श्रीमत्पार्श्वजिनं स्तुवेऽस्तवृजिनं दंताक्षदुर्वाजिनं, नौमि श्रीत्रिशलांगजं गतरुजं मायालताया गजम् दुरापास्तसमस्तकल्मष (कुत्सन) तमावीताखिलांतारजावामोल्लासविनाशस्तमहने (लासशोभनमहा) मृद्वग्रिमौकावलम् । स्फूर्जद्भावृषभाभिरामनयनिर्दग्धाशुभैधावरं, गातां मुक्तिपदप्रदं जिनवृषा वृद्धं प्रसादं मम ||५७ ॥ एकवचनं द्विवचनं बहुवचनं तुल्यं । इत्थं धर्म्यवचोवितानरचितं वज्यं स्तवं मुद्युतः, सद्धर्मद्रुमसेकसंवरमुचां भक्त्यार्हता नित्यशः । श्रेयः कीर्त्तिकरं नरः स्मरति यः संसारमाकृत्य सोऽतीतार्त्तिः परमे पदे चिरमितः प्राप्नोत्यनंतं सुखम् ||२८|| नामगर्भमष्टदलं कमलं ॥" पत्र २०५ इन्द्रश्रीरहमिन्द्रश्रीश्व क्रिश्रीरपराः श्रियः । त्वद्भक्तेस्तु त्रिलोकश्रीः, शिवश्रीरप्यवाप्यते ||२४|| पत्र २२२ जय जय जिणिंद ! तियसिंदबिंदवंदियपयारविंदजुया । सिरिपासनाह मणवंछियत्थ संपायणसमत्थ ! ॥ १०६ ॥ सामि ! न याणामि अहं अहेसि तुह कित्तियं तु लायण्णं १ । नयणाइगंति तुह नाम धारए पत्थिवेऽवि चिरं १०७ ॥ नयणा निरत्थया जयमदयंजण न जेहिं दिट्ठोऽसि । वायावि वंचिया सा सुरसंधुय ! जीह नहु थुणिओ ॥ १०८ ॥ हिययं हियआणंद हिययाणंद न जं तुमं झाइ । सवणावि सब्वणा ते नहु तुह गुणसवणपवणा जे ।। १०९ ।। नाह ! सिरं तं असिरं तिहुयणनमियस्स जं न ते पणयं । भालंपि भग्गभग्गं तुह पयपीढे न जं लग्गं || १००|| अकयत्था ते हत्था जे तुह कमकमलसेव असमत्था । पायावि बहुअपाया गंतूण न वंदिओ जेहिं ।। १११ ।। जम्मोऽवि सो अरम्मो जंमि न संमाणिओ तुमं सामी । लच्छीवि सा अलच्छी तुहत्थवंझा For Private And Personal स्तुतिसंग्रहः ॥ ४२ ॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya St Kildeh uri Gyanmandir श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघा- चारविधौ ॥४३॥ ll u MINUTRIPATHROOPERHIPU न सच्छाया ॥११२।। किं बहुणा? नाह इहं तुह सेवावज्जियस्स जं किंपि । तं सम्बंपि निरत्थयमणत्थसत्यप्पयाणाउ ।।१२शातास्ततिसंग्रहः वित्रत्तो ससिकरसधम्मकित्तिभर पासतित्थयर! । तुह सेवाए सहलाणि हुंतु मह लोयणाईणि ॥११४॥ पत्र २२५ “संकल्पोऽपि न कल्पजतरौ चिंता न चिंतामणौ, कामः कोऽपि न कामकुंभविपयो नो चित्रकृच्चित्रकः । मन्ये कांचनपुरुपोऽपि पुरुषो नो कामधेनौ मनो, यत्ते श्रीमुनिराजपादकमलद्वंद्वं मया वंदितम् ॥६८॥ अंहःसंहतिमाशु लुपति धृतिं धत्ते विधत्ते | शिवं, चारित्रं चिनुते निहंति कुमति भिन्ते भृशं दुर्गतिम् । पुष्णात्यद्भुतशुद्धबुद्धिमहिमाः श्रीधर्मकीर्तिप्रभाः, श्रीवाचंयमराज ! भव्यभविनां पादप्रसादस्तव ॥६९॥" पत्र २७६ ___जय जय नाणदिवायर परोवयारिकपच्चल मुणिंद ! । गुरु करुणारससायर नमो नमो तुम्भ पायाणं ॥४९।। दारिदअमुद्दसमुद्दमज्झनिवडंतजंतुपोयाणं ! सकलकमलालयाणं नमो नमो तुब्भ पयाणं ॥२०॥ सग्गापवग्गमग्गाणुलग्गजणसत्थवाहपायाणं । भवियावलंबणाणं नमो नमो तुब्भ पायाणं ॥५१॥ चकंकुसंकबरकलसकुलिसकमलाइलक्खणजुयाणं । असरणजणसरणाणं नमो नमो तुज्झ पायाणं ॥५२॥ पत्र ३५० जिनं यशःप्रतापास्तपुष्पदंतं समं ततः। संस्तुवे यत्क्रमौ मोहपुष्पदंतं समंततः ॥ १ ॥ प्रातस्तेऽहिद्वयी येन, सरोजास्य । समा नता! त्वयाऽस्तु जिनधर्मान्जसरोजास्य समानता ॥२॥ वंदे देव ! च्युतोत्पत्तिव्रतकेवलनिवृतिम् । विश्वाचिंतच्युतोत्पत्ति, व्रतके वलनिर्वृतिम् ।। ३ ॥ चतुरास्यं चतुष्कायं, चतुर्धावृषसेवितम् । प्रणमामि जिनाधीशं, चतुर्धावृष सेऽवितम् ॥ ४ ॥ | जिनेन्द्रानंजनश्यामकल्याणाजहिमप्रभान् । चतुर्विंशतिमानौम्यकल्याणान्जहिमप्रभान् ॥ ५॥ विलोक्य विकचांभोजकाननं ना Montin ROPA For Private And Personal Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥ ४४ ॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaisarsuri Gyanmandir भिनंदनम् । द्रष्टुमुत्कायते कोऽपि, काननं नाभिनंदनम् ॥ ६ ॥ तवानीश ! सदा वश्या, जितनिष्कोप नाथति । अहितो न हि तं | स्वामी, जितनिष्कोपनाथति || ७ || सदातनाय सेनांगभव संभव संभव । भगवन् भविकानामभव शंभव संभव ॥ ८ ॥ दुष्कृतं मे | मनो हंसमानस स्याभिनंदनः । श्रीसंवरधराधीशमानसस्याभिनंदनः || ९ || अज्ञानतिमिरध्वंसे, सुमते सुमतेन ते । क्रियते न नमः | केन, सुमते ! सुमतेनते ? ||१०|| त्वां नमस्येति येकस्थपद्मं पद्मप्रभेश ! ते । त्रैलोक्यस्य मनोहारिपद्म पद्मप्रमेशते ||११|| सद्भक्या यः सदा स्तौति, सुपार्श्वमपुनर्भवम् । सोऽस्तजातिमृतिर्याति, सुपार्श्वमपुनर्भवम् ||१२|| सहर्षं ये समीक्षते, मुखं चंद्रप्रभांग ! ते । विदुः सकलसौख्यानां, मुखं चंद्रप्रभांगते ||१३|| सदा स्वपादसंलीनं, सुविधे सुविधेहि तम् । येन ते दर्शनं देव!, सुविधे ! सुविधे| हितम् ||१४|| यथा त्वं शीतलस्वामिन्!, सोमः सोममनोहरः । भव्यानां न तथा भाति, सोमः सोममनो हरः।। १५ ।। तं वृणोति स्वयंभूष्णु, श्रेयांसं बहुमानतः । जिनेशं नौति यो नित्यं श्रेयांसं बहुमानतः॥ १६ ॥ वाक्यं यस्तव शुश्राव वासुपूज्य ! सनातनम् । | भवे कुर्यात्तमोदाववाः सुपूज्यः सनातनम् ||१७|| कस्य प्रमोदमन्यत्र, विमलात् परमात्मनः । हृदयं भजते देवाद्, विमलात् परमा| त्मनः ॥ १८ ॥ दृष्ट्वा त्वाऽनंतजिद्भावपराजितमनो भवम् । भविनां नाथ ! नामैत्य, पराजितमनोभवम् ॥ १९॥ श्रीधर्मेण क्षमारामप्रकृष्टतरवारिणा । सनाथोऽस्मि तृषावल्लीप्रकृष्टतरवारिणा ||२०|| त्वया द्वेधाऽरिवर्गों यत्, पदौ श्रीशांति नाथते । शरणं तद्भ| वध्वस्ता पदौ श्रीशांतिनाथ ! ते ॥ २१ ॥ वीतरागं स्तुवे कुंथुं, जिनं शंभुं स्वयंभुवम् । सरागत्यात् पुनर्नान्यं, जिनं शंभुं स्वयंभुवम् ||२२|| विजिग्ये लीलया येन, प्रद्युम्नो भत्रताsदरः । भविनां भवनाशाय प्रद्युम्नो भवतादरः ||२३|| यः स्यात् मल्ले नमलेखो, मल्लस्य प्रतिमल्लते। क्रमो मनसि वो देह, मल्लस्य प्रतिमल्ला ! ते ||२४|| विधत्ते सर्वदायते, समुद्र (स) व्रतसमुन्नतिम् । समासादयते For Private And Personal स्तुति सग्रहः '॥ ४४ ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Nag in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kail sturi Gyanmandir R U स्तुतिसंग्रहः श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधी ॥४५॥ स्वामिन् , समुद्र(सु)व्रतसमुन्नतिम् ॥२५॥ दृष्ट्वा समवसृत्यंतर्नमीशं चतुराननम् । पश्येत् कोऽजितखं धीमान्नमीशं चतुराननम् ? ॥२६॥ श्रीनेमिनाथमानौमि,समुद्रविजयांगजम् । हेलानिर्जितसंप्राप्तसमुद्रविजयांगजम् ।।२७॥ शिवार्थी सेवते ते श्रीपार्श्व ! नालीककोमलौ । न क्रमावनिशं नम्रपार्श्व! नालीककोऽमलौ॥२८॥ वरिवस्यति यः श्रीमन्महावीरं महोदयम् । सोऽश्रुते जितसंमोहमहावीरं महोदयम् ॥२९॥ श्रीसीमंधरतीर्थेशं, सादरं नुतनिर्जरम् । येऽज्ञानं भिन्ते भसमादरं नुत निर्जरम् ॥३०॥ पृ.३९५ सुरराजसमाजनतांहियुगं, युगपञ्जनजातविबोधकरम् । करणद्विपकुंभकठोरहरि, हरिणांकितमर्जुनतुल्यरुचिम् ।। ५६॥ रुचिरागमसर्जनशंभुसमं, सममानविलोकितजंतुगणम् । गणनायकमुख्यमुनींद्रनतं, नतवांछितपूरणकल्पनगम् ।। ५७ ।। नगराजविनिम्मितजन्ममहं, महनीयचरित्रपवित्रतनुम् । तनुकीकृतवैरिनरेशमदं, मदमत्तगजेन्द्रसदृग्गमनम् ॥ ५८ ॥ मनईहितसौख्यविधा- | नपटुं, पटुवाणिजनौषकृतस्तवनम् । वनजोदरसोदरपाणिपदं, पदपद्मविलीनजगत्कमलम् ।। ५९ ।। मलमांद्यविमुक्तपदप्रभवं, भवदुःखसुदारुणदानधनम् । धनसारसुगंधिमुखश्वसितं, सितसंयमशीलधुरैकवृषम् ॥६०॥ धृषकाननसेचननीरधरं, धरणीधरवंद्यमनिंद्यगुणम् । गुणवजनताऽऽश्रितसच्चरणं, रणरंगविनिर्जितदेवनरम् ॥ ६१ ॥ नरकादिकदुःखसमूहहरं, हरहारतुसारसुकीर्तिभरम् । भरतक्षितिपामितबाहुबलं, बलशासनशंसितसाधुजनम् ।। ६२ ॥ जनकाद्यनुरागविधौ विमुखं, मुखकांतिवितर्जितचंद्रकलम् । कलनातिगसिद्धिसमृद्धिपरं, परभक्तिजनातुलशांतिजिनम् ॥६३।। जिनपुंगवनायक शिवसुखदायक कामानलदेवेन्द्रवर! । त्रिभुवनजनबंधुर भवतरुसिंधुर भव भविनां भवभीतिहर ॥६४॥ पृ. ४३१-४३२ अत्थि सुरट्ठाविसओ विसयसयविरायमाणनयविसरो । सरसफलकलियफलओ लयलीणमुणिंदगिहासिहरो ॥१॥ सत्तुंजय PARIHARANULOUDHARINEELHDPaintintay NIITTALPATAmalne ॥४५॥ For Private And Personal Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kal i Gyarmandir स्तुतयः श्रीदे. चैत्य० श्रीधर्मसंघाचारविधी ॥४६॥ MP mmmmmmmmmmnasiummamim H RAIL MALISHANIPRITI सेलेसो सेलेसीकरणसालिसो तत्थ । भवियाण निवुइकरो तह कयलहुपंचसरमरणो॥२॥ जो अट्ठ जोयणाई समूसिओ पवरओसहिसमिद्धो । दसजोयणविच्छिन्नो सिहरे मूले य पन्नासं ॥३॥ अविय मयणयलमणुलिहंतरुइकंतकंतजिणभवणो । वणमझवहंतझरंतनीरनिज्झरणनियरजुओ ॥४॥ जुवलट्टियसुरकिंनरसिद्धसमारद्धसुद्धगंधब्यो । गंधवपणइणीजणमुच्छाविजंतवीमसरो ॥५॥ सरसहरिचंदणदुमसुगंधपूरंतसयलदिसिविवरो । वररयणनियरचिंचइयसिहरसयसंकुलो रम्मो॥६॥ पृ. ४३६ जय पणमिरविजाहरदेविंदमुणिंद सिरिगणहरिंद । गुरुकरुणारससायर ! नमो नमो तुब्भ पायाणं ॥६१॥ जय जय नाण-D कलानिहि पडिवोहियबहुयभवियपुंडरिय ! गुरुकरुणारससायर ! नमो नमो तुब्म पायाणं ॥६२ ॥ सग्गापवग्गमग्गाणुलग्गजणसत्थवाहपायाणं । गुरुकरुणारससायर ! नमो नमो तुम्भ पायाणं ॥३३॥ जय गुणगणहर गणहर ! सुयहरसंमोहकरडिपुंडरिय।। गुरुकरुणारससायर! नमो नमो तुब्भ पायाणं ॥६४॥ भवरुद्दअमुद्दसमुद्दमझमजंतजंतुपोयाणं । गुरुकरुणारससायर नमो नमो | तुम्भ पायाणं ॥६५|दुस्सहदोहग्गदरिद्दतावतावियजियाण पुंडरिय! । गुरुकरुणारससायर! नमो नमो तुरंभ पायाणं ॥६६॥ | जय विगलियकलिमलमर निम्मलतवचरणसाहु पुंडरिय! गुरुकरुणारससायर! नमो नमो तुभ पायाणं ॥ ६७॥ डिंडीरपिंड पहुरसुधम्मकित्तिभरभरियभुयणयल। गुरुकरुणारससायर ! नमो नमो तुब्भ पायाणं ॥ ६८ ॥ इय संथुओ सि गणहर ! देविंद| मुणिंदपणयषयकमल! । जिणसासणम्मि भत्ती मे पहु ! हुन्ज सया तुह पसाया ॥६९।। पृ. ४४० m IIIIIIRAM CISMARATPI REDIUPAIRATIHARAPATIALANILILAPTAIHIRI ॥४६॥ For Private And Personal Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Male Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir देशनास्थानानि देशना स्थानानि श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥४७॥ २४७/ २७७ १७५ अभिनंदनजगन्नंदनदेशना अभयघोषदेशना गुर्वनुशास्तिः सुमतिकेवलिदेशना विमलपुत्रदेशना स्वयंभूजिनदेशना | हीमत्युपदेशः | रामकृष्णाकेवलिदेशना सिंहचन्द्रोपदेशः हरिमुनिचंद्रदेशना पार्श्वजिनदेशना ज्ञानभानुमुनिदेशना १५८ | समन्तभद्रदेशना (२) १६३ (सामाचार्यः) समन्तभद्रकेवलि१७१ देशना १७३ श्रीऋषभदेशना गुणधरमुनिदेशना अमरचन्द्रमूरिदेशना प्रभासाचार्यदेशना १८७ नन्दनगिरिदेशना १९७ मरुदेवाप्रवन्धः १८४ पत्र ६। भुवनभानोरुपदेशः कीर्तिधरोपदेशः अचलमुनिदेशना चारणोपदेशः विपुलमतिदेशना संगमसूरिदेशना विमलबोधाचार्यदेशना ७४ गुणधराचार्यदेशना ७८ गुगंधराचार्यदेशना प्रभासमुनिदेशना १११ मुनिदेशना १४ चारणश्रमणदेशना ६२ . ३८० १९८. शशिप्रभदेशना . २०० सुधर्मगुरुदेशना २२२ मुनिदेशना २४७ / (आत्मजये) स्वयंभूदत्तदेशना ४१६ ४१७ ४२५ ४३२ HINDMRIDDHIST ॥४७॥ For Private And Personal Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥ ४८ ॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशनासंग्रहः 10 Acharya Shri Kailuri Gyanmandir इह अस्थि विविहरिद्धिसिद्धिसग्गाइकारणं धम्मो । धम्मो महलमंगलवल्लिपल्लवणघणतुल्लो || ८ || उल्लसिरनिरंतर अंतरायसंघायघायगो धम्मो । धम्मो य उदग्गसमग्गऽवंगकल्लाणकुलभवणं ||९|| सयलसुहदाणपञ्चल निच्चलसम्म सुपरट्ठाणो ! सो सव्वदेसविरइप्पभेयओ पुण भवे दुविहो || १०|| पत्र ६ लहिउं सुदुल्लाहं नरभवाइसामग्गिमित्थ भवहरए । सद्दंसणपरिभट्ठा मा दुहिया भमह कुम्मन्य ||२८|| हरपरिमियत्तणा अवि | लहिज्ज ससिदंसणाइ सो कुम्मो । न उ पुणवि जिओ चोहिं भवणंतता अकयसुकओ ।। २९ ।। ता सोउमिमं संमं अरिहं देवो सुसाहुणो गुरुणो । जिणपन्नत्तं तत्तं इत्थ पहाणंति कुणह मई ||३०|| पत्र ३८ कोहो अप्पीक उब्वेयकरो य सुगइनिदलणो । वेराणुबंधजणणो जलणो वरगुणगणवणस्स || ८४|| कोहंधा निहणंति पुत्तं मित्तं गुरुं कलत्तं च । जणयं जणणि अप्पंपि निग्विणा किं न कुव्वंति १ || ८५ || कोहम्मी पञ्जलिओ न केवलं दहइ अप्पणो देहं । | संतावेइ परंपिहु पहवइ परभवविणासाय ।। ८६ ।। ता कोहमहाजलणो विज्झवियन्वो स्वमाजलेण सया । अन्नह दुसहं दुक्खं देह जह इमीइ बालाए || ८७ ॥ पत्र ४१ नहु होइ सोइयच्चों जो कालगओ दढो चरित्तंमि । सो होइ सोइयव्वो जो संजमदुब्लो विहरे || ५१|| सोच्चा ते जियलोए जिणवयणं जे नरा न याणंति । सोच्चाणवि ते सोच्चा जे नाऊणं नवि करंति || ५२|| दावेऊण घणनिहिं तेसिं उप्पाडिआणि अ For Private And Personal देशनासंग्रह ।। ४८ ।। Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य० श्री. धर्म० संघा चारविधौ ॥ ४९ ॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashauri Gyanmandir |च्छीणि । नाऊणवि जिणवयणं जे इह विद्वलति धम्मघणं ॥ ५३ ॥ को से सोओ सुचरियतवस्स गुणसुट्टियस्स साहुस्स । सुग्गइगमपsिहत्थो जो अच्छा नियमभरियभरो || ५४ ॥ ५० गंतुं सिवपुरमिच्छह जड़ भविया ! लंघिउं भवारण्णं । नाणाइसरूवे मग्गे लग्गेह सुविसुद्धे ||१७|| नाणं पयासगं सोहओ तवो संजमो य गुत्तिकरो । तिव्हंपि समायोगे मोक्खो जिणसासणे भणिओ ॥ १८ ॥ पत्र ६९ धम्मे अतुच्छसुदेवच्छे ! सच्छासए पमायंती । मा गच्छ इह सुतुच्छे सुक्खे विणिवायबहुलंमि ॥ ९२ ॥ जओ-संसारीण सरीरं कयलीकोमलकरीरनिस्सारं । रूवं संझुब्भव अब्भरागसमं नस्सरसरूवं ॥ ९३ ॥ मयकलियकलहकरिकण्णतारतरलंव तरलतारुणं । पवणपणुल्लियदीवयसिहव्व अवि चंचलं जीयं || ९४ || तहय अवस्सं पियजणसंजोगा विप्पओगपचंता | मुहमहुरमंतविरसं विसयसुहं विसमविससरिसं ।। ९५ ।। ता पुति ! निरुयमंग इंदियहाणी न जाव जाव जरा । अल्लियइ जाव न मच्चू लहु उज्जम ताव अपहिए || ९६ ॥ पत्र ७३ माय पियभाय भइणीभञ्जासुयधूयसुण्डसुहिसयणा । जाया सव्वेवि जीया अणंतसो सव्वजीवाणं ॥ १०३ ॥ पत्र ७४ लब्भंति लोललोयणललणाजणजणियचित्तपरितोसा । घरवासा कक्खडकम्मखत्रणदक्खो न उण धम्मो ॥ १७० ॥ लब्भंति पणयवर विणयपउण सुरसुंदरीसणाहाई। इंदत्तणाई न उणो नरेहिं सिवसुहफलो धम्मो ।। १७१ ।। अह स गहइ गिहिधम्मं सम्मं संमत्तमूलमाजीवं । बंभ छट्ठतवं तह तो मुणिणा एवम सिट्ठी ॥ १७३ ॥ अरिहंतुच्चिय देवो मुणिणुच्चिय सीलसंगया गुरुणो । जीवदयच्चिय धम्मो निचं चिंतिज नियचित्ते || १७४ ॥ पत्र ७९ For Private And Personal |देशनासंग्रह: ॥ ४९ ॥ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrine in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka s uri Gyanmandir श्रीदे. देशनासंग्रहः चैत्यश्रीधर्म०संघान चारविधौ संसारम्मि असारे असारभृया विसेसओ एसा । लच्छी देहो हो तारुणं जीवियव्यं च ॥२१४॥ जं जलतरंगतरला लच्छी देहो जराइ जजरिओ। नेहो णरयदुहाईवल्लिपल्लवणनवमेहो ॥२१५।। मयकलियकलहकरिकण्णतारतरलं च तारतारुणं । पवणपणच्चियदीवयसिहव्व अइचंचलं जीयं ॥२१६।। गरुएण पुन्नपत्तेण पाविया एस मणुयजम्मतरी । जाव न मिजइ ता भवजलनिहितरणे पतूरेह ॥२१७।। पत्र ८१ कह तं भन्नइ सुक्खं सुचिरेणवि जस्स दुक्खमल्लियइ । जं च मरणावसाणं भवसंसाराणुवंधिं च ? ॥१७।। ता चउगइभवदुहदारुदाहदहणं करेह जिणधम्मं । दुविहंपि ससत्तीए ओसहमिव कम्मरोगाणं ॥ १८ ।। तो मंती तुट्ठमणो गिहत्थधम्म गहेवि | तं बालं । पहु पाएसुं पुण पुण पाडेवि गओ सठाणंमि ॥ १९ ॥ पत्र १११ भवजलहिमि अपारे जम्मणजरमरणनीरपडिपुन्ने । वाहिदुरंतजलयरे कुजोणिसयदुत्तरावते ॥ ५७॥ किण्हाइअसुहलेसाअबालसेवालजालपडिहत्थे । गुरुरायपंकखुत्तो गुत्तो मायालयागहणे ॥ ५८॥ कहकहवि सुपुण्णवसा पावइ पाणी नरत्तबोहित्थं । संमतपइट्ठाणं सुजाइकुलपमुहवरफलयं ॥ ५९॥ संवरकयनिच्छिद्दे सन्नाणगुणे विवेयगुणरुक्खे। संवेयसेयवट्टे निव्वेयानिलजणियवेगे ।।६०॥ सज्झायझाणपोए वाहेसु नियमपुलिंदए तत्थ । सुहभावकत्रधारं भविया ! भवजलहितरणकए ॥६१ ।। जं एस पमायअवायनियरओ रक्खिओ रयणदीवे । नेऊण इमं पूरइ एव महव्ययसुरयणेहिं ॥२॥ तत्थऽथि सव्वसावजविरइसेलो तहिं च सुहछाया। सीलंगसहस्सफला दसविहमुणिधम्मकप्पतरू ॥६३॥ भवजलहितडिसमा केवलित्ति तस्सि गओवरि सिद्धिपुरी (सिद्धी)। अस्थि तहिं ठवइ जीयं नरत्तबोहित्थमिह मुत्तं ॥६४॥ जीइ न जम्मो न जरा न य मरणं नेय छुहपिवासाई। न य रागरोगसोगा WIDTHRITHAIRadio %3D For Private And Personal Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mal Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रीदे. चैत्यश्रीधर्मसंघाअरविधौ न आहिणो वाहिणो नेव ॥६॥ किंतु अणंतचउकयकलिओ जीवो निरंजणो निचो। उज्जोयंतो तिजयं चिट्ठइ रयणप्पइबुन्न देशना।। ६६ ।। पत्र ११४ संग्रहा यावन्न जरा न रुजा न विघ्नसंघो न चेन्द्रिये हानिः । तावदलममलमतिना स्वहितकृतावुद्यमः कार्यः ॥८४॥ पत्र १५८ __ इह निव्वुइपरमंगाणि जंतुणो दुल्लहाणि चत्तारि। मणुयत्तं धम्मसुई सद्धाणं संजमे विरियं ॥४९॥ चुलसीइलक्खजोणीमु बहुकुलकोडीसु भमिय कहवि जिओ । इह लहइ माणुसत्तं सुदेससुकुलाइसुपवित्तं ॥५०॥ तत्थवि कुतित्थबहुले लोए दुलहा विसु धम्मसुई । जीइ अहिंसगधम्म पडिवज्जिय तरइ भवजलहिं ॥५१॥ धम्मेसुवि दुल्लहा तत्तई मिच्छत्तसेवए लोए । जं नेयाउयमग्गा बहवे भस्संति मूढमई ॥ ५२ ॥ सदहणेऽविहु धम्मस्स फासणा दुल्लहा उ कारण । कामगुणमुच्छिया जं विरमंति जिया न पावाओ ॥५३॥ जो उ मणुयत्तपत्तो सुद्धं धम्मं सुणितु सद्दहिउं । जहविहिणा उ अणुहइ सो इह लहु धुगइ कम्मरयं ॥५४॥ ता धम्माणुट्टाणे करेह जत्तं सया विहिपहाणे । धारेह सुद्धभावं भविआ! बजेह वितहभावं ॥ ५५ ॥ जं विहियमणुट्ठाणे वितहत्तं कुणइदंसणं समलं । समले तंमि तवनियमवयगुणा हुंति न बहुफला ॥५६॥ धम्मगयं वितहत्तं थोपि विसं व हणइ सुहनिचयं। वड्डेइ दोसजालं जणेइ बहुऽणत्थवित्थारं ॥२७॥ धर्मानुष्ठानवैतथ्यात् , प्रत्यपायो महान् भवेत् । रौद्रदुःखौषजननो,दुष्प्रयुक्तादि वौषधात् ॥ ५८ ॥ पत्र-१६३ DI संसारो दुहहेऊ दुक्खफलो दुसहदुक्खरूवो य । नेहनियलेहिं बद्धा न चयंति तहावि तं जीवा ।। ७०।। जह न तरइ आरु हिउं पंके खुत्तो करी थलं कहवि । तह नेहपंकखुत्तो जीवो नारुहइ धम्मथलं ॥७२॥ छिजं सोसं मलणं बंधं नीपीलणं च लोय-10॥५१॥ For Private And Personal Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mai Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas y i Gyanmandir श्रीदे। देशना संग्रहः चैत्य० श्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥५२॥ म्मि । जीवा तिला य पिच्छह पावंति सिणेहपडिबद्धा ॥७२॥ थोवोऽवि जाव नेहो जीवाणं ताव निव्वुई कत्तो ? । नेहक्खयंमि | पावइ पिच्छह पइवोवि निव्याणं ॥७३॥ दूरुज्झियमचाया धम्मविरुद्धं च जणविरुद्धं च । किमकजं जं जीवा न कुणंति सिणेहगहगहिया ? ॥ ७४ ॥ (पुष्प०) पत्र १७१। देवाणुप्पिय ! दुलहं मणुयत्तं लहिय इह पमायं मा । काहिसि जिणवरधम्मे जम्मजरामरणभयहरणे ॥ ११२ ॥ अवियजिणाणं पूअजत्ताए, साहूणं पज्जुवासणे । आवस्सयंमि सज्झाए, उजमेज दिणे दिणे ॥ ११३ ॥ जओ-कदाचिन्नातंकः कुपित इव पश्यत्यभिमुखं, विदूरे दारियं चकितमिव नश्यत्यनुदिनम् । विरक्ता कांतेव त्यजति कुगतिः संगमुदयो, न मुंचत्यभ्यर्ण सुहृदिव जिनार्चा रचयतः ॥११४॥ आरंभाणां निवृत्तिविणसफलता संघवात्सल्यमुच्चैनैर्मल्यं दर्शनस्य प्रणयिजनहित जीर्णचैत्यादिकृत्यम् । तीर्थोन्नत्यप्रभावं जिनवचनकृतिस्तीर्थकृत्कर्मकत्वं, सिद्धेरासन्नभावः सुरनरपदवी तीर्थयात्राफलानि ॥११५॥ तत्त्वांभोजप्रकाशं रचयति रविवन्नेमिवदुःखलक्षं, स्फूर्जकक्षं छिनत्ति प्रकटयति लसद्दीपवन्मोक्षमार्गम् । भव्यानां भक्तिभाजां जनयति धनवत् पापनाशाय शांति, साधूनां पर्युपास्तिर्विघटयति तमःस्तोममिदुप्रभेव ।। ११६ ।। सावा दलयत्यलं प्रथयते सम्यक्प्रसिद्धि परां,नीचैर्गोत्रमधः करोति सुयमच्छिद्रं पिधत्ते क्षणात् । सद्ध्यानं चिनुते निकंतति ततं तृष्णालतामण्डपं,वश्यं सिद्धिसुखं करोति भविनामावश्यकं निर्मितम् ॥११७॥ कालुष्यं कलयाऽपि नो कलयति स्वांतं प्रशांतं भवेत् , विश्वं पाणितले स्थितामलकवत् प्रत्यक्षमेवाखिलम् । आसन्नाऽपि कुवासना न भवति स्वाध्यायमभ्यस्यतः, पुंसः पुंसितमेव दुर्मतिगतिस्थानादिकं सर्वतः ॥ ११८ ।। पत्र १७३-१७४ messmaniamilam தயட்டி மாடிப்படியா பயையா மாக பாய் a ॥५२॥ iIARRHENGALISA For Private And Personal Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kcbatirth.org h श्रीदे० ari Gyanmandi देशना चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ | ॥५३॥ mmmmmmm Acharya Shek देहो धुवं विणासी तवसंजमसाहणं फलं तस्स । वच्चइ हुलियं जीयं ता मा धम्मे पमाएह ॥१३०॥ सिद्धपि महाविजं असरंतो निष्फलं जहा कुणइ । तह धम्मपमाइल्लो हारइ पत्तंपि मणुयत्तं ॥१३१।। जह दुलहं कप्पतरूं लहिउं मग्गइ बराडिअंमूढो। मुक्खफले मणुअत्ते तह अबुहो मग्गए विसए ॥१३२।। पत्र १७५ ___ इह-भवजलनिहिशुअ चिंतारयणं व सुदुल्लहं मणुअजम्मं । रोरस्स निहाणपित्र तत्थवि सम्मत्तमइदुलहं ॥४॥ कहकहवि तंपि लहिउं तस्सुद्धिकए करेह पइदिवसं । मज्झजहन्नुक्कोसं चिइवंदणयं जहासमयं ॥५|| तत्थ-एगनमुकारेणं बहुविहसकथएण व जहन्ना। इरियनमुक्काराईपणिहाणतेणवि इगेणं ॥६॥ सचित्र इगचूलथुई उजोअगरंति जाव मज्झिमया । पणदंडथुइचउक्कगपणिहाण विणत्ति जं भणियं ॥ ७ ॥ 'निस्सकडमनिस्सकडे'त्यादि, सक्कत्थयचिइवंदणथयनामथयाइ तिन्नि थुइदंडा। एवं पणदंडा चउथुइजुया अंतसकथया ॥ ८॥ जा थयपणिहाणता उकोसा दुगुणपंचदंडा वा। पणसकथया वा थयपणिहाणत्तिय थुइतिगंता ॥९॥ भणितं च-'दुन्भिगंधमलस्सावि, तणुरप्पेसऽण्हाणिया । उभओ वाउवहो चेव, तेण टुंति न चेइए ॥१०॥ तिन्नि वा कडई जाव, थुइओ तिसिलोइया । (चैत्यवंदनान्ते प्रणिधानरूपा) ताव तत्थ अणुन्नायं, कारणेण परेणवि ॥११॥ जओ-नियमवणं सुरभवणं व होइ | तह किंकरिव्य चकसिरी । सुइरं विलसंति सतणुम्मि उग्गसोहग्गपमुहगुणा ॥ १२ ॥ सुहउत्तारो गुप्पयजलं व अवि एस हुज भवजलही । सिद्धिसुहंपि अभिमुहं नराण चिअबंदणपराणं ॥१३॥ अविअ-विसमंपि समं सभयपि निभयं दुजणोवि सुयणिव्व । विहिविहियचेइवंदणपभावओ जायइ जियाणं ॥१४॥ पत्र १८४ कोहो पीई पणासेइ, माणो विणयनासणो। माया मित्ताई नासेइ, लोभो सबविणासणो ॥५२।। कोहो य माणो य अणि I ndainment For Private And Personal Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mo h Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailabl u ri Gyanmandir श्रीदे०ग्ग हीया,माया य लोहोय पवड्माणा । चत्तारि एए कसिणा कसाया, सिंचंति मूलाई पुणब्भवस्स ॥५३॥ उवसमेण हणे कोहं, । देशना चैत्यश्री | माणं मद्दवया जिणे । मायं चऽञ्जवभावणं, लोभं संतोसपोसओ (ओ जिणे) ॥५४॥ पत्र १८७ धर्म० संघा पंचांगचंगमतिरंगभरेण भव्यो, यो वंदते जिनपतिं विगतप्रमादः। तेनेऽत्र तेन वसुधावलये यशः स्वं, दौर्गत्यदुःखतरुखंडचारविधौ | मखंडि शीघ्रम् ॥५॥ तं प्राज्यराज्यकमला कमलीकरोति, तस्मै सदा स्पृहयति त्रिदशासुरश्रीः। तस्येन्दुकाशकुसुमोज्ज्वलपुण्यरा॥५४॥ शेरद्वैतसौख्यपदवी न दवीयसी स्यात् ॥६॥ पत्र १९७ ___यः सर्वांगगुरुप्रमोदपुलकः पंवांगभूस्पर्शनो, दुष्टानंगविघातिनो जिनपतेः पादद्वयं वंदते । भुक्त्वाऽशेषषडंतरंगरिपुजित् स| प्रांगराज्यश्रियं, हत्वाऽष्टांगमशेषकर्मपटलं प्राप्न्योत्यसंगं पदम् ॥२०॥ पत्र १९८ इह तुल्लेवि नरत्ते एगे पहुणो पयाइणो अन्ने । धम्माधम्मफलं ता नाउं भविया ! कुणह धम्मं ॥५२॥ जह इहलोइंयकजे सव्वत्थामेण उज्जमइ लोओ। तह जइ लक्खंसेणवि परलोए ता सुही होइ ॥५३॥ धम्मेण विणा जइ चिंतियाई लन्भंति इत्थ सु. क्खाई । ता तिहुयणेऽवि सयले न कोऽवि इह दुखिओ हुन्जा ॥ ५४॥ अह भणइ मुणी इहयं भद्द ! भवीणं भवंति भद्दाणि । पुण्णेण सुचिण्णेणं पावेणं पुण अभद्दाणि ।।५८।। पत्र २२२ इह चउगइभवगहणे कहंपि लघृण माणुसं जम्मं । जे नहु कुणति धम्मं ते नूणं अत्तणो अहिया ॥३१३ ॥ जेणं करयल| परिकलियसलिलबिंदुन्च परिगलइ आउं । दारंति दारुणा दारुयं व रोगा पुणो देहं ॥३१४॥ बहुविहकिलेसपत्तावि चोरजलजलणनिवइपमुहेहिं । संपासंपायचला खणेण खलु नासए लच्छी ।। ३१४॥ पियमायपुत्तसुकलत्तमित्तसयणाइइटसंजोगो । खणदिट्टन-||॥५४॥ For Private And Personal Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य० श्री - धर्म० संघाचारविधौ ।। ५५ ।। Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashapesuri Gyanmandir हरूवो जलनिहिकल्लोलसंकासो ||३१६ || पडुपवणुप्पाडियअकतूलतरलं सयावि तारुण्णं । चंपयकुसुमुकररंगभंगुरं इत्थ विसयसुहं ॥११७॥ ता सासय सुहहेउंमि सयलभवदुक्खलक्खदलणसहे । भविया ! म्रुतु पमायं सद्धम्मे आयरं कुणह || ३१८ || पत्र २३८ अणवरयं मुणिनमणेण सिरिजिनिंदाण पूयकरणेण । कोहाइनिग्गहेणं पावमिणं भे खयं गमिही ||३०|| पत्र २४७ आह गुरू निवनंदण ! जियरक्खासच्च वयणबंभेहिं । मंसाइवजणेण य गम्मइ एयारिमसुरेस ।। २९ ।। पयईइ तणुकसाओ दाणरओ सीलसंजमविहूणो । मज्झिमगुणेहिं जुत्तो जीवो अह नरजम्मं ||३०|| उम्मग्गदेसओ मग्गनासओ गूढहिययमाइलो । सहसीलो य ससल्लो तिरिआउं बंधए जीवो ||३१|| जीववहणेण पलभखणेण पारद्विपमुहवसणेहिं । परधणहरणाईहि य गम्म | जीवेहिं नरसु ||३२|| गुरुराह सुण उवायं कुमार ! तं देसु पावखवणकए । नियदुकडेसु मिच्छामिदुक्कर्ड अपुणकरणेण ||३५|| जहा विसं कुट्टगयं, मंतमूलविसारया । विजा हणंति मंतेहिं, तो तं हवइ निव्विसं ॥ १ ॥ एवं अट्ठविहं कम्मं, रागदोससमज्जियं । आलोयतो य निंदतो, खिप्पं हणइ सुसावओ || २ || आवस्सएण एएण सावओ जइवि बहुरओ होइ । आलोयतो यनिंदंतो खिप्पं हणइ सुसावओ || ३ || पत्र २७४ भो भो भवण्णवे इह निमजमाणाण भव्वसत्ताणं । नित्थारणे समत्थो धम्मुच्चियतुच्छबोहित्थो || ७१ || सो दुविहो मुणिगिहिधम्मभेयओ तत्थ समणधम्मो य । सावज्जकजवजण निरवज्जासेवणपहाणो ||७२ || पत्र २७७ भत्ति बहुमाण पूयाथुइसेवानमणवंदणाईहिं । लहइ जिणाईण जिओ तित्थयरत्ताइ वररिद्धी || २४ || नियमइ य तित्थगुत्तं | नियमा मणुओ तिहावि सुहलेसो । आसेविएहिं बहुसो वीसाए अन्नयर एहिं ||२५|| जओ - जिण १ सिद्ध २ पवयण ३ गुरु ४ For Private And Personal देशना ।। ५५ ।। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ShriMHE Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka y anmandir देशना श्रीदे. थेर ५ बहुस्सुय ६ तवस्सि७ वच्छल्लं । नाणुवओगो ८ देसण ९ विनया१०वसयविहि ११ सीलवयं १२ ॥ ३० ॥ अणइक्कमो चैत्य० श्री खणलव १३ तब १४ चय १५ वेयावच्च १६ विहितमाही य १७ । अप्पुधनाणगहणं १८ सुयभत्ति १९ पमावणा वीसं २० धर्म संघा | ।। ३१॥ पत्र २०५ चारविधौ । जं इह जियाण जायइ मणोरमं रूवरिद्धिमाईयं । तं धम्मफलं नूणं विवरीयं पुण अहमस्स ॥५॥ धम्माभासेहिं समाउलंमि लोए जहहि धम्मं । आसन्नभाविभद्दा विरलच्चिय केइ जाणंति ॥६॥ विरलाणवि ते विरला धम्मविसेसं वियाणिउं सम्मं । जं इह भणियं तं तह कुणंति जेणेह निरवेक्खं ॥७॥ सो पुण धम्मो पंचमपुरिससमो इह अणोवमो नेओ। राजा-भयवं! को सो |पंचमपुरिसोवमो धम्मो? ॥८॥ मुनिः-नरवर जह बीयंगे भणि वीरेण गोअमाईणं । पंचमपुरिससरूवं तहेगचित्तो निसामेहि |॥९॥ पृष्ठ ३५१ | जत्थ य विसयविराओ कसायचाओ गुणेसु अणुराओ। करुणाएँ अप्पमाओ सो धम्मो सिवसुहोवाओ ॥ ३४ ॥ जइधम्मो तत्थ समग्गसंगविगमे गयंगिवग्गवहो । विहियअसायकसायचाओ सिवगमणपवणगुणो ॥ ३५ ॥ तदसत्ताणं सत्ताणऽगारधम्मोऽवि होइ गुणहेऊ । लहुभोयणं व लंघणकरणासत्तस्स रोगिस्स ॥ ३६ ।। इय जाणिय जे सम्म धम्मं धारेंति ते सया धना। जे निरइयारमेयं पालंती ताण किं भणिमो? ॥ ३७॥ जओ-धन्नाणं विहिजोगो विहिपक्खारगा सया धना । अन्यच्च-विहिबहुमाणी धना विहिपक्खअसगा धन्ना ॥३८॥ भणियं च-आसन्नसिद्धियाणं विहिबहुमाणो उ होइ सयकालं । विहिचाओ अविहिभत्ती अभव्वजिय दूरभव्वाणं ॥३९॥ पृ. ३५६ PleanITIChite h imanisamandiEDIAnsattamatumDER मा ATMIDARASINAHANIPASSIMILANDARITAMINATIONAL INSTA m ॥५६॥ MINI For Private And Personal Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M radhana Kendra www.kcbafrth.org Acharya Shei Ka Gyarmandir देशना श्रीदे चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ ॥५७॥ Mein जंबुद्धीण अविसयं अगोयरं जं च पुरिसयारस्स । जं इह अइदुस्सझं जं च ठियं दूरदेसंमि ।। ६२ ।। तंपिहु पुनोदयओ | संपञ्जइ पुच्चविहियसुकयाणं । नहि हेउमंतरेणं कयावि किर जायए कजं ॥६३॥ तं पुण पुन्नं अहिगारसुद्धचिइवंदणाविहाणेण । जिणनाहपूयणेणं दाणाईधम्मकरणेणं ॥ ६४ ।। सुमुणिपयसेवणाए निचं चिय धम्मसत्थसवणेण । इंदियविणिग्गहेणं निम्मलसंमतधरणेणं ॥६५॥ आसववेरमणेणं साहम्मियवग्गवच्छलत्तेण । कल्लाणमित्तजोगेण गच्छइउ उवचयं परमं ॥६६॥ पृ. ३६२ दुलहं लहिय नरभवं भविया ! भवियतयानियोगेण । चिइवंदणाइधम्म करेह जइ महइ सिवसंमं ॥३५॥ यतः-पूया जिणि| हेसु रई वएसु, जत्तो य सामाइयपोसहेसु । दाणं सुपत्ते सवणं सुतित्थे, सुसाहुसेवा सिवलोयमग्गो । ३६।। पृ. ३६८ आर्यानार्येषु मौनेन,विहत्यान्दसहस्रकम् । पुरे पुरिमतालाख्ये, ययौ श्रीवृषभोऽन्यदा ॥१॥ उद्याने तत्र शटकमुखे वटतरोरधः । उत्तरापाढभे कृष्णैकादश्यां फाल्गुने विभुः ॥ २॥ पूर्वाद्धेऽष्टमभक्तेन,केवलज्ञानमासदत् । महिमानं ततश्चक्रुः,सर्वे देवासुरादयः ॥३॥ मरतस्यायुधागारे, चक्ररत्नं तदाऽजनि । युगपत्केवलं तच्च,राज्ञे पुंभिनिवेदितम् ।।४।। अचिंतयत्ततो राजा,किं पूज्य प्रथमं मया? । क्षगानिर्णीतवांस्तत्र, पूज्यः प्रेत्यसुखावहः ।।५॥ रुदंती पुत्रशोकेन, नीलच्छन्नदृशं ततः । सिंधुरस्कंधमारोप्य, मरुदेवीं स्वयं नृपः ॥६॥ जिनं नंतुं व्रजन्नूचे, मातः! पश्य प्रभोः श्रियम् | अनन्यसदृशीं देवासुराणामपि दुर्लभाम् ॥७॥ हर्षाश्रुप्रगलच्छाया,सा पश्यंती प्रभुश्रियम् । क्षणात् कर्मक्षयं कृत्वा, निर्वृत्ता शुभभावतः।।८।। ततः प्रथमसिद्धोऽयमित्यभ्यर्च्य कलेवरम् । तस्याः क्षीरमहांभोधौ, चिक्षिपेऽनिमिषैर्मुदा ॥ ९॥ पृ. ३८० दुलहं लहिय नरभवं भविया भवियन्वयानियोगेण । इहपरलोयहियकरं जहमत्तीए कुणह धम्मं ॥ ३३ ॥ पृ. ४१६ aalim HALDARAMANITAMILIEDDI INDIAPRIL ॥ ५७॥ For Private And Personal N T Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mabayan Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ।। ५८ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashauri Gyanmandir भइ मुणी भो निवसु ! दब्बूसिय प्पमुहबहुविहविगप्पो । एसंतरंगरूवो काउस्सग्गत्ति परतवो ॥ १४ ॥ नवरमिमो दुविगप्पो चिट्ठा अभिभवे य णावे | चिट्ठाएऽणेगविहो कालपमाणं च तं बहुहा ।।१५।। तथाहि - देसियगइयपक्खियचा उम्मासिय तहेव वरिसे य । नियया काउस्सग्गा इरियाइसु अनियया हुंति || १६ || सायसयं गोसद्धं तिनि सया पखियंमि ऊसासा। पंचसया चउमासे अट्ठ सहस्सं च वरिसाए ||१७|| अनिययउस्सग्गेसु य इरियाइस पंचवीस ऊसासा । सेसेसु अट्ट पट्टवणपडिकमणाईसु सगवीसा || १८ || अभिमविउं दुकंमं कुद्धेण सुराणा व अभिभविओ। जं कुणइ काउस्सग्गं सो अभिभवका उसग्गति ||१९|| कालयमाणं च इहं उकोसं वरिसमवहिमाहंसु । बाहुबलिप्पमुहाणं जहन्नमंतोमुहुत्तं तु || २० || नवरं अभिभवउस्सग्गवत्तिणो अगणिसप्पमाईहिं । खोभेऽवि | अकयकअस्स जुजए नेव परिचइउं ॥ २१ ॥ वासीचंदणकप्पो जो मरणे जीविए य समदरिसी । देहे अप्पडिबद्धो का उसग्गो हवति तस्स ||२२|| तिविहाणुवसग्गाणं दिव्वाण य माणुसाण तिरियाणं । संममहियासणाए काउस्सग्गो हवइ सुद्धो ॥२३॥ पृ. ४२५ आत्माऽयमनल्पविकल्पकल्पनोत्पन्नपापपरिणामः। हरिकरिविस विसहरसत्तुणोऽवि दूरं विसेसे || ८४ ॥ यस्मात् करिहरिमुख्या रुष्टा अपि ददति मरणमेकभवम् । अप्पाउ दुप्पउत्तो देह अनंताई मरणाई ।। ८५ ।। किंच अप्पा नड़ वेतरणी, अप्पा मे कूडसामली । अप्पा कामदुहा धेनू, अप्पा मे नंदनं वनं ||८६|| अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठियं सुपट्टियं ॥ ८७|| तद् भव्यैरयमात्मा जेतव्यो मुक्तिमिच्छुमिः सततम् । जेण जिओ चिय आया तेण जियं तिहुयपि जओ ||८८ || जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुजए जिणे । एगं जिणिज अप्पाणं, एस से परमो जओ ।। ८९ ।। पृ. ४३३ For Private And Personal देशना ।। ५८ ।। Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Gyarmandit सूक्तिसाशिमुखानि श्रीदे। चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥५९॥ १४५ Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Sheikh सूक्तिसाशिमुखानि पत्रांकः एकोबिय वरविणओ, १८] नियपाणच्चाएणवि परपाणा संज्ञिनां मनःपूर्विकैव प्रवृत्तिः ३ पणयवच्छला गरुआ, १९ तह जो मरणंतेऽविहु, १४० प्रौढविशेषणादनुक्तेऽपि विशेष्ये तिक्खुत्तो मुद्धाणं, ३४ चित्तं क्षमादिभिः शुद्धं १४४ विशेष्यप्रतिपत्तयः तणुवयणमाणसाणं, अप्रशांतमतौ शास्त्रसद्भाव-, न य सोहइ वेयचणी वाइजंतीइ वीणाए ८ लघूत्थानान्यविनानि ३७ | तपखिनि क्षमाशीले, १४५ नायंमि पडियारो कहंपि रोगुब्ब जं होइ ८ अलियाववायअभिमियस्स हिंसावागनृतप्रियः, तम्हान भवनासो एयस्स भवे कहिंवि किं तीइ सिरीए पीवराइ ४८ धर्मानुष्ठानवैतथ्यात्, कत्थविय पुष्पामिषस्तोत्रप्रतिपत्तिपूजानां सहसा विदधीत न क्रियाम् , जत्तबहुत्ते हि नहु दोसो यथोत्तरं प्राधान्यं अनुचितकारंभः, आसक्काओ आकीडयाओ पठितं श्रुतं च शास्त्रं २२ जं संतेच्चिय कुसले, अन्नेसिं पाणीणं ताणकए कृमयो भस्म विष्ठा वा, १३६ पच्छावि ते पयाया खिप्पं, नाहंतरेऽवि जंति हि ११ निरर्थका ये चपलस्वभावा, १३६ एगदिवसंपि जीवो, १७५ तो मणसा देवाणं १७ नियपाणे परपाणेहिं, १३६ सप्पुरिसाण य कोहो, INTAI NS www Surur ०. AALHAPipali Y १० १६७ M Jammnidiliyan AUTALIANDIP I For Private And Personal Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrine in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaishga uri Gyanmandir २२१ सक्तिसा|क्षिमुखानि श्रीदे. चैत्यश्री- धर्म० संघाचारविधौ २२१ २२१ २२१ २२१ २२१ २२० २२१ अबराहकारयमिवि, उपकारिणि वीतमत्सरे न य बंधुणो न पहुणो अथिरेण थिरो समलेण बहुसामत्थेवि परंमि जं पुवभवे जीवेण तं ओसहेहिं विविहेहिं वरमणलंमि पवेसो न उणो अविमरिसियरे जीव! मा विसूरसु जह संपत्तीइ मणं एगंतसुही भुवणेवि जइ चकिणोऽवि जायस्स धुवो मच्चू munitalaunalaiTOHINILPlanetails HISSIHID HIMPAHINITINAULIBARMERIA illnesseelp १८७ | उपकारिणि विश्रब्धे १८७ चिंतइ अहो महेला १८७ सोयसरी दुरियदरी १८७ ते धन्ना सप्पुरिसा १९९ सूरो गोवो मित्तो २०२ जउ मंतेहिं तंतेहिं . २०२ जम्मजरामरणभएहिं बहुविहआयइमज्झे जं जेण कयं कम्म जं जीवाणं पायं पिम्म ०४ अन्नं चिंतेइ जणो २०४ पविसउ विवरं आरुहउ केरिसया व बिलासा का २०७ पत्नी प्रेमवती सुतः सुविनयो For Private And Personal २०७ अग्गीइ विणा दाहो, २०७ वारियवासा सच्छंद-, २०७ नियभुयविद्वत्तविहवो, २०७ जाई कुलं च रूवं २१९ जा जीवियं जणेणं २१९ अत्थं पत्थेमाणा, अर्थानामजने दुःखम् , २२० खणसंजोगविओगा २२० सुकुलुप्पत्ती सोहग्गरूव२२० दालिदं दोहग्गं, तो आवयाउ संपयसमाउ २२० अन्नुन्नदेसजाया २२० तं अत्थं तं च सामत्थं, २२० पुब्बकयसुकयविहियं, WWW UUUN S ARTAINMIRMIndopulm २२० ता RISTMAITRIMUMINAINITIRIDHPadmaNELBRIHITY ॥६ ॥ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She www.kobatirth.org a Acharya S Jain Aradhana Kendra rsuri Gyarmandir २७६ २७६ सूक्तिसाक्षिमुखानि A LI श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥६१॥ २७६ २३० देवपूजा गुरूपास्तिः जिणदिट्ठीगोयरे तो, भणिउं नमो जिणाणं, करधरियजोगमुद्दो, निसीहियाइ पविसित्तु, ण्हवणविलेवणआभरणदाहिणदिसा जहोचियअनिरिक्खंतो तिदिसिं, धनाणं विहिजोगो साहम्मियाण वच्छल्लं धम्मियजणेहिं न विणा साहम्मियम्मि पत्ते नियघरे तम्हा सव्वपयत्तेण अप्पस्स भावणाओ २२४ पुत्ति ! पवित्तं सीलं पालिजसु २२५ सेविजसु नयमग्गं, नरो जं जीवंतो नियइ भद्दसए २२५ अन्नह चिंतेइ नरो जेणेस नमुकारो पत्तो, पंचनमुक्कारसमा अंते पाणिवहालियचोरिय महुमंसभक्खणेणं, २२६ गुरुकोवमाणमायालोभेहि, जिणदिनाणदंसण२२६ साहूण साहुणीणं मिच्छत्तं अहिगरणं, २२६ हा दुट्ठ कयं हा दुटु, महद्भिः पापात्मा विरलमपि ६ संगं न लभते, २२७ कइया मुतित्थपडिमा, २२७ कुसमयमइनिम्महणं, २२९ उम्भडसडाकडप्पो संकल्पोऽपि न कल्पतल्पजतरौ-, २७६ २३९ अहंःसंहतिमाशु लुपति २७७ २३९ इच्छामिच्छा तहक्कार, २७४ उवसंपया य संमं, गुरुभत्ती तवसत्ती, बालाईपडियरणं, २२५ २७५ जं होइ सिद्धकजो तवसो नत्थि दुरप्पं, | जिनानां मन्दिरं कुर्यात् , २८८ कयावि किं खत्तियारणे विमुहा ३६० २७५ अहवा निम्मेराणं, हवंति एवं- ३६० WWW २२५ २२५ २७४ ammamISwamisamiti २७४ २८० २२६ २२६ ॥६१ ॥ For Private And Personal Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदे● चैत्य० श्री - धर्म० संघाचारविधौ ॥ ६२ ॥ अइगरुय पुन पन्भारपरिगया, तत्रिवरीया पुण गुरुसमिद्धिनहि हे उमंतरेण कयावि किर जायए क संचितसुकृतभराणां जागर्त्ति सतां परं धर्मः | पचति हि खलु पापिनां पापम् जं बोहिरयणरहिओ, दिव्वस्स गई अहो दिव्वा सच्छंदपयाराओ सुहेण विलसंति बुद्धीओ एतद्धि महापापं परो, असुहाणं कम्माणं जं असुहो चेव जायइ विवागो । www.kobatirth.org ३६१ | सन्चो पुव्वाणं कम्माणं पात्रए ३५१ | फलविचागं, चलति कुलाचलचक्रं मर्यादां ३६२ | लंघयन्ति जलनिधयः सो विरलो कोऽपि जणो दुहियं ३७४ | जणिऊण जो सुहिओ ३७४ | जातेति चिंता महतीति शोकः, ३७६ कस्मै प्रदेयेति महान् विकल्पः, ४०३ | निरवच्चा दहइ मणं विणहसीलावि देह दुखाई गुणरिद्धी दूरं वडियावि अविणयपवणपडिहणिया नीहारहारधवलोsविवच्छ ! ३१२ ४२० ४३७ | सच्छोवि सुगुणसमुदओ For Private And Personal ४३७ ४३७ ४३८ ४३८ ४३८ ४३९ ४३९ अञ्चतपियो जिपुरिसो विणयवजिओ दूरे Acharya Shri Kailuri Gyanmandir दुव्वियत्तणदोसानि हमव लोइऊण बुद्धीए विणयाओ हुंति गुणा गुणेहिं लोगोऽणुरागमुव्ह विणया नाणं नाणाउ दंसणं दंसणाउ चारितं चड नर्मताण गुणो आरूढगुणाण होइ टंका 100+ ४३९ ४३९ ४३९ ४३९ ४३९ सूक्तिसाक्षिमुखानि ॥ ६२ ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri I श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥ ६३ ॥ ain Aradhana Kendra www.kobatirth.org साक्षिग्रन्थनामानि आचारविधिः पत्र ३ | आवश्यकं महानिशीथं २ - ५- ११५- १२२-१२३ निशीथसूत्रं १३३-१६०-६६-६०-४९ | निशीथचूर्णिः भगवती ५- १२३ - १२५-१३२ - १४० विशेषावश्यकं वसुदेवहिंडी ६-१७-८५-१७३- आवश्यकचूणिः ५१-५२-६३-६४-६५ आवश्यक निर्युक्तिः बृहद्भाष्यं १३-१४-३२-६७-९०- आवश्यकवृत्तिः ५४–६२-६४-६५-१४१- व्यवहारचूर्णिः १७७-१८१ उत्तराध्ययनं ललितविस्तरा १४-३०-१६०-६० - चैत्यवंदनाचूर्णिः ६२-१८० ठाणंगं १४ प्रशमरतिः व्यवहारभाष्यं १४ - ६४ | पूजापंचाशकं १५- ६४-६५ पंचवस्तुकः १६- ६३ त्रिषष्टीयशलाकाचरित्र १६ पूजाषोडशकम् २६-३०-६४ - १७८ चैत्यवंदनलघुभाष्यं ३० कल्पविशेषचूर्णिकः ३१ जीर्णोद्धारप्रकीर्णकः ३१ योगतच्चरत्न सारः ३२ दशवैकालिकम् ६१ आचारांगचूर्णिः ६४ ज्ञाताधर्मकथाङ्गम् ६५ | चैत्यवंदनाविवरणम् For Private And Personal Acharya Shri Kailuri Gyanmandir ६७-१७१-१८० ६७-१०० ६५-६७ ९० १०७ १०१ ११२ १२३ - १८२ १३२ १३४ १३४ साक्षिग्रन्थनामानि ॥ ६३ ॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥ ६४ ॥ Jain Aradhana Kendra षष्ठांगसूत्रं जीवाभिगमलघुविवरणम् पंचाशकं लघुभाष्यं पंचाशकवृत्तिः | मार्कण्डेय पुराणम् कल्पनिशीथ चूर्णिः आचाराङ्गचूर्णि पंचस्थानकः लघुभाष्यं कल्पनिर्युक्तिः निशीथभाष्यं पाक्षिकचूर्णिः कल्पभाष्यं www.kobatirth.org १३९ | चैत्यवन्दना चूर्णिः १४० शालिखरीय भाष्यं १५१ आचारांगचूर्णि १९६-२५०-२६७-३३४ लघुभाष्य १५१ बृहद्भाष्यं २०९ - ३२४ | आवश्यकचूर्णिः ३०३-३१२-३१३-३८० १५२ महानिशीथम् २०९-२११-२४१-४३४ जीवाभिगमः १५२ उत्तराध्ययनम् २०९-२८५ | ललितविस्तरा ३०३-३५१-३९४-४०१ १५२ नमस्कारपंजिकासिद्धचक्रादिः २१०-११ चैत्यवंदनाचूर्णिः २१० धम्मरयणवित्ती २१० निशीथ चूर्णिः २१० आवश्यकम् २१० महापुरुषचरितं २११ निशीथचूर्णिः १५२ अष्टप्रकाशी १६६ | छंदःशास्त्रम् १७६ | चैत्यवन्दनभाष्यं १७९ प्रवचनसारोद्धारः १७९ बृहनमस्कारफलं १८१ आवश्यकवृत्तिः १८१ | व्यवहारभाष्यं १८२ | आचारांगसूत्रं १८३ | भागवतपुराणं २१२- ४३४ पंचवस्तुकः २५० For Private And Personal Acharya Shri Kailashauri Gyanmandir 10*2+ २६५ २६७ ३०३ ३०३ ३०४-३५१ ३१६ ३५० ३७९ - ३८१ ३८२ ४४५ ४५२ साक्षिग्रन्थ नामानि 118 11 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mal Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir साक्षिश्लोकाद्यपदानि साक्ष्यायपाद: श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥६५॥ भवकोटीदुष्प्रापामवाप्य २ सुयसायरो अपारो संक्षेपात् कथ्यते धों २ सर्वज्ञोक्तोपदेशेन नोपकारो जगत्यस्मिन् २ चिइवंदणाइ सम्म सोउं से भयवं! किं तं पइदिणकिरियं १-२ सुत्तं गणहररइयं एष पंचनमस्कारः ५ अपरिच्छियसुयनिहस्स तस्स णं सयलसुक्खहेउसंचयस्स ५ जं जह सुत्ते भणियं सयंपभाकन्ना ६ व्याख्यानतो विशेषप्रतिपत्तिः सिरिविजओवि वत्तणुवत्तपवतो चित्तं मणो पसत्थं मग्गो आगमनीई भावजिणप्पमुहाणवि उस्सुत्तमणुवइट्ट श्रुत्वाऽभिधेयं शास्त्रादौ उस्सुतं नाम सुत्तादवेयं प्रयोजनमनुदिश्य १४ प्रेक्षावतां प्रवृत्त्यर्थ १४ । अत्थं भासइ अरिहा १४ जिणगणहरगुरुदेसिय१४ | ते तावत्कृतिनः परार्थघटकाः | स्वार्थस्य नाशेन ये १५ जो जत्तिअस्स अत्थस्स नाकारणरुषां संख्या गच्छउ दूरं आरुहउ अप्रवृत्तिगतं भूपं किं मिच्चो सोऽविन १५ तो पढियं तो गुणियं वरिसित्ता अमियरसं १६ पुरिसो मयणविहुरिओ For Private And Personal Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥ ६६ ॥ Aradhana Kendra नच्चति य गायंति य दुहखाणी सुहअगणी आसाइ जो पहुतं उशना वेद यच्छासं इयं पसंगेण वनिअं साहूण गित्थान य उद्दामसरं वेयालिउब्व वामं आणु अंचेह तिविहा पूया - पुप्फे हिं पश्यति प्रथमं रूपं भ्रुवणेकगुरुजिणिंद पडिमासु जह तिनि वाराए पंचविहाभिगमेणं मुत्तूण जिणं मुत्तूण www.kobatirth.org २१ | वचणमिह सावयसीलं २१. देविदेण य इमं इत्थ २१. धूवं दाउं तओ सुरहिमल्ल २१ दो जाणू दुन्नि करा २५ तिविहा पूआ - पुप्फेहिं २६ जिणपडिमाओ लोमहन्थ एण ३५ ण्हवणविलेवणआहरण ३४ वत्थेण बंधिऊणं नासं कायकंयणं बजे ३४ ३४ नाणाफलेहिं व थएहि निचं ३४ कयाइ य देवक ३५ साहम्मिओ न सत्था संप्रतिराजा रहग्गओ य ३६ ३८ विविहभक्खपाणगपडिपुन्ना For Private And Personal ४९ | पभावईए देवीए ५१ ५२ कीरइ बलित्ति तं आढगं ५५ तेणेव सिद्धाययणस्स ६१ विविहभक्खपाणगपडिपुत्रा ६२ रहग्गओ विविहफलखजग६२ जो पंचवन्नसत्थिय ३२ गंधव्वनट्टवाइय ६२ सरसेणं गोसीसचंदणेणं ६३ सो उ गंधारसावओ ६३ कयाई च भाणुसिट्टी ६३ पंचोवयारजुत्ता प्या ६३ पंचोपचारयुक्ता काचित् ६३ | चैत्यायतनप्रस्थापनानि बलित्ति असिवोवसमणनिमित्तं Acharya Shri Kailash Gyanmandir ६४ ६४ ६४ ६४ ६४ ६४ ६४ ६४ ६४ ६५ ६५ ६५ ६५ साक्ष्या द्यपादः ॥ ६६ ॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य०श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥ ६७ ॥ Aradhana Kendra अहिं वरेहि य वरगंधधूव अक्खेहिं सव्वोवयारपूया मंगलदीवाइ तहा पक्खंदे जलियं जो तवनियमेण य सुक्खो पूजया विपुलं राज्यम् अज अट्ठमी दिनओ उभयकरधरियकलसा जे अ अइयगाहाए समहियजोयणपिहुलो बिटट्ठाई सुरहिं वड्रयणं भणियं इय पाडिहेर रिद्धी www.kobatirth.org ६६ | चाउकोणा तिनि पागारा ६६ रहऊण समोसरणें ६७ सोवाणपंतिआणं ६७ कोसदुगं नियतइए ७३ ७५ ७५ पिंडे मुक्ता पदे मुक्ता अरहंता भगवंतो स्वर्णादिबिंबनिष्पत्तौ ८५ तणं तस्स संखस्स ९० पायविहारचारेणं गमणागमणाए पडिक्कमह ९० ९९ सकेणं भंते! ९९ भ्रुवणेकगुरुजिणिंद १०० १०० सक्कत्थयाइयं चेहयवंदणं तणं सा दोवई For Private And Personal १०७ | तिहिं ठाणेहिं जीवा १०७ अन्नंपि तिप्पयारं १०७ इह पणिहाणं तिविहं १०७ चिंतड़ न अन्नक ११२ सव्वत्थवि पणिहाणं ११२ वन्नाइसु उवओगा ११३ वड्ढद्द धम्मज्झाणं १२५ १२५ १.२५ Acharya Shri Kailas स्वर्णादिप्रतिमा अनिएअवासो समुआणचारिआ चरेन्माधुकरीं वृत्तिम् १३२ कम्माण मोहणीयं १३३ उन्नयमविक्ख निन्नस्स १३४ अविहिकया वरमकयं १३९ | धर्मानुष्ठानवैतथ्यात् १४० १.४१. १.४१ १.४१ १४१ १४२ १.४३ १४३ १.४४ १.४५ १५१ १६० १६० १६४ Gyanmandir साक्ष्याद्यपादः ॥ ६७ ॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Malan Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीवर्म० संघा चारविधौ ।। ६८ ।। जह चैव उ मुक्खफला बंदर पडिपुच्छड़ पज्जुवामई | ते चिअ चारण साहू दो सासयजत्ताओ अप्पेणवि काले केह जे य अइयगाथाए सेहमिह वामपासं केचिच्चन्या अपि पठंति दंडपंचगथुइजुयलविरहपडिवत्तिकाले इह ललियवित्थ वित्तीड़ उकोसा तिविहावि निस्सकडमनिस्सकडे चिह्नर्वदणं तु नेयं १५६ १७२ १७३ www.kobatirth.org १७४ १७५ जड़ इत्तिअमित्तं जं जह सुत्ते भणियं ता गोयमा ! अप्पडिकंताए अभिक्खणं काउसग्गकारी उक्कोस जहन्ना पुण १७६ सक्कत्थयाइदडंगपंचग १८० दुब्भिगंधमलस्सावि १८० १७९ १८१ दंडगपंचगथुइजुयलउक्कोसुकोसिया य पुण नेया चिइवंदणा तिभेभा कहं नर्मति ? सिरपंचमेण कारणंति १८१. १८१ अन्ने अद्भुवयारं भणति १९८१ एकावि जा समत्था १८१ पयतेण धूवं दाऊण For Private And Personal १८१ जिणबिंबाभावे पुण १८२ थयथुइमंगलेणं भंते ! १८२ १८२ पंचपयाणं पणतीस १८२ आग्नेय्यादिविदिग्व्यवस्थितेषु तस्स य सयलसुक्खहेउ १८३ १८३ १८२ १८२ | विपमाक्षरपादं वा १८३ पंचपरमिडिमंते सत पण सत्त सत्त य Acharya Shri Kailasha अंतिमचूलाइ तियं तहेव य तदत्थाणुगमियं २०९ २०९ २०९ २१० २१० २१० १९६ १९६ २०१ | पूजापि गंधमाल्याधिवासधूपइत्थ नमुत्तिपयं २०२ २१० २१० २११ २११ एयं तुजं पंचमंगलमहासुखंधस्स २११ प्रशस्तवागादीनां दानं वंदणं २१३ २१३ २१४ sri Gyanmandir साक्ष्याद्यपादः ॥ ६८ ॥ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M a h Aradhana Kendra www.kobatirth.org Ill Acharya Shri Kailangan ni Gyanmandir साक्ष्याद्यपाद: श्रीदे. चैत्य श्री धर्म संघाचारविधौ २४८ २४९ २५० २५० २ देवासुरमणुए{ अरिहा अडबीइ देसिअत्तं तहेव अरिहंतुवएसेणं सिद्धा नत्थि व रहोय छन्नं न रहंति न चयंति नाणाइ इंदियविसयकसाए अरिणा वा धम्मचक्केण सुत्तत्थविऊ लक्खणजुत्तो पंचविहं आयारं आयरमाणा संग्रामसागरकरीन्द्रभुजंगसिंहअहिंसकानि भूतानि पशवो ये तु हिंसंति यावंति रोमकूपानि घातको बध्यते नित्यं २१४ देवानामर्थतः कृत्वा २१४ स्वाहासुधाऽमृतभुजो २१५ मुत्तूण जिणं मुत्तण २१५ गोयरग्गपविट्ठो उ २१५ से भयवं! एवं जहुत्तविण- २१६ पुप्फामिसपूयाओ काउं २१६ अप्पडिकंताए इरियावहियाए २१७ किच्चाकिच्चं गुरुणो वियंति २१७ जिणाणाए कुणंताण २३४ खंती मद्दव अजव २३४ आलावो संलावो वीसंभो २३४ किं पिच्छसि साहूणं २३४ पासस्थाई वंदमाणस्स २३४ ओयह दडकलेबरहु २३६ नवनवइसयं इरियावहियाए २३६ जीवा विराहिया पंचमी उ २३७ आयरियग्गहणेणं तित्थयरो २४. आयरिया तित्थयरा २४१ । गुरुविरहंमि उठवणा २४२ आणाबलामिओगो २४२ नियालयाओ गमणं २४३ गमणागमण विहारे सुत्ते वा २४३ भत्ते पाणे व सयणासणे य हत्थसयादागंतुं गंतुंच २४३ से बेमि इमंपि जाइधम्मयं २४४ आगमश्चोपपत्तिव २४४ कुसुंभकुंकुमांभोवनिचितं २४५ | पुढवीचित्तमंतमक्खाया urdururur २६३ II ARTHDAIHA AHILAPANIRAHINITIOUPARI MAINMitalitinum MIRCHRIMALAIMERA aun २६५ २६६ २६७ ॥६९॥ For Private And Personal Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Md revista Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalahariri Gyanmandir س साक्ष्याद्यपाद: ا वर्म संघा ا ه ه ه श्रीदे. 10 तेऊवाउ विहणा एवं सेसावि २६७ विंति अगासंसं चिय २८५ विसयबहुत्ते किरियाचैत्यश्रीपृथिव्यामप्यहं पार्थ! २६७ अरहंता तित्थयरा २८५ सज्झायझाणतवओसयो मां सर्वगतं ज्ञात्वा २६७ जिणअट्टपाडिहेरचारविधौ २८५ उक्कोसपएणं सत्तरअहवा संताणवो पिपीलियाईणं २६७ अरहंति वंदणनमंणाणि २८६ पुव्वाहिगाराभिहिय| कयपाबोधि मणुस्सो २६८ | न रहंति न चयंति णाणाई २८६ अनियाणकडा रामा आभोगमणाभोगे २६८ नत्थि व रहो य छन् २८६ सो विणएण उवगओ जरजजरो य थेरो २६९ संगुवलक्खणभूओ उट्ठिय जिणमुद्दाठियचलणो जस्स य इच्छाकारो २७५ दग्धे बीजे यथाऽत्यंत २८७ अरहंति बंदणनमंसणाणि तस्स य पायच्छित्तं २७८ ईसरिअ जसो रूवं २८७ नत्थि व रहो य छन्नं ता उद्धरंति गारवरहिया २७९ सव्वसुरा जइ रूवं २८७ सिद्धाई अरहंता प्रलंवितभुजद्वंद्वमूर्ध्व- २७२ साक्षादृष्ट्वेन्द्रभृतिः समवमृतिभुवो-२९२ पूजा च गन्धमाल्यादिकाउसग्गे जह सुट्टियस्स २७९ नाणं पयासगं सोहओ ३०० अकसिणपवत्तगाणं निण्हाइ दव्व भावोवउत्त २८५ ददमि जहा बीए न होइ ३०२ पूयाफलपरिकहणा अत्थुत्ति पत्थणा दुल्लहो २८५ सम्वन्नूयाइ पढमो वीओ ३०३ । अगणीओ छिंदिज व ०. ० ० ० .. .. MWWW.WWWWWW . .. .. ل س SHRI Home ARRICAITANTARNINGasin RAINRITINititissuTITTumustimalitim iHIMATERIALP HATANAHINIPAT اور اس سے ३१४ || ७०॥ For Private And Personal Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A Shri Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kaila tri Gyanmandir श्रीदे साक्ष्याद्यपादः ४२३ m ४३४ चैत्यश्रीधर्मसंघा-1 चारविधी ॥ ७१॥ NSARAHTI mali wri अठुस्सासपमाणा उस्सग्गा मिहिलाए नयरीए विजयनिसीहियत्ति निव्वाणं मिच्छादसणमहणं अवंतीजणवए उज्जेणी नयरी अर्थात्रिवर्गनिष्पत्तिः गुणपगरिसबहुमाणो नो खलु अप्परिवडिए विहियपि भावरहियं कायकिरियाइ जोगा विहिसुद्धमणुट्ठाणं विगई विगईभीओ थूभसय भाउयाणं सत्तरिसयमुक्कोसं ३२० जस्सहाए कीरइ नग्गभावे ३२४ तं नाणं तं च विभाणं औचित्यमेकमेकत्र, ३४२ आरंकाद् भूपति यावत् ३५० जीयंति वा करणिजंति वा ३५७ जो नवि वट्टइ रागे ३७१ रत्तो दुट्ठो मूढो ३७१ बहुसुयकमाणुपत्ता अवलंबिऊण कजं जं संविग्गा विहिरसिया तदपरिज्ञानेऽप्यस्मात्तच्छुभ भृतस्य भाविनो वा भावस्य ३८१ आरंभपसत्ताणं गिहीण ३८२ अकसिणपवत्तगाणं ३८४ वयभंगे गुरुदोसो ४१७ ३८५ भत्ते पाणे सयणासणे य ३८६ जिणचेइए वंदमाणस्स ३८६ | तो तिनि थुईओ ४३४ ३९२ गोयमा! जे केइ भिक्खू वा ४३५ ३९३ चिइवंदणपडिक्कमणं गाहा ३९३ चेइएहिं अवंदिएहिं जाव ४३५ ३९३ इरियाकुसुमिणुसग्गो रज्जुग्गहणे विसभक्खणे य ४३९ पुन्वभवविहिजहविहिचिइवंदण- ४४१ | धनदो धनार्थिनां धर्मः, ४४४ ४४५ ताहे पभावई व्हाया ३७८ ४११ उट्टिय जिणमुद्दाठियचरणो सम्पूर्णा विषयाद्यनुक्रमणिकाः ३६३ ३९४ IRAISINGINNINBPHI nuaHIDIHAmuline R AL ॥१॥ For Private And Personal Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mpuan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kailaria ri Gyanmandir प्रस्तावना श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म० संघा aamaHINDE चारविधौ । ॥७२॥ श्रीसंघाचारविधेरुपक्रमः श्रीसंघाचारत्वं-जगति विदितमेतद् विपश्चितां यदुत श्रीमजिनाज्ञानुसारिणां समुदायः सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्ररूपमोक्षमार्ग बिभ्राणानां समुदायश्च संघ इति भण्यते,यतो गुणसंघातमया एते एव, एवं च यथा सर्वेषामेवाज्ञानुसारिणां संघत्वं व्यवहारपतितं तथैवैकस्यापि श्रीजिनेन्द्रवचनानुसारिणो गुणसंघातत्वात् अव्याहतमेव संघत्वं, तथा च समुदाये संकेतिताः शब्दा अवयवेऽपि केवलाकारस्य स्वरत्ववत् प्रवर्तते इति न्यायेन केवलस्यापि साध्वादेः श्रीसंघत्वं, तथा गुणसंघातार्थेनार्थववादप्येकस्यापि साध्वादेः श्रीसंघत्वमव्याहतमेव, एवं च न चैत्यवंदनादिकः संघाचारः समुदायसहकृतः, किंतु प्रत्येकमेव साध्वादीना-| माचरणीय एव, यद्वा अविशेषेणैव चैत्यवन्दनायाः सर्वैरेव साध्वादिमिराचरणीयत्वात् संघाचारत्वं सामायिकादीनां संघाचारत्वे सत्यपि देशसर्व विरतिमतां तानि सामायिकादीन्याचारविषयाणि, परं यावज्जैन चैत्यवन्दनाया एवाचरणीयत्वात् यथावदस्या एव संघाचारता, आवश्यकता-अत एव श्रीमहानिशीथसूत्रप्रतिपादिता चैत्यवन्दनाया आवश्यकता संगतिमंगति, किंच-श्रीमहानिशीथे श्रावकवर्गमाश्रित्य स्पष्टं त्रिकालं चैत्यवन्दना प्रतिपादिता, न केवलं प्रतिपादिता, किंतु प्रातरुदकपानात् मध्याह्ने भोजनात् सायं शय्यातलाक्रमणाच्च प्राक् तस्या अवश्यकर्त्तव्यता तदीयाभिग्रहस्य करणीयतां प्रतिपाद्य नियमिता, चैत्यानां वंद्यता-श्रीमत्सूत्तराध्ययनेषु सम्यक्त्वपराक्रमाध्ययने ज्ञानदर्शनचारित्राणां संपत्तिबर्बोधिलाभस्य जनकता च स्तवस्तुतिमंगलेन स्पष्टतरं निर्दिष्टा,स्तवादिषु च प्रणिधानमध्ये स्तवस्य कायोत्सर्गानन्तरमेव स्तुतेः चैत्यवन्दनाकरणस्य प्रारंभ एव च MPANISHMETIMEPHANTIPUR HAMPHIRALLUMAUNIAIRIRAMAN ॥७२॥ For Private And Personal Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mar a dhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir प्रस्तावना श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥७३॥ animalmanimita | मंगलकाव्यानां चैत्यवन्दनारूपाणां भावादावश्यकता,चैत्यवन्दनाकरणस्य बोधिलाभज्ञानादिहेतुतां च आज्ञागमाभ्यां निश्चित्य कस्कः | सकों नाद्रियेत तस्यां,किंच चैत्यानां वन्दनीयत्वं श्रीभगवत्युक्तजंघाचारणादिभिः कृतां चैत्यवन्दनां दृष्ट्वा कः श्रद्धालुन श्रद्दधीत?, | चैत्यवंदनाविधेः प्राचीनता-श्रीमत्यामावश्यकचूर्णों प्राभातिकप्रतिक्रमणे प्रान्त्ये 'देवे वंदई' इत्युक्तेः श्रीमत्सूत्तराध्ययनेषु 'थुइमंगलं करित्ताणं' इति 'कुजा सिद्धाण संथवं' इत्युक्तेश्च श्रीमहानिशीथे चैत्यवन्दनाया आवश्यकत्वोक्तेः प्रतिक्रमणादिषु चैत्यवन्दनाया अकरणे प्रायश्चित्तस्य प्रतिपादनात् श्रीज्ञातधर्मकथाजीवाभिगमविवरणादिषु श्रीमद्भिर्हरिभद्रसरिप्रभृतिभिः 'प्रसि. द्धेन चैत्यवन्दनविधिने'त्युदीरणात् श्रीमति पंचाशके दशत्रिकादिप्रतिपादनात् श्रीपंचवस्तुकवृत्तौ द्वितीयप्रणिपाततदनन्तरविधेरु|दितत्वात् श्रीललितविस्तरावृत्तौ चैत्यवन्दनाक्रमस्य कथनात् भगवता श्रीहेमचन्द्रसूरिणा श्रीयोगशास्त्रवृत्तौ सविस्तरं चैत्यवन्दनाविधेः प्रतिपादित्वाच विधेरेतस्याः प्रनतरत्वे न केनापि विवदितुं शक्यं । भाष्यस्य प्राचीनत्वं-भगवद्भिःश्रीदेवेन्द्रसूरिभिर्भाष्यमेतत् चैत्यवन्दनाया देववन्दनभाष्यतया न नूनमाविर्भावितं,यतः श्रीमद्देवेन्द्रपादचरणचंचरीककल्पाः प्रस्तुतभाष्यस्य वृत्तेर्विधातारः श्रीधर्मकीर्तयः स्पष्टमाहुरुपसंहारे इदं 'तीर्थकृत्प्रज्ञापितं गणधरा| द्युक्तं बहुश्रुतपारम्पर्यागतं चैत्यवन्दनाया विधिस्वरूपादि श्रीमद्देवेन्द्रसूरिभिर्भाध्यतया प्रदर्शितं,न पुनः किमप्यत्र नूतनं' किंच प्रकृतवृत्तौ श्रीशान्तिसूरिकृतस्य चैत्यवन्दनभाष्यस्य स्थाने स्थाने बृहद्भाष्यतामाविर्भाव्य साक्षितया निर्देशात् श्रीशालिसूरीयभाष्यस्य श्रीलघुभाष्यस्य च निर्देशनाद् भाष्यकरणपद्धतिः प्रनतरैवेति निणेतुं न दुश्शकं, वृत्तेरानन्तर्य-श्रीमद्भिर्देवेन्द्रसूरिभिर्भाष्यस्य संदृब्धत्वादेतेषां श्रीमतामन्तेवासिभिरेव श्रीधर्मघोषमूरिभिवृत्तेरस्याः श्री inimuanilima HAIRSTUPIRITAMILITARI For Private And Personal RAMAILIPPA Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M h Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri K o Gyanmandit प्रस्तावना MUNICATIALIAnnada श्रीदे. संघाचारापराभिधानाया विधानात् वृत्तिस्फुटितानां पदार्थानां न कथंचनापि मूलग्रन्थस्थितार्थविवक्षाया लेशतोऽपि बाधकता, चैत्यश्री- गुरुशिष्यत्वसंबंधश्चैतेषां पुरस्तात् निर्देक्ष्यमाणानेकग्रन्थपाठात् सुगम एव, तथा च ये ये दृष्टान्ता यत्र यत्राधिकारे श्रीमद्भिवृत्तिधर्म संघा | कृद्भिर्वितता न ते मूलकृतां विवक्षामन्तरेणेति न निश्चेतुं दुःशकं, चारविधौ । ग्रंथे मतान्तराणां खंडनं-श्रीसंघाचाराभिधानेऽत्र वृत्तिग्रन्थे निम्ननिर्दिष्टानां चैत्यवंदनाविषयकसूत्रसंबंधिनां मतान्तराणां ॥७४॥ खंडनमुपलभ्यते १ रात्री मन्दिरे गमनं निषिध्य यो विम्बानां तदा स्तुत्यादीन निषेधयति खरतरादिस्तम्य वसुदेवहिण्डीग्रन्थाक्षरैरेव विहितं खंडनं २ श्रीमजिनानां पुरस्तात् नैवेद्यफलबल्यादीनां पूजाया निषेधं पल्लविकादिर्यस्तनोति तस्यापि श्रीवसुदेवहिण्ड्यक्षरैरेव खंडितं मतं ३ यश्च श्रीपंचपरमेष्ठिनमस्कारे छन्दोभंगनाम्ना होइत्तिपाठे बद्धाग्रह आंचलिकस्तस्यापि श्रीमहानिशीथसूत्रश्रीआवश्यकसूत्रीयमलयगिरिकृतवृत्तिश्रीप्रवचनसारोद्धारादिग्रन्थपाठैर्विहितं विस्तरेण प्रतिविधानं, ४ यश्च श्रीजिनपस्याग्रे ईर्यापथिक्यां स्थापनाचार्यस्थापनरसिकस्तस्यापि श्रीस्कंदकचरितेन साधितं समाधान ५ यश्च नाभिमन्यते सिद्धानां पूजां सोऽप्यावश्यकाचारांगव्याख्याश्रीविशेषावश्यकभाष्याक्षरैः सिद्धानामहच्छन्दवाच्यतां पूज्यतां चोपदर्य निरुत्तरी कृतो नीरुद्धं च तन्मतं ६ यश्चैर्यापथिक्या दैवसिकत्वादिप्रतिक्रमणतामूरीकृतवान् सोऽपि निराकृत आवश्यकीयकायोत्सर्गस्थानदर्शनेन ७ यश्च सर्वानुष्ठानानामैर्यापथिक्याः प्रतिक्रमणमादौ न मतवान् तस्यापि श्रीमहानिशीथदशवकालिकाद्यक्षरनिरुत्तरतां वि INTRINimthi ANIMALINEPALIA MIRAHAPA mphenommmmunitiHIBITINAME NAM m arinamikaram ॥७४ ॥ For Private And Personal Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahalin www.kobatirth.org anmandir श्रीदे० M प्रस्तावना AITHAPAHIRA धर्म० संघा- चारविधौ ॥ ७५॥ la Niraumaun eAITHILLAHIMAA Awarjathanisaili Nadhana Kendra Acharya Shei Kailashs तीर्णवन्तः पूज्यपादाः ८ यश्च चैत्यवन्दनायां सुरस्मरणस्य निषेधं निश्चितवान् तस्यानेकशः सुरस्तुतिकायोत्सर्गयोर्नियततां प्रदर्श्य सूचितवांसो मिथ्यात्वमोहान्धतां ॥ इत्येवमादीन्यनेकानि मतान्तराणि तत्रभवद्भिरुन्मूलितानि मूलतः, याथातथ्येन तज्ज्ञानं तु सकलशास्त्रार्थावबोधेनैव बोध्यं, स्तुतिचतुष्कपद्धतिः-यद्यपि श्रीवर्धमानसूरीणां श्रीमदभयदेवमूरिपितामहानां शिष्यवरैः श्रीशोभनमुनिभिः प्रतिजिनं स्तुतिचतुष्कं कृतं प्रख्यातमेव,विधिवादेन तु भवविरहकालात् प्राक्तनत्वं,परं श्रीमद्भिः प्रतिजिनमेकैकां स्तुति विरचय्य सर्वजिनादिस्तुतयः प्रान्त्यभागे न्यस्ताः, न चेयं पद्धतिरपि श्रीमदुपज्ञा, यतः श्रीजैनस्तोत्रसंग्रहेऽप्येवमनेकाचार्यकृताः स्तुतयः पूर्वपुरुषसमाता विद्यन्ते,तद्यथा-१ पृष्ठे १२० श्रीपालसूत्रिताः २ पृष्ठे ७० श्रीचारित्ररत्नरचिताः ३ पृष्ठे पूर्वाचार्यविहन्धाः ४ पृष्ठे २०६ जिनपतिप्रतताः ५ पृष्ठे २२० जिनेश्वररचिताः६ पृष्ठे २१६ जिनप्रमीयाः, तथा च स्तुतिचतुष्ककरणं न नूतनं, सुरस्मरणस्य नियतता च श्रीमद्भिरनेकशोऽनेकधोद्भाविता । श्रीमतां गच्छ:-प्रकृतप्रकरणकाराः श्रीधर्मघोषसूरयः श्रीजैनशासनाविच्छिन्नाविरुद्धपारंपर्यप्रधानश्रीमतस्तपोगच्छस्य विभूषणाः, यतो नैष गच्छोऽविचलां चतुर्दशी विलोप्य पूर्णिमाप्रवर्तकवत् मुखवत्रिकां शास्त्रसमुदायसिद्धां प्रतिषिध्याश्चलग्रहणप्रवर्तकवच नवीनप्रवर्तनोत्थनामधारकः, न च खरारटनखरतरवत् 'सुरवर वर लद्ध' इत्यादिषु प्राक्तनप्रबन्धेषु 'खरयर वर लद्ध' इत्यादि परावृत्तिपरायणीभवनभंगीरतः, निजकठोरभाषकतानिबन्धनखडतलाभिधानरूढेः स्वीकर्तृवत् दुर्गुणख्यातिभृच्च, किंतु निग्रंथत्व- o nalimmarAISHALIPARINTAINERHITRINARANEL PHRENIMAINMETRIAN Hathi i ।। ७५ ॥ mh For Private And Personal Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mw A radhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandit श्रीदे. चैत्य श्रीधर्मसंघाचारविधी ॥ ७६ ॥ गुणेन निग्रंथवत् कोटिमंत्रजापान कोटिकवच मोक्षमार्गाद्वितीयभूषणतपोरूपगुणभूषितत्वात् तपोगच्छामिधान एषः,न च यथा खर. प्रस्तावना तराणां खरतरेत्यभिधा त्रिचतुश्शताब्दी यावत् तत्परंपराग्रन्थादिषु नोपलब्धार्दीर्घचक्षुष्करपि तै तथेयमपीति वाच्यं,यतः श्रीमद्देवेन्द्रमूरिभिरेव श्रीकर्मग्रन्थवृत्तिप्रशस्तौ स्वयंप्रतिपादितमिदं "क्रमात्प्राप्ततपाचार्येत्यभिख्या भिक्षुनायकाः। समभूवन कुले चान्द्रे, श्रीजगच्चन्द्रसूरयः ॥४॥ जगञ्जनितबोधानां,तेषां शुद्धचरित्रिणाम् । विनेयाः समजायन्त "श्रीमद्देवेन्द्रसूरयः" ॥५॥ स्वान्ययोरुपकाराय, श्रीमद्देवेन्द्रसूरिणा | स्वोपज्ञशतकटीका, सुबोधेयं विनिर्ममे ।।६।। विबुधवर "धर्मकीर्ति" श्रीविद्यानंप्रमुखमुख्यबुधैः ।। स्वपरसमयैककुशलैस्तदैव संशोधिता चेयम् ।।७।। इति स्वोपज्ञकर्मग्रंथप्रशस्तौ। न च वाच्यं श्रीमद्भिर्देवेन्द्रसूरिभिरेव स्वेषां चित्रावालगच्छवर्तित्वं श्रीश्राद्धदिनकृत्यवृत्तौ धर्मरत्नवृत्तौ च कथं प्रतिपादितं?, निभाल्यतां तत्रत्यौ पाठौ "तत्र क्रमेण चित्रावालकगच्छो बभूव भुवि विदितः। श्रीभुवनचन्द्रमूरिस्तत्राभृद्दिव्यपद्मरविः ॥६। तच्छिव्यरत्नमभवद् भुवनप्रसिद्धाश्चारित्तपात्रमखिलश्रुतपारमाप्ताः। गांभीर्यमुख्यगुणरत्नमहासमुद्राः,श्रीदेवभद्रगणिमिश्रसुनामधेयाः।।७।। | तत्पादाम्बुजरोलंबा,निरालंबा वपुष्यपि । अभूवन भूरिभावाट्याः,श्रीजगचंद्रसूरयः॥८॥ देवेन्द्रसरिसंज्ञस्तेषामाद्यो बभूव शिष्यलयः। | श्रीविजयचन्द्रसरिस्तथा द्वितीयो गुणैस्त्वाद्यः।।९।। चक्रेभ व्यावबोधाय,संप्रदायाऽऽगताऽऽगमात् । सच्छ्राद्धदिनकृत्यस्य,वृत्तिर्देवेन्द्रसूरिभिः॥१०॥श्रीविजयचंद्रसूरिप्रमुखैर्विद्वद्गुणैर्गुणगरिष्ठैः। स्वपरोपकारनिरतैस्तदैव संशोधिता चेय।।११।। प्रथमां प्रतिमप्रतिमप्रतिभाप्रतिहस्तितत्रिदशसूरिः। श्रीहेमकलशनामा सदुपाध्यायो लिलेख्यास्याः॥१२॥ क्रमशश्चैत्रावालकगच्छे कविराजराजि नभसीव । श्रीभुवनचन्द्रसरिर्गुरुरुदियाय प्रवरतेजाः॥४॥ तस्य विनेयः प्रशमैकमन्दिरं देवभद्रगणिपूज्यः। शुचिसमयकनकनिकषो बभूव भुवि A|| ७६॥ ma For Private And Personal Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mah श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥ ७७ ॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org विदितभूरिगुणः ||५|| तत्पादपद्मभृङ्गा निस्संगाचङ्गतुङ्ग संवेगाः । संजनितशुद्धबोधा जगति जगच्चन्द्रसूरिवराः || ६ || तेषामुभौ विनेयौ श्रीमान् देवेन्द्रसूरिरित्याद्यः । श्रीविजयचन्द्रसूरिद्वितीयकोऽद्वैत कीर्तिभरः | ७|| स्वान्ययोपकाराय, श्रीमद्देवेन्द्रसूरिणा । धर्मरत्नस्य टीकेयं, सुखबोधा विनिर्ममे ||८|| प्रथमां प्रतिमप्रतिमं विभ्राणो गुरुजनेषु भक्तिभरम् । विद्वान् विद्यानंदः सानन्दमना लिलेखास्याः | |||९|| श्री हेमकलशवाचकपण्डितवरधर्म कीर्तिमुख्य बुधैः । स्वपरसमयैककुशलैस्तदैव संशोधिता चेयम् ॥ १०॥ इति । यतोऽत्र न वाबदीति यद् श्रीजगचन्द्रसूरिवराणां चैत्रावालकगच्छीय श्रीदेवभद्रसूरीणां पार्श्वे यथोपसंपग्रहस्तथा श्रीमतां देवेन्द्रसूरीणां किंचश्रीमद्भिर्यदा कर्मग्रन्थवृत्तिः प्रणीता तदा जातैव तपोगच्छोत्पत्तिः, स्पष्टं चैतदुपरिष्टान्निर्दिष्टतत्पाठात्, किंच - श्रीकर्मग्रन्थवृत्तौ श्रीश्राद्धदिनकृत्यवृत्तिं स्पष्टमुल्लिख्य काव्यं तत्रत्यं क्ष्माभृद्रंककयोर्मनीषिजडयो' रित्येतत् उल्लिखितं, ततः स्पष्टतरमेतस्यास्तस्याः पश्चाद्भावित्वं, किंच - धर्मरत्नकर्मग्रन्थवृत्तिकरणकाले श्रीधर्मकीर्त्तिपंडितानां साहाय्यं यथा दर्शितं न तथा श्राद्धकृत्यवृत्तौ तथा च श्राद्धदिनकृत्यधर्मरत्नकर्मग्रन्थवृत्तीनां क्रमेण कृतिः, एवं च कर्मग्रन्थवृत्तावेव तपोगणाचार्यत्वाभिधानात् श्रीजगञ्चन्द्रसूरिभ्यः तपोगणोद्भवस्तदानीं निस्संदिग्धः, अन्यच्च - श्रीश्राद्धदिनकृत्यवृत्तिप्रशस्तौ श्रीविद्यानंदोल्लेखात् कर्मग्रन्थधर्मरत्नवृत्योः श्रीविद्यानन्दधर्मकीर्त्य भयोल्लेखात् श्राद्धदिनकृत्यवृत्तेः पूर्वतरभाविता, आद्यवृच्योः श्रीहेमकलशस्योल्लेखेऽपि अन्त्यायां तदनुल्लेखोऽपि क्रमवत्तां द्योतयति, एवं श्रीमद्देवेन्द्राणां तपागच्छीयत्वे सिद्धेऽपि तपोगणोद्भवस्य त्रयोदशशताब्दीपूर्तेरर्वाग्भावे न संदेहो विधेयः, यतः स्तम्भतीर्थीय श्री शान्तिनाथभांडागारीयपुस्तकेषु स्पष्ट एव तपोगणस्योल्लेखः, दृश्यंतां प्रशस्तिसंग्रहगतास्ताः प्रशस्तयः श्रीष्टिय (तृतीयपर्व) चरित्रं पृष्ट ४७ नं. ५७ - १२९५ वर्षे आश्विनवदि २ ख अद्येह श्रीबीजापुरपत्तते समस्तराजा For Private And Personal Acharya Shri Kailash Gyanmandir प्रस्तावना ॥ ७७ ॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maa Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir BE श्रीदे. प्रस्तावना वलीपूर्वकं तपाकीयश्रीपौषधशालायां चरित्रगुणनिधानसमस्तसिद्धान्तकलोन्मानेन पारगेन तपादेवभद्रगणि-मलयकीर्ति-पंडिचैत्यश्री तफुलचन्द्रपंडितदेवकुमारमुनिनेमिकुमारमुनिप्रभृतिसमस्तसाधून तच्चरणकमलान् भक्तपरमश्रावकसाधू रतनपाल समस्तसिद्धान्तपुवर्म संघा स्तकानां पौषधशालाभारनिर्वाहकपरमश्रावक श्रेष्ठी वील्ह द्वितीयभारनिर्वाहक साधर्मिकाणां वात्सल्यतत्पर परमश्रावक उ० आसचारविधौ पाल तृतीयभारनिर्वाहक निरंतरं पुस्तक सिद्धान्तनिर्विकल्पभक्त्या सारतत्पर श्रावक साधु लाहणप्रभृतिभिः समस्तश्रावकैः त्रिषष्ठी॥ ७८॥ यपुस्तकं समस्तसाधूनां श्रावकाणां पठनवाचकश्रेयोऽर्थ लिखापितं लेखकपाठकानां शुभं भवतु ।। अनेन प्रागेवोत्पचिर्तपोऽभिख्या याः पंचनवत्यग्रद्वादशशताब्द्याः YAI न च पूर्वोक्तेषु त्रिष्वपि देवेन्द्रसूरीणां सूरित्वेनोल्लेखाच्चतुर्दशशतान्द्यां कृतय एतासां, यतः श्रीमतां षट्त्रिंशदधिकद्वादशसु शतेषु सूरितया स्थितिः, यतः प्रशस्तिसंग्रहे द्वितीये भागे वन्दारुवृत्तिपुष्पिकायां स एव हायनो निर्दिष्टः 'कृतिरियं सुविहितशि| रोमणीनां श्रीमद्देवेन्द्रसूरीणामिति समाप्तौ सूचनात् , दृश्यतां तल्लेखः श्रीवन्द्रारुवृत्ति भा. २ पृष्ठ १ नं. १-इति षड्विधावश्यकविधिः । एवं ग्रन्थाग्रं २७२० । कृतिरियं सुविहितशिरोमणीनां श्रीमद्देवेन्द्रसूरीणां । रसस्त्रिलोचनश्चैव,कलासंपूर्णवर्तते (१२३६) ग्रहयोगवियुक्तश्च, मधौ च कृष्णपक्षके ॥१।। बृहद्गणगणाधीशाः, मूरिश्रीशीलदेवाख्याः! तच्छिष्येणैव लिखितां, भानुप्रभोवृत्तिमिमां ॥२॥ प्रवाच्यमानं कृतिभिस्तु नंद्यात् ।। शुभं भूयात् । व्यवहारसूत्रम्, सवृत्ति (द्वितीय खंडः) पृ.४४ नं. ५०-इति श्रीमलयगिरिविरचितायां व्यवहारटीकायां पंचमोद्देशकः समाप्तः । पंचमोद्देशके ग्रंथानं ९०५ ॥ SunniamayundainThe Heamnnaimausainment ॥७८॥ For Private And Personal Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Male Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kailas Gyanmandir श्रीदे. चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥७९॥ माIDAI वरहुडिया साधू० राहड सुत० लाहडेन श्रेयोऽर्थे व्यवहारद्वितीयखंडं लिखापितं संवत् १३०९ वर्षे भाद्रपद सुदि १५॥ प्रस्तावना श्रीदेवभद्रगणिपादसरोरुहालेभक्या नमद्विजयचन्द्रमुनीश्वरस्य । देवेन्द्रसूरिसुगुरोः पदपद्ममूले,तत्रांतिमौ जगृहतुर्यतितां शिवोत्कौ।।६।। प्रशस्तिगताः श्रोदेवेन्द्रसूरिसत्का लेखाश्चैते श्रीभगवतीसूत्रवृत्तिः पृ. ४६ नं. ५४-ग्रन्थाग्रं १८६१६ । शुभं भवतु । संवत १२९८ वर्षे सुदि १३ सोम, अद्येह वी. जापुरे सा० सहदेव सा० राहडसुत लाहणेन सा० देवचंद्रप्रभृतिकुटुंबसमुदायेन चतुर्विधसंघस्य पठनार्थ वाचनार्थ च लिखापितं । । संवत् १२९८ वर्षे फागुन सुदि ३ गुरौ अद्येह बीजापुरे पूज्यश्रीदेवच(वे)न्द्रसूरिश्रीविजयचन्द्रसरिव्याख्यानतः संसारासारतां || विचिन्त्य सर्वज्ञोक्तं शास्त्रं प्रमाणमिति मनसि ज्ञात्वा सा० राहडसुतजिणचन्द्रधणेसरलाहड सा० सहदेव सुत सा० पेढा संघवी गोसलप्रभृतिकुटुंबसमुदायेन चतुर्विधसंघस्य पठनार्थ वाचनार्थं च लिखापितमिति ॥ श्रीउपासकादिसूत्रवृत्तिः पृष्ठ ४७ नं.५५-संवत् १३०१ वर्षे फाल्गुन वदि १ शनौ अद्येह वीजापुरे पंचांगीभूत्रवृत्तिपुस्तकं ठ० अरसिंहेन लिखितं । उभय ११२८ । संवत् १३०१ वर्षे फाल्गुनवदि १३ शनी, इहैव प्रल्हादनपुरे श्रीनागपुरीयश्रावकैः पौषधशालायां सिद्धान्तशास्त्रं पूज्यश्रीदेवेन्द्रसरिश्रीविजयचंद्रमरिउपाध्यायश्रीदेवभद्रगणेाख्यानतः संसारासारतां विचित्य सर्वज्ञोकं शास्त्रं प्रमाणमिति मनसि विचिन्त्य श्रीनागपुरीयवरहुडीयासंताने सा आसदेव (विशेष श्रीपाक्षिकसूत्रवृत्तिः ता.प्र नं २५ मुजब) श्रीपाक्षिकचूर्णिवृत्तिः पृष्ठ १९ नं. २५–मंगलं महाश्रीः ॥ पाक्षिकचूर्णिवृत्तिः। ग्रन्थाग्रं ३१०० ॥ संवत् १२९६ विशाखशुदि ३ गुरौ इहैव बीजापुरे श्रीनागपुरीयश्रावकैः पौशधशालायां सिद्धान्तशास्त्रपूज्यश्रीदेवेन्द्रमूरिव्याख्यानतः संसारासारतां ail॥७९॥ - - For Private And Personal Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Marvilainradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashad Gyanmandir a प्रस्तावना श्रीदे. चेत्य श्री. धर्म संघाचारविधी ॥ ८ ॥ विचिंत्य सर्वज्ञोक्तं शास्त्र प्रमाणमिति मनसा विचिंत्य श्रीनागपुरीयवरहुडीयासंताने सा० आसदेव सुत सा नेमड सुत सा राहड सा. जयदेव सा० सहदेव तत्पुत्र सा पेढा सा गोसल सा० राहडसुत जिणचन्दघणेसरवाहडदेवचन्द्रप्रभृतिना चतुर्विध संघस्य | पाठनार्थ वाचनार्थं च आत्मयोऽर्थ लिखापितं ।। । श्रीज्ञाताधर्मकथायंगवृत्तिः पृष्ठ नं. ४६-ग्रन्थानं ९००-मंगलं महाश्रीः । संवत् १२९५ वर्षे चैत्र शुदि २ मंगलदिनेऽयेह श्रीमदनहिल्लपाटके महाराजाधिराजश्रीभीमदेवविजयकल्याणराज्ये ज्ञाताधर्मकथांगप्रभृतिषडंगीसूत्रवृत्तिपुस्तकं लिखितं । पुरुषार्था इव मूर्ताश्चत्वारो नंदनास्तयोर्जाताः । कर्तुमिव तुल्यकालं जिनोक्तधर्म चतुर्भेदम् ॥६॥ प्रथमस्तत्र जयंतो वीराख्यस्तदनु दनु (ज) तिहुणाहौ । जाल्हणनामा तुर्यः, पंचत्वं प्राप तत्राद्यः ।।७।। वीरस्ततोऽन्यदाऽश्रौषीच्छोकशंकुविनाशकम् । श्रीजगच्चन्द्रसूरीणां, वचः सर्वज्ञभाषितम् ।। ८ ।। तद्यथा-चला समृद्धिः क्षणिकं शरीरं, बंधुप्रबंधोऽपि निजार्थवन्धः । भवान्तरे संचलितस्य जंतोन कोऽपि धर्मादपरः सहायः ।।९।। कुवोधरुद्धे भुवने न बुध्यते, स्फुटं जिनेन्द्रागममन्तरेण | कलौ भवेत्सोऽपि न पुस्तकं विना, विधीयते पुस्तकलेखनं ततः॥१०॥ स्वभ्रातुः श्रेयसेऽलेखि, ततस्तेन सबंधुना । ज्ञाताधर्मकथांगादिषडंगी वृत्ति| संयुता ।।११|| जंघरालाभिवस्थाने,युगादिजिनमंदिरे । संघस्य पुरतो व्याख्यातैषा देवेन्द्रसूरिभिः॥१२॥ यावत् व्योमसरःक्रोडे, | राजहंसौ विराजतः । तावत्कृतिरिवं स्वांतानन्दं नन्दतु पुस्तकं ॥१३॥ सं. १२९७ वर्षे व्याख्यातमिति शुभं भवतु । अतः पंचनवतद्वादशशतेभ्योऽर्वाक् श्रीजगचंद्रसूरीणां स्वर्गतिः श्राद्धदिनकृत्ववृत्तिः पृष्ठ ४३ नं. ४८-श्रीमज्जगञ्चन्द्रमुनींद्रशिष्यश्रीपूज्यदेवेन्द्रमुनीश्वराणां । तदाद्यशिष्यत्वभृतां च ॥८० ॥ For Private And Personal Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma Jain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥ ८१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash arsuri Gyanmandir विद्यानंदाख्यविख्यातमुनिप्रभ्रूणाम् ||७|| तथा गुरूणां सुगुणैर्गुरुणां, श्रीधर्मघोषामिघवरिराजां । सदेशनामेवमपापभाव, शुश्राव भावावनतोत्तभांगः ॥ ८ ॥ श्रीनन्यध्ययनटीका (मलयगिरीया) पृष्ठ ५१ नं. ८४ - संवत् १२९२ वर्षे वैशाख शुदि १३ अद्येह बीजापुरे श्रावकपौषधशालायां श्रीदेव भद्रगणिपं. मलय कीर्त्तिपं. अजितप्रभगणिप्रभृतीनां व्याख्यानतः संसारासारतां विचित्य सर्वज्ञोक्तं शास्त्रं प्रमाणमिति मनसि ज्ञात्वा सा० घणपालसुत सा० रतनपाल ठ० गजस्तत् (सुत) ठ० विजयपाल थे दुल्हासुत श्रे० वील्हण महे० जिणदेव महे० वीकलसुत ठ० आसपाल ने सोल्हा ठः सहजासुत ठ० अरसिंह सा० राहडसुत सा० लाहडप्रभृतिसमस्त श्रावकैमोक्षफलप्रार्थकैः समस्तचतुर्विधसंघस्य पठनार्थं च समर्पणाय लिखापितं । श्रीलिंगानुशासनम्, पृष्ठ ५४ नं. ८७ - सं० १२८७ वर्षे वैशाख सुदि गुरावद्येह वीजापुरीयश्रावकपौपधशालायां पूज्यश्रीदेवेन्द्रसूरिविजयचंद्रसूरिउपाध्याय श्रीदेव भद्रगणिसद्गुरूणां धर्मोपदेशतः सा० रत्नपाल सा० लाइड श्रे० वील्हण ठ० आसपाल सूत्र पुस्तिका लिखापिता । व्याकरणटीप्पनकम् पृष्टं ८५ नं. १४४ - सं० १२८८ वर्षे अषाढ वदि अमावास्यादिने भौमे राणक श्रीलावण्यप्रसाददेवराज्ये कूपके वेलाकुले प्रतीहारशखा (खा) टप्रतिपत्तौ श्रीमद्देवचंद्रसूरिशिष्येण भुवनचंद्रेण क्षुल्लकधर्मकीर्तिपाठयोग्या व्याकरणटीप्पनपुस्तिका लिखितेति । पं. सोमकलशेन शोधिता च । यादृशं मम दोषो न दीयते || १|| शिवतातिरस्तु श्रीजिनशासनस्येति । श्रीउत्तराध्ययनलघुवृत्तिः पृष्ठं ३८ नं. ४३ – तस्याभूत्कयामिख्योऽनुजो धरणिगस्तथा । तयोः प्रियतमा लावू, जासलेति For Private And Personal प्रस्तावना ॥ ८१ ॥ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kaile arfuri Gyanmandir प्रस्तावमा श्रीदे चैत्व०श्रीधर्म संघा चारविधी ॥८२॥ यथाक्रमम् ॥३॥ नारायणस्य संजज्ञे, हंसलेति सम्मिणी । रत्नपालोऽभिधानेन, पुत्रोऽभृद् हृदयप्रियः॥४॥ जैनधर्मधराधुर्यः, श्रेष्ठी नारायणोऽन्यदा । श्रीमद्देवेन्द्रसूरीणामिति वाक्यामृतं (पपौ)॥५॥ | उपरिष्टानिर्दिष्टानां लेखानां तात्पर्येक्षणात् समुन्नीयते एतद्यदुत श्रीमन्तो जगच्चन्द्रसूरयः पञ्चनवत्यधिकद्वादशशतसंवदि वरीवर्तमानाः श्रीमन्तो देवभद्राश्च ततः परमपि विद्यमानाः तत्सेवापराश्च श्रीमन्तो देवेन्द्रपादाः, किंव-व्याकरणटीप्पनकपुष्पिकाद र्शनात् श्रीमतां धर्मघोषसूरीणां सिद्धहैमाध्येतृत्वं वन्दारुवृत्त्याः लेखेन श्रीतपोगच्छस्य प्राग् बृहद्गच्छीयत्वमासीदिति च,अष्टाशीत्यधिकायां द्वादशशताब्द्यामपि श्रीमद्भिर्भुवनचन्द्रमूरिभिः श्रीधर्मकीर्तये टीप्पनकस्य लिखनात् उपसंपदो गच्छाख्यायाश्च परावृत्ता| वपि नान्यगणीयवत् मूलगणाद्वैमनस्कतेति । | श्रीमतां देवेन्द्रसूरीणां चैत्यवन्दनभाष्यमूलकाराणां वृत्तिकृतां श्रीधर्मघोषसूरीणां च सोमसौभाग्यकाव्यक्रियारत्नसमुच्चयश्रीतपोगच्छपट्टावलीगतमैतिह्यमेवं-ततो गणः शिष्यततेर्वटाख्याख्यातोऽभवत् क्वापि बृहद्गणार्चिः। तस्मिंश्च गच्छे प्रवरेषु भूरिषु, सूरिष्वतीतेषु बहुश्रुतेषु ॥ २३ ।। श्रीमान् जगञ्चन्द्र इति प्रतीतनामा सुधामाऽजनि मूरिराजः। षट्त्रिंशदाचार्यगुणाः गणेन्द्र, तं शिश्रियुः प्रेमभरप्रणुन्नाः॥२४॥ (युग्मम् ) स्वगोभरैर्ध्वस्तसमस्तपापतमाः क्षमादर्शितपुण्यमार्गः। जगज्जनानां प्रमदं वितन्वन् , श्रीचन्द्रवद्योऽजनि सार्थकाः ॥२५।। वैराग्यवान् द्वादशहायनान्याचामाम्लनिर्माणतपो ह्यतप्त । यो दुस्तपं तेन तपागणेति,गणस्य सत्ख्यातिरभूत् क्षमायाम् ॥ २६ ॥ श्रीमजगचन्द्रगुरोविनेयस्त्वमेयसद्गेयगुणैर्विनिद्रः। देवेन्द्रमर्येन्द्रमुनींद्रवंद्यो, देवेन्द्रसूरिः समभृत् प्रमाढ्यः।।२७।। व्याख्याकलां यस्य कलां विलोक्य,श्रीवस्तुपालादिमहेभ्यसभ्याः। के घूर्णयन्ति स्म न पूर्णचित्ताः, शी For Private And Personal Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma Aradhana Kendra र्षाणि हर्षेण च विस्मयेन ||२८|| कर्मस्वरूपप्रथनाढ्यकर्मग्रंथादिसद्ग्रंथविधा नवेधाः । मेधाप्रधानो जगतां गतांहा, व्यभासयजैनमतं मतं यः ।। २९ ।। संशुद्धसाधुस्थितिदुर्गमार्ग, प्ररूपयंश्चारु समाचरंश्च । अनल्पसंकल्पितदान कल्पद्रुमोऽभवद्यो जिनकल्पि| कल्पः ||३०|| ख्यातो दिगंते वितते तदंतेवासी स्वदासीकृतदेवसूरिः। निस्सीमगंभीरिमहृद्यविद्यानंदा ह्वसूरींद्र इहावभासे ॥ ३१ ॥ अनौकहं नव्यलताः श्रिता वा, सरित्पतिं वा सरितस्तता वा । मराललीला इव मानसं वा, यं हृद्यविद्या हि तथा प्रियाढ्याः ॥ ३२ ॥ | प्रह्लादनस्पृक्पुरपत्तने श्रीप्रह्लादनोवपतिसद्विहारे । श्रीगच्छधुर्यैः किल यस्य वर्यश्रीसरिमंत्रे सति दीयमाने ॥ ३३ ॥ सत्पात्रमात्रा| तिगसद्गुणाति प्रहृष्टहृल्लेखभृदयलेखाः । कर्पूरकाश्मीरज कुंकुमादिगंधोदकं श्राक् ववृषुस्तदानीम् || ३४ || युग्मम् | तत्पट्टपूर्वाद्रिविनिद्रभानुर्जगत्रयाह्लादनशीतभानुः । श्रीधर्मघोषः स्फुटदन्तघोषः, स नन्दतानिर्मित पुण्यपोषः ||३५|| प्रबोधितो येन नयेन साधुः, पृथ्वीधरः साधुधुरंधरोऽसौ । स्फारान् विहारांश्चतुरश्चतुर्भिः समन्विताशीतिमितानकार्षीत् || ३६ || षट्पूर्वपंचाशदतुल्य हेमघटी| मिरिभ्यो रुचिरेन्द्रमालाम् । कंठे निजे यो विनिवेश्य वश्यां मुक्तिं वशां तां हृदि मन्यते स्म ||३७|| माधुर्यधुर्यां च सुधासदेश्यां, |यदेशनां श्रोत्रपुटैर्निपीय | पृथ्वीधरांगोद्भबझंझणोऽसौ श्रीतीर्थयात्रां रचयन् पवित्राम् ||३८|| सुवर्णदुर्वर्णमयीं किलैकामेवाद्भुतश्रेणिकरीं पताकाम् । ददौ सदौचित्यधरः सुतीर्थे, शत्रुंजयाद्रावपि चोजयंते ||३९|| युग्मम् । श्रीधर्मघोषो गुरुरन्यदोर्भ्यां, गुर्व्यां विहारं रचयन् समागात् । श्री उज्जयिन्यामलकाजयिन्यामनन्यसामान्यघनप्रभावः ||४०|| गुरून्नतिं लोकततिप्रस्वतामतिप्रभूतां पुरि वीक्ष्य कश्चित् । योगी विपश्चित् कुपितः समागात्, गुर्वाश्रमं संश्रित आप्तशिष्यैः ॥ ४१ ॥ सर्पान् सदर्पान् वदनोत्थतारस्फूत्कारचारैर्भरितांत रिक्षान् । परः सहस्रान् स मुमोच विद्याकृतानि चान्यान्यपि वक्रितानि ||४२ || पद्मासने ध्यानमथ प्रपूर्य, सूर्यग्रणीर्गे श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥ ८३ ॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Acharya Shri Kailass EA iGyanmandir प्रस्तावना ॥ ८३ ॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shi h Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Si Kaos Gyarmandir प्रस्तावना श्रीदे. चैत्यश्रीवर्म०संघाचारविधी ॥८४॥ यगुणोऽनणीयः। विनेयवृन्दैः सह तं बबंध, सक्रौं चबंधं बुधसार्वभौमः॥४३॥ निये म्रियेऽहं सह शिष्यलक्षमा मुंच सद्यः सुगुरो ! प्रसद्य । कारुण्यपुण्यः श्रितसाम्यकाम्यस्त्वं वर्तसेयद् व्रतिनामिनश्च ।। ४४ ॥ ततो व्यमुंचद् गुरुचक्रवर्ती, तं योगिनं योजितपा-| णिपद्यम् । ततो मनःसाम्यभृतां नितान्तं, कांतं घृणासांद्ररसैः प्रशस्यैः ॥ ४५ ॥ विद्यापुरे क्षुद्रविनिद्रविद्याविदः सदःसंश्रितचा-| रुपट्टाः । श्राद्धीः प्रदुष्टा हृदि शाकिनीः श्रागस्तंभयद्यश्चतुरश्चतस्रः ॥ ४६॥ यः पूर्जनाभ्यर्थनया नयानुसारीव ताः स्तंभनतो मुमोच । आदर्शयद्यस्य च रत्नमेकं, रत्नाकरः स्वं तटसंश्रितस्य ॥४७॥ विनिर्मिता येन च भव्यनव्यग्रंथा अनेके सरसार्थसार्थाः। प्रदीप्रदीपा इव तचमार्गमद्यापि हृद्याः किल दर्शयन्ति ।। ४८॥ गिरीशगिर्युज्ज्वलतोत्थगर्वखर्वीकृतैः पेशलकौशलाढ्याः । सदावदाताः प्रवरावदाताः, वक्तुं न शक्याः कविभिर्यदीयाः ।। ४९ ॥ पृ. ३४ श्रीमत्तपोगणासमानानुपमस्तंभायमानश्रीधर्मसागरमहोपाध्यायप्रणीततपोगच्छपट्टावल्यामपि-श्रीजगचंद्रपट्टे पंचचत्वारिंशत्तमः श्रीदेवेन्द्रसूरिः, स च मालवके उज्जयिन्यां जिनभद्रनाम्नो महेभ्यस्य वीरधवलनाम्नस्तत्सुतस्य पाणिग्रहणनिमित्तं महोत्सवे जायमाने वीरधवलकुमारं प्रतिबोध्य गुत्तरत्रयोदशशत १३०२ वर्षे प्रावाजयत् , तदनु तद्भातरमपि प्रव्राज्य चिरकालं मालवके एव विहृतवान् , ततो गूजरधरियां श्रीदेवेन्द्रसूरयः श्रीस्तंभतीर्थे समायाताः । पृ. ५७ स्तंभतीर्थे च चतुष्पथस्थितकुमारपालविहारे धर्मदेशनायामष्टादशशत १८०० मुखबस्त्रिकाभिमंत्रिवस्तुपालः चतुर्वेदादिनिर्णयदातृत्वेन स्वसमयपरसमयविदांश्रीदेवेन्द्रसूरीणां वंदनकदानेन बहुमानं चकार॥–श्रीगुरवस्तु विजयचन्द्रमुपेक्ष्य विहरमाणाः क्रमेण पाल्हणपुरे समायाताः। तत्र चानेकजनतान्विताः शीकरीयुक्तसुखासनगामिनश्चतुरशीतिरिभ्या धर्मश्रोतारः। प्रह्लादनविहारे For Private And Personal I affrolith iulihematitaniuTHIHIPTITImmedia MIMPAINSAAMRITIESIRAL IDMARATHIPPIRAIL ॥८४॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kcbafrth.org u ri Gyanmandir प्रस्ता बनायां | पट्टावली IN in Aradhana Kendra Acharya Shri Kel श्रीदे च प्रत्यहं मूटकप्रमाणा अक्षताः, क्रयविक्रयादौ नियतांशग्रहणात् पोडशमणप्रमाणानि पूगीकलानि चायांति, प्रत्यहं पंचशतीवीचेत्यश्री | सलप्रियाणां भोगः ॥ एवं व्यतिकरे सति श्रीसंघेन विज्ञप्ता गुरवः यदुत गणाधिपतिस्थापनेन पूर्यतामस्मन्मनोरथः, गुरुमिस्तु धर्म० संघा- तथाविधमौचित्यं विचार्य प्रल्हादनविहारे वि० त्रयोविंशत्यधिके त्रयोदशशते १३२३ वर्षे क्वचिच्चतुरधिके १३०४ श्रीविद्यानंचारविधी दसूरिनाम्ना वीरधवलस्य मूरिपदप्रदानं । तदनुजस्य च भीमसिंहस्य धर्मकीर्तिनाम्नोपाध्यायपदमपि तदानीमेव संभाव्यते॥ ॥८५॥ मरिपददानावसरे सौवर्णकपिशीर्षके प्रह्लादनविहारे मंडपान्तः कुंकुमवृष्टिः, सर्वोऽपि जनो महाविस्मयं प्राप्तः । श्राद्धैश्च महानुत्स वश्चक्रे । तैश्च श्रीविद्यानंदसूरिमिर्विद्यानंदामिधं व्याकरणं कृतं ॥ यदुक्तम्-विद्यानंदाभिधं येन, कृतं व्याकरणं नवम् । भाति | सर्वोत्तमं स्वल्पसूत्रं बह्वर्थसंग्रहं ॥१॥ पश्चात् श्रीविद्यानंदसूरीन् घरिच्यामाज्ञाप्य पुनरपि श्रीगुरवो मालवके विहृतवंतः तत्कृताश्च ग्रंथास्त्वेते २-श्राद्धदिनकृत्यसूत्रवृत्ती २-नव्यकर्मग्रन्थपंचकमूत्रवृत्ती २-सिद्धपंचाशिकासूत्रवृत्ती १-धर्मरत्नवृत्तिः २(१) सुदर्शनाचरित्रं ३ त्रीणि भाष्याणि"सिरिऊसहबद्धमाण" प्रभृतिस्तवादयश्च, केचित्तु श्रावकदिनकृत्यसूत्रमित्याहुः।। विक्रमात सप्तविंशत्यधिकत्रयोदशशत १३२७ वर्षे मालवक एव देवेन्द्रसूरयः स्वर्ग जग्मुः॥ देवयोगात् विद्यापुरे श्रीविद्यानंदसूरयोऽपि त्रयोदशदिनांतरिताः स्वर्गभाजः। अतः पडभिर्मासैः सगोत्रिसृरिणा श्रीविद्यानंदसूरिबांधवानां श्रीधर्मकीर्युपाध्यायानां श्रीHधर्मघोषसूरिरितिनाम्ना सूरिपदं दत्तम् ॥ श्रीगुरुभ्यो विजयचंद्रसूरिपृथग्भवने के गुरुं सेवेऽहमिति संशयानस्य सौवर्णिकसंग्रामपू र्वजस्य निशि स्वप्ने देवतया श्रीदेन्द्रसूरीणामन्वयो भव्यो भविष्यतीति तमेव सेवस्वेति ज्ञापितम् ।। श्रीगुरूणां स्वर्गगमनं श्रुत्वा संघाधिपतिना भीमेन द्वादश वर्षाणि धान्यं त्यक्तम् ॥ and insaan semins MAINPUTIHANIMEANI P REMIUILDR imalamalliamulinsaili For Private And Personal Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदेο चैत्य० श्री. धर्म० संघा चारविधौ ॥ ८६ ॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalagersuri Gyanmandir ४६- छायालीसोत्ति श्रीदेवेन्द्रसूरिपट्टे पट्चत्वारिंशत्तमः श्रीधर्मघोषसूरिः, येन मंडपाचले सा० पृथ्वीधरः पंचमत्रते लक्षप्रमाणं परिग्रहं नियमयन् ज्ञानातिशयात्तद्भगमवगम्य प्रतिषेधितः । स च मंडपाचलाधिपस्य सर्वलोकाभिमतं प्राधान्यं प्राप्तः, ततो धनेन धनदोपमो जातः । पश्चात्तेन चतुरशीति ८४ जिनप्रासादाः सप्त च ज्ञानकोशाः कारिताः । श्रीशत्रुञ्जये च एकविंशति| घटीप्रमाणसुवर्णव्ययेन रैमयः श्री ऋषभदेवप्रासादः कारितः, केचिच्च तत्र षट्पंचाशत् सुवर्ण घटीव्ययेनेंद्र मालायां (लां यः) परि| हितवानिति वदंति । तथा धरित्र्यां केनचित्साधर्मिकेण ब्रह्मचारिवेषदानावसरे महधिकत्वात् पृथ्वीधरस्यापि तद्वेषः प्राभृतीकृतः, सच तमेव वेषमादाय ततः प्रभृति द्वात्रिंशद्वर्षीयोऽपि ३२ ब्रह्मचार्यभूत् ॥ तस्य च पुत्रः सा० झांझणनामा एक एवासीत् । येन श्रीशत्रुज योजयंतगियोंः शिखरे द्वादश १२ योजनप्रमाणः सुवर्णरूप्यमय एक एव ध्वजः समारोपितः । कर्पूरकृते राजा सारंगदेवः करयोजनं कारितः । येन च मंडपाचले जीर्णटंकानां द्विसप्तत्या क्वचित् पत्रिंशता सहस्रैर्गुरूणां प्रवेशोत्सवचक्रे ॥ देवपत्तने च शिष्याभ्यर्थनया मंत्रमयस्तुतिविधानतो येषां रत्नाकरस्तरंगे रत्नढौकनं चकार । तथा तत्रैव ये स्वध्यानप्रभावात्प्रत्यश्रीभृतनवीनोत्पन्नकपर्दियक्षेण वज्रस्वामिमाहात्म्याच्छत्रुंजयान्निष्काशितं जीर्णकपर्दिराजं मिध्यात्वमुत्सर्पयंतं प्रतिबोध्य श्रीजैनबिंबाधिष्ठायकं व्यधुरिति ॥ एकदा काभिश्चिद् दुष्टखीभिः साधूनां विहारिताः कार्मणोपेता वटका भूपीठे यैस्त्याजिताः संतः प्रभाते पाषाणा अभवन्, तदनु चाभिमंत्र्यार्पितपट्टकासनास्ताः स्तंभिताः सत्यः कृपया मुक्ता इति । तथा विद्यापुरे पक्षांतरीय तथाविस्त्रीभिर्गुरूणां व्याख्यानरसे मात्सर्यात् स्वरभंगाय कण्ठे केशगुच्छके कृते यैर्विज्ञातस्वरूपास्ताः प्राग्वत्स्तंभिताः संत्योऽतः परं भवद्गणे न वयमुपद्रोष्याम इति वाग्दानपुरःसरं संघाग्रहान्मुक्ता इति ॥ For Private And Personal प्रस्ता वनायां पट्टावली ॥ ८६ ॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kai s uri Gyanmandir Shrine श्रीदे. चैत्यश्री धर्म संघा चारविधौ ॥८७॥ प्रस्ता वनाय पहावली MOHimammilim HINTAITHILITIESIHARITHI H HHATTINAMImmunital ARITHIKARIPATHIAN उज्जयिन्यां च योगिभयात् साध्वस्थिते गुरव आगताः,योगिना साधवः प्रोक्ता:-अत्रागतैः स्थिरैः स्थेयं?,साधुभिरुक्तं-स्थिताः सः किं करिष्यसि ?, तेन साधूनां दन्ता दर्शिताः,साधुभिस्तु कफोणिर्दर्शिता,साधुभिर्गत्वा गुरूणां विज्ञप्त,तेन शालायामुन्दरवृन्दं विकुर्वित, साधवो मीता गुरुभिर्घटमुखं वस्त्रेणाऽऽच्छाद्य तथा जप्तं यथा राटिं कुर्वन् स योगी आगत्य पादयोलग्नः ॥ क्वचन पुरे निश्यभिमंत्रितद्वारदानं, एकदा अनभिमंत्रितद्वारदाने शाकिनीभिः पट्टिरुत्पाटिता स्तंभिता ततो वाग्दाने च मुक्ताः॥ यैरेकदा सर्पदंशे रात्रौ विषेणांतरांतरामूर्छामुपगतैरुपायविधुरं संघ प्रत्यूचे । प्राचीनप्रतोल्यां कस्यचित् पुंसो मस्तके काष्ठभारिकामध्ये विषापहारिणी लता समेषति सा च प्रघृष्य दंशे देया इत्येवं प्रोक्ते संघेन च तथाविहिते तया प्रगुणीभूय ततः प्रभृति यावजी षडपि विकृतयस्त्यक्ता आहारस्तु तेषां सदा युगंधर्या एव ॥ तत्कृता ग्रन्थास्त्वेवं-संघाचारभाष्यवृत्तिः,सुअधम्मेतिस्तवः कायस्थिति-भवस्थितिस्तवौ चतुर्विंशतिजिनस्तवाः चतुर्विंशतिः, प्रास्ताशर्मेत्यादि स्तोत्रं देवेन्द्ररनिशं० इति श्लेषस्तोत्रं यूयं युवां त्वमिति श्लेषस्तुतयः, जय वृषमेत्यादिस्तुत्याद्याः ।। तत्र जयवृषभेत्यादिस्तुतिकरणव्यतिकरस्त्वेवं-एकेन मंत्रिणाऽष्टयमकं काव्यमुक्त्वा प्रोचे-ईदृग्काव्यमधुना केनापि कत्तुं न शक्यं । गुरुभिरूचे-अनस्तिर्नास्ति । तेनोक्तं-तं कविं दर्शयत । तैरुक्तं-ज्ञास्यते । ततो जयवृषभस्तुतयः अष्टयमका एकया निशा निष्पाद्य | भित्तिलिखितादर्शिताः। स च चमत्कृतः प्रतिबोधितश्च ।। ते च वि०सप्तपंचाशदधिकत्रयोदशशत १३५७ वर्षे दिवं गताः।। पृ.५७ __ श्रीक्रियारत्नसमुच्चये-देवेन्द्रकर्णाभरणीभवद्भिर्यशोभिरुद्भासितविष्टपेन । देवेन्द्रदेवेन वभेऽस्य पट्टे, विष्णोर्यथा वक्षसि कौस्तु| भेन ॥११२॥ निजागानोद्गीतयदीयकीर्तिशुश्रूषुरक्षिश्रवसामृभुक्षाः । चक्षुःसहस्रे रसिकः किमाधात् , पट्टे स तस्याजनि धर्ममोपः MAINRIENDRAPARIHAR HD ॥८७॥ For Private And Personal Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org IUII Acharya Shri Kail a rsuri Gyanmandir श्रीदे प्रस्तावनायां क्रियारत्नपाठ: d चैत्य श्रीधर्म संघान चारविधी ॥८८॥ Ineline | ॥११३॥ मिथ्यामतोत्सर्पणबद्धकक्ष, प्रेक्ष्य क्षितौ जीर्णकपर्दिनं यः। प्रबोध्य वाचा जिनराजबिम्बाधिष्ठायकं पूर्वमिव व्यधत्त ॥११४॥|D शिष्यार्थनानिर्मितसंस्तवस्यानुभावतो देवकपत्तनेऽन्धिः। भूपस्य शुश्रुषुरिवास्य रत्नं तरङ्गहतैरुपदीचकार ।। ११५॥ विद्यापुरे योऽखिलशाकिनीनामुपद्रवं द्रावयति स्म मूरिः। श्रीहेमचन्द्रो भृगुकच्छसंजे, पुरे यथा दुर्धरयोगिनीनाम् ॥११६॥ यो योगिनं पुष्प| करण्डिनीस्थं, दुश्चेष्टितै पनबद्धकक्षम् । तथाऽवननं विदधेऽन्तिमोऽर्हन्निवास्थिकग्रामिकशूलपाणिम् ॥११७॥ यस्योपदेशान् नृप- | मत्रिपृथ्वीधरश्चतुर्भिः सहितामशीतिम् । ज्ञातीरिवोद्धर्तुमिदं मिताः स्वा, व्यधापयत्तीर्थकृतां विहारान् ।।११८ ॥ दंशादहेर्गाहितकाष्ठभारविषौषधीसजतनुर्दिशान्ते । महात्मवद्यो विकृतीविहाय, वृत्तिं व्यधादेव युगंधरीभिः ॥११९|| पृ. १३१ वृत्तिकाराणां श्रद्धानिर्मलत्वं सिद्धान्तज्ञानं साहित्यरसिकता अत्रानुपदमेव प्रतिभापथमेष्यति विलोककानामिति विलोकनाय विदुषोऽभ्यर्थ्य समाप्यत इदमिति अलेख्यानंदसागरेण श्रीसिद्धक्षेत्रे (पालीटाणा) वीरसंवत् २४६४ भाद्रशुक्लद्वितीया । RIHA Ham a e AMIRMIRAL HAMESSIPAHITEMIIMPROUIn HILABURAMMARPATRINA a damRAHARIFellinium ॥८८॥ For Private And Personal Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघाचारविधौ ।। ८९ ।। Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जैनस्तोत्रसंग्रहे तत्र भवत्कृतानां मुद्रितानां स्तुतीनां वचिरियं श्रीधर्मघोषसूरिकृतानि स्तोत्राणि पृ. १३ जिनस्तवनं 'विश्वत्रयैकदर्शन !" १०६ आदिनाथ १३ भवस्तोत्रं - 'नामिमरुदेवि ' १०७ चन्द्रप्रभ ७ भवस्तोत्रं - 'मइसेणलक्ख' १०७ शांतिनाथ १२ भवस्तोत्रं - 'सिरिविस्ससेण' १०९ श्रीमुनिसुव्रत ९ भवस्तोत्रं - 'घणवण्णं चिह्नं' १०९ नेमिनाथ ९ भवस्तवनं - 'नेमिं रायमइजुअ' ११० श्रीपार्श्वनाथ १० भवस्तवनं - 'नवहत्थं नीला ' १११ श्रीवीर २७ भवस्तोत्रं - 'तिसलासिद्धत्थसुअं' २४१ भाविचतुर्विंशतिजिनस्तवः - 'देवेन्द्रवन्दितान्' २४२ पार्श्वनाथस्तवः - 'जय जय जिणिंद' ३४३ - 'पूर्व पामरपुंगवेन' २४६ श्रीवीरजिनस्तवनं - 'जय श्रीसर्वसिद्धार्थ' "" Acharya Shri Kaisuri Gyanmandir (९) २४७ सर्वजिन स्तवनं - 'नम्राखण्डल मौलि (९) २४८ चतुर्विंशति जिनस्तुतयः - 'जिनं यशः प्रताप' (६) | २५५ श्रीपार्श्वदेवस्तवनम् -'विश्वस्ताखिलकर्मा' (१०) २५७ श्रीमहावीर कलशः - 'यस्तेजोऽस्तरवि' (६) २६२ जीवविचारस्तवनम् -'संसारजिएस' २६७ पञ्चत्रिंशजिनवाणीगुण० 'जोसणगमद्ध' २६८ निकाचिततीर्थ नामकर्मणां जिनानां भवत्रयीस्तवनं - 'रिसहाइजिणवरिंदे' (७) (९) (9.0) (१४) २६९ श्रीदुष्पमाकालस्तवनं - 'वीरजिण भुवणविस्सुय' (९) २७३ ऋषिमंडलस्तवः - 'सकलसकलचक्रवर्ती' (२०९) (११) परिशिष्टे १०७ वर मंत्रधर्मकीर्तिश्री पार्श्वनाथमालामंत्र स्तवः (१३) १०९ लोकान्तिकदेवस्तवः थोसामि जिणे (१६) (९) For Private And Personal (<) (३९) (९) - (२७) (४०) (१६) (८) (२६) स्तुतिमूचा ॥ ८९ ॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Marain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥ ९० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashauri Gyanmandir परिशिष्टम् १ उपयुक्ततरस्थानानि तेनात्र यदेकश्लोकादिकं भगवद्गुणोत्कीर्त्तनपरं चैत्यवंदनायाः पूर्वं भण्यते तत् मंगलवृत्ताऽपरपर्याया नमस्कारा इत्युच्यते, यद्भाष्ये - उद्दामसरं वेयालिउब्व पढिऊण सुकइबंधाई । मंगलवित्ताई तओ पणिवायथयं पढइ संमं || १ |ति (२३६ अ.) पूर्वभण| नीयत्वादेव नमस्काराणां तद्द्वारं पूर्व सप्तममुक्तं यत्तु कायोत्सर्गानंतरं भण्यते ततः स्तुतय इति रूढाः, चैत्यवंदनापर्यंते च स्तोत्रमिति, अयमेव चैतेषां परस्परं विशेषः, अन्यथा भगवत् कीर्तनरूपतया सर्वेषामप्येषामेकस्वरूपापत्तेः, भणितं चागमे त्रितयमप्येतत् नमस्कारस्तुतिस्तवा इति, तथा चोत्तराध्ययनसूत्रं - थयथुइमंगलेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ?, थयथुइमंगलेणं नाणदंसणचरिताि बोहिलाभं च भणयइ, नाणदंसणचरित्तसंपन्ने णं जीवे अंतकिरियं कप्पविमाणोववत्तियं आराहणं आराहेई (२१ अ० ) त्यादि विमर्शनीयमिदं सूक्ष्मधियेति २२ पृ. ३१-३२ निर्व्याजा दयिते ननांदृषु नता श्वश्रूषु नम्रा भवेः, स्निग्धा बंधुषु वत्सला परिजने स्मेरा सपत्नीध्वपि । पत्युर्मित्रजने सन - | र्मवचना खिन्ना च तद्वेषिषु, स्त्रीणां संवननं नतभ्रु ! । तदिदं वीतौषधं भर्तृषु ॥ १२४ ॥ पृ. ४३-४४ प्रदक्षिणात्रयानंतरं च देवगृहलेखक पोतकपापाणादि घटापन कर्मकरसारादिकरणेत्यादिजिन विषयव्यापारपरंपराप्रतिषेधरूपां द्वितीयां नैषेधिकीं मध्ये मुखमंडपादौ कृत्वा मूलबिंबसंमुखं प्रणामत्रिकं करोति, पृ. ५३ तां च विशिष्टान्यपूजां सामय्यभावे नोत्सारयेत्, भव्यानां तद्दर्शनजन्यपुण्यानुबंधिपुण्यानुबंधस्यां तरायप्रसंगात्, किंतु-तंपि सविसससोहं जह होइ तहा तहा कुआ ॥ ४ ॥ पृ. ५३ For Private And Personal उपयुक्तस्थानान ॥ ९० ॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य ० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥ ९१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पुष्पफलपानीयनैवेद्यप्रदीपप्रमुख पदार्थसार्थऩमानयनादिरूपो जिनपूजाविषयोऽपि सावद्यव्यापारो देववंदनावसरे न कर्त्तव्य इत्यर्थः ॥ पृ. ५४ उस्सेहमंगुलेणं अह उडुमसेस सत्त रयणीओ । तिरिलोए पंचधणुसय सासयपडिमा पणिवयामि ।। २२ ।। अत्र यथा निर्माल्यपनयनानंतरं प्रथममंगप्रक्षालनं पूजादि च, स्नानानंतरं पुनः अंगप्रक्षालनादि विधीयते, स्नानपूर्वं कुसुमाञ्जलिप्रक्षेपणाद्यपि च ज्ञेयं पृ. ५८ "पुष्पामिषस्तोत्रप्रतिपत्तिपूजानां यथोत्तरं प्राधान्य" मिति । अत्रायं भावार्थ:- पुष्पैः जात्यादिभिः प्रथमा अंगपूजा भवति । इह पुष्पग्रहणमादिमध्यावसानेषु पुष्पांजलिपुष्पपूजापुष्पप्रकरादिसमये सर्वत्र बहूपयोगि बहुशोभित्वाद्, अन्यथा पत्रफलजलगंधवस्त्राभरणाद्यप्यंगपूजायामुपयुज्यते, ततश्चात्र पुष्पेत्युपलक्षणं, तेन निर्माल्यापनयनमार्जनांगप्रक्षालनाद्यनंतरं नित्यं विशेषतश्च पर्वसु कुसुमाञ्जलिप्रक्षेपादिपूर्व धुनीकर्पूरजलादि चंदन कुंकुमादिकल्पितजलप्रभृतिसद्गृहजेतरगंधोदकादिभिः स्नपनं सुरभिसुकुमालवस्त्रेणांगल्छनं घनसारकुंकुमादिभिर्विलेपनांग्यादिविधानं गोरोचना मृगमदादिभिरलंकरणं विचित्रवस्त्रैः परिधापनं ग्रंथिमवेष्टिपूरिमसंघातिमविधानचतुर्विधप्रधानाम्लानमाल्यादिभिर्मालाटोडर मुगुट शिरस्क पृष्पगृहादिविरचनं जिनहस्ते नाली केरवीजपूरपूगीफलनागवलीपत्रादिमोचनं धूपोत्क्षेपसुगंधवासप्रक्षेपाद्यपि च सर्वमंगपूजायां भवति पृ. ६२ अह मिम्मियपरिमाणं पूया पुप्फाइएहिं खलु उचिया । पृ. ६३ स्नपनादिभेदानंतरेण यत्पंचादिपूजा भेदानामेवमुपन्यासः तत् पूर्वपूजितादिषु मृन्मयादिविवेषु च संध्यादिषु च प्रायः पंच For Private And Personal उपयुक्त स्थानानि ॥ ९१ ॥ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Me i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kal u ri Gyanmandir श्रीदे चेत्य-श्रीधर्म संपाचारविधी ॥९२॥ उपयुक्तस्थानानि MEHRARUPALI antali BulleluniaNMETAILEHit IITHI PanasaluminuRNIMATIAHINDRAPARISHAI R ATRAINIPA | पूजासद्भावभावितया सर्वदा सर्वोपयोगित्वादिति ज्ञापनार्थ पृ. ६६ प्रत्यन्तरेऽधिकं तेसु पुरेसु समासु य नमिविनमीहिं फुरंतभत्तीहिं । ठविओ सिरिरिसिहजिणो धरणिंदो नागराया य ॥८१॥ आवश्यकचूर्णिः-'पुरेसु भयवं ऊसभसामी देवयं ठावि' 'तं पूयंति तिसंझं झायंति सया अवंझफलमुसहं । अच्छउमत्थं छउमत्थवत्थसुत्थं थुगंतेवं ॥ ८२॥ सुइकसिणचउत्थीए उत्तरसादाहिं जो सुरिंदेहिं । कहिओ मरुदेवीए ओयरिओ भावितिजयपहू ॥ ८३ ॥ चित्तकसिणहमीए जं जम्मणमजणक्खणे सव्वे । सुरसेले भत्तीए हविंसु पूइंसु देविंदा ॥ ८४ ॥ जेण हरिविहियरजामिसेयविहिणा अहेसि जयपहुणो। इह वसुमई व सुमई सुनयसहाणा सणाहा य ॥८५ ॥ रजावसरे चिरधरियनलिणिपत्ताभिसेयसलिलेहिं । मिहुणेहिं ण्हवणगेहि व जप्पयपउमा य अभिरुहया ||८|| नाणं वरविन्नाणं कलाउ सकला जओ पहुत्तं सा। रजं पहुत्तसझं पावेसि जणो य सयणो य ॥८७॥ लोयंतिमग्गणा इव नमजणा सजणा न के हुजा। संवच्छरियमवुच्छ किमिच्छियं जस्स दितस्स ।। ८८॥ चित्ताइमट्ठमीए महया महयामि गिहिरे जंमि । के के न बुहा विबुहा महिमं महिमंडले कासी ॥८९॥ सो जयउ दुविहमोणो अजो अब्जे जणंतुऽणजेवि । कइया पुण दच्छामो तं तिजइंदं तिजयभाj॥९० ॥ तेण अदेवावि जणा देवाविव दिवरिद्धिगो विहिया | होऊ तया य सयाविहु नमो नमो नमिरअमराय ॥११॥ तत्तो तत्ततवाओ हुत्था सत्थावि | अत्थ सुकयस्था। तस्सेव किंकरा मो दासा पेसा य मिच्चाय ॥९२॥ तमि छउमत्थवत्थे विहरते महियलं पवित्र्तते । वरधम्मकित्ति पत्ता होउ सुभची सया अम्ह ॥ ९३ ।। इय सत्तविभत्तिविभत्तिभत्तिभत्तीह संथुओ रिसहो । वियरउ संपइ संपइ सयावि भर्ति | गयविभत्ति ॥ ९४॥ पृ. ९५-९६ ९२॥ For Private And Personal Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Man Aradhana Kendra www.kobatirth.org इओ य-मह निव्वाणनिसाए गोयम ! पालयनिवो अवंतीए । होही पाडलियपहू सो असुअउदाइनिवमरणे ॥ ७० ॥ पालइरजं सट्ठी पणपण्णसयं नवण्ह नंदाणं । नवमोरीणऽसयं तीस वरिस समित्तस्स || ७१ ॥ बलमित्तभाणुमित्ताण सट्ठी नरवाहणस्स चालीसा । तेर निवगद्दभिल्लो कालय आणीयसग चउरो ।। ७२ ।। सुन्नमुणिवेयजुत्ता जिणकाला विक्कमो वरिस सट्ठी । धम्माइच्चो | चत्ता भाइल सगवीस नाहडे अट्ठ ||७३|| तह धुंधुमार तीसा लहुविकमाइच बारसय वरिसे । दस बुद्धमित्त अंधो हैहयवंसी असी भोओ ||७४ || इत्यादि । पृ. १२१ श्रीदे० चैत्य०श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥ ९३ ॥ Acharya Shri Kailashri Gyanmandir साधुः श्रावको वा चैत्यगृहादावेकांते प्रयतः परित्यक्तान्यकर्त्तव्यः सकलसच्चानपायिनीं भुवं निरीक्ष्य परमगुरुप्रणीतेन विधिना त्रिः प्रमृज्य च क्षितितलनिहितजानुयुगलः करकमलसत्यापित योगमुद्रं प्रणिपातदंडकं पठतीति पृ. १३३ अरिहंतचेइआणमित्यादिदंडकपाठेन जिनबिंबादिस्तवनं जिनमुद्रया, इयं च पादाश्रिता, दंडकानामपि स्तवरूपत्वात्, मुद्राऽप्यत्र संगतैव सा च हस्ताश्रिता, अत उभयोरप्यनयोर्वदने प्रयोगः। पू. १३४ For Private And Personal योग तं प्राज्यराज्यकमला कमलीकरोति, तस्मै सदा स्पृहयति त्रिदशासुरश्रीः । तस्येन्दुकाश कुसुमोज्ज्वल पुण्यराशेरद्वैतसौख्यपदवी न दवीयसी स्यात् ||६|| ( प्रत्यन्तरे- पंचांगभंगमतिरंगभरं नमेयो, निःसंगिनं जिनमनंगजितं समंतात् । स स्यादिह त्रि| जगताऽपि सदा नमस्यस्तं प्राज्यराज्यकमला कलयत्यवश्यम् ||१|| दौर्गत्यदुःखतरुखंडमखंडितेन, तस्मै सदा स्पृहयति त्रिदशासुरश्रीः । तस्माद् द्रुतं द्रवति रौद्रदरिद्रमुद्रा, तस्य प्रकर्षपदवी न दवीयसी स्यात् ॥ २ ॥ उपयुक्तस्थानानि ॥ ९३ ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mara Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥ ९४ ॥ www.kobatirth.org (प्रत्यन्तरे - चिंतर सीहोsवरेण किं ? || ६४ || जं न रसाइ ठियं मे तह दुलहं लद्धमिण्हि लद्धव्वं । जिणपयवंदणमसमं अहरियचिंतामणावगुणं ॥ ६५ ॥ भणियं च - एकाऽवि जा समत्था जिणभत्ती दुग्गई निवारेउ । दुलहाई लहावेउं आसिद्धिं परंपरसुहाई ।। ६६ ।। पत्र २०१ विस्तरार्थिना नवकारपटलसिद्धचक्रबृहनमस्कारफलादीन्यवलोकनीयानि पत्र २१८ वाचनांतराणि त्वर्थसांगत्याभावेन यादृच्छिकान्येवेति मत्वापेक्षितानि पत्र २१८ Acharya Shri Kailash Gyanmandir ( प्रत्यन्तरे स्वियं व्याख्यैवं - एवं साक्षात्समासन्नभावाचार्यसद्भावे क्षमाश्रमणपूर्व जिनबिम्बाद्यन्यथाऽऽपृच्छथ ईर्यापथिकी प्रतिक्रमणीया, न तु तद्विनाऽपि पत्र २६१ - २६२ इदानीमपि येनासादितभावाऽर्हत्पदा वर्त्तन्ते, छन्नस्था इत्यर्थः प्रभूतदेवगृहादौ वा अधिकाऽपि ( चैत्यवन्दना ) पत्र २३६ REERS RASVARESERVA SMERES VRUGACHEREREREREDERERERUNNER CHERYLE CAURORARY इति श्रीसंघाचार भाष्यापरराभिधानसंघाचारविधेरुपक्रमः। HARVACE MAY BAYANA CARRY EASYSHARE A VERS For Private And Personal उपयुक्तस्थानानि ॥ ९४ ॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kail u ri Gyanmandir HindiM HILIANRAINPURNALITANIUPARHI तपोगच्छधुरन्धरश्रीदेवेन्द्रसरिसूत्रितं चैत्यवन्दनभाष्य श्री मदन्तेवासिश्रीधर्मघोषसूरिसूत्रितविवरणवृतम् । श्रीसङ्घाचारभाष्यम्। a nipilimmalnHIrritaSIHIKHealingame NEPARATIOName MARPAuma (संघाचारटीका) देवेन्द्रवृन्दस्तुतपादपद्मः, स्वर्भूर्भुवःश्रीवरकेलिसन । संदेहसंदोहरजासमीरः, स वः शिवायास्तु जिनेन्द्रवीरः ॥१॥ चैत्यमुनिवंदनप्रभृतिभाष्यविवृतेर्यथाश्रुतं किंचित् । सङ्घस्याचारविधिं वक्ष्ये स्वपरोपकाराय ॥२॥ HIMIRENITIONalilaintena TAMARHIANummyRAI ADIMPAIIMILANIMAR For Private And Personal Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila l i Gyanmandir उपक्रमः श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचार विधौ ॥ २ ॥ नुभवादिसकलसामग्रामसतरणप्रवणप्रवहणसधर्मसद्धर्मविधानलकाददशनिदर्शनदुष्पापां ) mammUHREPARATOPemunMRUMENTRIAN इह हि दुरन्तानंतचतुरंतासारविसारिसंसारापारपारावारे निमजता भव्यजन्तुना जिनप्रवचनप्रतीतचोल्लकादिदशनिदर्शनदुष्पापां कथमपि प्रशस्तसमस्तमनुजजन्मादिसामग्रीमवाप्य भवजलधिसमुत्तरणप्रवणप्रवहणसधर्मसद्धर्मविधाने प्रयत्नो विधेयः, यदवादि"भवकोटीदुष्पापामवाप्य नृभवादिसकलसामग्रीम् । भवजलधियानपात्रे धर्मे यत्नः सदा कार्यः॥१॥" तत्रापि विशेषतः परोपकारकरणे प्रवर्तितव्यं, तस्यैवान्वयव्यतिरेकाभ्यामपि पुण्यबंधनिबंधनत्वात् , उक्तं च" संक्षेपात् कथ्यते धर्मों, जना! किं विस्तरेण वः । परोपकारः पुण्याय, पापाय परपीडनम् ॥१॥" सचोपकारो द्वेधा-द्रव्यतो भावतश्व, तत्र द्रव्योपकारो भोजनशयनाच्छादनप्रदानादिलक्षणः, स चाल्पीयाननात्यंतिकश्च, ऐहिकार्थस्यापि साधने नैकांतेन साधीयानिति, भावोपकारस्त्वध्यापनश्रावणादिस्वरूपो गरीयान् आत्यंतिक उभयलोकसुखावहश्चेत्यतो भावोपकार एव यतितव्यं, स च परमार्थतः पारमेश्वरप्रवचनवचनोपदेश एव, तस्यैव भवशतोपचितदुःखलक्षक्षयक्षमत्वात् , आह च"नोपकारो जगत्यस्मिंस्तादृशो विद्यते कचित् । यादृशी दुःखविच्छेदाद्देहिनां धर्मदेशना ॥३॥" स चोपदेशो यद्यपि उपदेष्टव्यभेदादनेकविधः तथापि चैत्यवंदनादिविषयः संघस्याचारविधिरेव प्रथमत उपदेश्यः, तस्यैवाहर्निशमवश्यानुष्ठेयतया प्रतिदिनक्रियत्वेनानुसमयोपयोगित्वात् , तथा च महानिशीथसप्तमाध्ययनसूत्रं-"से भयवं! किं तं पइदिणकिरियं ?, पइदिणकिरियं गोयमा! जणं अणुसमयं अहनिसं पाणोवरमं जाव अणुढेयवाणि संखिजाणि आवस्सगाणि, से भयवं! कयरे ते आवस्सगे?, गोयमा! चिइवंदणादओ" इत्याद्यागमाद् विनिश्चित्य बहुविस्तरातिगंभीरपूर्वभाष्यचूादिग्रंथोकप्रतिदिनावश्यकृत्यचैत्यवंदनाद्याचारविधिस्वरूपावगमविधिनिर्णयासमर्थान् दुषमादोषादयंतं तथाविधायुर्मेधादिबलसामग्रीविकला For Private And Personal PAHIRAINIK Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चै स्यश्रा धर्म ० संघाचार विधौ ॥ ३ ॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassarsi Gyanmandir निदंयुगीनलोकानवलोक्य तदनुग्रहकाम्यया संक्षिप्ततरं सुखावबोधं आचारविधिनामकं शास्त्रं कर्तुकामः शास्त्रकारः आदावेव समस्तप्रत्यूहव्यूहव्यपोहाय शिष्टसमयपरिपालनाय चाभीष्टदेवतास्तुतिरूपमत्यंताव्यभिचारि मंगलं श्रोतृजनप्रवृत्यर्थमभिधेयं प्रयोजनादि च प्रतिपिपादयिषुरिमां भाष्यगाथामाह वंदितु दणिज् स चिइवंदणाइसुवियारं । बहुवित्तिभासचुण्णीसुयाणुसारेण बुच्छामि ॥ १ ॥ वंदित्वा वंदनीयान् सार्वान् सर्वज्ञान् सर्वान् वा समस्तान् चैत्यवंदनादिसुविचारं बहुवृत्तिभाष्य चूर्णि श्रुतानुसारेण वक्ष्यामीति पदसंस्कारः । तथा इह साधिकाद्यपदे मंगलं, द्वितीयेऽभिधेयप्रयोजने, उत्तरार्धे सम्बन्धश्च ज्ञातव्यः पदार्थः पुनरयं :- ' वंदित्वे' त्यत्र "वदुङ् स्तुत्यमिवादनयो' रित्यर्थद्वयाभिधायी धातुः, तत्र स्तुतिः गुणो कीर्तनं अभिवादनं - कायेन प्रणिपातः, ततश्चायमर्थ:वंदित्वा वचनेन स्तुत्वा कायेन च प्रणम्य, अनयोश्च प्रायः संज्ञिनां मनःपूर्विचैव प्रवृत्तिरिति मनसोऽप्याक्षेपः, ततश्च मनसाऽपि प्रणिधाय चेत्यर्थः, एतेन च करणत्रयनमस्काररूपभाववंदनेन वंदित्वा इत्यावेदितं भवति, न पुनः मनःप्रणिधानविधुरतथा वीरकादिवद् द्रव्यवंदनेन, तस्याकिंचिस्करत्वेनाविकलसकलफलाकलनविकलत्वात्, कानू वंदित्वेत्याह- 'सार्वान्' सर्वमतीतानागतवर्तमानकालभाविभावनिकुरंबं सकललोकालोकलक्षणलक्ष्यावलोकनकुशलविमलकेवलज्ञानावलोकबलेन करतलकलितनिर्मलामलकफलवत् समस्तभूतभवद्भाविगुणपर्यायैर्विदंति सार्वाः, सर्वज्ञा इत्यर्थः यद्वा सर्वेभ्यो- जीवाजीबादिपदार्थसार्थेभ्यो यथावस्थिता| वितथस्वरूपनिरूपणरक्षणादिना प्रकारेण हिताः सार्वाः - तीर्थकृतः तान् किंविशिष्टानित्याह- 'वंदनीयान्' स्तूयंते अभिवाद्यंते च भक्तिभरनिर्भरांतःकरणैः सुरासुरनरनायकगणैर्ये ते वंदनीयास्तान्, त्रिभुवनजनतानमस्यानित्यर्थः । एवं निखिलमुरसमूहशिरः For Private And Personal मंगलादीनि ॥ ३ ॥ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Slik yarmandir मंगलादीनि श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ शिखरभूतानां निःशेषातिशेषविभूषितानां भगवतां तीर्थकृतां सर्वस्वपरसंपत्संहतिसर्वस्वदेश्याः चत्वारोऽतिशयाः संसूचिताः, तथाहि-सर्व विदंतीति सार्वा इति व्याख्यानेन भगवतां त्रिकालवेदिनां ज्ञानातिशयः समुपलक्ष्यते, न हि निखिलाकल्पितभावकलापोपकलनकुशलविमलकेवलालोकविकलतया सर्ववेदित्वं सिद्धिसौधमध्यमध्यास्ते १।। अनेनैव च श्री वीतरागाणामपायापगमातिशयोऽपि प्रतिपाद्यते, तदविनाभावित्वात् केवलभावस्य, तथाहि-सर्वापायभूता हि रागादयः, अविषयशारीरमानसाधनेकदुःखलक्षोपनिपातहेतुत्वात् , ततश्च न यावद् रागद्वेषादिदोषापादननिदानभूतघनघातिकर्मचतुष्कात्यंतापगमस्तावन केवलं, न च तावत् सर्ववित्ता युक्तिघटाकोटिमाटीकते इत्यपायापगमातिशयाविनाभावी ज्ञानातिशय इति २॥ सर्वेभ्यो हिताः इत्यनेन तु तेषां | स्याद्वादवादिनां वचनातिशयः स्पष्टं निष्टंक्यते, न खल्वेककालानेकलोकशंसयसंदेहापोहसमर्थसमस्तनयस्तोमाभिमतसर्वसत्वस्वस्वभाषापरिणाम्यतिशायिवचनविशेषमंतरेण सर्वथा सर्वेभ्यः सर्वदोपकतुं शक्यते इति ३॥ वंदनीयानित्यनेन तु पूजातिशयः श्रीमदईतां सुप्रतीत एव, प्रशस्तसमस्तजगजंतुजातचित्तचमत्कारिपुरंदरादिसुंदरसुरनिकरविरचितप्रकृष्टाष्टमहाप्रातिहार्यादिप्रकारपूजोपचारस्य त्रिभुवनविभूनामहर्निशमवश्यंभावित्वादिति ॥ एते चत्वारोऽपि देहसौगन्ध्यादीनामतिशयानामुपलक्षणं, तानंतरेगैषामसंभवात् ,ततश्चतुस्त्रिंशदतिशयोपेतान् सर्वज्ञान् वंदित्वेति तात्पर्यार्थः,यद्वा वंदनीयानिति विशेष्यपदं, तत्र वंदन-नमनस्तव| नानुचिंतनादिप्रशस्तकायवाङ्मनोव्यापाररूपां प्रतिपत्तिमहन्तीति वंदनीयाः 'शक्तार्हे कृत्याचे (हैम-५-४-३५)त्यर्हार्थेञानीया, | ते चाईसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधवः, अहंति चैते मुक्तिमार्गोपदेशप्रदाना? विप्रणाशबुद्धिजननरपंचाचारपरिपालनविनयविनयन ४ सहायकरणादि५ कारणैर्वन्दना, यदागमः For Private And Personal Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Jin Aradhana Kenda www.kobatirth.org Acharya Shri Kai u ri Gyanmandir श्रीदे. श्रीविजयनृपकथा चैत्यश्रीधर्म संघा चारविधौ MARATHI "मग्गे१ अविप्पणासोर आयारे३ विणयया४ सहायत्तं ५। पंचविहनमुक्कारं करेमि एएहिं हेउहि ॥१॥"ति भवंति हि प्रौढविशेषणादनुक्तेऽपि विशेष्ये विशेष्यप्रतिपत्तयः,यथा-'ध्यानकतानमनसो विगतप्रचाराः, पश्यंति यं किमपि निर्मलमद्वितीय'मित्यत्र ध्यानकतानमनस इत्यनेन योगिनः किमपि निर्मलमद्वितीयमित्यनेन तु परमात्मा च प्रतीयत इति, तान् | कियत इत्याह-'सर्वान्' निःशेषान् , समस्तक्षेत्रकालत्रयवर्तिनः पंचापि परमेष्ठिन इत्यर्थः, अथवा वंदनीयान् सिद्धिबुद्धिसमाधिविधानादिनिबंधनप्रत्यलतया प्रणिधानादियोग्यानहतासिद्धसाधुधर्मरूपान् चतुरः पंचमांश्च सम्यग्दृष्टिदेवतादीन् 'चउ वंदणिज जिणमुणिसुयसिद्धा इह सुरा य सरणिज्जा' इत्यत्रैवाधिकारितयाऽभिधास्यमानान् वंदित्वा, श्रुतोदितविधिक्रमेण स्मरणादिगोचरीकृत्य इत्यर्थः। तदेतावता निर्विप्रशास्त्रपारगमनाथं शिष्यप्रशिष्यपरंपरया च तत्प्रतिष्ठाथं मंगलमुक्तं, अहंदादिप्रणामस्य सकलाकुंशलजालसमृलोन्मूलकत्वेन भावमंगलत्वात् , यदभाणि भगवत्यां श्रीविवाहप्रज्ञप्त्यां-"एष पंचनमस्कारः, सर्वपापप्रणाशनः। मंगलानां च सर्वेषां, प्रथम भवति मंगलम् ॥१॥" तथा महानिशीथेऽपि-'तस्स णं सयलमुक्खहेउसंचयस्स न इटदेवयानमुक्कारविरहिए केई पारं गच्छेजा, इट्टदेवयाणं च नमुक्कारो गोयमा ! पंचमंगलमेव, नो णमन्नति,तचैवं-नमो अरिहं. ताणं जाव पढम हवइ मंगल मिति । तथाऽन्यत्रापि 'अहंतो मंगलं सिद्धा, मंगलं सर्वसाधवः। मंगलं केवलिप्रोक्तो, धम्मों मे मंगलं | सदा ॥२॥" तथा-'मम मंगलमरिहंता सिद्धा साह सुयं च धम्मो य । सम्महिटी देवा दितु समाहिं च मोहिं च ॥१॥ भवंति च | श्रीविजयनृपतेरिवाहवंदनादिना मंगलानि, तत्कथा चैवम् वित्तो ममुवलओ सुवेइओ सुविजनी सुवासहरो । सुनओ सुवाहिणीओ जंबुद्दीयुतथि मुनिवृत्व ॥१॥ तत्थथि सुभडखित्तं व HNDIANRAININARUITMIRMIREONE For Private And Personal Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kalahari Gyanmandir श्रीविजयनृपकथा श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ INEMAMALINIHITAMINAR भरहखितं बणावलीजुत्तं । तत्थ य गिरी सुविजाहरो वियड्ढो वियद्व ॥२॥ तदुवरि रहनेउरचकवालनयरंमि खयरनरनाहो । जलणजडी पयडीभृयजालमालाजलणतेओ ॥३॥ तस्सत्थि वाउवेया सुविवेयालंकिया महादेवी । पुत्तो य अक्ककित्ती सयंपभा नाम वरधूया ||४|| अन्नदिणे अभिनंदणजगनंदणनामया तहिं पत्ता। भवियाण समत्थअणत्थवारणा चारणा समणा ॥५॥ सुतवस्सियाण पूयापणामसकारविणयकजपरो । ब«पि कम्ममसुहं सिढिलेइ लघुति चिंतंतो ॥ ६ ॥ राया सुयाइसहिओ तत्थ य आगम्म सम्ममानम्म । मुणिणो उवविसइ तओ जिमुणी कहइ इय धम्म ।।७॥ "इह अस्थि विविहरिद्धीसिद्धिसग्गाइकारणं धम्मो। धम्मो महल्लमंगलवल्लिपल्लवणघणतुल्लो ।।८।। उल्लसिरनिरंतरअंतरायसंघायघायगो धम्मो। धम्मो य उदग्गसमग्गऽवंगकल्लाणकुलभवणं | ॥९॥ सयलसुहदाणपञ्चलनिच्चलसम्मत्तसुप्पइटाणो। सो सबदेसविरहप्पमेयओ पुण भवे दुविहो॥१०॥" इय सोउं तत्तनिच्छयदिट्ठी छड्डिय अवमिच्छत्तं । गिण्हइ सयंपहा संमरंमगिहिधम्ममइसंमं ॥११॥ तत्तो पणमिय मुणिणो सपरियणो नियगिहे गओ राया। दुरियभरतिमिरतरणी मुणीवि अन्नत्थ विहरित्था॥१२॥ कइयावि पवदिवसे सर्यपहा काउ पोसहं पुण्णं । तप्पारणए वंदित्त चेइए जाइ पिउपासे ॥१३॥ जपइ य ताय! एयं सेयं सेसं जिणिंदचंदाणं । गिण्हेह तयणु तेणवि पडिच्छिया पणयसीसेण ॥१४॥ उक्तं च वसुदेवहिंडीप्रथमग्वण्ड एकोनविंशतितमे लंभे 'सयंपमा कन्ना अभिनंदणजगनंदणचारणसमणसमीवे सुअधम्मा सम्मत्तं पडिवन्ना, अनया य पचदिवसे पोसहं अणुपालेऊण सिद्धाययणकयपूया पिउणो पासमागया-ताय सेसं गिण्हहत्ति, पणएण रत्ना पडिच्छिया सिरसत्ति" अह सुचरणं सुवयणं सुदंसणं नियसुअंनिएवि तहा। भणइ निवो सचिवाई भो कहह इमीइ वरमुचियं ॥१५॥अप्पाउआइ आसग्गीवाइ निवाइणो अवरसिटे। विणिवारिय दिवविऊ जंपइ संभिन्नमोउत्ति॥१६॥ इह-सेणिपहुत्तपओ भे पोयणपुरपहुसुओ अय For Private And Personal MINIMILIANSIPAHINILIPPAJIRAIMIMIRE AURANCHI MORE Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kcbafrth.org Gyanmandit Shri श्रीदे० चै- त्यश्रीधर्म संघाचारविधौ श्रीविजयनृपकथा % 3DHARAMPARLIAMummaNP INSamPISerpaliimamalTIANS Aradhana Kendra Acharya Shei लभाया । पहु! पदमअद्धचक्की बरो तिविट्ठो इमीइ वरो ॥१७॥ अविय-जक्खट्टसहस्सदुगुणनिवियरकन१६ वेस१६पुर १६देसे। अडयालकोडिसुहडे४८हय४२गय४२रह४२लक्खबायाले ॥१८॥ कब्बडमडंब बारससहसे दुतिगुणियपट्टणोच्चपुरे। अडवीसअंतरोयग पणवीस कुरज खंडतिगं ॥१९॥ अडयाल गामकोडी दोणमुहागरयखेडसंवाहा । सबगुणवम दसअडसगसहसे सोल नाडय सहस्से ।। २० ॥ तत्र-ग्रामो वृत्त्यावृतः स्यानगरमुरुचतुर्गोपुरोद्भासिशोभ, खेटं नद्यद्रिवेष्टं परिवृतमभितः कटं पर्वतेनग्रामैयुक्तं | मडवं दलितदशशतैः पत्तनं रत्नयोनि, द्रोणारव्यं सिंधुवेलावलयितमथ संबाधनं वाऽद्रिश्रृंगे॥२१॥ सगरयणवियद्धं लवणोयहिवासिणेगनागवई । छत्तीकयकोडिसिलो स सासिही जम्मभरहद्धं ।। २२ ।। उक्तं च-" चक्किद्धरिद्धिविलया चक्कधणुगयासिसंखमणिमाला । सगरयणा गरुलधया नीलतणू पीयवसण हरी ॥२३॥" तं सोउं जलणजडी सपरियणो गंतु पोयणपुरंमि । पथिअ तिविठ्ठणा तो मयंपह लहु विवाहेइ ॥२४॥ताह सुओ सिरिविजओजाओ अह उवरयंमि पियरे सो। अयलंमि गहियदिक्खे पवलपयावो कुणइ रज॥२५।। सो अन्नदिणे गोसे तोसेणं विहियसञ्जमजणओ।जणउबदसणेणवि पयाण पायडियगुरुहरिसो॥२६॥ हरिसमविक्कमबहुदंडनाहअणुणिज्जमाणवरमग्गो। मग्गणगिजंतामलजसजलभरभरियभुवणसरो ॥२७॥ सरभसपणमंतमहंतमंतिसामंतनियरनयचरणो । रणरसियनरो विव विहियपवरबहूकवयसंपगहो ॥२८॥ गहनाहो विव सययं बुहकविसूरगुरुजणाणुगओ । गयपुंगवुड | अणवरयं जो तिविहवरदाणसंवरिसी ॥२९।। रिसिमाणसं व निजियदुञ्जयअंतरविवक्खछवग्गो । वग्गंतसुहडहेसंततुरयगअंतगयनिवहो ।।३०।। बहमाणो जिणणं हिअए विहडियअसेसअहिअन्यो। अत्थाणे उबविट्ठो पिच्छणयं जाव पिच्छेइ ।। ३१ ।। ताव | सहमत्ति वित्ती चामीयरदंडमंडियकरग्गो। पविमिय अत्थाणमहं नमिअ निवं विन्नवइ एवं ॥३२।। पहु सिअवत्थो पुत्थियहन्थो DamINITIANITARIRISTIA For Private And Personal NE Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Sheik h Gyarmandir श्रीदे० | चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ | ॥ ८ ॥ RAMA HLESBPMARATRAILERDINITION Ansan नेमितिओ तिकालविऊ। चिट्ठइ बारे मे दसणुस्सुओ मुच्चउ न वत्ति ? ॥३॥ मा मुअसु जंपइ निवो कोऽवसरो तस्स पिच्छणे | श्रीविजयअत्थ?। नय सोहइ वेयझुणी वाइज्जतीइ वीणाए|३४|| मंती विनवइ इमं मिल्हावसु सामि! जंतिकालन्नू । दीसइ न कोऽवि नृपकथा इह पिच्छणं तु अणिसं पहुपसाया ॥३५।। तो मुयसुत्ति निवुत्ते मुक्को सो वेत्तिणा तहिं पत्तो। मंतुच्चारणपुर्व उवविट्टो उचियठाणंमि ॥३६।। मग्गेउमागओ किं? अक्खेउं किंपि वा तुम इहयं । इय सायरं निवेणं भणिओ सो आह पयडमिणं ।। ३७ ।। जीवामि जाइएणेव जइवि निव! जाइउं तहवि किंपि । तुम्ह सयासाउ नेव संपयं संपयं अम्ह ॥३८|| सकिजइ अक्खेउं नजं तयं अखिउं इहायाओ।नायंभि पडीयारो कहंपि रोगुव जंहोइ ॥३९॥ मा संकमु किंपि इहं भण वीसत्थो तए जमिह नायं । इइ निवइअणु-10 नाए जंपइ नेमित्तिओ तत्तो ॥४०॥ पोअणपुरेसरोवरि इओ दिणा सत्तमे दिणे विजू । मज्झंदिणे पडिम्सइ नायमिणं मे निमित्तेण ॥४१॥ तो कुविओ जुबराया तल्लहुभायाऽऽह त विजयसेणो । किं नाम तमि दिवसे तुब्भुवरि पुण पडिस्सिहिइ ? ॥४२॥ ओएह असंबद्धपलाविरस्स निमित्तिआहमस्स कहं । जीहाए चवलतं ठाणे एयंमिवि इमस्स ॥४३॥ नेमित्तिओ पयंपइ मं पइ मा कुमर! कुण मुहा कोवं । ज मह न भावदोसो सुनाणदिटुं कहतस्स ॥४४॥ अविय-पवरोविहु दिवन्नू दिवं सकेइ नेव रक्खेउं । जं भाविस्सुहअसुहं तं पुण सो कहइ अवियप्पं ॥४५॥ किंच दिवसंमि तंमी सकारपुरस्सरं ममं पडिही। आभरणवत्थमाणिकजायरूवाइवरखुट्ठी ॥४६॥ एयस्स वरवरस्स व जहत्थकहणा महोवयारिस्स । मा कुप्पसुत्ति कुमरं भणिय निवो भणइ नेमित्तिं ॥४७॥ सिक्खियमिमं निमित्तं कत्थ तए? जं निरत्रए वयणे । सद्धा न होइ खलु पच्चयं विणा अह भणइ सोऽवि ॥४८॥प पवजंतेणं सह अयलबलेण सारही तस्स । मज्झ पिया संडिल्लो पदइओऽहंपि पिइमोहा ॥४९॥ सवं निमित्तजायं तं एवं सिक्खियं मए तइया। जिणसमएच्चिय ॥ ८ ॥ । For Private And Personal Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ShriM h www.kobatirth.org Gyanmandir श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी MEDIAnsan S श्रीविजय MISIIMSHINA IIIMa नृपकथा mami Aradhana Kendra Acharya Shri Kailah नाणं जं अवभिचारि न अनत्थ ॥५०।। अट्ठविहंपि निमित्तं नरिंद! जाणामि अविप्तहं एयं । लाभारलाभ२ सुहा३ सुह४ जीवियरमरणद जय विजयत्ति८ ॥५१॥ लक्खण१ दिव्वुप्पायं३ तलिक्ख४ भोमं५ ग६ वंजण सरं च८ । पउम१ रुयणु२ क३ तडि४- कंप५ फुरणतिलग७ सऊणाई८ तयं ।।५२।। संपत्तजुवणोऽहं विहरंतो अभया गओ नयरे। पउमिणिसंडंमि हिरण्णलोमिया पिउसिया तत्थ ॥५३॥ तीइ सुया चंदजसा पुचि दिना उ सा मह तयं च । दळुरागाउ मए चइऊण वयं परिणयाऽऽसी ॥५४॥ संपइ सकञ्जसिद्धिं नाउ निमित्तेण इममणत्थं च । इह आगओ नरेसर! जं जुत्तं तं करिज लहुं ॥५५॥ अह मंतिजणे तक्खणनिवरक्खणआउले भणइ एगो। ठाउ पहू सत्ताहं महन्नवे नावमारुहिउं॥५६॥ विइओ भणइ न एअं रुचड़ मे तत्थ जं पडंति तया। को वारिही? वियद्दे ता गंतुं चिट्ठउ गुहाए ॥५७।। जेण इमाए ओसप्पिणीह सुम्मइ कयाइ नहु तत्थ । विज्जुनिवाओ नागिंददिनविजाणुभावाओ ।। ५८ ।। तइओ भणइ इमंपिहु जंकिंचि जओ अवस्सभावी जो। अत्थो जत्थ व तत्थ व न अन्नहा होइ इह नायं ॥५९॥ इह भरहे विजयपुरंमि रुहसोमो दिओ पिया तस्स । जलणसिहा ओवाइयसयजाओ नंदणो उ सिही ।।६०॥ | तत्थऽनया निसियरो अइकूरो कोवि आगओ सो उ। बहुमाणुसाणि हणिउं थोवं भुंजइ चयइ बहुअं॥६१। भणिओ निवेण सामेण सो मुहा कि बहुं दणसि मणुए। सीहाइणोऽवि पसुणो हणंति छुहिआजमेगजिअं॥६२।। तुहविकिकं दाहं माणुसमणिसंति सोऽवि मन्नइ तं । कारद निवोऽवि नयरे पइदिह नरनामगोलाई ॥६३।। कुमरिकरेणं गोलो कड्ढिजतो उ निस्सरइ जस्स । जाइ स पुररक्खत्थं भक्खत्थं रावसस्स तओ।६४॥ निस्सरिओ गोलो सिहिदिअस्म तस्सऽग्नया य तन्नाउं । हा वच्छ! तुह विणा कह होहमहं ? रुअइ तम्माया ॥६५।। अह तम्गिहमासन्ने एग भूयगिहमत्थि सुमहंतं । तं मवणदुस्सवं तीइ रोइ सुणिय ते भूया ॥६६॥ - Salmanline GANIPRITHILABILITARA ९॥ For Private And Personal Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kailash Gyanmandir श्रीविजयनृपकथा श्रीदें - त्यश्रीधर्म संघाचार विधौ ॥१०॥ जायदया तं पभणति रुयसु मा तत्थ जाउ तुह पुत्तो। तुह पासे आणिजामु रक्खससगासाओवि इमं ।। ६७ ।। इन ववत्थालोवुत्ति भणइ सा साहु साहु हे देवा! । जा ताव सया रक्खेहि रक्खसस्सऽप्पिओ नेव ॥६८॥ जा भक्खिस्सइ तं सो अवहरिउ तेहिं | अपिओ ताव । तीह जणणीऍ तीइवि भीयाइ भयं नियंतीए ।। ६९ ।। संगोविओ गुहाए गसिओ मो अयगरेण तत्थ ठिओ। तम्हा न भवनासो एयस्स भवे कहिंवि कथविय ॥७०।। नवरं इमो उवाओ अरिहाईपूअणाइयं धम्म । सबे करेह जंसो तुरिअं अवहरइ कुणइ सुई।।७१॥ भणिअंच-"गहपीडामारीदुनिमित्तदुस्सउणपमुहदोसगणा। अरिहाइवंदणाहिं नूणं सिग्धं उवसमंति॥७२॥" तथा-सवे नाव पमत्था सुमिणा सउणागहा य नवत्ता। तिहुअणमंगलनिलयं हिअपण जिणं वहंताणं ॥७३॥ मंती भणइ चउत्थो एमेव इमं परं इहऽन्नपि । जत्तरं विहिजउ जत्तबहुत्ते हि नहु दोसो।।७४||ता सत्तदिणे अनो ठाविजउ अहिवई इई तत्थ । अमणिनिवाए दुरिअंजाइ खयं जेण लहु पहुणो॥७५।। किंच-नेमित्तिणावि इमिणा पोअणपुरअहिवइस्स उबरािम्म । भणिओ असणिनिवाओ न उणो सिरिविजयनरनाहे ॥७६।। भणइ निमित्ती मंतिवर! ते मई मह निमित्तओ अहिया। ता लहु कुण कजमिणं चिट्ठर राया स धम्मपरो ।।७७॥ जंपइ निवई संपइ जो गजे सिञ्चए अहह तस्स । पाणविणासं चिंतेमि निरवराहस्स कह महयं?।।७८|| जओ-आसक्काओ आकीडयाओ पाणीण दुचया पाणा । तो कह नरमरणकरंति जुजए मह इमं काउं?॥७९॥ अविश्र अनेमि पाणीणं ताणकरणिकमवया गरुआ। अम्हे उ कह मजीविअकए परं पाणिणं हणिमो।।८०॥ युवराजा-आत्मानं सर्वतो रक्ष्य, प्राहुर्धमविदो जनाः। यदिदं चैव शरीरं, धर्मास्याद्यं हि माधनम् ।।८१॥ जीवन् भद्राण्यवानोति, जीवन् पुण्यं करोति च । मृतस्य देहनाशोऽस्ति, धर्मव्युपरमस्तथा ।। ८२ ॥ इय जुत्तिजुनमुत्तोऽवि गहा जा न मनइ निवो सो। ता विनवह For Private And Personal LISTHAN HalNUAR KUSHILITARTIMIL ॥ १०॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Wi n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kaik Gyanmandir MISS श्रीदे. सुबुद्धी विसुद्धचउबुद्धिमणिसिंधू ॥ ८३ ।। पहु दुगमवि काहमिमं जहऽणत्थखओ न यावि जीववहो । इय पुण सचिवेणुत्ते || श्रीविजयचैत्यश्रीभणइ निवो घडइ कहमेयं ।। ८४ । साहइ सचिवो सामि! सिबउ रजंमि इह धणयपडिमा । सत्ताहं सेविस्सइ तंपिव तमिमो नृपकथा धर्म० संघा-A जणो सबो ॥८५॥ दिवणुभावा दुरिअं न होइ जइ कंचणं सुरहि तत्तो। तम्भावे पडिमक्खय पहुरक्खा नविय जीववहो ॥८६॥ चारविधी जुत्तंति ठविउ रजे तं तह कारेतु चेइएमु महं । कयसेयं सेयंसं देवं वंदइ इय थुईहिं ।। ८७ ॥ "अस्सेयदेविं दलियंचमुत्ती, सेजंसमेयं मुयधम्मकीति । करिस्मेयं जमिहं अविजाणंदोलगिण्हपि तमन्ज! कुजा (१)।। ८८ ॥ प्राग् शय्याधिष्ठात्रीमश्रेयस्कारिणी दुष्टदेवी दलयित्वा-तच्छय्योपविशनेन वित्रास्य अंबेव माता-मूर्तियस्य गर्भस्थितत्वात् सोचमूर्तिः अर्य!-स्वामिन् ॥ जे धम्मकित्तिसिवसंतिविमुत्तिविजाणंदप्पयाणपणिहाणविहाणमजा। देविंदविंदपरिविंदपयारविंदा, ते मुत्तिजुत्तिमिह दिंतु जिणिंदचंदा (२)॥ ८९ ॥ तेसिं सप्पुसधम्मकीत्तियमिणं देविंदचकित्तणं, संपुण्णेसरियाइसाहणगुणं लोगुत्तमुकित्तणं । विजाणंदपहाणमुनिपयवीसंपायणं सबया,झायंतीह जिणिंदचंदवयणं जे सव्वया सवया (३)॥९०॥ शष्पं-बालतृणं । निच्चं देविंदमूरी जियमइविहवा जे मुयंगीइ नाम, झायंता हुंति सत्ता तमतिमिरमिया धम्मकित्तिल्लयं तं । जंपारीणत्तणंभो धिवियइ अइरा सबसत्थुत्तमाणं, विजाणंदे व एमा जिणवरवयणे भत्तिराणं नराणं (४ ॥ ९॥" चिइवंदणाइ सेयं इय काउं जाइ तिविहसेयमई । सत्ताहपोसहं कुणइ दम्भसंथारगो गया ।।१२।। भणियं च वसुदेवहिंडीए-सिरिविजओऽवि दन्भसंधारोवगओ सत्तरत्तपरिचत्तारंभपरिग्गहो बंभयारी संविग्गो पोमहं पालेड"त्ति, वटुंति मंतिणो नियनिवड वेसमणजक्खपडिमाए। नाहंतरेऽवि जति हि धीमंतो सामिखेमत्थं ॥९३॥ पंचपरमिट्टिवरमंतसुमरणापभिधम्मझाणमि । अल्लीणो नग्नाहो मुहेण वोलेइ दिवसाई ॥२४॥ अह मत्तमंमि दिवसे मज्झण्हे ||११॥ IHIRaatlimnanimuanialisa mamimraimussumanmilamma Pani Nawwam RIPETHIN HINutty animal in For Private And Personal Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Nabin Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥ १२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashauri Gyanmandir वाइ उत्तरो पवणो । कच्चोलयमुहमित्तं समुच्छियं अग्भखंडं च || ९५ || नेमित्तिओ पपइ उत्तरओ नियह अब्भयं लोया !। पच्छाइस्सइ गयणंगणं इमो पलयमेहुब ||९६ || जहर पसरइ पवणो तह तह पसरेह मेहखंडंपि । ते नहयलपरिसक्कणमहमहमिगयाइ व कुणति ।। ९७ ।। भरियगिरिकंदरोदरधरविवरो झत्ति थणियसद्दोऽवि । फोडतो बंभंडं दिक्करडिरवु वित्थरिओ ||१८|| तडिदंडाडंबर निब्भरंतरं तक्खणे जयं जायं। पलयानलजडिलविलोलजालमालाकवलियंव ।। ९९ ।। मेहाउ तडियदंडो जमदंडिव कडयडत्ति कुणमाणो । पडिओ रजधुरंधरधुरीकए तंमि जखंभि || १०० || तस्स सयं चिय जाया तस्स उ नेमित्तियस्स उवरिंमि । अंतेउराइविहिआ रयणाभरणाइवरवुट्टी ||१०१ || पारितु पोसहं करिय जिणमहं पारणं विहिय रन्ना । नेमित्तिओ विसिट्ठो दाउ पुरं | पउमिणीसंडं || १०२ || आवयबंधुत्ति निवेण कारिया मणिमई धणयपडिमा । सामंताईहिं तहा नयरंमि महूसको रम्मो ॥१०३॥ गणगणविवरविसारि सवणसुहकारि अह समुच्छलिओ । जयसद्दपंचमो तकूखण झुसिराणद्धतूरवो ।। १०४ ।। किमिति संभमुब्भंतलोयणा जा जणा नियंति नहं । दसदिसिपयासयंतं विमाणमिक्कं पलोयंति || १०५ || अब्भुडिओ विमाणा ओयरिओ अमि यतेयखयरिंदो । नियमायसयं पहभाय अक्ककित्तीसओ राया || १०६ ॥ सनिवस्स सजोइपहा काउ पियं नियससासुताराए। सिरिविजयं तद्दिन्नासणो य पुच्छे इय हिडो ॥ १०८ ॥ नेव वसंताइमहो न पुत्तजम्मो नरिंद ! तुज्झ तओ को उस्सवं करेइ य सिरिविजओ कह तो सवं ।। १०९ ।। तं सोउ अमियतेओ वत्थाभरणाइएहि सिरिविजयं । सकारिय कवि दिणे तत्थ य ठाउं गओ सपुरं ||११|| देवेन्द्रादिनमस्कृतानथ नृपः स्तौत्यर्हतः सिद्धसविद्यानंदसुखाद्यनंतकविधान् सिद्धान् समृद्धान् शुभैः । आचार्यान् श्रुतधर्मघोषणगुणान् स्वाचारचारून् सदोपाध्यायान् यतधर्मकीर्तितविधेः साधून् समासाधकान् ॥ १११ ॥ इय सिरिविजओ राया For Private And Personal श्री विजयनृपकथा ॥ १२ ॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Site Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shik ri Gyarmansit श्रीदे प्रस्तावना शेष चैत्यश्रीधर्म संघा चारविधौ ॥१३॥ HINBI जिणाइपणिहाणपत्तकल्लाणो । इय दसममवे संतिस्स गणहरो होउमिह सिद्धो॥११२॥ श्रुत्वेत्यहो श्रीविजयस्य धर्माद्विघ्नोपशान्त्या बहुमंगलानि । कल्याणकानां जिनवंदनादौ, मंगल्यभूते कुरुत प्रयत्नम् ॥ ११३ ॥ इति श्रीविजयनृपतिकथा ॥ __ इत्थं च कृतमङ्गलोपचारः शास्त्रकारः क्त्वाप्रत्ययस्योत्तरक्रियासव्यपेक्षत्वात्तामाह-वक्ष्यामि-मणिष्यामि, क:-'चैत्यवंदनादिसुविचारं,' तत्र चित्तं-प्रस्तावात् प्रशस्तं मनस्तद्भावः चैत्यं, तद्धेतुत्वात् जिनबिंबान्यपि चैत्यानि, कारणे कार्योपचारात् , तेषां वंदनापूर्वोक्तशब्दार्था चैत्यवंदना, उक्तं च-"चित्तं मणो पसत्थं तम्भावो चेइयंति तजणगं। जिणपडिमाओ तासि बंदणमभिवायणं तिविहं | ॥१॥" या चितेः-लेप्यादिचयनस्य भावः कर्म वा चैत्यं, तच्च संज्ञादिशब्दत्वाद् देवताप्रतिबिंबे प्रसिद्धं,चूर्णी तु 'चिती संज्ञाने काष्ठकादिषु प्रतिकृतिं दृष्ट्वा संज्ञानमुत्पद्यते यथार्हदादिप्रतिमैपे'त्युक्तं,शेषं प्राग्वत् ,ननु भावार्हदादीनामप्यत्र वंदना क्रियते तत्कयं चैत्यवंदनेत्युच्यते ?, सत्यं, प्रायेणास्याश्चैत्याग्रे करणात , तथाच बृहदभाष्यं-"भावजिणप्पमुहाणवि सबेसिवि जइवि बंदणा तहवि । | ठवणाजिणाण पुरओ कीरइ चिइबंदणा तेण ॥१॥१२॥ जिणबिंधाभावे पुण ठवणागुरुसक्खियावि कीरंती। चिइवंदण च्चिय इमा तत्थवि परमिट्ठिठवणाउ ।।२।।१३।। अहवा जत्थ तत्थ व पुरओ परिकप्पिऊण जिणविंबं । कीरइ बुहेहिं एसा नेया चिहवंदणा तम्हा ॥३॥१४॥" आदिशब्दात् गुरुवंदनाप्रत्याख्यानादिपरिग्रहः, तेषां सुविचारः, तत्र सुष्टु-शोभनो बहुशास्त्रसारार्थसंग्रहतया तभिष्पन्नतया च स्वल्पप्रज्ञानामपि सुखेन पठनावबोधादिनिबंधनत्वात् सकलसंघस्य प्रतिदिनावश्यकरणीयतया सदोपयोगित्वाच्च विचारो-विधिस्वरूपादिकथनं चैत्यवंदनादिमृविचारः, एतेन च प्रेक्षावत्प्रवृत्यर्थमभिधेयनिर्देशः कृतः, एतदुक्तौ हि शास्त्रश्रवणादिप्रवृत्तः, उक्तं च-"श्रुत्वाऽभिधेयं शास्त्रादौ, पुरुषार्थोपकारकम् । श्रवणादौ प्रवर्तते, तज्जिज्ञासादिनोदिताः ॥१॥" अनेनैवात्र बहुशास्त्रसारार्थसंग्रहज्ञापक- | IMUANTITARAINILIUMINANDANILIPolitin A maile maniRIHIN T ERNATRINAGIRIma muliliHPURPRISTDPMIMILAIMER tawril HollantINHAIR URUITAROUNTAIN |॥१३॥ ammam HIRINTERN For Private And Personal Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri f in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Siri Kail a rcuri Gyanmandir प्रस्तावना शेष श्रीदे. | चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ । ॥१४॥ MAHINDIBHITAmathm MUMBAIRITUALIGURARIAILY मुशब्दविशेषिततया सूत्रकृत प्रयोजनमपि दर्शयति, तद्विना सर्वस्यापि विवेकिनः सर्वत्राऽप्यप्रवृत्तेः, न्यगादि च-"प्रयोजनमनु- द्दिश्य, न मन्दोऽपि प्रवर्तते । एवमेव प्रवृत्तिश्चेच्चैतन्ये नास्य किं भवेत् ॥ १॥" तच्च शास्त्रकर्तृश्रोत्रोरनंतरपरंपरभेदाचित्यं, तत्र शास्त्रकर्तुरनंतरं प्रयोजनं सत्चानुग्रहः,संक्षिप्तशास्त्रस्य सुखेन पठनपाठनादिना विस्तरशास्त्रपठनाद्यसमर्थसंक्षिप्तरुचिसच्चानामत्र प्रवर्त- | नात् , यत उच्यते-"सुयसायरो अपारो आउं थोवं जिआ य दुम्मेहा। तं किंपि सिक्खियत्वं जं कज्जकरं च थोवं च ॥१॥" परंपरप्रयोजनं त्वपवर्गप्राप्तिः,धर्मोपदेशदानस्य हि मोक्षफलत्वात् ,तथा चोक्तम्-"सर्वज्ञोक्तोपदेशेन, यः सचानामनुग्रहम् । करोति दुःखतप्तानां, स प्रामोत्यचिराच्छिवम् ॥१॥" श्रोतुश्चानंतरप्रयोजनं चैत्यवंदनाद्याचारविधिपरिज्ञानं, परंपरं तु तस्याप्यपवर्गप्राप्तिः, सम्यक्चैत्यवंदनाद्याचारविधिपरिज्ञातुः शुभभावभवनतो यथाविधि तत् समाचरतश्च सर्वकर्मक्षयेण निर्वाणनिबंधनत्वाद् , आह च-" चिइवंदणाइ सम्मं सोउं लहुकम्मयाइ काऊणं । निट्ठविअअट्टकम्मा सिद्धि पत्ता अणंतजिया ॥१॥" कथं वक्ष्यामीत्याह-'बहुवृत्तिभाष्यचूर्णिश्रुतानुसारेण' अत्र बहुशब्दः प्रत्येक संबध्यते,ततश्च बहव्यो वृत्तयः-टीका बहुसंस्कृताक्षरनिबद्धसूत्रादिविवरणरूपा ललितविस्तराद्याःबहूनि च भाष्याणि-गाथानिबद्धमूत्रव्याख्यानरूपाणि एतबृहभाष्यव्यवहारभाष्यादीनि तथाच बहवश्चूर्णयः-प्रायः प्राकृताक्षरनिवद्धविवरणविशेषा एव एतत्पाक्षिकावश्यकादिसंबंधिन्यः, तथा श्रुतंसूत्रं गणधरादिकृतं, पंचसाक्षिकधर्मप्रतिपादनपरपाक्षिकसूत्रादि, नियुक्तयस्तु चतुर्दशपूर्वधरकृतत्वेन सूत्रत्वात् श्रुतग्रहणेन गृहीताः, उक्तंच-"मुत्तं गणहररइयं तहेव पत्तेयबुद्धाइयं च । सुअकेवलिणा रइयं अभिन्नदसपुविणा रइयं ॥ १॥" श्रुतकेवलिनेति-चतुर्दशपूर्विणा, अभिनेति-परिपूर्णाः, यद्वा गाथानिबद्धमत्रव्याख्यानरूपत्वात् नियुक्तीनां भाष्यग्रहणाद् ग्रहः, तेषामनुसारेण-तदुक्ता For Private And Personal HTTARATHIMITURAISHIBLINE RINISmes ॥१४॥ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org suri Gyanmandir प्रस्तावना शेष SAR Striphase in Aradhana Kenda Acharya Shri Kai श्रीदे विसंवादेन, यथा तेषूक्तं तथा तेभ्य उद्धृत्य अत्र भणिष्यामीति तात्पर्यार्थः।। एपामक्षराणि त्वग्रे यथाप्रस्ताव दर्शयिष्यामः। एतेन || चैत्यश्री च शास्त्रस्य गौरवमापादितं स्यात्, भवति ह्याधारविशेषादाधेयस्य गुणप्रकर्षविशेषो, जलादेवि क्षित्याद्याधारविशेषादिति, अथवा धर्म० संघाचारविधौ | श्रुतमिति-आकर्णितम् , अर्थात् गुरुसमीप इति गम्यते, इदमत्र हृदयम्-मूत्रनियुक्तिभाष्यचूादिभणितोऽपि चैत्यवंदनाद्यर्थो यथा गुरुभिर्व्याख्यातस्तथा वक्ष्ये, न पुनर्निजमत्या विकल्प्य, निजमतिकल्पितार्थानुसारेण हि शुद्धानुष्ठितस्यापि कष्टानुष्ठानस्या॥१५॥ ज्ञानकष्टानुपातित्वाद् , उक्तं च-"अपरिच्छियसुयनिहसस्स केवलमभिन्नसुत्तचारिस्स। सव्वुजमेणवि कयं अन्नाणतवे बहुं पडइ ॥१॥"अभिन्नत्ति-विशेपव्याख्यानरहितं, किंच-यदि सूत्रोक्तमात्रमेव कार्यकारि स्यात् तदाऽनुयोगोऽनर्थकः स्याद् , यदागमः"जंजह सुत्ते भणियं तहेव तं जइ विआरणा नत्थि । किं कालिआणुयोगो दिवो दिटिप्पहाणेहिं ? ॥८॥" एवं च गुरुपारतन्त्र्यप्राधान्यख्यापनातो ग्रंथकृता स्वमनीपिकापरिहार उक्तः, यद्वा 'व्याख्यानतो विशेषप्रतिपत्ति' रितिन्यायात् बहुशब्दः श्रुतशब्देऽपि संबध्यते, बहु श्रुतं येषां ते बहुश्रुताः ततश्च प्रभृतागमाः प्रधाना गीतार्थाः पूर्वसूरयः इत्यर्थस्तेपामनुसारेण, अयमर्थःयथा बहुश्रुतपूर्वाचार्यपरंपरया चैत्यवंदनादिविचारः समायातः तथा वक्ष्ये, बहुश्रुताद्यनुसारेण एव जीतव्यवहारानुपातितया | मोक्षमार्गानुयायित्वात , उक्तं च-"वत्तणुवत्तपत्तो बहुसो आसेविओ महाणेण । एसो अजीअकप्पो पंचमओ होइ ववहारो ॥१॥ वत्तो नामं इक्कसि अणुवत्तो जो पुणो विइयवारा। तइअट्ठाण पवत्तो भुपरिग्गहिओ महाणेण ॥२॥" तथा "मग्गो आगम| नीई अहवा संविग्गगुरुजणाइण्णो । उभयाणुसारिणी जा सा मग्गणुमारिणी किरिय ॥१॥"त्ति (धर्मरत्ने) एतदन्यथा व्याख्याने तु | | मार्गाननुयायितया स्वच्छंदतापत्तेश्च, उक्तं च निशीथकादशोद्देशके-" उस्मुत्तमणुवइट्ठ सच्छंदविगप्पियं अगणुवाई । परतत्तिपवत्ते मानामा MINSAJITENILAIMIMIRMISSINESS ॥१५॥ For Private And Personal Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka u ri Gyanmandir श्रीदे। प्रस्तावना चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥१६॥ तिंतिणे य इणमो अहाछंदो ॥१॥ एतच्चूर्णि:-उस्सुत्तं नाम सुत्नादवेयं, अणुवइह नाम जंनो आयरियपरंपरागयं, मुक्तव्याकरणवत् (५००) सीसो पुच्छर-किमन्न सो पलोइ, आचार्य आह-'स्वच्छंदविकल्पितं' स्वेन छंदेन विकल्पितं स्वच्छंदविकल्पितं च, अननुपाति न क्वचित् सूत्रेऽर्थे उभयो; अनुपाति भवति, ईदृशं प्ररूपयतीति, एतेन च प्रेक्षावत्प्रवृत्तिनिमित्त संबंधोऽपि प्रदर्शितः, तथा च तैरुक्तम्-" प्रेक्षावतां प्रवृत्यर्थ, फलादित्रितयं बुधैः। मंगलं चैव शास्त्रादौ, वाच्यमिष्टार्थसिद्धये ॥१॥" सच संबंधो द्विधा-उपायोपेयलक्षणो गुरुपर्वक्रमलक्षणश्च, तत्राद्यस्तर्कानुसारिणः प्रति, तद्यथा-वचनरूपापम्नमिदं माध्यमुपायस्तत्परिज्ञानं चोपेयं,गुरुपर्वक्रमलक्षणस्तु केवलश्रद्धानुसारिणः प्रति, स चैवं-अर्थतश्चैत्यवंदनादिविधिर्भगवता श्रीवईमानस्वामिनोपदिष्टः, सूत्रतस्तु गणधरैथितो, यदागम:-"अत्यं भासइ अरिहा सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं । सासणस्स हियट्ठाए तओ मुत्तं पवत्तई ॥१॥(आ.नि.)" ततश्चोजयिन्याः पुरुषपरंपरया कौशाम्ब्यां समानीतेष्टका इव जंबूस्वामिप्रभवप्रभृतिकेवलिश्रुतकेवलिदशनवपूर्वधरादिपूर्वाचार्यपारम्पर्येण समायातो यावदस्मद्गुरव इति, तथा चाहुर्दुष्षमांधकारनिमग्नजिनप्रवचनप्रदीपप्रतिमाः श्रीजिनभद्रगणिक्षमाश्रमणपादा विशेषावश्यके-'जिणगणहरगुरुदेसिय आयरियपरंपरागयं तत्तो। आयं च परंपरया पच्छा सयगुरुजणुद्दिढें ॥ १॥ उजेणीओ नीया जहिटगाओ पुरा परंपरया। पुरिसेहिं कोसंवि तहाऽऽगयं परंपरयत्ति ॥२॥" पारम्पर्यदृष्टान्तश्चायम्-अत्थिह वच्छाविसए मुणिव निजिअआससवरविसए। कोसंबी वरनयरी न अरीणं जत्थ विणिवेसो ॥१॥ अविय-तत्थाऽसि जणो चिंताउरोय सुकलाकलावकलगंमि । अलियपयंपणमूओ अलसो य अकजकरणंमि ॥२॥ पालेइ तत्थ रजं रखतो जिणमए सयाणीओ। णीयजणचरियरहिओ हिओ पयाणं पयानाहो ॥३॥ चेडगनरिंददुहिया जिणिंदपयपूयपूय For Private And Personal Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shril a in Aradhana Kendra www.kobaftirth.org Acharya Shri Kal i Gyanmandir परंपरायां मृगावती श्रीदे. चैत्यश्रीधर्मसंघा चारविषौ ॥१७॥ करकमला । सुइसीलालंकारा मियावई पिययमा तस्स ॥॥ जीसे सुकुमालाओ बाहुलयाओ सया न बुद्धीओ। अलियाणुगया वक्का य कुंतला न य समुल्लावा ।।५।। वरकुंडलाणि सवणासत्ताणि य न उण पिसुणभणियाणि । सुगुणेसु य बहुमाणो न रूबलावबजाई ॥६॥ अह अनया नरिंदो सबावसरंमि संनिविट्ठो सो। नियरिद्धीए गवं वहमाणो पुचई दुलं ॥७॥ भो देवाणुप्पिा ! मरबईण अमेसि अत्थितं किं। विज्जइन मज्झरजे? अह दओ भणइ देव! तुहं ॥८॥ वरसामिमंतिसुहिकोसरद्वदुग्गवलरूवसर्चगे। रजे न किंचि ऊणं एग मुत्तूण चित्तसह।।९।।तोमणसा देवाणं वायए पत्थिवाण सिझंति। अत्येण ईसराणं दुस्सज्झाइंपि कजाई ॥१०॥ आणता चित्तयरा तेऽवि तयं विभजिउं सह लग्गा । चित्तेउं अत्थि इओ चित्तयरसुओ तहिं सोमो॥११॥|| तस्संतेउरपासे दिन्नो भागो अहऽनया तेण । जालंतरेण दिट्ठो मियावईए पयंगुट्ठो॥१२॥ तो तेण निउणमइणा तीए रूवं निवत्ति रुइरं । नयणुम्मीलणऽवसरे पडिओ य ऊरुम्मि मसिबिंदू ॥ १३ ।। अवणिय तं पुण जावायरेण तं करइ ता पुणो पडिओ । इय | तइयंमिवि वारे पडिअंदटुं स चिंतेइ ॥१४॥ होअवमित्थ नूणं अणेण ता उवरमो इहं सेओ। निम्माया चित्तसहत्ति अह निवो तेहिं विनविओ ॥१५॥ तो निवई, चित्तसहं निरूवमाणो कमेण अइनिउणं । मसिबिंदुदसियं तं पिच्छेइ मियावईरूवं ॥ १६ ॥ | तं दण नरिंदो रोसवसायविरच्छिविच्छेहो । भालयलघडियभिउडी चिंतिउमेवं समादत्तो॥१७॥ एएण पावमइणा मम पत्ती धरिसियत्ति निभंतं । कहमन्त्रहा नियंसणमझगयंपि हु मुणिज मसं?॥१८॥ इयरम्मिवि परदारे अनायपरं परं निगिण्हामो । किं पुण | सए कलत्ते? एवं नाउंपिहु खमामो ॥१९॥ तो बझो आणत्तो चित्तकरा विंति नो इमो हणिउं। उचिओ लद्धवरो पहू कहं निबुत्ते भणति इमे ।।२०।। अत्थि पूरे सागेये संकेयनिकेयणे वरकलागं । संनिहियपाडिहारियसुरपिअजक्खगिहमीसाणे ॥२१॥ ॥ १७ ॥ For Private And Personal Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahin Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥ १८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashauri Gyanmandir पइवरिसं चिंत्तउं कीरह से उच्छवो हणेइ तओ । चित्तयरं कुणइ पुणो अचित्तिओ सो पुरे मारिं ||२२|| पाणभया चित्तयरा पलायमाणा तओ नरिंदेण । पुररक्खाइनिमित्तं ते विहिया एगसंकलिया ॥ २३ ॥ यतः - त्यजेदेकं कुलस्यार्थे, ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेद् । त्यजेद् ग्रामं जनस्यार्थे, (ग्रामं जनपदस्यार्थे) आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ||२४|| अह तेसि नाम पत्तेसु लिहिय छूढेसु मुद्दिए घडए । हिरे जस्स पत्तं सो चित्त तंमि वरिसे तं ।। २५ ।। अह एसो देव ! तहिं उवरयपियरो गओ कला गहिउं । एगसुयाए चित्तयरथेरियाए गिहंमि ठिओ ॥ २६ ॥ तीएवि निविसेसो दिट्ठो ससुआ इमो ससुयमित्तो । जाओ अ तंमि वरिसे थेरीसुयवारओ तो सा |||२७|| रोयह बहुप्पयारं अम्मो ! किं रुयसि णेण इअ पुट्ठा। भणड़ मम वच्छ! पुत्तो एगो अंधलगलट्ठिसमो ||२८|| सो संपयं जमगिहं वच्चिस्सह चित्तिऊण जक्खहिं । साऽणुत्ता सदयं मा रुअसु भलिस्समिह सवं ।। २९ ।। किं मे तुमं न पुत्तो अप्पाणं | नेमि वच्छ ! जं वसणे ? | इअ भणिरीइवि तीए चित्तमिमो आयर जक्खे ||३०|| एक्कोच्चिय वरविणओ अमूलमंत इहं बसीकरणं । किं पुण तबस्सहाओ ? ता जइअवं मए एत्थ ।। ३१ ।। इअ चिंतिय छट्टतवं काउं तह बंभचेरमाड वयं । पहाउं मुई नियंसइ सियसदसाहयव सणजुअलं ।। ३२ ।। येनाभीष्टदेवतार्चायामन्यैरप्य पवित्र वस्त्रपरिभोगः प्रत्यषेधि, तथाहि -कटिस्पृष्टं च यद्वत्रं, पुरीषं येन कारितम् । मूत्रं च मैथुनं चापि तद् वस्त्रं परिवर्जयेत् ॥ ३३ ॥ चंदणचच्चियपाणी मुहकोसं चारु काउमट्ठपुर्ड । कलसेहिं नवेहिं तयं हवित्तु पुष्फे हिं पूत्ता ||३४|| काउ नवं कुच्चगमलगाइयं असुई वजलेवाई | चहउं पवरेहिं वण्णगेहिं तो चित्तए जक्ख ||३५|| अह चित्तसमत्तीए परेण विणएण एस पयवडिओ । सप्पणयं सबहुमाणं जक्खं विन्नवइ एवं तु || ३६ || देव ! सुरप्पिय ! को तुज्झ चित्तकम्मं विणिम्मिउं तर । अचंतं निउणोऽविहु ? किं पुण अम्हारिसोऽमुद्धा ||३७|| तो इह मृदत्तणओ न मुठु जं वविअं मए For Private And Personal परंपरायां मृगावती कथा ॥ १८ ॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobairth.org श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ।।१९।। Acharya Shri Kaias M y anmandie किंपि । तं खमियत्वं सामिय! जओ पणयवच्छला गरुआ॥३८|| जक्खोऽह भणइ तुट्ठो तुह वरविणएण भो! वरेहि वरं । इमिणुत्तं || परंपरायां मा मारसु जणंति एसो चित्र वरो मे ।।३९।। जक्णु तं अविणासओ तुहं सिद्धमेव इणमन्नं । वरसुवरं ते अहियं तुट्ठो परकअनिरयस्स मृगावती॥४०॥ भणितं च-"ते तावत्कृतिनः परार्थघटकाःस्वार्थस्य नाशेन ये,सामान्यास्तु परार्थमुद्यतधियःस्वार्थाविरोधेन कथा ये। तेऽमी मानुषराक्षसाः परकृतिहन्यते स्वार्थतो, ये निति निरर्थकं परकृतं ते केन जानीमहे?॥४१॥" ता जंपइ दुपयाईण देसपि निएमि तदणुरूवं से । रूवं करिजमिमिणा वुत्ते एवंति भणइ सुरो॥४२॥जओ-जो जत्तिअस्स अत्थस्स भायणं | तस्स तत्तिअंहोइ । बुट्टेऽविदोणमेहे न डुंगरे पाणिअंठाइ॥४३॥ दुरियक्खएण इहलोयसिद्धिमिय सोउ भत्तिजुत्तस्स । ता जययहणंतसुहे जिणवयण मुविहिभत्तीए॥४४॥ इय लद्धवरो सामिय! मक्कार पाविऊण तत्थेसो । इत्थागओ इहऽत्थे इमं परिक्खउ |पसिय देवो।।४५।। तो खुजदासिमुहदसणेण विनासिओऽवि कोवबसा। नरवडणा निविसओ आणतो छिन्नसंडासो।।४६।। यतः पठ्यतेनाकारणरुषां संख्या,संख्याताः कारणक्रुधः। कारणेऽपिन कुप्यंति,ये ते जगति पंचषाः४७॥"तो गंतुं सागेए उवडिओ मुरपियं पुणो तेण । पढमुववासे बुत्तो वामकरणवि तह लिहेसि ॥४८॥ जओ-गच्छउ दूरं आरुहउ गिरिवरं विसउ विसमविवरेसु। आराहउ अमराई लिहिआ अहिअंनहु त्हावि ॥४९॥ तो सो पुण लबरो चिंतेइ विडंविओ निरवराहो । निकारणरिउणाऽहं पावेण सयाणिएण कहं ? ॥ ५० ॥ ता अस्स तप्फलं दरिसिहंति चिंतिय मियावईरुवं । लिहिऊण चित्तफलए पजोयनिवस्स दसेइ ॥५१॥ द? तमाह निवो किं अमरी व रई व किनरी व इमा ? । स भणइ न इमान इमान इमा पहु ! किंतिमा| मणुई।०२।। चित्ते कला वग ते म निवेणुत्तोति भणइ पह! का मेमुकलावं दिटुंपि तारिसं अलिहमाणम्स।।५३। निउणो पयावई ॥१९॥ m Minimun lmea ame mahat P AN For Private And Personal Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shel Gyarmande श्रीदे. परंपराया | मृगावती कथा चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥२०॥ NILIHAR NHAPPAJIRAHIRATRAINITIANRAINIK सो निरुवमरूवा अदिट्ठपडिछंदा । पहु ! जण सयाणियरायअग्गमहिसी इमा लिहिया ।।५४|| तं असअसुंदर रूववहं सोउ इत्थिलोलो सो। पहुहकुल मिमाणो गलिअनओ मुकमजाओ ॥५५।। चित्तयरं सकारिय विसजिउं सिक्खिउं च लहु दूअं । पवए कोसंबीइ तत्थ स भणई सयाणीयं ॥५६॥ आइसई पजोओ वरभजा जा मिश्रावई तुज्झ । पेसिजमजतं हुञ्ज जुज्झकजे व लहु सञ्जो ॥५७॥ पभणइ सयाणिओ रे द्याहम तुह पह विमुक्नओ।जइजंपई अजुत्तं ता किं वुतुं तुहवि जुतं ।।५८।। किं वा-"अप्रवृत्तिगत भूपं,छदोवृत्त्या स्तुवंतिये। लक्ष्मीहतिकृतोपायाः,शत्रवस्तेन मंत्रिणः" ।।५९॥ अपिच-कि मिचोसोऽविन जो नियपहुणो उप्पह पवनस्स। नियबुद्धिघणरसेणं अवजसपंसुं उवसमेइ ।।६०॥ किंबहुणा? एवं जंपिरस्स तुह इय जुज्झइ विणासो। काउं जंचन कीरइ त नयभेउत्ति कलिऊण ॥६१शाइय निन्भत्थिय दूओ निद्धमणे गलगहेण निच्छूढो। तह कहा गंतु सपहुस्स तस्स जह वइढिओकोहो॥६२॥ तो सेणाए हयगयरहजोहसहस्मलक्खकोडीए। चलिओ तह चउदसमउडबद्धराईहिं तं पड़ | सो॥६॥ अणवस्यपयाणेहिं इंतं सोऊण तं जममरित्थं । अप्पबलो कालगओसयाणिओ अविइअइसारो ॥६४॥ चिंतइ मियावई मे घिरत्थु रूवं जओ मओ दइओ। उदयणसुओवि बालोति पाणसंसयतलारूदो ॥६५॥ एयस्स उ अणुसरणे इत्थ कलंको परत्थ दुक्खं च । ता छउमेणवि ईण्डि कालक्खेवो ममं जुत्तो ॥ ६६ ॥ तो पढियं तो गुणियं तो मुणियं तो अ वेइओ अप्पा । आवडियपिल्लियामंतिओऽवि य जहन कुणइ अकजं ॥ ६७ ॥ जओ-बरिसित्ता अमियरसं सकारिय वत्थमाइणा धरिउं। तलदोरेण सकर्ज मइम कुजा कुलालच ॥६८॥ इय चिंतिय दएणं तीए खंधारगो इमो भणिओ। सरणं तं चेव सयाणिए गए मे महाराया ॥६९।। नवरमसंपत्तवलो प्रत्तो मुक्को मए विणस्सिहिई। पच्चंतनरवईहिं तो कह रअं इमो da ॥२०॥ For Private And Personal Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mehen Aradhana Kendra www.kobafirth.org Acharya Shri Kailase si Gyanmandir INE श्रीदे. चैत्वनीधर्म० संघाचारविधी ॥२१॥ परंपरायां मृगावतीकथा काही ? ७०॥ अह भणह रक्खगे मइ सुअस्स को अप्पिसंखमो काउं?। सच्चं चिय सामिः इमं नवरं देवीइ भणियमिणं॥७॥ दूरत्थो किं करिही सामी सीमनि विनासिए कजे । जह उस्सिसगसप्पे अखमो जोअणसए विजो॥७२॥ भणइ निवो किं तत्तो मणि देवीइ जं तओ काहं । स भणइ कोसंबिपुरं समारवावेह पहु पसिउं।७।। कीरउ किमिह निवुत्ते स भणइ उजेणीइडगा बलिया। ताहिँ विसालो सालो कीरउ मनइ निवोऽवि इमं ॥७४||जओ-पुरिसोमयणविहुरिओपत्थिनंतोमणप्पियजणेण । किं किन देह किं किं करेइ नहलह असमंपि? |७|| तो काउ उभयपुरंतरंमि चउदस निवा सपरिवारा। उज्जेणीइट्ठगा तेण आणिया नरपरंपरया ॥७६॥ ताहि कओ पागारो कोसंबीए हिमालयागारो । पुण भणिओ तीइ स किं इमीइ धनाइ रहियाए ?।।७७॥ धणधन्नवत्थमाईहिं तक्रवणं तेण पूरिया तो सा । किं किं न कुणइ जीवो आसापासेण वावद्धो?॥७८।। जओनचंति य गायति य चवंति दीणं कुणति चारूणि । आसाविवसाजीवा विडवणं किंन पावंति॥७९|| दुहखाणी सुहअगणी पावलया दोसआयराजासा। सग्गापवग्गनयरप्पवेसलोहग्गला निबिडा॥८॥ आसाइजो पहुत्तं देइस दासत्तमप्पणोऽवरसं । इय सपणत्थमूला परिहरियवासया आसा।।८१॥रोहगसज्झा जाया पुरित्ति सा धीमई तओ नाउं। विप्पडिवना दाराई दाउमुवरि भडाठविआ।१८२॥जओ-उशनावेद यच्छास्त्रं,यच्च वेद बृहस्पतिः। खभावादेव तत्सर्व,स्त्रीणांबुद्धौ प्रतिष्ठितम्।।८३॥ पजोओ उ विलक्खो वेढित्ता सबओ ठिओनयरिं। चिंतइ वेरग्गगया मिगावई अन्नया एवं ॥८४॥धना गामागरनगरखेडकब्बडमडम्बदोणमुहा। विहरेइ भवियपउमे बोहितो जत्थ वीररवी॥८५|| ते धन्ना कयउन्ना सुकयत्था तिजयपूयणिजा य । दुहवास मुत्तु गिह जे बालत्तेऽवि गहियवया ॥८६।। वेरग्गतिक्खरखग्गेहि छिदिउं मोहपासए जे उ। गिव्हंति ॥२१॥ SAHENRNAL For Private And Personal Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M A Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sivi Kailasegarsi Gyanmandir श्रीदे० चत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ परंपरायां मृगावतीकथा ॥२२॥ | महासत्ता अदिट्ठपियसंगमा दिक्ख।।८७॥ अणवरयमरणरणरणयभीसणं पिच्छिऊण संसारं । मुकं विसं व विसमं विसयसुहं जेहि ताण |D नमो ।।८८॥ जइ कहमवि मह पुण्णोदएण इह इज सिरिमहावीरो। गिण्हामि मुक्खपञ्चक्खसक्खिणिं ता अहं दिक्खं ।।८९।। को | | सो वरिसो मासो पक्खो दिवसो तिही सुनक्खत्तं । पहरो य मुहुत्तो हुन्ज जंमि दिक्खं गहिस्सामि ? ॥९०॥ एवं सुस्सावयजणउचियमणोहरमणोरहरहेसु । आरुहमाणा सा गमइ धम्ममाणेण निसिसेसं ॥९॥ आवइगोवि न चएइ जो रई लहइ अयलमुदयं सो । अचिरेणंति भणंतोब उग्गओ अह रखी झत्ति ॥९२॥ अह मारि१ वेर२ विग्गह३ कुबुद्धि४ दुभिक्ख५ रोग६ ईईओ७ । उवसामंतो भयवं सपायजोअणसयंतरए ॥९२॥ चंदुवयारुजाणे पत्तो देहाणुमग्गलग्गेण । भामंडलेण रविणा अणुगम्मतोब दिणउदए ।।९४॥ नाऊण समोसरियं जिणं बहिं तो मियाबई गंतुं । बंदिय जिणं निविट्ठा पजोयनिवो उ इय थुणइ ।। ९५ ॥ जयश्रीसर्वासद्धार्थ !, सिद्धार्थनृपनंदन! । सुमेरुधीरगंभीर!, महावीरजिनेश्वर ! ।। ९६॥ योऽप्रमेयप्रमाणोऽपि, सप्तहस्तप्रमो मतः । पूर्णेन्दुवर्ण्यवर्णोऽपि, स्वर्णवर्णः सुवर्णकः । ९७।। सदृशं कौशिक शके, सर्पे च क्रमसंस्कृशि । पीयूषवृष्टिसृष्ट्या यं, दृष्ट्या दिष्ट्या | विदुर्बुधाः ॥९८॥ विष्टपत्रितयोत्संगरंगदुत्तुंगकीर्तिना। सनाथं येन नाथेन, विश्वं विश्वंभरातलम् ॥९९॥ यमै चक्रे नमः सेवाहेवाकोत्सुकमानसैः। वीराय गतवैराय, मामामुरेश्वरैः ॥१००|| यस्माद्विषादयो दोषाः, क्षिप्रं क्षीणाः क्षमाखनेः। दोषापूषमयूखेभ्य, इह हर्यक्षलक्षणात् ॥१०१।। यद्देहधुतिसन्दोहे, संदेहितवपुर्दधौ। रविः खद्योतपोतद्युत्याडंबरविडंबनाम् ॥१०२।। भविनां यत्र चित्तस्थे, स्यु/श्रीवृद्धिसिद्धयः । तं वर्धमानमानौति, त्वां वर्धमानभावनः ॥१०३॥ इति यस्तव स्तवं पठति वीरजिनचंद्र ! जातरोमांचः । सोलत्यपवर्गमखर्वगर्वसर्वारिवजयी ॥१०॥" तो मिलियाए सहाए जोयणपरिमाणभूनिविट्ठाए । ॥२२॥ For Private And Personal Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobafirth.org Gyanmandir Shri M श्रीदे० चत्यश्रोधर्म संघाचार परंपरायां मृगावतीकथा विधौ ॥२३॥ h Aradhana Kendra Acharya Shri Kailas भूरिनरतिरियसुरकोडिसंकडाए मुमहयाए ॥१०५॥ सहसभासासंवाइणीइ वाणीइ जोअणगमाए । कम्मक्खयजाइसओ करइ । पहू देसणं एवं ॥ १०६ ।। "फरिसरसगंधरूवरवलालसा सालसा उ विरईए । पावंति जिया वहबंधछेयमरणाई वसणाई ॥ १०७॥ इह एवं पंचपयारविसयमुहं कंखिरो सया जीवो। अलहंतो विरइमुहं प्रणो पुणो भमइ संसारे ।।१०८॥" निवेयकारिणिमिणं सवणामयसारणिं अमयमरणिं । पहु करइ देसणं जा ता तत्थेगो नरो पत्तो ॥१०९।। सजीयकयकोदंडो संघियकण्डो पयंडभुयदंडो। आवेसवसविसप्पंतसेयजलसित्तसवंगो ॥११०॥ मणपुच्छिरो नयसिरो भणिओ पहुणा स पुन्छ भी वयसा। जा सत्ति तओ तेणं | पुढे सा सत्ति कहइ पहू ॥१११ ।। समयकोउगकलिओ तत्थ उद्वित्तु गोयमो भयवं । पणमित्तु पहुं पुच्छइ भयकोउगकारि पहु किमिणं? ॥११२।। जओ-एसो उदंडचंडकोदंडमंडियभुओ भयं जणइ । वेरग्गगओ विणएण पुच्छिरो पुण महच्छरियं ॥११३।। कुंदंदुदंतपंतीफुरंतकरनियरहरियतिमिरभरी । अह भणइ भुवणनाहो गोयम ! भवविलसियमिणं तु!॥११४॥ तं केरिसंति गोयमपुट्ठो भयवं भणइ सुण बच्छ !। विसयासत्ता सत्ता विडंबणं इह लहंति जहा ॥११५।। चंपाइणंगसेणो सुण्णारो दाउ पंच कणगसए । परिणइ सुरूवकलं जा जाया ताण पंचसया ॥११६॥ कारइ तिलगचउद्दसआभरणे देइ न सइ परिहे। ईसाइ गिहं न मुअइ परस्स न य अल्लिउं देह ॥११७।। मित्तेण कयाइ बला नीओ सो पगरणे इओ ताओ। लंकियविभूसियाओ दप्पणहत्था उ विहरति ॥११८॥ तेणागएण एगा ता पहया जा मया अहियराओ। इअ अम्हाणवि काहिन्ति चिंतिउं जमगसमगं तं ॥ ११९॥ | एगृणपंचदप्पणसएहिं मारित्तु जायअणुतावा। का पइमारीण गई अम्हं ? होहीह जणनिंदा ॥१२०॥ दाराई दाउ जलणं जालित्तु अकामनिजगएऽवि । माणुकोसा मरिउं जाया चोरा गिरिम्मिके ॥१२१॥ जा पढममारिया सा तिरिओ होऊण दियसुओ जाओ। TIPPTAHIRATIONALIGAR H PATHANI BAR amanaMISAR ॥ २३ ॥ HuawMAINA For Private And Personal Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri T i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalag uti Gyanmandir श्रीदें. चेत्यश्रीधर्म संघाचार विधौ ॥२४॥ O परंपरायां मृगावतीकथा सुण्णारी पुण तिरिएसु भमिय तन्मइणि संजाया ॥ १२२ ॥ सा सइ रोयइ थक्का उ गुज्झलग्गे कयाइ भाउकरं। तह कीलावंतो सो नाओ पियरेहिं निच्छूढो ॥ १२३ ॥ तमह गओ चोरगिरि भमिरा वाला उ सइरिणी सा उ। कंमि ठिया गामे सो उ | पिल्लिो तेहि चोरेहिं ॥१२४॥ सा उ सपल्लिं नीआ कयाइ तीए विइज्जिया णीया । तं हणिउं नियइ इमा छिड़े चोरा गया धार्डि ।।१२।। दीसइ किमित्थ पिच्छत्ति भणिय सा पिच्छिरी तहिं मुद्धा । खित्ता कूवे तीए चोराणं पुच्छिराण पुणो॥१२६।। कहियमिमं कीस न अप्पणो पियं सारवेह अह तेहिं । नायं गोयम ! एवं इमीइ सा मारियावरई ॥१२७ ॥ तं दुट्ठचिट्ठि दळु| मेस मा मे ससा ण पावित्ति?। संसइओ सवन्नु म जणाउणाउं इहं पत्तो ॥१२८|| मणपुच्छिरो निसिद्धोतं मे जा सित्ति मउलिजं| चेव । लजाए पुच्छंतो सा सत्ति गिराइ जाणविओ ॥१२९।। भवविलसियमिय गोयम! जत्थेवं विसयमोहिया जीवा। विरइसुहमपावंता पावंति विडंबणं थोरं ॥१३०॥ पहु देसणमिय सोउं जाया सवा सहा पयणुराया। सोउ नरो पबइओ पहुपासे तिवसंवेगो ॥ १३१ ।। सुयदिट्टपुट्ठउग्धडसुमरिया बहुअभवमरणदुहया । मा भो विसया भुत्ता परि विसमुग्गपि विवरीयं ।।१३२।। इय तेण वोहिया ते सेसावि इगुणपणसया तेणा। पव्वइया अह नमिउं मियावई विनवइ नाहं ॥१३३।। पज्जोअमणुनविउं पडिवजिस्सामि सामि ! पवज्ज । भणइ अवंतीवइमवि तेऽणुनाया गहेमि वयं ॥१३४।। सोऽवि परिसाइ तीए लजाए वारिउं तमतरंतो । अणुमनद सावि तओ सुओत्ति अप्पइ उदयणं से ॥१३५ ॥ अंगारवइप्पमुहाओ अट्ट पज्जोअअग्गमहिसीओ। सहिआ मियावईए तइआ दिक्खं पवज्जिसु ॥ १३६ ॥ अणुसासिऊण ताओ चंदणबालाइ अप्पिऊण तओ। भवियजणमणाणंदो सामी अन्नत्थ | विहरित्था ॥३७॥ उज्जेणीनाहोऽविहु पहुप्पभावाउ उवसमियवेरो । कोसंबीइ उदयणं ठविय निवं नियपुरीइ गओ ॥३८॥ एवं For Private And Personal Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Matain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघा चारविधौ ।। २५ ।। www.kobafirth.org Acharya Shri Kailah Gyanmandir पसंगओच्चिय पर्यपियं पुण पओयणं अत्थ । पुरिमपरंपरएणं सूरिपरंपरगनाएणं ॥ १३९ ॥ तथाहि -जह नरपरंपराए आणीया इट्ठगा | अवंतीओ । कोसंबीइ तहेव य सिरिवीरजिणाउ इह तित्थे || १४०|| सिरिसृहुमजंबुपभवा सिज्जंभव जसयभद्द संभूओ । भद्दबाहु धुलभदो अजमहागिरि सुहत्थी य ॥ १४१ ॥ गुणसुंदर कालियगुरू खंदिल रेवइयमित्त धम्मो अ । भदगुत्तो सिरिगुत्तो बहरो रक्खययदुब्बलिओ || १४२ ।। तह वयर नागहत्थि रेवइमित्तो य सिंह नागज्जुणो । भ्रुयदिनु कालगो सच्चमित्त हारिलय | जिणभो || १४४ || हुमासाई पुसमित संभूओ माढरजसंभूओं । धम्मरिसी जिहंगो फगुमित्तो धम्मघोसोत्ति || १४४ ॥ गणहरकेवलिचउदसदसनव पुवाइ जुगपहाणाणं । इय सूरिपरंपरएण आगयं जाव अम्ह गुरू ।। १४५ || सुत्तेणं अत्थेणं करणविहीए य इणमणुट्टाणं । सर्व्वंपिडु आवस्मयचुण्णीए भणियमेयंति || १४६ || तथाहि - " इयं पसंगेण वन्नियं, अत्थ इट्ठगपरंपरएण अहिगारो, एस दद्वपरंपरओ, एएण भावपरंपरओ साहिज्जइ, जहा वद्धमाणसामिणा सुहंमस्स, जंबुनाम जाव अम्ह वायणायरिया, आणुपुबीए-कमपरिवाडीए आगयं सुतओ अत्थओ करणओ य" त्ति । उपनयशेषस्त्वयमत्र - चउगोयरपायारो चउप्पयारो हु सिरिसमणसंघो । धणधन्नवत्थमाई वरदंसणनाणचरणाई || १४७ || भविया मियावइसमा निव्वुइकारी विसुद्धचरणनिवो । सोहग्गलवणिमाई | मुलगुणा उत्तरगुणा य ॥ १४६ ॥ चित्तयरो कलिकालो मोहनरिंदो य चंदपज्जोओ । चउदस निवा उ नवनोकसायमिच्छत्तचउकसाया ॥ १४९ ॥ जह ठाउ वप्पमज्झे मियावई चंडमोहरायभया । पालित्ता नियसीलं तह संघगया कुणह धम्मं ॥ १५० ॥ प्रद्यो तानुमतेन योजनशतं प्रागुज्जयिन्या नरैः, कौशाम्ब्यां करतः करेण हि समानीता यथैवेष्टकाः । श्रीवीरात्तु युगप्रधान गुरुभिः सूत्रार्थतः कार्यतस्तीर्थेऽस्मिन जिनवंदनादि तदिवायातं श्रुतान्तर्गतम्॥ १५१ ॥ इत्याचार्यपारंपर्ये उज्जयिनी पुरुषेष्टकादृष्टांतः।। For Private And Personal मृगावती दृष्टान्तो पनयः ।। २५ ।। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahin Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥ २६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashauri Gyanmandir व्याख्यातं श्रोतृजनाद्यवस्थितिहेतुतया पीठिकाकल्पं मंगलाभिधेयादि । इह च प्रतिदिनानुष्ठेयं चैत्यवंदनादिकं संघस्याचारविधिं वक्ष्यामीत्युक्तं, तत्र यावत् 'साहूण गिहत्थाण य सवाणुट्टाणमूलमवायं । चिइवंदणमेत्र जओ ता तम्मि वियारणा जुत्ते ।। १ ।। " ति वचनात् 'सामाइय ठिएहिवि चउवीसं थवेयव्वे'त्यावश्यक चूर्णिवचनाच्च प्रथमं चैत्यवंदनाविधिं विभणिषुर्भाष्यकारः शास्त्रमुखापरपर्यायं तद्द्वारगाथाचतुष्टयमाह दहतिग १ अहिगमपणगं २ दुदिसि३ तिहुग्गह४ तिहा उ वंदणया ५ । पणिवाय ६ नमुक्कारा ७ वण्णा सोलस य सीआला ८ ॥ २ ॥ इगसीइसयं तु पया सगनउई संपया उ पण दंडा । बार अहिगारा चउवंदणिज सरणिज चउह जिणा ॥ ३ ॥ ari o १६ निमित्तट्ट१७ वारस हेऊ अ १८ सोल आगारा १९ गुणवीस दोस २० उस्सग्गमाण २१ थुत्तं च २२ मगवेला २३ ||४|| दस आसायणचाओ एवं चिइवंदणाइठाणाणि । चउवीसदुवारेहिं दुसहस्सा हुंति चउसगरा |||५|| इह सामान्येव साधु श्रावकादिसबहुमानजिनभवनप्रवेशादिसमयविधीयमान नैषेधिक्यादिप्रणिधानपर्यवसानसकलचैत्यवंदनाविधानप्रतिपादनप्रधानं त्रिंशत्स्थानक निबद्धदशत्रिकाख्यं प्रथमद्वारं 'दहतिय'त्ति - दशेति दश संख्यानि त्रिकाण - नैषेधिकीत्रयादिरूपाणि यत्र तद् दशत्रिकं, वक्ष्यति च 'तिनि निसीही' इत्यादि १, अत्र च सर्वत्र विभक्तिलोपादिकं प्राकृतलक्षणवशादवसा For Private And Personal चैत्यवन्दनाद्वाराणि ॥ २६ ॥ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Marain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघा चारविधौ 11 2011 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasaruri Gyanmandir तव्यं पुनः ऋद्धिप्राप्तानृद्धिप्राश्राद्धानधिकृत्य विशेषतः चेत्यादिप्रवेशविध्यभिधायकं द्वितीयमभिगमद्वारं- 'अहिगमपणगं ति | अभिगमानां - चैत्यादिप्रवेशे विधिविशेषाणां पंचकमभिगमपंचकं, भणिष्यति च - 'सच्चित्तदव उज्झणे' त्यादि२, प्रविश्य जिनगृहे विहितयथोचितनैषेधिक्यादिकारणैर्नरनारीगणैर्भावपूजादिविधित्सया स्वस्वोचिता दिग् ज्ञेयेति तृतीयं दिग्द्वारं 'दुदिसि' ति | द्वे - वामनदक्षिणलक्षणे दिशौ -काष्ठे क्रमतः स्त्रीपुंसयोर्योग्यतया वंदनामधिकृत्य समाहृते वर्णिते वा यत्र तद् द्विदिग्, अभिधास्यति 'वंदति जिणे दाहिणेत्यादि३, अत्र वामेतरदिकस्यैव तैर्जिनात् कियद्दूरे वंदना विधेया इति दिगनंतरं चतुर्थमवग्रहद्वारं 'तिहुग्गहत्ति, त्रिधा - जघन्य मध्यमोत्कृष्टभेदात् त्रिप्रकारोऽवग्रहो - मूलबिंबवंदनास्थानाभ्यंतरालभूभागरूपः, गदिष्यति च - 'नवकरजहन्ने' त्यादि४, उक्तरूपावग्रहस्थैश्च कियद्भेदा वंदना कार्येति तद्भेदविधये चैत्यवंदनाद्वारं 'तिहा उ वंदणय'त्ति, त्रिधा - जघन्यादिभेदात् त्रिभेदा, केत्याह-वंदनेति, 'भामा सत्यभामे'ति न्यायाचैत्यवंदना पूर्वोत्कृष्टशब्दार्था, प्रतिपादयिष्यति च- 'नवकारेण जहनेत्यादि, तुशब्दो विशेषणार्थः, तेन ग्रंथांतरप्रसिद्धजघन्यादिभेदान्नवधापि, एवमवग्रहोऽपि शास्त्रांतरोक्तो द्वादशधाऽवसातव्यः, एतच्चोपरिष्टाद्दर्शयिष्यते५, चैत्यवंदना च प्रायः प्रणिपातपूर्वेति तत्स्वरूपनिरूपकं पष्ठं प्रणिपातद्वारं 'पणिवाय'त्ति, प्रणिपात:प्रणामः, स चोत्कृष्टतः पंचांगो ज्ञातव्यो, नाष्टांगः, तस्य प्रवचनेऽप्रसिद्धत्वात, अध्येष्यति च 'पणिवाओ पंचंगो' इत्यादि६, कृतप्रणिपातैश्च प्रथमतो नमस्कारा भणनीयाः, अतः सप्तमं नमस्कारद्वारे 'नमुकार'ति, नमस्कारा- जिनगुणोत्कीर्तनपरा वचनपद्धतयः, मंगलवृत्तानीतियावत्, ते चात्रोत्कृष्टतः पुरुषानाश्रित्याष्टोत्तरशतं ज्ञेयं, निरूपयिष्यति च 'सुमहत्थ नमुक्कारे' त्यादि, नमस्कावर्णात्मक इति वर्णसंख्याद्वारमष्टमं 'वण्णे'त्यादि, यद्वा सर्वमप्यनुष्ठान महीनातिरिक्ताश्वरं करणीयं विपरीते दोषसंभवात्, For Private And Personal चैत्यबन्दनाद्वाराणि ॥। २७ ॥ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघा चारविधौ ।। २८ ।। ain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailan Gyanmandir तथा चागमः - " अहिए कुणालकइणो हीण विजाहराइदिहंता । बालाउराण भोयण सञ्जविवज्जओ उभए || १ ||" अहीनाद्यक्षरत्वं च वर्णसंख्यापरिज्ञाने सति भवतीत्यष्टमं वर्णसंख्याद्वारं, 'वण्णा सोल सय सीयाल'त्ति, वर्णाः- अक्षराणि, ते च सामान्यतोऽत्र चैत्यवंदनाधिकारे नमस्कारक्षमाश्रमणादिषु नवसु स्थानेष्वपुनरुक्ता ध्रुवभणनीयाश्च षोडश शतानि सप्तचत्वारिंशदधिकानि ज्ञातव्यानि तथाहि - अडसट्ठि६८ अठ्ठावीसा२८ नवनउअसयं च १९९ दुसय सगनउया २९७ । दोगुणतीस २२९ दुसट्टा २६० दुसोल २१६ अडनउयसय १९८ दुवन्नसयं १५२ || १ || इय नवकार १ खमासमण२ इरिय ३ सक्कत्थयाइदण्डेसु ८ । पणिहाणेसु य ९ अदुरुत वण्णा सोलसय सीआला ||२|| यदिह नमस्कारादि वर्णपरिसंख्यानं तत्तदादिमूलत्वात् सर्वधर्म्मस्येति ज्ञापनार्थं, एवं पदादिष्वपि वाच्यं, वर्णैश्च पदानि स्युरिति वर्णद्वारानंतरं नवमं पदद्वारं 'इगसीइ' इत्यादि, एकाशीत्यधिकं शतं पदान्यत्रौघतो नमस्कारादिस्थानसप्तके ज्ञातव्यानि, तुर्विशेषणे, विशेषश्चायम् - यद्यपि क्षमाश्रमण जे य अइयासिद्धेत्यादिगतानि अतिरिक्तान्यपि पदान्यत्र संति तथापि पूर्वबहुश्रुतैः संपदादिकं किमपि कारणांतरमधिकृत्यैतावन्त्येव पदानि खखभाष्यादिपूतानीति तन्मार्गा|नुगामितया अस्माभिरप्यत्रैतावत्येव तान्युक्तानि, नाधिकानीति, तथा चोक्तं लघुभाष्ये- 'नव बत्तीस तित्तीसा तिचत्त अडवीस सोल वीस पया । मंगलइरियासक्कत्थयाइसु इगसीइ सयं ।। १ ।।' एवमन्यत्रापि न्यूनाधिकत्वे कारणं वाच्यं ९, द्वित्रादिभिश्च पदैः संपदो भवतीति दशमं संपदद्वारं- 'सगनउइ संपयाउ' त्ति, सप्तनवतिः संपदः - अर्थविश्रामस्थानानि सांगत्येन पद्यते - परिच्छिद्यतेऽर्थो यामिरिति व्युत्पत्तेः संगतार्थपदपद्धतय इत्यर्थः, ताचैवं सप्तभु स्थानेषूच्यते- 'अट्ठट्ठ नवट्ठय अट्ठावीस सोलस य वीस वीसामा । मंगलइरियासक्कत्थयाइदंडेसु संगनउई ||१|| तुशब्दो नामस्तवादिषु प्रायो विशेषार्थपरिच्छेदाभावेऽपि संगतपदत्वेन 'पायसमा For Private And Personal चैत्यवन्दनाद्वाराणि ।। २८ ।। Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चै स्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ।। २९ ।। Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallstarsuri Gyanmandir ऊसासा' इति वचनाच्च सामान्येन संपदश्च दंडादिगा अत एकादशं दंडद्वारं 'पण दंड'त्ति, यथोक्तमुद्राभिरस्खलितं भण्यमानत्वादंडा इव दंडाः, सरला इत्यर्थः, ते चात्र पंच शक्रस्तवादयः, प्रतिपादयिष्यति च- 'पण दंडा सक्कत्थये' त्यादि, यदत्र वंदनाया एव दंडकाः परिज्ञापिताः, नान्येषां तदस्या एवात्र मुख्यतया प्रस्तुतत्वादिति, एवमधिकार्यादिष्वपि वाच्यं ११ | दंडेसु चैकव्यादिका अर्था|धिकाराः संतीति तत्संख्याख्यापकं द्वादशमधिकारद्वारं 'बार अहिगार'त्ति, अधिकारा- भावार्हदाद्यालंबन विशेषस्थानानि, ते च द्वादश दंडकपंचके भवंति अभिधास्यति च - 'दो इग दो दो पंच य' इत्यादि १२ । अधिकाराच अधिकार्याविनाभाविनः आधेयाभावे आधारव्यपदेशाभावात् - घृताद्यभावे घृतघटादिव्यपदेशाभाववत्, अतोऽधिकारिण आलंबनापरपर्याया अत्र ज्ञेयाः, ते च द्विधा वंदनीयस्मरणीय भेदात्, तत्र प्रथमं सामान्यतः सकलवंदनीयप्रतिपादकं त्रयोदशं वंदनीयद्वारं 'चउवंदणिज' ति चत्वारो वक्ष्यमाणाजिनादयः अत्र वंदनीयाः - प्रमाणाचद्यहः, निरूपयिष्यति च- 'चउ वंदणिज जिणमुणिसुय सिद्ध' ति१३ । अधिकारप्रस्तावा| देव चतुर्दशं स्मरणीयद्वारं - 'सरणिज 'ति स्मरणीयाः - क्षुद्रोपद्रवविद्रवणादिकृते तत्तद्गुणानुचिंतनादिनोपबृंहणीयाः स्तवनीया इतियावत्, यद्वा स्मरणीयाः - प्रमादादिना विस्मृतं तत्करणीयं तत्तत्संघादिकार्यं च ज्ञापनीयाः, अथवा सारणीयाः - प्रभावनादौ तत्र तत्र हिते कार्ये प्रवर्तनीयाः, ते चात्राधिकारितया सम्यग्दृष्टयो देवा ज्ञातव्याः तेषामेव स्मरणाद्यर्हत्वात्, अर्हदादीनां तु वंदनीयत्वेन प्रागुक्तत्वात्, स्मारणादिकर्तृत्वाच्च, भणिष्यति च इह 'सुरा य. सरणिज'ति १४ । एवं च सामान्येनाधिकारिण उक्ता इति विशेषतस्तदभिधानार्थं पंचदशं जिनद्वारं 'चउह जिण' त्ति, अथवा जिनोदयोऽत्र वंदनीया इत्युक्तं, जिनाः कतिविधा इति तद्भेदोद्भावकं पंचदशं जिनद्वारं 'चउहजिण' ति जिना - दुर्वाररागाद्यांतरवैरिवारजेतारः, ते च चतुर्धा वक्ष्यमाणनामजिनादिभेदेन For Private And Personal चैत्यवन्दनद्वाराणि ।। २९ ।। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila Gyanmandir श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥३०॥ m JABARIAL चतुष्प्रकाराः, वक्ष्यति च-'चउह जिणा नामे त्यादि १५। जिनादयः स्तुत्यादिमिः स्तूयंते इति जिनद्वारानंतरं षोडशं स्तुतिद्वारं | चैत्यवन्द'चउरो थुईत्ति चतस्रः स्तुतयोऽत्र संपूर्णायां चूलिकारूपा देयाः,तत्रैका 'अरिहंतयेइआण'मिति चैत्यवंदनादंडककायोत्सर्गानंतरं, नद्वाराणि तिस्रस्तु ललितविस्तराभिधानाद्यचैत्यवंदनाविवरणावश्यकचूर्णादिव्याख्यातसर्वदासकलसंघसर्वत्रध्रुवभणनीयाः लोगस्स उजोयगरे? पुक्खरवरदीवड्ढे २ सिद्धाणं बुद्धाण३ मित्याद्यपदाभिधानसर्वजिननामस्तुति श्रुतस्तुति र सिद्धस्तुति३ रूपदंडकत्रयकायोत्सर्गाणां चानंतर 'उस्सग्गे पारियम्मि थुई' इत्यावश्यकनियुक्त्यादिभणितेन प्रति कायोत्सर्गमेकैकस्या देयभावात् ,सर्वाश्च चतुःसं| ख्याप्रमाणाः, उक्तनीत्या कायोत्सर्गाणां चतुःसंख्यत्वात् , स्तुतयो यथाविज्ञातगुणाद्युत्कीर्तनात्मिकाः तत्तत्कायोत्सर्गानंतराध्रुव चूलिकारूपाः, अध्रुवत्वं च तेषां कदाचित् कासांचिदानात् , युगपदवंदनाकर्तषु मध्ये चैकेनैव भण्यमानत्वाच्च, चूलिकात्वं तु उक्तकायोत्सर्गचतुष्टयपारणार्थ 'उस्सग्गे पारिए नमो अरिहंताण तिरूपस्तुत्यनंतरमेव भणनात् भाष्यांतरादिषु तथैव व्याख्यातत्वात् करणविधौ तथाऽऽयातत्वात् ,'आगयं आणुपुबीए-कमपरिवाडीए मुत्तओ अत्थओकरणओ य' इत्यावश्यकचूर्णिकारेणापि करणविधेरभ्युपगमात् बहुश्रुतैस्तथैवाचर्यत्वाच्च,वीक्षितव्यमत्र मूक्ष्मेक्षिकया न्यक्षमपि,ताश्चात्र सामान्येन चतस्रः अधिकृततीर्थक १ समस्ताहवर प्रवचनः प्रवचनभक्तदेवता३ विषया दातव्याः,निरूपयिष्यति च 'अहिगयजिण पढमथुई' इत्यादि१६। कायोत्सर्गानंतर स्तुतयो दीयंत इत्युक्तं, अथोत्सर्गा एवात्र किमर्थ क्रियंत इति तत्फलनिरूपकं सप्तदशं निमिसद्वार-'निमित्तट्ठत्ति निमित्तानिप्रयोजनानि फलानि इतियावत् अष्टौ-अष्टसंख्यानि, इदमत्र हृदय-संपूर्णायां अस्यां क्रियमाणायां पापक्षपणादीन्यष्टौ फलानि भवंतीति, प्रतिपादयिष्यति च-'पावखवणथमिरियाई' इत्यादि, यदौर्यापथिक्या अपि फलमुपादर्शितं तदीर्यापथिकीप्रतिक्रमण-10॥३०॥ nahi IHITRAINIATPIRTANT ( HINDI illiheAlien MIDDHI For Private And Personal Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org s uri Gyanmandir Shri | श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ miNANI चैत्यवन्दनद्वाराणि e MINSAHA Jain Aradhana Kendra Acharya Shei ka पूर्विकव परिपूर्णा चैत्यवंदनेति प्रतिपादनार्थ, एवं तद्धतुप्रमाणवर्णादीनामपि निरूपणे कारणं वाच्यं १७ । फलाष्टकाथं कायोत्सर्गाः कार्या इत्यभाणि, तत्र न कारणमंतरेण कार्यप्ररोहसंभावना, बीजेन विनाकुरप्रादुर्भावाभाववदिति निमित्तद्वारानंतरमष्टादशं हेतुद्वारं 'बारह हेऊ यत्ति हेतवश्च फलसाधनयोग्यानि कारणान्यत्र वक्ष्यंते, यथा-'तस्स उत्तरीकरणे'त्यादि,चशब्दो निमितहेतून कश्चित् कथंचन कतिचिन् मन्यत इति वाचनांतरप्रदर्शनार्थः, ततु अग्रे दर्शयिष्यते १८। इति निमित्तहेतुभिः कृतोऽप्युत्सों नाकारैर्विना निरतिचारः शक्यः पालयितुमित्याकारद्वारमेकोनविंशतितमं 'सोल आगार'त्ति, षोडश आकाराः-अपवादाः कायोत्सर्गकरणे ज्ञातव्याः, वक्ष्यति च 'अन्नत्थयाइ बारसे'त्यादि १९। कृते चोत्सर्गे दोषा वा इति विंशतितमं दोषसंख्याद्वारं | 'गुणवीस'त्ति,एकोनविंशतिदोषाः कायोत्सर्गस्थैर्वजनीयाः, अभिधास्यति च-'घोडग लयेत्यादि२० कियंतं च कालमेवमुत्सर्गः | कार्य इत्येकविंशं तत्प्रमाणद्वारं 'उस्सग्गमाणु'त्ति, कायोत्सर्गप्रमाणमत्र ज्ञेयं, वक्ष्यति च 'इरिउस्सग्गपमाणमित्यादि २१ चैत्यवंदना हि स्तुतिस्तवादिस्वरूपाः, तत्र स्तुतयो वंदनामध्ये दीयमानत्वात् तद्वारं पोडशमुक्तं, स्तवस्तु वंदनापर्यंतभावी 'चेइआई वंदिअंति, तओ पच्छा संतिनिमित्तं अजियसंतिथओ परियट्टिजई' इत्यावश्यकचूणि (पारि.नि.) वचनात् तथैव सकलसंघेन क्रियमाणतया करणविधौ समायातत्वाच, तथाचावश्यकवृत्तावप्युक्तं 'चेइआई बंदिजंति. तओ संतिनिमित्तं अजियसंतित्वओ कदिजई (पारि०नि०) इत्यतो द्वाविंशं स्तबद्वारं 'थुत्न ति तत्र स्तोत्रं-चतुःश्लोकादिरूपं 'चउसिलोगाइपरेणं थओ भवइति व्यवहारचूर्णिवचनात् तदन भणनीयं, वक्ष्यति च-'गंभीरमहुरसमित्यादि, चशब्दो विशेषकः, तेनात्र यदेकश्लोकादिकं भगवद्गुणोत्कीर्तनपरं चैत्यवंदनायाः पूर्व भण्यते तत् मंगलवृत्ताऽपरपर्याया नमस्कारा इत्युच्यते,यड्राष्ये-उद्दामसरं वेयालिउच्च पढिऊण HummarIMILIPutuR R MAHARASHTRAININDIAN SHITAPATIAHIRAIL ॥३१॥ For Private And Personal Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashearspri Gyanmandir चैत्यवन्दनद्वाराणि श्रीदे० चेत्यश्रीधर्म संघाचार विधौ ॥३२॥ WIPRIDIHIP | सुकहबद्धाई । मंगलवित्ताई तओ पणिवायथयं पढइ सम।।शाति (२६७अ.) पूर्वभणनीयत्वादेव नमस्काराणां तवार पूर्व सप्तममुक्तं, यत्तु कायोत्सर्गानंतरं भण्यते ततः स्तुतय इति रूढाः, चैत्यवंदनापर्यते च स्तोत्रमिति, अयमेव चैतेषां परस्परं विशेषः, अन्यथा भगवत्कीर्तनरूपतया सर्वेषामप्येषामेकस्वरूपापत्ते,भणितं चागमे त्रितयमप्येतत् नमस्कारस्तुतिस्तवा इति, तथा चोत्तराध्ययनसूत्रं 'थयथुइमंगलेणं भंते ! जीवे किं जणयइ?, थयथुइमंगलेणं नाणदंसणचरित्ताणि बोहिलाभं च जणयइ,नाणदसणचरित्तसंपन्ने ण जीवे अंतकिरियं कप्पविमाणोववत्तियं आराहणं आराहेई (२९ अ०)त्यादि,विमर्शनीयमिदं सूक्ष्मधियेति२२। इयं च चैत्यवंदना दिनमध्ये कियतो वारानोपतो विधेया इति वेलाप्रमाणप्ररूपकं त्रयोविंशतितमं द्वारं 'सग वेल'त्ति,सप्त वेलाः-सप्त वारान् दिनांतरोघतोऽपि वंदना कार्येति, कथयिष्यति च-'पडिकमणे चेइय जिमण चरिमे'त्यादि २३। चैत्यवंदनां विदधता विशेषतः आ. शातनाः परिहार्या इति चतुर्विंशतितममाशातनाद्वारं 'दस आसायणचाउनि,दशानां आशातनानां-जिणभवणंमि अवण्णा पूयाइ अणायरो२ तहा भोगो३। दुप्पणिहाणं४ अणुचियवित्ती५ आसायणा पंच।।१।। (५९अ.)इत्ति वृहद्भाष्योक्तावज्ञादिपंचप्रकाराऽऽशातनान्तर्वर्तिभोगाभिधानतृतीयाशातनाभेदानां तांबूलपानीयादीनां त्यागः-परिहारः कार्यो जिनगृह इत्युपस्कारः, वक्ष्यति च'तंबोलपाणभोयणे ल्यादि, एतासां चोपलक्षणचात् तुलादंडन्यायेन वा मध्यग्रहणेनाद्यंतयोरपि ग्रहणात् चतुरशीत्युत्तरभेदाऽवज्ञादिपंचप्रकाराप्याशातना वा इति, एतच्च एतद्द्वारव्याख्यावसरे भणिष्यामः,एवं पूर्वोक्तप्रकारेण चैत्यवंदनायाः स्थानानि भवंती| तिभावः, कैः-चतुर्विंशतिद्वारः, तत्राद्यगाथायामष्टौ द्वितीयस्यां सप्त तृतीयस्यां अष्टौ चतुर्थ्यां एकं द्वारमिति, कियंति स्थाना|नि भवंति इत्याह-दौ सहस्रौ चतुष्षष्ट्यधिको, तत्रायद्वारे त्रिंशत् द्वितीये पंच तृतीये द्वे चतुर्थे त्रीणि पंचमे त्रीणि षष्ठे एकं सप्तमे ॥३२॥ CHUMIHINDI For Private And Personal Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mat श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥ ३३ ॥ Aradhana Kendra एकं अष्टमे षोडश शतानि सप्तचत्वारिंशदधिकानि नवमे एकाशीत्यधिकं शतं दशमे सप्तनवतिः एकादशे पंच द्वादशे द्वादश त्रयोदशे चत्वारि चतुर्दश एकं पंचदशे चत्वारि षोडशे चत्वारि सप्तदशे अष्टौ अष्टादशे द्वादश एकोनविंशतितमे पोडश विंशतितमे एकोनविंशतिः एकविंशतितमे एक द्वाविंशे एकं त्रयोविंशे सप्त चतुर्विंशतितमे दश, सर्वे मिलिताः चतुःसप्तत्यधिकद्विसहस्रा भवंतीति द्वारगाथाचतुष्टयार्थः ॥ अथ 'यथोद्देशं निर्देश' इति न्यायात् प्रथमं द्वारं व्याचिख्यासुः दशत्रिकप्रचिकट विषया शास्त्रप्रतिमुखरूषाणि प्रतिद्वाराणि चिरंतनगाथाद्वयेनाह— www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash Gyanmandir तिन्नि निसीहि१ तिनि उ पयाहिणार तिन्नि चैव य पणामा३ । तिविहा पूया य तहा४ अवत्थतियभावणं५ चेव ॥ ६ ॥ तिदिसि निरिक्खणविरई६ पयभूमिपमजणं च तिक्खुत्तो ७ । वनाइतियं८ मुद्दातियं च९ तिविहं च पणिहाणं १० ॥ ७ ॥ तिस्रो नैषिधिक्यो- गृहादिव्यापारपरिहाररूपाः, जिनगृहादिस्थाने प्रविशता कर्तव्या इति क्रियाऽध्याहारः एवमन्यत्रापि 'यथ निवं परशुना, यश्चैनं मधुसर्पिषा । यश्चेनं गंधमाल्याभ्यां सर्वत्र कटुरेव स ||१|| इत्यादिवत् यथानुरूपा क्रियाऽध्याहार्येति प्रथमं त्रिकं १ | तिस्रश्च प्रदक्षिणा दातव्याः, तत्र प्रकर्षेण सर्वासु दिक्षु विदिक्षु च परिभ्रमतां दक्षिणं-आत्मनो दक्षिणांगभागावर्ति मूलबिंबं ज्ञानादित्रयानुकूल्यकृते क्रियते यत्र प्रतिपत्तौ सा प्रदक्षिणेति द्वितीयं त्रिकं२ । त्रयश्च प्रणामाः- प्रकर्षेण शीर्षादिना भूस्पर्शादिलक्षणेन नामा- नमनानि प्रीभावा जिनस्याग्रे विधेयाः, नमस्कारकरणकाले भक्त्यतिशयख्यापनार्थं त्रीन् वारान् शिरोनमनादि विधेयं, For Private And Personal द्वारमाथार्थः ॥ ३३ ॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥ ३४ ॥ n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasa Gyanmandir नत्वेकमपि वारमित्येवशब्दो निर्युक्ते, यदागमः - 'तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि नमे (निवेसे) इत्ति, शिरसा त्रिभूमिं स्पर्शयतीत्यर्थः, एक शब्दः समुच्चयेद्वितीयस्तु विशेषणे, स चैकांगादिकमपि प्रणामं कुर्वद्भिर्भूम्याकाशशिरःप्रभृतिष्वपि सर्वत्र शिरः १ करां२ जल्यादि | ३ त्रिः परावर्तनीयमिति विशिनष्टि, एवं च 'पणिवाओ पंचगो' इत्युच्यमानं न विरुध्यते, प्रणिपात भेदांगव्य क्तिख्यापनपरत्वात् तस्याः, यद्वा भूमौ जानुन्यास १ शिरःस्पर्श२ शिरोऽजलिकरण ३रूपास्त्रयः प्रणामाः शक्रस्तवादौ विधयाः उक्तं च- " वामं आणुं अंचे ' इत्यादि, अथवा अंजलिबद्धोऽर्धाविनतः पंचांगश्चेति अत्रैव वक्ष्यमाणलक्षणास्त्रयः प्रणामा इति तृतीयं त्रिकं३ । त्रिविधा च - त्रिप्रकारा अंगाग्रभावात्मिका पुष्पामिषस्तुत्यादिनिर्माप्यस्वभावाः पंचप्रकाराऽष्टप्रकारा सर्वप्रकाररूपा वा अत्रैव वक्ष्यमाणस्वरूपा पूजा-अर्चा विधेया, तथेत्यागमोक्तनीत्या तदुक्ताशेषशेषतत्पूजा भेदानामत्रांतर्भावरूपया, उक्तं चैतच्चूर्णी- “तिविहा पूया - पुप्फे हिं निवेजेहिं थुईहिं य, सेसभेया इत्थं चैव पविसंति'त्ति यद्वा तथेति 'सयमाणयणे पढमेत्यादिस्थानांतरप्रसिद्धाऽनेकधापूजात्रयाणां ख्यापकः, तानि च अग्रे दर्शयिष्याम इति चतुर्थं त्रिकं । अवस्थात्रिकस्य - छमस्थ केवलिसिद्धत्वरूपस्य भावनं पुनः पुनः चिंतनं, 'भावयेद् ज्योतिरांतर'मिति वचनात् पिंडस्थपदस्थरूपातीतध्यानकृते कर्तव्यमेवेत्येवशब्दोऽवधारयति, तथैव पिंडस्थादिध्यानसिद्धेस्तदर्थत्वाच्च सर्वस्यापि सद्धर्मानुष्ठानोपक्रमस्य, रूपस्थध्यानं तु दर्शनमात्रादपि सिध्यति, उक्त च - " पश्यति प्रथमं रूपं, स्तौति ध्येयं ततः पदैः । तन्मयः स्यात्ततः पिंडे, रूपातीतः क्रमाद् भवेत् ||१|| इति पंचमत्रिकं ५ । तिसृणां - ऊर्ध्वाधस्तिर्यग् रूपाणां वामदक्षिणपाश्चात्यलक्षणानां वा दिशां निरीक्षणस्य- आलोकस्य विरतिं वर्जनं विदध्यात्, तत्रोपयोगे वंदनस्यानादरतादिदोषप्रसंगात्, यस्यां दिशि तीर्थकृबिंबं तत्संमुखमेव निरीक्षेतेत्यर्थः, यदागमः - 'भवणेकगुरुजिदिपडिमासु विणिवेसिय For Private And Personal द्वारगा थार्थ: ॥ ३४ ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M I www.kobafirth.org Gyanmandir श्रीदे द्वारगाथार्थः चैत्यश्री धर्म संघाचारविधौ ॥३५॥ Aradhana Kendra Acharya Shri Kailas | नयणमाणसेण जाव चेइए वंदियव्वेत्ति षष्ठं त्रिकंद। पदभूमेः-निजचरणन्यासभूमेः सः सञ्चादिरक्षार्थे सम्यग् चक्षुषा निरीक्ष्य | प्रमार्जनं च त्रिकृत्वः-त्रीन वारान् कुर्यात् , उक्तं च आगमे-'जइ तिन्नि वाराउ चलणाणं हिटगं भूमि न पमजिजा तो पच्छितंति सप्तमं त्रिकं७ वर्णादित्रिकं चैत्यवन्दनगताक्षरार्थावलम्बनरूपं यथापरिज्ञानं सम्यगुच्चारचिंतनाश्रयणत एकाग्रतायै मनसश्चिन्तयेत् इत्यष्टमं त्रिकंटा मुद्राणां-हस्तायंगविन्यासविशेषलक्षणानां त्रयं च योगमुद्रा१ जिनमुद्रार मुक्ताशुक्तिमुद्रात्मक३ सूत्रपाठसमकभावितया मूलमुद्रात्रयरूपं समस्तप्रत्यूहव्यूहव्यपोहाथ सकलसमीहितसंपादनार्थ च, यथा महामांत्रिको मंत्रादि स्मरन् वज्रमुद्राकृष्टिमुद्रादिका मुद्राः प्रयुक्ते तथा चैत्यवंदनासूत्रोच्चारावसरेऽवश्यं सत्यापनीयतया ज्ञातव्यं, तदविनाभाविच्चात् सूत्रोचारस्य, | 'थयपाढो होइ जोगमुदाए' इत्यादिवचनात् , दृष्टश्च समुद्रं सूत्रपाठोऽन्यत्रापि मंत्रवेदादौ, परममंत्रवेदादिकल्पं च सर्व जिनागमसूत्रं, 'कम्मविसपरममंतो' इति 'अट्ठारसपयसहस्सिओ वेओ' इत्यादिवचनात् , अंजलीमुद्रापंचागीमुद्रादयस्तु अत्र न परिज्ञाताः, उत्तरमुद्रारूपत्वात् , तासामनियतत्वात् , सूत्रपाठसमयेऽनुपयुज्यमानत्वात् तथाऽनुक्तत्वात् सूत्रोच्चारकालान पूर्वापरकालभावित्वाद् विनयविशेषदर्शनमात्रफलत्वाच्चेत्यादि बह्वत्र परिशेयमिति झपरिज्ञयेति नवमं त्रिकं९ त्रिविधं च-त्रिभेदं चैत्यमुनिवंदनाप्रार्थनाभेदात् प्रणिधानं चैत्यवंदनावसाने विदध्यादिति शेषः,तथा चागमः-'वंदइ नमसइति सूत्रस्य वृत्तिः-वंदते ताःप्रतिमाश्चैत्यवंदनाविधिना | प्रसिद्धेन, नमस्करोति पश्चात् प्रणिधानादियोगेनेति दशमं त्रिकमिति प्रतिद्वारगाथाद्वयसमासार्थः१०।७।। उक्तो दशत्रिकाक्षरार्थः, अथ भावार्थ उच्यते-तत्र प्रथमं नैषेधिकीत्रिकं भावयन भाष्यकृदाहघरजिणहरजिणपूयावावारचायओ निसीहितिगं । अग्गबारे१ मज्झेर तइया चिइवंदणासमए३ ॥८॥ ॥३५॥ For Private And Personal Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्यथी धर्म० संघा चारविधौ ॥ ३६ ॥ n Aradhana Kendra www.kobafirth.org Acharya Shri Kailasi Gyanmandir गृहं च-मंदिरमुपलक्षणत्वादापणादिपरिग्रहः जिनगृहं च देवगृहं जिनपूजा च पूष्पादिभिर्जिनाभ्यर्चनं तेषां व्यापारः - तद्गतकार्यकारणचिंतनादिलक्षण आरंभस्तस्य त्यागाद्-वर्जनान्नैषेधिकीत्रयं पूर्वोक्तशब्दार्थ यथार्थनामकं भवतीतिगम्यते, तत्र प्रथमा नैवेधिकी अग्गद्दारे -चलानकप्रवेशसमये विधेया १, द्वितीया तु मध्ये - मुखमंडपादौर तृतीया पुनश्चैत्यवंदना विधानसमये इत्यक्षरार्थः, भावार्थस्त्वयम् - जिन भवनादिवहिर्भूतगृहहड्डादिगतक्रयविक्रयादिव्यवहाररूपसावद्यारंभविधाननिषेधनिष्पन्ना प्रथमा नैषेधिकी, सा च अग्रद्वारे - जिनभवनबलान के वक्ष्यमाणपंचविधाभिगमविधानपुरस्सरं प्रविशता भुवन मल्लनरेंद्रवत् कार्येति, यदुक्तं भाष्ये पंचविहाभिगमेणं पविसंतु बलाणए निसीहितिगं । कुआ बहिवावारं न काहमिहिति भाविंतो ॥ १ ॥ " (१८८ अर्थतः अत्र मनोवचः कायैर्गृहादिव्यापारो निषेध्य इति ज्ञापनार्थमुक्तं- 'निसीहितिगं कुञ्ज'त्ति, परमे कैवैपा गण्यते, जिनगृहादिबहिर्भावित यैकरूपस्यैव गृहादिव्यापारस्य निषिद्धत्वात् तथाच लघुभाष्यं - “तणुवयणमाणसाणं निसेहविसया निसीहिया तिनि"त्ति, भुवनमल्लनरेंद्र कथा चैकं कुसुमपुरी अत्थि पुरी बहुचउरयणेहि एगचउरयणं । एगहरिं भूरिहरीहिं परिहव अमरनयरिं जा ॥ १ ॥ हेमप्पहो हरी इव तत्थ त्थि निवो गवाहिवो स जओ । भज्जा य तस्स रंभा पुत्तो पुण भुवणमल्लुति ॥ २ ॥ सूरो रणंमि सोमो नयंमि वक्को रिउंमि जो उ बुहो । सत्थंमि मईइ गुरू नीईइ कई अधे मंदो || ३ || कइआ निवं सहत्थि वित्ती विन्नवइ देव ! बहि एगो । पुरिसो दद्धुं इच्छह पहुं कहेइ अ न सो अप्पं ||४|| मुंचति निवुत्ते जा मुको पत्तो य रायदिट्ठिपहं । ता हसिअ निवो भणई किं अप्पं करह ! गोवेसि १ ||५|| सो भणइ कयपणामो पहु ! कीरउ भेऽवयारणं करहो । कह चिरदिट्ठो ओलक्खिओ मि नामं च सरियं मे १ ।। ।। भणइ निवो उवयारी वीसरसि तुमं ? जमपिया तुमए । रंभा दिवे विवाहे थविअ कणयपाउया ६ For Private And Personal नैषेधिक्यां भुवनमल्लः ॥ ३६ ॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Man Aradhana Kendra www.kobatirth.org मज्झ ||७|| इअ संभासिअ पुट्ठो आगमणपओअणं निवेण इमो । भणइ पहु ! अत्थि सिरिसेणनिवईधूया रयणमाला ॥ ८ ॥ सा कुंदरयणमालासु रयणमालव वरगुणसमेया । जा कुणइ राहवेहं स मे वरो इय कयपइन्ना || ९ || राया उ भुवणमल्लं इच्छइ सभइणीस अं वरं नवरं । न कुमरि गिरमत्रमन्नइ जाणतो कुमरकोसल्लं ।। १ ।। इअ पेसिओ निव! इहें ता कुमरो निववेउ अविलंब । नियदंसणामएणं सिरिसेणन रिंद मणन यणे॥ ११ ॥ नियइ निवो गणयमुहं तो स भणइ पवरमञ्ज जुत्तदिणं । चिंतइ निवो धुवा कुमरभद्दसेणी सविहलग्गा | ॥१२॥ यत उक्तम्- "लघूत्थानान्यविघ्नानि, संभवत्साधनानि च । कथयंति पुरः सिद्धिं, कारणान्येव कर्मणाम् ॥१३॥” मणपवणसउणपरियणअणुकूलत्तेण तो भुवणमल्लो | चंपापुरीहिऽभिमुहं चलिओ चउरंगबलकलिओ ॥ १४ ॥ सिद्धत्यपुरसमीवे जा पत्तो ता नरेहिं तप्पहुणा । विन्नत्तो जह कीर खीरसरवणे इहावासो ||१५|| तत्थावसिओ कुमारो नियइ वणं विम्हिओ समंता जा । ता पिच्छइ हयगय रहसुहडसमूहं समुहमितं ।। १६ ।। किमियंति कुमरपुट्ठा भणति सिद्धत्थपुरनिवनरा ते । न मुणेमु परं संभाविज‍ सिरिमूलदेवनिवो ||१७|| जं तुम्हागमवत्तायन्नणसमया स मन्नइ खर्णपि । वरिससमंति इमे जा कहति ता विन्नवइ वित्ती ।। १८ ।। सिद्धत्थपुरनिवो पहु ! गयउत्तिनो पएहि एइति । तो कुमरो अहिगच्छइ जा पत्तो तास झत्ति तहिं ||१९|| अरूव विजियमारं दछु कुमरं धसत्ति धरणियले । मुच्छावसा स पडिओ हाहासदो पुणुच्छलिओ || २० || कुमरेण ससंभममह चंदणसेयाइणोवयारेण । संलद्धयणो किं वाहइ तुम्हंति सो पुट्ठो ||२१|| ओणयवयणो न देइ उत्तरं नियइ चलिरदिट्ठीए । कंडुअइ वामकन्नं पायंगुडेण लिहइ भुवं ॥ २२ ॥ किमियंति कुमरपुट्टो सिरिसेहरमं तिनंदणो सीहो । कुमरवयंसो साहइ पहु! इह न मुणिअई किंपि |||२३|| नवरं इओ अदरे गम्मिजओ देव ! जेण वरनाणी । सिरिअभयघोससरी समागओ अत्थि इह जो उ ।। २४ ।। मेरुब श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥ ३७ ॥ For Private And Personal Acharya Shri Kailasi Gyanmandir नैषेधिक्यां भुवनमलः 1139 11 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे० चै त्यश्रीधर्म ० संघाचारविधौ ॥ ३८ ॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kails suri Gyanmandir महियजलही सूरोविव निहयविसमतरकरणो । दोसुम्मूलणरसिओ रविव हारुब पवरगुणो ||२५|| एगपरिग्गहरहिओ विरइअसारंगसंगहो सययं । विहियसयलक्खविजओ एगसंसारभयमीओ ||२६|| तो कुमरो सो य निवो गंतूणं तत्थ नमिय सूरिपए । उवविसह उचियठाणे तो सूरी कहइ इय धम्मं ||२७|| “लहिउं सुदुल्लाहं नरभवाइसामग्गिमित्थ भवहरए । सदंसणपरिभट्ठा मा दुहिया भ्रमह कुम्म || २८ || हरपरिमियत्तणा अवि लहिज्ज ससिदंसणाइ सो कुम्मो न उ पुणवि जओ बोहिं भवणंतत्ता अकयसुकओ ||२९|| ता सोउमिमं समं अरिहं देवो सुसाहुणो गुरुणो । जिणपन्नत्तं तत्तं इत्थ पहाणंति कुणह मई ||२९|| भणियं च - " मुत्तूण जिणं मुत्तण जिणमयं जिणमयट्ठिए मुतुं । संसारकत्तवारं चिंतितं जगं से ||३०|| सद्दंसणसुद्धिकए कायद्या वंदणा जिणाण सया । तिभिनिसीहाइदसगं तत्थ य नेयं जहाविहिणा ||३१||" अह भणइ भुवणमल्लो भयवं ! कह मुच्छिओ ममं दठ्ठे ? | समयणरमणिवियारे कहं व पुरिसोवि कुणइ इमो १ ॥ ३२॥ भणइ गुरू भद्द ! पुरा सीहपुरे आसि रयणसारनिवो। गंगव सुई सुदया तस्स पिया मयणरेहत्ति ||३३|| अलियविलीयविरते कइआइ निवंमि साऽणुरतावि । उब्बंधेऊण मया अवमाणदुहं असहमाणा ॥ ३४ ॥ जओ-अलियाववायअभिदृमियस्स जीवस्स सुद्धहिययस्स । होइ दहंतस्स पुणो चंदणरससीयलोऽग्गीवि॥ ३५ ॥ देवच्चणदाणदयाण सुद्धभावाउ सा इहुप्पण्णा । सिद्धत्थपुरे सुंदरनिवधूआ मूलनक्खत्ते || ३६ || अह सहसा कालगओ राया जंमे इमीइ तो कुणइ । सुमइअमच्चो पयडियपुत्तत्तं रजअभिसेयं ॥ ३७|| भरिऊण रयणसारो जाओ सि तुमं इहागए दिट्ठे । पइ पुइभवन्भासा एईए पसरिओ नेहो ||३८|| किं मह इमंमि पीई एवंति इमीइ विमरिसंतीए । जाए जाईसरणे तं जायं जं तए पुटुं ||३९|| तं संसारसुखं नाओ दइयस्स नेहपरिणामो । दिट्ठो मालवदेसो खद्धा मंडा य अग्घाणा ।। ४० ।। इअ भणिय मूलदेवो For Private And Personal नैषेधिक्यां भुवनमलः ॥ ३८ ॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma Aradhana Kendra मुणिवइवयणाउ जायवेरग्गो । पडिवजह पवअं र दाउ कुमारस्स ।। ४१ ।। कुमरो पुण संमत्तं गिण्हड़ चिह्नवंदनाइनियमजुयं । अह गुरुणा गुरुकरुणापरेण एवं स अणुसिट्टो || ४२ || "लब्भंति सुरसुहाई लब्भंति नरिंद ! पवररिद्धीओ । न उणो सुबोहिरयणं लब्भइ मिच्छत्ततमहरणं ||४३|| जह गहगणाण गयणं आहारो रोहणो य रयणाणं । सिंधूण जहा जलही तह सयलगुणाण संमत्तं |||४४ || जह उवसमो मुणीणं चाओ विहवीण सीलमित्थीणं । तह संमत्तं गिहिणो जइणोवि विभूसणं परमं ||४५|| ता मा कासि पमायं सम्म सङ्घदुकूखनासणए । जं सम्मत्तपइट्ठाई नाणतवविरियचरणाई ||४६ ||" इच्छंति भणिय कुमरो तो मनतो कयत्थमप्पाणं । बहुबहुमाणं नमिउं गुरुपयपउमं गओ सिविरं ||४७|| सिद्धत्थपुरे गंतुं सुमइअमच्चं तहिं ठविय रजे । चलिओ पुरओ पत्तो अडविं कालिंजरं जा उ ||४८|| खग्गभिधाय भजंतमत्तमायंगवियडकुंभयडा । विलसिरसकुंतसरचक्कवायवा संगरुद्धरहा ||४९ ॥ तत्थ दसजोअणते आवासिय जाव वरुणनइतीरे । कुमरो नियइ वणाई ता पिच्छइ रिसह जिणभवणं ॥५०॥ तो तत्थ निसीहितिगं काउं जा पविसई नियइ ताव । जिणपूयवावडाओ अमरीओ भत्तिनमिरीओ ।। ५१ ।। अह ददटुं निप्पडिमं कणगमयं रिसहसामिणो पडिमं । कुमरो वियसियवयणो वंदइ विहिणा थुणइ एवं ।। ५२ ।। “विश्वत्रयैकदर्शन ! सहस्रदर्शननतक्रम जिनेंद्र ! | सवर्णतपत्तदंसण ! अनंतदंसण चिरं जयसु ॥ ५३ ॥ पूर्वाकृतसुकृतानां पूर्वाशीलितविशुद्धशीलानाम् । अविहियतवाण पुद्धिं न होइ तुह दंसणं चैव ॥ ५४ ॥ भवशतकृतमपि पापं त्वद्दर्शनतो विलीयते नाथ ! । पिंडीभूअंपिव घयं दुअं जहा जलिरजलणाओ || ५५|| समयोऽयमेव शस्यः सलक्षणोऽसौ क्षणस्तदहरनधम् । पक्खोऽवि सो सपक्खो जयबंधव ! दीससे जत्थ ॥ ५६ ॥ द्रष्टुमदृष्टे वांछा दृष्टे त्वयि नाथ ! विरहजं दुःखं । इय जइ दुहावि न सुहं तहावि तुह दंसणं होउ ।। ५७ ।। पूर्वार्जितसुकृतकृतं श्रीदे० चै त्यश्रीधर्म० संघाचार विधौ ।। ३९ ।। www.kobatirth.org For Private And Personal Acharya Shri Kailast Gyanmandir नैषेधिक्यां भुवनमल: ॥ ३९ ॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M a h Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalah Gyanmandie F नषेधिक्यां भुवनमल्लः श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म०संघाचारविधौ ॥४०॥ भाविशुभनिबंधनं हरति चैनः । इय कालत्तयमुहयं जियाण तुह दंसणं दुलहं ।। ५८ ॥ स्वामिन् ! स्वदर्शनं कुरु तथा यथा स्यात् | | पुनर्न तदभावः । जचंधवेयणाओ चक्खुक्खयवेयणा दुसहा ॥ ५९॥ नामापि नाथ ! यस्ते वरमंत्रसधर्म कीर्तयति तस्य । मिच्छादसणदोसो लहु नासह किं परं भणिमो? ॥ ६० ॥ य इति जिन! त्वामन्यूनदर्शनं न्यूनदर्शनो नौति । स विशुद्धदर्शनः श्रयति सत्वरं सर्वदर्शित्वम् ॥६१॥" इय थोउ चेइयं जा सविम्हयं नियइ सबओ कुमरो। ता पिच्छइ पच्छिमदिसि पुक्खरिणि पवरपुस्खरिणिं ॥६२।। गंतुं तत्थ जलेणं महुरेणं सीयलेण विमलेण । गुरुवयणेण व अप्पं सोहिय जा वीसमइ सुत्थो।।६।। ता गुंजाहलहारो सल्लयसालाकरो हलिद्दनिहो। एगो समागओ तत्थ वानरो वानरीइ जुओ॥६४ास मणुयगिराइ कुमरं पणमिय भणइ पहू ! असरणसरणा । मुदयपवण्ण सुदक्खिण कुमार! मह सुणसु विन्नत्तिं ॥६५।। इह अडवीइ सयाविहु वानरजूहाहिवत्तमासी मे। एसा उ वल्लहा तह पाणेहिवि वल्लहा निचं ॥६६।। तं मह जूहं इण्हि वणंतरगयस्स वानरेण बला। अवहरियं अनेणं तं तु समत्थो | विनिग्गहिउं ॥६७।। नवरं न देइ मह तेण जुज्झिउं नेहकायरा एसा । अहमवि इमं न सकेमि इत्थ एगागिणि मुत्तुं ॥६८॥ संपइ तुमं महायस! मह नयणूसवकरो सुबंधुत्व । परउवयारिकपरो दिट्ठो पुण्णोदएण मए ॥ ६९॥ ता जाव अहं रिउवानरं लहुं निहणिऊण एमि इहं । ता नेहमीरु एसा निरुवदवा ठाउ तुह पासे ॥ ७० ॥ इय भणिय तयं मुत्तुं गओ इमो चिंतए तओ कुमरो। कह मणुअगिराइ पम् वयइ पवत्तइ य मइपुवं ॥७१॥ बलिअरिउणा पिअंजा निहयं न सुणामि ता ममवि जुत्तं । मरणंति भणि कुमरस्स वानरी पडइ वावि तो ॥७२॥ नहु मह इमीइ सरणागयाइ मरणं उविक्खिउं उचियं । इय तीइ कढणत्थं झंपावइ तत्थ जा कुमारो ॥७३॥ ताव न वावी न जलं न वानरी तत्थ किंतु अप्पाणं । वरमणिमयपासाए पल्लंकगयं नियइ कुमरो।।७४|| अह ॥४०॥ For Private And Personal Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma h Aradhana Kendra www.kobairth.org श्रीदे० चैत्यश्रोधर्म संघाचार विधौ ॥४१॥ IEl Acharya Shri Kailas Gyanmandir अनियंता कुमरं मिचा गंतुं कहंति मंतीणं । तेविहु संनिहियबला तं कयजना गवेसंति ॥७॥ आगम्म नरो एगो अह कुमरं पइ| |नैपेधिक्यां पयंपइ इहं भो । मा किंपि चिंतिसुऽन्नं कारणओ तं मयाऽऽणीओ ॥७६॥ को तं ? किमाणिओऽहं इय कुमरुत्ते नरो भणइ सुणसु। भुवनमल्लः अमिअगई असुरोऽहं कीलाभवणं च मह एयं ॥७७।। कइआ दइआसहिओ उज्जिते सुमइकेवलिं नंतुं । चलिओ निएमि मग्गे जोगिअमिकं मसाणंतो ॥७८॥ रत्तंदणकयतिलयं परिहियमिगचम्मचित्ततयदुत्थं । कसिणाहिजोगवट्ट मिल्हंतं गुरुयहुंकारं ॥७९॥ तस्सग्गे जलिरानिलकुंडं वामंमि कन्नगं चेगं । रुयमाणि रत्तंदणदित्तं कणवीरमालिल्लं ।। ८०॥ तं जा खिविही जलणे स मए ता तजिओ अरे पाव ! । असमंजसमिअ काउं कथिण्हि वचसि हयास ! ॥ ८१ ॥ तो सो भीओ कनं मुत्तुं नट्ठो दयाइ मे मुक्को। पत्तो अहंपि रेवयगिरिमि तं बालियं गहिउं ।। ८२ ॥ तत्थ सिरिसुमइकेवलिमुणिणो कमकमलजमलमहं । पणमित्ता आसीणो सुणेमि इय देसणं अणहं ।।८३।। "कोहो अप्पीइकरो उन्धेयकरो य सुगइनिद्दलणो । वेराणुबंधजणणो जलणो वरगुणगणवणस्स ॥८४॥ कोहंधा निहणंति पुत्तं मित्तं गुरुं कलत्तं च । जणयं जणणिं अप्पंपि निग्घिणा किंचन कुणंति ॥८५॥ कोहग्गीपजलिओ न केवलं दहइ अप्पणो देह। संतावेइ परंपिहु पहबइ परभवविणासाय ॥८६॥ ता कोहमहाजलणो विज्झवियबो खमाजलेण सया। अन्नह दुसहं दुक्खं देइ जह इमीइ बालाए ॥८७॥"भयवं! कोहवसेणं इमीइ पत्तं दुहं कहंति मया । पणमिय पुट्ठोस कहइ केवली असुर ! निसुणेहि ॥८८॥ कयमंगलापुरीए धणसिट्ठिसुया उ बालविहवाऽऽसी । जयसुंदरीत्ति से भत्तिजुया भायरा पंच | ॥८९: जिट्ठस्स पुणो भजा न वट्टए तीइ सह सया संमं । तं परिणावइ अन्नं कन्नं सा मच्छरिल्लमणा ॥१०॥ तीइ कयं जंकिंपिवि दूसइ तह डहइ दुट्ठवयणेहिं । गयलजा संमुहमुत्तरं दयइ भाउजायावि ।।११।। जिणभवणमागयाओवि परुप्परं विलियभासणेण ॥४१॥ R AAme SminI AM For Private And Personal Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचार विधौ ॥४२॥ HINDIPORNHIDHI MusalmanismRIAHINESHIAnimal इमा । अन्नाणवि निस्सिहियाभंगाई कुणंति विकहपरा ॥९२।। जओ-"जो होइ निसिद्धप्पा निसीहिया तस्स भावओ होइ। अनि-|| नषेधिक्यां सिद्धस्स निसीहिय केवलमित्तं भवइ सद्दो ॥९३।। मिहो कहाउ सबाओ, जो बजेइ जिणालए । तस्स निसीहिया होइ, ईई केवलि भुवनमल्लः भासियं ।।९४॥" इअ अट्टवसट्टाउ परुप्परं दोवि कलहमाणाओ। विज्जूए दड्ढाओ मरिउं जायाउ वग्वीओ ॥९५।। पुबन्भासा । अन्नुनदंसणे जायतिवरोसाओ। जुज्झिय मरिउं तत्तो पत्ताओ तइयनरयमि ॥९६।। तत्तो उवहिय गयउरंमि पुश्वभवविहियसुकयवसा । भाउजायाजीवो जाया सिरिसूरनिवजाया ॥१७॥ तीसे गन्भे धूयत्ताइ नणंदाजिओ उ उप्पो । अरई मणसंता उल्वेयं | जणइ अइगरुयं । ९८॥ विहिएसुवि तप्पाडणहेउसएमुं न जाव सा पडिया। तो जाया पयडेउं मयत्ति दासीइ छड्डविया ।।९९॥ तद्दिवसपसूयाए तीए पुण अप्पिया सध्याए । तत्थ य पालिजंति सा बाला वढिया तत्तो ॥१०॥ कीलंती डिंभेहिं अहऽनया जोगिएण भोलविआ। अइरुद्दमंतसाहणहेउं नीया मसाणे सा ॥१०१।।जा खिविही सो जलणे ता तुमए मोइउं इहाणीया । इय नाउं भो अप्पा कसाइअबो न थेवंपि।।१०२॥ भणियं च-'अण थोवं वण थोवं अग्गी थोवं कसाय थोवं च । नहु मे वीससिअखंथेपि हुतं | बहुं होइ ॥१०३।। दासत्तं देइ अणं अइरा मरणं वणो विसप्पंतो। सबस्सदाहमग्गी दिति कसाया भवमणंतं ॥१०॥" सा भणइ | सरिय जाई भयवं ! सबंपि मेऽणुभूयमिणं । ता इण्हि कुण करुणं दुहावि जह होमि निस्संगा ॥१०५|| भणइ मुणी गिहिधम्मस्स इण्हि उचिया तुमंजओ अस्थि । पुवकयदेवपूयाइसुकयसंभूय भोगफलं॥१०६॥जओ-"देवचणेण रज्जंभोगा दाणेण रूवमभएणं। सोहग्गं सीलेणं तवेण मणवंछिया सिद्धी॥१०७॥"सा भणइ तुम्ह सवं पञ्चक्खं नाह! नवरि मज्झ कहं । अविरयसुराण | मज्झे ठियाइ निवहेड गिहिधम्मो ॥१०८॥ तो केवलिणा भणियं भद्दे ! कालिंजराइ अडवीए । सिरिरिसहनाहभवणंमि तुझ पूर्य ||४२।। For Private And Personal Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahin Aradhana Kendra श्रीदे० चै स्यश्रो धर्म० | संघाचारविधौ ॥ ४३ ॥ www.kobafirth.org Acharya Shri Kailash Gyanmandir रयंती || १०९ || मप्पहरायमुओ तत्थ समागच्छिही भुवणमल्लो। जिणनमणत्थं विहिणा काउं निस्सीहियातियगं ॥ ११० ॥ तेण समं रजसुहं माणित्ता पालिउं च गिहिधम्मं । पडिवजिय पवअं लहेसि अयरामरं ठाणं ॥ १११ ॥ अह तीए गिहिधम्मे पडिवने नमि केवलस्स मए । इत्थागएण विहियं विजयपडायत्ति से नामं ।। ११२ ।। अह कुमर ! अञ्ज एसा जाब गया चेइयंमि पूयत्थं । ता कयनिसीहियतिगो जिणनमणत्थं तुमं पत्तो ॥ ११३ ॥ निस्सीहियं कुणतं तं दद् इमा सुरीहिं भणियत्ति । जो केवलिणा कहिओ धुवं इमो भुवणमल्लो सो ॥ ११४ ॥ अह ताहिं वाविपमुहं काउ पर्वचं तुमं इहाणीओ । ता तीइ पाणिगहणेण कुणसु मह पत्थणं सहलं ।। ११५ ॥ कुमरो भणइ पमाणं आएसो नवरि गम्मउ वणम्मि । मे विरहिओ परियणो दुहेण गमिही खर्णपि जओ ॥ ११६ ॥ आरोविउं विमाणे कुमरं सिविरंमि नेह जा असुरो । ता सहसा उज्जोअं ददद्धं सचिवाइणो विंति ॥ ११७ ॥ भो किंपि समे इणं हरिओ जेण कुमरो तओ खोहं । चइय हवह सजा साहसस्स दवोऽवि नहु किंपि ॥ ११८ ॥ यतः- “सत्त्वकतानमनसां, स्फूर्ज दूर्जखितेजसाम् । दैवोऽपि शंकते तेषां किं पुनर्मानवो जनः ।। ११९ ।। " इय ते हुति सुतित्ति ताव अमरगिरं । सत्तप्पहाण अवितहऽमिहाण जय सिरिभ्रुवणमल्ल तुमं ।। १२० ।। परउवयारपरायणपुरिसेनुं तुज्झ दिञ्जए लेहा । पसुमितस्तव कजे गणेसि पाणे तिणसमाणे ॥ १२१ ॥ इय मुणिय जायहरिसा ते ओयरिडं विमाणओ कुमरं । पणमंति तयं असुरं देवीसहियं च तुट्ठमणा ॥ १२२ ॥ तो सो असुरो हिट्ठो कुमरेण विवाहए तयं धूयं । सप्पणयं भणइ तहा वच्छे ! सुण मज्झ वयणमिणं ॥ १२३ ॥ निर्व्याजा दयिते ननांदृषु नता श्वश्रूषु नम्रा भवेः, स्निग्धा बन्धुषु वत्सला | परिजने स्मेरा सपत्नीष्वपि । पत्युर्मित्रजने सनर्मवचना खिन्ना च तदूद्वेषिषु, स्त्रीणां संवननं नतभ्रु ! तदिदं For Private And Personal नैषेधिक्यां भुवनमल्लः ॥ ४३ । Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I Shri M a h Aradhana Kendra www.kobatirth.org INI Acharya Shri Kailas Gyanmandir नषेधिक्या भुवनमल्ल विधौ श्रीदे० चै-10 | वीतौषधं भर्तृषु ॥ १२४ ॥ आमंति तीइ वुत्ते असुरो सपियस्स भुवणमल्लस्स । वत्थाभरणाइ बहुँ दाउं पत्तो सठाणमि || त्यश्रीधर्म | ॥१२५।। कुमरोऽवि तो चलिओ पत्तो चंपाइ तमह वुत्तंतं । सिरिसेणनियो सोउं इय चिंतइ हरिसिओ हियए ॥१२६ ॥ संघाचार तमि कुले उप्पत्ति सो विणओ तं कलासु कोसल्लं । सो कोवि पुण्णपन्भारपगरिसो अत्थ एयस्स ॥ १२७ ।। जेणं लीला इच्चिय धुवं करिस्सिहि राहवेहंति । निव्वुयहियओ राया कुमरं संठवह वरभुवणे ॥ १२८ ॥ अह सजिअराहावेहमंडवे रयण॥४४॥ | थंभसोहिल्ले। मंचोवरि वरसिंहासणोवविद्वेसु निवईसु ॥ १२९ ॥ कुमरो असुरप्पियपवरवत्थाहरणभूसियसरीरो। पडिहारदसियंमि निविसइ सिंहासणे रम्मे ॥ १३० ॥ इत्तो य रयणमाला कुमरी सियसिचयसारलंकारा । सिबिआरूढा पत्ता तत्थुधविट्ठा पिउच्छंगे ॥ १३१ ।। अह सिरिसेणनिवेणं भणि भो भो निवा! निवइपुत्ता। जोराहमिणं विधइ सो कमाए इमीड वरो ॥ १३२ ।। जा मंडवमझसुनिविट्ठकणयथंभोवरि अहो वऽण्णा । वरकंचणपुत्तलिया ठविआ तीसे उ हिट्ठमि ।। १३३॥ चउचउचक्काई दाहिणेण वामेण वेगभमिराई । तेसिं अहभूमीए तिल्लजुआ कुंडिआ ठविआ ॥ १३४ ॥ तत्थ पडिबिंबयाए पंचालीए अहो नियंतेणं । विधेयवा वामच्छितारिया सावहाणेण ॥१३५॥ तह इह पत्ताण मए सवेसिं खत्तिआण नामाई । भुज्जेसु लिहावेउ | मिम्मियगोलेसु खित्ताई ॥१३६।। ठविआई ताई इह सायकुंभकुंभंमि संति कडढंते । अम्हं पुरोहियम्मी गोलो किर नीहरइ जस्स ॥१३७।। सो राहावेहमी ववसायं कुणइ इय ववत्थत्ति । तत्थ पुरोहियहत्थे अह पढमे गोलए पडिए ॥१३८॥ नामंमि वाइए तह अउज्झनयरी' जस्स अंगरुहो । मयरद्धयकुमरो उडिऊण सकरे करेइ धj॥१३९।। पुवमणिएण विहिणा मुक्कोऽविहु अप्फिडित्तु | अयरंमि । मुचरणमणिहियए इव भग्गो मयरद्धयस्स सरो ॥ १४०॥ एवं राहावेहे विहलारंभेमु खत्तिअवरेसु । उट्ठेइ भुवणमल्लो amaliniIMAnamnnamIAnamnamNIDASIMHANIHINDISANILE ॥४४॥ For Private And Personal Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IFALL Shri Me in Aradhana Kendra Acharya Shri Kaila s श्रीदे० MARATI Gyanmandir नषेधिक्यां भुवनमल्ल चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥४५॥ www.kobalith.org | कुमरो इह अवसरे पत्ते ॥१४११ सञ्जीकयधम्मगुणो अंतरमह लहिय मुक्कअसमसरो । राहावेहं माहइ गंठीमेयं व भवजिओ ॥४२॥| जयतालादाणपरे जणमि कुमरेण हहतुहमणो। तो सिरिसेगनरिंदो परिणावइ रयणमालं तं ।। १४३ ॥ कयसम्माणं अन्ने | नियनियठाणे निवे विसज्जेइ । कुमरोऽवि कइवि दिवसे सुहेण तत्थेव ठाऊण ॥१४४॥ सिरिसेणनिवमणुनविय बहुयपरिवारपणइणीसमेओ । पत्तो नियंमि नयरे पिऊण पणमेइ पयपउमं ॥१४५॥ भुत्तुत्तरं व सीहो कुमरवयंसो कहेइ सबंपि। रण्णो जं जहवित्तं ता जाव इहागओ कुमरो ॥१४६॥ धम्मत्थिणा अह निवेणाहूआ कयाइ सबदसणिणो । पुट्ठा धम्म तेहिं कहिए चिंतइ इमं राया ॥१४७.। जत्थ न विसयविराओ न संगचाओ जिएसु विणिवाओ। किह हुन्ज सोवि धम्मुत्ति चिंतिउं ते विसज्जेइ ॥ १४८॥ कहइ कुमारो इच्छा धम्मे जइ ताव ताय ! जइणोऽवि । ता पुच्छह मुणिणो रक्खियंगि गयसंग जियणंगा ॥१४९।। निवआएसा तो वित्तिणा उ खुड्डो समाणियो एगो । स निवेणुत्तो खुड्डय ! जइ धम्म मुणसि ता कहसु ।। १५० ॥ तो सो अक्खुहियमणो धम्मरहस्सं इमंति भणमाणो। सुक्कल्लमट्टिगोलयदुगं निवग्गे खिवइ कुड्डे ॥१५१।। राजा-खुड्डय! इय खिडेमी धम्मरहस्सं न किंपि बुज्झामो । क्षुल्लका-नरवर! ता एगमणो सुण भणिय जमिह गोलेहिं ॥१५२|| उल्लो सुक्कोय दो छुढा,गोलया मट्टियामया। दोऽवि आवडिया कुड्डे, जो उल्लो सो विलग्गई ॥१५३।। एवं लग्गति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न लग्गति, जहा से | सुक्कगोलगो।।१५।। विम्हइयमणो निवई मुणिसत्तम अतम सु? उवइ8 । इय थोऊणं तह नमिय खुड्यं तो विसजेइ॥१५५।। अह पीयदिणे राया रजं दाऊण भुवणमल्लस्स । सिरिअभयघोसगुरुणो पासे दिक्वं पवजेइ ।।१५६।। हेमप्पहरायरिसी दुवालसंगी सुपत्तमरिपओ । बोहइ रविध वनुहासरसीए भवियसरसीरुहे ॥१५७।। अह निवा भुवणमल्लो पयावओ चेव विजियरिउमल्लो । साहम्मि HimalTINARIANSnilm For Private And Personal Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mersin Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रोदे० चैत्यश्रीधर्म०संघा-I प्रदक्षिणात्रयं चारविधौ | ॥४३॥ अवच्छल्लं करेइ वंदेड जिणचंदे ॥१५८।। पवयणपभावगपरो तिमिनिसीहीपमुक्खसुयविहिणा । पविसिय चेईहरेसुं अचाउ जिणाण अचेई ॥ १५९ ।। रहजत्तपत्तसोहं अट्टाहियमहिमहणियजणमोहं । सयलंपि नियं रजं कुणइ सुराणपि कयचुज्जं ॥१६०॥ तत्थागयहेमप्पहगुरुणो वयणं सुणेवि कइयावि । पुत्तमि ठविय रज्जं विजयपडायाइसंजुत्तो ।। १६१ ॥ पडिवञ्जई पवज्जं निसेहिउं तिविह सबसावज । अम्भसइ दुविहसिक्ख सो मुणिसीहो भुवणमल्लो॥१६२।। इच्छामिच्छातहकार आवसी तह निसिहिआ आपुस्छ।। |पडिपुच्छ छंदण निमंतणा य उवसंपया दसमा ॥१६३॥ इय सामायारिपरो निसेहिउँ सयलअंतरारिबलं । तो स निसेहियकिरिओ सिवं गओ सविजयपडाओ ॥१६४|| श्रुत्वेति वृत्तमनिवृत्तवरेण्यपुण्यपण्यापणं भुवनमल्लनरेश्वरस्य । त्रैकाल्यवित्रिजगदीशजिनस्य |गेहे, नैपेधिकीत्रिककृतौ कृतिनो! यतध्वम् ॥१६५।। इति नैषेधिकीत्रये भुवनमल्लनरेश्वरकथा॥ अथ बलानकप्रवेशसमयविहितनषेधिकीत्रयानंतरं जिनदर्शने 'नमो जिनेभ्यः' इति भणित्वा प्रणामं च कृत्वा सर्व हि प्रायेणोत्कृष्ट वस्तु कल्याणकामैर्दक्षिणभाग एव विधेयमित्यात्मनो दक्षिणांगभागे मूलविंबं कुर्वन् ज्ञानादित्रयाराधनार्थ प्रदक्षिणात्रयं करोति, उक्तं च-'तत्तो नमो जिणाणंति भणिय अद्धोणयं पणामं च । काउं पंचगं वा भत्तिभरनिन्भरमणेण ॥ १॥ पूअंगपाणिपरिवारपरिगओ गहिरमहुरघोसेण । पढमाणो जिणगुणगणनिबद्धमंगल्लथुताई ॥२॥ करधरियजोगमुद्दो पए पए पाणिरक्खणाउत्तो । दिजा पयाहिणतिगं एगग्गमणो जिणगुणेसु।।३।। (१)अविय-"मुत्तण जं किंचिवि देवकज्जं, नो अन्नमद्वं तु विचिंतइजा । इत्थीकहं भत्तकहं विवज्जे, देसस्स रनो न कह कहिजा ॥१॥ मंमाणुवेहं न वइज वकं, न जमकंमाणुगयं विरुद्धं । नालीयपेसुनसुकक्कसं था, थोवं हियं धम्मपरं लविजा ।।२।" गिहचेइएसु न घडइ इयरेसुवि जइवि (न कुणइ) कारणवसेण । तहवि न मुंचइ INSPIRRIMIRMAL H ARY Mole lalithaur For Private And Personal Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Me www.kobairth.org श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ IELI i n Aradhana Kendra Acharya Shri Kalahari Gyanmandir | मइमं सयावि तकरणपरिणाम।।१(ब)ति, यथा च चैत्येषु भावार्हच्चमारोप्य शक्रस्तवपाठः पंचविधाभिगमश्चेति भावार्हत्प्रतिप- प्रदक्षिणायां त्तिर्विधीयते तथा तत्र प्रदक्षिणात्रयमपि दातव्यं, दत्ताश्च तिस्रः प्रदक्षिणा विजयदेवेन निजराजधानीसिद्धायतने, व्याख्यातं चैतत् हरिकूटतृतीयोपांगजीवाभिगमविवरणे श्रीहरिभद्रसूरिभिः, तथा अमिततेजःखेचरेश्वरचैत्यगृहे चारणश्रमणाभ्यां ताः प्रदत्ताः,बाल संबंध: चंद्रया च विद्याधर्या वैताढयोपरितने सिद्धायतने कृताः, वसुदेवेन हरिकूटपर्वतोपरितने सिद्धायतने विहिताः, एतच्च सर्व वसुदेवहिंडौ प्रतिपादितं यथाप्रस्तावं च दर्शयिष्यते, तत्र चायं हरिकूटपर्वतसंबंधः-वेयइढे ताव पुरे निवसंतो देवरिसहखयरगिहे। कइयावि वालचंदापियाइ भणिओ य वसुदेवो ॥१॥ पत्तो हरिकूडनगे जत्ताए तत्थ पुच्छए मयणं । किं मित्त ! कारणमिह जमिति खयरा इमे सवे ॥ २॥ स भणइ इह पहु! अंबरतिलयपुरे दाहिणाइ सेढीए। विजाहरचकवई आसी इह चित्तवेगोत्ति ॥३॥ तस्स य विचित्तवेगो लहुभाया भण्णए हरित्ति इओ। मुणिविमलगुत्तपासे कयाइ इय सुणइ सो धम्मं ॥४॥ अइबहुकिलेसपत्तं चिंतारयणं व नरभवं भविया । हारित्तु पमायवसा दुहिया मा भमह भइउच्व ॥५॥ तथाहि-रयणपुरे आसिको जणकयभइआमिहो नरो दुहिओ। गम्भत्थे जंमि मओ जणओ जणणी उ जायंमि ॥६॥ निम्भग्गसेहरुति य सयणेहिं विवजिओ उ बालत्ते । बलियत्तणा उ आउस्स नवरि सो वढिओ कहवि ॥७।। अह तरुणत्तं पत्तो दटुं नायरजणं पलीलतं । चिंतइ धिरत्थु जीयं महऽत्थकामेहिं रहियस्स ।।८॥ तो जायविसयतण्हो विसया अत्थं विणा न हुतित्ति । चिंतिय कस्सवि वहणे चडिय गओ सो रयणदीवे ॥९॥ गयणावडिओ धरणीइ साहिओ नत्थि कोऽवि मह सरणं । तं मुत्तुं रोहणाचल ! इय भणिउं पूइउं च तयं ॥१०॥ गहियाहयकुद्दालो कयकच्छुट्टो विमुक्कचिहुरचओ। जायइ लग्गो बहुरयणखणिं खणेउं इमो तयणु।११।। निब्भग्गसि ramanaIRE wal Buide Nagar HAMIONS P For Private And Personal Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ III Shri Mahlah Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei kailas Gyanmandir श्रीदे० | चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥४८॥ प्रदक्षिणायां हरिकूटसंबंध: रोमणिणो मह विणु चिंतामणि अखयखाणि । कालेण खयं होही रयणाण वराणवियराणं ॥१२॥ ता मह न तेहिं कति निच्छिउं | गिण्हए न रयणाणि । वयराइणीवि चिंतामणिमि धणियं स बद्धमणो॥१३।। काहिवि दिणेहिं अह सथिएहिं भणिओत्ति नियपुरं जामो । सो आह नाहमजवि किंपि लहित्था कहं एमि? ॥१४॥ तो जायदएहि सहागओत्ति कामिकगं वरागमिमं । गच्छामोत्ति विणिच्छिय पुण भणिओ सोइमं तेहिं ॥१५॥ आगच्छ तुहवि देमो भागो रपणाण तो इमो भणइ । न विणा चिंतामणिणा गहेमि रयणे वरेऽवि परे॥२६॥चिंता मणमि तुह चेव अस्थि चिंतामणी न उण अनो। इय भणिय बहु सहासं तं मुत्तु इमे गया सपुरं ॥१७॥ सीयायवछुहमाई सहमाणो अह इमो बहुकिलेसे । छम्मासंते निसि रोहणाहिवइणा इमं भणिओ॥१८॥ किं न तुम इह रयणे गहिय गओ सथिएहिं सह सपुरं । द्रमकः-चिंतामणी अलाहा देवः-लहिसि चिंतामणिं न तुमं ॥१९॥ द्रमका-जणु किं न संति ते इह देवः-संति बहू न उण ते अपुनस्स । द्रमकः-गोविसि कत्थ नणु तेवि मज्झ खगंतस्स सयलगिरि ॥२०॥ अह देवे सट्ठाणं गयंमि गोसे इमो गिरि खणिउं । लग्गो धणियं कहहिवि दिणेहिं पुणरवि सुरेणुत्तो॥२१॥ भोगच्छसि कि नजवि ?, द्रमका-वुत्तं चियतं मणिं विणत्ति धुवं । देवः-जइ इय ता हुन्ज सुही गोसे चिंतामणिं गहिउं ।।२२।। इय भणिय गए अमरेस विबुद्धो लब्भिहित्ति जाखणिओ । दसदिसि उज्जोयंतं ता लहु चिंतामणिं नियई ॥२३॥ तं गहिय हविय पूइय नमिउं चिंतामणी जइसि सचं । तो पणसवकणगोवरि निविसत्ति भणित्तु सो सुत्तो ॥२४॥ गोसे दट्टुं सकणगं तं मन्नतो कयत्थमप्पं तो । चिंता गंतु सदेसे माणेमि इमस्स रिद्धिफलं | | ॥२५॥जओ-किंतीई सिरीए पीवराइ जाहोइ अन्नदेसम्मि।जायन मित्तेहि समं जंच अमित्तान पिच्छति॥२६॥ तो वंसग्गे उभइ तिणपूलमिओ य गच्छिरेण तहिं । केणवि वणिणा आणवि पुच्छिओ कोऽसि किमिहंति? ॥२७॥ स भणइ असंबलमिहं ॥४८॥ For Private And Personal Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M श्रीदे० चै त्यो धर्म ० संघाचार विधौ 11 28 11 Aradhana Kendra www.kobatirth.org तुं सत्थसत्थिया पत्ता । कहइ वणी तो भो इह जिमिज तं एज जाव तडं ॥ २८ ॥ तो तणविलग्गो आगच्छंतो कमाइ स निसीहे | सुत्तविउद्धो पिच्छइ सहसा पुंनिमनिसारयणं ||२९|| तं धवलियादिसिवलयं पिच्छइय जा चिंतए किमनंपि । अह एरिसमत्थि नवत्ति सरइ ता सो मणिं निययं ॥ ३० ॥ तं काउ करे जा नियइ को णु पवरोत्ति विम्हिओ दोवि । सहसा दुल्लियवहणे ता पन्भट्ठो कराउ मणी ||३१|| सो पडिओ जलहिजले तं नाउ इमो निवडिओ वहणे । हा हा मुट्ठो मुट्ठोति पुकरंतो य विलबंतो ||३२|| अह आसासिय पुट्ठो पवहणवणा सो किमेयं भो ! । तो अंसूणि मुयंतो साहइ सबंपि वृत्तंतं ॥ ३३ ॥ जंपइ य बहुकि| लेसेहिं अज्जियं देव ! मे हयासेण । हारियमञ्ज पमाया अप्पावसु पसिअ तं स्यणं || ३४ || भगइ वणी किह शुद्धय ! लब्भर भट्टो मणी इह अगाहे ? । जत्थ फुरेह न बुद्धी न य विहवबलं न पोरिस्सं ||३५|| ता सो दुमगो दुहिओ जह जाओ तं मणि विणा सुहरं । तह होइ जिओवि दुही पमायओ हारिय नरत्तं || ३६ || अवि देवाइपसाया तं लहिअ कयाइ पुण स हुआ सुही । न उण जिओवि पमत्तो नरभवमम्भहियसुकयलभं || ३७ || जह पुण अच्चणसहिओ सहलो चिंतामणी हवइ इहयं । तह नरभवोऽवि अच्चणनिरयस्स नरम्स सुइहेऊ ।। ३८ ।। तो अच्चणं विहेयं सया जिणाणं जहिच्छियफलाणं । दवच्चणभावञ्चणमेया पुण होइ तं दुविहं ||३९|| अथ महानिशीथोक्तं- दवच्चणमिह सावयसीलं सकारपूयदाणाई । भावच्चणं चरित्ताणुट्ठाणं उग्गतवचरणं ||४०|| तथा - भावच्चणमुग्गविहारया य दवच्चणं तु जिणपूआ । पढमा जईण दुन्निवि गिहीण पदमच्चिय पसत्था ||४१ || कंचणमणिसोवाणं थंभसहस्त्र सिए सुवण्णतले । जो कारिज जिणहरे तओऽवि तवसंजमो अनंतगुणो ॥ ४२ ॥ जओ-तत्रसंजमेण बहुभवसमजिअं| पावकम्ममललेवं । निद्धोविऊण अइरा अनंतसोक्खं वए मुक्खं ||४३|| काउंपि जिणाययणेहिं मंडिअं सबमेइणीवहं । दाणाइचउ For Private And Personal Acharya Shri Kailasi Gyanmandir प्रदक्षिणायां हरिकूटसंबंध ॥ ४९ ॥ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Me i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म संघाचार हरिकूट संबंध विधौ HOMDHimal ॥५०॥ MIMANIPAHINITISHNA AMIRI emosaminimum solu केणं सुठुवि गच्छेज अच्चुययं ॥४४॥ जो पुण निरचणोच्चिय सरीरसुहकजमित्ततल्लिच्छो। तस्स न य बोहिलाभो न सोग्गई। प्रदक्षिणायां नेव परलोगो ॥४५॥ इय सोउ विमलगुत्तायरियसगासे विचित्तवेग निवो । गहियवओ विहरेई भावितो इय मणमि सया ।। ४६ ॥ जिय ! गहिउं इय दिक्खं तह गुरुसिक्खं चइत्तु तणुविक्खं । तो तवसु तवं तिक्खं सुहदिक्खं जेण दइरिक्वं (तुह सक्रखं)॥४७॥ इय मावित्तु अभिक्खं विसुद्धभिक्खंपि चइअ सिवसक्खि । कयअणसणो मुणींदो स मरिय जाओ मुहम्मिन्दो ।। ४८ ॥ अह संनिहियसुरेहिं निसीहिया तस्स पूइया तं च । नमिउं खेयरचउरो समण्णिओ चित्तवेगोवि ॥४९॥ तं दठ्ठ भाउणेहाउ मुच्छिओ कहवि लद्धचेयण्णो। सो तत्थ विमलगुरुणा विवोहिओ मा य सोय पुरो ॥५०॥ जहा-"न हु होइ सोइयवो जो कालगओ दढो चरित्तंमि । सो होइ सोइयत्वोजो संजमदुबलो विहरे ॥५१॥ अविय-सोचा ते जियलोए जिणवयणं जे नरा न याणं ति। सोचाणवि ते सोचा जे नाऊणं नवि करंति ॥५२॥ जओ-दावेऊण धणनिहिं तेसिं उप्पाडिआणि अच्छीणि। नाऊणवि जिणवयणं जे इह विहलंति धम्मघणं ॥ ५३॥ किंचको से सोओ सुचरियतवस्स गुणसुट्टियस्स साहुस्स। सुग्गइगमपडिहत्थो जो अच्छइ नियमभरियभरो ॥५४॥" इच्चाइयोहिओ सो तणंव चइऊण खयरचकित्तं । पडिवाइ पहजं असेसदुक्खक्खए सजं ॥५५।। अणुसरिय सुओयहिणो तक्खणमुल्लसियसेयझाणस्स । उप्पलकेवलस्स य सक्को से वंदिउं पत्तो॥५६॥ सो भयवमेसि धम्म कहिउं तदिवसमेव सिद्धिगओ। विहिया अब्भुयभूया हरिणा निवाणमहिमा से ॥५७।। एयं च जिणाययणं सक्केण विणिम्मियं इहं मज्झे । रिसहस्स भाउणो तह ठविआ पडिमाउ कणगमया ।। ५८ ॥ चक्करयणं व से धम्मचकंचिअ ठावियं इहेव इमं । भद्दासणं च बाहिं तस्सोवरि मंडवो | ॥५०॥ For Private And Personal Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahan Aradhana Kendra श्रीदे० चै या धर्म ० संघाचार विधौ ॥ ५१ ॥ www.kobafirth.org Acharya Shri Kailasri Gyanmandir एसो ।। ५९ ।। अत्र च वसुदेवहिंडी-देविंदेण य इमं इत्थ सङ्घवण्णणाइसयं जिणाययणं निरुत्रमसस्सिरीयं निरूवियं, इत्थ य नाभेयस्स भगवओ भाउणो य पडिमाओ ठाविआओ सबकणगामईओ, चकरयणं च धम्मचकं निधाइयं, चाहिं निविट्ठस्स य उवरि रयणमंडवो कउ"त्ति ।। भणियं हरिणा किर अञ्जपमिई अविहाडिए इहं भवणे । मज्झे पडिमा मह वयणओ सुरा पूइहिंति सया | ॥६०॥ वरिमुच्छवो बहिं पुण कायो उभयसेढिखयरेहिं । जो उ न काही इहयं होही खलु भट्ठविओो सो ॥ ६१ ॥ जो कारणागओ इह चक्की चरिमतणु खयरचक्की वा । जो खयरचक्किणा वा न दुम्मए सम्मदिट्ठी य ॥ ६२ ॥ जे एसि पिया पुत्तो वर्णतरं चेइयं इमं सययं । उग्घाडिस्सह भद्दासणं च वाहिस्सर न अन्नो || ६३|| तस्स य नीसाऍ जणो सेसोविदु वंदिही इमं पडिमं । मह महविणिम्मियाउत्ति भणिय सको गओ सग्गं ||६४ || सकस्स तस्स दोसुवि भवेसु आसी हरित्ति जं नामं । तेणं एसो धूभो भण्णह तप्पमिइ हरिकूडो || ६५|| तो मिलिय सबखयरा कुणंति महिमं इहं इय ठिईए। जायाई इंदजुग्गंतराइ गाई अइयाई ।। ६५ ।। निसुणिजइ अ परंपरसुईइ जह आसि अंतरा एवं । उग्घाडियं जिणगिहं केहिवि वरखयरचकीहिं ।। ६६ ।। बहवे य किलिस्संति उत्तम रित्तमडिआ खयरा । उग्घाडिउमिमं वाहिउं च एयं वरिसवरिसे ॥ ६८ ॥ इय मयणमित्त कहिए वसुदेवो गंतु जिणगिहे नमिउं । तिपयाहिणपुत्रं चेइआणि बहि पिच्छई महिमं ||३९||" अत्र वसुदेवहिंडीअक्षराणि “ तत्थ य तिगुणाईयं पयाहिणं काउं वंदिऊण बाहि भत्तीए चेइयाणि एगओ ठिय"त्ति, वह य चारुगंधवगीअयो सुमहिमा विहिअंति । खयरेहि मुक्कवयरेहिं इय समुग्घुटु थुह सहसा ||७० || तथाहि सज्ज्ञानलक्ष्याः सुनिवेशनार्थं, सन्मंडपत्याशु समा (दा) गमोत्था। लसद्यदंसोपरि केशवल्ली, सदा मुदेवः स युगादिदेवः।। ७१ ।। त्रैलोक्यलक्ष्म्या वृतये स्वयं या, सन्मंडपत्यार्हतचैत्यराजी । साऽनित्यनित्या नमतां नृणां स्याद For Private And Personal प्रदक्षिणायां हरिकूटसंबंध ॥ ५१ ॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ShriM i nAradhana Kendra SET www.kobaith.org Acharya Shri Kala Gyanmandir श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म | संघाचार विधौ ॥५२॥ | नित्यनित्याय सुखाय नित्यं ॥७२।। अनित्या-कृत्रिमा नित्या-शाश्वता अनित्यं सुखं स्वर्गान्तं नित्यं मुक्तिसंभवं । सत्तीर्थलक्ष्म्या | प्रदक्षिणायां विनतौ हि रंगात् , श्रीमंडपत्यास्तृतमूत्रितं यत् । तदस्तु मे जैनीवचः प्रपंचि, सुवाचनं प्रावचनं सुवाचौ ॥७३॥ श्रीसंघलक्ष्म्या हरिकूटसुचिरं सदा ये, समं डपंतीह सुरासुरीमिः । संख्यावृतव्यावृतभावभावाः, सुदृष्टयः संतु सुदृष्टये ते ।।७४।। संघशोभायै सम-सह संबंध णिचोऽनित्यत्वात् डपडिपुण संघाते डपंति-मिलंति संख्यावृतौ व्यापारितो व्यावृतभावो-वैयावृत्यभावो यैस्ते तथा।" तथा च वसुदेवहिंडिः-कमेण य जिणग्गे पवरनट्टोवहारवजमाणबारसतूरगंभीरसंभंतभत्तीपरायणखयररवसंसत्तथुइसयगुम्मतत्तिपरायणभमंतसिरिसंकुला पयासिया महिमत्ति" अह वमुदेवो भणिउत्ति देवरिसहाइससुरखयरेहिं । जिणगिहविहाडणाए न संति सम्वे खमे इयरा ।।७।। ता उग्घाडेहि महाणुभाव! एयं इमोवि खयरजणो । पिच्छउ पदमजिणमुहं पूएउ य दिवपडिमाओ७६।। तो सो ण्हाउविलित्तो परिहियसियअहयवत्थवरजुयलो । देवरिसहाइखयरिंदसंजुओ जाइ जिणगेहं ।।७७।। सक्खं सग्गस व संपयाहिणाहो | पयाहिणाहो सो। तइया पयाहिणाओपयाहिणाओ तहिं कुणंतो ॥७८|| विणयपणउद्वितो तो वसुदेवो सुहुमलोमहत्थेण । सिद्धाय यणकवाडे मन्जिय अहिसिंचइ जलेण । ७९।। तो सुरहिमल्लमालाअलंकिए काउ दाउ धूवं च । बहुभक्खपाणचउरं तस्स बलिं दोयह विचित्तं ।।८०॥ उक्तं च वसुदेवहिंडीतृतीयखंडे-"धुवं दाउंतओ सुरहिमल्लकरंवियाविविहभक्खपाणगपुण्णा मल्लसुरहिसासगविभूसिया निवेइया विचित्ता बली," पुणरवि दावियध्वो कयंजली विणयपणयसीसो य । कयसिद्धनमुक्कारो वसुदेवो आह वयणमिणं ॥ ८२ ॥ जइहं सच्चं भव्वो विण्हुपिया वावि उत्तमो पुरिसो। सम्मद्दिट्ठी देवा ता उग्धाडिंतु मम दारं ।। ८३ ।। इय भणिए उग्घडियं चेइयवारं सयं चिय तो सो। पडिमालोए भणिउं नमो जिणाणंति पणमेइ।।८४।। तो हविय पूइऊणं विहिणा ||॥५२॥ I EDIm mailIMUHURATION mratam । For Private And Personal Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mall Aradhana Kendra www.kabatirth.org Gyanmandir श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ हरिकूट संबंध: हारकूटपर्वतसंबंधः Acharya Shri Kailas | वंदेइ चेइयाणि इमो। सेसोऽविहु खयरजणो एवं चिय कुणइ जिणमहिमं ॥८५।। इय जिणपइकखणेणं सहलेणं संपइक्खणं तं सो।। | विहिणा पइक्खणेणं पइक्खणं पक्षणपरेण ॥८६।। तद्यथा-अणुगम्मतो ससुराइएहिं तह जाव गंतु वसुदेवो । भूयासणे निसीयइ | ता उच्छलिया गयणवाया ॥ ८७ ॥ पुवभवसुकयअज्जियफलोदओ साहुविणयगुणजुत्तो । बलकेसवजुयलपिया लग्गो भूयासणं दिवं ।।८८|| जमणेण कयं विउलं वेयावच्चं सुसाहुवग्गस्स । नीयावित्तीइ पुरा तस्सेसमुवट्ठियं एयं ।। ८९॥ अह उद्विय वसुदेवो | वंदिय पुण चेइयाणि तायपुरे। पत्तो सुहेण वोलइ कालं दोगुंदुगुसुरुव्व।।९०॥ एवं निशम्य सम्यग् प्रदक्षिणात्रितयपूर्वकं भव्याः। ज्ञानादित्रितयाराधनाय चैत्यानि वंदध्वम् ॥ ९१ ॥ इति प्रदक्षिणात्रये हरिकूट पर्वतसंबंधः ४ ॥ प्रदक्षिणात्रयानंतरं च देवगृहलेखकपोतकपाषाणादिघटापनकर्मकरसारादिकरणेत्यादिजिनगृहविषयव्यापारपरंपराप्रतिषेधरूपां द्वितीयां नैषेधिकी मध्ये मुखमंडपादौ कृत्वा मूलबिंबसंमुखं प्रणामत्रिकं करोति, यद्भाष्यं-तलो निसीहियाए पविसित्ता मंडवंसि जिणपुरओ । महिनिहियजाणुपाणी करेइ विहिणा पणामतियं ॥१॥ तयणु हरिमुल्लसंतो कयमुहकोसो जिणिदपडिमाणं । अवणेइ रयणिवसियं निम्मल्लं लोमहत्थेणं ।।२।। जिणगिहपमजणं तो करेइ कारेइ वावि अन्नेण । जिणबिंबाणं पूयं तो विहिणा कुणइ जहजोगं ॥३॥ अह पुत्वं चिय केणइ हविज पूया कया सुविहवेण । तां च विशिष्टान्यपूजां सामग्र्यभावे नोत्सारयेत् ,भव्यानां तदर्शनजन्यपुण्यानुबंधिपुण्या नुबंधस्यांतरायप्रसंगात, किंतु तंपि सविसससोहं जह होइ तहा तहा कुजा ॥४॥ (१९३-१९६) निम्मल्लंपि न एवं भन्नइ नि| म्मल्ललक्खणाभावा । भोगविणटुं दव्वं निम्मल्लं बिति गीयत्था ॥५॥(८९) यत्तु जिनबिंबारोपितं सद्विच्छायीभूतं विगंधि संजातं दृश्यमानं च निःश्रीकतया न भव्यजनमनःप्रमोदहेतुस्तन्निर्माल्यं ब्रवंति बहुश्रुताः,आगमे चैवंविधं निर्माल्यमेवं च नेत्येवं निर्णयो CHSपादी कृत्वा मूलविंबसंमकरसारादिकरणेत्यादिजिन ॥५३॥ For Private And Personal Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sh i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka m pus Gyanmandie प्रणामत्रिक श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघा-N चारविधौ | ॥५४॥ NE न क्वापि दृश्यते । इत्तो चेव जिणाणं पुणरवि आरोवणं कुणंति जहा । वस्थाहरणाईणं जुगलियकुंडलियमाईणं ॥६॥ (९०) नैवं चेत्-कहमन्त्रह एगाए कासाईए जिणिंदपडिमाणं । अट्ठसयं लूहंता विजयाई वनिया समए ॥७।। (९०) एवं अंगपूजां वक्ष्यमाणां चारपूजां कृत्वा चैत्यवंदनां चिकीर्षुर्यथोचितदिगवग्रहस्थस्तृतीयां जिनपूजाकरणब्यापारपरित्यागरूपां नैषेधिकी करोति, पुष्पफलपानीयनैवेद्यप्रदीपप्रमुखपदार्थसार्थसमानयनादिरूपो जिनपूजाविषयोऽपि सावधव्यापारो देववंदनावसरे न कर्तव्य इत्यर्थः।। तत्र यदुक्तं-'करेइ विहिणा पणामतियं ति तत्प्रणामस्वरूपनिरूपिकेयं गाथाअंजलिबंधो अद्धोणओ अ पंचंगओ य तिपणामा। सवत्थ वा तिवारं सिराइनमणे पणामतियं ॥९॥ (प्र०) यद्वा भावितं-'तिन्नि निसीहि तिन्नि य पयाहिणे ति त्रिकद्वयं, संप्रति 'तिनि चेव य पणामेति तृतीयं त्रिकं भावयन्नाह'अंजलिबंधो' गाहा, प्रक्षेपा सोपयोगा चेति व्याख्यायते-इहैकः प्रणामोउंजलिबंधरूपः, अयमर्थः-खाम्यादिदर्शनविज्ञापनादिसमये भक्तिकृते करद्वयायोजनतोऽजलिकरणं,शीर्षादौ वाउंजलेन करणं शीर्वादौ,तत्र च परिभ्रम्य विज्ञापनकृते मुखादिप्रदेशे संस्थापन, यथाऽऽगमः-"चक्खुफासे अंजलिपग्गहेणं" तथा 'अंजलिमउलियग्गहत्थे तित्थयराभिमुहे सत्तट्ठ पयाई अभिगच्छ” तथा 'सिरसावत्तं दसनहं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी' तथा 'सिरसावत्तं दसनहं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं बद्धावित्ता एवं वयासी'इत्यादि, उपलक्षणमेतत् एकहस्तस्याप्यूर्वीकरणादेः, गौरवाहप्रतिपत्तये तथा करणस्य लोके दर्शनात् ,अन्यस्त्वर्धावनतरूपः ऊध्वादिस्थानस्थितैः किंचित् शिरोनमनं शिरकरणादिना भृपदादिस्पर्शनं चेत्यादिस्वरूपः, ऊक्तं चागमे-"आलोए । जिणपडिमाणं पणामं करेइ तथा बृहदभाष्ये "तत्तो नमो जिणाणंति भणिय अद्धोणयं पणामं च । काउं पंचंगं वा भत्तिब्भर For Private And Personal Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IAill Shri Marath Aradhana Kendra asl www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir BE श्रीदे० प्रणामे विजयदेव चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ || ॥५५॥ निम्भरमणेण ॥१॥"त्ति (१९) अर्थतः । एकांगादिचतुरंगांतप्रणामानामुपलक्षणमिदं, अर्द्धानि न सर्वाणि प्रकृतांगमध्यादंगान्यवनतानि यत्र प्रणामे सोविनत इति व्युत्पत्तेः, अपरस्तु पंचांगः, पंच न चत्वार्यपि अंगानि जानुद्वयादीनि भूस्पृष्टानि यत्र स| | पंचांगः, उक्तं च-"दो जाणू दुन्नि करा पंचमगं होइ उत्तमंगं तु । संमं संपडिवाओ नेओ पंचंगपणिवाओ ॥१॥(२३३) एते त्रयः | प्रणामाः, सर्वत्र वा भूम्याकाशशिरःप्रभृतिषु उक्तप्रणामेषु वा प्रणामकरणकाले त्रीन् वारान् शिरःकरांजल्यादेमनावर्तनादिना प्रणामत्रिकं भवति कर्तव्यं, विजयदेववत् , विशेषविषयस्त्वत्र एतद्द्वारावसरव्याख्यानतो बहुबहुश्रुतपर्युपास्तेश्च ज्ञातव्यः। पूर्वसू-| चितविजयदेवक्तव्यता चेयं पुवेण विजयदाराउ गंतुं तिरियं असंखदीवुदहिं । अन्नंमि जंबुदीवे वारस जोअणसहस्साई ॥१॥ ओगाहित्ता विजया|नामा तत्थथि रायहाणी सा। बारसहस्साई जोयणाण आयामविक्खंभे ॥२॥ वप्पो कणगमओ तीइ सड्ढसगतीसजोयणे | उच्चो । चउरंसो मज्झे बहिवट्टो गोपुच्छसंठाणो ॥३॥ अद्धत्तेरसजोयणपिठुलो मूले६तयद्धयं मज्झे । उवरिं तु जोयणतिगं कोसद्धं | | चेव विच्छिन्नो ॥४॥ पणधणुसयपिहुकोसदीह ऊणद्धकोसउचेहिं । पंवविहमणिमएहिं कविसीससएहिं सोहिल्लो ॥ ५॥ बाहाए २ सेयावरकणगथूहिया रम्मा ५। पणुवीसंसयदारा तोरणछत्तज्झयाइजुया ॥६।। सबोउयकुसुमफला तस्सासोगवणसत्तवण्णवणा। चंपयवण चूयवणत्ति चउद्दिसिं पुबमाईसु ॥७॥ जे सु अ बहवे वंतरदेवा देवी सयंति निसयंति । चिट्ठति तुयती ललंति कीलंति य पहिट्ठा ॥८॥ पोराणसुचिन्नाणं कडाण कम्माण आयरकयाणं । पच्चणुभवंति निचं कल्लाणतरं फलविसेसं ॥ ९॥ तहिं पासाय| वडिसो बहुमज्झे अस्थि विजयदेवस्स । पवरमणिरयणकिरणोहरइयगयणयलहरिचावो ॥१०॥सोलहुपासायवडिसएहि दिसिगेहि For Private And Personal Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mart in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघा. चारविधौ ॥५६॥ I LAIMAHILA m ChilUNIAnimalIASIAHIN MAITHIPTAHIRUITMAITHILIPHA NE SWISS HINTAI चउहि परियरिओ। सोहइ सोहम्मवडिंसउव्व दिसिवइविमाणेहिं ॥ ११ ॥ तेविहु चउरलहुपरपासायवडिसगाणुगा रम्मा । रेहंति प्रणामे चउदिसिगया ते बहिमेरू सगयदंता ॥१२॥ मणितोरणचंदणघडपंचालियछत्तझयपडागाहिं । परिमंडिया सुरूवा पासाईया य ते विजयदेवः | सव्वे ॥ १३ ॥ तथा ईशानदिग्विभागे-थंभसहस्सिल्लमुहमंडवाइच्छगजुअतिदारपंचसहा । संति सुहम्मुववायामिसेयलंकारववसाया| | ॥१४॥ अह उववायसहाए दूसंतरियम्मि देवसयणिज्जे । विजओ नाम देवो उववनो चिंतए एवं ॥१५॥ किंमे पुच्वं सेयं? किंवा पच्छा व एव करणिजं । हियसुहखमनिस्सेसाणुगामियाए भविस्सइ वा ॥१६॥ तस्सेवं अब्भत्थियचिंतियपत्थियमणोगय मुणिउं । संकप्पं सामाणियदेवो आगम्म विजयस्स ॥१७॥ करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु । जयविजयेणं बद्धावित्ता वयणमिणमुदाहु ॥१८॥ सोहम्मसहेसाणे पहु! सिद्धाययणमत्थि तिवारं । नवजोयणउच्चं अद्धतेरदीहं तयद्धपिह ॥१९॥ चिइ. सहि वहिपडिदारं मुहमंडवपिच्छमंडवक्खाडा । मणिपेढियहषडिमा चउचिइतरुसुरुयपुक्खरिणी ॥२०॥ चिइमझे मणिपेढीइ देवच्छंदे जिणुस्सिया पडिमा। अट्ठमयं सीहासणसूरपलियंकमुनिसन्ना ॥ २१ ॥ भणियं च-उस्सेहमंगुलेणं अह उड्ढमसेस सत्तरयणीओ। तिरिलोए पंचधणुसयसासयपडिमा पणिवयामि ॥ २२ ॥ अंकमयनहच्छी कणगनासिआ लोहियक्खजुयअंतो । रिट्ठमयरोमराईच्छिपत्तताराभमुहकेसा ॥ २३॥ छत्तधरपडिम एगा पिढि वइरपडिम चमरधर दुहओ । पुरओ दो दो नागा भूया जक्खा य कुंडधरा ॥२४॥ तह घंटाचंदणघडभिंगाराऽऽदरिसयाइसुपइट्ठा । पुप्फाइपडलचंगेरी तिल्लसमुग्गाइ छत्ताई। २५।। जओताओ पडिमाओ समियसोहंमसहाइ संति जाओ तहा । माणवचेइअखंभे वइरसमुग्गेसु जिणपकहा ।।२६।। ता उब्भऽन्नेसिं बहूण देवदेवीण अच्चणिजाओ। गंधाईहिं सुगुणुक्कित्तणओ वंदणिजाओ ॥२७॥ पुप्फाईहिं पुजा सकारिजा उ वत्थमाईहिं । अंजलिबद्धा-11||५६ ।। HIGHEARTHIARINITESHARISHCHES For Private And Personal Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Shri Me श्रीदे० चे त्यश्रीधर्म संघाचार विधौ प्रणामे HINDI MALAIMAHARASHTRA i n Aradhana Kendra Acharya Shri Kalah Gyanmandir ईहि य निचं सम्माणणिजाओ ॥ २८ ॥ कल्लाणमंगलं देवचेइयं पज्जुवासणिजाओ। इयमेव पुत्र पच्छा व सेयकरणिजहियमाई | ॥ २९ ॥ परियणमयणंगाई सव्वं सकारियं भवाय भवे । भवियाण वीयराए भत्ती पुण भवविणासाय ॥ २९ ॥ तं सोउ | विजयदेवः हठ्ठतुट्ठो हरिसवसविसप्पमाणमणनयणो । विजयसुरो सयणिज्जा उट्ठिय निक्खमइ पुग्वेण ॥ २९ ॥ गंतु हरयं जलमजणेण आयंतचुक्खसुइभूओ । अहिसेयसहाए अहिसित्तो सामाणियाईहिं ॥३७॥ तोऽलंकारसहाओ (गन्ता लूहेइ सयलगायाइं । मुरभीइ गंधकासाइए य अणुलिंपई य पुणो ॥३८॥ सरसेणं गोसीसेण तहा नियंसेइ देवदूसजुगं । हारद्धहारदित्तो तत्तो ववसायसभमेइ ।। ३९ ।। रिट्ठ०) मयक्वरकवियपुत्थयरयणमि रुप्पमयपत्ता। तवणिजमओ दोरो गंठी नाणामणिमई य ॥४०॥ वेरुलियं मसिभायणु तवणिज्जा संकला मसी रिट्ठा । रिट्ठामय छंदणं रययलेहिणी धम्मियं सत्थं ॥४१॥ तो धम्मियववहारं गहिउं गच्छेइ नंदपुक्खरिणि । पक्खालिय करपाए गिण्हइ पउमुप्पलाई तहिं ॥३२॥ तह एगं भिंगारं रुप्पमयं विमलसलिलपडिपुग्नं । गहिउँ देवपरिवुडो सिद्धाय यणमि गच्छेइ ।। ३३ ।। तथाहि-तए णं से विजए देवे चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं तीहि परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवईहिं सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अमेहि य बहहिं विजयारायहाणीवासीहिं वाणमंतरेहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिखुडे सविइढीए सबजुईए सबबलेणं सबसमुदएणं सवादरेणं सबविभूईए सबसंभमेणं सवपुष्फगंधमल्लालंकारेणं सचतुडियसद्दसंनिनाएणं महयाए इड्ढीए महया बलेणं महयाए जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडियजमगसमगप्पवाइएणं संखपणवपडहगभेदीझल्लरिखरमुहिहुडुक्कमुरवमुदंगदुंदुहिणिग्घोसणाइयरवेणं | जेणेव सिद्धाययणे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छइत्ता सिद्धाययणं तिपयाहिणीकरेमाणे२ पुरच्छिमिल्लेणं दारेण अणुपविसइ २ त्ता जेणेव ||॥५७ ।। will attraindi NERIHIRPAN For Private And Personal Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mein Aradhana Kendra श्रीदे०चैत्यश्रीधर्म ० संघाचारविधौ ।। ५८ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailah Gyanmandir | देवच्छंदए जेणेव जिणपडिमाओ तेणेव उवागच्छर तेणेव उवा०२ सूत्रं, अत्र वृत्तिः -नंदापुष्करिणीं गच्छति, तत्र पद्मादीनि गृह्णाति । सांतःपुरः ततो देवपरिवृतः सिद्धायतनमागच्छति, त्रिः प्रदक्षिणीकरोति, ततः पूर्वद्वारेण प्रविशति, आलोके प्रणामं करोतीत्यादि देवकर्म्म निगदसिद्धं । तचैवं अंगपूजादि विधेयं । आलोए जिणपडिमाणं पणामं करेइ२त्ता लोमहत्थएणं परानुसइ लोमहत्थगं गेण्डर जिणपडिमाओ लोमहत्थएणं पमज्जइ सुरहिणा गंधोदएणं व्हावेइ सुद्धोदाणं व्हावेइ ।। अत्र यथा निर्माल्यापनयनानंतरं प्रथममंगप्रक्षालनं पूजादि च स्नानानंतरं पुनः अंगप्रक्षालनादि विधीयते तथा स्नानपूर्वं कुसुमांजलिप्रक्षेपणाद्यपि च ज्ञेयं, दिव्वाए सुरहीए गंधकासाईए गायाई लहेइ२ सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिंपइ सव्वजिणपरिमाणं अहयाई सेयाई दिब्वाई देवदूसजुयलाई नियंसेइ २ अग्गेहिं वरेहि य गंधेहिं मल्लेहि य अच्चेर २ पुप्फारुहणं मल्लारुहणं गंधारुहणं वण्णारुहणं चुण्णारुहणं वत्थारुहणं आभरणारुहणं करेइ, आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं करेइ२, अथाग्रपूजाविधित्सया अच्छेहिं सण्हेहिं सेएहिं रयणामएहिं अच्छरसातंदुलेहिं जिणपडिमाणं पुरओ अट्ठट्ठमंगलए आलिहइ, तंजहा- सोत्थिय सिरिवच्छ नंदियावत्त वद्धमाण भद्दासण वरकलस मच्छ दप्पण, इत्थ गाहा - मंगलसुत्थियसिरिवच्छनंदियावत्तवद्धमाणा य । भद्दासण वरकलसा मच्छा दप्पणइय ||१|| अट्टमंगलए आलिहित्ता कयग्गहगहियकरयलप भट्टविष्यमुकेणं दसवण्णेणं कुसुमेणं मुकपुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ २ चंद पहवयरवेरुलियविमलदंड कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागुरुपवरकुंदुरुक्क तुरुक्क धूवमघमघंतगंधुद्धयाभिरामं भाणविद्धं व धूमवहिं विर्णिमुयंत वेरुलियमयं कच्छु पगहित्ता पयत्तेण धूवं दाऊण जिणवराणं । भावपूजाविधित्सया अट्ठसयविसुद्ध गंथजुत्तेहिं महावित्तेहिं अत्थजुतेहि य अपुणरुतेहिं संथुणइ२, अत्र वृत्तिः - अष्टशतेन वृत्तानां स्तौति शुद्धग्रंथयुक्तानां For Private And Personal प्रणामे विजयदेवः ।। ५८ ।। Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mh lan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir प्रणामे श्रीदे० चैत्याधर्म० संघाचार विधौ ॥५९ ॥ विजयदेव संगतार्थानामपुनरुक्तानां तथाविधदेवलब्धिप्रभावतः, तथाहि--"श्रस्ताशर्मावृतसुमहिमावीरितस्त्रांतजन्माबाधासिंधुप्रतरणसहावासनावस्थितानाम् । अप्येको द्वौ किमुत बहवो वाऽनिशं ध्येयभावं, गाते येषां जिनवरवृषा वृद्धये किं न तेषां ? ॥१॥ शर्मन् शर्म वृत ऋत प्राप्त महिमा जन्मन् जन्मबाधा विकल्पाद्या वासना आसना ते आते अन्ते वृषन इंद्र वृष वृषभ वृद्धि ऋद्धि । दूरापास्तसमस्तकुत्सनतमावीताखिलांतारजावामोल्लासविलासशोभनमहावृद्ध्यग्रिमौकावरम् । स्फूर्जद्भावृषभाभिरामनयनिर्दग्धाशुभधावरं, गातामेक उभौ समे जिनवृषा वृद्धं प्रसादं मम ॥२॥ पद्मबंधः ॥ तमस् तमप् प्रत्ययः वीत ईड च गतौ ईत अंतर्मध्ये | रजस् रज वाम आम महस् मह ओकस् ओक वरं प्रधानं अरं शीघ्रं भास् भा वृषभवदभिरामो नयो-गतिर्येषां ते च ते निर्दग्धा-1 शुभैधाश्च एधम् एध वलं अलं ता आतां अंतां वृद्धं ऋद्धं ॥ संप्राप्तब्रह्मसीमावतनुसुमुखमावर्यश्यद्वैतधामावीक्ष्यातीताप्तहेमाविततदुरितहावृष्टवामावितारं । एको द्वौ वापि सर्वे प्रतिदिनमरिहा वांछितश्रेयसे द्राक्, प्रत्तप्तश्रीललामावरमिह भविनामीशतानम्रकाणां ॥३॥ सीमन् सीमा वत नु अतनु सुमुखमा सुमुखमास मुखचंद्र मुखमा मुख श्रीः वर्यश्रीश्वासावद्वैतधामा च अर्यमावत् अद्वैतधामा वीक्ष्यातीत-चिंतातिक्रांतं आप्तं हेमन् हेम येभ्यः वितत विस्तृत इतत गतश्च दुरितं हंति क्विडप्रत्ययौ वृष्ट प्रष्ट गत वामन् वाम वितारं विशेषतारं इतारं-गतारिव्रजं अरिहन अरिह वांछित आंछित विस्तृतललाम ईश इवाचरतु ईशतात् ईशाविचाचरतां बहुत्वे ईशक् ऐश्वर्ये पंचमी अंतां ननं सरसं ॥ इत्येको द्वौ समे वा त्रिभिरभियतिभिः काव्यराजैः क्रियादिश्लेषैः श्रीधर्मघोषैरभिनुतमहिमावर्यभावप्रकाशैः। त्रिच्छत्रीदंडकैवांतररिपुविजयन्यस्तविश्वत्रयांतःकीर्तिस्तंभैरिव श्रीजिनवरवृषभावीक्षयाध्यासतां मां ॥ ४ ॥ शोभात्मकघोषैः वर्यभाव अर्यभाव स्वामित्व इति काव्यानां विशेषणानि, कर्तृपक्षे तु e mPAPARImmunommuTIARRIA ॥५९ ॥ For Private And Personal Pinter Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M . Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रीदेचेत्य श्रीधर्म संघाचार विधौ ॥६०॥ त्रिभिः मनःवचःकायैः यतिस्वामिभिः कविगणराजैः क्रियादिपरायणैधर्मघोषैर्नाम्ना वा इव जिनवरवृषेषु-प्रधान केवलिष्वपि |प्रणामे मध्ये भासते जिनवरवृषभा वीक्षा ईक्षा अधिआङ् 'अषी असी गत्यादानयोश्च' अस् एकत्वे आत्मनेपदतां द्वित्वे परस्मैपदताम् विजयदेवः बहुत्वे आसक् उपवेशने पंचमी अंताम्"।। एवमादिमिः संथुणित्ता सत्तट्ठपयाई ओसरइ वामं जाणुं अंचेइ २ दाहिणं जाणुं धरणितलंसि निहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धणितलंसि निवाडेइ २ । एवं चतुरंगप्रणामं कृत्वा अंजलिबंधप्रणामार्थ आह-ईसिं पच्चुन्नमइ २ कडगतुडियर्थभिआओ भुआओ पडिसाहरइ २त्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं दसनहं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी-एवं अंजलिबंधादिना भक्तिविशेष सत्यापयित्वा पश्चादेवं ते समयसुप्रसिद्धविधिना शक्रस्तवं पठति,तत्र चायं महानिशीथोक्तो विधिः । -भुवणिक्कगुरुजिणिंदपडिमासुविणिवेसियनयणमाणसेण विहियकरकमलंजलिणा तसवीयहरियाइरहियजंतुमि वंदमाणेणं जाव चेइए वंदियव्वे सकत्थवाइयं चेइयवंदणत्ति-नमोत्थुगं अरिहंताणं भगवंताणं जाव सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं नमो जिणाणं जिअभयाणंति कटु वंदइ नमसई' अत्र वृत्तिः-ततो विधिना प्रणामं कुर्वन् प्रणिपातदंडकं पठति,तद्यथा-नमोत्थुणं अरिहंताणमित्यादि यावन्नमो जिणाणं जियभयाणं' दंडकार्थश्चैत्यवंदनविवरणाल्ललितविस्तराभिधानादवसेयः, वंदइ नमसइत्ति बंदते ताः प्रतिमाश्चैत्यवंदनविधिना प्रसिद्धेन नमस्करोति पश्चात् प्रणिधानादियोगेन इत्येके, अन्ये तु विरतिमतामेव प्रसिद्धश्चैत्यवंदनविधिः, अन्येषां तु तथाभ्युपगमपुरस्सरकायव्युत्सर्गासिद्धेरिति वंदते सामान्येन नमस्करोति आशयवृद्धेव्युत्थाननमस्कारेणेति, तवमत्र भगवंतः परमर्षयः केवलिनो विदंतीति । वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव सिद्धाययणस बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ२त्ता दिवाए उदगधाराए अब्भुक्खेइ२ सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितलमंडलं आलिहइ चच्चए दलयइ२ कयग्गहग्गहियं करयलपन्भट्टवि- ॥६०॥ INDIAINImandarmnition HiHINICATIOnlineTRAPali lunaliPIHIROIN PAHEPAL For Private And Personal Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobafirth.org nl Gyanmandir अंगादि: PRIMANDARI पूजात्रयं Shrill in Aradhana Kendra Acharya Shri Kal श्रीदे० चै- प्पमुक्केणं दसवण्णेणं कुमुमेणं मुक्कपुष्फपुंजोवयारकलियं करेइ२ धृवं दलयइ२। अह दाहिणदारेणं निग्गंतु चेइहपच्छिमओ। त्यश्रीधर्म जिणपडिमाआलोए करइ पणामाइ पुत्वविही ॥ ४४ ॥ तथाहि-नमणपमजणण्हवणंगलूहअणुलेहवासपरिहाणं । फुल्लहरपुष्फपगरो संघाचार- मंगल्लथवाइ बृहणया । ४५॥ एवं चिय उत्तरपुवदाहिणे पडिम अच्चिउं जाइ । सिद्धाययणं काउं पयाहिणं उत्तरदुवारं ।।४६॥ पुवं विधौ व पडिमचउगं तत्थच्चिय गंतु पुबदारंमि । दाहिणपच्छिमउत्तरपुत्वठिआ अच्चए पडिमा ॥४७॥ तो गंतु सुहम्मसहं जिणसकहा ॥६१॥ दसणंमि पणमित्ता। उग्धाडितु समुग्गे पमजए लोमहत्थेणं ।। ४८ ॥ सुरहिजलेणिगवीसं वारा पक्वालियाणुलिंपित्ता। गोसीसचंदणेणं तो कुसुमाईहिं अच्चेइ ॥ ४९ ॥ तो दारपडिमपूयं सहासु पंचसुवि करइ पुव्वं व । दारचणाइ सेसं तइओवंगाओ नायव्वं ॥ ५० ॥ इय तिपयाहिणतिपणामपुवकयतिपतिमपूयवंदगओ। विजयसुरो सुरसम्मं माणतो विहरइ सुहेण ॥ ५१ ॥ श्रुत्वेति वृत्तं विजयामरस्य, भो भव्यलोका ! जिनचैत्यगेहे । प्रदक्षिणानां त्रितयं विधाय, त्रिः पूजनाः त्रिःप्रणमेत नित्यम् ॥५२।। इति प्रदक्षिणात्रयपूजात्रयसहिते प्रणामत्रिके विजयदेवकथा ।। उक्तं 'तिनि निसिही१ तिनि य पयाहिणार तिनि चेव य पणामे३'ति त्रिकत्रयम् । संप्रति चतुर्थ पूजात्रिकं सकलगाथयाऽनेकधा भावयन्नाह अंगग्गभावभेया पुप्फाहारत्थुईहिं पूयतिगं । पंचोवयारअट्ठोवयारसबोवयारा वा ॥१०॥ अंगं च-जिनप्रतिमांगं अगं च-तत्पुरो भागो भावश्च-चैत्यवंदनागोचर आत्मनः परिणामविशेषः, कैः कृत्वेत्याह-पुष्पाहार| स्तुतिभिर्यथाक्रममिति गम्यं, यदुक्तं बृहद्भाष्ये-अंगंमि पूष्फपूया आमिसपूया जिणग्गओबीया। तइया थुत्तगया जातासि सरूवं इमं होई ॥१॥" चैत्यवंदनाचूर्णावप्युक्तं-"तिविहा पूआ-पुप्फेहिं नेवेजेहिं थुईहि य,सेसभेया इत्थ चेव पविसतित्ति", उत्तरा PrammHIPmuPILIPPINNEL ॥६१॥ For Private And Personal Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Me i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir Midmami in HIRimge अंगादिपूजात्रयं श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचार विधौ ॥६२॥ AS ध्ययनेषु पुनरेवं-तित्थयरा भगवंतो, तस्स चेव भत्ती कायबा, सा पूआवंदणाईहिं हवइ । पूर्यपि पुप्फामिसथुइपडिवत्तिभेयं चउबिहंपि जहासत्तीए कुज"त्ति, ललितविस्तरादौ तु “पुष्पामिषस्तोत्रप्रतिपूजानां यथोत्तरं प्राधान्य"मिति । अत्रायं भावार्थः-पुष्पैः जात्यादिभिः प्रथमा अंगपूजा भवति,इह पुष्पग्रहणमादिमध्यावसानेषु पुष्पांजलिपुष्पपूजापुष्पप्रकरादिसमये सर्वत्र बहूपयोगिबहुशोभित्वाद् , अन्यथा पत्रफलजलगंधवस्त्राभरणाद्यप्यंगपूजायामुपयुज्यते, ततश्चात्र पुष्पेत्युपलक्षणं, तेन निर्माल्यापनयनमार्जनांगप्रक्षालनाद्यनंतरं नित्यं विशेषतश्च पर्वमु कुसुमांजलिप्रक्षेपादिपूर्व धुनीकर्पूरजलादिचंदनकुंकुमादिकल्पितजलप्रभृतिसद्गृहजेतरगंधोदकादिभिः स्नपनं सुरमिसुकुमालवस्त्रेणांगलूछनं घनसारकुंकुमादिमिविलेपनांग्यादिविधानं गोरोचनामृगमदादिमिस्तिलकादिकरणं निःसपत्नरत्नसुवर्णमुक्ताभरणादिभिरलंकरणं विचित्रवस्त्रैः परिधापनं ग्रंथिमवेष्टिमपूरिमसंघातिमविधानचतुर्विधप्रधानाम्लानमाल्यादिमिर्मालाटोडरमुगुटशिरस्कपुष्पगृहादिविरचनं जिनहस्ते नालिकेरवीजपूरपूगीफलनागवल्लीपत्रादिमोचनं धूपोत्क्षेपसुगंधवासप्रत्क्षेपाद्यपि च सर्वमंगपूजायां भवति, उक्तं चागमे-जिणपडिमाओ लोमहत्थएण पमजइ इत्यादि जाव विउलबट्टवग्धारियमल्लदामकलावं करेइ" तथा बृहद्भाष्ये-"हवणविलेवणाहरणवत्थफलगंधधूवपुप्फेहिं । कीरइ जिणंगपूआ तत्थ विही एस नायवा ॥१॥ | वत्थेण बंधिऊणं नासं अहवा जहासमाहीए । वजेयव्वं तु तया देहमिवि कंडुयणमाई ॥२॥" अन्यत्राप्युक्तं-'कायकंडूयणं बजे, तहा खेलविगिचणं । थुइथुत्तभणणं चेव, पूयंतो जगबंधुणो ॥३॥" उचियत्तं पूयाए विसेसकरणं तु मूलबिंबस्स । जं पडइ तत्थ पढम जणस्स दिट्ठी सह मणेणं ॥४॥(१९७) शिष्यः-पूआवंदणमाई काउणेगस्स सेसकरणंमि। नायगसेवगभावो होइ कओ लोयनाहाणं ॥५।। एगस्सायरसारा कीरइ पूआ वरेसि थोवयरी। एसावि इह अवना लक्खिज्जइ निउणबुद्धीहिं ।।६।।(३९-४०) आचार्यः HINDIPALI Situat i onaimer RAPHICE For Private And Personal Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahlah Aradhana Kendra www.kobafirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ अंगादिपूजात्रय HIHARIHITHAKTI Family | नायगसेवगबुद्धी न होइ एएसु जाणगजणस्स । पिच्छंतस्स समाणं परिवार पाडिहेराई ।।७।। (१०) ववहारो पुण पडम पइडिओ मूलनायगो एसो । अवणिजइ सेसाणं नायगभावो न उण तेणं ||८ (५१) वंदणपूयणबलिढोयणेसु एगस्स कीरमाणेसु आसायणा न दिट्ठा उचियपवित्तस्स पुरिसस्स ।।९।। (५२) जह मिम्मयपडिमाणं पूया पुप्फाइएहिं खलु उचिया। कणगाइनिम्मियाणं उचियतमा मज्जणाईवि ॥१०॥ (५४) अविय-कल्लाणगाइकज्जा एगस्स विसेसपूअकरणेवि । नावनापरिणामो जह धम्मिजणस्स सेसेसु ॥११॥ (५३) उचियपवित्तिं एवं जहा कुणंतस्स होइ नावना । तह मूलविंबपूआविसेसकरणेऽवि नन्नत्थ ॥ १२॥ (भा.५५) किंच-जिणभवणबिंबपूआ कीरति जिणाण नो कए किन्तु । सुहभावणानिमित्तं बुहाण इयराण बोहत्थं ॥१२॥ (१४२) जओ-चेइयहरेण केई पसंतरूवेण केइ बिंबेण । पूआइसयाकेई अन्ने बुझंति उवएसा ॥१४॥ (१४३)इति पुष्पाचैःप्रथमा अंगपूजा। अथ द्वितीया अग्रपूजा भाव्यते-सा च प्रधानाहारेण आमिषापरपर्यायेण, यद्गौडः-उत्कोचे पलले न स्वी, आमिषं भोज्यवस्तुनि' । तेनाशनादिना चतुर्विधेन भवति, तथाहि-इह होइ असणपूया वरखज्जगमोयगाइभक्खेहि १ । दुद्धदहिपाणियाइभायणेहिं २ तह ओयणाईहिं३ ॥१॥ अत्र निशीथचूर्णिः 'संप्रति राजा रहग्गओ य विविहफलखजगभुज्जगेय कवडगवत्थमाई उक्किरणे करेइ' । अन्यत्रोक्तं-"नाणाफलेहिं व थएहि निचं"२ तथा वसुदेवहिंडौ मृगब्राह्मणप्रस्तावे "कयाइ य देवकजे सज्जियं भोयणं,साहवो उवागया,तिण्हवि जणाण समवाओ पडिलामेमो"त्ति, कल्पे तु-'साहम्मिओ न सत्था तस्स कयं तेण कप्पइ जईणं । जं पुण पडिमाण कए तस्स कहा का अजीवत्ता? ॥१॥ संवट्टिमेहपुप्फा सत्थनिमित्तं कया जइ जईणं । न हुलब्भइ पडिसेहं किं पुण पडिमट्टमारद्धं ॥२॥" तृतीयखण्डे तु हरिकूटपर्वतप्रस्तावे-"विविहभक्खपाणगपडिपुना निवेइया विचित्ता ब madamad ANIDHHUTRINHINDE H IMNEHAATINATAND DILumbini A RIHARINGUPTA ॥६३॥ For Private And Personal Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M a in Aradhana Kendra www.kobafirth.org Acharya Shri Ka IANI u ri Gyanmandir श्रीदे० चेंत्यश्रीधर्म संघाचार विधौ ॥ ६४॥ MRITAMINISHAmari |ली"ति, तथा निशीथे तु 'पभावईए देवीए सबंपि बलिमाई काउं भणि-देवाहिदेवो बद्धमाणस्सामी तस्स पडिमा कीरउत्ति | || अंगादिवाहिओ कुहाडो, दुहा जायं, पिच्छइ सबालंकारविभूसियं भयवओ पडिम" तथा निशीथपीठे "बलित्ति असिवोवसमननिमित्तं पूजात्रयं कूरो किजई" आवश्यके तु-"कीरइ बलित्ति तं आढगं तंदुलाणं सिद्धं, तओ जस्स मत्थए सित्थं वुज्झइ तस्स पुव्वुप्पन्नो वाही उवसमई"इत्यादि । “जलपूया जलभायणधारादाणाइ २ खाइमञ्चलिया । फलदाणा अक्खयसरिसवाइणा मंगलादिविही ॥३॥" तृतीयोपांगे-"जेणेव सिद्धाययणस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ २ दिवाए उदगधाराए अब्भुक्खेइ२"अन्यत्र तु "पाणियपुग्नेहि य भायणेहि" वसुदेवहिंडौ तु "विविहभक्खपाणगपडिपुन्ना निवेइया विचित्ता बली' २। फलेब्वेवमावश्यकचूर्णिः "पत्तपुप्फफलवीयमल्लगंधवण्णजाव चुण्णवासं वासंति"त्ति, निशीथे "रहग्गओ विविहफलखजग" इत्यादि, बृहद्भाष्ये त्वेवम्-"जो पंचवन्नसत्थियबहुविहफलसलिलभक्खदीवाई । उवहारो जिणपुरओ कीरइ नेवज्जपूआ सा (आमिससपज्जा) ॥३।। (२०४) साइमपूयाइ पुणो नेयं पूगफलपत्तगुलपमुहं । पंचंगुलितललिहणाइ पुप्फपगराइ दीवाई॥३॥ प्रदीपारात्रिकनृत्याधुपलक्षणमिदं, उक्तं च भाष्ये-"गंधबनवाइयलवणजलारत्तयाइ दीवाई । जं किच्चं तं सबंपि ओयरई अग्गपूआए (आमिसपूयाए चिय सव्वंपि तयं समोयरइ) ॥१॥ (२०५) तच्चागमे-"सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितलेणं मंडलं आलिहइ२ चच्चए दलइ२ कयग्गाहगहियकरयलपन्भट्ठविप्पमुक्केणं दसवण्णेणं कुसुमेणं मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं करेइ२ धूवं दलयहर" यथा चात्राग्रपूजायां पुष्पपत्रगंधाधुपयुज्यते तथाऽग्रपूजायामाहारोपि, तथा अशने दुग्धदध्यादि, पाने जलसुरसादि, खाद्य फलाद्यक्षतादि, स्वाद्य पत्रपूगकर्पूरादि, इति भाविता द्वितीया अग्रपूजा। 1.६४॥ n diARATHIandiaHATHANNEL UminsHINDI HITS For Private And Personal Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra अथ तृतीया भावपूजा, सा च स्तुतिभिर्लोकोत्तरसद्भूततीर्थ करगुणगणवर्णनपराभित्र पद्धतिभिर्भवति, आह च - " तइया उ भावपूया ठाउं चियवंदणोचिए देसे। जहसत्तिचित्तथुइधुत्तमाइणा देववंदणयं ॥ | १ || ”ति । तथा निशीथे 'सो उ गंधार सावओ थयधुईहिं तो तत्थ गिरिगुहाए अहोरतं निवसिओ” तथा वसुदेवहिंडौ 'कयाई च भाणुसिट्ठी सह घरणीए जिणपूयं काऊण पजालिएसु दीवेसु पोसहिओ दब्भसंथारगगओ थयथुइमंगलपरायणो चिट्ठा, भयवं च गयणचारी अणगारो चारुनामा उवइओ, कय जिणसंथवो कयकायविउस्सग्गो य आसीणो", तथा “चारुदत्तो उवगओ, अंगमंदिरं पविट्ठो, जिणाययणचेडेहिं उवणीयाणि पुप्फाईणि, कयं अच्चणं परिमाणं, धुईहिं वंदणं कथं, निग्गओ जिणभवणाउत्ति, वसुदेवो पच्चूसे कयसमत्तसावय सामाइयाइनियमो गहियपश्चक्खाणो कयकाउस्सग्गथुइवंदगो उइण्णावसरे कुसुमुच्चयं काउं" तत्तृतीयखंडे " खयरवहू संसत्तथुइसय गुम्मंततीपयाहिणभमंतसिरिसं कुलाए पासिया महिम "त्ति, तथा 'गया मो सिद्धाययणं, थुईहिं वंदणं कयं इत्यादि, तथाऽन्यत्र “वंदणं (दइ) उभओ कालंपि चेइआई थयत्थुईपरमो " एवं अनेकेषु स्थानेषु श्रावकादिभिरपि कायोत्सर्गस्तुत्याद्यैश्चैत्यवंदना कृतेत्युक्तं तत्केन लिख्यते इति भाविता तृतीया भावपूजापि । वेत्यथवा प्रकारांतरेण पंचाष्ट सर्वोपचाररूपेण ३ पूजात्रिकं भवति इतिशेषः, तथा च बृहद् भाष्यं-पंचोवयारजुत्ता पूया अट्ठोवयारकलिया य। रिद्धिविसेसेण पुणो नेया सहोत्रयारावि ॥ १ ॥ (२०९) श्रीहरिभद्रसूरिभिरपि पूजाषोडशके भणितं - पंचोपचारयुक्ता काचिच्चाष्टोपचारयुक्ता स्यात् । ऋद्धिविशेषादन्या प्रोक्ता सर्वोपचारेति ॥ १॥ तत्रैका पंचोपचारा, सा च प्रायः अंगपूजाविपयेत्येकात्मिका, एषा च श्रीउमाखातिवाचकेन प्रशमरत्या मेवमुक्ता चैत्यायतनप्रस्थापनानि कृत्वा च शक्तितः प्रयतः। पूजाश्च गंधमाल्याधिवासधूपप्रदीपाद्यैः || १ || अधिवासो गंधमाल्यादिभिः संस्कारविशेषः, दृष्टा चागमेऽधिवासपूजा युगपदेवं मिलनतो श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघा - चारविधौ ।। ६५ ।। www.kobatirth.org For Private And Personal Acharya Shri Kailasturi Gyanmandir पूजात्रिकविचारः ।। ६५ ।। Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shriyay in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailataganga Gyanmandir श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म०संघाचारविधौ | ॥६६॥ | गंधमाल्यारुहणादिभ्यः पृथग्, तथा च सूर्याभदेवादिवक्तव्यतादिपूक्तम्-"अग्गेहिं वरेहि य गंधेहि मल्लेहिं अच्चेइ"ति, अन्ये त्वेव- पूजात्रिक| माहुः 'तहियं पंचुवयारा कुसुमक्खयगंधधूवदीवेहिति(२१०)तथाऽन्यत्र 'पुप्फेहि सुगंधएहिं, दिव्वेहिं य अक्खएहि'ति, द्वितीयाऽटो-10 विचार: पचारा, सा चांगाग्रपूजागोचरेतिद्विरूपा, एषा चैवमुच्यते-कुसुमक्खयगंधपईवधूयनेवेजफलजलेहिं पुणो । अट्ठविहकम्ममहणी अठ्ठवयारा हवइ पूया ॥१॥" पूजापंचाशकेऽपि “वरगंधधूवअक्खेहिं पवर कुसुमेहिं पवरदीवेहिं । नेवेजफलजलेहि य जिणपूया अट्ठहा होइ॥१॥निचचिय संपुन्ना जइविहु एसा न तीरए काउं । तहवि अणुचिट्ठियत्वा अक्खयदीवाइदाणेण ।।२।। स्नपनादिभेदानंतरेण यत्चादिपूजाभेदानामेवमुपन्यासस्तत् पूर्वपूजितादिषु मृन्मयादिबिंबेषु च संध्यादिषु च प्रायः पंचपूजासद्भावभावितया सर्वदा सर्वोपयोगित्वादिति ज्ञापनार्थ, सर्वोपचारपूजायां तु सर्वसंगृहीतत्वाच्च, उक्ता च बलिप्रदीपादिका पूजा छेदग्रंथेऽपि, तथा च महानिशीथे तृतीयाध्ययने पंचमंगलमहाश्रुतस्कंधव्याख्यानप्रस्तावे श्रीमन्महावीरभणितानुवादत उक्तं श्रीवज्रस्वामिपादैः "जहा किल | अरहंताणं भगवंताणं गंधमल्लपईवसमजणोवलेवणविचित्तबलिवत्थधूवाइएहिं पूयासक्कारेहिं पइदिणमब्भच्चणं पकुवाणा तित्थुस्सप्पणं करेमो"त्ति, प्रदत्तश्च प्रदीपो जिनप्रतिमा पुरतो भानुश्रेष्ठिना, उक्तं चैतद् वसुदेवहिंडौ प्रथमखंडे तृतीयलंमे-'कयाई च सिट्टी सह घरणीए जिणपूयं काऊण पजालिएसु दीवेसु पोसहिओदब्भसंथारयगओथयथुइमंगलपरायणो चिट्ठई' एतत्कथा चैत्यस्तवदंडकव्याख्यावसरे दर्शयिष्यते, तथा सीमणगपर्वते विद्याधरैर्जिनभवनेषु प्रदीपाः प्रज्वालिताः, एतत्तु तद्वितीयखंडवैडूर्यमालालंमे भणितं, 'तओ अत्थमिए दिणयरे उद्धवायतमइत्थियाए संझाए अग्गाहियाउ खयरेहिं जिणाययणसंसियाओ दीवपंतीओ, दीवसयसहस्सेहिं पज्जलिओ इव महीहरो संदीविउं पयत्तो" तृतीया सर्वोपचारा, सा चांगाग्रभावपूजात्मिकेति त्रिस्वभावा, आह च-"सबो For Private And Personal Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma l e Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रीदे. पूजात्रिकविचार: चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥६७॥ | वयारपूया ण्हवणचणवत्थभूसणाईहि । फलबलिदीवाईनट्टगीयआरत्तियाईहि ॥१॥ पंचवस्तुकेऽपि "विविहनिवेयणआरत्तिगाइधूवयमाइयं विहिणा । जहसत्ति गीयवाईयनच्चणदाणाइयं चेव ॥२॥ आरात्रिकादिकं पुनः प्रतिष्ठाप्राभृतादिकेषूक्तम् , भणितं चैतत् | पादलिप्तेन प्रतिष्ठाप्राभृतादुद्धृत्य कृतायां निजप्रतिष्ठापद्धतौ, यथा भणितमागम-मंगलदीवाइ तहा घयगुडपुण्णा तहेक्खुभ-| विखणिया। वरवण्णअक्खयविचित्तसोहिया तह य कायवा ॥१।। ओसहिफलवत्थसुबण्णरयणमुत्ताइयाई विविहाई । अन्नाइवि गरुयसुदंसणाई दिब्वाई विमलाई ॥२॥ चित्तबलिगंधमल्ला विचित्तकुसुमाइ चित्तवासा य। विविहाई धन्नाई सुहाई सुरुवाई उवणेह । ३॥ आरत्तियमवयारण मंगलदीवं च निम्मिउं पच्छा । चउनारीहिवि उम्मत्थणं व विहिणा उ कायवं ॥४।। अथ श्रीनेमिनाथजन्मोद्देशके महापुरुषचरित्रेऽप्युक्तम्-"तो देविदेहि बलि काउं आरत्तियं भमाडेवि । वंदित्ता जयनाहं पिच्छणयाइं च कारेन्ति ॥५।। एवमन्यान्यपि बृहद्भाष्यायुक्तानि प्रागुक्तानि बलिआरात्रिकादिप्रतिपादनपराणि ज्ञातव्यानि, आसां च पुष्पामिषादिपूजाभ्यो भेदेनोपन्यासः एकद्वित्रिपूजारूपत्वाद्, उक्ताश्चैता बृहदभाष्ये-पंचोवयारजुत्ता पूआ अट्ठोवयारकलिया य । रिद्धिविसेसेण पुणो नेया सबोवयारावि ॥१॥ पूजाषोडशकेऽपि-पंचोपचारयुक्ता काचिच्चाष्टोपचारयुक्ता स्यात् । ऋद्धिविशेषादन्या प्रोक्ता सर्वोपचारापि ॥ १॥ यच्चान्यत्र 'सयमाणयणे पढमा बीआ आगावणेण अबेहिं । तइया मणसा संपाडणेण वरपुप्फमाईणं ॥१॥ति | पूजात्रिकमुक्तं तत्कायवाअनोयोगितया करणकारणानुमतिभेदतया च सर्वपूजांगत्वेन सर्वपूजांतर्गतमिति पृथतिकतया न भावितं । एवं 'विग्धोवसामिगेगा अब्भुदयपसाहिणी भवे बीया । निव्वुइकरणी तइया फलया उ जहत्थनामेहिं ॥१॥' इत्यपि त्रिक | अंगादिपूजाफलतया पूजाकार्यत्वेन तदभिन्नत्वात् , कार्यकारणयोः कथंचिदभेदाभ्युपगमात् , एवं स्नपनपुष्पारूहणादयोऽपि पूजा HINRPANHITRAL HURIMARITALIHINSPIRANTHUSAINTHINNA ॥६७॥ BrituRIES For Private And Personal Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mhesh Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥६८॥ पूनायां मृगमाहन कथा भेदास्तत्रांगपूजादौ तथा तथांतर्गता भावनीयाः, न पृथग् गणनीयाः, अपरिमितत्वेन पूजाप्रकाराणां यथोक्तपूजासंख्याविघातप्रसक्तेः, तथा सत्यनवस्थापत्तेः, यदृच्छया सर्वस्यापि पूजाभेदस्य कल्पनात् , ततश्च निहवमार्गानुयायित्वप्रसक्तः, उक्तं च सूत्रकतांगनियुक्ती-आयरियपरंपरएण आगयं जो य अप्प(छेय)बुद्धीए । कोवेइ छेयवाई जमालिनासं स नासिहिई।।१।। परिभावनीयमत्र कदाग्रहविरहेण, यतः-'जं बहु खायं दीसइ नय दीसइ कहवि भासियं सुत्ते।(बहुसूत्रस्य विछेदात् , संक्षिप्तत्वाच्च)पडिसेहोवि नदीसइ माणंचिय तत्थ गीयाणं ॥१॥ आवस्सयकप्पनिसीहउत्तरज्झयणचुण्णिमाईसु । जह भणिया जिणपूया फलबलिनेवेजभक्खाई ॥१॥ तह | |पयडेमि वसुदेवहिंडीसोलसमलंभभणियंमि । मिगमाहणनायमि पयासियाऽऽहारपूयफले॥२॥ तथाहि-इह भरहे वेयइढे उत्तरसेढीऍ अत्थि वरनयरं । सिरिगयणवल्लहं वल्लहं जममराणवि सिरीए ॥३॥ तत्थोभयसेढीगयविजाहरनियरनमियकमकमलो। पालइ रजं विज्जाउग्घाडो विज्जुदाढनिवो ॥ ४ ॥ सो अन्नयाऽणगारं अवरविदेहाउ पडिमपवनं । विज्जाबलेण आणित्तु इत्थ विज्जाहरे | भणइ ॥५॥ भो उप्पाउच इमो वडूढतो णे भविस्सइ वहाय । तो सिग्धमविग्धमिमं हणेह तं ते सुणेऊणं ॥६॥ ऊणहिया तव्यहणत्थमुट्टिया विज्जविहियनियरक्खा । उग्गुग्गीरियखग्गरइवग्नहत्था जमगसमगं ॥ ७॥ इत्तो जंतो नंतुं अट्ठावयपबए जिणे धरणो । ते तदवत्थे दट्टुं दद्रुट्ठो भणइ इय रुहो ।।८॥ रे पाविट्ठा दुट्ठा नट्ठा रिसिघायगा सरह इटुं। तज्जत्तेणं तेणं तिविजरहिया इमे विहिया ॥१॥ विजाहरणुब्भवमनुरुद्धकंगग्गरगिरिल्ला । विणएण विभवंती धरणं सरणं भयंता ते॥१०॥ सामि ! इम | विज्जुद्दाढसासणा ववसिया अयाणंता। ता णे खमह पसीयह कहह मुणी नाह ! को एसो॥११॥ तो सो पणट्ठरोसो धरणिंदे ते भणइ धरणिंदो। एयस्स रायरिसिणो मुणेह चरियं हरियदुरियं ।।१२।। अवरविदेहेसु महुरसलिले सलिलावइंमि विजयंमि । बहु MINIS ॥६८॥ For Private And Personal mala Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mi श्रीदे० चै स्यश्रीधर्म ० संघाचारविधौ ।। ६९ ।। Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas वीयसोयलोआ आसि पुरी वीयसोयत्ति ॥ १३ ॥ शया य वैजयंतो नाम जयंतो रिङ अहेसि तर्हि । सच्चसिरी तस्स पिया नामेण तहा गुणेहिंपि ॥ १४ ॥ तीए य नंदणा दुनि संजयंतो जयंतनामो य । अह तत्थ समोसरिओ सयंभुनामा जिनवरिंदो ||१५|| ततो सविट्टीए तत्थ य गंतुं नमित्तु पहुपाए । आसीणे य नरिंदे करइ पहू देसणं एवं ॥ १६ ॥ “गंतुं सिवपुरमिच्छह जइ भविया लंघिउं भवारणं । तो नाणाइसरूवे मग्गे लग्गेह सुविसुद्धे ||१७|| नाणं पयासगं सोहओ तवो संजमो य गुत्तिकरो । तिव्हंपि समायोगे मोक्खो जिणसासणे भणिओ || १८ || " चइउं रजं राया दिक्खं सुयजुयजुओं गहेइ तओ। तिपईपुढं गणहरपयं पच्छ इमस्स पहू ।। १९ ।। अह पउणपहरसमए एह बली सामिणो निसीयंमि । इय भणिया असिबोवसमकारणा किअए कूरो ।। २० ।। आवस्सयकप्पाइसु पुण तीए कारगा १ सरूवं च २ । परिमाणं च ३ विही खलु ४ फलं च ५ एवं फुटं भणियं ।। २१ ।। तथाहि -राया व रायमच्चो तस्सासह पउरजणवओ वावि । दुब्बलि खंडियब लिछडिय तंदुलाणाढयं कलमा ।। २२ ।। भाइयपुणाणीयाणं अखंडफुडिआण फलगसरियाणं । कीरइ बलिं सुराविय तत्थेव छुहंति गंधाई ।। २२ ।। एसा चूर्णितं आढगं तंदुलाणं सिद्धं देवमल्ले राया वा रायमच्चो वा पउरं वा गामो वा जणवओ वा गहाय महया तुढियरवेणं सविड्ढीए देवपरिवुडो पुरच्छिमिल्लेणं दारेणं पविसर, एवं च आणयणं बलेरितिशेषः । तं आढगं तओ तंदुलाण सिद्धं गहित्तु रायाई । तुडियरवेणं देवाह परिवुडो बिसइ पुब्वेण || २३ | बलिपविसणसमकालं पुव्वद्दारेण ठाइ परिकहणा । तिगुणं पुरओ पाउण लस्सद्धं अबडियं देवा ।। २५ ।। जाहे पविट्ठो अभितरं पागारं भवइ ताहे तित्थयरो धम्मं कहंतो तुण्डिकीभवइ, ताहे रायाई बलिइत्थगओ देवपरिवृडो तित्थयरं तिक्खुतो आयाहिणपयाहिणं काउं तित्थयरस्स पायमूले तं बलिं निसिरह, तस्स अर्द्ध अबडियं For Private And Personal Gyanmandir अग्रपूजायां हरिकूटसंबंधः ॥ ६९ ॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Me in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalat Gyanmandir अग्रपूजायां हरिकूट श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० सघाचार विधौ ॥७०॥ ABPPIRI संबंध: देवा गिण्हंति'त्ति ॥ अडद्धं अहिवइणो अवसेसं होइ पागयजणस्स । सबामयप्पसमणी कुप्पा तम्रो य छम्मासे | ॥२६।। सेसस्स अद्धं अहिवई गिण्हेइ, सेसं पागयजणो गिण्हइ, तओ सित्थं जस्स मत्थए छुभइ तस्स पुन्बुप्पनो वाही उवसमइ, अणुप्पना य रोगायंका छम्मासे न उप्पजंति । अह सो उ वेजयंतो विहरिचा गणहरो महीइ चिरं । वरनाणदसणधरो मुर्ति पत्तो वरचरित्तो ॥२७॥ जो य जयंतमुणी सो चरणं अइचरिय मरियऽहं धरणो । नवपुव्बाई अहिओ भयवं पुण संजयंतमुणी ॥२८॥ तवसत्तसुत्तएगत्तबलसरूवाहिं पंचतुलणाहिं । तोलइ स नियं कार्य काउं जिणकप्पपरीकम्मं ॥२९॥ तिविहोवसग्गसहणो महणो दुस्सहपरीसहबलस्स । सुहझाणसमल्लीणो उझियपाणनभोई य ॥३०॥ ससरीरेवि हुमुच्ाक्विजिओ विहरइ विहेमाणो । सुबहरसुसाणाइसु विचित्तपडिमासणाईणि ॥३१॥ सो एस मज्म भाया जिह्यो पडिमडिओ इहाणीओ। खयराहमेण इमिणा कहा इह तेसि जा धरणो ॥ ३२॥ सवणसुहकारि ता कमणकिंकिणीकणकणारवं गयणे । निसुणिय खयरेहिं पुणो पुट्ठो धरणो पहु ! किमयं ॥३३॥ धरण:-केवलनाणं उत्पन्न मिहि एयस्स भो महामुणिणो । तम्महिमकए एए अमरा खयरा अ यति इहं ॥३४॥ खचराः-किं कारणमाणीओ इत्थ महप्पा इमो अणेणति । धरणः-पुच्छामो एसुच्चिय सबष्णू इण्हि भो कहिही॥२५॥ते तत्थ तओ गंतुं तिपयाहिणे मुणिं नमिय विति। इय विस्सवच्छले किमिय मच्छरो विज्जुदाढस्स?॥३६॥ भयवं भणेह भदा भवइभवीणं भवंमि पाएण । कोवो व पसाओ वा पुनभवन्भाससंजणिओ॥३७॥ जओ-लोयस्स लोयणाई नूणं जाईसराई एयाई। मउलिज्जति अणिट्टे दिहे इहे उ वियसंति ॥ ३८ ॥ कहमेयंति पवुत्ते तेहिं मुणी कहा इत्थ भरहमि। सीहपुरं आसि पुरं पुरस्सरं पवरनयराणं ॥ ३९ ।। सीलेण निम्मलेणं पडिहत्थो तह धणेण पउरेण । पउरजणो परदाराई जत्थ न पलोयइ कयावि Santm atla For Private And Personal Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I ShriM h Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रीदे त्यश्रीधर्म संघाचार विधौ ॥७१॥ Acharya Siri Kailas Gyanmandir ॥४०अइउन्भडरिउभडकोडीकरडीकरडयपाडणपडिट्ठो। सीहोर सीहसेणो तत्थाऽसि वसुंधरानाहो ॥४१॥ तस्सासि रामकण्हाDI अग्रपूजायां | दइया दुहिआ उ जा अदुहियावि । पोयणपुरसामियपुण्णभद्दहरिमईयदेवीणं ॥ ४२ ॥ चउबुद्धिविसुद्धसुधासिंधुसचिवो सुबुद्धि-| हरिकूटनामो से । आसी गुरुयविभूई पुरोहिओ तहय सिरिभृई ॥४३॥ अह पउमिणिखेडा तत्थ आगो भवमित्तसत्वाहो। सायर- संबंध: वाणिज्जे सजमाणसो चिंतए एवं ॥४४॥ निवडतमहंतसयावयागरो सागरो इमो रूंदो। कित्तिमकयसंधिच्छिद्दवजियं जाणवत्तमिणं ॥४५॥ पवणेरियकमलदलग्गजललवचवला तहा इमा कमला। एसो सुघडियविहडणपयडपयावो विहि हयासो ॥ ४६॥| अकयअखंडियसुकया पाएणं पाणिणो इमे तत्तो। न मुणिजइ किह जलहीउ आगओ इह पुणो होही ११४७॥ ता मज्झ सबसारेण सायरे नेव संपयं गंतुं । किंतु चिय मुत्तुं किंचि नायपञ्चयकुले कमि ॥४८॥ इय चिंतिय अन्भत्थिय सिरिभूई तस्स मंदिरे सोउ । वीसत्थो वीसामइ नियमुद्दामुद्दियं नउलं ॥४९॥ तो वेलाउलपत्तो सज्जियपोओ समुद्दकयपूओ। चलिओ पसत्थदियहमि भद्दमित्तो तओ कइया ॥५०॥ उल्लालियकल्लोलो जलनिहिजलनिवहजणि आवत्तो। तस्स उ अपुनपसरोव पसरिओ कालियानाओ॥५१॥ अइबहलगवलकजलसामलकार्यविणीकलावेण । पच्छाइयं नहयलं कुपुरिसअयसेण व खणेण ॥५२॥ धीरेयराण चरियं व अवधीरिय धीरमाधुरं धणिरा । धाराधरा धराए खलब उन्नइपयं पत्ता ॥ ५३ ।। खणमित्तदिट्ठनट्ठा अइचवला पायडियसयलसा । तह विज्जुला चमक्केइ पवंचपुण्णाण रिद्धिछ । ५३ ॥ अह उप्पायनिवाए खणे खणे कुणइ सायरो गयणे । नावा नावइलंखयधूया सिक्खेइ नहः विहिं ॥ ५५॥ अकडफुडियभंडभंडअइविरसमुक्ककंदं । अर्कदंति परोप्परकंठविलग्गा अतो लोगा ।। ५६॥ हा ताय! रख | रक्खसु हा संपइ माइ ! कह भविस्सामो ? । कुलदेवयाउ तुम्हिवि हा इण्डि कत्थवि गयाओ ? ॥५७॥ हा नत्थि कोवि देवो ॥७१।। PHONDAR For Private And Personal Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri V in Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailash uri Gyanmandir श्रीदे० चै-D व दाणवो वा परोवयारिलो । कारुण्णपुण्णहिअयो वसणमिणं जो निवारेइ ॥२८॥ दीणालावेहि न नेव रोइएहिं न चित्ततावेहिं । अग्रपूजायां त्यश्रीधर्म | पुकरिएहिं न केणवि विहिम्मि विमुहे हवइ ताणं ॥५९।। इय सूअंतोष तओ साडिअखंभुखतं च सोअरवं । कत्तियऽपुण्णजणमणोरहोस हरिकूटसंघाचार-HW | विलयं गओ पोओ॥६॥ जलसंगयं दुरतं विहडियसंधिं च तुगुणजालं। कुकलत्तं व कुजाणं सत्थाहेणं खणा चत्तं ॥६१शा फलि संबंध: विधौ हमहिलहिय जलहिं तरि सीहे पुरंमि सत्थाहो। गंतुं पुरोहियगिहे मग्गइ निक्खेवयं निययं ॥६२॥ कलुसमई सिरिभई बहु मम्गतं ॥७२॥ तयं कडुगिराहिं। निम्मरथइ कोऽसि तुमं? अरे तया किं कया मुकं ।। ६३ ॥ तो रायकुलं स गओ तहिमलहंतो पवेसमणुदियहं । रायदुवारे भणई नासं मे हरइ सिरिभूई ॥ ६४ ॥ तं सोउं रण्णा पुण सिरिभइ पुट्ठो भणेइ सामि! इमो । नूषं नामम्भंतीह पलवेई किंपि सुन्नमणो ॥ ६॥ सिरिभृइणा अणाहो मुसिओऽहं णाह ! रक्ख रक्खत्ति । विलवंत भमंतो सो पुण दिडो निवइया कहवि ॥६६॥ जायकरुषेण पुट्ठो तो सद्दाविय सुबुद्धिवरमंती । कह नेयमेयमह तेण भद्दमित्तो गिहं णीओ। ६७॥ निस्खेवसस्विदिवसाइ पुछिउं लहिय दंसिओ रमो । भणियं देव ! भविस्सइ एवं एवं पपडमेयं ।। ६८॥ गहिय पुरोहियमुई अलक्खियं निवइणा रमंतेण । निउणमई पडिहारी तमप्पिउं पेसिया तो सा ॥६९॥ गंतुं पुरोहियगिहे तन्मजं भणइ तुह पिएणुचं । मुद्दमिमं अप्पिय भद्दमित्तनिउलं जहाणेहि ॥७०॥ तं तीय अप्पियं सा गहिय निवस्सोवणेइ तेण तओ। नियनिउलंतो खिविउं भणिओ YA गिम्हत्ति सत्थाहो ॥ ७१ ॥ सुपसाउत्ति भणंतो सतोसतो सो गहेइ नियनिउलं। निवासिओ विडंबिय नयराउ पुरोहिओ इत्तो ॥७२॥ अहसो उ भद्दमित्तो निक्खेवं गहिय नियपुरं जंतो। चिंतइ कह जलहीओ इह जीवंतो अहं पत्तो?७३।। ता ववहारेण अलं वित्तं तु इमं कहिंचि सुहखित्ते । वइऊण पञ्चइस्सं सुत्तो इय चिंतिरोणे ॥७४।। अह पवसियस्स सोगेण तस्स माया अहोनिसं बहुमो। ७२॥ For Private And Personal Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobafirth.org Shri Maha Aradhana Kendra Acharya Shri Kailas Gyanmandir मा रोयंती अवगल्ला जाया भत्ते अरोयते ॥७५ ।। निजामियमिह बेरं किह पुत्तमिसेण भद्दमित्तेण । विवसा मरिस्समखमा हुजीवि अग्रपूजायां श्रीयं तं अपस्संती ।। ७६ ॥ इय अट्टदुहट्टा सा मरिठं जाया तहिं वणे वग्धी । खद्धो तीइ सपुत्तो स भद्दमित्तो तहिं खुत्तो ॥७७॥ हरिकूटधर्म संघा- | तो सीहसेणरनो स सीहचंदुत्ति नंदणो पढमो । जाओ बीओऽवि तहा पुत्तो से पुनचंदुत्ति ॥७८|| अह कइयावि पविट्ठो भंडारे संबंध: चारविधी सीहसेणनहनाहो । दट्ठोसु निठुरं तेण दीहपिटेण रुद्वेण ।। ७९ ॥ तबिसवेगवसगओ गओ नरिंदो धसत्ति धरणियले । कीरंती॥७३॥ सुवि किरियासु नेव कोवि हु गुणो जाओ ।।८।। अहिणो अहाहितुंडियवरेण आवाहिया लहुं तत्थ । पत्ता सव्वेऽवि विसब्जिया उ निदोसिणो जे उ ॥८१॥ रहिओ अगंधणो सो भणिओ विजाबलेण तो तेण । गिण्हसु मुकं नियगरल लहु कलय जलंतजलणं वा ।।८२।। अह अहिमाणधणेणं जालामालाउलंमि जलणंमि । विहिओ तेण पवेसो न य भुत्तं नियगरं वंतं ॥ ८३॥ यदाप"पक्वंदे जलिय जोइं, धूमकेउं दुरासयं । नेच्छति वंतयं भोत्तुं, कुले जाया अगंधणे ।। ८४॥" तबिसविहुरियगत्ती तत्तो पत्तो निवोऽवि पंचत्तं । रज्जे उ सीहचंदो अहिसित्तो तस्स जिट्टमुओ॥८५॥ अह रामकण्हदेवीइ सोयविहुराइ निययधूयाए । संचोहत्थं पत्ता पवत्तिणी हिरिमई तत्थ ॥ ८६ ॥ अविय-वासोउच्च सुमेहा अदिट्टदोसायरा अरयसंगा। ससधरधवलंबरसच्छमाणसा) सरयलच्छिह ।।८७॥ अंगीकयपरमहिमा विउडियकमलायरा हिमोउच । परिखिञ्जमाणदोसा सुसीयला सिसिरमइयव्य ।। ८८ ।। परहुयमहुरालावानंदियलोया वसंतमुत्तिव्व ॥ गिम्हसिरी इव कयजणबहुसेया उग्गतवनाहा ।।८९॥ इय सम्बकालसीलं पवत्तिणिं | आगयं मुणिय नमिउं । पत्ता जुत्ता पुत्तेहिं रामकण्हा तो देवी ।। ९०॥ नमिय निविट्ठाएँ तीए हिरिमई धम्मदेसणं कुणई । परपुट्टकंठउटुिंतमहुरसरसरिसवाणीए॥९१॥ "धम्मे अतुच्छसुहृदे वच्छे ! सच्छासए पमायंती। मा गच्छ इह सुतुच्छे सुक्खे विणिवा-17|॥७३॥ mamming JHANUMBINI Standan-IHASHTRA TIPATHIBHITARAMHILIBASAIRAL altimedmona unar For Private And Personal Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥ ७४ ॥ www.kobafirth.org Acharya Shri Kailas | बहुलंमि ॥९२॥ जओ-संसारोण सरीरं कयलीको मलकरीर निस्सारं । रूवं संझुन्भव अन्भरागसमं नस्सरसरूवं ।। ९३ ।। मयकलियकलहकरिकण्णतालतरलं च तारतारुण्णं । पवणपणुल्लियदीत्रयसिहव्व अवि चंचलं जीयं ।। ९४ ।। तहय अवस्सं पियजणसंजोगा विप्पओगपजंता । सुहमहुरमंतविरसं विसयहं विसमविससरिसं ||२५|| ता पुत्ति ! निरुयमंगं इंदियहाणी न जात्र जाव जरा । अल्लियइ जाव न मच्चू लहु उञ्जम ताव अप्पहिए ||९६ ||" तो उज्झियगिहिवासा पव्वइया साउ सीहचंदोऽवि । डहरसहोयरनिक्खिवियरजभारो गहेड़ वयं || ९७|| सुत्तत्थगहियसारं पवत्तिणिं ठविय रामकण्हं तं । अह मरिउं सुसमाहीइ हिरिसई सुगमणुपत्ता ।। ९८ ।। इत्तो य रामकण्हा सुविउलतवगलियघाइकम्ममला । केवलकलिया पत्ता विहरंती पुणवि सीहपुरे ।। ९९ ।। नियकुट्ठारगयं तं हरिसससुस्ससियरोमकूवो तो । नमिउं पराइ भत्तीइ पुच्छए पुण्णचंदनिवो ॥ १०० ।। भयवइ ! भावियस - भूयभाविभावे कहेह मम तुभं । केणं पुवभवुब्भवसंबंधेणं अइसिणेहो ? ।। १०१ ।। सा कह केवली नि ! संसरमाणाण इत्थ जीवाणं । जाया अईयकाले असई सव्वेऽवि संबंधा || १०२॥ जओ - मायपिय भाग भणिभज्जासुयधूयसुन्हसहिसयणा । जाया सवेsवि जीया अनंतसो सव्वजीवाणं ॥ १०३ ॥ आसन्नजंमओ पुण पुनसोजनओ जओ नवरं । तुज्झ सिणेहो अहिओ मज्झं पड़ तं निसामेहिं ॥ १०४ ॥ | अस्थि जिणसमयअइकुसलजणवए कोसलाजणवयंमि । कयधम्मनिविसेसं निवेशयं संगमं नाम ||१०५ || जिणवणे अणुरत्तो इह इत्तो नत्थि उत्तरीयति । निचं पट्टियमई विसारओ विविहसत्थेसु || १०६ || तत्थ दि आसि मिगो साणुकोसो सया अणारंभी । गामच्छायणमित्तं पडिगिण्हड निम्ममो य धणे ॥ १०७॥ तस्स समुन्नयवंसा सुवन्नरयणुजला सुरगिरिव्व । मइरत्ति पिया मइरायमंदिरं वारुणी दुहिया || १०८ || साहाविएण विणएण मद्दवेणं तहुज्जुभावेण । सा उ For Private And Personal Gyanmandir अग्रपूजायां हरिकूट संबंधः ॥ ७४ ॥ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri www.kobafirth.org s Gyanmandir wamilam श्रीदे चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥७५॥ अग्रपूजायां हरिकूट| संबंध: Aradhana Kendra Acharya Shri Kaila | नियजीवियाउवि वल्लहा जणयलोयस्स ॥ १०९ ॥ कइया उ मिगेणुता मइरा भद्दे ! करेह देवकए । भत्तं भणिया पूया चउहा जं आगमे एवं ॥११०॥ तथाहि-तित्थयरो अरहंतो, तस्स चेव भत्ती कायव्वा, सा य पूया चंदणाईहिं भवइ, पूर्यपि पुप्फामिसथुइपडिवत्तिभेयओ चउविहंपि जहासत्तीए कुजत्ति । अन्यैरप्युक्तं-"पुष्पामिषस्तोत्रप्रतिपत्तिपूजानां यथोत्तरं प्राधान्य"मिति, तत्रामिषं प्रधानमशनादिकं भोग्य वस्तु, यद्गौडः-'उत्कोचे पलले न स्त्री, आमिषं भोग्यवस्तुनि, प्रतिपत्तिः पुनरविकलाप्तोदेशपरिपालने ति॥ मन्नतीए नेवेजपूयमह पुप्फपूयओ पवरं । कइया उ देवकजंमि सज्जियं भोयणं तीए ॥ १११ ॥ ताव मलमलिणगत्ता तिगुत्तिगुत्ता पसंतवरचित्ता । पंचमहब्बयजुत्ता तत्थ दुवे साहुणो पत्ता ॥ ११२ ॥ उक्तं च वसुदेवहिंडौ-कयाइ य देवकजे सज्जियं भोयणं, साहवो य उवगया, तिण्हवि जणाण समवाओ पडिलाभेमोत्ति । अह हरिसियाई ताई चिन्तंति किहऽम्ह अज भुञ्जमिमं । कह व मुणी ? कह भावो ? इय ता अम्हे चिय सुधन्ना ॥११३।। जओ-केसिंचि होइ वित्तं चित्तं केसिंचि केसि उभयंपि। चित्तं वित्तं पत्तं तिन्निवि केसिंचि धन्नाणं ॥११४॥ अह वारुणी निउत्ता वच्छे ! साहूण देहि एयति । तो तस्समयं तीसे जाओ सुविसुद्धतरभावो ॥११५॥ तओ य-साहम्मिओन सत्था तस्स कयं तेण कप्पइ जईणं । जं पुण पडिमाण कए तस्स कहा का अजीवत्ता ॥११६।। संवट्टमेहपुप्फा सत्थनिमित्तं कया जइ जईणं । नहु लब्भा पडिसेहं किं पुण पडिमट्ठमारद्ध।।११।७। इच्चाइकप्पणियाणुसारओ तत्थ दाउमुवओगं।-गिण्हंति मुणी किंचिवि किंचिवि तेसिं संजायं । रायकुले भोगफलं जम्ममहोपूयमाहप्पं ॥११८॥ उक्तं च-"तवनियमेण य मुक्खो दाणेण य हुँति उत्तमा भोगा । देवचणेण रज अणसणमरणेण इंदत्तं ॥ ११९ ॥ शिवधर्मोत्तरेऽप्युक्तं-"पूजया विपुलं राज्यमग्निकार्येण संपदः । तपः पापविशुद्ध्यर्थ, ज्ञानं ध्यानं च मुक्तिदम् ॥ १२०॥" अह पूर्व चिय ALA MISSIANRAININGRIHILESHAMITRATHIPARIHARI Samne animINDE MOMCCIDENTI ॥ ७ ॥ For Private And Personal Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Matulin Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasanarsuri Gyanmandir अग्रपूजायां हरिकूटसंबंध: श्रीदे० 0 मइरा मरिउ नयरे पइनामंमि। जाया हिरिमइनामा अइबलनिवसुमइदेविसुया ॥१२१॥ संपत्तजुब्बणा पव्वणिंदुवयणा चैत्यश्री- तो य नरवइणा । सा पोयणाहिवइणा परिणीया पुनभदेण ।।१२२।। इओ य-वारुणिविओगमीरू मिगो तहिं चेव संनिवेसंमि । धर्म संघा पडिरूवदिएणं तीइ पाणिहणं करावेइ ॥ १२३ ॥ तह तीए नेहेणं जओ तओ वंचिऊण जंकिंपि । देइ इओ नियडीए इत्थितं चारविधौ । |बंधियं तेण ॥ १२४ ॥ जो चवलो सढभावो मायाकवडेहिं वंचए सयणं । न य कस्सइ वीसत्थो सो पुरिसो महिलिया होइ ॥७६ ॥ ॥१२५।। अविहियसामनो विगयविसयतण्हो मिगो मरिय जाया। निव! पुण्णभद्द! हिरिमइदेविसुया रामकण्हाऽहं ॥ १२६ ॥ सा वारुणी उ मरिउं पुत्तो मे पुग्नचंदनानाह ! | जाओ सि तुमं एवं च कारणं ते सिणेहस्स ।।१२७।। पुणरवि तप्पयपउमं पणमिय पुच्छेइ पुग्नचंदनियो । भयवइ ! कत्थ गओ सीहसेणरायत्ति ? अह साऽऽह ॥१२८। अहिभूएणं तेणं डसिओ तइया निवो मरिय जाओ। दणहत्थी वणयरविहियनामओ असणिवेगत्ति ॥१२९।। सुपइट्ठलट्ठसत्संगसंगओ भद्दजाइसंपन्नो । भूमीवइव चिंताइरित्तदाणंबुसित्तकरो ।। १३० ।। सुमुणिव्व सुदंतो चारुकुंभसोभिरसिरो य मिचोन्च । पावियजंगमभावो अंजणसेलोच सोहेई ॥१३१॥ अह सीहचंदसाहू सज्झाए उज्जुओ अपडिबद्धो । पंचसमिओ तिगुत्तो समहियनवपुन्वपारगओ॥१३२॥ सुगुरूण अणुण्णाए एगल्लविहारपडिमपडिवनो। विहरइ महिं महप्पा मोहीकयमोहमहिमो से॥१३३॥ तुह पिउणा सिरिभूई पुरोहिओ भद्दमित्तवणियस्स । निक्खेवनिण्हवपरो कओ विडं वित्त निविसओ॥१३४.। अदृदुहट्टवसट्टो रोसविसं सो निवंमि अमुयंतो । मरिउं निवईसिरिहरे अगंधणो विसहरो जाओ।।१३६|| तो अन्नया उदेसंतरंमि सो गंतुमाणसो चलिओ। केणवि सत्थेण सम्मं तत्तो पत्तो य अडवीए॥१३७॥ सुविसालसालसहिया जा बहुवरवाणिया सुवंसजुया। पायडकासनिसायरबिभीसणा सहइ लंकव्व ।।१३८॥ तत्यत्थि INDIA S For Private And Personal Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha www.kobatirth.org Gyanmandir SaiR अग्रपूजायां हरिकूटसंबंध: श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥७७॥ Aradhana Kendra Acharya Shei Kailas सरं वियर्ड अखंडवणसंडमंडियमनट्ठग्गं । जन्थ य जलं महामुणिमणं व सऊं मुइअतुच्छ।।१३९॥ तस्संतियंमि भोयणसमए आवासिओ तओ सत्थो। वीसत्थो य पवत्तोरंधणपयणाइमायरिउं॥१४०॥ इंधणकारणमेगे सलिलनिमित्तं परे उ उट्ठति । अन्ने तणगहणत्थं केविहु पाकाइणा विग्गा ॥१४१॥ इत्यंतरे स हत्थी सहत्थिणीसत्थसंजुओ तंमि । आगम्म सरे सलिलं पातुं काउं च जलकेलिं ॥१४२॥ आरुहिउं पालीए दिसिवलयं जा पलीयए ताव । कुवियकयंतस्सव तस्स दिढिविमयं गओ सत्थो॥१४३॥ तो तईसणउच्छलिय-| पवरकोवानलो अरुणनयणो । गलगज्जिएण जलभरभरियंबुहरुब गज्जतो ॥१४४॥ सविसेसायसवसुन्भिन्नकवोलयलगलियमयमलिलो। सत्थाभिमुहो वेगेण धाविउं पत्रणजइणा सो ॥ १४५ ॥ संरंभ वियासियवयणकंदरो गसिउमुहिउब जमो । उप्पत्थेगं इंतो सत्थेणं तक्खणा दिट्ठो ॥ १४६ ॥ पुब्धकयसुकयचाओक्खितुब समंतओ तओ लोओ। जियगाहेण पलाओ सवस्मवि वल्लहं हि जियं ॥ १४७॥ विहडइ म निविडसगडे तडत्ति तोडेइ गुणणियातलए । गोणाइ रडावेई दिसोदिसि विक्खिवइ भंडं ॥१४८॥ एवमसमंजसं तं कुणमाणं पिक्खए समणसीहो । उवमग्गपरीसहमएण पञ्चलो निश्चला झाणे॥१५९।। उत्तमसत्तो तो थिर| गत्तो मेरुव्ब ठाइ उस्सग्गे । भयरहिओ जियरहिए अक्खुभियमणो सुठाणंमि ॥१५०।। अह जाव जहिच्छमतुच्छमच्छरोत्थाहछिन्न सत्थो सो । सम्वत्थ भमइ हत्थी ता पिच्छइ सीहचंदरिसिं ॥१५१।। उन्भडरुंडत्तिकुंडलियवियडसुपयंडसुंडदंडो तो । तक्वणविफारिअरुणपुक्खरो मस्यकालोच ॥१५२।। खयसमयसमीरुक्खित्तसेलकूडोच डंबरियभुवणो। गुरुयतरामरिसबसेण मुक्कउकिट्ठसीकारो ॥१५३ गुंजद्धारूणनयणो पहाविओ साहुसंमुहं जाव । ता हाहारवकलिओ उच्छलिओ बहुलजणरोलो ।। १५४ ।। उनियह नियह एसो रायरिसी निजए कयंतगिहे । इमिणा मायंगेणं मायंगेणं हयासेण ।।१५५॥ अह सो माहुवरिटं तं दटुं तेहि || ELAINIRAHARISHAMITRAININEPATANIPAHIRAN ॥७७ ।। For Private And Personal Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir A श्रीदे चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥ ७८॥ अग्रपूजायां हरिकूटसंबंधः चिय पएहि ठिओ । संथंभिउन्न सहसा अदिहउकिट्ठदद्वेण ॥ १५६ ॥ सुपसनं नयणेहिं रायरिसिं तस्स पिच्छमाणस्स । उल्लसियं हियएणं वयणेणं वियसियं झत्ति ॥ १५७ ॥ ता उन्नयनिम्मलदंतमुसलजुगले निवेसिउंस करं। मुणिवयणनिहियनयणो चिंतिउमेवं समाढतो ॥१५८ ।। मन्ने मया इमो कत्थ दिट्ठपुवोत्ति चिंतयंतस्स । संभारणथमिव लहु तो जायं जाइसरणं से ॥ १५९ ॥ तो सरियपुबजम्मो सिंचंतो पुढविमंसुधाराहिं । सहसत्ति रायरिसिणो पडिओ पयपउममूलंमि॥१६॥ तेणं उबउ| तेणं नाउं जाइसरजायसंवेगो। पारियपडिमेणं सो अणुसिट्ठो कोमलगिराए ॥ १६१।। मा सीहसेण ! वञ्चसु सुविसायं दाणसीलयाइ तुमं । नो नरए उववनो जाओ धणमुच्छिया तिरिओ ॥१६२।। तो सो विम्हियहियओ चिंतइ य अहोस एस मज्झ सुओ। जाओ महाणुभावो जं जाणइ मे मणगयंपि ॥१६३।। अह विनविउं लग्गो सयावि ते इय ठियस्स मुणि! भई । मज्झवि तमेव उवदिस महरिसिणोदए रिसिणो ॥१६४॥ अणिमिसनयणो वियसियवयणो तं ठवियवियडकन्नउडो । रोमं । गत्तो | वुत्तो मुणिणा करिवरोसो ॥१६५।। सयमणुभूयभवण्णव विडंबणाडंबरस्स वारण! ते । किं इण्हिमुवइसिजइ तहावि किंपि हु पयं| पेमि ॥१६६॥ संदिहिजइ दिटुंपि जन कहियपि कोवि पत्तियइ । अणुभूयंपिय पुवं जंपडिहाइ न इह वत्थू ।।१६७|| माइंदजालिओविव तंपि समत्थेइ कम्मपरिणामो। कहमनहतं रज्जंकहमेरित्थं च तेरिच्छं? ॥१६८।। पञ्चक्वपरुक्खसुभिक्खदुक्खलक्खालएसु दुक्खंता । मिल्हवि सोयं संपइ दुलहं पडिवज जिणधम्मं ॥ १६९ ॥ जओ-लम्भंति लोललोयणललणा जणजणियचित्तपरितोसा । घरवासाककखडकम्मखवणदक्खो न उण धम्मो ॥१७०।। खवियपडिवक्खलक्खाई अविय लन्भंति रजसुक्खाई। भवअंध-| कूबउद्धरणपञ्चलो न उण जिणधम्मो ॥१७१।। लम्भंति पणयवरविणयपउणसुरसुंदरीसणाहाई । इंदत्तणाइ न उणो नरेहिं सिवसुहफलो RRITATAPGARHIRANAPAN RICHHAPER For Private And Personal Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mantan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas s i Gyanmandir श्रीदे चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥७९॥ U PARASHARAMMARIIRAMAILI ni lanimInsunilamINS disminewmmandalni | धम्मो ॥१७२।। अह स गहइ गिहिधम्म सम्मं समत्तमूलमाजीवं । बंभं छहतवं तह तो मुणिणा एवमणुसिहो॥१७३॥ अरिहंतु अग्रपूजायां | चिय देवो मुणिणुच्चिय सीलसंगया गुरुणो। जीवदयच्चिय धम्मो निच्चं चिंतिज नियचित्ते ।।१७४।। दुहदहणसजवुढि असेससत्तो-10 हरिकूट| हदिनमणतुढि । सुमरेजेगग्गमणो मंतं पिव पंचपरमिट्टिं ॥१७५॥ उज्झसु कसायवससंभवाइं दुकम्मविलसियाई लहुं। सद्दहण- संबंध: नाणसारं भावेसु य भावणापडलं ।। १७६ ॥ तोसगओ तो स गओ नमिऊण मुणिं सह गएण गओ। नाउमिणं सत्थजणोवि लेइ समाइ जहजोग्गं ॥१७७॥ वेरग्गगओ जयणाइ गच्छिरो पारणं कुणइ स गओ । परिसडियपंडुनीरसभग्गमिलाणेहिं पत्तेहिं ।। १७९|| दुक्करतवआयावणपरायणो सो कयाइ गिम्हमि । अप्पजले बहुपंके सरे गओ पाणियं पाउं ।। १७८ ॥ अप्पत्तजलो पंके | खुनो जाणित्तु तवकिलिमोऽहं । अनलो उत्तरिउमिउत्ति वजए सव्वमाहारं ॥१७२।। अह सिरिभृइ भुयंगो स अग्गिदइडो तया मरिय जाओ । कोलवणो चमरगयो दवग्गिदड्दो तओ मरिचं॥१८०॥ सल्लइवणंमि कुक्कुडसप्पो जाओ तओस तं दद्र्छ । अणसणगयं गयं जायमच्छरो डसइ कुंभमि ॥१८१।। विसवेगविहुरियंगो वोसरि सबपावठाणाई । खमियजिओ मण्णंतो अनोऽहं अन्नमंगं मे ॥१८२॥ इय सुहझाणो नवकारतप्परो मरिय सुक्कप्पंमि । सिरिनीलविमाणे सतरअयरआऊ सुरोजाओ॥१८३॥ तद्दन्तमुत्तिआई गहिऊण सिआलदन्तवाहेण । परिचियगुणपीईए धणमित्तवणिस्स दिनाई॥१८४॥ तेणवि तुहऽप्पियाई मित्तीइ | सलक्खणत्ति विनिउत्ता । दन्ता निवासणे मुत्तिआइं चूलामणमि तए।।१८।। एसा संसारठिई सोगट्ठाणेवि हवइ जं तुट्ठी। जम्म| तरगयपिउणो देहावयवेऽवि भुतण ॥१८६।। स कयाइ वागुरेणं कुकुडसप्पो विणासिओ दुहिओ । सत्तरअयराउ पंचमपुढवीइ जाओ | नेरइओ ।।१८७।। होही अमरो नवमे गेविज सीहचंदरायरिसी। इगतीसमागराऊ सुविमाणे पीइकरनामे ॥१८८।। पोसहपडिवन-11॥ ७९ ॥ Vilome For Private And Personal Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रीदे० । चैत्यश्री-1 धर्म संघाचारविधौ ॥८ ॥ सुसावउन सो सहइ चत्तवावारो । वरसाहुन्छ अणिंदो गयदइओ वीयरागुव ।।१८९।। तो चविउं चक्कपुरे राया चकाउहुत्ति सो होउं। अग्रपूजायां पिहियासवमुणिपासे पन्बइउं पाविही मोक्वं ॥१९०।। सत्थाहमहमित्तो सीहचंदो उ२नवमगेविजे३। चक्काउहो य रायाचइडं हरिकूटरजं सिवं गमिही ॥१९१॥ इय सोउ पुग्नचंदो गिहिधम्म गहिय जायसंवेगो । बंदित्तु रामकण्हं केवलिणि सगिहमणुपत्तो॥१९२।। संबंध: गोसाइसु पंचविहं अटुवयारविहीइ मज्झण्हे । सव्वोवयारपूयं पव्वाइसु अह विहेमाणो ।। १९३ ।। सामाइयपोसहाई अणुपालंतो सयावि सत्तीए । पडिलाभंतो समणे पालइ रजं सनीईए॥१९४॥ अंतमि चत्तभत्तो मरि जाओ सुरो महासुक्के । देसूणसतरसागरठिई विमाणमि वेरुलिए ॥१०५।। पालित्तु रामकण्हा केवलिपरियायमह बहुं कालं । सिवमयलमरुयमक्खयमपुणन्भवठाणमणुपत्ता ॥१९६।। अह आसी इह भरहे वेयड्ढे उत्तराइ सेढीए । मणिपहनिचालोयं निच्चालोयंति वरनयरं ॥१९७॥ तत्थ अरिसीहरनो देवीए सिरिधराय संजाया। सो पुनचंददेवो तओ चुओ जसहरा धूया ॥१९८॥ सुरावत्तेण पहंकरापुरीसामिणा परिणिया सा । पुष्फामिसेहिं पूअइ देवे वंदइ इय थुईहिं ।। १९९ ॥ “सिरिविजाणंदपरा सेवंति जणंपि सेविणं जस्स । तमहं सधम्मकीति। देविंदणयं थुणामि जिणं ॥२००॥ सुयधम्मकीत्तिनयमयविजाणं देसए सया विसए । वंदे विदेण सुराण बंदिए सबजिणचदे॥२०॥ देविंदाइपयं तिणसधम्मकित्तियमिमस्स जो निच्छं । झायइ जिणिंदवयणं वरविजाणंदपयकरणं ॥ २०२ ॥ समरह सुयदेवि देहिमोहहरधम्मकित्तियं जीए । नामपि ठाणमागमविजाणं देइ सन्नाणं ॥२०३।। अह सीहसेणनिवकरिजिओ उ सुक्का चुओजसहराए। जाओ य रस्सिवेगो पुत्तो पत्तो य कुमरत्तं ॥२०४॥ धम्मरइधम्मनंदे चारणसमणे अहागए तत्थ । नमिय निवो सपरियणो निसुणइ । इय देसणं तेसिं ॥२०५।। दुलहं मणुस्सजम्मं लघृणं रोहणं व रोरेण । रयणं व धम्मचरणं बुद्धिमया हंदि पित्तव्वं ॥२०६।। जह For Private And Personal Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri www.kobafitm.org श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥८ ॥ a in Aradhana Kendra Acharya Shri Ka s ul Gyarmandie पत्थणालसाणं चिंतामणिणो न दिति धणरिद्धिं । धम्मचरणालसाणं तह विहलो मणुयजम्मोऽवि ॥२०९।। इअ सोउ रस्सिवेग-[ अग्रपूजायां स्स दाउ रज्ज गहित्तु पन्चज्ज । सूरावत्तनिवरिसी कयकम्मतो सिवं पत्तो ।। २१०।। गुणवइअापासे गहियवया जसहरा सुरो हरिकूटजाओ । रुयगविमाणे लंतयकप्पे चउदसजलहियाऊ ।। २११ ॥ राया उ रस्सिवेगो सुदाणतवसीलभावणारंमं । सम्र्म गिहत्थ संबंधः धम्मं रज्जेण समं पसाहेइ ।।२१२।। अन्नदिणे हरिमुणिचंदचारणे तत्थ आगए समणे | विणएण पणमिऊणं सुणेइ तेसिं इमं| वयणं ॥२१३।। "संसारम्मि असारे असारभूया विसेसओ एसा । लच्छी देहो हो तारुण्णं जीवियवं च।।२१४॥ जं जलतरंगतरला लच्छी देहो जराइ जजरिओ । नेहो णरयदुहाईवल्लिपल्लवणनवमैहो ।।२१५ ॥ मयकलियकलहकरिकण्णतारतरलं च तारतारुणं । पवणपणच्चिरदीवयसिहव्व अइचंचलं जीयं ॥२१६।। गहएण पुनपत्तेण पाविया एस मणुयजम्मतरी। जाव न भिजई ता भवजलनिहितरणे पतूरेह ॥२१॥" इय सुणिय चइय रज्ज ग्राहय पवज पढियनवपुत्रो। सो निवई पडिवनो एगल्लविहारवरपडिमं ॥ २१८ ।। कंचणगुहाइ पढिमं ठिओ कयाबिहु इओ य धूमाओ। उन्बट्टिय स पुरोहियजीवो गुरू अयगरो जाओ ॥२१९।। तेणं गसियो स मुणी सुहझाणपरायणो मरिय अमरो । जाओ चउदसअयराउ लंतए सुप्पहविमाणे ॥२२०॥ अयगुरु सप्पो पुण तिबकोहपरिणामओ समज्जिणिउं । बहु अमुहवेयणिज्ज जाओ धूमाइ नेरइओ ॥२२१।। अह सीहसेणजीवो लंतयकप्पाउ चविय चकपुरे । चकाउहरायसुओ जाओ वजाउहोत्ति निवो ॥२२२।। तस्सासि रयणमाला देवी अहं ताण तयाउ चुओ। सो पुग्नचंदजीवो जाओ रयणाउहोत्ति सुओ ।। २२३ । बजाउहो उ रज्जे ठविअ सुअं वइरदत्तमुणिपासे । पबइओ चरणरओ अहिजिओ पुबचउदसगं ॥२२४॥ तो विइयसबभावो जिणुव्व अजिणोवि सो विहरमाणो । वजाउहरायरिसी पत्तो नयरंमि चक्कपुरे ८१॥ HIRAMINAR DHAMARTHRDNER जणुख अधिकारजे ठविध मणमाला देवी मणजीवो लयागत सप्पो For Private And Personal Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka s uri Gyanmandir श्रीदे चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी अग्रपूजायां हरिकूट ॥२२५।। ता रयणाउहराया सह नियजणणीई रयणमालाए । गंतुं नमइ मुणिंदं भय एवं कहइ धम्मं ॥२२६॥ “न तत् परस्य संदध्यात् , प्रतिकूलं यदात्मनः । एष संक्षेपतो धर्मः कामादन्यत् प्रवर्तते ॥ २२७॥ किंच-यथा हस्तिपदेऽन्यानि, पदानि पदगामिनाम् । प्रविशंति तथा ह्यत्र, सर्वे धर्माः दयानुगाः ॥२२८|| भीष्मः-चतुर्विधेयं निर्दिष्टा, त्वहिंसा ब्रह्मवेदिमिः । एषकतोऽपि विभ्रष्टा, न भवत्यरिसूदन! ॥२२९॥ यथा सर्वचतुष्पादस्त्रिमिः पादैन तिष्ठति । तथैवेयं महीपाल!,प्रोच्यते कारणैस्विमिः।।२३०॥ चातुर्विध्यं त्वेवं पूर्व च मनसा कृत्वा, तथा वाचा च कर्मणा । न भक्षयेच्च यो मांस, त्रिविधं स विमुच्यते ॥२३१॥ त्रिप्रकार तु निर्दिष्टं, श्रूयते ब्रह्मवादिभिः। मनो वाचि तथाऽऽस्वादे, दोषा ह्येषु प्रतिष्ठिताः ।। २३२॥ रसं च प्रतिजिह्वायाः, प्रज्ञानं ज्ञायते यथा । तथा शाखेषु नियतं, रागो ह्यास्वादतो भवेत् ।। २३३ ॥ तस्मात्यक्त्वा रसास्वादमहिंसाधर्मकाम्यया। वर्जनीयं सदा मांस, हिंसामूलमिदं यतः॥२३४।। न हि मांसं तृणात्काष्टादुपलाद्वाऽपि जायते । हत्वा जंतुं भवेन् मांसं,तस्मादोषोऽस्य भक्षणम् ॥२३५॥ मार्कडेयः-यो हि खादति मांसानि, प्राणिनां जीवितार्थिनाम् । हतानां च मृतानां च, यथा हंता तथैव सः ।। २३६ ॥ कश्चित खादको न स्यान्न तदा घातको भवेत् । घातकः खादकार्थाय, तं घातयति नान्यथा ।। २३७ ॥ अभक्ष्यमेतदिति चेत्, ततो हि विनिवर्त्तते । खादनार्थमतो हिंसा, मृगादीनां न वर्त्तते ।।२३८॥ धनेन क्रायको हंति, उपभोगेन खादकः। घातको वधबंधाम्यामित्येष त्रिविधो वधः ॥२३९।। आहर्ता चानुमंता च, विशसिता क्रयविक्रयी । संस्कर्ता चोपभोक्ता च,घातकाः सर्व एव ते॥२४॥ एवमेषा महाराज!, चतुभिः कारणैः स्मृता । अहिंसाऽतीव निर्दिष्टा, सर्वधर्मार्थसंहिता ॥ २४१॥ सोउमिमं दयरंमं गिहिधम्म गहिय मंसविरई च। जणणीइ जुओ निवई गओ मुणिं नमिय नियनिलए ॥२४२॥ अह कइया वजाउहरायरिसी निम्ममो सरीरेऽवि। RARIAHINITINUMAN IMILAL AATMAHARANIMU For Private And Personal Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Jain Aradhana Kendra www.kobafirth.org Acharya Shri Kal u ri Gyanmandir अग्रपूजायां हरिकूटसंबंध: श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ।। ८३॥ E PFRIHIMAmine विजणपएसे कत्थवि ठिओ अहोराइ पडिमं ।। २४३ ।। उच्चट्टिय धूमाओ अयगरजीवो इओ य चक्कपुरे। दारुणसोयरियसुओ अइकट्ठो नाम उप्पनो ॥ २४४ ।। हिंडंतेणं तेणं इओ तो पिच्छिउंस रायरिसी। खग्गेण अखंडतवो खंडाखंडीकओ मरिउं ॥२४५॥ अविणदृधम्मझाणो देवो सबसिद्धसुविमाणे । जाओ अइकिट्ठो पुण अपइट्टाणे दवामिहओ ॥ २४६ ॥ कारइ निवो अमारिं अह तित्थुमइकए तह सरजे । जिणरहजत्ताइ तहिं चउहाऽऽहारऽग्गपूयत्ति ॥२४७|| इह होइ असणपूया वरखजगमोयगाइभक्खेहिं । दुद्धदहियाईभायणेहिं तह ओयणाईहिं ॥२४८॥ जलपूया जलभायणधारादाणाइ खाइमञ्चणया। फलदाणादिक्खुस-| रिसवाइणा मंगलाइविही॥२४९।। साइमपूयाइ पुणो नेयं पूगफलपत्तगुलपमुहं । पंचंगुलितललिहणाइ पुप्फप्पगराइ णेताई । २५०।। इय पालियगिहिधम्मा रयणाउहराय रयणमाला उ । दिन्नबहुजीवअभया विहियाखिलभत्तपरिचाया॥२५१।। अच्चुयकप्पे पुप्फगनलिणगुम्मेसु वरविमाणेसु । बावीससागराऊ जाया देवा महिड्डीया ॥२५२॥ अह धायइसंडदीवे अवरविदेहे पुरच्छिमद्धस्स । सीयाओ दाहिणओ अत्थि सुनलिणो नलिणविजओ।।२५३।। नयरीऍ असोगाए तत्थ अहेसी अरिंजयनिवस्त । सुब्बयजिणदत्ताओ भजाओ सीलसजाओ ॥२५४॥ तासि सुया संजाया वीयभय-विभीसणत्ति बलविण्हू । ते अच्चुयकप्पचुया रयणाउहरयणमालजिया ॥२५५॥ ते साहियविजयद्धा विसुद्धसद्धा सया सुहसमिद्धा । विहरति जितविरुद्धा अन्नुन्नसिणेहपडिबद्धा ॥२५६।। अयराउ नारओ सक्कराइ जाओ विभीसणो मरिउं । वीयभओ पुण सुविहियमुणिपासे गिण्हए दिक्खं ।। २५७ ॥ काउं पाओवगमणं लंतयकप्पंमि | सुरवरो जाओ। आइचाभविमाणे समहियइकारअपराउ॥२५८॥ वंसाउ पुणुबहिय विभीसणो जंबुदीवएरवए । सिरिवम्मसुओ जाओ सिरिदामनिवो अउज्झाए ।।२५९॥ पत्तो विहारजतं वीयभयमुरेण पुन्बनेहेण ! पडिबोहिओ अणंतइजिणपासे गहिय HIRAMuwanri N For Private And Personal Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kai e uri Gyanmandir संबंध: श्रीदे० DIपवओ ॥२६०॥ सामन्नमसामन्नं पालित्ता बंभलोयकप्पसुरो। ऊणदससागराऊ जाओ चंदाभसुविमाणे ॥२६१।। अइकट्ठो उव्वट्टिय | ||अग्रपूजायां चैत्यश्री सत्तमपुढवीउ भमिय भूरिभवे । तिरिएसुं सहिऊणं दुहं बहुं खवियबहुकम्मो ॥२६२॥ अह जाव नईतीरे गोसिंगतवस्सिनंदणो हरिकूटधर्म० संघा जाओ । नामेणं मिगसिंगो उक्कडअन्नाणकट्ठरओ ॥२६३।। सविमाणगयं खयरं द? नियाणं करेवि इह जाओ। निववइरदाढचारविधौ । विजाजिन्भसुओ विजदादुत्ति ॥२६४॥ तह वजाउहदेवो सबट्टा चविय वीइसोगाए। जाओ विजयंतसुओ उ संजयंतोत्ति ॥८४॥ सो उ अहं ॥२६॥ सिरिदामसुरो बंभाउ चवियभाया जयंतनामो सो। होउं किंचिविराहियचरणो जाओ इमो धरणो॥२६६॥ पडिमडिओ अणीओ अमुक्कवरेण विज्जुदाढेण । इत्थ अहं इय भो वेरकारणं एयमेयस्स ॥२६७।। जइ पुण पुरोहियभवे मुत्तु कमाए मणमि चिन्तंतो। नियदोसेणेव मए पत्तमिणं वसणमइदुसहं ॥२६८|| अहि१ चरमर सप्प३ धूमा४ अयगर५ धूमा६ तिकट्ठ७ माघबई८ । इचाइ बहुभवेसुं न सहंतो दारुणदुहं तो ॥२६९॥ ता निज्जिणेह कोहं सया सलोह चएवि संमोहं । तरिऊण भवजलो. हं जइ इच्छह सिवसुहममोहं ॥२७०।। पुण भणइ तेहिं पुट्ठो इह तीएऽणागए जिणे स मुणी । विमलाई भावजिणा बार अईया य रिसहाई ॥ २७१ ॥ वीयभयसुओ? धरणो य२ बंदिउं विनति केवलिणं । पहु संगमो इओ णो होही? वोही तहा सुलहा ? ॥२७२।। केवली-इह मेरुमालिरन्नो अणंतसिरि? अमियगई य२ देवीणं । होहिह पुत्ता मंदर सुमेरुणोर तुम्हि महुराए ।।२२७॥ तुम्हं दुण्हवि रज्जं दाऊण कयाइ मेरुमालिनियो । सिरिश्मिलजिणसगासे पव्वइउं गणहरो होही ।। २७४ ॥ तुम्हेवि कयाइविहु जाईसरणा चएवि रज्जसिरिं । सिरिविमलजिणसमीवे सिज्झिस्सिह विहियवरचरणा ॥२७॥ एतद्भवसंग्राहिके गाथे-चारुणि य? ॥८ ॥ पुण्णचंदोर सुकमि३ जसोहरा४ य लंतयए ५। रयणाउह६ अच्चुयए७ वीयभओट लंत९ मंदरो१० सुक्के११ ॥२७६॥ देवी य BHISHIRHITamiASHIANARTHRISHAILEILAIMIMImpion HAMITHAHANUBHASHIANIHIDPala TIMIMm For Private And Personal Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma Aradhana Kendra www.kobairth.org Acharya Shri Ka y anmandir ainmA श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म०संघा चारविधौ अग्रपूजायां हरिकूटसंबंध: ॥८५॥ रयणमाला १ अच्चुयगि २ विभीसणो य ३ वंसाए ४ । सिरिदामनियो ५ वंतर ६ जयंत ७ धरणो ८ सुमेरु ९ मिवे १० ॥२७७|| इय छिन्नसंसया देवखेयराजा नमंति केवलिणं । ता कयजोगनिरोहो सिद्धो सो संजयतमुणी ॥२७८|निवसीहसेण १ हत्थी २ सुके ३ निवअस्सिवेग ४ लंतयए ५। विजाउद ६ मधटुंमि ७ संजयंतो मुणी सिद्धो८ ॥२७९।। काउं निव्वाणमहं पंचनईसंगमे सुरेहिं कयं । सीमणगनागसिरिमंजयंतसिद्धस्म आययणं ।। २८० ॥ अह विभवंति स्वयरा धरणं चरणेसु निवडिया धणियं । सामिय ! दिट्ठो कोवो विजादाणेण सुपसीय ॥२८॥ तो ते धरणिदेणं भणिया भो सुणह अज्जपमिइओ।। विज्जाउ साहियाओ तुम्ह विहेया भविस्संति । २८२।। एयस्स पुणो वंसे खेयरअहमस्स विज्जुदाढस्स। सिज्झिस्संति कहंपि हु न महाविज्जाउ पुरिमाणं ।। २८३ ।। इत्थीणंपिडु दुक्खेण मोबसग्गं च सिझिहंति तहा । देवमहामुणिमहपुरिसदसणेण व सुहेणावि ॥२.८४|| तह भणिया ते. खयरा जं इह अट्ठाहियाउ कायया। पइवरिसं तेऽवि तओ मिलिउं सम्वे तह कुणंति ॥ २८५॥ उक्तं च वसुदेव हिंडितृतोयग्वंडे-"अञ्ज अट्ठमीए दिणओ आढवेऊणं पंचनइसंगमे भगवओ संजयंतस्स नागरण्णो य अट्ठाहिया महामहिमा पवत्ता होहिद, तत्थ य दोहिवि विजाहरसेढीहिं निरवसेसाहि अवस्सं मिलियब्वंति" इचाइ खेयराणं देवसमक्वं ठिइं ठवेऊण । धरणिंदो सट्ठाणे सह देवगणेण संपत्तो ॥२८६॥ इह संजयंतमुणिसिद्धपडिमपूयाइ भवियबोहत्थं । कहियं पगयं तु मिगेण विहिअदेवत्थभत्तेण ॥२८७।। इत्यग्रपूजाफलकीर्तनात्मकं, श्रुन्वा मृगब्राह्मणसंविधानकम् । सुभोज्यनैवेद्यफलामिसंगतां, विधत्त मोक्षादिसुखा मदागताम् ।।२८८ः। इति फलनैवेद्याहारपूजायां मृगब्राह्मणसंविधानकं ।। अथ भव्यजनानुग्रहाय विशेषतो रात्रिसिद्धपूजास्तुतिप्रदीपादिपूजोपदर्शनार्थ सीमणगपर्वतप्रबंधः प्रदर्यते, तथाहि-अह कयाइ INDIA For Private And Personal Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mantin Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रोदे चेत्यश्रीधर्म० संघाचारविधी अग्रपूजायां हरिकूटसंबंध: Pali अनिलजसाइ वाउरहखेयरेसरससाए । ललियपुरा वसुदेवो आणिय मुक्को गिरिम्मिकें ॥१॥ पुच्छइ तं सुअणु! तए आणिो | कत्थऽहं ? कहइ अह सा। सीमणगगिरी एसो हिरिमंतोत्तिय पवुच्चइ य ।।२।। एयसिरंमि य एवं निम्मवियं धरणनागराएण। | नाभेपजिणाययणं धरणुन्भेयंति भण्णइ य ॥ ३ ॥ पडिमोवगयस्स इहं किर आइगरस्स भगवओ पुरओ। नमिविनमीणं पहमं । विजा दिन्ना धरणरना ॥४॥ तह ठविआ मजाया अरिपि जो इह गिरिम्मि वसमाणं । अमिभवइ सो उ सहसा कुलेण सह लहु विणस्सिहिद ॥५॥ अयलबलभद्दकेवलठाणे वीयं इमं जिणाययणं । कारविअंसिरिविजएण अमियतएण तइयमिई ॥६॥ सत्तुअगम्मित्ति इहाणीया सीमाणगे बलासने । तुम्हे अह वसुदेवो नागुम्भेयं गओ हरयं ॥ ७ ॥ हाउ तहिं जिणभवणे गंतुं वंदित्तु घेइए विहिणा । सुइरं च पज्जुवासिय विणिग्गओ सायसमयंमि ॥८॥ गंधव्वेण विवाहिअ अनिलजसं निसमइक्कमिय गोसे । गहिय जलथलजकुसुमे तह नलिणदलेहि वरसलिलं ॥९॥ पत्तो जिणभवणेसुं दारे उग्घाडिउं पविसिउं च । निस्सीहियाइवि हेणा पमजियाई जिणहराई ॥१०॥ कयसंमजणविलेवणे पूइऊण जिणपडिमे । अरणिमहणेण अगणि उप्पाइय दाउ धूवाई ॥११ ।। वंदितु चेइयाई विहिणा सुइरं च पज्जुवासित्ता । पिहियदुवारो सपिओ विणिग्गओ जिणगिहेहितो ॥१२।। एवं सो पइदियहं कुणमाणो सप्पिओ वियरमाणो । गिरिकंदरासु वंतरसुरुव्व कालं गमेइ सुहं ॥१३।। कइया निएवि हयगयरहखयरविमाणपरिगयं गयणं । भणइ पिए! खयरजणो ससंभमं एइ किमिह इमो॥१४॥ अनिलजसा-इह अन्ज जिणहराणं वरिसमहो एगराइओ एत्तो। अमोनि होइ अट्ठाहियामहो इत्थ सुमहल्लो ॥१५।। अत्र च वसुदेवहिंडिअक्षराणि-"एवं तीए भणियं-अअउत्त! इत्थ विजापढमप्पयाणभृमीए जिणाययणाणं संवच्छरुस्सवो एगराइओ संपत्तो, अनोऽविय होइ महो इत्थ तत्थ अट्ठाहिया होइ महिम"त्ति, तथा - TISTRIPATHIHAAHITIANIMAHILAIMER MITH A ITINinand For Private And Personal Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M h Aradhana Kendra www.kobairth.org Acharya Si Ka y amandie श्रीदे. अग्रपूजायां हरिकूटसंबंध: चैत्यश्री धर्म संघाचारविधौ ॥ ८७॥ अस्याः प्रथमे खण्डे भणितं-"तिनि महिमाओ करेमाणा ते हरिसेण कालं गमंति"त्ति, तथोत्तराध्ययनवृत्तौ-दो सासयजत्ताओ तत्थेगा होइ चित्तमासंमि । अट्ठाहियाइमहिमा बीया पुण अस्सिणे मासे ॥ १६ ॥ एयनिमित्तं तह अज विजजावोबयारकजेणं ।। | होहि अखिलविजाहरसमवाओ अजउत्त! इ६ ॥१७॥ अह नमिय जिणहराई जहारिहावासुरेसु खयरेसु । महिमाइ एगदिवसे पत्रोहिया जिणगिहपईवा ॥१८॥ तथा च वमुदेवहिंडौ-"एवं खयरविंदेसु उवसोहिए सबओ समंता धरणुन्भेयजिणाययणे महि-| | माए गयं दिवस, तओ अत्थमिए दिणयरे उद्धायतमइन्थियाए संझाए अम्गाहियाओ खयरेहिं जिणाययणसंसियाओ दीवपंतीओ, दीवसयसहस्सेहिं पअलिओ इव महीहरो संदीविउं पयत्तो"त्ति । अह वसुदेवो सपिओ जिणप्पणामकयवंदणो तत्थ । पिच्छतो पिच्छणयं अलक्खिओ भमइ खयराणं ।।१९।। एगत्थ गवलवन स खेयरिं नियइ वेरुलियमालं । नचंतिं जिणजिणजणियभत्तिमुत्ति धुवं रत्तिं ॥२०॥ अत्र च वसुदेवहिंडि:--"तत्थ य सियसुहमवत्थपरिहियाए पियदसणाग विजाहराय बुडीए भणियं-पुत्ति ! वेरुलियमाले! सचं ताव तुम अज नियमोववासकरिसिया, तहावि अवस्सं च तुमे अज भगवओ सयलतिहुअणमाणखंभस्स | उसमसामिणो नागरण्णो य सोववासाए नट्टोवहारो दायव्यो, तं उयर पुत्ति ! नट्टसञ्जत्ति, तओ दासीए अन्भस्थिया विणिग्गया पट्टजवणियंतराओ मणोहरा महाकन्ना, अविय-सिहिगलयनीलमरगयसरिवण्णा सा उवागया तं तु । पवरतरमुरवचंद्रा मणोरहं| रंगवरभूमि ॥२१।। जिणपडिमाण य कयप्पणामा पणचिया गीयवाइयाणुरूवं, अह मयकरणसंपउतं बत्तीसहमेयं नटुं उवदंसियं, समइत्थियाए अनिसाए समुग्गए दिणयरे य सम्मत्तपन्चमहिमं काऊणं गयाई सनगराभिमुहाई खयरवंदाई," वसुदेवो पुण गोसे कयसामइयाइसावयावसओ। काउं पचावाणं देवे बंदइ इय थुईहिं ।। २२ । तथा-"देवेन्द्रवन्यो जिनसर्व विद्यानंदं विधत्ते त्वयि १८७॥ For Private And Personal Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahajan Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ 11 26 11 www.kobafirth.org Acharya Shri Kailas वीक्षते यः । सदा समासादितधर्म्मकीर्तिः शिवं श्रयेताशिवशासनेऽसौ ।। १ ।। ते सर्वदेवेन्द्रगुरोः सविद्या, नंदति नूनं सुमनःसभासु । ये दर्शितार्थं श्रुतधर्मकीर्तीन् !, नर्मति देवान् परमात्ममूर्तीन् || २ || सर्वदेव 'अनियोगे लुगेवे' इत्यलोपात् सदैव, इन्द्रगुरोः - वाचस्पतेरपि सकाशात् शास्त्रविद्याः कीर्तीन्- कीर्त्तनानि । यद्भक्तितः श्रीरपि सार्वविद्यानंद स्थितं पुंसि सधर्म्मकीत ससंपदेवेन्द्रवति प्रकामं, तस्मै नमो जैनवरागमाय || ३ || सार्वविदी - सर्वज्ञसंबंधिनी आनन्द-वबंध ससंपदेव-सद्धि कामं वांछामि या च द्रवति-मुंचति निरीहेऽपीत्यर्थः । तेषां मुदेऽवेन्द्रसधर्म कीर्ते, वलक्षमूर्ते श्रुतदेवते त्वम्ं । ये ते गुणानस्तविसार्यविद्यानंदोलयंति स्तवनेन नित्यम् ॥ ४ ॥ अत्रभव अस्तविसार्यविधान् निराकृतविस्तरविद्यान् दोलयंति - इतस्ततो विस्तारयति । तथा च वसुदेवहिंडि:- " व सुंदेवो य एच्चूमकययम्मत्तसावय सामाईयाइनियमो गहियपञ्चक्खाणो कय काउस्सग्गथुइवंदणो अवइण्णोस रे कुसुमचयं काउं" अन्यत्रापि यथा - वंदइ उभओ कालंपि चेडआई थयथुईपरमो" दैवसिकरात्रि क्रप्रतिक्रमण योर्यथाक्रममादाववसाने येत्यर्थः, | तथा च महानिशीथे- 'चियवंदणपडिंक्रमणं' गाहा, तथा 'चेंइएहिं (अदिएहिं ) पडिकमिआ पच्छित्तं एका०, तथा मूलावश्यकटीका 'तओ तिनि थुईओ जहां पुविं, नवरमप्पसद्दए दिति, जहा घरकोइलाई सत्ता न उटुंति, तओ देवे बंदंति, तओ बहुवेलं संदिसावंति," कयजणगिहपुर फारुणवंदणो तमह वेरुलियमालं गंतुं । मायंगपुरे तपिउगेहे स परिणेः ||२०|| श्रुत्वेति पूजां खचरेश्वरैः कृतां स्तुतिप्रदीपादिमिरुत्तमाद्भुतम् । निर्विघ्नमोक्षाभ्युदयप्रदीपिकां कुर्वीत तां तीर्थकृतां प्रदीपिकाम् ||२१|| इति सीमपर्वत चैत्य प्रदीप रात्रिपूजा कायोत्सर्गस्तुत्यादिप्रबंधः । उक्तं 'तिविहा पूया य तह'त्ति चतुर्थ पूजात्रिकं, पूजां च कुर्वतो भगवतोsवस्थात्रिकं भावनीयमिति पंचमं तत्त्रिकं पर्यायाभ्यामाह For Private And Personal Gyanmandir अग्रपूजायां हरिकूटसंबंध: 11 26.01 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे० चैत्य०श्री धर्म० संघा - चारविधौ ।। ८९ ।। Jain Aradhana Kendra भाविज अवस्थतियं पिंडत्थ१ पयत्थर रूवरहियत्तं ३ । छउमत्थ१ केवलित्तं २ सिद्धत्थं खेव३ तस्मत्थो ॥ ११ ॥ भावितार्था, ननु च - पिंडस्थं च पदस्थं च रूपस्थं रूपवर्जितम् । ध्यानं चतुर्विधं ज्ञेयं, संसारार्णवतारक ॥ १ ॥ मिते चतुर्धा ध्यानवेदिभिर्ध्यानमुच्यते, अत्र त्ववस्थात्रिकेण ध्यानत्रयमुक्तं, अतोऽत्र चतुथं ध्यानं कथं स्याद् ?, उच्यते, रूपस्थध्यानं हि जिनबिंबादिदर्शनतः प्रथममेव संजायते, यत उक्तम्- 'पश्यति प्रथमं रूपं स्तौति ध्येयं ततः पदैः । तन्मयः स्यात्ततः पिंडे, रूपातीतः क्रमाद्भवेत् ||१||” इति स्यादेव यथोक्तध्यान सिद्धिः । अथ भव्यजनानुग्रहाय किंचिद् ध्यानचतुष्टयभावनोच्यते- पूजादिषु देहस्थं यथास्थमूर्त्तिं जिनादिकं मनसा । तद्रूपं चात्मानं यद् ध्यायेत् तदिह पिंडस्थम् || १ || मंत्रादिषु गुरुदेवस्तुतौ तथा पावनापरपदेषु । हृत्पद्मादिपदेषु च यद् ध्यानं तत्पदस्थमिह ॥ २ ॥ तत्र विघ्नविषक्षयशिवशांतिपुष्टिकवित्व चरितादिषु सितानि । क्षोभे विद्रुमवर्णान्याकृष्टावरुणवर्णानि || ३ || वश्ये रक्तान्यमितानि मारणे मोहने तु नीलानि । स्तंभे पीतानि द्वेषणेऽर्द्धनीलार्धरक्तानि ॥ ४ ॥ धूम्राण्युच्चाटन के राजावर्त्तकनिभानि परविजये । मरकतभानि भयहृतौ ध्यायेन मंत्राक्षराणि सदा ||५|| स्वर्णादिप्रतिमास्थित मर्हद्रूपं यथास्थितं पश्येत् । सप्रातिहार्यशोभं यत् तद् ध्यानमिह रूपस्थम् || ६ || सिद्धममूर्त्तमलेपं सदा चिदानंदमयमनाधारम् | परमात्मानं ध्यायेद् यद्रूपातीतमिह तदिदम् || ७ || स्वर्णादिविनिष्पत्तौ कृते निर्मदनेऽन्तरा । ज्योतिष्पूर्णे च संस्थाने, रूपातीतस्य. कल्पना ||८|| विभवश्व शरीरं च बहिरात्मा निगद्यते । तदधिष्ठायको जीवस्त्वन्तरात्मा सकर्मकः ||९|| निराको निराकांक्षी, निर्विकल्पो निरंजनः । परमात्माऽक्षयोऽत्यक्षो, ज्ञेयोऽनंतगुणोऽव्ययः ||१०|| यथा लोहं सुवर्णत्वं प्राप्नोत्यौषधियोगतः । आत्मध्यानात्तथैवात्मा, परमात्मत्वमश्रुते || ११ | लिंगत्रयविनिर्मुक्तं, सिद्धमेकं निरंजनम् । निराश्रयं निराहारमात्मानं चिंतयेद् बुधः www.kobatirth.org Acharya Shri Kagersuri Gyanmandir For Private And Personal ध्यान चतुष्टयं ।। ८९ ।। . Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir Immunalini IHDramme छबस्थावस्था भावना श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥९ ॥ ||१२|| अथ प्रथमां छद्मस्थावस्था विभावयिषुर्गाथाप्रथमपादमाह___ण्हवणञ्चगेहिं छउमत्थऽवत्थत्ति स्नपनं च-मञ्जनमर्चा च-पूजां कुर्वतीति स्नपनार्चकाः 'क्वचिदिति'डप्रत्यये, स्नपनकारा अर्चाकाराश्चेत्यर्थः,ततश्च स्नापकैः परिकरोपरिघटितगजारूढसकलशैरमरैः अर्चाकैश्च तत्रैव घटितमालाधारैः कृत्वा जिनस्य छमस्थावस्थां भावयेदित्युक्तप्रकारेण संबंधः,छबस्थाऽवस्था च त्रिधा-जन्मावस्था १ राज्यावस्था २ श्रामण्यावस्था च३, तत्र चेयं बृहद्भाष्योक्ता भावना-"उभयकरधरियकलसा गजगयसुरवइपुरस्सरा तियसा । गायंता वायंता जिणपरिगरउवरि निम्मविया ॥१॥(२१८)वररयणरययकणयनिम्मिएहि मिस्सेहि वरेहिं कलसेहिं । सुरगिरिसिहरोवरिसरहसमिलियसुरअसुरनियरेहिं ।।२।। विहियं ठावंति मणे संपइ अम्हारिसाण लोयाणं । जम्मणसमयपउत्तं मजणमहिमासमारंभं ॥३॥ (२१९) वत्थाहरणविलेवणमल्लेहिं विभूसिओ जिणवरिंदो। रायसिरिमणुहवंतो भाविजइ मालहारेहिं ।।४।। (२२०) एवं च जन्मावस्था राज्यावस्था चोक्ता, श्रामण्यावस्था तु भगवतोऽपगतकेशशीर्षमुखदर्शनात् सुज्ञानैवेति सूत्रे साक्षान्नोक्ता, बृहद्भाष्ये त्वेवं-'अवगयकेसं सीसं मुहं च दिट्ठपि भुवणनाहस्स। साहेइ समणभावं छउमत्थो एस पिंडत्थो ।।५।। (२२१) अन्यैस्तु जन्मराज्यावस्थाद्वयं विहाय छद्मस्थावस्थायां श्रामण्यावस्थैवैका भाविता, तत्र चैवं व्याख्यास्नानार्चाकारकैः पूर्वोक्ताथैः छद्मस्थश्रीयुगादिदेवपार्श्ववर्तिभ्यां इव नमिविनमिभ्यां दीक्षामहोत्सवार्थ वा सर्वतो मिलितैरिव सुरासुरनरेश्वरविसरैजिनस्य छद्मस्थावस्थां श्रामण्यावस्थायां भावयेदिति, एषा त्ववस्था-'जे अईया सिद्धे'त्यस्यां गाथायां भाव्यते, अनुत्पन्नकेवलज्ञानानामपि जिनानां द्रव्याहत्वात् , उक्तं च चैत्यवंदनलघुभाष्ये-'जे अअईयागाहाऍ बीयहिगारेण दवअरिहंते। Inditionalitime CHHATHI imilamIARPinline I FIRL H HINIDHINICHAR AIRAHIPAIHAR ॥९०॥ h For Private And Personal B Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maran Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥ ९१ ॥ www.kobafirth.org Acharya Shri Kailasi Gyanmandir पणमामि भावसारं छउमत्थे तिसुवि कालेसु ॥ | १ || "त्ति || नमिविनमिसंबंधश्चायं - इह भरहे सजियधणुहसंनिहे अत्थि कोसला नयरी । नासच्चजुआ दिप्पंतसुरयणा अमरनयरिव || १ || सालासु तंतुवायाण जत्थ वसणुब्भवो तह तरुसु । छायाऍ परावत्तो | मयणमि य मारसहो उ || २ || मग्गणसदो बाणेसु बालहत्थीसु तह कलहसदो । रयणेसु वयरसदो न कयावि हु नायरजणस्स | ॥३॥ आखंडलकरयलकलियकणयकलसकयरज अहिसेओ । सिरिरिसहो मंतेसुव पणवो पढमो निवेसु नित्रो ||४|| दंसिय निस्सेसकलाविञ्जाविन्नाणसिप्पकम्मस्स । मंतिपरिकपणा रायनी मित्तं चिय पहुस्स ||५|| तिहुयणभवणोयरवित्ररवत्तिसत्ताण रक्खणख| मस्स । सेवगणयावेखाइ अंगरक्खा ण य समिक्खा ||६|| सलामर असुरनरिंदविंद से वियपयारविंदस्स । इरिकरिरहवरभडनिवहसंगहो रञ्जवि मित्तं ||७|| तिहुअणपिउणो पहुणो सुहमाणाडंबरं पहरणाई । असिचकचावसरसिल्लभल्लत्राबल्लपमुहाई ||८|| कुमरतं वीसं पुद्दलक्ख तेवट्ठि तहय इय रजं । पालिय तओ वियाणिय दिक्खासमयं नियं सामी ||९|| सामंताइसमक्खं जा भरहं नियपए |ठवेइ तहा। बाहुबलि पमुहकुमराणवि भइउं देइ देससयं ।। १० ।। ताव सुदिट्ठी बंभंत रिट्ठपयरिड किण्हराईतो । ईसाणाइविमाणे अदुअयाउ लोयंता ॥ ११ ॥ अच्चि१य अच्चीमाली २ विशेयण ३पभंकरे४य चंदाभे ५ । सूराभेव सुकाभे ७ सुपइट्ठ८ रिट्ठे ९ नव विमाणा ||१२|| सारस्सय १ माइच्चा २ वण्ही ३ वरुण ४ गद्दतोय ५ तुसिया य ६ । अब्बाहा ७ अग्गिचा ८ रिट्ठमिहा९ इंति इय | संखा || १३ || दुदुदुतिसु पुढो सगहिय सगस्य चउदस सहस्स चउदहिया । सतहिया सगसहसा नवुत्तरा नव सया कमसो ||| १४ | ते वेयालियकप्पा नियनियपरिवारिणो कयंजलिगो । बुज्झाहि नाह ! तित्थं पयह जगजियहिअट्ठाय || १५ || एए देवनिकाया तत्थ य दुसु आइमेसु सत्त सया । दुसु चउदससहसा दुसु सहस तिसु नव सया अमरा || १६ || भक्तिन्भरनमियसिररइअंजली ते For Private And Personal नमिविनमिवृतं ॥ ९१ ॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ": Shri hargain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalli suri Gyanmandir TREA नमिचिनमिवृत्तं श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥९२॥ MINAurah उ विभवंति इमं । सबजगजीवहियं भयवं! तित्थं पवत्तेहि ।।१७। इय विश्वविउं सामि नमिऊण य ते सुरा गया सग्गं। जिणनमणाओ सग्गं जंति जिया अहव किं चुजं? ॥१८॥ इंदनियत्तकुबेरप्पेरियजंभगसुरेहिं जयपहुणो । मणिरयणकणयपमुहो उवणीओ विवि विहवभरो ||१९| सिंघाडगतिगचञ्चरचउक्कचउमुहमहापहपहेसु । तह गोयररत्थाइसु वरवरियाघोसणेण तओ ॥२०॥ मूरोदयाउ आरम्भ पायरामाउ जाव जयनाहो। वियरेइ कोडिमेगं कणगस तहऽट्टलक्खा उ ।।२१।। कोडीसय तिग कोडी अट्ठासीई असीइलक्खा उ । जगवच्चलेण संवचरेण दिना तिजयपहुणा ।। २२ ।। एवं कंचणधाराहि तचधाराधरोवित्र धराए । पदमो धराधिराया धरिसेइ दरिद्दसंतावं ॥२३।। अह वरिसियदाणते सहमा चलियासणा सुरवरिंदा। सबिडीइ सपरिसा सम्बेऽवि समागया इत्थ ॥२४॥ तद्दिक्खमिसेयं सायकुंभकुंभेहिं अंभभरिएहिं । पहुणो कुणंति अह पह आरुहइ सुदंसणं सिवियं ।२६।। पुषि उक्खित्ता माणुसेहिं साहटुंगेमकूवेहिं । पच्छा वहंति सीयं असुरिंदसुरिंदनागिंदा ।।२६।। सुरनम्वरपरियरिओ चित्ते कसिणहमीद अवरण्हे । छद्रुण अपाणेणं सिद्धत्थवर्णमि गंतु पहू ॥२७॥ हरिपत्थणाइ चउमुट्ठि काउ लोयं तओनमिय सिद्धे । मम मबमकरणिजं पावंति चरित्तमारूढो ॥२८॥ अह उक्खित्ते दुवहगुरुचरणभरंमि सामिणो ममगं । साहिजंपिव दाउं मणपजवनाणमुप्पन ॥२९॥ तह चत्तारि सहस्सा कच्छमहाकच्छपमुहनरवइणो। सयमेव विहियलोया पहुभत्तीऍ गहियंसु वयं ॥३०॥ कलहेहिं गइंदो इव अणुगम्मतो मुणीहि तेहिं पह । जलहित भूरिसत्तो कयमोणो विहरए वसुहं ॥३१॥ मिक्खाइ गओसामी भत्तीइ जणेण हयगयाईहिं। कन्नाहिं निमंतिजइ वत्थाभणेरणासहिं च ॥३२॥ तइया अमुणियमिक्खायरो जणो दाउ जाणइ न मिक्खं । तो मिक्खं अलहंता छुहामिभूया मुणी ते उ ।।३३।। हद्धी कुसेवगा इव मुत्तु पहुं इक्कगं तओ सन्चे। गंगातीरवणेसु जाया कंदाइआहारा ॥ ३४ ॥ NIRMAmmHODHI Hodaimminum IPATRAITAMARHUDIAImall ॥ ९२ ।। N ITIONSnimals For Private And Personal Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चै त्यश्रीधर्म ० संघाचारविधौ ॥ ५३ ॥ Aradhana Kendra www.kobafirth.org Acharya Shri Kailashsa कच्छमहाकच्छसुया पहुआ एसेण दूरदेसंमि । गयपृवि नमीविनमी अहागया तेण मग्गेण ||३५|| ते नियजणए ददद्धं विसायविहुरा भणति हा ताया !। किमणाहा इव तुम्भे नाहे सह रिसहनाहेऽवि ? || ३६ || ते चिन्नु पुढवित्तं भणति जलदद्दुरख कीडन् । | न चएमु विणु जलने सामिसमं अच्छिउं बच्छ ! ।। ३७ ।। तुब्भे उ भयह भरहं सो मे काहि ठिssaगन्निय तं । सीमणगनगे | पडिमाठियपहुपासे वयंति इमे ||३८|| विणण नमिय पभणंति नाह! भरहाइनियसुयाणं व । पुत्रं अदिन्नरञ्जाण अम्ह रजप्पओ हो ||३९|| किं देव ! देवपाएहिं पिक्खिओ कोऽवि अविणओ अम्ह । जं पडिवयर्णपि न देह अप्पसन्नव जयनाह ! ॥ ४० ॥ जइवि न जंपड़ सामी तहावि एसो गई मई अम्ह । इय निच्छिय ते देवं एवं सेवेउमारद्धा ||४१|| तथाहि - जलरुहिणीप तेहिं जलासयाओ जलं समाणेउं । सामिसमीवे वरिसंति निचमहरेणुममणत्थं ॥ ४२॥ तह गोसे तोसेणं पुप्फप्पगरं करंति पहुपुरओ। अविरल| परिमलपरिमिलियभसल कुलमहुररवरुडरं ||४३|| करको सधरियनिकोम असिवरा संठिया उभयपासं । सययं सेवंति पहुं सुमेरुसेलंव समिसूरा ||४४ || नमिऊणं च तिसंज्ञं मग्गति कथंजली मया अम्ह । तं मुत्तु पह ननो सामिय ! रजप्पओ होसु || ४५|| अन्नदिणे धरणिंदो पहुपयनमणत्थ तत्थ संपत्ती । ते तह कुत्र्यंत दट्टु कोउगा इय पर्यपेई ||४६ || भो भद्दा ! के तुब्भे ? किं मग्गह ? किं तया गया कत्थ ? | जड़या पहुणा दिन्नं सव्वेसि किमिच्छयं दाणं ? || ४७|| इहि पुण एस सामी निस्संगो निम्ममो सरीरेऽवि । वासीचंदणतुल्लो विवजिओ रोसतोसेहिं ॥ ४८ ॥ छउमत्थावत्थावि तो जो छउमपरिमुको । कयमोणो वसुहाए अनियवित्त विहरे ॥४९॥ नूर्ण इमस्स सामिस्स सेवगा केवि एस भत्तुति । चिंतिय सगोरखं ते उरगपई तं पर्यपंति ॥ ५० ॥ एयस्स वयं भिच्चा एयादेसेण दूरदेसंमि । अगमिंसु सपुत्ताणं सव्वेसिमदामि रजाई ॥ ५१ ॥ एस पहु णोऽवि रजं वियरिस्म अवि For Private And Personal Gyanmandir नमिविनमिवृत्तं 11 83 11 Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M a n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir HE श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥९४॥ LEAMINATI tuma meraman विदिनसम्वस्से । गरुआण चलणसेवा कयावि नहु निष्फला होइ ॥५२॥ अविय-पहुणो अस्थि न अस्थि व इय चिंता नो कयावि ||नमिविनकायदा । किंतु विहेया सेवा सयकालं सेवगजणेण ॥ ५३ ।। सेवह गंतुं भरहं सामिस्स य नंदणोवि सामिछ। एवं पुणोवि धरणेण | मिश्तं पभणिया ते उदाहु इमं ॥ ५४ ।। वच्छरियमहादाणेण पूरिउं सयललोयआसाए । पयलग्गधूलिलील जइवि चएसी य रजभर ॥५५।। वÉतो छउमत्थावत्थाए तहवि छउमपरिमुक्को । दुत्थियजणपत्थिअत्थसत्थचिंतामणी एसो ॥५६॥ ता हिय सामिमेरिसमनं सामि वयं नहु करेमो । को कप्पपायवं पाविऊण सेवेइ करीरतरूं? ॥५७॥ न य अभं पत्थेमो तिहुअणसामि इमं पमुत्तूण । किं वप्पीहो पीहइ जलधारं मुत्तु अन्नपि ।।५८॥ भदं भरहाईणं हवेउ किं तुइ इमीइ चिंताए । जमियाउ होइ पहुणोतं होउ परेण | किं अम्ह? ॥५९।। अवि-होइ थिराणं लच्छित्ति जिणसुई सुबए तओ अम्हे । होमो न उस्सुया जह मुद्धोकागीकयमऊरो॥६॥ |तहाहि-इह कोइ नरो आजम्म निद्धणो बालकालमयपियरो। भूरिविसएसु भमिओ विभूइहेउं न सा पत्ता ॥६१।। भणियं चदूरं वच्चइ पुरिसो हियए धरिऊण सयलसुक्खाई । तत्थवि पुवकयाई पुवगयाई पडिक्खंति ।।६२॥ कमि अरण्णे चिरजिष्णदेउले कोइऽणेण अह जक्खो। आराहिओ पयंपद बहूववासेहिं तं सुमिणे ॥६३॥ भो पइदिगमिह गमिही मुत्तु सिही कणगपिच्छमिकिकं । ताणि य कमेण गहिउं पभूयभूई भवेज सुही ॥६॥ किमिणंति व बुद्धो सो जा चिंतइ ता समागओ मोरो। सो सुचिरं नच्चिय | कणयपिच्छमिकं विमुत्तु गओ ॥ ६५ ॥ इस कइसु दिणेसु गएसु चिंतए स इह किच्चिरं वसिमो?। ता लहु एयकलावं एगसरं गहिय जामि गिहं ॥ ६६ ॥ तो चीयदिणे मुद्धो पिच्छकलावं स नच्चिए मोरे । जा गिण्हइ ता सहसा गओ सिही वायसीहोउं| ॥६७।। अतः पठ्यते-अत्वरा सर्वकार्येषु, त्वरा कार्यविनाशिनी । त्वरमाणेन मोण, मयूरो वायसीकृतः ॥६८॥ तो सो विल-10॥ ९४ ।। DAINIA HINDIPTIMIHIRIDIHIRAINRIT menue opm For Private And Personal Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha श्रीदे● चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ।। ९५ ।। Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash क्खचित्तो खित्तो दूरे सुरेण कुविएण । अवहरियपुत्र पिच्छो जाओ सवत्थ दुहभागी ।। ६९ ।। इय तेसि सोउ वयणं 'थट्ठो धरणो भणे भो भद्दा ! | एसम्हि इमस्स पहुस्स सेवगो पन्नगाहिवई || ७० || एच्चिय किर सामी सेवेयब्वो सयावि नहु अनो । तुम्हाण धुव थिरा सुपइन्ना साहु साहु इमा ।। ७१ ।। पहुणो इमस्स तुब्भेऽवि सेवगा सेवगो अहंपि तओ । पहुपायपसायफलं ददामि खयरेसरतं वो ||७२ || पहुसेवापत्तं चिय एयं बुज्झेह मा गणह अन्नं । उजोओ अरुणभवोऽवि रविभवो चैव भुवि जेण ॥७३॥ इय संबोहिय तेसिं गोरीपन्नत्तिपमुहविज्जाओ । अडयालीस सहस्लाई पाढसिद्धाउ वियरेइ || ७४ ॥ भणइ य वेयडूनगे गंतुं सेढीदुगंमि भो तुभे । ठावित्तु पुरवराई करेह निकंटयं रजं ॥ ७५ ॥ तो नमिय भुवणसामिं विउबिडं पुप्फगं वरविमाणं । आरु| हिउं ते चलिया पन्नगत्रणा समं चैव ॥ ७६ ॥ पहुसेवापत्तं तं संपयमकहिंसु गंतु अणयाणं । जाणाविंसु य भरहेसरस्स गंतुं अउ - ज्झाए ॥७७॥ तत्थ य-निययसयणवग्गं ते सपरियणं पमुइयं विमाणंमि । आरोविडं खणेणं पत्ता वेयडुसेलंमि ॥७८॥ पणुवीसजोयणुच्चो पंनासं वित्थडो य रययमओ । चउसेढी सिद्धाययणमंडिओ पवरनवकूडो || ७९ || दसजोयणेहिं उवरिं भूमितला उविय जंमसेढीए । दसजोयण पिहुलाए पंन पुरे सट्टि इयरीए ॥ ८० ॥ रजं पालेइ नमी रहनेउर चकवालनयरंमि [ प्रत्यन्तरेऽधिकं - तेसु पुरेसु सभासु य नमिविनमीहिं फुरंतभत्तीहिं । ठविओ सिरिरिसहजिणो घरणिंदो नागराया य ॥ ८१ ॥ अत्रावश्यकचूर्णिः - 'पुरेसु भयवं उसभसामी देवयं ठाविउँ' तं पूयंति तिसंझ झायंति सया अझफलमुसहं । अच्छउमत्थं छउमत्थवत्थसुत्थं थुणंतेनं ॥ ८२ ॥ सुइकसिणचउत्थीए उत्तरसादाहिं जो सुरिंदेहिं । कहिओ मरुदेवीए ओयरिओ भावितिजयपहू ॥ ८३ ॥ चित्तकसिणट्ठमीए जं जम्मणमजणकखणे सच्चे। सुरसेले भत्तीए व्हविंसु पूइंसु देविंदा ||८४|| जेण हरिविहियरज्जामि सेयविहिणा अहेसि जयपहुणो । For Private And Personal Gyanmandir | नमिविनमिवृर्त्त ।। ९५ ।। Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mara in Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ ॥ ९६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashuri Gyanmandir इह वसुमई वसुमई सुनयसणाहा सणादा य ॥ ८२ ॥ रजावसरे चिरधरियनलिणिपत्ताभिसेयसलिलेहिं । मिहुणेहिं ण्हवणगेहि व जप्पयपउमा य अमिरुइया ||८६|| नाणं वरविन्नाणं कलाउ सकला जओ पहुतं सा । रअं पहुत्तसज्यं पावेसि जणो य सयणो य ||८७|| लोयंतिमग्गणा इव नमञ्जणा सजणा न के हुजा ? । संवच्छ रियमवुच्छं किमिच्छियं जस्स दितस्स ॥ ८८ ॥ चित्ताइमहमीए महया महयामि गिहिरे जंमि । के के न बुहा विबुहा महिमं महिमंडले कासी ॥। ८९ । सो जयउ दुविहमोणो अओ अजे जणंतुऽणजेवि । कइया पुण दच्छामो तं तिजईंदं तिजयभाणुं ? ।। ९० ।। तेण अदेवावि जणा देवाविव दिवरिद्विणो विहिया । होउ तया य सयावि नमो नमो नमिरअमराय || ९१ ॥ तत्तो तत्ततवाओ हुत्था सत्थावि अत्थमुकयत्था । तस्सेव किंकरा मो दासा पेसा य भिच्चा य ।। ९२ ।। तंमि छउमत्थवत्थे विहरते महियलं पवित्र्तते । वरधम्मकित्तिपत्ता होउ सुभत्ती सया अम्ह ।। ९३ ।। इय सत्तविभत्तिविभत्तिभत्तिभत्तीइ संधुओ रिसहो । वियरउ संपइ संपइ सया विभर्त्ति गयविभत्तिं ॥ ९४ ॥ ] अह वरिसंते गयउरि गओ पहू अस्थि जत्थ कुमरते । बाहुबलिपुत्तसोम पहधारिणी सृणु सिजंसो || ९५ ॥ दट्ठे सुमिणं सुतेओ वडंबुणा धोविउं कओ मेरू । कुमरेण तहाऽरिबलं कयसाहिजो जिगइ सुहडो ॥ ९६ || रविणो रस्सिसहस्सं भस्संतं कुमरजोइयं दित्तं । इय कुमरनिवइसिट्ठी नियनियसुमिणे कहिंसु तहा || ९७|| सुठु तदत्थममुणिरा वृत्तु सुतेया१ रिजय२ पयासा३ य । जं इह कुमरकया तो फलमस्सत्ति गया सठाणे ते ।। ९८ ।। तिजयात्रामं वामंसदेसठियवामदेवदुसेण । तित्थंकरवेसेणं विभूसियं भूषणचिमुक्कं ||९९|| पासित्तु सगिहर्मितं पहुं विचितः तया य सिअंसो । एरिसलिंगं नणु मे सुदिपु सरह इय तो ॥ १०० ॥ (पारावर जयपु) पुढं पुढविदेहे पुकूखलवड़विजय पुंडरिगिणीए । निववयरसेणु रजं चड्य गिहेसित्ति जिणलिंगं ।। १०१ ।। तेणुत्तमिमे For Private And Personal नमिविनमिवृतं ।। ९६ ।। Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya'Shri Ka s ur Gyanmandir श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥९७॥ IN HINDI Hoanim वजनाहबाहुसुबाहुपीढमहपीढा । सबट्टि भरहि जिणचक्कि भुयबली थीदुर्ग होही ॥ १.२॥ तो सहरिसं सरहसं उत्तरियमणुत्तरं नमिविनतिलोयपहुं । नमइ तिपयाहिणं सो पयाहिणं दिजमाणगुणो ॥१०३।। कुमलो कोसल्लागय इकखुरसं सुहरसं सुहासरिसं । पारावइ मिवृत्तं जयनाहं पणदिव्याविन्भवसणाहं .१०४।। कहमेयं ते नायं ? तत्थ तयागयनिवाइणा पुट्ठो। सिजंसो भणइ अहं भमिओ पहुणा सहऽभवे १६।। तेहिं कहति पवुत्ते भणइ इमो धाइखंडदीमि। पुत्र विदेहे पुवेग मंगलावइयविजयंमि ॥७॥नागिलनागसिरिसुया सत्त सलक्खण सुमंगला धन्नी । सुब्भी उम्भी छाडी निनामिय नंदिगामंमि ॥८॥ घण वरभोयण माउय पिट्टचरतिलयगिरि फलत्थगया । मूरिजुगंधरदुहपुच्छ चउगइ धम्मं च बंभधरा ।।९।। अणसण ललियंग नियाण सयंपहेसाण सिरिपहविमाणे पुंडरिगिणीड़ जिणचकिवइरसेणस्स गुणवइए ॥१०॥ सिरिमइघिय सुरदंसण जाइसरण मउण भंडिगा चित्तं । जिणवरिसमहे लोहग्गलसामिवनजंघपरिणयणं ॥११॥ सरवण सुसाहुदाणं सुय विसधृमियगिहुत्तर सुहंमे। वच्छावई पहंकरपुरी अभयघोस विजसही ॥१२॥ पन्नवणि पुन्न केसव मुणिजागर दिक्ख अच्चुयसमाणा । पुंडरिगिणीइ वजनाह सारही दिकख सबढे ॥१३॥ जिणवइरसेणपासे सुयंति भरहे जिणो वइरनाहो । होही पढमोति तं तं दट्ट पहुं मे सुमरियं तं ॥ १४ ॥जओ-सवेवि जिणा इगदेवदूसरूवे हवंति जिणलिंगे। न य अन्नतिथिलिंगे न साहुलिंगेन गिहिलिंगे ॥१५।। निमामि ललिंग सयपह१ सिरिमइ वनजंघुर नर सुहमे ४। केसवऽभयघोसा५ च्चुय६ सारहि वजनाह७ सबढेदा॥११६।। तेऽवि तओ सुयविहिणा भत्ता भत्तीइ दिति भत्तीई। पहुपयठाणे पीढच्चणादिगरमंडलपसिद्धी ॥१७|| रहचकवालनयरे णमी ठिओ उत्तराइ दाहणओ। सिरिगयणवल्लहपुरे विनमी पुण धरणवयणेण ।।१८॥ सब्वेसुवि नयरेसुं नमिविनमीहि फरतभत्तीहिं । ठविओ सिरिरिसहजिणो धरणिंदो नागराया ||९७ ॥ HONImmumthe muditimatlamhindi adirectras: m e For Private And Personal Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INI vir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shriketagarsuri Gyanmandir श्रीदे० नमिविनमिवृत्रं वैत्यश्रीमि० संघाचारविधौ | ॥९८॥ myma rwadi UtpattellitehimalRRIHIROINORANJITTPIREMIm MAHITIANRAIAPAITHIN MARATHI | य ॥१९॥ विजाबलदप्पंधा करिंसु मा दुनयं इमे खयरा । तो धरणिंदो तेसिं एवं मेरं ठवेसीय ॥२०॥ सिरिजिणवराण जिणचेह| आण सुमुणीणचरमदेहाणं । मिडणाण परिमवकरो होही णु सो विगयविज्जो ॥२१॥ इय भणिय रयणमित्तिसु तं मेरं लेहिऊण ते ठविउं । विजाहराहिवत्ते तिरोहिओ झत्ति धरणिंदो ॥ २२ ॥ तेऽवि छउमत्थवत्थं पहुणो सच्छासया विभावंता। पहुपयसेवाइ फलं मणमि धणियं विचिंतिन्ता ।। २३ ॥ पूयंता य तिसंझं अवंझफलदायगं रिसहनाहं । दोगुंदगुव देवा गर्यपि कालं न याणंति ।।२४।। अह वरिसंते गयउरपुरे पहुं पारवेइ सिजंसो । बाहुबलिपुत्तसोमपहनंदणो पवरइखुरसं ॥२५।। बहलीजटंचइल्लाजोणगपल्हगमुवण्णभूमाई । छउमत्थो विहरंतो कुणइ पहू भद्दए देसे ॥२६॥ वाससहस्संते कसिणफागुणिकारसीइ वरनाणं । पहु अट्ठमेण पत्तो सगडमुहवणे पुरिमताले ॥ २७ ।। पुर्व नयमगंपिव सुधम्ममग्गं पहू पयासितो । नियचरणफरिसणेणं विहरइ वसुहं पवित्तंतो ।।२८।' नमिविनमी खयरपहू कयावि नियनियसुएसु रजभरं । संठविय रिसहसामिस्स पायमूलंमि पवइया॥२९॥ धरियवरचरणकरणा पुंडरियनगंमि निम्मियाणसणा । मुणिकोडिजुअलजुत्ता नमिविनमिरिसी सिवं पत्ता ॥३०॥ नमिविनमिखेचरेश्वरचरितं श्रुत्वेति जिनपतेर्भविका! | छद्मस्थावस्यां चैत्यनमनसमये सदा स्मरत ॥३१॥ इति नमिविनमिखेचरेश्वरसंबंधः।। इत्युक्ता छअस्थावस्था, अथ केवल्पवस्थां गाथाद्वितीयपादेनाह'पडिहारएहिं केवलियंति प्रातिहार्यैः-प्रतिमापरिकरोद्घटितैः कैवलिकामवस्था, मंत्रिपुत्रदेवदत्तवत् ,जिनस्य भावयेदिति गम्य,तत्र प्रतिहारा इव सदा पुरोऽवस्थानात प्रतिहाराः-सुरपतिनियुक्ता देवास्तेषां कर्माणि-कार्याणि प्रातिहार्याणि,तानि चाष्टौ,तथाहि-जिण अट्ट पाडिहरा असोगतरु कुसुमबुढि दिवझुणी । चमराई सिंहासण भामंडल भेरि छत्ततिय।।१।। तत्र परिकरोपरितनकलशोभयपार्श्वघटितैः पत्रैः स सर्वकाल ॥९८॥ For Private And Personal Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे० चैत्य० श्री - धर्म० संघाचारविधौ ॥ ९९ ॥ Jain Aradhana Kendra www.kobafirth.org Acharya Shri K समुल्लसद्बहुलपाटलपल्लवमनोहारिसमधिकयोजनविसारिविसालसालशाली कंकेल्लिवृक्षः केवलोत्पश्यनंतरं जिनस्योपरि शरीरप्रमाणाव् द्वादशगुणो गीर्वाणैर्विधीयत इति विभाव्यते, उक्तं च- " समहियजोयणपिहुलो बत्तीसघणूसिओ उ वीरस्स । सेसाण चेइयदुमा ससरीरा बारसगुणा उ || १ || १ तथा मालाधारैः परिकरघटितैः समंततो विकुर्वणाविरचिताधः कृतवृंत जानुघसुरमिपंचवर्ण| जलस्थलजविकचमणीवकप्रचयवृष्टिः संसूच्यते २ अथाम्लानसुमनःप्रकरस्योपरि कथं सर्वथा सचिचसंघट्टनादिविरतानां यतीनामवस्थानं कर्तुं युज्यत इति १, ततथैके प्रत्युत्तरयंति - साध्ववस्थानस्थाने न तानि सुराः प्रतिकिरंतीति, तत्रान्ये निगदंति-नैतदेवं, प्रयोजने अन्यत्रापि साधूनां गमनादेरपि संभवात्, केवलं विकुर्वितत्वात् तानि सचित्तानि न भवंति, अपरे त्वमिदधति-न विकुवितान्येव तानि, जलजस्थलजानामपि कुसुमानां तत्र प्रकीर्णत्वात्, तथा चागमः- “बिटट्ठाई सुरहिं जलथलयदिव कुसुमनीहारिं । पयरंति समंतेणं दसद्धवण्णं कुसुमवासं ॥ | १ | "ति, परमत्रैवं बहुश्रुताः समादधते - यथा निरुपमार्चित्यपारमेश्वरप्रभावादेकयोजनमात्रेऽपि क्षेत्रेऽपरिमितमर्त्यामर्त्यादि लोकसंमर्देऽपि न परस्परमाबाधा विबाधा वा काचित् तथा सुमनसामपि तासामुपरि संचरिष्णौ वा मुन्यादिलोके इति, तस्थं पुनः केवलिनो विदंतीति २ तथा वीणावंशकरैः प्रतिमोभयपार्श्ववर्तिमिः भक्तिभरविवशविबुधविसरवाद्यमानवेणुवीणाद्यनुसारिमाल व कैशिक्यादिग्रामरागमनोहारिसरससुधारसानुकारिसकललोकानंददायी दिव्यो ध्वनिः संस्मते ३ अत्राहुर्बहुश्रुताः - यद्यपि चायमनुपमो भगवत एव ध्वनिः तथापि यद् देशनासमये बहुबहुमानातिशयप्रेरितोभयपार्श्व| वर्तिमिरमर्त्यैः वरेण्यपुण्यलवानुगातिवल्गुवेणुवीणादिकणैर्भगवद्वचनमन्त्रीयते तदेतावताऽंशेनास्य प्रतिहारदेवकर्म्मत्वं न विरुध्यते इति ३ तथा प्रतिमानामूर्ध्वपश्चाद्भागविलसदुज्ज्वला खंडचंडांशुमंडलाकारदर्शनात् प्रकृतिभास्वरतीर्थकरकायतः तेजःपुंजं मुरैः For Private And Personal arsuri Gyanmandir प्रातिहार्याणि ।। ९९ ।। Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M p in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalaharuri Gyanmandir श्रीदे० पाति हार्याणि 170 श्रीधर्म संघाचारविधी ॥१०॥ संपिंड्य तद्पसुखावलोकनाय. रात्रावपि तमोऽपनयनाय च जिनशिरसः पश्चादारत्रितं मावलयायमानं भामण्डलं चिंत्यते ४ा तथा | इंदुमिकै छत्रत्रयोपरिनिर्मापितैः तारतरस्फारभांकारसंभारनिर्भरभरितभुवनोदरविवराः सुरैः सदा श्रीजिनपुरतो वाघमाना मेरयो महादकाः सर्यते ५ । चामरसिंहासनच्छत्रत्रयाणि प्रकटान्येव, एतदर्थमेव मुक्तिपदप्राप्तानामपि भगवतां तीर्थकतां अष्टमहापातिहार्यादिपरिवृत्ताः प्रतिमा निर्माप्यंते, उक्तं च बृहद्भाष्ये-"इय पाडिहेररिद्धी अणनसाहारणा पुरा आसि । केवलियनाणलंमे | तित्थयरपयंमि पत्तस्स ॥१॥ (२२३) जिणरिद्धिदंसणत्थं एवं कारेइ कोइ भत्तिजुओ। पायडियपाडिहेरं देवागमसोहियं बिंबं ॥२।। (२७) मुत्तिपयसंठियाणवि परिवारो पाडिहेरपामुक्खो । पडिमाण निम्मविजइ अवत्थतिगभावणणिमित्तं ॥३॥(८२)भरहेणं निम्मविया अट्ठमहापाडिहेरसंजुत्ता । अट्ठावयंमि सेले पडिमा सिरीरिसहचहमि ॥४॥ उक्तं च महापुरुषग्रंथे श्रीऋषभदेवनिर्वाणोद्देशके-बड्डइरयणं भणियं एत्युत्तुंगे नगंमि थूभसयं । मणिकणयरयणचित्तं कंचणपडिमाइसंपुग्नं ॥१॥ पंचधणूसयमाणा इक्किका | तत्थ पडिम मज्झमि । नाणाविहरयणविभूसियत्ति इक्विक इक्किके ।। २ ॥ अट्ठमहापाडिहेरा पडिमा उसहस्स पढममहथूहे । तत्तो | अणुक्कमेणं केवलिपडिमाउ ठावेइ ॥३॥ तथा-तत्थाइमजिणपडिमा पंचधणूमयसमूसिया रम्मा । अट्ठमहापाडिहेरा णमुत्ति काऊण | नरनाहो॥४॥"त्ति ।। मंत्रिपुत्रदेवदत्तकथा चैवम् • इत्थऽस्थि जंबुदीवे विजये विजियारिचकवालंमि । ससिसोलसमकलाए पडिरूवं भारह खित्तं ॥१॥ लोयाणुभावलठ्ठो संठिय| दबारसारचक्किल्लो। ओसप्पिणिअवसप्पिणीअइदीहरगद्दहल्लिजुओ॥२॥ जणआउयजलभरभरियरित्तदिणरयणिनिविडघडिमालो। जत्थ विणु वारिचारी भमंतससहरतरणिउसहो ॥३॥ कम्मपरिणामकोइंबिएण संसारिजीवजावकए । चुलुहुलु ढालिजंतो कालहट्टो MPUTRITIOnlimit MILAPATI MUMRAHMINARUPHILIPPIRITA MAHILAPAINITA ment ॥१०॥ For Private And Personal Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrike in Aradhana Kendra www.kobafirth.org Acharya Shri Kald u r Gyanmandir श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघा चारविधौ ॥१०१। न विरमेइ ॥४॥ तत्थ कियारसमाए चंपाइ पुरीइ पालगो हुत्था। राया जियारिनामा सिवदत्तो तस्स वरमंती ।।५।। तस्स य | वसंतसेणा भजा सा सुयअभावदुक्खेण । परिचत्तभोयणा अवरवासरे मंतिणा भणिया ॥६॥ दइए ! तुह किं बाहइ जं अहुणा भोयणंपि ते चत्तं । सा आह सुयाभावं विणा न वाहइ किमवि अन्नं ॥७॥ जओ-जलमज्झे किर पडिया घडिया दीसइ खणंतरं जाव । तणयविहूणं तु कुलं न दीसए थेवकालंपि ॥८॥ तदुहदुहिओ मंती भणइ पिए ! पुरिसयारसझं जं । मइसझं वा कजंत साहइ नणु कहवि पुरिसो ॥९॥ किमिह पुण दइवसज्झे कीरइ मा तहवि काहिसि विसायं । कुलदेवि आराहिय साहिस्समिमं लहुं जेण ॥१०॥ तीइवि तह पडिवन्ने मंती गंतूण भूवइसमीवे । कहिउं घरवित्तंतं दसरतं निवमणुनविउं ॥ ११ ॥ नियगिहविवितदेसे मुक्कालंकारभोयणविहाणो । कुससत्थराधिरूढो मंती सुमरेइ कुलदेविं ॥१२॥ अह सचिवसत्तमस्स य सत्तं सत्तमदिणंमि संपत्ते । देवी परिक्खिउमणा उवदंसह भीसणे बहवे ॥१३।। दहें तमक्खुहियमणं पञ्चक्खीहोउ हरिसिया देवी। सचिववरं वरसु वरं जंपइ अह सोऽवि पचाह ॥१४॥ देवि ! अविनायंपिव कह वयसि ममं वरेसु वरमिटुं। देवी-वक्खित्तचित्तयाए, मंत्री को पुण वक्खेवहेऊ ते ॥१५॥ देवी-संताणत्थी तं वच्छ ! बच्छयं बंछसे तुहं सो उ । दिनो पबड़माणो करिस्सइ अमुद्ददारिदं ॥ १६ ॥ तुह सत्तरंजियाए कि सुयमन्नं व देमि एयस्स । बक्खित्तमणाइ मए वरसु वर जंपिओसि तुमं ॥१७॥ इय सुच्चा भयभीओ मंती चिंतइ अहो दरिदमिहं। असुयवहो तणुदाहो भुक्खामारो अ दुभिक्खो ।। १८ ।। ता मह किमुचियमहुणत्ति चिंतिरो देवयाइ वरसु वरं । इय पुणरुत्तो सहसत्ति भणइ सो देसु मह पुत्तं ॥१९॥ दिन्नुत्ति मा करिजसु संदेहं किंतु वच्छ! सविसेसं । धम्ममि | पयट्टिजसु इय भणिय तिरोहिया देवी ॥२०॥ मंतीवि देविमच्चिय भुत्तो तो कहइ तुह पिए! होही । देवी दिनो पुत्तो होउमिणं ॥११॥ For Private And Personal Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrik ein Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila Gyanmandir देवदत्तकथा श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥१०॥ MPITIANSITIOICTIMATIL | सा पवजेइ ।।२१।। अह निसि वसंतसेणा रितं कलसं निएवि सुमिणमि। साहेइ मंतिणो सोऽवि आह नणु तुह सुओ होही ॥२२॥ सा भणइ किंतु रित्तो कलसो ? सो आह किंपि नहु एयं । तयणु इमा तुट्ठमणा तं गम्भं दहइ सुहसुहओ ॥ २३ ॥ काले सुयं पसूया दुवालसाहे करेवि जममहं । बालस्स कयं नाम जणएहिं देवदत्नुत्ति॥२४॥ तं पत्तजुवगगुणं मंतिवरिहो उ चंदसिहिस्स । सोमामिहध्याए पाणिग्गहणं करावेइ ।।२५।। अनमि दिणे रन्ना अवराहं किंपि पयडिउं लोए । उद्दालिऊण मुई मंती गुत्तीइ पक्खिसो ॥२६ विविहं तज्जाविजइ कारिजइ लंघणाई बहुयाइं । परपरिभवदवदडो मंती चित्ते विचिंतेइ ॥२७॥ वरमरिसदनेभ्यो भिक्षया प्रागवृत्तिवरमटविनिवासो हालिकत्वं वरं च । वरमसमजनानां भृत्यभावप्रपत्तिस्तदपि नरपतीनां माऽधिकारेण लक्ष्मीः ॥२८॥ अधिकाधयोऽधिकाराः कारा एवाग्रतः प्रवर्तते । प्रथमं न बंधनं तदनु बंधनं नृपतियोगजुषाम् ।।२९।। लद्धेणवि भुत्तेणवि दिनेणवि किं सुएण अत्थेण ? । निवडइ विडंबणा जस्स एवमसमाऽवसाणमि ॥ ३० ॥खंडुच्छुसकराणवि रसं विसेसेइ पढमसंमाणो । रनो अंते सोच्चिय विसं विसेसेइ तालउडं ॥ ३१ ।। अह दिनसव्वदवो सुद्धो दिवेण गुत्तिओ रना । मुको सगिहे | पत्नो मंती वुत्तो पियाइ इमं ॥३२॥ पूरिजंती रित्ता भरिया रित्ता भवंति इह पुरिसा । भमिरारघघडियव्य किंनु ता चित्ततावेण ?।। ३३ ।। अविय-नणु कस्स थिरा लच्छी ? पुन्ना सवे मणोरहा कस्स ? । को वल्लहो निवाणं ? निच्चं कस्स व सुहं इत्थ? ॥ ३४ ॥ मंत्री-दइए ! अयंडपडिए दुक्खे खलु होइ चित्तसंतावो । पुत्रविणिच्छियपडिए को तस्स हविज अवयासो ॥ ३५ ॥ वसंतसेना-कह निच्छओ इहासी, मंत्री-एयं कहियं तया उ देवीए । वसंतसेना-ता किं तणएण विणा न सारिअं अञ्जउत्त! तए ?॥३६।। मंत्री- जेण पावियवं इट्ठमणिटुं पहुत्तमपहुत्तं । तं पुण होइ अवस्सं निमित्तमित्तं परो होइ ।।३७॥ जंपइ अभिट्ठहउँ MPCATIHARIHARA M AITRINA ॥१०२।। HANIHIMSHILIA For Private And Personal Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahan Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥१०३॥ www.kobafirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir जणस्स सवोऽवि अह्नमं चंदं । राहुगिलणंमि तस्सेव अट्ठमे कहसु को अवरो १ ॥ ३८ ॥ ता मह विणावि तणयं दोगचमत्रस्सभावि जड़ इण्हि । पत्तं नणु को दोसो सुअस्म सा आह एवमिणं ||३९|| तो सुयभजासुहासहिओ कत्थवि गओ इमो गामे । तत्थ य ते पियपुत्ता कहंपि उपरंपि पूरंति ।। ४० ।। अह वेरग्गो गया ते अन्नदिमि मुणिवरं एगं । कत्थवि निएवि नमिउं पुच्छि पुराकथं दुकयं ||४१ || मुणिराह भद्दिलपुरे नंदो सिद्धित्ति सुंदरीदइओ । तस्स य खंदयनामो पुत्तो सुण्डा य सीलवई ॥ ४२ ॥ नंदस्स कयाइ पुरा अजिअकड कम्मपवणपसरेण । पुने घणे पणट्टे न होइ विभवो नहरउब || ४३ || काउं कुटुंबसुत्थं भंडलं किंची गहिय तो नंदो । वाणिजेण सुएणं सह चलिओ गुल्ल विसयंमि ||४४ || मग्गे य तस्स मिलिओ सत्थाहो देवसंमअभिहाणो | अन्नुन्नमेसि जाया पीई आलवणमुहेहिं ||४१५ || अह कित्तिर्यपि भूभागमग्गओ ताण अक्कमंताणं । उम्मुकपिकहका चिलायधाडी समावडिया || ४६ ॥ सत्थाहनंदखंदा इगदिसि भयकंपिरा लहु पलाणा । निष्णायगुत्ति सत्थो उल्लुडिओ भूरिमिल्लेहिं ॥ ४७ ॥ कमसो नंदिउरपुरे ते पत्ता नंदखंदसत्थाहा । कंमाई परघरेसुं काउं पूरंति नियउयरं ।। ४८ ।। तत्थ य सत्थाणं घणसंखासंगओ सपचइओ । निहंकियदिसिभागो लद्धो कइयावि निहिप्पो ।। ४९ ।। तं तेण सरलहियएण दंसिउं ते पयंपिया एवं । साहिजेणं तुम्हं निहिमेयं घितुमिच्छामि ।। ५० ।। तेहिवि तहत्ति कहिए भव्यदिणे काउ बलिविहाणाई । तं पारद्धा खणिउं उन्भट्टो कंठगो झत्ति ।। ५१ ।। इत्थंतरंमि तं गहिउमाणसो निबिडनियडिकवडमई । मुच्छानिमीलियच्छो पडिओ खंदो धसत्ति घरं ||५२|| अह नंदसत्थवाहा भीया मुत्तुं तयं निहिं सिग्धं । अकरिंसु पवणमाई न य जाओ से गुणो कोऽचि ॥५३॥ नूणं निहिदेवकओ विग्घो एसुत्ति खामिय तयं जा । अपिहिंसु य निहिठाणं तो जाओ खंदओ सुत्थो || ५४ || पुट्ठो सत्थाहेणं For Private And Personal देवदत्तकथा ॥१०३॥ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M e in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kal i Gyanmandir देवदत्तकथा ओ किमिह ? । हतबो सत्याहा श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१०४॥ "WIRANI निसि ते जणयसुया तमणध HEROINTriHTRIANTRATHITRA N निवहा इव काले कोलाहल HD URTISITama किमिणं भो भद्द ! आह सो माई । केणऽविऽहं पारद्धो हणिउं णिसुणेमि वयणमिणं ॥५५।। हा हा इमो वराओ हम्मइ अवराहवजिओ किमिह ? । हतबो सस्थाहो जेणमिणं खणिउमारद्धं ॥५६।। सत्थाहो भयभीओ निहिमुज्झिय गंतु नियगिहे सुत्तो । तं खंदकयं नाऊण कइयवं हरिसिओ नंदो ॥५७॥ अह निसि ते जणयसुया तमणग्धं रयणसंचयं गहिउं । कमसो सपुरंमि गया मिलियासिं| सयणपउरजणा ॥१८॥ यतः-संपदि सपदि घटते कुतोऽपि संपत्तिसहभुवो लोकाः। वर्षाभूनिवहा इव काले कोलाहलं कृत्वा ॥५९॥ पडिबुद्धो सत्थाहो गोसे अनिएवि ते विचिंतेइ । हुं लोभतरलियमणा गहिय निहाणं धुवं नट्ठा ।।६०॥ पत्तो निहाणठाणं तं रित्तं अनियं च दट्टण । अंसुजलाविलनयणो पहाविओ तेसि पुट्ठीए ॥६१ ।। कहकहवि भदिलपुरे पत्तो मढयाइ नंदखंदेहिं । तस्स उचिय-| पडिवत्ती विहिया वत्थाइदाणेण ।। ३२ ॥ कहियं च इमं मा कोइ गिण्हीहि तंति जा वयं पत्ता । निहिठाणे ता दिहा तं गहिउं नस्सिरा केऽवि ।।६३।। तो तप्पिट्ठीइ वयं गया सुरेण न उण ते पत्ता। पहभट्टा झरता कहवि तओ इत्थमणुपत्ता ।।१४।। अह तद्दिण्णोचियसंबलो गओ सासयंमि सत्थाहो । ते पुण पियमायातणयसुण्हया तेण दविणेण ।। ६५|| सुचिरं भुंजिय भोए पठुत्तरकूडकवडनियडिपरा। कालंमि काउ कालं संपत्ता विविहकुगईए ॥ ६६ ॥ मित्तविसंवायणदविणगहणवडूंतहरिसपसरेण । तं दुञ्जयमल्जियमंतरायकम्मं वसा तस्स || ६७ ।। जम्मो जहिं जहिं होइ ताण नहु भोअणाइसंपत्ती। अञ्चंतमुजयाणवि तहिं तहिं जायइ कहिंपि ।।६८|| कीरति जाई लोहामिभूयचित्तेहिं इत्थ जीवेहिं । कम्माई अहम्माइं परिणामे ताई वाहंति ॥६९।। सरिसवमित्तसुहट्टा थोवदिणकए कुणंति तमकजं । मूढप्पा अहह जओ चिरमइगुरुयं लहंति दुहं ॥७०॥ चउसुवि गईसु भमिउं ते चउरो कहवि अह कुणालाए। विणयंधरमिट्ठिस्स य जाया दो दो सुआ ध्वा ॥१॥ बालत्ते गहियवया दुच्चरतवचरणखीणबहुयरया। HRImund A Pritam ॥१०४॥ For Private And Personal Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahan Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीघ० संघा - चारविधौ ॥१०५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash Gyanmandir सुमवसरणं | वेयावच्चाइरया मरिउं जाया सुहम्मसु ॥ ७२ ॥ तो नंद१ खंदर सुंदरि३ सीलवइजिया ४ कमेण इह चविउं । मंति! तुमं १ तुह पुतो२ तुह भञ्जा ३ तुह बहू जाया ४ ॥ ७३ ॥ तं समुदयकयकम्मं तुम्हाणं समुदियं समुदएण । खीणं मे संपइ देवदिनं तं मृतु बहुकवर्ड ॥७४॥ इय सुणिय पुजाई सरिया तेर्हि तह वइयरं तं तु । सोउं तम्महिलाणऽवि जाईसरणं समुप्पनं ||७५ || अह मण देवदिलो कह पहु ! चिहमिमा पावाओ। मुणिराह दुरियदलणं एयमिह भद्द ! पणिहाणं || ७६ || जिणवयणनिहियनयणो वंदेतो चेइए सुपणिद्दाणो । केवलियऽवत्थमुत्थरुई झाइज जिणं इय ममि ॥ ७७ ॥ तथाहि - “थुणिमो केवलिश्वत्थं वरविजाणंदधम्मकितित्थं । देविंदनयपयत्थं तित्थयरं समवसरणत्थं || १ || पयडियसमत्तभावो केवलिभावो जिणाण जत्थ भवे । सोहिंति सबओ तहिं महिमाजोयण मनिल कुमरा || २ || वरिसंति मेहकुमरा सुरहिजलं उउमुरा कुमुमपसरं । विरयति वणा मणि ? कणय २ रयण३चित्तं महियलं तो ||३|| अभितर १ मज्झ२ बहिं३ तित्रप्प मणि ? रयण२ कणय३ कविसीसा । रयणज्जुणरुप्पमया वैमाणियजोइभवणकया ॥ ४ ॥ वमि दुतीसंगुल तित्तीस घणुपिहुल पणसयधणुच्चा | धणुस यइगको संतरा य रयणमयचउदारा ।। ५ ।। चउरंसे इगधणुसंयपिहुवप्पा पढम वीयअंतरयं (सड़कोस अंतरिया प्र० ) ! कोसद्धं विइ तइए ( पढमबिया वियतइया प्र०) कोसंतर पुव्वमित्र से || ६ || सोवाणसहस्सदसकरपिहुच्च गंतुं भ्रुवो पढमवप्पो । तो पन्नाधणुपयरो तओ य सोवाणपण सहसा || ७ || तो fare पो पन्नाधणुपयरु सोवाणसहस्सपण तत्तो । तइओ वप्पो छस्मयधणु इगकोसेहिं तो पीढं ॥ ८ ॥ चउदारतिसोवाणं मज्झे | मणिपेढियं जिणतणुच्चं । दोधणुसयपि दी सड्ढदुकोसेहिं धरणियला ||९|| जिणतणुबारगुणुच्चो समहियजोयणपिहू असोगतरू । तहिं होइ देवछंदे चउसीहासण सपयपीढा ||१०|| तदुवरि चउछत्ततिया पडिरूवतिगं तट्ठचमरधरा । पुरओ कणय कुसेस यठि For Private And Personal ॥१०५॥ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashkar Gyanmandir सुमवसरणं श्रीदे० । चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥१०६॥ यफालियधम्मचकचऊ ।।११।। झयछत्तमयरमंगलपंचालीदामवेइवरकलसे । पइदारं मणितोरणतिय धूवघडी कुणंति वणा ॥१२॥ जोयणसहस्सदंडा चउज्झया धम्ममाणगयसीहा। ककुभाइजुआ सवं माणमिणं जिण(निय प्र०)निअकरेण ॥ १३ ॥ पविसिय ।। पुन्वाइ पहू पयाहिणं पुबआसणनिविट्ठो । पयपीढठविअपाओ पणमियतित्थो कहइ धम्मं ॥ १४ ॥ मुणि १ वेमाणिणि २ समणी ३ सभवण १ जोइ २ वण ३ देवि ३ देवतियं ३। कप्पमुर १ नरित्थि ३ तियं ठंतिग्गेयाइविदिसासु ॥ १५ ॥ चउदेवि समणि उडिया ५ निविट्ठा नरित्थि सुरसमणा ७ । इय पण सग परिस सुगंति देसणं पढमवप्पंतो ॥ १६ ॥ इय आवस्सयवुत्तीवुत्तं चुन्नीइ पुण मुणि निविट्ठा । वेमाणिणि समणी दो उद्धा सेसा ठिआ उ नव ।।१७।। बीयंतो तिरि इसाणी | देवच्छंदोय जाण तइयंतो। तह चउरंसे दुदुवावि कोणेसु उ वहि इक्विका ।।१८॥ पीयसियरत्तसामा सुरवणजोइभवणा रयणवप्पे ।। धणुदंडपासगयहत्थसोमजमवरुणधणदक्खा ॥ १९ ॥ जयविजयाजियअवराजियत्ति सियअरुणपीयनीलाभा । बीए देवीजुअला अभयंकुसपासमगरकरा ।।२०।। तह य बहि सुरा तुंबरु१ खग्ग()गि २ कवाल३ जडमउडधरा ४। पुवाइदारवाला तुंबरुदेवो य पडिहारो ॥२१॥ सामन्नसमोसरणे एस विही एइ जइ महिडिसुरो । सबमिणं एगोऽविहु स कुणइ भयणेयरसुरेसुं ॥२२॥ पुत्वमजायं जत्थ उ जत्थेइ सुरो महिडिमघवाई। तत्थोसरणं नियमा सययं पुण पाडिहेराई ॥२३।। दुत्थियसमत्तअत्थियजणपत्थियअत्थसत्थसुसमत्थो । इत्थं थुओ लहु जणं तित्थयरो कुणउ सपयत्थं ॥२४॥ समवसरणस्तवनं समाप्तं । पयडियसमत्तभावो गाहा, सबओ'त्ति चैत्यवृक्षस्थानात् सर्वदिशं,उक्तं च-मध्ये मणिपीठिका विष्कंभे धणु २००, अर्द्ध धनु१००,उच्चत्वे तीर्थकरदेहमाना मणिपीठिका, प्रथमे प्राकारांतरे गाउ१ धनु ६००, प्राकारविष्कंभे धनु ३३ हस्त १ अंगुल ८, उच्चत्वे धनु ५००, प्रथम ॥१०६॥ ammarAHARIHANNEL me Mithimdim For Private And Personal Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha www.kobatirth.org श्रीदे चैत्यश्री मध०संघाचारविधी ॥१०७। Aradhana Kendra Acharya Shri Kallasteaedru Gyanmandir द्वितीयप्राकारांतरे गाउ १ धनुष्य ६००, द्वितीयप्राकारः विष्कंभे धनु ३३ हस्त १ अंगुल ८,उच्चत्वे धनु ५००, द्वितीयतृतीय सुमवसरणं प्राकारांतरे गाउ १ धनु ६००, तृतीयप्राकारः विप्कंभे धनु ३३ हस्त १ अंगुल ८, उच्चत्वे धनु ५००, एवं जिनबिंबाद् द्वितीयपक्षेऽपि, चतुरस्रप्रस्तावेऽपि यथा मणिपीठिका पूर्वापरतो विष्कंभ धनु २००, अर्द्ध धनु १०० मणिपीठिका, प्रथमप्राकारांतरे गाउ १ धनु६००, प्राकारोच्चत्वे धनु५००, विष्कंभे धनु१००, प्रथमद्वितीयप्राकारांतरे(ऽर्धगव्यूत)प्राकारः विष्कंभे सह गाउ २ प्राकारोचत्वे धनु ५०० विष्कंभे धनु १०० द्वितीयतृतीयप्राकारांतरेऽर्द्धगव्यतं प्राकारोचत्वे धनु ५०० विष्कंभे धनु १००, एवं द्वितीयपक्षेपि मणिपीठिकारहितं द्विगुणं कार्य ॥३॥ अम्भितरमझगाहा ४, रयणज्जुगरुप्पनिहत्तिा ३, कल्पविशेषचूर्णिः-चाउकोणा तिन्नि पागारा रइजंति चउद्दारा, अभितरिल्लो लोहियएहिं अक्खेहि, मज्झिल्लो पीयएहिं, बाहिरिल्लो सेयएहि॥४॥ वटुंमि दुतीसं गाहा५,उक्तं जीर्णोद्धारप्रकीर्णके-रइऊण समोसरणे सालतियं सयदसद्धउस्सेहं । वित्थरओ गव्यं धणुसयछक्केण अब्भहियं ॥५॥ चउरंसे इग गाहा ६, कोसद्धति कोसो कोसार्द्ध च, सार्धगव्यतमित्यर्थः, एतच्च-धणुसयपिहुल छधणुमय कोस १ कोसद्ध २ कोस ३ विच्चालं । सालतियं चउरंसे सेसं पुण भणिय बट्टसम१॥ति जीर्णोद्धारप्रकीर्णकगाथागाथाभिप्रायादाख्यातं ।। पूर्वदर्शितस्य तु प्रथमद्वितीयप्राकारांतरे गाउ२ द्वितीयतृतीयप्राकारांतरेऽधगव्यूतमिति, तथा अभितरमज्झिमाणं पागाराणं अंतरे जोयणं मज्झिमवाहिराणं पागाराणं अंतरे गाउअंति कल्पविशेषचूर्णेश्वाभिप्रायादेवं पाठः 'कोसदुगं वियतइए कोसद्धं पुवमिव सेसं केवलमत्र पूर्वाचार्योक्तवक्ष्यमाणसोपानविभागो विभावयितुं न पायते, हस्तपृथचसोपानसहस्रपंचकस्य हस्तसहस्रचतुष्कमाने - | गव्यूते रचयितुमसंभवात् ॥ ६॥ इय सोयाणसहस्सदसकरगाथाद्वयं, उक्तं च जीर्णोद्वारे-"सोवाणपंतिआणं वीससहस्सा उ. ॥१७॥ For Private And Personal Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mhean Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir सुमवसरणं श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१०८॥ हत्थुच्चा" ॥८॥ चउदारतिसोवाण गाहा ९,तथा च जीर्णोद्धारे-दो घणुसयमवि पढमं जिणतणुसमभागसबसमउच्चं । सीहासणं | महलं चउदारे तत्थ काहिंति ॥१॥ धरणियलाउ सहस्सा धणुहाणं पंच पेढिआ जत्थ।" तत्त्वामृतज्ञानार्णवयोस्त्वेवं-पंचधणु| सहसुच्चा मणिपेढी तीइ उवरि मणिपीढं । दो धणुसयाई जिणतणुउच्च सीहासणं च तहिं ।। २॥ जोअणसहस्सदंडा गाहा १३, माणमिणं नियकरेणत्ति,भणितं च जीर्णोद्धारे-'जे जंमि जुगे तद्देहमाणओ उस्सहेण धणुहाईति॥१३।। 'इय आवस्सय' गाहा १७॥ तथा चैतयोरक्षराणि-"अवसेसा संजया निरइसेसिया पुरच्छिमेण चेव दारेणं पविसित्ता भयवंतं तिपयाहिणीकाउं वंदित्ता य नमो तित्थस्स नमो अइसेसियाणं भणित्ता अइसेसियाष पिट्ठओ निसीयंति १, वेमाणियाणं देवीओ पुरच्छिमेण चेव दारेणं | पविसित्ता भयवं तिपयाहिणीकरित्ता वंदित्ता य नमो तित्थस्स नमो अइसेसियागं नमो साहूण य भणिता निरइसेसियाणं पिट्ठओ ठायंति, न निसीयंति २ समणीओ पुरच्छिमेण चेव दारेणं पविसिता तित्थयरं तिपयाहिणीकरिता वंदित्ता य नमो तित्थस्स नमो अइसेसियाणं नमो साहूण य भणित्ता वेमाणियदेवीणं पिटुओ ठायंति, न निसीयंति ३ भवणवासिणीओ जोइसिणी वंतरीओ एयाओ दाहिणेण दारेण पविसित्ता तित्थयरं तिपयाहिणीकरित्ता वंदित्ता य दाहिणपच्छिमेणं ठायंति,भवणवासिणीणं पिट्ठओ | जोइसिणीउ तासि पिट्टओ वितरीओ ३ भवणवासी देवा जोइसिया देवा वाणमंतरा देवा एए अवरदारेणं पविसित्ता तं चेव विहिं काउं उत्तरपच्छिमेणं ठायंति जहासंखं पिट्ठओ, वेमाणिया देवा १ मणुस्मा २ मणुस्सीओ य ३ उत्तरेणं पविसित्ता उसरपुरच्छि-P मेणं ठायंति, यथासंख्यं पिट्ठओ" इति चूर्णिः ।। अथ वृत्तिः- "अथ च मूलटीकाकारेण देवीप्रभृतीनां स्थानं निषीदनं वा | स्पष्टाक्षरैनॊक्तं, अवस्थानमात्रमेव प्रतिपादितं, पूर्वाचार्योपदेशलिखितपट्टिकादिचित्रकर्मवलेन तु सर्वा एव देव्यो न निषीदंति, १०८॥ For Private And Personal Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१०९॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org देवाः ४ पुरुषाः १ स्त्रियथ १ निपीदंतीति प्रतिपादयंति केवने" त्यलं प्रसंगेन । इय ओसरणे आजाणुसुरहिपणवष्णसुमणउकिरणे । वणयर करनवकंचण सहस्सदलठविअकमकमलो || ९९|| सहरिसहरिकरचा लियसुकं तदितचारुचमरचऊ । जियरविमंडलभामंडलेण अहियं विरायंतो ॥ १०० ॥ सुरताडियदुंदुहिसर संमूहय अंतरंग रिउविजओ ४ सुरअसुरखयर किन्नरनरवरउग्घुद्धजयसो ॥ १०१ ॥ पविसिय पुव्बाहिमुह छत्तत्तयसालतरुतलंमि पहू। सिंहासणे निसीयइ चउतीसाइसयकुलभूषणं ॥ २ ॥ पणतीसगुणजुयाए जोयणनीहारिणीऍ वाणीए । सवसभासाणुगयाइ इय रयणतिगं उत्रइसेइ ||३|| तइलोअकयाणंदो तिलोअचिंतामणी तिलोयगुरू । | तियलोय पहुपदेसियस धम्मकित्तिपुरधव लियतिलोओ ||४|| इय झाइओ तिसंज्ञं जिणचंदो हरइ (भवियलोयाणं । मिच्छत तमंघेणं बद्धं पोराण ) दुरियभरं ।। ५ ।। अविय -कयतियलोयसित्रमुहं तियलोए सबसंपयामूलं । निङ्कविअ कम्मरगंठिया से सदोसो सहमवंझं ||६|| ता झाइज्झ जिणिदं जाव पुरो संठियं च पडिहाइ । इय निञ्चन्भासेणं होही जिणरुवपडिहासो ||७|| संवेगा कंमखओ खुद्देद्दि तहा अलंघणीयत्तं । अप्पडिहयवयणत्तं रोगारिप्पमिइउवसमणं ||८|| अत्थजणं च परमं सोहग्गाई य कित्तियं चेत्र । नरसुरसिवसुक्खाणिवि करगोयरमिंति अचिरेण ।। ९ ।। दुकूखक्खउ कम्मक्खओ समाहि मुक्खो य बोहिलाभो य । संसारुतारणयं होइ ममं तुह पभावे || १०|| इच्चाई पणिहाणं करिज चिइवंदनावसामि । इय कुणओ ते पावं पुढकथं खिजिदी खिप्पं ॥ ११ ॥ इत्च्छंति भणिय गिण्डिय गिहिधम्मं नमिय सुणिवरं पत्तो । सयणजुओ नियगेहे मंतिसुओ कुणइ तह धम्मं ||१२|| अह धम्मपभावेणं पुव्वं पिव पत्तरायसंमाणा । सिवदत्तदेवदिन्ना सुचिरं कुव्वंति गिहिधम्मं ||१२|| पिउऽणुन्नाओ कहयावि देवदिष्णो गहेवि पव्त्र । जाओ तइए कप्पे कप्पाहिवसरिइरो || १४ || ते चविअ खिइपइट्टियनयरंमि महाधरस्स नरवणो । रेवह For Private And Personal Acharya Shri Kailas Gyanmandir सुमतिकथा ॥१०९॥ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Me in Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailasa ri Gyanmandir सिद्धावस्था सुमतिकथा श्रीदे० चैत्यश्री धर्म संघाचारविधौ ॥११०॥ HIRAHMEtammanartime Harpaliima ntiIRAHIMIGATIHAARATHIRAAT देवीइ सुओ जाओ सोमुत्ति सोमगुणो ॥१५॥ केवलिअवत्थमायनिऊण स कयावि पासजिणपासे । पंचसयरायतणएहिं संजुओ गिण्हए दिक्खं ॥१६॥ सिरिपासकहियतिवईपभावकयचंगवारसंगसुओ। होउं पंचमगणहरदेवो सोमो सिवं पत्तो ॥१७॥ मंत्री| शोद्भवदेवदिनचरितं चेतश्चमत्कारकं,श्रुत्वैवं भविनो विनोदनिकरात् कृष्ट्वाऽन्यतः खं मनः। सम्यग् भावयतानिशं जिनपतेः कैवल्यवस्थां परां, कैवल्यातुलसौख्यसंचयकरी दुष्कर्मशैलाशनिम् ।। १८ ॥ इति कैवल्यावस्थायां देवदिनकथा ॥ निरूपिता कैवल्यावस्था, संप्रति सिद्धावस्थानिरूपणार्थ गाथोत्तरार्धमाह . पलियंकुस्सग्गेहि अजिणस्स भाविज सिद्धत्तं पर्यकासनेन-कायोत्सर्गेण प्रतीतेन जिनस्य-तीर्थाधिनाथस्य भावयेत्-पुनः पुनश्चिंतयेत् सिद्धत्वं-सिद्धावस्था, सुमतिमहामात्यवत् । सिद्धौ किल जिनानामेतस्यैवाकारस्य भावात् , उक्तं च भाष्य-उसभो अरिडुनेमी वीरो पलियंकसंठिया सिद्धा । अवसेसा तित्थयरा उट्ठाणेण उवयंति ॥१४(८०) संठाणमंतसमये भवं चयंतस्स जमिह होइ तहिं । सिद्धस्स तिभागूणं तं संठाणं पएसघणं ।२।। सिद्धजहन्नोगाहण छत्तीसंगुल जिणाण घणरयणी । ऊणतिभागुकोसा तिसया तित्तीस धणुतिभागो ॥३॥ किंच-इहभवमिनागारो कम्मवसाओ भवंतरे होइ । न य तं सिद्धस्स जओ तम्मिवि तो सो न यागारो॥४॥ति ॥ सुमतिमहामात्यकथा चैवं-भदिलपुरे इहासी दासीकयदरियवइरिनिवचक्की । चक्काउहोत्ति राया सुमई नामेण से मंती ॥१।। बहुओवाइयसहसेहि अनया मंतिणो सुओ जाओ। जम्मदिणाओवि तस्स य रोगा उग्गा समुन्भूया ॥२।। विहिया यहूवयारा न य से रोगा मणंपि उवसंता । नेरइयस्स व वियणा मिसं विसनो तओ मंती ॥३॥ सो पुण बालो खसखाससासजरदाहपमुहरोगेणं । वियणाए अकंतो HAIRAMRITAPURALIATUFAMILINDRENICIAAFNAINथा TAMANN MAHTAM I ॥११॥ E For Private And Personal LM Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Mn Aradhana Kendra Shri Ma श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥ १११ ॥ C www.kobafirth.org Acharya Shri Kailas कंदतो अच्छइ सयावि || ४ || अह उड्डामरडामररोगदुक्खोहतावनवमेहो। चउतीसाइसयनिही समोसढो तत्थ पासजिणो ॥ ५॥ अहमहमिगाइ नियनियरिद्धिबलजुओ पुरीजणो सयलो। पामपहुपाय पंकयवंदणवडियाइ संचलिओ ||६|| सयलाहिवाहिविसहरविसविहुराणं जणाण अमयसमं । पासजिणं तत्थागयमायनिय झत्ति मंतीवि ||७|| पवरतुरंगारूढो नियपाणिपुडेण धरिय तं बालं । पाइड पहुपयजुअले अणप्पमाहप्पकुलभवणे ।। ९ ।। जलिरजलणा जउडंग अहिकुलंपित्र सुपनदंसणओ। नई पहुप्पभावा सिसुणो लहु रोगजालं तं ॥ १० ॥ तं दद्छु महच्छरियं बालं अग्गे करेवि सचिववरो । एगग्गमणो पहूणो देसणं निसुणए एवं ॥ ११ ॥ तथाहि - जीवो अणाइकम्मयतणुजोगउ दुट्ठ दुट्ठबावारो । दुस्सहदुहदंदोलिं सहेइ नरए अकयसुकओ ||१२|| गुरुभारवहणसीउण्डवासधारानिवायपमुहमिदं । जं अणुहवंति दुक्खं तिरिया तं सङ्घपच्चक्खं ॥ १३ ॥ बहुआ हिवाहिमाणात्र माणदारिद्ददूमियमणाणं । विसयासानडियाणं मणुआणं नाम किं सुक्खं १ || १४ | असरिसअम रिसईसाविसायहा साइदोसभवणेसु । अमरेसुवि अइफारो दुहसंभारो वियंभे ||१५|| तिरिनरअमरभवेसुं विसयासेवाइ जो सुहाभासो । सोवि अपत्थं पच्छा दिंतो बहुदुमहदुहनिवहं ॥ १६ ॥ भणिअं च - " कह तं भन्नइ सुक्खं सुचिरेणावि जस्स दुक्खमल्लियइ । जं च मरणावसाणे भवसंसाराणुबंधिं च ॥ १७॥ ता चउगहभवदुदारुदाहृदहणं करेह जिणधम्मं । दुविपि ससत्तीए ओसहमित्र कम्मरोगाणं ||१८|| तो मंती तुट्टमणो गिहत्थधम्मं गहेवि तं बालं । पहुपाएसं पुण पुण पाडेवि गओ सठाणंमि ||१९|| सिरिपासदंसणाओ रोगायंका इमस्स नणु नट्ठा। तत्तो सुदंसणो सो बालो वुच्चाइ पुरजणेणं ||२०|| भुवणस्सवि भद्दाई पकुणतो भद्ददंतिसरिसगई । भद्दिलपुराउ अनत्थ विहरिओ पास जिणनाहो | २१|| ते मंतिमंतितणया बहुसो मुणिसंगमेण संजाया । लट्ठा गहियट्ठा विणिच्छियट्ठा जिगममि ॥ २२ ॥ अह कइया निय For Private And Personal ri Gyanmandir सुमतिकथा ॥ १११ ॥ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri lin Aradhana Kendra www.kobafirth.org Acharya Shri Kaila Gyanmandir मुमतिकथा श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥११२॥ जणय उद्विग्गमणं सुदंसणो धणियं । पिच्छइ पुच्छइ ताया ! दीसह भे किमिइ उबिग्गा ? ॥२३॥ सो आह वच्छ! जयवच्छलस्स नीसेसरियदलणस्स। जस्स पभावेण तया नीरोगतणू तुम जाओ ॥२४॥ पणयजणपूरियासस्स पणयपासस्स जस्स य पसाया। सिवसुहजणयं मे दंसणाइ रयणत्तयं पत्रं ॥२५॥ सुइरं देसणजुण्हाइ कुवलयं बोहिउं स चंदुछ । कयबहुसम्मो संमेयपवए गंतु पहु पासो ॥२६॥ वग्धारियभुयजुयलो मासं कयअणसणो चइय देहं । उडुं सबट्ठाओ बारसजोयण अइक्कमिउं । २७॥ पणयाललक्खजोयणमाणा मज्झहजोयणे रुंदा। मच्छियपत्ताउ तणू अंते उत्ताणछत्तनिहा ॥२८॥ सिद्धसिला ससिधवला परिहीए जोयणाण इगकोडी । बायाल लक्ख तीसं सहसा दुसया उगुणचत्ता ॥ २९ ॥ तीसे उबरिमनोयणचउवीसइमम्मि सो पहू भागे । रयणी छक्कोगाहो सिद्धो इय अञ्ज निसुयं मे ।। ३० ॥ हा बहुसो तस्स पहुस्स नेव नमियं मए चरणकमलं । नेव मुहारसनिस्संदसुंदरा | देसणा निमुया ॥३१॥ तत्तो सुदंसणो सुद्धदसणो विहिअअंजली भणइ । मा उव्वेयमयं पुण मणयपि मणं कुणह ताया ॥३२॥ | किंतु वरनाणदंसणअमंदआणंदविरियमयरूवं । रूवाइयं सिद्धावत्थं पासं सया सरह ।।३३।। संठाणाइविहूणं अजरं अमरं असंगमसरीरं । अभप्पविउअगम्मं सिद्धावत्थं सरह पहुणो॥३४॥ सिद्धावत्धाइ जिणेसरस्स निस्सेसकम्मसुकस्स । रूवाइयं साणं माणेसुनिदंसि परमं ॥३५।। उक्तं चान्यैरपि-"सिद्धममूर्तमलेपं सदाचिदानंदमयमनाधारम् । परमात्मानं ध्यायेत् यद्रूपातीतमिह तदिदम् ॥३६।। निरातको निराकांक्षो, निर्विकल्पो निरंजनः । परमात्माऽक्षयोऽत्यक्षो, ज्ञेयोऽनंतगुणोऽव्ययः ॥३७॥ योगतत्त्वरत्नसारे "पिंडे मुक्ताः पदे मुक्ता,रूपे मुक्ताः षडानन !! रूपातीते तु ये मुक्तास्ते मुक्ता नात्र संशयः॥२८॥ सिद्धावत्थाइच्चिय सरणत्थं | पासचेइ पवरं । कारेवि नमह पूयह थुणेह सुमरेह झायेह ॥३९॥ यदुक्तं-अरहता भगवंतो असरीरा निम्मला सिवं पत्ता । तेसि | ११२।। For Private And Personal Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Jain Aradhana Kendra www.kobafirth.org Acharya Shri Kal s uri Gyanmandir सुमतिकथा HEM श्रोदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥११३॥ संभरणत्थं पडिमाओ इत्थ कीरति ॥ ४० ॥ उहाणठियाओ अहवा पलियंकसंठिया ताओ। सिद्धिगयाणं तेसि हुजं तइयं नत्थि संठाणं ॥४१॥ अन्येऽप्याहु-"स्वर्णादिबिंबनिष्पत्ती, कृते निर्मदनेतरा । ज्यातिष्पूर्णा च संस्थानरूपातीतस्य कल्पना ॥४२॥ एवं निसम्म सम्म सचिववरो असमहरिसभरपुनो। कारावइ जिणभवणं भवणं भुवणस्सवि सिरीए ।। ४३ ॥ सिरिपासनाहपडिमं विहिणा ठावित्तु तत्थ भत्तीए । पूइ अवत्थतियभावणेण वंदित्तु इय धुणई ।। ४४ ।। "विध्वस्ताखिलकर्मजालममलज्ञानं लसदर्शनं, ज्योतीरूपमरूपगंधमरसं स्पर्शादिमिर्वर्जितम् । सिद्धावस्थमवस्थितातुलसुखं वयकवीर्यात्मकं, निःसीमातिशयप्रभावभवनं श्रीपार्श्वनाथं स्तुवे ।।४५।। कायं ते जिनराजराजिकिरणग्रामाभिराम स्तवः १, काहं प्रातिभसौरभस्फुरदुरुप्रज्ञाविहीनः प्रभो! किंतु त्वद्गुणराशिरक्तहृदयस्तोत्रप्रवृत्तोऽस्म्यहं, शक्याशक्यविचारणासु विकलः प्रायो हि रागी जनः। ४६॥ विश्वस्तामय ! निर्जितेन्द्रियहय ! प्रक्षीणकर्माशय:, श्रीलीलालय निर्मितसरजय ! स्याद्वादविद्यामय! मिथ्यात्वप्रलय ! प्रहीणविषय! स्फूर्जत्रिलोकीदय!, श्रीपार्थ! सररोष! दोपकुनयध्वंसिन् ! सदा व जय ॥४७॥ किं कारुण्यमयी? किमुत्सवमयी? किं विश्वमैत्रीमयी?, किंवाऽऽनंदमयी ? किमुन्नतिमयी? किं सौख्यरेखामयी। इत्थं यत्प्रतिमा समीक्ष्य भविनश्चेतश्चिरं तन्वते, स श्रीपार्श्वजिनस्तनोतु विशदश्रेयांसि भूयांसि वः॥४८॥ आधिव्याधिविरोधिवारिधियुधि व्यालस्फुटालोरगे, भूतप्रेतमलिम्लुचादिषु भयं तस्येह नो जायते। नित्यं चेतसि पार्श्वनाथ इति हि स्वर्गापवर्गप्रदं, सन्मंत्रं चतुरक्षरं प्रतिकलं यः पाठसिद्धं पठेत् ॥४९॥ त्वं देवः शरणं त्वमेव जनकस्त्वं नायकस्त्वं गुरुस्त्वं बंधुस्त्वमसि प्रभुस्त्वमभवस्त्वं मे गतिस्त्वं मतिः। तत् किं पार्श्वविभो ! पुर:स्थितमपि त्वत्सेवकं किंकर, मामद्यापि लसद्दयारसिकया दृष्ट्यापि नो वीक्षसे ॥५०॥ शस्योऽयं समयः क्षणोऽयमनघः पुण्या त्वियं शर्वरी, श्लाघ्योऽयं दिवसो ॥११३॥ Hamaline For Private And Personal Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri A in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalas uri Gyanmandir AUR श्रीदे. चैत्यश्रीधर्मसंघा-1 चारविधी ॥११४॥ लवोऽयममलः पक्षोऽयमस्पिदम् । मासोऽयं विशदः समाः स्फुटमिमाः श्रीपार्श्वविश्वप्रभो!, यत्र त्वद्वदनं न्यलोक्यत मया सुमतिकथा निःशेषसौख्यावहम् ॥ ५१ ॥ धन्योऽहं कृतकृत्य एष नृभवस्तीर्णो भवांभोनिधिविधस्तांतरवैरिवारविषयो लन्धखिलोकोत्सवः। श्रीमत्पार्थविभो ! सदा त्रिजगतीविश्रामभूरप्यहो, यस्त्वं हंस इवाधुना विदधसे मन्मानसे संस्थितिम् ।।५२॥ इत्यं त्वां सितधर्मकीर्तिभवनं स्तुत्वेदमभ्यर्थये, श्रीमत्पार्श्वजिन ! त्वयापि हि सदा यस्मै कृते तत्यजे । प्राज्य राज्यमनाविला च कमला शुद्धांतबंध्यादिकं, विद्यानंदपदाय सुस्पृहयति त्यस्मै मदीयं मनः ॥५३॥" इय भत्तीए पासं जिणं धुणंतो पुणो पुणो मंती । तं चिय | बहु झायंतो जा दिवसे गमइ अमयसमे ॥५४॥ ता तस्थ अणेयविणेयपरिगओनाणभाणुवरनाणी । सुरखयरनमियचलणो समोसडो नंदणुजाणे ॥५५॥ तं नंतु सुमइमंती सुदंसणाईहिं संजुओ पत्तो। गुरुणा भवतस्करिणा सुदेसणा एवमारद्धा ॥५६॥ "भवजलहिंमि अपारे जम्मणजरमरणनीरपडिपुग्ने। वाहिदुरंतजलयरे कुजोणिसयदुत्तरावत्ते ॥५७।। किण्हाइअसुहलेसा अबालसेवालजालपडिहस्थे । गुरुरायपंकखुत्तो गुत्तो मायालयागहणे ॥५८॥ कहकहवि सुपुण्णवसा पावइ पाणी नरत्तबोहित्थं । संमत्तपइट्ठाणं सुजाइकुलपमुहवरफलयं ॥ ५९|| संवरकयनिच्छिडे सनाणगुणे विवेयगुणरुक्खे । संवेयसेयवहे निव्वेयानिलजणियवेगे ॥६०॥ सज्झायझाणपोए । वाहेसु नियमपुलिंदए तत्थ । सुहभावकन्नधारं भविया ! भवजलहितरणकए ॥६१॥ जं एस पमायअगायनियरओ रक्खिओ रयणदीवे । नेऊण इमं पूरइ एव महत्बयसुरयणेहिं ॥६२॥ तथाथि सबसावजविरइसेलो तहिं च सुहछाया । सीलंगसहस्सफला दसविहमुणिधम्मकप्पतरू ॥६३॥ भवजलहितडिसमा केवलित्ति तस्सि गओवरि सिद्धिपुरी(सिद्धी)। अत्थि तहिं ठवइ जियं नरत्तबोहिस्थमिहमुत्तं ॥६४॥ जीइ न जम्मो न जरा न य मरणं नेय छुहपिवासाई । न य रागरोगसोगा न आहिणो वाहिणो नेव ॥६५॥ | ॥११४॥ For Private And Personal Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri MHAN Aradhana Kendra www.kobairt.org BE y anmandie त्रिदिभीक्षणाभाव: श्रोदे चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥११५|| Acharya Shri Ka | किंतु अणंतचउकयकलिओ जीवो निरंजणो निचो । उजोयतो तिजयं चिट्ठव स्यणप्पइबुध ।।६६।" इस मुणिवयगं कयदुकयपसमणं निसमिउं सुमहमंती । रायाणमणुनविउ कुटुंबभारे ठविय पुत्तं ॥६७।। जिणसासणउच्छप्पणपुवं थुन्वंतओ सुरेहिपि । सिरि-| नाणभाणुकेवलिपासे दिक्वं पवओइ ॥६८।। सिद्धतमहिजंतो सिद्धावत्थं जिणाण भावंतो। सिद्धीइ भवेऽवि समो सिद्धो सिरिसुमइमंतिमुणी ॥६९॥ स्फुरन्मल्लीवल्लीकुसुमविशदं ज्ञानसुभगं, जनाः श्रुत्वा सम्यक् सुमतिसचिवस्येति चरितं । सदा सिद्धावस्था सरत हृदये चैत्यनमनक्षणे तीर्थेशानां सकलसुखसंसिद्धिवसतिम् ॥७०॥ इति सिद्धावस्थायां सुमतिमहामात्यकथा ॥१०॥ प्ररूपिता सिद्धावस्था, तत्प्रतिपादनेन च निरूपितमवस्थात्रिकभावनमिति पंचमं त्रिकं, तच्च दिक्त्रयावलोकनवर्जनेन सम्यक् स्यादित्यतः 'तिदिसिनिरिक्खणविरईत्ति पष्ठत्रिकस्वरूपनिरूपणार्थ गाथामाहउडाहोतिरियाणं तिदिसाण निरिक्खणं चइजहवा । पच्छिमदाहिणवामेण जिणमुहन्नत्यदिहिजुओ॥१॥ प्रक्षेपासुगमा च,नवरं तुर्यपदस्वयं भावना-आलोयवलं चक्खं अणिउत्तं दुकरं थिरं काउं। स्वेहिं तहिं खिप्पइ सभावओवा सयं चलइ | |॥१॥तहबिहु नामियगीवो विसेसओ दिसितियं न पेहिजा । तत्थ उवओगभावे दंसणपरिणामहाणी उ॥२॥ उक्तं च महानिशीथे-'भुवणेकगुरुजिणिंदपडिमाधिणिवेसियनयणमाणसेण धण्णोऽहं पुण्णोऽहंति जिणवंदणाए सहलीकयजम्मुत्ति मन्नमाणेण विरइयकरकमलंजलिणा हरियतणुवीयजंतुविरहियभूमीए निहिउभयजागुणा सुपरिफुडं सुविदियनिस्संकजहत्थसुत्सत्योभयं पए पए भावेमाणेणं जाव चेइए बंदियव्वे" गंधारश्रावकवत् , तथाहि-वेयगिरिस्स समासन्ने गंधारजणवए गंधसमिद्धे नयरे गंधारोनाम सावओ, सोउ | पञ्चइउकामो,पवइएहिं दुक्खेण तित्थाई नमिज्जतित्ति सबतित्थयराणं जमणनिक्खमणनाणुप्पत्तिनिवाणभूमीओदर्छ निग्गओ, तत्थ - For Private And Personal Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kal s uri Gyanmandir गन्धारभावकः श्रीदे. चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥११६॥ mammunintment HIRIRANSPIRINITISHITAIHITENIRMENT HEA जंमपुरी दो विणियार सावत्थी३ दो अउज्झ५ कोसंबी६ । वाणारसि७चंदउरीटकायंदी९भदिलपुरं१०च॥१॥ सीहपुर११चंप१२ कंपिल्ल१३ अउज्झ१४ रयणउर१५तिगयपुर१८ मिहिला१९। रायगिह२० मिहिल२१ सोरियपुर२२ वाणारसी२३ य कुंडपुरं२४ ॥२।। उसमस्स पुरिमताले नाणं वीरस्स मियाइ बहिं । नेमिस्स य रेवयए नाणं सेसाण जंमपुरे ॥३॥ अट्ठावयंमि उसमो वीरो पावाइ रेवए नेमी। चंपाइ वासुपूजो संमेए सेसजिण सिद्धा ॥४॥ इति तित्थाई दलु पडिनियत्तो पव्वयामित्ति, ताहे सुअं वेअडगिरिगुहाए उसहाइयाण सबतित्थयराणं सारयणचिंचइयाओ कणगपडिमाओ, साहुसगासे सुणित्ता ताओ दच्छामित्ति तत्थ गओ, तत्थ देवयाराहणं करिता विहाडियाओ पडिमाओ, तत्थ सो सावगो थयथुईहिं धुणंतो अहोरत्तं निवसिओ" इति निशीये, तत्र स्तोत्रं-"नम्राखंडलमौलिमंडलमिलन्मंदारमालोच्छत्सांद्रामंद्रमरंदपूरसुरभीभृतक्रमांभोरुहान् । श्रीनामिप्रभवप्रभुप्रभृतिकांस्तीर्थकरान् शंकरान् , स्तोष्ये सांप्रतकाललन्धजननान् भक्त्या चतुर्विंशतिम् ।।१।। नंद्यान्नाभिसुतः सुरेश्वरनतः संसारपारं गतः, क्रोधायैरजितं स्तुवेऽहमजितं त्रैलोक्यसंपूजितम् । सेनाकुक्षिभवः पुनातु विभवः श्रीशंभवः संभवः, पायान् मामभिनंदनः सुवदनः स्वामी जनानंदनः।।२॥ लोकेशःसुमतिस्तनोतु मम निःश्रेयःश्रियं सन्मतिर्दभद्रोः कलभं मदेभशरभं प्रस्तौमि पद्मप्रभम् । श्रीपृथ्वीतनयं सुपाचमभयं वंदे विलीनामयं, श्रेयस्तस्य न दुर्लभं शशिनिभं यः स्तौति चंद्रप्रभम् ।।३।। बोधि नः सुविधे विधेहि सुविधेः कर्मद्रुमौघप्रधे, जीयादंबुजकोमलक्रमतलः श्रीमान् जिनः शीतलः। श्रीश्रेयांस ! जय स्फुरद्गुणचयश्रेयः श्रियामाश्रयः, संपूज्यो जगतां | श्रियं वितनुतां श्रीवासुपूज्यः सताम् ॥ ४ ॥ मोक्षं वो विमलो ददातु विमलो मोहांबुवाहानिलोऽनंतोऽनंतगुणः सदागतरणः कुर्यात् क्ष्यं कर्मणः । धर्मो मे विपदं च्युताधिपदं दद्यात् सुखैकास, शांतिस्तीर्थपतिः करोत्विभगतिः शांतिं कृतांतक्षितिः MIUIRE ॥११६॥ M IRAIAINIK For Private And Personal Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M a www.kobafirth.org Gyanmandir गान्धारश्रावकः श्रीदे० चैत्यश्री धर्म संघाचारविधी ॥११७॥ h Aradhana Kendra Acharya Shri Kailas | ॥५॥ कुंथुर्मेघरवो भवादवतु वो मानेभकण्ठीरवो, भक्त्या नम्रतरामरं जिनवरं प्रास्तस्मरं नौम्यरम् । श्रीमल्लेखनतक्रमोमिततमो मल्लेस्तु तुल्यं नमो, विश्वार्यो भवतः स पातु भवतः श्रीसुव्रतः सुत्रतः॥६॥ लोभांभोजतमेश्वरोपम! नमे! धर्मे धियं धेहि मे, वंदेऽहं कृषगामिनं प्रशमिनं श्रीनेमिनं स्वामिनम् । श्रीमत्पार्श्वजिनं स्तुवेऽस्तवृजिनं दांताक्षदुर्वाजिनं, नौमि श्रीत्रिशलांगजं गतरुज मायालताया गजम् ।।७। इत्थं धर्म्यवचोवितानरचितं वयं स्तवं मुधुतः,सद्धर्मद्रुमसेकसंवरमुचा भक्क्याऽर्हता नित्यशः। श्रेया-कीर्तिकरं नरः, सरति यः संसारमाकृत्य सोऽतीतार्तिः परमे पदे चिरमितः प्रामोत्यनंतं सुखम् ॥८॥ कर्तृनामगर्भाष्टदलकमलं। जिन! तब गुणकीर्ते! विश्वविध्वस्तकीर्ते !,विगलदपरकीर्यगिरा धर्मकीर्तेः। सितकरसितकीर्ते ! शुद्धधम्मैककीर्तः,स्तुतिमहमचिकीर्ने तां कृतानंगकीर्ते ॥१॥जय वृषभजिनामिष्ट्रयसे निम्ननामिर्जडिमरविसनामियः सुपर्वागनामिः। तम इह किल नामिक्षोणिभृत्सुनुनामिद्रुत-|| अवनमनामि शांतिसंपत्कुनामिः।।प्रकटितवृषरूप! त्यक्तनिःशेषरूप प्रभृतिविषयरूप ज्ञान विश्वस्वरूप जय चिरमरूप पापपंकाम्बुरूप! त्वमजित ! निजरूपप्राप्तसञ्जातरूपः।३। जय मदगजवारी संभवांतर्भवारिव्रजमिदि हतवारिश्रीन केनाप्यवारि । यदधिकृतमवारिश्रंसन श्रीभवारिः,प्रशमशिखरिवारि प्राणमदानवारिः॥४॥अकृत शुभनिवारं योऽत्र रागादिवारं,सुविनतमघवारं संवराहः सुवारम् । मदनदह- | नवारं दोलितांतर्भवारं, नमत सपरिवारं तं जिनं सर्ववारम् ॥५॥ तब जिन! सुमते ! न प्रत्यहं तन्यते न, स्तुतिरिति सुमतेन कत्तमोनिकृतेन । यदिह जगति तेन द्राग्मया संमतेन,धुवमितदुरितेन श्रीश! भाव्यं हितेन ॥६॥ परिहृतनृपपन ! श्रीजिनाधीशपद्मप्रभा सदरुणपद्यधुत्तमोहंसपद्म । त्वदखिलभविपद्मवातसंबोधपत्र, स्वजनगतविपद्याप्येऽनुशम्माकपा ।.७। दुरितनिभगमोऽहंपूर्विकार्यक्रमोई त्यजतिसमतमोऽहंकारजिद्यः समोहम् । कतकरणदमोहंतास्तलोभंत मोहं. मतिहतमसमोहं तं सुपार्श्व तमोहम् ॥८॥ समतणमणिभावः HAPAHARASHTRAMAITRINA HARIHARI ॥११॥ For Private And Personal Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir गान्धार श्रावकः श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघा-1 चारविधौ ॥११८॥ HTANI NEHIMANIRAULIHIP ज्ञातनिःशेषभावः, प्रहतसकलभावप्रत्यनीकप्रभाव! कृतमदपरिभाव श्रीशचंद्रप्रभावद्विजयति तनुभाव त्यक्तकामखभाव ॥९॥॥ जिनपतिसुविधे यः साच्चदाजाविधेयप्रवण इह विधेयः प्रस्फुरद्भागधेयः। त्रिजगदनपिधेय श्लाघसमामधेयः, श्रयति शुभविधेयस्तं लसद्रूपधेयः॥१०॥ य इह निहतकामं मुक्तराज्यादिकामं, प्रणतसुरनिकामं त्यक्तसद्भोगकामम् । नमति स निजकामं शीतल ! त्वां प्रकामं, श्रयितकि तमकामं सार्विका श्रीः स्वकामम् ।। ११ । विषमविशिषदोषा चारिचारप्रदोषा, प्रतिविधति सदोषाप्यस्य किं कालदोपा । य इह वदनदोपापार्चिषा शालिदोषा, तनुकमलमदोपा श्रेयसा शस्तदोषा॥१२॥ कुतकुमतपिधानं सत्वरक्षाविधानं, विहितदमविधानं सर्वलोकप्रधानम् । असमशमनिधानं शं जिनं संदधानं, नमत सदुपधानं वासुपूज्याभिधानम् ॥१३॥ मवदवजल- | वाहः कर्मकुंभाद्यवाहः, शिवपुरपथवाहस्त्यक्तलोकप्रवाहः। विमल! जय सुवाहः सिद्धिकांताविवाहः, शमितकरणवाहः शांतताइहन्यवाहः॥ १४ ॥ जिनवर ! विनयेन श्रीशशुद्धाशयेन, प्रवरतरनयेन त्वं नतोऽनंतयेना। भविकमलचयेन स्फूर्जदूर्जस्ययेन, द्विरदगतिनयेन त्येन भाव्यं नयेन ॥ १५।। जडिमरविसधर्मानुक्तदानादिधर्म, त्रुटितमदनधर्म न्य ताप्राज्ञधर्म । जय जिनवर धर्म! त्यतसंसारिधर्म, प्रतिनिगदित धर्मद्रव्यमुख्यार्थधर्म ॥१६॥ यदि नियतमशांतिं नेतुमिच्छोपशान्ति, सममिलषत शांति तहिया प्रत्तशांतिम् । प्रहतजगदशांतिं जन्मतोऽप्याचशांति, नमतविगतशांति हे जना देवशांतिम् ॥१७॥ ननु सुरवरनाथ त्वां ननाये नृनाथ !, त्वमपि विगतनाथः किंत्वहं कुंथुनाथः । प्रकुरु जिन सनाथ स्यां यथायोपनाथ प्रणतविबुपनाथ प्राज्यसचिभ्य(न्छ्रीश)नाथ ! ॥ १८ ॥ अवगमसवितारं विश्वविश्वेशितारं, तनुरुचिजिततारं सहयासांद्रतारम् । जिनममिनमतारं भन्यलोकारतारं, यदि पुनरवतारं संसतौ नेकतारम् ।।१९।। अनिश्चमिह निशान्तं प्राप्य यः समिधान्तं नमति शिननिशांतं मल्लीनाथं प्रशान्तम्। अधिपमिह ( ॥११८॥ For Private And Personal Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobafirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रीदे IAN श्रावकः पैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥११९॥ विशांतं श्रीर्गता चावशांत, श्रयति दुरितशांतं प्रोजल्य नित्यं वशांतं ॥२०॥न्यदधत मघवासत्प्रोल्लसत्शुद्धवासः, परिहतगृहवासखाशके यस्य बासः । विहितशिवनिवासः प्रत्तमोहप्रवासः, समन इह भवासः सुव्रतो मेऽध्यवासः ॥२१॥ समनमयत बाला शात्रवान् योऽप्यबालप्रकृतिरसितवालः श्रस्तरुचक्रवालः। जयतु नमिरवालः सोऽधरास्तप्रवालः, असितविजितवालः पुण्यवल्ल्यालवाला ॥२२॥ जितमदन मुने मे नानिशं नाथ नेमे !, निरुपमशमिनेमे येन तुभ्यं विनेमे । निकृतिजलधिनेमे सीर मोहबुनेमे, प्रणिदधति न नेमे तं परा अप्यनेमे ॥२३।। अहिपतिवृतपार्श्व छिन्नसंमोहपार्थ, दुरितहरणपार्श्वसंगमयक्षपार्थम् । अशुभतमउपाच न्यस्कूवामंशुपाय, वृजिनविपिनपार्थ श्रीजिनं नौमि पार्थम् ॥२४॥ त्रिदशविहितमानं सप्तहस्तांगमानं, दलितमदनमानं सद्गुणैर्वर्द्धमानम् । अनवरतममानं क्रोधमत्यस्यमानं, जिनवरमसमानं संस्तुवे बर्द्धमानम् ॥ २५ ॥ विगलितवृजिनानां नौमि राजी जिनानां, सरसिजनयनानां पूर्णचन्द्राननानाम् । गजवरगमनानां वारिवाहस्तनानां, हतमदमदनानां मुक्तजीवासनानाम् ॥२६॥ अविकलकलवारा प्राणनाथांशुतारा, भवजलनिधितारा सर्वदाविप्रतारा । सुरनरविनतारात्वाईती गीर्वतारादनवरतमितारा ज्ञानलक्ष्मी सुतारा ॥२७॥ नयनजितकरंगीमिंदुसद्रोचिरंगीमिह कुलमहुरंगीकृत्य चित्तांतरंगी। सरति हि सुचिरांगीर्देवतां यस्तरंगी, कुरुत इममरंगीत्यादिकृद् बंधुरंगी ।। २८ ॥ इति द्विवर्णयमिताहियत्यष्टकस्तुतयः॥ तस्स निम्मलरयणेसु न मणागमवि लोमो जाओ, देवया चिंतेइ-अहो माणुसमलुदंति, तुट्ठा देवया, बहि वरं भयंती उवडिया, तओ साबगेणं लवियं-नियचोऽहं माणुस्सपसुकाममोगेसु, किंचणेण कजंति ?, अमोहं देवयादरिसणंति भणित्ता देवया अडसयं गुलियाणं जहाचिंतियमणोरहाणं पणामेइ । तो य निग्गओ, सुयं चणेण-वीयमये नयरे सन्नालंकारविभूसिया देवावयारिया पडिमा, तं दामिति तय गओ, बंदिया ॥११९॥ । For Private And Personal Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mal A radhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash Gyanmandir गान्धारश्रावक: श्रीदे चैत्यश्री धर्म०संघाचारविधौ ॥१२०॥ |पडिमा, तत्थ ठिओस गिलाणो जाओ पडिजग्गिओ य कुाए । अट्ठसय गुलियाणं तीए दाउंस पच्चइओ ॥ २९ ॥ अह | एगगुलियभक्रवणपभावओ सा सुवनभा जाया । सा तप्पमिइ जणे मुवनियगुलियत्ति सुविस्वाया ॥३०॥ भक्खित्तु बीयगुलियं चिंतइ सा मे पिउब एस निवो । सेसा गोहसमा तो मह भत्ता हवउ पोओ ॥३१।। सो देवयाणुभावा तीइऽणुरनो विसज्जए | दयं । सा भणइ दंसमु निवं पजोयस्साह सो गंतुं ॥४५|| नलगिरिमारुहिय इमो निसि पत्तो तत्थ तीद अमिइओ। जियपडिमं सह गिण्हसु एमि जहा अबहा नेव ॥४६॥ अह गंतु सो सनयरं पडिरूवं कारिउं तहिं पत्तो । तं मुतुं जियपडिम दार्सि गहिउं गो सपुरि ।। ४७ ॥ गोसे सकरी सोउं नट्ठमए चेडियं अवहडं च । कुविओ उदायणनिवो जा जोयावेइ जियपडिम ॥४८॥ तो तं मिलाणमल्लं दटुं दममउडबद्धनिवसहिओ। पजोयनिवस्सुवरि चलिओ काले निदाघमि ॥ ४९ ॥ पत्तो मरुमि सिने मिसं तिसापीडिए सरह राया । झत्ति पभावइदेवं स विउबइ पुक्खरतिगं तो ।। ५०॥ तर्हि तहिं पाउं पाउं सलिलं सिने सुरो गो सपयं । राया उदायणोऽविहु उज्जेणिपुरं कमा पत्तो ।। ५१।। तत्थ उदायणरन्नो अवंतिनाहस्स दूयबयणेण । अचिरा परुप्परेणं रहसंगरसंगरो जाओ ॥५२॥ तयणु धणुद्धरपक्रो रहमारुहि उदायणो पत्तो । गुणटंकारमुदारं कुणमाणो समरभूमीए | ॥५३॥ नाउ रहाजेयमुदायणं निवं नलगिरि चडिय पत्तो। रणभुवि पजोओ पुण बलवंते का नणु पइन्ना ॥५४॥नलगिरि | गयमारूढं तं दट्ठमुदायणो भणइ रुट्ठो । पाविट्ठ भट्ठसंधो सि तहवि पहो सिरे घिट्ट ! ॥५५॥ इय भणिय मंडलीए रएका स रहं निवो भमाडंतो । निसियसरेहिं विंधइ वीसुं करिणो पयतलाई ॥५६॥ तो लहु हत्थीपडिओ धरिऊण उदायणेणंः पजोओ। | मम दासीवइदासोत्तियंकिओ कोववसगेणं॥५७।। गंतं तउ विदिसाए अस्थिय देवाहिदेवपडिमं जा | उप्पाड नरनाहो ता भनाइ MAHalliHPANTHIN aithilitaMUS TAMAMITINE |॥१२०॥ For Private And Personal Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदें ० चैत्य०श्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥१२१॥ ain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सुरो अहो भूव ! ॥ ५८ ॥ मा नेसु इओ पडिमं बीबअए सुबहवो होही । तो राया सविसाओ नमिय तयं सपुरममि चलिओ ||१९|| बुद्धी सिवनइतडे खलिओ सिबिरं निहित तत्थ ठिया । काऊण धूलिवप्पे दसवि निवा तस्स रक्खट्टा || ६० ॥ अह पज्जुसणादिवसे कथउववासे उदायणे सूओ । पुच्छर पओयनिवं का तुह कारीउ रसवइति ॥ ६१ ॥ सो चिंतह नूणमिणं मारिउकामो विसाइणा तत्तो । जंपेइ सूय ! किमज कीरह मे वीसु आहारो १ ।। ६२ ।। सूओ अंपइ सामी अंतेउरपरियरो यऽभत्तट्ठी । जं अज पज्जुसवणा तो तुह साहेमि आहारं ।। ६३ ।। सो आह सुट्ट तुमए पन्चमिणं मज्झ सारियं सूय ! अज्जुत्रवासो मज्झवि जं पियरो मह परमसद्धा || ६४ || तं सूओ साहइ गंतु रायाणो सोऽवि भणइ जाणंमि । से सड़तं जाणइ धुत्तो पुण वइसगं काउं ।। ६५ ।। काराइ ठिए एयंमि जारिसे तारिसेऽवि नहु सुद्धा ! मह होइ पज्जुसवणा इय तं मुंचेइ नरनाहो ||६६ || दाउँ अवंतिदेसं स महप्पा कुणइ तेण स्वामध्ायं । भालंकगोत्रणट्टा वियरह से कणगपहं च ||६७॥ तप्यभिइ पट्टबद्धा निवा पुरा आसि मउडबद्धति | वित्ते वरिसारते उदायणो नियपुरं पत्तो || ६८ || जे लाभस्थी वणिया समागया तत्थ ववहरणहेउं । तेहिं चिय वसमाणं तं खायं दसपुरं नयरं ।। ६९ ।। इओ य-मह निवाणनिसाए गोयम ! पालयनिवो अवंतीए । होही पाडलियपहू सो असुअउदाइनिवमरणे ।। ७० ॥ पालइ र सड्डी पणपण्णसयं नवण्ह नंदाणं । नव मोरीणऽसयं तीस वरिस समित्तस्स ॥ ७१ ॥ बलमित्तभाणुमित्ताण सट्ठी नरवाहणस्स चालीसा । तेर निव गद्दभिल्लो कालयआणीयसगचउरो || ७२ || सुन्नमुणिवेयजुत्ता जिणकाला विकमो वरिस सट्ठी । धम्माइच्चो चत्ता भाइल सगवीस नाहडे अट्ठ ||७३ || तह धुंधुमार तीसा लहुविकमाइच बारसय वरिसे । दस बुद्धमित्त अंधो हेइयवंसी असी भोओ ॥ ७४ ॥ इत्यादि । अह जिअपडिमं भाइलनियो निमाए कयाइ पूअंतो । बहिआगए सुरे ददु निग्गओ Acharya Shri Kailashgarsuri Gyanmandir For Private And Personal गन्धारश्रावकः ॥१२१॥ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri a in Aradhana Kendra www.kobafirth.org Acharya Shri Kal s uri Gyanmandir श्रीदे० प्रमार्जनम् चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधी ॥१२२॥ in manmumtammar कुडओ रहसा ।।७५।। वरसु वरंति सुरुत्तो भणइ सया हुअमिह पसिद्धोऽहं । होही एवंति परं मिच्छत्तं गच्छिही तित्थं ॥७६।। जं | अद्धकयाइ तुमं पूयाइ विणिग्गउत्ति वुत्तु सुरा । झत्ति गया अह झूरइ निवो बहुं दु? विहियं मे ॥ ७७ ।। भाइलसामित्ति तओ पसिद्धमञ्जवि तमत्थिऽवंतीए । जियपडिमुप्पत्तिपइनगओ सेसं तु नायव्वं ॥७८॥ इह निसि धुईहिं वंदण देवयकर कणयगुलियरजाई । भणियं भवियहियट्ठा तिदिसिअपेहाइ पुण पगयं ॥७९॥ गंधारीयश्रावकस्येति वृत्तं, वित्तं श्रुत्वैकाग्रताया निमित्तम् । नित्यं भव्या ! भव्यभावेन देवान् , वंदध्वं भो दिक्रयेक्षोज्झनेन ।। इति त्रिदिग्निरीक्षणवर्जने गंधारश्रावकसंबंधः॥ भावितं तिदिसिनिरकरणविरइत्ति पर्छ त्रिकं, सप्तमस्य तु त्रिकस्य 'पयभूमिपमजणं च तिक्खुत्तो' इत्यस्येयं भावना-सर्वमपि धर्मानुष्ठानं दयाप्रधानमेव क्रियमाणं सफलतां धत्ते, आह च-'पठितं श्रुतं च शास्त्रं गुरुपरिचरणं च गुरुतपश्चरणम् । घनगर्जितमिव विजलं विफलं सकलं दयाविकल।।१।मिति, तथा-जयणा उ धम्मजणणी, जयणा धम्मस्स पालणी चेव । तह बुद्धिकरी जयणा, एगंतसुहावहा जयण।।१।।ति, तथा महानिशीथे-'से भयवं ! केगडेणं एवं बुच्चद जहा णं पंचमंगलमहासुअक्खंध अहिजिवाणं पुणो इरियावहियं अहीए ?, गोयमा ! जे णं एस आया से णं जया गमणागमणाइपरिणामपरिणाए अणेगजीवपाणभूयसत्ताणं अणुवउत्तपसत्ते संघट्टणं अबद्दावणं किलामणं काऊणं अणालोइअअपडिकते थेव असेसकम्मक्खयहाए किंचिवि चिइवंदणमझायशाणाइएसु अभिरमेजा तया से एगग्गचित्ता समाही हरेजा न वा, जओ णं गमणाइयणेगअन्नवावारपरिणामासत्तचित्तयाए केइ पाणी तमेव भावंतरमच्छडिय अदृदुहट्टज्झवसिए कंचि कालं खणं विरत्तेजा ताहे तं तस्स फलं विसंवइजा, जया पुण किंचिति अन्नाणमोहपमायदोसेणं सहसा एगिदियाईणं संघणं परितावणं वा कर्य हवेजा तया य पच्छा हा हा हा दुल कयमम्हेहि Hellittime ॥१२२॥ For Private And Personal Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri lain Aradhana Kendra www.kobafirth.org श्रीदे. चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधी ॥१२३॥ HA S Acharya Shri Kain Huli Gyanmandir पणरागदोसमोहमिच्छत्तअनाणंधेहिं अदिट्ठपरलोगपञ्चवाएहिं कूरकम्मनिग्धिणेहिन्ति परमसंवेगमापने सुपरिफुडं आलोएत्ता]]] निंदित्ताणं गरहेताणं पायच्छिचमणुचरित्ताणं निस्सल्ले अणाउलचित्ते असुहकम्मरखयट्ठा किंचि आयहियं चिइवंदणाइ अणुट्टिा तया तयढे चेव उवउत्ते से हविजा, जया णं से तयढे उवउत्ते भवेजा तया तस्स णं परमेगग्गचित्ता समाही भवेजा तया चेव सबजगज्जीवपाणभूयसत्ताणं अदिदफलसंपत्ती हवेजा, ता गोयमा णं अपडिकंताए ईरियावहियाए न कप्पड़ चेव किंचि चिइबंदणसज्झायझाणाइयं काउं फलासामयममिकंखुगाणं, एएणं अत्थेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-जहा णं गोयमा ! ससुत्तोभयं पंचमंगलं | थिरपरिचिअंकाऊणं तओ ईरियावहियं अज्झीए"त्ति,दशवकालिकद्वितीयचूलिकावृतौ तु "ईयोपथिस्याः प्रतिक्रमण विना न कल्पते किमपि कर्तु"मिति, इत्यागमप्रामाण्यादीर्यापथिकीपूर्वमेव सर्वमपि धर्मानुष्ठानमनुष्ठेयं, इत्थमेव चित्तोपयोगेनानुष्ठानस्य साफल्यभणनात् , अन्यथा प्रायश्चित्तैकाग्रताया अप्यभावात् सूत्रप्रामाण्याच, पुष्कलिना शंखं प्रति श्रावकवंदनस्यापि तथैव विधानाच, यदुक्तं भगवत्यां द्वादशशतकप्रथमोद्देशके-“गमणागमणाए पडिकमइ, संखं समणोवासयं वंदइ नमसइ, वंदिचा नमः सित्ता एवं वयासी" ईर्यापथिकी च प्रतिक्रमता त्रीन् वारान् पदन्यासभूमिः प्रमार्जनीया, तथा च महानिशीथसूत्रं 'इरियं पडिकमिउकामे जइ तिनि वाराउ चलणमाणं हिहिमं भूमिभागं न पमज्जिजा तो पच्छित्त'ति, पुष्कलीश्रावकसंबंधश्वायम्___अत्थि पुरी सावत्थी ससावया जा असावयावि सया। तत्थ य साश्यपवरो संखो संखोजलगुणोहो ॥१॥ तस्स पिया सेवियजिणकमुप्पला उप्पलामिहत्थि तहिं । सड्ढो य पुक्खली वरपुक्खलदल इव निरुवलेवो ॥२॥ जाणियजीवाइगणा | अढाइगुणा य संति बहुसयणा । अन्नेवि तत्थ सहा बहवे बहवेअरअवियड्ढा ॥३॥ वरनाणधनकुट्टयचेइये कोहए समोसरियं ।। ॥१२३॥ amay INA MUIDARPAINILA For Private And Personal Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Marain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥ १२४ ॥ www.kobafirth.org Acharya Shri Kaistasuri Gyanmandir | वीरजिणं नमि ते नियंति निसुगंति पहुवयणं ||४|| पुच्छर गोयमसामी के विहिणा पहू पढिय सुत्तं । धम्मागुट्टाणमिणं कीरह तित्थमि ? कह पहू ||५|| विग्धक्खय मंगलत्थं हिअट्ठआरद्धपारगमणत्थं । पढममिह पंचमंगलसुत्तमहिज्जिज्ज तो इरियं ॥ ६ ॥ गोयम ! जेण न कप्पर काउं इरियाइ अपडिकंताए । चिइवंदणा किंचिवि तप्फलसायाभिलासीणं ॥ ७ ॥ जं गमणागमणाई णालोइय अपडिकमिय पाएण। न हवइ मणएगत्तं तयभावे किह सुधम्मफलं १ ||८|| जइया गमागमाई आलोइयनिंदिऊण गरहित्ता । हा दुट्ठुम्हेहिं कयं मिच्छादुक्कडमिय भणित्ता ||९|| तह उस्सग्गेणं तयणुरुवपच्छित्तमणुचरित्ताणं । जो आवहियं चिह वंदनाइट्टिज उवउत्तो ॥ १०॥ तइया उ परमएगग्गमणसमाही हविज तस्स तओ । इट्ठफलसंपया तो पुर्वि इरियं पडिकमिआ ॥ ११ ॥ अविय-देवच्चणं पवित्तं करेइ जद काउ बज्झतणुसुद्धिं । भावच्चपि हुआ तह इरियाए विमलचिते ||१२|| तो चिइवंदणसामाइयाइ सुतं अहिज सेसंपि । देवच्चि अधम्मश्च्चिअरउत्ति धम्मी पसिद्धमिणं ।। १३ ।। एवंति भणिय गोयमपहू पहुं नमइ तेऽवि तह सड्ढे । वंदिय जिणं नियत्ते भणेइ संखो निरखकखो || १४ || भो भो उवक्खडावह विउलं असणाइ तं च जिमिऊण । विहरिस्सा मो गिव्हित्तु पक्खियं पोसहं संमं ।। १५ ।। तेसुवि तहेव भणिउं सहाणगएमु चिंतए संखो। नो खलु कप्पइ तं मज्झ विउलमसणाइयं श्रुतं ॥ १६ ॥ किंतु विमुकालंकारसत्थकुसुमस्स बंभयारिस्स । एगागिस्स उ पोसहसा लाए पोसहं चित्तुं ॥ १७ ॥ पुच्छित्तु उप्पल तो संखो गिण्हेइ पोसहं इत्तो । ते मिलिअ सावया लहु असणाइ उचक्खडाविंति || १८ || जंपति य भो भद्दा ! संखेणुतं जहा जिमेऊण | बिहरिस्तामो गिण्डित्तु पक्खियं पोसहं अम्हे ।। १९ ।। ता किं अअवि संखो न एइ अह आइ पुक्खली सड्ढो । जा णेमि तं निमंतिय ता तुम्भे ठाह सुविसत्था ||२०|| इय भणिय संखगेहे सो पत्तो तं च उप्पला इंतं । दद अन्डर For Private And Personal पुष्कलीश्रावकः ॥ १२४ ॥ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrive www.kobatirth.org ला श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म०संघाचारविधौ ॥१२५॥ maANI RAMPARIHI SIPAHARIRAMulim in Aradhana Kendra Acharya Shri Kali u ri Gyanmandir जाइ संमुह तह सगहपए ॥२१॥ बंदिय निमंतिउं आसणेण पुच्छेइ आगमणकज्जास मणइ भद्दे ! संखुव निरंजगो कत्थ सो संखो प कला।।२२।। सा जंपइ पोसहिओ पोसहसालाइ अस्थि तो गंतुं। तिपमज्जिय पयभूमि गमणागमणाइ पडिकमइ ।।२३।। जोडित्तु करे कथा चंदित्ति भणिय नामितु मउलिमिय संखं । बंदिय नमंसिउं भणइ पुक्रखली पुक्खलपमोओ।॥२४॥ यदुक्तं भगवत्यां द्वादशशतकप्रथमोद्देशके-'गमणागमणाए पडिक्कमइ,संखं समणोवासयं वंदइ नमसइ,वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी-संख! असणाइ सन्चं तं सिहं एह लहु तओ उन्मे । स भणइ पोसहिओऽहं भद्द ! तओ तत्थ सिच्छा मे ।। २५ ।। इय सुणिय पुक्खली तं कहेइ सट्टाण संखवुत्ततं । मणयं कसाइया ते मुंजति तओ तमसणाई ।। २६ ॥ संखो निसाविरामे चिंतइ नमिउं पहुं पभाए मे । धम्म सोउ निअत्तस्स पोसह पारिउ सेयं ॥२७॥ यदागमः-'तए णं तस्स संखस्स समणोवासगस्स पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अन्मथिए चिंतिए पत्थिए मणोमाणसिए संकप्पे समुप्पज्जित्था-सेयं खलु मे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि अहापंडुरे पभाए रत्तासोगकिंसुयमुहगुंजद्धरागसरिसे कमलायरसंडबोहए उट्टियम्मिमूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलंते समणं भयवं महावीरं वंदित्ता नमंसिता तओ पडिनियत्तस्स पक्खियं पोसहं पारित्तएत्ति कटु एवं संपेहेइ । अह गंतु पए सगिहं परिहियमंगलवत्थपयचारी । पविसिय अहिगमवज्ज ओसरणे नमइ वीरजिणं ।। २८ ॥ उक्तं च-"पायविहारचारेणं सावस्थि नयरिं मझमझेणं जाव पज्जुवासइ,अभिगमो नत्थि" तेऽविहु सड़ा हाणाइ काउ मिलि. ऊण नमिझ वीरजिणं । संखते विति जह तुम कल्लंमि तयं सयं वुत्ता ।।२९।। पच्छा पोसहमजिमिय सयमेव गहेसि ता तुमं नूणं।) अम्हे हीलसि निंदसि खिससि गरिहसिऽवमन्नेसि ॥३०॥ तत्थ-जच्चाइएहि हीला मणसा निंदा परुक्खओ खिंसा। गरिहा तस्स ॥१२५।। ROUNDRANIINE For Private And Personal Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsparsori Gyanmandir M पुष्कलाकथा श्रीदे चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधी ॥१२६॥ milamERAPI समक्खं अवमन्नणयं अबहुमाणो ॥३१॥ अह भणइ पह मेवं संखं हीलह तुमे जओ एसो। पियधम्मो ददधम्मो जग्गेइ सुदक्खुजागरियं ॥३२।। "भंतेत्ति भगवं गोतमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति,वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी-कतिविहा णं भंते! आगरिया पण्णत्ता?, गोयमा! तिविहा जागरिया पण्णत्ता, तंजहा-बुद्धजागरिया अबुद्धजागरिया सुदक्खुजागरिया, से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-तिविहा जागरिया पण्णत्ता, तंजहा-बुद्धजागरिया३ १, गोयमा!जे इमे अरहंता भगवंता उप्पण्णनाणदंसणधरा जहा खंदए जाव सबन्न सबदरिसी एते णं बुद्धा बुद्धजागरियं जागरिति, जे इमे अणगारा भगवंतो ईरियासमिया ५ मणसमिया३ मणगुत्ता३ गुत्ता गुतिंदिया जाव गुत्तभयारी एए णं अबुद्धा अबुद्धजागरियं जागरिंति, जे इमे समणोवासया अभिगयजीवाजीवा जाव विहरंति, एए णं सुदक्खु जागरियं जागरिंति, से तेणडेणं गो० एवं वुचइ तिविधा जागरिया बुद्धजा. अबुद्धजा० सुदक्खु जागरिया" तो संखो संखो इव महुरसरो भणइ कोहपमुहवसा । किं पहु ! बंधइ जीवो ! सगट्टकंमलवमाह पहू ॥३शा इहागमः-'तए णं से संखे समणोवासए समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीकोहवसहेणं भंते ! जीवे किं बंधति किं पकरोति किं चिणाइ किं उवचिणाइ १, संखा ! कोहवसद्दे णं जीवे आउयवजाउ सस कम्मपयडीउ सिढिलबंधणबद्धाउ धणियबंधणबद्धाउ पकरेइ हस्सकालहिइआओ दीहकालठिइयाश्रो पकरेइ, मंदाणुभावाओ तिवाशुभावाश्री पकरेइ,अप्पपएसग्गाओ बहुप्पएसग्गाओ पकरेइ,उअंचणं कम्मं सिय बंधइ सिय नो बंधइ,असायावेयणिज्ज चणं कम्मं भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ, अणाइयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकतारं अणुपरियट्टइ, एवं मानमायालोभवसहावि" । इय मोउ ते भीया गयमिनिसा नमंति वदंति । खामति अविणयपरा संखं संखं व सुपवितं ।। ३४ ।। अह नमिय UMITRATHIMATHA LINRAINITAL SEMINAR HAPali DAINIK HPAHIMANITATIHA RANCHIMMAMRITIEWHIN TA For Private And Personal Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri n www.kobafirtm.org Gyanmandir दित्रिक चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ | ।।:२७॥ Aradhana Kendra Acharya Shri Kalah जिणं संखो संखोहविवज्जिओ पडिनियत्तो । पारेइ पोसह जंति तेवि सडा तह सठाणं ॥३५॥ पहु ! पाइहिद संखोसि गोयसुत्ने | न हुत्ति भणइ जिणो । तो कहिं गमिहित्ति पुणो गोयमपुट्ठो भणइ भयवं ॥ ३६ ॥ होउं चउपलियठिई सुरो सुहंमारुणाभसुरविमाणे । संखो असंखकम्मं खविउ सिज्झिस्सइ विदेहे ॥ ३७॥ पुक्खलिपमुहाविय सेससावया विहिय सुद्धणुढाणं । अणुहा सुगइसुक्खं कमेण गमिहिंति निवाणं ॥ ३८ ॥ श्रुत्वैवमल्पमपि पुष्कलिनाऽनुचीर्णमीर्याप्रतिक्रमणतः किल धर्मकृत्यम् । सामायिकादि विदधीत ततः प्रभृतं, तत्पूर्वमत्र च पदावनिमार्जनं त्रिः ॥ ३९ ॥ इति ईर्यापथिकीपूर्व त्रिः पदभूमिप्रमार्जने पुष्कलीश्रावकसंबंधः । सप्रपंच प्रोक्तः 'पयभूमिपमजणं च तिक्खुत्तोति सप्तमत्रिकभावार्थः ।। अथ वर्णादित्रयमित्यष्टमं त्रिकं गाथापूर्वार्दैन भाष्यकृद विवृण्वन्नाह वन्नतियं वनथालंबणमालवणं तु पडिमाई। वर्णत्रिकमुच्यते, किमित्याह-वर्णालिंबनानि, तत्र वर्णाः-स्तुतिदंडादिगतान्यक्षराणि, ते च स्फुटं संपदच्छेदसुविसुद्धान्यू. नातिरिक्ता उच्चार्याः, यदवाचि भाष्ये-"थुइदंडाई वन्ना उच्चरियथा फुडा सुपरिसुद्धा । सरवंजणाइभिन्ना सपयच्छेया उचियघोसा ॥१॥ (२३३) अर्थश्च तेषामेवामिधेयः, स यथापरिज्ञानं चिंत्यः, न्यगादि च-"चितेयही संमं तेसि अत्थो जहापरिमाणं । सुन्नहियत्तमिहरहा उत्तमफलसाहगं न भवे ॥२॥ (२३३) आलंबनं तु खयमेव भाष्यकृद् व्याख्यानयति-आलंबनं तु पडिमादित्ति, आलंबनं पुनर्देवान् वंदमानस्य चंद्रनरेंद्रस्येवाश्रयणीयं, किं तत् ?-प्रतिमादि, आदिशन्दात् भावार्हदादिपरिग्रहः, यदभाणि"भावारिहंतपमुहं सरिज्ज आलंबणंपि दंडेस । अहया जिणविंचाई जस्स पुरो बंदणारटूं।श(२३४) चंद्रनरेन्द्रकथा चैवम्-- TIHAR MISHNHINLANISHARIRImamaAITHI MDMINISTRIPURANUPAMAIRATRAPlane ॥१२७॥ For Private And Personal Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ShriM a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka r suri Gyanmandir श्रीचन्द्र al चैत्यश्री धर्म संघा चारविधी ॥१२८॥ AIRSunitatailInIPATHRITIS MummariamIIDIOHINITIAHINDI INCHITRA Main Simile सुविशालभद्रशाले कनकपुरे कनकशैलसंकाशे । कयकुवलयपरिओसो चंदो चदुख नरनाहो ॥३॥ तत्रान्वदा दिविपदामाग- मनात् केवलं समुत्पन्नम् । कस्सवि मुणिस्स नाउं तं नमिउं नरबरो पत्तो ॥२।। अप्रतिरूपं रूपं सम्यक् संवीक्ष्य-यतिपतेर्नृपतिः। वेरग्गकारणं बयगहणे पुच्छेइ विम्हइओ॥३॥ मुनिराख्यत् कुसुमपुरे जिनसमयविबुद्धबंधुरमनस्कः। नायालंबणजणपालणुज्जनोआसि सुलसनिको ४ा सोऽन्येधुरतनुदाहज्वरभरदवदग्धवपुरिदं दध्यौ अहह किह गुत्तिखित्ता सत्ता दुसहं सहति दुहं ।।२।। | तथाहि-देहं कारागारं हडिरायुः कीलिका विषयतृष्णा । तिमिरं आवरणदुर्ग वेयणियं जायणाऽगारे ।।६।। हास्यादिपरिकरयुता उनिद्रा यामिका इह कपायाः । रागहोसकबाडा भोगाईवारयं विग्धं ॥ ७ ॥ हीनजनोचितरूपादिकरणनिपुणानि नामगोत्राणि । मंकुणजूआ वाही मिच्छत्तं दुट्ठजंतुसमं ॥ ८ ॥ अज्ञानवप्रवारितमार्गा गृहवासबंधनैर्बद्धा । दाऊण पियानियलं सुआइगलसंकलं तह य ॥९॥ कर्मपरिणामराज्ञा क्षिप्ता जीवाः सरोषमिति गुप्तौ । तत्तज्जोगावग्गणविहारिणो लोगभंडारे ॥१०॥ यदि मम रुजे| यमुपशममेष्यति सितकरहतेव तिमिरततिः । सवाई बंधणाई छित्तुं अममत्तसत्थेण ॥११॥ भंच्या कपाटसंपुटमहद्दीवास्फुरत्कुठारिकया । पाहरियाणं सुहभावणुगओऽवसोवर्णि दाउ ॥१२॥ सुविवेकदीपदर्शितमार्गः प्रविदलितमोहनिद्रोऽहम् । गुणठाणगनिस्सेणि चडिउं लषित्तु पायारं ॥१३॥ पूर्वोदितकाराया विनिर्गमिष्यामि चरणबलकलितः । मोहनरिंदअगंमे पविसिस्सं निव्वुईदुग्गे ॥१४॥ इति चिंतयतः सुलसस्य भूभुजः शुद्धभावनासुधया। सा निठुरजरभरदाहवेयणा झत्ति उवसंता ॥१५॥ तदनुस पुत्र राज्यं न्यस्य श्रीधर्मघोषगुरुपायें। गिहिय दिक्खं सिक्खियदुहसिक्खो पत्तमरिपओ॥१६।। विहरन्नसौ ततोऽत्रागतः सितध्याननिहतकाऽयम् । पत्तो केवलनाणं सो उ अहं चंदनरनाह ! ॥१७॥ श्रुत्वेति चंद्रराजः प्रमोदमेदुरमना मुनि प्रोचे । एरिसयं Sumnim १२८॥ For Private And Personal Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ISI Shrie lain Aradhana Kendra www.kobafirth.org a uri Gyanmandir w श्रीदें श्रीचन्द्र कथा धर्मः संघा- चारविधी ॥१२९॥ HARIRITHILIPMAINTENNILIPINITION Acharya Shri K केवलं कि कयावि अहयंपि पाविस्स? ॥१८॥ गुरुरापतेह भरते मिथिलानगरीशकुंभभूपतिभूः। देवी पभावई नणु वगमालामत्तियमणिव ।। १९ ।। स्त्रीभावकर्मवशतो घटांकितो नीलरत्ननीलरुचिः। पणवीसधषुच्चतणू मल्लीनामा जिणो होही ।। २०॥ अकृतोद्वाहः समये सहितो राज्ञां त्रिभिः शतैः स विभुः। गिहिस्सइ पन्चज्जं लहु लहिही केवलं नाणं ॥२१॥ मिथिलायां तस्य | विभोाख्यामाकर्ण्य चंद्र ! तव जीवः । पिउऽणुनाओ गहिही दिक्खं तस्सेव पासंनि।।२२. मल्लिजिनालंबनतो ध्यानमनालंबन गतविलंबम् । सायंतस्स तुह इम उवधज्जिहिइ वरनाणं ।।२३।। एवं निशम्य मुदितो राजा प्रणिपत्य मुनिपदद्वंदं । पत्तो नियंमि ठाणे अन्नत्थ गुरूवि विहरित्था ॥२४।। अथ नृपतिनिजसदने विधाय जैनेन्द्रमंदिरं तत्र । आलंयणाय मणसो संठावद मल्लिजिणपडिमं ॥२५॥ तामर्चामचित्वाऽष्टधार्चया प्रत्यहं त्रिसन्ध्यमपि । मुक्रयत्थं अप्पाणं मन्नतो थुणइ इय हिट्ठो॥२६।। "श्रीकुंभभूपालविशालवंशनभोगणोद्भासनशुभ्रभानुम् । प्रभावतीकुक्षिसरोमरालं, वनाम्यहं मल्लिजिनेन्द्रचंद्रम् ॥२७॥ जन्माभिषेके किल यस्य शक्रः, प्रलोठितैः क्षीरसमुद्रनीरैः । विराजितो राजितवान् सुमेरुमल्लि९दे सोऽस्तु ममावलंबम् ॥२८॥ अचिंत्यमाहात्म्यनिरस्तसप्रत्यथिंजालंबनवैभवं तत् । स्वदर्शनं मल्लिजिन ! प्रयच्छ, प्रसीद मेऽहंमतिभेदि देव ! ।। २९ । अनन्यसामान्यवरेण्यपुण्यप्रागल्भ्यलभ्यं भुवनाभिरामम् । त्वदर्शन नाथ ! कदा समस्तं, त्रिया विशालं वनजं श्रयिष्ये ॥३०॥ नीलेन्द्रकालं वनवाहमुच्चैस्तस्वावबोधक्रमसेवनेऽहम् । श्रीमल्लिनाथं जगतीशरण्ये, भावारिभीतः शरणं श्रयामि ॥ ३१ ॥ सदा चिदानंदमयास्तमोहमल्लेन मल्ले! भविताऽसि देव ! । कदा निरालंब निरंजन त्वं, कुंभांकितः केवलसंविदे मे ||३२।। अध्यासिता हे जिन ! मुक्तिकांता,हृदंतरालंबनजोपमानम् । श्रीमल्लिनाथांहियुगं कदा तेऽवतंसयित्वा प्रणतोत्तमांगः।।३३।। मल्ले ! नमल्लेखभवांधकूपे, पतंतमालंबन- malitimiliarithe w PARISHAILESHAILENEPARTMENillmmanyamanthan ॥१२९६ Himanitatistram. For Private And Personal Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mire n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalah a ri Gyanmandir H श्रीदे। श्रीचन्द्र कथा चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥१३॥ MAHILAIMERITADAlimdi | वर्जितं माम् । स्वभारतीवर्यवर ! त्वया स्वमालंबयालंबनविष्पस्य ॥३४॥ मल्लीशमल्लीसमधर्मकीतः, महो+कश्मीरजलिप्तविश्वः। अलेरिवालं निजपादपद्ममालंबनं मे मनसः प्रयच्छ ॥३५॥" एवं स्तवने मौने जने वने निशि दिने बहिः सदने। साथवि मल्लिजिणालंबणपवणो सचिढेइ ॥३६॥ अन्येयुर्निजतनये नयेन संस्थाप्य निजकराज्यभरम् । गहिय वयं चंदनिवो पत्तो सोहम्मकप्पंमि ॥३७॥ व्युत्वा ततोऽपि मिथिलापुर्यां हरिनंदनो महेभ्यस्य । आणंदुत्ति जणाणं जणिआणंदो सुओ जाओ॥ ३८॥ पित्राऽसाविभ्यानामष्टौ कन्या विवाहयांचक्रे । धम्मस्स अघिग्घेणं मुंजइ पंचत्रिहविषयसुद।।३९।। अपरेधुर्मल्लिजिनस्य देशनामृतरसं श्रुतिपुटेन । घुटइ सरसरओसरियमोहविसहरगरलपसरो ।। ४०।। स्फुरदुरुसंवेगभरः कथमपि पितरावसावनुज्ञाप्य । सिरिमल्लिजिण समीवे महाविभूईइ पव्वइओ ॥४१॥ आज्ञाविपाकसंस्थित्यपायविचयप्रकारतो धर्म्यम् । सालंबणं सुझाणं चउहा झायइ इमो तयणु ॥ ४२ ।। द्रव्यध्वनियोगमिदा मसंक्रमं ध्यायति प्रथमशुक्लम् । भंगियसुएत्तिजोगो सपहुत्तवियकसवियारं ।। ४३ ॥ द्रव्यध्वनियोगमिदा त्वसंक्रमं ध्यायति द्वितीयसितम् । सो एगत्तवियकाविआरमन्नयरजोगजुओ॥४४॥ ध्यानांतरानुगः सितलेश्यः क्षेपितत्रि. पष्टिकम्मांशः। विहरइ आणंदमुणी महीइ उप्पन्नवरनाणो ।। ४५ ॥ अंतर्मुहूर्तभाविनि शिवेऽथ जातेष्वघातिकर्मसु वा । चउसु विसमठिईसु निसग्गओ वा समुग्घाया ॥ ४६ ।। अवरुध्य मनोयोगं वागयोगं तदनु चातनुयोगम् । सुहुमकिरियानियहि साइ तओ तइयसियझाणं ॥४७॥ तदनु कृततनुनिरोधः शैलेशी स्यात्ततो निरालंब झाइ परमसियझाणं उवरयकिरियं अपडिवाई ॥४८॥ अइउऋलपंचवर्णा मध्यमकालेन यावतोच्यते । अच्छइ सेलेसिगओतत्तियमित्तं तओ कालं ।।४९|| प्रतिसमयमसंख्यगुणश्रेण्या कर्म क्षिपन् क्षिपेच्छेषाः। विसयरि १ तेरस २ पयडी कमेण दुचरिमे चरिमसमए ॥५०॥ ऋजुकश्रेण्याऽस्पृष्ट्वा प्रदेशसमयांतरं चतुर PrimeHIT ARMAla m aali -Hitm. inmantihistamPHHHHinment Immediatime HITTERWHAINTINitalitheatilimuTIMILESHIMPURI MAHINDI T m ediaRITISHRIRE amistakime ॥१३०॥ For Private And Personal Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavi hana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailangaisu Gyanmandir mins मुद्रात्रिक श्रोदे IP चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधौ ॥१३॥ o uture HIMIRE नंतः । सागारुवओगो इगसमएणाणंदमुणि सिद्धो ॥५१॥ श्रुत्वेति चंद्रक्षितिपस्य वृत्त,मन्या! निरालंबपदेऽधिरोदुम् । गृहीत गाद | सुदृढं प्ररूढमालंबनं श्रीजिनबिंबमुख्यम् ।।५।। इति चंद्रनरेन्द्रकथा ॥११॥ इति प्रतिपादितं वर्णादित्रिकं इत्यष्टमं त्रिकं, अथ | नवमं मुद्रात्रिकं नामतो गाथोत्तरार्धेनाह जोग १ जिण २ मुत्तमुत्ती ३ मुद्दाभेएण मुद्दतियं ॥ ११ ॥ मुद्राशब्दः पृथग् योज्यते, ततश्च योगमुद्राजिनमुद्रामुक्ताशुक्तिमुद्राभेदात् मुद्रात्रिकं भवतीत्यर्थः, आसां स्वरूपमाहअन्नुन्नंतरि अंगुली कोसागारेहिं दोहिं हत्थेहिं । पिहोवरिकुप्परिसंठिएहिं तह जोगमुद्दत्ति । १२॥ चत्तारि अंगुलाई पुरओ ऊणाई जत्थ पच्छिमओ। पायाणं उस्सगो एसा पुण होइ जिणमुहा ।।१३।। मुत्तासुत्ती मुद्दा जत्थ समा दोऽवि गन्भिया हत्था। ते पुण निलाडदेसे लग्गा अन्ने अलग्गत्ति ॥१४॥ उभयकरजोडनेन परस्परमध्यप्रविष्टांगुलिभिः कृत्वा पद्मकुड्मलाकाराभ्यां तथा उदस्योपरि कुहणिकया व्यवस्थिताभ्यां योगो-हस्तयोर्योजनविशेषः तत्प्रधाना मुद्रा, योगमुद्रा इत्येवंस्त्ररूपा भवतीति गम्यम् ॥ १२ ॥ चत्वायंगुलानि स्वकीयान्येव पुरतः-अग्रतः तथा ऊनानि किंचित् चत्वार्येवांगुलानि यत्र मुद्रायां पश्चिमतः-पश्चाद्भागे एवं पादयोरुत्सर्गः-परस्परसं| सर्गत्यागोऽतरमित्यर्थः एषा पुनर्भवति जिनानां कृतकायोत्सर्गाणां सत्का जिना वा-विमजेत्री मुद्रा जिनमुद्रेति ।। १३ ।। मुक्ताशुक्तिरिव मुद्रा-हस्तविन्यासविशेषो मुक्ताशुक्तिमुद्रा, सा चैवम्-समौ नान्योऽन्यांतरितांगुलितया विषमी, द्वावपि, न त्वेको, गर्मिताविव गर्मिती-उन्नतमध्यौ, नतु नीरन्ध्रौ, चिप्पिटावित्यर्थः, हस्तौ पुनरुभयतोऽपि सोल्लासौ करौ भालमध्यभागे HAMARHI SHAMICHHINAR % 3D ॥१३१॥ For Private And Personal Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma r athana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Ka y anmandit | मुद्रात्रिक श्रीदे चेत्य०श्रीधर्म संघाचारविधौ ॥१३॥ | लग्नौ-संबद्धौ कार्यों इत्येके सूरयः प्राहुः, अन्ये पुनस्तत्रालनावित्येवं वदंति, तत्र मध्यमभागमध्यवर्ध्याकाशगतावित्यर्थः ॥१४॥ आसां विषयविभागमाह पंचगो पाणिवाओ थयपादो होइ जोगमुहाए। बंदण जिणमुहाए पणिहाणं मुत्तसुत्तीए ॥१५॥ पंचांगानि जान्वादीनि विवक्षितव्यापारवंति यत्र स पंचांगः प्रणिपातः-प्रणामः प्रणिपातदंडकः, पाठस्यादाववसाने च कर्त्तव्यतया लब्धतबामा, स चोत्कर्षतः पंचांगः कार्यों, यदुक्तमाचारांगचूणौं-'कह नमंति, सिरपंचमेणं कारणं'ति,यत्पुनः 'वामं जाणुं अंचेई' इत्यायुक्तं तत् प्रभुत्वादिकारणाश्रितत्वात् न यथोक्तविधिनाधकतया प्रभवितुमर्हति चरितानुवादत्वाच्च, यद्यपीह | पंचांगः प्रणिपात इत्युक्तं तथापि पंचांगमुद्रया प्रणिपातः कार्यः इति द्रष्टव्यं, मुद्राणामेवाधिकृतत्वात् , उक्तं च पंचांग्यामपि मुद्रात्वं, अंगविन्यासविशेषरूपत्वात् , योगमुद्रादिवदिति, आह-नन्वेवं मुद्दातियंति उक्तसंख्याविघातप्रसंगो, नैतदेवं, अभिप्रायापरिज्ञानात् , उक्तं हि प्राक् योगमुद्रादयो झेवं परिसंख्याताः,सूत्रोचारभावितपा,मलमुद्रात्रयरूपत्वात् ,प्रकुटां१ जली२ पंचांगी३मुद्रादयस्तु प्रणामकरणकालभावित्वात् ,यद्यपि 'करयलपरिगहियं सिरसावत्तं दसनहं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी'त्युक्तं दृश्यते तदपि सूत्रोच्चारस्यादौ विनयविशेषदर्शनपरं, न पुनस्तथास्थितस्यैव सूत्रोच्चारख्यापनपरं, अन्यदाऽपि नृपादिविज्ञपनादावप्यादौ तथा प्रतिपत्तेभणनात् , तथा स्थितस्य विज्ञापनादेरदर्शनात् , पूर्वकालभाविविधिवाचिनः कृत्वेति क्त्वाप्रत्ययस्योत्तरकालभाविविध्यंतरसूचकत्वाच्च, अक्षिणी निमील्य हसतीत्यादिवत् तुल्यकतकत्वायोगात निमील्यादौ कृगस्त्वग्रहणात् , किंच-यद्येवं स्थितस्यैव सूत्रपाठः क्रियेत ततोऽपिहितमुखत्वेन धर्मरुचिसाध्वादीनामपि सावद्यभाषापत्तिः, तथा च भगवत्यामुक्तम्-"सके णं भंते ! MUNDRAMAIRAhilaasum AIIMa ॥१३२।। Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha www.kobatirth.org Gyanmandir मदात्रिक श्रीदें चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥१३३॥ MAHAJININ Achana Kendra Acharya Shri Ka देविंदे देवराया कि सावज मासं भासइ अणवज्जं मासं भासइ ?, गोयमा! सावज्जंपि मासं मासइ, अणवज्जपि मासं मासह, से केणडेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जहा णं सके देविंदे देवराया सावजंपि भासं भासइ अणवज्जपि भासं भासइ ?, गोयमा! जाहे णं सके देविंदे देवराया सुहुमकायं अणिज्जूहित्ताणं भासं भासइ ताहे णं सके देविंदे देवराया सावज भासं भासइ, जाहे पं सके देविंदे देवराया सुहुमकायं निजूहियाणं भासं भासइ ताहे णं सक्के देविंदे देवराया अणवज्जं भासं भासइ, से एएणं अटेणं गोयमा ! एवं वुश्चइ-जहा णं सक्के देविंदे देवराया सावजंपि भासं भासइ,अणबज्जंपि भासं भासई" तस्मात् मुकुटांजलिमुद्रादीनां विनयविशेषदर्शनफलत्वेन सूत्रोचारकालात् पूर्वापरकालभावितया न योगमुद्रादीनामिव मूलमुद्रारूपत्वं, ततश्च मुद्दातियंति न यथोक्तसंख्याविधातः,पर्युपास्या अत्रार्थे बहुश्रुताः, यच्च चरितानुवादे जीवाभिगमादिषु विजयदेवादिभिः 'आलोए जिणपडिमाणं पणामं करेइ, तथा 'वाम जाणुं अश्चेइ, दाहिणं जाणुं धरणितलंसि निहटु तिक्खुतो मुद्धाणं धरणितलसि निवेसेइत्ति एकांगश्चतुरंगश्च प्रयामः कृतो दृश्यते तत् मध्यमप्रणामत्वाद् अर्द्धावनताख्यद्वितीयप्रणामांतर्द्रष्टव्यमिति, भाषितार्थ चैतत् प्रणामत्रयव्याख्यावसरे, तथा सूत्रपाठः-शक्रस्तवादिभणनं भवति, कर्त्तव्य इति शेषो, योगमुद्रया पूर्वोक्तस्वरूपया,तत्र चायं विधिः-इह साधुः श्रावको वा चैत्यगृहादावेकांते प्रयतः परित्यक्तान्यकर्तव्यः सकलसचानपायिनी भुवं निरीक्ष्य परमगुरुप्रणीतेन विधिना त्रिः प्रमृज्य च क्षितितलनिहितजानुयुगलः करकमलसत्यापितयोगमुद्रं प्रणिपातदंडकं पठतीति, यदुक्तं महानिशीथतृतीयाध्ययने-'भुवणेकगुरुजिणिंदपडिमाविणिवेसियनयणमाणसेण धनोऽहं पुन्नोऽहंति जिणवंदणाए सफलीकयजम्मुत्ति मनमाणेण विरइयकरकमलंजलिणा हरियलवीयजंतुविरहियभूमीए निहिउभयजाणुणा सुपरिफुडसुविदियनीसंकजहुत्थमुत्तत्थोभयं पए पए भावेमाणेणं जाव चेइये बंदिय- D IARRIALLAINMMITTARITAMILMETH १३३॥ For Private And Personal Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma r adhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kam u i Gyanmandir मुद्रात्रिक श्रीदे चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१३४॥ Pr || व्वे"त्ति,तत्रैव चोक्तं-'सक्कत्थयाइयं चेइयवंदणं'ति,यत्पुनाताधर्मकथादिषु धर्मरुचिसाचादीनां चरितानुवादे भणितं 'पुरत्था- भिमुहे संपलिअंकनिसने करयले' त्यादि तदशक्त्यादिकारणाश्रितं, न पुनः 'भूमिनिहिउभयजाणुणा' इत्यादिविधेर्वाधाविधायि भवति, चरितानुवादविहितत्वात् , चरितानुवादविहितानि हि नोत्सर्गाभिधविधिवादस्य बाधकानि साधकानि वा भवितुमर्हति, कारणाश्रितत्वेन द्वितीयपदान्तर्वर्तित्वात् तेषाम् , अन्यथा वा यथाऽऽम्नायं सुधीमिः समाधेयं ॥ तथा वंदनं 'अरिहंतचेइआण'मित्यादि दंडकैः प्रसिद्धैः जिनबिंबादीनां जिनमुद्रया-पूर्वोक्तशब्दार्थया विघ्नजेच्या कर्तव्यं भवति द्रौपद्यादिवत् , तथा च षष्ठांगे| "तए णं सा दोबई रायवरकन्ना जाव धूवं डहइ, वाम जाणुं अंचेइ, करयल जाव कटु एवं वयासी-नमोत्थु णं जाव संपत्ताणं, || वंदइ नमसई" अत्र जीवाभिगमोक्तं विवरणं-ततो विधिना प्रणामं कुर्वन् प्रणिपातदंडकं पठति-नमोत्थु णं अरिहंताणमित्यादि || यावन्नमो जिणाणं जियभयाणं, दंडकार्थश्चैत्यवंदनाविवरणादवसेयः, 'वंदइ नमसइ'त्ति वंदते ताः प्रतिमाश्चैत्यवंदनविधिना प्रसिद्धन, नमस्करोति पश्चात् प्रणिधानादियोगेने"ति, परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी-नमोत्थुणं अरिहंताणमित्यादि, ततोऽस्य पाठे विविधविधिदर्शनात् सर्वेषां च प्रमाणग्रंथोक्तत्वेन विनयविशेषकृतत्वेन च निषेधुमशक्यत्वात् योगमुद्रयाऽपि शक्रस्तवपाठो न विरुध्यते, विचित्रत्वात् मुनिमतानां, न चैतानि परस्परमतिविरुद्धानीति वाच्यं, सर्वैरपि विनयस्य दर्शितत्वात् इत्यलं प्रसंगेन, तथा वंदनं-अरिहंतचेइआणमित्यादिदंडकपाठेन जिनपिंवादिस्तवनं जिनमुद्रया, इयं च पादाश्रिता, दंडकानामपि स्तवरूपत्वात् , योगमुद्राऽप्यत्र संगतैव, सा च हस्ताश्रिता, अत उभयोरप्यनयोर्वदने प्रयोगः,तथा प्रणिधानं 'जयबीयराये'त्यादि यथेष्टप्रार्थनारूपं यद्यस्य, तीवसंवेगाद्धि अत्राशुभाविनी विशुद्धयोगसंप्राप्तिः,तच्च मुक्ताशुक्तिमुद्रया कार्यमिति शेषः। UPAANIMAP mamal RAMITRom ॥१३४॥ For Private And Personal G Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mah श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१३५॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kails धर्मरुचिककथा त्वियम्-नयरी नयरीश्वरा चंपा नामेण अस्थि जत्थ जणो । नेव कमलोवयारी रवि कमलोवयारीवि ॥ १ ॥ तत्थ य चउदसविजाठाणाणं पारगा सुबहुवत्ता । अन्नोन्नसिणेहल्ला संति तओ भायरो विप्पा ॥ २ ॥ सोमो य सोमदत्तो य सोमभूई य वल्लहा तेसिं । नागसिरी भूयसिरी जक्खसिरी नामओ कमसो ||३|| अह एगत्थ ठियाणं उल्लावो आसि तेसि जह अहं । पूजइ धणं पगामपि दाउमासत्तमकुलाओ ॥ ४ ॥ ता अन्नोभगिहेसुं वारंवारेण परियणेण समं । विलसंत भुंजयंतेण जुजए चिट्टिउं नूणं ||५|| इय पडिवज्जिय सव्वे कल्ला कल्लं मिहो गिहेसुं तो । असणाई भुंजतो सुहेण बोलिंति बहुकालं ॥ ६ ॥ भोयणवारे जाए अहन्नया माहणी य नागसिरी । विउलं असणाईयं असंरंभेण रंधेइ || ७|| तह एगं सुमहंतं सारइयं कडुयतित्तयं तुंबं । कप्पूरेलाइजुयं विहे बहुनेहओगाढं ||८|| अह तस्स बिंदुमेगं जा आसाएइ करयले काउं । खारमखजमभुजं विसभूयं जानए ता सा ||९|| | चिंतेर अहण्णाए घिरत्थु मज्झं अनाणमूढाए। जीइ मए बहुने हद्दवखणं इमं विहियं ॥ १० ॥ जइ जाणिस्संति इमं ताि संति जाउयाओं ममं । इय चिंतिय सा गोवइ तुरियं तुवं तमेगंते || ११ || अन्नं महुरालावं उवखडई झत्तिसा तओ विप्पा । तं भुतुं भजजुया नियनियकज्जुज्जुया जाया ||१२|| बहुसाहुसंजुया पुवधारिणो धम्मघोस आयरिया । अह तत्थ समोसरिया सुभूमिभागंमि उखाणे || १३|| तस्सीसो गुरुभत्तो धम्मरुई समिइगुत्तिसुपवित्तो । खंतो दंतो संतो उवसंतो रोसपरिचत्तो ॥ १४॥ निम्ममनिरहंकारो अमच्छरो असमरो असंमोहो । अनियाणो सुहझाणो वासीचंदणसमाणमणा ।। १५ ।। मासखमणपारणए कुलाई सो उच्चनीयमज्झाई। अडमाणो नागसिरीगिहं पविट्ठो उ भिक्खटुं ॥ १६ ॥ तं दठ्ठे पाविट्ठा सा तुट्ठा सुट्टु धम्मपन्भट्ठा। उट्ठेऊणं दुट्ठा देइ तयं तस्स सव्र्व्वपि ॥ १७॥ आगंतु धम्मरुई पडिदंसह जा गुरूण ता तेहिं । गंधेण तयं नाउं विसभूयं तो इमं भणिओ For Private And Personal uri Gyanmandir धर्मरुचि कथा ।। १३५।। Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mare Virradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kam u i Gyanmandir श्रीदे धर्मरुचि कथा ॥ १८॥ यश! परिट्टावसु इमं भुंजसु गिण्हित्तुमनमाहारं। मा पुण इममि भुत्ते मरणमकालंमि पाविहिसि ॥ १९ ॥ तो गंतु चैत्यश्री डिले सो तस्स लवं खिवइ जाव ता सहसा । बहुकीडियासहस्सा समागया नेहगंधेण ॥२०॥ जा जा उ तयं मक्खेइ तक्खणे धर्म संघा-A गयह खयं सा सा । तं पासित्ता चिंतइ धम्मरुई सुद्धधम्मरुई ॥२१॥ एगलवेणवि एयस्स जंति जइ जंतुणो मरणमेव । सम्बंमि चारविधौ || परिद्वविए हा कहमेए भविरसंति ? ॥२२॥ ता इमिणाऽऽहारेणं वरं विणस्सउ ममं चिय सरीरं । बिद्धसणधम्ममिणं पुव्वं पच्छा व जं ॥१३६॥ हेयं ।।२३।। किंच-कृमयो भस्म विटावा,निष्ठा यस्येयमीदृशी। स कायः परपीडाभिः,पाल्पते ननु को नयः ॥२४॥ तथा-निरर्थका ये चपलस्वभावा, यास्यत्यवश्यं स्वयमेव नाशम् । त एव यांति क्रिययोपयोग, प्राणाः परार्थे यदि किं न लब्धं? ॥२५|| अपिन-इकंचिय इत्थ वयं निद्दिष्टं जिणवरेहिं सबेहिं । तिविहेण पाणिरक्खषमवसेसा तरस रक्खट्ठा ॥२६॥ इय चिंतित्ता स समत्तसत्तसंताणरक्खणासत्तो। नियजीवियनिरविक्खो भक्खेइ तयं महासत्तो ॥२७॥ जओ-नियपाणे परपाणेहिं पाणिणो पालयंति सब्वेऽवि । परपाणे नियपाणेहिं कोइ विरलुच्चिय जियंति । २८॥ | खणमितेणं तेणं परिणममाणेग वेयणा विउला । विहिया तस्स सरीरे तिव्वा कडुआ दुरहियासा ।।२९।। तए णं से धम्मरुई अणगारे अखमे अबले अविरिए अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिजमितिकटु आयारमंडगं एगंते ठवेइ, एगंते ठवेत्ता थंडिल्लं पडिलेहेइ, थंडिलं पडिलेहिता दम्भसंथारगं संथरेइ, दम्भसंथारगं संथरेत्ता दम्भसंथारगं दूहइ, दम्भसंथारगं दुहित्ता पुरच्याभिमुहे संपलियंकनिसने करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं दसनहं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी-नमोत्थुणं अरिहंताणं जाव संपत्ताणं, नमोत्यु णं धम्मघोसाणं थेराणं मम धम्मायरियाणं धम्मोवएसयाणं, पुदिपि य णं मए धम्मघोसाणं घेराणं अंतियं सव्वं पाणाइ rammamath RAHARPARENDRA a mom ॥१३६॥ For Private And Personal Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mali Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shrik e rsuri Gyanmandir MAR धर्मरुचि कथा श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१३७॥ RAMPURNIRAL वाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए जाव परिग्गहो, इयाणिपिय णं तेसिं चेव भगवंताणं अंतियं सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जावजीवाए | सव्वं मुसावायं० सन्चं अदिनादाणं० सव्वं मेहुणं० सव्वं परिग्गहं० सव्वं कोहं माणं मायं लोहं पिजं दोसं कलहं अन्भक्खाणं पेशुन्नं अरइरई परपरिवायं मायामोसं मिच्छादसणसल्लं पच्चक्खामि जावजीवाए, सव्वं असणं सव्वं पाणं सव्वं खाइमं सव्वं साइमं चउविहंपि आहारं पच्चक्खामि जावजीवाए, जंपिय इमं सरीरं इ8 १ पियं २ कंतं ३ मणुनं४ मणामं५ नामधिजं ६ वेसासियं७ समयं ८ बहुमयं९ अणुमयं१० भंडकरंडगसमाणं रयणकरंडगभूयं उवहिव्व सुरक्खियं मा णं सीयं मा णं उण्हं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं वाला मा णं चोरा मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वाइयपित्तियसिभियसनिवाइया विविहा रोगायंकपरीसहोवसग्गा फुसंतुत्तिकटु,एयंपिणं चरमेहिं ऊसासनीसासेहिं वोसिरामित्तिकटु आलोइयपडिकते कालगए । अह चिरगउत्ति गुरुणा सुद्धिकए तस्स पेसिया समणा । तं कालगयं नाउं आगम्म कहति ते गुरुणो ॥३०॥ पुब्बगए उवओगं दाउं मेलिय तओ समणसंधं । तं वुत्तंतं कहिउं कहति गुरुणो गई तस्स ॥३१।। अजो ! इमो महप्पा अममत्तो सत्तुमित्तसमचित्तो। परपरिवायविरत्तो | अवगयतको महासत्तो ॥ ३२ ॥ जिणवयणे अणुरत्तो दइक्करसिओत्ति मरिय धम्मरुई । उववन्नो सवढे महाविदेहे सिवं गमिही ॥३३।। अन्नोवि कोवि एवं मा पुणरवि काहिहित्ति मुणिवसहा ! । तो गंतु नयरि मज्झे जंपंतु इमं जणसमक्खं ॥३४॥ हा हा हहा अकजं नागसिरीमाहणीइ इह विहियं । कडुतुंबदाणओ जं विणासिओ एरिसो सो मुणी ॥३५॥ तए णं ते माहणा चंपाए नयरीए बहुजणस्स अंतिए एयमढे सुच्चा निसम्म आसुरुत्ता रुट्ठा कुविया चंडकिया मिसिमिसेमाणा जेणेव नागसिरिमाहणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता नागसिरिं माहणीं एवं बयासी-हं भो नागसिरि ! अपत्थियपत्थिए दुरंतपंतलक्खणे हीणपुनचाउद्दसीए HTTIPPIMPRIL ॥१३७॥ For Private And Personal Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M h Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri arsuri Gyanmandir धर्मरुचि कथा श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ | ॥१३८॥ PAARISHADImalisha सिरिहिरीधिइपरिवजिए धिरत्थु णं तव अहन्नाए अपुन्नाए दूहगाए दूहगनिंबोलियाए जीए णं तुमे तहारूवे साहुरूवे मासखमणपारणगंसि सालइएणं जाव ववरोविए' ता मरसु दुःकुलीणे ! निस्सर गेहाउ चयसु वत्थाइ । पाविहिसि इमस्स फलं निहणंति तहा चवेडाहिं ॥३३॥ एवं अकोसित्ता उद्धंसित्ता तहा निमच्छित्ता । निच्छोडिय तजिय ताडिऊण कडूंति तं सगिहा ।। ३७ ॥ सिंघाडगतिगचउक्कगवच्चरचउमुहमहापहाईसु । हिंडइ सा अलहंती कत्थइ ठाणं व निलयं वा ॥३८॥ तथा-हीलिअंती जनाइएहिं निंदिजमाण तह मणसा । खिसिजंति परोक्खं गरिहजंती तह समक्खं ।। ३९ ।। तजिजंती तह अंगुलीहिं दंडाइएहिं हम्मंती । घिद्धिकारिजंती नागरनरनारिनियरेहिं ॥४१॥ फुट्टहडाहडसीसा रिंछिब्ब अतुच्छमच्छियच्छन्ना । दंडियखंडनिवसणा मल्लग खंडगघडगहत्था ॥४२॥ तो गेहंगेहेणं हेउं मिक्खाइ हिंडमाणी सा । नरइव इहेव भवे तिक्खं दुस्खं समणुपत्ता ।। ४२ ॥ इय | तीए सारीरियमाणसदुहसायरे निवुडाए । दड्ढोवरिपिडगसमा सोलस रोगा समुन्भूया ॥४३॥ खासे १ सासे २ जरे ३ दाहे ४, कुच्छिमूले ५ भगंदरे ६ । अवस ७ अजीरए ८ दिट्ठी ९, अच्छिमूले १० अरोयणे ११॥४४॥ कंडू १२ जलोयरे १३ सीसवेयणा १४ कनवेयणा १५ कुठे १६ । इय आमयभीएहिँ व पाणेहि कहवि सा मुक्का ॥ ४५ ॥ अदृदुहट्टवसट्टा मरिउं छट्ठीइ नरयपुटवीए । उववण्णा नागसिरी बाबीसंसागराउ ठिई ॥ ४६॥ तत्थ सहित्ता अइदुस्सहं दुहं तो झसेसु उत्पन्ना । सत्थहया अह मरिउं सत्तमनिरयंमि उववन्ना ।। ४७॥ तित्तीससागराइं सहिय दुहं तत्थ पुण असो जाओ। पुण सत्तमनेरइओ पुण मच्छो तयणु छट्ठीए ॥ ४८ ॥ दुक्खुत्तो दुक्खुत्तो दुक्खत्वा सा समत्तनरएसु । भमिया जह गोसालो अणंतकालं भवारण्णे ॥४९॥ सत्य सत्यवज्झा दाहुप्पत्तीइ सा उ मरमाणा। भमिया दीहळू चाउरंतसंसारकान्तारं ॥५०॥ एत्तो कहवि लहियसुकुमालिभवं कयनिया indimammigrmmaHHINARIGORIES IndiiiiliheAPHIBIANE | ॥१३॥ For Private And Personal Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri arsuri Gyanmandir धर्मरुचि कथा श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म संघा चारविधौ ॥१३९॥ | गजुत्ततवा । पाविअदेवभवा सा इय जाया दोवई कुमरी ॥५१॥ अहसा इह चंपाए सागरदत्तप्पियाइ भद्दाए । सुकुमालियत्ति जाया | दिव्ववसा कहवि अइदुहगा ।। ५२ ।। घरजामाउअविहिणा जिणदत्तसुएण सागरेण इमा । परिणिय चइया जलणाइअहिय| हत्थाइफासाओ ॥ ५३॥ ससुरउवलद्धपिउणा भणिओ किमदोसपइवया मुक्का। नवरि मरामि न तं पुण गच्छंति विणिच्छए मुक्को ॥५४॥ पुण दमगस्सुवणीआ तफासं सोऽवि सहिउमचयंतो । सुत्तं मुत्तुं नियखंडघडवसणाई स गहिय गओ॥५५॥ पुत्रकयदुक्कयफलं इअ वच्छे ! मुणिय मा विस्रेसु । इय पिउविबोहिया सा महाणसे देइ दाणाई ।। ५६ ॥ भिक्खागयसमणीभो कयाइ तं कुंटलाई पुच्छंतिं । गोवालियापवत्तिणी गाहइ गिहिधम्मजइधम्मं ॥ ५७ ॥ समणीणुवस्सयंतो कप्पइ समतलपयावणाइत्ति । भणियाविहु उस्सग्गाइ कुणइ पुण बाहिरुजाणे ॥ ५८ ।। अह द? देवदत्तं सिपियत्थं सायरं पणनरेहिं । लालिज्जतिं चिंतइ लायन्नमहो अहो सुभगा ।। ५९॥ निन्भग्गाऽहमिगस्सवि आसि अणित्ति हुञ्ज ताऽहंपि । छट्ठट्ठमाइणाऽणेण निचमिय कुणइ दुनियाणं ॥ ६० ॥ हत्थाइधोविरा न हु जुञ्जइ इय गुत्तभयारीणं । पुण पुण भणिजमाणी गुरुणीहि ठिया पुढो निलए ॥ ६१ ॥ सच्छंदचिट्ठिआ अद्धमासभत्तेण मरिय सा जाया। नवपलिआऊ देवी अपरिग्गहिआ विइअकप्पे ॥ ६२ ।। चविउं कंपिल्लपुरंमि दुवयचुलणीण दोबई जाया । पणपंडवे वरद सा सयंवरे वंदिय जिणित्ति ॥६३॥ अत्र षष्ठांगसूत्रं-"तए णं सा दोबई रायवरकन्ना जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता जिणघरं अणुपविसइ, जिणघरं अणुपविसित्ता जि| पपडिमाणं आलोए पणामं करेइ, पणामं करेत्ता लोमहत्थयं परामुसइ, परामुसित्ता एवं जहा सूरियामे जिणपडिमाओ अच्चइ तहेव भाणियवं जाव धूवं डहद, वामं जाणुं अंचेइ, करयलजाव कटु एवं वयासी-नमोत्थुणं जाव संपत्ताणं, वंदइ नमसइ, T i ll illIII . Title INDIANRAAAAAAMIUMARITAMBHARAPARIANERAPHIRITUDIAIKINNAPALI HAMARIYANAPAN HANUPAIRPURIHIP ॥१३९॥ WIKI For Private And Personal Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri MOLINAradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri K a ri Gyanmandir धर्मरुचि कथा श्रीदे० चैत्यश्री धर्म संघाचारविधौ ॥१४॥ टुंगो नेय नियाविहुमत्थाय । | जिणघराओ पडिनिक्खमइ” अत्र जीवाभिगमलघुविवरणोक्ता व्याख्या-ततो विधिना प्रणाम कुर्वन् प्रणिपातदंडकं पठति, तद्यथा-नमोत्थुणं अरिहंताणमित्यादि यावन्नमो जिणाणं जिअभयाणंति, दंडकार्थश्चैत्यवंदनविवरणादबसेयः, 'वंदइ नमसईत्ति बंदते ताः प्रतिमाश्चैत्यवंदनविधिना प्रसिद्धेन, नमस्करोति पश्चात् प्रणिधानादियोगेनेत्येके, अन्ये तु विरतिमतामेव प्रसिदश्चैत्यवंदनविधिः, अन्येषां तु तथाऽभ्युपगमपुरस्सरकायव्युत्सर्गासिद्धिरिति वंदते सामान्येन,नमस्करोति आशयवृद्ध्युत्थाननमस्कारेणेति, तत्वमत्र भगवंतः परमर्षयः केवलिनो विदंती"ति ॥ जह नारओऽस्स कुप्पइ अस्संजयअविरयत्ति अनमंतिं । पाविंसु अवरकंकं तं तह छटुंगओ नेयं ॥६४ जाए य पंडुसेणे गहियवया विमलगिरिकयाणसणा । सा लंतयंमि पत्ता महावि| देहमि सिज्झिहिई ॥६५।। अत्रोपनयलेशोऽयं-नियपाणच्चाएणवि परपाणा रक्खिया जहा इहयं । धम्मरुइसाहुणा | तह रक्खेयवा सया जीवा ॥६६॥ तह जो मरणंतेऽविहु मणसावि न खंडए नियं नियम। सो सग्गाई पावइ जह पत्तं धम्मरुइमुणिणा ॥६७|| अमणुनमभत्तीए पत्ते दाणं भवे अणत्थाय । जह दीहो संसारो नागसिरीए तया जाओ ॥६८।। उक्तश्चायमर्थः श्रीभगवत्यां, तथा हे-'तिहिं ठाणेहिं जीवा असुहदीहाउयत्ताए कंमं पकरेंति, पाणे अइवाइत्ता भवइ' मुसं वइत्ता भवइ२ तहारूवं समणं वा माहणं वा हीलित्ता निंदित्ता सिंसित्ता गरहित्ता अवमन्नित्ता अमणुन्नेणं अपीइकारगेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाहिता भवइ, एएहिं तिहिं ठाणेहिं जीवा असुहदीहाउयत्ताए कम्मं पकरंति' इत्थ-जच्चाइएहिं हीला मणसा निंदा परुक्खओ खिंसा । गरिहा तस्स समक्खं पराभवो होइ अवमाणो ॥६९॥ श्रुत्वेति दुष्कर्मलतालवित्रं,भव्या जना! धर्मरुचरित्रम् । अमुद्रसौख्याय यथोक्तमुद्राश्चैत्यानि बंदध्वमपास्ततंद्राः ।। ७० ॥ इति मुद्रात्रिके श्रीधर्मरुचिद्रौपदी ॥१४॥ For Private And Personal Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ।। १४१ ।। www.kobatirth.org संबंधः ॥ उक्तं मुद्रात्रिकमिति नवमं त्रिकं संप्रति 'तिविहं च पणिहाण' मिति दशमत्रिकं गाथापादत्रिकेणाह - पणिहाणतिगं चेइयमुणिवंदणपत्थणासरूवं वा । मणवयकाएगत्ते Acharya Shri Kailasi Gyanmandir यदि मुक्ताशुत्या मुद्रया क्रियते तदेतत् प्रणिधानत्रिकं किमित्याह-चैत्यमुनिवंदनाप्रार्थनास्वरूपं, अत्र पृथग्वंदनाशब्दयोगात् प्रथमं प्रणिधानं चैत्यवंदनारूपं जावंति चेइआई इत्यादि, द्वितीयं मुनिबंदनालक्षणं जावंति केवि साहू इत्यादि, तृतीयं प्रार्थनास्वरूपं जय वीयरायेत्यादि, उक्तं च बृहदुभाष्ये - " अनंपि तिप्पयारं वंदणपेरंतभावि पणिहाणं । जंमि कए संपुन्ना उकोसा वंदना होइ || १|| चेहयगय १ साहुगयं २ नेयवं तत्थ पत्थणारूवं । एयस्स पुण सरूवं सविसेसं उवरि वुच्छामि ॥२॥ (२५३-२५४) ननु यदेतत् प्रणिधानत्रिकं उक्तं तत्किल वंदनावसाने विधीयते, 'अन्नंपि तिप्पयारं वंदण पेरंतभावी' त्यादिभाष्यवचनात्, ततः शेषा वंदना प्रणिधानरहितेति प्राप्तमित्याशंक्याह - 'वे' ति अथवा, द्वितीयमपि प्रणिधानत्रिकमस्ति यत् समस्तं चैत्यवंदनायां विधीयते, किं तदित्याइ- मनोवचः कायानामै काग्र्यं - अकुशलरूपाणां निवर्तनं, समाधिः रागद्वेषाभावः अनन्योपयोगितेतियावत्, आह च - " इह पणिहाणं तिविहं मणवइकायाण जं समाहाणं । रागद्दोसाभावो उचओगितं न अन्नत्थ ॥ १ ॥ एयं पुण तिविद्वंपि हु वंदं तेणाइओ हु कायन्त्रं । चिह्नवंदणमुणिवंदणपत्थणरूवं तु पर्जते ||२|| अत्र चेयं भाष्योक्ता भावना - चिंतइ न अन्नकजं दूरं परिहरइ अवरुद्दाई । एगग्गमणा अर्थालंबनयोरिति गम्यं बंदइ मणपणिहाणं हवइ एयं ॥ १ ॥ विगहाविवापरहिओ वज्रंतो मूयढड्ढरं सदं । वंदइ सपयच्छेयं वायापणिहाणमेयं तु ||२|| पेहंतपमजंतो उट्ठाणनिसीययाइयं कुणइ । वावारंतररहिओ वंदइ इय कायपणिहाणं ||३||" (वन्दन) पंचाशकेष्वप्युक्तं" सवत्थवि पणिहाणं तग्गय किरियाभिहाणवनेसु । अत्थे विसए य तहा दितो छिन्नजालाए ।। १ ।। अस्या अर्थः- सर्वत्रापि - For Private And Personal प्रणिधान - त्रिकं ॥ १४१ ॥ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahav a dhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas y i Gyanmandir श्रीदे० प्रणिधानत्रिक चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ ॥१४२॥ समस्तायामपि चैत्यवंदनायां, न केवलं तदंत एव, प्रणिधान कार्य,नरवाहननरेन्द्रवत् , क विषये ?, तद्गताः-चैत्यवंदनागताः | क्रिया-मुखस्थगनमुद्रान्यासादिका यास्तासु१ तथा अमिधानानि-पदानि वर्णा-अक्षराणि तेषु२ तथाऽर्थः-अहंदादिपदामिधेयस्तस्मिन् विषयो-वंदनागोचरो भावार्हदादिदृष्टिगोचरो वा चैत्यविप्रभृतिकस्तस्मिन् , तथाशब्दात् जयवीयरायेत्यादिप्रार्थनायामपि, 'दिद्रुतो छिन्नजालाइ'त्ति तुर्यपदस्यैवं भावना, प्रेरकः प्राह-वन्नाइसु उवओगा जुगवं कह घडइ एगसमयंमि ? । दो उवओगा समये केवलिणोऽविहु न जं इट्ठा ॥१॥ आचार्यः-कमसोऽवि संभवंता जुगवं नजंति ते विभिन्नावि । चित्तस्स सिग्घकारित्तणेण एगत्तभावाओ ॥२॥ अत्र दृष्टांतश्छिन्नजालया-उल्मूकेन, यथा हि तद्धाम्यमाणं छिन्नजालमपि शीघ्रतया चक्राकारं प्रतिभासते, यद्वा 'केवलिणो उवओगो वच्चइ जुगवं समत्थनेएसु । छउमत्थस्सवि एवं अभिन्नविसयासु किरियासु ॥३॥ तथा चागमः-भिन्नविसयं निसिद्धं किरियादुगमेगया न एगमि। जोगतिगस्सवि भंगियसुत्ते किरिया जो भणिया ॥४॥ मणसा चिंतइ भंगे वयसा उच्चरह लिहइ कारण। एवं जोगतिगस्सवि भंगिअसुत्तमि वावारो ।।५।। नरवाहणनरेन्द्रवृत्तं चैवम्__अत्थि पुरी वइदेसा सुरपुरिदेसा सिरीहि पवरीहिं । तत्थ सढो दुब्बियडो थट्ठो नरवाहणो राया ॥१॥ सइ जिणपणिहाणपरा | दुहावि पियदसणा पिया तस्स । निम्मियगुरुजणविणओमणओ तणओ अमोहरहो ॥२॥ किमिहऽज पञ्चमेसो पउरजणो जाइ जं इह सुवेसो । इगदिसिऽभिमुहोत्ति कोउगकलिओ ता (निवेण पृच्छिओ) भणइ पडिहारो ॥३॥ देव ! कयकोवहाणी पसनवाणी खमाइगुणखाणी । सुव्वयसूरी पत्तो इह तन्नमणाय जाइ जणो ॥४॥ सो केरिसोत्ति कोउगकलिओ तो नरवईऽवि तत्थ गओ। नमिय निविट्ठाइ सहाय अह गुरू कहइ इय धम्मं ॥५।। “पडिओ अकामनिजरनईइ गिरिपत्थरोब कहवि जिओ। अवि थावरो ॥१४२।। For Private And Personal Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahin Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्री - धर्म० संघा - चारविधौ ॥१४३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kasuri Gyanmandir तसत्तं लहड़ तिचउरकूखयाइ तहा || ६ || तोऽवि नरत्ताऽऽरियखेत्तगोत्त अरुजत्तआऊअविगलत्ते । धम्ममई सुगुरुसत्रणे लद्धे दुलहा उ ततरुई ||७|| यदागमः- “आहच्च सवणं लधुं, सद्वा परमदुल्लहा । सुच्चा नेयाउअं मग्गं, बहवे परिभस्सई ॥ ८ ॥ ता लहिअ सुद्धसद्धं तब्बुडिकए सयावि जीवेण । पणिहाणतिगपहाणा कायद्या वंदणा पुण्णा ||९|| भणियं च - "वहूइ धम्मज्झाणं फुरंति हियए गुणा जिणाईणं । उल्लसइ सुहो भावो वदंताणं सुपणिहाणं || १० || पणिहाणं पुण तिविहं मणत्रकायाण संजमाहाणं । रागद्दोसाभावो उवओगित्तं न अन्नत्थ ॥ ११ ॥ एयं पुण तिविहंपि हु वंदतेणाइओ उ कायन्त्रं । चिइवंदणमुणिवंदणपत्थणरूवं तु पअंते ||१२|| अह आह नियोकिं वंदणिजमेयाण गुणविउत्ताणं । नियमविगप्पणाए ठविआणं येइआण अहो ? ||१३|| तह सोअवजिआण अनिययवित्तीइ भ्रमणसीलाणं । भिक्खाआजीवगाणं जईण किं नाम नमणिजं १ || १४ || नणु अपसन्नमणाणं जिणाण किं इत्थ पत्थणाइ फलं ? । नहि अफला पडिवत्ती बुहाण संसिज कयावि || १५ || भगइ गुरू भो नरवर ! संति अणंता गुणा जिणाण धुवं । झाइज्जति नमिज्जति ठाविउं ते उ पडिमासु ।। १६ ।। एवं ध्यानद्वयसिद्धेः, आह च - "स्वर्णादिप्रतिमास्थितमर्हद्भूपं यथा| स्थितं पश्येत् । सत्प्रातिहार्यशोभं यत् तद्ध्यानमिह रूपस्थम् || १७ || प्रतिमादिषु देहस्थं यथास्थमूर्ति जिनादिकं मनसा । तद्रूपं चात्मानं यद् ध्यायेत्तदिह रूपस्थम् ॥ १८ ॥ तथा चोक्तम् - ( चिन्तिय पूरण) अमिघणा अतिपय पंगू न दिंति । इणि कारणि इह पत्थरा, देवत्तणु पाविति ||१९|| नियमणसंकप्पो चिय सव्वत्थवि इत्थ होर कजकरो। जो नेइ सत्तमीए खणेण पावेइ वा मुक्खं |||२०|| ता सुहआलंबणओ परिमाणविसुद्धिमिच्छता निच्चं । जिणपूअणाइ कुजा भविआण विबोहणत्थं च ॥ २१ ॥ अत्र प्रयोगःजिणवंदणाइ कुञ्ज परिणामविशुद्धिहेउओ निचं । दाणादव मग्गष्पभावणाओ व कहणं व ||२२|| सुद्धमणवयणतणुणो सुद्धायारा For Private And Personal नरवाहनवृत्तं ॥१४३॥ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maite Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka s uri Gyanmandir नरवाहनचे तत्त्वत्रयी श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधी ॥१४४॥ iral N | सुबंभचेरा य । कयदुद्दमकरणदमा इसिणो सुइणो सया नेया ॥२३॥ यदाह व्यास:-"चित्तं क्षमादिभिः शुद्ध,बदनं सत्यभाषणैः। ब्रह्मचर्यादिमिः कायः,शुद्धो गंगां विनाऽप्यसौ ॥२४॥ चित्तं रागादिभिः क्लिष्टमलीकवचनैर्मुखम् । जीवहिंसादिभिः कायो, गंगाऽप्यस्य पराशुखी ॥२५॥ आह च-न शरीरमलत्यागात् , नरो भवति निर्मलः । मानसैस्तु मलैमुक्तो,भवत्येव हि निर्मलः॥२६॥ विषयेषु भृशं रागो, मानसं मलमुच्यते । विरागो हि पुनस्तेषु, निर्मलत्वमुदाहृतम् ॥२७॥ मृदो भारसहस्रेण,जलकुंभशतेन च । न | शुध्यंति दुराचाराः,स्वातास्तीर्थशतैरपि ॥२८|| आचारवस्त्रांतरगालितेन, सत्यप्रसन्नक्षमशीतलेन । ज्ञानांबुना स्नाति च यो हि नित्यं, | किं तस्य भूयात् सलिलेन कृत्यम् ? ॥ २९ ।। शुचिर्भूमिगतं तोयं, शुचिर्नारी पतिव्रता। शुचिर्धर्मपरो राजा, ब्रह्मचारी सदा शुचिः॥३०॥ शृंगारमदनोत्पादं,यस्मात् स्नानं प्रकीर्तितम् । तस्मात् स्नानं परित्यक्तं, नैष्ठिकैर्ब्रह्मचारिभिः॥३१॥ कामरागमदोन्मत्ता, ये च स्त्रीवशवर्तिनः। न ते जलेन शुध्यंति, स्नातास्तीर्थशतैरपि ॥३२।। स्नानमुद्वर्तनाभ्यंगौ, तांबूलं दंतधावनम् । गंधमाल्यं प्रदीपं | च, त्यति ब्रह्मचारिणः।।३३।। नोदकक्लिन्नगात्रो हि, स्नात इत्यभिधीयते । स स्नातो यो दमस्नातः,स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥३४॥ | यो लुब्धः पिशुनः क्रूरो, दांभिको विषयात्मकः । सर्वतीर्थेष्वपि स्नातः, पापाद्धि मलिनश्च सः ॥ ३५ ॥ ज्ञानजले ध्यानहदे, | रागद्वेषमलापहे । यः स्नाति मानसे तीर्थे, स गच्छति परां गतिम् ॥३६॥ सवत्थ सममणाणं धणसयणाइम ममत्तरहियाणं । नि| इंसियं रिसीणं अनिअयवित्तीइ परिभमणं ॥३७॥ यदाहुः परममुनयः-"अनिएअवासो समुआणचारिआ, अनायउंछं पयरिकया य । अप्पोवही कलहविवज्जणा य, विहारचरिआ इसिणं पसत्था ।। ३८॥" तथा-"पडिबंधो लहुअत्तं न जणुवयारो न देसविनाणं । नाणाईण अवुड्डी दोसा अविहारपक्खंमि ॥३९॥ किंच-"मासं च चउम्मासं परं पमाणं इहेगवासंमि । वीयं तइयं PAINA-HIPARIRSINHINDI ।॥१४४॥ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mat Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रीदे चैत्यश्रीधर्म संघा चारविधौ ॥१४५|| Acharya Shri Kafesi Gyanmandir च तर्हि मासं वासं च न वसिजा ॥४०॥" अन्येऽप्याहुः-"ग्रीष्महेमंतकान् मासानष्टौ भिक्षुः सदा चरेत् । दयार्थ सर्वभूतानां, नरवाहनवर्षास्वेकत्र संबसेत् ॥४१॥ तथा मार्कडेऽपि-सर्वसंगपरित्यागो, ब्रह्मचर्यमकोपिता । जितेन्द्रियत्वमावासे, नैकस्मिन् वसतिश्चिरम् ॥४२॥ आरंभनियत्ताणं धम्मसरीरस्स रक्खणनिमित्तं । भिक्खोवजीवगत्तं पसंसि नणु महेसीणं ॥४३॥ यदुक्तं-'चरेन्माधुकरी वृत्तिमपि प्रांतकुलादपि । एकानं नव भुंजीत, बृहस्पतिसमादपि ।। ४४ ॥ अवधूतां च पूतां च, मूर्खाद्यैः परिनिंदिताम् । चरेन् माधुकरी वृत्ति, सर्वपापप्रणाशिनीम् ॥४५॥ अथ प्रयोगः-इय गुणजुत्ता अममत्तणेण भावमलसुद्धिहेऊओ । मुणिगो पसंसणिज्जा सुतित्थगमणाइयं व सया ॥४६।। यद् व्यासः-साधूनां दर्शनं श्रेष्ठं, तीर्थभूता हि साधवः । तीर्थ पुनाति कालेन, सद्यः साधुसमागमः ॥४७॥ कह अपसन्नाउ फलं लभंति मई ? असंगया जेण । सुमणाण फलंति अचेयणावि चिंतामणिप्पमुहा ॥४८॥ ता नाणाहमयत्ते पुजा कोवप्पसायविरहाओ । नियमणपसायहेउं नाणाइगुणे व जिणचंदो ॥४९॥" इय जुत्तिजुत्तमुत्तो गुरुणा पडिउत्तराखमो राया । सुपउवमणो बहु तजणाइ काउं समारो ।। ५० ॥ यतः-अप्रशांतमतौ शास्त्रसद्भावप्रतिपादनम् । दोषायाभिनवोदीणे, शमनीयमिव ज्वरे ॥५१।। अह तं नाउं पियदंसणा य देवी सुओ अमोहरहो । आगम्म भणंति निवं पहु! नहु इह काउमुचिअमिणं ॥५२॥ जओ-इह हीलिया उ हाणिं दिति रिसी रोइयव्वयं हसिआ । अकोसिआ उ वहबंधणाई पुण ताडिया मरणं ।। ५३ ॥ किंच-तपस्विनि क्षमाशीले, नातिकर्कशमाचरेत् । अतिसंघर्षणादग्निश्चंदनादपि जायते ॥ ५४॥ जइ इय ता मह विसए धम्माधम्माइ अकहमाणेहिं । ठायव्वमिमेहिं भणित्तु निवो तओ सगिहमणुपत्तो ॥५५॥ हेडाउएण केणवि कयाइ अत्थाणगस्स अह रण्णो । एगो करी अगाहिअसिक्खविसेसो उव- ॥१४५|| Amritim ith UNINTElimintE adhiTISHALIPARIANP INAL For Private And Personal Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य०श्री - धर्म० संघा चारविधौ ॥१४६॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Karsuri Gyanmandir विओ ॥ ५६ ॥ निवपुट्ठा गयलक्खणविडसा पुरिसा वयंति देव ! इहं । भदो मंदो य मिगो मिस्सा चउहा गया हुंति ॥ ५७ ॥ तत्थ - सेयनहदीहपुच्छुभयग्गसव्वंगसुंदरी धीरो । महुपिंगच्छो भद्दो सरयमदो हणइ दंतेहिं ॥ ५८ ॥ धूलसिरदंतनहवालवालही सिंहपिंगलो मंदो । चलबद्दलविसमचंमो करेण पहरह वसंतमदो ॥ ५९ ॥ हेमंतमदो तासणसीलो गत्तावरेहिं हणइ मिगो । तत्थुविगते तणुदंत देहतयकंठ नहकेसो ||६०|| अणुहरइ थोवथोवं रूवं सीलं च जो इमाण गओ । सो मिस्सो सव्वंगिहिं होइ मजइ अ सयकालं ||६१|| भद्दो सवायलक्खं तयद्धमुल्लं लहेइ मंदकरी । तस्सद्धं मिगहत्थी तयद्धमवि मिस्सजाइगओ || ६२|| तो सोउमिणं निवई तं भहंगयं गहेइ तुट्ठमणा । हेडाउअं विसजइ दाऊण मणिच्छिअं मुलं ॥ ६३ ॥ तंमि निवो अह चडिऊण रायवाडीह निग्गओ तत्तो । सरिय वर्ण धावित्था विंझामिमुहो जवेण करी ||३४|| अंकुसभिन्न सिरोऽविहु ता सो हयहत्थिजोहनिवहेहिं । सुनिकाइयकम्मचउव पारिओ नेव पडिखलिउं ॥ ६५|| सेरिहवराहमजार रिट्ठरुवाणि दूरगमणेण । धारंतो सो हत्थी खणेण अद्दंसणं पत्तो ॥ ६६ ॥ | अडविगयाउ गयाओ उत्तरइ निवो विलग्गिओ रुबखे । गहिऊण य मिल्लेहिं पुच्छिओ कोऽसि कत्तो तं ॥६७॥ नियमकहंतं ताडितु जट्टिमुट्ठीहिं बंधिय गया ते । अह कहवि निवो निसि छितु बंधणे लंघिउं अडविं ॥ ६८ || छुहतण्हाइकिलंतो रज्जउरे गंतु मिक्खिउं भुत्तो । तहि वासं अलहंतो निसि उज्जाणे बहिं पत्तो ।। ६९ ।। तत्थ य नरवाहणनिव । नणु करिहरिओ इहागओ सित्ति । वृत्तो सुहंमगुरुणा भणइ ममं मुणह कह तुम्भे १ || ७० || नणु धम्माइ सविसए वारंतो सबहिंपि पयडो सि । इअ वुत्तो सो लज्जानमिरो गुरुणा पुणो भणिओ ॥ ७१ ॥ " धम्माइफले पयडेऽवि राय ! रक्खाइए किहह जीवा । परलोअनिप्पिवासा मूढा मग्गाउ भस्संति ॥ ७२ ॥ निंदंता गुरुदेवे लोअविरुद्धपि तह विहेमाणा । अत्तुक्करिसा तं पिव अणत्थसत्थं निव! लहंति ।। ७३ । अज्जवि For Private And Personal नरवाहनवृत्तं ॥१४६॥ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahn Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रीदें चैत्य श्रीधर्म०संघाचारविधौ ॥१४७॥ Acharya Shri Kait i Gyanmandir किंपिन नटुं विसुद्धमग्गं भयाहि भूनाह !। दूरं गयावि लच्छी अणुसरह नरं नयपवनं ॥७४॥ अह जायकम्म IIIनरवाहनविवरो अणुतावपरो निवो चरणलग्गो। विनवइ गुरुं भयवं! कह पावा मुञ्चिहमिमाओ? ॥७५।। "भणइ गुरू जिणमुणिवंदणेण पावमिह नासइ जमुत्तं । भत्तीइ जिणवराणं खिजंति पुरा कया कम्मा ॥७६॥ तथा-अभिगमणवंदणनमंसणेण पडिपुच्छणेण साहणं । चिरसंचिअंपि कम्मं खणेण विरलत्तणमुवेइ ।। ७७ ॥ जिणवरपणिहाणाओ जायइ जीवाण सयलसुहहेऊ। सुहगुरुजोगो मग्गाणुसारिया भवविरागित्तं ॥८॥ तह गुरुजिणबहुमाणो इह परलोए अहिट्ठफलसिद्धी । लोयाविरुद्धकरणं परोववयारित्तणाईवि ॥७९॥" अह निवई नमिय गुरुं गयमिच्छतो गहेवि सम्मत्तं । जिणमुणिपणिहाणपरो गमइ दिणे दुकयनिंदाए ।।८०॥ अह अणुपत्ते सबले नमिय गुरुं भणइ पहु! पसीय कया । वइदिसिपुरीइ एजह इय वुत्तु निवो गओ सपुरं ।।८१॥ पिया दंसणाइ देवीइ पुच्छिओ हथिहरणमाईयं । जिणधम्मलाभपेरंतमाह निवई नियचरित्तं ॥८२|| तत्तो सुइसंमत्तो मुणिपयभत्तो जिणचणुज्जुत्तो। कयधम्मियबहुमाणो पालइ रजं सुपणिहाणो ॥८३॥" श्रीमत्सुधर्मसूर्यागमने चोद्यानपालविज्ञप्ते । सर्वा भूभर्ता विनिर्ययौ मुनिपते तुम् ॥८४॥ दयितासुतादिसहितो भक्त्या प्रणिपत्य तत्पदद्वंद्वम् । विहितांजलिः सविनयं विज्ञपयामास मरिमसौ ॥८५॥ अचिराय प्रासीदत न किं स्वचरणारविंदवंदनतः। अस्माकमुपरि भगवन् ! मुनिः-गादं व्यग्रा नृपाः स्म वयम् ॥ ८६ ॥ राजा-त्यकसमारंभाणां भवतामपि सर्वसंगविरतानाम् । किं व्याकुलत्वमेतद्? मुनिः-वसुधाधव! विद्धि युद्धकृतम् ।।८७॥ राजा-अहह समशत्रुमित्र! क्षेत्रादिविरोधकारणलवित्र ! । प्रशमधन गतयोधन ! किमिति तवायोधनविधानम् ! ॥८८॥ महदाश्चर्य भगवन् ! कथय कथं केन कलिरजनि वोऽत्र । गुरुरथ जगौ गवेश्वर! शृणु तदिह गुरुः प्रबंधोऽयम् ॥८९॥ तथाहि-श्रुत्वैकदा गतं मां प्रम- ॥१४७।। For Private And Personal Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mail A radhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka l suri Gyanmandir श्रीदे० । चैत्यश्री-H नरवाहन पतं धर्म० संघाचारविधौ ॥१४८॥ त्तसंयतवने प्रमादचरात् । सत्वरमभ्यषिपेणद् भवचक्रव्यूहतो मोहः ॥९०॥ तत्राग्रिमधारायां तस्थुरनंतानुबंधिनो योधाः। वामे || दर्शनमोहश्चरित्रमोहस्तदपसव्ये ॥ ९१ ॥ पार्श्वत आयुर्नाम्नी वेद्यं गोत्रं च पृष्ठधारायाम् । अग्रारकेषु कामः सनोकषायो जगद्वीरः || ॥९२॥ पश्चिमपार्थारेषु यावरणीयांतरायसामंताः । भवचक्रसुदृढनाभौ मोहनरेन्द्रः प्रबलवीर्यः ॥९३॥ राजा-भगवन् ! भवता त्रिभुवनहितेन मोहस्य किमिति वैरमिह ? । गुरुः-शृणु नृप! ममास्य यद्वैरकारणं सावधानमनाः॥९४॥ पूर्व दत्त्वाऽनेकासुखानि चरमांगतामहास्त्रेण | अवधिषमस्य सुरायुर्नरकायुस्तिर्यगायूंषि ॥ ९५ ॥राजा-ततः ततः, गुरुः-मोहनृपविजयटकासु वाद्यमानासु विविधविकथासु। समरभरायोच्छलितो विषयादिभटौघतुमुलरवः ॥९६॥ किमिदमहमिति हि विमृशन्नुपयोगचरेण सर्वमज्ञायि । तदनु द्रुतं व्यरचयं तत्क्षपकश्रेणिसुव्यूहम् ॥९७ ॥ तत्र चरित्र नरेन्द्रो मध्ये तद्दक्षिणेऽस्य वरपुत्रः। तस्थौ दशसुमटयुतो यतिधर्माख्यो महारथिकः ॥९८॥ वामे तु सप्तदशभटयुतोऽतिरथिकश्च संयमो नामा । अन्तर्महावताख्याः प्रोस्फुरदुरुतेजसो रथिकाः ।।९९।। संतोषमहावीरो बाह्याभ्यंतरतपश्चरणयोधः। चरणसुभटसप्ततिरेकतोऽन्यतरेऽन्यसप्ततिका ॥१००। शीलांगाष्टादशसहस्रसंख्याः पदातयस्तदनु । शुभभावसचिववचनादारोहमहमप्रमत्ताश्वम्।।१०१।। निजचित्तवृत्तिसत्रे ध्यानाहतपरशुशोधितक्षेत्रे । स्वाध्यायभेरिवादनपूर्व प्राविशमथ रणाय ॥१०२।। पद्गः पदेन निषादेन निषादी च सादिना सादी । कुंताकुंति शराशरि युयुधाते ते बले सुचिरम् ।।१०३॥ दुष्टाभिसंधितुरगा डुढौकिरे सांपरायिकाः म्लेच्छा । त्वरितं न्यपीपतं तान् विशुद्धियोगत्रिसेल्लहतान् ॥१०॥ सजीकृतबोधगुणाच्छ्तधर्माद् ज्ञानसर्वलोहेन । मुक्तेन हृतो हृदये पपात मिथ्यात्वमिल्लपतिः।।१०५।। तदनु प्रधावितो मिश्रजातिको मिश्रदृष्टिसामंतः। तत्चविनिश्चयखङ्गेन खंडशोऽकार्षमहमपि तम् ॥१०६॥ सम्यग्दर्शननृपतिः शिरसि हतस्तत्वरुचिरुचिरयष्ट्या । D JAN U ilmanit AREILAAPA ॥१४८॥ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M a h Aradhana Kendra www.kobatirth.org s ari Gyanmandir नरवाहन वृत्तं श्रीदे चैत्य० श्रीधर्म संघाचारविधी ॥१४९॥ JaIAURWATIENTINIarism SHINHMIRIT Acharya Shri Khe संत्यक्तपुद्गलो मां शरणमशिश्रियत नाथतया ॥ १०७ ।। इति सपरिकर दर्शनमोहे वरमण्डलेशिनि विनष्टे । भयभीतमोहकटक पश्चात् किंचिदपचक्राम ॥ १०८ ॥ तीव्रविशुद्धाध्यबसायदंडपतिढौकितं समारोहम् । रथवरमपूर्वकरणं परबलपाणिप्रहागय ॥१०९|| बध्नाति तथा स्थिति स्थितिघातान् मयि विदधति हतरसांश्च रिपून् । गुणसंक्रमाद् गुणश्रेणिवर्णना प्रावृतत्तत्र ॥११॥ निजवीर्यापितमारोहमतुलमनिवृत्तिवादरसितेभम् । यावदरिहति कृते माममि चचले तावदहितबलम् ॥१११।। चतुरोऽप्रत्याख्यानान् प्रत्याख्यानान्वितान् महावीरान् । यावद्भेदं भेदं हन्मि विरतिनिशिततीरेमिः ॥११२।। मायायुद्धप्रवणाः खेचर्यस्तावदंतरा न्यपतन् । निद्रानिद्राप्रचलाप्रचलास्त्यानर्द्धिनामानः ॥११३।। ताः सर्वतोऽधयंत्यः सद्धोधोवतनास्त्रकृतविफलाः । चिक्षिपुरिमात्र तदनु त्रयोदश प्रकृतयो नाम्नः ॥ ११४ ।। तिर्यग्दुर्गतिगत्यानुपूर्विका जातयश्चतस्रश्च । साधारण उद्योतस्तथाऽऽतपः स्थावर सूक्ष्मः ॥११५।। स्त्रीनररूपी वेदोऽथ धावितः प्रतिदहन्ननलशस्त्रः । दमधाराधरधारासारैरफलव्य सोऽपि हतः ।। ११६ ।। मुंचअथाक्षिविक्षेपलिप्तविशिखान् मृगेक्षणारूपी । वेदो व्यपाद्यत विरागतार्द्धचंद्रांतरास्तासु ॥११७ ।। शूरोऽसीति सहाना रतिररतिः प्रहरमेति च सशोका । अहह कथं मारयतीतिजुगुप्सा प्रापतत् समया ॥ ११८ ॥ अध्यारोप्य तथा ताः साधुसमाचारचक्रके भ्रमिताः । मुखरुधिरमुद्गिरंत्यः प्रत्यस्थि यथा च शशाक् ॥११९।। रेतिष्ट तिष्ठ निष्ठुर ! निहत्य दयितादि मे क यासीति । जल्पनिजकमजाननागात संकल्पयोनिरथ ॥१२०॥ निहतः सुदुस्तपस्तपःशक्त्याऽसौ निष्ठुरं जराभीरुः। घूर्णितविलोचनो भुवि पपात पुष्पायुधो झगिति ॥१२१॥ भेत्तुमथ तपःशक्तिं नृवेद्य उत्पाव्य विषयवशपरशुम् । निपतन् मदनोऽन्तरभूत सुशीलमुद्गरहतः कणशः ॥१२२।। ज्वलन इव संज्वलनथ युधे प्रधावन्नुदायुधः क्रोधः। निधनमधत्ताशु मया क्षांतिडवा(गदा)खंडितकरोटिः ॥ १२ ॥ ansmAHARASHARADAINTINA THAPARNINigam HIST ॥१४९॥ AIIASuman NIMAL MAINTENARISHIP GAICTION For Private And Personal Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri MalaysiAradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri K r suri Gyanmandir नरवाहन श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधी ॥१०॥ SonIMIMIMSHAHIRAISE IMili IND t भानमपि भटमन्य यथेष्टमुट्टीकमानभूनमतिः। मादेवगदया पटु कुटकपालवत् कुट्टयामास । १२४ ॥ इति मे द्वेषगजेन्द्रो निरर्गलोऽतुच्छमत्सरोऽत्यर्थम् । मथ्नन् बलं यथेच्छं सुसाम्यतापरिधया पिपिणे ॥ १२५ ॥ अथ-मायाव्याघीं ग्रसितुमुत्थितां विकृतविकटकपटास्याम् । सरलत्वशल्यकीलिततालुजघनर्जुत चूर्याम् ॥ १२६ ॥ लोभस्तु खंडशः खण्डितोऽपि भूयो विबर्द्धयन्नुच्चैः । संतोषशंकुना कीलितो मया प्रेतवन्मंत्रः ॥१२७॥ एवं चरित्रमोहे त्रिकरणशुद्धित्रिशूलसंमिन्ने । मोहनरेंद्रोऽदौकिष्ट रागकेसरिसमारूडः ॥१२८॥ स्फुटमुत्कटविकटाटोपभीषणस्तप्तताम्रताम्राक्षः । पटु घटितललाटतटभ्रकुटिरसौ मामिति ततज॥१२९।। एोहि तिष्ठ तिष्ठात्र गछ गच्छाद्य मुंच मुश्चास्त्रम् । मा रे मुधा म्रियस्व म्रियस्व युध्यस्व युध्यस्व ॥ १३० ॥ श्रीचारित्रनरेन्द्रप्रहितमितः सूक्ष्मसंपरायाख्यम् । सरभमभंगुरमासाद्य सपदि तस्याम्यसार्षमहम् ॥१३१।। युद्ध्वा क्षणादहं सूक्ष्मसंपरायोग्रचरणचक्रेण । आरुष्य मोहमौलिं लघु लुलुबे कमलनालमिव ।।१३२।। मोहनृपं च विनष्टं दृष्ट्वाऽरिवलं विनायकं नश्यत् । तत्क्षतये क्षिप्रं क्षीणमोहसवमगममुन्प्लुत्य ।। १३३ ।। निद्राप्रचलाठ्ये अंधकारपद्यावथांतरे कृत्वा । सहसा प्रच्छन्नीभ्य तस्थिवत्तदारिवलमखिलम् ।। १३४॥ मुमुचे तदनु मयोल्काशतानि मुंचंति तडत्तडिति कुर्वन् । सुप्रणिधानवता शितकोटिसितध्यानशतकोटिः ॥१३५।। तेन च निर्दय तके झगिति युगपन्यदाहि तृणदाहम् । दर्शनचतुष्कविघ्नकपंचज्ञानावरणपंचत् ॥१३६।। भृयामश्चारिभटाः चारभटा अपि जगत्रयजयेऽथ। तत्तेजोऽपि निरीक्षितुमपि नालंभूष्णवोऽभवन् । १३७॥ रंधेषु केऽपि झंपामदुर्निकुंजेषु लिलियरे केऽपि । बुबडुरंबुनि केऽपि प्रविविशुरपरेग! गिरिदरिषु ॥१३८ तत्य जुरितरेऽस्त्राणि प्रामुंचनेकके तु वस्त्राणि । केपि मृतीभृयेवास्थुरवनिलुठिताः सुनिश्चेष्ट्यः ॥१३९।। तदनु च गगनेऽभ्रामं ध्यानांतरिकापटीमहं यावत् । तावन् केवललक्ष्म्या वत्रेऽवर्षन् सुमानि सुराः ॥१४०॥ इति वैरि- HIND alitieHIGIndi a HIREGAMANANDHARIHANTERAPRATHI LEARNAL ||१५०॥ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Man t radhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka l i Gyanmandir श्रीदे० animel नरवाहन चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ ॥१५॥ SHRADDA me विधातार्थ सयोगिनो व्यग्रता मम नृपासीत् । नष्टारिषु निःशेष गतेषु नुस्यादयोगित्वम् ।।१४१॥" श्रुत्वैति नृपो मुदितोऽस्तोदिति भगवनिमे हताः स्थाने । अहिताहितजगदहिता भवता जगदेकवीरेण ॥१४२॥ गचाऽथ नृपः स्वगृहे राज्ये विन्यस्य सुतममोघरथम् । ससमाधानो दीक्षां सुधर्मगुरुसंनिधौ जगृहे ॥१४३|| विहितानशनविधानः सुप्रणिधामः सदोज्झितनिदानः । प्राप्ततृतीयकल्पे मुक्ति गंता तृतीयभवे ॥१४४ ॥ एवं निशम्य नरवाहनभूमिपालवृत्तं सुवृत्तंजनसंमदकारि हारि । श्रीजैनचैत्यसुमुनिप्रणिधानयत्नं, भव्याः ! कुरुध्वमचलीकृतयोगजाताः ॥१४५॥ इति नरवाहनराजवृत्तान्तम् । इत्युक्तं प्रणिधानत्रिकमिति दशमं त्रिकं । अथ श्रीतुं त्वरमाणः शिष्यः प्राह-अत्र तावद्भगवद्भिः पइ त्रिकाणि व्याख्यातानि, शेषाणां तु का वार्तेत्याशंकासमुद्धरणाय गाथाचतुर्थपादेनाइ सेसतियत्यो उ पयडुत्ति ॥ १९॥ शेषत्रिकाणां प्रदक्षिणात्रिकप्रणामत्रिकदिक्त्रयनिरीक्षणविरतित्रिकपदभूमिप्रमार्जनत्रिकलक्षणानां अर्थः पुनः प्रकटःसुगम एवेति भाप्ये नोक्तः, विवृतौ तु यथाप्रस्ताव भावित एवेति समाप्तानि दशापि त्रिकाणि । एषां चैवं करणफलं लघुभा-।। प्योक्तं-कम्माण मोहणीयं जं बलियं तीसठाणगनिबद्धं । तक्खवणट्टा एवं तिगदसग होइ नायवं ॥१॥ इय दहतियसंजुत्तं वंदणयं जो जिणाण तिकालं । कुणइ नरो उवउत्तो सो पावइ सासयं ठाणं ॥२॥" इति व्याख्यातं दशत्रिकाख्यं प्रथमद्वारं, अत्र च प्राक साधुश्रावकादिबहुसमानेत्यायुक्तं, तत्र चैत्यादि वंदितुकामः श्रावकः कथित् महर्द्धिको भवेत् श्रीषेणनृपादिवत् , कश्चित् सामान्यविभवः श्रीपतिश्रेष्टिवत् , तत्र यदि राजादिस्तदा 'सञ्चाए इड्डीए सहाए दित्तीए सबवलेणं सबपुरिसेणं' इत्यादिवचनात् Callian R ॥१५॥ For Private And Personal Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mat श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ।।१५२।। Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kasuri Gyanmandir प्रभावनानिमित्तं महद्र्ष्या चैत्यादिषु याति, अथ सामान्यविभवस्तदौद्धत्यादिपरिहारेण लोकापहासं परिहरन् व्रजति, तत्र चैत्ये प्रविशन् पंचविधाभिगमं करोति, इत्येतत्संबंधायातं द्वितीयं 'अभिगमपणगं'ति द्वारं विवृण्वमाह - सच्चित्तदवमुज्झण १ मच्चित्तमणुज्झणं२ अणेगत्तं३ । इगसाडिउत्तरासंग ४ अंजली सिरसि जिणदिट्ठे५ ॥ २० ॥ सचिचद्रव्याणां खांगाश्रितानां कुमुमतांबूलादीनां उज्झनं परित्यागः १ अचित्तानां - कटककुंडलकेयूरहारादीनां द्रव्याणां इत्यत्रापि योज्यं अनुज्झनं-- अपरित्यागः २ मनऐकाय्यं रागद्वेषाभावेन मनःसमाधिरनन्योपयोगितेतियावत् ३ एकशाटक उत्तरासंग ः ४ एकः - एकसंख्यो न द्वयादयः शाटको देशांतरप्रसिद्धः पृथुलपटादिरूपो यत्र स उत्तरासंगः- उपरितनं वस्त्रं प्रावरणवस्त्रमित्यर्थः, उक्तं च आचाराङ्गचूर्णो- 'एगसाडो, यदुक्तं भवति - एगपावरणु' ति तेन कृत्वा उत्तरासंग-उत्तरीयकरणं' कल्पचूर्णावप्युक्तं- 'उत्तरिअं नाम पावरणं, क्वचित् उत्तरिअं नाम पंगुरणमितिपाठः, एवं च एगेण पंगुरणवत्थेण उत्तरासंगो किजइ इति भणियं होइ, 'अनेन च निवसनवस्त्रेणोत्तरासङ्गकरण निषेधमाह', निवसनवसनस्यांतरीयशब्दवाच्यत्वात्, तथा च कल्पनिशीथचूर्णी 'अंतरिजं नाम नियंसणं'ति, एकग्रहणं पुनरुत्तरासङ्गेऽनेकवस्त्रनिषेधार्थं, न तु सर्वथोपरितनप्रावरणवस्त्रस्य एवं च परिहितैकवस्त्रो द्वितीयेन वस्त्रेण उत्तरासंगं कुर्याद् इत्युक्तं भवति, यदुक्तं पंचाशकवृत्तौ - 'एकवस्त्रपरिधानः एकेन चोपरितनवस्त्रेण कृतोत्तरासंग' इति, मार्कण्डेयपुराणेऽप्युक्तं नैकवस्त्रेण भुञ्जीत न कुर्याद्देवतार्चनम्" इत्यादि, एतच्च पुरुषमाश्रित्योक्तं, स्त्री तु विशेषप्रावृताङ्गी विनयावनततनुलतेति, तथा चागमः - "विणओणयाए गायलट्ठीए "त्ति, एतावता शक्रस्तवादावप्यासां शिरस्यंजलिन्यासो न युज्यते, हृदादिप्रसक्तेः, यत्तु करयल जाव कट्टु एवं व्यासीत्युक्तं द्रौपदीप्रस्तावे तद् भक्त्यर्थं न्युंछादिवदं For Private And Personal अभिगमपंचकं ।।१५२।। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mal Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalu s uri Gyanmandir | पंचविधा भिगमः श्रीदे चैत्य श्रीधर्म०संघा चारविधौ ॥१५३॥ जलिमात्रभ्रमणसूचनपरं, न च पुरुषैः सर्वसाम्याथै, न च तथास्थितस्यैव सूत्रोचारख्यापनपरं, अन्यत्रापि नृपादिविज्ञापनादावप्यादौ तथा भणनादित्याद्युक्तप्राय, परिभाव्यमत्रागमाद्यविरोधि, वृद्धसंप्रदायात्तु संप्रति स्त्रीणां वस्त्रत्रयं विना देवार्चा कतुं न कल्पते, | तथा अन्यैरप्युक्तं-'न कंचुकं विना कार्या, देवार्चा स्त्रीजनेन च' इति ४, अंजलिबंधश्च कार्यः शिरसि-मस्तके जिने दृष्टे-जिनविंबदर्शने सति इति गाथार्थः ॥ १७॥ __ इय पंचविहाभिगमो अहवा मुञ्चंति रायचिह्वाइं । खग्गं छत्तोवाणह मउहं चमरे अ पंचमए ॥२१॥ इति-पूर्वोक्तप्रकारेण पंचप्रकारोऽभिगमो भवति, उक्तं च श्रीपंचमाणे-"पंचविहेण अमिगमेणं अभिगच्छद, तंजहा-सच्चिताणं दवाणं विउसरणयाए १ अचित्ताणं दब्याणं अविउसरणयाए २ एगसाडएणं उत्तरासङ्गकरणेणं ३ चखुप्फासे अंजलि| पग्गहेण ४ मणसो एगत्तीभावकरणेण ५" क्वचित्तु 'अचित्ताणं दवाणं विउसरणयाए'त्ति पाठः, तत्राचित्तानां-छत्रादीनां | व्यवसरणेन, व्युत्सर्जनेन इत्यर्थः, अन्यत्राप्युक्तम्-'पुष्फतंबोलमाईणि, सचित्ताणि विवजए। छत्तवाहणमाईणि, अचित्ताणि तहेव य ॥१॥"त्ति । एतदर्थप्रतिपादनार्थमाह-'अहवे'त्यादि, यद्वा यो महर्द्धिको-राजादिश्चैत्यं प्रविशति स पंचविधाभिगमसमये राजचिहान्यपि मुंचतीत्यत आह-अहवेत्यादि, अथवा विकल्पांतरसूचको, न केवलं सचित्तान्येव द्रव्याणि मुच्यते, किं तर्हि ?, अचित्तान्यपि द्रव्याणि मुच्यते-दीक्रियते, कानि?-राजचिह्नानि-राजलक्षणानि, तान्येबाह-खड्ग:-कृपाणः १ छत्रे-आतपत्रः २ उपानहौ-पादुके ३ मुकुटं-किरीटः ४ चामरा-बालव्यजनानि पंचमकाः ५ इति, तथा च सिद्धांत:--अवहट्टु रायककुहाई पंच वररायकहभूयाई । खग्गं छत्तोवाणह मउडं तह चामराओ य ॥१॥त्ति । श्रीषेणनृपतिश्रीपतिश्रेष्टिकथा ॥१५३॥ For Private And Personal Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavih Aradhana Kendra श्रीदे चैत्य० श्री धर्म० संवा चारविधौ ॥१५४॥ • www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashauri Gyanmandir चैवम् - सकलरसालंकारे भरतक्षेत्रेऽस्ति सुकविशास्त्र इव । सद्वृत्तं सुयतिगणं बह्नर्थयुतं वसंतपुरम् ॥ १ ॥ तत्राभवदवनिधवः श्रीषेणः स्फुरदुरुमतापरविः । जिनराजवंदनाभिगमकरणविधिसेवनप्रगुणः ||२|| तस्याजनि जिनवचनैककौशलः क्षितिपतेः परं मित्रम् | प्रवरश्रियां निवासः श्रीद इव श्रीपतिः श्रेष्ठी || ३ || विहितप्रभातकृत्यः श्रीषेणनरेश्वरोऽन्यदाऽऽस्थाने । उद्भटभटवादभटौघसंकटे यावदास्ते स्म ||४|| तावद् धूलिधूसरचरणेन स्वेदसाईसिचयेन । आगत्यैकेन द्रुतमिति विज्ञप्तश्वरनरेण ||५|| देव ! त्रिविक्रम इवोरुविक्रमो विक्रमध्वजो राजा । रणरसिकमनास्त्वां प्रति संप्रत्यत्रापतन्नस्ति ।। ६ ।। इति चरवचनं श्रुत्वा ललाटतटघटितभृकुटिरवनिपतिः । किंकरगणेन सहसा रणभेरीं ताडयामास ||७|| तच्छब्दा कर्णनझगितिमिलित चतुरङ्गसैन्यपरिक|रितः । श्रीपतिसहितः क्षितिपतिरभिषेणयति स्म तं शीघ्रम् ||८|| अविलंवितप्रयाणैः कतिमिरपि प्राप यावदटवीं सः । तावदखण्डितधारासाराधाराधरा ववृषुः || ९ || अवहन् सरितो वाहा वाहा इव वेगिनो घननृपस्य । ग्रंथा इव निष्टीका अभवंच सुदुर्गमा मार्गाः ॥ १०॥ तदनुच नृपः स्वशिबिरावासान्निरुपद्रवे कचिदेशे । विक्रमनृपोऽपि कुत्राप्यरण्यशैले स्थितिमधत्त ॥ ११ ॥ अवहत विधिललितवशाच्छ्रीषेण नृपस्य सकलसैन्येऽपि । अत्यंतमशिवमभवत् ततो श्रियंतेऽश्वगजवृषभाः | १२|| रोरुदति पामरनरा विलापमातन्वते वणिग्वर्गाः । विषसाद मन्त्रिमंडलमजनि महीजानिरपि दुःस्थः || १३|| नृपवेश्मन्यथ हाहारखविरसप्रलपितध्वनिं श्रुत्वा । द्रागागुर्लघुमचित्र श्री१तिसामंतमुख्य जनाः ॥ १४॥ मूर्च्छामीलितनयनं वीक्ष्य नृपं विगतचेतनं श्रेष्ठी । स्वगृहादानीय बबंध नृपभुजे रत्नकेयूरम् ||१५|| तन्माहात्म्यादुमिलिताचियुगलः सचेतनः क्षितिपः। श्रीपतिपृष्टः प्रोचे निजकं वैधुर्यवृत्तांतम् ॥ १६ ॥ श्रेष्टिवर ! वेत्रिसुभटास्खलितः कश्चिन्नरः समेत्याये। उत्कटचपेटया मां कपोलफल के प्रणिजघान ||१७|| अपि खड्गव्यग्रकरस्ततोऽभवं मूच्छितो For Private And Personal श्रीपति श्रीपेणवृत्तम् ।। १५४ ।। Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir श्रीदे० चैत्य० श्री. धर्म० संघा चारविधौ ।। १५५।। thana Kendra www.kobatirth.org विगतचित्तः । इयतः स्मरामि परतः सर्वं भवतां विदितमेव || १८ || किंतु मयीवैतस्मिन् कटकजनेऽप्युपकुरुष्व सत्करुण! । श्रेष्ठीति नृपतिभणितोऽस्मरदमरं पूर्वसांगतिकम् ||१९|| सोऽप्यागत्य द्रुतमत्र नृपबले सकलमशिवमवजहे । प्रकटीकृतनिजरूपः प्रणनाम च श्रेष्ठिनं मुदितः ||२०|| अथ तुष्टो मंत्रिजनो विसिष्मये राजकं जनो हृष्टः । सर्वैरपि सैन्यजनैः प्रशंसितः श्रीपतिः स बहु ||२१|| विस्मयरसपरिपूरितहृदयो राजा जगाद हे देव ! । श्रेष्ठिवरिष्ठेन समं भवतामिह को नु संबंध ः १ || २२|| स प्राह नरेन्द्र ! पुरा हेमपुरे समभवद् विजयनामा । वामात्मा सर्वेपां मलिम्लुचः सोऽन्यदा स्वपुरात् ||२३|| आगत्य भवनगरे रजनौ धननामविभविनो भवनात् । आदाय बहु द्रविणं त्वरितपदं निर्गतो यावत् ||२४|| तावदवितर्कितागतभवदीयारक्षकैरसौ ददृशे । नीत्वा प्रलपनलमथ तवाज्ञया वध्यवसुधायाम् ||२५|| क्षिप्तो विडम्ब्य बहुधा कृतांतरसनासमानशूलायाम् । अत्रांतरे समुज्ज्वलवेषेण विराजमानतनुः | ||२६|| अल्पमदर्घाभरणो गृहीतपूजोपचारसंभारः । मक्तिभरभ्राजितपुत्रमित्रकलत्रपरिवारः ॥ २७ ॥ पितृवनसमीपदेशे बहुवापीकूपकुसुमफलरम्ये । स्वारामे चैत्यगृहे समागमच्छ्रीपति श्रेष्ठी ||२८|| त्यक्त्वा सचित्तवस्तून्यमुक्तमुद्राद्यचित्तवस्तुगणः । वैकक्ष्यमेकशाटकमाधाय कृतांजलिमौलौ ।।२९ । एकाग्रमनाः सम्यक् पंचविधाभिगममिति विनिर्माय । प्रमणामो जिनेभ्यश्चैत्यगृहांतविवेश मुदा ||३०|| निर्माल्यादिकमुत्तार्य वर्य कुसुमैजिनेन्द्र मर्चित्वा । परिपूर्णचैत्यवंदन विधिना देवांश्च वंदित्वा ॥ ३१॥ यावभिरगाचैत्यात् कंठस्थितजीवितेन विजयेन । तावदयाचि श्रेष्ठी गाढं तृषितेन जलपानम् ||३२|| तदनु स चौरः क्रूरोऽप्यगण्यकारुण्यनीरनीरधिना । एतेन महामनसा द्रुतमुदकं पाययामासे || ३३ || भणितच भद्र ! गुखदं संप्रति परलोकसंचलं लाहि । मधुमांसरजनिभोजनमदिरापानाद्यधं निंद ॥ ३४ ॥ जीववधानृतभाषणपरधनहरणान्यदारसुरतानि । वचनमनस्तनुविहितं स्वदुष्कृतं विजय ! Acharya Shri Kailash Gyanmandir For Private And Personal श्रीपति श्रीपेणवृत्तम् ।। १५५ ।। Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mah Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka u ri Gyanmandir श्रीपतिश्रीषेणवृत्तम् श्रीदे चैत्य श्री धर्म संघाचारविधौ ॥१५६॥ गईस्त्र ॥३५॥ सर्वः पूर्वकृतानां स्वकर्मणां फलविशेषमिह लभते । इतरो निमित्तमात्र सर्वत्र भवेत्ततो भद्र! ॥ ३६ ॥ मा कुरु खेदं मा गच्छ दीनता मा ब्रज क्वचित् कोपम् । जिनसिद्धसाधुधर्मान् कुरु शरणं त्रिभुवनशरण्यान् ॥३७ ।। क्षुद्रोपद्रवविद्वकरणं शरणं समस्तसिद्धीनाम् । स्मर पंचनमस्कारं सर्वापसारविसारम् । ॥३८॥ इत्यमुनाऽसौ विजयः समाधिमासादितः सरन् मनसि । |पंचपरमेष्ठिमंत्रं मृत्वा प्रथमा दिवं प्राप ।। ३९ ।। यत:-"हिंसावाननृतप्रियः परधनाहर्ता परस्त्रीरतः, किंचान्येष्वपि | लोकगर्हिनमहापापेषु गाढोद्यतः। मंत्रेशं स यदि स्मरेदविरतं प्राणात्यये सर्वथा, दुष्कर्मार्जितदुर्गदुर्गतिरपि| स्वर्गीभवेन् मानवः ॥४०॥ उत्पादानंतरविलसदवधिविदितात्मपूर्वभवचरितः । बहुपरिकरपरिकरितः स्वर्गादवतीय भूपीठम् |॥४१॥ पूर्व भवकथनपूर्व महात्मनोऽमुष्य पदयुगं नत्वा । आर्पयदंगदमेतद्विजयसुरः स त्वहं भूपः॥४२॥ किंचाभिगमादिकविधियुतजिनवंदनकमुख्यमुकृतवशात् । भविताऽयमग्रजन्मनि सुदृढप्रेमा परिवृढो मे ॥४३।। इत्येनमेनसां ध्वंसकारकं नायकं कृतोपकृतिम् । बहुशः संवेशवशादिह चैत्य वंदे स्तुवे सेवे ॥४४॥ पूर्वभवोद्भववरात् कटके भवतोऽशिवं मया विदधे । हत्वा कपोलपालौ चपेटयाऽचेतनस्त्वं च ॥ ४५ ।। स्मरणादेतस्य पुनर्भवतः सैन्यं भवान् कृतः सुस्थः । इत्युक्त्वा विजयसुरः सहसा यावत्तिरोऽधत्त ॥४६॥ विज्ञप्तं गुप्त नरैस्तावन्नृपतेः पुरो यथा नाथ! | अद्य यदि देवपादाः ससैन्यमायाति परसैन्ये ॥४७॥ भवति भवतस्तदानी लक्ष्मीरखिलापि शात्रवी नूनम् । यद्विक्रमध्वजोऽयं नरपतिरप्रतिमपृतनोऽपि ॥४८॥ रे रे हताश! नरनायकाधम ! स्वपुरमद्य गच्छ त्वं । स्थगयित्वा कौँ नूनमूनपुण्योऽन्यथा नासि ॥४९।। यदिह दिनद्वयमध्ये श्रीपेणः क्षितिपतिः समागंता । आदास्यते स राज्यं प्राज्यं सप्तांगमङ्ग! तव ।। ५०॥ साटोपकोपकलितः कदर्थयिष्यति भृशं भवंतं च । विशतः पातालेपि न भविता CARLIAMERIDABAITHANIDHINILIAMARISHABHAIRITE Im himilMIRAL LINE ॥१५६॥ For Private And Personal Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mah श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥१५७॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भवतः पुनर्मोक्षः ।। ५१ ।। आकाशवाचमुच्चैः श्रुत्वेति स्वपुरगमनशरणोऽसौ । अनमिलपमपि विहितोऽस्ति तव रिपुमंत्र सामंतैः | ॥५२॥ श्रुत्वैवं श्रीषेणः प्रमोदमदमेदुरो मनसि दध्यौ । श्रीपतिसुचरितरंजितसुपर्वविलसितमिदमवश्यम् ||५३|| सरभसताडितजय| मेरिशब्दसंनिहितसकलबल कलितः । अथ निकटमेत्यसुभटैरभाणयन्नृपतिरिति शत्रुम् ||५४ || भो भो नरेन्द्र । पूर्वं मदोर्जितं गर्जितं | प्रहरणाय । अवसर्पतस्तु सांप्रतमहो तव श्मश्रुधारित्वम् ||५५|| द्विरसन इव निजमंदिरदरीं प्रवेक्ष्यति कथं भवान् भूप ! । श्रीश्रीषेणनरेन्द्रानुधाविनि प्रबल मंत्रबले ।। ५६ ।। रुदतो हसतोऽपि तव प्राघूर्णक एष तावदायातः । हसतैव ततो भवता समयोचितमस्य कर्त्तव्यम् ||२७|| भग्नोऽपि श्वाऽपि करोति दशननिष्कर्षणं ततोऽपि त्वम् । सहसा नश्वन्नूनं न्यूनत्वं स्वस्य दर्शयसि ॥ ५८ ॥ श्रुत्वेति विक्रमनृपः कोपवशादवगणय्य कारणिकान् । श्रीषेणमभ्यषेण यदतुलोत्साहः स्वचलकलितः ।। ५९ ।। तत उभयोरपि बलयोरग्रानीकं समारभत योद्धुम् । हरिकरिमुख्यासुमतां श्रीषेणो वीक्ष्य संहारम् || ६० || गुरुकरुणारसरंजितहृदयः सदयं जगाद रिपुमेवम् । ननु त किमेभिः क्षुद्रजंतुभिर्बहुरपि निहतैः ॥ ६१ ॥ उर्ध्वभव त्वमाशु क्षणं पुरो मम कृपाणमादाय । येन झटित्यपि भवतो हरामि दोर्दण्डकंडूतिम् || ६२|| एवं निशम्य कोपारुणेक्षणो विक्रमः कृपाणकरः । भ्रुवि समरस्य नियुद्धश्रद्धालुखातरद्यानात् ||६३|| उत्तीर्य सपदि यानात् परिमंडितमंडलाग्रहस्ताग्रः। रणभुत्र मलमलमकृत श्रीषेणोऽपि क्षमानाथः ॥ ६४ ॥ तौ जात्यताम्रचूडाविव नृपचूडामणी नियुद्धेन । विस्मयमुपजनयंतौ युयुधाते सुचिरमन्योऽन्यम् ||३५|| अथ दक्षतया श्रीषेणनरपतिर्विक्रमध्वजनरेन्द्रम् | लघुहस्ततया सुदृढं बबंध निजकोत्तरीयेण ॥ ६६ ॥ स्वाज्ञाकरणप्रवणं कृत्वा मुक्त्वा च विक्रममहीशम् । श्रीषेणनृपः क्रमशो महाविभूत्या स्वपुरमागात् ||६७|| अन्येद्युः प्रातः कृतमञ्जनकस्फारसारशृंगारः । उद्धुरकंधरसिंधुरमधिरूढः प्रौढमरपुण्यः ॥ ६८॥ उदंड For Private And Personal श्रीपतिश्रीपेणवृत्तम् ।। १५७ ।। Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shi l an Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kali f auri Gyarmandir श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥१५॥ पुंडरीकेण लक्ष्यमाणः सुदरतोऽपि जनैः। सुरसिंधुसलिलनिर्मलचलचामरवीज्यमानतनुः ॥६५॥ उन्नमितदक्षिणकरैर्मगधगणैः श्रीपतिश्रीपठ्यमानरिपुविजयः। परितः प्रसृमरहरिकरिस्थभटसंकटितनृपमार्गः ॥ ७० !! मधुमधुरस्वरसुंदरगायनजनगीयमानकीर्तिभरः। [षेणवृत्तम् श्रीषेणनराधीशो युगादिदेवस्य चैत्यमगात् ॥ ७१ ॥ चतुर्भिः कलापकं ।। वीक्ष्य जिनबिंबमुन्मुच्य चामरच्छनखड्गमुकुटगजान् । श्रद्धालुसारपरिकरसहितो विहितोत्तरासंगः ॥७२।। विधिना जिनसदनांतः प्रविश्य संपूज्य भगवतः प्रतिमाम् । एकाग्रमना नृपतिदेवानमिवंदते यावत् ।।७३|| श्रावकवेषास्तावत् केपि नरास्तत्र कथमपि समेत्य । अकृपाः कृपाणिकाया घातं राजानममि मुमुचुः 1७४॥ विधिशुद्धचैत्यवंदनविधानतत्परनरेन्द्रवासनया। रंजितमनसा शासनदेव्या ते स्तंभिताः सर्वे ॥७५॥ अथ किमिदं किमिदमिति प्रभणंस्तत्रागमजनः सर्वः। नृपतिरपि वलद्ग्रीवस्तथास्थितांस्तानिरीक्षिष्ट ॥७६।। अभयप्रदानपूर्व नृपपृष्टस्तेऽभणन् यथा देव !। भवतो घाताय वयं प्रहिता विक्रमनरेंद्रेण ॥७७॥ धिक् कथमदयं त्वां नृपतिलक! निहंतुं समुद्यताः पापाः। इति सन्मनमः सर्वे ते द्रुतमुत्तंभिता देव्या |७८॥ अथ नृपतिरप्रदर्शितबदनविकारः स्वधाममागत्य । तानानाय्य यथोचितकृतसत्कारान् विसृज्य ततः ॥७२॥ दध्यावभिमरतस्करविषधरजलमलादिरोधाद्यैः। बह्वन्तं कैरतं न नीयते जीवितं यावत् ॥८॥ तावद् विमुक्तसंगैरङ्गीकृतचरणगुणगणैभव्यैः। सज्ज्ञानाधिगमपरस्तुर्यपुमर्थाय यतितव्यम् ।।८।। इति चिंतयतो नृपतेः मत्वरमुद्यानपालका एत्य । श्रीभुवनभानुसुगुरोरागमनमचीकथन्नुचैः ।।८२॥ श्रुत्वेति नृपस्तेभ्यो दचा दानं सुतादिपरिकलितः । गत्वा नत्वा च गुरून् अभृणोदिति देशनां सम्यक् ।।८३॥ “यावन जरा न रुजा न विघ्नसंघो न चेन्द्रिये हानिः । तावदलममलमतिना स्वहितकृतावुद्यमः कार्यः।।८४॥"इत्याकर्ण्य सकर्णः क्षितिपः पुत्रं सुलोचनं राज्ये । कृत्वा जगृहे दी पार्श्वे श्रीभुवनभानुगुरोः॥८५|| श्रीषेण-D॥१५८।। For Private And Personal Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Man Aradhana Kendra मुनिः सुचिरं परिपालितनिरतिचारचारित्रः । निष्ठापिताष्टकम्र्मा स्थानकमपुनर्भवं प्राप ।। ८६ ।। विहितयथाविधगृहमेधिधर्मकः श्रीपतिः पुनः श्रेष्ठी । अभ्यगमत् प्रथमदिवं क्रमागमिष्यति ततः स शिवम् ||८७|| क्षुद्रोपद्रव विद्रवेहित फलान्याकर्ण्य भूमीभृतः, श्रीषेणस्य जिनानिति प्रणमतः स श्रीपतिश्रेष्ठिनः । द्विः पंचाभिगमादिशुद्ध विधिना श्री अर्हतां वंदने, सर्वत्राभ्युदयप्रदायिनि जना ! यत्नं कुरुध्वं सदा ||८८ ।। इति अभिगमपंचके श्रीषेणनरेन्द्रश्रीपतिश्रेष्ठिकथा || सिद्धान्तोदधितोऽधिगम्य मुगुरोः श्रुत्वा सदाम्नायतोऽविच्छिन्नागतसत्क्रियाक्रमविधेः सम्यक् समासाद्य च। संघाचारविधौ हि चैत्यनमनाख्याद्याधिकारेऽर्हतां, चैत्यादिप्रविवेशवर्णनपरः प्रस्ताव आद्यः स्मृतः ||१|| इति श्रीदेवेन्द्रसूरिशिष्य महोपाध्यायश्रीधर्म कीर्तिसमुत्कीर्तिते श्रीसङ्घाचारनानि चैत्यवंदनादिविवरणे चैत्यवंदनाभिधानप्रथमाधिकारे चैत्यप्रवेशादिविधिवर्णनो नाम प्रथमः प्रस्तावः समर्थितः ॥ श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥१५९॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashauri Gyanmandir ॐ नमः प्राववनिकेभ्यः । प्ररूपितमभिगमपंचकमिति द्वितीयं द्वारं तत्प्ररूपणेन च प्रदर्शितो जिनभुवनादिप्रवेशविधिः, संप्रति चैत्यवंदनाकरण विधिरुच्यते, तत्र यैर्यदिकसंस्थैचैत्यवंदना विधेया तत्प्रतिपादनाय तृतीयं 'तिदिसी' ति द्वारं गाथापूर्वार्द्धनाहवंदति जिणे दाहिणदिसिट्टिया पुरिस वामदिसि नारी । चंदंते- स्तुवंति प्रणमंति च जिनान्- जिनप्रतिमाः दक्षिणदिशि- मूलबिंबदक्षिणदिग्भागस्थिताः पुरुषाः, पुरुषप्रधानत्वात् धर्मस्य, तथा वामदिशि- मूल बिंबवामदिग्भागे स्थिता नाय, वंदते जिनानित्यत्रापि योज्यमिति नैसर्गिको विधिः । विधिप्रधानमेव च For Private And Personal चैत्यवन्द नदिशा ।। १५९ ।। Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri a n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka r suri Gyanmandir श्रीदे. चैत्यवन्दनदिशा man धर्म० संघाचारविधौ ॥१६॥ विधीयमानं सर्वमपि चैत्यवंदनवंदनकादिधर्मानुष्ठानं महाफलं भवेद् , अन्यथा सातिचारतया श्रीदत्ताया इव कदाचिदनर्थमपि | जनयेत् , आह च-"धर्मानुष्ठानवैतथ्यात् , प्रत्यपायो महान् भवेत् । रौद्रदुःखौघजनको, दुष्प्रयुक्तादिवौषधा ॥१॥"दिति, अत | एवाविधिनाऽस्य विधाने सातिचारत्वात् प्रायश्चित्तमप्युक्तमागमे, तथा च महानिशीथसप्तमाध्ययनसूत्रं 'अविहीए चेइयाई वंदिजा तस्स णं पायच्छित्तं उवइसिज, जओ अविहीए चेइयाई वंदमाणो अन्नेसिं असद्धं जणेइ इइ काऊणं" इदमेव चावतथ्येन | विशुद्धधर्मानुष्ठानकरणं श्रद्धालोर्लक्षणं, तथा-विहिसारं चित्र सेवइ (सिद्धान्ता) सत्तिमं अणुट्ठाणं । दवाइदोसनिहओवि पक्खवायं वहइ तंमि ॥१शाति, ललितविस्तरायामप्युक्तं-'एवं हि कुर्वता आराधितं वचनं, बहुमतो लोकनाथः, परित्यक्ता लोकहेरिः, | अंगीकृता लोकोत्तरप्रवृत्तिः, समासादिता धर्मचारितेति, अतोऽन्यथा विपर्ययः, आलोचनीयमिदं सूक्ष्मधियामेव, शास्त्रोक्तमुपदेशमुल्लंध्य पुरुषमात्रप्रवृत्तोऽपरो न हितायुपायः स्यात्' ननु तर्हि चैत्यवंदनादिविधरपवादो गतानुगतिकरूपः स्यात् , नैवं, यत उक्तं 'अपवादोऽपि सूत्रानाबाधया गुरुलाघवालोचनपरोऽधिकदोषनिवृत्या शुभः शुभानुबंधी महासवासेवित उत्सर्गभेद एव । | उत्सर्गस्थानापन्नत्वेनोत्सर्गफलहेतुत्वात् , यदागमः-उन्नयमविक्ख निन्नस्स पसिद्धी उन्नयस्स निन्न । इय अनुनाविक्खा | उस्सग्गववाय दो तुल्ला ॥१॥ अत एवोक्तं-"अविहिकया वरमकयं असूयवयणं भगति समयन्नू । पायच्छित्तं अकए गुरुयं वितहे कए लहुयं ॥१॥" न पुनः सूत्र एव बाधया, गुरुलाघवचिन्ताऽभावेन, तद्धि परमगुरुलाघवकारिक्षुद्रसञ्चाविजृमितं संसारश्रोतसि कुशकाशावलंबनप्रायमहितमिति भाव्यं सर्वथा, निरूपणीयं प्रवचनगाभीयं,यतितव्यं उत्तमनिदर्शनेविति श्रेयोमार्गः" ।। श्रीदत्ता कथा पुनरेवं ॥१६॥ For Private And Personal Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kebatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir ainiti श्रीदत्ता कथा श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधौ ॥१६॥ अत्थिह पुत्वविदेहे विजए रमणिजए विअडूनगे। सिवमंदिरं पुरवरं कित्तिधरो तत्थ खयरनिको ।। १॥ तस्स सुओ दमिआरी जाओ देवीइ अनिलवेगाए । गयवसहकलसतिसुमिणसूइयपडिवासुदेवत्तो॥२॥ कइआ सुयस्स रजं दाऊणं गंतु अन्नविजयंमि । सिरिसंतिजिणसमीवे कित्तिधरो गिण्हई दिक्खं ॥३॥ अह नमियखयरनरवरचक्को चक्काणुगो पसाहेइ । दमिआरी पडिविण्हू तं विजयडं सवेयर्ड ॥ ४ ॥ दमिआरिनिवस्स इओ मयरादेवीइ अन्नया जाया । नामेणं कणगसिरी सकंतिणिजिणिअकणगसिरी ।।५।। कइआ नहसा सहसा नारयमितं निएवि दमिआरी । अन्भुडिय सकारिय तमासणाईहिं पुच्छेइ ॥६॥ मुणि! किं दिट्ठमपुच्वं अच्छरिअं कत्थवित्ति भणइ मुणी । निव! सग्गेऽवि असंभवि दिलै अञ्जव तं इकं ॥७॥ रना कहिति वुत्ते पुण भणइ मुणी सुभापुरीइ इहं । संति निवा अपराइअअणंतविरिआ महाविरिआ |८|| ताणऽग्गे किजंतं नर्से बब्बरिचिलाइचेडीहिं । मणनयणाणंदयरं दिटुं से दिसिअणयणफलं ।।९।। जह सोहम्मे सक्को तह विजयडुमि तमिह भूसको। अच्छरिअभूयवत्थूण भायणं होइ नहु अन्नो ॥१०॥ अविय-तेणं नट्टेण विणा किं निव! रजाईणावि अवरेण । इअ भणिउं उप्पइउंनहसा सहसा गओ स रिसी ॥११॥ अह दमिआरी दूयं आइसई सुभपुरीइ सो गंतुं । पभणइ ते अपराइअअणंतविरिआओ बलविण्हू ।।१२।। भो इह जमन्भुअ वत्थु होइ दमिश्रारिणो तयं नूणं । पेसह चेडीरयणाणिमाणि ता रायरायस्स ॥१३॥ "सहसा विधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् । वृणते हि विमृश्यकारिणं, गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः॥१४॥"इअ आलोइअ अचिरा चेडीओ पेसिमोत्ति ते हुत्तो । गंतुं दूओ साहइ पडिहरिणो सिद्धमिव कजं ॥१५|| अह निसि ते बलविण्हू भणिआ पन्नत्तिपमुहविजाहिं। पुत्वभवसाहियामो सिद्धासयमेव मे इण्हि ॥१६॥ तो ते जाव सहरिसा गोसे पूयंति ताओ विजाओ। तो दमियारिस्स पुणो पत्तो BINIRMIRENImaginatil ॥१६१॥ RAILERUPEERIEN For Private And Personal Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobatirth.org .ILUTIL Acharya Shri Kailasanasi Gyanmandit श्रीदत्ता कथा श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१६२॥ MPIRIRAMINORITIHAman | ओ भणइ एवं ॥१७॥ भो निल्लज्जा नजवि पेसह चेडीउ ताउ नियपहुणो। बलिणा समं विरोहं कुणमाणा मा विणस्सेह ॥१८॥ यतः-"अनुचितकरिंभः प्रकृतिविरोधो बलीयसा स्पर्धा । प्रभुवचनेऽपि विमर्शो मृत्योर्द्वाराणि चत्वारि | ॥ १९ ॥" सामेण तेहिं भणियं नणु दमिआरिस्स सव्वमवि देयं । जइ चेडीहि विभूसइ ता गच्छज्जेब गहिय इमा ॥ २० ॥ इय भणिय दाउ यस्स मंदिरं तो दुवेविए बंधू । सामरिसा दिहवो सो दमिआरित्ति मंतन्ति ॥ २१॥ कुलमंतिसु रजभरं आरोविअ काउ चेडिरूवं तो । सह दएण गया ते दुन्निवि दमियारिनिवपासे ॥ २२ ॥ संभासिअ तेणुचिअं मायाचेडीउ ताउ भणियाओ । कणयसिरिं मह धूयं वरनट्टेणं रमावेह ॥२३॥ आमंति भणिय ताओ गंतुं तीए पुणो अभिनयंति। वरनटुं तस्सग्गे अणंतविरियं च गायंती ॥२४॥ कणगसिरी भणइ हला गिजइ पुरिसुत्तमो इमो को णु ? । कहइ परा इय चेडी मयच्छि ! इह अत्थि सुभनयरी ।। २५ ॥ तत्थासि थिमियसागररण्णो अपराजिओत्ति जिसुओ । गय १ वसह २ ससी ३ सागर ४ चउसुमिणयसूइयबलत्तो ॥२६॥ सिरि १ हरि २ रवि ३ घड ४ रयणो ५ जलहि ६ सिहि ७ सुमिणसूइयह रित्तो । बीओ सुओ अवीओ गुणेहि सेऽणंतविरिउत्ति ॥२७॥ नियरूवविजियमारो कयरिउमारो थिरतगिरिसारो । लच्छी इव सागरो जह भुवि अन्नो तारिसो नत्थि ॥२८॥ इअ सोउ पुलइआ सा साहइ नारी पुरीइ सा धन्ना । सो जीइ पहु अहमवि तं पासिस्सं नणु कयावि ।।२९॥ आह बलो तो विजाइ तं इहाणेमि सुयणु ! सा भणई । लहु पसिअ कुणसु एवं तो ते पयडंति निअरूवं ।। ३०॥ सा दट्ठऽणंतविरिअं जंपइ निअसेविगाइ आइसह । भणइ हरी ता उट्ठह सुभगे ! जामो सुभं नयरिं ॥३१॥ भणइ कुमरीवि पभवह पाणाण व किंतु मह पिआ काही । विजावलिओऽणत्थं तुम्हं न निएमि निरवायं ॥३२॥ मा बीहि भीरु कयरो सो तुज्झ पिआ इहऽम्ह Himmation FilmARATHI HARIHARANELIMINSAHARASHEKHARITRAINI NETIMIRE- R ITINATITISmaratimashtamil aHI RAHINITAL ॥१६२॥ For Private And Personal Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shriya n www.kobatirth.org श्रीदे चैत्यश्री कथा धर्म० संघा चारविधौ ॥१६॥ HIMAm SHISHTRamailmmastainment Test Re A m edINA TERIAGRAMunanath ITARIAHILAINTSHATRAPARILLEDPARIHIRATRA Aradhana Kendra Acharya Shri Kait i Gyarmandir पुरउत्ति । भणिआ कुमरी हरिणा रइअं मुविमाणमारुहइ ।। ३३ ॥ अह ठाउ हरी गयणे भणेइ दमिआरिपमुहनिवनिवहा! । भोश्रीदत्तामुणहऽणंतविरिओ भायजुओ नेइ कणयसिरिं ॥३४॥ मा भणिहिह निवधूयं चोरित्त गयत्ति होउ सत्थधरा। लहु एह मोयह इमं नियह ससत्तिं उवेहह मा॥३५॥ इय घोसिय ते चलिया सपुरि पइ तं च सोउ दमियारी। आरागहिउव्व गओ कोवजुओ सयलबलकलिओ ॥३६॥ चलिओ सिं पिट्ठीए कोऽयं महिगोयरोत्ति भणमाणो। अह तेसि तया जायाणि सीरधणुहाई रयणाणि ॥ ३७ ॥ तो विजाइ रएउं दुगुणवलं ते ठिया चलियभिमुहा। भग्गंतेहिं परबलं दमियारी जुज्झइ सयं तो॥३८॥ सरियागए उ चक्के भणइ हरे रे मरिस्ससि इहं तो। अञ्जवि मह धूयं मुत्तु जाहि दुब्बुद्धि ! मुकोसि ॥३९।। पाणेऽवि तुह सुयंपि य गहिय गमिस्संति स भणिओ हरिणा । मुंचइ चकं तत्तुंचआहओ मुच्छिओ विण्हू ॥४०॥ बलबीरिओ पुणुट्ठिय तं चकं पासगा गहिय भणइ । दमियारि ! जाहि अजवि कणयसिरिपियत्ति मुक्कोसि ॥४१॥ दमियारी भणइ अरे ववहरियधणेण धणवमवमण्णे । लहु मुंच इमं चकं सपोरिसं वावि मा मरसु ॥४२॥ अह तचकेण हरी पडिविण्हुसिरं लुणेइ कुद्धो तो । उप्पणो विण्हू इय भणिया कुसुमे किरंति सुरा ।। ४३ ।। तो नमिरनिवइनिवहा सपुरिं पद गच्छिरा बलहरी ते। कणयसिरिस्स समीवे पत्ता खयरेहिं इय वुत्ता ॥४४॥ मा पहु आसायणमिह करेह जिणचेइआणि संति जओ। ताणि उ जहाविहीए वंदिय गच्छंतु पहुपाया ॥ ४५ ॥ तो हरिसविअसियमुहा सपरिकरा ते नहाउ ओवरि । भत्तीद चेइआई ण्हवंति पूयंति पणमंति ॥४६॥ वरिसोश्वासपडिमं तह कित्तिधरं नियंति तत्थ मुणिं । अमरेहि महिजंतं तकालुप्पभवरनाणं ॥४७॥ तं दठु सुठु तुट्ठा तिपयाहिणपुवयं नमिय नाणिं । निसियंति उचियठाणे तो भयवं कहइ इय धम्मं ॥४८|| "इह निव्वुइपरमंगाणि जंतुणो दुल्लहाणि चत्तारि । मणुयत्तं धम्मसुई सद्धाणं संजमे विरियं ।। ४९ ।। चुलसीइलक्वजोणिसु बहु- ॥१६॥ For Private And Personal Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mah श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥१६४॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassarsi Gyanmandir | कुलकोडीसु भमिय कवि जिओ । इह लहइ माणुसतं सुदेससुकुलाइसुपवित्तं ॥५०॥ तत्थवि कुतित्थबहुले लोए दुलहा विसुद्ध - धम्मसुई । जीइ अहिंसगधम्मं पडिवज्जिय तरइ भवजलहिं ॥ ५१|| धम्मेसुचि दुलहा तत्तरुई मिच्छत्तसेवए लोए । जं नेयाउयमग्गा बहवे भस्संति मूढमई || ५२ ॥ सदहणेऽविहु धम्मस्स फासया दुल्लहा उकाएण । कामगुणमुच्छिया जं विरमंति जिया न पावाओ | ॥५३॥ जो उ मणुयत्तपत्तो सुद्धं धम्मं सुणित्तु सद्दहिउं । जहविहिणा उ अणुदुइ सो इह लहु घुणइ कम्मरयं ॥ ५४ ॥ ता धम्माणुट्ठाणे करेह जत्तं सया विहिपहाणे । धारेह सुद्धभावं भविआ ! वज्जेह वितहभावं ।। ५५ ।। जं विडियमणुट्टाणे वितत्तं कुणइ दंसणं समलं । समले तंमि तवनियमवयगुणा हुंति न बहुफला ||५६ ॥ किंच धम्मगयं वितहत्तं थोवंपि विसं व हणइ सुहनिचयं । बड़ेइ दोसजालं जणेइ बहुऽणत्थवित्थारं ।। ५७ ।। उक्तं च- "धर्मानुष्ठानवैतथ्यात्, प्रत्यपायो महान् भवेत् । रौद्रदुःखौघजननो, दुष्प्रयुक्तादिवौषधात् ||५८||" अह पुच्छर कणयसिरी भयवं ! किं मे पुराकयं कम्मं । पत्तामि जेणऽणत्थं इय पियवहबंधुविहराई ||२९|| भइ मुणी पुण भद्दे ! धायइसंडस्स पुवभरहंमि । संखउरनामगामे सिरिदत्ता इत्थिया आसी |||६० ॥ मा आजम्मदरिद्दा जीव काऊण परगिहे कम्मं । रंधणखंडणपीसणगिहलिंपणवारिवहणाई ।। ६१ ।। परगिहकम्मअभावा कयाइ सा कट्टकारणेग गया। सिरिपव्वयंमि सेले सच्चजसं नियइ तत्थ मुणिं ।। ६२ ।। तो सा चिंत जाणामि जम्मभिगमप्पणो सचरिएहिं । न कयं सुकयं पुढं तेण इहं दुक्खिया जाया || ६३|| सइदुकम्मनिदड्डाइ मे न थोवंपि इह कयं सुकयं । ता परभवेऽवि मज्झं दुहमेव हि केवलं होही || ६४ || आजम्मउयरपूरणचिंताइ मयाइ मंदभग्गाए । भवकोडिदुल्लहं हारियं हहा माणुसं जम्म |||६५|| ता अञ्जवि मुणिमेयं नमिउं सोउं च एयउवएसं । सहलीकरेमि जम्मं निएवि तह एयमुहकमलं ।। ६६ ।। इय चिंतिय For Private And Personal श्रीदत्ता कथा ॥१६४॥ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Gyarmandit श्रीदे श्रीदत्ताकथा A चैत्यश्रीधर्म संघा चारविधी ॥१६५।। REL Aradhana Kendra www.kobatirth.org . Acharya Shri Kaiu | सा गंतुं तत्थ मुणिं तं नमेई तेण पुणो । दिमंमि धम्मलाहे हरिसियहियया भणइ एवं ॥६७|| जइवि अजुग्गा भयवं! निन्भग्गाऽहं | तहवि किंपि उबइसह । जेणं न होमि पुणरवि भवंतरे एरिसी दुहिया ।।६८॥ तो तीइ जुग्गयं सो वियारिउं धम्मचकवालतवं । उवइसई चिइवंदणविहाणपुव्वं सयलसुहयं ।।६९।। तह तेणुत्तं भद्दे ! इय धम्मं तुह सयावि साहीणं । विहीणा साहंतीए होही दुहमेरिसं न पुणो॥७०||तो सिरिदत्ता इत्थं पभणिय नमिउं मुणिं गया सगिहं । विहिणा बंदिअदेवे आरंभइ तं तवं काउं॥७॥ तहिं कुणइ अट्ठमदुगं पढमं तो सत्ततीस उववासे। अह तप्पभावओ सा सुभोयणं लहइ पारणए ॥७२॥ तवचिइवंदणनिरयत्ति तीइ तह | देइ अडसड्दजणो । वरवत्थाणि तहा कम्मवेयणं दुगुणतिगुणंपि ॥७३॥ कइयाइ पडियनियघरकुडेगपएसओ बहुदविणं । सा लहइ तेण कुणई उज्जवणं तस्स सुतवस्स ।। ७४ ।। तबअंतपारणदिणे दिसावलोयं विहेइ जा ताव । मासक्खवणकिसंग सुब्बयसाहुं नियइ इंतं ।७५।। हरिसंसुपुन्ननयणा तं पडिलाहइ तओ गए तंमि । धन्नमना मुणिदत्तसेसभत्तेण पारेइ ।। ७६ ॥ अह सा गंतुं सुव्वयसाहुं नमिउं गहेवि गिहिधम्मं । दसणमूलं पालइ कित्तियकालं निरइयारं ॥ ७७ ।। कइयाइ कम्मवसओ चिंतइ जिणधम्मफलमिहप्पवरं । जं गिजइ किं तु तयं सच्चं होही ममवि एवं? ॥७८॥ नजइ न किंपि तह इह पयाहिणादिसु गहाइभमणफलं । सुवति य बहुसामन्नवंदणा लद्धपवरफला ॥७९॥ इच्चाइ विचिगिच्छा जं जाया तीइ तारिसे सक्खं । दिद्वेवि हु धम्मफले तदहो भवियचया बलिया ॥८०॥ ततो सिढिलियधम्मा विहिकरणअणायरा य सा कइया। सोउं सबजसमुर्णि समागयं वंदिउंचलिया ।।८१॥ दडु विमाणारूढं खयरदुगं अंतरे तओ वलिउं । जायणुरागा वररूवमोहिया सा गया सगिहे ॥८२।। णालोइयपडिकंता सा मरिउं कणयसिरी तुम जाया । पियमरणधुविरहाइ पाविया तेण दोसेण ॥८३॥ यदागमः-"जह चेव उ मुक्खफला I NEAAP N NAPURNAUMIABPramin ॥१६॥ For Private And Personal Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shriban Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kai u ri Gyanmandir Saniwww श्रीदत्ता श्रीदे चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधौ ॥१६६॥ JANANINNIGAL आणा आराहिया जिणिंदाणं । संसारदुखफलया तह चेव विराहिया होइ ॥ ८४॥" इय मुणिउं कणगसिरी विण्डं पइ भणइ जहा जले नात्रा । छिड्डेणऽप्पेणवि दुक्कएणवि तह जिओऽवि भवे ।।८५| अप्पेणवि दुकएणं जइ एवं लम्भए दुई दुसहं । ता सयलदुकयखाणीहि मह अलं कामभोगेहिं ॥ ८६ ॥ सामि ! पसीय दयावह मह दिक्ख सयलदोसखयदक्खं । बीहेमिमाउ भवरक्खसाउ एरिसछलपराउ ॥८७ । भणइ हरी होउ इमं सुयणु! परं इण्हि मुहपुरिं जामो। तत्थ सयंपहजिणवरपासे दिख गहिज तुम ॥ ८८ ॥ एवंति तीइ वुत्ते तो पत्तो सुभपुरीइ नमिय मुणिं । विजयब निवेहिं तओ अहिसित्तो अद्धचकित्तं ॥ ८९ ॥ अन्नदिणे तत्थागयसयंपहजिणंतियमि कणयसिरी । गिण्हइ दिक्खं बलविण्हुविहियनिक्खमणवरमहिमा ।। ९० ॥ कणगावलिमुत्तावलिरयणावलिभद्दपमुह विविहतवो । विहिणा उ तवेमाणा धम्माणुट्ठाणविहिनिरया ॥९१।। उप्पननाणरयणा वरदंसणदिवसयलवत्थुगणा । सा कणयसिरी सिद्धा अणंतसुहवी रियसमिद्धा ॥९२॥ भो भो भव्या भव्यभावप्रधानाः, श्रीदत्ताया वृत्तमेतनिशम्य । मा वैतथ्यं स्वल्पमप्यत्र धत्तानुष्ठाने श्रीतीर्थद्वंदनादौ ॥१३॥ इति श्रीदत्ताकथा॥ इत्युक्तं द्विदिशि | इति तृतीयं द्वारं, संप्रति द्विदिस्थितैरपि मूलबिंबस्य कियत्यवग्रहात् देवा वंदनीया इत्याशंकायां चतुर्थमवग्रहद्वारं गाथोत्तरार्द्धनाह नवकर जहन्नु सट्टिकर जिट्ट मझुग्गहो सेसो ॥ २२॥ मूलविंबात् नव हस्तान् जघन्यो-जघन्योऽवग्रहः,जघन्यतोऽपि उच्छासनिश्वासादिजनिताशातनापरिहाराय नवहस्तबहिःस्थितैः देववंदना कार्या,पष्टिश्च हस्तान् ज्येष्ठ-उत्कृष्टोऽवग्रहः,तत्परतः उपयोगासंभवात् , मध्ये-मध्यमे शेषो नवकरेभ्य ऊवं षष्टेश्चार्वाग् अवग्रहो मूलविषवंदनास्थानाभ्यंतरालभूभाग इति ।। अन्यैः पुनादशभेदोऽयमुक्तो। तथा च पंचस्थानकेऽभिहितं-उक्कोस For Private And Personal ॥१६६॥ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shril l in Aradhana Kendra www.kobatirth.org uri Gyarmandir अमिततेजः कथा श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म०संघाचारविधौ ॥१६७॥ Acharya Shri Kai D सद्धि पंना२ चत्ता३ तीसा४ दसट्ट५ पणदसगंद। दस७ नवदति९ दु१०एग११द्ध१२ जिणुग्गहं बारसविभेय।।१।।ति,एतावता चार्धहस्तादारभ्य षष्टिहस्तेभ्यश्चार्वाक् गृहचैत्ये चैत्यगृहे वा यथा जिनबिंबस्याशातना न भवति तथा यथासमयमवग्रहबहिःस्थितैरमिततेजःखेचरेश्वरवद् देववंदना कार्या इत्युक्तं भवति । अमिततेजःखेचरेश्वरदृष्टांतश्चायम्-अत्थिह भरहे वेयड्पन्चओ पवरपुरनिहो जो उ । वरराजओ सुखयरो सेणिजुओ देवउलकलिओ ॥१॥ दाहिणसेढीऍ तहिं रहनेउरचकवालपुरमत्थि । जं च दुहाविहु सुसरणसुसालसुपरिहसुरमणीयं ।।२।। तत्थरिथ अपरिमियनिययतेयअंतरियतिमिररिउतेओ । नमिरसिरखयरनियरो खेयरराया अमियतेओ ॥३॥जो उ दुहावि सुधम्मो सुकरो सुगओ सुआसओ सुबलो। वरकंतो वरवासो वरचरणयणो पवरचरणो॥४॥ पोयणपुराहिवस्स उ सिरिविजयनिवस्स तेण परिणीआ। जोइप्पहाभिहाणा भइणी रयणीरमणवयणा ॥५॥ सिरिविजयनिवइणा पुण तस्स सुतारा सुतारतारच्छी । भइणी परिणीया इय परुप्परं तेसि पडिबंधो ॥६॥ कइआ सिरिविजयनिवो कीलेउ गओ समं सुताराए । जोइवणं नाम वणं ससावयं जं जिणगिहं व ॥७॥ कजलकसिणखुरग्गो मरगयसिंगो सुवन्नसरिसंगो । अह तेहिं तत्थ चंगो दिवो एगो वरकुरंगो।। नीलुप्पलदलनयणं तं तरल विलोयणं निएवि निवं । भणइ सुतारा कीलणकए इमं गिण्ह मह नाह! ॥९॥ तहमोहिअमई महणत्थं तस्स जा निवो चलिओ। ता जाओ स कुरंगो रंगायरिउच्च बहुभंगो ॥१०॥ कत्थइ आसन्नगमेण कत्थइ अंतरिअदुमठिएण तओ । कत्थविय गयणगमणेण तेण नीओ निवो दूरं ॥११॥ अह एहि एहि लहुनाह ! अहो अहं कुक्कुडाहिणाडका । अकंदरवं इय सवणदुस्सवं सुणइ सिरिविजओ ॥१२॥ तो झत्ति कुरंगच्छीकए कुरंगं विमुत्तु सो चलिओ। जं संतेञ्चिय कुसले कुसलालाहं अहिलसंति ॥१३।। रण्णा पउंजिअंदिट्ठपच्चयं मंततंतमणिमाई। तीए जायं विहलं antHHIND ISAPANIRLINE SPIRNAPAHARITADIRANILIUMIDINDIA WHITE IPAHIMPINNI ।.१६७॥ For Private And Personal Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kai s uri Gyanmandir ailsina DHAN DilliA अमिततेजः कथा श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१६८॥ वरपि दाणं जह अपत्ते ।।१४।। सुमिलाणवयणनयणा अह विहडियसंधिबंधणा धणि। थरथरहरंतगत्ता देवी पंचत्तमणुपत्ता ॥१५॥ तं निच्चिद्वं दट्टुं राया मुधुच सुट्ठ पलवित्ता । चिंतइ पाणेहि कयं इमीद पाणप्पियाइ विणा ॥१६॥ ता दारुभारनिचियं चियं निवो सह इमीइ आरुहिउं । जालेइ सयं जलणं जलिरुजलविरहजलणोऽवि ॥ १७॥ अह दिववत्थजुअला विलुलंतसकुंडला य गयणयला । ओयरिया खयरा दुन्नि झत्ति घोलंतलंकारा ॥१८॥ तत्थेगेणं विजानिमंतियजलेण जा चिया सित्ता । उप्पइय गया देवी विमुतु अट्टहासं ता ॥१९॥ तो विम्हियहियएणं निवेण भणियं अहो अहो किमिणं ? । जंपंति जोडियकरा ते खयरा जह | पहु ! सुणेहि ॥२०॥ सिरिअमियतेयविजाहराहिरायस्स दोऽवि पियपुसा । संमिन्नसोयदीवसिहनामया मो निमित्तविऊ ॥२१॥ जा अजवि दो अम्हे समागया इत्थ कीलणनिमित्तं । ता सुणिमो करुणसरं गयणे एगाइ इत्थीए ॥२२॥ हा नाह! नाह ! सिरिविजयराय हा हा सयंपहे अंमो! हा अमियतेयखयरिंदमाय महवीर मह वीर ।।२३।। अहह अगाहब मम हरेइ खयराहमो इमो कोऽवि । ता एह एह मोयह इमाउ पावाउ मं झत्ति ॥२४॥ नाउ नियं नाह! भइणि तो रे रे ठाहि ठाहि इय भणिरा । तप्पुट्टि | लग्गा मो कड़ियसुकरालकरवाला ॥२५॥ णे द? असणिघोसो भणिओ रे खेयराहम! अणज । पुरिसो हवेसु सत्थं करेसु हंत णु विणट्ठोसि ।। २६ ।। ता देवीए भणिया पुजइ कजेण जाह जोइवणं । चइहि वेयालिणिविजमोहिओ मा पहू पाणे ॥ २७ ॥ | पत्तेहिं तयणु लहु इह मयदेवीरूवधारिणीइ तुमे। वेयालिणीइ सहिया दिट्ठा जलियानलपविट्ठा॥२८॥ पच्चक्खं चिय सेसं तुन्भं इय सोउ जा निवो अहियं । जाओ दुहिओ ता तेहिं पणिओ मा पहु! विसीय ॥२९॥ जं कित्तियमित्तो सो तुम्हाणं अग्गओ असणिघोसो। गम्मउ परं वियड़े फुरइ जमम्हं इय निमित्तं ॥३०॥ तो तेहिं तत्थ नीओ नायपबंधेण अमियतेएणं । संभासिओ HINAHETAIIASTIHIROHINATIPATI amaAAHE HIDINAME HIDANANDHAMATIPRIMURARIP | ॥१६८॥ For Private And Personal Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shril lin Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalth u ri Gyanmandir श्रीदे चैत्य श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥१६९॥ य संमाणिओ य गुरुगउरवेण तओ ॥ ३१ ॥ अह रस्सिवेगपमुहेहिं पंचनियसुयसएहिं बलिएहिं । अणवजविजविजाहरेहि PA अमिततेजः इयरेहिं तह सहिओ ॥३२।। सत्थावरणि तह दाउ बंधणि मोयणिं च महविजं । सिरिविजओऽमियतेएण पेसिओ असणिघोसुवरिं कथा ॥३३॥ हिमवंतनगे उ सयं गओ सहसरस्सिणा सुएण समं । साहेउ महाजालं विज परविजछेयकरिं ॥३४|| मासियभत्तेण तहिं धरणस्स जयंतकेवलिस्स तहा। पडिमाण पुरो चउदिसि ठिओ स सगराइयं पडिमं ॥३५।। इय विजं साहंत नियपियरं रक्खए सहसरस्सी। एवं च ताण मासो संजाओ तत्थ किंचूणो ॥३६॥ अह सिरिविजओ राया तुरियं गंतूण चमरचंचाए । बहि आवासिय पेसइ यं मझमि मारीचिं ॥३७॥ तेण इय असणियोसो भणिओ नरवर! तुमे जइचि देवी। अनाणओ अवहिया वंचिय सिरिविजयनिवसीहं ॥३८|| तहवि हु सा अप्पिजउ देवी अम्हाण सयणविनीए । नहु सयणस्स अणत्यो उवेक्खियहो उ अम्हेहि अह फुरियगरुयरोसोऽसणिघोसो भणइ दूय ! रे नूणं । जमगेहं गंतुमणो इय वंकं तुह पहू भणिरो ॥४०॥ता गच्छ तुम्छ नऽप्पेमि कवि देवि स होउ रणसजो । लहु एस एमि इय भणिय झति निकासिओ दूओ ॥४१॥ आगम्म तओ ओ सव्वं रणो कहेइ | जा ताव । मुक्कदुसहहुंकारा सुहडा समरुजया जाया॥४२॥ तहाहि-कोवि नियइ कोदंडं असिदंडं कोऽवि कोऽवि भुयदंडं । कोऽबिहु दित्तं कुंतं सिल्लं भल्लं व बावल्लं ।।४३|| इय सिरिविजयनिकवलं ताडय रणतूरमुट्ठियं जाव । ता पेसइ नियपुत्ते बहुबलजुत्ते असणिघोसो ॥४४॥ जयलच्छिवंछिराई तत्तो मिलियाई दुन्निवि बलाई। उक्खित्तपहरणाई अनुग्नं हकमाणाई ॥४५॥ साहाविएण विजाकएण समरेण ताण दुण्ह गओ । जा किंचूणो मासो ता भग्गा असणिघोससुया ॥ ४६ ॥ नासेइ असणिघोसो अह विजबलेण अमियतेयगरे। पहरह खणेण खणेमि जेण भे दप्पमिय भणिरो ॥४७॥ दठुमिण सिरिविजओ दप्पिट्ठो उहए इय भणंतो। रे | ||१६९॥ Anthem For Private And Personal Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma h Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila s Gyanmandir श्रीदे० अमिततेजः कथा चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधी ॥१७॥ जाहि दुह! पाविट्ठ ! घिट्ट निल्लज अञ्जवि य ॥४८: अन्नह जं में वंचिय मह दइया अवहिया तए तेण । दुविणयफलं दंसेमि तुम्भ पुरिसो अरे होसु ॥ ४९ ॥ जइ नियभणियं काहिसि होसि धुवं ता तुम इहं पुरिसो। इय भणिरोऽसणिघोसो झडत्ति सिरिविजयममि चलिओ ॥५०॥ वग्गन्ति दोवि भजति दोवि हकति दोऽवि अन्नुन्न । पहरंति दोऽवि वंचंति दोऽवि सत्थे अइसमत्था ॥५१॥ अह रूसिय सिरिविजओ खग्गेणाहणिय कुणइ दोखंडं । जा असणिघोसरायं ता जाया दुन्नि ते सहसा ॥५२॥ | रोसेण जा दुहंडइ स तेऽवि जाया तओ य ते चउरो। इय खंडियदुगुणेणं जायाऽसणिघोस बहुमहसा ॥ ५३ ।। खंडंतो सिरिविजओ परिसंतो जाव ता अमियतेओ । संसिद्धमहाजालाविजो पत्तो रणे वेगा ॥५४॥ हरिणो गयकुलं दठु नासिरं रिउबलं अमियतेओ । भणइ महाजालं न हु दायवमिमस्स नासेउं ।।९५॥ तो तीइ मोहियं तं अल्लीणं सरणममियतेयनि । राया उ असणिघोसो तमागयं नाउ लहु नहो ॥५६।। दूराओऽविहु एसो आणिअहो तए महापात्रो । इय भणिआ सा विजा पहाविया तस्स पिट्ठीए ॥५७। तीए पारम्भंतो सरणट्ठी एस ओयरइ जाव । इह दाहिणभरहड्डे ता पिच्छइ सीमणगसेलं ॥५८|| तदुवरि सिरिरिसहजिणिंदमंदिरं सुंदरं पुरो तस्स | समवसरणप्पएसे महाझयं झयसहस्सजुअं ॥२९॥ तस्स समीवे चउदसपुविस्स बलस्स अयलनामस्स । इगराइयं पडिमट्टिअस्स केवलनाणमुप्पन्नं ॥६०॥ केवलिमहिमं काउं सुरासुरे आगए स दट्ठ तहिं । ओयरिओ सरणकए अलिब अयलस्स पयपउमे ॥६१।। अह नियकाअकरणा विलक्खवयणा गया वलिय विजा । जं केवलिपरिसाए न वजिवजस्सवि पवेसो ॥६२॥ अयलबलभद्दकेवलिसरणगए णमि तीइ कहियम्मि । सिरिअमियतेयराया सहरिसवियसियवयणनयणो ||६३॥ सिरिविजयाइसमेओ सीमणगनगमि झत्ति संपत्तो । गिव्हिअ तुमं सुतारं इजत्ति मरीचिमाइसिउं ॥६४|| तत्थ सिरिरि- Ma UPTESimatitinIRTHI c hineKINNARASIMHARITAMILIARIES H ITHILIHINITIAilme ॥१७०॥ For Private And Personal Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha श्रीदें० चैत्य०श्री - धर्म० संघा चारविधौ ॥ १७१ ॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila सहपडिमं उचिआवग्गहठिओ नमसित्ता । सिरिअयलं केवलिणं अभिवंदित्ता थुणइ एवं ।। ६५ ।। भयवं ! अयलबल ! तुमं सचं | चित्र इत्थ होसि अयलबलो । विज्जुम्मुहीमुहाओवि रक्खिओ जं असणिघोसो ||६६ || अन्नेऽवि अयलकेवलिनमणत्थं आगए। पवरचरणे | अभिनंदणाइचारणमुणिं नमिअ निवसइ तहिं सो ॥ ६७ ॥ अह असणिघोसमाया मारीचिमुहाउ अमियतेयगिरा । सोउं गहिय सुतारं अप्पर आगम्म तेसिं तहिं | | ६८ || भणइ इमा मह पासे निम्मलसीला ठिआ तवरयति । भयवं तु अयलबलभद्द केवली कहइ इ धम्मं ।। ६९ ।। तथाहि - "संसारो दुहहेऊ दुक्खफलो दुसहदुक्खरूवो य । नेहनियलेहिं बद्धा न चयंति तहावि तं जीवा ||७० || जह न तरह आरुहिउं पंके खुत्तो करी थलं कहवि । तह नेहपंकखुत्तो जीवो नारुहइ धम्मथलं ॥ ७१ ॥ छि सोसं मलणं बंधं निप्पीलणं च लोयम्मि । जीवा तिला य पिच्छह पार्वति सिणेहपडिबद्धा ॥ ७२ ॥ धोवोवि जात्र नेहो जीवाणं ताव निव्वुई कत्तो ? | नेहकुखयंमि पावड़ पिच्छह पड़वो वि निवाणं ||७३ || दुरुज्झियमज्जाया धम्मविरुद्धं च जणविरुद्धं च । किमकज्जं जं जीवा न कुणंति सिणेहगहगहिया १ ॥७४॥ अह भगइ अमणिघोसो जयंत सिद्धासये अहं भयवं ! | भामरिविज्जं साहितु सत्तरत्तोववासेण || ७५ || चलिओ मि चमरचंचं पइ जोइवणे विलोइय सुतारं । जाओ नेहो न चएमि जेण गंतुं इमं मुत्तुं ॥ ७६ ॥ | वेयालिणीय मोहिय सिरिविजयं तो मए इमा नेउं । मुक्का माउसमीवे असोहणं किंपि नहु भणिया ।। ७७ । ता किं इमीइ उवरिं मह अइनेहुत्ति तो भणइ स मुणी । रयणपुरे तुज्झ पुरा इमा पिया सबभामासी ॥ ७८ ॥ ता पुवभवन्भासा इमी विसए तुमं इमो हो । इय सोउं मुणिवयणं वेरग्गगओ असणिघोसो || ७२ ॥ खामिय नियमत्रराहं सिरिविजयं अमियतेयरायं च । नित्रनिवहजुओ गिण्हह दिक्खं सिरिअयलपयमूले ||८०|| अह पुच्छइमियतेओ किं भविओऽभविओ वऽहं ? भयवं ! तो भणइ केवली For Private And Personal iGyanmandir अमिततेजः कथा ॥ १७१ ॥ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे चैत्यः श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥ १७२॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasi Gyanmandir नित्र ! सुण संखेवेण नियचरियं ॥ ८१ ॥ रयणपुरे आसि तुमं सिरिसेण निवोऽभिनंदियादइओ । पढमभवे बीए पुर्ण उत्तरकुरू नरजुयल आसी || ८२|| तथाहि - कविला दिओ अचलगा चउदसविञ्जाविउत्तपय डणओ । रयणपुरे परिणइ सच्चमा ममुज्झाइ सवइ सुयं ॥ ८३ ॥ | वरिसंतघणअतिम्मियवसणो नियसत्ति पयडणपरेऽवि । अपडागउत्ति निच्छिय अकुलीणे तंमि विरया सा ||८४|| अचला गया गयघणा पिपतिठिआ उ घरणिजढसुसुरा । मह कविलादासिसुओ एस उबसूइपढिअवेओ || ८५|| इअ सोउ मिसं विलिया सिरिसेण निवेण कविलओ अप्पं । मोआविडं निवगेहे सीलपरा ठाइ सा उ इओ || ८६|| गणिआणंतमइकए जुज्झते इंदुबिंदुसेणसुए | दमखमेऽभिनंदिअसि हिनंदियपियजुअंमि निवे ॥ ८७ ॥ विसभाविअपउमं जिंघिउं मए सावि मरइ तह काउं । निवसिहिनंदिभिनंदिअभामुत्तरकुरु जुअलसी ||८८|| तो होउ सोहंमपुरा कमेण ते अमियतेयजोइपहा । तह सिरिविजयसुतारा जाया अन्नुन्नअणुराया ॥ ८९ ॥ कविलो असच्चभामो सकज्जलग्गो अखीणणेहदसो । दीव बहुभव भमिय चमरचंचाइ तं जाओ |||९० ॥ इअ पुवभवन्भासा इमीइ विसये तुमे इमो नेहो । इअ सोउं मुणित्रयणं वेरग्ग गओ असणिघोसो ||११|| निअमवराहं खामिअ सिरिविजयं अभियतेयरायं च । निवनिवहजुओ गिण्हइ दिक्खं सिरिअयलपयमूले ||१२|| अमिततेजाः - पहु भविओ मि१ सुदिट्ठी २ परित्तसंसारिओ ३ सुलहबोही४ । आराहओ५ अचरिमो६ इअरो वा १२ मुणिनिवाह मुणी || ९३ || “ सिरिविस्ससेणअइरासुयं मयंकं थुणामि संतिजिणं । बारसभव कित्तणओ सगणहरं चत्तधणुमाणं ॥ ९४ ॥ रयणपुरे आसि तुमं सिरिसेणनिवोऽभिनंदियादइओ । पढमभवे बीए पुण उत्तरकुरुजुअलनर दोऽवि ।। ९५ ।। तइए सोहम्मसुरा चउत्थए अमियतेअसिरिविजया । इह जाया मे होहि पंचमए पाणए | अमरा ॥ ९६ ॥ छट्ठे सुभापुरीए अवराइ अणंतविरियबल विण्डूहू । सत्तमए तं अच्चुयईदो इयरो पढमनरए ॥ ९७॥ तो उवडिय होउं विज्जा For Private And Personal | अमिततेजः कथा ॥ १७२॥ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ shd www.kebatirth.org श्रीदे। चैत्य श्रीधर्म संघा चारविधी ॥१७॥ a n Aradhana Kendra Acharya SMKD i Gyarmandie हररायमेहनाउत्ति । होही अन्चुअकप्पे सो तु सामाणिो देवो.९८॥ तं वजाउहचक्की अट्ठमए रयणसंचयाइ इमो। सहसाउहो । अमिततेजः तुह सुओ नवमे दो तइत्र गेविज्जे ॥९९|| पुंडरिगिणीइ सावक्कभायरा मेहरहदढरहत्ति। दसमे इक्कारसमे दोनिवि देवा उ सवन्डे कथा ॥१०॥ चरिमे पंचमचक्की संती सोलसजिणो गयउरे तं । चक्काउहुत्ति एसो सुओ गगहरो य तह पढमो ॥१.१॥ पोससिअ| नवमि नाणं तुह भद्दवबहुलसत्तमीचवणं । जिट्ठस्स बहुलतेरसि जंमु सावणचउदसीइ वयं ॥१०२।। एवं देविंदमुणिंदवंदिश्रो संति| नाहतित्थयरो। ससिहरसधम्मकित्ती भवेसि भवियाण संतिकरो ॥१०३॥" सोउमिय हरिसिया ते इकिकं तत्थ चेइअं काउं । नमित्र मुणिं गिहिधम्म गहिउँ पत्ता सयं ठाणं ॥१०४॥ जिणवरभवणसमीवे पोसहसालाइ पोसहोवगओ । विजाहराण धम्म कहेइ कयावि अमियतेओ॥१०५।। भणिअंच-"वंदइ पडिपुच्छइ पज्जुवासई साहुणो सययमेव । पढइ गुणइ सुणेइ अ जणस्स धम्म परिकहेइ ।।१०६॥" अह चारणमुणिजुयलं समदमतवनियमसंजभुज्जुतं । गच्छइ गयणयलेणं सासयजिणपडिमनमणत्थं। १०७॥ | रययगिरिसिहरसरिसे नरवइभवणंमि अह निएइ तयं । तुंगं अदब्भसरदम्भविम्भमं जिणहरं रंमं ॥१०८।। तो झत्ति पहट्ठमणं जिणनमणत्थं तयं समोसरिअं । तं दर्छ अन्भुद्विय नमइ निवो सुटु अइतुट्ठो॥१०९।। तेविअ चारणसमणा तो तिक्खुत्तो | पयाहिणं काउं । वंदित्तु जिणवरिंदे विहीइ निवई भणंति इमं ॥ ११ ॥ उक्तंच वसुदेव हिंडिएकोकविंशतितमलंमे-ते चित्र चारणसाहू बंदिऊण जिणवरिंदे तिक्खुत्तो पयाहिणं च काऊण रायाणं इमं वदासी" "देवाणुप्पिय ! दुलहं मणुयत्तं लहिय इह |पमायं मा । काहिसि जिणवरधम्मे जम्मजरामरणभयहरणे ।। ११२ ।। अविय-जिणाणं पूअजत्ताए, साहूणं पज्जुवासणे । आव| स्सयंमि सज्झाए, उज्जमेज्ज दिणे दिणे ॥११३।। जओ-कदाचिन्नातंकः कुपित इव पश्यत्यभिमुखं, विद्रे दारियं चकितमिव ॥१७॥ For Private And Personal Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri V in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka b uri Gyanmandir श्रीदे. चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधी ॥१७४॥ नश्यत्यनुदिनम् । विरक्ता कांतेव त्यजति कुगतिः संगमुदयो, न मुंचत्यभ्यणं सुहृदिव जिनार्चा रचयतः ॥ ११४ ॥ आरंभाणां अमिततेजः निवृत्तिर्द्रविणसफलता संघवात्सल्यमुच्चैनैर्मल्यं दर्शनस्य प्रणयिजनहितं जीर्णचैत्यादिकृत्यम् । तीथौन्नत्यप्रभावं जिनवचनकृति- कथा स्तीर्थकृत्कर्मकत्वं, सिद्धेरासनभावः सुरनरपदवी तीर्थयात्राफलानि ॥११५॥ तत्वांभोजप्रकाशं रचयति रविवन्नेमिवहुःखलक्षं, स्फुर्जकक्षं छिनत्ति प्रकटयति लसद्दीपवन्मोक्षमार्गम् । भव्यानां भक्तिभाजां जनयति धनवत् पापनाशाय शांति, साधूनां पर्युपास्तिर्विघटयति तमःस्तोममिंदुप्रभेव ॥११६।। सावधं दलयत्यलं प्रथयते सम्यक्त्वसिद्धिं परां, नीचैर्गोत्रमधः करोति सुयमच्छिद्रं पिधत्ते क्षणात् । सद्ध्यानं चिनुते निळंतति ततं तृष्णालतामण्डपं, वश्यं सिद्धिसुखं करोति भविनामावश्यक निर्मितम् ॥११७॥ कालुष्यं कलयाऽपि नो कलयति स्वांतं प्रशांतं भवेद् , विश्वं पाणितले स्थितामलकवत् प्रत्यक्षमेवाखिलम् । आसमाऽपि कुवासना || | न भवति स्वाध्यायमभ्यस्यतः, पुंसः पुंसितमेव दुर्मतिगतिस्थानादिकं सर्वतः ॥११८॥" इत्थंति भणेऊणं निवेण नमिमा तओ अ ते समणा। गयणयले उप्पइया तवप्पहावं पयासंता ।। ११९ । सिरिविजयअमियतेजा तो नरविज्जाहराहिया सययं । वरिसे वरिसे तिनि उ महिमाउ कुणंति रम्माउ ॥ १२० । तथा च वसुदेवहिन्डी-'तिन्नि महिमाउ करेमाणा ते हरिसेण कालं गर्मति'ति । तथोत्तराध्ययनवृत्तौ-दो सासयजत्ताओ तत्थेगा होइ चित्तमासंमि । अट्ठाहियाय महिमा बीआ पुण अस्सिणे मासे ॥१२१॥ एयाओ दोवि सासयजत्ताउ करंति सचदेवावि । नंदीसरम्मि खयरा नरा य नियएमु ठाणेसु॥१२२॥ तइआ असासया पुण करेंति सीमणगनगे इमे दोऽवि । नाभेयस्साययणे वरनाणुप्पत्तिठाणे य ॥१२३॥ सिंहासणोवविठ्ठो सपरियणो अन्नया अमियतेओ । मासक्खवणकिसंगं सगिहे इंतं नियइ साहुं ॥१२४॥ तो सहरिसमन्मुट्ठिय सपरियणेण निवेण नमिय सयं । पडिलाहिओ ॥१७४॥ For Private And Personal Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१७५॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasruri Gyanmandir स एसणिय भत्तपाणेण भत्तीए || १२५|| तो रयणवुडिमाईणि पंच दिखाणि तत्थ जायाणि । अन्नत्थ गओ साहू मुणीण एगं न जं ठाणं ॥ १२६ ॥ कइयावि नंदणवणे पत्ता सिरिविजयअमियतेयनिया । सासय सुतल्लिच्छा सासयपडिमाउ पूएउं ॥ १२७॥ ठाउं अवग्गह बहिं निरवग्गहहरिसपुलइअसरीरा । संपुन्नचेइवंदणविहिणा वंदेवि देवे य ॥ १२८ ॥ चारणमुणीण नमिउं त्रिउलमइमहामईण पयपउमं । इय भवनिव्वेयकरिं सम्मं निसुणंति धम्मकहं ॥ १२९ ॥ "देहो धुवं विणासी तवसंजम साहणं फलं तस्स । वच्चइ हुलियं जीयं ता मा धम्मे पमाह ॥ १३० ॥ सिर्द्धपि महाविज्जं असरंतो निष्फलं जहा कुणई। तह धम्मपमाइल्लो हारह पपि मणुयत्तं ॥ १३१ ॥ जह दुलहं कप्पतरुं लहिउं मग्गइ वराडिअं मूढो । मुक्खकले मणु असे तह अत्रुहो मग्गए विसए ।। १३२ ।। " अह तेहिं मुणी पुट्ठा निआउसेसं भणति ते उ दिणे । छब्बीसं तं सोउं झुरन्ति बहुं इमे एवं ।। १३३ ।। विसयसुहनोहिएहिं न कयं अम्हेहिं सङ्घविरइवयं । इहि आउअसेसे किं काहामो दहा भयवं ! ।। १३४ ।। हा हा पमत्तयागं किह सयलं जीवियं गयं अम्हं ? । कक्खीकया न दिक्खा खयदक्खा दुक्खलक्खाणं || १३५ ।। इय खेयंता भणिआ मुणीहि मा भो बहुं विमूरेह । इहिप सङ्घविरई पडिवज्जद सयलसुहजणणिं ॥ १३६ ॥ भणियं च - " अप्पेणवि कालेणं केइ जहा गहियसीलसामन्ना। साहिति निययकज्जं पुंडरियमहारिसिव जहा ॥१३७॥" तथा "पच्छावि ते पयाया खिष्पं गच्छंति अमरभवणाई । जेसिं पिओ तवो संजमो य खंती अ बंभचेरं च ॥१३८॥ किंच- "एगदिवसंपि जीवो पव्वजमुवागओ अणन्नमणो । जहवि न | पावइ मुक्खं अवस्स वैमाणिओ होइ ॥ १३९ ॥ |” तो मुणिणो अभिवंदिय आगंतुं नियपुरे सपुत्तेसुं । रज्जाइं ठविय अट्ठा| हियाउ काउं जिणहरेसु || १४० || अभिनंदणजगनंदणसाहुसगासंमि गहियपव्वज्जा । पाओवगमणविहिणा मरिउंऽमियतेय For Private And Personal अमिततेजः कथा ।।१७५।। Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M ain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailfisuri Gyanmandit चैत्यवन्दनाभेदाः श्रीदे० चैत्यश्री धर्म संघाचारविधी ॥१७६॥ सिरिविजया ॥१४१।। पाणयकप्पे देवा संजाया दिव्वचूलमणिचूला। वीसअयराउ नंदावत्तयसुत्थियविमाणेसु ॥१४२॥ इदं । हदि विवेकिनः समधिगम्य वृत्तं वरं, सदाऽप्यमिततेजसः सकलखेचरवामिनः। अवग्रहवाहिःस्थिता विगतविग्रहावग्रहं,जिनेंद्रपदवंदनं कुरुत निर्वृतेः कारणम् ।। १४३ ॥ इत्यवग्रहत्रिके अमिततेजःखेचरेश्वरदृष्टांतः।। निगदितस्त्रिधा अवग्रह इति चतुर्थ द्वारं, तद्भणनेन च प्रदर्शितचैत्यवंदनाकरणविधिः। संप्रति कतिप्रकारा चैत्यवंदना इत्याशंकायां तत्स्वरूपामिधित्सया 'तिहा उ बंदणयन्ति पंचमदार अनिधित्सयाऽऽह नवकारेण जहन्ना चिइवंदण मज्झ दंडथुइजुयला । पणदंडथुइचउकगथयपणिहाणेहिं उक्कोसा ॥२३॥ नमस्कारेण-अंजलिबद्धशिरोनमनादिलक्षणप्रणाममात्रेण यद्वा 'नमो अरिहंताण मित्यादिना अथवा-'पुरवरकवाडवच्छे फलिहभुए दुंदुहीथणियघोसे । सिरिवच्छंकियवच्छे वंदामि जिणे चउब्बीस॥१॥'मित्यादिनैकेन श्लोकादिरूपेण, नमस्कारेण इति जातिनिर्देशाद्वा बहुभिरपि नमस्कारैः, अमिधास्यति च-'सुमहत्थनमुकारा इगदुगे'त्यादि, यद्वा नमस्कारेण प्रणिपातापरनामतया प्रणिपातदंडकैनैकेनेतियावत् जघन्या-स्वल्पा, पाठक्रिययोरल्पत्वात् , चैत्यवंदना भवतीति गम्यं, एतावता "एगनमुकारेणं चिह| वंदणया जहन्नयजहन्ना। बहुहिं नमुक्कारेहिं च नेया उ जहन्नमज्झमिआ ॥१॥ सञ्चिय सकथयंता जहन्नउकोसिआ मुयन्या (१२४-०॥ अर्थतः) इति त्रिविधोक्ता जघन्यवंदना व्याख्याता, ईर्यापथिकीनमस्कारोऽपि प्रणिधानं, तेनापि शक्रस्तवेन जपन्या पैत्यवंदनेति तात्पर्यार्थः । एतावताऽप्यवस्थात्रयमावनासिद्धेः, एतदर्थमेव चात्र शक्रस्तवांते 'जे य अईया'इत्यादि गाथापाठान, | उक्तं च लघुभाष्ये-जे य अइयगाथाए बीयऽहिगारेण दवअरिहंते । पणमामि भावसारं छउमत्थे तिसुवि कालेम् ॥१॥" DISCLAINI ॥१७६।। For Private And Personal Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Gyarmandir चैत्ववन्द Shri Ma भीदे० चैत्य श्री धर्म०संघा. चारविधी ॥१७७॥ नामेदाः r adhana Kendra Acharya Shri Kailas एषाऽपि यदैकदंडकस्तुत्यादिसहिता स्यात् तदा मध्यमा भवतीत्यत आह-'मझदंडथुइजुयला' मध्यमा च अजघन्योत्कृष्टा, पाठक्रिययोस्तथाविधत्वात् , दंडश्च-अरिहंतचेइआणमित्यादिः एकस्तुतिश्च श्लोकादिरूपा प्रतीता, चूलिकात्मिका एका तदंत एव या दीयते, ते एव युगलं-युग्मं यस्यां सा दंडस्तुतियुगला, चैत्यवंदना इत्यत्रापि योज्यं घंटालालान्यायेन, एतब 'बेइअदंडथुइएगसंगया सबमज्झिमिआ" (१५६ ) ॥ तथा-'नमुकाराइ चिइदंडइगथुई मझिमजहबा' (१५६ अर्थात् ) इत्यायुक्तितो व्याख्यातं, अन्यथा 'सकत्थयाइयं चेइयवंदण'मित्यागमोक्तप्रामाण्यात् शक्रस्तवोऽप्यत्रादौ भण्यते, तथा च बृहृभाष्येऽपि'मंगल सक्कथय चिइदंडकथुईहि मममज्झिमिया' अथवा दंडकश्च-चैत्यस्तवरूप एकः स्तुतियुगलं च वक्ष्यमाणनीत्या चूलिकेतरस्तुतिद्वयरूपं यत्र सा दंडस्तुतियुगला चैत्यदंडककायोत्सर्गानंतरं दीयमानश्लोकादिका चूलिका स्तुतिः 'लोगस्स उज्जोअगरे' इत्यादिद्वितीया नामस्तवसमुच्चारस्वरूपेत्यर्थः, यदा तु 'सकत्थयाइयं चेइवंदणं'ति वचनादत्राप्यादौ शक्रस्तवो भण्यते तदा युगल शब्दो दंडशन्देऽपि योज्यते, यथा दंडकयोः शक्रस्तवचैत्यस्तकरूपयोयुगलं-युग्मं स्तुत्योश्च वक्ष्यमाणरीत्या चूलिकेतरस्तुतिरूप| योर वधुवस्तुत्योरितियावद् युगलं-द्विकं यत्र सा दंडकस्तुतियुगला मध्यवंदना, इह च स्तुतियुगले एका स्तुतिश्चैत्यदंडककायोत्सर्गानंतरं दीयमाना चूलिकानानी अध्रुवात्मिका श्लोकादिरूपा याऽन्यान्यजिनचैत्यविषयतया बहुस्तुतिवंदनाकर्टमध्ये चैकेन दीयमानतया चाववात्मिका चूलिका, तदनंतरं चान्या द्वितीया ध्रुवा, सूत्रस्तुतिरूपत्वात् वंदनाकर्तृभिः सर्वैरपि भण्यमानत्वात नामस्तवस्वरूपतया अनन्यविषयत्वात् श्लोकादिरूपत्वेन परावृत्तेरभावात्,यथा 'लोगस्स उज्जोअगरे जाव सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतुचि, उक्तं च व्यवहारे 'एगदुतिमिसिलोगा थुइओ अधेसि होइ सत्त'त्ति भाष्यं, चूर्णिश्च 'केसिंचि आयरियाणं एगसिलोगाइ PRINTAINLAIlll ॥१७७॥ For Private And Personal Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mal श्रीदे० चैत्य० श्री - धर्म० संघा चारविधौ ॥१७८॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash जात्र सत्तसिलोगा धुई जहा उज्जोअगरोति, एवं चात्र व्याख्यातं- 'वेलं व चेइयाणि य नाउं इक्किकया वावि'त्ति कल्पनिर्युक्तिभणितत्वात्, यतः - सर्वचैत्येषु सर्वजनेन भणनीया नियतधिया नियतस्य लोगस्स उज्जअंगरे१ पुक्खरखरदीवट्टे २ सिद्धाणं बुद्धाण ३|मित्याद्यपदाभिधानजिननामस्तुतिश्रुतस्तुतिसिद्धस्तुतिरूपसूत्रस्तुतित्रयस्य मध्यात् सर्वसामान्यादिकायोत्सर्गाद्य ( ग्रन्थाग्र ३५००)नंतरं सर्ववंदनाकर्तृभिः प्रथमं देवस्तुतितया लोगस्स उज्जोअगरे इत्यस्या एवोपलब्धत्वात्, तथैवावश्यकचूर्णी भणनात्, तथाहिभाइ य थुई जेहिं इमं तित्थं इमाइ ओसप्पिणीए देसियं नाम, दंसणचरित्तस्स य उवएसो, तेसिं महईए भत्तीए बहुमाणओ संथवो कायचो, एएणं काउस्सग्गेणं अनंतरं चउवीसत्थउ'चि, व्यवहारसप्तमोद्देश के त्वेवं- 'चेइयवंदियाणं गयाणं पढमथुइआढताणं. वा अन्नाओ आगयाओ ताओ पडिच्छंतीओ उन्हेण परिवाविज्जंतीओ कसाइयाउ'ति, अत्र चायं परमार्थः - यदि बेलातिक्रमादिना मध्यमोत्कृष्टादिवंदनां कर्तु न पारयति तदोक्तनीत्या लोगस्स उज्जोयगरांतां करोतु, एवमपि चतुर्विधार्हतां नंदनासद्भावात्, | एवं च सर्ववंदना कर्तॄणामेकस्याः सूत्रस्तुतेर्दानापत्तेश्च चूलिकास्तुतिस्त्वेकेनैव देयत्वात् शेषाणां तद्दानाभावः, एवमेन करणविधावायातत्वात् बृहद्भाष्यादौ तथाभणनाच्च, तथाहि - "जइ एगो देइ थुई अहोगे तोऽवि पढमथुइमेगो । अने उस्सग्गठिआ सुणंति जा सा परिसमत्ता ||१|| इत्थ य पुरिसधुईए वंदइ देवे चउविहो संघो । इत्थिथुईए दुविहो समणीओ साविया चेच ॥२॥ ( ४९९-५०० ) करणविधिस्तु द्विधा धर्मानुष्ठानागमनं भणताssवश्यकचूर्णिकृताऽप्याश्रयणात्, तथाहि - "आयरियपरं-परएण आगये आणुपुद्दीए - कमपरिवाडिए मुत्तओ १ अत्थओर करणओइय" ति यद्वा दंडकाः शक्रस्तवादयः पंच स्तुतियुगलं च-सामयिकभाषया स्तुतिचतुष्टयमुच्यते, यत आद्याः तिस्रोऽपि चूलिकास्तुतयो वंदनादिरूपत्वादेका चूलिका स्तुतिर्गण्यते १ For Private And Personal Gyanmandir चैत्यबन्दनाभेदा: ॥१७८॥ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mal Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्री - धर्म० संघा चारविधौ ॥ १७९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas 'इअ अप्पपरे उभए अणुसाधुहात एगति निशाघ्र भाष्यवचनातु चतुथा चालेकास्तुतिरनुशास्तिरूपत्वाद् द्वितीया चूलिकास्तुतिरुच्यते इति, वंदनास्तुत्यनुशास्तिस्तुतिरूपस्तुतियुगले चूलिकास्तुतिचतुष्टयं भवति, अत एवाधिकारिणोऽपि वंदनीयस्तवनीय भेदाद्विघोक्ताः, अथवैका स्तुतिः चैत्यवंदनादंड ककायोत्सर्गानंतरमन्यान्याधिकृततीर्थकृद्विषयतया अन्यान्यपरावर्त्तनेनानियतगोचरत्वात् आद्या चूलिकास्तुतिरध्रुवा, द्वितीयाद्यास्तु तिस्र चूलिकास्तुतयः सर्वचैत्येषु सर्ववंदनाकर्तृभिः ध्रुबभणनीयाः लोगस्स १ पुक्खरखर २ सिद्धाणं बुद्धाण३ मित्याद्यपदाभिधाननामस्तुति १ श्रुतस्तुति २ सिद्धस्तुति ३रूपदं डकत्रय कायोत्सर्गानंतरं दीयमाना सकलाईत्स्तुति १ प्रवचनस्तुति २ प्रवचनभक्तदेवतास्तुति३रूपा नियतगोचरत्वात् घुत्रचूलिकाः, एताश्च तिस्रोsपि ध्रुवत्वसाम्यादेका द्वितीया ध्रुवा चूलिका स्तुतिर्गण्यते, एवं धुवाधुवरूपचूलिकास्तुतियुगले चूलिकास्तुतिचतुष्टयं भवति, ततो दण्डकाः पंच स्तुतियुगलं च पूर्वोक्तनीत्या स्तुतिचतुष्टयरूपं यस्यां अभ्रादित्वादप्रत्यये दण्डस्तुतियुगला मध्यमा चैत्यवंदना । "वंदित्वा द्वितीयप्रणिपातदंडकावसाने" इति पंचवस्तुकोक्त विधिवचनादते द्वितीयशक्रस्तवपाठे द्वितीयशक्रस्तवांता स्तवप्रणिधानादिरहिता, एकवारवंदनां वंदित्वा इत्यर्थः, उक्तं च- "दंडपंचगथुइजुयलपाढओ मज्झिमुकोसा" एतच्च - " निस्सकडमनिस्सकडे वावि चेंइए सबहिं थुई तिनि"त्ति कल्पनिर्युक्तिभणितत्वाद् व्याख्यातं यतः थुई तिन्निति कोऽर्थः १-सकत्थयाइयं चेइयवंदणमित्यागमवचनात् शक्रस्तवादिचैत्यदंडक कायोत्सर्गानंतरमधिकृतजिनाश्रिताधुवाद्यचूलिकास्तुतिदानेन प्रस्तुत देवगृहस्थिता - |ईतां चैत्यवंदनं विधाय पश्चादशेषजिनादिवंदनाद्यर्थं लोगस्सुज्जोय १ पुक्लरवर २ सिद्धाणं बुद्धाणमिति दंडकत्रयरूपाः स्वस्वकायोत्सर्गान्तास्तिस्रः सूत्रस्तुतयः 'उस्सग्गे पारियम्मि थुई' चि नियुक्तिवचनात् तत्कायोत्सर्गानंतरं दातव्य सर्वजिन स्तुति १ सिद्धांत For Private And Personal Gyanmandir चैत्यवन्दनाभेदाः 1185811 Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mal Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash Gyanmandir चंत्यवन्दनामदाः श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म संघाचारविधौ ॥१८॥ | स्तुति२ सम्यग्दृष्टिदेवतास्तुति३रूपनियतद्वितीयतृतीयचतुर्थीचूलिकास्तुतित्रयसहिता सर्वचैत्येषु दातव्या इत्यर्थः, एताच तिखाः प्रथमाध्रुवचूलिकास्तुतिसहिताश्चतस्रः चूलिकास्तुतयो भवंति, ताश्रतस्रोऽपि ध्रुवाध्रुवस्तुतिमेदेन द्विधा भवतः, ते च युगलशन्देनोच्यते इति स्तुतियुगलं स्तुतिचतुष्टयमुक्तं, तथा तुलादंडवत् मध्यग्रहणादाद्यतयोरपि ग्रहणमिति न्यायात् इह यथाऽऽदौ शक्र|स्तवचैत्यदंडककायोत्सर्गादि नियत भण्यते तथा अंतेऽपि चतुर्थकायोत्सर्गस्तुत्यंते शक्रस्तबादि ध्रुवं भणनीय, करणविधौ तथा-| ऽऽयातत्वात् , उक्तं च पंचवस्तुके-"सेहमिह वामपासे ठवित्तु तो चेइए य वंदति । साहहि समं गुरखो धुइवुड्ढी अप्पणा चेव ॥१॥"आचार्या एव च्छंदपाठाभ्यां वर्धमाना स्तुतीर्ददति 'वंदिय पुणुद्विआणं गुरूण तो वंदणं समं दाउं। सेहो भणई इच्छाकारेणं संदिसावेह ॥१॥" वंदित्वा-द्वितीयप्रणिपातदण्डकावसाने" तथा ललितविस्तरायां चतुर्थकायोत्सर्गसूत्रस्तुती तु सूत्रायुक्तत्वादवश्यमेव भणनीये, तथा च ललितविस्तरायां उक्तम्-"केचिचन्या अपि पठंति,न च तत्र नियम इति न तव्याख्यान क्रिये"ति, अयमर्थः-अन्या अपीति उक्तानुक्तादिसंग्रहरूपत्वेनात्र पंचमदण्डके स्थानत्वात् तत्तदपाठेऽपि सूत्रसंधानादिदोपानापते, न च तत्र नियम एका द्वे तिस्र इत्यादि,क्षेत्रकालाद्यपेक्षया कापि तीर्थे कासांचित् पाठादित्यनियतत्वात् तद्व्याख्यानाभाव एव, एतावता यदत्र व्याख्यातं तनियमेन भणनीयमिति प्रतिपादितं, व्याख्यातं प्रसिद्धाधिकृततीर्थेशस्तुतिवत् सूत्रतया नियमभणनीयत्वेन वेयावञ्चग राणमित्यादिचतुर्थकायोत्सर्गसूत्रस्तुत्यादि तत्र, यथा-एवमेतत् सिद्धाणं युद्धाणं पठित्वा उपचितपुण्यसंभारा उचितेषूपयोगफलमेत| दिति ज्ञापनार्थ पठंति वेयावञ्चगराणमित्यादि, कायोत्सर्गविस्तरः पूर्ववत् ,म्तुतिश्च, नवरमेषां वैयावृत्यकराणां तथा तद्भावबद्धरित्युक्तं प्रयोजनं, प्रशंसितः प्रस्तुतकार्याय प्रोत्सहत इति प्रसिद्धमेवेत्यर्थः,तदपरिज्ञानेऽप्यस्मात् तच्छुभसिद्धाविदमेव च मूत्रं ब्रापकं,न चासि MIRRIHINDIPPIRITERATI | ॥१८॥ For Private And Personal Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mall www.kobatirth.org श्रीदे. चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधी ॥१८॥ Aradhana Kendra Acharya Shri Kailas Gyanmandit द्धमेतद्, अमिचारकादौ मंत्रवादे तथेक्षणात् ,सदौचित्यप्रवृत्त्या सर्वत्र प्रवर्तितव्यमित्यैदपर्यमस्स",एषाध्रुवं भणनीया, अत्र चतुर्थीचू-0 चैत्यवन्दलिकास्तुत्यंता पंचमदंडकरूपा तृतीया स्त्रस्तुतिः,संपूर्णा चैत्यवंदना,चूर्णिकादायप्येतदंतं व्याख्यायोक्तं यथा सिद्धत्थदंडयविवरणं ।। नाभेदाः | संमत्तं", तथा पाक्षिकचूणौँ 'विरइपडिवत्तिकाले चिइवंदणमाइणोवयारेण अवस्सं अहासंनिहिया देवया संनिहाणंमि भवंति अतो देवसक्खिरंभणियं" इहापि वंदनामध्ये देवाद्युपचारस्तत्कायोत्सर्गस्तुत्यादि विना कोऽन्य इति, पाक्षिकाद्यागमोक्तत्वाद् नियतसु. दृष्टिदेवताकायोत्सर्गस्तुत्यादि सिद्धाणबुद्धाणमित्तिनाम्न्याः तृतीयसूत्रस्तुत्या अंते अवश्य भणनीयं, उक्तानुक्तादिसंग्रहरूपत्वादस्याः सिद्धस्तवापरनाम्न्या सूत्रस्तुतेः, एषैव चैवंसूत्ररूपसुदृष्टिसरणाभिधद्वादशमाधिकारांतः पंचमदण्डक उच्यते, भणितं च-"इह ललियवित्थरावित्तीइ वक्खायमुत्तअणुसारा। सुत्तुत्त नव अहिगारा दु दस इगारस सुताचरणा ॥१॥ आवश्यकचूर्णिकारादिषहुश्रुतसंमता इत्यर्थः, आह च-"आवस्सयचुण्णीए. जं भणियं सेसया जहिच्छाए। तेणं उजिंताइवि अहिगारा सुयमया चेव ॥ १।" एतावता भाष्यांतरोक्तजघन्यादिभेदा मध्यमापि व्याख्याता, यतो बृहद्भाष्ये-उकोसा तिविहावि हु कायचा सत्तिओ उभयकालं । सेसा पुण छन्भेया चेइयपरिवाडिमाईसु ॥१॥ (१६२-१६३) भणितं च कल्पभाष्ये-'निस्सकडमनिस्सकडे'त्यादि ।। एवं प्रागुक्त| युक्त्या निस्सकडेतिगावया मध्यमा चैत्यवंदना भणिता दण्डकस्तुतियुगलपाठरूयेति स्थितं, अन्यत्राप्युक्तं-"चिइवंदणं तु नेयं | सुत्तत्थुवओगओ समाहीए । अक्खलिआइगुणजुअंदंडगपंचगसमुच्चरणं ॥१॥" नैवं चेत् ततोऽन्त्यकायोत्सर्गादिवदादिशक्रस्तव कायोत्सर्गाद्यप्यभणनीयं स्यात् , निस्सकडेत्यादौ अनुक्तत्वात् , एवं चान्यत् स्तुतिस्तोत्रप्रणिधानादि सर्वमपि अभणनीयं प्रामोति | भवतां चैत्यमध्ये, उक्तयुक्तरेव, उक्तं च-"जह इत्तिअमित्वं चिचिइवंदणमणुमयं मुए हुतं । थुइथुत्ताइपविची निरत्थिा हुज ॥१८॥ For Private And Personal Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha r adhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash vanmandir चैत्यवन्दनामेदाः श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधी ॥१८॥ समावि ॥१॥" परिभाव्यमत्र सम्यग् कुग्रहविरहेण, यदागमः-जं जह सुत्ते भणियं तहेव तं जइ विआरणा नत्थि । किं कालिआणु ओगो दिवो दिटिप्पहाणेहिं ? ॥१॥" इह च सर्वत्राप्यादौ प्रथममीर्यापथिकी प्रतिक्रमितव्याः, तथा चागमः-ता गोयमा | अप्पडिकंताए ईरियावहिवाए न कप्पइ चेव किंचि चिइबंदणासज्झायज्माणाइअं फलासायममिकंखुगाणं"दशवैकालिकेऽपि द्वितीयचूलिकायां 'अभिक्खणं काउसग्गकारी'ति सूत्रस्य वृत्तिः-"अभीक्ष्णं गमनागमनादिषु कायोत्सर्गकारी भवेत् , ईर्यापथप्रतिक्रमणमकृत्वा न किंचिदन्यत् कुर्यात् , तदशुद्धतापत्ते"रिति भावः, यदि परमत्रोत्कृष्टशब्दवर्जिते बहुश्रुतसामाचारी तां निरंभति, नान्यदिति ।। उक्ता सप्रमेदामध्यमापि वंदना, इयमेव च स्तवप्रणिधानादिपर्यतोत्कृष्टा भवतीति, उक्तं च बृहदभाष्ये-"उकोसजहना पुण सचिय सकत्थयाइपज्जंता (१५७) एतदर्थप्रतिपादनायाह पणदंडथुइचउकगथयपणिहाणेहिं उक्कोसत्ति पश्चाई। पंचमिदंडकैः शक्रस्तवादिसुदृष्टिकायोत्सर्गपर्यतैः स्तुतिचतुष्केन वंदनानुशास्तिस्तुतिरूपचूलिकास्तुतिचतुष्टयेन द्वितीयदंडकादिकायोत्सर्गचतुष्कांतदातव्यस्तवेन जघन्यतोऽपि चतुःश्लोकादिना मानेन 'चउसिलोगाइ, परेणं थो चेव" इति व्यवहारचूर्णिभणनात् द्वितीयशक्रस्तवांते भणनीयेन, तदादौ भण्यमानस्य नमस्कारतापत्तेः, प्रणिधानैश्च-वक्ष्यमाणस्वरूपैः वंदनांते विधेयैरुत्कृष्टा-संपूर्णा, चैत्यवंदना इत्यत्रापि योज्यं, उक्तं च चैत्यवंदनाचूर्णी- "सक्कत्थयाइदंडगपंचगधुईचउकगपणिहाणकरणाओ उक्कोस"त्ति, तथाऽन्यत्र-"सकत्थयाइदंडगपणगथुइचउक्कथुत्तपणिहाणा। संपुन्ना चेइअवंदणा.उ हबई जओ भणिज ॥१॥ दुन्भिगंधमलस्सावि, तणुरप्पेसऽण्हाणिया। उभओ वाउवहो चेव, तेण टुंति न चेइए ।।२।। तिमि वा कई जाव, थुइओ For Private And Personal m ॥१८२।। Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrik Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyarmandir चैत्यवन्दनामेदा: श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म० संघा चारविषौ ॥१८॥ तिसिलोइआ । ताव तत्थ अणुनायं, कारणेणं परेणवि ॥३॥" एतयोर्भावार्थ:-साधवश्वैत्यगृहे न तिष्ठति, अथवा चैत्यवंदनात्यशक्रस्तवानंतरं तिस्रः स्तुतयः श्लोकत्रयप्रमाणाः प्रणिधानार्थ यावत् कर्ण्यते प्रतिक्रमणानंतरं मंगलार्थ स्तुतित्रयपाठवत् तावचैत्यगृहे साधूनामवस्थानमनुज्ञातं, न निष्कारणं परतः, शालिसूरीयभाष्येऽप्युक्तम्-दंडगपंचगथुइजुयलपाढपणिहाणसहि उक्कोसा । अहव पणिवायदंडग पंचगजुअविहिजुआ वेसा ॥ १॥" प्रथमं मतं चेह उक्तं, तिमि वा कढई जावेत्यादिभावार्थः प्रागुक्त एव, सिद्धादिश्लोकत्रयमात्रांतपाठे तु संपूर्णवंदनाया अभाव एव, प्रथममते श्लोकत्रयपाठानंतरं चैत्यगृहेऽवस्थानाननुगतेन प्रणिधानासद्भावात् , भणितं च आगमे वंदनांते प्रणिधानं, यथा 'वंदह नमसइति सूत्रवृत्तिः-चंदते ताः प्रतिमाश्चैत्यवंदनविधिना प्रसिद्धेन, नमस्करोति पश्चात् प्रणिधानादियोगेने"ति वंदनांते तिस्रः स्तुतयोत्र प्रणिधानरूपा ज्ञेयाः, सर्वथा परिभाव्यं अत्र पूर्वापराविरोधेन प्रवचनगांभीर्य मुक्वाभिनिवेशमिति, यद्वा पंचदंडकैः द्विरुक्तैरिति गम्यं, स्तुतिचतुष्केण स्तुतियुगलद्वयगतेन एकैकयुगले वंदनानुशास्तिस्तुतिरूपस्तुतिद्वयद्वयगणनेन युगलद्वये स्तुतिचतुष्टयभावात् , शेषं प्राग्वत् , उत्कृष्टा वंदना इति, उक्तं च-जा थुइयुगलदुगेणं दुगुणियचिइवंदणाइ पुणो । उक्कोसमज्झिमा सा" अथवा पंचदंडकैः शक्रस्तवरूपैः स्तुतिचतुष्केण प्रागु. कनीत्या स्तुतियुगलद्वयेन गतेन, शेषं प्राग्वत् , उत्कृष्टा वंदना, भणितं च-"उक्कोसुक्कोसियाय पुण नेया। पणिवायफणगपणिहाणतियगथुत्ताइ संपुग्ना ॥१॥ सक्कत्थओय इरिया दुगुणियचिहवंदणाइ तह तिनि । सुत्तपणिहाणसक्कत्थओ अ इय पंचसक्कथया ॥२॥ एतावता 'तिहा उ वंदणया' इत्याद्यद्वारगततुशब्दसूचितं नवविधत्वमप्युक्तं द्रष्टव्यं, उक्तं च बृहद्भाष्ये| "चिइवंदणा तिभेया जहनिया मज्झिमा य उक्कोसा। इक्विक्वावि तिभेया जहअमज्झिमियउकोसा ॥१॥ (१५३) नवकारेण जहन्ना NIGHERARIES ॥१८३॥ For Private And Personal Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mate 18h Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir श्रीदे रनसारकथा चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधी ॥१८४॥ NIBRARIANS attisht A MEETINENTATES PRIMALAPHARNA इच्चाई जं च वण्णिा तिविहा । नवभेयाणमिमेसिं नेय उवलक्खणं तं तु ॥ २ ॥ एसा नवप्पयारा आइण्णा वंदणा जिणमयंमि। कालोचियकारीणं अनग्गहाणं सुहा सव्वा ॥३।। (१६३)"रत्नसारनरेन्द्रवत्। बहुभेया पुण एसा भणियत्ति बहुस्सुएहिं पुरि| सेहिं । संपुनमचायतो मा कोइ चइज सर्वपि ॥१॥ भणियं च-वित्तिकिरियाऽविरोहो अबवायनिबंधणं गिहत्थाणं। किरियंतरकालाविक्खयाइ भावो सुसाहूणं ॥१॥ अहवा चिइवंदणया निचा इअरत्ति होइ दुविदा उ । निचा उ उभयसंझमि इयरा चेइअगिहाईसु ॥२॥ निचा संपुनच्चिय इयरा जहसत्तिओ य कायवा । तविप्लयमिमं सुत्तं मुणंति गीआउ परमत्थं ॥३॥ उप्पन्नसंसया जे सम्म पुच्छंति नेव गीयत्थे । चुकंति सुद्धमग्गा ते पल्लवगाहिपंडिच्चा॥४॥ किंच-गीयत्था विहिरसिआ संविग्गतमा य मरिणो पुरिसा । कह ते सुत्तविरुद्धं सामायारं परूवंति ॥ ५॥ पूर्वसूचितरत्नसारनरेन्द्रकथा त्वियं-इह अस्थि हथिणपुरं पुरं पुरंदरपुरं व बहुविबुहं । तत्थ निवो सिरिसेणो सिरिवइनामा पिया तस्स ॥१॥ वाण सुओ जयविस्सुअगुणरयणो रयणसार इय कुमरो। जिणपवयणकुसलमई सुमई नामेण से मित्तो ॥२॥ तत्थागया कयावि हु सिरिसंगमसूरिणो पणमिते । पत्ता निवाइलोआ गुरुणोऽवि कहंति इय धम्मं ॥३॥ "इह जलनिहिभुअचिंतारयणं व सुदुल्लहं मणुअजम्मं । रोरस्स निहाणंपिव तत्थवि सम्मत्तमइदुलहं ॥ ४॥ कहकहवि तंपि लहिउं तस्सुद्धिकए करेह पइदिवसं । मज्झजहन्नुकोसं चिइवंदणयं जहासमयं ॥ ५॥ तत्थ-एगनमुकारेणं बहुविहसकथएण व जहन्ना। इरियनमुक्काराईपणिहाणंतेण बिइगेणं ॥ ६ ॥ सचिब इगचूलथुई उज्जोअगरंति जाब मज्झिमया। पणदंडथुइचउक्कगपणिहाण विणति जं भणियं ॥७॥ 'निस्सकडमनिस्सकडे त्यादि । सक्कथयचिइवंदणथयनामथयाइ तिनि थुइदंडा । एवं पणदंडा चउथुइजुया अंतसक्कथया ॥ ८॥ जा थयपणिहाणंता उक्कोसा दुगुणपंचदंडा वा ॥१८॥ For Private And Personal Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri www.kcbatirth.org Gyarmandit रलसारकथा HAMARPAWANI श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥१८५॥ M Aradhana Kendra Acharya Shri Kailah पणसक्कत्थया वा थयपणिहाणत्तियथुइतिगंता ॥९॥ भणितं च-'दुन्भिगंधमलस्सावि, तणुरप्पेसऽण्हाणिया । उभओवाउवहो चेव, | तेण द्रुति न चेइए ॥१०॥ तिन्नि वा कडूई जाव, थुईओ तिसिलोइया।-चैत्यवंदनांते प्रणिधानरूपा, ताव तत्थ अणुनायं, कारणेण | परेणवि ॥११॥जओ-सुरभवणं नियभवणं व होइ तह किंकरिव चक्कसिरी । सुइरं विलसंति य सतणुम्मि उग्गसोहग्गपमुहगुणा | ॥१२॥ सुहउत्तारो गुप्पयजलं व अवि एस हुन्ज भवजलही। सिद्धिसुहंपि अभिमुहं नराण चिअवंदणपराणं ॥१३॥ अविअ-विसमंपि समं सभयंपि निभयं दुञ्जणोवि सुयणिव्य । विहिविहियचेइवंदणभावओ जायइ जिणाणं ॥१४॥” इअसोउ निवो कुमरो अन्नोऽवि जणो ससत्ति गहिऊणं । चिइबंदणाइनियमे नमिय गुरुं सगिहमणुपत्तो॥१५॥ कइयावि मित्तजुत्तो कुमरो चउरंगसिनपरियरिओ। जा जाइ रायबाडीइ निययनगराउ दूरेण ॥१६॥ ता नियइ कंपि पुरिसं कसिणमुहं उप्पहेण वचंतं । रायालंकारधरं परिमियपरिवारपरियरिअं ।। १७ ॥ तो पसिऊण कुमारो तं पइ इअ भाणए नियनरेहिं । नणु किहणु दिसह तुब्भे विसायभरपूरिअमणुव्व ॥१८॥ किह उप्पहेण वच्चह निवरूवधरावि तयणु इयरेण । णुन्नाओ वरपुरिसो एगो झ्य भणइ जह भद्दा ! ॥१९॥ सोवीरदेसपहुणो पयावसुराभिहाणनरवइणो । दइआसि मयणरेहा रेहा इव रूबवंतीसु ॥२०॥ सा अन्नदिणे केणवि सुहसुत्ता अवहडा | तओ निवई । तदुसहविरहदुहिअं इअ जंपइ कोइ जोइसिओ ॥२१॥ देव! मणे मा तम्मसु अटुंगनिमित्तओ मए नाया। देवीइ मयणरेहाइ विमलसीलाइ नणु सुद्धी ॥२२॥ तथाहि-अप्पडिरूवं रूवं देवीए निसुणिऊण ऊणमई। मयणसरपसरविहुरो कलिंगपहुसीहसेणनिवो ॥२३॥ सुरसम्मनामकाबालिएण आकिट्ठिलद्धिजुत्तेण । निसि सुहमिन्ति(सुत्त) देविं हरावए दाउ बहुदवं ॥२४॥ तं सोउ झत्ति ताडियजयदकासद्दमिलियसयलबलो । अक्खलियपयाणेहिं राया पत्तो सदेसंते ॥२५॥ इयरोऽविहु चरन Primammarmu MHILAMPARISHAPNAINITAMILLUPUNLINE URAR १८५॥ For Private And Personal Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shi l a Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shiksh uri Gyarmande श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥१८६॥ खयणसवणविनायसयलवुत्तो । नियसीमंतं पत्तो हयगयरहसुहडकोडिजुओ।। २६ ॥ तो सरहसताडियसमरतूरखनस्समाणमी- ID रनसारकथा रुनरं । कुंतग्गमित्रगयतुरयषहरुहिरुल्लाससमरधरं ॥ २७ ॥ उम्भडभडंतभडकोडिमुक्कसरविसरपिहियनरविसरं। दुव्हवि अग्गाजीए तेसिं जायं महासमरं ।। २८ ॥ अह लद्धोगासेणं कलिंगसामिस्स वीरवाएण । भग्गं खणेण सिन पयावसरस्स निवइस्स ॥२९॥ इत्थंतरंमि नेमित्तएण एगेण झत्ति आगंतुं । भणिओ सुजुत्तिजुत्तं पयावमूरो निवो एवं ॥३०॥ संपइन तुज्म जुत्तं जुझिउमुज्झियदयं महीदइयं । निययप्पवायनिज्जियरविणा इमिणा समं रिउणा ॥३१॥ किंतु लहु गयपुराहिवसिरिसेणसुएण रयण| सारेण । सारवलेण खणेणं कजमिणं तुज्झ सिज्झिहिइ ॥ ३२ ॥ इय सोउं सचिवेहिं सुबहु विनविय णिजमाणोवि । कामवि पयावसूरो समरधराओ अवक्कमिओ ॥३३।। सो एस इत्थिणपुरं वच्चा सिरिरयणसारपासंमि । तं सोउ तेऽवि हसिरा कहंति कुमरस्स आगम्म ॥३४॥ अविहियवयणवियारो कुमरोवि हु तस्स पासमासज। जंपइ नरिंद! करिहिसि तेणं किं रयणसारेण ॥३५|| | तुह कजं साहिस्सं अहंपि अह इंगिआइकुसलो सो। भण्णइ कुमर महायस एवं चित्र आगओसि तुमं ॥३६।। तो कुमरो तेण निवेण | संजुओ सीहसेणममि चलिओ। जा जाइ कपि भूमिं ता केणवि इय नरेणुत्तो॥३७।। मइ सारहिंमि एयंमि रहबरे आरुहिय कुमर ! तुमं दलसु। दप्पं एयस्स लहुं तहत्ति पडिवजए कुमरो॥३८। अह पउरसमरसंपन्नविजयगयो कुमारवरमितं । सोऊण कलिंगपहू सन्जीहोउं ठिोऽमिमुहो ॥३९॥ तो दोऽवि कोवउक्कडभिउडिणो ते भिडंति वरसुहडा । निसिअसरधोरणीहिं तिरयंता तरणितेयभरं ॥४०॥ खणमित्तेण कुमारो रहाउ पाडित्तु सीहसेणनिवं । दबंधेहिं बंधिय पखिबई कट्ठपंजरए ॥४१॥ पणयं च सत्तुवग्गं संठबिउं पविसए पुरे तस्स । अप्पइ पयावसूरस्स विमलसीलं मयणरेहं ॥४२॥ दावइ कलिंगविसए नियआणं कठ्ठपिंजरे खिचे।) | ॥१८६॥ For Private And Personal Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M www.kobatirth.org श्रीदे० चैत्य श्रीधर्मसंघाचारविधी ॥१८७|| immgohamments ४५॥ भुजो इय अमायं कयाविन I Imamitmetim m त सप्पुरिसा। सुरहेइ चंदणतापराधिनि, सणं य a h Aradhana Kendra Acharya Shri Kaital Gyarmandir निवइंमि सीहसेणे तह उचिअं असणपाणाई ॥ ४३ ॥ रहिउ गओ सदेसं पयावसूरो तहा निवा अने। निअनिअधुध आणित्तुं मरमसारकथा दिति परिणेइ कुमरोऽवि ॥४४॥ कइयावि रयणसारो पयावस्रेण निवइणा भणिओ। पहु! कट्टपंजराओ मुअसु इमं सीहसेणनिवं ॥४५॥ भुजो इय अनायं कयावि नहु काहिई धुवं एसो। सप्पुरिसाण य कोहोजह हुज परंपणामंतो ॥४६।। अवियअबराहकारयमिवि जणे सुहं चिय कुणंति सप्पुरिसा। सुरहेइ चंदणतरू परसुमुहं छिजमाणोवि ॥४७॥ अनं च-उपकारिणि वीतमत्सरे, सदयत्वं यदि तत्र कोऽतिरेकः । अहिते सहसाऽपराधिनि, सणं यस्य मनः सतां स धूर्यः ॥ ४८ ॥ इय बहुविहं कुमारो भणिजमाणोऽवि तेण अनेहिं । निवईहि देइ न किंपि उत्तरं जंति इय दिवसा ।। ४९ ॥ तत्थऽनदिणे चउनाणसंजुओ बहुसुसीसपरिवारो। सिरिविमलयोहसूरी दूरीकयतमभरो पचो ॥ ५० ॥ पचा महया भडचडगरेण निवकुमरपमुहबहुलोआ। गुरुणो नमिय निसमा इय सूरी कहइ धम्मकहं ।।२१।। “कोहो पीई पणासेइ, माणो विणयनासणो। माया मित्चाई नासेइ, लोभो सबविणासणो॥५२।। कोहो य माणो य अणिग्गहीया,माया य लोहो व पवढमाणा। चत्वारि एए कसिणा कसाया, सिंचंति मूलाई पुणब्भवस्स ।।१३।। उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे। मायं चऽजवभावेणं, लोभं संतोसपोसओ(ओ जिणे)॥५४॥"अह समए कुमरवरो पुच्छइ मह सीहसेणनरवडणा । को इह विरोहहेऊ? भणइ गुरू सुणसु भो भद्द! ॥५५|| आसी पुच्चविदेहे पुक्खलवईविजय पुंडरिणीए। आणंदो नाम निवो दईआ पउमावई तस्स ॥५६॥ पुत्ती| य विमलसीला सीलवई नाम सा सिसुत्तेऽवि । जिणचिहवंदणनिरया लट्ठा जइणसमयंमि ।।५७॥ तस्स यरनो विइअंब आसयं आसि खयरमणिचूडो। सो पेमवसा मुत्तुं नियनयरं ठाइ निवपासे ॥५८॥ भवणोवरिं कीलंति सहिया सहियाजणेण सीलबई।। ॥१८७॥ h ammarAIHIRANAMIKANERINAR a IBILERTAINMENT IAANTIPAHIRIANSHIPPAIDAINIK For Private And Personal Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IAWL.. Shri Margo Win Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailal i Gyarmandir m श्रीदे. चैत्यश्री-|| धर्म संघाचारविधी ॥१८८॥ ammHARI imali अनदिणे अवहरिया अणंगसिहनामखयरेण ॥५९॥ तो पुक्करिअं सहिआजणेण उप्पिच्छ पिच्छ नणु ताय ! । खयराहमण केणवि | मरसारकथा निजइ गयणमि सीलवई ॥६०॥ तं सोउ सोयविहुरं आणंदनिवं कहंपि संठविउं । उप्पइओ मणिचूडो तप्पिट्ठीए नहषहमि ॥६१॥ | रे ठाहि ठाहि अविदिनकन्नयाहरणसज निल्लज्ज । इअ तजंतो पत्तो तो दोवि भिडंति ते सुहडा ॥॥ तेसिं जुझताणं सीलवई | निवडिआ विमलसेले । अन्नुन्न पहरिय ते उ दोवि पंचत्तमणुपत्ता ।। ६३॥ अह सीहरुद्दसद्दलरुद्दभयभेरवं पएसं तं । दटुं भयलोललोयणतारा पलवेइ इय बाला ॥६४॥ हा ताय ! तायसु ममं हा जणणि जणसु झत्ति मह सारं । हा हा नरचूडामणिमणिचूड गओऽसि कमवत्थं ? ॥ ६५ ।। जं जीव ! कयं तुमए पुत्वभवे तं मुहागयं इहि । परिदेविएण तो किं इयऽप्पणा संठवइ अप्पं ॥६६॥ न य बंधुणो न पहुणो न य सुहिणो पक्खवाइणोऽवि परा। कजं न सरइ विमुहे विहिमि दिहतए सक्खं ॥६७।। ताइक चिय सुकयं ताणं सरणं जियाण इत्यत्ति ।चिंतिय एगपएसे सा तत्थालिहइ जिणपडिमं ॥६८॥ तं झायंती निच्चं तिविहाए वंदणाएँ वंदंती । हत्थसयमज्झभागे निम्मियदेसावमासिवया ॥ ६९ ॥ तत्थट्टिअतरुनिवडि अफलभरसरसलिलधरियनियपाणा | उग्गतवसोसियंगी अंगीकयविविहवयनियमा ॥ ७० ॥ जीवियमरणेसु समा समाहिणा गहियअणमणा कइया । जा चिट्ठइ सा बाला मुमरंती पंचनमुकारं ॥ ७१ ॥ तो तेण पएसेणं गच्छंतो सासए जिणे नमिउं । तं नियइ कोवि खयरो गसिजमाणं अयगरेणं ॥७२।। तो सो फुरंतरोसो आकडिअउग्गमंडलग्गो य । जा तं कयंतभीसणदेहं हयअयगरं हणिही ।।७३।। ता करुणाभरमंथरगिराइ बाला भणेइ अहहहहा । एयस्स मज्झ तणुणो कए सया पडणधम्मस्स ॥ ७४ ॥ कहकहनि पत्तभक्खं जीविअअभिकंखिरं दुहक्कंतं । अयगरमिमं वरायं मा मा मारेसु खयरवर ! ॥७॥ किंच-अथिरेण थिरो समलेण ॥१८८॥ For Private And Personal Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri B i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaill e ur Gyanmandir श्रीदे० धर्म संघा चारविधी ॥१८९॥ निम्मलो परवसेण साहीणो। कीरइ परोवयारो तणुणा जइ तो न कि पजतं? ॥७६॥ एईइ अहो करुणा अहो रजसारकथा विवेओ अहो तवो य थिई । इय चिंतंतो तत्तो पत्तो खयरो सठाणंमि ॥७७|| साबिहु अयगरगसिआ पंचनमुक्कारसुमरणपहाणा । मरिऊण पदमकप्पे जाओ सामाणिो देवो ॥७८ ॥ विहरंतजिणवराणं निसुणंतो देसणं सवणसुहयं । विहिणा उ वंदणाए वंदतो सासयजिणिंदे ॥७९|| अवाहियाइमहिम नंदीसरपमुहगिरिसु कुवंतो। केवलिमुणी नमंतो नियमाउं पूरए तत्थ ।। ८० ॥ कालेण चविय तत्तो तो सो सिरिसेण नरवरंगरुहो । पडिपुनपुनसारो जाओसि तुम स्यणसारो ।। ८१ ।। सो पुण समरम्मि मओ अणंगसिहखेयरो भवे भमिउं । अजिणिय किंपि मुकयं संजाओ सीहसेणनियो ।।८।। जो अयगरं हणतो खयरो उ तया भवं ममिय तत्तो । किंचि कयसुकयवसओ जाओऽसि पयावसूर! तुमं ।।८।। पुत्वभवब्भासाओ इत्थीलोलेण सीहसेणेण । सोउं रूवं आणाविया उ एसा मयणरेहा ॥८४|| इय कुमर ! तुह पोसो फुरिओ निमुएवि सीहसेणनिवे । तह पढम चिय दिढे पयावसूरे अइसिणेहो ॥८॥ सो चिय अयगरजीवो मरि भमिउं भवअरनंमि । काऊण किंपि कट्ठाणुहाणं पुन्धजम्मंमि ॥८६॥ जाओ पढमे कप्पे सीलवइसुरस्स किंकरो अमरो । सो चेव तया समरे कुमर ! तुह अकासि साहिजं ॥८७॥ इय सोउ जायजाईसरणो कुमरो | लहुं मुयावेइ । निवई कलिंगनाहं पुन्वभवं सोउ सोऽवि नियं ॥८८ ॥ भुजो भुज्जो खामिय पयावसूरं निवं तहा कुमरं । वेरग्गगओ गिण्हइ दिक्खं चउनाणिगुरुपासे ।। ८९॥ दाउ कुमरस्स रज्जं गुरुवेरग्गा पयावसूरोऽवि। दइयाइ मयणरेहाइ संजुओ गिण्हए दिक्खं ॥९॥ अह रयणसारराया ते रायरिसी नमित्तु गुरुणेहा । कयकिच्चं अप्पाणं मनंतो सगिहमणुपत्तो ॥९१ ॥ कइयावि सो नरिंदो अदम्भसरयन्भविन्भमजसोहो । दिसिजत्ताए चलिओ कलिओ चउरंगसिमेण ॥९२।। अनमंते नामंतो पपयाणं || ॥१८९॥ nil MHROPAIDAMHIMNP Partilihe For Private And Personal Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She W an Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kal tersuri Gyarmandir FASS श्रीदे वछियाई पूरंतो । चूरंतो रिउदप्पं कमसो पत्तो विणीयपुरि ।। ९३ ॥ तत्थेगं गिरिमुत्तुंगचंगसिंगग्गभग्गरविमग्गं । पिछवि मरनसारकबा चैत्यश्री- पुच्छह सुमई मिर्च को एस गिरिपवरो ॥९॥ “सो आह सामि! एसो अट्ठावयपचओ जयपसिद्धो । इह दससहस्समुणिवरधर्म संघा सहिओ सिद्धो रिसहनाहो ॥ ९५॥ एयस्सुवरि सिरिभरहकारियं एगजोयणपमाणं । जिणभवणमथि कलियं चउवीसजिणिंदपचारविधी IV डिमाहिं ॥९६|| तह एगो मह थूमो नवनवईमायनवनवइ थूभा। संति इह सामिइक्खागसेसमुणीणं तिथूमा य ॥९७ ॥ तह ॥१९॥ सत्तुंजयसिद्धा भरहवंसनिवई मुबुद्धिणा सिट्ठा। जह सगरसुयाणऽट्ठावएऽत्थ तह कित्तियं थुणिमो ॥९८ ।। (इह अट्ठावयसेले सगरसुयाणं सुबुद्धिसचिवेण । जह भरहवंसजनिवा सिट्टा तह किंचि किमि) ॥ ९९ ॥आइच्चजसाइ सिवे चउदसलक्खा उ एगु सचढे । एवं जाइक्किक्का असंख इय दुगतिगाईवि ॥१००। जा पन्नासमसंखा तो सबटुंमि लक्खचउदसगं। एगो सिवे तहेब य अस्संखा जाव पण्णासं ।।१०१ ।। तो दो लक्खा मुक्खे दुलक्ख सव्वट्टि मुक्खि लक्खतियं । इय इगलक्खुत्तरिया जा लक्ख | असंख दोमु समा ।। १०२ ॥ तो इगु सिवे सव्वढि दुनि ति सिर्वमि चउर सबढे । इय एगुत्तरवुड्ढी जाव असंखा पुढो दोसु | ॥१०३।। तो इगु मुक्खे सम्बढि तिन्नि पण मुक्खि इय दुरुचरिया । जादोसुऽविय असंखा एमेव तिउत्तरा सेढी ॥१०॥विसमुत्तरसेटीए हिढुवरि ठविय अउणतीस तिया । पढमे नत्थिक्खेवो सेसेसु सिया इमो खेवो॥१०५॥ दुगपण नवगं तेरस सतरस बावीस छच्च अडेव । बारस चउदस तह अट्ठवीस छब्बीस पणवीसा ।।१०६॥ एगारस तेवीसा सीयाला सयरि सतहत्तरिया । इगदुगसत्तासीई इगहचरिमेव बावट्ठी ॥१०७॥ अउणुचरि चउ(ग्रंथ ३००१)वीसा छायाला तह सयं तु छवीसा। मेलित्तु इगंतरिया सिद्धीए तह य सबढे । १०८॥ अतिल्लंकं आई ठविउं बीयाइ खेवगा तहय । एवमसंखा नेया जा अजियपिया समुप्पयो ।। १०९॥ ॥१९॥ HAMIN mammHIMINATIONS For Private And Personal Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kchairm.org sw Kopen Aradhana Kendra Acharya Sheik h Gyanmand श्रीदे० अस्संखकोडिलक्खा सिद्धा सव्वहगावि ठविय तओ। गिण्हियचरणा देविंदवंदिया सिवपय पत्ता ॥ ११० ॥" किं बहुणा नणु सरकथा चैत्य श्री इमिणा गिरिणा सुरअसुरखयरनिलएण । सयलेवि महीवलए अन्नो तल्लो गिरी नत्थि ॥१११॥" इति मित्रवचः श्रुत्वा, राजा धर्म संघा- विसितमानसः। तत्रारोहद् गिरौ भक्तिमारस्फारपरिच्छदः॥११२॥ प्रविश्य विधिना चैत्ये, स्नपयित्वा प्रपूज्य च। चतुर्विंशतितीर्थेचारविधौ शानिति स्तोतुं प्रचक्रमे ॥११३॥ "श्रीनामिमरुदेवांगप्रभवं कनकत्विषम् । वृषांक वृषभं वंदे, पंचचापशतीमितम् ॥११४।। गजांको ॥१९॥ रुक्मरुक्सार्धचतुर्धन्वशतोमतः। श्रिये स्तादजितस्वामी, विजयाजितशत्रुभूः ।। ११५ ॥ चतुश्चापशतोतुंगं, हेमामं वाहवाहनम् । जितारिराजसेनांगसंभवं शंभवं स्तुवे ॥११६॥ निष्कत्विषं प्लवंगांक, सिद्धार्थसंवरागजम् । सार्धत्रिशतधन्वाङ्ग, सेवेऽहममिनंदनम् | ॥११७।। कोदंडत्रिशतीमानः, कौंचलक्ष्माऽऽर्जुनद्युतिः। मुदे सुमतिनाथोऽस्तु, मंगलामेषभूपभूः ॥११८।। सार्द्धत्रिशतचापोचं, सुसीमावरनंदनम् । सरोजलक्षितं शोणप्रभ पद्मप्रभ स्तुवे ॥११९।। पृथ्वीप्रतिष्ठसंभृतिर्दिधन्वशतविग्रहः। सुपार्श्वनाथ ! रैरोचिः, स्वस्ति स्वस्तिकचिह्न! ते ॥१२०॥ चंद्रामं चंद्रलक्ष्माणं, लक्ष्मणामहसेनजम् । सार्द्धचापशतोच्छाय, नौमि चंद्रप्रभ प्रभुम् ॥१२१॥ सुग्रीवरामातनयं, मकरांक हिमच्छविम् । सुविधि विधिना वंदे, धनुःमतसमुच्छ्यम् ॥१२२।। पायानप्रतिधन्वोच्चः, स्वच्छः श्रीव. त्सलांछितः । नंदादृढरथोद्भूतः, शीतलः कनकयुतिः ॥ १२३ ॥ कल्याणकांतिः श्रीविष्णुविष्णुदेवीतनूरुहः। धन्वशीतिमितः | पातु, श्रेयांसः खङ्गिलांछनः ॥१२४|| वसुपूज्यजयासूनुमहिषांकोऽरुणप्रभः। चापसप्ततिदेहोऽव्याद् , वासुपूज्यजिनेश्वरः।।१२५॥ श्रीश्यामाकृतवर्मांगजन्मा पष्टिधनुस्तनुः। शूकरांको हिरण्यामः, शिवाय विमलोऽस्तु मे ॥१२६।। पंचाशद्धनुरुच्छायः, सुयशःसिंहसेनजः । श्येनांकः स्वर्णवर्णः स्तादनंतोऽनंतसंपदे ॥१२७ ।। सुबताभानुभूः पंचचत्वारिंशद्धनुम्मितः । जातरूपरुचिर्वजचिवो-14१९॥ For Private And Personal Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥१९२॥ ain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaisuri Gyanmandir | sव्याद् धर्मतीर्थकृत् ॥ १२८॥ चत्वारिंशद्धनुर्देहो, हेमधामा मृगध्वजः । विश्वसेनाचिराखनुः, श्रीशांतिः शांतयेऽस्तु नः ॥ १२९ ॥ छागांकः स्वर्णरुक् पंचत्रिंशत्कार्मुकमूर्तिभृत् । श्रीकुंथुः श्रेयसे सूरश्रीराज्ञीतनयोऽस्तु मे ॥ १३० ॥ नंदावर्ताकितं त्रिंशद्धन्वमानं वसु|च्छविम् । अरनाथं स्तुवे देवीसुदर्शनसमुद्भवम् ।। १३१ ॥ नीलं कुंभांकितं कुंभप्रभावत्यंगसंभवम् । पंचविंशतिकोदंडमूर्ति मछि| मुपास्महे ||१३२ || पद्मासुमित्रयोः पुत्रं, घनाभं कुर्म्मलक्षणम् । चापविंशतिमानांगं, स्तवीमि मुनिसुव्रतम् ॥१३३॥ वप्राविजयसंभूतं, नमिं नीलोत्पलांकितम् । शातकौभप्रभं पंचदशधन्वतनुं श्रये ॥ १३४ ॥ शंखांको दशचापोचः, समुद्र विजयात्मजः । शिवायास्तु शिवानुभिर्नवघनत्विषिः ।। १३५ ।। नवहस्तव पुलतमालदलदीधितिः । वामाश्वसेनभूर्भूत्यै, श्रीपार्श्वोऽस्तु फणिध्वजः | ॥ १३६ ॥ सप्तहस्तमितं सिंहलांछनं कांचनत्विषम् । सिद्धार्थत्रिशलासूनुं, श्रीवीरं प्रणिदध्महे ॥ १३७॥ एवं स्तुताः स्ववर्णाकमान - बापितृनामभिः । स्युः सदा धर्मकीर्तिश्रीनायका जिननायकाः || १३८ ||" पंचांगस्पृष्टभूपृष्ठः प्रणिपत्य पुनर्जिनान् । ततः चैत्यश्रियं पश्यन्, निर्ययौ नृपतिर्बहिः ॥ १३९ ॥ गुणमाणिक्यसिंधूनां बंधूनां भरतेशितुः । स्तूपेषु तत्र सिद्धानामर्चा आनर्च भक्तिभाक् || १४०|| कुतूहलवशोत्तानलोचनः क्षितिपश्च ताम् । यावन्निरीक्षमाणोऽस्ति सर्वतः पर्वतश्रिम् ॥ १४१ ॥ ता केणवि खयरेणं विमाणमारोविऊण लहु नीओ। वेयडनागसिरिपुरसामिरयणचूडनिवपासे ॥१४२॥ सप्पणयं तेणु तो नरवर ! कुलदेवयाइ कहिओऽसि । मह रिउकोसलपुरसामिविजय वम्मनिवविजयखमो ॥ १४३ ॥ ता गिण्ह लहु इमा गयणगामिणीपमिइ विज अह सोउं । तं साहिय बहुविअं इंतं खुद्धो विजयवम्मो || १४४ || अतुच्छलच्छिविच्छडुमंडियं छंडिउं गओ रजं । तं गहिय रयणसारो महियरिऊ सिरिपुरं पचो ।। १४५ ।। हिट्ठेण रयणचूडेण निवरणा नियसुयं कणयमालं । सिरिसेणनिबंगरुहो विवाहिओ गुरुविभूईए For Private And Personal रत्नसारकथा ॥१९२॥ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥१९३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir ||| १४६ ॥ तयणु विमाणारूढो राया खेयरसमूहपरियरिओ । प तो केलासनगे पिच्छइ नियसिनमहसुनं ॥ १४७ ॥ निअदंसणअमरणं तेसिं हरिउं विसायविसपसरं । नमिय जिणे उत्तरिडं नगाउ पत्तो विणियपुरिं ||१४८|| अह सरिय नमिय पिउणं मिसमुक्कंठियमणो महीनाहो । सेवितो बहुमउडबद्धनरवरसहस्सेहिं ॥ १४९ ॥ गयणयलं धरणियलं खेयरनिवहेहिं निययसेनेहिं । पूरंतो तुरंतो नियनियरामिमुहमह चलिओ || १५० ॥ एगेणं खपरेणं सिरिसेणनित्रो पुरो समागम्म । वद्धाविओ य सिरिरयणसारआगमण कहणं ।। १५१ । एतो गरुयविभूई इय निःउं संमुहं सुयस्य नित्रो । इयरोवि दट्ठ जणयं ओयरिओ लहु विमाणाओ ||| १५२ || सो विहियहसो हे संभंतखलंतपउरजणनिरहे । सपुरंमि ते पविट्ठा परिचिता जयणतणया ||१५३ ॥ पण मित्तु जणणिपायाण रयणसारो तओ जहाउचियं । सक्कारिय सम्माणिय विसजए खेयरे ते उ ।। १५४ ।। अह सिरिसेणनित्रइणा पुट्ठो समए नियंगरुहमित्तो। सुमई साहइ सवं वृत्तंतं रयणसारस्त || १५५ ।। इत्तो निउत्तपुरिसाउ सोउं अकलंकसूरिआगमणं । गुरुनमणत्थं पत्तो सिरिसेणो पुत्तमित्राजुओ ॥ १५६ ॥ धम्मं सोउं रजे पुत्तं ठावितु गहियपवओो । सिद्धो सिरिसेणरिसी अन्नत्थ गुरूवि विहरित्था | ॥ १५७॥ राया उ रयणसारो पबलपयावो पयाउ पालंतो । जणयंतो साहम्मियलोयाण अतुच्छवच्छलं ॥ १५८ ॥ जिनाई उद्धरंतो | नवाई जिणमंदिराई कारितो । चिइवंदणापहाणो तिवग्गसारं कुणइ रखं ।। १५९ ।। वेरग्गमग्गलग्गो अमदिणे तणयनिहियरजभरो। अकलंकसूरिपासे गहियवओ मुक्खमणुपत्तो ॥ १६० ।। इति फलमतिरम्यं रत्नसारस्य राज्ञो विदधत इह जैनीं वंदनां त्रिप्रकाराम् । स्वमनसि परिभाव्य श्रेयसामेकगेहे, कुरुत भविकलोकास्तत्र यत्नं सदापि || १६१ ।। इति श्रीत्रिविध चैत्यवंदनायां रत्नसारनरेंन्द्रकथा ॥ अथ वाचनांतरोक्तत्रैविध्यादिप्रदर्शनतरं भव्यजनानुग्रहाय किंचिदुच्यते For Private And Personal रत्नसारकथा ॥ १९३॥ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shr a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kabl suri Gyanmandit बीदे बन्दनामतान्तराणि चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधी ॥१९॥ MAHI अन्ने बिति इगेणं सक्कथएणं जहनवंदणया। तहुगतिगेण मज्झा उकोसा चउहिं पंचहिँ वा ॥ २४ ॥ हत्थसयाओ मो इरियावहियाअमावओ दुनि । एवं उक्कोसाए चउरो सकत्थया नेया ॥१॥ (१७०) मणिऊण नमुकारे || | सकत्थयदंडयं अपडिऊणं । इरियं पडिकमते दो चउरो वावि पणिवाया ॥२।। (१७१) इरियाए पुर्व वा पणिहाणंते व सकस्थय भणणे। दुगुणचिइवंदणाते व हुंति सक्कत्थया तिनि॥३॥ इगवारवंदणे पुत्र पच्छा सक्कथएहिं ते चउरो। दुगुणिअवंदणाए पुती | पच्छा व सक्कथए ॥४॥ सक्कत्थओ अ इरिया दुगुणिअचिइवंदणाइ तह तिनि । धुसपणिहाण सक्कत्थओ य इय पंच सक्कथया ॥५।पादकिरियाणुसारा भणिआ चिइवंदणा इमा नवहा । तिविहाहिगारिमावा तिहावि सा इय भवे नवहा ।। ६ ॥ उक्तं चअहवावि अपुणबंधगविरयाविरयाण मिनभावाणं । तिहाहिगारीण पिहो तिविहावि भवे तओ नवहा ॥७॥ मिच्छत्तुक्कोसठिई न बंधिही अपुणबंधगो जेण । समयकुसलेहि सो पुण इमेहि लिंगेहिं नायबो ॥८॥ पावं न तिवभावा कुणइ न बहुं मबई भवं घोरं। उचियद्विहं च सेवइ सबथवि अपुणवंधोति ॥९॥ तत्तत्थे रोयंतो सम्मदिट्ठी असग्गहच्चाया। देसेअरविरइजुओ चारिती तुलियसामत्थो ॥१०॥ सुस्यूस धम्मराओ गुरुदेवाणं जहासमाहीए। वेयावचे नियमो सम्मदिद्विस्स लिंगाई ॥११॥ मग्गणुसारी सड्ढो | पनवणिजो किआवरो चेव । गुणरागी सक्कारंभसंगओ तह य चारित्ती॥१२॥ तथा-वंदणकहासु पीई असवण निन्दाइ निंदगऽणुकंपा। मणसो निचलनासो जिन्नासा तीऍ परमा य ॥१३॥ गुरुविणओ तह कालाविक्खा उचिआसणं च सइ कालं । उचियस्सरो य पाढे उवउचो तहय पादमि ॥१४॥ लोगपियत्तमनिंदियचिट्ठा वसणंमि धीरया तय । सत्तीए तह चाओ य लद्धलक्खणत्तणं | चेव ॥१५॥ एएहि लिंगेहिं नाऊण हिगारिणं तओ सम्मं । चिइवंदणपाटाइवि दायत्वं होइ विहिणा उ ॥१६॥ भणि च-अत्यो For Private And Personal अमेEिपिहोतिहावि ॥१९४|| Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ifill Aradhana Kendra ill www.kobatirth.org Acharya Shri Kaita: W yanmands बन्दना मेदाः चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥१९॥ | विहिकहणं वा अच्छउ चिइवंदणाइ दूरेण । पाढोवि तीइ देइ उ अहिगारिणो अपुणबंधाई ॥१७॥ दिक्षा उ अणहिगारिणि अविहिअवबाइसेवणा जस्स | दुपउत्तओसहंपिव होइ अकल्याणजणगत्ति ॥ १८ ॥ तम्हा उ अपुणबंधगअविरयविरएहि होइ कायद्या। विहिउचिरवित्तिबहुमाणभत्तिकलिएहिं सयकालं ॥ १९॥ साहूहिं गिहत्थेहि अ अणमचिद्वेहिं जत्तकलिएहिं । जहसंभवं गिहीहिं कयजिणपूयोवयारेहिं ॥२०॥ तह दरभावमेया दुहा इमा दवओ पुणो दुविहा । अपहाणा य पहाणा हेऊमावस्सिह पहाणा ॥२१॥ तत्य पहाणा एसा होउ पुणो अपुणवंधगाईणं । अपहाणच्चि सेसाण इत्थ सइबंधगाईणं ॥२२॥ ताण सइबंधगाणं मग्गामिमुहाण मग्गवडियाणं । इयराणवि अपहाणा चिइवंदण दव्वओ होइ ॥ २४ ॥ उवओगअत्थचिंतणगुणराया लाहविम्हओ चेव । लिंगाणि| विहिअमंगो मावे दवे विवजइओ ॥२४॥ वेलाविहाणतग्गयमणतणुवयणाणि तह य लिंगाणि । रोमंचभावबूडीइ भावचिहवंदगाइ भवे ॥२५॥ सुत्ते एगविचित्र भणिआ दो णेगसाहणमजुतं । इय धूलमई कोई ममइ सुत्र इमं सरिउं ॥२६॥ तिनि वा कडई जाव, धुइओ तिसिलोइया। ताव तत्थ अणुमायं, कारणेण परेणवि ॥ २७॥ मणइ गुरू तं सुत्तं चिइवंदणविहिपरूवर्ग न भवे । निक्कारणजिणमंदिरपरिभोगनिवारगचेण ॥ २८ ॥ जं वासदो पयडो पक्खंतरसूयगो तहिं अस्थि । संपुन वा बंदइ कडुइ वा तिनि उ थुईओ ॥२९॥ एसोवि हुमावत्थो संभाविजइ इमस्स सुत्तस्स । तो अनत्थं सुतं अमत्थ न जोइउं जुत्तं ॥३०॥ किंच-जइ इत्तियमित्तं चिअ जिणवंदणमणुमयं सुए हुतं । थुइथुत्ताइपवित्ती निरत्थिया हुज सहावि ॥३१ ।। अन्नं च-गीयत्था विहिरसिया संविगतमा य मरिणो पुरिसा । कह ते सुत्तविरुद्धं सामायारिं परूविति ॥ ३२ ॥ अहवा चिइवंदणया निच्चा इय|रिति होइ दुविहा उ । निचा उ उभयसंझं इयरा चेइयगिहाईसु ॥३३॥ निचा संपुनच्चिय इयरा जहसत्तिओ उ कायदा । तधि N MINS For Private And Personal Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mar श्रीदे चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१९३॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas सयमियं सुतं मुणंति गीया उ परमत्थं ॥ ३४ ॥ संगमवियारिऊणं सओ य परओ य समयसुताई । जो पवयणं विगोवइ सो | नेओ दीहसंसारी ||३५|| दूसमदोसा जीवो जं वा तं वा मिसंतरं पप्प । चइय बहुं करणिअं थोवं पडिवजइ सुहेण ॥ ३६ ॥ इक्कं न कुणइ मूढो सुयमुद्दिसिउं नियकुबोहंमि । जणमन्नपि पवत्तइ एयं वीर्यं महापात्रं ॥ ३८ ॥ उपपन्नसंसया जे सम्मं पुच्छंति नेव गीयत्थे । चुक्कंति सुद्धमग्गा ते पल्लवगाहिपंडिचा ।। ३९ ।। बहुभेया पुण एसा भणियत्ति बहुसुएहिं पुरिसेहिं । संपुत्रमचायतो मा कोइ इन सव्वावि ||३९|| इत्यभिहितं त्रिधा वंदनेति पंचमं द्वारं, तत्र जघन्या वंदना प्रणिपातनमस्कारेत्युक्तं, अतस्तावत्प्रणिपातस्वरूपाभिधित्सया षष्ठं द्वारं गाथापूर्वार्द्धनाह पणिवाओ पंचगो दो जाणू करदुगुत्तमंग च । ' अथवा प्राकू 'अंजलिबंधो१ सिरसो णमणे२ पंचंगओ इय तिपणामा' इति जघन्यादिभेदेन प्रणामत्रयमुक्तं, तत्र तृतीयः प्रणामः किमेकांगादिः पंचप्रकार उत भूस्पृष्टांग पंचकलक्षण इति जिज्ञासायां तद्वद्यम्यर्थमिदमाह, यद्वा ननु लोके अष्टांग प्रणामोऽपि श्रूयते तत् कथं पंचांग एवोत्कृष्ट इत्यारेकायां जिनसमयप्रसिद्धसिद्ध्यर्थमेवमभिधीयते - प्रणिपातः - प्रणामः 'पंचांगः' पंचांगानि शरीरा - वयवा नत्राणि यत्र स पंचांगप्रणामः समये, सुरेन्द्रदत्तकुमारवत्, पंचमिरंगैर्भूमिः स्पर्शनीयेत्यर्थः । तथा चोक्तमाचाराचूर्णी - "कहं नमंति, सिरपंचमेण कारणं"ति, कानि तानीत्याह-द्वे जानुनी - अष्ठीवती करद्विकं - हस्ततलद्वयं उत्तमांगं चमस्तकं चेति, एतेन सिद्धान्ताप्रसिद्धत्वादित्वादष्टांगो न्यषेधि, उक्तं च भाष्ये – “अन्ने अद्भुवयारं भांति अटुंगमेव पणिवायं । सो पुण सुए न दीसह आइन्नो नय जिणमयमि ॥ १ ॥ (२११) चि यद्वा प्रणिपातः पंचांगः- पंचप्रकारः शिरःप्रभृत्येकाचंग For Private And Personal ri Gyanmandir प्रणामभेदाः ॥१९६॥ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri www.kebatirth.org श्रीदे चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥१९७॥ Aradhana Kendra Acharya Shri Kaitske uri Gyarmandir योगत एकांगादिभेदात् , यदुक्तं-एकांगः शिरसो नामे, स द्वथंगः करयोईयो। त्रयाणां नमने व्यंगः,करयोः शिरसस्तथा ॥१॥ प्रणामे चतुर्णां करयोर्जान्वोनमने चतुरंगकः । शिरसः करयोर्जान्वोः, पंचांगः पंचमो मतः ॥ २॥ सुरेन्द्रदत्तकुमारकथा चैवम्- सुरेन्द्रदत्तअत्थिह नयरी महुरा महुरालवणप्पमोयलोयजुया । नयवंतपढमलीहो तत्थ नरिंदो समरसीहो ॥१॥ तस्स य ललिया कथा दइया सुरिन्ददत्तो सुओ स अबदिणे । कीलाकए समित्तो पत्तो कुसुमागरुजाणे ॥२॥ सेसं व खमाहारं हारं सारं व मुत्तिरम| णीए । तत्थ बहुसिस्ससहियं पिच्छेइ गुणंधरायरियं ॥ ३ ॥ असरिसहरिसुक्करिसो कुमरो पणमेइ तस्स पयकमलं । जलभार-10 भरियजलहरगिराइ कहई गुरू धम्मं ॥४॥ "पंचांगचंगमतिरंगभरेण भव्यो, यो वंदते जिनपति विगतप्रमादः। तेनेन तेन वसुधावलये यशः खं, दौर्गत्यदुःखतरूखंडमखंडि शीघ्रम् ।। ५॥ तं प्राज्यराज्यकमला कमलीकरोति, तस्मै सदा स्पृहयति त्रिदशामुरश्रीः। तस्येन्दुकाशकुमुमोज्ज्वलपुण्यराशेरद्वैतसौख्यपदवी न दवीयसी स्यात् ।। ६ ।। (प्रत्यन्तरे-पंचांगभंगमतिरंगभरं नमेद्यो, निःसंगिनं जिनमनंगजितं समंतात् । स स्थादिह त्रिजगताऽपि सदा नमस्यस्तं प्राज्यराज्यकमला कलयत्यवश्यम् ॥ १॥ दौर्गत्यदुःखतरुखंडमखंडि तेन, तसै सदा स्पृहयति त्रिदशासुरश्रीः। तस्माद् हुतं द्रवति रौद्रदरिद्रमुद्रा, तस्य प्रकर्षपदवी न दवीयसी स्यात् ।।२।।) एवं निसम्म कुमरो पंचंग मे जिणेसरो निचं । नमियबो इय गिव्हिय अभिग्गई जाइ सट्ठाणे॥७॥ कइयावि समरसीहो अणेयमंडलियमंडियत्थाणो । जा चिट्ठइ कुमरजुओ ता भणिओ वित्तिणा एवं ॥८॥ देव! कुसत्थलपुरपहुहरिवाहणनिवइणो पहाणनरो। पहुदंसणं समीहइ पारे को तस्स आएसो ? ॥९॥ लहु मुंचसुत्ति रन्ना वुत्ते सो तेण तत्थ आणीओ। नमिय || निवं उवविडो हिडो विनवइ वयणमिणं ॥१०॥ देवऽम्ह सामिणो सिरिहरिवाहणनिवइणोष्ट ध्याओ । रयणवईपमुहाओ उवण- ॥१९॥ For Private And Personal Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri A in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailan uri Gyanmandir चैत्यश्री मौदे पर्म संघापारविषौ ॥१९८॥ जोवणसमणुपचा ॥११॥ ताओ मुणिय गुणगणं मुरिंददत्तस्स कुमरतिलयस्स । खयरीहिं गिजंतं ससंककंतं पसंतं च ॥ १२ ॥ || | प्रणामे कुमरे दढाणुरागा मणसावि अपत्थिरी उ अब तु । णे पहुणा कुमरकए सयंवरा ताउ इह पहिया ॥१३॥ इय सोउ निवो तुट्ठो तं || सुरेन्द्रदत्त कथा सक्कारिय मिसं पहाणनरं । कुमरीण जहाउचिए अप्पावइ पवरआवासे ॥ १४ ॥ देवन्नुदिन्नदिवसे महाविभूईइ समरसीहनियो । कुमरीण पाणिगहणं सुरिंददत्तेण कारेइ ॥१५|| सक्कारिय संमाणिय महरिहवत्थाइणा पहाणनरे। नियनयरेसु विसजद जहोचियं लोयमबंपि ॥ १६ ॥ अहहिं पियाहि सहिओ सुहासओ बहुसुपञ्चकयहरिसो। कालं बोलइ सहिओ सुरेंददत्तो सुरिंदुच ॥ १७॥ अमदिणे वत्थागयजुगंधरायरियपायनमणाय । पत्तो पहिवचित्तोराया कुमराइपरियरिओ ॥१८॥ कयपंचविहाभिगमो संगयपंचंगपुट्टमहिवहो। नमिय गुरुं उवविट्ठो इय भयवं बजरइ धम्म ॥ १९ ॥ "यः सर्वांगगुरुप्रमोदपुलकः पंचांगभूस्पर्शनो, दुष्टानंगविघातिनो जिनपतेः पादद्वयं वंदते। मुक्त्वाऽशेषषडंतरंगरिपुजित् सप्तांगराज्यश्रियं, हत्वाऽष्टांगमशेषकर्मपटलं ग्रामोत्यसंग पदम् ॥२०॥" अह पुच्छइ नरनाहो पहु! मह तणएण किं कयं सुकयं । पुवभवे जेण इमो पत्तो एयारिसं रिद्धिं ॥२१॥ भणइ | गुरू मो नरवर ! सुणेहि इह जंबुदीवमरहंमि। गाममि पारिभद्दे अहेसि सीहुति कुलउत्तो ॥ २२ ॥ जं जं करेइ कम्मं तं तं सपलंपि होइ से विहलं । देसंतरगमणाई घुनो तो चिंतए चित्ते॥२३॥ किमहं करेमि निब्भग्गसेहरो हयमणोरहं विहीणो। सीहोऽवि इहा होऊण जंबुओवि हुन निद्धडिओ ॥ २४ ॥ देसंतरंमि जाही मम रुद्ददरिददुक्खदंदोली । अहह हहा सा उ ममं तत्थवि पुरओ पडिक्खेइ ॥२५॥ दीसंति मंतसिद्धा अंजणसिद्धावि कहावि दीसंति । दारिदजोगसिद्धा पुरओवि ठिया न दीसंति ।।२६ ॥ अहब अनिव्वेओचिय सिरीइ मूलंति चितिउं पुहविं । इत्तो तत्तो ममिरो सो पचो रोहणगिरिम्मि ॥२७॥ अवगणियरयणिदिवसो ||१९८n MINITIANIRAL For Private And Personal Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्म० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥ १९९॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila prsuri Gyanmandir कपि सो खणियखाणिखोणीओ। अजद अवजवजाईं बजपमुहाई रयणाई || २८ ॥ ताई जरदंडिखंडे बंघिय नियगामहुत्तमह चलिओ । कत्थवि संतो सुतो य सत्थरे जात्र पयलाइ ||२९|| ताव सहसति तं दंडिखंडमादाय मक्कडो नट्ठो । सीहस्स गठिबद्धा पाणष्ठ गयाई रयणाई ॥३०॥ उदंडदंडखंडं उप्पाडिय घाविओ स पुट्ठीए । रे उक्कडमक्कड कत्थ जासि मारेमि इय मणिरो ||३१|| अबरावर तरुत्ररसिहर सेणिसंचरणओ लहु पर्वगो । कत्थवि नित्रडियगंडी नयणाण अगोयरं पत्तो ॥ ३२ ॥ हा हा हओ म्हि रे दिव ! दारुणो दुअणस्स व तुद्देस्रो । निक्कारणओ निक्करुण कोऽवि मइ वइरवावारो ॥ ३३ ॥ रयणुच्चरण इमिणा पूरितं किर मणोरहे नियए । कह कविरूवेण अरे मुट्ठो थट्ठो य दृट्ठ तए || ३४ ॥ हिययं असरिसहरिसेण विलसह इयविधी उ विहडे । विलसद सयलकलाहिं कलानिही गिलह अहह तमो ॥ ३५ ॥ इय तो दर्द कुओऽवि आगम्म जोगिणा एसो । कालुणिएण व बुचो बन्छ ! तुमं कीस दीणोसि १ ||३६|| तेणवि नियबुचंतो बुतो तो जोगिणा इमो भणिओ । लहु एहि मए सद्धिं रससिद्धिं जेण तुह देमि ||३७|| तो तेण समं चलिओ सीहो पत्तो कमा विचरमिक्कं । रसकूत्रीइ पविट्ठो मंत्रीए गहिय रसतुंबं ॥ ३८ ॥ रसमरियतुंबओ सो पक्षो रज्जूह वित्ररदारंमि । चिंतेह तात्र जोगी लेमि रसं मरउ एस इ ||३९|| अह मणइ इमो अप्पसु रसमुचारेमि जेण तं पच्छा | अन्नह रसस्स तुम्भ व उभयस्स व होहिइ पमाओ ||४०|| निश्चयबलउचिन्नो सरसो ध्रुवणं वणं व मन्नतो। जा जाइ जोइणा सह ता पुण चिंवर इमो पावो ॥४१॥ मारेमि इमं उररीकरेमि रसमेयमसरिसपदावं । मारितो जर पुण मारइ तो किं रसो काही १ ॥ ४२ ॥ बहुसामत्थेऽवि परंमि अतुलिए को बुद्दो चडइ समुहो ? । विवरं विसहररश्यिंपि जणेइ हिययस्स आखंकं ॥४३॥ ता अइसयवीससिअं काउमिमं वंचिति चिंतंतो। भणइ इमो जड़ नज्जवि इमिणावि रसेण तुद्द तोसो ||४४|| For Private And Personal प्रणामे सुरेन्द्रदत्त कथा ॥ १९९॥ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ shi TEE Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shihab arsuri Gyanmandir श्रीदे । चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥२०॥ WALLETIREPT कथा ता कहसु कणयपुरिसं देमि इय जंपिए गया दोऽवि । गामस्सेगस्स बहिं नग्गोहयले निसन्ना य ॥४५॥ भत्तस्स कए कयकइयवेण प्रणामे | अह तेण जोगिणा सीहो । दीणारदुर्ग अप्पित्तु पेसिओ गाममझमि ॥४६॥ वीससिएण तं तेण तुंबवयं मुक्कमेयपासंमि । सो उण सुरेन्द्रदत्ततस्सव जीयं गिव्हिय तं कत्थइ पलाणो ॥४७॥ अह गहियभूरिभतो पत्तो कुलपुत्तओ तहिं जोगि। अनिएवि मणे खुद्धो हा हा मुट्ठो हयासोऽहं ॥४८॥ अतणुमणिरयणपुत्रं पवरनिहिं दंसिउंन दंसेइ । खणमित्तेणेव जगाण इंदयालं अहो विहिणो ॥४९॥ एमाइ बहुं झूरिय दरभुत्तो चेव तस्स जोगिस्स । सुद्धिकए परिभमिरो जा जाइ गिरिम्मि एगम्मि ॥५०॥ देवेहि महिजंतं तकालुप्पअकेवलंनाणं । पिच्छिवि पहाससाई नमिय निसनो सुणइ धम्म।।५१॥ यथा-"इह तुल्लेवि नरत्ते एगे पहुणो पयाइणो अन्ने । धम्माधम्मफलं ता नाउं भविया! कुणह धम्मं ॥५२।। जह इहलोइयकजे सम्वत्थामेण उजमइ लोओ। तह जइ लक्खसेणवि परलोए ता सुही होइ ॥५३॥ धम्मेण विणा जइ चिंतियाई लब्भंति इत्थ सुक्खाई। ता तिहुयणेऽवि सयले न कोवि इह दुक्खिओ हुन्जा ॥५४॥" इय सोउ भणइ सीहो सञ्चमिणं ते मुणिंद ! निद्दिढं। किंतु पसिऊण मज्झं उचियं धम्म समाइससु ॥५५॥ जंपइ मुणीवि भो सीह ! सीहसरिसं कुकम्मगयदलणे । निचं जिणिंदचंदं नमिज पंचगनमणेण ॥५६॥ अन्नाण१कोहरमय३माण४लोह५मायादरईण्य अरईटय । निद्दा९सोय१०अलियवयण ११चोरिया१२मच्छर१३भया१४य।।५७॥ पाणिवह१५पिम्म१६कीलापसंग१७हासत्ति १८अट्ठदस दोसा। जस्स गया तं देवं नमिज पंचंगनमणेण। ५८॥ जो बंदिजइ सययं देविंदनरिंदवंदविंदेहि । तं भद्द ! तुम देवं नमिज पंचंगनमणेण ॥५९॥" अह सीहो मुणिपासे नियममिमं गिण्डएमए अरिहा । पंचंगनमणपुवं जा ण नओ ता न भुत्तवं ॥६०॥ तयणु अणुत्तरनाणो मुणी विहारं अकासि अन्नत्थ । इयरोऽवि पहिङमणो तत्तो सेलाउ ओयरिओ६१॥जिणनमणमंतरेणं IAM२००॥ For Private And Personal Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१०१॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila अकयाहारो वयं महद्वाणं । लंघितु दिणदुगेणं मलयपुरे कहवि सो पत्तो ।। ६२ ।। तत्थुआणे सिरिरिसहनाइपडिमं पहितुमणो । उत्फुल्लवयणनयणो पणमह पंचंगपणिवायं ॥ ६३ ॥ तन्भचिरंजियमणो गोमुहजक्खो भवित्तु पच्चक्खो । वरसु वरंति भणेई तहवि अणीहस्स तेण तओ । (प्रत्यन्तरे - चिंता सीहो वरेणं किं १ ||६४ || जं न रसाइ ठियं मे वह दुलहं लद्धमिण्हि लद्धवं । जिणपयवंदणमसमं अहरियचिंतामणाइगुणं ॥ ६५|| भणियं च-एक्कावि जा समत्था जिणभत्ती दुग्गई निवारेउं । दुलहाई लहावेउं आसिद्धिं परंपर सुहाई।। ६६ ।। || ६४ || विसमे पलायमाणो सो जोगी निवडिओ मओ तइया । तं कोडिवेहरसतुंबमाणिउं अप्पियं तस्स ||६५ || कविचावलावहरियं सम्मप्पियं तंपि रयणनियरं तं । नेऊण पारिभद्दे गामे मुक्को स जक्खेण ॥ ६६ ॥ तत्थ य परं पसिद्धिं पत्तो वित्थरियविहवसंभारो । मज्झिमगुणेहिं जुत्तो जिणवंदणपूयणुज्जुत्तो ||६७ || सो मरिउं तुह पुत्तो सुरिंददत्तो इमो इहं जाओ । जिणनमणपहावेणं पत्तो एयारिसिं रिद्धिं || ६८ || इय मुणिवयणं सुच्चा पुवभवं सुमरिडं नमिय गुरुणो । जिणनमणऽमिग्गहजुयं गिहिधम्मं गिव्हए कुमरो ||६९ || पिउदिन्नरजभारो सुइरं परिपालिऊण गिहिधम्मं । पडिवनसमणभावो जाओ अमरो | महासुक्के ||७०|| तो सत्तट्ठभवेसुं अमरनरगएसु सुहमणुहवेडं । जीवो मूर्रिददत्तस्स पाविद्दी अक्खयं ठाणं ॥ ७१ ॥ इत्यवधार्य कुकार्यनिवृतं, क्षितिपतिसमरसिंहसुतवृत्तम् । भव्याः । पंचांगप्रणिपातं कुरुत जिनेभ्यः कृतसुखजातम् ॥ ७२ ॥ इति सुरेन्द्रदत्तकुमारवृत्तं ॥ इति भणितं प्रणिपात इति षष्ठं द्वारं, संप्रति नमस्कार इति सप्तमं द्वारं गाथोत्तरार्धेनाह Aradhana Kendra सुमहत्थनमुकारा इग दुग तिग जाव अट्टमयं ||२५|| 'सुमहार्थाः' शोभनो वैराग्यादिजनको महांश्च श्लेषोपमारूपकक्रिया गुप्तकयमकानुप्रास विरोधालंकारादिगोचरो विचित्रोऽति For Private And Personal ri Gyanmandir प्रणामे सुरेन्द्रदच कथा ॥ २०२ ॥ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri a n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kai s uri Gyanmandir नमस्कारे विजयनप: श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥२०२॥ शाय्यों येषां ते सुमहार्थाः नमस्कारा-मंगलवृत्तानि, कियंतश्चैते भण्यते इत्याह-एको द्वौ त्रयो वा यावदुत्कष्टतः अष्टोत्तरं शतं, एवं यथायोगं नमस्कारान् भणित्वा पश्चाद्यथाविधि प्रागुक्तखरूपं प्रणिपातं कुर्यात् , तथा चागमः-"पयचेण धूवं दाऊण जिणवराणं अट्ठसयविसुद्धगंथजुत्तेहिं अपुणरुत्तेहिं महावित्तेहिं संथुणई' विजयकुमारवत् , तत्कथा चैवम् इह अस्थि हथिणपुरे विजियऽन्नबलो विजयबलो राया। सोहग्गसुंदरी तिलयसुंदरी दोय से भजा ॥१॥ पढमाइ पउमनामो पुत्तो बीयाइ विजयअभिहाणो । बालोचियकीलाहिं कीलंता दोवि वहूति ॥२॥ कइयावि तिलयसुंदरीदेवीइ जलोदरं ददं जायं । विहिया बहूवयारा मणपि जाओ परं न गुणो ॥३॥ ता वुन्नमणाइ अणाइ अंसुपुन्नाइ पभणिओराया। सामिय! म कारावसु परलोयहियं पसीय लहुं ॥ ४ ॥ भणइ निवो दीणमुहो किं इमिणा मज्झ देवि ! रजेण? । किं वा चउरंगवलेण जीविएणावि किं अहवा? |५|| जं सुयणु! तुज्झ विरहे ता तह काहं अहं पयत्तेण । जह तं होसि अरोगा सजीवियपि दाऊण ॥६॥ इय पणयपउणवयणेहि पिययमं संठवेवि नियगेहे । रन्नाऽऽगम्म सुमरिया कुलदेवी भणइ नरनाहं ॥७॥ किं सुमरियऽम्हि रायाऽऽह पसीय दइयं करेसु नीरोगं। देवी-सक्केणवि नहु सक्का देवी काउं अरोगत्ति ॥८॥ जं पुन्वभवे जीवेणऽणुट्टियं रागदोसदुहेण । अन्नाणपरिगएणं च असुहकम्मं अणिट्ठफलं ॥१॥ तं ओसहेहिं विविहेहिं विबुहनिवहेहिं दाणवगणेहिं । अवहरिलं नहु सका अवेइयं निययदेहेण ॥१०॥ राया जंपइ भयवइ ! इमीइ किं दुक्कयं कयं पुत्विं ? । देवी भणेड़ वंगाविसए नयरे पउमसंडे ॥११॥ अभयकुमारो सिट्ठी संतिमई नाम आसि से भजा । दुन्निवि जिणधम्मपरा गुरुजणसुस्सूयणरया य॥१२॥ अह संतिमई केणवि विसमपओगेण विरसभावगयं । जाणंतीविहु अन्नं धम्मजसमुणिस्स वियरेइ ॥१३ ॥ सोऽवि उवस्सयमा ॥२०२॥ Withsantalilai MALAIMIMIRAENM n For Private And Personal Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org धर्म० संघाचारविधी ॥२०३॥ Acharya Shri Ka y amandit | ग्गम्म गुरुसमीवे पडिक्कमिय इरियं । करमत्तदाइवावारमाइ विहिणा समालोए ॥१४॥-सरिऊणं जिणनाहे गुरुगणगुरुणो तम-1 नमस्कारे | उनमहगुरुणो । कयवालगिलाणाईचिंत्तो भुत्तुं समारद्धो ॥१५।। अह सवियारे परिवागदोसभावाउ तंमि आहारे । भुत्तमि तस्स विजयनृपः समणाहिवस्स देहमि संकेता ॥१६॥ अइदुमहदाहवेयण जराइसाराइमाइणो रोगा। साहूहि य पडियरिया जाया कहकहवि पउणतणू ॥१७॥ पडिबोहिय बहुयजणं परिकम्मिय अप्पयं च जिणकप्पे । पजंतकयाणसणा गुरुणो सुरलोयमणुपत्ता ॥१८॥ संतिमई दुट्ठमई अचंतविरुद्धभत्तदाणेण । अञ्जियगिरिगरुयकिलेसजालजलणुजलियदेहा ॥१९॥ नरयतिरिक्खगईसुं निंदियजाईसु दुसहदुहकलिया । दाहजरकाससासाइपरिगया भमिय भूरिभवे ॥२०॥ दारिद्दकुले जाया वड्डुकुमारीवि केणवि अणूढा । वेरग्गगया गिहियमहबया विहियविविहतवा ।। २१ ॥ मरिऊणं सा जाया तुह भजा तिलयसुंदरी एसा । पुवकयदुक्कयवसा रोगेणिमिणा विणस्सिहीहि ॥२२॥ इय जंपिअ कुलदेवी तिरोहिया तं निवो कहइ सत्वं । दइयाइ सावि सरिउं पुत्वभवं झूरए हियए ॥२३॥ हा पाव जीव ! किमिमं तए कयं अप्पणा अणत्थकरं । जं तह अणुचियभत्तप्पयाणओ अज्जियं पावं? ॥२४॥ वरमणलंमि पवेसो अहिमुहकुहरे वरं करो खित्तो। वरमिह मियारिदाढाकडप्पकंडूयणं विहियं ॥ २५ ॥ न उणो अविमरिसिय-11 वत्थुसत्थकरणं अणत्थसयजणगं। तो सरसुजीव! इत्तो जिणधम्म पुश्वपडिवनं।२६।।इय देवी दुचरियं भुज्जो भुज्जो पुराभवसमुत्थं । निदंती संवेगं परं गया राइणा भणिया ॥२७॥ देवि ! कुलदेविकहिओ वुत्तंतो अवितहो किमेसुत्ति । तीए भणियं सामिय ! सबमिणं अवितहं नूणं ।।२८।। ता इत्तो परभवपत्थभूयकिच्चंमि उजमो जुत्तो। रना पयंपियं देवि! कुणयु | जं तुज्ज्ञ पडिहाइ ॥२९॥ देसु धणं धम्मत्थं सत्तसु खित्तेसु पुनखित्तेसु । दीणाईणं च तहा करेसु अनपि करणिज्जं ॥३०॥ सो२ ०३॥ For Private And Personal Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥२०४॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas I एसो पत्थावो राहावेहोवमो य पुन्नेहिं । जो न तरह साहेउं ता देवि ! समुजया होसु ॥ ३१ ॥ इय भणिए रन्ना आहवितु सोहग्गसुंदरि देविं । ठविय तदंके विजयं नियपुत्तं तह खमावेउं ॥ ३२ ॥ खामेवि सयलसंघं पूयं कारेवि जिणवरगिहेसु । अणसणविहाणओ |तियलसुंदरी सग्गमणुपत्ता ।। ३३ ।। निम्मलकलाकलावो कलानिहीविव कमेण विजओऽवि । निरुवमसुंदरिमरूव उव्वणं जुव्वणं | पत्तो ||३४|| अह पिउआणाअकरणपरायणं कालसेणपल्लिवई । निवऽणुन्नाओ चउरंगबलजुओ गंतु तप्पलिं ||३५|| विग्गहिऊणं पिउआणकरणपवणं ठवेवि तत्थेव । पत्तो विजओ सपुरे भंभाए वज्जमाणीए || ३६ || तो तुट्टेण निवेणं जुत्ररायपयंमि ठावियं विजयं । दण मणे सोहग्गसुंदरी चिंतए एवं ||३७|| इह एयंमि जियंते न भावि मह नंदणस्स नणु रज्जं । इय चिंतिय सा पावा वियरह से कम्मणं दुसहं ॥ ३८ ॥ तो तस्स जायमंगं विदुरमसारं पणगुरूवबलं । तयणु घणसोगभरिओ कुमरो इय चिंतिउं लग्गो ॥ ३९ ॥ रे जीव ! मा विसूरसु दुट्ठाण पुराकडाण कम्माणं । न हु अनुभवणेण विणाऽवि विज्जए निच्छियं मुक्खो ॥ ४० ॥ जह संपत्तीइ मणं तहा विवत्तीइ जाण परितुल्लं । तेच्चिय धीरा ते चेव पंडिया तेचिय गरिट्ठा ॥ ४१ ॥ एतसुही भुवणेवि कोऽवि मने न विजए नूणं । ता जीव ! मा विहिज्जसु मणयंपि मणमि संतावं ॥४२॥ जइ चक्कि| णोऽवि रहिणोऽवि अहव हलिणोऽवि अमरपणोऽवि । पावंति कम्मवसओ आवइमियराण का गणणा १ ॥ ४३ ॥ केवलमित्थावत्थाणमणुचियं गरुयरोगविदुरम्स । सहपंसुकीलियाणवि उब्वेयं मह जणं तस्स ||४४ || ता जामि तहिं देसे जत्थ मयं मं न याणई कोई । इह पुण दुज्जणकर अंगुलीण को दरिसणं सहिही ? ||४५ || एवं चिंतिय सणियं सणियं अवगणिय परियणं सयलं । कुमरो रयणीइ पुराउ निम्गओ एगदिसितं ।। ४६ ।। कमसो पत्तो पत्तालयाभिहे पुरवरंमि तस्स बहिं । हिमगिरि For Private And Personal ri Gyanmandir नमस्कारे विजयनृपः ॥२०४॥ Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य० श्री. धर्म० संघाचारविधौ ॥२०५॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasi Gyanmandir नमस्कारे विजयनृपः सिहरुत्तुंग अट्ठावयचेइयस रित्थं ॥ ४७॥ उज्झतधूत्रमह महसमंत अगुरुमघमवंत गंधहुं । कणकणिरकिंकिणि जालम हुरघणरावरमणीयं ||२८|| सकावयारनामं चउवीसजिणालयं जिजिंदगिहं । पट्ठिचित्तो पविसिय विहिणा तहिं कुमरो ||४९ || ठाउं उचियपसे आसायणभीरु अत्थजुत्तेहिं । सारनमुक्कारेहिं इय थोउ जिणे समाढत्तो ||५०॥ तथाहि - "नंद्यान्नामिमुतः सुरेश्वरनतः संसारपारं गतः, क्रोधाद्यैरजितं स्तुवेऽहमजितं त्रैलोक्यसंपूजितम् । सेनाकुक्षिभवः पुनातु विभवः श्रीसंभवः शंभवः, पायान्मामभिनन्दनः सुवदनः स्वामी जनानंदनः || ५१|| लोकेशः सुमतिस्तनोतु नमति श्रेयः श्रियं सन्मतिर्दभद्रोः कलभं मदेभशरभं प्रस्तौमि पद्मप्रभम् । श्री पृथ्वीतनयं सुपार्श्वमभयं वंदे विलीनामयं श्रेयस्तस्य न दुर्लभं शशिनिभं यः स्तौति चंद्रप्रभम् ||५२ || बोधिं नः सुविधे ! विधेहि सुविधे कर्म्मद्रुमौघस्रजे (प्रघे), जीयादं बुजको मलक मतलः श्रीमान् जिनः शीतलः । श्रीश्रेयांस ! जय स्फुरद्गुणचयः श्रेयः श्रियामाश्रयः संपूज्यो जगतां श्रियं वितनुतां श्रीवासुपूज्यः सताम् ॥५३॥ मोक्षं वो विमलो ददातु विमलो मोहांबुबाहानिलोऽन्तोऽनंतगुणः सदा गतरणः कुर्यात् क्षयं कर्मणः । धम्म मेऽविपदं जवाच्छिवपदं दद्यात्सुखैकास्पदं, शांतिस्तीर्थपतिः करोत्विभगतिः शांतिं कृताघक्षतिः||५४|| कुंधुर्मेघरवो भवादवतु वो मानेभकंठीरवो, मक्त्यानम्रनरामरं जिनवरं प्राससरं नौम्यरम् । श्रीमल्लेखन तक्र मोज्झिततमो मल्लेस्तु तुभ्यं नमो, विश्वाच्यों भवतः स पातु भवतः श्रीसुव्रतः सुव्रतः || ५५ ।। लोभां भोजतमेश्वरोपम ! नमे धर्मे धियं धेहि मे, वंदेऽहं वृपगामिनं प्रशमिनं श्रीनेमिनं खामिनम् । श्रीमत्पार्श्वजिनं स्तुवेऽस्तवृजिनं दंताक्षदुर्वाजिनं, नौमि श्रीत्रिशलांगजं गतरुजं मायालताया गजम् ||५६|| दूरापास्तसमस्तनल्मष (कुत्सन) तमावीताखिलां तारजावा मोल्लसविनाशस्तसुमहान् (लासशोमनमहा) मृइग्रिमौकाबलम् । स्फुर्जद्द्भावृषभाभिरामनयनिर्दग्धाशुभैधावरं, गातां मुक्तिपदप्रदं जिनवृषा वृद्धं प्रसादं मम ॥ ५७॥ एक For Private And Personal ॥२०५॥ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ sv . Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri K a sul Gyarmandie नमस्कारे विजयवृपः श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥२०६॥ महसयं जा जिणपुरमा त्यसोऽतीतातिः परमपद स्तवं मुद्युतः, सद्धर्मदुमका MummaNPRATARATHIHARIHARI वचनं द्विवचन बहुवचनं च तुल्यं । इत्थं धर्म्यवचोवितानरचितं वयं स्तवं मुद्युतः, सद्धर्मद्रुमसेकसंवरमुचां भक्त्याईता नित्यशः। श्रेयः कीर्तिकरं नरः स्मरति यः संसारमाकृत्यसोऽतीतार्तिः परमे पदे चिरमितः प्रामोत्यनंतं सुखम् ॥ ५८॥ नामगर्भमष्टदलं कमलं ॥" इच्चाइयमट्ठसयं जा जिणपुरओ इमो नमुक्कारे । पभणइ ता मणिवूलो खयरिंदो तत्थ संपत्तो॥५९॥ सोदछु विजयकुमरं | सारनमुक्कारभणणपणिहाणं । साहम्मियवच्छल्लंमि उज्जुओ पमुइओ हियए ॥३०॥ नमिय जिणं जिणभवणाउ निग्गयं निवसुयं विगयरोगं । काउं खयरो वंदिय देवे पत्तो सठाणंमि॥६१।। कुमरोऽवि पाडलिपुरे पत्तो जावीसमेइ तरुमूले । तो तत्थ मओ निवई असुओऽकम्हा उ मूलेण ॥६२॥ रजपहाणनरेहिं अहिवासियदिव्यपंचगेणं तो। विजयकुमरोमिसित्तो रजे गुरुपुनसंपुन्नो॥६३॥ वसविहियदुहृदप्पिटबहुयसामंतपणयपयकमलो । निच्चं जिणं धुणंतो पवरनमुकारनिवहेहिं ॥३४॥ ठाणढाणपयहियरहजत्तमहूसवं पबंधेण । रज तिवग्गसारं परिपालइ विजयनरनाहो ॥६५॥ इत्तो विजयबलनिवो विजयकुमारस्स दुसहविरहुत्थं । दुक्खभरमणुहवंतो अइविरसे वासरे खिवइ ॥६६॥ अह खाससासजरपमुहउग्गरोगेहिं परिगयसरीरो। निहणं पत्तो पउमो किजंतुवयारनिव| होऽवि ॥६७॥ तो गरुअदुक्खभरनिन्भरेण अंतेउरेण सो राया । बाहजलाविलनयणो मयकिच्चं काउ पउमस्स ॥ ६८ ॥ भणइ सचिवे अथके इको कत्थवि सुओ पउत्थो मे । बीओ पुणो अकाले कालमकासी हहा किहऽहो॥६९।। अह विंति मंतिपवरा देहकिलेसं च कजहाणि च । देव! परिदेविएणं मुत्तु न अनं किमवि ताणं ॥७०॥ उप्पायविगमधुवभावपरिगयं सयलवत्थुवित्थारं। खगदिट्ठनट्ठरूवं सामिाता किमिह सोएण? ॥७१।। किंच विजओ कुमारोरजं पालेइ कुसुमनयरंमि । इय तत्तो आगयबहुजणेण णे सयलमक्खायं | ॥७२॥ इय सोउ अप्पसोओ राया सुयमरणदक्खतविआए । सोहग्गसुंदरीए पासे अणुसासिउं पत्तो ॥७३॥ सुअमरणवजजजरि ||२०६॥ For Private And Personal Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य०श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥२०७॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailuri Gyanmandir अदेहमुम्मुकस आहारं । दइअं भणइ नरिंदो सोइजइ देवि ! किं एवं ||७४ || जायस्स धुवो मच्चू न य दीसह कोइ सासओ अत्थ । चक्किहरिहलहराई जमणंता तेवि अनंता ।। ७५ ।। देवी-तं वा किंपि अणआऍ अज ! अकजं कयं मए घोरं । जं न कहिउं न सहिउं न चैव पच्छाइउं सका || ७६ || दुबिलसिअस्स तस्स उ फलं अकाले इमं मए पत्तं । रायाऽऽह नेव किंपिहु मुणेमि इह कज्जमज्जमहं ||७७|| दइए किंनु अकज्जं विहियं तुमए जओ दुहं एयं । परमत्थमित्थ वित्थरिय कहसु पाणप्पिए ! खिप्पं ॥ ७८ ॥ तो हिययंतो गुज्झं तीए घरिडं अपारयंतीए । कहिओ सयलो कम्मणवुत्ततो विजयसुयविसओ ॥७९॥ तह तिलयसुंदरीए सव्वस्संपित्र सुओ विजयकुमरो । बहुपणयत्रयणपुढं उवणी ओ पहु तथा मज्झ ॥ ८० ॥ तीए बिहु नहु वयणं मणंपि पावाइ मणसि मे ठविअं । अकयन्नुयलोयाणं हाहा पढमा अहं जाया ॥ ८१ ॥ उपकारिणि विश्रब्धे आर्यजने यः समाचरति पापम् । तं जनमसत्यसंधं भगवति वसुधे ! कथं बहसि |||८२ ॥ किंच सुयमरणदुहं न तहा पीडेइ मह मणं नाह! | जह संतवृच्छेयप्पचयं हिययकालुस्सं ॥८३॥ अप्पा न केवलुच्चिय मए अणजाइ पाडिओऽणत्थे । विजयसुयनासणेणं तुमंपि पाणेस ! निन्तं ||८४|| तो तीइ मणो दुक्खं अवणेउं विजयकुमरवृत्तंतं । वररजलाभ परंतमक्खए नखरो सर्व्वं ॥ ८५ ॥ तं विजयरायवृत्तंतमुत्तमं निसमिउं इमा पावा । ईसाइ फुडियहियया झडत्ति पंचत्तमणुपत्ता ॥ ८६ ॥ अह काउ पेय किच्च तीसे राया फुरंतवेरग्गो । चितइ अहो महेला सवाणत्थाण पत्थारी ||८७ || सोयसरी दुरियदरी कवडकुडी महिलिया किलेसकरी । वइरविरोयणअरणी दुक्खक्खयपकुखपडिवक्खा ||८८|| ते धन्ना सप्पुरिसा अणत्थबहुलाउ पयइकुडिलाओ । दूरेण वज्जियाओ भुयगीउव जेहिं ललणाओ ।। ८९ ।। एवं चिंतिय राया नियय पहाणेहिं कुसुमनयराओ । आहूय विजयनिवई ठावेऊणं For Private And Personal नमस्कारे विजयनृपः ॥२०७॥ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M A Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyarmandir श्रीदे. चैत्य श्रीधर्म०संघाचारविधौ ॥२०८॥ निए रज्जे ॥९०|| सिरिपुरिमुत्तममूरिस्स पायमूले गहेवि सामनं। सिरिविजयबलो राया पत्तो अपुणभवं ठाणं ॥११॥ नमस्कारे विजयनरिंदोऽवि चिरं रज्जदुर्ग पालिउ तयं ठविउं । पुत्ते पवनदिक्खो जाओ सोहम्मसग्गरो ॥ ९२ ॥ तो चविउं इह भरहे विजयनृपः पासजिजिंदस्स गणहरो हो । जयनामा उपाडियकेवलनाणो सिवं पत्तो ॥१३॥ श्रुत्वेति वृत्तं विजयस्य सम्यग् , यथाऽवबोधं विबुधा! जनौधाः। एकादिकैरष्टशतावसानैः, स्तुध्वं नमस्कारवरैजिनेंद्रान् ॥९४॥ इति विजयकुमारकथा।। इत्यंगोपांगमुख्यश्रुतसरिदधिभूभाष्यनियुक्तिचूाद्यर्थव्याख्याप्रकारान् करणविधिसमेताननेकान् निरीक्ष्य । श्रीसंघाचारविध्यादिषु जिननमनाख्याधिकारे द्वितीयः, प्रस्तावः ख्यापितोऽर्हन्नुतिकरण विधानखरूपादिवर्णः ॥२॥ इति श्रीदेवेंद्रसूरिशिष्यमहोपाध्यायश्रीधर्मकीर्तिसमुत्कीर्तिते संघाचारनानि चैत्यवंदनाविवरणे चैत्यवंदनाभिधानप्रथमाधिकारे चैत्यवंदनाकरण-17 विधिस्वरूपादिवर्णनो नाम द्वितीयः प्रस्तावः। ॐनमः: प्रवचनाय, इत्युक्तं नमस्कार इति सप्तमं द्वार, एवं च भणितं चैत्यवंदनावरूपं, संप्रति चैत्यवंदनासूत्रार्थावसरः, | सूत्रं पुनरहीनाक्षरत्वादिगुणयुक्तं पठनीयं, हीनाक्षरत्वाद्युपेते सूत्रे समुच्चार्यमाणे दोससंभवात् , यतो लोकेऽपि तावद् विद्यामंत्रादावक्षरहीनत्वाद्युपेते समुच्चार्यमाणे विवक्षितफलबैकल्यमनर्थावाप्तिश्च दृश्यते, किं पुनः परममंत्रकल्पे जिनप्रणीतसूत्रे ?, अत्र चानुयोगचूर्णिभणितं विद्याधरज्ञातं, तथाहि-मगहाजणवयमझे रायगिहे पुरवरंमि रमणिज्जे । समवसरणंमि रइए सुरेहि सिरिवीरनाहस्स ।। १ ।। अमरनरतिरियसंगमसोहिल्ले तमि सेणिओ राया। अभयकुमाराइजुओ समागओ बंदणनिमित्तं ॥२॥ धम्म सोऊण विणिग्गयाइ परिसाइ खेयरो इको । गयणमि किंपि गंतुं पुणो पुणो पडइ धरणीए ॥३॥ तो सेणिओ जिणिदं पुच्छह किं ॥२०८॥ -- MilithiaunlNIHA hURARIANRAINMASIAIAINITERATURINEDMIUPTAHIMIRISMUNSUPRE dmithRHIT THATION For Private And Personal Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrin Aradhana Kendra www.kcbatirm.org Acharya Si t i Gyarmand श्रीदे हीनाक्षरदोपे विद्याधर चैत्य श्रीधर्म० संघा चारविधी २०९॥ एस उप्पयनिवाए। विहुरियपक्खो पक्खिव्व खेयरो कुणइ! जयनाह ! ॥४॥ अहमणइ जिमवारंदो अक्खरमिकं इमस्स पम्हुसियं । | नहगामिणीइ विजाइ तेण गंतुं इमो न खमो॥ ५॥ अभयकुमारो सोऊग मासिंय तं जिणस्स तो खिप्पं । गंतूण भणइ खयरं भो तुह विजाइ पम्हुढं ॥६।। लहिऊण अक्खरमहं कहेमि जइ देसि मह इमं विजं । पडिवरे खपरेणं पयाणुसारित्तलद्धीए ॥७॥ अभयकुमारो तं कहइ अक्खरं तो इमस्स दाऊण । विजं तुट्ठो खयरो उप्पइओ गयणमग्गंमि ।।८।। इति खेचरस्य श्रुच्चा हीनाक्षरविद्यया फलाभावम् । संपूर्णफलावाय तदहीनां चैत्यवंदनां कुरुत ॥ ९॥ इति विद्याधरकथा । अक्षराणि च पदसंपद्गतानि इत्यतोऽक्षरपदसंपदिति द्वारत्रयं प्रस्तावायातं, तत्र च प्रथमं तावद् पंचपरमेष्ठिनमस्कारमाश्रित्य तदाह वन्नऽट्टसहि नव पय नवकारे अट्ठ संपया तत्थ । सग संपय पयतुल्ला सतरक्खर अट्ठमी दुपया ॥ ३० ॥ अथ कोऽस्य व्याख्याने अवसरः चैत्यवंदनाविधानस्याधिकृतत्वात्?,सत्यं,यदा जिनबिंबाभावे स्थापना तदाचित्रादिषु साकारस्थापनया परमेष्ठिमंत्रेणानाकारस्थापनयाऽक्षादिषु जिनादयः स्थाप्यंते,यदुक्तं बृहदभाष्ये-"जिणबिंबाभावे पुण ठवणागुरुसक्खियावि कीरंति। चिइवंदणच्चिय इमा तत्थवि परमिटिठवणाउ॥१॥त्ति(१३) यद्वा श्रेयोभूतं चैतत् स्तुतिस्तोत्रादिप्रधानचैत्यवंदनाविधानं स्वर्गापवर्गावध्यनिबंधनं सम्यग्दर्शनादिहेतुत्वात्,तथा चागमः-"थयथुइमंगलेणं भंते. जीवे किं जणयइ!,थइथुइमंगलेणं नाणदसणचरित्तं बोहिलाम च जणयइ,नाणदंसणचरित्तसंपनेणं जीवे अंतकिरियं कप्पविमाणोववत्तियं आराहणं आराहेइ(श्रीउत्त०)"त्ति,अतो निर्वि नैतद्विधा-| नसिख्यर्थ प्रथमं पंचमंगलमेव व्यावयेते,तथा चोक्तं महानिशीथे चतुर्थाध्ययने-"तस्स य सयलसुक्खहेउभूयस्स न इडदेवयानमुक्कारविरहिए केइ पारं गच्छेजा, इट्ठदेवयाणं च नमुक्कारो पंचमंगलमेव गोयमा!, नो णममंति, वा नियमओ पंचमंगलस्सेव PAR ॥२०॥ For Private And Personal Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka b uri Gyanmandit बौदे नमस्कारे वर्णादि चैत्यश्री धर्म-संघा पारविधी ॥२१०॥ | पदमंताव विणओवहाणं कायई"ति,अलं विस्तरेण,संप्रति भाष्यगाथा व्याख्यायते-वर्णा-अक्षराणि अष्टषष्टिः नमस्कारे-पंचपरमेष्ठि-1 महामंत्ररूपे भवंतीति शेषः,उक्तं च नमस्कारपंजिकासिद्धचक्रादौ-"पंचपयाणं पणतीस वण्ण चूलाइवण्ण तिचीसं । एवं इमो | समप्पइ फुडमक्खरअट्ठसठ्ठीए॥१॥" तथा अष्टप्रकाश्यां-"आग्रेय्यादिविदिग्व्यवस्थितेषु दलेषु पादचतुष्कं 'एसोपंचनमुकारो, सहपावप्पणासणो । मंगलाणं च सवेसि,पदम हवा मंगलं ॥१॥ति ध्यायेत् , तथा नव पदानि विवक्षितावधियुक्तानिनमोरिहंताणमित्यादीनि, न तु स्त्यायंतानि, मणितं च-"सत्त पण सत्त सत्त य नव अट्ट य अट्ठ अट्ट नव इंति । इय पय अक्खरसंखा अस्स हु पूरेइ अडसट्ठी ॥१॥" तथाऽष्टौ संपदो-विश्रामस्थानानि,न चैवं श्लोकच्छंदोभंग इति वाच्यं,छंदोऽन्तररूपत्वादस्य,उक्तं च छंदःशास्त्रे-"विषमाक्षरपादं वा पादैरसमं दशधर्मवत् यच्छन्दो नोक्तमत्र गाथेति तत्सरिमिः प्रोक्ता" एवंविधाथ त्रयस्त्रिंशदक्षरप्रमाणा अनेकश आगमे दृश्यन्ते-जहा दुमस्स पुप्फेसु, भमरो आवियह रसं' तथा 'अहं च भोगरायस्स, तं चसि अंधगरहिणों' इत्यादि, तथा अष्टौ संपदो-महापदापरनामानि विश्रामस्थानानि, उपधानविधावष्टाध्ययनात्मकतया प्रत्यध्ययनायेकैकाचामाम्लकरणेनाष्टानामेवाचामाम्लाना भणनाद , शेषविशेषस्तु प्रागुक्तसंपवारन्याख्यानुसारतोबोध्यः,अथ कथं नवसु पदेषु अष्ट संपद इत्याह-'तत्यति तास्वासु संपत्सु मध्ये क्रमेण सप्त संपदः पदैः पूर्वोक्तस्वरूपैस्तुल्या:-समाना,अष्टमी पुनः संपद् सप्त| दशाक्षरप्रमाणा पर्यतवर्तिपदद्वयात्मिकावयवा 'मंगलाणं च सबेसिं, पदमं हवा मंगलं', यदुक्तं चैत्यवंदनाभाष्यप्रवचनसारोद्धारादिषु 'पंचपरमिट्टिमंते पए पए सत्त संपया कमसो। पजंत सत्तरक्खरपरिमाणा अडमी मणिया ॥१॥" तथा एवं वा चतुर्थपदस्य पाठः 'नवक्खर अदमि दुपय छट्ठी' अष्टमी संपत् 'पढमं हवइ मंगल मिति नवाथरप्रमाणा बेया, षष्ठी पुनः 'एसो ॥२१॥ For Private And Personal Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधी ॥२११ ॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila पंचनमुकारो, सङ्घपावप्पणासणोति द्विपदमाना, अभ्यधायि च नवकारपञ्जिकासिद्धचक्रादो - "अंतिमचूलाइ तियं सोलहनक्खराइजुयं चेव । जो पढइ मचिजुतो सो पावह सासयं ठाणं ॥ १॥" एवं त्रयत्रिंशदक्षरप्रमाणचूलिकासहितो नमस्कारो भणनीय इत्युक्तं भवति, तथा चोक्तं बृहन्नमस्कारफले - "सत्त पण सत्त सत्त य नवक्खर पमाण पयडपंचपर्यं । तितीसक्खरचूलं सुमरह नवकारवर मंतं ॥ १||” सिद्धांतेऽपि स्फुटाक्षरैः 'हवह मंगल' मिति भणितं, तथाहि महानिशीथचतुर्थाध्ययनसूत्रं - तहेव य तदत्थाणुगमियं इकारसपयपरिछिनं तिआलावगतिचीसक्खरपरिमाणं एसो पंचनमुकारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगल मियचूलं" ति 'अहिजंती'ति तत्र प्रकृतं, तदेवं 'हवइ मंगल' मित्यस्य साक्षादागमे भणितत्वात् प्रभुश्रीवज्रस्वामिप्रभृतिसुबहुबहुश्रुतसुविहितसंविद्मपूर्वाचार्यसंमतत्वाच्च पढमं हवड़ मंगलमिति पाठेन अष्टषष्टिअक्षरप्रमाण एव नमस्कारः पठनीयः, तथा च महानिशीथे- " एयं तु जं पंचमंगलमहासुअक्खंधस्स वक्खाणं तं महया पबंधेण अणंतगमपजवेहिं सुतस्स | पिइन्भूयाहिं निज्जुत्तिभासचुण्णीहिं जहेब अणंतनाणदंसणधरेहिं तित्थयरेहिं वक्खाणिअं तहेव समासओ वक्खाणिजंतं आसि, अहनया कालपरिहाणिदोसेणं ताओ निज्जुत्तिभासचुन्नीओ वुच्छिन्नाओ, इयो य वञ्चन्तेणं कालसमएणं महिडीपचे पयाणुसारी वइरसामी दुबालसंगसुअहरे समुप्पन्ने, तेणेसो पंचमंगलमहासुअक्खंधस्स उद्धारो मूलसुचस्स मज्झे लिहिओ, मूलसुतं पुणसुत्तचाए गणहरेहिं अत्थताए अरिहंतेहिं भगवंतेहिं धम्मतित्थगरेहिं तिलोयमहिएहिं वीरजिनिंदेहिं पनविअंति एस वुद्धसंपयाओ, इत्थ जत्थ पर्य पणाणुलग्गं सुचालावगं न संबज्झइ तत्थ तत्थ सुयहरेहिं कुलिहियदोसो न दायन्बुत्ति, किं तु जो सो एयस्स अर्चितचिंतामणिकप्पभूयस्स महानिसीहसुयक्खंभस्स पुड्वायरिसो आसि महुराए सुपासनाहथूहे पनरसहिं उपवासेहिं विहिपहि For Private And Personal ri Gyanmandir चूलाक्षरविचार: ॥२११ ॥ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mal श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥२१२॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasri Gyanmandir सासणदेवीए मम अप्पिउत्ति तहिं चैव खंडाखंडीए उद्देहियाएहिं हेऊहिं बहवे पत्तगा परिसडिया तहावि अच्चंत सुमहत्थाइसयं इमं महानिसीहसुअक्खंधं कसिणपवयणस्स परमं सारभूयं परं तत्तं महत्थंतिकलिऊण पवयणवच्छल्लत्तणेणं तदा भव्वसत्तोवयारयं च काउं तहा य आयहियट्टयाए आयरियहरिभद्देणं जं तत्थायरिसे दिट्ठ तं सर्व्वं समईए सोहिऊण लिहिअंति, अन्नेहिंपि सिद्धसेणदिवायरवुड़वाईजक्खसेणदेवगुत्तजसवद्भणखमासमणसीसरविगुत्तनेमिचंद जिनदास गणिखमणसच्च सिरिपमुहेहिं जुगप्पहाणसुअहरेहिं बहुमन्नियमिणं" ति, अन्यत्र तु संप्रति वर्तमानागमसूत्रमध्ये न कुत्राप्येवं नवपदाष्टसंपदादिप्रमाणो नमस्कार उक्तो दृश्यते, यतो भगवत्यादौ चैवं पंच पदान्युक्तानि 'नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो [लोए ] सव्वसाहूणं नमो बंभीए लिबीए' इत्यादि क्वचिन्नमो लोए सव्वसाहूणंति पाठ इति तद्वृत्तिः, प्रत्याख्याननिर्युक्तौ तु नमस्कारसहित प्रत्याख्यानपारण प्रस्तावे चूर्णाविदमुक्तं - नमो अरिहंताणं५ भणित्वा पारयति, नवकारनिर्युक्तिचूर्णौ त्वेवमुक्तं, तथाहि सो नमुकारो कमा पयाणि वा दस वा, तत्थ छ पयाणि नमो अरिहंत सिद्ध आयरियउवज्झायसाहूणंति, दश त्वेवं नमो १ अरिहंताणं २ नमो३| सिद्धाणं - ४ इत्यादि, यत्पुनर्नमस्कारनिर्युक्ता त्रशीतिपदमाना विंशतिर्गाथाः संति यथा - " अरिहंतनमुकारो जीवं मोएइ भवसहसाओ इत्यादयस्ता नवकारमाहात्म्य प्रतिपादका न पुनर्नवकाररूपा भवितुमर्हति, बहुपदत्वात् तासां, नवकारस्य तु नवपदात्मकः त्वात्, किंच-तास्वपि गाथासु वर्षेशतात्तद्वयाश्च पूर्वपूर्वतरप्रतिषु दवइ इति पाठो दृश्यते, श्रीमलयगिरिणाऽप्यावश्यकवृत्ति कुर्वता वृत्तिमध्ये ता गाथा हवइ इति पाठत एव लिखिताः, एतन्निश्चयार्थिना तद्वृत्तिर्निरीक्षणीया इति परमार्थ ज्ञात्वा कदाग्रहामिनिवेशादिविलसितकल्पितं आगमे तुक्तं होइ इति मुम्बा साक्षात् परमागमसूत्रान्तर्गतं श्रीवस्वामिप्रभृतिदशपूर्वधरादिबहु For Private And Personal चूलाक्षरविचार: ॥२१२॥ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kebatirth.org य Shin i n Aradhana Kendra Acharya Shek l Cyanmandir श्रीदे० श्रुतसंविग्रसुविहितव्याख्यासमादृतं हवइति पाठयुतं अष्टपष्टिवर्णप्रमाणं परिपूर्णनवकारसूत्रमध्येतव्यं, तच्चैवम्-नमो अरिहंताणं नमो नमस्कार चैत्य श्री-N सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए सब्यसाहूणं । एसो पंचनमुक्कारो, सम्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, व्याख्या धर्म संघा चारविधी पढम हवइ मंगलं ॥१॥ अस्य च व्याख्यानं यदेव श्रीवत्रस्वाम्यादिमि छेदग्रंथादिमध्ये लिखितं तदेव भक्तिबहुमानातिशयतो ॥२१३॥ विशेषतच भव्यसच्चोपकारकमिति दय॑ते, तथाहि-"से भयवं! किमेयस्स अचिंतचिंतामणिकप्पभूयस्स पंचमंगलमहासुअसंधस्स सुत्तत्थं पबत्तं, गोयमा! इय एयस्स अचिंतचिंतामणिकप्पभ्अस्स पंचमंगलमहासुअखंघस्सगं सुत्तत्थं पवन, तंजहा-जेणं पंचमंगलमहासुअक्खधे से णं सयलागमतरोववत्ती तिलतिल्ल २ कमलमयरंद २ सबलोअपंचस्थिकायमिव जहत्थकिरियाणुवायसम्भूयगुणकित्तणे जहिच्छियफलपसाहगे चेव परमथुइवाए, सा य परमथुई कायव्वा सव्वजगुत्तमाणं, सब्वजगुत्तमे य जे केइभए जे केइ भवंति जे केइ भविस्संति ते सवेवि अरहंतादओ चेव, नो णमनेत्ति, ते य पंचहा-अरिहंते १ सिद्धे २ आयरिए ३ उवझाए ४ साहुणो ५, तत्थ एएसि घेव गम्मत्थसम्भावो इमो, तंजहा-सनरामरापुरस्सणं सबस्सेव जगस्स अट्ठमहापाडिहेराइपयाइउवलक्खि अणनसरिसमचिंतमप्पमेयं केवलादिद्विअं पवरुत्तमत्तं अरहंतति वंदणादि च 'अरिहंति वंदणनमंसणाणि अरइंति पूजसकारं । सिद्धिगमणं व अरबंता अरहंता तेण बुचंति ॥१॥ एतदर्थः-बंदणचि सामान्येन वचःकायादिकृतस्तुत्यवनामनादीनि, उक्तं च चूर्णी-प्रशस्तवागादीनां दानं वंदणं,नमस्यनानि अंजलिबंधादिबहुमानादिप्रणिधानादिमिः सम्यग्ज्ञा(भ्या)नादीनि,पूय. ति गंधमाल्यादिमिः, उक्तं च उमास्वातिवाचकेन "पूजापि गंधमाल्याधिवासधूपपदीपायैः जुबलिकामरणादिमिः" तथामव्यस्वपरिपाकादिना परमाईत्यमहिमोपयोगपूर्व सिद्धिगमनास्तेिभ्योऽईद्भ्यः नमो-नमस्कारो द्रव्यती मानतय, मदीयो भवस्विति || ॥२१॥ atta For Private And Personal Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shripa श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संवाचारविधौ ॥२९४॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kagersuri Gyanmandir गम्यं, भणितं च-इत्थ नमुत्तिपयं दव्वभावसंकोयरूवपूयत्थं । करसिरमाई दवे पणिहाणाई भवे भावे ॥ १ ॥ " नमो नमोयोगे चतुर्थीप्राप्तौ षष्ठीह प्राकृतवशाद्, बहुवचनं सर्वकालिकार्हत्प्रतिपच्यर्थं तत्रातीताः केवलज्ञानिप्रभृतयः अनागताः पद्मनाभादयः वर्तमाना ऋषभादयः सीमंधरादयो वा, अथवा अर्हतेभ्यः स्तवनादियोग्यानां सर्वेषामपि मध्ये प्रधानेभ्यः, सर्वगुणसम्पूर्णतया सर्वोत्तमत्वाद्, आह च - "देवासुरमणुएस अरिहा पूआरुहुत्तमा जम्हा" तथा-अरिहा जुग्गा उचियत्ति सुगुणपुन्नत्तणा थयाईणं । | तेसुवि अन्ना पगरिसपत्ता जमिहेवमासने || १ || भीमभवगहन भ्रमण भीतभूतानामनुपमानंदरूपपरमपुरुषपथप्रदर्शकत्वेन सार्थवाहा| दिभ्यः परमोपकारित्वाच्च, उक्तं च निर्युक्तौ - "अडवीह देसि अत्तं तहेव निजामया समुदस्स । छक्कायरकखणट्ठा महगोवा तेज बुच्चति ||१|| अडविं सपच्चवायं बोलित्ता देसिओवरसेणं । पार्वति जहिट्ठपुरं भवाडविं अपि तहा जीवा || २ || पावंति निव्वुइपुरं | जिणोवइट्ठेण चेव मग्गेण । अडवीइ देसिअत्तं एवं नेयं जिणिंदाणं || ३ || जह तमिह सत्थवाहं नमइ अणो तं पुरं तु गंतुमणो । परमुवगारित्तणओ निविग्धत्थं च भत्तीए || ४ || अरिहो उ नमुकारस्स भावओ खीणरागमयमोहो । मुकखत्थीगंपि जिणो तहेव | जम्हा अओ अरिहा ||५|| संसाराअडवीए मिच्छत्तन्नाणमोहिअपहाए । जेहिं कयं देसिअत्तं ते अरिहंते पणिवयामि ||६|| सम्मदंसणनिट्टो नाणेण य तेहिं सुद्ध उवलद्धो । चरणकरणेण पहओ निव्वाणपहों जिर्णिदेहिं ||७|| सिद्धवसहिमुवया निव्वाणसुहं च ते उ अणुपत्ता | सामयमव्याबाहं पत्ता अयरामरं ठाणं ॥ ८ ॥ पाविंति जहा पारं सम्मं निजामया समुदस्स । भवजलहिस्स जिणिंदा तहेब जम्हा अओ अरिहा ||९|| मिच्छत्तकालियावाय विरहिए संत गिज्झगपवाए । एगसमएण पत्ता सिद्धिवसहिपट्टणं पोआ || १० || निजामगरयणाणं अमूढनाणमइकनधाराणं । वंदामि विणयपणओ तिविहेण तिदंडविरयाणं ॥ ११ ॥ पालंति जहा For Private And Personal नमस्कारव्याख्या ॥२१४॥ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kcbalirth.org Jain Aradhana Kendra Acharya Shri K a rsuri Gyarmandir श्रीदे । गावो गोवा इह सावयाइदुग्गेहिं । पउरतणपाणिआणि य वणाणि पावंति तह चेव ॥ १२ ॥जीवनिकाया गावो जं ते पालंति ते | चैत्य श्री-N नमस्कारमहागोवा । मरणभयाओ भट्ठा निव्वाणसुहं च पार्वति ॥ १३ ॥ परमुवगारित्तणओ नमोऽरिहा भवियजीवलोयस्स । सव्वेसिपि धर्म संघा व्याख्या चारविधौ | जिणिंदा लोगुत्तमभावओ तहय ॥१४॥"उपदेशित्वादेव च प्रथममर्हतां नमस्कारः, आह च-"अरिहंतुवएसेणं सिद्धा नजंति तेण ॥२१५॥ अरिहाई" । अथवा अरिहंताणंति पाठः, तत्राह-निम्महिय निद्दयनिद्दलिय पेल्लिय निव्वविअ अमिभूअ सुदुजयासेसअट्ठपयार| कंमस्स रिउत्ताओ वा अरिहंता, अरुहंता वा पाठः, असेसकम्मक्खएणं निद्दड़भवंकुरत्ताओ न पुणेह रुहंति-जमंति उववज्जंति वा, एवमेए अणेगहा पन्नविजंति परूविज्जति आपविज्जति पन्नविज्जति निदंसिज्जति" तच्चानेकविधत्वमेवं भगवत्यादावुक्तं, 'अरहयद्भ्यः ' अविद्यमान रहः-एकान्तरूपो देशोऽन्तरश्च-मध्यं गिरिगुहादीनां सर्ववेदितया समस्तवस्तुस्तोमगतप्रच्छन्नत्वस्याभावेन येषां ते अरहोऽतरस्तेभ्यः, यदाह-"नत्थि व रहो य छन्नं अंतो मज्मं च सयलवत्थूणं । परअवरभागवेइत्तणेण जेसिति | अरहंता ॥३॥" अथवा अत्यर्थ राजन्ते समवसरणादिबहिलक्ष्म्या सज्ज्ञानाद्यांतरलक्ष्म्या वा रांति सद्दर्शनादि प्रन्ति च मोहादीन् । | गच्छंति वा तदुपकृत्यै ग्रामानुग्रामं तन्वंति च धर्मदेशनां तायंते तारयंति वा सर्वजीवानिति निरुक्तिवशादरहंतास्तेभ्यः, अथवा अरहयद्भ्यः प्रकृष्टरागादिहेतुभूतमनोज्ञेतरविषयसंपर्केपि क्वचिदप्यासक्तिमगच्छद्भ्यः क्षीणरागत्वात् , यद्वा अरहयद्भ्यः सिद्धिगतावप्यनन्तज्ञानमयत्वात् आत्मस्वभावमत्यजद्भयः रह त्यागे इति वचनात् , अनेकार्थत्वाद्वाधातूनामवस्थितार्थः,अरहयद्भ्यः | सर्वकर्मक्षयानंतरसमय एव लोकाग्रगमनाद् भवमध्येऽतिष्ठद्भ्यः भणितं च-"न रहंति न चयंति नाणाइ सिवेवि तोय अरिहत्ति। नरहंति न चिट्ठति य भवंमि जं तेण अरिहंता ॥१॥ यद्वा 'अरथांतेभ्यः' अविद्यमानो रथः-स्पंदनः सकलपरिग्रहोपलक्षणभूतोऽ For Private And Personal Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LEL Shri A in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka r l Gyarmandir नमस्कारव्याख्या श्रीदे व -विनाशो जराधुपलक्षणभूतो येषां ते अरथांताः 'स्वघयधभा'मितिप्राकृतस्त्रात् थस्य हत्वे अरहंता, मणितं च-"संगुवलचैत्यश्री क्खणभूओ रहो अ जाणं न जेसि अंतो य । सो अजराईउवलक्खणं तु ते इंति अरइंता ॥८॥ अरभमानेभ्यो वा-अतुलस्वस्तापर्म० संघा- ३ चारविधी HTM| दिभावमयत्वेन रामसिकवृत्यादिनिवृत्तेभ्यः इत्यादिव्याख्यांतराण्यपि भावनीयानि, अरिहंताणमिति वा पाठे इंद्रियविषयाधरिहं॥२१॥ तृम्यः, न्यगादि च-"इंदियविसयकसाए परीसहे वेयणा य उवसग्गे । रागद्दोसे कम्मे अरी हणंतीति अरिहंता ॥१॥"अरिणा | वाधर्मचक्रेण मांतस्तेभ्यः, अरिसमुपलक्षिताखिलहेतिहतिसंहतिद्भ्यो वा, आह च-"अरिणा वा धम्मचकेण मंति सोहंति ते उ अरिहंता । अरिउवलक्खियसत्थे जहंति व चयंति अरिहंता ॥१॥" अरुहताणंति तु पाठः-दग्धे बीजे यथाऽत्यंत,प्रादुर्भवति नांकुरः । कर्मवीजे तथा दग्धे, प्रादुर्भवति नारः(न रोहति मवांकुरः)॥१॥ अरुरुपलक्षितपीडादि तत्कारणकर्मादिभूतं च नंतीति च अरुहंतभ्यः, अरुंधद्भयो वा वारणाभावेन पुनर्भवे अवरोधाभावादित्यादि । तथा 'नमो सिद्धार्ण परमानंदमहसवमहाकल्लाणनिरुवमसुक्खाणि सिद्धाणि निप्पकंपसुकज्झाणाइअचिंतसत्तिसामथओ सजीववीरिएणं जोगनिरोहणा महापयत्तेणमेसिति सिद्धार, । अट्ठपयारकम्मक्खएण वा सिद्धी सद्धाम एसिंति सिद्धा, सियं-बद्धं कम्मं झायं-मसमीभूयमेएसिमिति वा सिद्धाः३,अत्र गाथा: "दीहकालरयं जंतुकम्मं से सिअमट्टहा। सिकं घेतंति सिद्धस्स, सिद्धत्तमुवजायइ ।।१।। सिद्धे निट्ठिए पहीणे सयलपओयणजाए कयं वा एएसिमिति वा सिद्धा ।। एवमेए इत्थीपुरिसनपुंसगमुणिलिंगअनलिंगगिहिलिंगपत्तेयबुद्धबोहिय जाव णे कम्मक्खय| सिद्धाइभेएहि णं अणेगहा पत्रविअंति' इत्यादि, अत्र गाथा-तित्थातित्थ जिणाजिण गिहिऽनमुणिलिंग थीनरनपुंसा । पत्चेयसयंबुद्धा बुद्धचोहिय अगइगसिद्धा ।। १ ।। प्राग्वद् विशेषाब्याख्येया, यद्वा विधू गत्यां षेधति स-अपुनरावृत्या निर्वृतिपुरीमगछन् | I For Private And Personal CHILDRANI ॥२१॥ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Malu www.kobatirth.org ) परमेष्ठि श्रीदे चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥२१७॥ Aradhana Kendra Acharya Shri Kaitas Gyanmandit अथवा 'पिळूच संगद्धौ' सिध्यति स-निष्ठितार्था भवंति स्म यदिवा 'षि शास्त्रमांगल्ययोः',सेधंति स-शासितारोऽभूवन् मांगल्यरूपतां | चानुभवंति सेति सिद्धाः, अथवा सिद्धा-नित्या अपर्यवसानस्थितिकत्वात् प्रत्याख्याता वा भव्यरुपलब्धगुणसंदोहत्वात् , उक्तं च- पदार्थः भातं सितं येन पुराणकर्म, यो वा गतो निर्वृतिसौधमूर्ध्नि । ख्यातोऽनुशास्ता परिनिष्ठितार्थो, यः सोऽस्तु सिद्धः कृतमंगलो मे ॥२॥ तेभ्यो नमः इत्यादि प्राग्वत् , नमस्करणीयता चैषामविप्रणाशिज्ञानसुखवीर्यादिगुणयुक्ततया स्वविषयप्रमोदप्रकर्षोत्पादनेन भव्यानामतीवोपकारहेतुत्वादिति ॥ तथा 'नमो आयरियाणं' तथा अट्ठारससीलंगसहस्साहिडियतणू छत्तीसइविहमायारं ज. हट्ठियमगिलाए अहमिसाणुसमयं आयरंति पवत्तअंति आयरिया ?, अत्र गाथा-"नाणाई छत्तीसं तस्सायरणदेणासणाओअ । जे ते भावायरिया भावायारोवएसा य ॥१॥ परमप्पणो अ हियमायरंति आयरियार सबसत्ते सीसगणाण वा हियमायरंति आयरिया३ पाणपरिचाएऽवि य पुढवाईणं समारंभं नायरंति नारभंति नाणुजाणंति वा आयरिया ४ सुहुमा(दुमे)वारुडेवि न कस्सइ मणसावि | पावमायरंतित्ति वा आयरिया ५ एवमेए नामट्ठवणाईहिं अणेगहा विजंति । तत्र प्राग्वदर्थविशेषः, आ मर्यादया तद्विषयविजयरूपया चर्यते-सेव्यते जिनशासनार्थोपदेशकतया तदाकांक्षिमिरित्याचार्याः, उक्तं च-"सुत्तत्थविऊ लक्णजुत्तो गल्छस्स मेढिभूओ य । गणतत्तिविष्पमुक्को अत्थं भासेइ आयरिओ ॥१॥" अथवा आचारो ज्ञानाचारादिपंचधा आ मर्यादया वा मासकल्पादिरूपया चारो-विहारः तत्र साधवः स्वयंकरणादन्यदर्शनाचेत्याचार्याः, आह च-पंचविहं आयारं आयरमाणा तहा पयासंता। आयारं दंसंता आयरिया तेण वुच्चंति ॥१॥" अथवा आ-ईषत् चारा-हेरिकाः अपरिपूर्णा इत्यर्थः युक्तायुक्तविभानिरूपणनिपुणाः तेषु साधवो यथाशास्त्रोपदेशकत्वात् आचार्या अतस्तेभ्यो नमः, नमस्करणीयता चैतेषां आचारोपदेशकतयोपकारित्वात् ॥ तहा 7 ॥२१७॥ ANSANI For Private And Personal Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे● चैत्य०श्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥२१८॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kagersuri Gyanmandir सुसंडासवदारे मणोव कायजोगत्तउवउत्ते विहिणा सरवंजणमत्ताबिंदुपयक्खरविसुद्धं दुवालसँगं सुयमज्झयणज्झावणेणं परमप्प| णो य मुक्खोवायं झायंतित्ति उवज्झाया १ ।। अत्र गाथा - बारसंगो जिणकूखाओ, सज्झाओ कहिओ बुहेहिं । तं उवहसंति जम्हा, उज्झाया तेण वच्चति ॥ १ ॥ चिरपरिचियमणंतगमपञ्जवत्थेहि वा दुवालसंगं सुयनाणं चिंतंति अणुसरंति एगग्गमाणसा झायंतित्ति वा उवज्झाए २ एवमेए अणेगहा पन्नविजंति ४ । तहा अचंतकट्ठ उग्गतरघोरतव चरणाइअणेगवयनियमोववासनाणाभिग्गहविसेस| संजमपरिपालणेण सम्मं परीसहोवसग्गाहियासणेणं सव्वदुक्खविमोक्खं साहयंति साधवो ५ । अयमेव इमाए चूलाए भाविजइएएसिं नमुक्कारो एसो पंचनमुक्कारो, किं करिजा ? – सव्वं पार्व-नाणावरणीयाइकम्मं निस्सेसं तं पयरिसेणं दिसोदिसिं नासइ सव्वपावप्पणासणो, एस चूलाए पढमो उद्देसओ एसो पंचनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो, किंविहो उ १ - मग्गो निव्वाणसुखसाहणिकखमो सम्मदंसणाइआराहओ अहिंसालक्खणो धम्मो तं मे लाइजत्ति मंगलं १, ममं भवाओ - संसाराओ गलिजा तारिज वा इति मंगलं२ बज्रपुट्टनिद्धत्त निकाइयट्ठपयारकंमरासि मे गालिजा विज्झविजत्ति मंगलं ३, एएसि सव्वेसि अन्नेसिं च मंगलाणं किं., पढमं आइए, अरिहंताईणं धुई चैव मंगलंति पूर्वोक्तार्थं, भावमंगलतया एकान्तिकत्वात् आत्यन्तिकत्वाच्च, एवं प्रयोजनाद्यप्युक्तं, तथा निर्युक्तिः इत्य य पओयणमिमं कम्मकूखयमंगलागमो चेव । इहलोयपारलोइय दुव्विहफलं तत्थ दिता ॥ १ ॥ इहलोइ | अत्थकामा आरुग्गं अभिरईइ णिष्कत्ती । सिद्धी य सग्गसुकुले उबवाओ ईय परलोए || २ || किंच-ताव न जायइ चित्तेण चितियं पत्थियं च वायाए । काएण समाढत्तं जाव न सुमरिओ नमुकारो || १ || एस समासत्थुत्ति, विस्तरार्थिना नवकार पटलसिद्ध|चक्रवृहन्नमस्कारफलादीन्यवलोकनीयानि अत्र बंधुदत्तकथा For Private And Personal परमेष्ठिपदार्थः ॥२१८॥ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥२१९॥ Aradhana Kendra अत्थित्थ भरहवासे नागपुरी वरपुरी सुरपुरीव्वसुइसुपवित्ता सुगयाणुगया विबुहेहिं संजुत्ता ॥ १ ॥ परदोसदंसणंधो परदव्ववहारपंगुलो जत्थ । वसइ जणो लोभिल्लो गुणगणरयणञ्जणंमि सया | २|| निद्दलिअसयलपडिवक्खलक्खतेओ य सूरते उन्त्र । नामेण सूरतेओ तत्थ नरिंदो आहेसीया ||३|| रयणयरो पउरघणो धणवह सिट्टी तहिं धणवइव्त्र । आसी वरप्पहो रायसंमओ किंतु न कुबरो ||४|| सीयन्त्र दामरहिणो मणनयणाणंददायिणी तस्स । वरसीलसुंदरी सुंदरित्ति नामेण वरभञ्जा ।। ५ ।। गुणवंतो गुरुपणओ विसुद्धवंसो धणुव्व ताण सुओ। नामेण बंधुदत्तो किं तु सया वकिमाहियओ || ६ || नवनवकलाउ निच्चं कलयतो कलनिहिव्व सियपकखे । जुहाजुय स्यणियरो सो पत्तो तारतारुण्णं ||७|| अह वसुनंदो सेट्ठी धणवरणा मग्गिओ सुयस्स कए । पुतिं च | चंदलेहं अणुमन्नइ सोऽवि तव्त्रयणं ॥८॥ तो सुपसत्थे लग्गे नक्खत्तमुहुत्त दिवससोहिल्ले । ताणं पाणिग्गहणं पवत्तियं परमरिद्धीए |||९|| वरकंकणंकियकरा बीयदिणे चैव चंदलेहा उ । गिहमज्झे पविसंति डक्का दुद्वेण सप्पेण ॥ १० ॥ खद्धा खद्धत्ति पजंपिरी उ विसमविसवेगविहुरंगी । तो सा झडत्ति पडिया कयंतअंकिव्व भूमियले ॥ ११ ॥ हा विहि निग्धिण किमिणं कथं अकंडे तइति पलवंतो । वियलियतोसो तो से मिलिओ सयलोऽवि सयणजणो ॥ १२॥ तो सयलदिणं विहियाउ मंतवाईहिं विविधकिरियाओ । जाया ताव बिहलाउऊसरे मेहबुट्व्व ॥ १३ ॥ सूरो गोवो मित्तो नूणं मुञ्चइ न मच्चुणा कोवि! इय सूयंतु व्ञ रवी इतो अत्थमणमणुपत्तो ॥ १४ ॥ एयारिसे अवसरे न हु जुत्ताई कुसुंभरागाईं । इय भणिउविव संझा संझारागं गहिय मुयई ।। १५ ।। हरगलगवलकरालो तिमिरभरो पसरिओ दुरायारो । जह उडिओ कयंतो हरिउमणो जीवियं तीए ॥ १६ ॥ पिच्छंतस्सवि पियमायभायपमुहस्स सयणलोपस्स | गयसरगा अताणा सा पंचतं तओ पत्ता || १७ | जउ मंतेहिं तंतेहिं विज्जेहिं ओसहेहिं सय www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas For Private And Personal red cou ri Gyanmandir बन्धुदत्तकथा ॥२१९॥ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ShriM h Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kai Gyanmandir कथा श्रीदे. चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ।।२२०॥ ( Aaudai APRILAPAR णेहिं । न य देवदाणवेहिंवि रक्खिजइ मच्चुणो पाणी ॥१८॥ तथा-जम्मजरामरणभएहिं विहुए वाहिवेयणा-01 बन्धुदत्तविहुरे। मुत्तुं जिणवरवयणं संसारे अस्थि नहु सरणं ॥१९॥ अविय-बहुविहआवइमझे जं जीविजइ खणंपि | तं चुलं । न चिरं खुहियमुहत्थं सरसफलमवट्टियं चिढ़े ॥२०॥ जं जेण कयं कम्मं सो तं अणुहवइ अप्पणो चेव । इय अमुणतो मूढो सयणजणो बिलवए यहुयं ।।२१।। काउं मयकिच्चाई तीसे जाओ कमेण गयसोगो।जं जीवाणं पायं पिम्मं सोगोय पंचदिणा ॥२२॥ तत्तो अनं कवं परिणावइ धणवई नियं पुत्तं । साबिहु विसूइयाए विवाहणंतरदिर्णमि मया ॥२३॥ अन्नं चिंतेइ जणो अप्पाणं सासयं व मन्नतो। पडिऊण अंतराले कुवियकयंतो कुणइ अन्नं ॥२४॥इय परिणियमित्ताओ परिणयणाणंतरिश्चिय दिणंमि । छन्भजाउ मयाओ उदयेणं असुहकम्मस्स ।।२५।। जओ-"पविसउ विवरं आरुहउ गिरिवरं मंतमाइ सिक्खेउ । आराहउ देवं वातहवि न छुइ पुरकयाणं ।२६॥दडोवरि पिडगसमं विसहत्थो बंधुदत्तु | इय नामं । से विहियं लोएणं बलवंतो खलु जणोजेणं ॥२७॥ अन्भत्थणापरस्सवि धणेण बहुगाऽवि से न को देइ । नियकलंकिं कजइ कन्नच्छेएण कणगेण ॥२८॥ तत्तो विसन्नचित्तो चि चिंतेइ बंधुदत्तुति । किमिमीइ पीवराइ व सिरीइ मह दइयरहियाए। ॥२९॥ जओ-केरिसया व विलासा का वा हिययस्स निव्वुई तस्स । जस्स न समसुहदुहिया पिया थिला न | वसइ घरंमि ॥३०॥ न चैवं भावयति-पत्नी प्रेमवती सुतः सुविनयो भ्राता गुणालंकृतः, स्निग्धो बंधुजनः सखाऽतिचतुरो नित्यं प्रसन्नः प्रभुः । निर्लोभोऽनुचरः परार्तिशमने प्राप्तोपयोगं धनं, पुण्यानामुदयेन संततमिदं कस्यापि संपद्यते ॥३१॥ तो सो चिंतासंतावतावियंगो पहीणसच्छाओ। दिवसे दिवसे खिजइ चंदो इव किण्हपखंमि ॥३२॥ ॥२२०॥ For Private And Personal Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥२२९॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash | जओ-अग्गीइ विणा दाहो उसाससमण्णियं इमं मरणं । रज्जूह विणा बंधो चिंता दुक्खाण रिछोली ॥३३॥ तथावारियवासा सच्छंदगामिणी अन्नमन्नमणुरत्ता । नारिव्व चलसहावा चिंता जीयं कयत्थेह ॥ ३४ ॥ दठुमह तं सचितं धणवह चिंतइ दुही सुओ मरिही । तो दुहविस्सरणकए वावारे कंमिवि खिवामि ||३५|| इय चिंतिय सो भणिओ धणवरणा वच्छ ! गच्छ अत्थत्थं । देसंतरं विणा तेण जेण पुरिसो न किंचि जओ ॥ ३६ ॥ नियभुयविद्वत्तविहवो मणोरहे मग्गणाणऽवि पुरंतो । सलहिज्जइ जो न लोए चलंतथाणू न सो पुरिसो ॥ ३८ ॥ तथा-जाई कुलं च रूवं तिन्निवि निवडंतु कंदरे विउले | अत्थुचिय परिवुडर जेण गुणा पायडा हुंति ||३८|| अह पिउणो आएसं एवं सोऊण बंधुदत्तो य। चिंतेइ न संपअइ सुहेण लच्छी जओ भणियं ॥ ३९ ॥ जा जीवियं जणेणं चडावियं नेव संसयतुलाए । ता किं संपन्नइ संपयाउ जा चिंतिया चित्ते ॥ ४० ॥ इय चिंतिय पिउआणाइ गिव्हिउं बहुयविविहभंडाई | आरुहिय पवहणं तरिय जलनिहिं सिंहलेहिं स गओ |||४१ ॥ सारेणुवयारेण उवयरिओ सिंहलेसरो तुट्ठो । मिल्हेह सुंकदाणं सबस्सवि तस्स पणियस्स ॥ ४२ ॥ बहुलाभेणं पणियं विधिणिउं गिन्दिउं च पडिपणियं । सो नियनयरामिमुहं अह चलिओ जाव जलहिंमि ||४३|| पबलपडिकूलपवणप्पणुल्लियं तस्स पवहणं तत्थ । तो बुद्धं तुट्टगुणं पावेण भवष्णवे व जिओ ||४४ || सुहकंखिरोवि पडिओ अणत्थसत्थंमि अहह किह अहवा । अत्थं पत्थेमाणा दुहदंदोलि लहंति जिया ||४५ || भणियं च - " अर्थानामर्जने दुःखमर्जितानां च रक्षणे । आये दुःखं व्यये दुःखं, घिगर्थे दुःखभाजनम् ||४६ || आसाइयसुहफलएण तेण अह मच्छगाइयंमि तर्हि । संसारे मणुयभवुव कहवि पत्तो रयणदीवो ॥४७॥ खणसंजोगविओगावहाई खणवसणऊसवमयाई । खणदिट्ठनट्ठपिम्माई जेण विहिणो विलसियाई For Private And Personal Gyanmandir बन्धुदसकथा ॥२२१॥ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M h Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalaha ri Gyarmandir कथा श्रीदे |॥४८॥ अह तत्थ स वावीए हाउं पाउं पयं समुत्तिनो। कयविविहफलाहारो पलोयए जाव दिसिवलयं ॥४९॥ ता तत्थ रोहणगिरी चैत्यश्री-7 ओयरिओ दिट्ठिगोयरे तस्स । अइतुंगो रमणिज्जो मुत्तिमंतो विवेउव्य ।। ५०॥ पिच्छइ य तेयनियरं तस्स सिरे दसदिसिप्पयाधर्म संघाचारविधी सयरं। तिमिरभरं हणमाणं वीसमियंविव रविविमाणं ॥५१॥ तइंसणुस्सुओ जाव आरुहई तत्थ ताव पिच्छेद । जिणभवणं पसरिय कंतिपसरवररयणनिम्मवियं ॥५२॥ पविसित्तु बंधुदत्तो तत्थ य अमयंजणं व नयणाणं । वंदइ पडिमं निप्पडिममणिमयं नेमिणो| ॥२२२॥ थुणइ ॥५३॥ “इन्द्रश्रीरहमिन्द्रश्रीश्चक्रिश्रीरपराः श्रियः। त्वद्भक्तेस्तु त्रिलोकश्रीः,शिवश्रीरप्यवाप्यते॥२४॥" अच्छरिए खित्तमणो निएइ जा सव्वओ तयं भवणं । ता तत्थेगपएसे दिट्ठो साहू समुवविठ्ठो ॥५५॥ विजाहरनियरेणं परियरिओ साहुपुंगवो सहइ ।। मुरविसरेण व सक्को सोमो तारागणेणं व ॥५६॥ गंतु तहिं तं नमिउं उवविट्ठोसाहुणा इमो पुट्ठो। को भद्द! तं सि? तो सो साहह नियवइयरं सव्वं ॥५७॥ "अह भणइ मुणी इहयं भद्द ! भवीणं भवंति भद्दाणि । पुण्णेण सुचिण्णेणं पावेणं पुण अभद्दाणि ॥५८॥ तथा"सुकुलुप्पत्ती सोहग्गरूवारुग्गतिरिद्धिबलं । दीहाउ पहुत्तजसो सग्गसिवसुहाई धम्मफलं॥५९॥ दालिई दोहग्गं उवेयविओयसोयसंतावं । असमाहिवाहिदुहआवयाउ सबंपि पावफलं ॥६०॥ जीवगईवि विचित्ता सुहासुहो वावि जीवपरिणामो । बंधइ य तेण कम्मं तं पुण नेयं चउम्भेयं॥६१॥ पुण्णअणुबंधि पुण्णं तहेव पावाणुबंधि पुण्णं च । पुण्णाणुबंधि पावं पावं पावाणुबंधितहा।।६२॥ तत्थ विहियजिणधम्मा निरवायं निरुवमं च भवसायं । भरहुव्व लहंति जओ पुण्णं पुण्णाणुबंधि तयं ॥६२॥ नीरोगाइगुणजुया महिडिया कोणिउव्व पावरया । पावाणुबंधिपुन्ना हवंति अन्नाणकटेण ।।६३।। जं पुण पावस्सुदया दरिदियो दुखियावि पावंति । जिणधम्मं तं पुण्णाणुबंधिपावोदयाइलवा ॥६॥ पावा पयंडकम्मा निद्धम्मा निग्घिणा निर HummignmIONmmam ॥२२२॥ For Private And Personal Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ibranmandit Shri Manel B श्रीदे चैत्यश्री बन्धुदत्तकथा धर्म० संघा चारविधी ॥२२३॥ m adhana Kendra Acharya Shri Kailashe D णुतावा । दुहियावि पारनिरया पार पावाणुवंधि तयं ।। ६५ ॥ बहिरंतरंगरिद्धी जाणइ पुण्णाणुवंधिपुण्णेण । इक्कावि न जेसि पुणो घिद्धी मणुयत्तणं तेसिं ॥६६॥ जे खंडभावणं पुण करंति न जिया अखंडियं पुण्णं । ते अन्नभवे पावंति संपया आवयाहिं जुया ॥६७॥ ता भो णाऊणमिमं सुद्धे धम्मे विसुद्धभावेणं । उज्जमह झत्ति जइ इह मुहाई पुण्णाई वच्छेह ॥ ६८॥" सोउमिमं गिहिधम्मं गिण्डइ संमत्तमूलमह एसो । अणुमोयंतो सहलं तत्थ य निययं समागमणं ॥६९॥जओ-"तो आवयाउ संपयस माउ दुग्वंपि सुक्खतुल्लं तं । पाविजइणंतसुहो जिणधम्मो जत्थ दयरम्मो ॥७॥" तं दटुं अह तुट्ठो खयरो चितंगओ भणइ भद्द! । तं परमबंधवो मे इमिणा जिणधम्मगहणेण ॥७१॥ भणियं च-“अन्नुनदेसजाया अनुन्नाहारवड्डियसरीरा। जिणसासणं पवना सवे ते बंधवा नेया ।।७२॥ ता गयणगामिणिं किं विज तुह देमि नेमि व सठाणं । दावेमि पवरकन्नं व साहु साहम्मिय ! भणेसु १ ॥७३॥ जओ-"तं अत्थं तं च सामत्थं, तं विण्णाणं सुउत्तमं । साहम्मियाण कजंमि, जं विचंति सुसावया ॥७४॥" अह भणइ बंधुदत्तो जा विजा तुझ सा हु मज्झ वसा । जं बंधवाण अत्थो साहीणो लोयसिद्धमिणं ॥७५॥ मुत्तुं इमं मुठाणं चित्ते अनं न मे चमकेइ । जत्थ किल एरिसाणं सुगुरूणं दंसणं होइ ।। ७६ ॥ "पुवकयसुकयविहियं भविस्ससुहकारणं हरइ दुरियं। सुगुरूण दसणं जं पयडेइ तिकालजोगित्तं ॥ ७७ ॥ इय वुत्तुं तुहिके तंमि ठिए खेयरो विचिंतेइ । अहिलसइ एस कन्नं अणिसेहे जं धुवाऽणुमई ॥ ७८ ॥ जा परिणीया संती कमा इमिणा न संपर्य मरई। संमं विण्णाय तयं दाविस्समवस्समेयस्स ॥७९॥ इय निच्छिऊण तुरियं चित्तंगयखेयरो समणुपत्तो। वेयडे रयणपुरंमि बंधुदत्तं गहेऊण ॥ ८॥ सकारिय तं गुरुगउरवेण चित्तंगओ अह सहाए । पयडियतब्बुत्तो पुच्छइ विजाहरे एवं ili arANAMRIHIBIPAHILIARRIA ॥२२३॥ For Private And Personal Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mal श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥२२४॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash ||८१ ॥ भो अस्थि कावि कन्ना इमस्स जा अरिहइति इत्ताहे । तन्भायअंगयसुया मयंक लेहा तर्हि पत्ता ॥ ८२ ॥ सा भणइ किं न याणेह ताय ! पियदंसणा सही मज्झ । का सत्ति खेयरिन्देण जंपिए भणइ पुणवि इमा ||८३ || अत्थि हु वच्छाविसए कोसंबीए य पवरनयरीए । विहियारिमाणभंगो भूवालो माणभंगुति || ८४|| सिट्ठी य मुणियत्तत्तो बहुवित्तो आसि तत्थ जिणदत्तो । साहम्मियजिणभत्तो दढसंमत्तो पवरसत्तो ||८५|| तस्स सम्मुन्नयवंसा सुवन्नरयणा य मेरुमुत्तिव । वसुमइ नामेण पिया धूया पियदंसणा नाम ||८६|| रूवेण रहसुरूवा जम्पणाए सरस्सई सक्खा । लायण्णेण य लच्छी ललियपयन्नासजिणहंसी ॥८७॥ सहियाए सहियाए सहियाइ इमाइ मज्झ सहियाए । सम्मं अणुदिणकरणिजकजच्छक्केण जंति दिणा ।। ८८ ।। भणियं च"देवपूजा गुरूपास्तिः, स्वाध्यायः संयमस्तपः । दानं चेति गृहस्थानां, षट् कर्माणि दिने दिने || ८९ ||" जा अनया उ तीए सद्धिं सद्धम्मकम्मनिरयाहं । चिट्ठामि ता पविडं भिक्खटुं तत्थ मुनिजुयलं ||१०|| अह नाणवरिद्वेणं जिणं साहुणा तयं द । सिट्टो मुणी कणिट्ठो गरिट्ठवयणं इमं छष्णं ॥ ९१ ॥ जिणदत्तसिद्विधूया एसा पियदंसणा सुयं एगं । पसविय पडिवजिस्सइ पवज्रं बजिअ अवजं ॥ ९२ ॥ तं सोउ हरिसियाऽहं मह सहियच्चिय जहा इहं सहिया । जा इह भवसुहमणुहविय पाविहिर परभवसुपि ।। ९३ ।। इत्तियदिणाणि एयं कस्सवि न मयाइ साहियं ताय । सा परमिमस्स जोगत्ति जमुचियं किजउ तमिहि ||१४|| तं सोउं अमियगईपमुहे चितंगओ भगइ खयरे । दावेद तत्थ गंतुं तं कन्नं बंधुदत्तस्स ||१५|| गहिऊण बंधुदत्तं कोसंबीए इमे तओ पत्ता । सिरिपासनाहचेइय विभूसिए बाहिरुजणे ||९६ || काउं तत्थावासे व्हायविलित्तो अलंकियसुगत्तो । तत्तो य बंधुदत्तो विजाहरनियर संजुत्तो || ९७|| गंधव गीयवाइयकरकाहलरोलमुहलियदियंतो । पवरविमाणारूढो पत्तो जिणमंदिरदुवारं ॥ ९८ ॥ ! For Private And Personal Gyanmandir बन्धुदत्तकथा ॥२२४॥ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org armandie बन्धुदत्त कथा Shri Marti Pradhane Kendra Acharya Shri Kailas श्रीदे० |जिणदिट्ठीगोयरे तो मुत्तु विमाणं तहिं पविसमाणो। कयपंचविहाभिगमो करेइ निसीहिया तिन्नि ॥ ९९॥ चैत्यश्रीम०संघा भणि नमो जिणाणं काउं अद्धोणयं पणामं च । पूयंगपाणिपरियणजुओ पढंतो नमोकारे॥१००। करधरियचारविधौ जोगमुद्दो पए पए पाणिरक्षणाउत्तो । देइ य पयहिणतियगं सुभत्तिजुत्तो इमो तत्तो ॥१.१॥ निसीहियाइ ॥२२५॥ पविसित्तु मंडवे काउ तह पणामतिगं । हरिसवसवियसियमुहो सम्मं वियरेइ सुहकोसं ॥१०२॥ ण्हवणविलेवणआभरणवस्थपुष्फफलधूपदीवहिं। काउं जिणंगपूयं नेवज्जेणग्गपूयं च ॥ १०३ ॥ दाहिणदिसा जहोचियअवग्गहे तिप्पमजिउंच भुवं । निसीहियं विहेउं मुद्दातियगं च सचवियं ॥१०॥अनिरिक्खंतो तिदिसिं उवउत्तो वण्णमाइतियगंमि । भावंतोऽवत्थतियं वंदिय पासं इय थुणेइ ॥१०५ ॥ "जय जय जिणिंद ! तियसिंदविंदवंदियपयारविंदजुया । सिरिपासनाह मणवंछियत्थसंपायणसमत्थ !॥१०६।। सामि! न याणामि अहं अहेसि तुह कित्तियं तु लायण्णं । नयणाइगंति तुह नामधारए पत्थिवेऽवि चिरं ॥१०७॥ नयणा निरत्थया ते जयदमयंजण न जेहिं दिद्योऽसि । वायावि वंचिया सा सुरसंथुय ! जीइ नहु थुणिओ ॥१०८॥ हिययं हियआणंदं हिययाणंदं न जं तुमं झाइ । सवणावि सवणा ते नहु तुह गुणसवणपवणा जे ॥१०९॥ नाह! सिरं तं असिरं तिहुयणनमियस्स जं न ते पणयं । भालंपि भग्गभग्गं तुह पयपीढे न जं लग्गं ॥१०॥ अकयत्था ते हत्था जे तुह कमकमलसेवअसमत्था। पायावि बहुअपाया गंतूण न वंदिओ जेहिं ॥१११।। जम्मोऽवि सो अरम्मो जंमि न संमाणिओ तुम सामी । लच्छीवि सा अलच्छी तुहत्थवंझा न सच्छाया ॥ ११२ ॥ किंबहुना ? नाह इहं तुह सेवावज्जियस्स जं किंपि । तं सर्वपि निरत्थयमणत्थसत्थप्पयाणाउ ।।११३।। ता विन्नत्तो ससिकरसधम्मकित्तिभर वास- ॥२२५॥ For Private And Personal Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Din Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kain Couri Gyanmandir धर्मसंघा श्रीदे० तित्थयर ! । तुह सेवाए सहलाणि हुंतु मह लोयणाईणि ।। ११४॥" तं एवं पासजिणं बंदंतं पुबमागओ तत्थ । दलु चिंतइ | बन्धुदत्तचैत्य० श्री- साहमियप्पिओ सिडिजिणदत्तो ।।११५।। एयम्स अहो बोहो अहो विवेओ अहो य बहुमाणो । विहिकोसल्लं च अहो जिणपूया- | कथा आयरो अ अहो ॥११६॥ अविय-धन्नाणं विहिजोगो विहिपक्खाराहगा सया धन्ना । विहिबहुमाणी धन्ना विहिचारविधौ । पक्खअदूसगा धन्ना ॥ ११७ ॥ एवं पहिडचित्तो साहम्मियवच्छलत्तउज्जुत्तो । अब्भत्थिय नियगेहे नेह तयं खेयरेहिं जुयं ॥२२६॥ | ॥११८|| जओ-"साहम्मियाण वच्छल्लं,कायचं भत्तिनिव्भरं। देसियं सवदंसीहिं,सासणस्स पभावणं ॥११९॥" किंच-"धम्मियजणेहिं न विणा तित्थं तित्थं विणा न धम्मो ता। साहम्मियवच्छल्लेण तित्थसंधाणणा नूणं || ॥१२०॥ अविय-साहम्मियम्मि पत्ते नियगेहे जस्स होइ नहु नेहो । जिणसासण भणियमिणं सम्मत्ते तस्स संदेहो॥१२१॥ तम्हा सवपयत्तेणं, जो नमुक्कारधारओ । सावओ सोऽवि दट्टयो, जहा परमबंधवो॥ १२२ ।।" |ता मजणभोयणमाइणा उ सम्माणिउं सबहुमाणं । अवगयतव्वुत्तंतो सिट्ठी अन्भत्थए बंधु ॥१२३।। जह मह सुयाइ पाणिग्गहणेण पसीयसुत्ति लहु तत्तो । जाणावइ अमियगई खयरो चित्तंगयस्स तयं ॥१२४॥ अह चित्तंगयखयरंमि जन्नजत्ताए आगए सिही। कारेइ पाणिगहणं ससुताए बंधुदत्तस्स ।।१२५॥ वित्ते महूसमिचित्तंगयखेयरो सपरिवारो। सट्ठाणे संपत्तो अणुसासिय बंधुदत्तं तो ॥१२६॥ पियदंसणाएँ पियदंसणाए पियदंसणाए तीऍ समं । विलसंतो सपियाए भोए सो तत्थ चेव ठिओ।।१२७।। जिणधम्ममब्भसंतो साधुजणं चेव पज्जुवासंतो । रक्खंतो पाणिगयं अहऽन्नया चिंतए एवं ॥१३०|| अप्पस्स भावणाओ पभावणाओ फलं || परेसिपि । एएण पगारेणं पभावणा भावणाउ वरा॥१२९॥ इय चिंतिय कारवई एसो सिरिपासनाहरहजत्तं । सुरहिचउन्वि ॥२२६॥ For Private And Personal Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य०श्री - र्म० संघा चारविधौ ॥२२७॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir हमलेहिं जिणरहे कुणइ फुलहरं || १२९|| रहपुरओ नाणाविहफलेहिं वरखजभुजगाईहेिं । कारेइ स उकिरणे उकिरणेविव सपुत्तस्स ॥१३०|| सिरिसयलसंघसहिओ मग्गणजणसद्दभरियभुवणयलो । भमई तत्थ जिणरहो तत्तो तियचच्चराईसु ॥ १३१ ॥ सव्वायरेण इय सो बहुसो जिणासणं पभावितो । सम्माणंतो साहम्मिए य तर्हि वसई चउवरिसे ||१३२|| कल्पेऽपि रथयात्राविधिरुक्त:“रथप्रतिविम्बयुक्तं गीतयुक्तं सकलवाजित्रवाद्यमानं दानदीयमानं बहुजीवरक्षणेन सकलजिनभक्तिक्रियमाणं यथा स्यात् सकल| संघयतनापरिणामशुभोपयोगयुक्ताः सर्वत्र नगरे परिभ्रमन्ति प्रवचनविधिना जिनशासनं प्रभावयन्ति शोभां विदधति, पुनरपि प्रोक्तं निशीथचूय-जाई कुलरूवधण बलसंपन्ना इड्ढिमंतनिकूर्खता । जयणाजुत्ता जइणो एयं तित्थं पभावंति ॥ १ ॥ जो जेण गुणेऽहिओ जेण विणा वा न सिज्झए जंतु । सो तेण तंमि कज्जे सच्चत्थामं न हावेइ ॥ २॥ इत्युक्तरीत्या रथयात्राऽभिहिता, अन्यदा च - अह पविसंते वयणे पासइ पियदंसणा तया सुमिणे । वरपुत्तजम्मपिसुणं चउदसणं वारणं धवलं ॥ १३३|| साहेइ बंधुदत्तो सठाणगमणुस्सुयं नियं चित्तं । अन्नंमि दिणे पियदंसणाइ तं सावि नियपिउणो ॥ १३४॥ | तो भूरिविभूईए संवाहिता पुरो तयं तस्स । पियदंसणं विहेउं जिणदत्तेणं भणियमेयं ॥ १३५ ॥ पुत्ति ! पवित्तं सीलं पालिज्जसु मा करिज्जसु कुसंगं । अणुमन्निज्जसु गुरुजणमवणिज्जसु दुब्विणयभावं || १३६ || सेविजसु नयमग्गं मियमहुरक्खरगिरं वयेज्जासि । आराहिज्जसु सपिगं देवो भत्ता कुलबहूणं ॥ १३७॥ बंधूवि इमं वुत्तो एसा इक्का महं सुया इट्टा । मन्न सरह तह कुञ्जा इय भणिय विसजिओ सपिओ ।। १३८ ।। आघोसणाइ मिलियं जणमग्गे काउ नागपुरिमुवरिं । गच्छंतो सो पत्तो पउमानामं महाअडविं ।। १३९ ।। कत्तिय हत्थ निसायरगुरुतम| सीहमहचित्तरिखखजुया । विलसियधणुमियसिरकोडलद्धया जा नहसिरिव || १४० || अइआयरेण सत्थं रक्खंतो सो दिणत्तएण तयं । For Private And Personal बन्धुदत्तकथा ॥२२७॥ Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Al Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Ka y anmandit श्रीदे चैत्य० श्रीधर्मसंधाचारविधौ | ॥२२८॥ अडविं लंघिय कस्सवि सरस्स तीरंमि आविट्ठो ॥१४१॥ तत्थढियस्स सत्थस्स तस्स रयणीइ चरिमपहरंमि । पडिया धाडी पल्ली- | बन्धुदत्त| वइस्स अह चंडसेणस्स ॥ १४२ ।। चोरेहि बिलोडित्ता तत्थ गहियं च सत्थसव्वस्सं। पियदंसणं च नेउं समप्पिया चंडसेणस्स कथा |॥१४३।। अह दुद्धरसोगभरावरुद्धकंठक्खलंतवयणा सा । निवडंतवाहसलिलप्पवाहधोयाणणा रुयई ॥१४४॥रे दइव ! तस्स सिट्ठि|स्स जइ गिहेऽहं तए विणिम्मविया । ता कीस एरिसाऽऽवयमहण्णवे दुत्तरे खित्वा ॥१४५॥ सा कत्थ सिरी सो जयणिजणयसब्भावनिम्भरो नेहो। कह सव्वंपि पणटुं गंधव्वपुरंव वेगेण? ॥१४६।। खणमुल्लसंति उडूं खणेण निवडंति हेट्टो सहसा । खरपवणुधुयधयवडसमाई रे तुहविलसियाई ॥१४२।। इय सोयसंकुलं दीणमाणसिं पिच्छिऊण पल्लिवई । चिंतेइ झाइ करुणो नेमि इमं | किं सठाणंमि ॥१४८॥ इय चिंतंतो तप्पासवत्तिणि चेडियं स चूयलयं । पुच्छइ का एसा कस्स वत्ति? सावि य कहेइ इमं ॥१४९॥ | कोसंबीए पियदंसणत्ति जिणदत्तसिविणो धृया । इय सोउं सो सहसा निमीलियच्छो गओ मुच्छं ॥१५०॥ सिसिरपवणाइणा तो |गयमुच्छो अहह मे कयमकज्जं । इय जपतो पुट्ठो तीए किमिणति ? सो भणइ ॥१५१॥ पियदंसणि!मा वीहसु जहऽहं जीवाविओ तुहं पिउणा । तह सुणसु इओ कइया उ निग्गी चोरियाइ अहं ॥ १५२ ॥ पत्तो वच्छाविसए गिरिगामे निसिमुहे सचोरजुओ। पियमाणो तत्थ सुरं पत्तो आरक्खिगनरेहिं ॥१५३॥ धरिऊण माणभंगस्स निवइणो तेहिं अप्पिओ तत्तो। तेणवि हणाविओऽहं तो नीयंतो वहनिमित्तं ॥१४५॥ पोसहपज्जंते पारणाय गच्छंतएण ते पिउणा। दिट्ठो दयालुणा तो मोयाविय चित्तवत्थाणि ॥१५५॥ दाउं विसज्जिओऽहं ता आइस भइणि! किं करेमि तुह ? । सा भणइ इह विउत्तं मेलसु मे बंधुदत्तपई ॥१५६।। ओमंति भणिय सो तं गिहे सदेवि व मुत्तु भत्तीए। नीहरइ बंधुदत्तं पलोइउं चंडसेणो उ ॥१५७॥ अह भमिओ पल्लिबई तं अडविं चिरमपाविउ ||॥२२८।। For Private And Personal HINIANSIAHININMIDNISERIAPNISmade Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Be www.kobatirth.org i Gyarmandir || बन्धुदत्त कथा श्रीदे० चैत्य श्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥२२९॥ n Aradhana Kendra Acharya Shri Kaikk | बंधुं । गिहमागम्म विलक्खो भणेइ पियदंसणाइ पुरो ॥१५८॥ जइ ते छमासमझे नाणेमि पियं विसामिता अगणिं । इय विहिय| पइनो तो सो पेसइ सव्वओ सनरे ॥१५९॥ कोसंबीनागपुरीसु बंधुदत्तं पलोइउं ते उ । आगम्म कइदिणेहिं भणंति बंधू न लद्धोत्ति ॥१६०॥ चिंतेइ चंडसेणो पियविरहत्तो इमो मओ नूणं । चउरो पइन्नमासा गया विसामिहि ता अगणिं ॥१६॥ पियदंसणा उ अहवा जा पसवइ ताव ठामि तीइ सुयं । कोसंबीए नेउं पच्छा अगणिमि पविसिस्सं॥१६२॥ एवं चिंतेमाणस्स तस्स आगम्म भणइ | पडिहारी। वद्धाविज्जसि सामिय! जाओ पियदंसणाइ सुओ॥१६३।।दाऊण तुहिदाणं तीइ तओचंडसेणपल्लीसो। नामेण चंडसेणं | भणेद पउमावई देवीं ॥ १६४ ॥ जइ मासं ससुयाए कुसलं भइणीइ मे तया तुम्भं । दाहं दसनरबलिमह पणवीसदिणा सिवेण |गया ॥१६५।। तो पइदिसि तेण नरा पहिया बलिनरकए इओ तइया। सत्थे लूडिज्जंते नट्ठो बंधू सजियगाई॥१६६॥ पियविरहत्तो चिंतइ मह विरहे सा मया हविज्ज तओ । मज्झवि मरणं जुत्तं काए आसाइ जीवामि ॥ १६७|| जा सत्तछए पासं दाही ता कमि सरवरे एगं । हंसं पियविरहत्तं पिच्छइ तक्खणमिलियदइयं ।। १६८॥ तं दठ्ठ बंधुदत्तो चिंतइ मे जीवयो पियाजोगो। होइ मणियं नरोजं जीवंतोनियइ भद्दसए ॥१६९।। ता जामि नियं नयरिं धणेण रहिओ व तत्थ कह गच्छे । कोसंबीइवि पियदसणं विणा जुञ्जइ न गंतुं ॥१७०।। ता गंतुमवंतीए समाउलाओ धणं गहिय दाउं । पल्लिवइणो सपियं मोयाविय जामि नागपुरि ॥ १७१ ।। तो माउलस्स दाहं सगिहाउ धणंति चिंतिउं चलिओ। पुवमुहो विइयदिणे पत्तो ठाणे गिरिथलंमि ॥१७२ ॥ जा सो मग्गासने जक्खगिहे विसमई तहिं ताव । पत्तो पहिओ एगो सो पुट्ठो बंधुदत्तेण ॥१७३।। कत्तो तमागओ? सो भणइ अवं| तीउ तो तहिं कुसली। धणदत्तसत्थवाहोत्ति बंधुणा सो पुणवि पुट्ठो॥१७४॥ तो दीणमुहो पहिओ भणइ गए ववहरित्तु धणदत्ते । NATIHARMA INNIEHIP ॥२२९॥ For Private And Personal Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mah श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥२३०॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash sur Gyanmandir तप्पढमसुरण गिहे पियाऍ सह कीलमाणेणं ॥ १७५ ॥ कइया उ गच्छमाणो राया अवगणिओ तओ तेन । सङ्घस्सहरणओ सो खित्तो गुत्तीऍ सकुटुंबो ॥ १७६ ॥ घणदत्तेणं दत्तो दंडो सकुटुंब मोयणट्टाए । आणीय धणं सवं न पहुप्पइ एगकोडी से ॥ १७७॥ तीइ निमित्तं चलिओ स भइणिसुयबंधुदत्तपासंमि । आगच्छंतो मुको कल्लदिणे सो मए भद्द ! || १७८ || चिंते बंधुदत्तो किमहो दइवेण विहियमासा मे । अन्थासी सोऽविहु जेण पाडिओ वणजलहिंमि ॥ १७९ ॥ अन्नह चिंतेइ नरो सहरिसकंडुज्जुएण हियएण । परिणमए अन्नहच्चिय कज्जारंभो विहिवसेण ॥ १८० ॥ होउ इहेव ठिओच्चिय मिलेमि नियमाउलस्स तस्सऽस्थ । साहिस्सं नागपुरी गओति चिंतिय ठिओ तत्थ ।। १८१ ॥ पंचमदिवसे सत्थेण तत्थ अह आगओ कइसहाओ । धणदत्तो जक्खगिहासनंमि ठिओ तमालतले || १८२ ।। उवलक्खेउं तं भणइ बंधुदत्तो समागया कत्तो ? । गमिहिद कत्थ व ? स भणइ अवंतिओ जामि नागपुरिं । ॥१८२॥ तत्थ त्थि बंधुदत्तो मे भइणिसुउत्ति अह भणइ बंधू । सो मज्झ बंधुदत्तो मित्तो अहमविय तत्थगमी ॥ १८४ ॥ नाउं स माउलं तं गोवंतो अप्पयं तओ बंधू । तत्थ ठिओ तेण समं मिलिओच्चिय भुंजई सुयइ || १८५ || अह बंधू सोयत्थं गओ पभाए नईऍ पासे । भूमिं कयंबगहणे रयणच्छायाएं रत्तरजं ।। १८६ ॥ जा खणइ तं भुवं सो ताव करंडं निएइ संबमयं । रयणविभूसणभरियं तं गहिय भणेइ धणदत्तं ॥ १८७ ॥ कप्पडियाउ पवित्ती तुह लद्धा मिचमाउल ! मया ता। गिन्हसु सपुनलद्धं इमंति तं गंतुमुखेणिं ॥ १८८ ॥ मोसु माणुसाणि य नागपुरिं जा स भणइ धणदत्तो । पिच्छिस्सं तुह मित्तं पढमं तो सोच्चिय पमाणं ।। १८९ || अह नमिय बंधुदत्तो नियवृत्तंतं कहे जहवित्तं । धणदत्तो भणइ दहा विसमदसं कहमिमं पत्तो १ । १९० ।। मोएयता मिल्लेहिं बच्छ ! पढमं अणेण तुज्झ पिया । इय भणइ जाव सो ता उदाउदा निवडा पत्ता || १९१ ।। सबै पहिया धरिया तत्थवि घातेहिं चोर For Private And Personal बन्धुदत्तकथा ॥२३०॥ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Man Aradhana Kendra Shri M श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥२३१॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas संकाए । बंधू समाउलो तेहिं करंडगोवणपरो दिट्ठो ॥ १९२॥ किमिति तेहिं पुच्छिय तुम्ह भया नियधणं ठएमुत्ति । जंपता सकरण्डा नीया ते मंतिपासंमि || १९३|| तु परिखिय अन्ने पहिए मंती भणेइ ते के भे १। कत्तु वा किमिणंतिय ते बिंति अवं|तिओ पत्ता ॥ १९४ ॥ चलिया मो पुवज्जियघणमहुणा गहिय लाडदेसंमि । मंती भणेइ जइ इय कहेह भो लहु किमित्थडत्थि ? ||| १९५|| खुहिया तमजाणंता भणंति ते चोरिओ इमो जइ ता । उग्घाडिय जोइजउ तमुग्धाडइ तो सयं मंती ॥ १९६ ॥ पिच्छिय करंडमज्झे निवनामंकिय विभूसणे सरह । चिरनट्टधणाणमिणं निहीकयं नूणमेएहिं ॥ १९७ ॥ एएहिं ताडिएहिं चोरा लहिहिंति चिंतिउं सत्थो । सबो धराविओ सो नरेहिं ताडाविया ते उ || १९८ ।। गाढप्पहारविहुरा भणति ते मो समागया कल्ले | सत्थेण | जइ न एवं मारिज वियारिडं ताण ।। १९९ ।। अह बंधुदत्तमुद्दिस्स ठाणपुरिसो पर्यपए एगो । सत्थे इमंमि पंचमदिर्णमि दिट्ठो | इमो खलु मे ||२०० || जाणसि इमंति पुट्ठो सत्थाहो मंतिणा भणइ सत्थे । एरिसए कप्पडिए वहमाणे जाणई को णु १ ॥ २०१ || तं सोऊणं कुविओ मंती ते भाइणिजमाउलए । नरयाबाससमाणे कारागारंमि पखिवई || २०२ ॥ तत्थ य गिरिथलनयरे काराऍ ठियाण तेसि दुहियाणं । माउलभाणिजाणं वोलीणा कहवि छम्मासा || २०३ ।। पत्तो महानुयंगो निसाऍ आरक्खगेहिं अह तइया । परिवायगो सदवो बंधिय मंतिस्स उवणीओ || २०४ || परिवायगाण न घणं एरिसमिय तकरो धुवं एसो । इय निच्छिऊण मंती आइसइ तयं वहनिमित्तं ॥ २०५ || नीयंतेण वदत्थं अणुसयमाणेण तेण चिंतित्ता । होइ न यन्नहा रिसिभासियंति पयडंपि तं भणियं ॥ २०६ ॥ तं सोउ भणइ मंती किमिणं १ स भणइ किमित्थ मे कर्ज १ । मं मुत्तुमिह न अन्नो चोरो ता कुणह जं इट्ठ ||| २०७|| नवरं सर्व्वं गिरिनइआरामाईसु अस्थि हरियधणं । तं अप्पिय धणियाणं निहणिअह मं तओ तुम्मे ।। २०८ ।। ओमंति For Private And Personal sri Gyanmandir बन्धुदत्तकथा ॥२३१॥ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥२३२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailaspuri Gyanmandir मंतिणुत्ते सवं दरिसह विणा करंडं सो । मंती भणइ इमा का चिट्ठा ते दंसणविरुद्धा १ || २०९ || परिवायगोऽवि जंपर विसयासताण निषाण अहो । इणमेव कम्ममुचिअं जइ अच्छरियं तओ सुणसु ॥ २१० ।। इह पुंडवद्धणपुरे आसि सुओ सोमदेव विष्पस्स । नारायणोति कइया स नियइ चोरित्ति धरिय नरे || २११ || निहणह महाभुयंगे इमेति भणियंमि तेण निकरुणं । हा अन्नाणं कट्ठेति भण तया मुणी एगो ॥ २१२ ॥ किमनाणंति तओ तेण नमिय पुट्ठो मुणी भणइ जं भो । पीडाकरं परस्स उ असंतदोसाधिरोवणयं ॥ २९३ ॥ पुजियकम्मवसा पडिया वसणंमि जइ इमे ता भो । पयडसि एसु असतं महाभ्रुयंगत्तदोसं किं १ ॥ २२४ ॥ अनं च- पुअियफलसेसं लहिहिसि अचिरेण ता अलियदोसं । मा देहि परेसु तओ पुट्ठो किं किति? तेण मुणी || २१५ || अइसयनाणी स मुणी करुणारससागरो भणइ आसी । गंजणपुरंमि विप्पो आसाढो से पिया रज्जू ॥ २१६ ॥ पुत्तो य चंददेवो पिउणा वेओ पढाविओ सो उ । अइविउसमाणिणं तं बहु मन्नइ वीरसेणनिवो || २१७ || परिवायगो अहेसी जोगप्पा नामओ तर्हि तस्स । भत्ता उ बालविहवा वीरमई विणियसिट्ठिसुया ||२१|| एसा उ गया सिंहलमालिएण सह दइवओ उ तंमि दिणे । जोगप्पावि अकहिउं निस्संगता कहिंचि गओ १ ।। २१९ ।। अह कत्थवि वीरमई गयत्ति जायं पुरंमि सयलेऽवि । जोगप्पणा सह गया नूणं चिंतइ स विप्पसुओ || २२० || रायकुलेवि गिराए तीए जंपइ स एवमेवंति। दाराइसंगरहिओ सोति निवृत्तेऽवि भणइ इनं ॥ २२९ ॥ इत्तोच्चिय परदारे गिव्हइ पासंडधारओ सो उ । तं सोउ जणो जाओ धम्मे मंदादरो धणियं ||२२२|| तो जोगप्पा वज्झो बिहिओ परिवायगेहिं अनेहिं । कम्मं तिवविवागं निकाइयं चंददेवेण ॥ २२३ ॥ तो मरिउ एडिको जाओ कुल्लागसभिवेसे सो। तकम्म दोसओ तत्थ कुहियजीहो दुहेण मओ || २२४|| कुल्लागस्सऽडवीए होउं जंबू मओ कुद्दियजीहो । जाओ अ उम्भनिववारवेसका मज्झयापुतो For Private And Personal बन्धुदत्तकथा ॥२३२॥ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे www.kobatirth.org Gyanmandir चैत्यश्री- धर्म० संघाचारविधौ ॥२३३॥ Acharya Shekille ||२२५।। तरुणो स सुरामतो निवमायरमेगया उ सवमाणो। रायमुएणं सिट्टो सबेहतो तंपि अहिययरं ॥२२६॥ तो तेण छिन-10 बन्धुदत्त| जोहो लजाए अणसणेण मरिऊण । तं नारायण! जाओ अत्थिजऽवि कम्मसेसं ते ॥२२७॥ तं सोउं मुणिवयणं सहिओ नारा- कथा | यणो सुसंविग्गो । गहियपरिवायगतवो गुरुसुस्सूमणपरो जाओ ।। २२८ ॥ मरमाणेण य गुरुणा तालुग्याडिणिखगामिणीओ य । वरवेजाओ दाऊण सायरं सिक्खिो एवं ॥२२९|| धम्मनियदेहरक्खं मुतुं अचंमि गाढवसणेऽवि । ण इमा पोजियमा हासेऽवि मुसं न वत्तत्वं ।।२३०।। जइय पमायाउ मुसं वइज तो नाहिपरिमियजलंमि । ठाऊणं उभुओ अट्ठसहस्सं जविज इमा॥२३॥ विहियं विवरीयमिणं विसयासत्तेण तेण तह मणियं । कल्लदिणंमि असचं आरामठिएण य तहाहि ॥२३२॥ हाऊण गिहे जुबईउ आगया काउ देवपूयत्थी । वयगहणकारणं सो वेरग्गं पुच्छिओ ताहिं ।। २३३ ।। सहसा सिट्ठो तेणं वयहेऊ इट्ठवल्लहाविरहो । न कओ पुव्वुत्तविही तु मंति ! नारायणो सोऽहं ।।२३४|| सायरसिद्विगिहे चोरियाए दवाउ अपिहियदुवारे । निसि साणुव पविट्ठो गहिउँ कणगाइ गच्छंतो ।। २३५ ।। आरक्खगेहिं गहिओ खगामिगी सुमरियावि नप्फुरिया । तं च सरिऊण भणियं न अनहा || साहुभणियंति ॥ २३६ ॥ मंती भणइ वयं भो विस्सरियं कत्थ भूसणकरंडो। स भणइ निहत्तठाणा केणवि नाऊण सो गहिरो ॥२३७॥ अह सचिववरो मुंचइ तयं परिव्वायगं सरेइ तहा । ते माउलभाणिजे करंडगहरे विचिंतइ य ।।२३८॥ नूणमजाणंतेहिं तेहिं| स लद्धो करंडओ नवरं । भीएहिं अन्नहुत्तं अभएणं पुच्छियव्वा तो ॥२३९॥ आहूय तओ पुच्चिय सचिवेण जहातहं भणंती ते । मुका खामेऊण उ दुदिणं ठाउं तो चलिया ॥२४०॥ दसनरपलोयगेहिं अह गहिया चंडसेणपुरिसेहिं । खित्ता य चंदसेणाबलि-| | हेउं बंदिजणमझे ।।२४१॥ पियदंसणं सपुत्तं चेडीजुत्तं गहित्तु पल्लिवई। देवीपूयाहेउं समागओ तत्थ सपरियणो ॥ १४२ ॥ ॥२३३॥ ( For Private And Personal Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥२३४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailuri Gyanmandir दट्टु देविं एयं भीमं न खमा इमा वणियधूया । इय चीवरेण बंधइ एसो पियदसणानयणे ॥ २४३ ॥ तीए सुयं सयं गहिय चंडसेणो उ दिट्ठिसन्नाए । आणावर दइवाओ पढमं चिय बंधुदत्तं तो ॥ २४४ ॥ देवीपएस पाडिय सुयमप्पिय रत्तचंदणाइ तओ । अच्चसु | देविं पियदंसणेत्ति भणिया इमा तेण ॥ २४५ ॥ निचिसो निर्चिसं कोसाओ कट्टिउं सयं तु ठिओ । पियदंसणा उ दीणा चिंत | मह जीवियं धिद्धी || २४६ ॥ पियदंसणाकए नरबलीकओ देवयाइ इय अयसो । पावेण समं मइ भो पसरिस्सर रक्खसी इव मे || २४७ || जाणित्तु बंधुदत्तो विसुद्धबुद्धी समागयं मरणं । कुणइ नवकारगुणणं दुहदलणं दुविहसिवजणणं ॥ २४८ ॥ उक्तं च"संग्राम सागर करीन्द्रभुजंगसिंहदुर्व्याधिवाहुरिपुबंधनसंभवानि । चौरग्रहभ्र मनिशाकरशाकिनीनां, नइयंति पंचपरमेष्ठिपदैर्भयानि ॥ २४१ ||" तं सोउ झडित्ति तओ अहह अकजं सुसावयविणासो । इय जंपिरीइ पियदंसणाएँ उग्धाडिया दिट्ठी || २५० ॥ दठ्ठे सपियं जंपर पल्लिवई भाय ! सच्चसंधोऽसि । जेणेस बंधुदत्तो तुह भइणिवई इहं पत्तो ॥ २५१ ॥ पडिओ पासु त पल्लिवई बंधुदत्तमिय भणइ । अन्नाणकयवराहं सहस्र समाइससु तं सामि ! || २५२ ॥ किमिति बंधुदचेण पुच्छिओ भइ चंदसेोवि । उद्धाइयपअंतं तं वृत्तंतं समग्गंपि ।। २५३ || अह भणइ बंधुदत्तो पल्लिवई भद्द ! जुजइ न हिंसा । सा सयलदुइ| निहाणं जेणुत्ता सव्वसत्थेसु || २५४ || भणितं च महाभारते अनुशासनिकपर्वणि, बृहस्पतिः - अहिंसकानि भूतानि, दंडेनैव निहंति यः । आत्मनः सुखमन्विच्छन्, न स प्रेत्य सुखी भवेत् || २५५ || भीष्मः - पशवो ये तु हिंसंति, गृद्धा द्रव्येषु मानवाः । मृतास्ते नरकं यान्ति, नृशंसाः पापकारिणः || २५६ ॥ व्यासः शांतिपर्वणि यावंति रोमकूपानि, पशुगात्रेषु भारत ! । तावद्वर्षसहस्राणि, पच्यते पशुघातकाः ॥ २५७॥ भीष्मः -घातको बध्यते नित्यं, तथा बध्येत बंधिकः । आक्रोष्टा शप्यते राजन्!, द्वेष्टा For Private And Personal बन्धुदतकथा ॥२३४॥ Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mah श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥२३५॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash | द्वेष्यमवाप्नुयात् || २५८ ॥ येन येन शरीरेण यद्यत् कर्म करोति यः । तेन तेन शरीरेण तत्तत्फलमथाश्रुते ॥२५९॥ अपिचत्रातारं नाधिगच्छंति, रौद्राः प्राणिविहिंसकाः । उद्वेजनीया भूतानां यथा व्यालमृगान्तथा || २६०|| आत्मोपमस्तु भूतेषु, यो वै भवति पुरुषः । अस्तदंडो जितक्रोधः, स प्रेत्य सुखमेधते || २६१ || रूपमत्यंगतामायुर्बुद्धिं सच्वं वलं स्मृतिम् । प्राप्तुकामैर्नरै हिंसा वर्जितव्या कृपात्मभिः || २६२ ॥ नहि प्राणैः प्रियतरं, लोके किंचन विद्यते । तस्माद् ध्येयं नरः कुर्याद्, यथाऽऽत्मनि तथा परे ||| २६३|| तथाहि ग्रन्थान्तरे दयास्वरूपमुक्तं - आत्मदया कथं स्याद् १, उच्यते, यः स्वकीयमात्मानं जानाति, निरावरणस्वरूपोऽय मात्मेत्यात्मस्वरूपं जानन् मा ममात्मानं कर्मावृणोत्विति जानन् कर्मबन्धहेतुतो यो जीवो यतनां करोति सा स्वदयेति, या परप्राणरक्षा सा परदया, यस्य वदयाऽस्ति तस्य नियता परदया, परदयायां तु खया भाज्येति । मृत्युतो भयमस्तीति, विदुषां भूतिमि - च्छताम् । किं पुनर्हन्यमानानां चेतसा जीवितार्थिनां ॥२६४|| व्यासः - कंटकेनापि विद्वस्य, महती वेदना भवेत् । चक्र कुंतासिशक्याद्यैर्भिद्यमानस्य किं पुनः १ ।। २६५ ।। दीयते मार्यमाणस्य, कोटिं जीवितमेव वा । धनकोटिं न गृह्णीयात्, सर्वो जीवितुमिच्छति ।। २६६ ॥ यतः - अमेध्यमध्ये कीटस्य, सुरेन्द्रस्य सुरालये । समाना जीविताकांक्षा, तुल्यं मृत्युभयं द्वयोः ॥ २६७ ॥ भीष्मः - तदेतदुत्तमं धर्म, अहिंसालक्षणं शुभम् । ये चरंति महात्मानो, नाकपृष्ठे वसंति ते ॥ २६८ ॥ यतः - धर्मस्यायतनं श्रेष्ठं, स्वर्गस्य च सुखस्य च । अहिंसा परमो धर्मः, तथाऽहिंसा परं तपः || २६९ || अहिंसस्य तपोऽक्षय्यमहिंस्रो जायते सदा । अहिंस्र; सर्वभूतानां यथा माता यथा पिता । २७०॥ किंच-अहिंसालक्षणो धर्म, इति धर्म्मविदो विदुः । यदहिस्रं भवेत्कर्म्म, तत् कुर्यादात्मवान्नरः || २७१ || सर्वयज्ञेषु वा दानं, सर्ववेदेषु वा श्रुतं । सर्वदानफलं वापि नैतत् तुल्यमहिंसया || २७२ ।। वह देवयाण For Private And Personal Gyanmandir बन्धुदत्तकथा ॥२३५॥ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Marel Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandit श्रीदे । चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधौ| ॥२३६|| पूयानिमित्तमवि नेव जुञ्जए हिंसा । कुगइगमत्ता तेसिं उवभोगाभावओ प तहा ॥२७३॥ यदाह व्यासः-देवानामर्थतः कृत्वा, | वन्धुदत्तघोरं प्राणवधं नराः। ये भक्षयति मांसं च, ते ब्रजंत्यधमा गतिम् ॥ २७४ ॥ शुक्रशोणितसंभूतममेध्यं मांसमुध्यते । यस्माद- कथा मेध्यसंभूतं, तस्मात् शिष्टैर्विवर्जितम् ॥ २७५ ॥ अमेध्यत्वादभक्ष्यत्वान् , मानुरैरपि वर्जितम् । दिव्योपभोगभोगित्वान् , मांसं देवा न भुंजते ॥२७६॥ भीष्मः-स्वाहासुधाऽमृतभुजो, देवाः सत्यार्जवप्रियाः। क्रव्यादान राक्षसान् विद्धि, जिह्वाऽनृतपरायणान् ।।२७७॥ किंच-नैतान् व्यालमृगा मंति, न पिशाचा न राक्षसाः। मुंचंति भयकालेषु, मोचयंति च ये परान् ।।२७८॥ न भयं विद्यते जातु, नरस्येह दयावतः। दयावतामिमे लोकाः, परे चापि तपस्विनाम् । २७९॥ अभयं सर्वभूतेभ्यो, यो ददाति दयापरः। अभयं तस्य भूतानि, ददतीत्यनुशुश्रुमः।।२८०॥ कृतं च स्खलितं चापि, पतितं क्लिष्टमाहतम् । सर्वभूतानि रक्षंति, समेषु विषमेषु च ।।२८१॥ अवयरिऊणं पत्ते अह देवी भणइ चंडसेणाऽवि । अञ्जप्पभिई पूया मह कुसुमाईहिं कायवा ।।२८२।। तं सोउं संजाया भद्दगमावा खणेण बहुभिल्ला । पडिवजइ पल्लिबई हिंसामसाइया विरई ॥२८३।। तं पुच्छिय मोयावइ बंदिग्गहिए नरे तओ बंधू । पियदंसणाएँ पुनो समप्पिओ बंधुदत्तस्म ॥२८४॥ तेणवि धणदत्तस्स उ भणिया सा माउलो मम इमोत्ति । कयनीरंगी पणमइ दन्था सावि दो ससुरं ।।२८५॥ दत्तासीसो साहइ सोऽवि जहा नंदणस्स अमिहाणं । जुञ्जइ काउं अजेब ते तो तं तह कुणति ॥२८६॥ जीवियदाणाओ बंधवाण जेणं अणेण आणंदो । विहिओ तो होउ इमो अम्ह सुओ बंधवाणंदो ॥२८७॥ तो सगिहे भंजाविय बंधुस्सऽप्पिय धणं तया हरियं । पल्लिवई तह ढोयइ चामरगयदंतमुत्ताई ॥२८८॥ बंधू तओ विमआइ चंडं बंधुव उचियदाणेणं । | कयकिचं धणदत्तं काउं पेसइ तह अवंति ॥२८९।। सत्थजुओ पुत्तकलत्तसंजुओ चंदसेणसहिओ य । पत्तो य बंधुदत्तो नागपुरि-|| | ॥२३६॥ For Private And Personal Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka y amandit Shri श्रीदे चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ ॥२३७॥ बन्धुदत्तकथा तयणु नियनयरिं ॥२९०।। अहिगम्म हरिसिएहिं सयहिं निवेण सुबहुमाणेणं । कुंजरमारोविता पवेसिओ नयरिममि ॥२९॥ सयणाण गुरुपमोयं दितो दाणं व मग्गणगणाणं । सगिहमि बंधुदत्तो संपत्तो गुरुविभूईए ॥२९२॥ भुत्तुत्तरंमि बंधू बंधूर्ण कहिय | निययवृत्तंतं । साहइ अरिहंताई मुत्तुमसारमिह सबंपि ॥२९३।। भणियं च-मुत्तूण जिणं मुतूण जिणमयं जिणमयहिए| मुत्तुं । संसारकत्तवारं चिंतिज्जंतं जगं सेसं ॥२९४॥ तं सोऊणं जाओ तो जिणसासणरओ बहू लोओ। सकारिय पल्लिवई | विसजिओ बंधुदत्तेण ॥२९५|| संवच्छराई बारस समवंताई बंधुदत्तस्स । तत्थ ठियस्स सुहेणं अहागए सरयसमयंमि ॥ २९६ ॥ सइ अरुयअरयमलसेयरहिओ वररूवगंधसुइदेहो । चम्ममयचक्खुअद्दिस्समाणआहारनीहारो ॥२९७॥ गोक्खीरधवलनिविस्समंसरुहिरो सुगंधनिस्सासो। सहजाइसयसमेओ समोसढो तत्थ पासजिणो ॥२९८॥ गंतूण महिड्डीए सहिओ पियदंसणाएँ बंधूवि ।। वंदित्तु पासनाहं एवं थोउं समाढत्तो ॥२९९।। “जह तुह दंसणरहिओ कायट्ठिइभीसणे भवारण्णे । भमिओ भवभयभंजण ! जिणिंद || | तह विनविस्सामि ॥३००। अबवहारियमझे भमिऊण अणंतपुग्गलपरट्टे । कहवि ववहाररासि संपत्तो नाह! तत्थविय ॥३०१।। उकोसं तिरियगई असन्निएगिदिवणनपुंसेसु । भमिओ आवलियअसंखभागसमपुग्गलपरट्टा ॥३०२।। सामबंसुहुमत्ते उस्सप्पिणीउ | असंखलोगसमा । भमिओ तह सुहुमेगिंदिपुढविजलजलणपवणवणे ॥३०३॥ ओहेण वायरत्ते तह वायरवणस्सईसु वाउ पुण । अंगुलअसंखभागे दोसड्ढ परियनिगोए ॥ ३०४ ॥ वायरपुढविजलजलणपवणपत्तेयवणनिगोएसुं । सत्तरिकोडाकोडी अयराणं नाह ! भमिओऽहं ॥३०५।। संखिजवाससहसे वितिचउरिंदीसु ओहओ य तहा। पजत्तवायरैगिंदिभूजलानिलपरितेमु ।।३०६॥ बायरपजाम्गिवितिचउरिंदिसु संखदिणा वासदिणमासा। संखिजवासअहिया तसेसु दो सागरसहस्सा ॥ ३०७ ॥ अयरसहस्सं ॥२३७॥ For Private And Personal Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥२३८|| Jein Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kails suri Gyanmandir अहियं पंचिदिसु इगभवो उ सुरनरए । सन्निसु तह पुरिसेसुं अयरसयपुहुत्तमम्भहियं ॥ ३०८ ॥ सण्णि तिरिन रेसु भवट्ठगंति पल्लसंग पुइकोडिमियं । दसहिय पलियस थीम पुढकोडीपुहुत्त जुयं ||३०९ || अत्थि नपुंसे समओ जहन्नु अंतोमुहुत्त सेसेसु ।। अपनेकोसंपिय पजसुहुमे धूलऽणंतेवि ॥ ३१०|| इय कायठिई भमिओ सामिय ! तुह दंसणं विणा बहुसो । दिट्ठोऽसि संपयं ता अकायपयसंपयं देसु || ३११ ॥ सुरसरिजलपसरियसधम्म कित्तिभवणं जिणं धुणिय एवं । उचियद्वाणनिसन्नो बंधू इय सुणइ धम्मकहं ||३१२||” “इह चउगइभवगहणे कहंपि लद्घृण माणुसं जम्मं । जे नहु कुणंति धम्मं ते नूणं अत्तणो अहिया ।। ३१३ ॥ जेणं करयलपरिकलियसलिल बिंदुव्व परिगलइ आउं । दारंति दारुणा दारुयं व रोगा पुणो देहं ॥ ३१४ || बहुविह किलेसपत्तावि चोरजलजलणनिवइपमुहेहिं । संपासंपायचला खणेण खलु नासए लच्छी ||३१५ || पियमायपुत्तसुकलत्तमित्तसयणाइइट्ठसंजोगो । खणदिनहरू जलनिहिकल्लोलसंकासो || ३१६ || पडुपवणुष्पाडियअकतूलतरलं सयावि तारुण्णं । चंपय कुसुमुकररंगभंगुरं इत्थ विसयसुई || ३१७|| ता सासय सुहहेउंमि सयलभवदुक्खलक्खदलणसहे । भविया ! मुत्तु पमायं सद्धम्मे आयरं कुणह || ३१८ ||" पहुमह पुच्छ बंधू परिणियमित्ता मया पिया छ उ मे । कम्मेण केण भयवं ! बंदिदुहं पियवियोगं च ॥३१९॥ भणइ पहू इह भरहे भद्दासि सिहरसेण सबरवई । विज्झगिरिसिहरवासी अइकूरो विसयलोलो य ॥ ३२० ॥ भजा तस्स सिरिमई तीऍ समं सो उ गिरिनिउंजेसु । विलसेई हिंसंतो बहुप्पयारं विविधजीवे || ३२१ || हरिणवरादाईणं जूहे सव्वतओ विओयंतो । तह चकवायतित्तिरमयूरपमुहे सउणिसंघे || ३२२॥ सत्थग्भट्ठो तेणं अन्नदिणे साणुकंपहियएण । मुणिगच्छो अडवीए भमिरो तत्थागओ दिट्ठो || ३२३ ॥ नमिउं मुणिणो पुट्ठा किं इय भे भमद १ तेऽवि पच्चाहु । पहभट्टा मो तो तेण दंसिओ तेसि सरलपहो || ३२४ ॥ मुणिणोऽवि तस्स For Private And Personal बन्धुदत्तकथा ||२३८|| Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M श्रीदे चैत्य०श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥२३९॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila सपियस्स धम्ममकर्हिमु जीवदयमूलं । तह पंचनमुकारं विहिफलजुत्तं इह कहिंसु || ३२५ ॥ अत्र च पूर्वाचार्य प्रणीतगाथा: - " अरिहंताई पंचवि पयाई बीयाई परममंताणं । एयाणुवरिं चूला एसो पंचत्ति एमाई || ३२६ || तित्तीसक्खरमाणा इमा य तस्सत्तिपयडणपहाणा । एवं इमो समप्पइ फुडमक्खर अट्ठसट्ठीए || ३२७ || एवं पढिओ एसो विहीइ लक्खेण सेयसुरहीणं । कुसुमाणं पुण जविओ भविएण तदेगचित्तेण || ३२८|| वियरइ भुवणन्महियं तित्थंकरचक्किगणहरपयपि । जह तह सुलहाणं पुण का बत्ता सेसवत्थूणं ।। ३२९ ।। अन्नं च इमाउच्चिय न होइ मणुओ कयाइ संसारे । दासो पेसो दुहिओ नीओ विंगलिंदिओ चैव ॥ ३३० ॥ अविय - अंतोऽरिहंतचिन्नास दाहिणावत्तसिद्धमाईणं । झाणं च इत्थ किवं निचं परमिट्टिमुदाए || ३३१|| करआवत्ते जो पंचमंगलं साहुपडिमसंखाए । नववारा आवत्तइ छलंति नो तं पिसायाई ॥ ३३२||" किंच-पक्खस्सेगम्मि दिणे भद्द परिचत्तपावकम्मेण । रह| सिट्ठिएण तुमए सरियन्त्रो एस नवकारो ||३३३ || अवयारकारिणोऽविहु तया तुमं मा मपि कुष्पिजा । इय तुह कुणओ धम्मो होही मणवंछियाई तहा ||३३४ || भणितं च-ताव न जायइ चितेण चिंतियं पत्थियं च वायाए । कारण समाढत्तं जाव न सरिओ नमुकारो ॥ ३३५ ॥ ओमंति भणिय नमिऊण मुणिवरे सो गओ निए ठाणे । महुमञ्जपाणविरओ मिगयावसणाओ विणियत्तो |||३३६ ॥ नवकारसुमरणपरो कयावि सो सीहदंसणाउ मिसं । भीयं संठविय पियं गिण्हइ कोदंडमुदंडं ॥ ३३७|| सुमराविओ पियाए नियमं सो पुण विनिच्चलो जाओ । हरिणा असिया दोविहु जाया देवा सुहंमंमि || ३३८ || जओ - " जेणेस नमुक्कारो पत्तो पुण्णाणुबंधिपुण्णेण । नारयतिरियगईओ तस्सावस्सं निरुद्धाओ ||३३९ ।। अपिच - पंचनमुकारसमा अंते वञ्चति जस्स दस पाणा । सो जइ न जाइ मुक्खं अवस्सममरत्तणं लहइ || ३४० ||" चविउं अवरविदेहे चकपुरनिवस्स कुरु For Private And Personal ri Gyanmandir बन्धुदत्तकथा ॥२३९॥ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे० चैत्य० श्री - धर्म० संघाचारविधौ ॥२४०॥ CAT Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashuri Gyanmandir | मयंकस्स । सबरमयंकुत्तिसुओ जाओ सो सबरवइजीवो || ३४१ ॥ तत्तो इयरीवि मुया तत्थ सुभूसणनिवस्स संजाया । तणया वसंतसेणा सबरमयंकेण परिणीया ॥ ३४२ ॥ जणयंमि गहियतावसवयंमि सो चैव नरवई जाओ । तीइ दइयाइ सद्धि | ललंतओ चिट्ठइ सुहेण ॥ ३४३ || अन्नदिणे पल्लिवईभवुन्भवं तिरिविजोयणं कम्मं । उदएण समणुपत्तं सवरमयंकस्स नरवइणो ||| ३४४ || तो विजयविभूसणजयपुरनाहेण वद्धणनिवेण । निकारणकुद्धेणं भणाविओ सो नियन रेहिं | | ३४५ || मह सासणं पडिच्छसु तहा पयच्छमु वसंतसेणं मे । तो भुंजसु निअरजं अनह जुज्झे मह सद्धिं ||३४६ ॥ तो अमरिसेण नयरा निग्गओ गयतिओ बलजुओ सो | असउणनिरिक्खणाउ वारिजंतोवि लोएण || ३४७ || तइया वणराया भग्गो समरंगणाओं लहु नट्ठो । तो तचो नामनिवो तेण समं जुज्झिउं लग्गो || ३४८ || सबरमियंको नरवइ तत्तनिवेणं खणेण खीणबलो । निहणं गमिओ पत्तो छट्टीए नरपुढवी || ३४९ || काउं जलणपवेसं वसंतसेणावि पियविरहदुहिया । मरिउं तमपुढवीए उववन्ना नारयत्तेण ॥ ३५० ॥ उचट्टित्ता तत्तो सालिग्गामे सुनंदसिट्ठिसुओ । सो सबरमियंक जिओ संजाओ पुन्नभहुत्ति ॥ ३५१ ॥ जाया वसंतसेणावि जसवई नाम तत्थ इन्भकुले । सा दट्ठ जायरागेण पुनभद्देण परिणीया || ३५२ || अइपिम्मपरिगएहिं हम्मतले तेहिं कीलमाणेहिं । अन्नदिणे विहरंतो समणीसंघाडओ दिट्ठो || ३५३ || पडिलाहिय सद्धाए पृट्ठो धम्मं स तेहिं तेणुतं । भो गोयरचरियाए धम्मो कहिउं न कप्पेइ ॥३५४॥ यदागमः- “गोयरग्गपविट्टो उ, न निसीइज कत्थई । कहं च न पबंधेजा, चिट्ठित्ताण व संजए ॥ ३५५२||" आणंदसिट्ठिीगेहे नवरं अम्हति बालचंदुत्ति । गुरुणी सा धम्ममुत्रस्सयंमि पत्ताण भे कहिही || ३५६ ।। अविय-धन्ना नियंति एयं धन्ना वंदंति परमभत्तीए । धन्ना इमीइ वयणं निसुणंति कुणति सत्तीए || ३५७ ॥ अच्चच्भुयं च जीए सुविसाले माणसे सनालीए । विमलदल For Private And Personal बन्धुदत्तकथा ॥२४०॥ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri f in Aradhana Kendra www.kobatirth.org uri Gyarmandir बन्धुदत्त कथा श्रीदे चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥२४१॥ HTRANSLATime RANDUmanumarimmunRIANE MINISAARISHINHamarS Acharya Shri Kai | कलियंमिवि न रायहंसो पयं कुणइ ।।३५८।। इय भणिय निग्गयाओ समणीओ तम्गिहाउ तेऽवि तओ। मज्मण्हे गंतुमुवस्सयंमि वंदति तं गुरुणिं ॥३५९।। तप्पासे गिहिधम्मं सोउं सम्मत्तमूलमवि चित्तुं । सट्ठाणे संपत्ता पालंति तयं निरइयारं ॥३६०।। ता मरिय दोऽवि जाया पंचमकप्पे सुरा तओ चविउं। सो सिहरसेणजीओ जाओ तं बंधुदत्त इहं ॥३६१॥ सो पुण सिरिमइजीवो पंचमकप्पाउ चविय तुज्झ पिया। जिणदत्तसिद्विधूया जाया पियदंसणा एसा ॥३६२।। तो बंधुदत्त! तइया तुमए पल्लीवइस्स जम्मंमि । जं तिरियविओयाई कम्मं अइदारुणं विहियं ॥२६३।। तकम्मसेसएणं जाओ इह तुज्झ छण्ह भजाणं । घाओ तह विरहाई पत्तं तुम्भेहिं गुरु दुखं ।। ३६४॥ सोऊण बंधुदत्तो एवं पियदंसणाइ संजुत्तो । संजायजाइसरणो पत्तो संवेगवेरग्गं ।। ३६९ ॥ विसमिव विसए लच्छि अलच्छिमिव बंधणं व बंधुजणं । संसारं चारंपिव पार्स व विमुत्तु गिहिवासं ॥ ३६६ ॥ वित्तं सुपत्तपत्तं काउंपियदंसणाइ संजुत्तो। सिरिपासनाहपासंमि बंधुदत्तो गहेइ वयं ॥३६७॥ दुनिवि निवणचरणा पंचनमुक्कारसुमरणप्पवणा। ते जाया सहसारे महिडिअमरा सहस्सारे ॥३६८॥ तत्तो चुया विदेहे दुनिवि भुंजित्तु चक्किवरभोए । चरिऊण चारुचरणं लहिहिति सिवं विगयकम्मा ॥३६९॥ इत्यवेत्य गतकर्मकश्मलं,बंधुदत्तचरितं सुनिर्मलम् । हे जनाः! मस्त पंचमंगलं,सर्वदापि कृतसर्वमंगलम् ।।३७०॥ इति बंधुदत्तकथा । इति व्याख्यातः पंचपरमेष्ठिनमस्कारः, सांप्रतं ईर्यापथिकी व्याख्यायते, पाठक्रमायातत्वात् , ईर्यापथिकी प्रतिक्रमणपुरस्सरं च सकलस्यापि चैत्यवंदनादेर्धर्मानुष्ठानस्योक्तत्वात् , इत्थमेव चित्तोपयोगेनानुष्ठानस्य साफल्यभावात् , अन्यथा प्रायश्चित्तैकाग्रताया अप्यभावात् सूत्रप्रामाण्याच, तथा च महानिशीथसूत्रं-"से भयवं! एवं जहुत्तविणओवहाणेणं पंचमंगलसुयक्खंधहि जित्ताणं पुवाणुपुबीए सरवंजणमताविंदुपयक्खरविसुद्धं थिरपरिचियं काऊण महया पबंधेणं सुत्तत्थं च विण्णाय ImeanIANIMINISTERIES FE O॥२४॥ THI For Private And Personal Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Ka s ur Gyanmandit पूर्वमीर्या पथिकी श्रीदे. तओ य णं किमहिजिज्जा ?, गोयमा! इरियावहिया,से भय केणटेणं एवं वुच्चइ जहाणं पंचमंगलमहामुयक्खधं अहिज्जित्ताणं चैत्यश्री पुणो इरियावहियं अहीए ?, गोयमा! जेणं एस से णं जया गमणागमणाइपरिणामपरिणए अणेगजीवपाणभूतसत्ताणं च अणुवधर्म संघाचारविधी उत्तपमत्ते संघट्टणं अवहावणं किलामणं काऊण अणालोइयअपडिकंते चेव असेसकम्मक्खयहाए किंचि चिइवंदणसज्झायझाणाइ एसु अभिरमिज्जा तया से एगग्गचित्तसमाही हविज्जा न वा, जया उण गमणागमणाइअणेगअत्तवावारपरिणामासत्तचित्तयाए ॥२४२॥ PI|| केई पाणी तमेव भावंतरमच्छडिय अहट्टझवसिए य कंचि कालक्खणं विरत्तिजा ताहे तं तस्स फलेणं विसंवइजा, जया पुण किंचिवि अमाणमोहपमायदोसेणं सहसा एगिदियाईणं संघणं परितावणं वा कयं हविजा तया य पच्छा हा हा दुटु कयं कम्म अम्हेहि घणरागदोसमोहमित्तअनाणधेहिं अदिट्टपरलोगपञ्चवाएहिं कूरकम्मनिग्धिणेहिंति परमसंवेगमावण्णे भुपरिफुडं आलो. इनाणं निंदित्ताणं गरिहिताणं पायच्छित्तमणुचरित्ताणं नीसल्ले अणाउलचित्ते असुहकम्मक्खयट्ठा किंचि आयहियं चिइवंदणाइ अणुट्टिजा तथा तयट्टे चेव उवउत्ते से भविजा, जया णं से तयहोवउत्ते भविजा तया तस्स णं परमेगग्गचित्तसमाही हविजा, तया चेव सबजगजीवपाणभूयसत्ताणं अदिवसंपत्ती हविजा, ना गोयमा ! णं अप्पडिकंताप इरियावहियाए न कप्पइ वेव किंचि चिडवंदणसज्झायाइयं काउं फलासायममिकखगाणं, एएणं अट्टेणं गोयमा! एवं वुच्चइ जहा णं गोयमा! ससुत्थत्तोभयं पंचमंगलं थिरपरिचियं काऊणं तओ इरियावहियं अज्झीएज"त्ति, भाष्ये त्वेवं-"पुप्फामिसपूयाओ काउं धुइपूयकरणहेऊओ। विहिणा इरियावहियं पडिकमिय पदंति पणिवाय|||"ति,तथा "जणिह इरियावहियावण्णाई तेण तीइ पुर्व तु । चिइबंदणसज्झायाइ कीरई जेण भणियमिणं ॥१॥ किंच-"अप्पटिकताए इरियावहियाएण कप्पड़ काउंचिहवंदणमझायाइ फलासायामिकंखीणं"ति, For Private And Personal BIHARINEERIKIP ॥२४२॥ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma r adhana Kendra www.kebatin.org Acharya Shri Kailas a nmandi लघुप्रणिपातः श्रीदे चैत्य श्रीधर्मसंघाचारविधी ॥२४॥ मूलावश्यकेऽप्युक्तं-इरियावहिया पडिकमिजद, तओ चेहयाई बंदिजति," एवं च सिद्धान्तायुक्तत्वादीर्यापथिकीप्रतिक्रमणपू| विकैव चैत्यवंदनेत्यायातं,वृद्धाः पुनरेवमाहुः-उत्कृष्टा चैत्यवंदना ईर्यापथिकीप्रतिक्रमणपुरस्सरैव कार्येति, ईर्यापथिकी च क्षमा-|| श्रवणपर्विका प्रतिक्रम्यते इति नदक्षरसंख्याप्रतिपादनसमर्थकं गाथापादमाह पणिवाय अक्वराई अट्ठावीसं इह प्रणिपातशब्देन धमाश्रमणमुच्यते, प्रायस्तत्पूर्वकत्वात् तस्याः, ततश्च प्रणिपाते-क्षमाश्रमणे अष्टाविंशतिरक्षराणि, तथा | चैतत्सूत्रम्-'इच्छामि ग्वमाममणो! वंदिउं जावणिजाए निसीहियाए मन्थएण वंदामि' इच्छामि, अनेन गुर्वादेशसतृष्णतासूचकस्वाभिप्रायनिवेदनगर्भेण स्वच्छंदत्वं परिहतं, यतः-"किचाकिचं गुरुणो वियंति विणयपडिवत्तिहेउं च । ऊसासाई मुत्तुं नयणापुच्छाइ पडिसिद्ध।।१॥"ति, किंच-स्वच्छंदेन क्रियमाणं शोभनमपि भवाय भवति, भणितं च-"जिणाणाए कुणंताणं, नणं निवाणकारणं । सुंदरंपि सबुद्धीए,सव्वं भवनिबंधण।।१॥"ति, परोपरोधादिना वंदनाकरणं च,परोपरोधादिना च क्रियमाणस्य | द्रव्यवंदनत्वात् इति, गुरोः स्वाभिप्राय निवेद्य तमेवामंत्रयने-हे 'क्षमाश्रमण!' क्षमोपलक्षितदशविधश्रमणप्रधान साधो !, उक्तं च-खंती मद्दव अञ्जव मुत्ती तब संजमे य बोद्धव्वे । सच्चं सोयं आकिंचणं च बभं च जहधम्मो ॥१॥" अथवा क्षमाया | एव असे-ग्रहणे 'अषी असी गत्यादानयोश्चेति वचनात् मनो यस्य स क्षमासमनाः तस्यामन्त्रणं हे क्षमासमन,यद्वाक्षमयैव नत्व| शक्या शमन:-उपशमी स क्षमाशमनः, एवमेव यतिधर्मोपलंभात , 'क्षमा मूलं तपखिना'मिति बचनात्, एतावता यतिधर्म| शन्यानां शाक्यादिश्रमणानामालापनाद्यपि निषेधयति, आह च "आलावो संलावो वीसंभो संथवो पसंगो य । हीणायारेहिं समं ॥२४३३॥ For Private And Personal Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥२४४॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaarsuri Gyanmandir | सहजिणिदेहि पडिकुट्टो || १ ||" अनेनैव च सर्वमपि धर्मकृत्यं गुरोरापृच्छयैव कार्यमित्यप्यावेदितं, भणितं च- "एवं चिय सदावस्सयाइ आपुच्छिऊण कज्जाई । जाणावियमामंतणत्रयणाओ तेण सव्वेसु || १||" अविय - "किञ्चाकिचं गुरवो वियंति विणयपडिवत्तिहेऊओ । ऊसासाई मोतुं तयणापुच्छाइ पडिसिद्धं ॥ | १ ||" अथवा वन्दनोत्पत्तिकारणं विशेषणद्वारेणाह - क्षमाश्रमण !-क्षमया शाम्यति परिषहोपसर्गादि सहते खिद्यति वा संसारमार्गे गृहवासादौ श्रान्त इव तत्राप्रवर्त्तनात् तपस्यति 'श्रमच् खेदतपसो 'रिति वचनात् क्षमाश्रमण, उद्वेगादिपरिहारेण वा सम्यग् विचिन्त्य अणति - भाषते क्षमासमण, यद्वा समं-अविषमं रागाद्यभावात् समं वा-सर्वसाधारणं श्रद्धावृद्धाद्यपेक्षया समं वा सश्रीकं स्थानमिति गम्यं, समं वा सर्वोत्तमं, समान् वा ज्ञानादीन् नयति समं, कचिडे समनोऽसमनो वा, प्राकृतत्वात् संगतमनाः साधारणमनाश्च यदागमः- “तो समणो जइ सुमणो भावेण य जइ न होइ पावमणो । सयणे य जणे य समो समो य माणावमाणेसु ॥ १ ॥ नत्थि य सि कोइ वेसो समो य सव्वेसु चैव भूएसु। एएण होइ समणो एसो | अन्नोऽवि पज्जाओ ||२||" इतीच्छाकारणं, यदागमः- “ किं पिच्छसि साहूणं तवं च नियमं च संजमगुणं वा । तो बंदसि साहूणं एवं मे पुच्छिओ साह || १ || विसयसुहनियत्ताणं विसुद्धचरितनियमजुत्ताणं । तच्च गुणसाहणाणं सहाय किच्चुज्जुपाण नमो ||२||” तथा "वंदामि तवं तह संजमं च खंती य बंभचेरं च । जं जीवाण अहिंसा जं च नियत्ता गिहावासा || १||" इति, अनेन अविषये वंदनं निषेधयति, अविषयवंदने कर्म्मबंधादिभावात्, यदागमः - "पासत्थाई वंद माणस्स नेव कित्ती न निजरा होइ। कायकिलेस एमेव | कुणइ तह कम्मबंधं च ॥१॥" चशब्दादाज्ञाभंगादयः, किं कर्तुमित्याह- ' वंदितुं' नमस्कर्तु, अत्र चूर्णिः-जं केणावि पगारेण खमं सं जावणिज्जं यापनीयया शक्तया नीरोगया इत्यर्थः, अनेन सामर्थ्य दर्शितं, अन्यस्याश्रुतत्वादप्रस्तुतत्वाच भवन्तमेव यथोदित For Private And Personal लघुप्रणि पातः ॥२४४॥ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥२४५॥ Jain Aradhana Kendra गुणं, कथमित्याह - नैषेधिक्या- तन्वा, उक्तं च चूणा-निसीहित्ति आलओ, सो ससरीरस्स वसही थंडि च, सरीरं तु जीवस्स"त्ति, | कायतः प्रणामेन, दुष्करणेत्यर्थः, न तु वचोमात्रेण, किंविशिष्टया १, यद्वा यापनीयया उक्तार्थया तन्वेति शेषः, किंविशिष्टया :नैषेधिक्या-वामेयरपिंडीजाणुभूमियतल भूपाणिलेहणानिसेहियपावो इति वचनात् निषिद्धपापकर्मणा तन्वा इत्यर्थः, एतेनाविधिना | वंदनकरण निषेधः, उक्तमावश्यकचूर्णी - "जम्हा अपच्छंदेणं अविसए असत्तस्स अविहीए करणं न वट्टइ"त्ति, तदयं समुदायार्थ:हे क्षमाश्रमण साधो ! यतस्त्वं यथोक्तगुणः अहं चेदानीं शक्तियुक्ततनुः अतस्त्वां निषिद्धपापकर्मा सन् वदितुमिच्छामि, एवं हि संजातसामय्याः साफल्यात्, यतः - 'ओयह दडकलेवरह, जं वहिहइ तं सारु । जइ उट्ठब्भहि नो कुहइ, अह जुज्जइ तो सारु ॥१ ॥ ।” तथा“मुतवस्सियाण पूया पणामे" त्यादि गाथाद्वयं, एवं मनोऽभिप्रायं निवेद्याप्रतिषेधादिनाऽनुमते वाचा मस्तकेन वंदे इति वचनेन उच्चरन् कायेन पंचांगप्रणिपतितः सत्यापयति, सोमसूरवत्, तत्कथा चैवम् बहुरयणे रयणउरे आसी कुरुदत्तनामसिट्ठिस्स । दो सोमसूरनामा पुत्ता भत्ता जमलजाया ॥ १ ॥ दविणज्जणत्थ मनमि वासरे ते गहेवि बहुपणियं । चलिया पुढाहुतं पत्ता एगाइ अडवीए || २ || तत्थ य खमाइनिलयं मद्दवदंभोलिदलियमाणगिरिं । अज्जवजवजलतुल्लं दुहावि मुत्तीइ कयचित्तं ॥ ३ ॥ दित्ततवतेयतरणि संजमपालणपहाणसंकल्पं । सञ्च्चस्स केलिभवणं सयावि सोएण कयसोहं ||४|| निक्किचणवणमेहं अजिंभवं भवएण रायतं । कयकाउस्सग्गमेगं चारणसमणं नियंति इमे ॥ ५ ॥ तं दठु | पहिट्ठमणा महिमंडलललियलुलियपंचंगा । काउं पयाहिणतिगं वंदंति नमति भत्तीए ॥ ६ ॥ जंपंति वयं धना जं पहु ! तुह पण मियं चलणजुयलं | दुल्लहवल्लहवंछियपयत्थ संपत्तिदारं व ॥ ७ ॥ तुह मुणिपहु पयपंकयपणामवस विष्फुरंत पुन्नभरा । न हु मनमो www.kobatirth.org For Private And Personal Acharya Shri Kaisuri Gyanmandir लघुप्रणि पातः ॥२४५॥ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ITHILL Shrikalain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kai s uri Gyanmandir पथिकी श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म० संथाचारविधी ॥२४६॥ MISSIATIONS Climini-ammamII.mami. ANIM सुरसंपयपि संपइ वयं किंपि ॥ ८॥ एवं धुणिय मुणिन्दं अडवीइ इओ तओ परिभमंता । तरुनिग्गयपारोहेण निच्छिउं कत्थवि निहाणं ॥९॥ ते जायलोहखोहा तकालं गलियसयलपडिबंधा । असिधेणुकरा कडनिबिडभिउडिणो भिडिउमाढत्ता ॥१०॥ अह नाणेण वियाणिय तच्चरियं [ग्रन्थानम्-५०००] ने पयंपिया मुणिणा । किंनु न मुएह अजवि भो वइरं पुवभवपभवं? ॥११॥ किं भो अतुच्छमच्छरमुच्छारिंछोलिछलियसुहभावा । काउं वइरं नणु पावपुंजमज्जेह भूओवि ॥१२॥ तं सोउं मुणिपणमणपभावओ खुडियनिविडदुरियभरा। ते गयवेरा उज्झियछुरिया नमिऊण मुणिचरणे ॥१३॥ पुच्छंति कहणु पहुणे एस विरोहो पुरावि? | तो स मुणी । पभणइ कोसंबीए विजयधणा बंधुणो आसि ॥१४॥ धणियं धणजणमणा कयावि ते रोहणायले पत्ता । घणखाणिखोणिखणणेण कहवि लहिउँ रयणजायं ॥ १५॥ तं काउ गठिबद्धं चलिया नियनयरसमुहं कमसो। पत्ता इह अडवीए उ. च्छलिओ मिल्लहलगेलो॥१६।। तब्भयभरतरलच्छा निहुयं निहणंति स्यणगंठिंजा । एयस्स तरुस्स तले ता पत्ता मिल्लसंघाया॥१७॥ नस्संता तेहि इमे धरिउं पल्लीवइस्स उवणीया। पक्खित्ता गुत्तीए दविणं किंपि हु अमबंता ॥१८॥ विणिवारियऽनपाणा सेहिअंता बहुं मरेऊण । इत्थेव य निहिठाणे मुच्छाए मृसगा जाया ॥ १९ ॥ अन्नुन्न भिडिय मया तत्थ धणो तामलित्तिनयरीए । जाओ जयसत्थाहो बिइओ पुण इत्थ चेव हरी ॥ २० ॥ कइयावि दिववसओ सत्थेणं जंतओ हओ इहयं। हरिणा हणिओ जाओ इह नियडग्गामि कुलउत्तो ।। २१ ।। सीहोऽवि हओ सरहेण अहह इह चेव वानरो जाओ। अह कुलपुत्तो पत्तो कइया इन्थेव दारुकए ॥२२॥ तेणं कविणा सरनिसियनहरनियरेण मारिओ एसो। इमिणावि सियपरसुणा हओ कई तो मया दोवि ॥२३॥ जाया वराहहरिणा इहेव कइयावि सूयरेण मिगो। हणिओ इत्थ चरंतो इयरो पंचाणणेण पुणो ॥२४॥ कुल्लागसनिवेसे जाया ते PRANAMICHHINARAININDIAHINDIHIRAHASYAHANISCE IN// ॥२४६॥ For Private And Personal Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IMIL Aradhana Kendra www.kobatirth.org y anmande ईपिथिकी ANI Shri Acharya Shri Ka श्रीदे० दोऽवि रोरदियपुत्ता । वित्तिनिमित्तं सत्थेण सह इहं अन्नया पत्ता ॥ २५ ॥ चिरसंनिहियं न निहिं मुणंति मणयपि तहवि ताण चैत्य श्रीधर्मसंघा मणो । अन्नन्नवहपरिणयं जायं खित्ताणुभावेण ॥२६॥ अन्नुन्नदिण्णनिरविक्खतिक्खअसिवृत्तिघायगा जीया । किंपि सुहमाणसा ते चारविधौ भो भद्दा! इह तुमे जाया ॥२७॥ इय सुणमाणच्चिय जायजाईसरणा रणाउ विणियत्ता । नियकम्मं निंदंता भूमिलियसिरा नमति | ॥२४७॥ मुणिं ॥२८|| जपंति कहसु भयवं! इमाउ पावाउ कह वयं इण्हि । मुच्चिस्मामो साहेइ साहुसीहो सुणह भद्दा ॥२०॥ "अणवरयं मुणिनमणेण सिरिजिणिंदाण पूयकरणेण । कोहाइनिग्गहेणं पावमिणं मे खयं गमिही ॥३०॥" इच्छंति भणिय गिव्हिय तं निहियं नियधणं गया सपुरे । तेण दविणेण विहिणा खिप्पं कारिति जिणभवणं ॥ ३१ ॥ ठावंति तत्थ सिरिरिसहपडिममंचंति तिसु य संझासु । असरणभवियणसरणे वंदंति सया खमासमणे ॥३२॥ ते सोमसूरनामे सिट्ठिसुए सुबहुधम्मवयनिरए। दट्टुं अचयंतीए पावाए सोमपत्तीए ।।३३।। दिन्नं विसमेएसि तव्वसओ दोवि मरणमासज्ज । अट्टवसहा जाया सिहंडिणो चित्तसेलमि ॥३४॥ तत्थ पडियन्त्रपडिम निएवि तं चेव चारणमुणिदं । जाइसरा हरिसेणं ते गायंता नमति मुणिं ॥३५।। नाणवलेण वियाणिय तच्चरियं साहुणाऽणुकंपाए। संमं विइनअणसणनवकारा दोवि मरिऊण ॥३६।। वेयडनगे भदिलपुरपहुसिरिरयणसेहरनिवस्स । जाया तणया सुकलाण पारया पत्ततारुना ॥३७॥ उजाणे कीलंता कयाचि तंचिय णिएवि मुणिपवरं । संभरियपुव्बजाई हरिसवसुल्लसियरोमंचा ॥३८।। कहकहमवि मोयाविय पिउणो तम्मुणिसमीवगहियवया । जाणियजिणागमत्था खमाइगुणरयणरयणनिही ॥३९॥ बुरुआराहणपवरा कमसो संपत्तमरिपयविहवा । निट्ठवियअट्ठकम्मा पत्ता अपुणब्भवं ठाणं ॥ ४० ॥ इत्यवेत्य गतकर्मकश्मलं, | सोममरिचरितं सुमेधसः। सत्क्षमादिगुणराजिराजिनः, सन्मुनीन् प्रणमत प्रयत्नतः॥४१ ।। इति मोमसूरकथा । इति PrithamPAI ॥२४७॥ MULTANPRAMAND For Private And Personal Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn Matolain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kal s uri Gyanmandie र्यापथिकी श्रीदे. व्याख्यातं क्षमाश्रमणसूत्रं, तदनंतरं च 'उद्वित्तु असंभंतो तिविहं पायंतरं पमजित्ता। जिणमुद्दाठियचलणो इरियावहियं पडिक्कमइ चैत्यश्री ॥१॥ (बृ. ३६४) तं च ईर्यापथिक्या वर्णपदसंपत्प्रतिपादनाय गाथापादत्रयमाहधर्म संघा तहा य इरियाए । नवनउअ अक्खरसयं दुतीस पय संपया अट्ठ॥३१॥ चारविधौ । तथा ईर्यापथिक्यां नवनवत्यधिकमक्षराणां शतं ठामि काउस्सग्गमिति यावत् , एतदंतत्वादष्टम्याः संपदः, उक्तं च-"अट्ठमी ॥२४॥ तस्स उत्तरी"त्यादि ठामि काउस्सग्गमिति पर्यतमिति, परतः कायोत्सर्गदंडकत्वाच, तद्वर्णसहितानि तु त्रीणि शतानि चत्वारिं शदधिकानि भवंति, उक्तं च-"नवनवइसयं इरियावहियाए होइ वनपरिमाणं । उस्सग्गवनसहिआ ते तिनि सया उ चालीसा |॥१॥" अपरे तु मिच्छामि दुक्कडमिति पर्यवसानं वन्नाण सड़सयमिति भणंति,तथाऽत्र द्वात्रिंशत् पदानि अष्टौ संपदो-महापदानीति ॥३१॥ अथ यस्यां संपदि यावन्ति पदानि संति तत्संख्या आयपदपरिज्ञाने च शेषपदानि सुखेन ज्ञायते इत्याद्यपदानि च र्यापथिकीसंपदा प्रतिपिपादयिषुराह दुगरदुगर इग३ चउ४ इग५ पणदइगार७ छग८ इरियसंपयाइपया। इच्छार इरि२ गम३ पाणा४ जे मे एगिदि अभि७ तस्स८ ॥ ३२॥ द्वे च द्वे च इत्यादि द्वंद्वः ततो द्विद्वथेकचतुरेकपंचैकादशषट् पदानि यासु ताश्च वा ईर्यापथिकीसंपदश्च 'ते लुग्वे'ति पदपथिकी| शब्दयोर्लोपः, तासामाद्यपदानि यथा इच्छा च इरिश्च इत्यादेद्वंद्वः इत्याद्यक्षरघटना, एवं अन्यत्रापि कार्या, भावार्थस्त्वयं-इच्छेति | वर्णद्वयसूचिताद्यपदा इच्छामि पडिकमिउरमिति पदद्वयपरिमाणा प्रथमा संपत् , ईरीत्यक्षरद्वयघटिताद्यपदा ईरियावहियाए १.|| HMAHILARLIPPERIALISAPANILIPPINER ॥२४८॥ For Private And Personal Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Man Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥२४९॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas विराहणाए २ इति पदद्वयनिष्पन्ना द्वितीया संपत्, गमेत्याद्याक्षरद्वयलक्षणा गमणागमणे इत्येकपदैव तृतीया संपत्, पाणेतिद्विवर्णवर्ण्यादिपदा पाणकमणे १ बीयकमणेर हरियकमणे ३ ओसाउर्त्तिगपणगद गमट्टीमकडासंताणासंकमणे ४ इति पदचतुष्टयनिष्टंकिता चतुर्थी संपत्, जे मे इत्याद्यव्यंजनद्वयव्यंजिता जे मे जीना विराहिया इत्येकपदपरिमिता पंचमी संपत्, एगेंदीतित्र्यक्षरसूचिताद्यपदा एगिंदिया १ बेइंदिया २ तेइंदिया ३ चउरिंदिया ४ पंचेंदिया५ इति पदपंचकपरिनिष्ठिता षष्ठी संपत्, अभीतिवर्णद्वयवर्णिताद्यपदा अमिया १ वत्तिया२ लेसिया ३ संघाइया ४ संघट्टिया ५ परियाविया ६ किलामिया ७ उद्देविया ८ ठाणाओ ठाणं संकामिया ९ जीवियाओ ववरोविया १० तस्स मिच्छामिदुकर्ड ११ इत्येकादशपदपरिच्छिन्ना सप्तमी संवत्, तस्मत्ति आद्यपदोल्लिंगता तस्स उत्तरीकरणेणं १ पायच्छित्तकरणेणं २ विसोहीकरणेणं ३ विसल्लीकरणेणं ४ पावाणं कम्माणं निग्वायणडाए २ ठामि काउस्सग्गदमिति पदषट्कघटिताऽष्टमी संवत्, परतः कायोत्सर्गसूत्रत्वाद्, भाष्यांतरेऽन्त्यपदोल्लिंगनेनास्या एतदंतभणनाच उक्तं च- "जीवा विराहिया पंचमी उ पंचिंदिया भवे छट्ठी । मिच्छामि दुकडं सत्तमी अट्ठमी ठामिकाउ सग्गं ॥ १ ॥ |” एवं चासां पदैः परिगणनमर्थसांगत्येन यथार्थतापरिज्ञानात् उच्यते अन्भुवगमो ? निमित्तं २ ओहे ३ यरहेउ ४ संगहे २ पंच । जीव ६ विराहण ७ पडिक्कमण ८ भेयओ तिनि खुलाए । ३३ ॥ अस्या अर्थ उक्तानुसारेणोनेयः, वाचनांतराणि त्वर्थसांगत्याभावेन यादृच्छिकान्येवेति मत्वोपेक्षितानि ३३ ॥ अत्र चैवं बृहद्भाग्योक्तो विधि:- "संनिहिअं भावगुरुं आपुच्छित्ता खमासमणपुवं । इरियं पडिकमिज्जा ठवणाजिनसखियं इहरा || १ || For Private And Personal ri Gyanmandir स्कन्दक निवृत्तं ॥२४२॥ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mata Jan Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्री धर्म • संघा चारविधौ ॥२५०॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila (३६५) न तु जिनबिंबस्यापि पुरतः स्थापनाचार्यः स्थापनीयः, यतस्तीर्थकरे सर्वपदभणनात् तद्विवेऽपि सर्वपदस्थापना अवसीयत एव, उक्तं च व्यवहारभाष्ये - " आयरियग्गहणेणं तित्थयरो इत्थ होइ गहिओ अ । किं न भवइ आयरिओ ? आयारं उवहसंतो य ||| १ || निदरिसणभित्थं जह खंदएण पुट्ठो य गोअमो भयवं ! | केण तु सिद्धंति य ? धम्मायरिएण पच्चाह ॥ २॥ स जिणो जिणाइसयओ सो चेव गुरू गुरूवएसाओ । करणा य विषयणाओ सो चैव मतो उवज्झाउ ॥ ३ ॥ त्ति, आधारांगचूर्णावयुक्तं"आयरिया तित्थयरा गुणे आयरियसंमए" ति सूत्रचूर्णेः आयरिया तिरथयरत्ति, स्कंदकमुनिकथानकं पुनरिदं तेणं कालेणं | तेणं समएणं कथंगला नामं नयरी हुत्था, वण्णओ. तीसे णं कथंगलाएर बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए छत्तपलामए नाम चेइए हुत्था, वण्णओ, तरणं समणे भगवं महावीरे उत्पन्ननाणदंसणधरे १ अरहा २ जिणे ३ केवली ४ तीयपडुप्पन्नमणागयवियाएर सव्वन्नू ६ सच्चदरिसी ७ आगासगएणं चक्केणं १ आगासगएणं छत्तेणं २ आगासगयाहिं चामराहिं उद्ध्रुवमाणीहिं३ आगासगणं फलियामरणं सपायपीटेणं सींहासणेणं ४ धम्मज्झएणं पुरओ पकडिज्जमाणेण ५ चउदसहिं समणसाहस्सी हिं छत्तीसाए अज्जियासाहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे पुवाणुपुद्धिं चरमाणे गामाणुगामं दइजमाणे हंसुहेणं विहरमाणे कयंगलाए नयरीए छत्तपलासए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं उग्गहित्ताणं संजमेणं तत्रसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, परिसा निग्गच्छर, गोयमाइ समणे ३ भयवं गोयमं एवं वयासी – दच्छिसि णं गोयमा ! पुत्र्वसंगइयं, कं भंते ?, खंदयं नाम से काहे बा किह वा ? साक्षादर्शनतः श्रवणतो वा कियचिरेण वा १, एवं खलु गोयमा ! इमीसेणं कयंगलाए नयरीए अदूरसामंते सावत्थी नामं नयरी होत्था, वण्णओ, तत्थ णं सावत्थीए नयरीए गद्दभालिस्स अंतेवासी वंदए नामं कच्चायणसगुत्ते परिवायए For Private And Personal uri Gyanmandir स्कन्दक मुनिवचं ॥२५०॥ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobatirth.org y anmandie श्रीदे स्कन्दकमुनिवृत्तं चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधी ॥२५॥ AmTHANI allBLISHE FindMAINAL RUNAINITARIUPATIL Acharya Shri Ka परिवसइ,रिउव्वेयजउव्वेषसामवेय अथव्वणवेयइतिहासपंचमाणं निग्धंदुछट्ठाणं चउण्हं वेयाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं सारए धारए| पारण वारए सडंगवी मद्वितंतविसारए मंखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे अनेमु अ बहुसु भच्चएसु परिवायएसु नएमु परिनिट्ठिए आवि भविस्सइ भवइ), तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पिंगलप नाम नियंठे वेसालिसावए-महावीरशिष्यः परिवसइ, तए णं से पिंगलए अन्नया कयाइ जेणेव खंदए कच्चा० तेणेव उवागच्छइ२ खंदयं च इणमक्खेवं-प्रश्नं पुच्छेइ-मागहा ! किं सअंते लोए अणते लोए ? सअंते जीवे अणंते जीवे ? सअंता सिद्धी अणंता सिद्धी ? सते सिद्धे अणंते सिद्धे ? केण वा मरणेणं भरमाणे जीवे वडइ वा हायह वा ? एताव ताव आइक्ख बुज्झमाणा एवं, अन्यदपि पश्चात् प्रक्ष्यामि, तएणं खंदए क० ३ पिंग-1 लएणं ३ इणमक्खेवं पुच्छिए समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छिए भेयसमावण्णे कलुससमावण्णे नो संचायइ पिंगलयस्स ३ किंचिवि पमुक्खं-उत्तरं अक्वाइउं, तुसिणिए संचिट्टइ, तए णं से पिंगलए३ बंदणं क.३ दृञ्चपि तचंपि इणमक्खेवं पुच्छे,मागहा! किं सते कोए जाव बुज्झमाणा एवं, तएणं से खंदए क. २ पिंगलएणं दुचंपि नचंपि इणमक्खेवं पुच्छिए समाणे संकिए जाव तुसिणिए संचिट्ठइ, तएणं सावत्थीए नयरीए संघाडगतिगचउक्चच्चरचउमुहमहापहेसु महया जणसंमद्देइ वा जणवूहेइ वा || जणबोलेइ वा जणकलकलेइ वा जणुम्मीइ वा जणुकलियाइ वा जणसंनिवाएइ वा बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पनवइ एवं परूवेइ-एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव संपाविउकामे पुव्वाणुपुट्विं चरमाणे ३ जाव विहरइ, तं महाफलं खलु भो देवाणुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्सवि सवणयाए, किमंग पुण अमिगमणवंदणनमंसणपडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ?, एगस्सवि आयरियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विठलस्स अट्ठस्स ॥२५१॥ For Private And Personal Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥२५२॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila arsuri Gyanmandir गहणयाए ?, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! समणं ३ वंदामो नमसामो सकारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेमो, एयं णे पेच्चभवे हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइत्तिकट्टु बहवे उग्गा उग्गपुता एवं भोगार राइण्णा २ खत्तिया२ माहणार भडार जोहार मल्लई ३ लिच्छई २ अन्ने य बहवे राईसरतलवरमाडं बिय को इंबिय इन्भसिट्ठिसेणावइत्थवाहपभिइओ अप्पेगइया वंदणवत्तियं ४ अप्पेगइया को उहलवत्तियं अप्पेगइया असुयाई सुणिस्लामो सुयाई निस्संकि पाई करिस्सामो पंचाणुवइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं सावगधम्मं पडिवजिस्सामो, अप्पेगइया जिणभत्तिरायणं अप्पेगइया जीयमेयंतिकट्टु व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय मंगलपायच्छित्ता सिरसाकंठेमालकडा आविद्धमणिसुवन्ना कप्पियहारद्धहारतिसरयपालंच पलंब माणकडिसुत्तयसोभाभरणा पत्ररवत्थपरिहिया चंदणुल्लित्तगतसरीरा अप्पेगइया हयगया एवं गयरहसि बियासंदमा - णियागया अप्पेगइया पायविहारचारिणो पुरिसवग्गुरापरिखित्तामहया उकिट्टिसीहनाय बोलकलयलरवेणं पक्खुब्भियसमुद्दपिव करे माणा सावत्थीए नयरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छंति, तएणं तस्स खंदयस्स क० २ बहुजणस्स अंतिए एयमहं सुच्चा निसम्म अयमेयारूवे अम्मत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - सेयं खलु मे समणं३ वंदित्ता ४ कल्लाणं जाव पज्जुवासित्ता इमाई च णं एयारूवाई अट्ठाई हेऊई पसिणाई कारणाई वागरणाई पुच्छित्तएनिकट्टु एवं संपइ२ जेणेव परिचाययावसहे तेणेव उवागच्छद्द २त्ता तिदंडं च कुंडियं च कंचणियं च करोडियं च मिसियं च केसरियं च छनालयं च अंकुसयं च पवत्तियं च गणेत्तियं च पाहणाओ य धाऊरत्ताओ य गेव्हेइ? परिवायावसहाओ पडिनिक्खमइ २त्ता तिदंडकुंडिय जाव गणितियहत्थगए छत्तोवाणहसंजुते धातुरतवत्थपरिहिए सावत्थीए २ मज्झंमज्जेणं निग्गच्छइ २ जेणेव कयंगला २ जेणेव छत्तपलासए For Private And Personal ईर्यापथिकी ॥२५२॥ Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobatirth.org i Gyanmandie मुनिकृतं Acharya Shri Kad भीदे |इए जेणेव मम अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए, से य अदूराइए बहुसंपत्ते अद्धाणं पडिवो अंतरापहे वइ, अजेवणं पिच्छसि चैत्यश्री गोयमा!, भंतित्ति भयवं गोयमे समणं ३ वंदइ नमसइ २ एवं वयासी-पहू णं भंते ! खंदए क०२ देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे धर्म० संघाचारविधौ । भवित्ताणं अगाराओ अणगारिय पव्वइत्तए?, हंता पहू, जावं च णं समणे३ भयवओ गोयमस्स एयमढें परिकहेइ तावं च णं ॥२५॥ खंदए क० २ तद्देसं हन्धमागए,तएणं भयवं गोयमे खंदयं २ अदूरागयं जाणिसा खिप्पामेव अब्भुटेर खिप्पामेव पच्चुग्गग्छ। २ जेणेव खंदए २ तेणेव उवागच्छइ २ खंदयं २ एवं वयासी-हे खंदया! सुसागयं खंदया! अणुरागयं खंदया! से नूणं तुम खंदया! सावत्थीए नयरीए २ पिंगलएणं ३ इणमक्खेवं पुच्छिए-मागहा! किं सअंते लोए एवं तं चेव जेणेव इहं तेणेव हब्बमागए, से नूणं खंदया! अत्थे समत्थे ?, हंता अत्थि,तएणं से खंदए क०२ भयवं गोयम एवं वयासी-से केणं गोयमा तहारूवे नाणी वा तवस्सी वा जेणं तब एसअढे मम ताव रहस्सकडे हन्बमक्खाए,तएणं भयवं गोयमे खंदयं क०२ एवं वयासी-एवं खलु खंदया! मम धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे उप्पननाणदंसगधरे अरहा जिले केवली तीयपडप्पनमणागयवि|याणए सव्वणू सम्बदरिसी जेणं मम एस अढे तव ताव रहस्सकडे हव्वमक्खाए जओ णं अहं जाणामि खंदया!,तएणं से खंदए क० २ भयवं गोयमं एवं वयासी-गच्छामो णं गोयमा ! तब धम्मायरियं धम्मोवएसयं समणं ३ वंदामो ४ कल्लाणं ४ जाव पज्जुवासामो, अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध, तएणं भयवं गोयमे खंदएणं क०२ सद्धिं जेणेव समणे ३ तेणेव उवागच्छइ, तेणं समएणं समणे३ वियडभोई याविहोत्था-प्रतिदिनभोजी,तए णं समणस्स३ वियडभोइस्स सरीरयं उरालं कल्लाणं सिंगारं सिवं धनं मंगल्लं अनलंकियविभूसियं लक्खणवंजणगुणोववेयं माणुम्माणपमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरं-जलदोणअद्धभारं समुहाई समू PEN onmenial ImARMAmmm S SaiRAN Pya UNAMINATION ॥२५३॥ For Private And Personal Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Me n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandie स्कन्दकमनिवृत्तं श्रीदे । चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥२५४॥ SANSAR सिओ उ जो नव उ । माणुम्माणपमाणं तिविहं खलु लक्खणं एयं ॥१॥ सिरीए अईव २ उपसोहेमाणं चिट्ठइ, तएणं से खंदए क. २ समणस्स ३ वियडभोइस्स सरीरयं उरालं जाव उवसोभेमाणं पासइ २ हहतुडचित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणसिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणेव समणे३ तेणेव उवागच्छइ२ समणं३ तिखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइर जाव पज्जुवासइ, खंदयाइ समणे३ खंदयं क०२ एवं वयासी-से नूणं तुम खंदया! सावत्थीए न पिंगलएणं३ इणमक्खेवं पुच्छिए, मागहा! किं सअंते लोए एवं तं चेव जाव जेणेव मम अंतिए तेणेव हबमागए, से नूणं खंदया! अढे समढे १, हंता अस्थि, जेविय ते खंदया! अयमेयारूवे अम्भत्थिए४ संकप्पे समुप्पजित्था-किं सते लोए (जीवे)अणंते लोए (जीवे) तस्सविय णं अयमहे, एवं खलु मए | खंदया ! चउबिहे लोए पं०,०-दवओ४ दखओणं एगे लोए सते खित्तओणं एगे लोए असंखिजाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविक्खंभेणं असंखिजाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं पं०, अत्थि पुण से अंते,कालओणं लोए न कयाइ न आसि | न कयाइ न भवति न कयाइ न भविस्सइ,भविंसु य भवइ य भविस्सइ य धुवे नियये सासए अक्खए अवहिए निचे,नत्थि पुण| से अंते ३ भावओ णं लोए अणंता वण्णपञ्जका एवं गंधरसफाससंठाणगरुयलहुपजवा, नथिणं पुण से अंते, से तं दव्वओ लोए सते खित्तओ लोए सते कालओ भावओऽवि अणंते, जीवे य ते खंदया! अयमेयारूवे जाव अणंते जीवे तस्सऽवियणं अयमद्वे-एवं खलु जीवे दवओणं एगे जीवे सअंते१ खित्तओणं जीवे असंखेजपएसिए असंखिजपएसोगाढे अत्थि पुण से अंते२ कालओणं जीवे न कयाइ आसि जाव निच्चे, नत्थि पुणाइ से अंते ३ भावओणं जीवे अणंतनाणपजवा एवं अणंता दंसणचरित्ता गरुयलहुयअगरुयलहुया, नत्थि पुण से अंते, से तं दबओ खेतओ जीवे सते, कालओ भावओ अणते, जेविय ते खंदया! ॥२५४॥ For Private And Personal Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mier Main Aradhana Kendra www.kobatirth.org bun Gyanmandie स्कन्दकमुनिवृत्तं श्रीदे. चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥२५५॥ Acharya Shri Kaila अयं पुच्छा जाव अणंता सिद्धी तस्सविय जाव दवभोणं एगा सिद्धी सअंता खित्तओणं सिद्धी पणयालीसं जोयणसयसहस्साई आयामविक्खमेणं एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साई तीसं च सहस्साई दुनि य अउणापन्ने जोयणसए किंचिविसेसाहिए किंचिन्यूनगव्यूतद्वयाधिके इत्यर्थः परिक्वेवेणं पं०, अत्थि पुण से अंते, कालओ भावओ य जहा लोए, से तं दव्वओ खित्तओ सिद्धी सअंता, कालओ भावओ य अणंता ३, जेवि य ते खंदया! अयं जाव अणते सिद्ध तत्थवि य जाव दबओणं एगे सिद्धे सअंते, खित्तओ णं सिद्धे असंखिजपएसिए जहा जीवे, कालओणं सिद्धे साइए अपञ्जवसिए, नत्थि पुण से अंते, भावओणं सिद्धे अणंता नाणपजवा एवं दसणचरित्तअगुरुपलहुयप० नत्थि पुण से अंते, से तं दबओ खिसओ सिद्धे सते, कालओ भावओ य अणंता ३, जेविय ते खंदया! अयं जाव केण वा मरणेणं मरमाणे जीविए वडइ वा हायइ वा तस्सवि य जाव | खंदया! मए दुविहे मरणे पण्णत्ते, तं०-बालमरणे य पंडियमरणे य, से किं तं बालमरणे १, २ दुवालविहे पं०, तं०-वलायमरणे १, वसट्टमरणे २, अंतोसल्लम० ३, तम्भवम०४, गिरिपडणे ५, तरुपडणे ६, जलप्पवेसे ७, जलणपवेसे ८, विसभक्खणे ९, सत्थोवाडणे १०,वेहाणसे ११, गद्धापढे १२, इच्छेतेणं खंदया ! दुवालसविहेणं बालमरणेणं मरमाणे जीवे अणंतेहि नेरइयभवग्गहणेहिं अप्पाणं संजोएइ, एवं तिरियमणुयदेव. अणाइयं च णं अणवयग्गं चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिहिह, से तं मरमाणे वडइ, से तंबालमरणे, से किं तं पंडियमरणे १,२ पंडियमरणे दुविहे पन्नते, तं०-पाओवगमणे य भत्तपाजपच्चक्खाणे य, से किं तं पाओवगमणे १, २ दुविहे पं०, तं०-नीहारिमे य अनीहारिमे य अपडिकमे, से तं पाओवगमणे, से किं तं भत्तपञ्चक्खाणे १२ दुविहे पं० तं०-नीहारिमे य अनीहारिमे य नियमा सपडिकमे,से तं भत्त०, इएणं खंदया! दुविहेणं ॥२५५॥ For Private And Personal Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila n Gyanmandit स्कन्दकमुनिवृत्तं श्रीदे चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधौ ॥२५६॥ P पं डियमरणेण मरमाणे जीवे अणंतेहिं नेरइयभवग्गहणेहि अप्पाणं विसंजोएइ जाव वीइवयइ, से तं मरमाणे हायइ २,से तं पंडिय मरणे, इच्चेएणं खंदया! दुविहेणं मरणेणं मरमाणे जीवे वडइ वा हायइ वा, इत्थ णं से खंदए क० संबुद्धे समणं भगवं महावीरं | | वंदइ नमसइ २ एवं वयासी-इच्छामिणं भंते ! तुझं अंतिए केवलिपन्नत्तं धम्म निसामित्तए, अहासुहं देवाणुप्पिया!, मा पडिबंधं, तएणं समणे भगवं महावीरे खंदयस्स का तीसे य महइमहालियाए सदेवमणुयासुराए परिसाए धम्म परिकहेइ, तए थे से खंदए कच्चायणसगोते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सुच्चा निसम्म हडतुढे जाव हयहियए उद्वेइ २ समण भगवं महावीरं तिखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ एवं वयासी-सदहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं मंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि गं भंते ! निग्गंथं पावयणं, एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! जहेयं तुझं वयहत्तिकटु समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति २ उत्तरपुरच्छिमं दिसिभायं अवकम्मइ २ तिदंडं च कुंडियं च जाव धाउरत्ताउ य एगंते एडेइ २ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ जाव नमंसित्ताणं एवं वयासी-आलित्ते णं भंते ! लोए जराए मरणेण य, से जहानामए कोई गाथावती अगारंसि झियायमाणंसि जे तत्थ भंडे भवइ अप्पसारे मुल्लगुरुए तंगहाय आयाए एगंतमंत अवक्कमइ एस मे नित्थारिए समाणे पच्छा पुरो य हियाए जाव आणुगामियत्ताए भविस्सइ, एवमेव देवाणुप्पिा ! मज्झवि आया एगे भंडे इढे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेन्जे वेसासिए संमए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे मा णं सीयं मा णं उण्हं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं वाला माणं दंसा मा णं मसया मा णं वाइयपित्तियसें भियसभिवाइय amelammammuth Post TRIMAIGATION IITRINECHIRAINRITESHI - NITION ॥२५६॥ For Private And Personal Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri .in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kai n Gyanmandit श्रीदें Wom स्कन्दकमुनिवृत्त चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधौ| ॥२५७॥ विविहा रोगायंका परिसहोवसग्गा फुसंतुत्तिकटु एस नित्थारिए समाणे परलोयस्स हियाए सुहाए खमाए नीसेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ, तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! सयमेव पव्वाविउं सयमेव मुंडाविउ सयमेव सेहाविउं सयमेव सिक्खाविउं सयमेव आयारगोयरविणयवेणइयचरणकरणजायामायावित्तियं धम्ममाइक्रखिलं, तएणं समणे ३ खंदयं क. २ सयमेव पहावेइ जाव धम्म आइक्खइ, एवं देवाणुप्पिया ! गंतवं एवं निसीइयवं एवं तुयट्टियत्वं एवं भुंजियवं एवं उहाय २ पाणेहिं ४ संजमेणं संजमियत्वं, अस्सि च णं अढे नो किंचि पमाइयवं. तए णं से खंदए क०२ समणस्स३ इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं संमं संपडिवाइ, तमाणाए तह गच्छइ तह चिट्ठइ जाव नो पमाएट, तए णं से खंदए क. अणगारे जाए ईरियासमिए भासासमिइए एसणासमिइए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिइए उच्चारपासवणखेल्लजल्लसिंघाणपारिद्वावणियासमिइए मणस० वयस० कायस० गुत्तो मणगुत्तो वयगुत्तो कायगुत्तो गुत्तिदिए गुत्तबंभयारी चाई लहू धण्णे खंतिखमे जिइंदिए सोहिए अनियाणे अप्पुस्मुए अबहिल्लेसे सुसामण्णरए दंते,इणमेव निग्गथं पावयणं पुरओ काउं विहरइ,तए णं समणे३ कयंगलाओ० छत्तपलासाओ चेइआओ|| पडिनिक्षमइ बहिया जणवयविहार विहरइ, तएणं से खंदए अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयाई इक्कारस अंगाई अहिजइ२ जेणेव समणे ३ तेणेव उवागच्छइ २ समणं ३ वंदइ नमसइ २ एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुम्भेहिं अम्भणुण्याए समाणे मासियं भिक्खुपडिम उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध, तए णं से खंदए अणगारे समणेणं ३ अब्भणुनाए समाणे हट्ट जाव नमंसित्ता मासियं भिक्खुपडिमं उपसंपजित्ताणं विहरइ, तए णं से खंदए अ० मासियं मि० अहासुत्तं १ अहाकप्पं २ अहामग्गं ३ अहातचं४ अहासंम५ संमं फासेइ१ पालेइ २ सोहेइ ३ तीरेइ New २५७॥ wom For Private And Personal Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandit hemRATRI स्कन्दकमुनिवृत्तं श्रीदे० चैत्यश्री धर्म० संघा. चारविधी ॥२५८॥ ४ पूरेइ ५ किटेइ ६ अणुपालेइ ७ आणाए आराहइ ८ एवं दोमासियाइ १२, [प्रत्यन्तरे सम्मं कारण फासित्ता जाव आराहित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ समणं३ वंदइ नमसइ २ एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए | दोमासियं भिक्खुपडिम उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध, तं चेव, एवं [ दोमासियं ] तेमासियं चउमासियं पंचछसत्त० पढमसत्तराइंदियं दोच्चसत्तराईदियं तच्चसत्तराइंदियं अहोराइयं एगराइयं । तए णं से खन्दए अणगारे एगराइंदियं भिक्खुपडिमं अहासुत्तं जाव आराहेत्ता जाओ-मासाई सत्ता ७ पढमा ८ विय ९ तइयसत्तराइदिणा १०। अहराय १ एगराई २ भिक्खुपडिमाण वारसंग ॥१॥ कमसो पइदिणमेगा दत्ति सत्तसु पुढो जलन्नाणं । तिसु य चउत्थपमाणं छहट्ठम दोसु चरिमासु ।।२।। उत्ताणयपासिल्लय नेसजिअआसणो उ अहमिए । उकुडलगंडसाई दंडाययए य नवमीए ॥३॥ दसमीए गोदोहिय वीरासणिए य अवखुजे य । इगदसमी अवलंबियपाणी थाणुव्व उद्धृतणू ॥४॥ साहटु दोवि पाए अवलंबियपाणि लुक्खअणुदिट्ठी। अणिमिसनयणो ईसिंओणयकाओ य बारसमी ॥ ५॥ गच्छा विणिक्खमित्ता उवसग्गपरीसहाइसहणपरो । पडिषजइ एयाओ धीरो इय भिक्खुपडिमाओ॥६॥ लेइ गुणरयणसंवच्छरं तओ तत्थ सोलमासतवं । एगंतरोववासाइ होइ चउतीसइमअंतं ॥७॥ ठाणुकडओ य दिवा सुराभिमुहो य आयवेमाणो । रतिं तु अवाउडओ वीरासणिओ कुणेइ तवं ।। ८ ॥ पनरस १ दस २ अट्ट ३ छ४पंच५ चउरक्षतिय ७ तिनि ८ तिनि९तिय १० तिन्नि ११ । दुय १२ तिन्नि १३ दुन्नि १४ दुय १५ दुनि १६ पारणा सोलमासि कमा ॥९॥) तएणं से खंदए अ० २ गुणरयणसंच्छरं तवोकम्मं अहासुतं ५ सम्मं कारणं फासेइ ८ जाव आराहित्ता८ जेणेव समणे३ उवागच्छइ २ समणं३ वंदइ नमसइ २ बहूहिं छहमदसमदुवालसेहिं मासद्धमासखवणेहिं विचित्तेहिं| INSPITHAILANAHAPATI २५८॥ For Private And Personal Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandit श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म०संघाचारविधौ ॥२५॥ स्कन्दकमुनिवृत्तं municlimmy CrimmuTIPATI तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। तए णं खंदए अ० २ तेणं उरालेणं ५ सिवेणं ६ धनेणं ७ मंगल्लेणं८ सस्सिरीएणं ९ उदग्गेणं १० उदत्तेणं ११ उत्तमेणं १२ उदारेण १३ महाणुभागेणं १४ तवोकम्मेणं १५ सुक्खे १ लुक्खे २ निम्मंसे ३ अट्ठिचम्मावणद्धे ४ किडिकिडियाभूए ५ किसे ६ धमणिसंतए ७ जाये याविहुत्था, जीवंजीवेणं गच्छइ १ जीवंजीवेणं चिट्ठइ२ भासं | भासित्तावि गलाइ ३ भासं भासमाणे गिलाइ ४ भासं भासिस्सामित्ति गिलायइ य, से जहानामए कट्ठपगडियाइ वा ? पत्तसगडियाइ वार पत्ततिल्लभंगसगडिया इ वा३ एरंडकट्ठसगडिया इ वा ४ इंगालकट्ठसगडियाइवा५ उण्हे दिण्णा सुक्का समाणी ससई गच्छइ ससई चिट्ठइ एवामेव खंदए अ०२ ससई गच्छइ उवचिए तवेणं अवचिए मंससोणिएणं तवतेयसिरीए अईवर उवसोभे माणे चिट्ठह । तेणं कालेणं २ रायगिहे २ समोसरणं जाव परिसा पडिगया, तएणं तस्स खंदयस्स अ० २ अन्नया कयाइ पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अब्भत्थिए ५ जाव समुप्पन्जित्था-एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं उरालेणं१५ तवोकम्मेणं सुक्के८ जाव जीवंजीवेणं गच्छामि५ से जहा नामए जाव एवामेव अहंपि ससदं गच्छामि ससई चिट्ठामि, तं अस्थि ता मे उहाणे १ कम्मे २ बले ३ विरिए ४ पुरिसकारपरक्कमे ५ तंजाव मे अत्थि उट्ठाणे ५ जाव मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे ३ जिणे सुहत्थी विहरए ताव ता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मीलियंमि अहापंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगासकिंसुयमुयमुहगुंजद्धरागसरिसे कमलागरसंडविबोहए उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा | जलंते समणं ३ वंदित्ता नमंसित्ता जाव पज्जुवासिवा समणेणं ३ अन्भणुनाए समाणे सयमेव पंचमहत्वयाणि आरोवित्ता समणा | य समणीओ य खामित्ता तहारूवेहि थेरेहिं कडाईहिं सद्धि विउलं पव्वयं सणियं २ दुरुहिता मेहघणसंनिगासं देवसन्निवायं Hai MAHANISTRAPHIANISATIRAHIN E ॥२५९॥ For Private And Personal Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri all Aradhana Kendra www.kobatirth.org JAI Acharya Shri Ka y anmandit स्कन्दकमुनिवृत्तं I श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥२६॥ NUAEMPIRMIRMIRE ndian ॥ पुढविसिलापट्टयं पडिलेहिता दन्भसंथारयं संथरित्ता संलेहणाझुसणाझुसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स पाओवगयस्स कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तएत्ति कटु एवं संपेहेइ २ कल्लं पाउप्पभायाए २ जाव जलंते जेणेव समणं ३ पज्जुवासइ, खंदयाइ | समणे ३ खंदयं अणगारं एवं वयासी-से नूर्ण तव खंदया! पुवरत्तावरत्त जाव जागरमाणस्स इमे एयारूवे अब्भत्थिए जाव समुपजित्था एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं उरालेणं १५ सुके ८ तं चेव जाव कालं अणवकंखमाणस्स विहरित्तएत्तिकटु एवं संपेहेइ २ जेणेव मम अंतिए तेणेव हव्वमागए, से नूणं खंदया! अढे समढे ?, हंता अत्थि, अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध, तएणं से खंदए अणगारे समणेणं ३ अब्भणुण्णाए समाणे हट्ठतु जाव हियए उट्टाए उढेइ २ समणं ३ तिखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, जाव नमंसित्ता सयमेव पंच महब्बयाई आरुहेइ २ समणे समणीओ य खामेइ स० तहारूवेहि थेरेहिं कडाईहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं सणियं २ दुरुहइ २ मेहघणसंनिगाम देवसंनिवार्य पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ२ उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ २ दम्भसंथारयं संथरेइ २ पुरच्छाभिमुहे संपलियंकनिसन्ने करयलपरिग्गहियं दसनह सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासीनमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं, जाव संपत्ताणं, नमोत्थु णं समणस्स३ जाव संपाविउकामस्स, वंदामि णं भगवंतं तत्थ गयं इह गएत्तिकटु वंदइ २ एवं वयासी-पुस्विपि णं मए समणस्स ३ अंते सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जावजीवाए इयाणिपि य णं | समणस्स३ अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जावजीवाए जाव मिच्छादसणसल्लं पञ्चक्खामि जावजीवाए, सव्वं असणं पाणं खाइमं साइमं चउविहंपि आहारं पच्चक्खामि जावजीवाए, जंपि य इमं सरीरं इ8 पंतं पियं जाव फुसंतुत्तिकटु एयंपिणं चरि| मेहिं ऊसासनीसासेहि वोसिरामित्तिकटु संलेहणाझुमणाझुसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरइ। । ||२६०॥ For Private And Personal Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri f in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaikki un Gyanmandit स्कन्दकमुनिवृत्तं तएणं से खंदए अ०२ समणस्स३ तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं इक्कारस अंगाई अहिजित्ता बहुपडिपुनाई दुवालस चैत्य श्री वासाइं सामनपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसित्ता सढि भत्ताई अणसणाए छेइत्ता आलोइयपडिकंते समाधर्म० संघा- हिपत्ते आणुपुबीए कालगए । तएणं ते थेरा भगवंतो खंदयं अणगारं कालगयं जाणित्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति चारविधौ । २ पत्तचीवराणि गेण्हंति २ विउलाओ पव्वयाओ सणियं २ पच्चोरुहंति २ जेणेव समणे ३ तेणेव उवागच्छंति २ समणं ३ वंदंति ॥२६॥ नमसंति २ एवं वयासी-एवं खलु भो देवाणुप्पियाणं अंतेवासी खंदए नाम अणगारे पगइमद्दए पगइउवसंते पगईय पयणुकोह माणमायलोहे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे भद्दए विणीए, से णं देवाणुप्पिएहिं अब्भणुनाए स० जाव खामित्ता अम्हेहिं सद्धिं विउलं पव्वयं जाव कालगए, इमे य से आयारभंडए । भंतेत्ति भयवं गोयमे समणं ३ वंदइ नमसइ २ एवं क्यासी-एवं खलु भो देवाणुप्पियाणं अंतेवासी खंदए णामं अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए कहिं उबवणे ?, गोयमा ! समणे३ भयवं गोयम एवं | वयासी-एवं खलु गोयमा! मम अंतेवासी खंदए नाम अणगारे पगइभद्दए जाव से गंमए अब्भणुनाए जाव कालं किच्चा अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णे, तत्थ अत्थेगइयाणं देवाणं बाबीसं सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता,(खंदयस्सविसा चेव)से णं भंते ! खंदए ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं ठिईक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिइहि कहिं उववजिहिइ ?, गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिंई बुज्झिहिइ मुचिहिइ परिनिव्वाइहि सव्वदुक्खाणमंतं करेहिइ । एवं स्कंदकसाधुपुंगवपुरः श्रीगौतमेनोदिताः, श्रुत्वाऽर्हद्गुरुतादिसर्वपदवीः श्रीवर्धमानप्रभोः। बुध्यध्धं भविकाः! स्फुटं तदरिहद्विम्बेष्वपि स्थापनाचार्यत्वादि तथा क्षमाश्रमणकेर्यादेविधिं तत्पुरः।।१।। इति स्कंदमुनिकथा । इति श्रीमदर्हतामाचार्यत्वादिविधौ स्कन्धमुनिसंबन्धः। (प्रत्यन्तरे त्वियं व्याख्यैवं- mpanAARAANUAARAMBIR BHIT HamarMammaNDamIIPORIENTIN astPalaHANI दमुनिकथा । इति श्री भाविकाः! स्फुटं तदरिहवि स्कंदकसाधुपुंगवपुरः ॥२६१॥ For Private And Personal Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mabai pin Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kail r un Gyanmandit श्रीदे चैत्य० श्री र्यापथिकीव्याख्या melam धर्म संघाचारविधौ | ॥२६२॥ A नायुपेतत्वाद् अवसाद (तप्सितं ) कुरुतेत्यर्थः, एतेन गुपायाव सज्झायं वा करित्तए जा एवं साक्षात्समासन्नभावाचार्यसद्भावे क्षमाश्रमणपूर्व जिनविम्बाद्यन्यथाऽऽपृच्छय ईर्यापथिकी प्रतिक्रमणीया,न तु तद्विनाऽपि,यदा- गमः-"गुरुविरहंमि उठवणा गुरूवएसोवदंसणत्थं तु | जिणविरहमि य जिणबिंबसेवणामंतणं सहलं ॥१॥" तत्र 'एवं च्चिय सवावस्सयाई आपुच्छिऊण कजाई । जाणावियमामंतणवयणाओ जेण सव्वेसु॥१॥त्ति वचनात् गुर्वादेशानुज्ञाद्यर्थ प्रथमं प्रस्तावनासूत्रमिदं-इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इरियावहियं पडिकमामि ?, इच्छं,” अस्यार्थः-इच्छाकारेण प्रस्तावौचित्यादिवेदितयोत्पन्नतदादेशदानादीच्छया, न तु बलाभियोगोपरोधादिनाऽपीत्यर्थः, इत्थं चैव धर्मावस्थितेः, उक्तं च-"आणाबलामिओगो निग्गंथाणं न कप्पए काउं । इच्छा पउंजियवा सेहे रायणिएवि तहा ॥१॥" 'संदिशत' आदेशं दत्त, भगवन् !-विशिष्टनानाद्युपेतत्वाद् अवसरादिज्ञानविद् , ईर्यापथिकी विराधनामिति शेषः । कर्मावकारणां वा क्रियां प्रतिकामामीति निवर्तयामि १, अत्र गुरुवचः-प्रतिकामत, (तवेप्सितं) कुरुतेत्यर्थः, एतेन गुर्वादेशं विना न कल्पते किमपि कर्तुमित्यावेदितं, यदाह-"भिक्खू इच्छिज्जा विहारभूमि वा वियारभूमि वा अन्नं वा जं किंचि पओयणं जाव सज्झायं वा करित्तए जागरियं वा जागरित्तए काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं वा पवत्तिं वा गणिं वागणहरं वा गणावच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, क्षेत्रप्रतिलेखनादि, कप्पइ से आपुच्छिउं आयरियं ८ जाव विहरित्तए, इच्छामिणं भंते! तुम्भेणं अन्भणुण्णाए समाणे विहारभूमि वा जाव ठाणं ठाइत्तए, ते य से वियरिजा एवण्हं कप्पइ, से किमाहु भंते ! आयरिया पञ्चवायं जाणंति", तथा "नियगमइविगप्पियचिंतिएण." गाहा, एवं गुरुवचः श्रुत्वा स्मृत्वा ततः शिष्यः इच्छं-ईप्सितमेतदत्र भवद्वचनमित्युक्त्वा अस्खलितादिगुणोपेतमीर्यापथिकीसूत्रं पठति 'इच्छामि पडिकमिउ'मित्यादि, इच्छामि-अमिलपामि, अने For Private And Personal पुण्णाए समाणे बिहारभूमि वाण" गाहा, एवं गुरुवचः श्रुत्वामित्यादि, इच्छामि-अनि HINDome ill२६२॥ Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org kuri Gyanmandie | ईर्यापथिकीव्याख्या Acharya Shri Kai श्रीदे न निजवाछयाउंगीकृत्य धर्मः क्रियमाणो बहुफलः स्यादित्यावेदितं, किं कर्तुमित्याह-'प्रतिक्रमितुं' निवर्तितुं, इयं स्वाभ्युपचैत्यश्री गमार्था द्विपदा प्रथमा संपत् १, कुत इत्यारेकायां द्वितीयां कार्यसंपदमाह-ईरियावहियाए विराहणाए २ ईर्या-गमनं धर्मसंघा-1 चारविधौ | तयुक्तः पन्था ईर्यापथस्तत्र भवा ईर्यापथिकी विराधना-जंतुबाधा मार्गे गच्छता या काचिजीवविराधनेत्यर्थस्तस्याः, एतावता ॥२६३।। ईर्यापथनिमित्ताया एव विराधनायाः प्रतिक्रमणं स्यात्, न त्वशेषसाधुसामाचार्यतिक्रमादिरूपायाः अतोऽन्यथा व्याख्या-र्यापथो-ध्यानमौनादिकं भिक्षुवत'मिति वचनादीर्यापथः-साध्वाचारस्तत्र भवा ईर्यापथिकी विराधना-तदतिक्रमादिरूपा,नद्युत्तरणादिशयनादिप्रस्रवणपरिष्ठापनादि, किं?, तस्याः प्रतिक्रमितुमिच्छामि इति योगः, यदागमः-"गमणागमणविहारे सुत्ते वा सुमिणदंसणे राओ । नावानइसंतारे इरियावहियापडिकमणं ॥१॥" इत्यादि, इति निमित्तसंपत् ३, कथं वा एवं विराधनेति तृतीयां | सामान्येन हेतुसंपदमाह-'गमणागमणे' गमने च स्थातुं चिकीर्षादिना समाश्रितस्थानादन्यत्र हस्तशतात् परतः, तत्र च स्वाध्यायाद्यर्थ कश्चित्कालं स्थास्नुना ईपिथिकी प्रतिक्रमणीया, यदागमः-'नियआलयाओ गमणं अन्नत्थ उ सुत्तपोरिसिनिमित्तं । होइ विहारो तत्थवि पणवीसं हुंति ऊसासा ॥१॥" तथा 'भत्ते पाणेव सयणासणे य अरिहंतसमणसिजासु । उच्चारे पासवणे पणवीसं | हुंति ऊसासा ॥१॥' आगमने च पुनरन्यतो व्यावृत्य स्वाश्रितस्थाने तत्रापीर्यापथिकी प्रतिक्रम्यते, अथवा गमने च पथि नद्या| दिषु च, यदाह-"हत्थसयादागतुं गंतुं च मुहुत्तगं जहिं चिट्टे | पंथे वा भत्ते वा नइसंतरणे पडिकमई ॥१॥" अतिष्ठन्नपि, नावाए उत्तरि वहमाई तह नईण एमेव । संतारेण चलेन व गंतुं पणवीस ऊसासा ॥१॥ आगमने च हस्तशतमध्येऽपीत्यर्थः भणितं च-"पडिलेहिउं पमन्जिय भत्तं पाणं च चोसिरेऊण । वसही कयवरमेव तु नियमेण पडिक्कमे साहू ॥११॥" उच्चारं पासवर्ण PANE ॥२६३॥ MINI For Private And Personal Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥२६४॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaisuri Gyanmandir भूमीए वोसिरितु उवउत्तो । वोसिरिऊण य तत्तो इरियावहियं पडिकमड़ || २ || वोसिरइ मत्तगे जड़ तो न पडिक्कमइ मत्तगं जो उ। साहू परिट्ठवे नियमेण पडिक्कमे सो उ || ३ || एवमन्यथापि जलादेश्चतुरंगुलमाने रिल्लकेऽपि जाते, अगमने वा शयनादिनाऽऽगताबोधे कुबोधे वा, नञः कुत्सार्थत्वादितस्ततो भ्रमणे चेत्येवमन्यत्रापि, यद्वा गमनामने तत्रैव प्रवृत्तिनिवृत्यात्मके नवरमौत्सुक्यादिना बहिर्यापथिकी प्रतिक्रम्यैवागमने यथागमं इह च गमनागमने च गमनागमने चेति विगृह्येकशेषे गमनागमनं तत्र, एतावता च दिनमध्येऽनेकविषयत्वात् अनियत बहुवारप्रतिक्रमणीया ईर्यापथिकी प्रातः प्रदोषसंध्यानियमितैकैकवारकरणीयं रात्रिकं दैवसिकमितिनामकं प्रतिक्रमणं न भवति इत्यावेदितं, अन्यच्च - देवसिकरात्रि के सामायिकादिपडध्ययनात्मके व्रतातिचारविशोधिविषये च 'पडिकमणेणं वयच्छिड्डाई पिहेइति वचनात् ईर्यापथिकी तु केवलाऽपि पृथकक्षुतस्कन्धरूपा प्रायः प्राणातिपातविराधनानिवृत्तिविषया च, किंच-सर्वत्र सर्वदा सर्वेषामपि धर्मानुष्ठानानामादौ यथैषा प्रतिक्रम्यते न तथा दैवसिकादिप्रतिक्रमणमित्यादि बृहद्विशेषात् सर्वथा पृथग् अनुष्ठानादुभयसंध्यावश्यकरणीयतालब्धयथार्थनामदेवसिकादिप्रतिक्रमणस्वरूपेयमिति वक्तुमपि न युज्यते, किं पुनः तत्स्थाने कर्तुं १, दैवसिकादिनाम्ना क्वचिदपि आगमेऽनुपलभ्यमानत्वाच्च, विचारणीयमिदं मध्यस्थदृष्टया सम्यग् बहुश्रुतैरभिनिवेशादिविरहेण । एषा सामान्या हेतुसंपत् तृतीया । अथ गमनादौ सत्यपि कथं विराधनेति चतुर्थी विशेषहेतुसंपदमाह - 'पाणकमणे बीकमणे हरियकमणे ओसाउत्तिंगपणगदगमट्टिमकडासंताणासंकमणे' इह सदा (जीव )गतिक्रमाद्यात्मविराधनानां जीवविराधना गरीयसी, जीवाश्च त्रसाः प्रायो लोकेऽपि प्रतीता एव, यतः कृमिकीटपतङ्गादीन् दृष्ट्वा वक्तारो भवन्ति-जन्तुकोऽयं गच्छतु वराकः, त्वं मा मारय, पापं स्यात्, मारय चैनं वैरिणमित्यादि, न चैत्रमाहुः - पञ्चभूतात्मकः For Private And Personal ईर्यापथिकीव्याख्या ॥२६४॥ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदें० चैत्य० श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥२६५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas पिण्डोऽयं गच्छत्वित्यादि, इति बालादीनामपि त्रसेषु सुखेन जीवत्वप्रतिपत्तेः पश्चानुपूर्व्या प्रथमं त्रसविराधनार्थमाह- पाणकमण उच्छ्रासायुरिन्द्रिययोगबलरूपाः प्राणाः यथायोग्यं सन्त्येषां ते प्राणाः प्राणिनो वा जीवाः एकेन्द्रियाणामग्रे भणिष्यमाणत्वादत्र प्राणिन कृमिकीटपतङ्गमण्डू किकाद्याः द्वीन्द्रियादयो ज्ञेयाः तेषामाक्रमणे वक्ष्यमाणअभिहयइत्यादिप्रकारेण पीडने या विराधना-प्रतिकूलाचरणा तस्याः प्रतिक्रमितुमिच्छामीति योगः, तथा बीजानां - सर्वकणकुलिकामिज्झादिरूपाणां पक्कापक्कशुष्कार्द्रविरूढादिभेदभिन्नानां स्वपरकायादिशस्त्रानुपहतानामिति शेषः आक्रमणे प्राग्वत्, तथा हरितानां - कन्दमूलत्व काष्ठपत्र पल्लव किसलयाङ्कुरपुष्पफलटणाद्यशेषवनस्पतीनां छिन्नादिभेदानामशत्रोपहतानां, आक्रमणे पूर्ववत्, आभ्यां च सर्वबीजानां शेषवनस्पतीनाञ्च जीवत्वमाह, प्रागुक्तबालगोपालाङ्गनादिप्रतिपन्नजीवत्वत्रसकायवत्, तथा चाचारांगसूत्रम् - " से बेमि इमपि जाइधम्मयं एयपि जाइ - धम्मयं इमपि आहारमंतयं एयंपि आहारमंतयं इमपि अनिययं एयंपि अनिययं इमपि चओवचइयं एयंपि चओवचइयं इमं पि विपरिणामयं एयंपि विपरिणामयं " अत्र गाथा - "इह जाइवुडिधम्मं चित्तं छिन्नं मिलाइ आहारं । अनियय चओवचइयं विषरिणमी तसतणुवर्णगं ।। १ ।। " प्रयोगश्चात्र सचेतना वनस्पतयः आहारादिसद्भावे वृद्धिमच्चात् बालकशरीरवत्, इह य आहा| रादिसद्भावे वृद्धिमान् स सचेतनो यथा बालकशरीरं, वृद्धिमन्तथ आहारादिसद्भावे ( वनस्पतयः ) अतः सचेतनाः, इतसात्मका वनस्पतयः सर्वत्वगपनयने मरणात् गर्दभवत्, एवं स्वापादिधर्मत्वादित्यादि, आहुच – “ आगमश्चोपपत्तिश्व, संपूर्ण बुद्धिलक्षणम् । अतीन्द्रियाणामर्थानां सद्भावः प्रतिपत्तये || १ || आगमो ट्र्याप्तवचनमाप्तं दोषक्षयाद् विदुः। वीतरागोऽनृतं वाक्यं, न ब्रूयात्वसंभवात् || २ || रागाद्वा द्वेषाद्वा मोहाद्वा वाक्यमुच्यते ह्यनृतम् । यस्य तु नैते दोषास्तस्यानृतकारणं किं स्यात् ? For Private And Personal Gyanmandir ईर्यापथिकीव्याख्या ॥२६५॥ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥२६६॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailuri Gyanmandir || ३ ||" अथ गमनादौ प्रायस्तेजोवाय्वोरविषयत्वात् तौ विमुच्य जलादिविराधनार्थमाह-- "ओसे "त्यादि, अवश्यायः - त्रेहः ठार इति यः प्रसिद्धः, प्रायः प्रातः प्रदोषनिशासु सदाऽऽपाती, यदागमः - " से नूणं भंते! सया समियं सुहुमे सिणेहकाये पवडइ ?, हंता पवडइ, से नूणं भंते! किं उद्धं पवडइ अहे पवडइ तिरिये पवडइ ?, गोयमा ! उद्धं पवडइ अहोवि पवडइ तिरियंपि पवडई "। सूक्ष्मात्कायोपलक्षणत्वादस्य, पणगेतिशब्दयोगाद्वा हिमकरगधूमरी हरतणुकाद्यपि ज्ञेयं, उक्तं च- " से किं तं सिनेहसुहुमे १, सिनेहसुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा - करगा हरतणुए" एतत्संक्रमणे इति योगः, एवमग्रेऽपि पृथग् पृथग् योज्यम्, एतद्ग्रहणं च बहुजीवाश्रयत्वेन सूक्ष्मोऽप्यप्कायः परिहार्य इति ज्ञापनार्थं, यदाह - जत्थ जलं तत्थ वणं जत्थ वणं तत्थ निच्छिओ तेऊ । तेऊवाऊ सहगया तसा य पच्चखया चेव || १ ||” तथा “उदये पुढवी तस सेवालकं" यथा बह्वाश्रयत्वात् सूक्ष्माप्कायः परिहार्यः तथा अन्येऽपि जीवा ज्ञेया इत्याह- 'उत्तिंगा' जीवावस्थितिस्थानानि, तत्पञ्चकं यथा, यदाह-से किं तं लेणसुहुमे ?, लेणसुहुमे | पंचविहे पण्णत्ते, कीटिकानगरादीनि दरकान्निश्रित्य पट्टिकादौ स्फुटिकाराजी वेलुकांतः संचरजीवकृता दाली रेखेत्यर्थः गर्दभा| कृतिजीवकृता वृत्तगर्त्तका ये भूयाः इति प्रसिद्धाः, सघुणकाष्ठादि च यद्वा पुनरावृत्या पणगत्ति पंचवर्णा फुल्लिः सेवालः सलिलमध्ये सेमलमित्यादि । दकं भौमान्तरिक्षाप्कायः, शेषजलं स्वपरकायादिशस्त्रानुपहतं एतेनास्यापि सजीवत्वमुक्तं यदागमः“आऊ चित्तमंतमकूखाया अनेकजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणयेणं” “अन्येऽप्याहु:- "कुसुंमकुंकुमांभोवन्निचितं सूक्ष्मजंतुभिः । न दृढेनापि वस्त्रेण, शक्यं शोधयितुं जलम् || १ ||" युक्तिश्च सात्मकं जलं भूमिखातस्वाभाविक संभवात् दर्दुखत्, तथा महीति कृष्णपीतरक्तश्वेतादिभेदात् अशस्त्रोपहता रजोरेणुकर्करशीलातुवरीलवणोपलाद्यशेषपृथ्वी कायोपलक्षणमिदं, एकग्रहणे तजातीयग्रहण For Private And Personal ईर्यापथिकी व्याख्या ॥२६६॥ Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥२६७॥ n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kail | मिति न्यायात् अनेनासावपि सजीवेत्याह, यदागमः- “पुढवी चित्तमं तमक्खाया अनेकजीवा पुढोसत्ता अनत्थ सत्थपरिणयेणं” युक्तिश्व - सात्मका विद्रुमलवणोपलादयः पृथ्वीविकाराः समानजातीयाङ्कुरोत्पत्तिप्रत्युपलम्भात् देवदत्तार्शोमांसाङ्कुरवत्, अथवा दगमट्टित्ति क्षेत्रक्षाराद्यनुपहतभूमौ चिक्खिल्लः तत्र सङ्क्रमणे, एवं वणमट्टि तसमहि वणोदग तसोद गेत्यादयः शेषा नव द्विकत्रिकादिसंयोगाज्ञातव्याः, तदुपलक्षणत्वादस्य, भणितं च- "तेऊवाउविहूणा एवं सेसावि सङ्घसंजोगा । नच्चा विराहणदुगं वअंतो जयसु उवउत्तो ॥ १ ॥ इह तेजोवाय्वोरग्रहणं गमनागमनादौ प्रायोऽसंभवात्, संभवे वा दावानलनद्यादौ खल्पविषयत्वेन । विवक्षणात्, एगेंदियेत्यत्र | जातौ ग्रहीष्यमाणत्वाच्च, एतयोश्चैवं सात्मकत्वं-सात्मकोऽग्निः यथायोग्याहारोपादानेन वृद्धिविशेषतद्विकारवच्वात् पुरुषवत्, आहारेण वृद्धिदर्शनाद् बालकवत्, तथा सात्मकः पवनः पराप्रेरितनिप्रततिर्यग्गमनात् गोवत्, अन्यैरप्येषां षण्णां सात्मकत्वमभिधाय विराधनापरिहार उक्तः, तथा च भागवते पुराणे - "पृथिव्यामप्यहं पार्थ !, वायावग्नौ जलेऽप्यहम् । वनस्पत्तिगतश्चाहं सर्वभूतगतोऽप्यहम् || १ || यो मां सर्वगतं ज्ञात्वा, नैव हिंस्येत् कदाचन । तस्याहं न प्रणश्यामि न चासौ मे प्रणश्यति ||२||” संयोगात्र| सान्ता इहेति पुनस्तद्विशेषानाश्रियाह- मर्कटः लूताकोलिक इत्येकोऽर्थः निंबेलिकारव्यो वृत्तपिपीलिकादि, लालाजंतूपलक्षणमिदं, सन्तानस्तल्लालाजालकं, प्राकृतत्वात् स्त्रीलिंगः, यद्वा सन्तानः- परस्परानुलग्ना कृमिकीटिकादिश्रेणिः, हारीति याः प्रसिद्धा, यदुक्तं आचारांग चूर्णो- "अहवा संताणओ पिपीलियाईणं"। तेषु संक्रमणे चंक्रमणे या विराधना तस्याः प्रतिक्रमितुमिच्छामीति विशे|पहेतु संपत् ४ । अथ कियन्तः शृंगग्राहिकया कथयितुं शक्यन्ते इति पञ्चमीं संग्रहसंपदमाह - 'जे मे जीवा विराहिया' किं बहुना ? - ये केचनान्येऽपि सूक्ष्मा बादराः त्रसाः स्थावरा ज्ञाता अज्ञाता लक्ष्या अलक्ष्या मे-मया इहाऽऽत्मनिर्देशेन स्वकृतफल For Private And Personal uri Gyanmandir ईर्यापथिकीव्याख्या ॥२६७॥ Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandit र्यापथिकीव्याख्या IRANI A श्रीदे || भोजिनः प्राणिनः इति ज्ञात्वा स्वकृतपरिज्ञया आलोच्यमानं दुष्कृतं विफलीभवतीति ज्ञापयति, उक्तं च-"कयपावोवि मणुस्सो चैत्यश्री आलोइअ निंदिउं गुरुसगासे । होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरुव भारवहो॥१॥"जीवा-उच्छासायुष्कादिप्राणभाजिनः बिराधिताःधर्म०संघा प्रतिकूलमाचरिताः आभोगानाभोगसहसाकारादिना दुःखे स्थापिताः, एतस्या विराधनायाः प्रतिक्रमितुमिच्छामीति पूर्वेण योगः, चारविधौ ॥ ॥२६८॥ तस्या वा दुष्कृतं मिथ्या मे भवत्वित्युत्तरेण वा संबंधः, उक्तश्च-'आभोगमणाभोगे सहसाकारे य पडिक्कमणं" इति सर्वसंग्रहसंपत् ५। |एताः प्रतिक्रमणश्रुतस्कन्धे पञ्च मूलसंपदः , तिस्रश्च उक्तानुक्तार्थसंपत्संग्राहितया चूलिकासंपदः, उभयमीलनेवाष्टौ संपदः। अभाणि च "अन्भुवगमो निमित्तं २ओहे ३अरहेउ ४संगहे ५पंच । जीवविराहणपडिक्कमणभेयओ तिन्नि चूलाए॥१॥"तेच के जीवा इति जीवभेदप्रतिपादकां मूलतः षष्ठीसंपदमाह-एगिंदया बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचिंदिया एकमेव स्पर्शनलक्षणमिन्द्रियं येषां ते एकेन्द्रियाः-पृथव्यप्तेजोवायुसाधारणप्रत्येकवनस्पतयः, एवं स्पर्शनरसननामेन्द्रियद्वयोपेता द्वीन्द्रियाः कृमिशंखदयः, स्पर्शनरसनघाणाख्येन्द्रियत्रयान्वितास्त्रीन्द्रियाः-मत्कुणयूकापिपीलिकादयः, स्पर्शनरसघ्राणचक्षूरूपेन्द्रियचतुष्टययुक्ताश्चतुन्द्रियाः-कोलिकवृश्चिकनिहालादयः,स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्रसंज्ञेन्द्रियपञ्चकोपेताःपश्चेन्द्रियाः-मत्स्यपशुपक्षिसर्पनरामरादयः,एषा जीवभेदसंपत्६,अमी एकेन्द्रियादयः कथं कथं विराधिता इति विराधनाप्रकारप्रख्यापिका सप्तमी संपदमाह-"अभिहया वत्तिया लेसिया संघाइया संघट्टिया परियाविया किलामिया उद्दविया ठाणाओठाणं संकामिया जीवियाओ ववरोविया" संफेडघातवदास्फालिताः पश्चात्कृता वा प्रतिस्खलिता वा प्रतिक्षिप्ता वेत्यादि, अभिहता पर्तिता अंकवत् पुञ्जपुञ्जीकृता अक्षरवद्वा इतस्ततोन्यस्ताः कर्पासादिवत् गाढाक्रान्तावा कंटकादिवद् वा, धूल्यादिना निरुद्धा वृत्तिकृताः, श्लेषिता भूम्यादौ For Private And Personal HA ॥२६८॥ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M www.kcbatirth.org n Gyanmandie ईर्यापथि कीव्याख्या श्रीदे चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥२६९॥ a in Aradhana Kendra Acharya Shri Kai लगिता ईषत् पिष्टा वा अन्योऽन्यगात्रादिभिर्वा लिङ्गनकादिवत् मीलिताः, संघातिताः घृतेलिकादिवत् पिण्डीकृताः, लोलावटीकृता | इत्यर्थः निरुद्धाद्यर्थ स्वमल्लादिवद् वा मिथो गात्रैर्मीलिताः, संघट्टिता मनाक् पीडिताः, यदागमः-"जरजजरो य थेरो तरुणाणं | जमलपाणिमुच्छहओ। जारिस वेयण देहे एगिदियघट्टणे तय ॥१॥" परितापिताः सर्वाङ्गं पीडिताः कृताल्पपीडावा, क्लमिताः कृतगाढपीडा ग्लानि प्रापिता,जीवितावशेषीकृता यावत् अवद्राविताः,उड्डाविता वा-उत्त्रासिता भयात् केचित् उत्कर्णीभूय स्थिताः केचिच्च पलायन्ते स्म केचिच्च पिण्डीकाचटनादिना मुछिता इव निश्चेष्टाः संजाताः इत्यर्थः, स्थानात् स्थानं स्थानादपस्थानं वा संक्रामिता वा-उत्पत्तिस्थित्यादिना ईप्सितत्वेन स्वस्थानात् शुभस्थानाद्वा अनुत्पत्यादिना अनाश्रितत्वेन परस्थानं सञ्चारिता-नीताः स्थानभ्रष्टा कृताः, रोलविया भोलविया इत्येकोऽर्थः 'जीवितात् व्यपरोपिताः' प्राणेभ्य उत्खनिता भ्रंशिता मारिता इत्यर्थः, एषा विराधना ७, ततः किमित्याह-'तस्स मिच्छामिदुकडं' पूर्व यस्य विराधनाप्रकारस्य आलोचना कृता तस्याधुना मिच्छामिदुक्कडं, | देमि इति शेषः,तस्स पडिकमामि इत्युक्तं भवति, आह च-"वोसिरिय पडिकमइ तस्स मिच्छुकडं देइ" यद्वा तस्य-उक्तार्थस्य | विराधनाप्रकारस्य मिथ्यावशात् मूढत्वेन यन्मे दुष्कृतं-दुष्टु अयतनया विधानं तत्पुनरावृत्या दुष्कृतं-तदुत्थं पापं मिथ्या-विफलं भवत्वित्यर्थः, एषा विराधनाप्रकारसंपत् । इयं च अस्या गाथातः एवं व्याख्याता-"जीवा विराहिया पंचमी उ पंचिंदिया भवे छट्ठी । मिच्छामि दुक्कडं सत्तमीऽद्यमी ठामि उस्सग्गं ॥१॥" अन्ये तु ववरोविया इत्यन्तां सप्तमी मिच्छामिदुक्कडमित्यष्टमीमाहुः, भवति च सम्यग् मिथ्यादुष्कृतकर्तुर्विक्रमकुमारस्येवाशुभकर्मक्षयात् समीहितफलावाप्तिः, तथा चागमे-"जया ऊण किचि अन्नाणमोहपमाइयाइदोसेणं सहसा एगिदियाईणं संघद्याइ कयं हविजा तया य पच्छा हा हा हा दुठुकयमम्हेहि घणराग MINSAR | ॥२६९।। For Private And Personal Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsrun Gyanmandit ईर्यापथिकीव्याख्या श्रीदे० चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ ॥२७॥ दोसमोहमिच्छत्तअन्नाणधेहिं अदिट्ठपरलोयपच्चवायेहिं कूरकम्मनिग्धिणेहिंति परमसंवेगमावण्णे सुपरिप्फुडं आलोइत्ता निंदित्ता गरहित्ता पायच्छित्तमणुचरित्ता नीसल्ले अनाउलचित्ते असुहकम्मक्खयट्ठा किंचि आयहियं चिइवंदणाइ अणुट्टिजा तया तयढे चेव उवउत्ते से भविजा, तया य सेयतया तस्स णं परमेगग्गचित्तसमाही हवेजा, जया परतया चेव सव्वजगजीवपाणभूयसताणं अहिडफलसंपत्ती हविजा" अत्र चैवं निरुक्तोऽर्थः-मित्ति मिउमद्दवत्ते छत्तिय दोसाण छायणे होइ । मित्ति य मेराइ ठिओ | दुत्ति दुगुंछामि अप्पाणं ॥१॥ कत्ति कई मे पावं दुत्तिय देवेमि तं उसमेणं । एसो मिच्छाउक्कडपयक्खरत्थो समासेणं ॥२॥) अथ ईर्यापथिकीसूत्रं व्याख्यायते, तच्चेदम्-'इच्छामी'त्यादि, इच्छामि-अभिलपामि प्रतिक्रमितुं-निवर्तितुं, कुतः१-इरियावहियाए १ विराहणाए २, ईर्या-गमनं तद्युक्तः पंथाः ईर्यापथः तत्र भवा ईर्यापथिकी विराधना-जंतुबाधा,मार्गे गच्छतां विराधनेत्यर्थः, तस्याः, असिंश्च व्याख्याने ईर्यापथनिमित्ताया एव विराधनायाः प्रतिक्रमणं स्यात् , न तु शयनादेरुत्थितस्य, अतोऽन्यथा व्याख्यातत्र ईर्यापथः-साध्वाचारः यदाह-"र्यापथो ध्यानमौनादिकं भिक्षुवतं" तत्र भवा ईर्यापथिकी विरोधना नद्युत्तरणशयनादिमिः प्राणातिपातादिका साधाचारातिक्रमरूपा तस्याः प्रतिक्रमितुं इच्छामीति योगः, व सति विराधना ?-गमणागमणे, गमने च स्वस्थानादन्यत्र आगमने च पुनः तत्रैव, तत्रापि कथं विराधना ?-पाणकमणे इत्यादि, प्राणिनो द्वीन्द्रियादयः तेषामाक्रमणं-संघट्टनं एवं बीयकमणे०, वीजानि-शाल्यादीनि हरियक्कमणे-हरितानि-शेषवनस्पतयः, आभ्यां च सर्ववीजानां शेषवनस्पतीनां च जीवत्वमाह, प्रयोगश्चात्र-सचेतना वनस्पतयः आहारादिसद्भावे वृद्धिमच्चाद्वालकशरीरवत् , यो य आहारसद्भावे वृद्धिमान् स स सचेतनो यथा बालकशरीरं, वृद्धिमंतश्चैते आहारसद्भावे अतः सचेतना इति, इतश्च-सात्मका वनस्पतयः सर्वत्वगपहरणे मरणात् गर्दभवत् , ॥२७०॥ For Private And Personal Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaille sur Gyanmandie श्रीदे चैत्य श्री ईर्यापथि। कीव्याख्या P तथा ओसेत्यादि अवश्यायः-त्रेहः,अस्य च ग्रहणं बहुजीवाश्रयत्वेन सूक्ष्मोऽप्यपकायः परिहार्य इति ख्यापनार्थ,यदाह-जत्थ जलं तत्थ वणं जत्थ वणं तत्थ निच्छओ तेऊ । तेऊ वाऊ सहगया तसा य पञ्चक्खया चेव ॥१॥ उदए पुढवितसवालकंटयेत्ति, उत्तिंगा-भूमौ धर्म० संघा- वृत्तविवरकारिणो गर्दभाकारा जीवाः कीटिकानगराणि वा, हरतनुकान्यन्ये,पनकः-पंचवर्णा फुल्लिः,तथा दगमृत्तिका अनुपहतभूमौ चारविधौ । चिक्खिल्लः, यद्वोदकमप्कायो मृतिका पृथ्वीकायः, एतेनानयोरपि सजीवत्वमुक्तं, तथाहि-सात्मका विद्गुमलवणोपलादयः पृथि॥२७१|| वीविकाराः समानजातीयांकुरोत्पत्त्युपलंभादेवदत्तार्शोमांसांकुरवत् , तथा सात्मकं जलं भूमिखातस्वाभाविकसंभवात् दर्दुरवत् ,मर्कट संतानः-कोलिकजालं यद्वा संतान:-कीटिकासमुदायः, यदुक्तमाचारांगचूर्णी-"अहवा संताणओ पिवीलियाईणं"ति, तेषां संक्रमणे-आक्रमणे,एतावता च पृथ्वीजलवनस्पतित्रसेति चतुर्जीवनिकायविराधनोक्ता,न तु तेजोवातयोः, तयोर्गमनाममने प्रायेणा संभवात् , एतयोस्त्वेवं सात्मकत्वं-सात्मकोऽग्निर्यथायोग्याहारोपादानेन वृद्धि विशेषतद्विकारबचात् , पुरुषवत् , आहारेण वृद्धि| दर्शनात् बालकवत् ,तथा सात्मकः पवनः पराप्रेरिततिर्यगनियतगमनात् गोवदिति, अन्यैरप्येषां षण्णां सात्मकतमभिधाय विराधना| परिहार उक्तः, यथा-पृथिव्यामप्यहं पार्थ!, वायावग्नौ जलेऽप्यहम् । वनस्पतिगतश्चाहं, सर्वभूतगतोऽप्यहम् ॥१॥ यो मां सर्वगतं ज्ञात्वा, न च हिंस्यात् कदाचन । तस्याहं न प्रणश्यामि, स च मे न प्रणश्यति ॥ २॥" इति, अथ कियन्त्यः शृंगग्राहिकया कथयितुं शक्यते इत्याह-'जे मे जीवा विराहिया', किंबहुना?-सर्वथा ये केचन मया जीवा विराधिता:-दुःखे स्थापिताः, ते च के इत्याह-'एगिदिये'त्यादि,एकमेव स्पर्शनलक्षणमिंद्रियं येषां ते एकेन्द्रियाः-पृथिव्यादयः एवं स्पर्शनरसनोपेता द्वीन्द्रियाः| शंखादयः स्पर्शनरसनघ्राणयुक्तास्त्रीन्द्रियाः-कीटिकादयः स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुस्समन्विताश्चतुरिन्द्रियाः-वृश्चिकादयः स्पर्शनरसन e elipHINTHI ARTHPANJALA ॥२७१॥ MORA For Private And Personal Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri MAHA n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandit श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥२७२।। SurAIN TR AINS मी वा स्थानात स्वारस्य 'मिच्छा मे दुयो होइ । मेति । mainamainamaiINummaNI . घ्राणचक्षुःश्रोत्रसहिताः पंचेन्द्रियास्तिर्यग्नरामरादयः, विराधनाप्रकारमाह-'अभिहये' त्यादि, अभिमुखमागच्छंतो हताः-पादेन विक्रम सेनकथा ताडिताः उत्क्षिप्य क्षिप्ता वा अभिहताः,वर्तिताः-पुंजीकृता धूल्यादिना वा स्थगिता गाढाक्रांता वा श्लेषिता-भूम्यादौ लगिता ईषत् | पिष्टा वा अन्योऽन्यालिंगनं वा कारिताः संघातिता-मिथो गात्रैः पिंडीकृताः पुंजीकृता वा संघट्टिता-मनाक् स्पृष्टाः परितापि ताः-सर्वतः पीडिता ईषत् कृतपीडा वा क्लामिताः-कृतबहुपीडाः ग्लानि प्रापिता जीवितावशेषाः कृता इत्यर्थः, अपद्राविता| उत्रासिताः कृतमूर्छा वा स्थानात् स्थानान्तरं संक्रामिताः-स्वस्थानात् परस्थानं नीताः, जीविताम्यपरोपिताः मारिता इत्यर्थः, 'तस्स'त्ति अभिहयेत्यादिविराधनाप्रकारस्य 'मिच्छा मे दुक्कडंति मिथ्या मे दुष्कृतं, एतदुष्कृतं मिथ्या-विफलं मे भवत्वित्यर्थः, अस्य चैतन्निरुक्तं-"मित्ति मिउमद्दवत्ते छत्तिय दोसाण छायणे होइ । मेत्ति य मेराइ ठिो दुत्ति दुगुंछामि अप्पाणं ॥१॥ कत्ति | कडं मे पावं डत्तिय डेवेमि तं उवसमेणं । एसो मिच्छादुक्कडपयक्खरत्थो समासेणं ॥ २॥" सम्यगमिथ्यादुष्कृतकर्तुर्विक्रमसेनकुमारस्येव शाम्येत अशुभं कर्म, तत्कथा चैवं अस्थि सयलामरहियं सुरपुरमिव सुरपुरं जईकलियं । तत्थासि नमिरनरवर चक्को चक्काउहो राया ॥१॥ कमलदलच्छी | लच्छीव नदीणया नम्मया पिया तस्स । विक्कमसेणो पुत्तो सो उण जूएण रमइ सया ॥ २॥ मजपसंगी वेसाइ परिगओ मंसभक्खणपयट्टो । पारिद्धीलुद्धबुद्धी विडंबए परकलत्ताई ॥३॥ मित्तिं काऊण तलवरेण निसि पट्टणं मुसावेइ । गुत्तनरेहिं नाओ वुत्तो एस नरवइणा ॥४॥ तत्तो निडालतडघडियकुडिलफुडमिउडिभासुरमुहेण । रन्ना भणिओ कुमरो रे पाव ! अणज निल्लज ॥५॥ दुजाय मुक्कमजाय मायापिउलोयजणियदुक्खोहो । ओसर ओसर लहु मह दिहिपहाओ महापाव ! ॥६॥ इय तजिओ|||२७२॥ HIMPAINRITERAPHARMATIRITAMARINAMITHAMPHIBIte ammmmmunita For Private And Personal Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ShriMW Aradhana Kendra www.kobatirth.org ri yanmandie विक्रमसेनकथा श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥२७॥ Acharya Shri Kalaha स पिउणा लहु नयरा निग्गओ अमरिसेण | पत्तो कमेण एगं पलिं पल्लीवई तत्थ ॥ ७॥ तस्सागिइउन्भडभणियवयणरयणाइरंजिओ वाद । तं पल्लिवई भणइ भो इह चिट्ठसु सया सुहिओ |८|| कइयावि हरिणवइणा विणासिए तंमि पल्लिनाहमि। मिल्लज| णपणयचलणो जाओ सो चेव तत्थ पहू ॥९॥ अणवरयसत्तसंघायघायउप्पजमाणगुरुहरिसो। थीवालवुड़वीससियपमुहजणवं| चणप्पवणो ॥१०॥ पयईइच्चिय निस्संसचिट्ठओ पावत्थबुद्धी य । किं पृण तबिहबहुपावपयइजणजणियसंतोसो ॥ ११ ॥ इत्तो कुसुमपुराओ वेसमणो नाम सत्थवाहवरो । उग्घोसणपुई चलिय विविहजणनिवहसंजुतो ॥१२॥ बहुपणियपुन्नखरकरहवसहगुरुगंतिवेसरसमूहो । नियजीवियं व सत्थं महया जत्तेण रक्खतो ॥१३॥ कयतोसो बहुमुणिणा मुणिवइणा सिरिसमंतभद्देण । कुंभपुरं पइ चलिओ तं पल्लिपएसमणुपत्तो ॥१४ ॥ अह उड्डामरतडिदंडडंवरो जलहरो जलभरेण । सत्वत्थ पसरिएणं करेइ जलहिं व महिवलयं ॥ १५॥ तो मुणिवइणा मुणिणो भणिया भो नियह महियलं एयं । पयपवहनवयअंकुरपूरतससहससं| किन्नं ॥१६।। एयारिसंमि काले समणाणं नेव विहरि जुत्तं । तो इहयं पल्लीए उवस्सयं किंपि जाएह ॥१७॥ इय जा कर्हिति गुरुणो ता विक्कमसेणसंतिया धाडी । पडिया तीइ खणेणवि सत्थो गलहत्थिओ सवो ॥१८|| नवरं विक्कमसेणस्स वडणाभिहपहाणपुरिसेण । पिउणो गुरुत्ति काउं मिल्लेहिं रक्खिया गुरुणो॥१९॥ नियनियमल्लिपएसे मुक्का एगमि समुचियगिहमि । मुणिवइणा सह मुणिणो ठंति तहिं विविहतवनिरया ॥२०॥ सिरिमंसमंतभद्दस्स सरिणो सुक्कझाणजोगेण । अन्नदिणे उप्पन्न संपुग्नं केवलं नाणं ॥२१|| अह सन्निहियसुरेहिं पहयाओं दुंदुहीउ गयणमि । पणवनकुसुमबुट्ठी मुक्का झणझणिरभसलउला ॥२२॥ सुरसुंदरीहिं नट्ट पय|ट्टियं तयणु पल्लिनाहेण | पुट्ठा पल्लिनरा किमिणति तेऽवि तं कन्जममुणंता॥२३।। अन्नुन्नमुहनिरिक्षणवावारा जाव किंपि नहु विति। ॥२७३॥ PATRA For Private And Personal Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा - 'चारविधौ ॥२७४॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaijasbeggarsuri Gyanmandir ता वद्धणेण वृत्तं एगमणो सुणसु नित्रपुत्त ! ||२४|| पुब्बुल्लूरियसत्थस्स मज्झओ इय ठिया इमे मुणिणो । एसिं गुरुणो जायं | संपर किर केवलं नाणं ||२५|| तम्महिमकए एए देवा इत्थागया सदेवीया । तो विम्हयरसभरिओ पल्लिवई तत्थ लहु पत्तो ॥ २६ ॥ दठ्ठे मुणिंदचंदं वदनकिरणेहिं तममवहरन्तं । तह अमरोहं सोहंतकुंडलं परमसुंदेरं ॥ २७ ॥ तो नमिय केवलिमुणिं निवतणओ पुच्छए कह मुणिंद ! | गम्मइ एरिस अमरेसु तहय नरति रिक्खजोणीसु १ || २८ || "आह गुरू निवनंदण ! जियरक्खासच्चवयणबंभेहिं । मंसाइवजणेण य गम्मद एयारिसमुरे ।। २९ ।। पयईइ तणुकसाओ दाणरओ सीलसंजमविहूणो । मज्झिमगुणेहिं जुत्तो जीवो अजे नरजम्मं ||३०|| उम्मग्गदेसओ मग्गनासओ गूढहिययमाइलो । सढसीलो य ससलो तिरिआउं बंधए जीवो ॥३१॥ जी| ववहणेण पलभक्खणेण पारिद्विपमुहवसणेहिं । परधणहरणाईहि य गम्मइ जीवेहिं नरएम् ||३२||" इय सुणिय गुरुगिरं गुरूऽणुतावपरिगयमणों भणइ कुमरो । गंतवं केवलपावकारिणा मे धुत्रं नरए ||३३|| नत्थिहु कोऽवि उवाओ जेणं एयाउ पावपडला| ओ । अप्पाणं सोधाविय पडेमि नहु नरयांमि ॥ ३४ ॥ " गुरुराह मुण उवायं कुमार ! तं देसु पावखवणकए । नियदुकडेसु मिच्छामि दुक्कडं अपुणकरणेण ||३५|| जहा विसं कुट्टगयं मंतमूलविसारया । विजा हणंति मंतेहिं, तो तं हवइ निविसं ॥ १ ॥ एवं अट्ठविहं कम्मं, रागद्दोससमज्जियं । आलोयंतो य निंदतो, खिप्पं दणइ मुसावओ || २ || आवस्सएण एएण सावओ जहवि बहुरओ होइ । आलोयंतो य निंदतो खिप्पं हणइ सुसावओ || ३ || तथाहि - पाणिवहालिय चोरियमेहुणधणमुच्छरयणिभत्ते हि । कुमर ! विहियंमि पावे तं मिच्छादुकडं देसु || ३६ || महमंसभक्खणेणं सुराइपाणेण सत्तवसणेहिं । कुमर ! | विहियंमि पावे तं मिच्छादुक्कडं देसु ||३७|| गुरुकोवमाणमायालो भेहिं रागदोसमोहेहिं । कुमर ! विहियंमि पावे For Private And Personal विक्रमसेनकथा ॥२७४॥ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri n Aradhana Kendra www.kobatirth.org in Gyanmandie विक्रमसेनकथा श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघा. चारविधौ ।।२७५॥ Acharya Shri Kailable तं मिच्छादुकडं देसु ॥ ३८॥ जिणदिट्ठनाणदंसणचरणगुणाइसु पओसकरणेहिं । कुमर ! विहियंमि पावे तं | मिच्छादुक्कडं देसु ॥३९॥ साहूण साहुणीण य धम्मिय लोयाण धम्मभंसेण । कुमर! विहियंमि पावे तं मिच्छादुक्कडं देसु ॥४०॥ मिच्छत्तं अहिगरणं अन्नंपि हु जं कयं तए पावं । असुहमणवयतणूहिं सव्वत्थवि तत्य निवतणय ! ॥४१॥ हा दुटु कयं हा दुटु कारियं अणुमयंपि या दुटु । इय पच्छायावपरो तं मिच्छादुक्कडं देसु ॥४२॥ इय मिच्छादुक्कडसुद्धसुगुरुपयडियविसल्लसोहीए । तरणिपहाए व तमं तुह पावं खिजिही नूणं ॥४३॥ किंच-मिच्छादुक्कडदाणमि विहियचित्तस्स पाणिणो सययं । सग्गापवग्गलच्छीवि दुल्लहा होइ नहु भद्द ! ॥४४॥ यदागमः-"जस्स य इच्छाकारो मिच्छाकारो य परिचिया दोवि। तइओ य तहक्कारो न दुल्लहा सोगई तस्स ॥४५॥" तत्तो अतुच्छपच्छायावो गुरुणा जहा जमाइ8 । तह तं सत्वं काउं कुमरो गिण्हेई गिहिधम्म ।। ४६ ॥ वजह सत्तवि वसणे नियसीमाए करावइ अमारिं । अणवरयं केवलिणो सुस्मसाए दिणे गमइ ॥४७॥ वित्ते वासारत्ते अन्नत्थ विहारउज्जुए गुरुणो। कित्तियमित्तपि भुवं अणुवइउं भणइ दीणमणो।। ४८ ।। मुणिपहु नहु पुत्वभवे पुण्णमखंड मए कयं नूणं । जं होउ तुम्ह जोगो पुणवि विओगो इमो होइ ॥४९॥ यतः-"महद्भिः पापात्मा विरलमपि संगं न लभते,वियोगं प्राप्नोति क्षणमपि न तैः पुण्यसहितः। अतः किंचित्पापं सुकृतमपि शंके स्वविषये, भवद्भिः संसर्गः कथमथ कथं चैष विरहः ॥५०॥"ता अंसुपुण्णन| यणो पुणो पुणो नमिय सूरिणो मुणिणो । पच्छामुहं नियंतो कुमरो पत्तो सए थाणे ॥५१॥ निचं पसंसए धम्मवद्धणं वद्धणं नियपहाणं । परोवयारकारितणेण जणयं व तं नियइ ॥५२॥ पुवकयदुक्कए सरिय सरिय मिच्छामिदुक्कडं देह । निदेइ निययच स पाणिणो सययं । सगाव राणपहाए व तमं तुह पावं खिज्जियापरो त मिच्छादुक्कडं देसु ImAUTAPTARIHARAN HIRAAMARIANISMILIARRANIHARIHARASHRAIPAtta ॥२७५॥ For Private And Personal Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri A lan Aradhana Kendra |EE www.kobatirth.org Acharya Shrika t ur Gyanmandie विक्रम सेनकथा JA श्रीदे रियं गरिहइ धिजीवियं पुत्विं ॥ ५३ ॥ विचिगिच्छइ निचअकिच्चकारिणं वेरिणं पिव कुसंगं । खिसइ पल्लिनिवासं स मणोरहे चैत्य श्री-IN कुणइ इय हियए ॥ ५४ ॥ कइया सुतित्थपडिमा मुणिणो संनाणिणो अहं नमिहं ? । मंदरगिरिसिहरसिरं कयाइ धर्म संघा जिणमंदिरं दच्छं ॥५५॥ कुसमयमइनिम्महणं जिणपवयणमहं कया निसामिस्सं ?। कइया पूइस्सं धम्मकाचारविधौ रिलोयं वरालोयं ॥५६॥ इय फुरियसुद्धभावो जिणधम्मे ठविय निययपरिवारं । जा गमइ दिणे कुमरो ता पत्ता तत्थ पिउपु॥२७६॥ रिसा ॥५७।। ते वेत्तिणा विमुक्का काउं उचियं कुमारमिणमाहु । रायसुय! तुज्झ चरियं चित्तकरं सुणिय देवेण ॥५८॥ तुम्हाणयणनिमित्तं अम्हे इह पेसिया तओ तुब्भे । लहु एह निययनयरे नीईए कुणइ नियरजं ॥५९॥ तो बद्धणमंतेणं पल्लीं सुत्थं करेवि | कुमरवरो । जणयपुरिसेहिं सहिओ सपरियणो सुरपुरं पत्तो ॥६०॥ पण ओ पिउचलणेसुं गाढं आलिंगिऊण हरिसेण । भणिओ पिउणा मिउणा वयणेणं वच्छ ! तुह कुसलं ॥ ६१ ॥ अम्हच्चिय पुग्नेहिं जाओसि तमिण्हि एव धम्मपरो । अइदुक्करं च पयईई रंभणं ते कयं किहणु१॥६२ ॥ यतः-उन्भडसडाकडप्पो हरीवि रंभई करीवि गुरुदप्पो। गुरुएहिवि नहु तीरइ पयईए संभणं काउं ॥६३॥ आह कुमारो तायप्पसायओ कुसलमस्थि मज्झ सया । गुरुपायपसाएणं पयईए रुंभणं जायं ॥६॥ पिउणा पुट्ठो सवं नियवुत्तंतं कहेइ जा कुमरो । ता सिरिसमंतभद्दा सूरिवरिट्ठा तहिं पत्ता ॥६५॥ अह चक्काउहराया विक्कमसेणो अमंदआणंदो। सारपरिवारसहिया पत्ता गुरुचरणनमणकरा ॥६६॥ हरिसंसुपुन्ननयणो वियसियवयणो पसन्नमणकरणो। भत्तिबहुमाणसारो थुणेइ गुरुणो इय कुमारो।। ६७॥ तथाहि-"संकल्पोऽपि न कल्पतल्पजतरी चिंता न चिंतामणौ, कामः कोऽपि न कामकुंभविषयो नो चित्रकृच्चित्रकः। मन्ये कांचनपुरुषोऽपि पुरुषो नो कामधेनौ मनो, यत्ते श्री Unamaina HINAapalan m Dire SalmamiARITTomantiMINEmail aintentSTHMAmmmmel mapaliHITRINA TARNIUPRETI NAULA ॥२७६॥ TIONALISAPAL For Private And Personal Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org N वृत्तं श्रीदे० चैत्यश्री - धर्म संघाचारविधी ॥२७७॥ SummaraIN Acharya Shri Kait s Gyanmandie मुनिराजपावकमलद्वंद्वं मया वंदितम् ॥६८॥ अंहःसंहतिमाशु लुपति धृति धत्ते विधत्ते शिवं, चारित्रं चिनुते || विक्रमसेननिहंति कुमति भिन्ते भृशं दुर्गतिम् । पुष्णात्यद्धतशुद्धबुद्धिमहिमाः श्रीधर्मकीर्तिप्रभाः,श्रीवाचंयमराज! भव्यभविनां पादप्रसादस्तव ।। ६९॥" तयणु-निवकुमरप्पमुहाए सयलपरिसाइ गरुयहरिसाए । दुंदुहिउद्दामसरं इय धम्मकहं कहइ भयवं ॥७०॥ "भो भो भवण्णवे इह निमजमाणाण सबसचाणं । नित्थारणे समत्थो धम्मुच्चियऽतुच्छचोहित्थो ॥७१।। सो| दुविहो मुणिगिहिधम्मभेयओ तत्थ समणधम्मो य । सावज्जकजवजणनिरवजासेवणपहाणो ।। ७२ ॥ इच्छा मिच्छा तहकार आवस्सहिया तहय निसीहियया । पडिपुच्छ छंदण निमंतणा य उवसंपया दसमी ॥७३॥ इय सामायारिपरो (प्र० तहकारो आवस्सिया य निसीहिया । आपुच्छणा य पडिपुच्छ छंदणा य निमंतणा ॥७॥ उवसंपया य संमंगामकुलाइसुममत्तपरिहारो। अप्पडिबंधविहारो आहारोवहिपमुहसंसुद्धी॥७५॥ गुरुभत्तीसवसत्ती निढेंकियनिश्चकिच्चअणुरत्ती । अत्यमियविसयतत्ती सव्वत्थाणुचियविणियत्ती ॥७६ ।। बालाईपडियरणं उवसग्गपरीसहाण निरुसहणं । एमाइ समणधम्मो सिग्घं सिवलच्छिसंजणगो ।। ७७॥ एयअसताणं पुण सत्ताणं बीयओ दुवालसहा । होइ गिहीणं धम्मो कमेण सिवदायगो सोऽवि ॥७८॥" तो संवेगोवगओ पिउणोऽणुन्नविय कहवि पनजं । केवलनाणिसमीवे विक्कमसेणो पवजेइ ॥७९॥ गुरुणा सह विहरंतो पंचविहायारहारकयसोहो । मिच्छामि दुक्कडं मुहु दितो थोवेऽवि अवराहे ॥८०॥ निन्भग्गमयणसेणो विक्कमसेणो मुणी समयविहिणा । परिचइऊणं पाणे पाणयकप्पे सुरो जाओ॥८॥तो चविउं महिलाए पुरीइ नमिणो निवस्स संजाओ। पुत्तो जसोहराए पियाइ सो वारिसेणुत्ति ।।८।। बहुनिवइतणयसहिओ सिरि ||२७७॥ For Private And Personal Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य० श्री - धर्म० संघा - चारविधौ ॥२७८॥ ain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailiguri Gyanmandir पास जिनिंदस्स पास गहियवओ । होउं गणहरदेवो सिद्धिं पत्तो घुयकिलेसो || ८२ ॥ एवं विक्रमसेनवृत्तमतुलं संचित्य चित्ते चिरं, पश्चात्तापहुताशभासुरशिखानिर्दग्धपापद्रुमाः । निःशेषार्जितकर्म्मजालहतये मोक्षैकबद्धस्पृहा, मिथ्यादुष्कृत सावधानमनसो भन्या ! भवंतु स्फुटम् ||८३|| इति मिध्यादुष्कृते विक्रमसेनकुमारदृष्टांतः ॥ २६ ॥ एवमालोचितप्रतिक्रांतः कायोत्सर्गप्रायश्चित्तेन पुनरात्मविशुद्ध्यर्थं प्रतिक्रमणविशेषरूपां अष्टमी संपदमाह-तस्स उत्तरीकरणेणं ( पायच्छित्तकरणेणं) विसोहीकरणेणं विसल्लीकरणेणं पावाणं कम्माणं निग्धायणट्टाए ठामि काउस्सग्गं ॥ तस्य- आलोचनाप्रतिक्रमणादिनाऽशुद्धातिचारस्योतरीकरणादिना ठामि काउस्सग्गमिति योगः, यद्वा तस्सत्ति प्राकृतत्वात्तेषां गमनादिप्रभवानां पापानां कर्म्मणां निर्घातनार्थं कायोत्सर्गं करोमीति योगः, यद्भाष्यं-तेसिं गमागमाईसमुत्थपावाण घायणनिमित्तं । उस्सगे ठामि अहं उत्तरकरणाइऊहिं ॥ १ ॥ (३८३) तत्रानुत्तरस्योत्तरस्य करणं पुनः संस्कारद्वारेणोपरिकरणं शलाकादिशोधितदेहत्रणादेः पिंडीबंधप्रलेपादिवत् उत्तरीकरणं तेन हेतुना, तदर्थमित्यर्थः, 'अवराहसल्लपभवो भाववणो होइ नायव्वो' इति वचनात् तस्यालोचनाप्रतिक्रमणादिना शोधितस्य विराधनाप्रकाराख्यभावव्रणस्य संरोहणार्थं प्रलेपादिकल्पं ध्यानमौनांगचेष्टानिवृत्यादि करोमि १, एतच्च प्रायः प्रायश्चित्तकरणेन कार्यकारि स्यात्, प्रायश्चित्तं च यथा द्रव्यत्रणे कृतेऽपि प्रलेपादौ लावणिकाद्युद्भाव्यदोपप्रसंगभीत्या रक्तचंदननीलितिलकादि क्रियते तथाऽत्राप्यनवस्थाद्यनुत्पत्तये पंचविंशतिउच्छ्रासादिना कायोत्सर्गाख्यं पंचमं प्रायश्चित्तं, भणितं च- "तस्स य पायच्छित्तं जम्म | ग्गविऊ गुरू उवइति । तं तं आयरियव्वं अणवत्थपसंगभीएणं ॥ १ ॥ इकेण कयमकअं० गाहा, तथा - करोत्यादौ तावत् सघृणहृदयः किंचिदशुभं, द्वितीयं सापेक्षो विमृशति कार्यं च कुरुते । तृतीयं निश्शंको विगतघृणमन्यत् प्रकुरुते ततः पापाभ्यासात् सततम For Private And Personal तस्स उत्तरीव्याख्या ॥। २७८ ।। Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥२७९॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kasuri Gyanmandir शुभेषु रमते || १ || निरुक्तोऽर्थस्त्वयं-पावं छिंदइ जम्हा पायच्छित्तं तु भन्नए तेण । पाएण वावि चित्तं जीवमओ वावि सोहेइ ||| १|| तेण पायच्छित्तं आर्यत्वात् कल्काद्यंबुना प्रक्षालनात् भूतभाविपूत्यादिशुद्धिः क्रियते, तथा अत्रापि निंदागर्हादिनाऽतिचारमलक्षालनतः आत्मनो नैर्मल्यकरणं तेन हेतुना, न विशोधिः कृताऽपि विशल्यत्वं विना किंचिदित्याह - विसोहीकरणेणं विसल्लीकरणेणं, यथा दीपांकूरकिलीकापातादि विना धाव्यमानमपि व्रणादि न प्रसरन् निरोद्धुं शक्यते तथेदमपि भावतः परिकुंचितं सनिदानमिथ्याभावं वाऽऽलोचनानिंदादिविधानं पूत्यादिकल्पदुर्लभबोधित्वादि कृत्वा दीर्घसंसारतया प्रसरदुर्निवार्यमित्यविशल्यस्य विशल्यस्य करणं विशल्यीकरणं, मायादिशल्यानुद्भृत्येत्यर्थः, उक्तं च- "ता उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणब्भवलयाणं । मिच्छादंसणसलं मायासल्लं नियाणं च ॥ १ ॥ ॥" तेन हेतुना किं ? - पावेत्यादि, पापानां अशुभानां अशुभबंधहेतूनां कर्म्मणां प्राणाक्रमणामिहननादिक्रियालक्षणानां तत्कार्याणां वा ज्ञानावरणीयादीनां निर्वातनार्थ - विनिवृत्यर्थं चिलतिपुत्रवत्तिष्ठामि, धातूनामनेकार्थत्वात् करोमि कायोत्सर्ग, 'ठिओ निसन्नो निवन्नो वे 'ति वचनादूर्ध्वस्थित्याद्यासनविशेषं, उक्तं च- “प्रलंबित भुजद्वंद्व मूर्ध्वस्थस्यासितस्य वा । स्थानं कायानपेक्षं यत्, कायोत्सर्गः प्रकीर्तितः ॥ | १ || बागंगव्यापारनिषेधेनाशुभकर्म्मच्छित्यै दुष्टचेष्टितस्य कायस्य त्यागं करोमीत्यर्थः, यदाह"काउस्सग्गे जह सुट्ठियस्स भजंति अंगमंगाई । इअ भिजंति सुविहिया अट्ठविहं कम्मसंघायं || १|| जह करगओ निकिंतर दारुं इंतो पुणोवि वच्चतो । इअ कत्तंति सुविहिया काउस्सग्गेण कम्माई ||२|| पूर्वमूचितचिलातिपुत्र चरित्रमिदम् - रायगिहे भद्दा घणसिट्ठिस्सासि सुंसुमा दुहिया । पणसुयअणुजाया तीइ बालहारो चिलाइसुओ || १ || बहवे बहुवेराई जणे कुणतो घणेण सोणयरा । नयराइआउ निकासिओ गओ सीहगुहपछि ||२|| तहिं पलिवइंमि मए जाओ पल्लीवई कयाइ तओ । For Private And Personal तस्स उत्तरीव्याख्या ॥२७९॥ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shob a Aradhana Kendra www.kobalirth.org Acharya Shri Ka s ur Gyanmandit श्रीदे चैत्य० श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥२८॥ चोरे भणइ जह धणो रायगिहे अत्थि भूरिधणो । ३॥ धृया य सुंसुमा से सा मज्झ धणं तुहंति वुत्तु गओ। तेहिं समं रायगिहे चिलाति| रायगिहे सयललच्छीणं ॥४॥ ओसोवणिं पउंजिय जा पविसइ धणगिहे धणो ताव । पणसुअसहिओ नट्ठो मुट्ठो से तकरहिं घरो ।।५।। पुत्रकथा तह करगइ निचिसो नित्तिसो गहियकमलनिचिसो। तं सुंसुमं चिलाइव लाउ गओ भणिय इय सई॥६॥जो अन्नमाउदुद्धं पाउमणो एउ सो इहं सुहडो। सधणं हरिय धणसुअं एसो गच्छइ चिलाइसुओ ॥७॥ अह आणेह सुयं मे हरिअधणं वोत्ति भणिय पुररक्खे । पुत्तेहिं तलवरेहि य सह तप्पुट्ठीइ जाइ धणो |८|इय पीयं इय वुत्थं इय भुत्तं सुत्तमित्ति मणिरेहिं । पइएहिं लहुनीया चोरासनं तलवरा से ॥९।। अह हण अह हण अह गिण्ह २ सोउं तु तग्गिरं चोरा । मिल्हिा धणं पलाणा सबस्सवि वल्लहं जी॥१०॥ तं गहिय धणं विउलं बलिआ आरक्खगा तओ झत्ति । जे होइ सिद्धकजो सचोऽविहु अन्नहामइओ॥११॥ तरुणो लया थलं जलमबंपिहु सुसुमामयं पसं। पीयकणउच्च कणयं चलिओ पुरओ धणो ससुओ॥१२॥ अह आसनंमि धणे मा हवउ इमा इमस्सवित्ति बुद्धीए। छित्तु सिरं से गहिअ गओ निअंतो चिलाइसुओ ॥१३॥ तो सुसुमाकबंधं दठ्ठ धणो विलवए बहुं ससुओ।नयणंजलीहिं दितो तीइ जलं वंऽसुपूरेण ॥१४॥ हा सुअणवच्छले ! वच्छि! उच्छवं मोइओ सुवच्छल्लो। काहं नियवच्छीए इअ वंछा | आसि मह वच्छे ! ।।१५॥ हा जइ न दुठु बुद्धिं अकरिस्सं ता कयाइ बहुधणओ। निअपुत्तिममोइस्सं ता कह जायत्ति अमई मे | ॥१६॥ इअ सोगसंकुकीलिअहिययो सो झूरिउं पडिनियत्तो। पत्तोरणं जंजिणगिहं व बहुसावयाइण्णं ॥१७॥ चिंतइ सव्वस्सखओ कह? कह व मया सुया य पाणपिआ। कह आवया व ससुअस्स मह हा हा विलसि विहिणो ॥१८॥ सो असमत्थुण्हतण्हामज्झण्हिअतावताविओ पत्तो। संतविअपणग्गितवो तो रायगिहं व रायगिह ॥ १९ ॥ अह तत्थ समोसरि वीरजिणं नमिय AL॥२८॥ PAHARI For Private And Personal Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥२८१ ॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विन्नवे घणो । पहू ! केण कम्मणा एअमावयं सुंसुमा पत्ता १ ||२०|| भणइ पहू आसि पुरे खिइप्पइडुंमि जष्णदेवदिओ । पंडिअमाणी निंदइ जिणं च जिणसासणं च बहुं ||२१|| अह तं पबोहखुड्डो असहंतो सुत्थियायरियसीसो । गुरुणा वारिजंतो वि उवडिओ तस्स वाएण ||२२|| जो जेण जिप्पई सो तस्सीसो ठाविउं इय पइन्नं । भण किंचित्ति अखुड्डेण तो खुड्डेणं भणइ इमो ||२३|| नत्थि धुवं सव्वन्नू इति पक्षः, पमाणपंचगअगोयरत्तेण इति हेतुः । जं जं पमाअगिज्झं तं तमस्तं इति व्याप्तिः खपुष्पं व इति दृष्टांतः ||२५|| उबलब्भइ न पमाहिं सव्वन्नू इत्युपनयः, तेण नत्थि नूणं सो इति अवसायः । अथ दोषोद्धारः - एस अदूसो पक्खो लोयविरुद्धाइरहिओ जं || २५ || हेऊवि असिद्धाईरहिओ देसाइअंतरेवि जओ । नत्थि परो सम्बन्नू इति नासिद्ध:, तहऽणेण न सिज्झइ विरुद्धं इति न विरुद्धः ||२६|| तह तस्स नत्थि सत्ता अविय सदा अणुवलब्भमाणस्स इति नानैकांतिकः । सच्चमयच्चिय | वित्थरदिहंतोवणय अवसाया ||२७|| तह नहु पञ्चवक्खेणं उवलब्भइ इत्थ कोइ सव्वन्नू । जं सद्दरूवरसगंधफासरूत्रो न इट्ठो सो ॥२८॥ ता सद्देण न सुब्बइ भंभाइसरुव्व सो उ चक्खहिं । तह रूवव्व न दीसह आसाइजइ नहु रसुव्व ||२९|| गंधव्त्र न जिंघिजर चेहजड़ नेव धूलिफरिसुव्व । इअ पच्चक्खअविसओ अणुमाणेणवि न सो गिज्झो ||३०|| जं हेउभावओ तं नत्थि अ सव्त्रनुसाहगो | हेऊ । धुत्तकयन्नन्नविरुद्धआगमो साहइ न एअं ।। ३१ ।। कह सारिस्सअभावा पहवह उनमावि एयसिद्धिकए। अत्थापत्तीवि न अत्थसाहगा गुण असणओ || ३२ || इअ पंचपमाईओ जिणो अभावप्यमाणविसयगओ । तदभावे किं जिणसासणंति चिल्लय ! पइण्णा मे ||३३|| बुल्लेइ चिल्लओ जन्नदेव ! इह किं तया न सवन्नू । दिट्ठो उय अन्नेहिवि ? जड़ भवया तो नणु सदोसो ||३४|| जं माउविवाहपियामहादि दिट्ठा न ते न ते जाया इति विरुद्धः । तह दूरदेससंठिअगिरिनगराई न किं संति ? || ३५ ॥ इय सवन्नूवि Acharya Shri Kasuri Gyanmandir For Private And Personal चिलातिपुत्रकथा ॥२८१ ॥ Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Matin Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥२८२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash Gyanmandir सया अस्थि विदेहेषु इत्यनैकांतिको अह न दिट्ठो सो । अन्नेहिवि नणु एवं विऊ तुमं चैव सङ्घन्नू ||३६|| इय तुह सज्झनिरासे निरस्सिआ चैव तुह पइण्णाई । तो सिद्धो सधन्नू अत्थि धुवं तत्थ पञ्चक्खो ||३७|| अणुमेओवि इमो जं अणुभावो जोइसोसहाईणं । पयडो न होइ तं विणु जह धूमधयं विणा धूमो ||३८|| इय जुत्तिजुत्तमुत्तो दिओ जिओ गाहिओ य जइणवयं । खुड्डेण तओ सासणदेवीइ थिरीकओ एवं ||३९|| भो भो मुक्ख ! पञ्चक्खसक्खिणिं दुक्खलक्खखयकरणिं । पत्तं दिक्खमसङ्काणनाणाओ माऽवमाणेसु ||४०|| तो जाओ चरणरओ सो तवनिरओवि विहियजाइमओ । निंदर वत्थंगमलं सुदुच्चया पुवपगई जं ॥४१॥ | वंजुलसंगा व अही नगरा नगरासया जणा जाया । सग्गापवग्गजायाणुलग्गया तस्स संसग्गा ||४२ || अह जन्म देवदइया अणुरइया |पुण गिहागमणहेउं । बहुजोगकम्मुणा तस्स कम्मणं देइ पारणए ||४३|| जिज्झतो कम्मणकम्मुणाऽमुणा किण्हपक्ख इव चंदो । स मओ मुणी लहु गओ पढमदिवं तरणिबिंबं व ॥ ४४ ॥ तो चइअ जनदेवो देवो जाइमयऽतुच्छमललेवो । तुह दासि चिलाइसुओ जाओ एसो बहुअदोसो || ४५ ।। तह जन्नदेवमरणा गयसरणा सिरिविधायसंसरणा । जायाऽणुतावओ सा जाया से संजई जाया ॥ ४६ ॥ णालोअप डिकंता का कत्ताऽऽदिमं दिवं पत्ता । तवसो नत्थि दुरप्पं दुस्सज्झं नय दुरारज्यं ॥ ४७॥ तो सा चइअ सुहम्मा चयसुहमा इमा तुमं जाया । भजाए भद्दाए धूआ धूआखिलसुहोहा || ४८ || अह रिसिवहुत्थपावेण तेण पत्ता इमं नणु अवत्थं । धण ! तुह दुहिया दुहिया जाया भमिही भवकडिल्ले ||४९ || इय सोउ भउबग्गो गहिअ जिणंते वयं सुवेरग्गा । अच्छर विहियसुरंगे सो धणसाहू गओ सग्गे ॥५०॥ अह सो चिलाइपुतो मुहुं मुहुं सुसुमामुहं पस्सं । अमुणिअपरिस्समो जान जाइ दक्खिणदिसं कंपि ॥ ५१ ॥ वा पिच्छिय विच्छायं तं उद्विग्गो मणंमि सज्झायं । छायातरुं व पिच्छइ संतावहरं मुणिं मग्गे ||१२|| भणइ य धम्मं For Private And Personal चिलातिपुत्रकथा ॥२८२॥ Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri d श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥२८३॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailanuri Gyanmandir थोबक्खरेहिं मह कहसु अन्नहा तुवि । सकिवाणेण किवाणेण छिंदिहं सिरमिमीएव्व ॥ ५३ ॥ सालिब बोहिबीयं खित्तं इह पल्लले व वडहि । इय मुणिभणियं उवसमविवेयसंवर इह विहेया ।। ५४ ।। चारणमुणी लहु गओ गयणे गरुडुब्ब तो इमस्स इमे । मंतु परावर्त्ततस्सुल्लसिओ इमो अत्थो ।। ५५ ।। कोहाईण उवसमो स्वममउ पजव विमुत्तिओ किच्चो । दवचयणं विवेओ स हवउ असिए य सिरचाया ।। ५६ ।। मणकरणाण निवित्तिं विसएहिं संवरो करेमि तया । इय चिंतिरो अविचलं काउस्सग्गा इमो ठाइ ||५७|| सरुहिरमंगंति तओ व कीडीहिं कथं घुणेहिं दारुव । कयपात्रकम्मघाओ दिवं गओ सङ्घदुदिणं सो || ५८|| जो तिहिं पएहिं सम्मं समभिगओ संजमं समभिरूढो । उवसमविवेयसंवर चिलाइपुत्तं नम॑सामि ।। ५९ ।। अहिसरिया पाएहिं सोणियगंघेण जस्स कीडीओ। खाईति उत्तमंगं तं दुक्करकारयं वंदे ||६० || धीरो चिलाइपुतो मूइंगलिआहिं चालिणिव्व कओ । जो तहवि खजमाणो | पडिवनो उत्तमं अहं ॥ ६१ ॥ अड्डाइजेहिं राईदियेहिं पत्तं चिलाइपुत्तेण । देविंदामरभवणं अच्छरगणसंकुलं रम्मं ॥ ६२ ॥ श्रुत्वा चिलातेस्तनयस्य कायोत्सर्गादहो पातककर्म्मघातम् । कुर्वीत चेष्टाभिभवस्वरूपे, द्विधापि तस्मिन् करणाय यत्नम् ॥६३॥ इति कायोत्सर्गात् पापनिर्घाते चिला तिपुत्र चरित्रम् ॥ किं सर्वथा कायोत्सर्ग करोति १, नेत्याह- 'अन्नत्थ ऊससिएण' मित्यादि, एतदर्थचैत्यस्तवदण्डकेऽभिधास्यते, 'इरिउस्सग्गपमाणं पणवीसुस्तासे' ति वचनात् पंचविंशत्युच्छ्रासपूरणार्थं 'चंदेसु निम्मलयरा' इत्यंतं चतुर्विंशतिस्तवं मनसा विचित्य नमो अरिहंताणंति भणन् कायोत्सर्गं पारयित्वा पुनश्चतुर्विंशतिस्तवं सकलं वाचोचरति । एवमीर्यापथिकीं प्रतिक्रम्य क्षमाश्रमणं दवा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं ?, इच्छंति भणित्वा नमस्कारांच शक्रस्तवादिभिश्चैत्यवंदनां विधत्ते, यदागमः - "सक्कत्थयाइयं चेहयवंदणं ति, तत्र शक्रस्तवसंपदासंख्यां आद्यपदानि च प्रतिपिपादयिषुराह For Private And Personal चिलातिपुत्रकथा ॥२८३॥ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य० श्री - धर्म० संघाचारविधौ ॥२८४॥ ain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashuri Gyanmandir दु१ति२ चउरे पण४पण५पण६ दु७चउ८ति९ पयसक्कत्थयसंपयाइपया । नमु१ आइगर पुरिसो ३ लोग ४ अभय ५ धम्म६८५७ जिण८ सव्यं ९ ॥ ३४ ॥ अक्षरघटना प्रागुक्तानुसारेण कार्या, भावार्थः पुनरयम् - नमोत्थुणं अरहंताणमित्याद्यपदा पदद्वयप्रमाणा प्रथमा संपत् १, आइगराणमित्यादिपदत्रयनिष्पन्ना द्वितीया २ पुरिसुत्तमाणमित्यादिपदचतुष्कचचिता तृतीया ३ लोगुत्तमाणमित्यादिपंचपदपूरिता | चतुर्थी ४ अभयदयाणमित्यादिपदपंचकपरिमाणा पंचमी ५ धम्मदयाणमित्यादिपदपंचकनिष्पन्ना पष्ठी६ अप्पडितेत्यादिपदद्वयनिर्वर्तिता सप्तमी ७ जिणाणमित्यादिपदचतुष्टयघटिताऽष्टमी ८ सव्वन्नूणमित्याद्यालापकत्रिकपरिकलिता जियमयाणमिति पर्यंता नवमी संपत् ९॥ अथास्यैव वर्णादिसंख्यार्थं गाथा पूर्वार्द्धमाह - दो सगनउआ वण्णा नव संपय पय तित्तीस सक्कत्थए । द्वे शते सप्तनवत्यधिके वर्णाः - अक्षराणि शक्रस्तवदण्डके इति योगः, सव्वे तिविहेण वंदामीति यावत्, एतदंतस्यैव वर्णगण| स्थापना चेयं - २९७ शक्र० नस्य वृद्धसंप्रदायेन प्रणिपातदण्डकतया रूढत्वात् तथा च चैत्यवंदनाचूर्णो तिविहेण वंदा २३० चैत्य० मीच्येतदंतं व्याख्याय भणितं 'सक्कत्थयविवरणं सम्मत्तं, श्रीलघुभाष्येऽप्युक्तम्-दो दो ४९० नाम० उ उ तिसया सगनवई तीस नवइ अब्भहिया । अडतीसा छायाला दंडेसु जहकमं वण्णा ४३८ श्रुत० ॥ १॥ अस्यार्थः स्थापनातोऽवसेयः - तथा नव संपदः पदानि च त्रयस्त्रिंशत् शक्रस्तवे । अथ सूत्रं | ३४६ | सिद्ध० व्याख्यायते तच्चेदम्-नमोत्थुणं अरहंताणं भगवंताणमित्यादि, इह नम इति नमस्कार For Private And Personal शक्रस्तव पदादीनि ॥२८४ ॥ Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahav Jin Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥ २८५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir वाचकं पदं, नमस्कारश्च द्रव्यसंकोच भावसंकोच भेदाद् द्विधा, तत्र द्रव्यसंकोचनं शिरोनमनांजलिबंधपादविन्यासादि, भावसंकोचनं तु प्रीतिप्रणिधानादिविधानतो विशुद्धमनसा नियोगः, एतेन नमस्कारचातुर्विध्यमुक्तं, तथाहि द्रव्यतो नामैको नमस्कारो न भावतो निह्ववद्रव्यलिङ्गिपालकादीनामनुपयुक्त सम्यग्दृष्ट्यादीनामपि च 'अनुपयोगो द्रव्य मिति वचनात् १ अन्यस्तु भावतो नमस्कारो न द्रव्यतः अनुत्तरसुरादीनां ग्लानाद्युपयुक्तसम्यग्दृष्ट्यादीनां च २ द्रव्यतो भावतश्च नमस्कारो यथाविधि शिरोनमनादिक्रियानिष्ठोपयुक्तसम्यग्दृष्ट्यादीनामेव ३ नो द्रव्यतो नो भावतश्च कपिलादीनामित्र नमस्काराभाव एव ४, उतं श्रीभद्रबाहुस्वामिना निण्हाइ दव भावोवउत्त जं कुञ्ज सम्मदिट्ठी उ । नेवाइयं पदं दवभावसंकोयण पयत्थो ॥ १ ॥” अस्तु भवत्विति प्रार्थनार्था क्रिया, दुरापो हि परमप्रकर्षप्राप्तो भावनमस्कार इत्थमाशंसावीजाधानेन साध्यते इति ज्ञापनार्थ, आह च - "अत्थुत्ति पत्थणा दुल्हो उ उक्को सभावनमुकारो। लब्भइ बीयाहाणा इय आसंसाइ तं नु भवे ।। १ ।। " भावनमस्कारप्रकर्षवथ वीतरागो 'नमस्तीर्थाये' तिनिराशंसमेवेति भणति, उपशांतमोहादौ हि पूजाकारके अविकलाप्तोपदेशपरिपालनरूपप्रतिपच्यभिधान चतुर्थपूजायाश्च भावात्, भणितं च- "बिंति अणासंसंचिय तित्थस्स नमोति उवसमजिणाई । अविगलआणापालणपहाण पडिवत्तिपूयपरा ॥१॥" यदुक्तमुत्तराध्ययनेषु - अरहंता तित्थयरा, तेसिं चैव भत्ती कायव्या, सा पूआवंदणाईहिं भवइ, पूअंमि पुप्फामिसथुईपडिवत्तिभेयओ चउविहंपि जहासत्तीए कुञ्जा" तथाऽन्यत्र "पुष्पामिषस्तुतिप्रतिपत्तिपूजानां यथोत्तरं प्राधान्यं " णमितिवाक्यालंकारे, केभ्यः १'अरहंताणं' ' चतुर्थ्याः षष्ठी' ति प्राकृतवशेनात्र षष्ठी, नमोऽर्हद्भ्यः सुरासुरादिकृताशोकवृक्षाद्यष्टमहाप्रातिहार्य रूपधर्म्मध्वजधर्म्म चक्राद्यतिशय स्वरूपत्रिभुवनातिशायिमहिमाभ्यः, उक्तं च - " जिण अट्ठपाडिहेरा असोगतरू चमर कुसुम जलबुट्टी । दिव्वझुणी For Private And Personal शक्रस्तवार्थः ॥२८५ ॥ Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka s ur Gyanmandie शक्रस्तवार्थः LRAMP श्रीदे सिंहासण छत्तत्तय भेरि भावलयं ॥ १॥ तथा-"झय१ चकर पउम३ सुरकोडि४ सुमनाई५ चउमुहंगय६ तिवप्पा ७ रिउ चैत्यश्री विसय९ अंबु१० कंटय११ पवणऽणुकूलका १२ नवठिई १३ ॥१॥" यद्वा मादिविहितवंदनाद्यर्हेभ्यः, भणितं च-"अरहंति धर्म संघास वंदणनमंसणाणि अरहंति पूअसकारं । सिद्धिगमणमरिहंति जे ते अरिहंत तेसिं नमो ॥१" अहोतेभ्यो वा-सहजातिशयादिसर्वोचारविधी समगुणसंपूर्णतया सर्वान्यस्तवनादियोग्यानां मध्ये प्रधानेभ्यः, अभ्यधायि च-"अरहा जुग्गा उचियत्ति सुगुणपुण्णतणा थया॥२८६॥ ईणं । तेसुवि अंता पगरिसपत्ता जमिहेरिसा नन्ने॥११॥ अथवा 'अरहद्भय सिद्धिगतावप्यनंतज्ञानमयत्वात् आत्मस्वभावमत्यजद्भयो | 'रह त्याग' इतिवचनाद् , अनेकार्थत्वाद्वा धातूनां अरहद्भयः, भणितं च-"न रहंति न चयंति णाणाई सिवेवि तेऽवि अरहता। न रहंति न चिट्ठति व भवंमि जं तेण अरहंता ॥५॥ अरहोंतेभ्यो वा, सर्वत्र सर्वथा सर्वदा सर्वतोऽप्यपगतप्रच्छन्नभावाभावज्ञानमयेभ्यः स्तवनीयत्वाद् , अभाणि च-नत्थि व रहो य छन्नं अंतो नासोत्ति जेसिं नाणस्स । ते अरहंता तेसिं नाणाइमयाण होउ नमो | ॥१॥" अरहतेभ्यो वा, यदाह-'नत्थि व रहो उ छन्नं अंतो ममं च सयलयत्थूणं । परअवरभागवेइत्तणेण जेसि अरहंता ते॥१॥" एवं अरथांतेभ्यः, रथाद्युपलक्षितवाहनांतसंगरहितेभ्यः, भणितं च-“संगुवलक्खणभूओ रहो अ जाणं न जेसि अंतो य। तो सो जराइउवलक्खणं तु ते हुंति अरहंता ॥१॥ अरभमानेभ्यो वा अतुच्छस्वच्छत्वादिभावमयत्वेन रामसिकवृत्त्यादिनिवृत्तेभ्यः, इत्यादिव्याख्यांतराण्यपि भावनीयानि, अरिहंताणमिति वा पाठः, इंद्रियविषयाधरिहंतभ्यः 'इंदियविसयकसाए परीसहे वेयणा य उवसग्गे। रागद्दोसे कम्मे अरी हणंतीति अरिहंता ॥ १॥" अरिणा वा-धर्मचक्रेण भांत्यरिभांतस्तेभ्यः, अरिमनु(पदो)पलक्षिताखिलाहितहेतिसंहतिहानिकृद्भ्यो वा, आह च-"अरिणा व धम्मचकेण भंति सोहंति ते उ अरिहंता। असिउवलक्षण HIDHIBRAJJAINIRAHMAHILANALIPAHISANILERIA ॥२८ For Private And Personal Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrif tsin Aradhana Kendra www.kobatirth.org i Gyanmandie अश्वावबोधः चैत्यश्री श्रीदे० धर्म० संघाचारविधौ ॥२८७|| Acharya Shri Kal सत्ये जहंति व चयंति अरहंता॥१॥ अरुहंताणं ति वा पाठः, न रोहंति दग्धकर्मवीजत्वात् पुनः संसारपल्वले न जायंत इत्यरोहंता, उक्तं च-"दग्धे बीजे यथाऽत्यंत, प्रादुर्भवति नाथरः । कर्मबीजे तथा दग्धे, न रोहति भवाङ्करः ॥ १॥" अरुरुपलक्षितपीडादिकृद्रोगादितत्कारणभूतकादि वा नंतीति वा अरुहंतभ्यः अरुंधद्यो वा, चरणाभावे न पुनर्भवोऽवरोधाभाषादित्यादि, बहुवचनं क्षेत्रकालभेदेनार्हद्वहुत्वख्यापनार्थ, एते च नामाद्यनेकषेति नामाहत्प्रतिपयर्थमाह-'भगवंताणं' भगः-ऐश्वर्यादिः षड्विधो येषां ते भगवंतस्तेभ्यः, भणितं च-"ईसरिअ जसो रूवं सिरी य धम्मो तहा पयत्तो य । एए जेसि पगट्ठा ते भगवंते नमो तेसिं ॥१॥" तत्र-"ईसरियमिह पहुत्तं ससुरासुरमणुयजीवलोगस्स । तिहुयणगिज्झो चंदुञ्जलो जसो रूवमइरम्मं ।।२॥" यदागमः-"सबसुरा जइ रूवं अंगुट्टपमाणयं विउविजा । जिणपायंगुटुं पइ न सोहए तं जहिंगालो ॥३॥ बहिलच्छी ओसरणाइ अंतरंगा उ केवलाईआ। धम्मो फलरूवो जं न जिणत्ता धम्मफलमन्नं ॥ ४॥ धम्मुजमो पयत्तो पयडोच्चि सो जिणाण संपुनो। करसंठिएवि मुक्खे परोपयारिकनिरयाणं ।।५।। अत्र संप्रदाय: एकदा समवसार्षीत् ,प्रतिष्ठानपुरे प्रभुः। श्रीसुव्रतजिनो विश्वगेयोज्ज्वलयशोभरः।।१।। स ज्ञानचक्षुषाऽद्राक्षीन् ,मित्रं प्राग्जन्मनः | खकम् । भृगुकच्छपुरेशस्य, बोधयोग्यं तुरंगमम् ॥२॥ ततोऽमितगतिर्भव्यराजीराजीवभास्करः । प्रतस्थे भुवनखामी, भृगुकच्छपुरं प्रति ॥३॥ आक्रम्यैकनिशा षष्टियोजनीं भृगुकच्छके । प्राप कोरंटकोद्यान, कोटिसंख्यसुरैर्वृतः॥४॥ तत्र योजनमात्रे च, क्षेत्रे वायुकुमारकैः। शोधिते समवस्ती, रचितायां सुरासुरैः॥ ५॥ राजमानो महाप्रातिहार्वर्यैः सदाऽष्टमिः । सिंहासनमलंचक्रे, धर्मचक्री भवांतकृत् ॥६॥ गत्वाऽथोद्यानपालेन, तत्पुरेशाय सत्वरम् । जिनागमनमानंदान्यवेदि जितशत्रवे ॥७॥ तत्रस्थोऽपि जिनं नत्वा, ATHROR BuitmIIMSHIDARNIRD P HARI ॥२८७|| For Private And Personal Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailesheepuri Gyanmandit S श्रीदे० चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ ॥२८८।। HTRAINipalimumanAHIRANIELITIHARITARATHIHDaily दत्त्वाऽसै पारितोषिकम् । तमारुह्य हरि राजा, नंतुमर्हन्तमभ्यगात् ॥ ८॥ मुक्त्वाऽश्वं रूप्यवप्रांतः, प्रविवेश विशां पतिः। भक्त्या | अश्वावबोधः समवसृत्यंतर्ववंदे विधिवजिनम् ।। ९ ।। क्रमेण च निषण्णासु, पर्षत्सु द्वादशस्वपि । दिदेश धर्म विश्वेशः, सुव्रतः सुव्रतो जिनः ॥१०॥ सुधाभां कर्णयोर्जेनीमाकाकर्ण्य भारतीम् । उत्कर्णः सोऽभवत् तूर्ण, हयो हर्षाश्रुपूर्णदृक् ॥११॥ प्रभुं पुनः पुनः पश्यनुत्पश्यः पशुरप्यसौ । तदन्ते जातया जातिस्मृत्या प्राग्जातिमस्मरत् ।।१२॥ हर्षप्रकर्षतस्ताक्ष्योऽनिमेषाक्षस्तथोन्मुरवः । हेपानिर्घोषमातन्वन् , ययौ मंक्षु जिनांतिकम् ॥१३॥ सोऽनमत्स्वामिनं भूमौ,न्यस्तमौलिमुहुर्मुहुः। स्ववाचोवाच दुःखार्तविश्वरक्षक ! रक्ष माम् ॥१४॥ जितशत्रुरथोवाच, नैतच्चित्रीयते विभो ! । यत् तिर्यचोऽपि बुध्यते, भारत्या श्रीमदर्हतः।।१५।। हरेहर्षप्रकर्षोऽयं, किंनु तद्हेतुरत्र कः। इत्यादिश मम स्वामिन् !,सर्ववेदी ततोऽवदत् ॥१६॥ राजन् ! जन्मांतरे मित्रमेष वाजी ममाजनि । बोधाया| स्यागमो मेत्र, पूर्वजन्माधुना शृणु ॥१७॥ श्रेष्ठी सागरदत्ताख्यः, स्वमित्रं नैगमाग्रणीः । त्यागी महेश्वरी माहेश्वरश्चोवास तत्पुरे ॥१८॥ शिवस्यायतनं पूर्व, कारयामास सोऽन्यदा । उपसाधु गतः सार्धं, सख्याऽश्रौषीदिदं यथा ॥ १९॥ जिनानां मंदिरं | कुर्यात् , यो जितांतरवैरिणाम् । स प्रेत्य लभतेऽवश्यं, बोधिरत्नं सुदुर्लभम् ॥२०॥ श्रुत्वेत्यकारयत् सोऽथ, सुंदरं जिनमंदिरम् । | तत्र चाप्रतिमां जैनी, प्रतिमा प्रत्यतिष्ठपत् ॥२१॥ जिनधर्मस्य संसर्गाजिनधर्ममतिस्ततः। मिथ्यात्वमथनं सोऽथ, बोधिवीजमुपार्जयत् ॥२२॥ शिवगेहेऽन्यदा शैवैः, सर्पिषा लिंगपूरणे । कृतेऽसौ द्रष्टुमाहूतस्तत्र गत्वा निषेदिवान् ॥ २३ ॥ तदा च तत्र सर्पतीघृतगंधा घृतेलिकाः । शैवानां चरणन्यासात् , मृताः प्रेक्ष्य सहस्रशः।। २४ ।। युक्तमेतद्यतीनां किं, तानेवं सोऽब्रवीन्ननु । भवतां पादपातेन, कीटिकाः कोटिशो मृताः ॥ २५ ॥ क्रुद्धास्तमभ्यधुस्तेऽपि, त्यक्त्वा धर्म क्रमागतः । खेंद्रियेभ्योऽपि जिहेषि, किं न IA॥२८८॥ For Private And Personal Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S Shri n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailah Gyanmandit श्रीदें. चैत्यश्री धर्मः संघात चारविधौ || ॥२८९॥ ammmmammHARIANTARAHIMINAND धर्म नवं दधत् ॥२६।। त्वयैवं कुर्वता सर्वे, नूनमद्य स्वपूर्वजाः । वालिशाश्चक्रिरे तत्ते, अहो नत्वकुलीनते ॥२७|| हिंसास्थानेत्र अश्वावबोधः धर्मिष्ठ !, त्वमागात् त्वद्विनेश्वरः। न विश्वार्यो ह्यनर्व्यः स्यादुत्तिष्ठ स्वगृहं व्रज ॥२८॥ सुप्रतिष्ठोऽपि तैः श्रेष्ठी, सोप्रतिष्ठं प्रजल्पितः। लज्जाम्लानमुखांभोजो, निर्ययौ सपरिच्छदः ॥२९॥ मिथ्यात्वमपि संशीतिगतं सोऽथ दधत्ततः। तद्वाचिकापमानं च, सरन्नत्यतिसंगतः॥३० ॥ बद्ध्वा तिर्यग्भवायुष्कं, स्वायुःशेषमतीत्य च । श्रेष्ठी सागरदत्ताख्यो, मृत्वा तिर्यगजायत ।। ३१ ॥ भवान् भ्रांत्वाऽथ भूयिष्ठानार्तध्यानाद्भवोदधौ । राजन्नजनि स श्रेष्ठिजीवोऽयं तेऽधुना हयः॥३२॥ यः कारयति जिनानामित्यादि प्राग्भवश्रुतम् । असन्मुखानिशम्यासौ, जातिस्मरणमाप्तवान् ॥३३॥ इत्याकर्ण्य नृपो वाजिचरित्रं चिच्चमत्कृतः। संवेगाद्गद्गदध्वानः, प्रतिहारं समादिशत् ॥३४॥ द्रागुत्सारय पर्याणमसादश्वात्तथा कविम् । इतःप्रभृत्यसौ धर्मबांधवो नस्तुरंगराट् ॥ ३५॥ सोऽश्वोऽथ स्वामिपार्श्वे चागहीद्धर्ममगारिणाम्। संन्यासेन विपद्याभूत् , सहस्रारेऽष्टमे सुरः ॥ ३६॥ प्राच्यं जन्मावधेत्विा , भक्या चैत्य जिनं स तु । वंदित्वा विधिवन्नाटथं, विदधे विबुधः सुधीः ॥३७॥ कांचनैः कुसुमैस्तीर्थभूमिं तां परिपूज्य च । स्वं प्रकाश्य च तीर्थेशं, पुनर्नत्वा दिवं ययौ ॥ ३८ ॥ अश्वजीवस्ततस्तत्र, स्वःसुरवान्यनुभूय सः । व्युत्वाऽत्रैव समुत्पद्य, लप्स्यते पदमव्ययम् ॥३९।। अथ लोकोपकाराय, भगवान् भृगुकच्छतः । विजहार महीमेनामहीनमहिमा प्रभुः ॥४०॥ भृगुकच्छे तथा स्वामी, स्वांभिभ्यां यामपावयत् । भुवं तत्र सुराः स्तूपं, स्वर्णरत्नैर्वरैय॑धुः॥४१॥ प्रतिमा स्थापयामासुः, तत्र श्रीसुव्रतार्हतः। तीर्थमश्वावबोधं । | तत् , प्रावर्तत ततश्विरम् ॥४२॥ सुदृशाममृतांजनमिति सुयशा मुनिसुव्रतः प्रभुः श्रीमान् । सुचिरं दिदेश धर्म परोपकृतये प्रय- IDD तमानः ॥४३॥ इति मुनिसुव्रतस्वामिकथा ।। २८९॥ न For Private And Personal Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandit शक्रस्तवव्याख्या श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥२९॥ MamINHA Horamin minitialINSAHISHAINARIGAMINAI __एवंविधा एव भगवंतो विवेकिनां स्तोतव्या इत्याभ्यामालापकाभ्यां प्रथमा स्तोतव्यसंपदा उक्ता, संप्रत्यस्या एव द्वितीयां त्रिपद्या हेतुसंपदमाह-'आइगराण'मित्यादि,केवलज्ञानोत्पत्यनंतरं स्वस्वतीर्थेम्वादौ-प्रथमतः समस्तनीतिचारित्रहेतुश्रुतधर्मस्य करणशीलाः तदर्थप्रणायकत्वेनादिकरास्तेभ्यः, यदागमः-अत्थं भासइ अरिहा मुत्तं गंवंति गगहरा निउणं । सासणस हियट्ठाए तओ सुत्तं पवत्तई ॥१॥ (आ०नि०) आदिकरत्वाचामी किंविधा इत्याह-'तित्थयराणं' तीर्थः-प्रवचनाधारश्चतुर्विधः संघः प्रथमगणधरो वा तत्कर्तृभ्यः, यदागमः-"तित्थं भंते ! तित्थं तित्थयरे तित्थं ?, गोयमा ! अरिहा ताव नियमा तित्थगरे तित्थं पुण चाउवण्णे समणसंघे पढमगणहरे व"त्ति, तीर्थकृत्त्वं च एषां नान्योपदेशादित्याह-'सयंसंबुद्धाणं' स्वयं-परोपदेशमंतरेणैव सम्यग्-अविपर्ययेण बुद्धा-ज्ञाततच्चाः स्वयंसंबुद्धास्तेभ्यः३ संपद् , एतच्चामीषां न प्राकृतत्वे सति इत्याद्याया एव हेतुविशेषसंपदमाह-'पुरिसोत्तमाण मित्यादि, पुरुषाणां-विशिष्टसंसारिसच्चानां मध्ये तथास्वाभाव्यात् सर्वकालमसाधारणगांभीर्यादिगुण| ग्रामयोगादुत्तमाः-पूज्याः, संसारेऽपि तीर्थकरजीवानां तथा प्राधान्यात् पुरुषोत्तमास्तेभ्यः, उत्तमत्वमेवोपमानत्रयेण समर्थयति'पुरिससीहाणं' पुरुषाः कर्मशत्रुन् प्रति सूरतया सिंहा इब पुरुपसिंहाः तेभ्यः, यद्वा-"बीहंति न चेव जओ उवसग्गपरीसहाण घोराणं । वियरंति असंकमणा भन्नति ततो पुरुषसीह।।१॥"त्ति ३ 'पुरिसवरपुंडरीयाणं' पुरुषा वरपुंडरीकाणीव-प्रधानसितप मानीव, यथैतानि पंके जातानि जले प्रवृद्धानि तवयं विहायोपरि वर्तते तथाऽहंतोऽपि कामपंके जाता भोगजले प्रवृद्धास्तद्वयं || विहाय वर्तते इति पुरिसवरपुंडरीकाणि, धवलत्वं चैषां सर्वाशुभरहितत्वात् सर्वैश्च शुभानुभावः सहितत्वात् तेभ्यः३, यद्वा "पुरि सावि जिणा एवं पत्ता वरपुंडरीयउवमाणं । सासाइसुरभिगंधे वहति वरपुंडरीय ॥१॥ वटुंति य उवयारे नरतिरिआणं निरीहपरि HIRAULIHEOMPIA IMAHARMATIOmmammime PDATA ॥२ For Private And Personal Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shril in Aradhana Kendra www.kcbatirth.org श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥२९॥ Acharya Shri Kaila s Gyanmandie णामा। धारिजंते सिरसा नरामरहिं नमिरेहिं ॥२॥" अथवा पुरुषाणां तत्सेवकादीनां वरपुंडरीकमिव वरच्छत्रमिव ये संतापातप शक्रस्तवनिवारणसमर्थत्वात् छायाकारणत्वाच्च । पुरिसवरगंधहत्थीणं पुरुषावरगंधहस्तिन इव पुरुषवरहस्तिनस्तेभ्यः४ यद्वा गंधहस्ति- व्याख्या गंधेनेव क्षुद्रगजा भज्यंते तद्वदीतिदुर्भिक्षायुपद्रवगजाः सपादयोजनशतमध्येऽहविहारपवनगंधादेव नश्यति, उक्तं चेत्युपमात्रयात् पुरुषोत्तमाः, संपन् ३, न चैवं लोकस्यागिति, किंतु लोकस्याप्युत्तमा इति आद्याया एव सामान्येनोपयोगसंपदमाह-'लोगुत्तमाण'मित्यादि, लोकस्य-भव्यप्राणिरूपस्य मध्ये उत्तमाः-सकलकल्याणसमासन्नसिद्धिगामित्वलक्षणतथाभव्यत्वभावात् ऊर्ध्ववर्तित्वात् प्रधानाः लोकोत्तमास्तेभ्यः 'लोगनाहाणं' लोकानां-विशिष्टासनसिद्धिकभव्यसचानां सम्यत्वबीजाधानादियोजनेन रागाद्युपद्रवरक्षणेन च योगक्षेमकारिणः अलन्धबोधिबीजादिलाभलब्धसद्दर्शनादिगुणग्रामरक्षाविधायिनो नाथा लोके नाथारस्तेभ्यः, नाथत्वं च हितकरणात् स्यादित्याह-'लोगहियाणं' लोकाय-सकलेन्द्रियादिप्राणिवर्गाय पंचास्तिकायात्मकाय वा सम्यग् लक्षणप्ररूपणादिना(रक्षादिना)वा लोकहितास्तेभ्यः, हितत्वं च यथावस्थितवस्तुप्रकाशनादेवेत्याह-'लोगपईवाणं' लोकस्य-विशिष्ट- | संज्ञितिर्यग्नरामररूपस्य सद्देशनांशुभिर्मिथ्यात्वादितमोऽपनयनेन यथावस्थितपदार्थसार्थप्रकाशनेन च प्रदीपा इव लोकप्रदीपास्तेभ्यः, इदं च विशेषणं द्रष्ट्रलोकमाश्रित्योक्तं, अथ दृश्यलोकमाश्रित्याह-'लोगपजोअगराणं लोकस्य-लोक्यत इति व्युत्पत्या लोकालोकखरूपस्य केवलालोकपूर्वकप्रवचनप्रभापटलेन सूर्यवत् प्रद्योतकराः तेभ्यः ५, अत्र संप्रदायः बारस वासे छम्मास अद्धमासं च तवमणुचरित्ता। निजिअउवसग्गपरीसहस्स सिरिवद्धमाणस्स ॥१॥ जंभियबहि उजुवा- | | लियतीरि वियावत्तसामसालअहे । छद्रेणुक्कडुयस्स उ उप्पन्नं केवलं नाणं ॥ २॥ चउविहसुरेहिं रइए ओसरणे तत्थ कप्पमिइ7 ॥२९१॥ MANSAR For Private And Personal Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shr a in Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri K risgauti Gyanmandie गणधरवादः श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥२९२॥ MINISTRATISHTHANIMATIHANI काउं । सायं पहू अभावियपरिसाइवि कुणइ धम्मकहं ॥शा जो-सव्वं च देसविरई संमं पित्थइ व होइ कहणाओ । इहरा अमूढलक्खो न कहेइ भविस्मइ न तं च ॥४॥ चउविहसुरपरियरिओ रयणीए वारजोयणेहिं तओ। पत्तो मज्झिमपावा बहि महसेणयवणुजाणे ॥ ५ ॥ तहिं भुवणवईवंतरजोइसवेमाणिआवि ओसरणे । सविडोइ सपरिसा कासी नाणुप्पयामहिमं ।। ६॥ तत्थ किर । सोमिलजोत्ति माहणो तस्स दिक्खकालंमि ! पउरा जणजाणवया समागया जनवाडमि ॥७॥ तह इंदभूतिऽगणिभूइवाउभूइवियत्तय सुहम्मा। मंडियमोरियपुत्ता अकंपिओ अयलभाया य ।।८।। मेयजपहासा इय इगार वेयाइविउ महुज्झाया। उन्नयविसालवंसा समागया जन्नवाडं तं ॥९॥ तं दिवदेवघोसं सोऊणं माणवा तहिं तुहा । अहो जनिएहिं जुड़े देवा किर आगया इहयं ॥१०॥सोऊण कीर-| भाणि महिमं देवेहि जिणवरिंदस्स । अह एइ अहंमाणी अमरिसिओ इंदभूइत्ति ॥११॥ मोत्तूण ममं लोगो किं धावइ एस तस्स पामूलं । अन्नोऽवि जाणइ मए ठिअंमि? कत्वोच्चयं एयं ॥१२॥ वश्चिज व मुक्खजणो देवा कहऽणेण विम्हयं नीया । वंदंति संथुणंति य जेणं सबन्नुबुद्धीए ॥१३॥ अहवा जारिसउच्चिस सो नाणी तारिसा सुरा तेऽवि । अणुसरिसो संजोगो गामनडाणं व मुक्खाणं ॥१४॥ काउं हयप्पयावं पुरओ देवाण दाणवाणं च । नासेहं नीसेसं खणेण सबन्नुवायं से ॥१४॥ इय वुत्तूर्ण पत्तो दटुं तेलोकपरिवुडं वीरं । चउतीसाइसयनिहिं स संकिओ चिडिओ पुरओ ॥१५|भणियं च-"साक्षादृष्टेन्द्रभूतिः समवसृतिभुवोभूषणस्यांतिकस्थानायातानंगनाभिः सह विबुधवरान् पंचवर्णैर्विमानैः। रूपं चाश्चर्यरूपं जगति दश दिशो भासयन स्फारकांत्या, तस्थौ | क्षोभात् सशंको मुनिपतिपुरवो झकिमेव किमेव १ ॥१७॥ हे इंदभूइ गोयम सागयमुत्ते जिणेण चिंतेइ । नामपि मे विमाणइ अहवा को मं न याणेइ ?॥१८॥ जइ वा हिययगयं मे संसयमुनिज अहव छिंदिजा । तो हुन्ज विम्हओ मे इय चिंतंतो पुणो ॥२९॥ For Private And Personal Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri rain Aradhana Kendra www.kobatirth.org u ri Gyanmandie चैत्यश्री गणधरवादः श्रीदे० धर्म० संघा चारविधी ॥२९३॥ Acharya Shri Kai भणिओ ।।१९।। किं मन्नि अस्थि जीवो उआहु नस्थित्ति संसओ तुज्झ । वेयपयाण य अस्थं न याणसी तेसिमो अत्थो ॥२०॥ हे इंद्रभूते किं मन्यसे-अस्ति जीवः, स वै आत्मा ज्ञानमय इत्यायुक्तत्वात् , उताहो किं वा नास्ति, यतो विज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय तान्येवानु विनश्यति, न प्रेत्य संज्ञाऽस्तीत्युक्तं, विज्ञानं-चैतन्यं तदेव घनो नीलादिरूपत्वात् समुत्थाय-उत्पद्य पुनस्तान्येवानुसृत्य विनश्यति-तत्रैवाव्यक्ततया संलीयते, न प्रेत्यसंज्ञा-मृत्वा पुनर्जन्म, भूतानां परलोके गमनाभावात् , इत्युभयास्तित्वे किं प्रमाणमितिसंशयः, अर्थ पूर्वापरत्वाक्याविरोधलक्षणं चशब्दाद्युक्तिं हृदयं च, अयं अंतःस्फुरत्तयाऽध्यक्षः विज्ञानं ज्ञानदर्शनोपयोगरूपं ततोऽनन्यत्वादात्मा विज्ञानधनः, एवावधारणे, समुत्थाय कथंचिदुत्पद्य, यथा घटादिविज्ञानपरिणतो ह्यात्मा घटादिर्भवति तद्विज्ञानक्षयोपशमस्य तत्सापेक्षत्वाद् अन्यथा निरालंबनतया तस्य मिथ्यात्वप्रसक्तेः, तान्येवानु विनश्यति तेषु विवक्षितेषु भूतेषु व्यवहितेषु अपगतेषु वा आत्मापि तद्विज्ञानघनात्मना उपरमते, अन्यविज्ञानात्मना उत्पद्यते, यदिवा सामान्यचैतन्यरूपतयाऽवतिष्ठते इति न प्रेत्यसंज्ञाऽस्ति-प्राक्तनी घटादिविज्ञानसंज्ञाऽवतिष्ठते,सांप्रतीनविज्ञानोपयोगविग्नितत्वात् , छिन्नमि संसयंमी जिणेण जरमरणविप्पमुक्केणं । सो समणो पबइओ पंचहिं सह खंडियसएहि ॥ २१ ॥ तं पवइयं सोउं सुह(वुत्तं)अग| णिभूइणा अमरिसेणं । वच्चामि णमाणेमी पराजिणित्ताण तं समणं ॥२२॥ छलिओ छलाइणा सो मन्ने माइंदजालिओ वावि । को |व मुणइ कह वत्तं इत्ताहे वहमाणिं से ॥२३॥ सो पक्खंतरमेगपि जाइ जइ मे तओ मि तस्सेव । सीसत्तं हुन्ज गओ वुत्तुं पत्तो जिण सगायं ॥२४॥ हे अग्गिभूइ गोअम! सागयमिइ नामगोअओ वुत्तो। विम्हइओ पुरिमिल्लो व चिंतिरो पुण जिणेणुत्तो ॥२५॥ किं | मन्ने अस्थि कम्मं उआहु नत्थित्ति संसओ तुज्झ । वेयपयाण य अत्थं न याणसी तेसिमो अत्थो॥२६॥ हे अग्निभूते ! किं मन्यसे | ॥२९३॥ For Private And Personal Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri N i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandit श्रीदे कास्ति, यथा पुण्यः पुण्येन पापः पापेन कर्मणेत्यादि, उत नास्ति यतः कर्मप्रकृतीश्वरादिसर्वव्युदासेनोक्तं 'पुरुष एवेदं निं सर्व गणधरवादः चैत्य श्री यद्भूतं यच्च भाव्यं उतामृतस्येशानो यदन्नेनातिरोहति यदेजति यन्नेजति यद् दूरे यदु अंतिके यदंतरस्य सर्वस्यास्य नायत' इत्यादि, धर्म० संघा इदं प्रत्यक्षं वर्तमानं निं वाक्यालंकारे सर्व चेतनादि उतोऽप्यर्थे अमृतत्वस्य-मोक्षस्येशान:-प्रभुः अनेन-आहारेण तिरोहतिचारविधौ । अतिशयेन वृद्धिं याति एजते अश्वादि नैजते पर्वतादि आपत्वादिष्टरूपं दूरे मेर्वादि अंतिके-समीपे यदन्तः-मध्ये अस्य चेतना॥२९४॥ चेतनस्य सर्वस्यास्य बाह्यतः सर्वपुरुष एवेति कर्मसत्ता न श्रद्धेयेति ते संशयः, अर्थ विषयविभागात्मकं, यथा त्रिधा वेदपदानि । 'अग्निहोत्रं जुहुया'दित्यादीनि विधिवादपराणि, स्तुत्यर्थनिन्दार्थवादार्थाद् द्विधा, तत्र स्तुत्यर्थवादप्रधानानि यथा 'स सर्व विद्यस्यैषा महिमा सुविदितेत्येव ब्रह्मपुरे घेष व्योम्नि आत्मा सुप्रतिष्ठितस्तमक्षरं चेतयते अथ स यस्तु सर्वज्ञः सर्ववित् सर्वमेवाविश'इत्यादि, निन्दार्थवादप्रधानानि यथा-एष वः प्रथमो यज्ञो योऽग्निष्टोमः, यो नेनानिष्ट्वा अन्येन यजते स गर्तामभ्यपतदि'त्यादि, अत्र पशुमेधादीनां करणं निंद्यते इत्ययं निन्दार्थवादः, द्वादश मासाः संवत्सरः अग्निरुष्णोऽग्निर्हिमस्य भैषजमित्यादीनि त्वर्थवादप्रधानानि, लोके प्रसिद्धस्यैवार्थस्यैतैरनुवादः, ततश्च पुरुष एवेत्यादीनां अप्ययमों-यदेतानि पुरुषस्तुतिपराणि, यदिवा जात्यादिमदत्यागायतद्भावनाप्रतिपादकानि न कर्मसत्ताप्रतिषेधकानि, इत्थं चैतदंगीकर्तव्यं, न खल्वकर्मण आत्मनः कर्तृत्वोपपत्तिः एकांतशुद्धतया प्रवृत्तिनिबंधनाभावात् गगनवत । छिनमि संसयंमी जिणेण जरमरणविप्पमुक्केणं । सो समणो पब्वइओ पंचहिं सह खंडियसएहिं ॥२७॥ ते पवइए सोउं अबसेसा नववि बिति चिंतंति । बच्चामो बंदामो तं मुमुणिं पज्जुवासामो ॥२८॥ सीसत्तेणोवगया संपइ इंदगिभूइणो जस्स । तिहुयणकयप्पणामो स महाभोगोऽभिगमणिजो ॥२९॥ तयभिगमवंदणनमंसणाइणा हुज्ज पूअपावा ॥२९४॥ aniPRAMOHAMILIARPAL MAIN HINDIRA TRAPATIHAR For Private And Personal Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri a n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila s Gyanmandie गणधरवादः श्रीदें चैत्यश्री धर्म संघाचारविधौ| ॥२९५॥ PADHIAN | मो। वुच्छिन्नसंसया वा वुत्तुं पत्ता जिणसगासं ॥३०॥ आभट्ठाय जिणेणं नामगोएहिं सागयंति इमे । विम्हइया पुण वुत्ता चिरसंसयपयत्थकहणेण ॥३१।। जीवे१कम्मेरतजीव३भृय४ तारिसय५बंधमुक्खो य६। देवानेरइयाविय८ पुण्यो९ परलोय१०निव्वाणे११ ॥३२। तत्रैवं तृतीय उक्तः-हे वाउभृइ गोयम ! मनसि तज्जीवतच्छरीरंति । संसइओ वेयत्थं न याणसी तं इमं जाण ॥३३॥ स एव जीवस्तदेव शरीरं इति माननात् 'विज्ञानघन एवैतेभ्य' इत्यादि प्राग्वदर्थः, नवरं न प्रेत्यसंज्ञाऽस्ति-न देहातिरिक्त आत्मसंज्ञाऽस्ति अभेदागौरतादिवद् भूतसमुदायमात्रधर्मत्वाच्चैतन्यस्येति वेदार्थक्लप्सेः, संशयश्च सत्येन लभ्यस्तपसा ह्येष ब्रह्मचर्येण नित्यं ज्योतिर्मयो हि शुद्धोयं पश्यन्ति धीरा यतयः संयतात्मान' इत्यादिसूत्रात् देहातिरिक्तात्मप्रतिपादनपरात् तथारूपोपचाराच्च, तत्र देहे आत्मोपचारो यथा किंचित् पिपीलिकादि सच्चं प्रतीत्य यथा ब्रवीति लोको यथैतं जीवं मा मारयेति शरीरव्यतिरिक्ते च यथा कंचिन मृतं दृष्ट्वा लोको ब्रवीति-गतः संज्ञी यस्येदं शरीरमिति, तथा वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराण्यपरापराणि, जहाति गृह्णाति च पार्थ! जीवः ॥१॥ इत्यादेच, अस्त्येतत् सौम्य !, भगवन्नस्त्येतत् , वेदपदानामयं परमार्थ:-विज्ञानघन एवात्मा प्रतिप्रदेशमनंतज्ञानदर्शनपर्यायात्मकत्वात् , भूतेभ्यः क्षित्युदकादिभ्यः कथंचिद्भूत्वा घटाद्यर्थाश्रयेण विशेषतो नीलादिविज्ञानोत्पत्तेः अनु विनश्यति, घटादिनाशे तदाश्रितोद्भूतनीलादिविज्ञानोपरमात् , शेषं प्राग्वत् इति, देहेन्द्रियव्यतिरिक्तश्चात्मा तद्विगमेऽपि तदुपलब्धार्थानुसरणात् , मया दृष्टं श्रुतं स्पृष्टं, घातं आस्वादितं स्मृतम् । इत्येककर्तृका भावा, भूतचिद्वादिनः कथं ॥१॥ निर्वाधोऽस्ति ततो जीवः, स्थित्युत्पत्तिव्ययात्मकः। ज्ञाता द्रष्टा गुणी भोक्ता, कर्ता कायप्रमाणकः।।२।। चतुर्थस्त्वेवं-भारदायवियत्ता! मन्नसि पण भूय अस्थि नस्थिति । संसइयो न वियाणसि वेयत्थं तं इमं मुणसु ॥३४॥'स्वप्नोपमं वै सकलमित्येष ब्रह्मविधिरंजसा विज्ञेय' |MARIA HINTUn PHIHIROIN INDIPATHARITAMIRE i ellulthaURNIA APANI RIAPHARNIRAMUHAANITAMARHAMPTeaning ॥२९५॥ For Private And Personal Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Malaw Jain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म० संधाचारविधौ ॥२९६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashauri Gyanmandir इत्यादि तथा ' द्यावापृथिवी' इत्यादि 'पृथिवी देवता आपो देवते 'त्यादि भूतासत्तासत्तापराणि वेदवाक्यादीनि ते संशयहेतुः, ब्रह्मविधिः - परमार्थप्रकारः अंजसा - प्रगुणन्यायेन विज्ञेयो - भाव्यः, तत्रायं भावार्थ:-स्वनोपमं इत्यादि अध्यात्मचितायां मणिकनकांगनादिसंयोगस्यानियतत्वादस्थिरत्वादसारत्वाद् विपाककटुकत्वादास्थानिवृत्तिपरं नतु तदत्यंताभावप्रतिपादकं, स्वमधुद्धेरप्यनेकनिबंधनत्वात्, अणुभूय दिट्ठचिंतिय सयपयइवियार देवयानुवा । सुविणस्स निमित्ताई अणुतरो चैव नाभावो ॥ ३५ ॥ पंचमश्चैवम् - सुहमा अगणिविसायण ! मन्नसि जो जारिसो इह भवेऽवि । सो तारिसो परभवे वेयपयत्थेसु संसइओ || ३६ ॥ यथा 'पुरुषो वै पुरुषत्वमनुते पशवः पशुत्व' मित्यादि, युक्तं चैतत्, कारणानुरूपकार्यत्वात् कथं त्वेतत्, तथा 'शृगालो वै एप जायते' इत्यादि, तथा 'ब्रह्मादिषु तृणांतेषु भूतेषु परिवर्तते । जले भुवि तथाऽऽकाशे, जायमानः पुनः पुनः || १ || इत्यतः संशयस्ते, तत्र नायं नियमः, कारणाननुरूपकार्यस्यापि दर्शनात्, यथा शृंगाच्छरो जायते, तस्मादेव सर्पपानुलिप्तात् तृणानि गोलोम अविलोमभ्यो दूर्वा गोमयाच्छालूरः, इयं तु वस्तुस्थितिः- आयुष्कर्मापेक्षया जीवानां गतिः, तस्य नरकायुष्कत्वादिचित्रत्वात् कार्यवैचित्र्यं, यथा-मिच्छादिट्ठी महारंभपरिग्गहो तिचकोहनिस्सीलो । नरयाउयं निबंधइ पावमई रुद्दपरिणामो ||३७|| उम्मग्गदेसओ मग्गनासओ गूढ हिययमाइल्लो। सदसीलो अ ससल्लो तिरिआउं बंधए जीवो ||३८|| पयईइ तणुकसाओ दाणरओ अजवाइगुणजुत्तो । तह सच्चयाइनिरओ मणुआउं बंधई जीवो ।। ३९ ।। अणुवयमहवएहिं बालतवोऽकामनिजराए उ । देवाउअं निबंधइ सम्मदिट्ठी य जो जीवो ||४० ॥ तथा-रज्जुग्गहणे | विसभक्खणे अ जलणे अ जलप्पवेसे य । तण्हाछुहा किलंता मरिऊण दवंति विंतरिया ॥ ४१ ॥ तथा-जया मोहोदओ तिवो अन्नाणं खु महभयं । असारं वेय णिज्जं तु, तया एगिंदियत्तणं ॥ ४२ ॥ अविय-भूदगवण सुरनिरया दोगइया चउगई तिरिपणिंदि । संखवासाउ मणुआ For Private And Personal गणधरवादः ॥ २९६ ॥ Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Jin Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaile u rs Gyanmandit श्रीदे गणधरवादः चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधी ।।२९७॥ MUSEUPIR पणगइआ सेस इगगइआ॥४३॥ एवं दानदयादि सर्वमेव वैयर्थ्यमिति संबंधः।। वासिद्ध मंडियसुआ कि मनसि बंधमुक्ख अत्थि नवा । संसइओ वेयत्थे परमत्थं तस्थिमं सुणसु ॥४४॥ स एष विगुणो विभुन बध्यते संसरति वा न मुच्यते मोधयति वा',न वा एष बाह्यमभ्यंतरं वा वेद'इत्यादि, विगतसन्चादिगुणो विभुः सर्वगो न बध्यते पुण्यपापाभ्यां,न मुच्यते-कर्मणा न वियुज्यते बंधाभावात्, न मोचयत्यन्यमकर्तृत्वात् ,बाह्यमात्मभिन्नमहंकारादि अभ्यंतरं-स्वरूपं वेद-विजानाति प्रकृतिधर्मत्वात् ज्ञानस्य, प्रकृतेश्चाचेतनत्वादधमोक्षाभाव इति ते मतिः सशरीरस्य संसारिणः अत्र यतः, तन्न, मुक्तिजीवापेक्षमिदं,तत्र भावार्थ:-स एष मुक्तात्मा विगतच्याअस्थिकज्ञानादिगुणो विभुः-ज्ञानात्मना सर्वगो न बध्यते मिथ्यात्वादिबंधकारणाभावात् , ततो न संसरति भवे कर्मवीजाभावात् , 'दग्धे बीजे यथेति श्लोकः, न मुच्यते मुक्तत्वात् , न मोचयति तदा खलूपदेशादानात, सांसारिकसुखनिवृत्यर्थमाहन वा एष मुक्तात्मा बाह्य स्रक्चंदनादिसुखं अभ्यंतरं मानसादि न वेद-नानुभवात्मना जानाति, संसारिणः बंधमोक्षौ स्तः, आह च-"न ह वै सशरीरस्य प्रियाप्रिययोरपहतिरस्ति, अशरीरं वा वसंतं प्रियाप्रिये न स्पृशत' इत्यादि, तत्र सशरीरस्य-संसारिणः, | अशरीरं-मुक्तं वसंत-मुक्तं प्रियाप्रिये-पुण्यपापे न स्पृशतः, कारणाभावादित्यर्थः, तथा जीवकर्मणोरप्यनादिमानेव संयोगो, धर्मास्तिकायाकाशसंयोगवत् , वियोगस्तु यथा कांचनोपलयोः क्षारमृत्पुटपाकादिना तथा जीवकर्मणोरपि ज्ञानतपःसंयमादिना, मूर्तामूर्तसंयोगघटना तु घटाकाशसंयोगवत् , कषायादिपरिणामाभावाच मुक्तानां पुनः कर्मबंधाभावः, उच्यते-जोगा पयडिपएसं ठिद अणुभागं कसायओ कुणइ।" न चेत्थं भव्योच्छेदः, अनागतकालवत् तेषामानंच्यात् , परिमितक्षेत्रे चैषामवस्थितिरमूर्तत्वात् प्रतिद्रव्यमनंतकेवलज्ञानादिसंतानवत् , नर्तकीनयने विज्ञानवद्वा, उच्यते च-"आसंसारं सरियासहस्सलक्खेहिं वुज्झमाणादि । HARIRIDICINE adinARINAMunamridhaan ॥२९७॥ For Private And Personal Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shr i Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri K u rsuri Gyanmandie गणधरवादः श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥२९८॥ पुहवी न निद्वियच्चिय उदहीविथली न संजाओ॥४५॥ यथाऽतीतकालो वर्तमानत्वमनुभूय जातः अनादिः एवं वार्तमानिका,मिथ्या- त्वादिसव्यपेक्षात्मोपात्तं कर्म कृत्यमनादि वोच्यते, इति षष्ठः संबंधः ॥ मंडियपुत्ता ! कासव मनसि देवा किमथि वा नत्थि । वेयत्थे संसइओ दुहाविष्णुवलंभसब्भावा ॥४६॥ स एष यज्ञायुधी यजमानोजसा स्वर्गलोकं गच्छती त्यादि 'अपाम सोमं अमृता | अभूम अगमाम जोतिरविदाम देवान् किं नूनमस्मान् तृणवदरातिः किमधूर्तिरमृतमय॑स्ये'त्यादि,सोमं सोमलतारसं ज्योतिः स्वर्गा| अविदाम देवान् देवत्वं प्राप्ताः सः अस्मान् तृणवत् किं करिष्यतीति गम्यं,अरातिः-व्याधिः धुतिः-जरा अमृतमय॑स्य-अमृतत्वं प्राप्तस्य पुरुषस्य, अमृतधर्मणो मनुष्यस्य किं करिष्यतीत्यर्थः यदीदं सत्यं तदेतत् कथं ?'को जानाति मायोपमान गीर्वाणान् इद्रयमवरुणकुबेरादी'नित्यादि द्विधाऽप्यनुपलब्धिः सतां परमाणुमूलोदकपिशाचादीनां असतां शशविषाणादीनामिति ते मतिः, नैनान् | अमंस्थाः, शृणु देवस्वरूपानागमागमहेतून-अणिमिसनयणा मणकजसाहणा पुफदामअमिलाणा । चउरंगुलेण भूमि न छिविंति सुरा जिणा बिति ॥४७॥ संकंतदिव्वपेमा विसयपसत्ता समत्तकत्तव्या । अणहीणमणुअकजा नरभवमसुहं न इंति सुरा ॥४॥पंचसु जिण| कल्लाणेसु चेव महरिसितवाणुभावाओ । जंमंतरनेहेण य आगच्छंती सुरा इहयं ॥४८॥ यथा चेदानी इमे तवापि प्रत्यक्षाः, तथा शेषकालमपि चंद्रादिविमानालयदर्शनात् तथा सिद्धिः, यश्च को जानाति मायोपमा नित्यादि तत् परमार्थचिन्तायां सर्वथा सर्वमनित्यं मायोपमं इति बोधकं, नतु देवनास्तित्वस्यैवेति संबुद्धः सप्तमः ७ ॥ हे गोयमा अकंपिय ! मनसि निरया किमथि नत्थी वा। वेयत्थो संदिद्धो दुहाविष्णुवलंभसब्भावा ॥४९॥ 'नारको वै एष जायते यः शूद्रान्नमश्नाति' इत्यादि 'एप ब्राह्मणो नारको भवति. यः शूद्रान्नमत्ति 'नह वै प्रेत्य नरके नारकाः संती'त्यादि गतार्थः,केवलं त्वन्मतिः-देवा हि चन्द्रादय इव भवंतु प्रत्यक्षाः अन्ये AAAAAMIRSINHARPATI ॥२९८॥ For Private And Personal Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे● चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥ २९९ ॥ www.kobatirth.org ऽप्युपयाचितादिफलदर्शनानुमानतो अवगम्यंते, नारकास्त्वभिधानव्यतिरिक्तार्थशून्याः कथं गम्यंत इति ?, तत् प्रकृष्टपुण्यफलभाजि - सिद्धिवदुत्कृष्टपापभाजिनस्ते मंतव्या इत्यष्टमः संबुद्धः ८ ॥ हे अयलभाय हारिय ! किं मन्नसि पुन्नपाव अत्थि न वा । वेयत्थे संसइओ विपडिवत्तीहि य बहूहिं ॥ ५० ॥ | पुरुष एवेदं निं' इत्यादि विधिवादस्तुत्यर्थवादानुवादादिपरतयाऽनेकधा वेदवाक्येष्विदं जात्यादिमदत्यागायाद्वैतभावनार्थं पुरुषस्तुतिपरं, परमेकान्तशुद्धतयाऽऽकाशवत् प्रवृत्याद्यभावात् कर्मसचिवस्यैवैजनादिकर्तृत्वं नात्मनो जाघटीतीत्यस्तु कर्म्म, केवलमेतत् कथं 'पुण्यः पुण्येन पापः पापेनेत्यादि यदेवं विप्रतिपत्तयः - आचार्यमतानि तत्राहुः केचित्पुण्यमेवैकं चयापचयक्षयैः सुखासुखापवर्गदं आरोग्यानारोग्यमृतिप्रदपथ्याहारवत्, अन्ये त्वाहुः पापमेवैकमपथ्यवत् वैपरीत्यदं, | अन्ये उभयमपि संमिश्रफलं संसारिणामेकान्ततः सुखाद्यभावात्, नारकाणामपि पंचेंद्रियादिपुण्यप्रकृत्यनुभावात्, अपरे तु स्वतंत्रमुभयं विविक्तमुखासुखहेतुः क्षयाच्च मुक्तिरिति किमत्र तत्वमिति तेऽभिप्रायः, सौम्य ! स्वल्पमपि पुण्यं न दुःखाय, पापं च न सुखाय, स्वभावानतिवृत्तेः, उभयमिश्रं तु सर्वथाप्यसंभवि, अत्यंत पुण्यापुण्यातिशये युगपत्स्वर्गनरकादिसुखदुःखानुभवभावात् । विविक्तपुण्यापुण्ये तु संगते एव स्वस्योदयोपशमनतो जंतूनां सुखदुःखयोर्वैचित्र्यसिद्धेरिति नवमः संबुद्धः ९ || मेयजा कोडिन्ना ! किं मन्नसि अत्थि नत्थि परलोओ । वेयपयाण य अत्थं विसयं च न याणसी सुणसु ॥ ५१ ॥ स वै अयं आत्मा ज्ञानमय' इत्यादि प्रेत्य-मृत्वा न पुनर्जन्म - परलोकसंज्ञाऽस्ति विज्ञानघनात्मनो भूतान्यनु विनाशादित्यभिप्रायस्ते, तन्न, क्वचिद् देहोपलब्धावपि चैतन्यसंशयादिति प्रेत्य - परत्र स्वान्येहाश्रिता संज्ञा नास्तीति, देहादन्यच्चैतन्यं चलनादिचेष्टानिमित्तत्वात् मारुतः पादपादिनेति, चैतन्यमात्मधर्मस्तस्य चानादिमत्कर्म्मसंतत्यालिंगितत्वेन कर्मपरिणामापेक्षमनुष्यादिपर्यायांतरावाप्तिः अविरुद्धा, आरण्य Jain Aradhana Kendra For Private And Personal Acharya Shri Kaisuri Gyanmandir गणधरवादः ॥२९९॥ Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri A ain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaik u ri Gyanmandie श्रीदे गणधरवादः चैत्य० श्री what धर्म०संघाचारविधी ॥३०॥ केपि ब्रह्मादिषु तृणांतेषु श्लोकः, तथा वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराण्यपरापराणि, जहाति गृह्णाति च पार्थ ! जीवः।।१।। इति दशमः१०॥हे कोडिन्न पभासा ! मनसि निवाणमत्थि किंवा नो । अमुषंतो वैयत्थे विसयविभागं तयं सुणसु ॥५२ ।। 'जरामयं वा एतत्सर्व यदग्रिहोत्र'मिति, अत्राभ्युदयफलमग्निहोत्रमिति, सदाकरणोक्तेः शिवावाप्तेः | कियारंभकालाभावात् मोक्षाभावः, उक्तथासौ-'दे ब्रह्मणी वेदितव्ये परमपरं च, तत्र परं सत्यं, अपरं च ज्ञानमनंतं ब्रह्मेति ते मतिः, तन्न, यतो 'जरामर्य वा' वाऽप्यर्थो यावजीवमपि, नतु नियोगत इति,शिवावाप्तिहेतुज्ञानादिक्रियाकालास्तिता दुरित्यस्ति मोक्षः, उच्यते च-'नाणं पयासगं सोहओ तवो संजमो अ गुत्तिकरो । तिहंपि समायोगे मुक्खो जिणसासणे भणिओ ॥१॥ (आ०नि०) तिर्यगादिभवस्य चात्मपर्यायत्वेन भवनिवृत्तौ न सर्वथा निवृत्तिः, कुंडलनिवृत्तौ हेन इव इति भवनिवृत्तावप्यनितेर्भवादन्यो मुक्तात्माधारो वस्तुरूपो मोक्षोऽस्ति, शुद्धपदवाच्यत्वात् , जीवादिपदार्थवत् , व्यतिरेके खरविषाणादीत्येकादशोऽपि संबुद्धः ११॥ इय छिन्नसंसया ते जिणेण पन्चाविया पुणो पुव्वं । चउरो सह पंचसएहिं धुढेहि य तिहिं सएहिं कमा ॥५३॥ तिवई पुच्छा पुवकयवारसंगा असंगिणा पहुणा । भुवणन्महिए गणहरपयंमि संठाविआ सव्वे ॥ ५४॥ इय गणहरलोयस्स व मुहुमपयत्थप्पयासणेण जिणा । लोगप्पञ्जोयगरा जे हुंति रविन्ध तेसि नमो ।। ५५ ।। एवंविधा मिहिरादयोऽपि ततीर्थिकमतेन स्युरिति तद्विशेषाय उपयोगसंपद एव हेतुसंपदमाह-'अभयदयाण'मित्यादि, अभयं-इहलोकपरलोकादानाकसाजीनितमरणाश्लोकलक्षणसप्तभयाभावं दयंत इत्यभयदास्तेभ्यः ३ 'सरणदयाणं' रागादिभयभीतसवानां शरणं-वाणं'दयंत इति शरण-| दयास्तेभ्यः ४ 'बोहिदयाणं' बोधि-भवांतरे शुद्धधर्मसंप्राप्तिं दयंत इति बोघिदयास्तेभ्यः ५, एतानि च यथोत्तरं पूर्वपूर्व thalnaduINAL ॥३०॥ For Private And Personal Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥३०१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila risasun Gyanmandir फलभूतानि, तथाहि - अभयफलं चक्षुः चक्षुः फलं मार्ग इत्यादि संपत्, अथाद्याया एव विशेषोपयोगसंपदमाह - 'धम्मदयाण'| मित्यादि, धर्म्म- देशसर्वचारित्रलक्षणक्रियापरिणामगर्भ यथार्ह दयंत इति धर्मदयास्तेभ्यः ३ अत्र हेत्वंतराणां सद्भावेऽपि भगवन्त एव धर्म्मप्रदाने प्रधानहेतव इति, धर्मदयत्वं च धर्मदेशनयैव खादित्याह - 'धम्मदेसयाणं' धर्म प्रस्तुतं यथायोग्यमवन्ध्यतया देशयन्तीति धर्मदेशकास्तेभ्यः, 'धम्मनायगाणं' धर्मस्य वशीकरणात् फलभोगात् प्रवर्धनात् व्याघातरक्षणाच्च नायकास्तेभ्यः 'धम्मसारहीणं' प्रस्तुतधर्मस्य भव्यापेक्षया सम्यग्दर्शनप्रवर्तनपालनयोगात् सारथयो धर्म्मसारथयस्तेभ्यः, जह सारही सुकुसलो रहं तुरंगे तहा पयहेइ । जह नवि होइ अवाओ तुरंगमाणं रहस्सावि ॥ ५६ ॥ एवं जिणुत्तमेहिवि उस्सग्गववायपमुहजुचीहिं । एतहिओ धम्मो उवहट्ठो धम्मधम्मणं ॥ ५७॥ इह धम्मो होइ रहो तुरंगमा तस्स धारगा पुरिसा । उभयहियमुत्रसंता जिणनाहा धम्मसारहिणो ||५८ || ( ३३७-३३८-३३९) 'धम्मवरचाउरंतचक्कवहीणं' धर्म एव वरं - प्रधानं चतसृणां गतीनामंतकरणाच्चक्रमिव चक्रं मिथ्यात्वादिभावशत्रुलवनाद्धर्मचक्रं तेन वर्त्तत इत्येवंशीला धर्म्मवरचातुरंतचक्रवर्तिनस्तेभ्यः ४, 'अतः समुद्ध्यादावा' इति (हैम० ८-१पा० ) प्राकृतसूत्रवशादाचं, यथा-उत्तरओ हिमवंतो पुवावरदाहिणा तओ अंता । लवणसमुद्द | पत्ता तो भरहं चाउरंतमिणं ।। ५९ ।। ( ३४१ ) एयस्स सामिणो जह भरहाई चकवट्टिणो हुति । धम्मवरचाउरंतस्स तह जिणा चक्क| वट्टिसमा ||६० || (३४२) अहवा चउदिसि धारं चउरंतं चकमुच्चइ तहेव । दाणतवसीलभावणचउधारं धम्मचक्कमिणं ॥ ६१॥ (३४३) संपत् ६ । अथाऽऽद्ययोरेव सकारणस्वरूपसंपदमाह - 'अप्प डिहये' त्यादि, अप्रतिहते - सर्वत्राप्रतिस्खलिते वरे- क्षायिकत्वात् प्रधाने ज्ञानदर्शने - विशेषसामान्यावबोधरूपे घारयंतीत्यप्रतिहतवरज्ञानदर्शनधराः तेभ्यः, 'वियद्द्छउ माणं' छादयतीति छद्म-ज्ञानावर For Private And Personal शक्रस्तवव्याख्या ॥३०१ ॥ Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ShriMB nAradhana Kendra www.kobarth.org Acharya Shri Kailash Seersun Gyanmandit श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म०संघाचारविधौ ॥३०२॥ शक्रस्तवव्याख्या MILAIMARRIAANI PABILIAMERI णीयदर्शनावरणीयमोहनीयांतरायेतिघातिकर्मचतुष्टयं तद्व्यावृत्तं-अपगतं येभ्यः ते व्यावृत्तच्छद्मानः तेभ्यः२, नणु अट्ठवि कम्माई जिणाण नट्ठाई किं चउक्केण ? । सचं ओसरणत्थे पडुच्च छउमक्खओ भणिओ ॥६२॥ संपत् ७। अथ स्वतुल्यपरफलकर्तृत्वमाह'जिणाण'मित्यादि, जिनेभ्यः-स्वयं च रागादिजेतृभ्यः, जापकेभ्यः अन्येषामप्युपदेशादिना रागादिजयकारयितृभ्यः, तीर्णेभ्यः स्वयं भवार्णवपारगतेभ्यः परेषामपि ततस्तारयितृभ्यःबुद्धेभ्यः स्वयंज्ञाततत्वेभ्यः बोधकेभ्यः अपरेषामपि तत्वज्ञापकेभ्यः मुक्तेभ्यः स्वयं भवहेतुकर्मपाशनिर्गतेभ्यः मोचकेभ्य इतरेषामपि ततः प्रमोचयितृभ्यः४, संपत ८, एतावता केवल्यवस्थाभावनोक्ता, सांप्रतं | सिद्धावस्थामाश्रित्य नवमीं संपदमाह-'सबन्नूण'मित्यादि, सर्व वस्तु सामान्यविशेषात्मकमपि प्रथमसमये विशेषात्मकतया जानतीति सर्वज्ञास्तेभ्यः, ततो द्वितीयसमये सर्व वस्तु सामान्यात्मकतया पश्यंतीत्येवंशीलाः सर्वदर्शिनस्तेभ्यः, आह–इत्थमेषां दर्शनसमये ज्ञानस्यासवादसर्वज्ञताप्रसंगः, नैवं, सर्वस्य केवलिनः सदैव ज्ञानदर्शनलब्धिसद्भावेऽपि तत्स्वाभाव्यान्न युगपदेकस्मिन् समये उपयोगद्वयसंभवः, क्षायोपशमिकसंवेदनेऽपि तथा दर्शनात् , न च चतु निनोऽप्येकस्मिन् ज्ञानोपयोगे सति शेषज्ञानाभावः स्यात् , अत्र बहु वक्तव्यं, तत्तु नोच्यते (तच्च वृहत्कल्पतो ज्ञेयं) ग्रंथगौरवभयात् , तथा अप्रतिहतवरेत्याद्युक्त्वा पुनरिह विशेषणद्वयोपादानं मुक्तावस्थापेक्षं 'सिवमलयं चेत्यादि,शिवं सर्वोपद्रवाभवात् अचलं स्वाभाविकप्रायोगिकचलनक्रियाविरहात् अरुजं रोगवर्जितत्वात् , अनंतं अनंतसिद्धमानात् (अनंतज्ञानात्मत्वाद्वा), अक्षयं विनाशहेत्वभावात् अव्याबाघ देहमनोव्याबाधारहितं अमूर्तत्वात् न पुनर्भवे आवृत्तिः-आगमनं यस्मात् तदपुनरावृत्ति भवभ्रमणहेतुकाभावात् , उक्तं च-दडूमि जहा बीए न होइ पुण अंकुरस्स उप्पत्ती। तह कम्मवीयविरहे भवंकुरस्सावि नो भावो॥६३।।(२८६)त्ति, सर्वत्र सिद्धिगतजीवानामिति गम्यं, आधेयवशा- MUDRA munam ॥३०२॥ For Private And Personal Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M www.kobatirth.org Gyanmandie शक्रस्तवव्याख्या श्रीदे० चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥३०३॥ n Aradhana Kendra Acharya Shri Kailash दाधारस्यापि तद्यपदेशो न दुष्ट आधाराधेययोरभेदोपचारात मंचाः कोशंतीत्यादिव्यपदेशवत् शिवगतिनामधेयं लोकाग्रं स्थानंनिवासं सम्यक् सर्वकर्मोन्मूलनेन, नतु एकेंद्रियादिवत्सकर्मकत्वेऽपि, प्राप्ता-गतास्तेभ्यः 'नमो जिणाणं जियभयाण मिति तृतीय आलापकः सुगम एव, अत्र च भाष्यं-"सत्वन्नूयाइ पढमो वीओ सिवमयलमाइ आलाबो । तइओ नमो जिणाणं जियभयाणंति निद्दिट्ठो॥१॥त्ति, एवं च त्रयस्त्रिंशदालापकप्रमाणोऽयं जीवाभिगमादिसिद्धांतललितविस्तरावृत्याद्यनुसारेण व्याख्यातः, पुनरंते नमस्काराभिधानं मध्यपदेष्वप्यनुवृत्यर्थ, अत्र च स्तुतित्वान्न पौनरुक्त्य, यदागमः-"सज्झायझाणतवओसहेसु उवएसथुइपयाणेसु । संतगुणकित्तणेसु य न हुंति पुणरुत्तदोसा उ ॥१॥ अनेन च जिनजन्मादिषु शको जिनान् स्तोतीत्ययं शक्रस्तवोऽप्युच्यते, अथ चूर्णिः- "एस भावारिहंतसम्भूयगुणकित्तणंति पढमो अहिगारो, इयाणिं कालत्तयवत्तिदवारिहंतसंथवणंति बीयोऽहिगारो भन्नइ, यद्भाष्यम्-"विसयबहुत्ते किरिया भावुल्लासाउ बहुफला होइ । पणिवायदंडगोवरि भन्नइ तम्हा इमा गाहा॥१॥(३६२)॥जे य अइयासिद्धा जे य भविस्संतीऽणागए काले। संपइ य वट्टमाणा सव्वे तिविहेण वंदामि ॥२॥ ये च अनंता अपि जिनाः अतीताः सिद्धाः-अनंता अतिक्रांतकाले मुक्ताः, ये च अनंता जिना भविष्यति सिद्धा इत्यत्रापि योज्यं अनागामिनि काले, संप्रति वर्तमानाः, इदानीमपि येऽनासादितभावार्हत्पदा वर्तते, छमस्था इत्यर्थः, एतेन छद्मस्थभावनमप्युक्तं, तथा च लघुभाष्यम्-जे य अइयगाहाए बीयहिगारेण दवअरिहंते । पणमामि भावसारं छउमत्थे तिसुवि कालेसु॥शात्ति, तान् | सर्वान् त्रिविधेन-त्रिकरणविशुद्धं वंदे नमामि स्तवीमि च, ननु किं द्रव्याहतो नरकादिगतिगता अपि भावार्हद्वद्वंदनाहाः?, काम, कथमिति चेद् उच्यते-आगमप्राणाण्यात् , तथा चावश्यकचूर्णिष्वपि उक्तं-'उकोसपएणं सत्तरं तित्थयरसयं जहण्णयपएणं ॥३०॥ For Private And Personal Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M e in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaita l on Gyanmandie Pात मरीचिदृष्टान्तः श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥३०४॥ ANPURISPERIMARTUPPR वीसं तित्थयराणं ताव एगकाले भवंति, अइया अणागया अर्णता, ते तित्थगरे नमसामि"त्ति, किंच-सर्वत्र नामस्थापनाद्रव्याहंतो भावार्हदवस्थां हृदि व्यवस्थाप्य नमस्कार्याः, एतद्ज्ञापनार्थमेव च पूर्वाधिकारोक्ता अतीता अरिहंता जे य अइया सिद्धा इति पुनर्भणनं, भणितं च चैत्यवंदनाचूर्णी-"पुवाहिगारामिहियअतीतारिहंताणं पुणो जे य अइया सिद्धत्तिपएण भणणं भविस्सवट्टमाणजिणा हि पत्तभावारिहंतभावा एव वंदेयत्वा, न नरगाइभववत्तिणोत्ति जाणावणत्थं"ति, भरताधिपेनापि च इत्थमेव नमस्कृतत्वात् , तदृष्टांतश्वायम्___अत्थि अउज्झानयरी नव्वकुलालंकिया नवपुरिव्य । जाए करवालुप्पाडणं तु समणाण न जणाणं ॥१॥ अविय-सत्तमुणिमित्तगम्वियमणेगमणिसंकुला सुरपुरिपि । एगवुहं भूरिहा हसइव जा तूररसिएहिं ॥२॥ साहियअखंडछक्खंडभारहो तत्थ भरहचक्कवई । आखंडलुव्व अक्खंडसासणो पालए रजं ॥ ३ ॥ तथा 'छन्नवइगामकोडीण बाणवइदोणमुहसहस्साणं । बिसयरिपुरसहसाणऽढचत्तपट्टणसहस्साणं ॥ ४ ॥ तहय चउवीसकब्बडसहसाणं सोलखेडसहसाणं । वीसाऽऽगरसहसाणं चउदससंवाहसहसाणं ॥५॥ छप्पन्न कुरजाणं गुणवन्नासंतरोदयाणं च। सामित्तं कुणइ तहा चउवीसमडंबसहसाणं ॥ ६ ॥ सवणसुहकारिदसदिसिविसारिजयसहपंचमो कइया । उच्छलिओ गयणयले चउबिहाऽऽउज्जगहिरसरो ॥७॥ तं सोउ संभमुम्भंतलोयणेणं निवेण पडिहारो। किमिणति पुच्छिओ भणइ इय सिरे अंजलिं काउं ।।८॥ देवाणुपिया सइ जस्स दंसणं अहिलसंति कखंति ।जन्नामस्सवणेणवि हयहियया हुंति स जयगुरू ॥९॥ आगासगेण छत्ततयेण चमरेहिं धम्मचक्केण । सह पायपीढसीहासणेण धम्मज्झएण तहा ॥१०॥ कमकमलअहिट्ठियकणयनलिणनवगेण नमिरसिखरेहिं । पवणेणऽणुकूलेणं पयाहिणावत्तसउणेहिं ॥११॥ हिट्ठमुहकंटएहि य गयण- RILPAILIPPATIALA AURamPURE ॥३०४॥ For Private And Personal Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahayan Aradhana Kendra श्रीदे चैत्य० श्री. - धर्म० संघाचारविधौ ॥ ३०५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandir यलविसारिदुंदुहिसरेण । इह अट्ठावयसेले सिरिरिसह जिणो समोसरिओ ॥ १२ ॥ तं सोउ हट्ठतुट्ठो अद्धत्तेरस सुवनकोडीओ । पीईदाणं दलय भरहो वित्तिस्स तस्स तओ ||१३|| सह अंगरक्खलक्खेहिं अंगरक्खेहिं तह य जक्खेहिं । सोलसहिं सहस्सेहि य परियरिओ सहसकिरणोत्र || १४ || देसाण विमाणाणत्र सामीणं मउडबद्धराईणं । बत्तीस सहस्सेहिं से विओ सहसनयणोव्त्र ।। १५ ।। रयणेहिं चउद्दसहिं मणोरमेहिं विरायमाणो सो। कयदेहसंगहो विव जंबुद्दीवो महनईहिं ॥। १६ ।। तत्थ - चम्ममणिकागिणी सिरिहरम्मि दंडासिचकछत्ता णि । जायाणि आउहगिहे इय सत्तेगेंदिरयणाणि ॥१७॥ उत्तरसेढीए थीरयणं हयगय वियडुगिरिमूले । सेणावइ गाहावर पुरोहि वडूइ विणीयाए || १८ || पयतलगेहिं निहीहि य विहरंतजिणुव्व नवहिं कमलेहिं । तिसएहिं तिसट्ठेहि य सूवेहिं दिणेहिं वरिसोव्व ॥ १९ ॥ बत्तीसहिं लक्खेहिं बत्तीसतिबद्धपवरनट्टाणं । तह निववरकन्नाणं जणवयकलाणयाण तहा ॥ २० ॥ हयगयरहाण चुलसीलक्खेहिं छन्नवतिकोडीहेिं । पाईकाण तहद्वारसेहिं सेणिप्पणीहिं ॥ २१ ॥ अन्नेहिवि राईसरत लवर कोडं बिसिट्टिमाईहिं । परियरिओ भरहनिवो नमणत्थं निग्गओ नयरा ।। २२ ।। पविसित्तु समोसरणे विहीऍ भरहो नमिय जयनाहं । सुणइ इय सयलमलसलिलसंनिहं देसणं पहुणो || २३ || “भत्ति बहुमाणपूयाथुइसेवानमणवंदणाईहिं । लहइ जिणाईण जिओ तित्थयरताइवररिद्धी || २४|| नियमइ य तित्थगुत्तं नियमा मणुओ तिहावि सुहलेसो । आसेविएहिं बहुसो वीसाए अन्नयर एहिं ||२५|| जओ-जिण १ सिद्ध २ पवयण ३ गुरू ४ थेर ५ बहुस्सुय ६ तवस्सी ७ वच्छलं । नाणु ७ वओगो ८ दंसण ९ विनया१०वसयविहि ११ सीलवयं १२ ||३०|| अणइकमो खणलव १३ तव १४ चय १५ वेयावच्च १६ विहिसमाही य १७ । अप्पुव्वनाणगहणं १८ सुयभत्ति १९ पभावणा वीसं २० ।। ३१ ।। अह नरवणा पुट्ठो पहू कहित्थित्थ भावजिणचक्की । तहय अपुट्ठे For Private And Personal मरीचि - दृष्टान्तः ॥ ३०५ ॥ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahn Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash Gyanmandie मरीचिदृष्टान्तः श्रीदे. चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥३०६॥ MAHINILA बलहरिपडिहरि तह किंपि जंपेमि ॥३२।। तथाहि-नमिय जिणं वुच्छं जिण १ चक्कि २ हरि ३ बलाण नाम? पुररपिअरो ४ । सुमिण५ कुल६ गुत्त७ वन्ने८ माणा९यु१० गइं११ तराईणि१२ ॥१॥ उसभो अजिओ संभव अभिनन्दण सुमइ सुप्पह मुपासा । चंदप्पह सुविहि सीयल सिजंसो वासुपुज्जो य ॥२॥ विमलमनंतइ धम्मो संती कुंथू अरो य मल्ली य। मुनिसुबय नमि नेमी पासो वीरो य जिणनामा ॥३॥ जम्मपुरी दो विणिया सावत्थी दो अउज्झ कोसंबी । वाणारसी चंदउरी कायंदी भद्दिलपुरं च ।। ४॥ सिंहपुर चंप कंपिल्लउज्झ रयणउर तिगयपुर मिहिला। रायगिह मिहिल सोरियपुरवाणारसी य कुंडपुरं ॥ ५॥ नाही जियसत्तु जिआरि संवरो मेह धर पईट्ठनिवो । महसेन सुगीव दढरथ विण्हू वसुपुज्ज कयवम्मा ॥६।। सिंहरह भानु विससेण पर सुदरिसण कुंभ य सुमित्ता। विजये समुद्दविजयाऽऽससेण सिद्धत्थ जिणपिअगे।॥७॥ मरुदेवी विजयादेवा सेणा सिद्धत्थ मंगल सुसीमा । पुहवी लक्खण रामा नंदा विण्हू जया सामा ||८| सुजसा सुन्बय अइरा सिरिदेवि पभावई य पउमबई । वप्पा सिवा य वामा तिसलादेवी य जिणमाया ॥९॥ गयवसहसिंहअभिसेय दाम ससि दिणयरं झयं कुम्भं । पउमसर सागर विमाणभवण रयणग्गि सुमिणत्ति ॥१०॥ निरउव्वट्टाण इहं भवणं सम्गच्चुआण उ विमाणं । वीरुसहसेसजणणी नियंसु ते हरिवसहगयाई॥११॥ दुनरय कप्पगिविजा हरि य तिनरयविमाणएहिं जिणा । पढमा चक्कि दुनरया बला चउसुरेहि चकिवला ॥ १२ ॥ जिणचक्कीणं जणणी नियंति चउदस गयाइ वरसुमिणे । सगचउतिगएगाइ हरिबलपहिहरिमंडडियमाया ॥१३॥ गोयमगुत्ता हरिवंससंभवा नेमिसुब्बया दोवि । कासवगुसा इक्खागवंसजा सेसबावीसं ॥१४॥ पउमवसुपुज्ज रत्ता ससिसुविही सेय नमिमुनी काला । पासो मल्ली नीला कणयनिहा सोल सेसु जिणा ॥१५॥ पणधणुमय पन्नट्टसु दस पणसु पन्नट्ठसु य धणुहाणी । नवसत्तकरुस्सेहे आयंगुलिवीससउ सव्वे LITIHARANTLEMINAMICHHINA MISSIAN BIPuranium HDPARAI SIMILIHATIRAANINDIA ॥३०६॥ ngam For Private And Personal Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kalah Gyanmandie मरीचिदृष्टान्तः श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म०संघाचारविधी ॥३०७॥ HATION ॥१६।। चउधणुचारंसद्गागयमायंगुलपमाणअंगुलयं । ते उसहो वीससयं बारंगुलहाणि जा सुविही ॥१७॥ वीसंसदुअंगुल जावा हाणिऽनंतो तयधु जा नेमी। सगवीसंसा पासो इगवीसंसो महावीरो॥१८॥ आऊ चुलसी विसयरी सट्ठी पन्नाय चत्त तीस वीस । दस दो इगपुव्वलक्खा सग चुलसी विसयरि सट्ठी ॥१९।। तीस दस एग लक्खा रिसाणं सहसपणनवइ चुलसी। पणपन्ना तीस दस एगु सहस सयं च दुगसयरी ॥२०|| चुलसीइ वरिसलक्खा पुच्वंगं तग्गुणं भवे पुन्वं । सत्तरिकोडी लक्खा वरिसा छप्पन्न सहस कोडि ॥२१॥ पुव्वंगहयं पुव्वं तुडियंगं वासकोडिकोडीओ। गुणसट्टि लक्खसगवीस सहस्स चत्तारि य सया उ ॥२२।। अट्ठावयंमि उसहो वीरो पावाइ रेवये नेमी। चंपाएँ वासुपुजो सम्मेये सेसजिणसिद्धा ॥२३॥ इह पन्नतीस दस नवकोडिलक्खा कोडि सहस नवनवई । नव अयरकोडिसई नवकोडि नवकोडि इगकोडि ॥ २४ ॥ अयरसयवरिसछावहिलक्खछब्बीससहस्स ऊणयरं । चउपन्न तीस नव चउ तिय अयरा पउणपलिऊणा ॥२५॥ पलियद्धं कोडिसहस वरिससऊणो य पलियचउभागो। वरिसाण कोडिसहसा लक्ख चउपन्न छप्पंच ॥२६॥ पउणचुलसीइ सहसा अडाइसयत्ति अंतरतिवीसे । अयरेगकोडिकोडि बायालसहस्सवरिसूणो ॥२७॥ इगइगतिगइगतिय इगइगसयरी इगार पलियचउभंगो। सुविहाइसगंतरयंमि तित्थच्छेओ न सेसेसु ॥२८॥ चक्की भरहो सगरो मघव सणंकुमर संतिकुंथुअरा । सुभुम महपउभ हरिसेण जउनिको भदत्तो य ।। २९ ।। चक्किमपुरि विणीया अउज्झ सावत्थि गयउरे पंच । वाणारसी कंपिल्ले रायगिहे चेव कंपिल्ले ॥३०॥ चकिजणणी सुमंगल जसवइ भ६ सहदेवी अइर सिरिदेवी। देवी तारा जाली मेरा वप्पा य चुलणी य ॥३१।। उसमे सुमित्तविजए समुद्दविजए य आससेणे य । तह वीससेण सूरे सुदरिसणे कित्तिविरिए य ॥३२॥ पउमुत्तरे महाहरि विजये बंभे पिया उ चक्कीणं । इक्खागवंसकासरगुत्ताण सुवनवनाणं ॥३३॥ पणधणु ॥३०७॥ For Private And Personal Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥ ३०८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailanturi Gyanmandir पण्णसय सह दुचत्त सगचत पणतीसा । तीस अडवीस वीसा पनरस वारसयधणुतणुणो ॥ ३४ ॥ निवआऊ चुलसी बिसयरि पुव्वलकखाण तिएग समलक्खा । पणनवइ चुलसी सड्डी तीस दस तिसहस बिति सत्तसया ||३५|| अड चक्की पत्त सिवं सुभूम बंभो य अप्परहाणे । मघवं सणकुमारो सणकुमारं गया कप्पं ||३६|| उसमे भरहो अजिए सगरो मघवं सणकुमारो य। सिरिधम्मसंतिअंतरि संतिकुंथुअरजिण चक्की ||३७|| अरमल्लिमज्झि सुहुमो सुबए पउमो नमिम्मि हरिसेणो । नमिनेमिअंतरि सुजओ नेमिपासंतरे बंभो ॥ ३८ ॥ नेसप्पे पंडुयए पिंगलए सव्वरयण महपउमे । काल महकाल माणव संखे चक्कीण नवनिहिणो ॥ ३९ ॥ पलिओ माउ तन्नामसुरगिहा वेरुल्लियमणिकवाडा । ककेयणमयमञ्जुससंठिया जण्हवीह मुहे ||४०|| घरधन्नभूसणमणीवत्थकालद्धजुट्ठनहविही । चकठिया जोयण अड नववारुच्च पिहुऽडदिहा ।। ४१ ।। सेणावर गाहावद्द पुरोहि बढ्इ गयत्थियचकं । दंडासि छत्तकारिणि चम्माणि पणिदिगिंदी सग || ४२|| असि बत्तीसंगुल दुकर चम्मु वामनम चक छगुदंडं । हुंति पुण वारजोयण चमछत्ता चकिणा पुट्ठा ||४३|| चउरंगुलप्पमाणो सुवन्नवरकागिणी छलंसो य । चउरंगुलमणि तस्सद्धवित्थडो रयणचउदसगं || ४४ ॥ जक्ख सोल सोलसहसद्गुणानि निवि३२यर ३२ कन्न ३२ वेस ३२ देसपुरा । छन्नवह कोडिसुहडा गयहयरहचकचुलसीई ||४५ || बचीससहस्सा नाडयाण बत्तीस विहिनिबद्धाणं । सूवा तिसयतिमट्ठा अढार सेणी पसेणी य ॥ ४६ ॥ कब्बड मडं चउवीस सहस दुतिगुणिय पट्टणाइपुरा । छप्पन्न अंतरोदग गुणवन्न कुरज तह भरहे ॥ ४७ ॥ छन्नवई गामकोडी दोणमुहा९९ऽऽगरय२० खेड १६ संवाहा १४ । नवनवइ वीस सोलस चउदसहसाइ छकूखंडा ||४८ || एयाण विपस्सवि दसहियसयदेस पुरदुसेढिस्स । सामित्ताइ करंता चकधरा हुंति इय बलिणो ।। ४९ ।। बत्तीस निवसहस्सा सव्वबलेणं तु संकलनिबद्धं । अञ्छंति चकवट्टि अगडतडंमी ठियं For Private And Personal मरीचि - दृष्टान्तः ||३०८|| Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shi www.kobatirth.org श्रीदे० pun Gyanmandie मरीचिदृष्टान्तः चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥३०९॥ D n Aradhana Kendra Acharya Shri Kaya संतं ॥५०॥ चित्तूण संकलं सो वामगहत्थेण अंछमाणाणं । भुजिज विलिम्पिज व ते तंबुठिया न चायति ॥५१॥ विण्ड तिविठ्ठ दुविठ्ठ सयंभु पुरिसुत्तमे पुरिससीहे । तह पुरिसपुंडरीए दत्ते लक्खमण कण्हे य ॥५२॥ विण्हुबलजम्मनयरे पोयणपुरबारबईतिगऽस्सपुरं । चक्कपुरं वाणारसी रायगिहं महुरनयरी य ॥५३॥ हरिमायाउ भिगावइ उमा य पुहवी य सीय अम्मयया । लच्छि| वई सेसबई केगई देवई चेव ॥५४॥ हवइ पयावइ बंभो रुद्दो सोमो सिवो तह सिवो य । अग्गिसिहो य दसरहो वसुदेवो विण्हुबलपियरो ॥५५।। कासवगुत्ता इक्खागवंसजा पउमलक्खणा दोन्नि । हरिवंसकुला गोयमगुत्ता सेसट्ठजुयलाओ ॥ ५६ ।। चकिद्धरिद्धिबलिया चक्कधणुगयासिसंखमणिमाला। सग रयणा गरुडझया नीलतणूसी(पी)यवसण हरी ।। ५७ ॥ विण्हुबलदेहमाणं असीइ सत्तरी य सट्ठि पन्नासा। पणयाला गुणतीसा वीस सोलस दस धणूणि ।। ५८ ॥ हरिआउ वरिसलक्खा चुलसी दुगसयरि सहि तीस दस । सहस्साई पंचसट्ठी चउप्पन्ना बारसेगं च ॥ ५९॥ पढमो अपइट्ठाणे पंच य छट्ठीइ पंचमी एगो । एगो य चउत्थीए चरिमहरि वालुयपभाए ॥६०॥ सेयंसंमि तिवठू वसुपुजि दुविठु सयंभु विमलंमि । पुरिसुत्तमो अणंते धम्मजिणे पुरिससीहहरी ॥६१।। अरमल्लि अंतरे सुभुम मल्लीए पुरिसपुंडरिय दत्ता । मुणिमुव्बयनमि अंतर लक्खमणो कण्ह नेमिमि ।।६२।। ॥६२।। चक्किदुगं हरिपणगं चक्की पण केसवो य चक्की य । केसव चक्की केसव दुचकि केसी य चक्की य ॥६३॥ जिण चक्कीदुग अड जिण जिणहरिपण दुचक्कितिजिण हरि चक्की। हरि जिण जिण जिणचक्की चक्कि चक्किजिण हरिचक्की जिणा॥६॥ हरिजिट्ठभायरो नव बलदेवा अयल विजय भद्दा य । सुप्पभ मुदंसणाऽऽणंद नंदणा राम बलभद्दा ॥६५॥ बलजणणीओ भद्दा मुभद्द मुप्पह सुदंसणा विजया। विजयंती य जयंती अपराजिय रोहिणी चेव ॥६६॥ हरिअद्भुतपुराईबला बला नीलवसण ताल ॥३०९॥ For Private And Personal Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri N i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaikki lui Gyanmandie दृष्टान्तः MAHINIDENT श्रीदे० झया । हलमुसलवामकुंडलमणिमालारपणी सेयतणू ॥६७॥ पंचासी पन्नत्तरि पणसट्ठी पणपन्न सत्तरसमलक्खा । पणसि पणट्ठी | मरीचिचैत्य श्री पनरस सहस सय बारसबलाऊ ॥६८|| अट्ठ बलदेव सिद्धा नवमो उ दसायराउ बंभ चुओ। नियभायकण्हजियअममतिथि इह धर्म संघा सिज्झिही भरहे ॥६९।। चउपन्नुत्तमपुरिसा इह एवं हुंति जीवपन्नासं । नवपडिविण्हहि जुआ तेसट्टि सलागपुरिस भवे ॥७०॥ इह चारविधौ । आसगीय तारग मेरय महु केढवे निमुंभे य । बलि पल्हाए रावण जरसिंधू हुंति पडिविण्हू ।।७१।। पुव्युत्तहरीण अरी एए बल॥३१॥ सामिणो य चक्कधरा । पजंतसमयंमि य चक्कि हरिहया नरयमुवयंति ॥७२॥ भणियं च-"अनियाणकडा रामा सव्वेविय केसवा नियाणकडा। उडंगामी रामा केसव सव्वे जहोगामी ।।७३॥ पणपंती तीसघरा तिरि उडं छ चउतीसरेहाहिं । आइघरपणगि अरिहंत चक्की हरि नाममाणाउ ।। ७४ ॥ आइमपंतीइ जिणा पनरस दो सुन्न तिजिण सुन्नतिगं । दोन्नि जिणा सुन्नजिणा सुन्नजिणो सुन्न | जिण सुन्नं ॥७५॥ बीयाइ दुचक्की सुन्न तेर पण चक्कि सुन्न चक्की य । दोमुन्न चक्किसुन्नं दुचक्किसुनं चक्किदुमुन्नं ॥७६॥ तियपंती दस सुन्नं केसवा पंच पंच सुन्न हरी । सुन्नं हरि दोसुन्ना हरि दोमुन्ना हरि तिसुन्ना ॥७७॥ भरहुसहा सगराऽजिय समग मुणिपउम नेमिहरिसेणा । सिजंसाइतिवट्ठाइ पणसमं नेमिकण्हा य ॥७८॥ अडसंभवाइ संति वितिग मल्लिपासद्गपिहुघरा एए । तिचउ अडिगार बारस चक छसगट्टमहरी य ॥७९॥ मघवसणं धम्मतित्थे अरनमिनेमीण सुभुम जय बंभा । अरतित्थि पुरिसपुंडरिय दत्त लक्खणुसुवयतित्थे ॥८०॥ पणसय धणुपनऽसु दस पंचसु पण अढाइ एगूणा । चत्तपणतीसतीसे गुत्तीस अडवीस छब्बीसा ||८१॥ पणवीस तीस सोलस पनरस बार दस सत्त धणूणि नव । सगरयणी तणुमाणं दुतीसघर एस तह आऊ ।।८२॥ चुलसी बिसयरि सट्ठी पंन चत्ता तीस वीस दस दु इगं। पुव्वलक्ख वरिसलक्खा चुलसी विहत्तर सहि तीस दस ॥ ८३ ।। IN|३१०॥ mins For Private And Personal Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri in Aradhana Kendra www.kebatirth.org Acharya Shirika Gyanmande 1001 मरीचि श्रीदे. | पणतिगलक्खु सहसा पणनवई चुलसी पणसट्टी सट्ठी य । छप्पन्न पणपन्ना तीस बार दस तिनि इग सहसा ।।८४|| सयसत्तएगु चत्य-श्री | हरि सविस विहत्तरि एवमिह समासेणं । उत्तमनरपंचासी सिरिविजाणंदमूरिथुया ॥८५|| इय गुणसद्विजियाणं इमाण तेसहिसला- दृष्टान्तः धर्मसंघा-IA गपुरिसाणं । चउपन्नुत्तमपुरिसा सोउमइहरिसिओ हियए ॥८६॥ (प्रत्यन्तरे अरिहंत१ सिद्ध२ पवयण३ गुरु४थेर५ बहुस्सुए६ चारविधी तवस्सीसु७। वच्छल्लया य एसिं अभिक्खनाणोवओगे८य ॥८७॥दसण९ विणए१० आवस्सए११ य सीलबए१२ निरइयारो । खण॥३१॥ लव१३ तव१४च्चियाए१५ वेयावच्चे१६ समाही१७य ॥८८|| अप्पुवनाणगहणे१८सुयभत्ती१९पवयणे पभावगया २०/ एएहिं कार णेहिं तित्थयरत्तं लहइ जीवो ॥८९॥" अह नरवइणा पुट्ठो जिण चक्की इत्थ भाविणो भयवं!। इय कहइ तहा य अपुच्छिएवि बलविण्हुपडिविण्हू ।।१०।। तथाहि-होही अजिओ संभव अभिनंदण सुमइ पउमपह सुपासो। चंदप्पह सुविहि सीयल सिजंसो वासुपुज्जो अ॥९१॥ विमल अणंतइनाहो धम्मो तह संति कुंथु अर मल्ली । मुणिसुब्धय नमि नेमी पासो चउवीसमो वीरो ॥९२॥ होही सगरो मघवं सणंकुमारो य संति कुथु अरो। चक्की सुभूम महपउम तहय हरिसेण जय बंभा॥९३॥ अयले विजये भद्दे, सुप्पभे य सुदंसणे । आणंदे नंदणे पउमे, रामे य नवमे बले ॥९४॥ विण्हू-तिविठू य सयंभू, पुरिसुत्तमे पुरिससीहो । तह पुरिसपुंडरीए, दत्ते नारायणे कण्हे ।।९५|| आसग्गीवे तारय मेरय महु केढवे निमुंभे य । बलि पल्हाय दससिरे पडिविण्हू तह जरासिंधू ॥९६।। गुणसहिजियाण इमाण कहइ तेसहिसलागपुरिसाणं । पियमाइपुरपमाणाउवण्णपरियायगुत्तगई ॥९७१) पुण भणइ निवो | नणु पहु ! इमीइ सुरअसुरमणुयपरिसाए । सो अस्थि जिओ जो इहऽवसप्पिणीए जिणो होही? ॥ ९८ ॥ भणइ पहू तुह पुत्तो || | पढमपरिव्वायगो मरीइ इमो । होही चउवीसइमो तित्थयरो इह महावीरो ॥९९।। पढमो य वासुदेवो तिविठुनामेण पोयणा-10॥३११।। maiINARMADARASING For Private And Personal Sama- Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M . Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash Gyanmandie मरीचिदृष्टान्तः श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥३१२॥ LIMITRATIMEIPRITAMPARA | हिबई । मृकापुरीइ चक्की पियमित्तो तं (मह) विदेहेसु ॥१००॥ तं वयणं सोऊणं राया अंचियतणूरुहसरीरो। अमिवंदिऊण पियरं | मरीइमभिवंदिउं जाइ ।। १०१ ॥ तं भणइ गंतुमिय ते न य वंदे चक्किअद्धचक्कित्तं । नवि ते पारिव्यजं वंदे न इमं च ते जम्म | ||१०२।। किंतु जमुत्तो ताएण तंसि चरिमो जिणो महावीरो। इण्हिपि तुज्झ वंदे तं अरिहत्तं तिजयपुव्वं ॥१०३।। यदागमः| "सो विणएण उवगओ काऊण पयाहिणं च तिक्खुत्तो । वंदइ अभित्थुणंतो इमाहिं महुराहिं बग्गूहि ॥१०४|| लाभा हु ते सुलद्धा जंसि तुमं धम्मचक्कवट्टीणं । होहिसि दसचउदसमो अपच्छिमो वीरनामोत्ति ॥ १०५॥ एवं ण्हं थोऊणं काऊण पयाहिणं च तिक्खुत्तो। आपुच्छिऊण पियरं विणीयनयरिं अह पविट्ठो॥१०६॥ श्रुत्वैवं भरताधिपेन विहिता द्रव्याहतो वंदना, श्रीनाभिप्रभवप्रभोर्वचनतश्चाष्टापदे स्थापनाम् । तद्भो भव्यजनास्त्रिकालभविनामेषां सदा वंदना,कुर्वीचं प्रतिमाश्च भावजनिताध्यारोपतो यत्नतः ॥१०७॥ इति भरतकथा । तदेवं द्रव्याहतां नमस्करणीयत्वात् भाष्यकारादिभिः समर्थित्वादावश्यकचूर्णिकृव्याख्यातार्थवाद् संवेगादिकारणत्वात् सम्यक्त्वनैर्मल्यहेतुत्वादशठबहुबहुश्रुतपूर्वाचार्याचरितत्वात् जीतकल्पानुपातित्वाच्च युक्तेयं जे य अइयेति गाथेति । 'एप द्रव्याईद्वदनार्थ द्वितीयोऽधिकारः, शक्रस्तयविवरणं समाप्त'मिति चूर्णिः, एवं शक्रस्तवाख्यप्रथमदंडकेन | भावद्रव्याहतोऽभिवंद्य स्थापनार्हवंदनार्थमुत्थाय साधुः श्रावको वा चैत्यस्तवदंडकं विधिवद् भणति, उक्तं च-"उट्ठिय जिणमुद्दाठियचलणो विहियकरजोगमुद्दो य। चेइयगयथिरदिट्ठी ठवणाजिणदंडयं पढइ ॥ १ ॥ (३३२)" तत्रास्य संपद्गतपदसंख्याद्यपदपरिज्ञानार्थमाहदुछसगनवतियछचउछप्पय चिइसंपया पया पढमा। अरिहं बंदण सद्धा अन्न सुहमा एव जा ताव ॥३७।। RIMURARIAmit HalthimirmiIARRIENidhillionsani P ॥३१२॥ S THAN For Private And Personal Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mal i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailalaban Gyanmandie चैत्यस्तवदंडकार्थः चैत्यश्री धर्म संघान चारविधौ ॥३१३। अक्षरघटना प्राग्वत् , भावार्थस्त्वयं-अरिहंतचेइयाणमित्याद्यपदवयप्रमाणा प्रथमा संपत , वंदणवत्तियाए इत्यादिपदषट्कपरिमाणा द्वितीया संपत् , सद्धाए इत्यादि सप्तपदमाना तृतीया संपत् , अन्नत्थ ऊससिएणमित्यादिपदनवकनिर्मिता चतुर्थी संपत् , | सुहुमेहिं इत्यादिपदत्रययुता पंचमी संपत् , एवमाइएहिं इत्यादिषट्पदपूरिता षष्ठी संपत् , जाव अरिहंताणमित्यादिपदचतुष्कप्रमाणा| | सप्तमी संपत् , ताव कायमित्यादिपदषट्कघटिताऽष्टमी संपत् इति । अथ सूत्रं चित्रियते, तच्चेदम्-'अरिहंतचेइयाण'मित्यादि, नरादिकृतं वंदनपूजनादि सिद्धिगतिं च अहंतीत्यहतः, यदागमः-"अरहंति वंदणनमंसणाणि अरिहंति पूयसकारं । सिद्धिगमणं च अरिहा अरहंता तेण वुचंति ॥१॥" यद्वा-नत्थि व रहो य छन्नं अंतो य खउत्ति जेसि नाणस्स । ते अरहंता जं वा न रहंति भवे न चिट्ठति।।१॥"त्ति, तेषां चैत्यानि-प्रशस्तचित्तसमाधिजनकानि बिंबानि अरिहंतचेइआणि, जिनसिद्धप्रतिमा इत्यर्थः, तथा चावश्यकचूर्णि:-"सिद्धाई अरहंता, चेइआणि य तेसिं चेव प्रतिकृतिलक्षणानि" इत्यादि, एतावता च सिद्धप्रतिमानामप्यग्रेऽयं दंडको भणनीय इत्यायातं, तेषां किं ?-'करेमि काउस्सग्गं करोमीत्याद्याभ्युपगमं दर्शयति, कायो-देहस्तस्योत्सर्गः-स्थानमौनध्यानक्रियां विना अन्यक्रियामाश्रित्य परित्यागस्तं, कायेन क्रियांतरं न करोतीत्यर्थः २ संपत् , जिनादिप्रतिमानां किमर्थ | कायोत्सर्गः क्रियत इत्याह-वंदणवत्तियाए' इत्यादि, वंदनं-नमनम्तवनानुचिंतनादिप्रशस्तकायवाचनःप्रवृत्तिस्तत्प्रत्ययं-तन्निमित्तमिति तत्फलं, यादृग्वंदनात् कर्मक्षयादि फलं स्यात् तादृग् कायोत्सर्गादेव मे भूयादित्यर्थः, एवं सर्वत्र भाव्यं, वत्तियाएत्ति | आर्षत्वात्सिद्धं १, पूयणवत्तियाए' पूजनं-गंधमाल्यादिभिरभ्यर्चनं, उक्तं चोमास्वातिवाचकमुख्येन-'पूजा च गंधमाल्याधिवासधूपप्रदीपायैः" तत्प्रत्ययं, 'सकारवत्तियाए' सत्कार:-प्रवरवस्त्राभरणादिमिरलंकरणं तत्प्रत्ययं, नन्वत्र पूजासत्कारौ UHAMMUNIAntiIIPUntou th. mmost ISelman IBSIHATIONALDEHolmun. ॥३१३॥ HTRAINLAINA For Private And Personal Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kail u n Gyanmandit IMALHI ISHA चैत्यस्तवदंडकार्थः चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधौ ॥३१४॥ द्रव्यस्तवत्वात् साधोः छज्जीवकायसंजमो इत्यादिवचनप्रामाण्यात् कथं नानुचितौ?, श्रावकस्य तु 'विहवस्स फलं सुपत्तविणिओगि'त्ति वचनात् द्रव्यस्तवप्रधानतया साक्षात् ते कुर्वतः कायोत्सर्गद्वारेण तत्प्रार्थने कथं न नैरर्थक्यं ?, उच्यते, साधोव्यस्तवनिषेधः स्वयं करणमाश्रित्य, नतु कारणानुमती, यतः-'अकसिणपवत्तगाणमित्याधुपदेशदानतः कारणसद्भावः भगवतां च पूजादि| दर्शनतः प्रमोदादिनाऽनुमतिरपि, भणितं च-"पूयाफलपरिकहणा पमोयणा चोयणाउ कारवणं । अणुमोयणावि जायइ पमोयउबवूहणाईहिं ॥ १ ॥ (४११ बृ०) सुब्बइ य वइररिसिणो कारवणंपिय अणुट्टियमिमस्स । वायगगंथेसु तहा एयगया देसणा चेव ॥१॥ जह सप्पभए माया सुयस्स गत्ताउ कडणोवायं । लहु अन्नं अलहंती घिसंतीविहु न दोसिल्ला ॥२॥ तह दोसवन साहू गिहिणो दव्वत्थयं उवइसंतो। बहुपावइंदियत्थाइदोसनियरं निवारितो ॥३॥ जं पुण सुत्ते भणियं दवथर सो विरुझई कसिणो। तविसयारंभपसंगदोसविणिवारणत्थं तं ॥४|| (४१४ बृ०) श्रावकस्य भावस्तवांगतया सदारंभरूपत्वेन यथाविभवं तौ संपादय| तोऽपि भक्त्यतिशयादाधिक्यसंपादनार्थ प्रार्थयमानस्य न नैरर्थक्यं, जिनपूजादिकारणाकांक्षातिरेकम्वभावत्वात् श्रावकधर्मस्य, श्रूयते च-सुश्रावकाणां सिद्धांतादिषु भानुश्रेष्ठिन इव पुष्पप्रदीपादिमिर्द्रव्यपूजां विधाय स्तुत्यादिमिर्भावपूजायां प्रवृत्तिरिति, भानुश्रेष्ठिकथा त्वियम्-तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था, वण्णओ, तत्थ णं चंपाए नयरीए भाणू नामा सिट्ठी समणोवासओ परिवसइ, अड्डे दित्ते वित्ते विउलभवसयणासणजाणवाहणाइण्णे बहुधणबहुजायरूवरयए आओगपओगसंपउत्ते विच्छड्डियपउरभत्तपाणे बहुदासीदासगोमहिसीगवेलगप्पभूए अहिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे आसवसंवरनिजरकिरियाहिगरणबंधमुक्खकुसले असहिजदेवासुरनागसुवण्णजक्रवरक्खसकिनरकिंपुरिसगरूलगंधश्वमहोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पवय HIROHIDARSHIPPAHILasuTIAHINI SimilIII ॥३१४॥ For Private And Personal Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mata श्रीदे० चैत्व० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥३१५॥ in Aradhana Kendra णाओ अणइकमणिजे निग्गंथे पावयणे निस्संकिए निर्कखिए निधितिगिच्छे लद्धट्टे गहियट्ठे पुच्छियट्ठे अभिगयट्ठे अट्ठिमिंजपेमाणुरागरचे अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अट्ठे, परमट्ठे, सेसे अणट्ठे, ऊसियफलहे अवगुयदुवारे २१ चियत्तंते उरपरघरप्पवेसे चाउद्दसमुद्दिट्ठपुंनिमासिणीसु पडिपुन्नं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणे २ समणे निग्गंथे फासुएसणिजेणं असणपाणखाइमसाइमेणं | वत्थपडिग्गहकंबलपाय पुच्छणेणं ओसह मेसजेणं पाडिहारिएण य पीढफलगसिञ्जासंधारएणं पडिलाहेमाणे २ बहूहिं सीलव्वयगुण वेरमणपच्चक्खाणपोस होववासेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरह' इत ऊर्ध्वं वसुदेवहिंडिअक्षराणि लिख्यंते - " तस्स णं तुल्लकुलसंभवा भद्दा नामं भारिया हुत्था, सा उच्चप्पसवा, सा सुतमलभमाणी देवयनमंसणतवस्सिपूयण निरया पुत्तत्थिणी विहरइ, कयाई च सिट्टी सह घरणीए जिणपूयं काऊण पञ्जालिएसु दीवेसु पोसहिओ दम्भसंथारगओ थयथुइमंगलपरायणो चिट्ठा, भयवं च गयणचारी अणगारो चारुनामा ओवइओ, सो कयजिणसंथवो कयकायविउस्सग्गो आसीणो सिट्टिणा पचभिण्णाओ, तओ ससंभट्टिएण सायरं वंदिओ चारुमुणिणोत्ति भणतेण, तेणवि महुरभणिएण भणिओ - सावग ! सुहसमाहाणोसि अविग्धं च ते भवउ वयविहीसुति, सिट्टिणा भणियं तुम्ह चलणपसाएणं, तओ तित्थयरस्स नमिसामिणो चरियसंबद्धं कहं कहिउमारुद्धो, यथाजंबुद्दीवे भरहे सावत्थीए निवो उ सिद्धत्थो । नंदगुरुं पडिलाहिय पव्धयइ इगारसंगधरो || १ || वीसयराऊ पाणयकप्पा आसोयपुनिमाय चुओ । मिहिलाए वप्पाविजयनिवसुओ नमिजिणो जाओ ||२|| सावणकसिणट्टमीए नीलुप्पललंछणो सुवण्णाभो । कासगुत्तो इक्खागवंसओ पणरसधणुच्चो ||३|| कुमरत्तं पणवीसं वाससए पष्ण पालिउं रज्जं । आसाढकसिणनवमी अवरण्हे देवकुरुसिवियं || ४ || चडिउं सहसंबवणे पव्वइओ छट्ठएण सहसजुओ। वीर्यादिणे वीरपुरे दिनो पारवह परमन्नं || ५ || मिगसिरसिय www.kobatirth.org Acharya Shri Kailan Gyanmandir भानुकथाः For Private And Personal ॥३१५॥ Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Melawan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailash gerun Gyanmandit श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥३१६॥ इकारसीपुचण्हे बउलतरु अहो नाणं । छट्टेणुप्पन्न तो गंधारीभिउडिजक्खनओ ।।६।। वीसं समणसहसे काउं इगचत्त सहससम-|भानुकथा णीओ। सत्तरस गणहरेऽविय पणवीसं वाससयअंते । ७॥ संमेए सहसजुओ वग्धारियपाणि मासभतेण ।पंचऽस्सिणि सिद्धिगओ विसाहसियदसमिवररत्ते ॥८॥ कहते य भाणुघरिणीए कयंजलीडडाए विष्णविओ भयवं! अस्थि णे विउलो अत्थो, जो तस्स कुलसंताणहेऊ लोगदिट्टिए सोणे पुत्तो हुन्जा ?, संदिसह, तुब्भे अमोहदंसी, तओ भयवया चारुमुणिणा मणिय-भद्दे ! भविस्सइ ते पुत्तो अप्पेणं कालेणंति वुत्तूण सावय! अप्पमाई हुजा सीलव्बएसुत्ति गओ अदरिसणं, तओ केणइ कालेण परिणीए आहूओ गम्भो, तिगिच्छगोवइटेण भोयणविहिणा वडिओ, अविमाणियदोहला य पसवसमए पयाया दारयं, कयजायकम्मस्स य नामकरणदिवसे कयं च से नामं गुरुणा चारुमुणिणा वागरिओ दारओ भवउ चारुदत्तोति, गहियविजो य पिउणा सावयधम्म गाहिओ, पणवयंससहिओ अच्छइ,कयाइं च कोमुइयचाउम्मासिणीए वासुपुञ्जजिणाययणपुप्फारुहणनिमित्तं निग्गओ सवयंसो अंग| मंदिरं उजाणं, तत्थ चेइअमहिमा वइ, उवगओ अंगमंदिरं, पविट्ठा जिणाययणं, डेहिं उवणीयाणि पुष्पाणि, कयं अचणं | पडिमाणं, थुईहिं वंदणं कयं,निग्गओ जिणभवणाउत्ति। जह अमियगई खयरं कासि विसल्लं जहा परिणिोवि | सोयाइभोगविमुहो खित्तो दुल्ललियगुट्ठीए ॥११॥ दिण्ण वसु. सोलकोडी वसंतसेणाइ बारवरिसंते । अकाइ कडिओ जह भमिओ देसेमु अत्थत्थं ॥ १२ ॥ तं चारुदत्त परियं सव्वंपि धम्मरयणवित्तीओ। नेयं इह पुण पगयं पईवथुइमाइपूयाए ॥ १३ ।। इय देसविहियदव्यच्चणादि भावच्चणो वणी भाणू । पडिवजियपव्वजो आओ सब्जियसुगयको ॥१४॥ स्तुत्यादेरिति भावपूजनमहं पुष्पप्रदीपादिमिः, सद्रव्यानपूर्वमत्र विधिना श्रुत्वा कृतं भानुना । कुर्वीध्वं तदिदं विशुद्धमनसः श्रद्धादिमिर्वद्धिमिः, भो भव्या ! उप ।।३१६॥ INORITING HIBHINETRIPATRImmonll For Private And Personal Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobatitm.org Acharya Shri Ka s ur Gyanmandit श्रीदे चैत्यस्तवव्याख्या सर्गवर्गहतये सदोधिलाभाय च ॥ १५ ।। इति भानुश्रेष्ठिकथा। चैत्यश्री- तथा 'सम्माणवत्तियाए' सन्मानो-मानसप्रीतिपरिगतोचितविनयप्रतिपत्तिः, स्तवादिभिः सद्गुणोत्कीर्तनमित्यन्ये, IN अथ वंदनाद्याः किमर्थमित्याह-'बोहिलाभवत्तियाए' बोधिलाभः-प्रेत्यजिनधर्मावाप्तिस्तत्प्रत्ययं, यद्यप्पयं साध्वादेरस्त्येव चारविधी तथापि क्लिष्टकर्मोदयवशेन बोधिलाभस्य प्रतिपातसंभवात् ,जन्मान्तरे युक्तैवास्य प्रार्थना,किंनु प्राप्तभ्रष्टस्यापि,यत्नपाप्यत्वात् तस्य, ॥३१७॥ संभवति चैवं भावातिशयेन रक्षणमपि, तदाशंसाऽपि किमर्थमित्याह-'निरुवसग्गवत्तियाए' निरुपसर्गो-जन्मायुपसर्गरहितो मोक्षस्तत्प्रत्यय, संपत् २ । अयं च कायोत्सर्गः श्रद्धादिभिर्विना क्रियामाणोऽपि नेष्टार्थसाधक इत्यत आह-'सद्धाए' इत्यादि, श्रद्धया-खामिलापेण, न परोपरोधबलाभियोगादिना १ मेधया-जिनोक्तमर्यादावर्तितया, नासमंजसतया, हेयोपादेयपरिज्ञानरूपया वा, नतु जडतया, हृदयपटुतयेत्यर्थः २ धृत्या-मनःस्वास्थ्येन, मनःसमाधिविशेषितप्रीत्येत्यर्थः, न तु रागाद्याकुलत्वेनान्यचित्ततया ३ धारणया-अर्हदादिगुणाविसरणरूपया,न तन्यूनतया४ अनुप्रेक्षया-अर्हद्गुणानामेव पुनःपुनश्चितनेन, न तद्वैकल्येन ५ वर्धमानया-वृद्धि गच्छन्त्या, नानवस्थितया, प्रत्येकं चैतत् श्रद्धादिभिः संबध्यते, यथा वर्धमानया श्रद्धयेत्यादि, एवं चैषामुपन्यास इति लाभक्रमेण,यथा श्रद्धासद्भावे मेधा तत्सद्भावे धृतिरित्यादि,वृद्धिरप्यासामेवमेव,एवमेतैर्हेतुमिस्तिष्ठामि-करोमि | कायोत्सर्ग स्थानादि, अन्यव्यापारवच्छरीरत्यागमित्यर्थः,इह यत् प्राक् करोमि कायोत्सर्गमित्युक्तं तत् 'सत्सामीप्ये सद्वद्वे'ति (है. ५-४-१) सूत्रात्, करोमि-करिष्यामीति क्रियाभिमुख्यमेवोक्तं, संप्रति त्वासनतरत्वात् अस्य करणमेवाह । 'अकए काउस्सग्गे नणु कयकरणंति भन्नए एत्थ । अइआसन्नत्तणोत्ति कन्जमाणं कडं जम्हा ॥१॥' (५२५ अर्थतः) अनेनाभ्युपगमपूर्व श्रद्धादि For Private And Personal Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥३१८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kaisuri Gyanmandir समन्वितं च सदनुष्ठानं भवतीति श्रद्धादिमानेव चास्याधिकारीति च दर्शितम् संपत्३ । किं सर्वथा कायोत्सर्गों १, नेत्याह- 'अग्रस्थ | ऊस सिएण 'मित्यादि, अन्यत्र व्यापार इति शेषः, कायोत्सर्गं करोमि, कुतः ? - उच्छ सिताद् - ऊर्ध्वश्वासग्रहणात्, पंचम्यर्थे तृतीया, उच्छ्रासादन्यं व्यापारं न करोमीत्यर्थः १ उच्छ्रसितेन तु अभग्रोऽविराधितो भवेत् मम कायोत्सर्ग इति योगः, एवमुत्तरत्रापि योज्यं, निःश्वसितात् - श्वासमोक्षणात् कासितात् २ क्षुतात्४ प्रतीतावेतौ, जृंभावितात्-विवृतवदनस्य प्रबलवातनिर्गमात् ५ उड्डायितात्वातोद्गारितात् ६ वातनिसर्गाद्-अधोनिर्गमात् ७, कासितादिषु च जीवादिरक्षार्थं मुखे हस्तदानादियतना कार्या, 'भमलीए' अकस्माद्देहस्य भ्रमणान्निपतनाद्वा८ 'पित्तमुच्छाएं' पित्तसंक्षोभाद् मूर्च्छा-ईपन्मोहो, भ्रमसहितं चैतन्यमित्यर्थः, पित्तमूर्च्छा तस्याः ९, एतयोः सत्योरुपवेष्टव्यं मा भूत् सहसा पतने संयमात्मविराधनेति, संपत् ४ । 'सुहुमेही' त्यादि, सूक्ष्मेभ्यः - अल्पेभ्यो लक्ष्यालक्ष्येभ्य इत्यर्थः अंगसंचारेभ्यः - रोमोत्कंपादिभ्यः, सूक्ष्मेभ्यः खेलसंचालेभ्यः खेल:- श्लेष्मा तच्चलनेभ्यः, सूक्ष्मेभ्यो दृष्टिसंचारेभ्यो- निमेषादिभ्यः, संपत् ५। एवमाइएही' त्यादि, एवं पूर्वोक्तप्रकारा आकारा आदिर्येषामभ्यादिस्पर्शन पंचेन्द्रियच्छेदन चौरादिसंभ्रमसर्पदशनाद्यन्यापवादानां ते एवमादिकास्तैः, तत्राग्यादिस्पर्शने प्रावरणं गृह्णतोऽन्यतो वा गच्छतोऽपि मार्जारादेः पुरतो गमनेऽग्रतः सरतोऽपि हस्तं वा पुरः कुर्वतोऽपि राजचौरादिसंभ्रमे पलायमानस्यापि अस्थानेऽपि च नमस्कारमुच्चारयतोऽपि सर्पदष्टे आत्मनि परे वा साध्वादी अपूर्णमपि कायोत्सर्गं पारयतोऽपि न भंगः, यदागमः - "अगणीओ छिंदिज व बोहीखोभाइ दीह| डक्को य । आगारेहिं अभग्गो उस्सग्गो एवमाईहिं ॥ | १ ||" किमुक्तं भवति । - एतैरुच्छ सितादिभिराकारैः - छिंडिकाभिरभनः - सर्वथा. अखंडितः अविराधितो - देशतोऽप्यविनाशितः भवेन् मे मम कायोत्सर्गः, संपत् ६ । सर्वोपाधिविशुद्धं धर्मानुष्ठानं निःश्रेयसनिबन्धन For Private And Personal चैत्यस्तव व्याख्या ||३१८|| Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri in Aradhana Kendra www.kcbatirth.org un Gyanmandie चैत्यस्तवव्याख्या श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥३१९॥ Acharya Shri Kaites मिति ज्ञापनार्थ इहाकारोपन्यासः यथार्थः, 'वयभंगे गुरुदोसो' इत्यादि, कियंतं कालं यावत् तिष्ठामीत्याह-'यावदिति कालप्रमाणावधौ, यावता कालेनेत्यर्थः, अरिहतां भगवतां संबंधिनां नमस्कारेण-'अरिहंताणं' इत्युच्चाररूपेण न पारयामि-न पारं गच्छामि कायोत्सर्गस्येति शेषः,तावत् किमित्याह-'तावे'त्यादि,तावंतं कालं यावत् कायं-देहं स्थानेनोर्ध्वस्थानादिप्रकारेण कृत्वा | एवं मौनेन-वाग्निरोधन ध्यानेन-नमस्कारादिशुभवस्तुचिंतनादिजनितमनःसुप्रणिधानेन 'अप्पाणं'ति आर्षत्वादात्मीयं काय व्युत्सृजामि-स्थानादि मुक्त्वा शेषव्यापारनिषेधेन त्यजामि । इयं अत्र भावना-नमस्कारपाठं यावत् ऊर्ध्वस्थानादिः प्रलंबभुजो निरुद्धवाक्प्रसरः प्रशस्तध्यानानुगतस्तिष्ठामीति ८ संपत् । ततोऽष्टोच्छासमानं कायोत्सर्ग करोति, अध्येष्यति च 'ऊसास अट्ट सेसेसुत्ति, कायोत्सर्गे एकोनविंशतिर्दोषाः वाः, तथाहि-नाश्ववद् विषमपादस्तिष्ठेत् १ वाताहतलतावत् न कम्पेत् २ स्तम्भे कुडये वा नावष्टनीयात् ३ माले नोत्तमाङ्गं निदध्यात् ४ अवसनसवरीवत् नाग्रे करौ कार्यों ५ नववधूवनावनाम्यं शिरः६ निग. डितवत् पादौ न विस्तायौं, न वा मेलनीयौ ७ नाभेरुपरि जानुनोः अधश्च प्रलंबमानं निवसनं न विदध्यात् ८ दंशादिरक्षार्थ अज्ञानाद्वा हृदयं न प्रच्छायं ९ शकटोर्धिवद् अंगुष्ठौ पाणी वा न मीलयेत् १० संयतीवत् न प्रावृणुयात् ११ कवीकवन्नाग्रे रजो. हरणं काय १२ चलचित्तवायसवत् चक्षुर्गोलको न भ्राम्यौ १३ कपित्थवत् परिधान न पिंडयेत् १४ यक्षाविष्टवत् न शिरः कम्पनीयं १५ मूकवत् न हूहूकुर्यात् १६ आलापकादिसंख्यानार्थ नाङ्गुली भ्रुवौ वा चालयेत् १७ सुरावत् न बुडबुडयेत् १८ अनुप्रेक्षमाणो वानरवत् न ओष्ठौ चालयेदिति १९, अत्र गाथा:-घोडग १ लय २ थंभाई ३ माल ४ वह ५ सवरि ६ नियलि ७ थण ८ खलिणे ९। लंबुत्तरु १० दि११ संजइ १२ भमुहंगुलि १३ वायस १४ कविढे १५ ॥१॥ सिरकंप १६ मूय१७ वारुणि MINIMALINISPilmIIHATTISH HTTANPATIAL Auguminos SANILE HMMMISS ॥३१९॥ For Private And Personal Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandit श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥३२०॥ imamimaraPINITIAHIMAmeen HD RITAILSIPAINI १८ पेह१९त्ति चइज दोस उस्सग्गे। लंबुत्तर १. थण २ संजई ३ न दोस समणीण सड़ीणं ॥२॥ ततो 'नमो अरिहंताणंति नामस्तवाभणित्वा पारयति, स्तुतिं च पठति, अत्र भाव्यं-अठुस्सासपमाणा उस्सग्गा सव्व एव कायग्वा । उस्सग्गसमत्तीए नवकारेणं तु दिसंपत्प| पारिजा ॥१॥ परिमिट्ठिनमुक्कारं सक्कयभासाइ पुण भणइ पुरिसो। चरिमाइमथुइ पढमं पाययभासाइविन इत्थी ।।२।। जइ एगो देइ दादि सयं अह बहवे ता थुई पढइ एगो। सेसा उस्सग्गठिया सुगंति जा सा परिसमत्ता ॥३॥ विवस्स जस्स पुरओ पारद्धा वंदणा थुई तस्स । चेइयगेहे सामनवंदणे मूलबिम्बस्स ॥४॥ इत्थ य पुरिसथुईए वंदइ देवे चउबिहो संघो। इत्थीथुइए दुविहो समगीओ साविया चेव ॥५॥ (वृ०४९८ तः ५०१) व्याख्यातं वंदनाकायोत्सर्गसूत्रं,एष स्थापनार्हद्वंदनाख्यस्तृतीयोऽधिकारः, द्वितीयो दंडकः। स्तुत्यनंतरं चास्यामेवावसर्पिण्या ये भारते तीर्थकृतोऽभ्वंस्तेषामेवैकक्षेत्रनिवासादिनाऽऽसनतरोपकारित्वेन नामोत्कीर्तनाय चतुविंशतिस्तवं पठति, तत्र प्रथमस्य लाघवार्थ च श्रुतस्तवादेरप्येकयैव गाथया संपदादिप्रमाणमाह नामथयाइसु संपय पयसम अडवीस सोल वीस कमा। अदुरुत्त वन दोसह १ दुसयसोलरट्ठ नउयसयं ३ ॥ ३९ ॥ नामस्तवः-चतुर्विंशतिस्तवः आदिशब्दात् श्रुतस्तवसिद्धस्तवग्रहः, एषु दंडकेषु संपदो-विश्रामाः पदसमाः-श्लोकादिचतुर्थभागसमानाः, यावन्ति पदानि तावन्त्य एव संपदा,अष्टाविंशतिर्नामस्तवे एकश्लोकगाथाषद्कमानत्वात् १,पोडश श्रुतस्तवे गाथाद्वयवृत्तद्वयरूपत्वात् २ विंशतिः सिद्धस्तवे गाथापंचकप्रमाणत्वात्३, तत् क्रमात्-यथाक्रम, तथा अद्विरुक्ताः ये एकवेलया गणितास्ते पुनर्न गण्यते इति भावः, वर्णा-अक्षराणि दंडकत्रये क्रमेण भवंति, तत्र द्वे शते षष्ट्यधिके नामस्तवदंडके, सबलोए इत्य-10 | ॥३२०॥ For Private And Personal MAHARASHTRAINISTRATIHARITMANAPATIHAR NUSIMPARISHMAHILA MAms Human Ram N Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Gyanmandie चतुर्विंशतिस्तवः Shrillin Aradhana Kendra Acharya Shri Kalah श्रीदें थरचतुष्कप्रक्षेपात् , अग्रेतनवर्णानां अर्हचैत्यस्तवे गणितत्वाद् अद्विरुक्ता इति प्रतिज्ञानाच, एवमग्रेऽपि भाव्यं १, तथा द्वे शते | चैत्य श्री षोडशाधिके श्रुतस्तबदंडके सुअस्स भगवओत्ति सप्ताक्षरसहितगणनात् दंडकांतःपातित्वादेषां २, तथा अष्टनवत्यधिकं शतं सिद्धधर्म०संघाचारविधौ स्तवदंडके, सम्मदिट्ठिसमाहिगराणमिति यावत् , पंचाधिकारप्रमाणत्वात् पंचमदंडकस्य, 'सिद्धथवे पंच अहिगारा' इति वचनात् ॥३२॥ शेषभावना प्राग्वत् , अथ सूत्र व्याख्या-तत्र नामस्तवसूत्रमिदं-'लोगस्स उज्जोअगरे' इत्यादि, लोकस्य-धर्माधर्माकाशजीवपुद्गलेतिपंचास्तिकायात्मकस्य उद्योतकरान्-केबलालोकेन तत्पूर्वकवचनदीपेन वा प्रकाशनशीलान् , अनेन वचनातिशय उक्तः, लोकोद्योतकरत्वं च तच्छ्रा(स्ता)वकानामुपकाराय, न चानुपकारिणः कोऽपिस्तौतीत्युपकारित्वप्रदर्शनार्थायाह-'धर्मतीर्थकरान्' धर्मः-श्रुतचरणात्मकस्तत्प्रधानं तीर्थ नद्यादेः शाक्यादेवाधर्मबहुलस्य द्रव्यतीर्थस्य निरासेन भवार्णवोत्तारकं संघादि भावतीर्थ, आह च-कुप्पवयणाइ नइआइ तरणसमभूमि दवओ तित्थं । बुडंति तत्थवि जओ संभवइ य पुणवि उत्तरणं १॥ संघाइ भावतित्थं जं तत्थ ठिया भवण्णवं नियमा। भविया तरंति नय पुणवि भवजलो होइ तरिययो ।२।" तत्करणशीलान् , एतेन पूजातिशयचोक्तः,अपायापगमातिशयमाह-'जिनान् रागादिजेतृन् , अर्हतः अष्टमहाप्रातिहादिपूजानि , विशेषणपदमेतत् ,कीर्तयिष्यामिखनाममिः स्तोष्ये, चतुर्विंशतिं भरतक्षेत्रोद्भवान् , अपिशब्दात् भावतः शेषक्षेत्रसंभवांच, ते च राज्यावस्थासु द्रव्याहतोऽपि भवं तीति भावार्हत्प्रतिपादनायाह-'केवलिनः' उत्पन्नकेवलज्ञानान् , भावार्हत इत्यर्थः, एतेन ज्ञानातिशयमाह, एवं च सर्वस्खपरसंपत्- | सर्वखकल्पातिशयचतुष्टयोपेतानर्हतः स्तोष्यामीत्यावेदितं भवति । यदुक्तं 'कीर्तयिष्यामीति तत् कुर्वन् गाथात्रयमाह-'उसभे'त्यादि, सुगमाः, नामार्थस्तु सामान्यतो विशेषतचोच्यते, तत्र सामान्यत 'उसहो ति दुर्वहसंयमधुरोद्वहनाद् वृषभ इव वृषभः, Paani MAIN ||३२१॥ For Private And Personal Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri MbIn Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailable thus Gyanmandit . चतुर्विंशतिस्तवः श्रीदे० चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधी ॥३२२॥ N वृषेण-धर्मेण वा भातीति वृषभः, वर्षति-सिञ्चति वा देशनाजलेन दुःखाग्निना दग्धं जगदिति वृषभः, यद्वा ऋषति-गच्छति परमपदमिति ऋषभः, एवं सर्वेऽप्यस्तो वृषभाः, प्रथमजिने को विशेषः १, उच्यते,ऊोरन्योऽन्याभिमुखधवलवृषभयुगललाञ्छनत्वात् मातुश्चतुर्दशखमेषु पूर्व वृषभदर्शनाच वृषभः१ एवं सर्वेष्वपि भावनीयं, तत्र परीषहादिभिरजित इत्यजितः गर्भस्थेऽसिन् जननी द्यूते राज्ञान जितेत्यजितः२ संभवन्ति चतुर्विंशदतिशया असिन्निति शं-सुखं भवत्यसिन् श्रुते वेति संभवः गर्भस्थेऽसिन् पृथ्व्यामधिका सस्यसंभूतिर्जातेति संभवः३ अभिनंद्यते देवेंद्रादिभिरित्यभिनंदनः, गर्भात्प्रभृत्येवामीक्ष्णं शक्रेणामिनंदित इत्यमिनंदनः ४ शोभना मतिरस्येति सुमतिः गर्भस्थेऽस्मिन् सपत्नीद्वयविवादच्छेदात् निपुणा मातुर्मतिरभूदिति सुमतिः ५ अत्र संप्रदायः-अचिरागयवणिमरणे दुण्ह सवत्तीण दारओ एगो । बालग्गहणविवाओ जाओ सि मेहनिवपुरओ ॥१॥ जा केणवि न मुणिजइ अमुगीइ सुओ इमोत्ति ता रण्णो । विनवियं दासीए जह नाह! विणस्सई भत्तं ॥ २॥ तइयंपिहु विनविओ भणइ निवो सरइ भोयणं देवी । न मुणइ मइरहियंति य रजं विप्फुरिहिइ अ अयसे ॥३॥ दासीमुहाउ नाउं तयं तओ मंगलाइ | देवीए। आगम्म सहामज्झे इय ताओ दोऽवि भणियाओ ॥ ४ ॥ रायंगणंमि चिट्ठह एसो अहिणवसमुग्गय असोओ। पुत्तो य मज्झ उदरे अत्थि महाबुद्धिसंपन्नो ।।५।। एसो जोवणपत्तो इमस्स वरपायवस्स छायाए । एयं तुम्ह विवायं छिदिस्सइ नेत्थ संदेहो ॥६॥ तत्तियमित्तं कालं ता चिट्ठह ताव निव्वुया तुम्भे । पडिवनममायाए माया न खमइ मुहुपि।।७।। भणइ य पिऊइ गेहं एवं दोण्हं विभिन्नचित्ताणं । जं वा तं वा दाउं अप्पिजउ देवि ! मम पुत्तो ॥ ८ ॥ एसा सगित्ति नाउं पुत्तो वित्तं च तीऍ दिनाई। निद्धाडिया य इयरी रन्ना अलियत्ति कुविएण ॥९॥ गभगए जं जाया मंगलदेवीए एरिसा सुमई। तुद्वेण तओ रण्णा जिणस्स O EINDIA HINDITURDSTINITI RamailISTIANITIONuml SAHARATALARISHADANISAPTAHIRAATHIMIREONINHERITAHANIAIRANIA For Private And Personal Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M n Aradhana Kendra www.kobatirth.org n Gyanmandie चतुर्विंश MARPAN तिस्तवः श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म० संघा चारविधी ॥३२३॥ WAITION Acharya Shri Kaita सुमई कयं नामं ॥१०॥ निष्पंकतामाश्रित्य पद्मस्येव प्रभाऽस्येति पद्मप्रभः,गर्भस्थे प्रभोर्मातुः पद्मशयनदोहदो देवतया पूरित इति पद्मवर्णश्चेति पद्मप्रभः६ शोभनानि पार्थानि अस्येति सुपार्श्वः गर्भस्थेऽस्मिन् माताऽपि सुपार्था जातेति सुपार्श्वः७ चंद्रवत् सौम्या प्रभाऽस्येति चंद्रप्रभः, गर्भस्थेऽस्मिन् मातुश्चंद्रपानदोहदोऽभूदिति चंद्रप्रभः८ शोभनो विधिरस्येति सुविधिः गर्भस्थेऽस्मिन् माताऽपि सर्वविधिषु कुशला जातेति मुविधिः९ समस्तसत्वानामांतरतापोपशमकत्वात शीतलः गर्भस्थेऽस्मिन् पितुः पूर्वोत्पन्नोऽचिकित्स्यः | पित्तदाहो रानीकरस्पर्शादेवोपशांत इति शीतलः१० विश्वस्यापि श्रेयान् हितकर इति श्रेयांसः गर्भस्थेऽस्मिन् केनाप्यनाक्रांतपूर्वा देवताधिष्ठिता शय्या जनन्या आक्रांता श्रेयश्च जातमिति श्रेयांसः ११ वसवो-देवविशेषास्तेषां पूज्यो वसुपूज्यः, स एव वासुपूज्यः, गर्भस्थेऽस्मिन् वसूनि-रत्नानि तैरभीक्ष्णं वासवो राजकुलं पूजितवान् वसुपूज्यस्य गोत्रापत्यमिति वा वासुपूज्यः१२ विमलानि ज्ञानादीन्यस्येति विगतमलो वा गर्भस्थेऽस्मिन् मातुर्मतिस्तनुश्च विमला जातेति विमलः१३ अत्र संप्रदायः-पइमरणमि सवत्तीदुगस्स कयवम्मनिवपुरो जाए। पुत्तग्गहणविवाए सामादेवीइ तं नाउं ॥१॥ आणाविय सहमज्झे पुत्तस्सद्धे दवाविउं सुतं । आणावइ करवत्तं ता जणणी भणइ किमिणति ।।२।। देवी जंपइ दाहं पुत्तं वित्तं च णे दुहा काउं। पडिवन्नममायाए मायाए जंपियं देवि! ॥३॥ मा माऽऽणवेसु देवि! एवं पुत्तपि वित्तमेयाए । अप्पेह मज्झ पुत्तं जीवंतं जेण पिच्छामि ॥४॥ तो विमलनियमईए सामा नाऊण तासि परमत्थं । छिंदइ तं क्वहारं पुव्वुत्तकमेण नीसेसं ॥६॥ एवं विमलं बुद्धि कयवंमनराहिवेण नाऊण । एसो गम्भपभावो सुयस्स विमलो कयं नामं ॥७॥ अनंतकांशजयादनंतानि वा ज्ञानादीन्यस्येति अनंतः गर्भस्थेऽस्मिन् मात्रा रत्नखचितमनंतं महत्प्रमाणं दाम खमे दृष्टमित्यनंतः १४ दुर्गतौ पतंतं सच्चसंघातं धारयतीति धर्मः, गर्भस्थे ANTI ॥३२॥ masinHINDI SPIRITED For Private And Personal Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri V in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalah Gyanmandie चतुर्विंशतिस्तवः श्रीदे. चैत्यश्री धर्म०संघाचारविधौ ॥३२४॥ IAHISATIRINA TUSTAIHINIRAHMINATIONamedias ऽस्मिन् माता दानादिधर्मपरा जातेति धर्मः१५,शांत्यात्मकत्वात्तत्कर्तृत्वाद्वा शांतिः अस्मिन् गर्भस्थे पूर्वोत्पन्नाशिवस्य शांतिर्जातेति शांतिः १६ को-पृथिव्यां स्थितवानिति निरुक्तात् कुंथुस्तूपं दृष्टवतीति कुंथुः १७ 'सर्वो नाम महासचः, कुले य उपजायते । तस्याभिवृद्धये वृद्धैरसावर उदाहृतः ॥१॥ इत्यरः, गर्भस्थेऽस्मिन् मात्रा सर्वरत्नमयोऽरो दृष्ट इत्यरः १८ परीवहादिमल्लजयान्मल्लिः, आपत्वादिकारः, गर्भस्थेऽस्मिन् मातुः सर्वत्र्तककुसुममालाशयनीये दोहदो देवतया पूरित इति मल्लिः१९ मन्यते जगतस्त्रिकालावस्थामिति मुनिः सुष्टु व्रतान्यस्येति सुत्रतः, मुनिश्चासौ मुत्रतश्चेति मुनिसुव्रतः,गर्भस्थेऽस्मिन् माता मुनिखि सुव्रता | जातेति मुनिसुव्रतः२० परिषहादिनामनानमिः, जन्ममहेऽस्मिन् प्रत्यंतनृपैरवरुद्ध नगरे भगवत्पुण्यशक्तिप्रेरितां प्राकारोपरिस्थितां भगवन्मातरमवलोक्य ते वैरिनृपाः प्रणता इति नमिः २१, तथा च बृहद्भाष्यम्-"मिहिलाए नयरीए विजयनरिंदस्स मंदिरे सोउं । विबुहनिवहेहिं विहियं सुयजममहामहं रम्मं ॥१॥ ईसामच्छरगरुयत्तणेण आगामिपरिभवभयाओ ।रुद्धा पञ्चंतियपत्यिवेहिं तुरियं पुरी मिहिला ॥३॥ पट्ठिय(चंचल)चित्ते लोए विजयन रिदमि वाउलीभूए । मूढमि मंतिवग्गे अइघोरे कोट्टरोहंमि ॥॥ चिंतह वप्पादेवी सुरवइमहियस्स मज्झतणयस्स । मज्झण्हदिणयरस्स व तेयं विसहंति कह रिउणो? ॥ ४ ॥ तम्हा दंसेमि इमं गोसे | सव्वेसि दुट्टराईणं । पणमंति पलायंति य सयराहं जेण सव्वेऽवि ।।५।। मग्गाणुसारिपरिणामियाए बुद्धीए भाविउं एवं । उच्छंगधः । रियबाला सूरुदए सालमारूढा ॥६॥ दट्टण जिणवरिंदं रायाणोमाणमच्छरविउत्ता। पणमंति विणयसारं सेवमभावं पवन्नति ॥७॥ जं पणया वेरिनिवा दंसियमित्चे जिणंमि तेण नमी । इय नाम एगवीसमजिणस्स विहियं विजयरना ॥८॥" अरिष्ठस्य-दुरितस्य नेमिः-चक्रधारेवेत्यरिष्टनेमिः गर्भस्थेऽस्मिन माता महानरिष्ठरत्नमय उत्पतन्नेमिए इत्यरिप्रनेमिः. अकारोऽत्र पश्चिमादिशब्दबत MMARATHI ॥३२४॥ For Private And Personal Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥३२५॥ ain Aradhana Kendra २२ सर्वभावान् पश्यतीति निरुक्तात्पार्श्वः, गर्भस्थेऽस्मिन् माता शयनीयस्था निशि तमसि सर्पमपश्यदिति पार्श्वः, उत्पत्तेरारभ्य ज्ञानादिभिरभिवर्द्धत इति वर्द्धमानः, गर्भस्थेऽस्मिन् ज्ञातकुलं धनधान्यादिमिर्वृद्धिं गतमिति वर्द्धमानः २४, एवं कीर्त्तयित्वा चित्तशुद्धये प्रणिधानमाह-'एव' मित्यादि, एवं पूर्वोक्तप्रकारेण मयाऽभिष्टुता - आभिमुख्यतः स्तुताः सादरमितिभावः, किंविशिष्टाः :विधूतरजोमलाः, बध्यमानं बद्धं ऐर्यापथं वा कर्म रजः, पूर्वबद्धं निकाचितं सांपरायिकं वा मलं, ते विधूते- अपनीते यैस्ते विधूतरजोमलाः, अत एव प्रक्षीणजरामरणाः, कारणभावात्, चतुर्विंशतिरपि जिनवराः, अपिशब्दः प्राग्वत्, जिनवराः - श्रुतादिजिनेभ्यः वराः - प्रकृष्टास्तीर्थकरा मे मम प्रसीदंतु-प्रसादपरा भवंतु । यद्यप्येते वीतरागादित्वान्न प्रसीदंति तथापि तानर्चित्यमाहात्म्योपेतान् चिंतामण्यादीनिव मनः शुद्ध्याऽऽराधयन्नभीष्टफलमवाप्रोति, तथा 'कित्तियेत्यादि, कीर्त्तिताः खनामभिः प्रोक्ताः वंदिता - वाग्मनोभिः स्तुताः महिताः - पुष्पादिभिः पूजिता, महयत्ति वा पाठः, अत्र मयका-मया, क एते इत्याह-य इति प्रत्यक्षा एते ऋषभाद्या लोकस्य प्राणिवर्गस्य कर्ममलाभावेनोत्तमाः प्रकृष्टा उच्छिनतमसो वा सिद्धाः - निष्ठितार्थाः अरोगस्य भाव आरोग्यंसिद्धत्वं तस्मै बोधिलाभः–अर्हद्धर्मावाप्तिः आरोग्यबोधिलाभस्तं स चानिदानो मोक्षायेत्यतस्तदर्थमाह - 'समाघिवरं, समाधिःपरमखास्थ्यरूपं भावसमाधिमित्यर्थः सोऽप्यनेकधा तारतम्येनात उत्तमं सर्वोत्कृष्टं ददतु, भावसमाधिगुणाविर्भावकं जिनदताख्यानकं, तथाहि छद्मस्थ एकदा वीरो, वैशाल्यामाययौ बहिः । तस्थौ प्रतिमया देवकुले काले घनागमे ॥ १ ॥ तत्रासीत् परमश्राद्धो, जिनदत्तामिधः सुधीः । च्युतः श्रेष्ठिपदाञ्जीर्णश्रेष्ठत्वेन स विश्रुतः ||२|| वीरं संवीक्ष्य वंदित्वा, कृत्वोपास्तिं चिराद् गृहम् । आगा www.kobatirth.org For Private And Personal Acharya Shri Kailuri Gyanmandir चतुर्विंशतिस्तवः ॥ ३२५॥ Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavin Hain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailesheepuri Gyanmandit श्रीदें. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥३२६॥ health. HitHminIITHemanmamtaMRI IMONITORIHIRONILIATRINAHIRAINRIHITHIPANAHITAMINIMAR दहिंडनेनास्य, तर्कयन्नुपवासिताम् ॥ ३ ॥ एवं प्रतिदिनं कुर्वन् , वर्षा रात्रमतीत्य सः। दध्यौ स्वाम्यद्य मद्गेहे यद्यागच्छेत् परेण चतुर्विंशकिम्? ॥४॥ ध्यायन्निति गृहस्यांतस्तस्थौ स्वस्थमनाचिरम् । मध्याह्वे तु गृहद्वारे, सोऽथ स्थित्वेत्यचिंतयत् ॥५॥ यद्यत्रैष्यति तिस्तवः | वीरोऽद्य, कल्पद्रुरिव जंगमः । संमुखस्तस्य यास्यामि, मूर्धबद्धांजलिस्तदा ॥६॥ तं त्रिः प्रदक्षिणीकृत्य,वंदिष्ये सपरिच्छदः। ततो | नेष्ये गृहस्यान्तर्निधानमिव जंगमम् ।।७।। अथानपानमनोज्ञैः,प्रासुकैरेषणीयकैः। भक्त्या तं पारयिष्यामि,संसारांभोधितारकम् ।।८।। पुनर्नत्वाऽनुयास्यामि, पदानि कतिचित्ततः । धन्यंमन्यः स्वयं भोक्ष्ये, शेषमुद्धरितं मुदा ॥९॥ एवं मनोरथश्रेणी, जिनदत्तस्य कुर्खतः । श्रीवीरोऽभिनव श्रेष्ठिगृहे भिक्षार्थमागमत् ॥१०॥ कुल्माषा दापितास्तेन, चेट्या चटुकहस्तया । सुपात्रदानतस्तत्र, पंच दिव्यानि जज्ञिरे ॥११ ।। नृपाद्या मिलितास्तत्र, श्रेष्ठ्यसो तैः प्रशंसितः। पारयित्वा ततोऽन्यत्र, विहर्तु प्रभुरप्यगात् ॥ १२ ॥ जिनदत्तो निशम्याथ, ध्वनंतं दिवि दुन्दुभिम् । दध्यौ धिग् मामवन्योऽहं, यन्नायान्मद्गृहं प्रभुः ॥ १३ ॥ तत्पुर्यामथ तत्राह्नि, केवली समवासरत् । नृपाद्या एत्य तं नत्वाऽपृच्छत् कः पुण्यवानिहः ॥ १४ ॥ सोऽप्याख्यजिनदत्तं तं, राज्ञोचेऽनेन नो जिनः । पारितः पारितः किंतु, श्रेष्ठिनामिनवेन सः॥१५.। केवली कथयित्वाऽस्य, भावनां मूलतोऽपि हि । बभाषे भावतोऽनेन,पारितः परमेश्वरः ॥१६॥ दघानेन समाधि तं, प्रधानं धीमता तदा। द्वादशस्त्रसंसर्गयोग्यं कर्म समर्जितम् ॥१७॥ किं चान्यद्यदि नाश्रीध्यत्तदाऽसौ देवदुंदुमिम् । ततस्तदैव संप्राप्स्यत् , केवलज्ञानमुज्ज्वलम् ॥१८॥ अनेन भावशून्येन, नूतनश्रेष्ठिना पुनः। सुपात्रदानतः प्राप्त, स्वर्णवृष्ट्यादिकं फलम् ॥१८॥ समाधिरहितो जीवः, स्याल्लभेतैहिकं फलम् । समाधिना पुनर्युक्तः, स्वर्गमोक्षाद्यपि | क्षणात् ॥२०॥ जिनदत्तं प्रशस्याथ,ते सर्वेऽगुर्यथागतम् । जिनास्तदेवं विज्ञेया, नूनं भावसमाधिदाः ॥२१॥ तथा 'चंदेसु'इत्यादि,0॥३२६॥ MINUTRINA HARIDASHAILERINA For Private And Personal Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M a in Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kablosuri Gyanmandie e | चतुर्विंश| तिस्तवः श्रीदे० चेत्य श्री धर्म संघा चारविधी ॥३२७॥ HDPARTURBARIHASPIRImagramindi m पंचम्यर्थे सप्तमी, यद चंद्रेभ्यो निर्मलतराः कर्ममलकलंकापगमात, आदित्येभ्योऽधिकं प्रकाशकराः, केवलोद्योतेन लोकालोकप्रकाशकत्वात् ,यदागमः-"चंदाइचगहाणं पभा पयासेइ परिमियं खेत्तं । केवलियनाणलंभो लोयालोयं पयासे ।।१॥"त्ति, सागरवरः-स्वयंभूरमणांभोधिस्तद्वद् गंभीराः परीषहायक्षोभ्यत्वात् , सिद्धाः-क्षीणाशेषकर्माणः सिद्धिं-परमपदावाप्तिं मम दिशंतु-प्रयच्छन्तु । एष चतुर्विशतिजिनस्तवाख्यश्चतुर्थोऽधिकारः। इह मौलं चैत्यं समाधिकारणमिति मूलप्रतिमायाः प्राक् स्तुतिरुत्ता, सांप्रतं सर्वेऽप्यहंतस्तुल्यगुणा इति सर्वलोके अर्हच्चैत्यानां वंदनाद्यर्थ कायोत्सर्गकरणायेदं पठति-'सब्बलोए अरिहंतचेइयाणमित्यादि, यावद् वोसिरामि' अर्थः प्राग्वत , नवरं सर्वलोके ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्रूपे त्रैलोक्य इत्यर्थः तत्र ऊर्ध्वलोके सौधर्मादिस्वर्गगतविमानेषु यथा-बत्तीसलक्ख चेइय सोहम्मे अट्ठवीस ईसाणे । बारस सनक्कुमारे माहिंदे अट्ठ चउ बंभे ॥१॥ पंचाससहस लन्तगि सुके चालीस छच्च सहसारे । आणयपाणय चउसय तिनि सया आरणच्चुयए ।। २॥ हिट्ठिमतिगे इगारुत्तरं सयं मज्झिमंमि सत्तहियं । गेविज्जुपरि तिगि सयं पणष्णुत्तरचेइए वंदे ॥३॥ चुलसी लक्खा सगनवइ सहस तेवीस उबरिलोयंमि । घेइयपडिमा वंदे चउ पडिहारट्ठसउ मज्झे ॥ ४ ॥ कप्पेसु बावनसयं कोडी चउणवइ लक्खछसहस्सा। गेविज पडिमसहसा अडतीसं सत्तसयसट्ठा ॥५|| अधोलोके चमरादिभवनेषु, तच्च-चउतीस तीस असुरे नागे चउचत्त चत्त चिइलक्खा । वाऊमु पंन छायाल कणगे अडतीस चउतीसा ॥६॥ दीवोदहिविज्जुदिसाथणियग्गिसु विहु चत्त छत्तीसा। वंदे अह जम्मुत्तर चेइ बिसयरिलक्ख सगकोडी ॥७॥ कोडी सगसत्तकोडी तीस असी लक्ख पडिम अहलोए । जम्मुत्तरि कोडिसयं छकोडि अडलक्ख असीई य ॥८॥ तिर्यग्लोके द्वीपाचलव्यंतरनगरज्योतिष्कविमानादिषु, तथाहि-मेरुमि सतर अडदिग्गएसु चउदस नईसु कुरुसु ॥३२७॥ For Private And Personal Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahin Aradhana Kendra Come. Sultan श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा - चारविधौ ॥३२८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila दुगं । तरुसु दुसय चउतीसा वक्खारदहेसु सोल पुढो || ९ || दो सय कणयगिरीसुं कुंडेसु छहत्तरी छ कुलगिरीसु । अडतीसं वेयड्डे चउरगयदंतजमगे ||१०|| तिरिलोइ जंबूदीवे नमामि इह चेइए छपणतीसे । धायइ १२७० पुक्खरि १२७० दुगुणा चउ रइइसुयारमणुसनगे || ११ || नरखित्त बहिं बाणवह चेइए रायहाणिसु दुतीसा । चउरो कुंडलरुयगे नमामि बावन नंदिसरे || १२ || तिय लक्ख सहस छासी नव सयहीणा नमामि जिणपडिमा । नरखिते बाहिं पुण इगारसहसा दुसय असिया || १३ || वंतर सासयचेइय असंखता जोइसेसु संखगुणा । वंदे असासयाओवि भरहाइकया व दुविहाओ ॥ १४ ॥ स्तुतिचात्र सर्वतीर्थकरसाधारणा, एष त्रैलोक्यस्थापनार्हत्स्तवरूपः पंचमोऽधिकारस्तृतीयो दंडकः । अथ येन तेऽर्हतस्तदुक्ताश्च भावा ज्ञायंते तत्प्रदीपकल्पं सम्यक् श्रुतमर्हति कीर्त्तनं, तत्रापि पितृभूततया तत्प्रणेतृन् प्रथमं स्तौति - 'पुक्खरवरदीवडे' इत्यादि, पुष्करवरद्वीपस्तृतीयस्तस्यार्द्धे मानुषोत्तरपर्वतादर्वाग्भागवर्त्तिनि, तथा धातकीखंडे द्वितीयद्वीपे जंबूद्वीपे प्रथमे, महत्तरक्षेत्र प्राधान्याश्रयणात् पश्चानुपूर्व्या निर्देशः, त्रीणि भरतैरावतमहाविदेहानि पंचदश क्षेत्राणि तेषु, प्राकृतत्वादेकवचनं, धर्म्मस्य - श्रुतधर्म्मस्यादिकरान् -सूत्रतः प्रथमकरणशीलान नमस्यामि - स्तौमि । एतेन च सर्वत्राभीष्टवस्तुनि प्रवर्त्तमानैः शिष्टैरभीष्टदेवतास्तुतिपूर्वकमेव प्रवर्तितव्यमित्यावेदितं भवति, एष षष्ठोऽधिकारः । एवं दर्शनविशुद्धिं कृत्वा ज्ञानविशुद्ध्यर्थं श्रुतधर्म्म स्तौति- 'तमितिमिरे 'त्यादि, तमः - अज्ञानं तदेव तिमिरं तयोर्वा पटलं-वृंदं तद् विध्वंसयति - विनाशयतीति तमस्तिमिरपटलविध्वंसनस्तस्य, अज्ञाननिरासेनैवास्य प्रवृत्तेः, 'सुरगणनरेंद्रमहितस्ये' ति आगममहिमां कुर्वन्त्येव सुरादयः सीमां-मर्यादां धारयतीति सीमाधरः, प्रक्रमात् श्रुतधर्म्मस्तस्य धारयंत्यागमवंतो मर्यादाम्, कर्म्मण्यत्र षष्ठी, अतस्तं वंदे, तस्य वा यन्माहात्म्य तद् वंदे इति संबंधे षष्ठी, अथवा तस्य वंदे-वंदनं करोमीति । प्रकर्षेण स्फोटितं - For Private And Personal uri Gyanmandir श्रुतस्तवः ॥३२८॥ Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M lin Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalah Gyanmandit श्रुतस्तवे श्रीदे० चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ ॥३२९॥ अशकटापिता HAIRAMAILESHAHRIRAMPERALAHARIHARANAPHELINESED विदारितं मोहजालं-मिथ्यात्वादिरूपं येन स तथा, श्रुतधर्मे हि सति विवेकिनां मोहजालं विलयमुपयात्येव, इत्थं श्रुतमभिवंद्य तस्यैव गुणोपदर्शनद्वारेणाप्रमादगोचरतां प्रतिपादयन्नाह–'जाईजरामरणे'त्यादि, कः सचेतनो धर्मस्य-श्रुतधर्मस्य सारंसामर्थ्यमुपलभ्य-विज्ञाय श्रुतधम्मोदितेऽनुष्ठाने प्रमाद-अनादरं कुर्यात् १,न कश्चिदित्यर्थः,जातिः-जन्म जरा-वयोहानिः मरणंप्राणनाशः शोको-मानसो दुःखविशेषस्तान् प्रणाशयति-अपनयति जातिजरामरणशोकप्रणाशनस्तस्य, श्रुतधर्मोक्तानुष्ठानाद्धि जात्यादयः प्रणश्यत्येव, अनेनास्यानर्थप्रतिघातित्वमुक्तं, कल्यं-आरोग्यं अणति-शब्दयति इति कल्याण, पुष्कलं-संपूर्ण, न च तदल्पं, किन्तु विशालं-विस्तीर्ण, एवंभूतं सुखमावहति-प्रापयतीति कल्याणपुष्कलविशालसुखावहस्तस्य, श्रुतधर्मोक्तानुष्ठानादुक्तलक्षणमपवर्गसुखमवाप्यत एव, अनेन चास्य विशिष्टार्थप्रापकत्वमाह, 'देवदानवनरेंद्रगणार्चितस्ये'त्येतत् सुरगणनरेंद्रमहितस्यैवानुवृत्तिफलसमर्थनं व्यक्तं च । ___अत्र संप्रदायः-प्रमाद्यन् सरिरेकोऽत्र,प्रेत्याभूद् विगतश्रुतः। तत्रोद्यच्छन् स एवाभूत् , पारदृश्वा श्रुतांबुधेः।।१।। तथाहि-एकस्मिन् भ्रातरौ गच्छे, गंगाकूलनिवासिनौ । व्रतं जगृहतुः शांती, तत्रैकोऽभूद् बहुश्रुतः ॥२॥ सूरिज॑ज्ञे क्रमेणासौ, शिष्यैः सूत्रार्थ-| मिच्छुभिः । सेव्यमानो दिनं सर्व, विश्राम नाश्नुते क्वचित् ॥३॥ निशायामपि सूत्रार्थ, चिंतनपृच्छनादिमिः । नाससाद सुखान्निद्रामन्वहं व्यग्रमानसः॥४॥ भ्राता तस्य द्वितीयस्तु, नित्यमास्ते यथासुखम् । तं च पश्यन्नसौ सरिर्दध्यौ दुर्बुद्धिबाधितः ।।५।। अहो मे बांधवो धन्यो, योऽयमास्ते सदा सुखी । ज्ञानविज्ञानहीनत्वात् , केनाप्यायास्यते नहि ।।६।। अजाकृपाणकल्पेन, ज्ञानेनाहं त्ववाप्नुयात् । दुःखं ततोऽत्र केनापि, विदुपा सूदितं ह्यदः ॥७॥ मूर्खत्वं हि सखे ! ममापि रुचितं तस्यापि चाष्टौ गुणा, निश्चिंतो१ IHIROHITEHDHilamIHARTERIAL tamental S mpromial ॥३२९॥ For Private And Personal Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Math Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas Gyanmandie । श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥३३०॥ श्रुतस्तवे अशकटापिता बहुभोजनोऽत्रपमना नक्तंदिवाशायकः४। कार्याकार्यविचारणांधवधिरो५ मानापमाने समः६ प्रायेणामयवर्जितो७ दृढवपुटर्मूर्खः सुखं जीवति ॥८॥न पुनर्भावयति यथा-नानाशास्त्रसुभाषितामृतरसैःश्रोत्रोत्सवं कुर्वतां, येषां यांति दिनानि पंडितजनव्यायामखिन्नात्मनाम् । तेषां जन्म च जीवितं च सफलं तैरेव भूर्भूषिता,शेषैः किं पशुवद् विवेकरहितै भारभूतैर्नरैः॥९॥ ज्ञानप्रद्वेषतश्चैवं,ज्ञानमाशातयनसौ। दुष्टबुद्धिःप्रमादेन, ज्ञाननं कर्म बद्धवान् ॥१०॥ ज्ञानाचारातिचारं तमनालोच्य विपद्य च । देवोऽभूद् देवलोकेऽसौ, सच्चारित्रप्रभावतः ॥११॥ च्युत्वाऽऽभीरकुले कसिन् , भरतेऽत्र सुतोऽजनि । पितृभ्यामात्मरूपां स, कन्यामुद्राहितो युवा ॥१२॥ तस्यैकदा सुता जज्ञे, सुरूपा भद्रकन्यका। यौवनं प्राप सा यूनां, मनोनयनहारकम् ।। १३ ।। अनोधुरि निधायैनां, तत्पिता नगरं प्रति। प्रतस्थे सममाभीरैघृतं विक्रेतुमन्यदा ॥१४॥ तामेव पश्यतां तेषामनांसि च मनांसि च । उत्पथस्थान्यभज्यंत, सद्यः प्रस्खल्य कुत्रचित् ॥१५॥ विलक्षीभूय संभूय, तैरित्यौच्यत तावता । नाम्नाऽशकटाऽशकटापितेति च मुहुर्मुहुः ॥ १६ ॥ शृण्वतस्तस्य वैराग्य, बभूव लघुकर्मणः। मुतामुद्वाह्य केनापि, दत्त्वा तसै धनादिकम् ॥१७।। गच्छे कस्मिन् स निष्क्रम्य, योगोद्वहनमादृतः। कुर्वन्नध्यैष्ट सुस्पष्टमुत्तराध्ययनत्रयम् ॥१८॥ पठतोऽसंस्कृताख्यं च,तुर्याध्ययनमंजसा । तद् ज्ञानावरणीयाख्यमागात्कमोदयं ततः ।। १९ ॥ अधीयानस्य तत्तस्याचामाम्लाम्यां दिनद्वयम् । नैकोऽप्यालापकोऽस्यागात्कृच्छ्रेणाण्यभियोगतः ॥२०॥ ततोऽसौ गुरुभिः प्रोचे, किं तेऽनुज्ञाप्यतामिदम् । स प्राह भगवन्नस्य, योगः कीदृग् ? ततो गुरुः ॥२१॥ ऊचे यावदिदं नैति, तावदाचाम्लमस्य तु । स माह कृतमन्येन,श्रुतेन तपसा च मे ॥२२॥ आचाम्लान्यथ सोऽकार्षीद् ,द्वादशाब्दी समाहितः। क्षयमापैतकत् कर्म,सुखेनाध्यैष्ठ तच्छ्रुतम् ।।२३॥ शेषं चापि श्रुतं क्षिप्रमधीते स महामतिः। श्रुतभक्तेरिहामुत्र,सर्वत्र सुखभागभूत् ॥२४॥ MPIRAJMRITAmAINITALIRIDINESHRESTHA ININRSHIRTICHAHESHARIHIRAINRHINDIANRAISHITARAHINI ॥३३॥ For Private And Personal Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra www.kobatirth.org यतः सकर्णस्य चारित्रधर्मे प्रमादः कर्तुं न युज्यते ततः किमित्याह- 'सिद्धे भो पयओ' इत्यादि, सिद्धे - फलान्यमिचारेण परिनिष्ठिते, नातो विधिप्रवृत्तः फलेन वच्यते इति भावः १, सर्वनयव्यापकत्वेन च प्रतिष्ठिते२ विधिप्रतिषेधा१नुष्ठाना२मिधेया ३ विरोधलक्षण कप १च्छेद २ तापाख्य ३ त्रिकोटिपरिशुद्धत्वेन च प्रख्याते ३, भो इत्यतिशयिनामामंत्रणे, पश्यंतु भवंतः प्रयतोयथाशक्ति प्रकर्षेण यतोsहं, लोकव्यवहारवत् धम्र्मोऽपि ससाक्षिकः सम्यक् स्यादिति ज्ञापनार्थं 'भो' इत्युक्तं नमः अस्त्वितिशेषः, जिनमते - चतुर्थ्यर्थेऽत्र सप्तमी, यस्मिन् मते किं ? - नंदिः - समृद्धिः सदा संयमे - चारित्रे, भवति इत्युपस्कारः, यदा - "पढमं नाणं तओ दया" इत्यादि, किंविशिष्टे संयमे १ - “ देवनाग सुवन्नकिन्नर गणसन्भूअभावच्चिए इति, देवतानागसुवर्ण किभरगणैः सद्भूतभावेन अर्चिते, संयमवंतो ह्यर्च्यन्ते एव देवाद्यैः, तत्र देवा वैमानिका नागा- धरणादयः शोभनवर्णाः सुवर्णाःज्योतिष्काः किंनरा - व्यंतरविशेषास्तेषां समूहः, अत्र वकारेऽनुखारः प्राकृतत्वात् सकारस्य द्वित्वं च, किंभूते जिनमते :-लोको ज्ञानं यत्र प्रवचने प्रतिष्ठितः - तद्वशीभूतः तथा जगदिदं ज्ञेयतया प्रतिष्ठितमिति योगः केचिन्मर्त्यलोकमेव जगन्मन्यंत इत्याह‘त्रैलोक्यमर्थ्यासुरं— आधाराघेयरूपं, तत्र त्रैलोक्यं - ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्लोकलक्षणं तस्मिन्, मर्ध्यासुरमित्युपलक्षणत्वान्नारकतिर्यगादिपरिग्रहः, अथ इत्थंभूतो धर्मः - श्रुतधम्र्मो वर्द्धतां - वृद्धिं यातु, शाश्वतोऽर्थतो नित्यः विजयतः - परवादिविजयेन धर्मोत्तरं - चारित्रधर्मस्य प्राधान्यं यथा भवति एवं वर्द्धतां पुनर्वृद्ध्यभिधानं प्रत्यहं मोक्षार्थिना ज्ञानवृद्धिर्विधेयेत्युपदेशार्थं । प्रणिधानमिदं मोक्षबीजकल्पं परमार्थतोऽनाशंसारूपमेवेति, भवति चेत्थं विवेकजल सिक्तं प्रार्थनारोपणाभ्यासेन शालिवृद्धिवत् श्रुतधर्म्मवृद्धिः, एवं प्रणिधानं कृत्वा तत्पूर्विका क्रिया फलायेति श्रुतस्य वंदनाद्यर्थं कायोत्सर्गाय पठति - 'सुयस्स भगवओ इत्यादि, वोसिरामी' बि श्रीदे● चैत्य०श्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥३३१॥ For Private And Personal Acharya Shri Kailash un Gyanmandir श्रुतस्तवः ॥३३१॥ Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Malayain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kap u r Gyanmandie सिद्धस्तवः श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघा चारविधी ॥३३२।। यावत् , अर्थः प्राग्वत् , नवरं श्रुतस्येति प्रवचनस्य-सामायिकादिचतुर्दशपूर्वपर्यतस्य भगवतः-समग्रैश्वर्यादियुक्तस्य, स्तुतिश्चात्र श्रुतस्य दातव्या ॥ एवं श्रुतस्तवाख्यः सप्तमोऽधिकारश्चतुर्थो दंडकः। ततश्चानुष्ठानपरंपराफलभूतेभ्यः सिद्धेभ्यो नमस्करणायेदं पठति-'सिद्धाणं बुद्धाणं' इत्यादि, सिध्यति स्म सिद्धाः ये येन गुणेन निष्पन्नाः-परिनिष्ठिताः सिद्धौदनवत् , न पुनः साधनीया इत्यर्थः,तेभ्यो नमः इति योगः,ते च सामान्यतः कादिसिद्धा अपि भवंति,यथोक्तं-'कम्मे१ सिप्पे य२ विजाए३, मंते जोगे य४ आगमे६। अत्थ७ जत्ता८ अभिप्पाए९ तवे१० कम्मक्खए इअ ११ ॥१॥ अत्रोदाहरणानि-सज्झगिरिसिद्ध १ कोकास२ खवुड ३ थंभनमि४ अजसमियगुरू५ । गोयम६ मंमण ७ बुट्टिय ८ अभए ९ दढपहारि१० मरुदेवा ११ ॥१॥ अथ कादिसिद्धव्यपोहेन कर्मक्षयसिद्धप्रतिपयर्थमाह-'बुद्धेभ्यो' ज्ञाततत्त्वेभ्यः, बुद्धत्वानंतरं कर्मक्षयं कृत्वा सिद्धेश्य इत्यर्थः, 'पारगतेभ्यः' पारं-पर्यन्तं संसारस्य प्रयोजनवातस्य वा गतास्तेभ्यः, 'परंपरागतेभ्यः' परंपरया-चतुर्दशगुणस्थानक्रमारोहरूपया यद्वा कथंचित् कर्मक्षयोपशमादेः सम्यग्दर्शनं ततो ज्ञानं ततश्चारित्रमित्येवंभूतया गता-मुक्तिस्थानं प्राप्ताः लोकाग्रं-सिद्धिक्षेत्रं उप-सामीप्येन तदपराभिन्नदेशतया सर्वकर्मक्षयपूर्व गतास्तेभ्यः, 'इह लाउन्च असंगा एरंडफलं व बंधणच्छेया । सरमिव पुन्चपओगा गइपरिणामाउ धूमंत्र ॥ १॥ सिद्धो गच्छइ उड़े जा लोयग्गमिगसमयमविरुद्धं । लोयग्गाओ परं पुण नय जाइ उवग्गहाभावा ।।२।। तह जोगपओयाणं अभावओ नविय गच्छइ तिरिच्छं। गउरवविगमाओ असंगभावओ नेव हिट्ठपि।।३।। नमोऽस्तु सदा सर्वसाध्यं सिद्धं येषां ते सर्वसिद्धास्तेभ्यः, यद्वा तीर्थसिद्धादिपंचदशभेदेभ्यः, तथाहि-जिण १ अजिण २ तित्थ३ऽतित्था४ गिहि ५ अन्न ६ सलिंग थी८ नर९नपुंसा १० । पत्तेय ११ सयंबुद्धा १२ बुद्धबोहि १३ इग १४ अणेगा१५ ॥१॥" स्खलिंग-साधु IMPRILamrataTAMILAMPARAN MARATHI T AMARRIALIS PRITAMINORITIES ( For Private And Personal Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥३३३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kasuri Gyanmandir वेषः, प्रत्येकस्वयं बुद्धयोर्बाह्यप्रत्यय भावाभावबोधि १ कल्पवर्जितनवधाचोलपट्टमात्रकरहितद्वादशोपधि२ पूर्वभवाधीत श्रुतनियमानियम ३ देवतागुरुदत्त लिंगकृतो विशेषः, बुधैः- आचार्यैबोधिताः संतो ये सिद्धास्ते बुद्धबोधितसिद्धाः, प्रत्येकबुद्धाः पुंलिंग एव, जिनाः स्त्रीलिंगेऽपि, शेषास्तु नपुंसकेऽपि, एप सिद्धस्तुतिनामाष्टमोऽधिकारः । अथ आस भोपकारित्वाद् वर्त्तमानतीर्थाधिपतिं श्रीवीरं । स्तुवन्नाह - 'जो देवाणवि' इत्यादि, यो भगवान् देवानामपि भुवनपत्यादीनां, न मनुष्याणामेवेत्यप्यर्थः, देवः -पूज्यः, अत एवाह'जं देवा पंजली' इत्यादि, प्रांजलयो - विनयरचितकरसंपुटा नमस्यति, एवं शक्राद्योऽपि स्यादित्याह -तं त्रिभुवनख्यातमहिवं देवदेवैः शक्राद्यैः महितं - पूजितं शिरसा - उत्तमांगेन, आदरप्रदर्शनार्थमिदं महावीरं भगवन्तं यद्वा देवदेवं- अधिकं देवं देवाधिदेवमित्यर्थः, स्तुमश्च - " बाल्ये जयेच्छुलघुयानपणायमानः, क्रीडन् सुरैर्द्युतिसमेत इति स्तुतो यः । देव ! त्वमेव भगवन्नसि देवदेवो, | देवाधिदेवमुदुशंति भवंतमेव ॥ १ ॥ " शिरसा - उत्तमांगेन, आदरप्रदर्शनार्थमिदं, महावीरं - भयानकभटैरप्यक्षोभ्यतयेत्यमरकृतनामानंअत्र संप्रदायः - अह ऊणअट्टवासस्स भगवओ सुखराण मज्झमि । संतगुणुक्कित्तणयं करेइ सको सुहंमाए || १|| बालो अबालभावो अबालपरकमो महावीरो । नहु सक्का भेसेउं देवेहिं सईदएहिं पि ॥ २ ॥ तं वयणं सोऊणं अह एगसुरो असद्दहंतो य । भणई निसु| ह अमरा ! केरिसमिह साहए सामी ? ||३|| मर्च्यः कोऽपि समस्ति मांसनयनो नद्धांगभूर्षातुभिः सच्वं तस्य तु देवताभिरपि चाचाल्यं किमप्यद्भुतम् । अश्रद्धेयमिदं सुधर्म्मणि सभापीठे ब्रुवागः स्वयं, गीर्वाणाधिपतिर्न कस्य कुरुते सक्रोधबोधं मनः १ ॥४॥ किंच- सर्वत्रोक्तिश्च युक्तिश्च, वस्तुतच्चानपेक्षिणी । प्राणाः प्रभुत्वं संपत्तिः प्रथने खलु निश्रिताः॥५॥ अहवा-खज्जइ जंवा लं वा जंपिअइ जं मणस्स पडिहाइ । किजइ जं वा तं वा पहुत्तणं तेण रमणीयं ॥ ६ ॥ ता तं लहु भेसेउं इहागयं मं निएह इय मणिउं । एइ For Private And Personal सिद्धस्तवः ॥३३३ ॥ Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Melamin Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashgan Gyanmandit | महावीर नामकृतिः श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥३३४॥ | जिणसंनिगासं तुरियं सो भेसणहाए ॥७|| आमलकीकीलाए कीलइ कुमरेहिं सह पहूवि तया । स कुणइ कसिणभुयंगं फडाकरालं सिहरिसिहरे ॥८॥ कुमरेसु भीयतत्थेसु अहपहू पहसिय गहिय तं सप्पं । रज्जु व खिविय खिप्पं आरूढइ रविन्ध पुव्वतरे ॥९॥ जो चडइ पढममिह सो वाहइ सव्वेवि इय पणाओ य । जा वाहइ ते कुमरे ता कुणइ सुरो कुमररूवं ॥१०॥ तो पिढिगेण पहुणा करालवेयालकालरूवधरो। वडूतो स सुरो हणिय मुट्टिणा वामणो विहिओ ॥११।। इय सक्कसंसियं सो पहुसत्तं दछु पयडियसरूवो। तमिहासि महावीरोत्ति कित्ति नमिय सग्गमिओ॥१२॥ ___ अथ परोपकारात्मभाववृद्धये च स्वामिन एव नमस्कारफलप्रदर्शनायाह-'इक्कोऽवी त्यादि,एकोपि,आसतां बहवः, नमस्कारो, द्रव्यभावसंकोचमयत्वात ,क्रियमाणः सन्निति शेषः,कस्मै ?-'जिनवरवृपभाय' जिनाः--श्रुतावधिजिनादयस्तेषां वराः केवलिनस्तेषां वृषभः-तीर्थकरनामकर्मोदयादुत्तमस्तस्मै, सच अपमादिरपि भवतीत्याह-वर्द्धमानाय-अपश्चिमतीर्थकराय, किं?-संसरणं संसार:तिर्यग्नरनारकामरभवानुभवः स एव भवस्थितिकायस्थितिभ्यामनेकधाऽवस्थानेनालब्धपारत्वात् सागर इव संसारसागरस्तस्मात् तारयति-पारं नयति, की-नरं वा नारी वा, नरग्रहणं पुरुषोत्तमधर्मप्रतिपादनार्थ, नारीग्रहणं तासामपि तद्भव एव मुक्तिगमनज्ञापनार्थ, अयमत्र भावः-सति सम्यग्दर्शने परया भावनया क्रियमाण एकोऽपि नमस्कारः तथाभूतस्य भावचरणरूपशुभाध्यवसायस्य हेतुर्भवति यादृशात् श्रेणिमवाप्य निस्तरति भवोदधि, अतः कार्ये कारणोपचारात् एवमुच्यते । एष वीरस्तुतिनामा नवमोऽधिकारः । अथ 'एएवि तिन्नि सिलोगा भन्नति य सेसया जहिच्छिए' इत्यावश्यकचूर्णिवचनादन्यदपि पठ्यते, यथा 'उजिंतसेलसिहरे'इत्यादि, कंठ्या,नवरं निसीहियत्ति मोक्षः, तदुक्तमाचारांगचूणौँ-'निसीहियत्ति निवाणं, जहा उर्जित InHISHMISHRA HITE श्रेणिमवाप्य निस्तरति भवादासया जहिच्छिए' इत्यावश्यक निवाणं, जहा उर्जित ॥३३४॥ For Private And Personal Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri May Jain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥३३५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailastega suri Gyanmandir सेलसिहरे', अथात्र वृद्धसंप्रदायागतं किमप्युच्यते आसी गयपुरनयरे अणेगकोडीसरो घणो सिट्टी । जिणसमये लद्धट्ठो गहियट्ठो पुच्छियट्ठो य ॥ १ ॥ सो कइयावि निसाए जागरमाणो इमं विचिंतेइ । पुन्त्रकय सुकयवसओ पत्तं मे मणुयजम्ममिणं || २ || तत्थवि आरियखितं जाईकुलरूव विहवसंभारो । | रोरेण निहाणंपिव लद्धो सिरिवीरजिणधम्मो ||३|| किंतु घरघरिणिपुरुपउरनिवइसयणाइकजवग्गेण । न मए सईपि नमिओ रिसहजिणो विमलगिरिसिहरे || ४ || तह गिरिनारगिरिवरे जायवकुलविमलनहयलमयंको । सिरिनेमिजिणवरिंदो वंदिओ पूइओ नेव ||५|| इय चिंतिय विन्नविउं निवई कारेवि घोसणं नयरे । बहुगामागरनगराइएहिं मेलेवि बहू संघे || ६ || सिरिवीरनाहपडिमालंकियदेवालयं अणुवयंते । पुरओ पयट्टमागहमंडलगिजंत कित्तिभरो ||७|| महया विच्छद्वेणं नारीगणगिजमाणमंगल्लो। संघजुओ धणसिट्ठी विणिग्गओ हत्थिणपुरीओ ||८|| ठाणे २ महया इडीए चेइयाईं पूर्यतो । गामागरनगराइसु मुणिकमकमलं पणिवयंतो ॥ १० ॥ साहम्मिअवच्छलं कुणमाणो भत्तिनिब्भरो धणियं । दाणं दितो दुत्थिजणाण करुणाइ अनियाणं ॥ १ ॥ सहजउदारगुणेणं मणोरहे मग्गणाण पूरंतो । सव्वस्सवि बहुमाणं जणयंतो उचियवित्तीए || १२ || दंसणविमुद्धिजणगं कुणमाणो पत्रयणुन्नई परमं । पत्तो सुहंसुहेणं कमसो सित्तुञ्जसेलंमि ॥ १३ ॥ तत्थ जुगाइजिणंदं वंदिय पूइय महाविभूईए । अट्ठाहियं व काउं पत्तो उर्जितसेलंमि ॥ १४ ॥ | अह तत्थ मुत्तु वाहणमाई वित्तूण सहसामरिंग । आरुहिउं उजिते पत्तो सिरिनेमिजिणभवणं || १४ || जयजयरवं भणतो तम्मज्झे | पविसिओ सपरिवारो । अइउक्कंठियहियओ पसारियच्छो नियइ नेमिं ||१५|| तो तंपि पयाहिणिउं भत्तिभरुल्लसियबहलरोमंचो । पणमितु सुरहिसलिलेण हविय भत्तीइ नेमिजिणं ॥ १६ ॥ गोसीसचंदणेणं सरसेणं मुरहिणा विलिंपित्ता । मणिकणयभूसणेहिं भूमित्ता For Private And Personal उज्जयंते धनश्रेष्ठीकथा ॥ ३३५॥ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahatein Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalahari Gyanmandie श्रीदे. उज्जयंते धनश्रेष्ठीकथा । धर्म संघा-VI तत्तो। सरसेण चंदणेण दलेइ भुवणभूसणयं ॥१७॥ सवत्थविय पसत्थं सकारित्ता पसत्थवत्थेहिं । पूयइ तिहुयणपुजं दसद्धवन्नेहिं कुसुमेहिं ॥१८॥ सयलसुचैत्यश्री-10 मंगलनिलयस्त अग्गओ नेमिजिणवरिंदस्स। सियसालितंदुलेहिं आलिहइ मंगले अह ॥१९।। कुसुमेहि पंचवन्नेहिं पूयए अमंगले चारविधी | तत्तो। सरसेण चंदणेणं दलेइ पंचंगुलीतलयं ॥२०॥ सिवसुहफलयं पवरफलेहिं नालेरकेलमाईहिं । सीलसुगंधं च पहुं सुगंधिगंधेहिं पूइत्ता ।।२१।। पहुणो तिहुयणदीवस्स देइ मणिरयणदीवयं पुरओ। कणयकडुच्छयहत्थो धृवं उखिवइ भत्तीए ।।२२।। चंदोदयं ॥३३६॥ च दाउं महाधयं छत्तचमरचिंधधयं । आरतियाई काउं नियए जा नेमिसुहकमलं ।।२३।। ताव मरहट्ठमंडणमलयपुरा बहुसुवन्नकोडिपहू | सियपक्सुपओसी बोडियाण भत्तो वरुणसिट्ठी ॥ २४॥ भडचडगरेण महया नियसंघेण य जुओ तहिं पत्तो। तं द? नेमिपूयं अमरिसविवसो इय भणेइ ॥२५।। हा सियवडभत्तेहिं सड्ढेहिं इमेहिं तत्तविमुहेहि । निग्गंथवरिट्ठोऽविहु सग्गंथो कह को सामी? ॥ २६ ॥ तो खिप्पं लंखावइ सो वत्थाभरणकुसुमाइ तया। गयपयपयसा सहसा पक्खालावेइ बिंबपि ॥२७॥ वरुणस्स धणस्स तओ महंतआओहणं तहिं जायं । असरिसअमरिसविवसा तुरिय सेलाओं ओयरिउं॥२८॥ नियनियउन्भडसुडवायसुहडतुक्खारवारपरियरिया। ते विक्कमनिवहिट्ठियगिरिनयरामिहपुरे पत्ता ।। २९ ॥ तेण दुहेणं दुखियमणमि निदं अपावमाणस्स । धणसिटिस्स निसाए सासणदेवी भणइ एवं ॥३०॥ वरसिहि सिट्ठधम्मिजिठ सुपइसमयलद्धहो। भवत मा मणागवि निययमणे कुणसु दुक्खमिणं ।। ३१ ॥ जंचिइवंदणमज्झे गाहं उजिंतसेल इच्चाई । पक्खिविय निवसहाए जयं धुवं तुज्झ दाहामि ॥३२॥ सयलनियसंघसहियो सुदिट्टिदेवाण काउ उस्सग्गं । पत्तो धणो सुतुट्ठो निवस्स पासंमि वरुणोवि ॥३३।। साहियनियवुत्तता भणिया रत्ना दुयेऽपि जह भद्दे । दुन्निवि जिणसमयविऊ दुवेवि जिणधम्मसद्धालू ॥३४|| दुन्निवि जिणवरपवयणपभा For Private And Personal mmental Antonianimalinielmm ॥३३६॥ INDIA Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Jain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य ० श्री - धर्म० संघा चारविधौ । ॥३३७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailu Gyanmandir वणाकरणपउणमण करणा । ता किं तुमेहिं एयं असमं असमंजसं विहियं ||३५|| भणइ धणो नियतित्थे जइ वत्थाभरणमाइ जिणपूअं । कुणिमो ता किं एसो तीसे विद्धंसणं कुणइ ||३६|| वरुणो आह सतित्थे अविहिं कस्सवि न काउ दाहामो । संसइओ भण | निवो को जाणइ कस्स तित्थमिणं १ ||३७|| भणइ घणो तित्थमिणं अम्हश्चिय चेहवंदणामज्झे । जेण इमा अग्गेविहु उर्जितिच्चाइ गाहत्थि ||३८|| जइ मे अपचओ इह अम्हं संघे सिसुं तरुण बुड्ढं । इत्थिपि लहु पढावसु तओ निवो पच्चयनिमित्तं ॥ ३९ ॥ पवणगइकरहडीए आणावर पेसिऊण नियपुरिसं । सिणवल्लिगामओ लहुं पुतिं धणदेवसिट्टिस्स ||४०|| सेयंबर आसंबर संघसमक्खं इमा निवेणुत्ता । किं तुह चिइवंदणयं एइ ? तओ साऽऽह बाढंति ॥४१॥ ता पुत्ति ! झत्ति तं कहसु सावि अइकरकरेण य सरेण । सयलं चिइवंदणयं पढेइ ता जाव गाहमिमं ॥ ४२ ॥ उर्जितसेलसिहरे दिखा नाणं निसीहिया जस्स । तं धम्मचक्कवट्टि अरिद्वनेमिं | नम॑सामि ||४३|| इय सोउ नित्रो लोओ हरिसाउलिय नियमणो इमं भणइ । जयइ सियमिकखुसंघो तित्थमिणं नूणमेयस्स ॥ ४४ ॥ | तप्पमिइ इमा गाहा पढिजई चेइवंदणामज्झे । गीयत्थेहिं असढेहिं पुवयूरीहिं न निसिद्धा ।। ४५ ।। जो उण पुढायरियायरियं | अन्नह मयं कुणइ तस्स । भणिओ इय दंडो भद्दबाहुपहुणा चिइय अंगे ||४३|| आयरियपरंपरएण आगयं जो उ अप्पबुद्धीए । कोवेइ |च्छेयवाई जमालिनासं स नासेइ ||४७ | सकारिय सम्माणिय अह घणसिठ्ठी विसज्जिओ रन्ना । लद्धजओ संघजुओ पत्तो भुजोवि उर्जिते ||४८ || पूएवि नेमिनाहं वरवस्था भरणकुसुममाईहिं । दाउ अवारियदाणं काउं अठ्ठाहियामहिमं ।। ४९ ।। नेमिपयपउममूले निययमणं मुत्तु गुरुविभूईए । नियसंघजुओ पत्तो कमसो हत्थिणपुरंमि धणो ॥ ५२ ॥ कयसंमुहागयनिवपमुहलोओचिओ घणो सिडी । जिणपवयणं पभाविय सुगईए भायणं जाओ || ५१ ॥ एष नेमिनाथवंदनाह्वयो दशमोऽधिकारः ॥ For Private And Personal उज्जयंतस्तुतिः धनसंघपतिः ॥ ३३७ Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदे० नैत्य० श्री - धर्म० संघा चारविधौ ॥३३८|| www.kobatirth.org Acharya Shri Kailu Gyanmandir तथा 'चत्तारि अट्ठदसे' त्यादि, 'परमठ्ठ निडिअट्ठ'त्ति परमार्थेन, न तु कल्पनामात्रेण, निष्ठिता अर्था येषां ते तथा, शेषं च व्यक्तं, अत्रापि संप्रदायः - चंपायां प्रस्थितं वीरं, नत्वाऽऽपृच्छय सगौतमौ । साधू शालमहाशालौ, पृष्ठचंपां समेयतुः ॥ १ ॥ स्वस्त्रीयो राट्र तयोस्तत्र, पितृभ्यां सह गागलिः । यशोमतीपीठरकाभिधाभ्यां व्रतमाददे ।। १ ।। आगच्छतां ततः शालादीनां प्रभुपदान्तिके । केवलज्ञानमुत्पेदे, पंचानामपि वर्त्मनि ॥ ४ ॥ गौतमोऽपि जिनप्रान्ते ययौ यावद् वर्वदिषुः । प्रचेलुस्तेऽथ शालाद्यास्तावत् केव लिपर्षदि | ||४|| ततस्तान् गौतमोऽवादीत्, वन्दध्वं किं न भो विभुम् । स्वाम्यूचे केवलज्ञानभाजो माऽऽशातयैतकान् ॥५॥ श्रुत्वेति गौतमेनैते, क्षमयांचक्रिरे ततः । शुश्रुवे प्राग् जिनाख्यातमर्थमेवं जनो ब्रुवन् ॥६॥ यो भूमिगोचरो देवान्, वंदेताष्टापदाचले । केवलज्ञा| नमासाद्य, सः सिध्येत् तत्र जन्मनि ||७|| चक्रे मनोरथं यावद्, गौतमस्तावदर्हता । आदिष्टोऽष्टापदे देवानंतु लब्धिनिधे ! व्रज ॥८॥ सोऽचालीदथ तन्नत्यै श्रुत्वा तत् जनवार्त्तया । मुक्तीच्छवोऽचलंस्तत्र, कौडिन्याद्यास्तपस्विनः ||९|| तत्र पञ्चशतीयुक्तः, | कौडिन्याख्यश्चतुर्थकृत् । आर्द्रमूलफलाहारः, प्रथमां मेखलां ययौ | १०|| दिन्नः कलापतिः षष्ठभोजी पंचशतीयुतः । शुद्धमूलफलाहारी, द्वितीयामारुरोह सः॥११॥ सेवालीत्यष्टमासेवी, शुष्कसेवालभोजकः । सोऽपि तावत्परीवारोऽध्यारुरोह तृतीयकाम् ॥ १२ ॥ तदूर्ध्वमक्षमा गंतुं, ते निरीक्ष्याथ गौतमम् । दध्युः स्थूलधियः स्थूलः, कथमेषोऽधिरोक्ष्यति १ ॥ १३ ॥ सूर्यस्यांशून् समाश्रित्य, | तेषामुत्पश्यतामपि । स गरुत्मानिवोड्डीय, ययौ मंक्षु गिरेः शिरः || १४|| गौतमस्येति शक्त्या ते, विस्मिता इत्यचिंतयन् । अस्य शिष्या भविष्यामः, प्रत्यायाते महात्मनः ॥ १५ ॥ गौतमोऽथ चतुर्द्वारे, चैत्ये दक्षिणदिकस्थितान् । शंभवादीन् जिनांस्तत्र, चतुरचतुरोऽन For Private And Personal अष्टापद स्तुतिः श्रीगौतमः ॥३३८|| Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥३३९॥ ain Aradhana Kendra Acharya Shri Kail | मत् ॥ १६ ॥ प्रत्यगाशास्थितानष्टौ, सुपार्श्वादीन् जिनांस्ततः। ततोऽप्युत्तरदिक्संस्थान् धर्म्मादींथ दशार्हतः॥ १७ ॥ ततः पूर्वदिशासी नं नाभेयमजितं तथा । मानवर्णयुतामेवं, चतुर्विंशतिमर्हतः ।। १८ ।। ववंदे विधिवद् वृंदारकवृंदाभिवंदितान् । इंद्रभूतिर्दिनं सर्व, ततः सायं विनिर्ययौ ॥ १९ ॥ सोऽथ पृथ्वीशिलापट्टे, निषसाद विशारदः । कुबेरोऽथ तदागत्य, तं वंदित्वा निषेदिवान् ||२०|| तस्याग्रे गौतमोऽत्युग्राननगारगुणान् जगौ । शंकाहृत् पुंडरीकाख्यं, तथाऽध्ययनमुत्तमम् ॥ २१ ॥ ततः सामानिको दधे, सहस्रार्द्धमितं सुरः । सम्यक्त्वं च क्रमात् सोऽभूद्, वज्रो त्यो दशपूर्विणाम् ||२२|| द्वितीयेऽह्नि जिनान्नत्वाऽवतरन्नथ गौतमः । विज्ञप्तस्तापसैर्भक्त्या, देहि दीक्षां मुनीश्वर ! ||२३|| दीक्षितास्तेन ते तस्मादुत्तेरुः पर्वतादथ । केवलज्ञानमापुच, तद्दिने शुभभावतः॥२४॥ गौतमस्तु जिने वीरे, निर्वृत्ते प्राप केवलम् । तदेवं गौतमेनेत्थं, चतुराद्या जिना नताः ||२५|| एषोऽष्टापदादितीर्थवंदनाख्य एकादशोऽधिकारः । एवमेतत् पठित्वोपचितपुण्यसंभार उचितेष्वौचित्यप्रणिधान पुरस्सरा प्रवृत्तिरितिज्ञापनार्थमाह-'वेयावच्चगराण' मित्यादि, | वैयावृत्यकराणां - प्रवचनार्थं व्यापृतभावानां गोमुखचक्रेश्वरीप्रभृतियक्षांबादीनां शांतिकराणां क्षुद्रोपद्रवेषु सम्यग्दृष्टीनां सामान्येनान्येषामपि समाधिकराणां स्वपरयोर्मानसादिदुःख भाव करणार्थं, स्वभावोऽयमेवैषामिति वृद्धाः, तेषां संबंधिनं सप्तम्यर्थे एतद्विषयं एतान् वाऽऽश्रित्य करोमि कायोत्सर्ग, अत्र च वंदनादिप्रत्ययमित्यादि न पठ्यते, तेषामविरत्वात्, सामान्यप्रवृत्तेरित्थमेव तद्भाववृद्धेरुपकारदर्शनात्, वचनप्रामाण्यात्, अन्यत्रोच्छ्रसितेनेत्यादि तु पूर्ववत्, स्तुतिश्च नवरं वैयावृत्यकराणां, अथ बृहद्भाष्यं - | पारिय काउस्सग्गो परमिट्टीणं च कयनमुकारो। वेयावच्चगराणं देइ थुई जक्खपमुहाणं ॥ १ ॥ ( ७८८ ) संविग्गभावियभणो (अलमेत्थ पसंगेणं) वंदिय सन्निहियचेइयाणेवं । अवसेसचेइयाणं वंदणपणिहाण करणत्थं || २ || (८३४) पुव विहाणेण पुगो भणिउं www.kobatirth.org For Private And Personal suri Gyanmandir अष्टापदस्तुतिः श्री गौतमः ॥ ३३९॥ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jin Aradhana Kendra www.kobairth.org Acharya Shri Kalaharpur Gyanmandie साधुनतिः श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघा-V चारविधी ॥३४०॥ सकत्थयं तओ कुणइ । जिणचेइयपणिहाणं संविग्गो मुत्तसुत्तीए ॥३॥ (८३५) 'जावंति चेइयाई' इत्यादि, यावन्ति-यत्प्रमाणानि चैत्यानि-आधाराधेयरूपत्वेन जिनानां गृहाणि बिबानि च, क्व?-ऊर्ध्वाधश्च तिर्यग्लोके च, तत्र जिनगृहाण्येवं-"सगकोडिलक्खविसयरि अहो य तिरिए दुतीस पणसयरा | चुलसीलक्खा सगनवइसहस तेवीसुवरिलोए ॥१॥" प्रतिमास्तु-तेरस कोडिसया कोडिगुणनवई सहि लक्ख अहलोए । तिरिय तिलक्ख तेणवइ सहस पडिमा दुसयचत्ता ॥२॥ बावनं कोडिसयं चउणबई लक्ख सहस चउयाला । सत्तसया सट्ठिजुया सासयपडिमा उवरिलोए ॥३॥ किमित्याह-सर्वाणि तानि वंदे, यथा-सवेवि अट्ठ कोडी लक्खा सगवन्न दुसय अडनउया। तिहुयणचेइय वंदे असंखुदहिदीवजोइवणे ॥४॥ पनरस कोडिसयाई कोडिबायाल लक्ख अडवना । अडतीस सहस वंदे सासयजिणपडिम तियलोए ॥५॥ कथं ?-इह-स्वस्थाने सन्-तिष्टन् तत्र-ऊर्ध्वलोकादिषु सन्ति-विद्यमानानि 'सकथएण इमिणा एयाई चेइयाई वंदामि । बियसकत्थयभणणे एयं सु पओयणं भणियं ॥६॥ (८३७) पुणरुत्तपि न दुटुं दद्वत्वमिणं जिणागमम्नहिं । जिणगुणथुइरूवत्ता कम्मक्खयकारणत्तेणं ।।२।। (७९०) जह विसविधायणत्थं पुणो पुणो मंतमंतणं सुहयं । तह मिच्छत्तविसहरं विष्णेयं बंदणाईवि ॥शा(७९३) तत्तो य भावसारं दाऊणं थोभवंदणं विहिणा। साहुगयं पणिहाणं करेइ एयाइ गाहाए ॥४॥ (८३८) 'जावंति केवि साहू' इत्यादि, यावन्तः केचित् उत्कृष्टतो जघन्यतश्च यथा-नवकोडिसहस साहू उक्कोसं केवली उ नवकोडी । वंदे दुकोडी केवली दुकोडिसहसा मुणि जहण्णं ।।१।। साधवः,क?,भरतैरवते महाविदेहे च, पंचदशकर्मभूमिष्वित्यर्थः, किं ?-सर्वेषां तेषां प्रणतो-नम्रः त्रिविधेन कायवाभनोमिः त्रिदंडविरताना-मनोदंडादिरहितानां, भावसाधूनामित्यर्थः, 'तत्तो अतिचचित्तो जिणिंदगुणवत्रणेण भुजोऽवि । सुकइनिबंधं सुद्धं थयं च युत्तं च वजरइ ॥१॥ (८४०) For Private And Personal ||३४०॥ Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kai s uri Gyanmandit प्रणिधान! सूत्र श्रीदे सक्कयभासाबद्धो गंभीरत्थो थउत्ति विक्खाओ। पाइयभासाबद्धं धुत्तं विविहेहि छंदेहिं ॥ २॥ (८४१) चिइवंदणकियकिचो| चैत्यश्री- पमोयरोमंचउब्बिहसरीरो । इटफलपत्थणपरं इय पणिहाणं कुणइ तइयं ॥ ६ ॥ (८४५) 'जय वीयराये'त्यादि, जय वीतराग ! धर्म संघा- जगद्गुरो इति भगवतः त्रिलोकनाथस्य बुद्धौ प्रणिधापनार्थमामंत्रणं, भगवन् ! जायतां ममेत्यात्मनिर्देशः तव प्रभावतःचारविधौ । सामर्थेन भगवन्निति पुनः संबोधनं भक्त्यतिशयख्यापनार्थ, किं तदित्याह-भवनिर्वेद:-संसारनिर्वेदः, नहि भवादनिर्विण्णो ॥३४॥ मोक्षाय यतते, अनिर्विण्णस्य च प्रतिबंधात् मोक्षाय यत्नोऽयत्न एव, निर्जीवक्रियाकल्पत्वात् , तथा 'मार्गानुसारिता' अस ग्रहविजयेन तत्वानुसारिता, तथा 'इष्टफलसिद्धिः अभिमतार्थनिष्पत्तिः ऐहिकी ययोपगृहीतस्य चित्तस्वास्थ्यं भवति, तमादेवपूजाधुपादेयप्रवृत्तिः, तथा 'लोकविरुद्धत्यागः' सर्वजननिंदादिवर्जनं, यदाह-"सबस्स चेव निंदा विसेसो तहय गुणस| मिद्धाणं । उजुधम्मकरणहसणं रीढा जणपूयणिजाणं ॥१॥ बहुजणविरुद्धसंगो देसादाचारलंघणं चेव । उवणभोओ अ तहा दाणाइ पयडमन्ने उ ॥२॥ साहुवसणंमि तोसो सइ सामत्थंमि अपडियारो अ। एमाइयाई इत्थं लोगविरुद्धाई णेआई ॥३॥ महदपायस्थानमेतत् , गुरुजनस्य-मातापित्रादेः पूजा-उचितप्रतिपत्तिः 'परार्थकरणं च परहितार्थकरणं, जीवलोकसारं पौरुपचिह्वमेतत् , सत्येतावति लौकिके सौन्दर्ये लोकोत्तरधर्माधिकारी भवति, 'सुहगुरुजोगो' विशिष्टचारित्रयुक्ताचार्यसंबंधः,अन्यथा अपान्तरालसदोषसिद्धिलाभतुल्योऽयमिति अयोग एव, तथा तद्वचनसेवना-सद्गुरुवचनसेवा, न जातुचिदयमहितमुपदिशति आभवं-आसं| सारं अखंडा-पूर्णा,भवतु ममेति शेषः,एतावत्कल्याणावाप्तौ द्रागेवापवर्गः,फलति चैतद् अचिन्त्यचिन्तामणेभगवतः प्रणिधानेनेति, इदं च प्रणिधानं न निदानरूपं,प्रायेण निस्संगामिलापरूपत्वात् ,एतचाप्रमत्तसंयतादर्वाक् कर्तव्यं,अप्रमत्तादीनां मोक्षेऽप्यनमिलापात् , Manatimamalini RamSTHANI IATRAUMARRIAAIADMAANEMA HIBILITARIANIMIREMIII I ॥३४९ For Private And Personal Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Min Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥३४२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailan Gyanmandir अत्र भाष्यं पणिहाणाणि इमाणि य इह कायज्ञाणि निच्छएणेव । पणिहाणंता जम्हा संपूना वंदना भणिया ||१|| ( ८५०) उवएसविसेसाओ इत्तो अहिंगंपि चित्तउत्तीहिं । पयडियभावाइसयं कीरंतं गुणकरं चैव ||२|| (८५१) उक्तं च-मिच्छादंसणमहणं सम्मईसणविसुद्धिहेउं च । चिइवंदणार विहिणा पन्नत्तं वीयरागेहिं ||३|| (७८४) भावुल्लासेण विणा अहिगपवित्ती न हुज धम्मंमि । सो | खलु सुप्पणिहाणं भण्णइ विनायसम एहिं ||४|| (८१३) वंदणपणिहाणाओ सुविसुद्धाओ पवड़माणाओ । सुवइ जिनिंदसमए देवत्तं दद्दुरो पत्तो ॥ २ ॥ ( ८१५) कयमित्थ पसंगेणं एवं पणिहाणसंगया एसा । संपुष्णा उक्कोसा निधिट्ठा वंदना लट्ठा ||६|| (८७४) दर्दुरांकदेवकथा त्वियं रायगिहे गुण सिलयंमि चेइए अन्नया समोसरिओ । वीरजिणो जा धम्मं कहइ सुरासुरनरसहाए || १|| ता चउसहस्स सामाणिएहि चउगुणाइ आयरक्खेहिं । अग्गमहिसीहि चउहिं नियनियपरिवारजुत्तेहिं ॥२॥ अन्नेहिं बहुदेवीदेवेहि जुओ महाविभूईए । पडुपडद्दनियवाईयरवेण पूरंतओ गयणं || ३ || तत्थेगो वरअमरो पत्तो तिपयाहिऊण वीरजिणं । वन्दित्तु नमसित्ता धम्म कहते भणइ एवं ॥ ४ ॥ अविगलनिम्मलकेवलबलेण सयलंपि मुणह पहू ! तुज्झे । गोयमपमुहमुणीणं नट्टविहिं पुण पयंसेमि ॥ ५ ॥ दव्त्रत्थयंतिकाउं मोणं मुणिपुंगवो विहेसीअ । अप्पडिसिद्धं अणुमयमिय विहिणा नाडयं काउं ॥ ६ ॥ पुणवि नमतो भणिओ सो पहुणा अमरपवर ! जीयमिणं । किञ्चमिणं तो हिट्ठो एसो पत्तो सठाणंमि ||७|| अह नमिय जिणं पुच्छइ गोयमसामी सुरेण पहु! इमिणा । किं कासि पुरा सुकयं जं लद्धा एरिसी रिद्धी ||८|| जिणवंदणपणिहाणा इमस्स रिद्धी इमत्ति जिणभणियं । पुणरवि गोयमपुट्ठो तच्चरिअं कइइ इअ सामी || ९ || इह रायगिहे नगरे मह पासे गहिय सुद्धगिहिधम्मो । नंदमणिआरसिट्ठी पोसहसालाइ कइयावि For Private And Personal दर्दुरांक कथा ॥ ३४२ ॥ Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चेत्य०श्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥२४३॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas ||१०|| कयअट्टमभतो गहियपोसहों अइतिसाय परिभूओ । धन्ने जलयरजीवे मन्नतो गमिय कहवि निसा ॥ ११ ॥ गोसे सेणियनिवई विन्नविउं विश्च्चिऊण बहु दव्वं । चउदिसि चउवणसंडेहिं मंडिअं करइ सो वाविं ||१२|| सोलसरोगमिभूओ मुको वेज्जेहिं अझाणेण । मरिउं सो दद्दुरओ उप्पन्नो निययवावीए || १३ || धन्नो स नंदसिट्ठी जेण इमा कारिया पत्ररवावी । बहुजणसंतावहरा वणसंडजुया महुरसलिला ||१४|| इअ नरनारिमुहाओ निसमिय सो निययपुवभवनामं। संजायजाइसरणो अणुतावा इय विचिंतेह ||१५|| अहह अहोऽहमभग्गो हा हारियनरभवो अकयपुन्नो । भट्ठो भट्टपहनो निग्गंथाओ पत्रयणाओ ।। १६ ।। तो सयमेव पवजे गिहिधम्ममभिग्गहं च गिण्हेइ । कप्पइ मे जा जीवं छछद्वेण पारेउं ॥ १७ ॥ पारणदिणेवि फासुअउव्वट्टणियाहिं धोणनीरेण । कप्पड़ मह वित्ती खलु सच्चित्त आहारनियमो मे || १८ || अह अम्हे रायगिहे समोसढा सुणिय अम्ह आगमणं । लोअमुद्दा सो तुट्ठो चलिओ मे बंदणनिमित्तं ॥ १९ ॥ इतो वंदणहेउं अम्हाणं सेणिओऽवि नरनाहो । चलिओ भडचडगर चाउरंग सेणाइ परियरिओ ||२०| तस्सेगेण हरणं अकंतो सो उ वामचलणेणं । निग्गयअंतो तुरियं एगंतमवक्कमेऊणं ॥ २१ ॥ अम्हे वंदिय सक्कत्थएण उच्चरित्र पुणवि गिहिधम्मं । जिणवंदणपरिणामा मरिउं अणसणविहाणेणं ।। २२ ।। सोहम्मदेवलोए सुविमाणे ददुरावडंसंमि । नामेण ददुरंको चउपल्लठिई सुरो जाओ ||२३|| असुअं अदिट्ठपुव्वं सुरलच्छि पिच्छिऊण तारिच्छं । अह चिंतिउं पयट्टो अइविम्हियमाणसो एसो ||२४|| किं मने हुआ मए अइउग्गतरं तवं समायरिअं । किं मयलंछणसच्छहमणुचरिअमणुत्तरं सीलं? ||२५|| किं वा दाणं दिनं साहूसु तवनिअमसंयमुज्जुएसु। धणियं सुभावणाए किंच मए भाविओ अप्पा ? ||२६|| इय सुबहु वियप्पिय संममोहिणा मुणिय भणइ हुं लद्धा । वीरजिणवंदणाए पणिहाणेणं इमा रिद्धी || २७ ॥ ता वीरजिणं तिहुअणमामि वंदामि तह नम॑सामि । सो मम For Private And Personal Gyanmandir दर्दुरांक कथा ॥३४३ ॥ Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Gyarmandie | प्रणिधानेषु वर्णाः गुरवः श्रीदे वं दणहेउं सपरियरो इत्थ लहु पत्तो ॥२८॥ भनीए मं वंदिय सो एसो कासि नदृविहिमेवं । तं सोउं तुट्ठमणो गोयमसामी नमइ चैत्यश्री- वीरं ॥२९॥ अनोवि बहुअलोओ जाओ जिणवंदणाइपणिहाणो । सठ्ठयरमुज्जयतमो पहवि अन्नत्थ विहरित्था ।।३०।। सत्पणिधर्म० संघा धानादेवं सुसंपदं दर्दुरस्य विनिशम्य । भो भवत सावधानाः प्रणिधानेऽखिलसुखनिधाने ॥ ३१ ॥ इति दर्दुरांकदेवकथा ।। चारविधौ । ॥३४४॥ अथ प्रणिधानत्रिकवर्णसंख्याख्यापनाय गीतिगाथाप्रथमपादमाह __ पणिहाणि बावनसयं पणिहाणेति जातावेकत्वं, ततश्च त्रिषु प्रणिधानेषु द्विपंचाशदधिकं शतं वर्णानां भवति, तत्र जावंतीत्यादिके जिनवंदनारूपे प्रणिधाने पंचत्रिंशत् , जावंत केवि इत्यादिके द्वितीये मुनिवंदनालक्षणे त्रिंशत् , जयवीरायेत्यादिगाथाद्वयात्मके तृतीये प्रार्थनाखरूपे त्वेकोनाशीतिः,सर्वमीलिते द्विपंचाशंशतमिति । एषा च चैत्यवंदना गुरुलघुवर्णपरिज्ञानमंतरेण क्रियमाणा न विशुद्धिकारणं स्यात् , आह च-गुरुलघुमेदज्ञानं न विद्यते यस्य सर्वथा चित्ते । स विचक्षणोऽपि रक्षां न वृत्तभेदस्य कर्तुमलम् ॥ १॥ किंच| व्यंजनभेदादर्थभेदोऽर्थभेदे च नाभीष्टसिद्धिः प्रत्युतानर्थप्राप्तिः स्यात् , कुणालकुमारवत् , ततोऽवश्यं गुरुलघुत्वं वर्णानां ज्ञातव्यं, एकस्य च परिज्ञाने द्वितीयं सुखेन परित्रायते, तत्र चाल्पत्वात् गुरुवर्णसंख्यासंख्यापनार्थ गीतिगाथापादत्रयमाह कमेण सगतिचउवीसतित्तीसा । गुणतीस अट्ठवीसा चउतीसिगतीस बार गुरुवन्ना ।। २९॥ गीतिः,क्रमाद्-यथाक्रम एषु नमस्कारक्षमाक्षमणेर्यापथिकी३ शक्रस्तव४ चैत्यस्तव५ नामस्तव६ श्रुतस्तव७ सिद्धस्तव८ प्रणिधानेषु ९ नवस्थानेषु गुरुवर्णा ज्ञातव्याः इति शेषः, कियंत इत्याह-सप्तश्त्रयः२ चतुर्विंशतिः३ त्रयस्त्रिंशत् ४ एकोनविंशत् ॥३४४॥ For Private And Personal Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailah Gyanmandie गुर्वादिवर्णाः MEE श्रीदे० चैत्य श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥३४५॥ H | ५ अष्टाविंशति६श्चतुस्त्रिंशत् ७ एकत्रिंशत् ८ द्वादश९ गुरवो-द्विगुणितरूपाः, नतु संयोगे पूर्वो गुरुरित्यादिलक्षणलक्षिताः वर्णाअक्षराणि, तत्र नमस्कारे द्वितीयपदे द्धाप४ ज्झा प ५ व्यप ६ का प ७ बप्पा प ८ व्वे इति सप्त, अन्ये तु पणासणोत्ति पस्य लघुत्वात् षट् गुरुन् भणंति, आह च-छकूणसेस लहुआ नवकारे अक्खर दुसट्टत्ति, च्छेजात्थ इति क्षमणाश्रमणे त्रयः, ऐर्यापथिक्यां प्रथमपदे च्छा प २ क प ६७८५९ तिट्टीक्क प १७ त्ति प २० टिप २३ ६ प २६ स्सच्छाक्क प २७ स्स त २८ च्छित्त प ३०ल्ली प ३१ म्माग्घाहा प ३२ स्सग्गं इति चतुर्विंशतिः। केचित् ठाणाश्रो हाणंति पंचविंशतितम भणंति ३ । शक्रस्तवे प्रथमपदे त्थु प ४ स्थ प ५ द्धा प ६ त प ९ स्थी प १० त प १४ जो प १६ खु प १७ ग्ग प २० म्म | प २१ म्म प२२ म्म प २३ म्म प २४ म्मकट्टी प २५ प प २६ ट प २८ ना प २९ द्धा प ३० ता प३१ बन्नूव प ३२ क्खव्वात्तिद्धित्ता इत्येकानत्रिंशत् । तथा जे य अईआ सिद्धेत्यादिगाथायां प१द्धा प२ स्सं ३ ट प ४ व्वे इति चत्वारः, उभये मिलिताः सकलशक्रस्तवदंडके त्रयस्त्रिंशत् , केचिच्चतुस्त्रिंशत्तमं विअच्छउमेत्ति च्छकारं मन्यते ४ । चैत्यस्तवदंडके प २ स्सग्गं प३त्ति प ४ ति प ५ कात्ति प६ म्मात्ति प ७ त्ति प ८ ग्गत्ति प ९ द्धा प १३ प्पे १४ ड्ढ प १५ स्सग्गं १६ न स्थ प २१ ड्डु प २२ ग्गे प२४ तच्छा प २७ ट्ठि प ३० ग्गो प ३१ ज प ३२ स्सग्गो प ३३ का प ४२ प्पा इत्येकोनत्रिंशत् , एके तु काउसग्गेत्यत्र सकारस्य लघुत्वं मन्वानाः षट्विंशति भणंति, तथा च-'पणवोमं चउवीसं अउणत्तीसं च पंचतीसा य । गुणतीसं इरियावहिसक्कथयाईसु गुरुवण्णा ॥१॥ नामस्तवदंडके प १ सज्जो प २ म्मत्थ प३ त्तस्सं प७ प्प प ८प्प प ९फ प १० जंज प १२ म्म प १३ ल्लिं प १४ व १५४ १६ द्ध प२० त्थ प २१ त्ति प २२ स्सत्तद्धा प २३ HTRINiunilMINSPITAHARINHAIMAHIMil i ndiHINDIKHITRALIACILIPAHIL-MAILama MINISTRATI "ali-Mata ॥३४५॥ For Private And Personal Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघाचारविधौ ||३४६ ।। in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasuri Gyanmandir ग्गप २४ त प २५ म्म २६ चे प २८ द्धाद्धिं, सङ्घलोए इत्यत्र व्व इत्यष्टाविंशतिः, अपरे तु चउद्वीपि केवलीत्येकोनत्रिंशं पठंति ६ || श्रुतस्तवदंडके प १ कूखड़े प ४ म्मा प ५ स्स प ६ स प ७ स्स प ८ फोस्स प ९ स्स प १० लाखस्स प ११ चिस्स प १२ म्मस्सन्भ प १३ द्वे प १४ न्नन्नस्सन्भूचि प १५ त्थहिकच्चा प १६ म्मोढम्मुत्तढ, सुअस्स भगवओ इत्यत्र स इति चतुस्त्रिंशत्, इवरे तु देवनागेति पंचत्रिंशद् वदंति, यथा- 'सन्भूयनागसद्दक्खराण पढमाणमित्थ दुब्भावोति । सिद्धस्तवदंडके प १ द्वाद्वा प ३ ग्ग ४ बद्धा प ९ कोक्का प १० स्सद्धस्स प १३ जिं प १४ कुखास्स प १५ म्मक्कहिं प १६ १७ १८ वी प १९ हट्टिट्ठा प २० द्धाद्धिं इति पंचविंशतिः, वेयावच्चेत्यत्र च १ म्मदि ३ ट्ठि ४ इति चत्वारः, | उभयमेकोनत्रिंशत् ८ | जावंति चेइयेत्यत्र इढेवात्थ इति त्रयः, जावंति केवि इत्यत्र वे इत्येकः, जय वीयराय इत्यत्र वेग्गाहद्धी | इति चत्वारः लोकविरुद्धेत्यत्र ६ द्वच्चात्थव इति चत्वारः सर्वे च प्रणिधानत्रिके द्वादश गुरुवर्णाः एवं च अपुनरुक्ता नवसु स्थानेषु सर्वे गुरुवर्णा एकोने द्वे शते, शेषास्तु चतुर्दशशतान्यष्टचत्वारिंशदधिकाश्च लघवः- संयोगरहिता, न त्वेकमात्रिका एव, तथाहिनमस्कारे ६१ क्षमाश्रमणे २५ ईर्यापथिक्यां १७५ शक्रस्तवे २६४ चैत्यस्तवे २०० नामस्तवे २३२ श्रुतस्तवे १८२ सिद्धस्तवे | १६९ प्रणिधाने १४०, अत्र संग्रहगाथा - इगसहि१ पंचवीसा२ पणसयरं ३ दुचउस ४ दुसयलहू ५ । दो बत्तीसा ६ तिवासी ७ गुणसमरिसया य ८ चालसयं ॥ १ ॥ ति, स्तुतिस्तव नमस्कारादिगतास्तु वर्णा अनियतत्वान्न विचार्यते, तथा चैत्यवंदनायाः सम्यक् - करणबांया अर्हदादिद्वादशपदानाम्म्रुच्चारविशेपोऽपि ज्ञातव्यः, स चैवं पंचस्थानके प्रभुश्री हरिभद्रसूरिपादैरुक्तः- द्विविधमुक्तंशब्दोक्तमर्थोक्तं च, तदेतदर्थोक्तं वर्त्तते, संक्षिप्य तदुक्तार्थप्रतिपादनात् तथाहि - अरिहं अरÉ अरुहं १ भयवं भयवं च२ उत्तमुत्ति , For Private And Personal गुर्वादिवर्णाः ॥३४६ ॥ Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mal www.kobatirth.org श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म संघाचारविधी ॥३४७॥ Aradhana Kendra Acharya Shri Kailash bokey Gyanmandie वयं ३दंसण दरिसण४ जाणय जावया५ मुत्तमुक्काण६॥१॥ अप्पं अप्पाण७ होइ नवा मइआ महिया८पयासग पहासा९| आइच्चेसुं कुणालकथा | आइचेहि१०य चंदेसु चंदेहिं ११ ॥२।। सासयमहवा तह सासओ य बारस य इत्थ आलावा । अरिहपए तिविगप्पा दुविगप्पा हुंति सेसेसु ॥३।। बारसपएसु एसु य पण पुणरुत्ताई सत्त पय इयरे। अरिहं१ भयवर उत्तम३ दंसण४ अप्पाण नोसंतं ५।। ४ ।। ते पुण पुणरुत्तपया दस१४२चउ३दु४पण ५ वार जहसंखं । भयवंतपयवियप्पो तत्थ य राईसुविय नेओ।।५।। संपदगतविशेषस्तु पूर्व| मेवोक्तः। कुणालकुमारकथा चैवं-इह पाडलिपुरनयरे नयरेहिल्ले निवो असोयसिरी । पुत्तो तस्स कुणालो अइमेहावी कलाकुसलो ॥१॥ मयमायत्ता रन्नो सो अइइट्ठो सवत्तिजणणिभया । दिन्नाइ कुमरभुत्तीइ वसइ उज्जेणिनयरीए॥२॥से सिक्खत्थं पेसइ राया बहुसो सयं लिहिअ लेहं । अन्नदिणे पुण एवं लिहइ अधीयतु कुमारवरो ॥३॥ एमेव मुत्तु लेहं कहिंचि कजे समुडिओ निवई । विअरइ सवत्तिजणणी अगारउवरिं अणुस्सारं ॥४॥ पुण आगओ नरिंदो अवाइउं चेव मुद्दि लेहं । पेसइ कुमरस्स न चेव वायए जा निउत्तनरो ॥५॥ ता तस्स करा गिण्हइ लेहं सयमेव वाइउं कुमरो । जाणिअतप्परमत्थो थिरसत्तो चिंतइ मणमि ॥६॥ | तइलुक्कपसिद्धाणं मोरियवंसुम्भवाण अम्हाणं । न हु केणइ गुरुआणा विलंघिया पुचपुरिसेण ॥७॥ तो साहसिक्कभवणं वारिजंतोवि | मंतिपमुहेहिं । तत्चसिलागाइ लहुं नयणजुअं अंजए कुमरो ॥८॥ इय सोउ सोयजुतोऽसोयसिरी झूरए अहो कटुं । किह कूडलेह गेणं विणासियं पुरिसरयणं मे ॥ ९॥ कुमरोऽवि मुणिय जणणीइ विलसियं मरिसिओ मणे धणियं । तस्सऽत्थि पिया सरयन्भसुद्धसीला य सरयसिरी ॥ १०॥ कइयावि तीइ कुसुमियचूयसुमिणसइओ सुओ जाओ। अह सो कुणालकुमरो गंधवकलाइ अइकुसलो ॥११।। अणवरयगीयवसणी गायतो महियलंमि परिभमइ । तइआ नाउं अवसर पत्तो पाडलिपुरे नयरे॥१२॥ हाहा- ॥३४७॥ JASYA For Private And Personal Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M e in Aradhana Kendra www.kobarth.org Acharya Shri Ka y anmandit MummarARI कुणालकथा श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥३४८॥ D हुहुतुंबुरुकंठो मंतीहिं साहिओ रन्नो । कत्तोवि सामि ! पत्तो अप्पुबो गायणो कोवि ॥१३॥ नवरं नयणविहूणो इय सुणिय कोउगा निवो भणइ । आगच्छउ को दोसो ? गायउ मह जवणियंतरिओ॥१४॥ अह तेण सरससरगाममुच्छणाललियमहुरगीएण। हयहियओ | भणइ निवो वरसु वरं भणइ तो कुमरो ॥१५॥ चंदगुत्तप्पपुत्तो उ, बिंदुसारस्स नत्तुओ । असोयसिरिणो पुत्तो, अंधो जायइ कागणि ॥१६॥ अह नाउ नियसुयं तं अवणेउं जबणियं निउच्छंगे। आरोविऊग गग्गरसरेण इइ जंपए राया ॥१७॥ किंवच्छ! विहिवसेणं एयमवत्थंतरं तुम पत्तो । तेणुत्तं तायपयपसायओ णत्थि मिह खूणं ॥ १८ ॥ किंतु मह गीयवसणं तेणं सरं ममामिऽहं धणियं । ता किं पसायदाणं थोवं ते मग्गिय ? वच्छ ! ।।१९।। इय जावुत्तोवि इमो न किंपि जंपेइ भणइ ता मंती। कागिणिसद्देणं रजमाहियं देव ! निवईणं ।।२०।। रायाऽऽह वच्छ ! ठविउं तुमं विणा को णु जुञ्जए मज्झ । जह तुह अच्छिविणासो न हुज? सो आह अह कुमरो ॥२१॥ ताय! सुओ मह काही रज रायाऽऽह सो कया जाओ ? । कुमरो जंपइ संपइ तो आणाविय तयं राया ॥२२॥ रज्जे ठवेइ तह जं संपइ जाओत्ति जंपियं पिउणा । एयस्स संपइत्तिय नामपि तओ निवेण कयं ॥२३।। सो वडिओ कमेणं पयावअकंतसयलदिसिचक्को । उज्जेणीनयरीए ठिओ पसासेइ रजधुरं ।।२४|| जीवंतसामिपडिमं वंदिउकामा कयावि तहिं पत्ता। भवतरुभंजणहत्थी गुरू सुहत्थी सपरिवारा ।।२५।। तइआ चउविहआउजसजपिच्छणयजणियजणहरिसो। ठाणे ठाणे पयडियपयडपुरनारिहल्लीसो ॥२६॥ सद्धाबंधुरभवियणपयपयकयलगुडरासमणहरणो। चउदिसि सुसाविगागिजमाणमुमहल्लमंगल्लो ॥२७॥ सो रहिएहिं भविएराहें सणियं पकढिजमाणओ पुरओ । पइहट्टं पइगेहं गुरुयं पूयं पडिच्छंतो।।२८|| अणुगम्मतो गुरुणा मुहत्थिणा सयलसंघसहिएणं । भमिरो तत्थ जिणरहो पत्तो निवभवणदारंमि ॥२९॥ अह राया तज्जूहे सकम्मविवरिव वट्टमाणो सो। टुं सुहत्थिरिं AARISHADAININTINENERMINASI AURANTIP ॥३४८॥ HINimum For Private And Personal Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shn i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org s uri Gyanmandie कुणालकथा Acharya Shri Kal श्रीदे. D तुट्ठमणो चिंतए चिसे ॥ ३० ।। मन्ने कत्थवि दिह्रो एस मुणिंदो मया दयाभवणं । ज मह मणजलनिहिणो इंदुम्ब जणेइ उल्लासं ANIA ॥३१॥ इय चिंतिरस्स तस्सासु भासुरं जाइसरणमुप्पन । तो मुत्तु सव्वकजे पत्तो गुरुचरणनमणत्थं ॥३२॥ नमिउं गुरुणो पुच्छइ। धर्म संघा-AN जिणधम्मो किंफलो? भणइ सूरी। सो सग्गमुक्खफलओ पुच्छेइ पुगोवि नरनाहो॥३३।। किं फलमवत्तसामाइयस्स? रजाइ संसइ चारविधौ यमुर्णिदो। तो तुट्ठो मणइ निवो किं उवलक्खह ममं? भयवं! ॥३४॥ तयणु अणुत्तरसुपनाणसुद्धउवओगओ मुणिय सूरी । जंपइ ॥३४९॥ संपइ! नरवर आसि पुरो मज्झ तं सीसो ॥३५।। तथाहि-कइयावि मासकप्पेण विहरमाणा समं महागिरिणा । अम्हे कोसंविपुर पत्ता दुम्भिक्खकालंमि ॥३६॥ संकडभावा वसहीण बहुअभावेण मुणिजणस्स तह । सिरिअजमहागिरिणो वयं च वसहीसु वीसु ठिआ |॥३७॥ सुत्तट्ठपोरिसिकमेण मिक्खवेलाइ साहुसंघाडो। अम्हं कम्मिवि ईसरगिहमि मिक्खत्थमणुपत्तो॥३८॥ अत्ताणं सत्ताणं तो मन्नतेण तेण धणवइणा । भत्तीइ भत्तपाणं पउरं उवढोइयं तस्स ।'३९।। दिटुं च तमेगेणं भिक्खयरेणं तहिं पविद्वेणं । चिंतइ इमिणो भत्ते अहो अहो धम्ममाहप्पं ॥४०॥ तुल्ले मिक्खयरत्ते इमे सउन्ना लहंति सव्वत्थ । अयं तु पुनरहिओ लहामि जइ नवरमकोसं ॥४१॥ इय चिंतिय सो लग्यो मुणीण मग्गंमि मग्गए बहुसो। भयवं ! तुन्भे सम्वत्थ लहह ता देह मह किंचि ॥४२॥ तो मुणिवरेहि भणियं भो भद्द ! न अम्ह संतियं भत्तं । अम्ह इमस्स य पहुणो गुरुणो चिट्ठति वसहीए ॥४३॥ तेणासाविवसेणं वसहिं | आगंतु जाइया अम्हे । साहूहिं तेण कहिओ सब्बोवि हु मग्गवुत्तंतो॥४४॥ तो नाउ सुएण वयं भावि पत्रयणसमुन्नइकरं तं । सामा इयसुत्तुच्चारपुब्वगं झत्ति दिक्खिसु ॥४५॥ भोयाविओ जहेच्छं मणुन्नमाहारमा निसाए सो। सुद्धमणो गूढविमइयाइ पंचत्तमणुपत्तो | ॥४६॥ इगबिंदुयसमहियलेहदोसउप्पन्नअंधभावस्स । कुमरकुणालस्स स एस भूव ! तं नंदगो जाओ।४७। इय सोऊणं राया बहु- ॥३४९॥ For Private And Personal Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥३५०॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailan Gyanmandir बहुमाणुल्ल संतरोमंचो | भालत्थलमिलियकरो एवं थुणिउं समाढत्तो ||४८|| जय जय नागदिवायर परोवयारिकपञ्चल मुणिंद ! | | गुरुकरुणारससायर नमो नमो तुम्भ पायाणं || ४९ || दारिद्द अमुद्दस मुद्दमज्झनिवडंतजंतुपोयाणं । सकलकमलालयाणं नमो नमो तुब्भ पायाणं ॥ ५० ॥ सग्गापवग्गमग्गाणु लग्गजणसत्थवाहपायाणं । भवियावलंबणाणं नमो नमो तुब्भ पायाणं ॥ ५१ ॥ चर्ककुसंक| वरकलसकुलिसकमलाइलक्खणजुयाणं । असरणजणसरणाणं नमो नमो तुज्झ पायाणं ।। ५२ ।। इय थोडं सो गुरुणो गिहिधम्मं गहिय सगिहमणुपत्तो । सव्वत्थवि नियर रहजत्ताओ पवत्तेइ ||५३ ॥ यदुक्तं निशीथचूर्णो - अवंतीजणवए उज्जेणी नयरी, 'अणुजाणे अणुयाई पुप्फारुहणाई उकिरणगाणि । पूयं च चेइयाणं तेवि सरजेसु कारंति ||१|| अणुजाणं-रहजत्ता तेसु सो राया अणुजाई - भडचडगरसहिओ रहेण सह हिंडइ, रहेसु पुप्फारुहणं करेइ, अग्गओ य विविहफले खज्जगे कबड्डगवत्थमाई य उकिरणे करे, | अन्नेसिं च वेच्चइयघरठियाणं पूअं करेइ, तेऽवि रायाणो सरजेसु कारविंति । जह सुमरिअ रंकत्तं सत्तागारा कराविआ तेण । जह बोहिआ अणजा तहा निसीहाउ नेयव्वं ॥ ५४ ॥ जिणसासणं पभाविय सुइरं सुगुरूसु सुबहुमाणपरो । सो संपइनर नाहो जाओ वेमाणि सुरो || ५५ || धम्मफलं पयडेउं भणियं संपइनरिंदरचरियं । इहयं वन्नहिगारे पगयं तु कुणालकुमरेण ।। ५६ ।। एवं कुणालस्य निशम्य वृत्तं, नमस्कृतीर्यापथिकादिवर्णान् । ज्ञात्वा सदोनाधिकदोषमुक्तान्, विधत्त शुद्धं जिनवंदनादि ||१|| इति कुणालकुमारकथा । इत्युक्तं 'वन्ना सोलसअसीआला १ ॥ इमसीय सयं तु पयार सगनउई संपयाउ य३'त्ति, अट्टमनवमदसमेति द्वारत्रयं । संप्रति पणदंडेत्येकादशं द्वारं गाथा पूर्वार्द्धनाह पण दंडा सक्कत्थयचेइयनामसुयसिद्धत्थय इत्थं । For Private And Personal कुणालकथा ॥३५०॥ Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ShriMEVA Aradhana Kendra www.kobatirth.org Gyanmand गुणसागरकथा श्रीदे चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥३५१॥ MANIASISEDIOPINSIDHIRatimes Acharya Shri Kailas दंडका:-प्रागुक्तशब्दार्थाः, ते च पंचात्र चैत्यवंदनायां, गुणसागरनृपतिवत् सत्यापनीयाः। तत्र प्रथमो दंडकः शक्रस्तवः नमोत्थुणमित्यादि सब्वे तिविहेण वंदामीत्येतदंतः, यतश्चैत्यवंदनाचूर्णावतत्सर्व व्याख्याय भणितं 'एवं पणिवायदंडगं | भणित्ता तओ पंचंगपणिवायं करेइत्ति, द्वितीयः चैत्यस्तवः अरिहंतचेइयाणमित्यादिः, तृतीयो नामस्तवः लोगस्स उजोअगरे | इत्यादिः ३ चतुर्थः श्रुतस्तवः पुक्खरवरदीवेत्यादिः४ पंचमस्तु दंडकः सिद्धस्तवरूपः,सिद्धाणं बुद्धाणमित्यादिः यावत् अप्पाणं वोसिरामीत्येतत्पर्यतः,तथा श्रीहरिभद्रसूरिपूज्यैललितविस्तरायामेतदंतं व्याख्याय भणितं यथा 'व्याख्यातं सिद्धेभ्य इत्यादि | सूत्र'मिति । अथ गुणसागरनृपकथा-वरदंडो वरदंडइ गोरक्खपरो य अस्थि रणवीरो। इह गोवालो गोबालउच्च नयरंमि वीरपुरे ॥१॥ तस्स गुणसायरो सायरुव आसी सुओ सुसत्तजुओ। तस्स य मित्तो धरणो मइसागरमंतिवरपुत्तो ॥२॥ कइयाइ रायवाडीइ अइगओ सहसुयाइपरिवारो। पिच्छइ गुणधरमुणिं राया कुसुमागरुजाणे ॥३॥ उत्तरिय करिवरा तो विणएण मुणीसरं नमइ निवई । परउवयारिक्कमई मुणीवि इय देसणं कुणइ ॥ ४॥ "जं इह जियाण जायइ मणोरमं रूवरिद्धिमाईयं । तं धम्मफलं नूणं विवरीयं पुण अहम्मस्स ॥ ५॥ धम्माभासेहिं समाउलंमि लोए जहद्विअं धम्मं । आसन्नभाविभद्दा विरलच्चिय केइ जाणंति ॥६॥ विरलाणवि ते विरला धम्मविसेसं वियाणिउं सम्मं । जं जह भणियं तं तह कुणंति जे देहनिरवेक्खं | ॥७॥ सो पुण धम्मो पंचमपुरिससमो इह अणोवमो नेओ । राजा भयवं! को सो पंचमपुरिसोवमो धम्मो ।।८॥ मुनिः-नरवर जह बीयंगे भणि वीरेण गोअमाईणं । पंचमपुरिससरूवं तहेगचित्तो निसामेहि ॥९॥ तथाहि-से जहानामए पुक्खरिणी सिया बहुउदया बहुसेया बहुपुक्खला लट्ठा पुंडरीगिणी पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ९, तीसे णं पुक्खरिणीए तत्थर ॥३५१॥ For Private And Personal Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavistin Aradhana Kendra www.birth.org Acharya Shri Kalye Turi Gyanmandie श्रीदे० PAN गुणसागरकथा चैत्यश्रीधर्म०संघाचारविधौ| ॥३५२॥ AM देसे २ तहिं २ बहुला पउमवरपुंडरीया बुइआ अणुपुन्बुट्ठिया १ ऊसिया २ रुइला ३ वनमंता ४ गंधमंता५ रसमंता ६ फासमंता ७ पासाईया ८ द ९ अ१० पडिरूवा ११, तीसे णं पुक्खरिणीए बहुमज्झदेसभाए एगे महं पउमपरपुंडरीए बुइए अणुपुन्युट्ठिए जावपडिरूवे १२,अह पुरिसे पुरिच्छिमाउ दिसाओ आगम्म सं पुक्खरिणीए तीरे ठिच्चा पासइ तं महं एगं पउमवरपुंडरीयं अणुपुन्बुष्ठियं जाव पडिरूवं ११, तएणं से पुरिसे एवं क्यासी-अहमंसि पुरिसे खेयन्ने १ कुसले२ पंडिए ३ वियत्ते ४ मेहावी५ अबाले ६ मग्गत्थे७ मग्गबिऊ८ मग्गस्स गइपरकमण्णूर अहमेयं पउमवरपुंडरौयं उनिक्खिविस्सामित्तिकदु इहागतः,इय वच्चा से पुरिसे अभिक्कमे तं पुक्खरिणिं जावं जावं च णं अभिकमेण-सदवतरणाभिप्रायेण भवे तावं च णं तीने पुस्खरिणीए महंते उदए महंते सेए पहीणे तीरं अपत्ते पउमवरपुंडरीयं नो हव्वाए नो पाराए, किंतूभयभ्रष्टो मुक्तोलीवदनायैव प्रभवति, अंतरा पुक्खरिणीए सेयंसि निसन्ने पढमे पुरिसजाए। अहावरे दुच्चे पुरिसजाए, अह पुरिसे दाहिणाए आगम्म तं पुक्खरिणिं तीसे | पुक्खरिणीए तीरे ठिच्चा पासइ तं महं एगं पउमवरपुंडरीयं अणुपुबुट्टियं जावपडिरूवं,तं च इत्थ एगं पुरिसं जाव पासइ ५ पहीणतीरं अपत्तं पउमवरपुंडरीयं नो हब्बाए नोपाराए, पासइ अंतरा पुक्खरिणीए सेयंसि निसन्न, तए णं से पुरिसे एवं वयासी-अहो णं इमे पुरिसे अभिक्कमे पुक्खरिणिस्स गइपरक्कमण्णू ९ जण्णं एस पुरिसे एवं मण्णे, अहमसि पुरिसे खेयण्णे ९ जाव अहमेयं पउमवरपुंडरीयं उन्निक्खि विस्सामि,नो य खलु एयं पउमवरपुंडरीयं एवं उनिकखेवेयव्वं जहाणं एस पुरिसे,मन्ने अहमंसि पुरिसे खेयण्णे जाव परक्कमण्णू९ अहमेयं पउमवरपुंडरीयं उन्निक्खिविस्सामि इय वुच्चा से पुरिसे अभिक्कमे तं पुक्खरिणिं जाव सेयंसि | निसन्ने,दुच्चे पुरिसजाए । अहावरे तच्चे पुरिसजाए, अह पुरिसे पच्चच्छिमाओ दिसाउ आगम्म तं पुक्ख जाव पासइ तं महं पउम० For Private And Personal m egathmandline SARITAPrem ॥३५२॥ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila n Gyanmandie गुणसागरकथा श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघात चारविधी ॥३५३|| जाव पडिरूवं ९, ते य तत्थ दुनि पुरिसजाए पहीणे तीरं अपत्ते पउमवरपुंउरीयं नो हवाए जाव सेयंसि निसने,तएणं से पुरिसे एवं वयासी-अहो णं इमे पुरिसा अखेयण्णा जाव नो मग्गस्स गइपरक्कमण्णू ९, जणं एए पुरिसा एवं मन्ने-अम्हे तं पउमवर- | पुंडरीयं उमिक्खिविस्सामो,न य खलु एयं पउमवरपुंडरीअंएवं उनिक्खेवेयत्वं जहाणं एए पुरिसा,मन्ने अहमसि पुरिसे खेयण्णे जाव परकमण्णू ९ अहमेयं जाव उनिखिविस्सामि इअ वच्चा अभिकमे तं पुक्ख० जाव सेयंसि निसण्णे, तच्चे पुरिसजाए। अह पुरिसे उत्तराउ दिसाउ आगम्म तं पुक्ख जाव पडिरूवं ९ ते य तत्थ तिन्नि पुरिसजाए पासइ पहीणे तीरं अपत्ते सेयंसि निसन्ने, तए णं से पुरिसे एवं वयासी-अहो णं इमे पुरिसा अखेयण्णा१ जाव परक्कमण्णू९ जणं एए पुरिसा एवं मन्ने अम्हे तं पउमं उनिक्खिविस्सामोनो य खलु एयं पउमं एवं उनिक्खेवेषव्वं, जहाणं एए पुरिसा मण्णे, अहमंसि पुरिसे खेयण्णे १ जाव परक्कमण्णू ९ अहमेयं पउमं उन्निक्खिविस्सामि इइ वुच्चा से पुरिसे अभिकमे तं पु० जाव सेयंसि णिसण्णे, चउत्थे पुरिसजाए । अह मिक्खू? लूहे२ तीरथी ३ खेयण्णे ४ जाव परकमण्णू १२ अनयरीए दिसाओ अणुदिसाओ आगम्म तं. तीसे पु० तीरे ठिच्चा पासइ तं महं एगं पउम० जाव पडिरूवं ११, ते य तत्थ चत्तारि पुरिसजाए पासह पड़ीणे तीरं अपत्ते प० नो हवाए जाब निसण्णे, तएणं से भिक्खू एवं वयासी-अहो णं इमे पुरिसा अखेयण्णा जाव अपरक्कमण्णू जण्णं एए पुरिसा एवं मन्ने-अम्हं एवं पउम उनिक्खिविस्सामो नो य खलु एयं पउमं एवं उबिक्खिवेयव्वं जहाणं एए पुरिसा मन्ने, अहमंसि भिक्खू १लूहे२ तीरत्थे ३ खेयण्णे ४ जाब परक्कमण्णू |१२ अहमेयं पउमं उबिक्खिस्सामित्तिकटु इय वच्चा से भिक्खू नो अमिक्कमे तं पुक्खरिणिं,तीसे पुक्खरिणीए तीरे ठिच्चा सदं कुजा उप्पयाहि खलु भो पउमवरपुंडरीया उप्पयाहि०, अह से उप्पइए पउमवरपुंडरीए । तदेवं दृष्टांतं उपदर्य दार्शतिकं दर्शयितुकामः AHARIHARAMITANIUDPUNITIES HILIPINALITHALA ॥३५३॥ RealDahal For Private And Personal Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mabavy Jain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा - चारविधौ ॥३५४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kaijassegarsuri Gyanmandir श्रीमन्महावीरवर्द्धमानखामी स्वशिष्यानाह - कहिए नाए समणाउसो ! अट्ठे पुण से जाणियब्वे भवइ भवद्भिरिति गम्यते, अस्य परमार्थं यूयं न जानीतेत्यर्थः, भगवं हि समणं भयवं महावीरं निग्गंथीओ निग्गंधा य वंदंति नर्मसंति वंदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासीकिट्टिए नाए समणाउसो, अहं पुण से नो याणामो, तएणं समणे भगवं महावीरे ते य बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य एवं वयासी| हंता समणाउसो ! आइक्खामि विभावेमि कित्तेमि एवं इमं सअहं सहेउं सनिमित्तं सवाकरणं भुजो २ उवदंसेमि, लोयं च खलु मए अप्पाहट्टु समणाउसो ! सा पुक्खरिणी बुइया १ कम्मं खलु अप्पाहट्टु मए समणाउसो से उदए बुइए २, कामभोगा य जाव से सेए बुइए ३ जणजाणवयं च जाव ते बहवे पउमवरपुंडरीया वुझ्या ५ अन्नतित्थिया य जाव ते चत्तारि पुरिसजाया बुझ्या, | इच्चेए चत्तारि पुरिसजाया नाणापन्ना णाणाछंदा नाणासीला नाणादिट्ठी नाणारुई नाणारंभा नाणज्झवसाणसंजुत्ता पहीणा पुव्व| संजोगा आयरियं मग्गं असंपत्ता, इय ते नो हव्वाए नो पाराए अंतरा कामभोगेसु निसन्ना६, धम्मं च जाव से भिक्खू वुइए ७ धम्मं तित्थं च जाव से सारे वुइए ८ धम्मकहं च जाब से सद्दे वुइए ९ निव्वाणं च जाव से उप्पाए बुइए १०, एवमेव खलु मए अप्पाहदु समणाउसो से एवमेवं वुइयं । स इमो पंचमपुरिसो नरवर ! जेणोवमिञ्जए धम्मो । जइगिहिभेया दुविहस्स मूलमिमस्स संमत्तं ||१२|| अरिहंतो मह देवो जावञ्जीवं सुसाहुणो गुरुणो । जिणपन्नत्तं तत्तं इह बुद्धी चिंति संमत्तं ॥ १३ ॥ अंतोमुहुत्तमिचं पि फासियं हुअ जेहिं संमत्तं । तेसिं अबडूपुग्गलपरियट्टो चेव संसारो ॥१४॥ किंच-संमत्तंमि उ लद्धे ठड्याई नरयतिरियदाराई। दिवाणि माणुसाणि य मुक्खसुहाई सहीणाई || १५ || मनुष्यानाश्रित्य पुनरेवं संमत्तंमि उ लद्धे विमाणवजं न बंधए आउं । जइवि न संमत्त-जढो अहव न बद्धाउओ पुवि ॥ १६ ॥ कायव्वा सुद्धिकए तस्स उ चिइवंदणा जहासत्ती | पणदंडाईहि उ सा संपुष्णा होइ भणियं For Private And Personal गुणसागरकथा ॥३५४॥ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Arin Aradhana Kendra www.kobaith.org चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥३५५॥ INDIRAunmanimealthmanam PRILLIA.. Acharya Shrikeelsui Gyarmandie च ॥१७॥ चिइवंदणं तु नेयं सुत्तत्थुवओगओ समाहीओ। अक्खलियाइगुणजुयं दंडगपंचगसमुच्चरणं ॥ १८॥ पढमो सक्कथ गुणसागर| इह भणियं पणिवायदंडअं अहवा। चेइयवंदणदंडो वीओ पुण होइ नायव्यो ।॥ १९ ॥ चउवीसथो तइओ सुयनाणथओ भवे कथा चउत्थो उ। पंचमओ सिद्धथओ दंडगपंचगमिमं होइ ॥२०॥ इय सोउ हरिसियमणो रणवीरनिवो सनंदणोधणियं । गिण्हइ गिहत्थधम्म चिइवंदणमाइवरनियमं ॥२१॥ नमिउं गुणधरगुरुं तत्तोपत्तो निवोसठाणंमि । अह कीलिउंसमित्तो पत्तो कुमरो कयाइ वणे | ॥२२॥ तत्थ जुगाइजिणगिहे पविसिय मुक्कासिदंडकोदंडो। वंदिय पणदंडविहीइ गयतियदंडं जिणवरिंदं ॥२३॥ जा निग्गच्छइ पिच्छइ अच्छरअच्छेरपिच्छणियरूवं । अंदोलियाधिरूवं एगं कुमरिं वणसिरिं व ॥ २४ ॥ निद्धच्छितन्नियच्छणवरं कुमारं निएवि अह धरणो । भणइ सहयारछायाइ इत्थ छणमेगमच्छामो ।। २४ ॥ तत्थवि यागच्छंतं नियंति रमणिदुगमुत्तराहुत्तं । आगच्छंतं च खणा ताहि समं तह वरविमाणं ॥२५।। ओयरिय तओ एगो खयरो आरोविउं च ते उ तहिं । रणवीरनिवगिहे जाइ रायकयउचिय| उवयारे ॥२६॥ भणइ निव! मणिकिरीडो खयरोऽहं रयणपुरपहू मज्झ । रयणावलित्ति धूया तदुचियवरमलहमाणस्स ॥२७॥ | दिव्वन्नुणा य कहियं रणवीरसुओ मणोरमुजाणे । वंदंतो रिसहजिणं हरिही तीसे मणं स वरो ॥२८॥ इय सोउ पेसिया सा इह जायं | तस्स सव्वमवि भणियं । लग्गमवि अज ता दुण्हमेसि जोगो हवउ जोगो॥२९॥ कुमरस्स य संगयमिमं लहु कुणउ पहुत्ति सवण मृलंमि । ठाउं धरणेणुत्ते मन्नइ निवई खयरवयणं ॥३०॥ परिणयणमहे वित्ते तओ सठाणमि खेयरो पत्तो। अह कइया विनत्तो निवई उजाणपालेण ॥३१॥ सिरिअमरचंदसूरी बहुसुरविसरेण अमरसूरीव । पुजंतो संपत्तो इह अञ्ज मणोरमुजाणे ॥३२॥ इय सोउममयसित्तोव्व नरवरो जाइ तन्नमणहेउं । नमिय मुर्णिदं निसुणइ इय मुणिणा देसणं विहियं ॥३३॥ "जत्थ य विसयविराओ कसाय- ॥३५५।। HanumIIEIMPARAN PRIMA For Private And Personal Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahews in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarpuri Gyanmandit श्रीद हो । विहियअसाव३६ ॥ इय जा गुणसागरकथा श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥३५६॥ PHONE चाओ गुणेसु अणुराओ । करुणाएँ अप्पमाओ सो धम्मो सिवसुहोवाओं ॥ ३४ ॥ जइधम्मो तत्थ समग्गसंगविगमे गयंगिवग्गवहो । विहियअसायकसायच्चाओ सिवगमणपवणगुणो॥३५॥ तदसत्ताणं सत्ताणऽगारधम्मोऽवि होइ गुणहेऊ। लहुभोयणं व लंघणकरणासत्तस्स रोगिस्स ॥ ३६ ॥ इय जाणिय जे सम्मं धम्मं धारेंति ते सया धना। जे निरइयारमेयं पालंती ताण किं भणिमो? |॥३७।। जओ-धन्नाणं विहिजोगो विहिपक्खाहारगा सया धना । अन्यच्च-विहिबहुमाणी धना विहिपक्खअदूसगाधना ॥३८॥ भणियं च-आसनसिद्धियाणं विहिबहुमाणो उ होइ सयकालं । विहिचाओ अविहिभत्ती अभव्यजियदभन्वाणं ॥३९॥" इय सोउ नियो रज्जे पुतं ठविउ विमोइउंगुत्तिं । भवगुत्तिमोइणि गिहिऊण दिक्खं गो मुक्खं ॥४०॥ गुणसायरनिवई पुण मित्तजुओ सायरो गुणग्गहणे । गिण्हिय गिहत्थधम्म नमिऊण गुरुं गओ सगिहं ॥४१॥ निसि नियइ कयाइ निघो रमणिं तणुकंतिहयतम इकं । वसुदंडडमरुयकर सियवत्थं पाउयारूढं ॥४२॥ इय कासि कओ केण व आगया इत्थ ईसि हसिरा सा। कहइ तुह पुन्वभवसाहियम्हि पचंगिरा विजा ॥४३॥ जा सिज्झिस्सं विहिविहियपुव्यसेवस्स तुज्झ ता सहसा। निहणं गओसि संपइ धणियं जिण-| धम्मनिरयस्स ॥४४॥ चिइवंदणापरस्स य उचियपवित्तस्स तुह अहं नूणं। पत्ता किंकरभावं कजविसेसेसु सरियव्वा ।। ३६ ।। राजा अणणुट्ठाणाविणओ अन्नाणभवो महेह खमियबो। देवी-को अविरयाइ मइ इह गुणाहियाणं अविणओ भे।। ३७ ।। नियकंठा निवकंठे खित्ता मुत्तावलिं भणिय तहिम । एयाउ अरीवि वसं जंतित्ति तिरोहिया सहसा ॥३८॥ तो मित्तीकयअनंतपञ्चणीयाहिवो निवो निच्च । ठविउं धरणामच्चे रजधुरं कुणइ जिणधम्मं ।। ३९ ॥ धरणो सहसाऽब्भक्खाणरहम्सब्भक्खाणमाइ दाउ इओ । गिण्हइ लोगाउ बहुं दवमनीईई अह कइया ॥४०॥ पउरेहिं विन्नत्ते स निवेणुत्तोत्ति किं इमं सच्चं? । भणइ भरता भंडारमिह तुहाम्हि चिय न HIND AIIFA All INAGAPAIRAILMIBAHANIRail ॥३५६॥ For Private And Personal Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri www.kobatirth.org y amande अधिकाराः श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥३५७॥ Aradhana Kendra Acharya Shri Ka | सच्चा ॥४१॥ पागयजणवयणेहिं मनसि मं अनयमप्प ता मुदं । सनयस्स इमंति भणित्तु खिवइ सकराउ तं रे ॥४२॥ राजाकिं मुयसि इमं? तुह किंतु होइ इय बीयवयऽइयारोवि । संसिज्जइ य पयाओ नएण भंडारवडीवि ॥ ४३ ।। यतः-अर्थात्रिवर्गनिष्पत्तिायोपार्जितवर्द्धनात् । अधर्मानर्थशोकानां, विपरीतात् समुद्भवः॥४४॥ तो सो अणक्खभरिओ उट्ठिय सहिं गओ हओ | तइआ। केणय पुचविराहियनरेण छुरियाइ लहिय छलं॥४५॥ अट्टवसट्टो मरिउं तइए नरयमि नारओ जाओ। तो भमिभूरिभवे कयाइ पाविहिइ मुक्खपि ॥४६॥ अह ठवियावरसचिवो निवो करावेइ पवरजिणभवणे । तेसु अ अन्भुयभुयं पूअं च महाविभूईए ॥४७॥ वंदइ तिदंडसुद्धं देवे पणदंडएहिं मिउदंडो । नियविसयंमि अमारिं तह रहजत्ता पवत्तेइ ॥४८॥ कयपवयणबहुमाणाण बोहिलाभं जिणाण वडूंतो। साहम्मियवच्छल्हाई धम्मकम्माई कुणमाणो॥४९।। सुइरं पालिय रजं पजंते गिहिऊण पनजं । पत्तो सुहम्मकप्पे तइयभवे सिवसुहं लहिही ॥५०॥ एवं त्रिदंडविरतं शिवदंडकल्पं, यः श्रीजिनं नमति दंडकपंचकेन । शीघ्रं विलंध्य भवदंडमसाबदंडं, स्थानं प्रयाति गुणसागरभूमिभृद्वत् ॥५१ ।। इति गुणसागरनृपतिकथा ।। इत्यभिहितं पणदंडेत्येकादशं द्वारं, सांप्रतं 'बार अहिगार'त्ति द्वादशं द्वारं गाथोत्तरार्द्धनाह दो इग दो दो पंच य अहिगारा बारस कमेण ॥३०॥ __पूर्वार्दोक्त इत्थशब्द इहापि संबध्यते, ततश्च इत्यत्ति एषु दंडकेष्वधिकाराः-स्तोतव्यविशेषविषयाः प्रस्तावविशेषा अधि-12 क्रियते-समाश्रीयंते वंदनां कर्तुकामैरिति व्युत्पत्तेः, ते च द्वादश क्रमेण भवंति, तत्र प्रणिपातदंडके द्वावधिकारी, एकोऽर्हच्चैत्यस्तवदंडके, द्वौ नामजिनस्तवदंडके, द्वौ श्रुतस्तवदंडके पंच सिद्धस्तवदंडके च, एतानेवाथ पदोल्लिंगनया दर्शयति ॥३५७॥ For Private And Personal Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrill in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaille sur Gyanmandie श्रीदे. चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥३५८|| नमु१ जे अइ२ अरिहं३ लोग४सबरपुक्खपतमसिद्ध८ जो देवो | अधिकाराः उर्जित १० चत्ता ११ वेयावच्चग १२ अहिगारपढमपया ॥ ३१ ॥ इह सर्वत्र पदैकदेशे पदसमुदाय उपचरितव्यः,ततश्च नमोत्थुणं इति भावार्हद्वंदनाख्यस्य प्रथमाधिकारस्य प्रथमं पदं,एवमन्यत्रापि यथायथं प्रयोज्यं, जे अ अईया सिद्धेति द्वितीयस्य २ अरिहंतचेइयाणमिति तृतीयस्य३ लोगस्स उज्जोअगरे इति चतु-IAN र्थस्य४ सबलोए अरिहंतत्ति पंचमस्य५ पुक्खरवरदीवेति षष्ठस्य६ तमतिमिरपडलेति सप्तमस्य सिद्धाणं बुद्धाणमित्यष्टमस्य८ जो देवाण वीति नवमस्य९उजिंतसेलसिहरे इति दशमस्य१०चत्तारि अट्ठदसेत्येकादशस्य११वेयावच्चगराणमिति द्वादशस्य१२,एतानि किमित्याह-अधिकाराणां-प्रागुक्तशब्दार्थानां प्रथमपदानि,उल्लिंगनपदानीत्यर्थः३१॥ अत्र संप्रदायः-इह आसी रासीकयमणिरयणो तामलित्तिनयरीए । इन्भो जिणदत्तभिहो भद्दा से पणइणी भद्दा ॥१॥ बहुओवाइयलद्धो पुत्तो एएसि बंभदत्तुत्ति । अहिगयकलाकलावो कमेण तरुणत्तमणुपत्तो ॥२॥ अह दटु हीयमाणं नियविहवभरं दिणे दिणे इब्भो । पागलमच्छुब्ध इमो सुविसाओ चिंतए चित्ते ॥३॥ किं मह पुव्वभवुभवदुक्कयकम्मेण अहव पुत्तस्स । एयं धणं पणस्सइ पड्डुपवणेणं व घिणपडलं ॥४॥ सत्थमगुणियंपिव कह अणिसं मह गलइ रायसंमाणो? । मुणिमिव चरणविहूर्ण कह नाढायंति सयणावि ॥५|| किह परियणोऽवि एसो पमेहिओविव घयंमि मइ विमुहो । धणभंसमिसेण विही किह किह मं नणु विडंबेही ॥६॥ इय चिंताउलियमणं जणयं दटुं पयंपए बंभो। किं ताया! दीसह मे घणकसिणमुहा निरुच्छाहा ? ॥७॥ इन्भोवि गग्गरगिरं वागरए वच्छ ! इण्हि विहवभरो। निवसकाराइजुओ इकपइच्चिय महं नट्ठो ॥ ८॥ वाहप्पवाहधोइयवयणो बंभो भणेइ किं ताया। मह पुवकुकम्मेणं उवडिओ ॥३५८॥ mathilmDIRHIlim m TRAINERPAAMITRATIMADIRAL For Private And Personal Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Man Aradhana Kendra | एस धणनासो ? || ९ || इन्भो तं पइ जंपइ संकसु मा वच्छ ! तुममिममजुत्तं । उदयक्खयाइभावा कस्सवि जायंति कयावि ॥ १० ॥ यदागमः- “उदयखयखओवसमोवसमाई जं च कम्मणो भणिया । दव्वं खित्तं कालं भावं च भवं च संपप्प ॥ ११ ॥ निच्चावट्ठियभावा तणुभवभविणो भवंति न भवंमि । ता असुहपञ्चओ धणक्खउत्ति इय जुजई बुत्तुं ॥ १२ ॥ निययववसायअफलत्तणेण इय निच्छएमि ताय ! इमो । मह पुन्वदुकयहेऊ दोसो इय आह पुण बंभो ||१३|| इब्भोऽवि आह हे वच्छ ! सच्छं नहु निच्छियं भवे जमिह। भावियजिणवयणाणं तं कत्थवि वोतु नो जुत्तं ||१४|| जइ पुण हिययचहुट्टा तुह नो हट्टेइ वच्छ ! संका तो । ता एहि कंचणपुरं केवलिणं जेण पुच्छामो ||१५|| आमंति सुएणुत्ते ते जणयसुया तओ तहिं गंतुं । तं बुचतं सयलं नमिउं पुच्छंति वरनाणिं ॥ १६ ॥ भणइ मुणी भो जिणदत्त ! आसि इह कोसलाइ नयरीए । सिरिहरिसनिवस्स सुओ सुविस्सुओ सिद्धदेवृत्ति ॥ १७॥ तस्य बालवयंसो धम्मजसो नाम सुजससिट्ठिसुओ । ते कइयावि वसंते पत्ता कीलेउखाणे ||१८|| अइदाणविलासपरं तत्थ जणं द भणइ निवतणुओ । मित्त ! कह धणियतणयन्त्र इह जणा दिंति विभवंति ॥ १९ ॥ पडिभणइ सिट्ठिपुत्तो | कुमार ! सारमिणमेव कमलाए। दाणं भोगा य तहा अन्नह नासुच्चिय हविजा ||२०|| किंच- पायं अदिन्नपुत्रं दाणं सुरतिरियनारयभवेसु । मणुयतेऽवि न दिजा जइ तत्तो तंपि नणु विहलं ॥ २१ ॥ अन्नयविहवोत्रि अल (कुलु) ग्गओऽवि समलं कि ओवि रुवीवि । पुरिसो न सोहइ च्चिय दाणेण विणा गयंदुन्न ||२२|| किंतु सिमुत्ते सोहइ न जुव्वणे दुगमिणं सुपुरिसस्स । जणणीइ दुद्धपाणं पिउलच्छीए य परिभोगो ।। २३ ।। अह साहइ निवपुत्तो मित्त ! तए जुत्तमेयमुल्लवियं । देसंतरे अहं खलु गमिहं विहवे समजेउं ||२४|| इयरोऽवि आह एवं अहंपि काउं भणइ तो कुमरो भो मित्त ! सत्तमंदिर वीसुं देसेसु गंतव्यं ||२५|| बीए महुमासे पुण श्रीदें ० चैत्य०श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥३५९॥ www.kobatirth.org ZZ. Acharya Shri Kailu Gyanmandir For Private And Personal ब्रह्मदत्तकथा | ॥३५९॥ Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ II Shri a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka s uri Gyanmandie ब्रह्मदत्त कथा श्रीदे चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥३६०॥ इह एंतव्वंति तेणवि पबन्ने । कुमरो परियणमवगणिय निग्गओ तयणु नयरीओ॥२६॥ वच्चंतो पुवदिसाहुत्तं पत्तो कुसग्गनयरंमि । तस्स बहिं उजाणे दडे सिरिसंतिजिणभवणं ॥ २७ ॥ तम्मज्झे विहिपुव्वं पविसिय संमऽभिवंदए देवे । सिवनयरवारअहिगारचिंतणे बाढमुवउत्तो ॥२८॥ इत्थंतरंमि उवलक्खिऊण एगेण मागहसुरण । गंतुं कुमरो सिट्ठो नरवइणो विजयदेवस्स ॥ २९ ॥ | तो तेण हरिसिएणं अइमहया गउरवेण वाहरिओ। भणिओ सुपुरिस ! मह जोइणा पुरा आसि इह कहियं ॥ ३०॥ पुत्तरहियस्स तुन्भं कंचणमालासुयाइरजस्स । होही सामी सिरिहरिसनिवसुओ सिद्धदेवुत्ति ॥ ३१ ॥ ता णे धूयं एवं परिणेउं निव्वुए कुणसु अम्हे । दक्खिन्नसारयाए कुमरोऽवि तहा कुणइ सव्वं ॥३२॥ अह नियअणेअकारिं करेणुदत्तं निवं विणिग्गहिउँ । महया संरंभेणं चलियं सिरिदेवविजयनिवं ॥३३।। कहवि निसेहिय हियकरणपउणचउरंगपवरबलकलिओ। कुमरो नियदेसंते पत्तो अक्खलियपयाणेहिं ॥३४॥ इयरोऽवि ठिओ समुहो कयावि किं खत्तिया रणे विमुहा?। सो तयणु निवसुएणं दएण भणाविओ एवं ॥३५।। जइ किंपि चिंतिउं विजयदेवरना उवेक्खिओ तंसि । तो किं तुह जुत्तमिणं असमिक्खियकंमनिम्मवणं ?।।३५।। अजवि किंपि नहु गयं पडिबुज्झसु सरसु अप्पणो गेहं । सरहं सरहसमणुसरिय मरसि किं मयगुलव्व तुमं? ॥३७॥ इय सोउं यवयणं करेणुदत्तो समुच्छलियकोवो। तिवलियतरंगभंगुरवयणो इय भणिउमारद्धो ॥३८।। अहह भमंतो भिक्ख समागओ देसिओ इमो कोई । दासीधूयादाणेण तोसिओ पोसिओ य मिसं ॥३९॥ उम्मायग इव संपइ पिच्छह अह किहणु जंपए पावो?। अहवा निम्मेराणं हवंति एवंविहुल्लावा ।। ४० ॥ता रे याहम दुट्ठ धिट्ठ ओसरसु मज्झ दिट्ठिपहा । साहेहि तस्स वइदेसियस्स गंतुं इमं वयणं ।।४१॥ एसोऽहमागओच्चिय मडक्कियं मा गहेवि नस्सिहिसि । कप्पडियाणं वइदेसियाण पायं सुलहमेयं ॥४२॥ अह यमुहा कुमरो सोउ ॥३६०॥ For Private And Personal Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Meb श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥३६२॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailuri Gyanmandir इमं समरस असयलबलो । वर्जतविजयढक्को पत्तो लहु तस्स पासंमि ॥ ४३ ॥ तो सो अजुज्झ सज्जो रणसअं पिक्खिऊण निवपुत्तं । खुद्धो विमुतु सव्वं झत्ति पलाणो चडिय तुरयं ॥ ४४ ॥ अह गहिउं रिउलच्छि हत्थे पत्तो कुसग्गनयरंमि । सुट्ठो विजयनरिंदो जुवरायपयंमि तं ठवइ || ४५|| कइयावि महिंदजरेण परिगयं अप्पयं मुणिय राया । तं ठाविय नियरज्जे एवं अणुसासणं कुणइ || ४६ ॥ वच्छ ! तुमं रज्जमिमं पालिञ्जसु तह कहंपि सयकालं । जह मह न देह दोसं सहायकुडिलो खलो लोओ ||४७॥ अन्नायसहावेणं देसंतरिओ निवो कओ रन्ना । इय जंपिरं जणमिमं इहरा को वारिउं सक्को १ ॥ ४८ ॥ परिभाविजसु सययं रजं च कुलं च नायमग्गं च । धम्मं च पुवपुरिसकमं च किं सुबहुभणिएण ? ||४९ ॥ इय तं सिक्खविऊणं परलोयपहं गओ विजयदेवो । सोगाउलेण तेणं विहिओ से देहसकारो || ५०॥ कमसो अ अप्पसोगो धम्महिगारे जणं कुणइ अकरं । वंदेह जिणे पालइ रजं नीईइ सिद्धनिवो ॥ ५१ ॥ इत्तो सो धम्मजसो पत्तो वीय भयनयरमह तत्थ । जं जं करेइ किरियं सा सा से बहुफला होइ ॥ ५२॥ यतः - अइगरुयपुन्नपन्भारपरिगया | जे हवं ति इह पुरिसा । करगोयरं उर्विति तेसिं जह तह समिद्धि ओ ॥ ५३ ॥ तविवरीया पुण गुरुसमिद्धिजुत्तावि जंति दोगच्चं । ववसायं च कुणंता लहंति मरणं अणस्थं च ॥ ५४ ॥ अह रायसुओ नियरजसुत्थयं काउ सरिय चिरमेरं । सविडीए पत्तो महुमासे कोसलपुरीए || ५५ || एवं चिय सिट्ठिसुओ तो ते दिंता मणिच्छियं दाणं । लोएण पुजमाणा नियनियभवणं अणुपविट्ठा || ५६ || तुट्टा अम्मापियरो वद्धावणयं पयट्टियं नयरे । सवत्थवि विथरिओ अक्खलिओ तेसि जसपसरो ॥ ५७ ॥ अह अवसरंमि एत्थ संगया सिद्धदेवधम्मजसा । अकहिंसु हरिसियमणा पुव्वुत्तं निययवृत्तंतं ॥ ५८ ॥ तो भगइ निवइतणओ मित्त ! मए निच्छियं इमं हियए । पुत्रं निमित्तमिकं मणवंछियअत्थसिद्धीए ॥ ५९ ॥ ता तं चैव य पुत्रं जहा जहा जाइ परमवित्थारं । तह तह For Private And Personal ब्रह्मदत्तकथा ॥३६१।। Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka s uri Gyanmandie ब्रह्मदत्त श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥३६२॥ ilam BHIHITam अम्हं संपइ जुज्जइ खलु उज्जमो काउं ॥६०॥ अह तत्थ पहासगुरू समोसढा इय निसम्म ते हिट्ठा । तेसिं नमणाय पत्ता एवं निसुणंति धम्मकहं ।।६१॥ "जंबुद्धीण अविसयं अगोयरं जं च पुरिसयारस्स । जं इह अइदुस्सझं जं च ठियं दरदेसंमि॥६२॥ तंपि हु पुन्नोदयओ संपञ्जइ पुव्वविहियसुकयाणं । नहि हेउमंतरेणं कयावि किर जायए कजं ॥ ६३ ॥ तं पुण पुन्नं अहिगारसुद्धचिइवंदणाविहाणेण । जिणनाहपूयणेणं दाणाईधम्मकरणेणं ॥६४॥ सुमुणिपयसेवणाए निच्चं चिय धम्मसत्थसवणेण । इंदियविणिग्गहेणं निम्मलसंमत्तधरणेणं ॥६५॥ आसववेरमणेणं साहम्मियवग्गवच्छलत्तेण । कल्लाणमित्तजोगेण गच्छई उवचयं परमं ॥६६॥" इय सुणिय पमुइयमणा निवसिद्दिसुया गहेवि गिहिधम्मा । अहिगारसुद्धचिंइवंदणाइनियमे बहुपयारे ॥ ६७॥ पत्ता नियभवणेसुं कमेण अन्नत्थ विहरिया गुरुणो । अन्नदिणे सिरिहरिसो राया रज्जे ठविय पुत्तं ॥६८॥ विहिणा काउ अणसणं जाओ अमरो मुहम्मकप्पंमि । अह सिद्धदेवराया रज्जदुगं पालमाणोऽवि॥६९।। चिइवंदणाइ किचं णिच्चं आयरइ न कुणइ पमायं । धम्ममि सुथिरचित्तो अखोहणिजो सुरेहिंपि।।७०|| धम्मजसो पुण पइदिणवडूंतधणोवि लोभदोसेण । धम्ममि पमायतो दढं नरिंदेण इय वुत्तो ॥७१॥ 'दुल्लहो माणुसो जमो, धम्मो सम्बनुदेसिओ । साहुसाहमियाणं च, सामग्गी पुण दुल्लहा ||७२।। चलं जीयं धणं धनं, बंधुमित्तसमागमो। खणेण दुकए वाही, ता पमाओ न जुत्तओ ॥७३॥ न तं चोरा विलुपंति, न त अग्गी विणासए । न तं जूएवि हारिजा, जं धम्ममि पमत्तओ ॥ ७४ ॥ ता सोम ! तं वियाणतो, मग्गं सवन्नुदेसियं । पमायं जं न मिल्हेसि,तं सोइसि भवन्नवे ॥७५॥' सो भणइ देव ! अच्छा लच्छिविच्छडुमंडिया तुम्भे । पडिपुनपुनपसरा न दुत्थयं जाणह परस्स ॥७६॥ राया जंपइ नियभुयसमजिए पुवपुरिसपत्ते य । संतेवि पउरविभवे का तुह मणदुत्थया? मित्त ! ॥७७॥ किंच Manamamyammatomyami amma N For Private And Personal Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shil bin Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Ka s uri Gyanmandir I/ | ब्रह्मदत्त श्रीदें चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ | ॥३६३॥ AASAINSTAmiriHTINATIHIRAI निस्सो धणं धणी रजं, राया चकित्तमिच्छइ । एवं अच्चिनविचिच्छा, खयं वच्चंति चालिसा ।।७८|ता संतोससमंतेण लोहदोसं लहुं विजिग्गहिउं। मित्त! चइत्तु पमायं समुजओहोसु धम्ममि ॥७१।। पूयसु जिणपडिमाओ वंदसु देवेऽहिगारपरिसुद्धे । रमोदक्खिनेणं एवंति पवजए सोवि ।।८०॥ विहिसुद्धधम्मरसिओ संनासं काउ सिद्धदेवनियो । अच्चुयकप्पंमि गओ महाविदेहम्मि सिज्झिहिइ ॥८१॥ जणलजाए रायाणुवित्तिओ भावणविहीइ विणा । चिइवंदणाइ धम्मं जहा तहा काउ धम्मजसो ॥ ८२ ॥ मरिऊणं उववन्नो सोहम्मे आमिओगिो तियसो। पलियाऊ पउमुत्तरविमाणवासिस्स देवस्स ।।८।। अणिसं आणाकारी अणुतप्पंतो पए पए मुबहुं। हा हा किमवरजंमे मए कयं असुहकम्मंति? ॥८४|| एमाइ झूरमाणो गुत्तीखित्तव्य पूरिय नियाउं। तो चविडं सो जाओ जिणदत्त ! तुहेस अंगरुहो ।।८।। भो बंभदत्त ! तुमए नरवरमित्ताणुवित्तिवसगेण । भावेण विणा विहिविरहिओ पुरा जंकओ धम्मो ॥८६॥ सो निरणुबंधयाए मुहलेसं दाउ किंपि अमरेसु । इहिं पुण तुम्भ दोगच्चदाणेण परिणओ एवं ।। ८७ ॥ यतः"विहियपि भावरहियं कहंपि ईसि मुहं विहिय पुन्न । जणइ दुरंतमवस्सं भववित्थारं जओ भणियं ।। ८८ ॥ कायकिरियाइजोगा खविया मंडुक्कचुन्नतुल्लत्ति । ते चेव भावणाए विदट्टतच्छारतुल्लति ॥ ८९ ॥ किंच-विहिसुद्धमणुद्वाणं मुभावणाभावियं भवीण खणा। निहणेइ कम्मजालं सिद्धस्स व सूरदेवस्स ॥९०॥" को एसो ? इय पुट्ठो जिणदत्तसुएण जंपए नाणी । आसि कुणालानयरीइ सूरदेवुत्ति पुरसिट्ठी ॥९१।। वसुमित्तमूरिपासे बाहुसुबाहुत्ति भायरो दिक्खं । विगइअभिग्गहजुत्तं गिण्हंते नियइ स कयावि ॥९२॥ अह ते मुणिणो गुरुणा पसंसिया सयलसंघपञ्चक्खं । वच्छा ! तुम्भे धन्ना जेहिं कओ विगइनियमोऽयं ।।९३।। यतः-"विगई विगईभीओ विगइगयं जो उ भुंजए साहू । विगई विगयसहावा विगई विगयं बला नेइ ॥९४॥ वियई पररिणयधम्मो मोहो जमु. NRITERATIOHINAR HAIR ANNAINARURIA For Private And Personal Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Man Aradhana Kendra श्रीदेο चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥३६४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailuri Gyanmandir जिए उदिने । सुवि चित्तजयपरो कहं अकओ न वहिहिह ? ॥९५॥ किंच - विभूसा इत्थिसंसग्गी, पणीयं रसभोयणं । नरसतगवेसिस्स, विसं तालउडं जहा ।। ९६ ।। ता सवहावि धभाण चेत्र रसचागवासणा होइ । जित्ते इमंमि रसणिदियंपि अवलं कियं चैव ॥ ९७ ॥ अबले य तंमि पायं सवेसिं इंदंदियाण अबलतं । दट्ठवं तप्पञ्चइयमेव जं तेसि सामत्थं ।। ९८ ।। किंचअकखाण रसणी कंमाण मोहणी तह वयाण बंभवयं । गुत्तीण य मणगुती चउरोऽवि दुहेण जिप्पंति ॥ ९९||" ता निश्चला हविजह पत्थुयसद्धम्मकम्मविसयंमि । तेऽवि तहत्ति पडिच्छंति सीसवीसंतकरकमला || १०० || ता सूरदेवसिद्धी गिरिधम्म गहिय नमिय ते मुणिणो । पत्तो नियंमि गेहे अन्नत्थ य विहरिया गुरुणो || १०१ ॥ किच्चिरकालं बाहिं विहरिय पत्ता तहिं पुणो गुरुणो । तत्थेगेणं मुणिणा षडिवन्नं अणसणं विहिणा ॥ १०२ ॥ तं नंतुं गच्छन्तं राईसरपमुहबहुजणं ददतुं । जिणपवयणपडिकूलो पुरोहिओ भणइ समरनिवं ॥१०३॥ देव! महंतमजुत्तं पारद्धं इत्थ सेयभिक्खुहिं । राजा-नणु पयइउवसमीहिं इमेहिं किं कीरह अजुत्तं ? ॥ १०४ ॥ पुरो- एगो मुणी अकाले सन्नासेणं करेइ इह कालं । राजा-तं निस्सेयसन्भुदयकारणं गिजए सत्थे ॥ १०५॥ तथाहि - द्वावेव पुरुषौ लोके, चंद्रमण्डलभेदिनौ । परिव्राड्योगयुक्तश्च, सूरवाभिमुखो हतः ॥ १०६ ॥ ता इह किंपि अजुत्तं न अत्थि पुरो-नणु द किंपि उवघायं । मह वयणं मन्निस्सह इय भणिय ठिओ स मोणेण ॥ १०७॥ अह निवपुत्तो सुत्तो डक्को रयणीइ कसिण सप्पेण । मुको नरिंदविंदारएहिं नणु कालडक्कुत्ति ।। १०८ ।। गुरुसोयभारविहुरो राया वृत्तो पुरोहिएणेवं । तं देव ! अजुत्तमिणं जं वो कहियं मए आसि ||१०९॥ जइ पुण अजषि एए निद्वाडसि समणगे सदेसाओ । ता तुह सुयस्स रक्खा काविहु कइयावि किर होइ ॥ ११०॥ तं सोउं मूढेणं नरवइणा तलबरो समाइट्ठो । लहु गंतु इमे समणे नीहारसु मज्झ देसाओ ॥ १११ ॥ जमपुरिससरिस - For Private And Personal ब्रह्मदत्तकथा ॥३६४॥ Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrike in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kai ri Gyanmandie बन्धुदत्त श्रीदे. चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥३६५॥ TA असरिसअमरिसवसमिसिमिसंतजोहजुओ । समणे निव्वासेउं उवडिओ तलवरो जाव ॥११२॥ विहिविहियभावसम्भावसारदुक्करतवाणुभावेण । ताव समुप्पन्नअगण्णलद्धिबहुसिद्धिकलिएण ॥११३।। चुन्निज चक्कवट्टि उप्पन्ने सिंगनादकजंमि । अइ तं न करेइ मुणी भवे तयाऽणंतसंसारी॥११४॥ इय सुयमणुसरमाणेण माणअवमाणतुल्लमणसाऽवि । कुमयगहराहुणा बाहुसाहुणा थंभिआ ते उ | ॥११५॥ तं सोउं भयभीओ संतेउरपरियणो निवो तुरियं । गंतूण तत्थ गुरुणो मुणिणो खामेइ पुणरुत्तं ॥११६।। भणिओ नियो गुरुहिं तं धनो जस्स तुज्झ देसंमि । मुणिणो निप्पच्चूहं कुणंति परलोयहियमेवं ॥११७॥ मा संकेजसु नरवर ! जइजणकिच्चेण जायए असिवं । पुचकयअहमेवं अवरज्झइ सयललोयस्स ।।११८॥ एवंति भणिय राया राहुमुणिं खामए विसेसेण । उत्तमिओ तओ तेण तलवरो सपरिवारोऽवि ॥११९।। तं दठ्ठ मुणिपभावं तप्पयसंफुसियरेणुनियरेण । तच्छायाऽविय कुमरो रण्णा सवंग- | मामुट्ठो ॥१२०॥ पीऊसपोससित्तुव निवसुओ विसवियारपरिमुको । सुत्थो खणेण जाओ राया पुण सावएसु वरो॥१२१।। इत्थंतरंमि अणसणपवनसाहू महिडियजणेण । कीरंतमहामहिमो मरिउं पत्तो तइयकप्पे ॥१२२ ॥ विहिया परमा जिणपवयणउबई रायपमुहलोएण । तो सूरदेवसिट्ठी नमिय गुरुं विनवइ एवं ।। १२३ ।। मुणिनाह ! किहणु बाहृसाहुणो बहुविहाउ लद्धीओ। एवं विहाउ सुतवे समेऽवि न उणो सुबाहुस्स? ॥१२४॥ आह गुरू एए खलु लद्धिविसेसा हवंति सुतवेण । विहिभावणापरेणं न कयावि जहातहकएण ।। १२५ ।। विहिभावविगलयाए कट्ठाणुहाणकारिणोऽवि भिसं । सिढि ! इमा लद्धीओ सुबाहुमुणिणो कह हवंतु ? | ॥१२६।। इय मुणिय सूरदेवो संवेगगओ गहेइ पव्वजं । वसुमित्तगुरुसमीचे विहिभावपरो य कुणइ तवं ॥१२७।। कमसो अहिन्जियसुओ विहरंतो संपयं इहं पत्तो । उप्पन्नविमलनाणो धम्म साहेइ सो उ अहं॥१२८॥ इममायनिय जणयं पुच्छेउं केवलिस्स पासंमि । ॥३६५॥ For Private And Personal Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H Shik a in Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri K suri Gyanmandie श्रीदे. वन्दनीय चतुष्कं चैत्यश्री- धर्म संघाचारविधौ ॥३६६॥ | गिण्हेइ बंभदत्तो दिक्खं सुविमुद्धपरिणामो ॥ १२९ ॥ भावणपहाणविहिपुव्वधम्मअहिगारसारतवनिरओ। केवलकलाइ कलिओ सिवं गओ बंभदत्तमुणी ॥१३०।। इत्येवमाकर्ण्य सकर्णलोकाश्चित्रं चरित्रं जिनदत्तसूनोः। सदाधिकारस्मरणादिशुद्धे. यत्नं कुरुध्वं जिनवंदनेऽस्मिन् ॥ १३१ ॥ इति ब्रह्मदत्तकथा, इत्युक्तं 'चार अहिगार'त्ति द्वादशं द्वारं, संप्रति 'चउवंदणिज'त्ति त्रयोदशं द्वारं समधिकपूर्वार्द्धपदेनाह चउ वंदणिज्ज जिणमुणिसुयसिद्धा इह चत्वारो वंदनीयाः सुमतिकन्यकयेव मंगलोत्तमशरणविधायित्वेन स्तुतिप्रणामाद्यर्हाः, के ते इत्याह-जिनाश्चतुर्विधा वक्ष्यमाणस्वरूपाः१. मुनयश्च-साधवो गच्छगतादिभेदभिन्नाः, आचार्योपाध्याययोस्तु साधुत्वाव्यभिचारात् साधुग्रहणात् ग्रहः, उक्तं च-"साहुत्तसुट्टिया जं आयरियाई तओ य ते साह । साहुगहणेण गहिय"त्ति २, श्रुतं च-अंगानंगप्रविष्टं ३ सिद्धाश्च-क्षीणाशेषकर्माणः४, इहेति संपूर्णचैत्यवंदनायां जिनशासने वा, यद्वा त्रैलोक्येऽपीति,सुमतिकन्याकथा चैवं-अत्थिह पुन्वविदेहे सीयानइदाहिणेण वरविजए । रमणिज्जे वरनयरी सुभगा सुभगामिमणलोया ॥१॥ सरभसनमंतसोलसनिवसहसकिरीडचिट्ठपयवीढा । पालंति तमपराइयअनंतवीरियत्ति बलविण्हू ॥२॥पावकरणाउ विस्या निरया निचंपि धम्मकरणम्मि । विरयत्ति अग्गमहिसी आसी अवराइयबलस्स ॥३॥ तीसे धूया सुमई बालत्ताओवि धम्मकरणमई । दुच्चरतवचरणरई चिरण्णलावन्नविजियसई ॥४॥ अहिगयजियाइतत्ता जिणमुणिसुयसिद्धवंदणपसत्ता । जिणधम्मरागरत्ता निरुवमरूवेण संजुत्ता ।। ५॥ पालियवरजीवदया सिसुभावेविहु गहियगिहिसुवया। आवस्सयाइनिरया भावइ सुहभावणाओसया॥६।। उववासपारणे गंतु चेइए सा कयावि जिणनाहं । INA MMITTINAMultimemumthiRELP DIATRININDIAHINITIN MIPARIRAMP all mat uatinARITAL HILaunee ॥३६६॥ For Private And Personal Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shriin Aradhana Kendra www.kobatirth.org पूइय पडिपुन्नविहिए वंदिउं काउ पणिहाणं ॥ ७ ॥ आगम्म नियावासंमि पारणट्ठा इमा समुवविट्ठा। चिंतह पसन्नचित्ता एवं दारं |पलोयंती ॥ ८ ॥ जइ इत्थ मज्झ गुरुपुन्नपेरिओ कोवि एह सुमहप्पा । अन्नं धम्मंमन्ना ता एयं दाउ पारेमि ॥। ९ ॥ इत्तो य गयममत्तो दुच्चरतव चरणकरण आसत्तो । मलमइलवत्थगत्तो सयवत्त वित्तचारितो ॥ १० ॥ इरिआए आउतो चंदुजलसीलपालणुज्जुत्तो । तस्स दुबारे पत्तो साहू नामेण वरदत्तो ॥ ११ ॥ तं दद् अहो मह पुनपगरिसो एरिसो मुणी जेण । इह इण्हि आगओ रयणवुद्धिसरिसो दरिद्दगिहे || १२ || इय मन्नंती उद्विय ससंभ्रमं गहिय थालमणुगिन्ह । भयवं । ममंति भणिरी तं पडिला भइ पवर|सद्धा || १३|| तो चित्त वित्तपत्ताण जोगओ तत्थ पंच दिव्वाणि । पाउन्भूयाई इओ गओ सठाणं तु स महप्पा ||१४|| दट्ठूण रयणवुद्धिं समागया रामकेसवा तत्थ । चिंतंति विम्हियमणा धन्नसपुन्ना इमा कन्ना ।। १५ ।। जम्माउवि अकलंका दुरुज्झियसयल पावमलपंका। संमत्ते निस्संका मुहनिजियपुंनिममयंका || १६ || देमो सयंवरं ता इमी इय चिंतिउं समाहूया । विजयद्धनिवासिनिवा समागया झति तेऽवि तहिं ॥ १७॥ थंभसयसंनिविट्ठो लीलट्ठियसालभंजियवरिट्ठो । अमरमणाणवि रइओ सयंवरामंडवो रइओ ॥१८॥ तो कणयकलसण्ढाया वरहरिचंदणविलित्तसव्वंगा । वरवत्थाभरणधरा सिरउवरिं धरियसियछत्ता ।। १९ ।। वीइज्जती सियचामराहिं करकलियविमलवरमाला । पडिहारदंसिय पहा पत्ता सुमईवि तम्मज्झे ॥ २० ॥ इतश्च - वेरुलियगरुयवन्नं चामीयरचारुवेश्यालभं । धुव्वंतधयपडागं उज्जोविंतं दसदिसागं ॥ २१ ॥ नयणसयपिच्छणिज्जं आगच्छंतं नहंमि रमणिज्जं । पिच्छंति वरविमाणं ते रायाणो अइपमाणं ।। २२ ।। तंमज्झे वरमणिरयणजडियसीहासणंमि उवविङ्कं । एगं देवं नियकंतिपंतिउज्जोइयदियंतं ||२३|| अह सा सुमई ते रामकेसवा भूमिवासवा ते उ । विम्हइयमणा उडकयवयणा जाव पिच्छंति ||२४|| किणि किणिर श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥३६७॥ For Private And Personal Acharya Shri Kailasturi Gyanmandir सुमतिक न्याकथा ।।३६७।। Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघाचारविधौं ॥३६८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashgarsuri Gyanmandir किंकिणीजालमालमागय विमाणमह तत्थ । तो देवी ओयरिया किंनरगिज्जतविमलगुणा || २५ || ठाउ सयंवरमंडवमज्झे सीहा|सणे तओ देवी । उक्खिविय कमलदलकोमलं करं दाहिणं भणइ || २६ || हे धणसिरि मुद्धे बुज्झ बुज्झ मा मुज्झ मज्झ निसुणाहि । एगग्गमणा धणियं खणमेग हियंकरं वयणं ।। २७ ।। किंनु कहिस्सइ एसा उ भयवती इय निवावि ते जाया । सकलकलाविहु असकलकला तर्हि सावहाणमणा ||२८|| अह सा देवी जंपर पुक्खरदीवडुपुन्वभरहंमि । नंदणवणमत्थि पुरं बहुप्पियं नंदणवणं व ॥ २९ ॥ तत्थ पभृयसुरयणो अत्थि महिंदो निवो महिंदुव्व । तस्स पिया णंतमई न तम्मई सीलभरवहणे ॥३०॥ अंकगयसुरहिवरकुसुमदामदुगसुमणसूइया धूया । जाया तीइ मिरामा कणयसिरी धणसिरी नाम ||३१|| अन्नुनसिणेहाओ गयाउ ताओ कयावि कीलेउं । सिरिपव्ययवरसेलं फुरंत करुणं मुणिमणं व ||३२|| तत्थ सुहज्झाणठियं नियंति नंदणगिरंति अणगारं । माणससरं व सच्छासयं सया संवरसमेयं ||३३|| तंद तुट्ठहियया हियावहं तिहुयणस्सवि मुणिदं । चंदंति ताउ भत्तीइ इय धम्मं कहर साहूवि ||३४|| "दुलहं लहिय नरभवं भविया ! भवियत्तायानिओगेण । चिइवंदणाइधम्मं करेह जइ महह सिवसमं ||३५|| यतः -पूया जिनिंदेसु रई वएसु, जत्तो य सामाइयपोसहेसु । दाणं सुपत्ते सवणं सुतिस्थे, सुसाहुसेवा सिवलोयमग्गो || ३६ ||” तो ताओ पडिवज्जिय संमं संमत्तमूलगिहिधम्मं । नमिय मुणिं गंतु गिहं कुणंति इय धम्ममपमत्ता ||३७|| पूयंति जिणे सेवंति मुणिगणे तह पढंति सिर्द्धतं । पालंति वए सिद्धे नमंति चिंतंति तत्ताई ||३८|| कीलंतीउ कयाविहु असोगवणियाइ ताउ रागवसा | तिपुरा| हिववीरंगयखेयरपावेण अवहरिया ||३९|| अह सपियसामलाए भणिओ ता कहचि मुयइ स नहत्थो । वंसकुडंगीउवरिं भूयोऽवि वरुणनइतीरे ||४०|| पडिहारेणं पहयाउ ताउ दुन्निवि य अप्पणो तत्तो । मरणंतमावयं जाणिऊण चिंतंति इय चित्ते ॥ ४१ ॥ रे जीव ! For Private And Personal सुमति कन्याकथा ||३६८|| Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Mabes in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir सुमतिकन्याकथा श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म०संघा-I चारविधौ ॥३६९॥ ilitaPIRNIMALPATRIKARATHIMIMIMARUNIMALSINAHARTA | कयं तुमए जं पुचि तं उवागयं इहि । परितावेण न छुट्टसि सुहपरिणामेण सह सव्वं ॥४२॥ जइ पुवविहियदुक्यवसेण तुह आगयं | इमं दुक्खं । ता रे जिय! मा कुप्पसु परेसु वीरंगयांईसु ॥४३॥ तं पत्थियपि जत्तेण होइ नहु इह न जंकयं पुचि । तो दुहसुहाण नूणं निमित्तमित्तं परो होइ ।। ४४ ॥ जंन को पुव्वभवे धंमो रे जीव ! सुंदरो विउलो । तेण तुहं इह दुक्खं संजाय दारुणं दुसह | ॥४५॥ संविग्गभावियाओ इय ताओ अणसणं विहेऊण । जिणसिद्धसाहुधम्मे चउरो सरणं पवति ॥४६॥ नवकारसुमरणपरा कणगसिरी मरिउ तत्थ उत्रवन्ना। इंदस्स अग्गमहिसी नवमिया नाम सा य अहं ॥४७॥ वेसमणअग्गमहिसी धणसिरी नाम तं पुणुप्पन्ना। तो चविय तुम जाया बलदेवसुया सुमइ भद्दे ! ॥४८|| इय आसी णे तइया संकेओ जा इओ चवइ पढमा । इयरीहिं बोहियव्या सा भवसयदुलहजिणधम्मे ॥४९॥ ता तुह पडिबोहकए इहागया भइणि ! तुज्झ मा मुज्झ । इह विसयसुहलवेणं सरेसु पुवकयसुकयाइं ॥५०॥ तथाहि-जिणजमणमहिमाओ जा विहियाउ सुमेरुसिहरंमि । जं नंदीसरदीवे सासय इयराओ जताओ ।। ५१॥ तथा चागमः-दो सासयजत्ताओ तत्थेगा होई चित्तमासंमि । अट्ठाहियाउ महिमा बीया पुण अस्सिणे मासे ॥१२॥ तह चउमासियतियगे पज्जोसवणाइ तह य इय छक्कं । जिणजम्मदिक्खकेवलनिव्वाणाइसु असासइआ ।। ५३ ॥ जे वंदिया य दुञ्चरतवचरणा चारणाइवरसमणा। जं तम्मुहाउ निसुयं बीयभवे सिज्झिहिह तुझे ॥ ५४ ॥ जं हवियपूइयाओ जयंतमुणिमाइसिद्धपडिमाओ। जं भत्तीए नमियं दुवालसंगपि सिद्धतं ॥५५।। भद्दे ! घणसिरि बुज्झमु एवं सव्वंपि अहह मा मुज्झ । जंमंतरियाइ तए भो कह विस्सारियं सव्वं ॥५६॥ सा सद्धा तुह धम्मे ताई तुमे जंपियाई विविहाई । किं वीसरियाई तुमे जेणं मंदादरा धम्मे ॥५७॥ जइ निच्छसि पडिउं जो संसारमहासमुद्दमझमि । वरजाणवत्ततुल्लं ता पव्वज्ज पवज्जेहि ॥५८॥ इय भणिउं उप्पइया देवी आरु- a ilo ॥३६९।। allianRam For Private And Personal Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shi s uri Gyanmandie N श्रीदे. सुमति कन्याकथा चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ | ॥३७०॥ हिय नियविमाणमि । मुगनिमीलियच्छी पडिया धरणीइ ता सुमई ॥५९|| हा किमिणति ससंभमचंदणसित्ता पुणागयसचित्ता। तो एवं सा सुमई तं निवनिवहं भणइ सुमई ॥६०॥ भो! भो! उत्तमनरवरकुलणहयलविमलपुनिममयंका । निमुणेह नरवरिंदा ! विनाति मज्झ एगमणा ॥ ६१॥ जं जंपियं इमीए महाणुभावाइ सक्कदेवीए । तं जायं पच्चक्खं सव्वं मह जाइसरणेण ॥ ६२ ॥ | ता गिहिस्सं दिक्खं संपइ न रमइ मणं मह भवंमि । अणुजाणावेवि तुमे जमागया मह कए सव्वे ॥६३ । तेऽवि भणंति नरिंदा होउ अविग्धं तुहं सुयणु धम्मे। अम्हेहिं अणुनाया पावेसु मणिच्छियं ठाणं ।। ६४ ॥ तो तुट्ठा बलहरिणो सोउं तीए अणुत्तरं चरियं । दिक्खामहिम परमं कारंति असेसनिवसहिया ॥६५॥ सकस्स अग्गमहिसी उ तहय वेसमणअग्गमहिसीओ। पूर्य करिति तीसे न तारिसे को णु पूइज्जा ? ॥६६॥ कन्नासएहि सत्तहिं समन्निया सुब्वयजपासंमि। निक्खंता खायजसा गिण्हइ दुविहं च सा सिक्खं ॥६७॥ इगतीसं सिद्धगुणा झायंती जिणवरे य सुमरंती। पणविहसज्झायपरा बहुमाणा सा मुणिजणंमि॥६८॥ उल्लसियसिपज्झाणानलदहियअसेसकम्मसंताणा । पडिबोहिय भवियजणे सिद्धासुमई अणंतगुणा ।।६९॥ इति हि सुमतिकन्यावृत्तमाकर्ण्य धन्याः!, श्रुतजिनमुनिसिद्धान् विश्वविश्वप्रसिद्धान् । भवजलनिधिसेतून्मोक्षहेतून् समस्तान् , प्रतिदिनमसपलं वंदितुं धत्त यत्नम् ॥७॥इति सुमतिकन्याकथा।। इत्युक्तं चत्वारो वंदनीया इति त्रयोदशं द्वारं, संप्रति 'सरणिज्जति चतुर्दशं द्वारं गाथाद्वितीयपादाढ़ेंनाहइह सुरा य सरणिज्जत्ति । इहशब्दः पूर्वद्वारे संयोजितोऽपि डमरुकमणिन्यायेनात्रापि संबध्यते, ततश्च इहेति संपूर्णचैत्यवंदनायां क्रियमाणायां सुराश्च मुर्यश्चेति 'पुरुषः स्त्रियेत्येकशेषे सुरास्ते चात्र यक्षांबाप्रभृतयः सम्यग्दृष्टिदेवता ज्ञातव्याः,नत्वहतः,तेषां प्राग्वंद| नीयत्वेनोक्तत्वाद् अनुशासकत्वात् स्मारकत्वाच,एते च किमित्याह-सरणिजत्ति,मरणीयास्तद्गुणानुचिंतनोत्कीर्तनादिनोपबृंहणीयाः, M ANIPARAMHITAPAINTHIS ॥३७०॥ For Private And Personal Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ n Aradhana Kendra Shi Acharya Shri Ka www.kcbatirth.org y anmandie सुरस्मर श्रीदे चैत्यश्री- धर्म संघाचारविधौ | ॥३७१॥ स्तवनीया इत्यर्थः, श्लाघ्यश्च जिनप्रवचनस्थः स्वल्पगुणोऽपि, सम्यग्दृष्टिप्रशंसायाः कर्मक्षयकारणत्वात् , उक्तं च-"गुणपगरिसबहुमाणो कम्मक्खयकारणं जेणं"ति, नैवं चेत् तदोत्तरसंयमस्थानवतिभिः साधुभिर्जघन्यतरादिसंयमस्थानवर्तिनः साधवोऽप्यनुपबृंहणीयाः स्युः, तैश्च नियमादिषु दृढाः श्रावकाः, न चैतदागमे दृष्टमिष्टं वा यद् गुणिनां गुणा न प्रशस्याः, दर्शनमालिन्याद्यवाप्तेः, आह च-"नो खलु अपरिवडिए निच्छयओऽमइलिए व सम्मत्ते। होइ तओ परिणामो जत्तो अणुववृहणाईय॥१॥"त्ति, | देशविरतानां वा अविरतानां वा अविरतसम्यग्दृष्टयः श्राद्धाः सत्काराबर्दा न स्युः, तथा च सति "तम्हा सवपयत्तेणं, जो नमुकारधारओ। सावओ सोऽवि दट्ठव्वो,जहा परमबंधवो ॥१॥" इत्याद्यपार्थकं स्यात् , एवं च सकलागमव्यवहारलोपाद् , विमर्शनीयमिदं सूक्ष्मधियेति,यद्वा मारणीयाः-सरणादिषु प्रेरणाः ,तत्र पम्हुढे गाहा, अयमर्थः-वैयावृत्यादिकारका गीयंते, तत्र चानादरवतां भवतां तत् किं स्वकृत्यमपि विस्मृतं ?,न युक्तमत्र प्रमादयितुं, दुर्लभा हि पुनरियं सामग्री,दुःखदः प्रमादारिदुरंतो भवोदधिविनिपातः खनामैव सत्यापयतीत्यादिव्यंग्यार्थगर्भतद्विशेषणद्वारेण मारणादि क्रियते, अथवा सारणीयाः संघादिकृत्ये वैयावृत्त्यप्रभावनादावुभयलोकसुखावहे प्रेरणास्तित्करणशक्तियुक्तत्वात्तेषां,इदमुक्तं भवति-यदाऽमुकं संघे प्रभावनादि करिष्यथ तदाऽहं कायोत्सर्गादिकं पारयिष्यामीत्यादिना सुदर्शनप्रियामनोरमाया इत्र तत्र २ संघकृत्ये प्रवर्तयितव्याः, अत्र चायं निशीथचूर्युक्तो विधिः-पुव्वं अणुसिट्ठी किजइ, थुइत्ति भणियं होइ,अणुसिट्ठी थुइत्ति एगटेति भाष्यवचनात् ,साहु कयं ते एवं वुच्चइ,जहा चंपाए सुभद्दा नागरजणेण अणुसहा धन्ना सपुण्णा सत्ति, तओ उवालंभो दिजइ,साणुणओवएसपयाणं कीरतित्ति वुत्तं भवइ२ पच्छा सो उ उवग्गहो किज्जइ ३, भणियं च-दाणे दवावणे कारणे य करणे य कयमणुनाए । उवहियमणुवहिय वा जाणाहि उवग्गहं एय ॥३७१॥ For Private And Personal Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mapa Jain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघाचारविधौ ॥३७२ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashgarsuri Gyanmandir ॥१॥न्ति,सुदशनश्रेष्ठिप्रियामनोरमाकथा त्वियं-चंपायां पुरि दधिवाहनस्य नृपतेर्द्विधा दयितकीर्त्तेः । अभयाख्याऽभूदेवी देवीव सुरूपरूपधरा || १|| तत्रैव ऋषभदासः श्रेष्ठी श्रेष्ठैककर्म्मकरणचणः । अर्हदासी भार्या महिषीरक्षाकरः सुभगः ॥ २ ॥ सोऽन्येद्युः शिशिरत्तों दिनात्यये सैरिभीः समादाय । बनतो निवृत्त उत्सर्गसंस्थमैक्षिष्ट मुनिमेकम् ॥ ३॥ तमगणितहिमानीपात वेदनं क्षणमुपास्य सद्म ययौ। ध्यायंस्तमेव रात्रिं निनाय निद्रादरिद्रोऽसौ ||४|| गत्वा प्रगे मुनिं तं यावदयं नमति पर्युपास्ते च । स नमो अरिहंताणं इत्युक्त्वा खं ययौ तावत् ||५|| नूनं खगामिनीयं विद्येति पपाठ सततमशठमनाः । तमपीपठदथ लष्टः श्रेष्ठी सकलं नमस्कारम् ||४|| वर्षासमयेऽन्येद्युर्महिषीः परतीरगा निवारयितुं । सरिदंतरदाज्झंपां गुणयन्नुच्चैर्नमस्कारम् ||७|| चिक्कणचिक्खल्लचछुट्टकीलविद्धोदरः क्षणात् प्राप । मृत्युं पंचनमस्कारस्तुतिं गुणयन् सुभगाशयः सुभगः ॥ ८ ॥ तत्रैव ऋषभदासार्हदास्योः प्रवररूपलावण्यः । सूनुः सुदर्शनाख्योऽजनि रजनिकरावदातयशाः॥९॥ उपयेमे सुमनोमुकुलाकृतिं स तु मनोरमां कन्याम् । असपल शीलरत्नालंकारां जिनमते निपुणाम् ॥ १० ॥ कपिलः पुरोहितस्तस्य मित्रमभवत्ततो भृशं श्रुत्वा । कपिलाख्या तद्भार्या सुदर्शगुनणान् सुरूपादीन् ॥ ११ ॥ अनुरक्ता ग्रामगते भर्त्तरि तत्तन्वपाटवमिषेण । निन्ये तं निजसद्मनि रिरंसुरथ तमार्थयत बहुधा ||१२|| स तु मोचितवांस्तस्या अपंडिते ! पंडकोऽहमित्युक्त्वा । नैको गंता परगृहमित्यभिजग्रहे तदा सुमनाः ||१३|| कपिलसुदर्शनसहितो राजा रंतुं गतोऽन्यदोद्याने । कपिला षट्सुतसंयुतमनोरमायुगभयाऽपि मुदा ।। १४ ।। कपिला प्राक्षीदभयां मनोरमां वीक्ष्य देव ! केयं स्त्री १ । साऽऽह सुदर्शनगृहिणी कपिलोचे तर्हि कथमस्याः || १५ || एतावंतस्तनया ? यत्पतिरस्या नपुंसको राज्ञी । आह कथं बुबुधे त्वं ? कपिलाऽऽख्यत् पूर्ववृतान्तम् ||१६|| प्रोचे विहस्य राज्ञी सत्यं षंढोऽयमन्यवनितासु । नूनं विदग्धधुर्येण तेन त्वं वंचिता मुग्वे ! ॥ १७॥ कपिला सम For Private And Personal मनोरमाकथा ॥३७२॥ Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Jain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥ ३७३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kasuri Gyanmandir न्युरूचे सखि ! रमयसि यद्यमुं विदग्धां त्वाम् । तन्मन्ये साऽप्यूचे लघु रमितमिमं मया विद्धि || १८ || इति ते विवादविवशे क्रीडित्वा निजनिजं गते धाम । अथ पंडितया धात्र्या तद् ज्ञात्वा राज्ञ्यदो जगदे ।। १९ ।। फणिफणरत्नं लातुं सटाकट हरेः समुत्खनितुम् । गजपतिरदो ग्रहीतुं वरं प्रतिज्ञा कृता वत्स ! || २० || परमार्हतधौरेयं सुदर्शनं रमयितुं न तु कदाचित् । अहहह हा ही मुग्धे ! तन्ननु बृहदंतरे मूढा ||२१|| अभयाऽऽह सकृत्तं मे समर्पयानीय तदनु भलिताऽहम् । तस्यानयनोयायान् सुबहून् सा चिंतयंत्यस्थात् ||२२|| साऽथ निशि चतुर्मास्यां राज्ञी पूजामिषात् समानिन्ये । वेश्मन्यस्खलितवसनच्छन्ना यक्षादिलेप्या| र्चाः||२३|| पश्चात् शून्यगृहस्थं सुदर्शनं विहितपौषधप्रतिमम् । आजानुलंविभुजयुगमानीय पुरोऽमुचद् देव्याः।। २४ ।। कुमुमशरशबरशरभिन्नहृदयया पापविभययाऽभयया । उपसर्गितः स बहुशोऽप्यचलन्न महामनाः शीलात् ||२५|| अथ वीक्षापन्ना स्वतनुमत| नुकोपा विलिख्य नखविशिखैः । पूच्चक्रे कोऽपि बलात्कारमसौ मयि चरीकतिं ||२६|| श्रुत्वेदं प्राहरिकास्तत्रागुर्वीक्ष्य सुदर्शनं नूनम् । अत्र संभवमिदमित्युक्त्वा राज्ञे समाचख्युः ||२७|| राज्ञाऽभयैव पृष्टा जगदेकस्मात् कुतोऽप्ययमित्य । प्रकटितचटुकोटिम रंतु| मयाचिष्ट पापिष्ठः ||२८|| ऊचे मयैष मैपीरसतीरिव रे सतीरपि हताश ! । किं चर्व्यते चणका यथा तथा मूढ ! मरिचानि ॥ २९ ॥ | तदनु च बलिनाऽप्यमुना कृतमेतत् पूत्कृतं मयाऽप्युच्चैः । न घटत इह खल्विदमिति पुनः पुनस्तं नृपोऽपृच्छत् ॥ ३० ॥ स तु कृपया न किमप्याह नृपतिनाऽचिंति न खलु शुद्धोऽयम् । यलक्षणमाद्यमिदं परललनालोलचौराणाम् ॥ ३१ ॥ कोपाटोपात्तलवर आदिष्टो विहितवध्यमंडनकम् । खरयानं श्रेष्ठिवरं प्रारेभे भ्रमयितुं नगरे ||३२|| कृतशुद्धांतागस्को निहन्यते न्यायचंचुना राज्ञा । | श्रेष्ठी सुदर्शनोऽसावित्युच्चैर्घोषयामास ||३३|| ध्रुवमिह न घटत इदमिति पूत्कुर्वति पुरजने हहाकारम् । स भ्रममाणो ह्येवं निजस For Private And Personal मनोरमाकथा ॥३७३ ॥ Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ShriMar Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kake rsuri Gyanmandir मनोरमाकथा श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥३७४॥ दनद्वारदेशेऽगात् ॥३४॥ दृष्ट्वा मनोरमा तं दध्यौ खलु मम पतिः सदाचारः। दयिताचारश्च नृपो विधिधुवं तहुराचारः ॥३५॥ इदमप्यसदथवा ध्रुवमिदमस्य महात्मनः समुपतस्थे। प्रागशुभकर्म कर्मणः फलमत्रास्ति नहि प्रतीकारः॥३६॥ एष तथापि भवियति निश्चित्येति प्रविश्य सदनांतः। अभ्यर्च्य जिनेंद्रार्चाः कृत्वा व्युत्सर्गमित्यूचे ॥३७॥ सुदृशां समाधिकर्त्यः प्रवचनभक्ताः सुशांतिकरणपराः । शाशनदेव्यो मद्भर्तुरस्ति नहि दोषलेशोऽपि ॥३८॥ श्राद्धजनमस्तकमणेः सांनिध्यं यदि करिष्यथास्य लघु । कायोत्सर्गमिममहं तदाधुवं पारयिष्यामि ॥३९॥ एवं व्यवस्थितायां ममान्यथाकारमनशनं भवतु । तलवरनरैरितश्च प्राक्षेपि सुद र्शनः शूल्याम् ॥ ४० ॥ शाशनदेव्यनुभावात् सा सपदि स्वर्णकमलतां भेजे । कौक्षेयकप्रहारास्तत्कंठे कुसुममालाऽभूत् ।। ४१॥ | तं दृष्ट्वा तैर्विस्मितचकितैनरनाथ एत्य विज्ञप्तः। मंक्षु सुदर्शनपार्श्व प्रययावधिरुह्य वरकरिणीम् ॥४२॥ तं सरभसमालिंग्यानुतापतप्तः क्षितीश इत्यूचे। श्रेष्ठिन्नासि विनष्टो दिष्टयाऽऽत्मीयानुभावेन ॥४३॥ तावत्पापेन मया कि राज्ञा? त्वं विनाशितोऽसि हहा । संचितसुकृतभराणां जागर्ति मतां परं धर्मः॥४४॥ स्त्रीणां निकृतिगृहाणां प्रत्ययतस्त्वां निहंति यो मृढः। अविमृश्यकरः स | पापो न परो दधिवाहनाजगति ॥४५॥ किं वाऽहमस्मि किंचित्पापमिदं कारितस्त्वया साधो । यद् बहुधाऽपि हि पृष्टो न किम| प्याख्यस्तदा मह्यम् ॥४६॥ इत्यालपता राज्ञा करिणीमारोप्य मागधैरुच्चैः। व्यावर्ण्यमानशीलः श्रेष्ठी निजमंदिरे निन्ये ।।४७॥ तदनु स्नातविलिप्तो वस्त्रालंकारभूषितो भुक्तः। राज्ञा पृष्टो रात्रेवृत्तं न्यगदद्यथावृत्तम् ॥ ४८ ।। अभयाऽऽदिष्टा हंतुं विमोचिता श्रेष्ठिना नृपं प्रार्थ्य । उद्धंध्य तथापि मृता पचति हि खलु पापिनां पापम् ।। ४९ ॥ तदनु तनुमतनुपुलकांकुरनिकरां बिभ्रता महा| भूत्या । इभमारोह्य श्रेष्ठी राज्ञा तन्मंदिरे प्रैपि ॥५०॥ नंष्ट्वा दुश्चरितभरैकखंडिता पंडिताऽथ कुसुमपुरे । अगमत्तस्थौ पार्चे गणिकाया MamARIBHITHILIModal. MAHARINAHAITHAARTINGHINTATISHTINISTRIPATHInHelpinnarunalaintIAnnump THISRUM ॥३७४॥ For Private And Personal Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri I श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥ ३७५॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org देवदत्तायाः ॥ ५१ ॥ तत्रापि तथाऽशंसत् सुदर्शनं शुद्धदर्शनं नित्यम् । भृशमुत्सुका यथाऽभूत् सुदर्शने देवदत्ता सा ॥ ५२ ॥ संसृतिविरक्त आतव्रतः सुदुस्तपः तपः कृशः क्रमशः । विहरन् सुदर्शनमुनिः कुसुमपुरं प्रापदेकाकी ।। ५३ ।। भैक्ष्यकृते स कृती तत्र पर्यटन वीक्ष्य सपदि पंडितया । कथितोऽसौ देवदत्तां अजूहवत्तं तया साऽपि ॥ ५४|| मिक्षाव्याजात् स तयाऽऽहूतस्तत्राप्यगात् पिधायापि । द्वारं दिनं समग्रं कदर्थितो देवदत्तया बहुधा ||५५ || मुक्तः स तथा सायं प्रययावुद्यानमीक्षितस्तत्र । अभयान्यं तर्याऽसौ बहुविधमुपसरिंगतः कोपात् ||५६ ॥ शुक्लध्यानवशेन प्राप सुदर्शनमुनिर्वरं ज्ञानम् । तस्य च केवलिमहिमा विधिना विदधे विबुधवृंदैः ||५७|| अथ तेन महामुनिना देशनया विहितया बहुलकः । अभयादेवी धात्री प्रतिबुबुधे देवदत्ताऽपि ||५८ || मनोरमासंस्मृतशुद्धदृष्टिदेवैः कृतं श्रेष्ठिवरस्य सम्यक् । सादिव्यभेवं विनिशम्य भव्यास्तेषां स्मृतौ धत्त सदाऽपि यत्नम् ॥५९॥ इति सुदर्शनश्रेष्टिकथा ॥ इति निगदितं 'सुरा य सरणिज'त्ति चतुर्दशं द्वारं, अथ 'चउह जिण'ति पंचदशं द्वारं विभावयिषुर्गाथोत्तरार्द्धमाहचउह जिणा नामहवणदव्वभाव जिणभेएणं Acharya Shri Kaisuri Gyanmandir मनोरमाकथा चतुर्धा - चतुष्प्रकारा जिनाः, कथमित्याह - नामेत्यादि, जिनशब्दोऽत्र पृथक् संबध्यते, ततश्च नामजिन १ स्थापनाजिन २द्रव्यजिन ३ भावजिन४ भेदेन नामजिनादिप्रकारेणेति । एतानेव भेदान् विभावयिषुराह— नामजिणा जिणनामा ठवणजिणा पुण जिणिदपडिमाओ । दव्वजिणा जिणजीवा भावजिणा समवसरणत्था ॥ ४ ॥ नामैव नामप्रधानतया वा जिना नामजिनाः, कथमित्याह - जिनः अर्हन् पारगत इत्यादिनामानि, यद्वा जिनानां - तीर्थकृतां For Private And Personal ॥ ३७५॥ Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahai an Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्रीदे चैत्य० श्रीधर्म संघाचारविधौ ॥३७६॥ mmarwainmmswammanamalhammamwomETIHASimire mHINnnanigam नामानि उसभ अजितेत्यादीनि, स्थापनया-लेप्यकादिरूपया जिनाः स्थापनाजिना, जिनेंद्राणां प्रतिमा, विवानीत्यर्थः॥ पुनः- ईश्वरराजशब्दो हि न्यस्तानाकारस्थापनाजिनपरिग्रहार्थः। द्रव्यं-दलिकं भूतभाविभावकारणं तदाश्रित्य जिना द्रव्यजिना-ये अर्हत्पदवीं कथा प्राप्य सिद्धा ये च तां प्राप्स्यति ॥ इह रायपुरे रायासि ईसरो ईसरुव्व गयवसणो। कुसुमुजाणे पत्तो कयावि सो रायवाडीए ॥१॥ तत्थ नवहत्थमाणं नीलुप्पलसामलं मलविमुकं । सच्छसिरिवच्छलंछियवच्छं वंछियपयाणपहुं ॥२॥ अठुत्तरअसरिससहसलक्षणं अस्ससेणवंसमणिं । निम्मियकाउस्सग्गं सिरिपासपहुं नियच्छेइ ॥३॥ हरिसभरपुलइयंगो तुरियं ओयरिय तुरयरयणाओ । महि- 10 मिलियमउलिकमलो भत्तीए नमिय पासजिणं ॥ ४ ॥ अमयमइंपिव उस्सवमयं व तइलोयमित्तिमइयं वा । अणमिसनयणो राया पिच्छंतो पासपहुमुत्तिं ॥५॥ ईहापोहवसेणं च मुच्छिओ पुणवि लद्धचेयन्नो । जाइसरो सचिवेणं पुट्ठो इय कहिउमारद्धो ॥६॥ आसि वसंतपुरंमी दत्तों दियनंदणो स कइयावि । कुट्ठभरविहुरदेहो गंगाइ गओ मरिउकामो॥७॥ सुरसरिजले पडतो चारणसमणेण जंपिओ एवं । किं दत्त! दत्तहत्थो धम्ममि मरेसि मुहयाए ? ॥८॥ किं पंचासवविरमणजणियं नीसेसरोगहरणखमं । सिरिजिणवयणरसायणमेयं न करेसि दढमूढ ! ।। ९॥ तो दत्तो जंपइ पहु! मं जाणावसु रसायणं एयं । तह चेव कए मुणिणा सो जाओ सावओ भवो ॥१०॥ अन्नदिणे गुणसायरकेवलिणं नमिय पुच्छए एसो। किं सुलहबोहिओऽहं नवत्ति? गुरुराह निमुणेसु ॥११॥ भो भद! भद्दपयगमणऊसुओ जइवि तंसि तहवि तुमं । तिरिगइनिकाइयाऊ धुवमते दंसणा विमुहो ॥१२॥ यतः-संमत्तमि उ लद्धे विमाणवजं न बंधए आउं । जइ न विगयसंमत्तो अहव न बद्धाउओ पुविं ॥१३।। इय दत्तो गुरुवयणं सोऊण अणूणदुक्खसंपत्तो। किह बोहिवजिओऽहं होहं इय रोइउं लग्गो ॥१४॥ जं बोहिरयणरहिओ चउदसरयणाहिवोऽवि रोरुब । बोहिरयणेण बाबोडिरयणेण ॥३७६।। i For Private And Personal Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sh www.kcbatirth.org s uri Gyanmandir श्रीदे० I/ ईश्वरराज कथा चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥३७७॥ a in Aradhana Kendra Acharya Shri Ka सहिओ नूणं रोरोऽवि चविध ॥१५॥ किंच-चकित्तं इंदत्तं अहमिंदत्तं जणाण इह सुलहं। अकयसुकयाण न उणो जिणिंदवरसासणे बोही ॥ १६ ॥ तो गुरुकरुणारससायरेण गुणसायरेण मुणिवइणा । भणिओ सो महुरगिरा कीस परितप्पसे ? भद्द! ॥ १७ ॥ जं पुब्बभवन्जियकडुविवागकम्माण वेयणं मुत्तुं अनो न अस्थि तक्खवणसंभवो किमिह रुन्नेण? ॥१८॥ सोसिजइ चरममहोयहीवि चालिजइ सुरगिरीवि । नहु छुट्टिाइ पुव्वजियाउ ता किमिह रुनेण? ॥ १९ ॥ किर चक्किणोऽवि चकं खलिजए वज्जिणोऽवि किर वज्ज । नहु पुवकयं कम्मं केणवि ता किमिह रुन्नेण? ॥२०॥ तो रोयणा पधरिओ दत्तो पुच्छइ कहेसु मह भयवं! । कत्थ कहं वा बोही होही भुज्जो ? भणइ नाणी ॥ २१॥ तं मरिउं रायपुरे पुरोहिघरकुकुडीइ गन्भंमि । रूवेण उक्कडो होसि कुक्कुडो भो महाभाग ! ॥२२॥ मुणिदंसणाउ पुन्धि जाई सुमरिय करेवि संनासं । तत्थेव पुरे राया तं होही ईसरो नाम ॥२३।। तत्थ य कुसुमुजाणे तमालदलसामलं नवकरुच्चं । सिरिआससेणतणयं बंमातणुसरसिकलहंसं ॥२४॥ फणिवइचिण्हियचलणं काउस्सग्गे ठियं जिणं पासं । दटुं सरिउं जाई भुज्जो होही तुहं बोही ॥२५॥ एवं सुच्चा दत्तो पहिट्ठचित्तो दुहेण परिचत्तो। सुमरंतो अहरीकयकप्पतरूं पासजिणनामं ॥२६॥ पासजिणनामसुमरणवसेण खसखासकुट्ठपरिमुक्को। पूर्यतो य तिसञ्झं जहविहवं पासपहुपडिमं ।। २७ ॥ निव्वाणगामिणं तिजयसामिणं भाविणंपि पासजिणं । कयपाडिहेरसोहं चउतीसातिसयपरिकलियं ॥२८॥ वाणीए जोयणगामिणीइ बोहं नयंति जयलोयं । एगग्गमणो सुमणो झायंतो निच्चमुवउत्तो ॥ २९ ॥ वरनाणिकहियविहिणा भो मंतिस एसऽहं इहं जाओ। सिरिपासदसणाओ संपत्तो जाइसरणं च ॥३०॥ पुन्वभवे नामठवणदब्वभावा| रिहंतसरणेण । अज्जियगुरुपुन्नेणं पत्तं मे गोहिवररयणं ॥३१॥ तो कुक्कुडेसराभिहमीसरराया पमोयभरभरिओ। कारावइ जिण- ॥३७७।। For Private And Personal Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mole in Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥ ३७८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailuri Gyanmandir भवणं अलंकियं पासपडिमाए ॥ ३२ ॥ तत्थ य अब्भुयभूयं पूयं कार महाविभूईए। वायावइ आउजे सज्जो सजियमहापूओ ||३३|| गोसे नियपासाए सिरिपास पहुस्स पूइउं पडिमं । सामंत मंतिसुद्धंत कुमर चउरंगबलकलिओ ||३४|| गयखंधगओ सिरिउवरिधरियछत्तो चलंतसियचमरो । कित्तिज्जतो मागहगणेण परमारिहंतुति ||३५|| कयपवयणबहुमाणाण बोहिलाभं जणाण वडूंतो । सब्बिड्डीइ समेओ राया वच्चेइ चेइगिहे || ३६ || विहिणा पूएवि सुपुन्नपुन्नचिइवंदणाह वंदित्ता । सिरिपासपहुं पत्थेइ होसु मह बोहिलाभाय | ॥ ३७ ॥ सुचिरं ईसरराया सिरिजिणवरपत्रयणं पभावित्ता । पास पहुपासगिव्हियपव्वज्जो सुगमणुपत्तो ॥ ३८ ॥ इतीश्वरक्षोणिभृतचरित्रं, निशम्य सम्यग् भविकाः ! पवित्रम् । नामाकृतिद्रव्यसुभावभेदान्, चतुर्विधान् ध्यायत तज्जिनेंद्रान् ॥ ३९ ॥ इती श्वरनरेश्वरकथा ।। उक्तं 'चउह जिण'त्ति पंचदशं द्वारं, एवं च द्वादशद्वारे उक्ता द्वादशाधिकाराः, त्रयोदशचतुर्दशपंचदशेतिद्वारत्रयेऽधिकारिणश्च प्रतिपादिताः । अथ यत्राधिकारे यः स्तूयते तत्प्रतिपादनाय गाथात्रयमाह पढमहिगारे वंदे भावजिणे बीययमि दव्वजिणे । इगचेइय ठेवणजिणे तइय चउत्थंमि नामजिणे ॥ ३२ ॥ तिहुअण ठेवणजिणे पुण पंचमए विहरमाणजिण छट्ठे । सत्तमए सुयनाणं अट्टमए सव्वसिद्धथुई ||३३|| तित्थाविवीरथुई नवमे दसमे य उज्जयंतथुई। अट्ठावयाइ इगदसि सुदिट्ठिसुरसुमरणा चरिमे ॥ ३४ ॥ प्रथमे-आद्ये शक्रस्तवरूपेऽधिकारे - स्तोतव्यविशेषस्थाने वंदे - सद्भूतगुणोत्कीर्त्तनेन स्तवीमीति, भावजिनान्-भावाईतश्चतुस्त्रिशदतिशययादिमध्वमर्हद्भावं प्रासानुत्पन्नकेवलज्ञानान् समवसरणस्थांस्तीर्थकृत इत्यर्थः, तथैव संपूर्णमर्हद्भावभावात्, भणितं च'भावजिणा समवसरणत्थ'त्ति १, तथा द्वितीये 'जे अ अईय'त्ति गाथालक्षणेऽधिकारे वंदे इति सर्वत्रापि योज्यं, द्रव्यजिनान् For Private And Personal अधिकारविषयः ॥३७८ ॥ Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M . Aradhana Kendra www.kobatirth.org t ri Gyanmandie श्रीदे अधिकारविषयः Acharya Shri Kan द्रव्याहतो येऽष्टमहाप्रातिहादिकां तीर्थकल्लक्ष्मी प्राप्य सिद्धाः ये च तस्मिन्नन्यमिन् वा भवे तां प्राप्स्यति, न च तदानीं प्राप्तचैत्य-श्री- | वंतस्तान् , अर्हत्वद्रव्यान् जिनजीवानित्यर्थः, उक्तं च-"भूतस्य भाविनो वा भावस्य हि कारणं तु यल्लोके । तद् द्रव्यं तत्वज्ञैः धर्म० संघा-IN सचेतनाचेतनं कथितं ॥२॥ तथा 'एकचैत्यस्थापनाजिनान् यत्र देवगृहादौ चैत्यवंदनं कर्तुमारब्धं तत्र स्थापितानि यानि जिनचारविधी | विबानि तानीत्यर्थः तृतीये 'अरिहंत चेइयाण'मितिदंडकरूपे ३, तथा चतुर्थे-चतुर्विंशतिस्तवात्मके नामजिनान् जिननामानि, ॥३७९॥ अस्यामवसपिण्यां भरतक्षेत्रवर्तितयाऽऽसन्नत्वादिनोपकारित्वाच्चतुर्विंशतिमपि जिनानामोत्कीर्तनेन स्तौमीत्यर्थः ४ ॥ ३२ ॥ त्रिभुवने ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्लोके स्थापनाजिनान् शाश्वताशाश्वतश्चैत्यस्थापिताहसिद्धप्रतिमारूपान् पंचमके 'सबलोए अरिहंतचेइयाण'मितिकायोत्सर्गदंडकलक्षणेऽधिकारे वंदे इति योज्यं, अत्र चार्हत्सिद्धप्रतिमारूपानिति प्रकारांतरसूचकः पुनःशब्द इत्यायातं, भणितं चावश्यकचूर्णिकारेण सिद्धप्रतिमानामपि वंदनपूजनादि, तथा च प्रतिक्रमणाध्ययने 'सव्वलोए अरिहंतचेइयाण'मिति दंडकचूर्णिः-जे सबलोए सिद्धाई अरिहंता चेइयाणि य तेसिं चेव प्रतिकृतिलक्षणानि, चिती संज्ञाने, संज्ञानमुत्पद्यते काष्ठकर्मादिषु प्रकृतिं दृष्ट्वा जहा अरिहंतपडिमा एसत्ति, सिद्धादिप्रतिमेत्यर्थः, अन्ने भणति-अरिहंता तित्थयरा तेसिं चेइयाणि अरिहंतचेइयाणि, अर्हत्प्रतिमेत्यर्थः अत्र च अन्ने भणंति अरहंता तित्थयरा इत्यादि भणता चूर्णिकृता पूर्वव्याख्याने सिद्धप्रतिमाः पृथक स्पष्टं निष्टंकिताः, अन्यथा द्वितीयव्याख्यानं निष्फलं स्यात् , एवं च सिद्धप्रतिमासिद्धौ तासां वंदनपूजनाद्यपि करणीयपथायातं, तत्प्रत्ययं च कायोत्सर्गायपि, उक्तं चैतदावश्यकचूण्णौं, तथाहि-'पूज्यत्वात्तेषां पूजनार्थ कायोत्सर्ग करोमि श्रद्धादिमिर्वर्द्धमानः, सद्गुणसमुत्कीर्तनपूर्वकं कायोत्सर्गस्थानेन पूजनं करोमीत्यर्थः, जहा कोई गंधचूर्णवासमल्लाइएहिं समभ्यर्चनं करोतीति । एवं UN ॥७९॥ For Private And Personal Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M etain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org ini Acharya Shri Ka s uri Gyanmandie सिद्धपूजा श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधी ॥३८॥ BHARATP URIHIM anumaATE ENGURIRAMILARAHINILARISPRILMIPATHIMHAMITam HTETumnilam सकारवत्तियाए संमाणवत्तियाएवि भावेयवं, नवरं सकारो जहा वत्थाभरणाईएहिं सकारणं, संमाणो संमं मन्नणं'ति । एतावता च सिद्धप्रतिमानामप्यग्रे अरिहंतचेइयाणमित्यपि दंडकः पाठाय संगच्छते,शब्दार्थयोस्तत्रापि समानत्वात् ,पर्युपास्या इहार्थे बहुश्रुताः, तथा श्रीजिनभद्रगणिक्षमाश्रमणैरपि विशेषावश्यके साक्षेपं स्थापिता सिद्धपूजा, तथा च-कुआ जिणाण पूया परिणामविसुद्धिहेउओ निचं । दाणादओ सम्मग्गप्पभावणाओ य कहणं व ॥१॥ तट्टीका-कार्या जिनसिद्धपूजा स्वपरिणामविशुद्धिहेतुत्वाद्दानादिक्रियावत् , अथवा कार्या जिनसिद्धपूजा मार्गप्रभावनात्मकत्वाद्धर्मकथावत् ॥१॥ चोयग-पूयाफलदोय न सो नहं व कोवप्पसायविरहाओ। दिद्रुतो वेहंमेण साहम्मेणं निवाई य ।।२।। आचार्य:-कोवप्पसायरहियपि दीसए फलयमनपाणाई। कोवप्पसायरहियत्ति निष्फलत्ते अणेगंतो ।।३।। इत्यादि । पूजिता च मरुदेवास्वामिनी प्रथमसिद्ध इतिकृत्वा देवैः, कारिताश्च सिद्धप्रतिमा भरतेनाष्टापदो. परि, एतयोः प्रबंधश्चायं-आर्यानार्येषु मौनेन, विहृत्याब्दसहस्रकम् । पुरे पुरिमतालाख्ये, ययौ श्रीवृषभोऽन्यदा ॥१॥ उद्याने तत्र शकटमुखे वटतरोरधः। उत्तराषाढभे कृष्णैकादश्यां फाल्गुने विभुः ॥२॥ पूर्वाण्हेऽष्टमभक्तेन, केवलज्ञानमासदत् । महिमानं तत|श्चक्रुः, सर्वे देवाः सुरादयः ॥३।। भरतस्यायुधागारे, चक्ररत्नं तदाऽजनि । युगपत्केवलं तच्च, राज्ञे पुंभिनिवेदितम् ।।४।। अचिंत यत्ततो राजा, किं पूज्यं प्रथमं मया। क्षणानिर्णीतवांस्तातः, पूज्यः प्रेत्यमुखावहः ।।६।। रुदंती पुत्रशोकेन, नीलच्छन्नदृशं ततः। सिंधुरस्कंधमारोप्य, मरुदेवीं स्वयं नृपः ॥६॥ जिनं नंतुं व्रजन्नूचे, मातः ! पश्य प्रभोः श्रियम् । अनन्यसदृशीं देवासुराणामपि । दुर्लभाम् ॥ ७ ॥ हथुिप्रगलच्छाया सा पश्यंती प्रभुश्रियम् । क्षणात् कर्मक्षयं कृत्वा, निर्वृत्ता शुभभावतः ॥ ८॥ ततः प्रथम| सिद्धोऽयमित्यभ्यर्च्य कलेवरम् । तस्याः क्षीरमहांभोधौ, चिक्षिपेनिमिषैर्मुदा ॥९॥ उक्तं चावश्यकचूणौं-'भयवओ य RAMITA-ATIBAPlawmITASBAPURIm ॥३८॥ For Private And Personal Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kabelsuri Gyanmandir श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥३८॥ छत्ताइछत्तं पिच्छंतीए चेव केवलनाणं उप्पन्न, तंसमयं च णं आउयं खुटुं, सिद्धा, देवेहि य से पूया कया पढमसिद्धोत्तिकाऊणं' अथ छायातपाभ्यां हि, शरत्काल इव क्षणात् । नृपो हर्षविषादाभ्यां, युगपत् सस्वजेतराम् ॥१०॥ ततः समवसृत्यंतर्गत्वा नत्वा | जगद्गुरुम् । निपद्य च यथास्थानमश्रौषीद्देशनामिति ॥११।। जीवाः सुखैषिणः सर्वे, तन्मोक्षे मुख्यमक्षयम् । स च ज्ञानक्रियाभ्यां हि, यतध्वं तत्र तज्जनाः ॥ १२ ॥ श्रुत्वेमा देशनां भर्तुः, प्रात्राजीद्भरतात्मजः । पुंडरीकस्तथाऽन्येऽपि, साधवो बहवोऽभवन् | ॥१३॥ साध्व्यो ब्राहम्यादिकाः श्राद्धा, भरताद्यास्तु सुंदरी । व्रताय तेन नो मुक्तास्तदाद्याः श्राविकास्ततः॥१४॥ कृत्वेत्यायं विभुः संघ, विजड़ेऽन्यत्र तीर्थकृत् । भरतस्तु गृहं गत्वा, चक्रमानर्च कृत्यवित् ॥१५।। विहृत्याब्दसहस्रोनं, कैवल्ये पूर्वलक्षकम् । दिशन् पंच यमान पंचधनुःशतमितिः प्रभुः॥१६॥ नष्टापदग्रणीःशैलेऽष्टापदेऽष्टापदद्युतिः। कम्र्मेभाटापदोऽष्टापदादिव्यसनहृद् ययौ ।।१७।। युग्मं ॥ तृतीयारे स साष्टिमासव्यष्टावशेषके । माघकृष्णत्रयोदश्यां, पूर्वाण्हेऽभीचिगे विधौ ॥१८॥ चतुर्दशेन. भक्तेन, दशसाधुसहस्रयुक् । पुत्रैर्नवनवत्याऽमा, मोक्षं प्राप वृषध्वजः ॥१९॥ सुरासुराश्च चक्रो च, पूर्वायातास्ततः प्रभोः। विधिवञ्चक्रिरे मोक्षमहं कृत्वा चितित्रयम् ॥२०॥ पूर्वापाच्यपराशास्वहत्तद्वंशजजन्मिनाम् । शेषाणां च क्रमाद् वृत्तां, त्रिकोणां चतुरस्रिकाम् ।।२१॥ चैत्यं सिंहनिषद्याख्यं, वर्द्धकिं चक्रयकारयत् । चतुरिं चतुर्द्वित्रिकोशदीर्घपृथचकम् ।।२२।। तन्मध्ये वृषभाद्यर्चाः, स्वस्ववर्णप्रमाणतः। चतुर्विंशतिमेकं च, बहिस्तूपं प्रभोर्वरम् ॥२३॥ स्तूपशतं तथैकोनभातृणां प्रतिमाशतम् । भक्त्या स्त्राचांच तत्रादौ, दंडेनाष्टौ पदानि च ॥२४।। उक्तं चावश्यके श्रीभद्रबाहुस्वामिपादैः-"थूभसय भाउयाणं चउवीसं चेव जिणहरे कासी। सबजिणाणं पडिमा वण्णपमाणेहिं संजुत्ता ।।१।। एतच्चूर्णिः-भाउयसयस्स तत्थेव पडिमाओ कारवेइ,अप्पणो य पडिमं पज्जुवासंतियं,सयं च थूभाणं, amam ॥३८॥ For Private And Personal Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥३८२॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas एगं तित्थयरस्य अवसेसाण एगूणस्स भाउयसयस्स, मा तत्थ कोइ अइगम्मिस्सइति लोहमणुया अइगंतुं न सकंतित्ति, अयमेव च स्तूपशत विषयोऽर्थो महापुरुषचरिताख्यग्रंथे श्रीऋषभदेवनिर्वाणोद्देशके व्यक्ततरमेवं भणितः, तथाहि चडुइणा कारवियं तत्थुत्तुंगे नगंमि थूहसयं । मणिकणयरयणचित्तं कंचणपडिमाहि संपुन || १ || पंचधणूसयमाणा इक्किका पडिम तत्थ मज्झमि । नाणाविहरयणविभूसियत्ति इक्किकइकिके || २ || अट्टमहापडिहेरा पडिमा उसहस्स पढममह धूवे । सेसा अणुकमेणं केवलिपडिमाओ कारेह || ३ || सकसहाओ राया सुमेरुसिहरेव्व कणयकल सेहिं । अहिसिंचिउं सयंचिय हरिचंदणचच्चए देइ || ४ || पुप्फो क्यारब लिधूवचंदणं देवराय जोएवि । विम्हइओ चित्तेणं चूहा सेलो विभावेति ||५|| सयसिंगो इव सेलो दीसह धयधूवमाणसिहरेहिं । रयणावलीसम्मुद्विअगयणंगण सक्कचावेहिं ||६|| अन्यत्राप्युक्तं - 'चउवीसं तित्थयरा फुरंतवररयणपंचवन्नेहिं । एवं विहीइ भाउयसमस्स धूभाणि कारेइ ||७|| पडिमाउ तत्थ तेसिं पट्टिया व्हवणमाइ सक्कारं । पूयंतकयपणामो भत्तीइ सपरियणो भरहो ||८||"त्ति । कारयित्वेति तत्तीर्थ, चक्रथागत्य निजां पुरीम् । भेजे भोगान् चिरं पूर्वपुण्योपात्तान् यथासुखम् ||९|| श्रुत्वेति सिद्धप्रतिमार्चनाग्रं, विनिम्मितं श्रीभरतामराद्यैः भो भव्यभावा भविकाः ! प्रयत्नमेतद्विधाने विधिना विधत्त ||१०|| इति मरुदेवादिप्रबंधः । तथा 'विहरमाणजिनान् पठे' पंचदशकर्मभूमिषु विहारं कुर्वाणान् सूत्रार्थकथनपरायणान् भावार्हत इत्यर्थः, उक्तं च- "पढमे छडे नवमे दस मे एगारसे य भावजिणे" । वंद इति तत्र प्रकृतं, ते च जघन्यतो विंशतिरुत्कृष्टतः सप्ततिशतं भवति, आह च - "सत्तरिसयमुक्कोसं जहनओ विरहमाण जिण वीसं । जम्मं पइ उक्कोसं वीसं दस हुंति उ जहन्नं ॥ | १ || "ति, आवश्यकचूर्णौ तु द्रव्यार्हतोऽप्यत्र व्याख्याताः, तथाचोक्तं-उक्कोसपएणं सत्तरिं तित्थयरस्यं जहण्णपएणं वीसं तित्थयरा, एए ताव एगकाले भवंति, अईया अणागया अनंता ते For Private And Personal i Gyanmandir सिद्धपूजा ||३८२ ॥ Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ||३८३ ॥ Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kail तित्थगरे नम॑सामिति षष्ठे पुक्खरवरदीवडे इति गाथात्मके ६, तथा सप्तमे 'तिमिरे 'त्यादिखरूपे श्रुतज्ञानम् - अंगानंगप्रविष्टं सिद्धांतं वंदे इति पूर्वगाथातो योज्यं ७, तथा अष्टमके सिद्धाणमिति गाथायां सर्वेषां तीर्थसिद्धादिभेदभिन्नानां नामस्थापनादिरूपाणां वा सिद्धानां क्षपित कम्र्मांशानां स्तुतिः क्रियत इति गम्यं ८ तीर्थाधिपस्य वर्त्तमानतीर्थस्य प्रवर्त्तकत्वान्नाथस्य वीरस्य वर्द्धमानस्वामिनः स्तुतिर्विधीयते, आसन्नतरतया महोपकारित्वात् नवमेऽधिकारे 'जो देवाणवी' त्यादिगाथाद्वयरूपे९, तथा दशमे च 'उजिं तसेले' तिगाथाप्रमाणे उज्जयंतत्ति 'तात्ध्वा तद्व्यपदेश' इति न्यायात् उञ्जयंतपर्वतालंकरणस्य श्रीनेमिनाथस्य स्तुतिर्विधीयते, च| शब्दो विशेषकस्तेनायं जिनस्तुतित्वात् दर्शनविशोधकत्वात् कर्म्मक्षयादिकारकत्वात् संवेगादिकारणत्वात् बहुबहुश्रुतानिवारितत्वात् जीतव्यवहारानुपातित्वात् भाष्यकारादिभिर्व्याख्यातत्वात् आवश्यकचूर्णिकृतोऽप्यनुमतत्वात् अनिषिद्धत्वात् पारंपर्यागतस्यार्थस्य स्वमत्या निषेधुमशक्यत्वात् निषेधे निह्नत्रमार्गानुपातित्यात् आज्ञाप्रकारत्वाचेत्यतो युक्त एवायमेवमग्रेतनोऽपि १०, तथा एकादशे चत्तारि अट्ठ दसेतिगाथास्वरूपे अट्ठावयत्ति सूचनात् अष्टापदपर्वतोपरिभरत निर्मापितवर्त्तमान चतुर्विंशतिजिनस्तुतिः क्रियते, निगमार्थत्वात् अस्येति यद्वा 'अट्ठावय'त्ति उपलक्षणं तेनान्यत्रगा अपि जिना अनया गाथया वंद्यन्ते, तत्र यथेयं वृद्धैर्व्याख्याता तथा भव्यानां भाववृद्धये किंचिद् दर्श्यते चत्तारि अट्ठ दस दो य वंदिया जिणवरा चव्वीसं । परमनिडिअट्ठा सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥१॥ दाहिण दुवारे चत्तारि पच्छिमे अट्ठ उत्तरे दस पुत्रओ दो य एवं अट्ठावए चउवीसं जिणवरा वंदिअंति, अन्ने भणंतिउवरिममेहलाए चत्तारि, मज्झिमाए अट्ठ, हिट्टिमाए दस दो य १२, मिलिया चउवीसं जिणपडिमाओ अट्ठावए वंदिअंति १ चत्ता अरओ जेहिं ते चत्तारओ एवं विसेसणं, अट्ठ ८ दस १० दो य २ एवं वीसं, चतुवशब्दौ विशेषज्ञापकाद्यर्थेषु यथायोगं www.kobatirth.org For Private And Personal suri Gyanmandir अष्टापदादिस्तुतिः ॥ ३८३ ॥ Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyarmandie अष्टापदा | दिस्तुतिः श्रीदे० चैत्य श्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥३८४॥ MAITHILI योन्यौ, एए संमेयपब्बए वंदिया, परमद्वेण, न उवयारेण,निट्ठियहा समाप्तप्रसोजनाः, सिद्धाः-शिवं गताः, पिधू गत्या'मिति वचनात् २ चत्तारि पयं पुव्वंव, अट्ठ दस मिलिता १८ दोयत्ति द्योपाः-स्वर्गपाः इंद्रा इत्यर्थः, चउहिं वीसं भइया लद्धा पंच, ते अद्वारसमु मेलिया तेवीसं, एए सित्तुजे वंदिजंति, कहं ?,परा-पहाणा मा-लच्छी समोसरणाइया तत्थ ठिया,समोसरिया इत्यर्थः, निट्ठियहा संपन्नफला केवलनाणसंपत्तीए,यदागमः-"जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणे इत्यादि", सिद्धाःशास्तारो बभुवुः मंगलभृताश्च 'पिधू शास्त्रमांगल्बयोरितिवचनात् ३, चउहिं अद्वगुणिया३२ दोहि य दस २०, मिलिया बावना नंदीसरजिणाययणा बंदिज्जंति, चउसदा मयंतरेण पुण वीसं, अहवा चउरहिया वीसं १६, एए नंदीसरे सोहम्मीसाणिंदग्गमहि-| सीरायहाणीसुं संति, मयंतरे पुण चउवीसं परं अट्ठसहिया३२,एवं नंदीसरे दीवे ५२-२० वा रायहाणीसु१६+३२ वा, परमटेण, न वर्णनामात्रेण, निट्ठिया-निष्ठां प्राप्ताः आस्था-आस्थानं रचनेत्यर्थः येषां ते तथा, सिद्धा-नित्या अपर्यवसानस्थितिकत्वात् ४ चित्तारि जंबुदीवे अट्ठधायइसंडे दस नवरं दो य रहिया पुक्खरवरद्धे एवं वीसं जिणा संपइ जहन्नओ विहरमाणा बंदिज्जति, जम्म पइ उकोसओ वा, चतुश्वशब्दौ प्राग्वत , परमट्ठनिटिअट्ठा भाविनि भूतवदुपचारात् सिद्धाः-प्रख्याता भव्यरुपलब्धगुणसंदोहत्वात्५ चत्ता अरी जेहिं ते चत्तारि कन्जमाणे कडे इत्यादि वचनात् , के अरी?-अट्ट कम्माणि, के चत्तारि ?-दस, ते उ दो यत्ति दुहि भेएहिं हुति, जहन्नजम्मपयभरहेरवयदसगविहरमाणजिणभेएहिं, च पूरणे, 'उव्वीसं'ति उर्वीशाः-पृथ्वीस्वामिनः शेष प्राग्वत् ६, अट्ठ दसहिं गुणिया ८० सा दोहिं गुणिया १६०, सेसं पुवंब, एवं सव्वविहरमाणजिणा वंदिया ७, अट्ट अट्टहि गुणिया ६४ दस दसहिं गुणिया १००, तओ चचारि ४ दो य २ सव्वे मेलिया जायं सत्तरिसय १७०, एए पन्नरसकम्मभूमि उक्कोसओ MILARAMINATIONAMILIALI | m ammHIMIRITTARIOM RAINITHALISAMARINIndim ॥३८४॥ For Private And Personal JAITRALINI Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे० चैत्य० श्री - धर्म० संघा चारविधौ 1136411 Hain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Karsuri Gyanmandir विरमाणा वंदित ८, अट्ठदस १८ चउहिं गुणिया ७२, एएहिं तिनि चउवीसीओ भवंति, ताओ य इह भरहे अतीयाणागयवट्टमाणा चउवीसिगतिगस्वरूवी तित्थयरा चंदिजति, चत्तारि अट्ठ मिलिया १२ ते दसगुणिया १२० एए पंचचउवीसी पंचसु भरहेसु वट्टमाणाउ वंदिज्जति १०, अट्ठ दसहिं गुणिया ८० ते चैत्र दसमिलिया ९० सा चउहिं गुणिया ३६०, एए पनरस चवीसीओ पंचसु भरहेसु कालत्तयसंभवाउ वंदिज्जति ११, एए चेव तिनि पगारा जहा७२, १२०, ३६० दोहिं गुणिज्जंति जाया १४४,२४०,७२० चउविसी किज्जंति जाया ६,१०,३० चउवीसीउ, ताओ कमसो पुव्त्रभणियत्थेण भरहेरवएसु समगं वंदिअंति १२, अणुत्तरेसु १ गेविज्जेसु २ कप्पेसु ३ जोइसिएसु य ४ एवं उडूं चत्तारि भेया, अहो य वंतरेसु अट्टभेएस अट्ठ ८ दसभवणवासीसु दस १० महियले सासयअसासयभेया दो य २ एवं तिहुयणे जिणाययणेसु चउवीसजिणाययणेसु चउवीसं जिणवरा वंदिया १३, जहा पुण जंबूदीवे ६३५ धायइसंडे १२७२ पुक्खरवरद्धे १२७६ मणुयलोयबहिं ९२ तिरियलोए वा सव्वसंखाए ३२७५ चेइयसयाई ताई ताई सयमेव तद्दा नियसंखाए आणिऊण वंदेयव्वा, विस्तारभयाच्च नोच्यते, एवं अणेगहा एगारसंमि अहिगारे जिणवरा वंदिज्जति, चचारि अट्ठगुणिया ३२ ते दसगुणिया ३२० ते य दोहिं गुणिया ६४०, वीसं च हिं भइया लद्धा ५तेहिं रहिया६३५ एए जंबुद्दीवे ११ ॥ तथा सुदृष्टिसुराणां सम्यग्दृष्टिदेवतानां स्मरणात् तत्तच्प्रवचनादिविषयवैयावृन्यादिकार्यविधानोपयोगप्रभृतिगुणगणानुचिंतनाद्योत्कीर्त्तनादिनोपबृंहणाय वा धन्याः पुण्यवंतो लब्धजीवितादिफला भवंतो यदेवं सदनुष्ठानोद्यताः, युक्तमेवेदं भवादृशां सुस्थानविनियोगफलत्वात् संपदः, उक्तं च- "तं नाणं तं च विन्नाणं, तं कलासु य कोसलं । सा | बुद्वी पोरिसं तं च, देवकज्जेण जं वए ॥१॥ ." इत्यादिप्रशंसाद्वारेण तत्तत्कृत्यप्रोत्साहनेत्यर्थः, अथवा स्मरणा संघादिविषये प्रमादिनां For Private And Personal अष्टापदादिस्तुतिः ॥ ३८५ ॥ Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mal i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka u ri Gyanmandir HSSTRAMINE Mina श्रीदे. चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ।।३८६॥ श्लथीभृतवैयावृत्यादितत्कृत्यानां संसारणा चरमे-द्वादशेऽधिकारे वैयावञ्चगराणमित्यादिकायोत्सर्गकरणतदीयस्तुतिदानपर्यते, मथुराक्षक्रियते इति शेषः, औचित्यप्रवृत्तिरूपत्वात् धर्मस्य, अवस्थानुरूपव्यापाराभावे गुणाभावापत्तेः, यतः-"औचित्यमेकमेकत्र, गुणानां पककथा कोटिरेकतः। विषायते गुणग्राम, औचित्यपरिवर्जितः ॥१॥" अपिच-अनौचित्यप्रवृत्ती महानपि मथुराक्षपकवत् कुबेरदत्ताया भवत्यल्पानामपि प्रत्युच्चारणादिभाजनं, आह च-"आरंकाद् भूपति यावदौचित्यं न विदंति ये । स्पृहयंतः प्रभुत्वाय, खेलनं ते सुमेधसाम् ॥१॥"इदमत्र तात्पर्य-सर्वदापि स्वपरावस्थानुरूपचेष्टया सर्वत्र प्रवर्तितव्यमिति, उक्तं च-"सदौचित्यप्रवृत्या सर्वत्र प्रवर्तितव्यमित्यैदंपर्यमस्ये"ति ।। मथुराक्षपककुबेरदत्तादेव्योः संविधानकं त्विदं-इह कुसुमपुरे नयरे दढधम्मो दढरहो निवो आसि । उचियपडिवत्तिवल्लीपल्लवणे सजलजलवाहो ॥१॥ सरए कयावि सो अन्भमंडलं गपणमंडले जाव । परिसप्पिरं समंता पासायतलडिओ नियइ ॥ २ ॥ ता सहसा तं पड्डुपवणपडिहयं द? चिंतइ विरत्तो । खणदिट्ठनहरूवा अहह कहं सबभावठिई ! ॥३॥ तथाहि-संपञ्चंपकपुष्परागति रतिर्मत्तांगनापांगति, स्वाम्यं पद्मदलारवारिकणति प्रेमा तडिदंडति। लावण्यं करिकर्णतालति वपुः कल्पांतवातभ्रमद्दीपच्छायति यौवनं गिरिनदीवेगत्यहो देहिनाम् ॥ ४ ॥इय चिंतिउं सविणयं विणयंधरसुगुरुपासगहियवओ। गीयत्थो विहरतो पत्तो स कयावि महुरपुरि ॥५॥ तत्थ ठिओ चउमासं कुबेरदत्ताइ देवयाइ गिहे । दुत्तवतवचरणरओ निरओ आयावणविहाणे ॥६॥ विगहानिदाइपमायवज्जिओ उज्जुओ सुहज्झाणे । वासीचंदणकप्पो समो य माणावमाणेसु ॥७॥ तं दठ्ठ हट्टतुट्टा कुबेरदत्वाऽऽह भो! मुणिवरिट!। पसिय मह कहसु किं ते करेमि मणइच्छियं कज्ज॥ ८॥ भणइ मुणी | उचियन्न भावन्नू दवखित्तकालन्नू। मं वंदावसु भद्दे ! सुमेरुसिहरट्टिए देवे॥९॥ देवी भणेइ एवं करेमि करसंपुढे ठवेऊण । नेउं || ॥३८६॥ For Private And Personal Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org a l Gyanmandit मथुराक्षपककथा S a n Aradhana Kendra Acharya Shri V श्रीदे सु मेरुसिहरे लहु वंदावेमि तं देवे ।। १० । आह मुणी जइ हुज्जिह थीसंघट्टो वयाइयारकरो। ता मज्झ धम्मसीले! अलमित्थ || चैत्यश्री मणोरहेणिमिणा ॥११॥ तो सविसेसं तुट्ठा कुबेरदत्ता बहि विणिम्मेइ। गयणयलमणुलिहंतं सुकिंकिणीजालकयसोहं ॥ १२ ॥ धर्म संघाचारविधौ । जिणवरसुपासअप्पडिमपडिमसमलंकियं अइविसालं । उत्ताणनयणघणपिच्छणिजतियमेहलाकलियं ॥१३ वरसव्वरयणमइयं सुमेरु॥३८७॥ नामंकियं महाथूभं । तं द? विम्हियमणो स मुणी वंदइ तहिं देवे ॥१४॥ तं धृभरयणमन्भुयभृयं दद्रुण मिच्छदिट्ठीवि । तइया हरिसुक्करिसा जाया जिणसासणे भत्ता ॥१५॥ इय तंमि थूभरयणे सुपासजिणकालसंभवंमि सया। सुरकिजमाणपिक्खणखणमि सुबहू गओ कालो ॥ १६ ॥ इत्थंतरंमि खवणो सुदंसणो नाम उग्गतवचरणो विहरइ वसुहावलए महुराखवगुत्ति सुपसिद्धो ॥१७॥ भवणे कुबेरदत्ताइ संठिओ सो कयाइ चउमासे । आयारमाइनिरओ दुकरतवचरणकिसियंगो ॥१८॥ तत्तिव्वतवाकंपियहियया सा देवया भणइ सुमुणिं ! । मह कहसु किंपि कज्ज जेणं तं लहु पसाहेमि ।। १९।। मुणिराह अणुचियन्न किं मह कज्ज असंजईइ तए ?। साऽऽह मए तुह कज्ज असंजईइवि धुवं होही॥२०॥ इय भणिउं अणुचियवयणसवणउप्पनमन्नुविवसमणा । देवी | गया सठाणं मुणीवि अन्नत्थ विहरित्था ॥२१॥ अह तत्थ निवसहाए थूभकए सेयबुद्धभिक्खूणं । जाओ महं विवाओ छम्मासे जाव नहु छिन्नो ॥२२॥ संघेण तओ भणियं को छित्तुमलं विवायमेयं तु । हुं हुं मथुराखवगो तत्थ इमो झत्ति आहूओ॥२३॥ तेण तवेणाकंपियहियया पत्ता कुबेरदत्ताऽऽह । किं ते करेमि कज्जं? स भणइ तं कजमाह इमा॥२४॥ किं तुह असंजईएऽवि इण्हि मए नणु पओयणं जायं। तो अणुतावा साहू से मिच्छादुक्कडं देइ ।।२५।। सा भणइ खवगपुंगव ! सेयपडागाइदंसणा धूभो । गोसे तहा | जइस्सं जह जिणइ इमो निययसंघो ॥ २६ ॥ इइ देवयाइ वयणं सोउं खवगो कहेइ संघस्स । संघोवि गंतु साहइ एवं रनो जह ॥३८७॥ N For Private And Personal Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandie श्रीदे० ॥ नारद! ।। २७॥ जइ अम्ह एस धूभो तो इह होही पए सियपडागा | अह भिक्खूणं तत्तो रत्ता इय सुणिय नरनाहो ॥ २८॥ मथुराक्षचैत्यश्री तं धूभं रक्खावइ समंतओ नियनरेहिं अह देवी। पवयणभत्ता घट्टइ थूभे गोसे सियपडागं ॥ २९ ॥ तं पिच्छवि अच्छरियं अतु- पककथा धर्म० संघा च्छहरिसो निवो पुरीलोओ। उक्किटिकलयलरवं कुणमाणो भणइ वयणमिणं ॥ ३०॥ जयउ जए सइ कालं एसो जिणनाहदेसिओ चारविधौ || | धम्मो। जयउ इमो जिणसंघो जयंतु जिणसासणे भत्ता ॥३१॥ दटुं सुदिढिसुरसुमरणे उच्छप्पणं पवयणस्स। थिरयरओ खवगो ॥३८॥ पालिऊण चरणं गओ सुगयं ॥ ३२ ॥ मथुराक्षपकचरित्रं श्रुत्वेत्यौचित्यचंचवो भव्याः। प्रवचनसमुन्नतिकरी सुदृष्टिसुरसंस्मृति कुरुथ ॥३३॥ इति मथुराक्षपककथा । अथ येऽधिकारा यत्प्रमाणेन भण्यंते तदसंमोहार्थं प्रकटयनाहनव अहिगारा इह ललियवित्थरावित्तिमाइअणुसारा। तिन्नि सुयपरंपरया बीयो दसमो इगारसमो॥ ३५ ॥ . इह द्वादशस्वधिकारेषु मध्ये नव अधिकाराः प्रथमतृतीयचतुर्थपंचमपष्ठसप्तमाष्टमनवमद्वादशस्वरूपा या ललितविस्तराख्या चैत्यवंदनामूलवृत्तिस्तस्या अनुसारेण-तत्र व्याख्यातसूत्रप्रामाण्येन, भण्यंत इति शेषः,तथा च तत्रोकं "एतास्तिस्रःस्तुतयो नियमे| नोच्यते, केचिच्चन्या अपि पठंति, न च तत्र नियम इति न च तद्व्याख्यानक्रिया, एवमेतत्पठित्वा उपचितपुण्यसंभारा उचितेषूपयोगफलमेतदिति ज्ञापनार्थ पठंति-वेयावच्चगराणमित्यादि", अत्र च एता इति सिद्धाणं वुद्धाणं १ जो देवाणऽवि२ इक्कोऽवि इति ३, अन्या अपीति उजितसेल १ चत्वारि अट्ठ २ तथा 'जे अ अईये'त्यादि ३, अत एवात्र बहुवचनं संभाव्यते, अन्यथा | द्विवचनं दद्यात् , 'पठंति सेसा जहिच्छाए' इत्यावश्यकचूर्णिणवचनादित्यर्थः, न च तत्र नियम इति न तद्व्याख्यानक्रियेति तु । भणतः श्रीहरिभद्रमरिपादा एवं ज्ञापयंति-यदत्र यदृच्छया भण्यते तन्न व्याख्यायते, यत्पुनर्नियमतो भणनीयं तद् व्याख्यायते, ||३८८॥ For Private And Personal Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Malain Aradhana Kendra तद्, व्याख्यातं च वेयावच्चगराणमित्यादिसूत्रं, तथा चोक्तं- "एवमेतत्पठित्वेत्यादि यावत्पठंति वेयावच्चगराणमित्यादि", ततश्च स्थितमेतत् - यदुत वेयावच्चगराणमित्यप्यधिकारोऽवश्यं भणनीय एव, अन्यथा व्याख्यानासंभवात्, यदि पुनरेषोऽपि वैयावृत्यकराधिकार उञ्जयंताद्यधिकारवत् कैश्चिद् भणनीयतया यादृच्छिकः स्यात्तदा उज्जितसेलेत्यादिगाथावदयमपि न व्याख्यायेत, व्याख्यातश्च नियमभणनीयसिद्धादिगाथाभिः सहायमनुविद्धसंबंधेनेत्यतोऽत्रुटितसंबंधायातत्वात् सिद्धाद्यधिकारवदनुस्यूत एव भणनीयः, अथ न प्रमाणं तत्र व्याख्यातसूत्रमिति चेत् एवं तर्हि हंत सकलचैत्यवंदनाक्रमाभावप्रसंगः, तत्रैवास्या एवं क्रमस्य दर्शितत्वात् तदन्यत्र तथा तद्व्याख्यानाभावात्, व्याख्यानेऽप्येतदनुसारित्वात् तस्य, पश्चात्कालप्रभवत्वात्, नव्यकरणस्य तु सुंदरस्यापि भवनिबंधनत्वात्, तत्रोक्तस्य तूपदेशायाततया स्वच्छंद कल्पितताऽभावादिति परिभावनीयं बह्वत्र माध्यस्थ्यमनसा, विमर्शनीयं सूक्ष्मधिया, विचिंतनीयं सिद्धांतरहस्यं, पर्युपासनीयाः श्रुतवृद्धाः प्रवर्तितव्यं असदाग्रहविरहेण, यतितव्यं निजशक्त्यानुकूल्यमिति । एवं द्वितीयदशमैकादशवर्जिताः शेषाः प्रथमाद्या द्वादशपर्यंता नव अधिकारा उपदेशायातललितविस्तराव्याख्यातसूत्रसिद्धा इति सिद्धं, आदिशब्दात् पाक्षिकसूत्रचूर्ण्यादिग्रहः, तत्र सूत्रं - 'देवसक्खिय'त्ति, अत्र चूणिः - विरइपडिवत्तिकाले चिइवंदणाइणोवयारेण अवस्सं जहासंनिहिया देवया संनिहाणंमि भवन्ति, अओ देवसक्खियं भणियति, अयमत्र भावार्थ:- तावद् गणधरैदर्थं पंचसाक्षिकं धर्मानुष्ठानं प्रतिपादितं, लोकेऽपि व्यवहारदाढर्थस्य तथा दर्शनात्, तत्र देवा अपि साक्षिण उक्ताः, ते च चैत्यवंदनाद्युपचारेणासन्नीभूता साक्षितां प्रतिपद्यंते, चैत्यवंदनामध्ये च तेषामुपचारः कायोत्सर्गस्तुतिदानादिः क्रियते, अन्यस्य तत्रासंभवादश्रुतत्वाच्च ततश्चैवमायातं यथा चैत्यवंदनामध्ये देवकायोत्सर्गादि करणीयमेव, अन्यथा तत्रान्यत्तदुपचाराभावे देव श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधो ॥ ३८९ ॥ comm, www.kobatirth.org For Private And Personal Acharya Shri Kailuri Gyanmandir सुरस्मरणसिद्धिः ॥३८९ ।। Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrinedin Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka l suri Gyanmandir श्रीदे० merpustulaingitims meanind चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥३९०॥ साक्षिकत्वासिद्धेः,चूर्णिकारेण तथैव व्याख्यातत्वानिश्चीयते,तच्चैतद् देवसक्खियंतिसूत्रप्रामाण्यात् ,एवमेव पूर्वापरविरोधाभावाद्, सुरस्मरणउक्तं च सूचकत्वं ललितविस्तरायामप्यस्य, तथा चोक्तं "व्याख्यातं सिद्धेभ्यः इत्यादि सूत्र"मिति, तथा इदमेव वचनं ज्ञापक- सिद्धिः मिति, वचनं सूत्रं च पर्यायौ, एवं च सूत्रसिद्धा अप्यते नव अधिकारा इति सिद्धं, ननु च ज्ञातं तावत् प्रथमतृतीयचतुर्थपंचमषष्ठसप्तमाष्टमनवमद्वादशेति नवाधिकारा एवं सिद्धांताद्यनुसारेण भण्यंते,परं भवद्भिर्बार अहिगारा इति प्राक् प्रतिज्ञातं ततः शेषाः कुतः प्रामाण्यात् पठयंते इत्याशंक्याह-'तिन्नि सुये त्यादि, त्रयोऽधिकाराः पुनः 'सुय'त्ति 'ते लुग्वे'ति पूर्वपदस्थवदुशब्दलोपात् ये बहुश्रुतास्तेषां पारंपर्येण-गीतार्थपूर्वाचार्यसंप्रदायेन भयंते,पारंपर्यागतस्यार्थस्य स्वमत्या निषेधयितुमशक्यत्वात् ,तनिषेधे नि|सवमार्गानुयायितापत्तेः, उक्तं च द्वितीयांगनियुक्तौ-आयरियपरंपरएण आगयं जो उ अप्पबुद्धीए । कोवेइ छेयवाई जमालिनासं स नासिहिइ॥१॥ति, अशठाचरित्वेन च आज्ञारूपत्वात् , तथापि निषेधे जिनाशातनाप्रसंगात् , तथा च कल्पभाष्य-आयरणाविहु आणा अविरुद्धा चेव होइ आणत्ति । इहरा तित्थयरासायणत्ति तल्लक्खणं चेय।।१।।मित्यादि, अथवा सुयपरंपरयत्ति यथा श्रुतस्य व्याख्यानं नियुक्तिस्ततोऽपि भाष्यचूादयः एवं श्रुतपारंपर्येग,अयमर्थः-यथा सूत्रे चैत्यवंदनातपः श्रुतस्तवं यावदुक्तं, नियुक्तौ तु सिद्धाण थुई य किइकम्मति श्रुतस्तवस्योपरि सिद्धस्तुतिर्भणिता, चूण्णौँ तु सिद्धस्तुतेरप्युपरि श्रीवीरस्तुतिद्वयं व्याख्याय भणितं-'जहा एए तिन्नि सिलोगा भन्नति,सेसा जहिच्छाए'त्ति,ततश्च यथा नियुक्त्यादिव्याख्याताः सिद्धादिगाथास्तिस्रो भण्यंते तथा उज्जयंताद्यपि भण्यते, चूर्णिणकारेणानिषिद्धत्वादिच्छाद्वारेणानुज्ञातत्वाच्च, तथाहि-सेसत्ति, अनेन उज्जयंतादिगाथास्तिस्रो प्रतिपादिताः, असतो भणनाभावात् , जहिच्छाए इत्यनेन तु वंदनकरणेच्छावतां उज्जितादिगाथामणने स्वाभिमतत्वं द.|| ॥३९०॥ y naminlalmmaNaIA For Private And Personal Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kal a uri Gyanmandir . श्रीदे० र्शयति, अनभिमतस्येच्छायोगाभावात् , येषां हि उज्जयंतादिवंदितुमिच्छातिशयस्ते भणंतु नाम उज्जयंतादिगाथाः, नात्र दोषो, । अधिकारं चैत्यश्री- जिनबहुमानतया कर्मक्षयहेतुत्वात् तत्प्रवृत्तेरित्यर्थः, अथ के ते त्रयोऽधिकारा एवं श्रुतपारंपर्येण भण्यते इल्याह-'बीओ' इत्यादि, प्रामाण्यम् धर्म० संघा-|| द्वितीयो 'जे अ अईये' त्यादिरूपः दशमः 'उज्जिते'त्यादिलक्षणः एकादशः 'चत्तारी'त्यादिस्वरूपः, एते त्रयः इत्यर्थः।। अमुमेवार्थ चारविधी भाष्यकृत् स्पष्टयन्नाह॥३९१॥ आवस्सयचुण्णीए जं भणियं सेसया जहिच्छाए। तेणं उर्जिताइवि अहिगारा सुयमया चेव ॥४९॥ आवश्यकचूण्णौ प्रतिक्रमणाध्ययने यद्-यस्माद् भणितमिदं, तद् भणितमेव दर्शयति-सेसया जहिच्छाए,भण्णंतीति प्रकृतं, शेषाः-सिद्धाणं १ जो देवाणवि २ एक्कोऽवीति ३ गाथाभ्यो अन्या गाथा उज्जितसेलेत्यादिका यहच्छया, अयमर्थः-यस्य भावनातिशयतो नेमिनाथादि वंदितुं वांछा वर्तते स भणतु नामैतां गाथां, न दोषः, संवेगादिकारणत्वेन दर्शनविशुद्धिहेतुत्वात् , तस्याश्च मोक्षांगतया कर्त्तव्यत्वात् , मोक्षस्य चाक्षेपेण प्राप्तुपिष्टत्वात् , तदर्थमेव च सकलधर्मानुष्ठानप्रवृत्तेः, यतश्चैवं शेषा गाथा चूणिकृता भणितास्तेन कारणेनेदं निश्चीयते यदुत पूर्वोक्ता नवाधिकारास्तावत् सूत्रसिद्धा एव,येऽपि चोजंतादयोऽधिकारास्तेऽपि श्रुते-चूादिरूपे श्रुतविवरणे पदेऽपि पदसमुदायोपचारात् मता एव अभिमता एव, अनभिमते सतां प्रवर्त्तयितुं योगाभावाद इच्छायां भणितत्वात् , अन्यथाऽनाप्तत्वप्रसंगात् , अनिषिद्धत्वात् ॥३८॥ आह-उजिताइवित्यत्रादिशब्देन चत्तारीत्येकादश एवा|धिकारोऽनुमीयते क्रमानुविद्धत्वात् न पुनर्द्वितीयः, तस्यान्यत्र पाठाद् , अतः स कथं भण्यते इत्याशंक्याहबीओ सुयत्थयाइइ अत्थओ वण्णिओ तहिं चेव । सक्कथयंते पढिओ पुवायरिएहिं पयडत्थो ॥५०॥ WEL॥३९॥ MilaoMIRAHIMAANTIRE BANIPRITHORATHITS INSPATHIMIRIANDEIHARILAL For Private And Personal Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mang Lain Aradhana Kendra www.kobatirh.org Acharya Shri K r suri Gyanmandie अधिकार प्रामाण्यम् श्रीदे चैत्य श्रीधर्म० संघाचारविधी ॥३९२॥ न केवलं दसमैकादशावधिकारौ चूर्णिकारभणितत्वात् भण्येते,किंतु द्वितीयोऽपीत्यपिगम्यः,जे य अईयेत्यादिलक्षणोऽप्यधि- कारः श्रुतस्तवस्य चतुर्थदंडकस्य आदौ पुक्खरवरदीतिगाथायां अर्थतो-अर्थमाश्रित्य वणितो-व्यावणितस्तत्रैव-आवश्यकचू वेव, अयमत्र भावार्थः-द्वितीयाधिकारार्थो द्रव्याहवंदना, सा च तत्र भणिता, तथाहि-उक्कोसपएणं सत्तरं तित्थयरसयं जहण्णपएण वीसं तित्थयरा, एए ताव एगकालेणं भवंति, अईया अणागया अणंता ते तित्थयरे नमसामित्ति एवं चूणिव्याख्या| तार्थस्वरूपत्वेन चूर्युक्त एवायमपीति भण्यते, ननु यद्येवं चूर्युक्तार्थतयाऽयं मण्यते तर्हि तत्रैव भण्यता, किमन्यत्र पाठेनेत्याह| शक्रस्तवांते-प्रणिपातदंडकानंतरं पठितो-भणितः पूर्वाचा:-पूर्वैरनुयोगकृद्भिः, शक्रस्तवांतेऽस्य स्थानात् , भावार्हवंदनानंतरं द्रव्याहवंदनायाः क्रमप्राप्तत्वात् , प्रथमाधिकारेऽपि नवमसंपदि किंचित्तभणनात् ,अस्य तु तद्विस्तरार्थत्वाद् , इत्थमेव च बहुभव्योपकारदर्शनात् भावप्राधान्याश्रयेण च पश्चानुपूर्ध्या चैत्यवंदनायाः प्रारंभात् , तस्या अप्यागमेऽनुज्ञातत्वात् , श्रुतस्तवादौ त्वस्य पाठेऽनानुपूर्व्या अप्यसंभवात् तन्मध्यपाठेऽपि व्यत्यानेडितदोषप्रसंगात् , शक्रस्तांतभणने तु दोषासंभवात् , दंडकांतेन्न्यस्यापि | स्तुतिस्तवादेर्भणनादित्येवं निर्दोपत्वेन पूर्ववृद्धैः शक्रस्तवांते अयं पठितस्तथैव भण्यते, वृद्धाचरितस्य जीतव्यवहाररूपत्वात् ,उक्तं च-"जीयंति वा करणिज्जत्ति वा आयरणिज्जंति वा एगट्ठा" तथा "वत्तणुवत्तपवत्तो बहुसो जासेविओ महाणेण । एसो य जीयकप्पो पंचमओ होइ ववहारो ॥१॥ वत्तो नाम इक्कसि अणुवत्तो जो पुणोवि बियवारं । तइयट्ठाण पवत्तो मुपरिग्गहिओ महाणेण||त्ति, वृत्त एकदा नवो जातः पात्रबंधग्रंथ्यादिवदित्यादि, तथा, प्रकटोऽर्थः-सुगमार्थः, कृत इति शेषः,बालादिनाऽप्येवं शुभभाववृद्धः, चूर्युक्तमर्थ हि केचदेव जानते, एवं तु पाठे मंदमतीनामपि भवति यथा वयं त्रिकालभाविनो जिनानधुना वंदामहे, For Private And Personal Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri bin Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka b uri Gyanmandir श्रीदे० । आचरणाघिकार: चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ | ॥३९३॥ ततश्च सुलभ एव शुभभाववृद्धिः, बोधनिमित्तत्वात्तस्य इत्यलं प्रसंगेन ।। ३७ ।। एवं च द्वादशाधिकारस्वरूपं निरुप्य तद्भणने तात्पयार्थ प्ररुपयमाह असढाइन्नष्णवलं गीयत्वअधारियंति मज्झत्था । आयरणाविहु आणत्तिवयणओ सुबहु मन्नंति॥ ५१ ।। - अशठेन-निर्मायेन, एतेन चास्याविप्रतारकत्वमाह, आ इति मर्यादया सूत्रोक्तया गुरुलाघवचिंतयेत्यर्थः, अनेन चाचीर्णकर्तुः प्रमाणत्वं दर्शयति, अगीतार्थस्य प्रमाणत्वायोगात् , आचरितस्य तु सूत्रानुसारित्वं गुरुलाघवचिंतया कृतस्य सूत्रेण सहपूर्वापरविरोभावान , चीण-चरितं देशकालाद्यपेक्षया गुणाधायित्वेन बहुभव्योपकारीतिकृत्वा अशठाचीणं, तथा अनवयं-निर्दोषं जिनस्तुत्यादिरूपतया कर्मक्षयहेतुत्वात् , तथा गीताथैः-तदन्यैस्तत्कालवर्तिभिर्न निवारितं, शोभनत्वादेव, दर्शनादिविशोधकत्वाद् । जिनस्तुत्यादेः इति एवं यत् बहुबहुश्रुतसंविग्नपूर्वाचार्यसंमतमित्यर्थः, तत् सुबहु मन्यते इति गाथांते संबंधः, के इत्याह-मध्यस्थः कुग्रहकलंकाकलुषितचेतोवृत्तित्वेन रागाद्यस्पृष्टाः, उक्तं च-"जो नवि वढइ रागे नवि दोये दुण्ह मज्झयारंमि । सो हवई मज्झत्थो सेसा सव्वे अमज्झत्था॥१॥"ति, अन्यथा धर्मानहत्वाद् , आह-"रत्तो दुट्ठो मूढो पुट्विं वुग्गाहिओ य चत्वारि । एए धम्मश्रणरिहा अरिहो पुण होइ मज्झत्थो।।१॥"ति, आचरणापीति, न केवलं सूत्रोक्तमेवाज्ञा, किंतु आचरणापि संविग्नगीतार्थाचरितमपि आज्ञैव हुरेवार्थे, सूत्रोपदेश एव, आतीर्थानुवर्तिजीताख्यपंचमव्यवहाररूपत्वात् , आह च-"बहुसुयकमाणुपत्ता आयरणा धरइ सुत्तविरहेऽवि । विज्झाएऽवि पईवे नजइ दिटुं सुदिट्ठीहिं ॥१॥ जीवियपुव्वं जीवइ जीविस्सइ जेण धंमियजणम्मि । जीयंति तेण भन्नइ आयरणा समयकुसलेहिं ॥२॥ तम्हा अनायमूला हिंसारहिया सुझाणजणणी य । सूरिपरंपरचा सुत्तं व पमाणमायरणा ॥३॥ HuriHNASHISHIRIDHHTHHITARAI ॥३९३॥ |mmdi For Private And Personal Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mb Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalahari Gyanmandie स्तुति चतुष्कम् श्रीदे० इत्येवं यद् वचनं-सूत्रं तथा कल्पनियुक्तिः-आयरणाविहु आणा अविरुद्धा चेव होइ आणत्ति । इहरा तित्थयरासायणत्ति तल्लक्खणं चैत्यश्री- चेयं ॥१॥ असढेण समाइण्णं जं कत्थइ केणई असावजं । न निवारियमन्नेहिं बहुमणुमयमेवमाइण्ण।।२॥न्ति, तस्मात्तद्वचनप्रामाण्यात् || धर्म० संघा-N | सुष्टु-यथातथ्यस्य प्ररूपणाधतिशयेन 'बहुमानो मानसी प्रोति'रिति वचनात् , यत उक्तं-"अवलंबिऊण कजं जं किंचिवि आय-| चारविधौ रंति गीयत्था। थोवावराहबहुगुण सव्वेसिं तं पमाण।।१॥"ति, यतः-"संविग्गा विहिरसिया गीयत्थतमा सूरिणो पुरिमा । न य ते ॥३९४॥ सुत्तविरुद्ध सामायारिं परूविंति ॥२॥ अविय-जं बहुखायं दीसइ न य दीसइ कहवि भासियं सुत्ते । पडिसेहोवि न दीसह मोणं चिय तत्थ गीयाणं ॥३॥" मित्यादि ॥ सांप्रतं चउरो थुइत्ति षोडशं द्वारं विवृण्वन्नाह अहिगयजिणपढमथुई बीया सव्वाण तइय नाणस्स। वेयावच्चगराणं उवओगत्थं चउत्थथुई ॥५२॥ यस्य मूलबिंबादेः पुरतश्चैत्यवंदना कर्तुमारभ्यतेऽसावधिकृतजिन उच्यते तमाश्रित्य प्रथमा स्तुतिर्दातव्या, तन्नामादिगर्भा | सामान्येन जिनगुणोत्कीर्तनरूपा वेत्यर्थः, उक्तं च ललितविस्तरायां-"अत्रेवं वृद्धा वदंति-यत्र किलायतनादौ वंदनं चिकीर्षित || | तत्र यस्य भगवतः संनिहित स्थापनारूपं तं पुरस्कृत्य प्रथमः कायोत्सर्गः स्तुतिश्च,तथा शोभनभावजनकत्वेन तस्यैवोपकारित्वा"दिति१, तथा द्वितीया स्तुतिः सर्वेषां जिनानां, प्रायो बहुवचनादिगर्भा सर्वजिनसाधारणेत्यर्थः, अन्यथाऽन्यकायोत्सर्गेऽन्या स्तुतिरिति न सम्यग् , अतिप्रसंगादिति, तथा तृतीया स्तुतिमा॑नस्य श्रुतज्ञानमाहात्म्यवर्णनपरेत्याम्नायः,तथा च ललितविस्तरा"ऐतिद्यमेतदिति वृत्तिः, पंजिकायां-संप्रदायश्चायं यदुत तृतीया स्तुतिः श्रुतस्ये"ति३,चतुर्थी स्तुतिः पुनर्वैयावृत्त्यकराणां-यक्षांवाप्रभृतीनां सम्यग्रष्टिदेवतानां, किमर्थमित्याह-उपयोगार्थ-स्वकृत्येषु तेषां सावधानतानिमित्तं, भवति च गुणोपबृंहणतस्तद्भाव Dom ABPimun ॥३९४|| For Private And Personal Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shrinla i n Aradhana Kendra u ri Gyanmandir श्रीदे. स्तुतिचतुष्कम् चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥३९५॥ meinmmmiss mandirliammmmmyamsimiamgam www.kebatirth.org Acharya Shri Ka वृद्धिः, ततश्च स्वकार्यकारित्वोपयुक्तता, जगत्प्रसिद्धमेतत् यत्प्रशंसातः सोत्साहं कार्यकरणादर इति, तुशब्दो विशेषकस्तेन याः श्रुताङ्गीशासनदेवतादिविषयाः स्तुतयस्ताः सर्वा अपि चतुर्थस्तुतौ निपतंति, गुणोपबृंहणद्वारेण तासामप्युपयुक्ततादिफलत्वात् , स्तुतियुगलेषु तथानिबंधनात् , गुणोत्कीर्तनस्य द्वितीयस्तुतिरूपत्वात् , तथाहि -जिनज्ञानस्तुतिवंदनाद्यात्मकत्वादेका गण्यते, वैयावृत्यकरादिस्तुतयस्तु द्वितीया गुणोत्कीर्तनादिरूपत्वाद् ,एवमेव युगलत्वसिद्धेः, भावितं चैतत् पंचमे वंदनाद्वारे, अत एव क्वचित् युगले चतुर्था स्तुतिः 'सर्वे यक्षांविके' त्यादि वैयावृत्त्यकराणां, कापि च भूयासुः सर्वदा देवा देवीमि रिति सामान्यतः सर्वदेवतानां, कुत्रापि 'गौरी सैरेभेति विद्यादेवतानां, अन्यत्र 'निष्पंकव्योमनीले'ति देवविशेषविपया 'एकत्र विकटदशने ति देव्या एव, कुत्रचिच्च 'आमूलालोलधूली'त्यादि श्रुतदेवतायाः, इत्यादि परिभावनीयमिदं सूक्ष्मधिया कुग्रहविरहेण । कायोत्सर्गविषयेऽपि बहु विमर्शनीयं यतो दैवसिकावश्यकमध्ये सामान्यतो वैयावृत्त्यकरान् विमुच्य केवलश्रुतदेवतादेः कायोत्सर्गकरणं, पाक्षिकादौ तु भुवनदेव्याः, दीक्षादौ तु शासनदेव्यादीनामपि, इत्यलं प्रसंघेन, तचं तु परमर्पयो विदंतीति । स्तुतयश्चैता:-जिनं यशःप्रतापास्तपुष्पदंतं समंततः। संस्तुवे यत्क्रमौ मोहपुष्पदंतं समंततः॥१॥ प्रातस्तेऽहिद्वयी येन, सरोजास्य समानता । त्वयाऽस्तु जिनधः | जिसरोजास्य समानता ॥२। वंदे देव! च्युतोत्पत्तिवतकेवलनिर्वृतिम् । विश्वाचिंतच्युतोत्पतिव्रतकेवलनिर्वृतिम् ॥३॥चतुरास्यं चतुष्कार्य, चतुर्धावृषसेवितम् । प्रणमामि जिनाधीशं,चतुर्धावृषसेऽवितम् ॥४॥ जिनेन्द्रानंजनश्यामाकल्याणाजहिमप्रभान् । चतुविंशतिमानौम्यकल्याणाजहिमप्रभान् ॥५॥ विलोक्य विकचांभोजकाननं नाभिनंदनम् । द्रष्टुमुत्कायते कोऽपि,काननं नाभिनंदनम् ॥३॥ तवानीश! सदा वश्याजितनिष्क्कोप नाथति । अहितो न हि तं स्वाभाजितनिष्कोऽपनाथति ॥७।। सदातनाय सेनांगभव- MamS WINNING ॥३९५।। H TRITIES For Private And Personal Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Melee in Aradhana Kendra wew.kcbatirth.org Acharya Shri Kantri Gyanmande AAAAAA स्तुतयः श्रीदे चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥३९६॥ HamIIIANP A संभव संभव ! । भगवन् भविकानामभव शंभवसंभव ॥८॥ दुष्कृतं मे मनोहंसमानसस्याभिनंदन !! श्रीसंवरधराधीशमानसस्यामिनंदनः॥९|| अज्ञानतिमिरध्वंसे,सुमते! सुमतेन ते । क्रियते न नमः केनसुमते ! सुमतेन ॥१॥ त्वां नमस्यंति येऽकस्थपद्म पद्मप्रभेश! ते। त्रैलोक्यमनोहारिपद्मपद्मप्रभेशते ॥११॥ सद्भक्या यः सदा स्तौति,सुपार्श्वमपुनर्भवम् । सोऽस्तजातिमृतिर्याति,सुपार्श्वमपुनर्भवम् | | ॥१२॥ सहर्ष ये सभीवंते, मुखं चंद्रप्रभांग ! ते । विदुः सकलसौख्यानां, मुखं चंद्रप्रभांगते ! ॥१३॥ सदा स्वपादसलीनं, सुविधे।। सुविधेहितम् । येन ते दर्शनं देव !, सुविधे! सुविधेहितम् ॥१४॥ यथा त्वं शीतलस्वामिन् !, सोमः सोममनोहरः। भव्यानां न तथा भाति, सोमः सोममनोहरः ॥१५॥ तं वृणोति स्वयंभूष्णु, श्रेयांसं बहुमा नतः। जिनेशं नौति यो नित्य, श्रेयांसं बहुमानतः ॥१६॥ वाक्यं यस्तव शुश्राव, वासुपूज्य ! सनातनम् । भवे कुर्यातमोदाववाः सुपूज्य ! सनातनम् ॥ १७ ॥ कस्य प्रमोदमन्पत्र, विमलात् परमात्मनः। हृदयं भजते देवाद् , विमलात् परमात्मनः ॥१८॥ दृष्ट्वा त्वाऽनंतजिद् भावपराजितमनो भवम् । भविनां नाथ ! नामैत्यपराजितमनोभवम् ।।१९।। श्रीधर्मेण क्षमारामप्रकृष्टतरवारिणा। सनाथोऽसि तृपावल्लीप्रकृष्टतरवारिणा ॥२०॥ त्वया द्वेधाऽरिवर्गो यत्पदौ श्रीशांति नाथ ! ते। शरणं तद् भवध्वस्तापदी श्रीशांतिनाथ! ते ॥२१॥ वीतरागं स्तुवे कुंथु, जिनं शंभुं स्वयंभुवम् । सरागत्वात् पुनर्नान्यं, जिनं शंभुं स्वयंभुवम् ॥२२॥ विजिग्ये लीलया येन, प्रद्युम्नो भवताऽदरः। भविनां भवनाशाय, | प्रद्युम्नो भवतादरः ॥२३॥ यः स्यात् मल्ले नमल्लेखो, मल्लस्य प्रतिमल्ल! ते । क्रमो मनसि यो देहमल्लस्य प्रतिमल्लते ॥२४॥ विधत्ते सर्वदा यत्ते, समुद्(सुव्रतसमुन्नतिम् । समासादयते स्वामिन् !,समुद्(सु)वतसमुन्नतिम् ॥२५।। दृष्ट्वा समवसृत्यंत मीशं चतुराननम् । पश्येत् कोऽजितखं धीमानमीशं चतुराननम् ॥२६॥ श्रीनेमिनाथमानौमि,समुद्रविजयांगजम् । हेलानिर्जितसंप्राप्तसमद्रविजयांगजम् ( nushRITAMIBHARASINIRAHISAPallamma NIRUPAINIK RAILER ॥३९६॥ For Private And Personal Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka b uri Gyanmandir श्रीदें. चैत्यश्री स्तुतयः धर्म० संघाचारविधौ ॥३९७॥ S शिवार्थी सेवते ते श्रीपार्श्व! नालीककोमलौ । न क्रमावनिशं नम्रपार्श्व! नालीककोऽमलौ ? ॥२८॥ वरिवस्थति यः श्रीमन्महावीर महोदयम् । सोऽश्नुते जितसंमोहमहावीरं महोदयम् ॥ २९॥ श्रीसीमंधरतीर्थेशं, सादरं नुतनिर्जरम् । योऽज्ञानं भिन्ते भससादरं नुतनिर्जरम् । ३०॥ ये वंदंतेऽहतो भारतैरावतविदेहकान् । प्राप्यते प्रवरोदो, तै रा बत विदेहकान् ।।३१।। सप्ततिशतं जिनानामुत्कृष्टपदवर्तिनाम् । वंदे मनुष्यलोकेऽहमुत्कृष्टपदवर्तिनाम् ॥ ३२॥ श्रीमन्नंदीश्वरद्वीपेऽप्रतिमाः प्रणुताच्युताः। द्विपंचाशति चैत्येषु, प्रतिमाः प्रणुताच्युताः! ॥ ३३ ॥ यद्यात्मनिच्छसि स्थानमकृत्रिममकृत्रिमम् । जैनबिंबव तन्वोमकृत्रिममकृत्रिमम् ॥३४॥ ये जिनेंद्रान्नमस्यन्ति, सांप्रतातीतभाविनः । दुष्कृताते विमुच्यते, सांप्रतातीतभाविनः ॥३५|| परात्मानो जिनेंद्रा यैर्नीयंतेऽमा न संप्रति । पदं यान्ति जगन्माननीयं तेऽमानसं प्रति ॥३६ ।। सोऽस्तु मोक्षाय मे जैनो, नयसंगत आगमः ! अपि यं बुध्यते विद्वानयसंगत आगमः।।३७॥ त्वन्नामाज्ञानभिद्धर्म कीर्तये श्रुतदेवते । यन्न कोऽपि त्वदने स्वकीये श्रुतदेवते ॥३८॥ यक्षांबाद्याः सुराः सर्वे, वैयावृत्यकरा जिने । भद्रं कुर्वन्तु संघाय, वैयावृत्त्यकराजिने ॥ ३९ ॥-अभिवंद्य वंदनीयान् निःशेषान् भक्तितः समासेन । स्वोपज्ञसुषमयमकस्तुतिविषमपदानि विवृणोमि ॥११॥ तत्रादौ सामान्येन जिनानां सिद्धानां च स्तुतिमाह-'जिनं यश' इत्यादि, जिनं जितरागाद्यारं अर्हद्भट्ठारकं सामान्येन पुंडरीकादिसिद्धं वा यशसा प्रपापेन चास्तौ-तिरस्कृतौ पुष्पदंतौशशिभास्करौ येन तं, समं-सश्रीकं,ततस्तं, 'आद्यादिभ्य' इति द्वितीयार्थे तस्, पुष्पदंतं-कुसुमरदनं समंतत-सम्यग् मोहं बनीत । सिद्धार्हत्साधारणां प्राभातिकस्तुतिमाह-'प्रातस्तेऽही'त्यादि,सह मया-श्रिया या सा समा अज!-अजन्मन् ॥ कल्याणकैः स्तौति| 'वंदे देव'मित्यादि,च्युतोत्पत्तिः-गतजन्मा व्रतस्य कं-सुखं तस्य ई-श्रीर्यस्य स व्रतके बला-पुण्या निवृत्तिर्यस्य सः व्रतकश्रिया ARASHIAPARITAB ॥३९७॥ For Private And Personal Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mohain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalah Gyanmandir स्तुतयः श्रीदे० चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ | ॥३९८॥ बलनिवृत्तिर्यस्य सः, ततो द्वंद्वः, च्युतं-च्यवनं । समवसरणस्थं स्तौति-'चतुरास्यमित्यादि,चतुष्प्रकारैर्वृषभैः-इंद्रैः सेवितं,देवानां | चतुर्विधत्वेन तत्स्वामिनामपि चातुर्विध्यमुक्तं, यद्वा देवानां वृषाणः-इंद्राः वृषाणः 'ते लुग्वे ति देवपदलोपः, चतुर्विधो धर्मो यस्य सः,सहेया-श्रिया यः स से अवितः-कांतिमान् , ततो द्वंद्वः।। अष्टापदस्तुतिमाह-'जिनेंद्राणां जिने'त्यादि,श्यामा-प्रियंगुः कल्याणं-स्वर्ण अन्ज-तोत्पलमत्र गाह्यं अकल्याणं-अशिवं हिमप्रभः-चंद्रः। प्रत्येकं चतुर्विंशतिं जिनान् स्तौति-"विलोक्य विकलचांभोज'मित्यादि,विकचं-श्रमणभावेन लुंचितकेशं यद्वा विकचं-विकसितं अंभोज-पद्यं तद्वत् कनति-शोभते यत्तदंभोज. ततोबहुव्रीहिः,उत्कायते-उत्सुको भवति॥'तवानीशे'त्यादि,नाथति-नाथ इवाचरति योगक्षेमकारी भवति अहितो-वैरी स्वाभयास्वदेहप्रभया जितं निष्कचूर्ण येन,अपनाथति-पीडयति । 'सनातनाये'त्यादि, सनातनाय-शाश्वताय शश्वत्सुखाय अभव-असंसार शंभो असंभव-अजन्मन् ।। 'दुष्कृत'मित्यादि,स्य-छिद्धि। 'अज्ञानतिमिरध्वंसे'त्यादि,शुद्धमते-शासनमते इनते-इनवत् आदित्यवचरतीति इनत् तस्मै, असुमता-प्राणिना इन-स्वामिन् ते-तुभ्यं । 'त्वां नमस्यंती'त्यादि,मनोहारिणी प्रभा यस्य पद्मवत् प्रभारुचिर्यस्यारुणेत्यर्थः ईशते-नाथीभवंति । 'सद्भक्त्या य' इत्यादि, शोभने पार्थे यस्य, न पुनर्भवः संसारस्य जन्म वा यस्य, | अस्ते जन्ममरणे अपुनर्भवं-मोक्षं । 'सहर्षा' इत्यादि,अंगेति कोमलामंत्रणे हे तव मुख-उपायं चारित्राद्यात्मकं तन्मूलत्वात् स्व र्गापवर्गादिसौख्यानां चंद्रप्रभावत् निर्मलं अंगं यस्य, ते भव्याः। 'सदा स्वपादे त्यादि, शोभनविधे सुष्टु विधया-सुप्रकारेण | ईहितं-वांछितं चेष्टितं वा क्रियाद्वारेण समाचरति । 'यथा त्व'मित्यादि, सोमः-शीतलः, सह उमया-कीर्त्या सोमः अहसहृतवान् सोमो-रौद्रः सोमो-गौरीयुतः। 'तं वृणोती'त्यादि, स्वयंभुष्णु-अप्रार्थितमपि स्वयंभवनशीलं श्रेयो-भद्रं यस्य तं, बहु ॥३९८॥ For Private And Personal Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shit in Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Sheikh Gyanmandie स्तुतयः श्रीदे. चैत्य श्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥३९९॥ अत्यर्थ मा-लक्ष्मीः नतो-नम्रः आंतरप्रीतितः। 'वाक्यं यस्त'त्यादि,वाः-पानीयं अनंत-अगमनं । 'कस्य प्रमोदे'त्यादि,विमलात्-निर्मलात् परं-प्रकृष्टं त्वात्मनः। 'दृष्ट्वा त्वनंते'त्यादि,भावपरैः-आंतरवैरिमिः,भवं-हरं अपराजितमनोभवं । 'श्रीधर्मेणेत्यादि, प्रकृष्टेन प्रकर्षणाविनाशिना इत्यर्थः, तरवारिः-खड्गविशेषः। त्वया द्वेधारी'त्यादि,वेधा बाह्यश्चांतरश्च आंति-बबंध नाथतेआशास्ते ते-तव । वीतराग'मित्यादि,जिनं-कृष्णं शंभु-शिवं स्वयंभुवं-बह्माणं । 'विजिग्ये लीलये'त्यादि,प्रद्युम्न:-कामः अदर| निर्भय प्रयुक्तं द्युम्नं-द्रव्यं येन स त्वं भवतात्-भव अरजिन । 'स स्यान्मल्ले त्यादि,नमंतो-नमनशीला लेखा-देवा यस्य सः 'मदैच् हर्षे' मदनं मत् 'क्रुत्संपदादिभ्यः' किए मद-हर्ष लाति-ददाति 'क्वचिहः' मल्लः हर्ष इत्यर्थः, यद्वा मल्लस्य अहंकारभाववक्तव्यं प्रति मल्लते-धारयति ते-तव । 'विधत्ते' इत्यादि, सह शोभनैर्ऋतैयः स समुत्-सहर्षः। 'दृष्ट्वा समवे'त्यादि, नमीशं-नमिनाथं जितखं-जितेंद्रियं अजितखं-अजितेंद्रियं अविभुं ईशं-हरं चतुराननं-प्रजापतिं । 'श्रीनेमिनाथ मित्यादि,संप्राप्त आसमुद्रं विजयो येन अंगजेन स हेलया निर्जितो येन नमिना । 'शिवार्थी त्यादि,नालीकं-पञ नम्रः पार्थो यक्षो यस्य,नालीक:-असत्यरहितः अमलौनिर्मलौ । 'वरिवस्यती'त्यादि, महानुदयो यस्य तं अश्नुते-प्रामोति महोदयं-निर्वाणं । 'ये जिनेन्द्रा'नित्यादि, सुगमा (३५) 'येवंदंते' इत्यादि,भरतैरावतविदेहेषु वा कनंति-शोभंते 'क्वचिड्डः' प्रवरोदर्का-शुभायतिफला पुण्यानुबंधिपुण्यफलेत्यर्थः,रा-लक्ष्मीः वतेत्यामंत्रणे। 'सप्ततिशत'मित्यादि,उत्कृष्टपदवर्तिनः-सर्वोत्कर्षतो युगपदेककालभाविनः उत्कृष्टपदे। 'श्रीमन्नंदीश्वरे'त्यादि, प्रणुताच्युताः-नतेन्द्राः अप्रतिमाः-प्रधानाः प्रणुत-स्तुत अच्युत-शाश्वत । 'यद्यात्मनिच्छसी'त्यादि,अकृत्रिमं-कौटिल्यादिरहितं प्रशस्तभावमित्यर्थः तनु-'असर्वभावेन यदृच्छया वापरानुवृत्या चिकित्सया चे'त्यादिनेतियावत् भज-सेवस्वेत्युक्तं भवति । PARAN ॥३९९॥ For Private And Personal Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri N upin Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashgapuri Gyanmandir श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधौ | ॥४००|| 'श्रीसीमंधरेत्यादि, नतनिर्जर-प्रणतसुरं। 'परात्मानो जिनेंद्रा' इत्यादि, परात्मानः-परमात्मस्वरूपाः ते भव्याः अमा-10 उत्सर्गनिःधिका न संपत्यपि,अपिगम्यः,यद्वा अमाना-अपरिमिता सा-श्रीः यत्र तदमानसं पदं तत्प्रति यांति । 'सोऽस्तु मोक्षाय' |निमित्ताः इत्यादि,नयैः-नैगमादिभिः संगतः-संमतः समंतादनुगताः आ-समंतात् गमाः-सदृशपाठा यत्र स आगमः, विद्वानपि-सुधीरपि अयः-शुभावहं दैवं तस्य संगात्-संयोगात् । 'त्वन्नामा' इत्यादि, अज्ञानभिद्धर्म-अज्ञानभेदभावं कीर्तये-समुत्कीर्तयंतं प्रयुंजे ग्राहयामीतियावत् यं पुरुष हे श्रुतदे अबते! भेदवदनो न कोऽपीति योगः स्वकीर्तये-निजस्फूर्तये । 'यक्षांबाद्या' इत्यादि, वै स्फुटं यद्यत्प्रकारादयः ।। उक्तं 'चउरो थुइ'त्ति पोडशं द्वारं, अधुना निमित्तमिति सप्तदशं द्वारं विवृण्वन्नाहपावखवणत्थ इरियाइ वंदणवत्तियाइ छ निमित्ता। पवयणसुरसरणत्थं उस्सग्गो इय निमित्तष्ठ ॥४२॥ पापानां-गमनागमनादिसमुत्थानां क्षपणार्थ-निर्घातनार्थमीर्यापथिक्याः कायोत्सर्ग इति योगः, यदागमः-“गमणागमणविहारे सुत्ते वा सुमिणदंसणे राओ । नावानइसंतारे इरिवहियाएँ पडिकमणं ॥१॥" गमनागमनादिसमुत्थपापक्षयरूपं फलमीर्यापथिकाकायोत्सर्गाद्भवति इति, तथा वंदनप्रत्ययादीनि षट् निमित्तानि-फलानि येभ्यस्तु, तथा त्रय उत्सर्गा इति शेषः, वंदन१पूजन२ सत्कार३ सन्मान४ बोधिलाभर निरुपसर्गे६ति पट् फलानि चैत्यवंदनादिकायोत्सर्गेभ्यः, तत्र-सुमरणथुइनमणाई सुभमणवइतणुपवित्ति बंदणयं ११ पुष्फाईहिं पूयणर मिह वत्थाईहिं सकारो३ ॥ १॥ संमाणो मणपीईइ विणयपडिवत्ति४ बोहिलाभो उ। पेचजिणधम्मसंपत्ति५ निरुवसग्गो उ निव्वाण६ ॥२॥ अरिहाइवंदणाइसुजं पुनफलं हवेउ त मज्झ । उस्सग्गाउथिय तप्फलेहि | बोही तओवि सिवो ॥३॥ तथा प्रवचनसुराः-सम्यग्दृष्टयो देवास्तेषां सरणार्थ-वैयावृत्त्यकरेत्यादिविशेषणद्वारेणोपबृंहणार्थ ॥४००|| For Private And Personal Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदे० चेत्य०श्री धर्म० संघा - चारविधौ 1180811 www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila क्षुद्रोपद्रवविद्रावणादिकृते तत्तद्गुणप्रशंसया प्रोत्साहनार्थमित्यर्थः यद्वा तत्कर्त्तव्यानां वैयावृत्यादीनां प्रमादादिना श्लथीभूतानां प्रवृत्यर्थं अश्लथीभूतानां तु स्थैर्याय च स्मारणा-ज्ञापना तदर्थं, सारणार्थं वा- प्रवचनप्रभावनादौ हितकार्ये प्रेरणार्थ, किं १ - उत्सर्गःकायोत्सर्गः, चरम इति शेषः, इत्येतानि निमित्तानि - प्रयोजनानि फलानीतियावद्, अष्टौ चैत्यवंदनायां भवतीति शेषः । इह च यद्यपि वैयावृत्यकरादयः स्वीयस्मरणार्थं क्रियमाणं कायोत्सर्ग न जानते तथापि तद्विषयकायोत्सर्गात् कर्तुः श्रीगुप्तश्रेष्ठिन इव विघ्नोपशमादिषु श्रुतसिद्धत्वेन आप्तोपदिष्टत्वेनाव्यभिचारित्वात् यथा स्वंभनीयादिभिरपरिज्ञानेऽप्याप्तोपदेशेन स्तंभनादिकर्मकर्तुः स्तंभनाद्यभीष्टफलसिद्धिः, चूर्णो - तेसिमविन्नाणेऽविहु तव्त्रिसउस्सग्गओ फलं होई । विग्धजयपुन्नवंधाइकारणं मंतनाएण ॥ १ ॥ ति ज्ञापयति चैतदिदमेव कायोत्सर्गप्रवर्त्तकं वेयावच्चगणराणमित्यादि सूत्रं, अन्यथाऽमीष्टफलासिद्धौ प्रवर्त्तकत्वायोगात् उक्तं च ललितविस्तरायां- "तदपरिज्ञानेऽप्यस्माचच्छुभसिद्धाविदमेव वचनं ज्ञापक" मिति । श्रीगुप्त श्रेष्ठिकथा त्वियं-इह भरहे सर हे इव रुइरट्ठपए पुरीइ विजयाए । अन्नयवणगहणदवानलो नलो नाम आसि निवो ॥१॥ सुपइट्ठो वरवंसो महीधरो इव महीधरो सिट्ठी । वसणित्ति बहु विगुत्तो सिरिगुत्तो नंदणो तस्स ||२|| कइयावि निवसमीवे पाहुडहत्थो महीधरो पत्तो । किं दीससि उब्विग्गुब्व सिट्टि इय निवइणा पुट्ठो ||३|| साहइ सिट्टी सामिय ! सिरिगुत्तो नाम अत्थि मह पुत्तो । वेसाइवसणभवणं जूएणं पुण सया रमइ ||४|| हारेइ बहुं दव्वं नहु विरमइ वारिओऽवि वेसाहिं । मुत्तुं भोयणमित्तं पडिसिद्धं से गिहे सव्वं ॥ ५ ॥ कल्ले पुण तेणं जूयवइयरे हारियंमि बहुदव्वे । इह सोमसिट्टिभवणे रयणीए पाडियं खितं ॥ ६ ॥ गहियं पभूयदव्वं दिनं जं जेसि आसि दायव्वं । तम्मित्तेहिं इमो मे कहिओ सब्वोऽवि संतो ||७|| जावञ्जवि न उ फुट्टइ इम वृत्तंतो जणंमि ताव सयं । कहिउं इहागओ पहु ! इत्तुच्चिय अम्हि For Private And Personal Juri Gyanmandir श्रीश्रेष्ठि कथा 118 211 Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri l lin Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Ka s uri Gyanmandie श्रीदे || उब्विग्गो ।८॥ ता सामिसाल जो इह सुयावराहमि हुज मह दंडो। तं कुणह आह राया सिट्ठि! तुम होसु वीसत्थो ॥९॥ इय || श्रीश्रेष्ठिचैत्यश्री भणिय जाव सिद्धि विसज्जए ताव तत्थ सोमोऽवि । पत्तो केणऽवि अयं सुट्टो मुट्ठोत्ति जंपन्तो॥१०॥रायाऽऽह मा विसीयसु गयं कथा धर्मसंघा-VI धणं कहसु सोम ! सो भणइ । देव! पणवीससहसा कणगस्स गिहा ममज्ज गयं ॥११॥ नियसिरिघराउ राया तत्तियमित्तं दवाचारविधी विउं दव्वं । जहउचियं सकारिय विसन्जिय तयं सठाणमि ।। १२ ॥ तेडाविय सिरिगुत्तं रोसारुणलोयणो पयंपेइ । रे सोमसिटि॥४०२॥ दव्वं अवहरियं झत्ति अप्पेठ ॥ १३ ॥ सो आह देव! एवंविहमवदृतंपि कोऽवि किं भणइ ?। किं अम्ह कुले केणवि अकजमेवं विहियपुव्वं ॥१४॥ नत्थि खलु दुजणाणं किंपि अवत्तव्वयंति मन्नेमि । अहवा सामिय! इत्तो जलंपि पाहामि सुद्धोऽहं ॥१५॥ पञ्चक्खनिण्हवुप्पन्नमच्चुणा तो निवेण कारणिया । पुरिसा एवं वुत्ता भो भो एयं दुरायारं ॥ १६ ॥ फालेण विहियसुद्धिं लहु मह अप्पेह तेऽवि एवंति । वुत्तुं उच्छालंती दिव्वट्ठाणस्सुवरि एयं ॥ १७ ॥ सो आह गिहिहमहं फालं को पुण सिरंमि इह होही। कोवकरालो राया जंपइ अयं सिरे होहं ॥१८॥ वुड्डा तत्थ नयकहा जत्थ सयं नरवरो सिरे ठाइ । इय भणिरं निति तयं कार णिया दिब्बठाणंमि ॥१९॥ फालं फुलिंगजाले मुयमाणं सबलोयपचक्खं । काउं सचेलण्हाणं कामे सावित्तु सो लेइ ॥२०॥ पुबपढियग्गिथंभणमंतस्सरणा अदडगत्तोवि | सत्तमए मंडलए फालं लहु मुयइ सिरिगुत्तो ॥२१॥ सुद्धो सुद्धत्ति तओ पडिया ताला निउत्तपुरिसेहि। से कंठे पक्खित्ता माला सियसुरहिकुसुमाणं ।।२२।। इय वुत्तो रन्नो निवेइओ से धसकिओ चित्ते । अविभाविय सि(म)त्थग्गहविहियपइबो विचिंतेइ ॥२३॥ दिव्वग्गहणेण सुद्धंमि तकरे सिरयसंठिओ पुरिसो। चोरोविव दंडिजइ निवेण नयधम्मकलिएण ॥२४॥ सयमेव सिरयपक्खं गहिय अहं सयललोयपञ्चक्खं । जइ अप्पमप्पणच्चिय नेव निगिण्हामि चोरव्य ॥२५॥ ॥४०२॥ For Private And Personal Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka s uri Gyanmandir श्रीदे. चेत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥४०३॥ श्रीश्रेष्ठिकथा Sonam IALPHAm monalisa N onSHAINFOHITRATAIIAPHAARATHI || ता सच्चवाइणो राइणुत्ति दिजइ इमीइ वाणीए। सलिलंजली तह जए आससिमरं भमउ अजसो ॥ २६ ॥ पयलं जाउ नयकहा कलुसउ कलिकालकलिलमखिलजणं । उत्तमजहन्नमज्झिममग्गोवि समत्तणं लहउ ॥२७॥ ता किंबहुणा मह जीविएण दीहेण नयविहीणं ?। वरमिहि चिय मरणं पच्छावि अवस्समरियव्वे ||२८|| इय निच्छिऊण राया मंतीण कहेइ नियमभिप्पायं । तेऽविहु विसायविहुरा एवं विनविउमाढत्ता ॥ २९ ॥ देव! न जुञ्जइ कहमवि चिंतिउमवि अप्पणो अहियभावो। जं अप्पणाऽमुणा खलु तायव्या मेइणी सयला ॥ ३० ॥ किंच-अवितहवयणो सिट्टी सुद्धो दिव्वेण उयह सिद्विसुओ । ता अत्थि जलणथंभिणी कावि सत्ती धुवमिमस्स ॥३१|दिवस्स देवयाओ उपसंनिहियाओ कयाइ नहु हुजा । इत्तुच्चिय भणियमिणं दिवस्स गई अहो दिया॥३२॥ ता सामि ! इमस्स पुणो विसिट्ठतरमंतवाइपच्चक्खं । दिव्वं दाउं जुज्जइ इय जाव भणंति मंतिवरा ॥३३।। ता विनवेइ वित्ती पहु! दसणऊसुओ बहिं अस्थि । सिद्धबहुमंततंतो जोगिवरो कुसलसिद्धित्ति ॥६४॥ रनोऽणुनाए वेत्तिणा तहिं आणियस्स तस्स | लहुं । विहिओचियस्स कहिओ मंतीहि फालवुत्तो ॥३५॥ सो चिंतिय भणइ तयं फालं गाहेह मज्झ पच्चक्खं । मुणिहह सच्चम सच्चपि बेंति मंतीवि एवंति ॥ ३६॥ तेडाविय मंतीहिं सिरिगुत्तो पभणिओ बिइयदिवसे । जइ रे सुद्धो सचं पुणरवि गिण्हेसु तो | फालं ॥३७।। गहिउं इमो पयट्टो अह चउदिसि तस्स अक्खए खिवइ । परविजाविच्छेयगमंतेणऽभिमंतिउं जोगी ।।३८|| तम्माहप्पेण इमस्स विगलिए सबहावि मंतबले । फालफुलिंगुब्ब जलणजालिया पाणिणो दड़ा ।।३९।। खुड्डो खुड्डोत्ति जणेण सहरिसं पाडिया य से ताला | भुत्तुत्तरसुवणीओ मंतीहिं निवस्स सिद्विसुओ॥४०॥ रन्ना भणिओ रे रे जहट्टियं कहसु पुव्ववुत्ततं । अन्नह | मरेसि नूणं भयभीओ भणइ तो एसो ॥४१॥ सामिय!.पुचाहियजलणथंभमंतेण दिव्वथंभो मे। आसि कओ संपइ पुण कत्तो Asans-AHINIA HINDIMECHANDANImmyaINA ॥४० For Private And Personal Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma श्रीदे० चैत्य० श्री - धर्म० संघा चारविधौ ॥४०४॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashuri Gyanmandir विहु न फुरिओ मंतो || ४२ ॥ तो रन्ना सकारिय संमाणिता विसजिओ जोगी । कुद्धेणं आणत्तो निव्विसओ झत्ति सिरिगुत्तो |||४३|| दुस्सहवणदुट्ठदेहो गयपुरपत्तो कहंचि तं जोगिं । दछु सुरुट्ठो निठुरछुरीह लहिउं छलं हणइ ||४४ || पत्तो निहणं जोगी | पलायमाणो इमो तलवरेणं । बंधिय कारणियाणं समप्पिओ तेहि पुट्ठो य ॥ ४५ ॥ साहइ मे एस वेरी चिराउ पत्तो विणासिओ तेणं । तो कारणियनरेहिं वृत्तं जइविय इमं तहवि ॥ ४६ ॥ विजंते नरनाहे नायवियारंमि तह फुरंतंमि । सहसाकरणमजुत्तं सेपिहु किं पुण विणासो ? । ।। ४७ ।। दोसाण संभवेऽविहु जणस्स नुचिओ परुप्परविणासो । सच्छंदं चिय इहरा अमाणुस जायइ जयंपि ||४८ || जइ रे तुहेस वेरी ता पाव ! कहेसि कीस नो अम्ह ? । सयमेव कुणसि दंडं एवं सइ तंसि दोसिल्लो ॥ ४९ ॥ तो दंडपासिपुरिसा बहुं विडंबिय पुरे भमाडित्ता । संझाए उल्लंबिय तरुंमि पत्ता सठाणेसु ||५०॥ दिव्ववसेणं तुट्टो पासो सो निवडिओ महीवडे । पुण पात्रियचेयन्नो नट्टो तत्तो पएसाओ ॥ ५१ ॥ एगंमि वणनिगुंजे भयभीओ जाव पविसए एसो । सज्झायपरस्स पुरिसस्स ताव वयणं इमं सुणइ ॥ ५२ ॥ जीववह अलिअभासण परधण हरणं परिस्थिपरिहासो । निसिभत्तं महुमसाण भक्खणं मञ्जपाणं च ॥ ५३ ॥ रमणं दुरोदरेणं संगो जूयारवेसमाईहिं । साहुवसणंमि तोसो रायाइविरुद्धमायरणं || ५४|| इच्चाई यावपुंजं काउं जीवा वयंति कुमईए । इत्तो पुणो नियत्ता लहंति सग्गापवग्गसुहं ।। ५५ ।। इय सोउ इमो चिंतइ अहो मुणी सुन्दरं पढइ किंपि । | इत्तो य तत्थ पत्तो नरभासाभासिरो कीरो ।। ५६ ।। पुट्ठो तेणं स मुणी पहु ! पसिय कहेसु मज्झ पुव्वभवं । कहइ इमोवि जयपुरे | वरुणो नामासि इन्भसुओ ॥ ५७ ॥ तेऽन्नदिने पुट्ठो सागरचंदो गुरू कहसु भंते ! । समणाण सावयाण य किं मूलं सन्नकिच्चे ? ||५८ || सामाइयाइछन्विहमावस्सयमिय गुरूाहें कहिए सो । पुच्छेइ किं निमित्तं एवं कीरइ ? भणइ सूरी ।। ५९ ।। सावज्ज For Private And Personal श्रीश्रेष्ठिकथा H४०४॥ Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ShiMHOW Aradhana Kendra www.kcbalirth.org श्रीदे० धर्म० संघाचारविधौ ॥४०५॥ Achey Shri Kates armandie जोगविरइनिमित्तमुत्तं जिणेहिं सामइयं । दसपमुद्धिनिमित्त चउवीसथओ विणिहिटो ॥६०॥ गुणवंताण गुरूणं पडिवत्तिनिमित्त- श्रीदत्तमित्थ वंदणयं । अइयारविसुद्धिनिमित्तमाहियं फुडं पडिकमणं ॥ ६१ ॥ चारित्तनाणदंसणसुद्धिनिमित्तं तु निययउस्सग्गा । पाव- चरित्रम् | क्खवणनिमित्तं कीरइ इरियाइउस्सग्गो ॥६२॥ वंदणमाइनिमित्तं सुदिद्विअमराण सुमरणनिमित्तं । चिइवंदणउस्सग्गा कीरंतऽन्नेवि | बहुहेऊ ॥६३।। खण्हाछेयनिमित्तं पच्चक्खाणंति सोउ मुणिवयणं । वरुणो संवेगगओ तकरणेऽमिग्गहं लेइ ॥६४॥ कइयावि पमाइल्लो माइल्लो बहुयलोयपचक्ख । आवस्सयं विसुद्धं करेइ विवरीयमिहरा उ ॥६५॥ चिइवंदणाइ किचं सव्वंपि समायमायरिय वरुणो। पजंतेऽवि हु तदकयपडियारो वंतरो जाओ॥६६॥ तो चविय तेण मायादोसेणं कीर भद्द ! तं जाओ । इय सोउ सुनो सुमरियपुव्वभवो विन्नवइ साहुं ॥६७॥ भयवं! किमिण्डि कीरइ ? कीरोऽहं तुम्ह पायसेवाए। दरमजोग्गो नय सव्वविरइरयणस्स जुग्गम्हि ॥६८॥ नय तिरियजीवियब्वे रमह मई मज्झ नेव पहु! सको । इमिणा तिरिदेहेणं अकलंको काउ जिणधम्मो ॥६९॥ ता पसिय कहसु पहु! मज्झ किं तित्थं सुप्पस्सरथमच्चत्थं । उज्झामि जत्थ जीयं ? भणइ मुणी भद्द! विमलगिरी ॥७०||जंतत्थ पढमचकिस्स नंदणो पढमजिणवरविणेओ। सिद्धो पुंडरियरिसी सहिभो मुणिकोडिपणगेण ॥ ७१ ॥ नमिविनमिखेचरवरा जत्थ य सिद्धा दुकोडिमुणिजुत्ता । जत्थऽनाउवि सिद्धा असंखया समणकोडीओ ।। ७२॥ जो रिसहाइजिणाहिवनिम्मलकमकमलजुअलफ रिसेणं । सययं पवित्तसिहरो सो विमलगिरी महातित्थं ॥७३॥ (प्रत्यंतरे-अपरं च-सुयधम्मकित्तियं तं तित्थं देविंदवंदियं पवरं । पाहुडए विजाणं देसियमिगवीसनामं जं ॥१॥ विमलगिरि१ मुत्तिनिलओ २ सित्तुञ्जो ३ सिद्धखितु ४ पुंडरिओ ५। सिरिसिद्धसेहरो६ सिद्धपचओ ७ सिद्धराओ य८ ॥२।। बाहुबली९ मरुदेवो१० भगीरहो११ सहसपत्तु१२ सयवत्तो १३। कूडसयठुत्तरओ |||४०५॥ S E For Private And Personal Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka y anmandie Aamhamm श्रीदत्तचरित्रम् श्रीदे० चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ | ॥४०६॥ H IMAHARAI १४ नगाहिराओ १५ सहसकमलो१६॥३॥ ढंके१७ कवडिनिवासो १८लोहिच्चो१९ तालओ२० कयंबुत्ति २१ । सुरनरमुणिकय-|| नामो सिरिविमलगिरी जयउ तित्थं ॥४॥ रयणागरविवरोसहिरसकूविजुया सदेवया जत्थ । ढंकाइ पंच कूडा सो विमलगिरी जयउ तित्थं ॥५॥ जोरगछगम्मि असीइ सत्तरी सट्ठी पनरबारजोयणए । सगरयणीविच्छिन्नो सो विमलगिरी जयउ तित्थं ॥६॥ जो अट्ठजोअणुच्चो पन्ना दस जोयणो उ मुलुवरिं । विच्छिन्नो रिसहजिणे सो विमलगिरी जयउ तित्थं ॥७॥ सिरिरिसहसेणप मुहा असंखतित्थंकरा समोसरिया । सिद्धा य जत्थ सेले सो विमलगिरी जयउ तित्थं ॥८॥ तह पउमनाहपमुहा समोसरिस्संति जत्थ | भावजिणा । तं सिद्धखित्तनाम सिरिविमलगिरी जयउ तित्थं ॥९॥ सिरिनेमिनाहवजा जत्थ जिणा रिसहपमुहवीरंता । तेवीस समोसरिया सो विमलगिरी जयउ तित्थं ॥ १० ॥ जहिं रुप्पकणयमणिपडिमतियमुसहचेइयं भरहविहियं । सदुवीसजिणाययणं सो विमलगिरी जयउ तित्थं ॥११॥ बाहुबलिणा उ रम्मं सिरिमरुदेवाइ कारियं भवणं । जत्थ समोसरणजुयं सो विमलगिरी जयउ तित्थं ॥१२ ।। उस्सप्पिणीइ पढमं सिद्धो इह पढमचकिपढमसुओ । पढमजिणस्स य पढमो गणहारी जत्थ पुंडरिओ ।। १३ ॥ चित्तस्स पुनिमाए समणाणं पंचकोडिपरिअरिओ। निम्मलजसपुंडरिओ जयउ तयं पुंडरियतित्थं ।। १४ ॥सव्वत्थसिद्धिपत्थडअंतरिया पनकोडि लक्ख दह । सेढीहिं असंखाहिं चउदसलक्खाहिं संखाहि ॥१५ ।। जत्थाइचजसाई सगरंता रिसहवंसजनरिंदा। सिद्धिं गया असंखा जयउ तयं पुंडरियतिथं ।।१६।। वासासु चउम्मासं जत्थ ठिया अजियसंतिजिणनाहा । वियसोलधम्मचक्की जयउ तयं पुंडरियतित्थं ॥१७॥ दसकोडिसाहुसहिया जत्थ दविडवालिखिल्लपमुहनिवा । सिद्धा नगाहिराए जयउ तयं पुंडरियतित्थं ॥१८॥ जहिं रामाइ तिकोडी इगनवई नारयाइ मुणिलक्खा । जाया उ सिद्धराया जयउ तयं पुंडरियतित्थं ॥१९ । नेमि Sumanantimesnanimu mentinuintamang m ॥४०६॥ For Private And Personal Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M Aradhana Kendra www.kcbatirth.org चरित्रम् श्रीदे चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥४०७॥ Acharya Shri Kailas Gyanmandir वयणेण जत्तागएण जहिं नंदिसेणगणवइणा । विहिओऽजियसंतिथओ तयं जयउ पुंडरियतित्थं ॥२०॥पज्जुन्नसंबपमुहा कुमरवरा श्रीदत्तसडअट्ठकोडिजुया। जत्थ सिवं संपन्ना जयउ तयं पुंडरियतित्थं ॥ २१॥ अन्नेऽवि भरहसेलगथावच्चासुयसुयाइआऽसंखा । जहिं कोडिकोडिसिद्धा जयउ तयं पुंडरियतित्थं ॥ २२ ॥ अस्संखा उद्धारा असंखपडिमाओं चेइयाऽसंखा । जहिं जाया जयउ तयं सिरिसित्तुंजयमहातित्थं ॥२३॥ कयजिणपडिसुद्धारा य पंडवा जत्थ वीसकोडिजुया । सिद्धिगया जयउ तयं सिरिसित्तुंजयमहातित्थं ॥२४॥ भरहकरावियबिंबे चिल्लतलाईगुहाठिए नमतो। जहिं होइ इगऽवयारी तं सितुंजयमहातित्थं ॥२५ । संपइ१ विक्कम २ अंबड ३ हाल ४ पलित्ता५ऽऽमदत्तरायाइ ७ । जं उद्धरिहंति तयं सिरिसित्तुंजयमहातित्थं ॥२६॥ जं कालयमूरिपुरो साहइ सुदिट्ठीसया विदेहेवि । इणमिय (पणमइ) सकेणुत्तं तं सित्तुंजयमहातित्थं ॥२७॥ जावडबिंबुद्धारे अणुवमसरमजियचेइयट्ठाणे । जहिं होही जयउ तयं सिरिसित्तुंजयमहातित्थं ।।२८।। मरुदेविसंतिभवणं उद्धरिही जत्थ मेहघोसनियो । कक्किपपुत्तोतं इह सिरिसित्तुंजय-IN महातित्थं ॥२९॥ पच्छिमउद्धारकरो जस्स विमलवाहणो निको होही । दुप्पसहगुरुवएसा तं सितुंजयमहातित्थं ॥३०॥ वुच्छिन्नेऽवि | य तित्थे होही पूजं जयंमुसहकूडं । जा पउमनाहतित्थं सिरिसित्तुंजयमहातित्थं ॥ ३१॥ पावं पावविमुक्का जत्थ निवासी उ जंति || तिरियावि । सुगईए जयउ तयं सिरिसित्तुंजयमहातित्थं ॥३२॥ जस्सऽइसयाइ कप्पे वक्खाए झाइए सुए सरिए । होइ सिवं तइयभवे सिरिसित्तुंजयमहातित्थं ॥ ३३ ॥ इय भद्दबाहुरइया कप्पा सित्तुञ्जकप्पमाहप्पं । सिरिवइरपहूद्धरियं जं पालित्तेण संखवियं ।। ३४ ॥ तं जह सुयं थुयं मे पदतनिसुणंतसंभरंताणं । सित्तुञ्जकप्पथुत्तं देउ लहुं सत्तुजयसिद्धिं ॥ ३५ ॥) तं सोउ सुओ हिहो । | नमइ मुणिं जा गमिस्सइ कहिंचि। ता फुरियविवेएणं सिरिगुत्तेणं इमो वुत्तो॥७४॥ भो कीर ! खीरमहुमहुरवयण ! धन्नो सि वं Jail ||४०७॥ For Private And Personal Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mabain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalaha ri Gyanmandir श्रीदे० श्रीदत्तचरित्रम् चैत्यश्री धर्म संघाचारविधौ ॥४०८॥ कयत्थो सि । जं तुह इय मणभवणे विवेयदीवो समुल्लसिओ ॥७५॥ दिजउ तुहेव रेहा धम्मधुरीणेसु सव्वपुरिसेसु । तुज्झ समीहियसिद्धी भद्द ! लहुं होइ निविग्घा ।।७६॥ नमिय मुणिं संभासिय तं च सुओ हिययइच्छिए ठाणे । पत्तो तो सिरिगुत्तो मुणिणो | साहेवि नियचरियं ॥७७॥ नमिउं पुच्छइ धम्मं परहियनिरओ मुणीवि वजरइ । देवगुरुधम्मतत्ताइसंमयं समुचियं तस्स ॥ ७८॥k भद्द ! निमित्तविसुद्धे चिइवंदणपमुहनिचकिच्चंमि । उज्जुत्तो होसु सया तहत्ति पडिवाइ इमोऽवि ॥७९॥ नमिय मुणिं भयतरलो ओसरिउं सिरिपुरे कमा पत्तो । गिहिधम्म परिपालइ चिइवंदणकिच्चमाईअं ।। ८० ॥ कइयावि रिसहभवणे देवे वंदंतओ इमो पिउणा । ववहारत्थं तत्थागएण दिट्ठो तहा नाओ॥८१॥ सिरिगुत्तेणवि जणओ नाओ पडिओ य तस्स चलणेसु। पिउपुढेण य कहिओ जहाठिओ निययवुत्तंतो ।। ८२ ।। तो असरिसहरिसपरेण सिट्टिणा धम्मिउत्तिकाउमिमो । नलरनोऽणुनाए नीओ विजयाइ नयरीए ॥८३॥ सिट्टी कुटुंबभारं ठविय सुए धम्मउज्जुओ जाओ। लज्जा धम्मेसु य इमो धुरंधरो विजियवसणोऽवि ॥४॥ कयचिइवंदणआवस्सयाइकिरिओ कयाइ स निसाए । सुमरंतो सुयचरियं अभिभवउस्सग्गमल्लीणो॥८॥-इत्तो सो वरकीरो विमलनगे काउ अणसणं धीरो। जाओ सणंकुमारे देवो तं नाउ ओहीए ॥८६॥ से धम्मथिरीकरणत्थमागओ भणइ भद्द ! पारेसु । उस्सग्गं कीरजिभो सोऽहं चिंतेसि जं हियए ॥८७।। पारइ काउस्सग्गं सिरिगुत्तो हरिसवसवियासिमुहो। कहइ सुरो नियचरियं तस्स तहा देइ भूरि धणं ॥ ८८ ॥ कजे पुण समरिजसु इय भणिय सुरो गओ सठाणंमि । इयरोऽवि विसेसरओ जिणधम्मे गमइ बहुकालं ||८९|| कइयावि अइगिलाणो काउस्सग्गेण सरइ कीरसुरं । सोऽवि लहु तत्थ पत्तो कहेइ से आउ सत्तदिणे ।। ९० ॥ तो सिरिगुत्तो खिप्पं विनिओजिअ नियधणं मुखित्तेसु । जिणचेयकयपूओ पुच्छिय रायाइनयरजणं ॥९१।। सिरिविमलबोहगुरुणो पासे ॥४०८॥ For Private And Personal Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri NOI r Gyanmandir | हेतुद्वाद शकम् श्रीदे चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥४०९|| Hm Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka दिक्खं पवजइ महप्पा । चिइवंदणाइविहिणा अणसणसुविसुद्धपरिणामो ॥९३॥ पंचनमुचारपरो भुवणस्सवि विम्हयं जणेमाणो। मरिऊणं सिरिगुत्तो जाओ अमरो तइयकप्पे ॥९३।। कीरसुरोवि तहिं चिय पत्तो से काउ देहसकारं । चविउं तओ विदेहे दोऽवि | लहिस्संति सिवसुक्खं ॥ ९४ ॥ इत्थं महीधरतनूरुहवृत्तमेतच्चेतश्चमत्कृतिकरं भविका! निशम्य । क्लिष्टाष्टकर्माहतयेऽष्टनिमित्तशुद्धे, सच्चैत्यवंदनविधौ सततं यतध्वम् ।।९५॥ इति श्रीगुप्तश्रेष्ठिकथा । इत्युक्तं 'निमित्तट्ठति सप्तदशं द्वारं, सांप्रतं 'बार हेऊ यत्ति अष्टादशं द्वारं व्याख्यानयत्राह चउ तस्सउत्तरीकरणपमुह सद्धाइया य पण हेऊ । वेयावच्चगरत्ताइ तिमि इय हेउबारसगं ॥५३॥ चत्वारो हेतवः तस्योत्तरीकरणप्रमुखाः 'तस्स उत्तरीकरणेणं १ पायच्छित्तकरणेणं २ विसोहीकरणेणं ३ विसल्लीकरणेणं ४तिरूपा, कायोत्सर्गसिद्धये भवंतीति शेषः, तत्र 'तस्सालोयणपडिकम्मणमाइणा सोहियाइयारस्स । उत्तरकरणाईहिं हेऊहिं करेमि उस्सग्गं ॥१॥ पिंडीबंधणलेवाइ जह सलागाइसोहियवणस्स । हाणाइगयमलस्सव जहा विलेवाइसकारो ॥२॥ आलोयणाइणा तहऽसुद्धइयारस्स उत्तरीकरणंश कीरइ पच्छित्तेण व जह सगडरहंगगेहाणं ॥३॥ पच्छित्तं पुण उस्सग्गलक्खणं पंचमंर इह विसोही। अइयाराण अभावो ३ मायाइ विणा विसल्लत्तं॥४॥ इह हेउहेउमत्तं नेयं जह होइ उत्तरीकरणं । पच्छत्तेणं तंपिहु विसोहिओसा विसल्लत्ते ॥५॥ तथा 'श्रद्धादिका सद्धाए मेहाए घिईए धारणाए अणुप्पेहाए वडमाणीए' इत्यात्मकाः पंच हेतवः, तत्र "सद्धा निओमिलासो न पराणुग्गहबलमिओगाई । मेहा हेओवादेयबुद्धिपडुया न य जडत्तं ॥१॥ मेहा वा मजाया जिणभणिया नासमंजसत्तंपि ॥ मणपणिहाणा पीई घिई न रागाइआउलया ॥२॥ धारण अरिहाइगुणाविस्सरण न उण सुन्नचित्तत्तं । अणुपेहा MAR A ॥४०९|| THIRAIMIUMHIR For Private And Personal Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kan uri Gyanmandir सुदर्शननृपकथा श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधौ ॥४१०॥ अस्थाईचिंता न पवित्तिमित्तं तु ॥३॥ पंचसुवि इमेसु पुढो संबज्झइ वइढमाणयत्ति जहा । सद्धाइ वड्ढमाणीइ ठामि उस्सग्गमिचाई ॥४॥ इय पाढो लाभकमा एसिं सद्धा सईइ जह मेहा । तोवि घिई इच्चाई वुडीवि इमाण एमेव ॥ ५॥ कारणरहियं कर्ज घडाइयं जह न सिज्झइ कयावि । इय सद्धाईहिं विणा काउस्सस्स नहु सिद्धी ॥६॥ तथा वैयावृत्यकरादयश्च त्रयो हेतवः, उक्तं च-"पवयणवेयावच्चं पवयणसंतिं च पवयणसमाहि । सम्मदिट्ठी देवा करंति जे तेसिमुस्सग्गं ॥१ ।। पवयणवेयावच्चाइवत्तियाइहिं ठामि हेऊहिं । अविरयभावा तेसिं नउ वंदणवत्तियाईहिं ॥२॥ वेयावचं संघाइरक्खणापमुहकिचमिह संती । उवसग्गाइविणासो मणाइदुहवारण समाही ॥३॥" सद्धाइ यत्ति चशब्दादुत्तरीकरणाद्याः पापक्षपणादिफलेर्यापथिक्यादिकायोत्सर्गस्य सामान्येन श्रद्धाद्या वंदनादिप्रत्ययस्य वैयावृत्त्यकृत्वादयस्तु सुदृष्टिसुरस्मरणादिफलोत्सर्गस्येति ज्ञेयं ॥ आसी वसंतपुरपहू सुदंसणरओ सुदंसणो राया। जियसुरगुरुमइविभवो भवदत्तो तस्स वरसचिवो ॥१॥ देसंतरवणियाणीयहयवरेसुं कयावि निवसचिवा। आरुहिउँ नियनयरा विणिग्गया रायवाडीए॥२॥ विवरीयसिक्खयाए दुरंतकंतारखित्तमंतिनिवा। ते तुरया दढसंताखणेण पंचत्तमणुपत्ता ॥३॥अह मंतिनिवा मिल्लेहि बंधिया ताडिया बहुपयारं । उद्दालियऽलंकारा जीवियसेसा विमुक्का य॥४॥ कहकहमवि चेयन लहिउँ अन्नुन्नमन्नुमलिणमुहा। परिभाविउ पयट्टा मग्गपलुट्टा मणे एवं ॥५॥ कजाण गई विसमा अहह अहो विसममावयापडणं । संपत्तीओऽवि हहा तडिव किह दिट्ठनट्ठाओ|६|| रजंगाइतुरंगाइणोऽवि इह विसमनित्थरणहेउं । जुजंति किहणु? तेऽविहु विहुरपयं ही पणामंति७॥ दुट्ठमहिलव्य पावा रायसिरी उयह कट्ठसंठप्पा । अहवा विहिमि विमुद्दे अन्नपि विसं धुवं होइ ॥८॥ इय झूरता भमिरा पत्ता ते एगसिंगसेलंमि। केवलमहिमनिमित्तं नियंति तत्थागए अमरे ॥९॥ भत्तीइ कोउगेण य गंतुं मुणिपयजु पणिवयंति । तेसिं देवनराणं भयवं वागरइ इय धम्मं ॥१०॥"भवजल ॥४१०॥ For Private And Personal Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kanl uri Gyanmandir श्रीदे सुदर्शननृपकथा चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधी ॥४११॥ MAITHING Manthan inarMHIRISTRITAPatilityARTHI ARTANTRAamaARINAI NA TIMITara हिंमि अपारे दुलहं चिंतामणिव्य मणुयत्तं। तत्थवि अणत्थहरणं दुलहं सद्धमवररयणं ॥ ११॥ कहकहवि तंपि पाविय तंमूलं इवंदणं विहिणा। सद्धामेहाधिइधारणाइकलियं सया कुणह ॥ १२ ॥ अह समए मंतिनिवा पुच्छंति मुणिंद! कहसु किं पुब्धि। अम्हेहिं कयं पावं ? जेणमिण वसणमणुपत्तं ॥१३॥ भणइ मुणी कोसंबीनयरीए आसि धम्मसत्थाहो । सययं सद्धाइजुओ जिणपूयणवंदणुज्जुत्तो॥ १४ ॥ स कयावि सरलहियओ कुग्गहगहिलेण पयइकुडिलेण । अज्जुणगसड्डएणं इय भणिओ दुब्बियड्डेणं ॥१५।। भो बंधु ! एस धम्मो गज्झो सुपरिच्छिऊण पणियं व । तं पुण विचारविमुहो वट्टसि गडरिपवाहेण ॥ १६ ॥ तो भणइ सत्यवाहो धम्मवियारं कहेसु मे भद्द! । अज्जुणओ अज्जुणओविव जडपयडी पयंपेइ ॥१७॥ धम्म ! इमो जिणधम्मो छञ्जीवनिकायरक्षणपहाणो । दव्यथए पुण दीसइ छजीववहो फुडो चेव ॥१८।। ता जिणवराण पूया फलजलकुसुमाइएहि नहु जुत्ता। किं तु चिइवंदणाइसु सुदिद्विदेवा सरिजंति ॥१९॥ धम्मो भणेद नाहं वियारमेयं मुणेमि ता गुरुणो । पुच्छेमो ते तंपि य ज भणिहि तयं अहं काहं ॥२०॥ एवंति तेण वुत्ते दोऽवि गया धम्मघोसगुरुपासे। निययं परूवणं अज्जुणोवि साहेइ चिट्ठमणो ॥२१|| तो गुरुणा गुरुकरुणारसजलनिहिणा पयंपिओ एसो। कह भद! जिणमयं अमुणिउंपि एवं परूवेसि? ॥२२॥ यतः-आरंभपसत्ताणं गिहीण छजीववहअविरयाणं । भवअडविनिवडिराणं दव्यथओ चेव आलंबो ॥२३।। यदागमः-"अकसिणपवत्तगाणं विरयाविरयाण एस खलु जुत्तो। संसारपयणुकरणे दबथए कूवदिलुतो ।। २४ ॥ जिणभवणबिंबठावणजुत्ता कुसुमाइपूयणास्वा । दव्वत्थओ विसिट्ठो गिहीण इयरासमत्थाणं ॥ २५ ॥ कुसुमाईवि निसिद्धं जइ थेवोवक्कमपि मूढ ! तए । ता चेइयाइकरणं बहुआरंभं सुपडिसिद्धं ॥२६॥ जिणभवणाण अकरणे बिंबाण अठावणे य तुब्भ मए । तित्थुच्छेयाईया हवंति दोमा बहुपयारा ॥ २७॥ चेइय- ) ४११॥ For Private And Personal Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kal u ri Gyanmandir सुदर्शननृपकथा श्रीदें. चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥४१२।। DARSHAN MARAT dlinilalitimamrapali attitehimnmentinemam पूयाईणं करणे तित्थप्पभावणाईया । दीसंति बोहिहेऊवावाराणं च तह जणगां ॥ २८ ॥ किंच-देहाइनिमित्तंपिहु जे कायवहंमि किर पयति । जिणपूयाकायवहत्ति तेसि पडिसेहणं मोहो ॥२९॥ जे पुण पोसहनिरया सञ्चित्तविवजया जइसरित्था। उत्तरपडिमासु ठिया पुप्फाई ते विवजंतु ॥३०॥ जिणबिंबपूयणाइसु जस्स भावो जहिं जहिं रमइ । सो तस्स सुक्खहेऊ ता न खमो एगप-|| हगाहो । ३१॥ किंतु चिइवंदणाईसु सम्मदिट्ठी सुरा सरिजंति । इय जं वुत्तं तुमए न जुत्तिजुतं तयंपि जओ ॥३२ ।। वेयावच्चगरत्ता संतिकरत्ता समाहिकारिता । संमद्दिट्ठीण इमं तस्सरणे हेउतियमुत्तं ॥३३॥ ता भद्द ! भद्दपयगमणओसिओ जहवि तंसि तहवि तओ। वितहप्परूवणाए लहु मिच्छादुक्कडं देसु ॥३४॥ उत्तरकरणकमेणं पायच्छितं गहेसु निस्सल्लो। परमं लहिय विसोहिं | दलेसु पावाई कम्माई ॥३५॥ इय सिक्खविओ सुबहुंपि अज्जुणो अंजणव अइमलिणो। अवमन्नियगुरुवयणो नियदोस नेव पडि॥३६॥ सत्थाहिवेणवि तया सुकरति समथिओ पहो तस्स । सच्छंदपयाराओ सुहेण विलसंति बुद्धीओ॥३७॥ एवं च ते य दुन्निवि जिणपूयामुक्खमग्गविग्धकरा। सपरेसि जणंता बुद्धिविन्भमं असुहपरिणामा ॥३८॥ अजियउज्झियमुकयंतरायभारा मरित्तु नरएसु । पत्ता तओ अणतं कालं भमडिय भवकडिल्ले ॥ ३९ ॥ ते धम्मज्जुणजीवा पुराकडनाणकट्ठफलवसओ। जाया इहि तुझे नरनाहअमच्चभावेण ॥ ४०॥ पुवकयदुकयवसओ पाविया वसणमेरिसं तुज्झे । इय सुच्चा गुरुवयणं सरिंसु ते पुव्वभवजाई ॥४१॥ भीमभवुब्भवभवभरमीया निवडित्तु सुगुरुचलणेसु। इय जंपिउं पयट्टा अवितहमेयं मुणिवरिहा! ॥ ४२ ॥ काउ अणुग्गहमम्हं इमस्स दोसस्स देसु पच्छित्तं ! कुग्गहकलंकमुक्का लहु लहिमो जेण परमपयं ॥४३॥ भणइ गुरू हेउविसुद्धिपमुहविहिणा नमंसह जिणिंदे। भत्तीइ पूयह सया एवं चिय इत्थ पच्छित्तं ॥४४॥ एवं कुगंतयाणं तुम्भाणं पुब्वसंचियं पावं । UPRIMINATHEMAIL witter | ॥४१२॥ UHAPA For Private And Personal Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sh e Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Mo rsuri Gyanmandir श्रीदे. चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ ॥४१३॥ अचिरेण गमी विलयं सीयंपिव तरणिकिरणहयं ॥ ४५ ॥ इय सोउ पमुइयमणा मंतिनरिंदा पवनगिहिधम्मा। तं गुरुगिरं पडि-| आकारा|च्छंति सीसवीसंतकरकमला ॥४६॥ अह पच्छागयनियसिन्न पत्थिओ मंतिसंजुओ राया। केवलिकमकमलमलं पणमिय पत्तो सन-I | धिकारः यरंमि ॥४७॥ मंतिनिवा य खवेउं पुवज्जियतिक्खदुक्खरिछोलिं । पूर्यति सया देवे वंदंतिय हेउसुविसुद्धं ।। ४८ ॥ चिर पालिय | गिहिधम्म अणसणघणचूरिउग्गबहुकम्मा। अच्चुअकप्पंमि सुरा ते जाया फुरियतेयभरा ।। ४९ ।। तयणु विदेहे नरजंम लहिय नयहेउसहसपरिसुद्धं । संमं जिणिंदधम्म काउ लहिस्संति सिवसंमं ॥ ५० ॥इत्यवेत्य भवदत्तमंत्रिणः, श्रीसुदर्शननृपस्य वृत्तकम् । व्योमरत्नमितहेतुसुंदरं, सज्जनाः कुरुत चैत्यवंदनम् ॥५१॥ इति भवदत्तमंत्रिसुदर्शननृपकथा । इति प्ररूपितं 'बारहेऊ य'त्ति अष्टादशं द्वारम् , इदानीं 'सोलस आकार'त्ति एकोनविंशतितमं द्वारमाविष्कुर्वन्नाहअन्नत्थुआइ बारस आगारा एवमाइआ चउरो। अगणि१ पणि दिच्छिदण२ योहिकखोभा य३ डको ४ य॥४४॥ अन्नत्थुत्ति वचनात् अन्नत्थ ऊससिएणं १ आदिशब्दान्नीससिएणं इत्यादिग्रहो यावत् दिद्विसंचालेहिंति, एतदर्थः-अन्नत्थ | य वावारे काउस्सग्गं करेमि इय जोगो। ऊसासाईहिंतो करेमि नो अन्नवावारं ॥ १॥ इय पंचमीइ अत्थे तइया अहवा उसास| माईहिं । हुञ्ज अभग्गो अविराहिओ य मह काउसग्गोत्ति ॥ २ ॥ तत्थ-ऊससियं सासगहो १ नीससियं सासमोयणं २ पयडा। | खास ३ खुय ४ जंभ ५ उड्डय ६ वायनिसग्गो अहोवाओ ॥३॥ भमलीइ अकम्हा उ सभंतमहिदसणं निवडणं च । पित्तोदयाउ | मुच्छा विचेयण भमणरहियं ॥४॥ सुहुमा लक्खालक्खा रोमुकंपाइअंगसंचारा १० खेले कफाइ अंतो ११ दिट्ठीइ निमेसमाईया १२ ॥५॥ ऊसासाइनिरोहे मरणाई तेण सुहुमओससई । पवणमसगाइरक्खणहेउं खासाइसु य हत्थो ॥६॥ उड्डुयवायनिस- ॥४१३|| For Private And Personal Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Lain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ku r suri Gyanmandir श्रीदे. नरसुन्दर कथा चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधौ ॥४१४॥ ग्गेसु सद्दजयणावि भमलिमुच्छासु । निविसई विराहणभया रोमुकंपाइ दुनिवारा ॥७॥ एते च द्वादश आकाराः-कायोत्सर्गापवादप्रकाराः साक्षात् सूत्रे प्रतिपादिताः, तथा 'एवमाइय'त्ति एवमाइएहीतिपदेन चत्वारः सूचिताः, तानेवाह-'अगणी'त्यादि, अग्निविद्युद्दीपादिस्पर्शनं, प्रदीपनकमन्ये, पंचेन्द्रियैः-नरमार्जारादिमिः छिंदन-तस्य कायोत्सर्गालंबनस्य च गुर्वादेरंतरालभुवोऽतिक्रमणं २ बोधिका-मानुषचौराः क्षोभः-स्वराष्ट्रपरराष्ट्रकृतः, आदिशब्दाद्वंदिकराजभयभित्तिपातादिग्रहणं ३ दष्टश्च सप्पादिना खः परो वा साध्वादिः, चशब्दात् सर्पादिरेव संमुखमासन्न वा गच्छति ४, अत्र यतना-फुसणंमि वत्थगहणाइ छिंदणे अग्गहत्यकरणाई। पारणपलायणाई बोहियखोभाइ डको य ॥८॥ उभयेऽपि मीलिताः षोडश । इह कंचीनयरीए अहेसि नरसुंदरुत्ति नरनाहो । कुग्गाहगाहजलही नाहियवाई किलिट्ठमणो ॥१॥ गयमिच्छत्तकुबोहो सुविसुद्धागारधम्मअक्खोहो। सुमइति तस्स मंती नियमइनिजिणियसुरमंती ॥२॥ इत्तो चंदपुरंमी सामंतो चंडसेणअभिहाणो। अन्नदिणे नरसुंदरनरिंदसेवाइ निम्विन्नो ॥३॥ नियबालमित्तमिक जोगिं बहुमंततंतकुसलमई। भणइ मह हिययसल्लं निहणसु नरसुंदरनरिंदं ॥ ४॥ जंपइ जोगी एवं करेमि तो तस्स चंडसेणनिवो। हिट्ठो वियरइ सव्वं नियंगलग्गं अलंकारं ॥५॥ तयणु स पत्तो कंचीपुरिमुत्तिमो ममि एगत्थ । मंतकुहेडयमाईहि रंजए सयलपुरिलोयं ॥ ६॥ पत्तो परं पसिद्धिं तो रन्ना कोउगेण तेडेउं । उचियासणे निवेसिय सो पुट्ठो सविणयं एवं 1.७॥ कत्तो जोगिंद! तुम इहागओ? सो भणइ तुह भत्ति । जोगिजणे सुणिय इहं पत्तो सिरिपव्ययाउ अहं ।।८॥ किं कावि दिव्वसत्ती तुज्झ अवञ्झप्फला फुडं अस्थि । एवं निवेण भणिए जोगी बजरइ बादति ॥९॥ तथाहि-रत्तीएवि दिणं दिणेऽवि रयणि दंसेमि सेलेऽखिले, उप्पाडेमि नहंगणे गहगणं पाडेमि भूमीयले । पारावारमहं तरेमि जलणं थंभेमि रुंभेमि वा, दुव्वारं परचकमथि || ४१४॥ For Private And Personal Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M 1 1 - Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kas श्रीदे० turi Gyanmandir नरसन्दर कथा चैत्यश्री धर्म संघाचारविधौ | ॥४१५॥ न जए त मज्झ जं दुकरं ॥१०॥ अह भणइ नम्मसचिवो गुरुगलगजिं करेसि जोगिंद!। किं पाडिएहिं उप्पाडिएहिं गहसेलमाईहिं| | ॥११॥ किंतु मह रूसिऊणं विप्पी गाममि कंमिवि पउत्था। जीइ विणा मे भवणं न केवलं भुवणमवि सुन्न ।।१२।। जइ तं आणेसि लहुं| तोऽहं ते सइहेमि सव्वंपि । आगिढिमंतसरणेण जोगिणा झत्ति अह तत्थ ॥१३।। समियाविलित्तहत्था कुणमाणी मंडए समाणीया। सा माहणी पहिट्ठो पणच्चिओ नम्मसचिवो तो॥ १४ ।। गिण्हसु दिक्खं जेणं तयंपि देमो तो निवो मुढो । तपासे तं गिव्हइ | उवइ8 जोगिणा एवं ॥१५|| नियदेहे बारसअंगुलाई नीहरइ पविसइ दसेव । पवणो तबिवरीयं जो कुणइ स वंचए कालं ॥१६॥ इय कूडब्भममोहियमणस्स मिच्छत्ततिमिरछन्नस्स । जीववहपमुहआसवपरस्स परलोयविमुहस्स ॥ १७ ॥ विम्संभगयस्स निवस्स | तस्स कइयावि भत्तमझमि। विसमविसं दाउ लहुं नहोतुट्टो सयं जोगी॥१८॥ तेणुग्गविसेण निवोऽवि पीडिओ नट्टचेयणो जाओ। | हाहारवमुहलमुहा सव्वे मिलिया पुरपहाणा ॥ १९ ॥ आहूया एएहिं सपच्चया मंतवाइणो बहवे । विसनिग्गहोवयारो सव्वपयत्तेण | तेहिं को ॥२०॥ नवरि स जाओ विहलो तरुणिकडकखुब वीयरायमि । आदनो मंतिजणो मिसं विसनो पुरीलोओ ॥२१॥ अकंदसद्दमुहलं सयलं अंतेउरं तहिं पत्तं । काउं मउत्ति नीओ सिबियं आरोविय मसाणे ॥ २२ ॥ ठविओ चंदणदारुयनिचियाइ चियाइ जाव ता सहसा । उम्मिीलियनयणजुओ तकालुप्पन्नचेयन्नो ॥२३॥ चइउं चियं किमेयंति पभणिओ नरवई तओ सुमई। भणइ तुह देव! दाउं विसमविसं जोगियो नट्ठो ॥२४॥ विहिया बहूवयारा नय चेयन्नं कहपि णे जायं। तेण परं जं कीरइ तं काउमिणं समारद्धं ॥२५॥ वणपवणेणवि किह संपयं वयं निविसा इहं जाया ?। इह निवपुट्ठो सुमई भणेइ दइवं वियाणेइ ॥२६॥ किंतु तवुप्पन्नविसिट्ठलद्धिमुणिअंगलग्गपवणेण । अवि जंतूणं जिझंति आमया विसवियारा य ॥२७॥ एयं मे सुयपुवंति मंति ॥४१५॥ planuTU BE For Private And Personal Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyarmandie नरसुन्दर कथा श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ | ॥४१६॥ RomaniaRI वुनो निवो भणइ सुहडा! । उवरिमभागे पिच्छह कंचण निकंचगं समगं ॥२८॥ तेवि गवेसितु लहुं कहंति रखो जहा इहं देव!। पुप्फकरंडुजाणे सुरअसुरनरिंदनमियकमो ॥२९॥ निम्मलकेवलकलिओबहुसमणजुओ अणेगलद्धिनिही । अजेव समोसरिओ ससिप्पहो नाम आयरियो ॥३०॥ राया तवष्पमा एयं संभवाएमि जं इत्थ । जाओम्हि निविसोऽहं ता तप्पासंमि गच्छामि ॥३१॥ तो सो सपरीवारो गयो नमित्तु पुरो समुवविहो। कहइ मुणी इय धम्मं नवजलहरगहिरसद्देम ॥३२॥"दुलहं लहिय नरमवं मविवा! भवियव्ययानियोगेण । इहपरलोयहियकर जहसत्तीए कुणह धम्मं ॥ ३३ ॥" इय सुणिय जंपइ निवो परभवगामी घडेइ कह जीवो। | जं भूयपणगमित्तं दीसइ नहु तदहियं किंपि ॥ ३४ ॥ भणइ गुरू जडपणभूयसमहिओ जइ जिओ न हुजा तो। भो सुहृदुहाई को मुणइ ? को व अहयंति उल्लवइ ? ॥३५॥ किंच-निसुयं दिटुं जिंघियमासाइयपुट्ठचिंतियाइ भए । इय इगकत्तारकया इमे विगप्पेऽवि कह हुजा ॥३६॥ इच्चाइजुत्तिजुत्तं संसयरयहरणपवणपडिरूवं । गुरुणो वयणं सोउं बुद्धोराया इमं भणइ ॥३७॥ इचिरकालं कुग्गहगहगहियमणेण मे समणनाह ! के के जिया न हणिया ? किं किं अलियं न मे भणियं ? ॥३८॥ किं किं न परस्स घणं गहियं ? किं किं न मइलियं सीलं। किं किं अतुच्छमुच्छावसेण न व मीलियं दविणं? ॥३९॥ किं किं नहु निसि भुत्तं ? किं किं | महुपिसियमाइ नहु असियं । किं बहुणा? नत्थि जए तं पावं जंन मे विहियं ॥४०॥ इण्हि मिच्छत्तविसं पहुवयणामयरसेण नट्ठमे। नवरं नाहियवायं कमागयं कह चएमि अहं ? ॥ ४१ ।। आह मुणिंदो नरवर ! एयं नहु किंपि सइ विवेगंमि | वाही दारिदं वा कमागयं मुच्चए किं न ? ॥ ४२ ।। तथाहि केइ भमंता वणिणो धणत्थिणोऽणुक्कमेण दट्टण । लोहतउरुप्पकणए पुवमहिए पमुत्तूण ।। ४३ ।। चित्तूण पवररयणे पगरिससिरिसुक्खभायणं जाया । अन्ने तहा अकाऊण दुत्थिया सोअमणुपत्ता ।। ४४॥ एवं ४१६॥ For Private And Personal Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे० चेत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥४१७॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तुमपि निव! कुलकमागयं कुग्गहं अम्रुचंतो । मा पुत्रिपिव इण्डिपि दुस्सहदुहभारमञ्जसु ।। ४५ ।। आह नरिंदो कह पहु ! दुस्सहदुहभरमहं सहियपुव्वो । भणइ गुरू निव ! निसुणसु नवगामो अत्थि वरगामो ॥४६॥ तत्थासी कुलपुत्तो दढमिच्छतो अधम्मकयचित्तो। कयकुग्गहपंकजलनिमञ्जणो अज्जुणो नाम ||४७|| विनायसत्ततत्तो दढसंमतो जिनिंदमुणिभत्तो । नियकुग्गहपरिचत्तो सुहंकरो नाम से मित्तो ||४८|| पत्ता सुहंमगुरुणो बहुआगमसंगया कयावि तहिं । मित्तेण पेरिओ अज्जुणोऽवि पासं गओ तेसिं |||४९ || अह नमिय गुरुपयजुयं सुहंकरो अइसुहंकरं संमं । उवविसइ उचियठाणे इय धम्मं वागरह सूरी ॥ ५० ॥ “ पडिपुन्नपुन्निमाचंदसुमिणदंसणमिवेह अइदुलहं । भविया ! लहिय नरभवं करेह धम्मं निरइयारं ॥ ५१ ॥ पवणुव्व जलयपडलं सुहुयहुयासव्व बंधणसमूहं । जं सुकयभरं भंजइ धम्मे थेवोऽवि अइयारो || ५२|| ससउच्च ससिं लोब्व गुणगणं मसिलवुब्व सियदुसं । येवोऽवि अईयारो धम्मं रम्मंपि दूसेइ || ५२ || थेवोऽवि निरइयारो धम्मो सिग्घं जणेह सिद्धिसुहं । सुबहूवि साइयारो धम्मो नहु इट्ठफल जणगो ॥ ५४ ॥ इतुश्च्चिय जिणसमए आमारा तत्थ तत्थ निद्दिट्ठा | अइयारं परिहरिउं सुद्धं धम्मं च पालेउं ।। ५५ ।। यदुक्तं- 'वयभंगे गुरुदोमो | थेवस्सवि पालणा गुणकरी य । गुरुलाघवं च नेयं धर्ममि अओ य आगारा || ५६ || ” तथाहि - अन्नत्थुयाइ सोलस आगारा चेहवंदणामुत्ते । रायामिओगपमुहा आगारा छच्च संमत्ते ||१७|| णाभोगाइदुवीसं पच्चक्खाणे तहा य एएहिं । चिइवंदणाहधम्मो सुहगिज्झो होइ सुहकि वो || ५८||" गुरुवयणं तं इच्छियपडिच्छिउं नमिय सूरिणो पत्तो । सगिहे सुहंकरो तो अज्जुगरणं इमं वुत्तो |||५९ || आगारेहि किमेहिं ? जइ किर चिइवंदणाइकिच्चेसु । पुरओ पर्णिदिजीवा वयंति तो हुञ्ज को दोसो १ ।। ६० ।। अह आगममंमि एए बुत्ता हुं हुं सयागमसरूवं । धुत्तेहिं कया कबा कालेण य आगमे जाया ।। ६१ ।। तो अज्जुण्णं अजुग्गं नाऊण मुहंकरो सुगुरु For Private And Personal Acharya Shri Karsuri Gyanmandir नरसुन्दरकथा ॥४१७॥ Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka s uri Gyanmandie नरसुन्दर श्रीदे चत्य श्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥४१८॥ DARASIDAS पासे । पडिवञ्जिय पव्वजं सुगईए भायणं जाओ॥६२॥ आगमहीलामूलं अज्जुणओ अजिउं असुहकम । कालंमि काउ कालं छगलो तत्थेव उववनो ॥६३ ॥ अनदिणे तणएणं मुल्लेणं किणिय पियरकजंमि । गहिओ दुहेण हणिओ कुंभारघरे खरो जाओ ॥६४॥ सीउण्हखुप्पिनासावासाइसुतिक्खदुक्खरिंछोलि । सो सहमाणो सययं बहुकालं दुत्थिओ गमइ ।। ६५॥ कइयावि गुरुभरेणं पडिओ भग्गेसु सपलभंडेसु । कुविएण कुलालेणं लउडेण हओ गओ निहणं ।। ६६॥ विट्ठाभक्खणनिरओ तो गड्डास्यरो समुप्पन्नो। आहेडयसुणएहिं विणासिओ करहओ जाओ ॥ ६७॥ गुरुभारवहणखिनो नइदुत्तडिपडणदलियसव्वंगो। अइविरसमारसंतो दुस्सहपीडाइ मरिऊणं ॥६८॥ गुन्बरगामे जाओ गोधणवणियस्स नंदणो मृओ। अविवेयजणेहिं मिसं विनडिजंतो बहुपयारं ॥६९॥ नियजीवियनिबिनो पडित्तु कूमि मरणमणुपत्तो। नंदिग्गामे जाओ ठक्कुरगेहमि दासिसुओ ॥ ७० ॥ कइयावि मजमत्तो परमप्पयं तदुभयं च अमुणतो । पुणरुत्तं अकोसइ असरिसवयणेहिं नियसामि ॥७१॥ कुविएण ठकुरेणं जीहा छिंदा| विया अहह तस्स । पीडाभरविहुरंगो विरसंतो कंनकडआई ॥७२॥ केवलकरुणाठाणं तं भूमियले लुठंतयं दहुँ । अइसयनाणी साहू महुरगिराए इमं भणइ ॥ ७३ ॥ किं भद्द! कुणसि एवं खेयं अइदुसहदुहमरकंतो। जम्हा तइच्चिय कयं जं कम्मं तस्स फलमेयं ॥७४|| तथाहि-अज्जुणजम्मविणिम्मियआगमनिंदाफलेण जाओ सि। छयलो खरो वराहो करहो तह सूयरोदासो ॥७५ ॥ इय सोउ सरिय जाई सो भत्तीए नमेइ मुणिपवरं । पच्छायावपरिगओ अप्पाणं सुबहु निंदतो ।। ७६ ।। मरिऊणं सो जाओ तुममिह नरसुंदरो महीनाहो । पुन्वभवन्भासाओ नाहियवाए य तुह रंगो ॥७७॥ इय सुणि पुन्वभवे सरिउं निव्वेयपरिगओ राया। कुमरंमि अमरसेणे रजभरं झत्ति संठविउं ॥ ७८ । आगमहीलामृलस्स पावपुंजस्स निट्ठवणहेउं । कारेवि चेइएसुं आगमपुत्थेसु I ma musaitmanand ॥४१८॥ For Private And Personal Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri www.kcbalirth.org I दोषाः श्रीदे. चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधी ॥४१९॥ DS tein Aradhana Kendra Acharya Shri K a buri Gyarmandie पूयाओ ॥७९|| सुमइवरमंतिकइवइसामंतजुओ महाविभूईए । पडिवाइ पव्वजं ससिप्पहायरियपयमूले ॥ ८० ।। नरसुंदरराय- कायोत्सर्गरिसी सयागमे पढमआगमं गुणइ । आगमपुरस्सरं चिय करेइ सयलाउ किरियाओ ॥८१।। आगमविहिणा बहुआगमाण भत्तीइ स बहु वटुंतो। आगारुस्सग्गविऊ विऊण संगमि गुरुहरिसो ॥८२॥ कमसो गुरुप्पसाया सयलागमजलहिपारगो जायो। गुरुणा गुणगणकलिओत्ति जाषिउं नियपए ठविओ ।।८३॥ भवियाण उग्गकुग्गहविणिग्गहं निययवयणमंतेहिं । कुव्वंतो सो भयवं सुइरं | वमुहाइ विहरित्था ।।८४॥ निष्फाइऊण सीसे वरसीसं नियपयंमि ठविऊण । अंते काउ अणसणं पत्तो सव्वट्ठसिद्धमि ॥८५।। तो चविय विदेहे निवपुत्तो होउं दुहावि दधम्मो । नरमुंदरनिवजीवो धुयकम्मो पाविही मुक्खं ॥८६॥ श्रुत्वेति वृत्तं नरसुंदरस्य, सदागमाराधनसुंदरस्य । साकारशुद्धौ जिनवंदनायां, साकारसज्ज्ञानकृते यतध्वम् ।।८७॥ इति नरसुंदरनरेश्वरदृष्टांतः।। प्रकटितं 'सोलस आगार'त्ति एकोनविंशं द्वारं, सांप्रतं 'गुणवीसदोस'त्ति विंशतितमं द्वारं प्रादुष्कुर्वनाह घोडग १ लया य २ खंभे कुड़े३माले य ४ सबरि ५ वहु ६ नियले ७। लंबुत्तर८ थण९ उद्धी१० संजइ११ खलिणे य१२ वायस१३ कविढे १४ ॥४५॥ सीसोकंपिय१५ मूई१६ अंगुलिभमुहाइ१७ वारुणी१८ पेहा१९ एगूणवीस दोसा काउस्सग्गंमि वजिजा॥४६॥ एतदर्थः-आसुव्व कुणइ विसमं पय१ मनिलाहयलयव्व कंपेइ २। थमे कुडे अवथंभइत्ति३ माले य निहइ सिरं॥१॥ अवसणसवरिव्व करे करइ पुरोः कुलवहुन्न नमइ सिरं ६ । वित्थारइ मेलइ वा दुनिवि पाए नियलिउन्न ७॥२॥ लंबुत्तरं च हवई जाणु अहो नाहिउवरि वा पट्टे८ । पट्टेण छायइ थणे मसाइरक्खट्ठ व अनाया९ ॥३॥ बाहिरउद्धी मेलइ पण्हीउ पसारई पुरो पाए | illn४१९।। n dia MAMATA u mpMIRATIONAMInia hAHIMIRRIANDIA Priapl MI For Private And Personal Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Martin Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kayseresuri Gyanmandir नागदत्त रामकथा श्रीदे० पण्डिपसारणअंगुमिलणे अभितरा उद्धी १० ॥४॥ पाउणइ संजईविव ११ पुरओ खलिणव्य धरइ रयहरणं १२ । चलचित्तवाचैत्य० श्री-1| यसोविव चक विकखिवइ दिसिविदिसि १३ ॥५॥ छप्पइयभया पट्टे कुणइ कविट्ठ व१४ कंपइ य सीसं जक्खगहिउव्य १५ धर्म संघा मूयव्य हूहूयइ छिंदणाईसु १६ ।।६।। अंगुलिभमुहे चालइ आलावगगणणजोगठवणत्थं १७ । बुडबुड्डुइ अहब मुरव्व १८ वानचारविधौ रोविव चलइ ओढे १९ ॥७॥ इह लंबुत्तर १ थण २ संजइति दोसा न हुंति समणीणं । लंबुत्तर १ थण २ संजइ ३ वह य ४ ॥४२०॥ दोसा न सड़ीणो ॥ ८॥ खलिणकविठ्ठदुगं पुण अगीयसेहाइयाण संभवइ । संभवइ गिहत्थाणवि कयाइ एगत्तभावंमि ॥ ९॥ इह देवदसउरपुरे दो मित्ता रामनागदत्तमिहा । हुत्था सयावि दुत्था अमुद्ददारिद्दविहगदुमा ॥१॥ कयकट्ठपाणवित्ती कट्ठाण कए कयावि ते पत्ता । सिवदेहे इव ससिवे सगुहे सेलंधसेलेमि ||२|| अज्झीणझाणलीणं थिमियं निव्वायजलनिहिजलं व। काउस्सग्गेण ठियं मंदरसिहरं व निकंपं ॥ ३ ॥ पावरयपसरहरणे महाबलंपिव महाबलं नाम । नामियअंतरसत्तुं तत्थ नियच्छंति मुणिपवरं ॥४॥जा खणमेगं ते कोउगेण उद्धट्ठिया नियंति तयं । तावच्चिय कुहराओ घणकसिणो निग्गओ भुयगो॥५॥ सो भमिय तुरिय तुरियं इओ तओ किंपि भक्खमलहंतो । गुरुकोवो त साहुं दसिय पविट्ठो सवम्मीए॥ ६॥सो तहवि मुणिनरिंदो तेण विसेणं मणपि नकतो । नय झाणाओ चलिओ तो गाढं विम्हिया एए॥७॥ चिंतंति अहो एस मुणि अणप्पमाहप्पभवणमम्हेहिं । | दिवो दोगच्चहरो पुन्नेहिं कप्परुक्खुब्ध ॥८॥ पारियकाउस्सग्गो जा भणिओ तेहिं मुणी कहसु भयवं!। लंबंतभुया निचलदिट्ठी केयं अवस्था भे? ॥९॥ एइ अवत्थाए न तु तुम्भं भुयगाइणोऽवि पहवंति । इय अम्ह दिट्ठपुव्यं तो वजरए इमं साहू ॥१०॥ काउस्सग्गावत्था भद्द ! भद्दाण कारिणी सा उ। सिओसिआइमेएहिं णेगहा वनिया समए ॥ ११ ॥ उसिओ१ उसिओ २ ॥४२०॥ For Private And Personal Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥४२१॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kaasuri Gyanmandir तइओ ऊसियनिसन्नाओ चैव ३ निसन्नू सिओ४ निमन्नो ५ निसन्नगनिसन्नओ चेव६ || १२ || निवन्नूसिओ७ निवन्नो८ निवन्नगनिवनगो य नायव्वो ९। एएसं तु पयाणं पत्तेयपरूवणं वुच्छं ||१३|| धम्मं सुकं च दुवे झायइ झाणाई जो ठिओ संतो। एसो काउरसग्गो उसिओसिअ होइ नायन्यो || १४ || धम्मं सुक्कं च दुवे नवि झायइ नविय अट्टरुदाई। एसो काउस्सगो दब्बुसिओ होइ नायव्वो । १५ ।। अहं रुदं च दुव्वे झायर झाणाई जो ठिओ संतो। एसो काउस्सग्गो दब्बुसिओ भावउ निसन्नो ॥ १६ ॥ धम्मं सुक्कं च दुवे झायइ झाणाई जो निसन्नो उ। एसो काउस्सग्गो निसन्नुसिओ होइ नायव्त्रो ॥ १७ ॥ धम्मं सुकं च दुवे न झायइ नविय अट्टरुदाई। एसो काउस्सग्गो निसन्नाओ होइ नायव्त्रो ||१८|| अहं रुदं च दुवे झायह झाणाई जो निसन्नो उ । एसो काउ|स्सग्गो निसन्नगनिसन्नओ चेव ।। १९ ।। धम्मं सुकं च दुवे झायइ झाणाई जो नित्रनो य। एसो काउस्सग्गो निवन्नुसिओ होइ नायडो |||२०|| धम्मं सुकं च दुवे नवि झायइ नविय अट्टरुद्दाई। एसो काउस्सग्गो निवन्नओ होइ नायव्वो ॥ २१॥ अहं रुदं च दुवे झायह झाणाहं जो निवन्नो य । एसो काउस्सग्गो निवन्नगनिवन्नओ नाम ||२२|| निम्मियदुग्गइपोसा,दोसा घोडगलयाइया जत्थ । जत्तेण वजियव्वा जिणपडिकुट्टत्तिका || २३ || देहमइजडसुद्धी सुहदुक्खतितिक्खया अणुप्पेहा । झायइ सुहं झाणं एगग्गो काउसग्गंमि ||२४|| जह करगओ निकिंतर दारुं इन्तो तहेव जंतो य । इय कांति सुविहिया काउस्सग्गेण कम्माई ||२५|| काउरसग्गे जह सुट्टियस्स भजति अंगमंगाई । इय भिदंति सुविहिया अट्ठविहं कम्मसंघायं ||२६|| दिसतवा तत्ततवा महातवा काउसग्गथिरचित्ता | आमोस हिपमुहाहिं लद्धीहिं जुआ हवंति मुणी || २७ || गयगवयरुदसद्दूलसीहभुयगाइ दुट्ठजंतुगणा । थिरकयकाउस्सग्गस्स साहुगो नेव पभवंति ।। २८ ।। काउस्सग्गंमि ठिओ जिणबिंबं सुत्तमत्थमुभयं च । सुहभावबुडिहेउं अन्नंपि सुहं For Private And Personal नागदत्तरामकथा ॥४२१॥ Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavis in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaleshea masuri Gyanmandir नागदत्तरामकथा श्रीदे चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥४२२॥ JAUNPPARAMEANILSINADI । विचिंतिजा ॥२९॥ काउस्सग्गथिरमणा गिहिणोऽवि पवढमाणसुहझाणा । चंदवडिंसयपमुहा भविया तियसालयं पत्ता ॥ ३०॥ तथाहि-आसी साएयपुरे चंदवडिंसयनिवो परमसडो। स कयावि निसाइ मुहे अभिग्गहं गिण्हए एवं ॥३१॥ एसो जाव पईवो जलेइ ता मे न पारियव्योऽयं । काउस्सग्गो उग्गो लहुवियरियसग्गअपवग्गो ।। ३२ ॥ मा होउ सामिसालस्स तिमिरभरपसरओ इहुन्वेओ । इय सिजापालीए तिल्लेण स पूरिओ दीवो ॥३३॥ एवं चउसुवि जामेसु तीए दीवे पदीविए बाढं । लग्गो पइविउं जे झाणपईवो निवस्सावि ॥३४॥ गोसे पुण विज्झाए दीवे भणि नमोऽरिहंताणं । पारइ काउस्सग्गं निवो अविज्झायसुहझाणो | ॥३५।। फुडखुडियसंधिबंधणतणुरतणुतुदृकंमपन्भारो। चंडवंडिसो सुरसुंदरीण नयणातिही जाओ ॥३६॥ इय रामनागदत्ता काउस्सग्गस्सऽणप्पमाहप्पं । सोउं पमुइयमणसा मुणिपवरं विन्नवंति इमं ।। ३७ ॥ दोगच्चमिया मो रयणनिहाणं व तुम्ह पयकमलं । पव्वजागहणेणं इच्छामो सेविडं संमं ॥३८।। जंपेइ मुणी भद्दा! न एगदोगच्चदोसनिम्महणी । एसा जिणिंददिक्खा अपुवकप्पहु-1 मलयब्ध ॥३९॥ सेसाणवि किंतु मणिच्छियाण संपायणिकपत्तट्ठा । दिट्ठा पञ्चक्खं चिय तदेगचित्ताण सत्ताणं ॥४०॥ एवं चिय | पडिवन्जिय जिणगणहरचकिहलहरप्पमुहा। पुरिसवरा संपत्ता ठाणं गयसयलदोगचं ।४१। तयणु घणहरिसपुन्ना ते दोऽवि मुणिस्स तस्स पासंमि । दिक्खं गिण्हंति समजिगंति बहुचरणकरणधणं ॥४२॥ चित्ते चिंतंता पुव्वपिच्छियं काउसग्गमाहप्पं । अभिभवकाउस्सग्गं जया तया ते पवजंति ॥ ४३ ॥ नवरं पमायभावेण नागदत्तो ठिओऽवि उस्सग्गे । घोडलयाई दोसे सुहसोसे आयरइ बहुसो ॥४४॥ पन्नविओऽवि गुरूहि धिट्ठो वठुत्तराई पकरेइ । चरणं विराहिय मओ भवणवईसु सुरो जाओ ॥४५॥ राममुणी उण निव्वणचरणो जाओ सुरो पढमकप्पे। ता नियनियठाणाओ ते चविउं रामनागजिया ॥४६॥ इह भरहे कुसुमपुरंमि दत्त HIRAGAR HIPHARMA ||४२२॥ HINDI For Private And Personal Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka s uri Gyanmandir श्रीदे० नागदत्तरामकथा IAN चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ ॥४२३॥ | सिद्विस्स नंदणा जाया। जयविजयति पसिद्धा अन्नुन्नं निविडपडिबंधा ॥४७॥ समसुहसुहिया समदुक्खदुक्खिया ते कयावि उजाणे । दटुं नमति तुट्ठा केवलिणमणतनामाणं ॥४८॥ तेणवि तेसिं कहिओ दुहावि धंमो हिओ पबंधेणं । जाओ जओ खणेणं दिक्खागहणिकपरिणामो ॥४९॥ विजयस्स उ पुब्वभवाइयारदुक्कम्मदृसियमणंमि । नहु लग्गइ मुणिवयणं कुंकुमरागुब्ब मलिणंमि ॥५०॥ जह जह केवलिवयणं पविसइ विजयस्त सवणकुहरंमि । तह तह अणप्पसंकप्पसंकुलं अहह होइ मणं ।।५१।। अहणुनविओ पिउणा अनंतवरनाणिणो समीमि। दिक्खं गहिऊण जओ जाओ मुक्खाण आभागी ।। ५२ ॥ विजओ पुण जिणधम्म अमुणतो कयदुरंतआरंभो । मरिउं पत्तो कुगई पुरओ भमिही भवकडिल्ले ।। ५३ ॥ रामस्येत्थं शतदलदलप्रोज्ज्वलं धर्मरम्यं, वृत्तं श्रुत्वा प्रकृतिमलिनं नागदत्तस्य तद्वत् । भव्याः! लोकाः कुरुत रहितं वाहवल्ल्यादिदोषैः, कायोत्सर्ग स्फुटविघटितानंतदुष्कर्मजालम् ॥५४॥ इति रामनागदत्तकथा ।। व्याख्यातं 'गूणवीसदोस'त्ति विंशतितमं द्वारं, संप्रति 'काउस्सग्गमाण'त्ति एकविंशं द्वारं व्याचिख्यासुर्गाथापूर्वार्धमाह इरिउस्सग्गपमाणं पणवीसूसास अट्ठ सेसेसु। ईर्यापथिक्याः कायोत्सर्गस्य प्रमाणं करणकालावधिः पंचविंशतिरुच्छासाः,चैत्यादिविषयगमनागमनायतिचारविशोधकत्वात् , तथा चागमः-"भत्ते पाणे सयणासणे य अरिहंतसमणसिञ्जासु । उच्चारे पावसणे पणुवीसं हुंति ऊसासा॥१॥" तथा भाप्ये 'पणवीसं ऊसासा इरियावहियाइ उस्सग्गे'त्ति । ते चतुर्विंशतिस्तवेन 'चंदेसु निम्मलयरा' इत्यतेन पंचविंशतिपदैः पूर्यते, 'पायसमा उस्सासा' इति वचनात् , ततश्च नमस्कारेण पारयित्वा संपूर्णश्चतुर्विंशतिस्तवः पठ्यते इति वृद्धाः, एवं चास्य दैवसिकप्रतिक्रमण ॥४२३॥ For Private And Personal Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka s uri Gyanmandir शशिनृप कथा श्रीदे० | वाद्यभावः, तेषां दिवसायतिचारविशोधकत्वादितश्चतुर्गुणाधुच्छासादिमानत्वान्नियतकायोत्सर्गत्वाद् , अस्य त्वनियतत्वात् , तथा चैत्यश्री चार्ष-"साय सयं गोसद्धं तिन्नेव सया हवंति पक्खंमि । पंच य चाउम्मासे अट्ठसहस्सं च वारिसिए ॥१॥ चत्तारि दो दुवालस धर्म संघाचारविधौ HINवीसं चत्ता य हुँति उज्जोया । देसियराइयपरखिय चाउम्मासे य वरिसे य ॥२॥देसियराइयपखिय चाउम्मासे तहेव वरिसे य। एएसु हुंति नियया उस्सग्गा अनियया सेसा ॥ ३ ॥ शेषा-गमनागमनादिविषयाः, विचारणीयं बह्वत्र सूक्ष्मधियेति, तथा अष्टौ ॥४२४॥ उच्छ्वासाः शेषेपु-चैत्यवंदनाकायोत्सर्गेषु कालमानमिति, यदागमः-"अद्वेव य ऊसासा पट्ठवणपडिक्कमणमाईसु" न चात्रामी न गृहीता इति वाच्यं, आदिशब्दाक्षिप्तत्वात् , उपन्यस्तगाथासूत्रस्योपलक्षणत्वात् , अन्यत्रापि चागम एवंविधमत्रादनुक्तार्थसिद्धेः, PA उक्तं च-'गोसमुहणंतगाईत्यादि, अत्र मुखवत्रिकामात्रोक्ते आदिशब्दाच्छेषोपकरणादिपरिग्रहोऽवसीयते, सुप्रसिद्धत्वात् प्रतिदि वसोपयोगाच न भेदेनोक्त इति, इहोच्छासमानमित्थं, न पुनर्येयनियमः, यथापरिणामेन हि तत्, स्थापनेशगुणतत्वानि वा स्थानवार्थालंबनानि वा आत्मीयदोषप्रतिपक्षो वा, प्रतिविशिष्टध्येयध्यानं हि विवेकोत्पत्तिकारणमित्यलं प्रसंगेन । इह सिद्धपुरे | नयरे आसी सूरप्पहो महीनाहो । कयकुवलयउकरिसो ससिव्व पुत्तो ससी तस्स ॥१॥स कयावि नियारामं भजतं सोउ वणवराहेण । तं रक्खिउं हयगओ सपरियणो निग्गओ नयरा ॥२॥ सो कोलो दढदाढाकडप्पकप्परियतुरयचरणखरो। घणघोरघुरुघु| रारावपसरभरभरियभुवणयलो॥३॥ हयमहियं कुमरबलं इओ तओ अक्कमललीलाए । पवणोविव क्खिवंतो अडवीहुत्तं स उच्चलिओ | ॥४॥ कुमरोऽवि तस्स पुट्ठीइ पढिओ वाउवेगतुरगेण । इक्कोवि चंडकोदंडकंडवरिसं करेमाणो ||५|| वणसूयरो उ कत्थवि गयरूवधरो कहिंपि हरिरूवो । दूरं गंतु खणेणं कत्थवि लक्को वणनिउंजे ॥३।। जा तत्थ रायतणओ पविसइ ता नियइ मुणिवरं इकं । ॥४२४॥ For Private And Personal Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org u ri Gyanmande शशिनृप Shri V श्रीदे० चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ ॥४२५॥ in Aradhana Kendra Acharya Shri Ka | काउस्सग्गोवगयं न उणो तं वणवराहति ॥७॥ किमिणति चिंतिऊणं तुरियं तुरगाउ ओयरिताणं । भत्तिभरनिम्भरो सो पडिओ मुणिणो चरणजुयले ॥८॥ पारियउस्सग्गेणं उचिए समयंमि तेण वरमुणिणा । दत्तासीसो सीमुच्च तस्स पासे स आसीणो ॥९॥ | तक्कहियं धम्मकहं सवित्थरं सोउ गुरुपमोयजुओ। मनंतो कयकिच्चं अप्पं गिण्हेइ गिहिधम्म ॥१०॥ पुच्छेइ पुणो भयवं! को | एसो सूयरुत्ति आह मुणी । पुब्बभववेरिओ खुद्दवंतरो तं छलिउकामो ॥११।। कयवणवराहरूवो बहुरूवेभाइयं तु पयडित्था । इह जा पत्तो अक्खुहियचित्तं नाउं निलुको य ॥ १२ ॥ पुण पुढे कुमरेणं हिट्ठामुहलंबमाणभुयजुयलो। को एस तवविसेसो भयवं ! | किमिमस्स परिमाणं ॥१३॥ "भणइ मुणी भो निवसुय! दब्बुसियप्पमुहबहुविहविगप्पो। एसंतरंगरूवो काउस्सग्गत्ति पवरतवो॥१४॥ नवरमिमो दुविगप्पो चिट्ठाए अभिभवे य नायब्यो । चिट्ठाएऽणेगविहो कालपमाणं च से बहुहा ॥१५॥ तथाहि-देसिय राइयपक्खिय | चाउम्मासिय तहेव वरिसे य । नियया काउस्सग्गा इरियाइसु अनियया हुंति ॥१६॥ सायसयं गोसद्धं तिनि सया पक्खियंमि ऊसासा। पंचसया चउमासे अट्ठसहस्सं च वारिसिए ॥१७। अनिययउस्सग्गेमु य इरियाइसु पंचवीस ऊसासा । पट्ठवणपडिकमणाइसु उद्देसाईसु सगवीसा ॥१८॥ अभिभविउं दुक्कामं कुद्धेण सुराइणा व अमिभविओ। जं कुणइ काउसग्गं सो अमिभवकाउसम्पत्ति ॥१९॥ कालपमाणं च इहं उक्कोसं वरिसमवहिमासु । बाहुबलिप्पमुहाणं जहन्नमंतोमुहुत्तं तु ॥२०॥ नवरं अमिभवउस्सग्गवत्तिणो अगणिसप्पमाईहिं । खोभेवि अकयकजस्स जुञ्जए नेव परिचइडं ॥२१॥ वासीचंदणकप्पो जो मरणे जीविए य समदरिसी। देहे अ अपडिबद्धो काउस्सग्गो हबति तस्स ॥२२॥ तिविहाणुवसग्गाणं दिव्वाण य माणुसाण तिरियाणं । संममहियासणाए काउस्सग्गो हवइ सुद्धो ॥२३॥" उदिओदयस्स रनो पच्चक्खं फलमिमस्स य तहाहि । इह पुरिमतालनयरे राया उदिओदओ आसी॥२४॥ ॥४२५॥ WAR For Private And Personal Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥४२६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarpuri Gyanmandir सो जिणसमए कुसलो आवस्सय माइनिश्च्चकिञ्चरओ । बाहिरवित्तीइ च्चिय र रङ्कं च चिंतेइ ||२५|| सिरिकंता से कंता ओरोहगयाइ तीइ कइया वि । जिणसमए कुसलाए निम्मलसुइसीलसोयाए ||२६|| जलसोयकहणपवणा एगा पव्वाइया जिया वाए। दासीहिं निच्छूढा ओरोहा सा तओ रुट्ठा ||२७|| लहु चित्तपट्टियाए तीसे रूवं लिहेवि साइसयं । वाणारसीह पत्ता धम्मरुइनिवस्स पासंमि ||२८|| दंसेड़ चित्तपहिं सो तं रूवं निएवि पुच्छेइ । जियमयणधरिणिरूवं नु कीइ रूवं इमं ? भद्दे ! ||२९|| सा जंपइ उदिओदयनरिंद कंताइ पुरिमतालपुरे । सिरिकंताए रूवं लेसुदेसेण मे लिहियं ॥ ३०|| अह राया थीलोलो सिरिकंतं मग्गए स दूएण । उदिओदओ न वियरइ धम्मरुई फुरियगुरुकोवो || ३१ || चउरंगबलसमेओ तं नयरं वेढिउं समंतेण । आवासिओ बहिं तो चिंत उदिओदओ एवं ||३२|| अहह सउन्ना केऽवि हु गिण्हंति वयं चएवि रजपि । अन्ने तव्विवरीयं कुणति एमुव्त्र ही मोहो ||३३|| कुप्पहपय चित्ता चिंतियमत्थं कयावि न लहंति । एयंपि इमो न मुणइ हहा सया कामगहगहिओ || ३४ ॥ अचंतधम्मवज्झेण जइविय अणुचियमिणं कयं इमिणा । मुणियतत्तस्स तहविहु नहु मह कप्पड़ पडिकरे || ३५ || बहुमत्तसंघसंघायणाण संपाइयाण कजाणं । फलमवि तप्पडिरूवं भावि धुवं ता कहिं ते हि १ || ३६ || सो अत्थो तं जीयं ते भोगा सो य सयणसंबंधो। सा कित्ती तं खलु पोरिसंपि तं हुज रपि ॥ ३७ ॥ जं धम्मस्स विरुद्धं न होइ कइयावि कहवि कत्थविय । तव्त्रिवरीयते पुण तल्लाभोऽविहु अलाभुति ।। ३८ ।। इय निच्छिऊण परिणामियाइ संमं मईई स महत्या । तड्डमराभिभवत्थं काउस्सग्गं पवनेइ || ३९|| तस्सतरंजियमणो वेसमणो जलहलंतआहरणो । पञ्चक्खीहोउ खणेण आह भो रायसद्द्ल || |४०|| पारेसु काउसग्गं आदेसं देसु जेण तुह सत्तुं । निहणेमि सबलमेयं रसायले वा खिलेमि लहुं ४१ ॥ तो पारिय उस्सग्गं निवई कारुन्ननीरनीरनिही । धम्मजुयं वयणमिणं ॥ For Private And Personal शशिनृप कथा ||४२६॥ Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ShriMHERAradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kal ri Gyanmandir श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥४२७॥ कहेसि हे जक्खरायवर! ॥ ४२ ॥ एगस्स कए नियजीवियस्स बहुयाउ जीवकोडीओ । दुक्खे ठवंति जे केइ ताण किं सासयं || शशिनृपजीयं? ॥४३|| जेवि मुभूमप्पमुहा तिसत्तखुत्तो करिंसु जीववहं । तेसिपि दुग्गदुग्गइपडणाउ परं न किंपि फलं ॥४४॥ ता जह कथा अम्हं धम्मो न हायइ मणंपि जह व सत्तुबलं । पावइ अपत्तपीडं नियठाणं कुणसु तह तुरियं ॥ ४५ ॥ एवंति भणेऊणं जं जत्तो आगयं तयं तत्थ । मुत्तुं परबलमखिलं गओ सठाणमि जक्खपहू ॥ ४६॥ उदिओदयरायाविहु निचं उस्सग्गकरणउज्जुत्तो। धम्मं काउ विमुद्धं जाओ सुक्खाण आभागी॥४७॥ इय सोउं निवपुत्तो उस्सग्गुप्पन्नगाढपडिबंधो। पच्छा पहुत्तनियबलसमन्निओ नमियमुणिचरणो ॥४८॥ पत्तो नियंमि नयरे गिहिधम्मं पालए निरइयारं । अह सूरप्पहराया वेसावसणेणमभिभूओ ॥ ४९ ॥ अइमजपाणमत्तो रजाइअचिंतगो पहाणेहिं । कारेवि मजपाणं कयावि चत्तो अरनंमि ॥५०॥ ठविओ कुमरो रज्जे तेहिं सुविसुद्धधम्मकम्मपरो । दुकम्मक्खयहेउं उस्सग्गमभिक्खणं कुणइ ॥५१॥ इत्तो सूरप्पहनरनाहो खणमित्तलद्धचेयन्नो । वेरग्गोवगयमणो तावसदिक्खं पवजित्ता ॥५२।। जाओ वंतरदेवो पउत्तओही निएवि नियपुत्तं । रिद्धिसमिद्धं रज पालंतं वसणपरिहीणं ॥५३॥ तो फुरियपबलकोवानलो चिंतिउं समाढत्तो । पिच्छह मह विरहे हयसुयस्स सोगाइरेगत्तं ।। ५४ ॥ मन्ने इमिणच्चिय पावपंकमलिणेण रजतिसिएण । अडवीनिवाडणं मह करावियं विगयलज्जेण ॥५५।। जइविहु सपहुविहीणे रजे रायंतरं पयर्टेति। रजाभिलासिणो | हुंति मंतिणो तहवि नऽवराहो ॥५६॥ ता नत्थि ताण दोसो दोसो एयस्स चेव कुसुयस्स । इणमेव अओ पावं सज्जोऽणज्ज निगिण्हामि | ॥५७। एवं चिंतिउ अंतो पसरंतमहंतअमरिसुक्करिसो । सो वाणवंतरो ससिनिवस्स पासे लहुं पत्तो ॥५८॥ रायावि रजकजाई चिंतिउं विहियदेवगुरुपूओ। एगग्गमणो विजणे काउस्सग्गं समल्लीणो ॥ ५९ ॥ तस्संमुहमचयंतो टुंपि झडत्ति तो पडिनियत्तो। ॥४२७॥ माHITRAP ill For Private And Personal S Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shi n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka p ri Gyanmandie विजयकुमारकथा श्रीदे. चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥४२८॥ कंमिवि काले पत्तो पुणोऽवि तह चेव तं दटुं॥६० ॥ झत्ति नियत्तो स पुणोवि तइयवेलाइ तं तहुस्सग्गे । लीणमणं पासित्ता | इय चिंतइ ववगयामरिसो ॥६१॥ धन्नो एस नरिंदो जो एवं रजदंडपडिओऽवि । सययं सुधम्मकम्मे समुज्जुओ चिट्ठइ महप्पा ॥६२॥ तो चवलकुंडलधरो पच्चक्खी होउ कहिय नियचरियं । बहुसो खामित्तु निवं पत्तो अमरो सठाणंमि ॥६३।। ससिरायाविहु सविसेसकाउस्सग्गाइमुद्धधम्मपरो । इह परभवे य परमं कल्लाणपरंपरं पत्तो ॥६॥एवं भव्याः! शशधरकरश्लोकसंभारसारं, श्रुत्वा वृत्तं विशदमहसः श्रीशशिक्ष्मापतींदोः। कायोत्सर्गे प्रमितिकलिते क्लिष्टदुष्टाष्टमेदस्फूर्जत्कर्मप्रचयदलनप्रत्यले धत्त यत्नम् ॥६५॥ इति शशिराजज्ञातं । प्रतिपादितं 'उस्सग्गमाणं'ति एकविंशं द्वारं,इदानीं 'थुत्तं चति द्वाविंशं द्वारमाविष्कुर्वन् गाथोत्तरार्द्धमाह गंभीरमहुरसई महत्थजुत्तं हवइ थुत्तं ॥५८॥ ___ गंभीरा व्यंग्यार्थान्योक्तिवक्रोक्तिकठोरोक्त्यादिगर्भा मधुराः-सुश्लिष्टाक्षराः शब्दा यत्र तत्तथा, यद्वा मधुरो-मालवकैशिक्यादिग्रामरागानुगतः शब्दः-खरो यत्र, अस्ति सकलामरहिता वरंभा हरिपुरीव चक्रपुरी। तत्थ निवो बलभद्दो पुरिसुत्तमहिययहरिसकरो ॥१॥ दृढगाढप्रतिबंधः श्रीगुप्ताख्यः कुबेरसमविभवः। सहर्पसुकीलिओ तस्स आसि मित्तो महाकिविणो ॥२॥न ददाति स्वजनेभ्यः किंचिन्न व्ययति किंचिदपि धर्मे । धणमुच्छाए वजइ गमागमं सवठाणेसु ॥३॥ नवरं चिरपुरुषागतजिनवरधर्मक्षणं यथावसरम् । जिणपूयणाइपमुहं जहापयर्ट कुणइ किंपि॥४॥ उत्खननखननपरिवर्तनादिभिस्तद्धनं निजं नित्यम् । अवहारसंकियमणो गोवंतो सो किलेसेइ ॥५॥ तस्यान्येयुर्जज्ञे तनयः सुविनय उदारभावयुतः । तन्वयणभएण धणं सम्बंपि निहेइ भुवि सिट्ठी ॥६॥ अपरेधुरुद्गतधनमूर्छः श्रेष्ठी जगाम परलोकम् । पिउणो मयकिच्चाई कारइ विजओ ससोगमणो॥ ७॥ सदनांत: ॥४२८॥ For Private And Personal Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma h Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila l i Gyanmandir विजयकुमारकथा श्रीदे चैत्य० श्रीधर्म० संघाचारविधी ॥४२९॥ किंचिदपि द्रव्यमपश्यन्नसौ बहुक्लेशैः। भोयणमवि अज्जंतो कयाविजणगीइ इयमुत्तो॥८॥वत्सेह स्थानेष्टौ कोट्यः कनकस्य संति निक्षिप्ताः । तुह पिउमा ता गिण्हसु कयं किलेसेहिं सेसेहिं ॥९॥ विजयोऽथ निधिस्थानं विधिना खनितुं समारभत यावत् । ता उबल| वरिसबहुलो उच्छलिओ तत्थ हलवोलो ॥१०॥ अहह ममाभाग्यवशात् समप्ययमर्थसंचयो हि कथम् । समहिडिओ सुरेहि? कह| मन्नह इह भवे विग्यो ? ॥११॥ एवं विजयः सुचिरं विचिंत्य निंदनभाग्यमात्मीयम् । तं वुत्तंतं नाउं लहु पत्तो केवलिसमीवे ॥१२॥ तस्मिन् समये बलभद्रभूपतेर्मुनिपतिः कथयति स्म । जिण्णुद्धारस्स फलं परमं सिवसुक्खपजंतं ॥१३॥ विजयो व्यचिंतयदथो यदि पितुरोंच्चयं लभेहमिमम् । तो कारेमि जिणगिह जिन्नं वा उद्धरावेमि ॥१४॥ इति शुभमनोरथगणः श्रेष्ठिसुतो मुनिवरं नमस्कृत्य । पुच्छइ भयवं! को मह निहाणलाभस्स विग्धकरो? ॥१५॥ निजगाद मुनिवरिष्ठः तव पित्रा भद्र! तीव्रमूर्छन । पावियवंतरभावेग | एस समहिडिओ अत्थो ॥१६॥ विजयोऽथ केवलिगुरुं नत्वा संभाल्य मातुरावासम् । उत्तरदेसंमि गओ ठिओ जयंतीपुरीइ बहिं| | ॥१७॥ तत्र च भूइलनामा बहुमंत्रः खन्यवादविद्यायुक् । अस्थि विसिट्ठो विप्पो जाया सह तेण से मित्ती ॥१८॥ अन्येधुरादरवशात् तत्रैव निवासिना महेन्द्रेण । आहूय महावणिणा कहियमिमं भूइलस्स जहा ॥१९॥ पूर्वपुरुषार्जितं मे ददते न व्यंतरा धनं लातुम् । अद्धं तुह अद्धं मह तल्लाभे कुणसु ता जत्तं ॥२०॥ वश्यान् विदधे मंत्रप्रभावतो व्यंतरानसौ झगिति । लिंति निहिदव्वमखिलं विभइय हिहा इमे तयणु ॥२१॥ तं दृष्ट्वा विजयोऽपि प्रमोदभागभूदलं समाराध्य । गिण्हित्तु तस्स पासे तं मंतं नियपुरं पत्तो ॥२२॥ सा तेन यत्नपूर्व निधिभरभिमंत्रिता पितृसुरोऽथ । तीऍ महीए संमुहमवि पिच्छेउं अपारंतो ॥२३॥ उद्विग्रमना गाद विभंगविज्ञातकार्यपरमार्थः। एगंते ताणकए पत्तो बलभदनिवपासे ॥२४॥ अभमन्च भूप ! सोऽहं श्रीगुप्ताख्यस्तवास्मि वरमित्रम् ॥४२९॥ For Private And Personal Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mah in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashersuri Gyanmandir श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥४३०॥ पत्तो वंतरभावं नियनिहिभूमीइ चिहामि ॥२५ ।। तामधुना निधिलोभी विजयस्त्याजयति मामतो मित्र! वारसु जत्तण तयं इय|| || विजयकुभणिय तिरोहिओ देवो ॥२६॥ वृत्तांतमिमं राजा विजयस्याचष्ट सोऽप्युवाचैवम् । देव ! इममत्थसत्थं नियकजकए न गिहामि ॥२७॥ मारकथा | किंतु श्रीमजिनराजमंदिरं सुंदर विधापयितुम् । मा अक्रयत्थो अत्थो भूमीमज्झे मुहा होउ ।।२८॥ इत्यादि युक्तमुक्तो राजा विजयेन समुदितः प्राह । धन्नोऽसि विजय ! जो चेइयत्यमिय उज्जमं कुणसि ॥२९॥ तद् विजय ! वांछितार्थः सिध्यतु तव शीघ्रमिति | नृपानुमतः। तकजकरणपणो सविसेसयरं इमो जाओ ॥३०॥ संध्याकृत्यं कृत्वा राजा शयनीयपरिगतो रजनौ । सुविसनमाणसेणं इय भणिओ तेण अमरेण ॥३१॥ एतद्धि महापापं परो यदर्थ्यत इह क्षमानाथ!। इत्तोवि इमं अहियं जं कीरइतं पुणो विहलं ॥३२॥ अथ सविषादो राजा जगाद तं भद्र ! मा म वद एवम् । कह जाणियजिणवयणो करेमि से धम्मविग्धमहं ॥३३॥ | किं वा तव विफलेन द्रव्यग्रहणेन मुंच मोहमिमम् । अह तूससि दविणेहिं ता गिण्हसु मज्झ सयलनिही ॥३४॥ तदनु विहस्य स ऊचे वीक्षितुमपि तव निधीनहं न लभे । तुह वंतरपासाओ किंवा तुमए इमं न सुयं ॥३५।। याशि तादृशि भूमिभुजि पंच पिशाचशतानि । महति तु यानि भवंति, बत तानि न परिकलितानि ॥३६।। राजाऽऽह वयस्य ! मया किमितोऽपि परं विधातुमिह शक्यम् । नहु नजइ स उवाओ जो लोगद्गेऽवि अविरुद्धो ॥३७॥ श्रुत्वेदं सविषादः स सुरः क्षिप्रं ततोऽपचक्राम । विजएणवि मंतवलेण उक्खया झत्ति नियनिहिणो ॥३८॥ तत्रैव चंपकोद्यानसंस्थितं तेन विभवनिवहेन । सयलंपि सडियपडियं समुद्धरह संतिजिणभवणं ॥३९॥ अष्टाहिकोत्सवमथो कृत्वा स्तुत्वा जिनं महास्तवनैः। धनमन्त्री विजओ सीहदुवारंमि जा जाइ ॥ ४०॥ तावदकर्णखरस्थं चूर्णमषीगैरिकैः कृतविभूषम् । बझं नीणिजंतं जिणगिहपुरओ नियइ चोरं ॥४१॥ तं वीक्ष्य मनसि दध्यौ विजयः श्रीशांतिदृष्टि- ।।४३०॥ PRASTAITHILIPCHIN PDAmerimeHinition RUARTERING muslilittle For Private And Personal Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri olan Aradhana Kendra www.kobatirth.org b uri Gyanmandir श्रीदे चैत्यश्री मारकथा धर्म संघा- चारविधी ॥४३॥ Acharya Shri Ka पतितोऽपि । जइ मारिजइ एसो तो किं मम जीविएणावि ॥४२॥ एनमथ रक्षयित्वा क्षणमेकं सोऽगमन्नृपसमीपे। भालस्थलमिलियकरो एवं विनविउमाढतो ॥४३॥ देव! कृतभुवनशांतेः श्रीशांतेरपि पुरो वधार्थमसौ। निजइ चोरो अचंतमणुचिय वट्टई एवं ॥४४॥ तत् कुरु मम प्रसादं मुंच विभो! तं वराकमतिदीनम् । गिण्हेवि दविणजायं अहवा मह जीवियव्वंपि ॥ ४५ ॥ तदनु भ्रूक्षेपवशात् नरपतिना प्रेरितोऽवदन्मंत्री । सो एस देव! पावो जो तुह अंतेउरस्संतो ॥४६॥ खैरमदृश्यांजनगुरुवलतो व्यचरत्तवाज्ञयाऽद्यासौ। जोगंधरसिद्धणं पडिजोगवलेण विनाओ॥४७॥ उपनिन्ये वः संप्रति देवेनादिष्टमंजनविधि चेत् । साहेइ तओ निविसयकरणाओ तं विसज्जेह ।।४८॥ नो चेद्विडंब्य बहुधा भ्रमयित्वाऽसौ पुरे ध्रुवं घात्यः। पहु! एसो हु हणिजइ आएसो पुण पमाणं मे ॥४९॥ राजाऽऽह विजय ! स पुमान् पापीयान् सर्वथा वधस्याहः। बहुतरविरोहकारित्ति केवलं गरुयकरुणाए ॥५०॥ अंजनकथनपणेनोन्मुक्तो यावन मन्यते तदपि । ता हंतुं चिय उचिओ ता अञ्जवि भणसि तं बाढं ॥५१॥ तं मुंचत इति नान्यो मोक्षोपायोऽस्ति निश्चयो ह्येषः। अम्हारिसाणवि गिरो चलंति जइ ता गयं सव्वं ॥५२॥ विजयेन जल्पितं चेदिदं तदा देहि तंत्रि रात्रं मे । जेणुवलद्धतदिच्छो जहोचियं विनवेमि पहुं॥५३ ।। प्रतिपन्नमिदं राज्ञा नीतो विजयेन सोऽथ निजसदने । हायवि. लेवणवरवत्थभोयणाईहिं उवयरिओ ॥५४॥ श्रेष्ठी द्वितीयदिवसे तेन युतः शांतिनाथभवनमगात् । विहिणा पूएवि जिणं एवं थोडं समाढचो ।.५५।। तथाहि-"सुरराजसमाजनतांहियुगं, युगपजनजातविबोधकरम् । करणद्विपकुंभकठोरहरि, हरिणांकितमर्जुनतुल्यरुचिम् ॥ ५६ ॥ रुचिरागमसर्जनशंभुसम, समभानविलोकितजंतुगणम् । गणनायकमुख्यमुनींद्रनतं, नतवांछितपूरणकल्पनगम् | ॥५७॥ नगराजविनिम्मितजन्ममहं, महनीयचरित्रपवित्रतनुम् । तनुकीकृतवैरिनरेशमदं, मदमत्तगजेन्द्रसदृग्गमनम् ॥ ५८ ॥ AN SunIAS ॥४३१॥ For Private And Personal Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Nahate in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka b uri Gyanmandir विजयकुमारकथा TEL श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधी ॥४३२॥ मनईहितसौख्यविधानप, पटुवाणिजनौषकृतस्तवनं । वनजोदरसोदरपाणिपदं,पदपद्मविलीनजगत्कमलम् ॥५९॥ मलमांद्यविमुक्तपदप्रभवं, भवदुःखसुदारुणदानधनम् । धनसारसुगंधिमुखश्वसितं, सितसंयमशीलधुरैकवृपम् ॥६०॥ वृषकाननसेवननीरधरं, धरणी. धरवंद्यमनिंद्यगुणम् । गुणवजनताऽऽश्रितसच्चरणं, रणरंगविनिर्जितदेवनरम् ॥६१॥ नरकादिकदुःखसमूहहरं, हरहारतुषारसुकीर्तिभरम् । भरतक्षितिपामितबाहुबलं, बलशासनशंसितसाधुजनम् ॥ ६२॥ जनकाद्यनुरागविधौ विमुखं, मुखकांतिविनिर्जितचंद्रकलम् । कलनातिगसिद्धिसमृद्धिपरं, परभक्तिजना नुत शांतिजिनम् ॥६३।। जिनपुंगवनायक शिवसुखदायक नतदेवेन्द्रमुनीन्द्रवर। त्रिभुवनजनबंधुर भवतरुसिंधुर भवभविनां भव भीतिहर ॥१४॥" इत्थमुदारस्तवनं स भण्यमानं निशम्य विजयेन । सिरिसंतिनामधेयं सुयपुव्वं कत्थवि मइति ॥६५।। ईहापोहगतमना मृच्छों प्राप्यास्तचेतनो भूयः। जाइसरो देवयदिनलिंगवेसो मुणी जाओ॥६६॥ अप्राक्षीदथ विजयो भगवन् ! किं तव चरित्रमिदमसमम् । पुव्वावरं विरुज्झइ ? तो इय साहूवि साहेइ ॥६७।। अत्रैव पुरि पुराऽभूत् सुधामिकः श्रेष्टिनंदनः सोमः । चक्कधरामिहरससिद्धमित्तसंनिज्झमाहप्पा ॥ ६८ ॥ अत्रैव शांतिभवने जीर्णोद्धारं व्यधापयद् विधिना । दिना दसग्गहारा ससासणा चेइए रन्ना ॥६९॥ जिनभवनवामपार्श्वे तिष्ठत्यद्यापि शासनानि किल । सासणदेवीइ अहो खित्ताणि तिहत्थमित्तेण ॥ ७० ॥ श्रीचारुदत्तमुनिवरपार्श्वेऽन्येधुर्गृहीतवान् दीक्षाम् । कासी य दुक्करतरं तवचरणं सुचिरमकलंक | ॥७॥ नवरं च चरमसमये कुड्यांतरवर्त्तमानमिथुनगिरम् । सुच्चा सरागचित्तो मरिउं भूएसु जाओ सो ॥ ७२ ।। च्युत्वा ततः समभवत् कौशाम्यां पुरि पुरोहितसुतोऽसौ । चंडो सयंभुदत्तो पत्तो य कमेण तारुनं ॥७३।। व्यसनशतकेलिभवनं निरसार्यत सोऽथ निजगृहात्पित्रा । बहुनयरेसु भमंतो पत्तो कामरुयनयरंमि ॥ ७४ ॥ आकृष्टयंजनमोहनवशीकरणोचाटनादिकुशलमतिः। HMANDERHISHITAmulti t HIRamam huanil ॥४३२॥ For Private And Personal Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M श्रीदे० चैत्य० श्री. धर्म० संघाचारविधौ ॥४३३॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailas दिट्ठो जोई तेणं पडिवनं तस्स सीसत्तं ।। ७५ ।। गाढग्लानोऽन्येद्युस्तेन प्रगुणीकृतो ददौ मुदितः । अंजण सिद्धिं जोई तस्स य भो विजय ! सो अहयं ।। ७३ ।। नवरं तेनेदं मे कथितं कस्यापि मा स्म कथय इमाम् । इहरा तुम्भं सिद्धी विहडेही पिसुणमितुव्व ॥७७॥ अंजनबलेन राजेश्वरादिशुद्धांतसंचरणशीलः । भवियब्वयाइ केणवि नाओ नीओ इममवत्थं ||७८ || नवरं केनावि पुराकृतेन शुभसंचयेन तव दृष्टौ । अमयसमाए पडिओऽम्हि गोयरं जीविओ तेण ।। ७९ ।। त्वत्कृतशांतिजिनेशस्तवनस्तुतिविदितपूर्व्वभवचरितः । जाओ समणो ता विजय ! होउ तुह धम्मलाभोति ||८०|| विजयो विस्मयचेता इदमाख्यात् नरपतेरसौ प्राह । सिट्ठिीवर ! चित्तचरिया पुरिसा को पञ्चओ इत्थ ॥८१॥ शासनवृत्तांतमसौ प्रत्यूवेऽचीखनन् नृपतिराशु । तट्ठाणं पत्चाई च सासणाई जहु ताई ॥८२॥ तदनु नृपः पुलकिततनुरतनुप्रमदः समेत्य तत्र मुनिम् । तं भतीइ नमित्था इय साहू कहइ धम्मकहं ॥ ८३ ॥ " आत्माऽयमनल्पविकल्प कल्पनोत्पन्नपापपरिणामः । हरिकरिविसविसहरसत्तुणोऽवि दूरं विसेसेह ॥ ८४ ॥ यस्मात् करिहरिमुख्या रुष्टा अपि ददति मरणमेकभत्रम् | अप्पा उ दुप्पउत्तो देइ अणंताई मरणाई || ८५॥ किंच- अप्पा नई वेतरणी, अप्पा मे कूडसामली । अप्पा कामदुहा धेनू, अप्पा मे नंदनं वनं ॥ ८६ ॥ अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च दुष्पट्ठियसुपट्ठियं ||८७|| तद्भव्यैरयमात्मा जेतव्यो मुक्तिमिच्छुमिः सततम् । जेण जिओ चिय आया तेण जियं तिहुयणंपि जओ ॥८८॥ जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुअए जिणे । एगं जिणिज अप्पाणं, एम से परमो जओ ॥ ८१||" इत्थं वचः स्वयंभूदत्तस्य मुनेर्निशम्य साम्यकरम्। बुद्धा बहवो जीवा जाया जिणसासणे भत्ता ॥ ९० ॥ राजाऽपि देशविरतिं प्रतिपद्यैतान् दशाग्रहारांस्तु । सासणलिहिए सिरिसंतिपूयहे पणामेइ ॥ ९१ ॥ विजयोऽपि जिनायतने निजं कुटुम्बं विधाय सौस्थ्यमनाः । तस्स मुणिस्स समीवे पडिवजह चारु For Private And Personal ri Gyanmandir विनयश्रेष्ठिवृत्तम् ॥४३३॥ Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M N Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka r Gyanmandir चैत्यवन्दनसप्तकम् चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥४३४॥ | चारित्तं ॥९२॥ अन्यत्र चिरं मुनिरपि विहृत्य भव्यान् विबोध्य जिनधर्मे । उप्पचविमलनाणो सिद्धो संमेयसेलमि ॥९॥ एका- दशांगधारी विजयमुनिः सूरिवैभवसमेतः। पालियवयमकलंक जाओ अमरो पढमकप्पे ॥ ९४ ॥ तत्रामरगिरिनंदीश्वरादिचैत्येषु | जिनवरान् स्तोत्रैः। भत्तीइ संथुणंतो सुहेण पूरेवि निआउं ॥९५॥ च्युत्वा ततो विदेहे जिनसंस्तवनैर्विधूतपापमलः सपरोक्यारपवरो सिद्धं गमिहिइ विजयजीवो ॥९६।। इति निशम्य जनाः! करुणाकरं, विजयवृत्तकमेतदनुत्तरम् । स्वपरयोरुपकारकरं सदा, भणत सार्वपुरः स्तवनं सदा ॥ ९७ ॥ इति विजयश्रेष्ठिदृष्टान्तः ॥ प्ररूपितं 'थुत्तं चति द्वाविंशं द्वारं, सांप्रतं 'सग वेल'त्ति | त्रयोविंशं द्वारं प्रकटयनाहपड़िकमणे चेइय जिमण चरिम पडिक्कमण सुयण पडिबोहे। चिइवंदणाइ जइणो सत्त उ वेला अहोरत्ते॥४८॥ यतेः-साधोरिति-पूर्वार्धोक्तरीत्या अहोरात्रमध्ये सप्त वेला जघन्यतोऽपि चैत्यवंदना कर्त्तव्यैव, अन्यथाऽतिचारसंभवात् , तदकरणे प्रायश्चित्तस्य भणनाद् , आगमप्रामाण्यात् अधिकत्वनिषेधः, पर्वादिषु विशेषतो वंदनाभणनात् प्रतिषेधे तु प्रायश्चित्तापतेश्व, तथा चागमः-"जिणचेइए वंदमाणस्स या संथवेमाणस्स वा पंचपयारं सज्झायं पयरेमाणस्स वा विग्धं करिजा पच्चित्तं" | एतच्च तुशब्दो विशेषयति, तत्र 'पडिक्कमणे'त्ति प्राभातिकावश्यकावसाने एका चैत्यवंदना, तथा च मूलाऽऽवश्यकटीका "तओ तिनि थुईओ जहा पुग्विं, नवरमप्पसद्दगं दिति, तओ देवे वंदति, तओ बहुवेलं संदिसावंति"त्ति १ 'चेइय'त्ति द्वितीया चैत्यवंदना चैत्यगृहवेलायां, मक्तादिग्रहणार्थमुपयोगकरणपूर्वमित्यर्थः, उक्तं च महानिशीथे सप्तमाध्ययाने यतिदिनचर्याप्रस्तावे 'चेइएहि अवंदिएहिं उवयोगं करिजा पच्छित्त' तथा मूलावश्यके कायोत्सर्गनियुक्तिवृत्त्योदिवसातिचारालोचना ॥४३४॥ For Private And Personal Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Man Aradhana Kendra र्थमुक्तं - "काउस्सग्गं मुक्खपहदेसियं जाणिऊण तो धीरा दिवसाइयारपरिजाणणट्टया ठंति उस्सग्गं ||१|| मोक्षपथः - तीर्थकर, तदुपदेशकत्वेन कारणे कार्योपचारात्, सांप्रतं यदुक्तं 'दिवसातिचारज्ञानार्थ' मिति तत्रोच्यते- विषयद्वारेण तमतिचारं दर्शयन्नाह - सयणासन्नपाणे चेइय जइ सिज कायउच्चारे । समिई भावणगुत्ती वितहायरणे अ अध्यारो || १ || 'चेइय'त्ति चैत्यवितथाचरणे सत्यतिचारः, चैत्यविषयं च वितथाचरणमविधिना वंदनकरणे अकरणे चेत्यादि, 'जइ'ति यतिवितथाचरणे सत्यतिचारः, यतिविषयं वितथाचरणं यथाई विनयाद्यकरणमिति, एषा च त्रिकालचैत्यवंदनामध्ये प्राभातिकसंध्याकालवंदनोच्यते, यतो यतीनामपि दिवामध्ये त्रिसंध्यं चैत्यवंदनाया अवश्यं कर्त्तव्यतयोक्तत्वात्, तथा च महानिशीथसूत्रं “मोयमा ! जे केई मिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपञ्चकखायपावकम्मे दिवापभिईओ अणुदियहं जावजीवामिग्गहेणं सुविसत्थे मत्तिनिग्भरे जहुत्तविहीए सुत्तत्थमणुसरमाणे अणनमणे एगग्गचिते तग्गयमणे ससुहज्झवसाए थयथुईहिं न तिकालियं चेइए वंदिआ तस्स णं पायच्छित्तं उवइसिजा २, 'जिमण' चि चैत्यवंदनां कृत्वा भोक्तव्यं, तथा चोक्तं- "चेइएहिं साहूहि य अवंदिएहिं पाराविजा पच्छितं" एषा च मध्याह्नचैत्यवंदना गण्यते३ 'चरिम'त्ति संवरणप्रत्याख्यानानंतरं देवान् वंदेत, उक्तं च- "संवरित्ताणं चेइयसाहूणं वंदणं न करिज्जा पच्छित्तं" एषा सायसंध्याचैत्यवंदनायां निपतति, एवं च दिवामध्ये त्रिकालवंदना यतीनां भवति ४, 'पडिकमण' ति दैवसिकप्रतिक्रमणात् पूर्व देवा वंदनीयाः, तथा च महानिशीथे- "चिइवंदणपडिकमणं गाहा, चेइएहिं अवंदिएहिं पडिक्कमिज्जा पच्छित्तं" ५ 'सुयण'त्ति देवान् वंदित्वा सुप्तव्यं नान्यथा, यदागमः - "चेइएहिं अवंदिएहिं जाव संथारंमि ठाइज्जा पच्छित्तं " ६ 'पडिबोहे' ति प्रभाते प्रतिबुद्धः सन् देवान् वंदते, उक्तं च- "इरिया कुसुमिणुसग्गो जिणमुणिवंदण तहेव सज्झाओ" ति ७ ॥ एवं श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ।।४३५ ।। www.kobatirth.org For Private And Personal Acharya Shri Kailah uri Gyanmandir चैत्यवंन्दनसतकम् ॥४३५॥ Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥४३६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailuri Gyanmandir च साधूनाश्रित्य वेलासप्तकनियमिता चैत्यवंदना प्रदर्शिता, अथ गृहस्थानाश्रित्याहपडकमओ गिहिणोऽविहु सगवेला पंचवेल इयरस्स । पूयासु तिसंझासु य होइ तिवेला जहन्नेणं ॥ ४९ ॥ प्रतिक्रामतः - उभयसंध्यमावश्यकं कुर्वाणस्य गृहिणः - श्रावकादेः सप्त वेला चैत्यवंदना भवत्यहोरात्रमध्ये, यथा द्वे द्वयोराव श्यकयोः द्वे च स्वापावबोधयोः त्रिकालपूजानंतरं च तिस्रथेति सप्त, अपि संभावने, संभाव्यते ह्येतदेवं, अन्यथा (एका) ssवश्यककरणे पट्, स्वापादिसमयावंदने पंचादिरपि प्रभूतदेवगृहादौ वा अधिकाऽपि, पंचवेला इतरस्य - अप्रतिक्रामकस्य यथा द्वे स्वापावबोधयस्तिस्रः प्रतिसंध्यं पूजानंतरं, तथा जघन्येन श्रावकस्य तिस्रो वेला चैत्यवंदना भवति कर्त्तव्येति शेषः, कथं १, त्रिसंध्यासु यास्तिस्रः पूजास्तासु, तदनंतरमित्यर्थः, एतेन श्राद्धस्य त्रिकालपूजाऽप्यावेदिता, चशब्द उक्तानुक्तसमुच्चयार्थः, तेन यदाऽपि पूजा न संभवति तथाऽपि वेलात्रयं देवा वंदनीयाः, तथा याः पूर्वाहूणे गृहचैत्य चैत्यगृहादिषु वंदनास्ताः प्रातःसंध्यावंदनायां निपतंति, तदनंतरं माध्याह्निक्यां, ततस्तु प्रदोषसंध्यायां, तथा चागमः- “भो भो देवाणुप्पिया ! अज्जप्पभिईए जावजीवं तिकालियं अणुतावले गग्गचित्तेणं चेइए वंदेयव्वे, इणमिव भो मणुयत्ताओ असुइअसासयखणभंगुराओ सारंति, तत्थ पुव्वण्हे ताव उदगपाणं न काय जाव चेड़ए साहू य न बंदिए, तहा मज्झण्हे ताव असणकिरियं न कायव्वं जाव चेइए न बंदिए, तहा अवरण्हे चैव तहा कायव्यं जहा अदिएहिं चेइएहिं नो सेजायलमइकमिज 'ति । अत्र संप्रदायः - अस्थि सुरठ्ठाविसओ विसयसयविरायमाणनय विसरो । | सरसफल कलियफलिओ लयलीण मुणिंदगिरिसिहरो || १ | सत्तंजयसेलेसो सेलेसीकरणसालिसो तत्थ । भवियाण निव्वुइकसे तह कयल हुपंचसरमरणो ॥ २ ॥ जो अट्ठ जोयणाई समूसिओ पत्ररओसहिसमिद्धो । दसजोयणविच्छिन्नो सिहरे म्रले य पन्नासं ॥ ३ ॥ अविय For Private And Personal गृहि चैत्यवन्दनासंख्या ॥४३६॥ Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shi www.kcbatirth.org s uri Gyanmandie श्रीदे० कान्तिश्रीकथा चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधौ | ॥४३७॥ MAANINDRA l lin Aradhana Kendra Acharya Shri Ka गयणयलमणुलिहतरुइकंतकंतजिणभवणो । वणमझवहंतझरंतनीरनिझरणनियरजुओ॥४॥ जुयलट्ठियसुरकिंनरसिद्धसमारद्धसुद्धगंधच्चो । गंधवपणइणीजणमुच्छाविजंतवीणसरो ॥५|| सरसहरिचंदणदुमसुगंधपूरंतसयलदिसिविवरो । वररयणनियरचिंचइयसिहरसयसंकुलो सम्मो ॥६॥ अह भरहनिवस्स सुओ पढमो पढमस्स तह जिणिदस्स । पुंडरियावरनामो गणहारी सिरिउसहसेणो ॥७॥ विहडियजगजगडणमयणसुहडभडवीयपरमकोडीहिं। परियरिओ सोपंचहि विहरंतो समणकोडीहिं ॥८॥ गामागरनगराइसु | बोहंतो बहुयभवियपुंडरिए। पत्तो खमाधरो सो खमाधरे तंमि पुंडरिए ॥९॥ नमणागयवहुलोए अह वाहजलाउला बहुलसोया । | करमहियदुहियदुहिया समागया महिलिया एगा ॥१०॥ महिमिलियसिरा सा नमिय गणहरं करिय दारियं पुरओ । पभणइ किं पुब्बभवे भयवं! दुक्कयमिमीइ कयं ॥११।। चउचउरनाणउवओगजोगजोइयपयत्थसत्थगणो । भणइ मुणी सुण भद्दे ! जमिमीइ कयं दुक्कयं कम्मं ॥१२॥ असुहाणं कम्माणं जं असुहो चेव जायइ विवागो। नहिरोवियंमि निंबे अंबफलं जायइ कयावि ॥१॥ किंच-सखो पुवकयाणं कम्माणं पावए फलविवागं । अवराहेसु गुणेसु य निमित्तमित्तं परो होइ॥१४॥तथाहिपुव्वविदेहे हारुब्ब पवरसिरीए अहेसि चंदपुरी। तत्थ धणावहसिट्ठी भूरिधणो धम्मधणबुद्धी॥१५॥ चिइवंदणाइसद्धम्मसंगया | तस्स दुन्नि दइयाओ। चंदसिरी मित्तसिरी एगंतरविहियमजाया ॥ १६ ॥ अन्नदिणे भंजंती मज्जायं मयणपरवसा धणियं । चंदसिरी इंदुजलमइणा पइणा इमं भणिया ॥१७॥ उत्तमकुलुब्भवाणं नय सुयणु मज्जायलंघणं जुत्तं । जलहीविहु सलहिजइ सजियअणवजमजाओ ॥ १८॥ किंच-चलति कुलाचलचक्र मर्यादां लंघयन्ति जलनिधयः। प्रतिपन्नममलमनसां न चलति पुंसां युगांतेऽपि ॥१९॥ तो सा तोसविरहिया अइरोसावेसकलुसियमईया । चलिया विलक्खवयणा मित्तसिरी उवरि MILIMSSIPAHINIMULEINDRAPARINA नप सुयणु मज्जायलाधयः । प्रतिपनमामलसिरी उवरि | ॥४३७॥ For Private And Personal Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Shri h ul Gyanmandie श्रीदे० कान्तिश्रीकथा HOM चैत्य श्री. धर्म० संघाचारविधौ | ॥४३७॥ Acharya Shri Ka गयणयलमणुलिहंतरुइकंतकंतजिणभवणो । वणमज्झवहंतझरंतनीरनिज्मरणनियरजुओ॥४॥ जुयलट्ठियसुरकिंनरसिद्धसमारद्धसुद्धगंधब्बो। गंधवपणइणीजणमुच्छाविजंतवीणसरो ॥५॥ सरसहरिचंदणदुमसुगंधपूरंतसयलदिसिविवरो । वरस्यणनियरचिंचइयसिहरसयसंकुलो रम्मो ॥६॥ अह भरहनिवस्स सुओ पढमो पढमस्स तह जिणिंदस्स । पुंडरियावरनामो गणहारी सिरिउसहसेणो ॥७॥ विहडियजगजगडणमयणसुहडभडवीयपरमकोडीहिं । परियरिओ सोपंचहि विहरंतो समणकोडीहिं ॥८॥ गामागरनगराइसु बोहंतो बहुयभवियपुंडरिए। पत्तो खमाधरो सो खमाधरे तंमि पुंडरिए ॥९॥ नमणागयबहुलोए अह वाहजलाउला बहुलसोया। करमहियदुहियदुहिया समागया महिलिया एगा ॥१०॥ महिमिलियसिरा सा नमिय गणहरं करिय दारियं पुरओ ।पभणइ किं पुव्वभवे भयवं! दुक्कयमिमीइ कयं ॥११शाचउचउरनाणउवओगजोगजोइयपयत्थसत्थगणो। भणइ मुणी सुण भद्दे ! जमिमीइ कयं दुक्कयं कम्मं ॥१२॥ असुहाणं कम्माणं जं असुहोचेव जायइ विवागो। नहि रोवियंमि निंबे अंबफलं जायइ कयावि ॥१३॥ किंच-सबो पुवकयाणं कम्माणं पावए फल विवागं। अवराहेसु गुणेसु य निमित्तमित्तं परो होइ॥१४||तथाहिपुव्वविदेहे हारुव्व पवरसिरीए अहेसि चंदपुरी। तत्थ धणावहसिट्ठी भूरिधणो धम्मधणबुद्धी॥१५॥ चिइवंदणाइसद्धम्मसंगया | तस्स दुन्नि दइयाओ। चंदसिरी मित्तसिरी एगंतरविहियमजाया ॥ १६ ॥ अन्नदिणे भंजंती मज्जायं मयणपरवसा धणियं । चंदसिरी इंदुअलमइणा पइणा इमं भणिया ॥१७॥ उत्तमकुलुब्भवाणं नय सुयणु मज्जायलंघणं जुतं । जलहीविहु सलहिजइ सजियअणवजमजाओ ॥ १८ ॥ किंच-चलति कुलाचलचक्रं मर्यादां लंघयन्ति जलनिधयः। प्रतिपनममलमनसां न चलति पुंसां युगांतेऽपि ॥१९॥ तो सा तोसविरहिया अइरोसावेसकलुसियमईया । चलिया विलक्खवयणा मित्तसिरी उवरि S NISHA ॥४३७॥ For Private And Personal Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha Jain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्री धर्म० संघा - चारविधौ ॥४३८|| www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashape सुपओसा ॥२०॥ कइया उ मयणअमरिसतवियाए तीइ तह वसीकरणं । पइणो कथं जहा सड़ स सब्वहा तव्वसो जाओ ॥ २१ ॥ परिहरिया मित्तसिरी उज्झिज्जर तत्तअंगवंगमणा । चंदसिरी तप्पच्चयमुग्गं दोहग्गमज्जेइ ॥ २२ ॥ चिइवंदणपरिणामा मरिजं कंतिमइ तुह सुया जाया । कंतिसिरी नयरे विजयबद्धणे विजयसिद्विगिहे ||२३|| संपइ इमीइ उइयं कंमं भोगंतरायजणियं तं । जेण पई दिट्ठाइवि रूस से किंतु पुट्ठाए | | | २४|| एवं दुहियं दुहियं निएवि एयं तुमंपि दुहिया ता । सो विरलो कोऽवि जणो दुहियं जणिऊण जो सुहिओ ॥२५॥ यतः - " जातेति चिंता महतीति शोकः, कस्मै प्रदेयेति महान् विकल्पः । दत्ता सुखं | स्थास्यति वा नवेति, कन्यापितृत्वं खलु नाम कष्टम् ||२६|| किंच-निरवच्चा दहइ मणं विणट्टसीलावि देइ दुक्खाई। दोहग्गिणीवि दूमइ दुहिया पियराण हियया ||२७|| अज पुण दुसह दोहग्गउग्गदुहदूमिया इमा इत्थ । नियजीवियनिरविक्खा गया अलक्खा मरणकंखा ||२८|| दरदिन्नकंठपासा एसा अणुमग्गआगयाइ तए । छिंदित्तु तयं पास करे करेउं इहाणीया ||२९|| इय सोउं कंतिसिरी नंपइ संपइ पसीय मह भयवं ! । दोहग्गदरिद्दहरं चरितचिंतामणिं देहि ||३०|| सा भणिया मुणिपहुणा अहुणा भद्दे ! न तं चरणउचिया। किंतु कुण संमरंमं चिइवंदणमाइगिहिधम्मं ॥ ३१ ॥ सा आह नाह ! कजं न मज्झ अन्भेण देहि पव्वज्जं । अज्जेव | जेण सज्जो सज्जियऽणसणा मरामि अहं ॥ ३२ ॥ अह वाणवंतरसुरो कहेइ एगो अहो इह भवंमि । सत्ताण भमंताणं जायइ सरिसेण सह जोगो ||३३|| जमिमाविहु सच्छंदा असच्छतुच्छासया मह सरिच्छा । न पियइ अमयसमाणं गुरुवयणं समसुहनिहाणं ||३४|| कंतिसिरी जणणीए कंतिमईए तओ कहं भयवं ।। एसो इमीइ सरिसोति पुच्छिए कहइ गणिनाहो || ३६ || संखउर नामगामे आसी कुलपुत्तओ घणो नाम । उच्छिन्नजणणिजणओ निरंगणो निद्धणो धणियं ॥ ३६ ॥ सो कइया सुयधम्मो आगंतुं दुक्खगब्भवेरग्गे । For Private And Personal i Gyanmandir कान्तिश्रीकथा ॥४३८|| Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Moh din Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalahar Gyanmandir श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधौ ॥४३९॥ सिरिविजयसेणमुणिवरपासे पडिवज्जइ पवज्जं ॥३७॥ चोइज्जतो रूसइ दुम्मेहो दुम्मुहो सयंमइओ। माणी छिद्दप्पेही निरो- कान्ति| वयारी अणुसइल्लो ॥ ३८॥ वंको अवन्नवाई न करेइ तवंपि मंदपरिणामो। विणयबहुमाणहीणो तो सो गुरुणा इमं भणिओ श्रीकथा | ॥ ३९ ॥ "गुणरिद्धी दूरं वडियावि अविणयपवणपडिहणिया । इकपएचिय पुत्तय ! पणस्सए दीवयसिहव्व | ॥४०॥ नीहारहारधवलोऽवि वच्छ ! सच्छोऽवि सुगुणसमुदाओ। विणएण विणाऽवयणं व नयणरहियं न सोहेइ॥४१॥ अचंतपियोऽवि वजिजइ पुरिसो विणयवजिओ दूरे। पवरमणिभूसणेवि य सुजणेहिं गुरुभुयंगुब्व ॥ ४२ ॥ इय दुविणयत्तणदोसनिवहमवलोइऊण बुद्धीए । वच्छ ! रमिजसु विणए समत्थकल्लाणकुलभवणे ॥४३॥ विणयाओ हुंति गुणा गुणेहिं लोगोऽणुरागमुब्वहइ । अणुरत्तसयललोयस्स हुंति सव्वाउ सिद्धीओ ॥४४॥ किंच-विनया नाणं नाणाउ दंसणं दंसणाउ चारित्तं । चारित्ताओ मुक्खो मुक्खे सुक्खं अणाबाहं ॥४५॥ तथा-चडइ नमंताण गुणो आरूढगुणाण होइ टंकारो। चावाणं व नराणं गुणटंकाराऽनबहाणा ॥४६॥ इय सो गुरुणा करुणापरेण भणिओवि कम्मगुरुयाए । मुंचइ न निरोणामत्तणं सया निरणुताविता ॥४७॥ अण्णदिणे सहसा तेण मग्गिए अणसणे गुरू भणइ । पायं न पायमुचियं असंलिहियदव्वभावाणं ।।४८॥ भणइ इमो संलेहियतणूण कीवाण सत्तरहियाणं । अणसणकरणं मयमारणंति नहु तेण मह कज्जं ॥ ४९ ।। एयं दुगंपि समगं करेमि पिच्छंतया हवह तुम्भे । इय मणिरो पुण गुरुणा करुणानिहिणा निसिद्धोवि ।। ५० ॥ सयमेव चत्तभत्तो सहसा खिजंतधाउसंदोहो। तण्हाछुहसंतत्तो अप्पिड्डी वणयरो जाओ ॥५१॥ भणियं च-"रज्जुग्गहणे विसभक्खणे य जलणे य जलपवेसे य। तण्हाछुहाकिलंता मरिऊण हवंति || ॥४३९॥ ANIMAP For Private And Personal - Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Man Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्री - धर्म० संघा - चारविधौ ॥४४०॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kaila te वंतरिया ।। ५२ ।। " दासं पेसं दीणं अन्नेसि सुराण पेसगत्तणं च । अप्पं निएति ईसाविसायदूसियमणो तो सो ॥५३॥ आगंतूणं अग्गे ताणं चिय विजयसेणसूरीणं । दीणो हीणो लग्गो कयंजली विन्नविउमेवं ॥ ५४ ॥ भयवं ! भवभयसंमंतसत्तसंताणरक्खणसमत्थ ! । जं न कयं तुह वयणं तेणाहं एरिसो जाओ ||२२|| इव्हिपि किंपि ता मह उवइसह हियं गुरुर्हि तो भणियं । सुरवर ! सयावि मुणिचेइयाण सुस्मगो हुज्ज ।। ५६ ।। इच्छंति भणिय अह सो मुणिचेइय संघकज्जकरणरओ । मनमणत्थं इत्थं समागओ सो इमो भद्दे ! ||५७॥ संघस्स काउ संतिं वेयावच्चं समाहिमेस इओ । चविडं होही राया राउव्व कलानिही सोमो ||५८ ॥ दुविहंपि तओ धम्मं काऊण भविस्सइ सुरवरो सो। तो उत्तरोत्तरसुहो सिज्झिस्सइ अट्टमभवंमि || ५९ || इय सोउं नियचरियं हरिसवसुल्लसिबहलरोमंचो । इय सो वंतरदेवो पुंडरियं गणहरं धुणइ ||६०|| "जय पणमिरविजाहरदेविंदमुणिंद सिरिगणहरिंद। गुरुकरुणारससायर ! नमो नमो तुम्भ पायाण ||६१ || जय जय नाणकलानिहिपडिवोहियब हुय भवियपुंडरिय ! । गुरुकरुणारससायर ! नमो नमो तुम्भ पायाणं ।। ६२ ।। सम्गापवग्ग मग्गाणुलग्गजणसत्थवाहपायाणं । गुरुकरुणारससायर ! नमो नमो तुन्भ पायाणं |||६३ || जय गुणगणहर गणहर! सुयहरसंमोहकर डिपुंडरिय । गुरुकरुणारससायर ! नमो नमो तुब्भ पायाणं || ६ ४ || भवरुद्द अमुद्दसमुदमज्झमज्जतजंतुपोयाणं । गुरुकरुणारससायर ! नमो नमो तुम पायाणं ॥ ६५ ॥ दुस्सहदोहग्गदरिहतावताचियजियाण पुंडरिय !। गुरुकरुणासायर ! नमो नमो तुम्भ पायाणं ॥ ६६ ॥ जय विगलियकलिमलभरनिम्मलतव चरण साहुपुंडरिय ! । गुरुकरुणारससायर ! | नमो नमो तुम्भ पायाणं ।। ६७ । डिंडीरपिंडपंडुरसु धम्म कित्तिभरभरियभुयणयल ! । गुरुकरुणारससायर ! नमो नमो तुच्भ पायाणं || ६८ | इय संधुओ सि गणहर ! देविंद मुणिंदपणयपयकमल ! । जिणसासणभत्ता मे ऽहं ) पहु ! हुअ सया तुह पसाया || ६९ || " I For Private And Personal Juri Gyanmandir कान्तिश्रीकथा ॥४४०॥ Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Jain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्री धर्म० संघा चारविधौ ॥४४१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kairuri Gyanmandir इय थोउ सुरे विरए कंतिसिरी कहर पहु ! कहं अहयं । अहुणा नहु वयउचियत्ति १ तो गुरू भणइ सुण भद्दे ! ||७०॥ सोवक्कमनिरुवकमभेया कम्मं दुहा इहं तत्थ । परिणामवसेण भवे सोवकमकंमुणो नासो ॥ ७१ ॥ निरुत्रकम्मं तु कम्मं जिज्झइ जीवाण वेइयं चैव । दुक्करतव चरणेणं निकाइयत्ता जओ भणियं ॥ ७२ ॥ | " सव्वासि पयडीणं परिणामवसादुवकमो मणिओ । पायमनिकाइयाणं तवसा उ निकाइयापि ||७३ ||” तथा “ खलु भो कडाणं कम्माणं पुव्वि दुच्चिन्नाणं दुप्परिकंताणं वेत्ता मुक्खो, नत्थि अवेइत्ता, तवसा वा झोसइत्त" ति । तुमए पुण कम्ममिणं विहियं सोवकमं तओ गमिही । मज्झिमवयंमि चिदणाइसुकयाणुभावेण ॥ ७४ ॥ भणियं च-पुव्वभव विहियजहविहिचिइवंदणमाइसुकय उपपन्नं । सुहभोगफलं पुत्रं उदइस्सह तुह असामन्नं ॥ ७६ ॥ तत्तो पहणो इट्ठा पहूयरसुहभायणं बहुअवच्चा । होहिसि अवच्चसहिया य संभया पउरलोयस्स ||७७|| इय सोउ सहा सयला सहलं सह लायसंजया धम्मं । गहिय सविसेसं चिदणाइरम्मं गया सगिहं ॥ ७८ ॥ कंतिसिरीविहु गहिउं सगवेलाचेइवंदणासहिअं । गिहिधम्मं सा उजुया गया। गिहं विजयसिट्ठिस्स ||७९ | डिंडीरपिंडपंडुरगुरुजसभरपंडुरीकयतिलोओ । भयवंतु पुंडरीओ काउं बहुलो यउवयारं ||८०|| बहु| समणकोडिजुत्तो पत्तो विमलायलंमि अयलपयं । मासपरिचत्तभत्तो पत्तो पुंनिमदिणे चित्ते ॥ ८१|| निव्वाणगमणमहिमा हिट्ठेहिं सुरासुरेहिं तस्स कया। पुंडरियसिद्धिकाला सो भन्नइ पुंडरीयगिरी || ८२ ॥ अह मरहचकिणा पढमधम्मच किस्स पुंडरीयस्स । पडिमाइ अलंकरियं कारवियं पवरजिणभवणं ॥ ८३ ॥ पढमणिपढमगणहरसिद्धीइ पवित्तियं तयं जायं । अवसप्पिणीइ भरहे तित्थं तित्थाण पढमंति ॥ ८४ ॥ कंतिसिरीवि तिसंझं पूयंती जिणवरं उभयसंझं । आवस्सयंमि निरया सुइरं पालेवि गिहिधम्मं ॥ ८५ ॥ सिरिधम्म घोससूरिस्स चरणमूलंमि गहियपन्न । सगवारं चिड़वंदणकरणमणा विजियकरणमणा ॥ ८६ ॥ उप्पन्नविमलनाणा सार For Private And Personal कान्तिश्रीकथा ॥४४१ ॥ Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir n श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ | ॥४४२॥ क्खियसयलजंतुसंताणा । निहविअअट्ठकम्मा जाया संकलियसिवसंगा ।। ८७ ॥ कांतिश्रीरिति चैत्यवंदनमहोरात्रस्य मध्ये सदा, आशातनाः वेलाः सप्त वितन्वती समभवत् श्रेयःश्रियामाश्रयः। तद् भो भव्यजनाः! सनातनसुखप्राप्तप्रतिष्ठे यथाशक्येकादिकवारमत्र कुरुत | त्यक्तालसा उद्यमम् ।।८८।। इति कांतिश्रीकथा!! इति व्याख्यातं 'सगवेल'त्ति त्रयोविंशतितमं द्वार,संप्रति 'दसआसायणचाउत्ति चतुर्विंशं द्वारं व्याचिख्यासुराह तंबोल१ पाण२ भोयणु३ पाणह४ मेहुन्न५ सुअण६ निटुवणं ७ । मुत्तु८ चारं९ जूअं १० वज्जे जिणणाहजगईए (मंदिरस्संतो) ॥ ६१ ॥ ताम्बूलं-पूगपत्रादि चैत्वे नाऽऽस्वादयेत् न च उद्गीर्यात् , एतेन स्वादिमाहारनिषेधः१, पानं जलादेन कार्य, हस्तपादमुखांगक्षालनाभ्यंगोद्वर्तनादेर्वा पानं-रक्षणं कार्य, कुरुकुचादीनां च २ भोजन-अभ्यवहरणमोदनादेर्भक्तोषधफलादेश्चन विधेयं ३ चैत्ये चतुर्विधोऽप्याहारस्त्याज्य इत्युक्तं भवति,एतेन चोपभोगो निषिद्धः,तस्य सकृद्भोग्यत्वाद् अंतरुपयोगिरूपं वा परिभोगं निषेधयति, उपानहौ-पबद्ध पादुके च न परिदध्यात् ४ मैथुनं-मिथुनकर्म सुरतं करस्पर्शादिकां हास्यक्रीडां नासेवेत५ वपनं भूमौ शय्यादिषु च न कुर्यात् ६ निष्ठीवनं-थूकरणं, दंताक्षिनखनासिकास्यशिरःश्रोत्रत्वगादिमलपंकाद्युपलक्षणं चैतत् ७ मूत्रोच्चारं-लघुनीतिबृहन्नीतिं नाचरेत्, आभ्यां च वातपित्तत्वगस्थिरक्ताद्यपवित्रवस्तुनिषेधमाह, द्यूतं चतुरंगशारिनालिकाष्टापदत्रिपदीनवत्रिकदुद्दागंदुकादिकं वर्जयेज्जिनमन्दिरस्पांतः-देवगृहमध्ये१०।। अत्र चैतैर्भोगामिधानतृतीयाशातनाभेदैबृहद्भाष्योक्ता सप्रभेदाऽवज्ञादिका पंचप्रकाराऽप्याशातना प्रभावतीदेवीवद् त्याज्येति प्रदर्शितं, समानजातित्वात् मध्यग्रहणे आद्यतयोरपि ग्रहणाच्च, तच्च भाष्य"जिण-IN ॥४४२।। T ANHITaluminatanasaninina alllllilianimatio CHOTIRATISHTHAIRS For Private And Personal Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka mein s uri Gyanmandir प्रभावती कथा श्रीदे० चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधी ॥४४३॥ m भवर्णमि अवण्णा पूयाइअणायारो २ तहा भोगो३। दुप्पणिहाणं४ अचियत्ती५ एया आसायणा पंच ॥१॥ तत्थ अवन्नाऽऽसायण पल्हथियदेवपद्विदाणं च । पुडुपुडिपायपसारणदुट्ठासणसेवण जिणग्गे ॥२॥जारिसतारिसवेसो जहा तहा जमि तंमि कालंमि । पूयाइ | कुणइ पुग्नो अणायरासायणा एसा ॥३॥ भोगो तंबोलाई कीरंतो जिणगिहे कुणइऽबस्सं । नाणाइयाण आयस्स सायणं तो तमिह वज्जे ॥४॥ रागेण व दोसेण व मोहेण व दसिया मणोवित्ती। दुपणिहाणं भन्नइ जिणविसए तं न वायव्वं ॥५॥ धरणरणरुयणविगहाति|| रिबंधणरंधणाइ गिहकिरिया। गावीविजवणिजाइ चेइए चउऽणुचियवित्ती ॥६॥" प्रभावतीदेवीकथा त्वियं-चंपाए नयरीए सुवनगारो कुमारनंदित्ति । सो पुण जं जं पिच्छह सुणइ य रूवस्सिणिं कनं ॥१॥ तं तं परिणइ दाउं कणगसए पंच पिंडिया एवं । पंच सया ताहिं समं विलसइ इगथंभपासाए ॥ २ ॥ अह पंचसेलदीवट्टियाओ हासप्पहासदेवीओ। नंदीसरजत्ताए जंतीओ सक्कआएसा ॥३॥ सपइंमि विद्युमालीसुरे चुए से कुमारनंदिस्स । वुग्गाहिउं सरूवं दरिसंति निएवि ताउ इमो॥४॥ पुच्छर काओ तुब्भे? ता विति वयं सुरीउ जइ कजं । तो इज पंचसेले इय भणिय तिरोहिया ताओ।५।। सोऽवि निवं विनविउं पडहं दावेइ सयलनयरंमि । पणसेले नेइ ममं जो से दाहं कणगकोडिं ।।६।। एगो थेरो तं छिविय पडहयं दाउ नंदणाण धणं । पत्थयणभरियवहणो सो चलिओ तेण सह जलहिं ।।७।। गंतुं सुदूर जंपइ जलहिमि तदुन्भवो वडो रुक्खो। एयं विलगिज तुमं पाए एयस्स हुजा तो ॥८॥ इह भारंडा तिपया विहगा एहिंति पंचसेलाओ । सुत्तेसु तेसु एगस्स मज्झ पाए तुम अप्पं ।।९।। बंधिज पडेण दद सो गोसे नीहिही तुमं तत्थ । जलहिजलावतंमि य पडियं पुण भजिही वहणं ॥१०॥ तह कुणइ सुन्नगारो नीओ भारुडपक्षिणा तत्थ । दिट्ठो ताहिं तस्संगमूसुओ ताहि इय वुत्तो॥११॥ इमिणा तणुणा नऽम्हे भुजामो काउ तो तुमं किंपि। अम्गिपवेसाईयं होसु aiIALISAPTAHIKSHARABIAPHIRAIN HAEL ॥४४३॥ For Private And Personal Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahave train Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashamersuri Gyanmandir प्रभावती कथा श्रीदें. चैत्यश्रीधर्म संथाचारविधौ | ॥४४४॥ तुम पंचसेलेपहू ॥१२॥ किमहं करोमि ! कत्थन्वयामि ! पंतओ इमो ताहि । चंपुजाणे नेउं मुको करसपुंडे काउं ॥१शा उवलक्खिय लोएणं पुट्ठो सो कहइ निययवुत्तंतं । सुमरंतो ताओ अग्गिसाहणं काउमाढतो ॥१४॥ जिगपवयणकुसलेणं नाइलसड्डेण | तस्स मित्तेणं । सो भणिओ धम्मचिय कामस्थीविहु कुणसु भद्द! ॥१५॥ यतः-"धनदो धनार्थिनां धर्मः, कामदः सर्वकामि| नाम् । स्वग्गापवर्गयोधर्मः, पारंपर्येण साधकः ॥१६॥"इय वारिओवि तेणं सनियाणो इंगिणीइ सो मरि । जाओ पणसेलपहू पव्वन्जिय नाइलोऽवि मओ ॥१७॥ जाओ अच्चुयदेवो अह नंदीसरि सुराण जंताणं । पुरओ गायंतीओ हासपहासाओ चलियाओ ॥१८॥ सो ताहि भणिओ पडहवायणे इच्छए न दप्पेण | पडहो गले विसग्गो तस्स न उत्तरइ कहकहति ।।१९।। तो ताहि सो | भणिओ इहऽप्पणो सामि! एस अहिगारो। अह वायंतो गच्छइ पडहं ताणं सुराण पुरो॥२०॥ तं दठ्ठ नाइलसुरो नियमित्तं ओहिणा | नियंरूवं। तब्बोहकए दंसइ न चयइ निइउं स दटुंपि।।२१।। सो संहरिय सतेयं जंपइ भो भद्द ! मं वियाणासि ?। सो आह सकपमुहे | देवे को नणु न याणेति ? ॥२२॥ अह सावगरूवं से दंसिय तं पइ सुरो भणइ मित्तं । जिणधम्मं अकरिय जलणसाहणं कासि तं | मूढ ! ॥२३॥ तुह वेरग्गेण अहं जिणदिक्खं काउ अच्चुए जाओ। अमरो तं सोउ इमो अणुतावा भणइ नियमित्तं ॥२४॥ इण्हि | मह कहसु किच्च स आह गिहवासि चित्तसालाए । उस्सग्गठियस्स तुमं कारसु वीरस्स वरपडिमं ॥ २५ ॥ जेण तुमं अण्णभवे सुबोहिबीयं लहेसि भो भद्द ! । दारिदं दोगचं दीणत्तं नेव पाबेसि ॥२६॥ तं सोउ विज्जुमाली तुट्टो नाइलसुरस्स नमिय पए। खत्तियकुंडग्गामे गंतुं दटुं महावीरं ॥ २७ ॥ गंतुं महहिमवंते छित्तुं गोसीसचंदणं पवरं । वीरस्स काउ पडिमं खिविय सयं | घडियसंपुडए ।। २८ ॥ पत्तो जलहिमि तया पोयस्सुप्पायओ भमंतस्स । छम्मासा वोलीणा तो सो संहरिय उप्पायं ॥ २९ ॥ ॥४४४|| For Private And Personal Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mal श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा - चारविधौ ॥४४५॥ Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailaiuri Gyanmandir पोयपहुस्स तमणिय खोडिं तं गच्छ वीयभयनयरे । देवाहिदेवपडिमा इहत्थि साहिज इय मणिउं ॥ ३० ॥ अमरो गओ सठाणं वीयभयपुरे इमोऽवि लहु पत्तो । खोडिमुदायणरन्नो समप्पिउं कहइ सुखयणं ॥ ३१ ॥ तावसभत्तो स निवो अन्नेऽवि हु दंसणी बहू मिलिया । नियनियदेवे संसाहिऊण देवाहिदवत्तं ।। ३२ ।। वाहिंति तत्थ परसुं न वहह सो एव सुबहु सव्वेसि । किस्संताणं ताणं जाओ मज्झण्हसमओति ॥ ३३ ॥ अह चेडगनिवधूया उदायणनित्रस्स वल्लहा देवी । जिणसमए लट्ठा पभावई नाम सुइसीला ॥ ३४ ॥ नित्रमाहोउं पेसइ चेडिं भोयणकए स पच्चाह । इय अम्हे किस्सामो सुहिया देवी न हु मुणेइ ॥ ३५ ॥ सा साहइ देवीए सावि विचिंतेह अहह मूढजणा । मिच्छत्तमोहिया नहु मुणंति देवाहिदेवपि ||३६|| अथ निशीथचूणि: - ' ताहे पभावई | व्हाया कय कोउयमंगल्ला सुकिल्लवासपरिहाणपरिहिया चलिया, बलिधूवपुप्फकडच्छुयहत्था गया, तओ पभावईए सव्वं बलिमाइ काउं भणिअं - देवाहिदेवो महावीरवद्धमाणसामी तस्स पडिमा कीरउत्ति पहराहि, पहरिओ कुहाडो, एगेण दुहा जायं, पिच्छंति य पुव्वनिव्वत्तिअं सव्वालंकारविभूसिअं भगवओ पडिमं, आणेउं रन्ना घरसमीवे देवयाययणं काउं तत्थ ठविया, किण्हगुलिया नाम दासचेडी सुस्साकारिणी निउत्ता, अट्टमीचउदसीसु य पभावई देवी भतिराएण सममेव राओ नट्टोवयारं करेह, रायावि तयाणुवित्तीय मुखं वाएइ, अन्नया राओ पभावईए नहोवयारं करतीए रन्ना सीसच्छाया न दिट्ठा, उप्पाउत्तिकाउं आउलचित्तस्स रन्नो नसमं मुरवक्खोडा न पडंति" ति ॥ रुट्ठाऽऽह तओ देवी नहु जुत्ता देव ! देवहरयमि । हासाइआउ आसा अणाउ देवा इहाहरणं ||३७|| तथाहि - देवहरयंमि देवा विसयविसमोहिआवि न कयावि । अच्छरसाहिंपि समं हासक्खिडाइ हु कुणंति ||३८|| आसायगाउ सव्वा हासक्खिडाइयाउ जिणभवणे । सिवमग्गअग्गलाओ वज्जिञ्ज सया सिवसुहत्थी ।। ३९ ।। तदुक्तं - खेलि केलि कलिं For Private And Personal प्रभावती कथा ॥४४५॥ Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mhain Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥४४६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kaisuri Gyanmandir कला कुललयं तंबोलमुग्गालयं, गाली कंगुलिया सरीरधुवणं केसे नहे लोहियं । भत्तोसं तय पित्तवं तदसणे विस्संभणं दामणं, दंतच्छी नह गंडुनासिय सिरोसोतच्छवीणं मलं ॥ १ ॥ मतुंमीलण लीखयं विभजणं भंडार दुट्ठासणं, छाणीकप्पडदालिपप्पडवडीविस्सारणं नासणं । अक्कंडं विगहं सरच्छघडणं तेरिच्छसंठावणं, अग्गीसेवणरंधणं परिखणं निस्सीहियाभंजणं ॥ ४० ॥ छत्तोत्राणहसत्थचामरमणोऽणेगतमभंगणं, सच्चित्ताणमचाय चायमजिए दिट्ठीइ नो अंजलिं । साडेगुत्तरसंगभंग मउडं मोलिं सिरोसेहरं, हुंडा जिण्डुह गिड्डियाइरमणं जोहारभंडिकयं । ४१ ।। रिक्कारं धरणं रणं विवरणं बालाण पल्हत्थियं, पिंडी पायपसारणं पुडुपुडी पंक रओ मेहुणं । जूयं जेमण दुब्भविज वणिजं सिजा जलं मजणं, एमाई अणवञ्जकजमुजुओ वज्जे जिणिंदालए ॥। ४२ ।। तो आह निवो भद्दे ! विकप्प न मए कओ इह हासो । किंतु तुह नच्चमाणीह नेत्र दिट्ठा सिरच्छाया ॥ ४३ ॥ अप्पाउत्ति कलित्ता खलभलिओ वायणाउ तो चुक्को । तं सुणिय मुणियकयसुद्धरंमधंमा भणइ देवी || ४४ || "लद्धं अलद्धपुचं जिणवयणसुभासियं । अमयभूयं । गहिओ सुग्गइमग्गो नाहं मरणस्स बीहेमि ||४५ ॥ पूयंति जे जिणिंदे वयाई धारंति सुद्धसंमत्ता । साहूण दिन्नदाणा न हु ते मरणाउ बीहंति | ४६ ||" इअ भणिय मुणियतत्ता अविसाया सभवणं गया देवी । सद्वाणमधम्मन्नू गओ निवो पुण कसिणवयणो ||४७|| अन्नदिणे कयण्हाणा देवी प्यारिहाणि वत्थाणि । दासीए आणावर उप्पाया दट्टु ते रत्ते ॥ ४८ ॥ इय समऽणुचियाई इमाई इय कोंत्रपरवसा देवी । मुकुरेण हणइ चेडिं संखपएसे मया साऽवि ||४९ ॥ पुण ताई उञ्जलाई चेडीमरणं च दट्ठ चिंतेह | देवी मए अहाहा भग्गं चिरपालियं खु वयं ॥ ५० ॥ तं पुत्रं दुनिमित्तं साहिय रन्नो वयायऽणुन्नवइ । सोऽवि पयंपइ तं जिणधम्मे मे चे विबोहेसि ॥ ५१ ॥ तो तुह दावेमि वयं तीए एवंति मन्निए रन्ना । साऽणुनाया काउं वयं सुरो पढमदिवि जाओ For Private And Personal प्रभावतीकथा ॥४४६ ॥ Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥४४७॥ Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥५२॥ बोहइ बहुदा स निवं बुज्झइ न उसो तओ सुरो काउं । तावसरूवं रन्नो सभागयस्सऽप्पर फलाई ॥५३॥ वनरसगंधफासुकिट्ठाई फलाई एरिसाई कहिं । अत्थित्ति १ निवेणुत्ते स भणइ बहि तात्रसावसहे ||२४|| अह तप्फलगिद्धीए राया तेण सह जाइ जा बाहिं । ता नियइ तमुजणं आइनं तावससएहिं ॥। ५५|| तेहिं अरेऽरे गिण्हह गिण्हह एयंति जंपिरेहिं निवो । कुट्टितो नट्टो पिच्छइ पुरओ जइणसमणे ॥ ५६ ॥ तेसिं सरणमुवगओ मुणीहिं से वित्थरेण परिकहिए । जिणधम्मे पडिबुद्धो जाओ राया महामद्धो ||५७|| अद्द नियइ निवो अप्पं सहाणे दंसियऽप्पयं अमरो । कज्जेसु मं सरिञ्जत्ति वुत्तुं पत्तो नियं कप्पं ॥ ५८॥ इयो य-गंधार| जणवए सावगो पव्वइउकामो सव्वतित्थयराणं जंमणनिक्खमण केवलुप्पायनिव्वाणभूमीउ दठ्ठे पडिनिय तो पव्वयामिति, ताहे सुर्यवेयड़गिरिगुहाए रिसहाइयाण सव्यतित्थयराणं सव्वरयणचिंचइयाओ कणगपडिमाओ, साहुसगासे सुणित्ता ताव दच्छामिति तत्थ गओ, तथ्य देवयाराहणं करिता विहाडिया पडिमाओ, तत्थ सो सावगो थयथुईहिं धुणंतो अहोरत्तं निवसिओ, तस्स निम्मलरयणेसु न मणागमवि लोभो जाओ, देवया चिंतेइ - अहो माणुसमलुद्धति, तुट्ठा देवया, बूहि वरं भणती उबट्ठिया, तओ सावगेण लवियं-नियतोऽहं माणुस्सरमुं कामभोगेनुं, किं कज्जंति, अमोहं देवयादरिसणंति भणित्ता देवया असयं गुलियाणं जहाचिंतियमणोरहाणं पणामेइ, ताओ य गहिया सावगेण, तओ निग्गओ, मुयं च णेण-वीयभयनयरीए सव्वालंकारविभूसिया देवावयारिया पडिमा तं दच्छामित्ति तत्थ गओ, वंदिया पडिमा, तत्थ ठिओ स गिलाणो जाओ पडिजग्गिओ य कुञ्जाए। अट्ठसयं गुलियाणं पव्वइओ तीइ सो दाउं ||५९ ॥ अह एगगुलियभक्खणपभावओ सा सुवन्नवन्नाभा । जाया तप्पभिइ जणे सुवन्नगुलियति विक्खाया ॥६०॥ भक्खितु बीयगुलियं चिंतइ सा मे पिउन्न एस निवो । सेसा गोहसमा तो मह भत्ता हवउ पज्जो ओ ।। ६१ । सो देवयाणुभावा तीइऽणुरचो For Private And Personal Acharya Shri Karsuri Gyanmandir प्रभावतीकथा ॥४४७॥ Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Main Aradhana Kendra श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ ||४४८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kasuri Gyanmandir विसजइ दूयं । सा भणड़ दंससु निवं पज्जोयस्साह सो गंतुं ॥ ६२ ॥ नलगिरिमारुहिय इमो निसि पत्तो तत्थ तीह अमिरुइओ । जिणपडिमं संगिण्हसु एमि अहं अन्ना नेव || ६३ || अह गंतु सो सनयरिं पडिरूवं कारिडं तर्हि पत्तो । तं मुत्तुं जिणपडिमं दासिं गहिउं गओ सपुरिं ।। ६४ ।। गोसे सकरी सोउं नट्ठमए चेडियं अवहडं च । कुविओ उदायणनिवो जा जोयावेइ जिणपडिमं |||६५|| ता तं मिलाणमलं दठ्ठे दसमउडबद्धनिवसहिओ । पजोयनिवस्सुवरिं चलिओ काले निदाघम्मि ।। ६६ ।। पत्ते मरुंमि सिने मिसं तिसापीडिए सरइ राया । झति पभावइदेवं स विउन्त्रह पुक्खराण तिगं ||६७ || तं पाउ पाउ सलिलं सत्थे सिने सुरो गओ सपयं । राया उदायणोऽविहु उज्जेणिपुरिं कमा पत्तो ॥ ६८ ॥ तत्थ उदायणरन्नो अवंतिनाहरूस दूयवयणेण । अचिरा परुपरेण रहसंगरसंग जाओ ||६९|| तयणु धणुद्धरपवरो रहमारुहिउं उदायणो पत्तो । गुणटंकारमुदारं कुणमाणो समरभूमीए ॥७०॥ नाउ रहाजेयमुदायणं निवं नलगिरिं चडिय पत्तो । रणभुवि पजोओऽविहु बलवंते का नणु पइना ॥ ७१ ॥ नलगिरिगयमारूढं तं दछु उदायणो भणइ रुट्ठो । पाविट्ठ भट्ठसंघोऽसि तहावि नट्ठो सिरे धिट्ठ ! ।। ७२ ।। इय भणिय मंडलीए रएण सरहं निवो भमाडंतो। निसियसरेहि विंधइ वीसुं करिणो पयतलाई ||७३|| तो लहु हत्थीपडिओ धरिऊण उदायणेण पओओ । मम दासीवई एसत्ति अंकिओ कोवविवसेणं ||७४ || गंतु तओ विदिसीए अस्थि देवाहिदेवपडिमं जा । उप्पाडइ नरनाहो ता भणइ सुरो अहो भूव ! ||७२ || मा नेसु तत्थ पडिमं वीअभए पंसुवदवो होही । राया सबिसाओ नमिय तयं सपुरभभि चलिओ ॥ ७६ ॥ वुट्ठीह अंतराले खलिओ सिविरं निहित्तु तत्थ ठिओ । काऊण धूलिवप्पे दसवि निवा तस्स रक्खट्ठा ||७७|| अह पज्जुसणादिवसे कयउववासे उदायणे सूओ । पुच्छर पज्जोयनिवं का तुह कीरउ रसवइति १ ॥ ७८ ॥ सो चिंतह नूणमहं मारिउकामो विसाइणा तत्तो । For Private And Personal प्रभावतीकथा ॥४४८॥ Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kal i puri Gyanmandir प्रभावती कथा श्रीदे० चैत्य श्री धर्म संघाचारविधौ ॥४४९॥ Pimnnaim जंपइ सूयं ! कीरइ किमज्ज मे वीसु आहारो? ॥७९॥ सूओ जंपइ सामी संतेउरपरियरो अभत्तट्ठी। जं अज्ज पज्जुसवणा तो तुह |साहेमि आहारं ॥८०॥ सो आह साहु तुमए पञ्चमिणं मज्झ सारियं सूत्र!। अज्जुववासो मज्झवि जंपियरो मह परमसडा॥८॥ | तं सूओ साहइ गंतु राइणो सोऽवि भणइ जाणेमि । से सदृत्तं जाणइ धुत्तो पुण वइसगं काउं ॥८२॥ काराइ ठिए एयंमि जारिसे | तारिसे व नहु सुद्धा । मह होइ पज्जुसवणा इय तं मुंचेइ नरनाहो ॥८३॥ दाउं अवंतिदेसं स महप्पा कुणइ तेण खामणयं । भालंकगोवणहा विअरइ वरकणयपदृ च ॥८४॥ तप्पमिद पट्टबद्धा निवा पुरा आसि मउडबद्धत्ति । विचे वरिसारत्ते उदायणो नियपुरं पत्तो ॥८५॥ जे लाभत्थी वणिया समागया तत्थ ववहरणहेउं । तेहिं चिय वसमाणं खायं तं दसपुरं नयरं ॥८६॥ कहावि पक्खियं पोसहं निवो लेइ वीयभयसामी । रयणीइ चरमजामे सुहलेसो इइ विचिंतेह ॥ ८७ ॥ ते घमा गामपुरा विहरइ सिरि-| वीरजिणवरो जत्थ। रायाई ते धन्ना सुगंति जे वीरधम्मकहं ।। ८८ ॥ जे लिंति देसविरहं तप्पयमूलंमि ते उ धनयरा । जे उ पवज्जति वयं ते थुणिमो ते नमसामो॥ ८९ ।। जइ अज्ज एइ वीरो तप्पयमूले गहेमिऽहं दिक्खं । अह तत्थ समोसरिओ गोसे | सिरिवीरजिणनाहो ॥९०॥ सव्विड्डीए राया वंदिय वीरं सुणेवि धम्मकहं । पत्तो नियवासे एवं चित्ते विचिंतेइ ॥११॥ दिक्खत्थी खलु अहयं अभीइपुत्तस्स देमि जइ रजं । संसारनाडयनडो तो एस मइच्चिय कउत्ति ॥९२ ॥ चिंतिय नियजामेए केसिमिहाणे ठवेवि रजभरं । गिण्हइ उदायणनिवो दिक्खं दुविहं तहा सिक्खं ॥९३॥ अंताहाराईहिं तस्सुप्पन्नो कयावि गुरुरोगो ! गुणरयणोदहि दहियं भुंजसु विजेहिं इय भणिओ ॥१४॥ स मुणी तमुग्गरोगं वएसु विगईगएण जावंतो। पत्तो वीयभयपुरे भणिओ मंतीहिं केसिनिवो ॥१५॥ एस तुह माउलो अइनिचिन्नो आगओ सरअत्थी । आह निको देमि अहं नियरजं लेउ लहु एसो ।.९६।। तो a mmymadammarAPIMIM HIRAINRITHAIRE ,४४९॥ For Private And Personal Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Ma n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka r Gyanmandie प्रभावती कथा श्रीदें चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥४५०॥ RANDU बहुहा मंतीहि केसी बुग्गाहिओ दवावेइ । पसुवालीए विसमीसियं दहिं तस्स वरमुणिणो ॥९७।। तं हरिय विसं जपइ देवया मा | गहेसु मुणिपवर !। सविसं दहिमित्थ जओ तयणु तयं चयइ रायरिसी॥९८॥ अह वडइ से रोगो गिण्डइस दहि विसं हरइ अमरी। वारतिगं तुरियाए वेलाए से पमत्ताए ॥९९।। भुंजिय सविसं दहियं काउं आराहणं समयविहिणा। उप्पनविमलनाणो उदायणमुणी सिवं पत्तो ॥१००॥ पुण तत्थ देवया सा पत्ता पिच्छिवि मुणिं तहाभूयं । रुट्ठा वीयभयपुरं सम्बतो पिहइ पंसूहि ॥१०१॥ सिज्जायर कुलालं उदायणनिवस्स नेउ सिणवल्लिं । कुंभारकडं नयरं तन्नामेणं ठवह तत्थ ।। १०२ ।। इय खामणाइहेउं उदायणनिवस्स कित्तियं चरियं । आसायणाइचाए पभावईए पुणो पगयं ॥१०३॥ श्रुत्वेति लोका विलसद्विवेकाः!, प्रभावतीवृत्तमिदं पवित्रम् । आशातनां संसृतिभाववल्लीप्रावृट्समा मा कृत जैनचैत्ये ॥१०४ ॥ इति प्रभावतीदेवीकथा ।। इति प्ररूपितं 'दसआसायणचाओ'त्ति चतुर्विंशतितमं द्वारं, तन्निरूपणेन च प्रदर्शितं ‘एवं चिइवंदणाइ ठाणाई, चउवीसदुवारेहिं दुसहस्सा हुंति चउसयरति प्राक् प्रतिज्ञातं सप्रपंचमपि, चैत्यवंदनाकरणविधिक्रमप्रदर्शनार्थमाह इरि १ नमुकार २ नमुत्थुण ३ अरिहंत ४ थुइ५ लोग सब्व ७ थुई ८ पुक्ख ९। थुइ १० सिद्धा वेया १२ थुइ १३ ममुत्थु १४ जावंति १५ थय १६ जयवी १७॥६॥ तत्र 'ता गोयमा! अप्पडिकंताए इरियावहियाए न कप्पइ चेव किंचि चिइवंदणसज्झायझाणाइयं काउं फलासायममिकं| खुगाण'मित्यागमप्रामाण्यात् 'इरिय'त्ति प्रथममीर्यापथिकीप्रतिक्रमणं तत्कायोत्सर्गे च चंदेसु निम्मलयरेतियावत् नामस्तवस्य पंचविंशत्युच्छासमानं कृत्वा नमो अरिहंताणंति भणनतः पारयित्वा मुखेन सकलोऽपि चतुर्विंशतिस्तवो भणनीय इति वृद्धाः, ततः INDIANP SAINITIANITARIA 1:४५०॥ HISAPANIAN For Private And Personal Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri bin Aradhana Kendra www.kobairth.org r i Gyarmandie आशातनाः चैत्यश्री धर्म० संघाचारविधी ॥४५॥ Acharya Shri Ka क्षमाश्रमणपूर्व इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदनं करोमीति भणित्वा 'नमुक्कार'त्ति-श्यामौ नेमिमुनी उभौ विमलतः पट्पंच नाभेयतः, श्रेयोवीरसुपार्श्वशीतलनमिवैरोचिषः षोडश । द्वौ चंद्रप्रभसद्विधी सितरुची द्वौ पार्श्वमल्ली शिती, द्वौ प्रद्मप्रभवासुपूज्यजिनपौ रक्तौ स्तुवे श्रेयसे ॥१॥ देवेन्द्रादिमिरहिंतानरिहतः स्तौम्यर्हतः सन्मुदा, विद्यानंदमुखाद्यनंतसुगुणैः सिद्धान् समृद्धान् सदा । आचार्यान् यतिधर्मकीर्तितसमाचारादिचारून् महोपाध्यायान् श्रुतधर्मघोषणपरान् साधून विधेः साधकान् ॥२॥ अर्हतो मम मंगलं विदधता देवेन्द्रवंद्यक्रमा, विद्यानंदमयास्तु मंगलमलंकुर्वन्तु सिद्धा मम । मह्यं मंगलमस्तु साधुनिकरः सद्धर्मकीर्तिस्थिती, मंगल्यं श्रुतधर्मघोषणपरं धर्म सुदृग्मिः श्रये ॥३॥ इत्यादिरूपा यथारूचि यथाप्रस्तावमेकद्विव्यादिनमस्कारा भणनीयाः, ततः 'कहं नमति ?, सिरपंचमेणं काएण' मित्याचारांगचूर्णिणवचनात् पंचांगप्रणाम कुर्खता 'तिक्खुत्तो मुद्धाणं घरणितलंसि निवेसेइ' इत्यागमात् त्रीन् वारान् शिरसा भूमी स्पृष्ट्वा 'नमोत्थुणं'ति 'भुवणिकगुरुजिणिंदपडिमाविणिवेसियनयणमाणसेण धन्नोऽहं पुन्नोऽहंति जिणवंदणाए सहलीकयजम्मुत्ति मन्त्रमाणेण विरइयकरकमलंजलिणा हरिययतणबीयजंतुविरहियभूमीए निहिउभयजाणुणा सुपरिफुडसुविदियनिस्संकजहत्थसुत्तत्थोभयं पए पए भावेमाणेणं जाव चेइए वंदियव्वे'त्ति, तथा 'सकत्थयाई चेइवंदणं'ति महानिशीथतृतीयाध्ययनोक्तविधिप्रामाण्यात् भूनिहितोभयजानुना करधृतयोगमुद्रया शक्रस्तवदंडको भणनीयः,तदंते च पूर्ववत् प्रणामं कृत्वा समुत्थाय जिनमुद्रास्थितचलनो योगमुद्रया 'अरिहंत ति अरिहंतचेइयाणमित्यादि चैत्यस्तवदंडकं पठति, उक्तं च-"उट्ठिय जिणमुद्दाठियचरणो करधरियजोगमुद्दो य । चेइयगयथिरदिट्ठी ठवणाजिणदंडयं पढइ ॥ १॥ कायोत्सर्गे च 'ऊसासा अट्ट सेसेसुत्ति वचनात् अष्टोच्छासपूरणार्थमष्टसंपदं नवकारं चिंतयित्वा तं पारयति, ततः 'थुइ'त्ति अधिकृतजिनस्तुति | PURNttaminiumASSPittalior ॥४५१॥ For Private And Personal Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीदे● चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ ॥४५२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ददाति, तत्रायं वृहद्भाष्योक्तो विधिः- अट्टूसासपमाणा उस्सग्गा सव्व एव कायव्वा । उस्सग्गसमतीए नवकारेणं तु पारिआ ॥१॥ परमिट्ठनमुकारं सक्कयभासाइ पुण भणइ पुरिसो । चरिमाइमथुइपढमं पाइयभासाइवि न इत्थी || २ || जइ एगो देइ थुई अह गोता थुई पढइ एगो । सेसा उस्सग्गठिअ सुणंति जा सा परिसमत्ता ||३|| बिंबस्स जस्स पुरओ पारद्धा वंदना थुई तस्स । चेइयगेहे सामन्नवंदणे मूलविंचस्स || ४ || इत्थ य पुरिसथुईए वंदइ देवे चउन्विहो संघो । इत्थीथुईइ दुविहो समणीओ साविया चैव ॥५॥ ततो 'लोग'त्ति 'लोगस्सुजोअगरे' भणंति, 'सव्व'त्ति 'सव्वलोए अरिहंतचेइयाण' मित्यादिना प्राग्वत् कायोत्सर्गः क्रियते, पारयित्वा च 'थुइति द्वितीया स्तुतिः सर्वजिनाश्रिता दीयते, ततः 'पुक्खर 'त्ति 'पुक्खरवरदीवड़े' दंडको भणनीयः, तत्कायोत्सर्गानंतरं च 'थुइ'ति तृतीया स्तुतिः सिद्धांतसत्का भणनीया, ततः 'सिद्ध'त्ति 'सिद्धाण' मित्यादि भणित्वा 'वेय'त्ति वेयावच्चगराणमित्यादिना कायोत्सर्गः कार्यः, ततः 'थुई'ति वैयावृत्यकरादिविषयैव चतुर्थी स्तुतिर्दीयते, ततः प्राग्वत् प्रणामपूर्वकं जानुद्वयं भूमौ विन्यस्य करधृतयोगमुद्रया 'नमुत्थु'ति पुनः शक्रस्तवदंडको भणनीयः, तदंते च प्रणामं कृत्वा 'जावंति चि सर्वजिनवंदनाप्रणिधानरूपा 'जावंति चेइयाई' इत्यादिगाथा भणनीया, उक्तं च पंचवस्तुके 'वंदित्वा द्वितीयप्रणिपातदंड कावसाने' इत्यादि, ततः क्षमाश्रमणं दत्वा 'जावंति केवि साहू' इत्यादिना द्वितीयं मुनिवंदनास्वरूपं प्रणिधानं करणीयं, पुनः क्षमाश्रमणं दत्त्वा इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! स्तवन भणउ इति भणित्वा इह स्तोत्रं भणनीयं, ततो मुक्ताशुक्तिमुद्रया 'जयवी 'ति 'जय वीयरायेत्यादि तृतीयं प्रार्थनालक्षणं प्रणिधानं विधेयमिति 'पणदंड थुइचउकग थुइपणिहाणेहिं 'उकोस'ति प्रागुक्तक्रमप्रतिपादिकागाथाक्षरार्थः । अत्र भाष्यकृत्सद्गुरुबहुमानातिशयतः स्वगुरुनाम ज्ञापनागर्भं प्रकृष्टफलदर्शनद्वारेण निगमयन्नाह— For-Private And Personal चैत्यबन्दनाविधिः ॥४५२॥ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shi n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kast u ri Gyanmandie देववन्दनफल चैत्यश्री MEANIm, summitmMINIS श्रीदे धर्म संघाचारविधौ ॥४५॥ सब्वोवाहिविसुद्धं एवं जो वंदए सया देवे । देविंदविंदमहियं परमपयं पावइ लहुं सो॥६३ ॥ सर्वे श्रायकादिविषया ऋद्धिमदनृद्धिमद्गोचरा देशकालाद्यनुगता द्रव्यस्तवमावस्तवस्वरूपा वंदनीयस्तवनीयादिविषयप्रणिधानलक्षणाश्च उपाधयो-धर्मानुविद्धाश्चिंताः 'उपाधिधर्मचिंतन मिति वचनात् , न पुनः सावधैहिकप्रयोजनविषयाः,लोके स्वभावसिद्धा हि ते इति नोपदेशपराः, अप्राप्ते हि शास्त्रमर्थवत् , नहि मलिनः स्नायात् बुभुक्षितो वाऽश्नीयादित्यत्र शास्त्रमुपयुज्यते,अप्राप्ते त्वामुष्मिके मार्गे नैसर्गिकमोहान्धितस्य विलुप्तालोकस्य लोकस्य शास्त्रमेव परमचक्षुरित्येवं सर्वत्राप्यप्राप्ते विषये उपदेशः सफल इति चिंतनीयं, अथ सावद्यारंभेषु शास्त्राणां वाचनिकाऽप्यनुमोदना न युक्ता, यदाहुः-“सावजऽणवजाणं वयणाणं जो न जाणा विसेसं । वोत्तुंपि तस्स न खमं किमंग पुण देसणं काउं?॥१॥" तैर्विशुद्ध-अवदातं सर्वोपाधिविशुद्धं,यद्वा सर्वे-यथावन्नैषेधिक्यकरणादिका दिगवग्रहानवस्थानात्मका जघन्यवंदनैकांगप्रणिपातैकनमस्कारादिविषया उच्छासाद्याकारमोक्षादिलक्षणाश्च उपाधयः-| अपवादप्रकारास्तैर्विशुद्धं-अकलंकितमिति भावः,देशकालाद्यौचित्येन यथाप्रस्तावनियोजितस्यापवादस्योत्सर्गफलदायितयोत्सर्गविशेषरूपत्वात् , 'दव्वाइएहिं जुत्तस्सुस्सगो तदुचिअं अणुढाणं । तेहिं रहियमववाओ जहोचियं जुत्तमुभयपि ॥१॥ एवं पूर्वोक्तनीत्या यो भव्यप्राणी वंदते सदा-अहर्निशं यावज्जीवाभिग्रहेण तथैवावश्यकत्वयोगात,तथा च महानिशीथसप्तमाध्ययनसूत्रं-“से भयवं! केण अद्वेणं एवं वुच्चइ जहा णं आवस्सगाणि ?, गोयमा! असेसकसिणट्टकम्मक्खयकारिउत्तमसम्मइंसणचरित्तअञ्चंतघोरवीरुग्मकदुसुदुक्करतवसाहणट्ठाए नियनियविभत्तुद्दिद्वपरिमिएणं कालसमएणं पयंपएणं अहन्निसाणुसमयमाजमं अवस्समेव तित्थयसइसु करिति अणुट्टिजंति उवइसिअंति परूविज्जति सययं एएणं अत्थेणं एवं वुच्चइ गोयमा! जहा आवस्सगाणि ति, देवान-जिनेन्द्रान् | R MPA ॥४५३॥ UPAIMILIATIONSHIKARAN For Private And Personal Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri श्रीदे० चैत्य० श्रीधर्म० संघा चारविधौ 1184811 Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashagaysuri Gyanmandir 'देवेन्द्रवृंद महित' पूजितं आकांक्षितं वा, अथवा, देवेन्द्रा- देवेंद्रसूरिनामान आचार्याः विंदा- विचारका 'विदिंपू विचारणे' इति वचनात्, विधिस्वरूपादिज्ञापका इत्यर्थः, यत्र तद्देवेन्द्रविंद, अयमर्थः - तीर्थकरप्रज्ञापितं गगधराद्युक्तं बहुश्रुतपारंपर्यायातं चैत्यवंदनाया विधिस्वरूपादि श्रीदेवेन्द्रसूरिभिर्भाष्यतया प्रदर्शितं न पुनः किमप्यत्र नूतनं विरचितमिति भावः । एवं च यत् प्राक् प्रतिज्ञातं ' बहुवित्तिभासचुण्णी सुयाणुसारेण बुच्छामि' इति तदनेन समर्थितं भाष्यकृता स्वनाम च ज्ञापितं, कथं प्रदर्शितमित्याह - 'अधिक' कं ज्ञानं तेन अधिगतं अधिकं, 'विभक्ती'त्यव्ययीभावः तेन अधिकं, 'वा तृतीयाया' इत्यमादेशः, यथा स्वबोधानुमानेनाधिगतं तथोपनिबध्य दर्शितमित्यर्थः, परमं - उत्तमं देवेन्द्राचितकांक्षितत्वात्, यद्वा परा - प्रकृष्टा मा - लक्ष्मीः बाह्या समवसरणादिका अभ्यंतरा केवलज्ञानाद्या यत्र तत्परमं तच्च तत्पदं च परमपदं, तीर्थकरपदवीमित्यर्थः, यदागमः - " सामंतो चकहरं चकहरो सुरखइत्तणं कंखे। इंदो तित्थयरत्तं तित्थयरे पुण तिजयसुहए || १|| तम्हा जइ इंदेहिवि कंखिज्जइ एगबद्धलक्खेहिं । इय साणुरागसहिएहिं उत्तमं तं न संदेहो || २ ||" प्राप्नोति -समासादयति लघु-शीघ्रं सः - यथाविधिचैत्यवंदनाकर्त्ता, उक्तं चागमे - "जो पुण दुहउब्विग्गो सुहतण्हालू अलिव्व कमलवणे । इय थुइमंगलजयसद्दवावडो झणझणे किंपि ॥ १ ॥ भत्तिभरनिव्भरो जिणवरिंद पायारविंदजुगपुरओ | भूमीनिट्टवियसिरो कयंजली वावडो भत्तो ॥ १॥ एकंपि गुणं हियए धरिज्ज संकाइसुद्धसंमतो | अक्खुड्डियवयनियमो तित्थयरत्ताइ सो सिज्झे ||३||” प्र-आदिकर्म्मणि, ततश्च यावतीर्थकरत्वं स्यात् तावत् मेघरथवच्चक्रीन्द्रत्वाद्यनुभवति, अथवा परमं पदं परमज्ञानादिचतुष्टय योगाच्छेषं प्राग्वत्, तथा चागमः - "नामपि सयलकंमट्टमलकलंकेहिं विप्पमुक्काणं । तियसिंदचियचलणाण जिणवरिंदाण जो सरइ || १ || तिविहकरणोवउत्तो खणे खणे सीलसंजमुज्जुतो । अविराहियवयनियमो सोऽविहु अइरेण For Private And Personal Sh MEN देववन्दनफलं ॥४५४॥ Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri MIDI in Aradhana Kendra www.kcbatirth.org turi Gyanmandir मेघरथकथा श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥४५५॥ Acharya Shri Kaip | सिज्झिज्जा ॥२॥" मेघरथकथा त्वियं-इह दीवे पुब्वविदेहमंडणे पुक्खलावईविजये। पुंडरिगिणीपुरीए आसी जिणो घणरहो राया | ॥१॥ पियमइमणोरमाओ तस्स पिया पियमईइ अह जाओ। ओहिजुओ संतिजिणो मेहरहो नाम वरपुत्तो ॥२॥ तस्स पियपिय| मित्ताइ मेहसेणो सुओ कयाइ निवो। पुत्ताइजुओ चिट्ठइ अंतो अंतेउरे जाव ॥३॥ ताव मुसेणा गणिया कुक्कुडहत्था निवं भणह देव !। कस्सवि न कुक्कुडेणं जिप्पइ मह कुक्कुडो एसो ॥४॥ जइ जिप्पइ तो लक्खं दीणाराणं पर्णमि से देमि । देवी मणोरमा अह जंपइ इमिणच्चिय पणेणं ॥५।। एस वरकुक्कुडो मे जुज्झउ इय होउ जपिए रना । ते मुक्का जुझंति य नय जिप्पइ कोवि केणावि ॥६॥ अह जंपइ मेहरहो कि केणं कोऽवि जिप्पइ न ताय । भणइ पह इह भरहे एरवए रयणपुरनयरे॥७॥ दोमित्ताधणवसुदत्तनामया आसि विविह आरंभा । वसहाइवाहणपरा कूडतुला कूडमाणरया ॥८॥ कूडकयकूडमाणयपरवंचणपत्रणमाणसा कूरा। मिच्छद्दिट्ठी | अदया निस्सीला निचलोहिल्ला ।।९।। एकद्दव्वभिलासा जुज्झिय मरिऊण अट्टझाणेण । जाया तत्थेव करी सुवन्नकूलानईतीरे ॥१०॥ भवियब्वयाइ मिलिया ते जुज्झित्ता मया उवज्झाए । जाया महिसा तत्थवि मिडिय मया मिढिया जाया ॥११॥ पुण जुज्झिय तत्थ मया सरिसबला कुक्कुडा इहुप्पन्ना । पुव्वं व इयाणिपिहु न जिप्पिही कोऽवि केणावि ॥ १२ ।। अह मेहरहो जंपइ न | केवलं पुव्ववेरविवसमणा । जुझंतिमे वराया विज्जाहरधिट्ठियावि तहा ॥१३।। घणरहनिवेण उन्नमिय एगभमुहेरिओ उ मेहरहो। जंपद भरहवियड्ढे सुवण्णनाभाभिहे णयरे ॥१४॥ रायाऽऽसि गरुडवेगो तस्स सुया चंदसूरनामाणो । ते अनदिणे पत्ता मेरु| गिरिं वंदिउं देवे ॥१५॥ दटुं सागरचंदं चारणसमणं नमेवि पुच्छति। नियपुवभवे साहू साहइ इय धायईसंडे ॥१६॥ एरवए | वज्जपुरेऽभयघोसनिवस्स आसि दुन्नि सुया । विजओ य वेजयंतो तिनिवि ते जइणधम्मरया ॥१७॥ कइयावि अभयघोसो ॥४५५।। For Private And Personal Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri V in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka t suri Gyanmande मेघरथकथा श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधी ॥४५६॥ R छउमत्थमणंतजिणवरं सगिहे । भिक्खट्ठा पविसंत दटुं अन्भुट्टए तुट्ठो॥१८|| काउ पयाहिणतियगं पडिलाभइ फासुएण अन्नेण । उक्कोसा वसुहारा तत्थ सुरेहिं तओ मुक्का ।।१९।। घुटुं अहो सुदाणं दिव्वाणि अ आहयाणि तूराणि । चेलुक्खेवो उ कओ पणवण्णा कुसुमबुट्ठी य ।२०॥ कयपारणो विहरिओ अन्नत्थ जिणेसरो कयाइ पुणो । उप्पन्नदिचनाणो तत्थेव पहू समोसरिओ।।२।। भत्तीइ अभयघोसो राया बंदिय जिणं सुणिय धम्मं । तणयजुयलेण सहिओ पहुपयमूलंमि पव्वइओ ।। २२ ॥ अरिहंतमाइएहिं वीसहि ठाणेहिं तित्थयरकम्मं । तिव्वतवचरणनिरओ रायरिसी अजए सम्मं ॥२३॥ ते तित्रिवि सामनं कालगया. पालिउं निरइयारं । बावीससागराऊ अच्चुयकप्पे सुरा जाया ॥२४॥ अह चविय अभयघोसो पुनविदेहमि जंबुदीवस्स । पुक्खलवईइ विजये नयरीए पुंडरिगिणीए ॥२५॥ हेमंगयरन्नो बजमालिणीपिययमाइ संजाओ। चउदससुमिणसुसइयजिणपहवो घणरहो पुत्तो ॥२६॥ तस्स य जम्ममिसेयं सुमेरुसिहरंमि सुरवरा कासि । सो अञ्जवि परिपालइ पुहविं पुहवीससयनमिओ ॥ २७ ॥ ते विजयवेजयंता चविउं खयरा तुमे इहं जाया । तो चंदसूरकुमरा इय पुन्वभवे निए सोरं ॥२८॥ ते ताय! पुव्वतायं द? तुममिहागया उ उज्जलिउं । एएसु कुक्कुडेसु संकमियऽप्पं नियंति तहा ॥२९॥ इत्तो गंतुं नियपुरि पयमूले भोगवद्धणगुरुस्स । निम्मियनिव्वणचरणा परमपयं पाविहिंति इमे ॥३० ॥ इय सोउ होउ पयडा पुव्वंपिव पुत्तमाणिणो दोऽवि । ते खयरा घणरहजिणचरणे वंदिय गया सरणे ॥३१ ।। इय सोउ कुक्कुडा ते दुवेऽवि संजायजाइसरणा उ । नियमासाए विनविय घणरहं गहिसम्मत्ता ।। ३२॥ अणसणविहिणा मरिऊण रयणापुढवीइ अहय सुमहिइढी । जायाउ तंबचूलो सुवनचूलित्ति भूयपहू ।।३३।। ते पुवभवं नाउं ओहीइ विउव्बिउं वरविमाणं । मेहरहपासमुवगम्म सम्म नमिआहु भत्तीए ॥३४॥ मणुया करिणो महिसा मेसा तह IMIMIRMALEDISTRARIA mmmmmmmmmIIHIS ॥४५६॥ For Private And Personal Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org ri Gyanmandir मेघरथकथा Sh e in Aradhana Kendra Acharya Shri Ka श्रीदे० कुक्कुडा भविय भवे । तुह पायपसाएणं जाया इण्हि वरसुरेसा ।। ३५ ।। जइ तुह चरणे सरणं न लहंती सामि ! कुकुडभवे तो। चैत्यश्री हणिय बहुकिमिकुलाई कं कं कुगई न गच्छंता ? ॥३६॥ ता पसिय विमाणमिणं आरुहि नियम पहु! जयाभोयं । मेहरहो कुणइ धर्म० संघा- तहेव पुनकारुन्नजलजलही ॥३७॥ पवरविमाणारूढो भुवणाभोयं नियंतओ कुमरो। दुसए कणगगिरीसुं जिणभवणे वंदए विहिणा चारविधौ ||॥३८॥ जंबूरुक्खे सिंचलितरुमि सतरसहियं सयं वीसा । बावत्तरिकुंडेसु वदृवियडेसु चत्तारि ।। ३९ ।। चउरो गयदंतेसुं कुरूमु ॥४५७॥ दो चउर जमलसेलेसुं । वक्खारेमु य सोलस दीहवियड्ढेसु चउतीसा ॥४०॥ सुरगिरिवणेसु सोलस इक्कं चूलाइ सोलस दहेसु । चउदस महानईखें अट्ठ य दिग्गयवरगिरीसुं ॥४१॥ छक्कुलगिरीसु एवं छप्पणतीसे सए जिणहराई । वंदइ जंबुद्दीवे तदुगुणे धायईसंडे ॥४२॥ पुक्खरवरदीवड्ढे दुगुणेच्चिय माणुसुत्तरे चउरो। इसुयारगिरिसुचउरो चउ रुयगे कुंडले चउरो ।। ४३ ।। चउ अंजणायलेसुं सोलस दहिधवलदहिमुहनगेसु । बत्तीस रइकरेसुं इय नंदिसरे दुपचासं ॥४४॥ इय कयसासयजिणचेइवंदणं दिट्ठविट्ठवाभोयं । मेहरहं तो देवा आणेउं पुंडरगिणीए ॥४५ ।। मुत्तुं नरिंदभवणे पुणो पुणो नमिय तस्स पयकमलं । काऊण रयणवुट्टि पत्ता हिट्ठा सए ठाणे ॥४६॥ अह लोयंतियसुरविसरबोहिओ घणरहो जिणवरिंदो। मेहरहदिनरज्जो वरिसं वियरियमहादाणो ॥ ४७ ॥ गहियवओ उप्पाडियवरनाणो बोहए धरावलयं । मेहरहधरानाहोऽवि पालए तं पुण नएण ॥ ४८॥अब्रदिणे मेहरहो पियाइ पुत्तेण बहुपरिगरेणं । संजुत्तो संपत्तो उज्जााणे देवरमणमि ॥४९॥ पारद्धे पिच्छणए तप्पुरओ तंनिउत्तलोएहिं । इत्थंतरंमि भूया करिति अइविम्हियकरं तं ॥५०॥ जा ते नर्मिति तहिं पवरविमाणं नहेण ता पत्तं । तत्थेगवरं पुरिसं वरजुबईसंजुयं दटुं ॥५१॥ | पियमित्ता भणइ निवं देव! इमा का मणोहरा नारी । को व इमो वरपुरिसो? केण व कज्जेण इह पत्तो ॥५२॥ अह जंपइ मेहरहो MAH ॥४५७॥ A RASHTRBIDI For Private And Personal Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M a in Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Sherle suri Gyanmandie मेघरथकथा PH । श्रीदे | इह दीवे भारहमि खित्तमि । मलयानामेण पुरी उत्तरसेढीइ वेयड्ढे ॥५३॥ विज्जुरहो तत्थ निवो माणसवेगा पिया य से चैत्यश्री-Il ताण । सीहरहो नाम सुओ वेगवई तस्स वरभञ्जा ॥५४॥ कइयावि भवविरत्तो पुत्तं रज्जे ठवितु सीहरहं । गुरुपासे निकखधर्म० संघान मिओ विज्जुरहो सिवपयं पत्तो ॥५५॥ विजाहरचकवई कयाइ चिंतइ निसाइ सीहरहो। जंमो मह अकयत्थो जहरने मालईकुसुमं चारविधौ ॥५६॥ जं न जिणो दिट्ठो मे कयाइ नय पूइयो विहरमाणो । वह तंमुहकमलभवा अमयसमा देसणा न सुया ॥५७॥ तो गंतुं ॥४५८॥ सकलत्तो धायइसंडंमि वरविमाणगओ । अवरविदेहे विजए सुवग्गुनामंमि खग्गपुरे ॥ १८॥ नामेण अमियवाहणजिणं तहिं पणमिउं तह निसन्नो । थम्मं सोउं तुट्ठो वंदिय सामि पडिनियत्तो ॥५९॥ जा एइ इत्थ उवरिं ता खलियं तस्स तं वरविमाणं ।। तो तेण नियंतेणं हिट्ठा सहसत्ति दिट्ठोऽहं ॥६०॥ तो सो सबवलेणं कुद्धो उप्पाडिउ ममं लग्गो। ता अकंतो वामो वामकरेणं मए सणियं ॥६१॥ तो विरसमारसंतो सिंहक्कंतं गयंव तं दट्टुं । सरणं मं पडिवना तम्भजा सपरिवारावि ॥६२।। करुणाइ मए मुक्को सो तुट्ठो काउ विविहरूवाणि । भृयाणं सकलत्तो पिए! इमो कुणइ पिच्छणयं ॥ ६३ ॥ इय सोउं विम्हइया पियमित्ता पुणवि पुच्छए रायं । किमणेण कयं सुकयं पुब्धि जेणेरिसी रिद्धी ॥ ६४ ॥ अह पभणइ मेहरहो भरहे पुक्खरवरड्दपुच्वंमि । संघपुरे कुलपुत्तो नामेणं रज्जुगुत्तत्ति ॥ ६५ ॥ दुत्थो परकम्मकरो पइभत्ता तस्स संखिया माया । अनादिणे संघनगे फलहेउं ताई पत्ताई ॥६६॥ पिच्छंति सबगुत्तं नाम मुणिं खयरपरिसमज्झत्थं । भत्तीइ तयं नमिउं तो तप्पुरओ निसन्नाई ॥६७॥ | मुणिणावि तेसि धम्मो विसेसओ साहियो तवपहाणो । जं दुस्थिएसु गुरुयाण होइ वच्छल्लयं गुरुयं ॥१८॥ भत्तीइ पुणो नमिउं भवभयभीयाई ताई पुच्छति । अम्हारिसाण जोगो पावाणवि अस्थि कोवि तवो? ॥ ६९॥ बत्तीसइकल्लाणो नाम R ॥४५ eaum For Private And Personal Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri i n Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Ka u ri Gyanmandir mam मेघरथकथा DA श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥४५९॥ तवो तेसि तेणमुवदिसिओ । ताई तयं पडिवन्जिय गयाई गेहे गुरुं नमिउं ॥७०॥ तो ताई पहिडाइं अट्ठमभत्ताई दुन्नि कुवंति । बत्तीस चउत्थाइ पसन्नचित्ताई तंमि भवे ॥ ७१ ॥ पारणयदिणे दुन्निवि निष्फन्ने भोयणमि पइदियहं । चक् खिवंति बाहिं जइ अतिही कोऽवि इह एइ ॥७२॥ तो तत्थागच्छंतं धिइधरनाम तवोहणं दटुं । पडिलाभयंति तुट्ठाई भत्तपाणेहिं सुद्धेहिं ॥७३॥ अह सत्वगुत्तसाहू पुणोऽवि पत्तो कयाइ तंमि पुरे । तप्पासे सुयधम्माई ताई दिक्खं पवनाई ||७४।। सो रज्जुगुत्तसाहू तवमंविलवद्धमाणनामाणं । काउं अणसणविहिणा मरि बंभे सुरो जाओ ।। ७५ ।। दससागरोवमाइं दाणपभावेण भुत्तु भोगाई । चविउं | सो उप्पन्नो सीहरहो एस खयरपहू ||७६।। सा संखियावि समणी कयतिव्वतवा मया गया बंभे। चविउं इमस्स जाया वेगवई नाम भज्जेसा ॥७॥ एयाण देवि ! तेणं सुपत्तदाणेण सुरभवे रिद्धी । पुनाणुबंधिपुनप्पभावो इहवि संाया ॥७८ ॥ इत्तो इमाई सपुरे गंतुं पुत्तं निवेसिउं रज्जे । दुनिवि पिप्पंति वयं मम पिउजिणघणरहसमीवे ।। ७९॥ तवसंजमजोगेहिं अणुत्तरेहिं खवित्तु कंममलं । उप्पलकेवलाई दुन्निवि गमिहति निव्वाणं ॥८॥ इय सोउं सीहरहो मेहरहं नमिय नियपुरे गंतुं । पुत्तं रज्जे ठविउं निक्खंतो तीइ सह सिद्धो ॥१॥-अह मेहरहो राया उजाणाओ गिहागओ कइया। पोसहिओ पोसहसालसंठिओ कहइ जिणधम्म ॥४२॥ अह गगणमंडलाओ भयसंभंतो पकंपिरो दीणो । पारेवओ रडतो पडिओ रायम्स उच्छंगे ॥८३॥ अभयं च जायमाणं माणुसभासाइ तं खगं राया। करुणारसनीरनिही मा भाइ पुणो पुणो भणइ ॥८४॥ एवं वुत्तो रना पसंतमुत्ती विहंगमो एसो। पिउउच्छंगे बालुव्व निभओ चिट्ठए जाव ॥८५॥ मम भक्खं मुंच इमं राय! न जुतं इमं तु जंतो। तप्पट्ठीए सेणो पत्तो सप्प-| स्स गरुडुव्व ॥८६॥ तो भणइ भृमिनाहो सेण! इमं तुह कहं समप्पेभि ? । एम न खत्तियधम्मो सरणागयअप्पणं जमिह ।।८७॥ A NAANILITARAMIndu ISHITATISEMIHITSumanitTISTIANSITIHA MAITHIHIRAINRITESHINIATIHA MAITargumini, NIPALITYS ॥४५९॥ For Private And Personal Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri M a in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kablosuri Gyanmandir श्रीदे चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधी ॥४६०॥ किंच न तुभवि जुत्तं जुत्ताजुत्तोबएसकुसलस्स । परपाणपहाणेणं सपाणपरिपोसणं एवं ॥८॥जह उक्खणिजमाणे पीडा पिच्छेऽवि |मेघरथकथा होज तुह गुरुई। अन्नस्मवि किं न तहा ? मारिजंतस्स का वत्ता ॥८९॥ अनं च भक्खिएणं खणमिताऽणेण तुह भवे तित्ती। एयस्स पुणो वच्चइ जंमो सयलोऽवि एमेव ॥९० ॥ पंचिंदियघाएणं नरए जंतूहिं गंमए तम्हा । खगमित्तसुहनिमितं को जीवे हणइ छुहिओवि ॥९१।। सा पुण छुहा निवत्तइ अवरेणवि भोयणेण जह पित्तं । पवरसियासमणिजंपि किं न पयसा उवसमेइ ? ॥९२।। न य उवसमंति केणवि जियवहपहवाउ नरयवियणाओ। ता मुंचसु जीववहं कुणसु दयं सयलसुहजणयं ॥९३।। सेणोऽवि | भणइ नरवर! सरणं तुह एस आगओ भीओ। किमहं करेमि सरणं कहसु महाभाग ! छुहगलिओ? ॥९४॥ जह रक्खसि दुक्खतं | एयं करुणाइ तह ममंपि न किं । अइदुक्खिअस्स पाणा नूणमिमे मज्झ वचंति ॥९५|| धम्माधम्मविचिनावि चिट्ठए सुट्टिए सरीरंमि। तं नथि जन कुणई वुमुक्खिओ कूरमवि कंमं ॥९६॥ तद्धम्मवत्तयाऽलं अप्पसु मह भक्खभूयमिणमइरा । को धम्मो जं इको रक्खिजइ हमए अवरो? ॥९७॥ न य मज्झ हुज तित्ती कहमवि भुजंतरेहिं जं सययं। सजो सयं हयंजियफुरतमंसासणो अहयं ॥ ९८ ॥ भणइ निवो जइ एवं ता तुह वियरेमि भो नियं मंसं । पारेवएण तुलियं होसु सुही मा तुर्म मरसु ॥९९॥ आमत्तिपरे सेणे तुलाइ एगत्थ ठावइ कपोयं । अन्नत्थ खिवइ राया छित्तुं छित्तुं नियं मंसं ॥१००॥ जह जह खिवेइ मंसं राया उकत्तिऊण नियतणुणो। तह तह भारेण इमो वडइ पारेवओ अहियं ॥ १॥ भारेण वद्धमाणं तं पक्खि पेक्खिऊण अक्खुहिओ। सयमेवारुहइ तहिं तुलाइ राया अतुलसत्तो ॥२॥ तूलारूद सहसा रायाणं द? परिपणो सयलो । हाहारवं कुणंतो आरूढो संसयतुलाए ॥३॥ सामंतमंतिपमुहा सव्वेऽवि भणंति भूवई एवं । अम्हाण अभग्गेणं नाह ! किमेयं समारद्धं ॥ ४ ॥ ॥४६॥ For Private And Personal Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shi i n Aradhana Kendra www.kobairth.org श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥४६॥ Acharya Shri Ka p ri Gyanmandie खित्तेणिमिणा निखिला रक्खेयव्वा पयाउ खलु खोणी । तं कह खषण खुबसि रक्खंतो पक्खिणं खु इमं ॥५॥ किं च इमो| मेघरथकथा लक्खिजइ माणुसभासापयंपिरो पक्खी । देवो व दाणवो वा कोइ धुवं तुम्ह पडिकूलो ॥ ६ ॥ तो भणइ निवो भो भो दीणमहो एस दीणवयणो य । अच्छउ जो वा सो वा रक्खेयव्वो मएऽवस्सं ॥७॥ इय निच्छयमवगच्छिय निवस्स एगो अमच्छरो अमरो । वरमउडकुंडलवरो पयडीहोउं भणइ एवं ॥८॥ इक्कोच्चिय तं धन्नो सुपुरिस ! चूडामणी तिहुयणमि । चालिजसि न सुरेहिवि सट्ठा- | णाओ सुरगिरिव ॥९॥ इय ईसाणि सुरिंदे पन्निज्जते तुम निसुणिऊण । तुह सत्तपरिक्खत्थं इहागओ असहमाणोऽहं ॥१०॥ ता जुझंते दटुं वेराउ इमे खगे अहिद्वित्ता। तुह उवसग्गमकाहं तं सव्वं खमसु पसिऊणं ॥ ११ ॥ इय भणिय निवं सज्ज काउं नमिउं सुरो गओ सग्गं । सामंतमंतिपमुहा निवमह पुच्छंति विम्हइया ॥१२॥ देव ! इमे पुन्वभवे विहंगमा केरिसा किमसिं वा ।। वेरनिमित्तं ? को वा देवोऽयं आसि पुन्वभवे ? ॥१३॥ राया जंपइ दीवे इह एरवयंमि पउमिणीसंडे । नयरे सागरदत्तो महिडिओ आसि वरसिट्ठी ॥१४॥ तस्स य भजा नामेण विजयसेणा विसुद्धगुणकलिया । ताणं च दुन्नि पुत्ता धणो य पहमंदणो| नाम ॥१५॥ ते अन्नदिणे जणयं पुच्छिय बहुपणियसत्थसंजुत्ता। देसंतरंमि चलिया ता पत्ता नागपुरयंमि ॥१६॥ तत्थ तहा पणयंतेहिं कुओवि तेहिं महारयणमेगं । पत्तं सुमहामुल्लं भक्खंपिव सारमेएहि ॥१७॥ तस्स कए जुझंता संखनईए तडंमि ते रुट्ठा। महिसाविव दुइंता कुद्धा सहसा दहे पडिया ॥१८॥ मरिऊण समुप्पन्ना सेणो पारेवओ य ते विहगा। पुन्वभववेरवसओ इत्थवि जुझंति एवमिमे ॥१९॥ अन्नं च इत्थ दीवे पुव्वविदेहे नईइ सीयाए । तीरे रमणीयक्खे विजए सुभगापुरी अत्थि ॥२०॥ तत्थासि थिमियसागरनामनरिंदो भवाउ एयाउ । अहमासि पंचमभवे पुत्तो अपराजिओ तस्स ॥२१॥ रामोऽहं तह भाया ॥४६॥ अणंतविरिओ हरी तया मज्झ । अम्हेहि तहिं निहओ दमियारी नाम पडिविण्हू ॥ २२ ॥ सो भमिय भवं अट्ठावयस्स MUVIMAIN For Private And Personal Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shi l lin Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Katha r i Gyanmandie मेघरथकथा श्रीदे० | नियडंमि नियडिनइतीरे / सोमप्पहकुलवहगो सुरूवनामो सुरो जाओ // 23 // सो एस सुरो संपइ ईसाणिदेण मह पर्ससाए। चैत्यश्री- II विहियाइ मच्छरेणं इहागओ मह परिक्खत्वं // 24 // इय निवकहियं सोउं ते विहगा मुच्छिया महीपडिया / लोएण कया सत्था | धर्मसंघा- | जाईसरणं समणुपत्ता // 25 // अह पभणंति सभासाएँ अम्हेहिं न केवलं तया रयणं / लोभाओ जुज्झमाणेहिं नाह ! हरियं मणुयचारविधौ | जंमं // 26 // इह जमे नरयदुहं नियडंपि निसेहियं तए अम्ह / किं करणिजं अम्हेहिं नाह! इण्हि समाइससु // 27 // तो मेहरहो // 462 / / / | तेसिं देइ सयं अणसणं इमेवि तयं / पडिवज्जिय मरिऊणं उववन्ना भवणवासीसु ॥२८॥रायावि पोसह पालिऊण रजंच पालए सुइरं / मुमरंतो खगचरियं वच्चइ परमं च वेरग्गं // 29 // अह विहरंतो भयवं घणरइतिथंकरो समोसरिओ / तन्त्रमणत्थं पत्तो मेहरहनिवो सपरिवारो // 30 // वंदिय पहुं निसनो धम्म सोउं तओ गिहे गंतुं / रजंमि मेहसेणं ठवइ कुमारं भवविरत्तो // 31 // पहुपासे निक्खंतो संजमजोगेसु निच्चमुज्जुत्तो / इक्कारसअंगधरो दुक्करतवचरणकरणरओ॥३२॥ तित्थयरनामगोयं वीसहि ठाणेहि तह समज्जेइ / सुयविहिणा कुणइ तवं च सीहनिकीलियं नाम // 33 // अह आरुहिउं अंवरतिलयगिरि सो गिरिव थिरचित्तो। काउं तत्थ अणसणं मरि सव्वट्ठमणुपत्तो // 34 // तत्तो चविउं जाओ इह भरहे हत्थिणाउरे एसो / निवविस्ससेणअइरादेवीए संतिनामसुओ // 35 // पंचमचकहरपयं पालिय कालेण गहियसामण्णो / सोलसमधम्मचक्की होऊण इमो सिवं पत्तो // 36 // एवं मेघरथक्षितीशतिलकः श्रीचैत्यसद्वदने, प्रोद्यच्छन्नहमिंद्रचक्रिपदवीमुच्चैर्जिनाधीशताम् / भुक्त्वा प्राप सुधर्मकीर्तिसुभगग्रामाग्रणीस्तत्पदं, तद् भो भव्यजना! जिनार्चनमिह प्रागल्भ्यमभ्यस्यताम् // 37 // इति श्रीसंघस्य प्रतिदिनमवश्यं कृतिविधौ, सुधर्मानुठाने प्रकटमधिकारः प्रथमकः / सदाऽर्हच्छत्यानां विहितविधिवद्वंदनपरः, श्रुतादाम्नायाच प्रकृतविवृतिः पारमगमत् / / 38 // xxxmomo-EXPORRHOKHORAKHRece इति श्रीदेवेन्द्रसूरिशिष्यश्रीधर्मकीर्तिमूरिविरचितायां श्रीसंघाचारटीकायां चैत्यवंदनाधिकारः प्रथमः समाप्तः // 462 // For Private And Personal