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________________ in Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shel Gyarmande श्रीदे. परंपराया | मृगावती कथा चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥२०॥ NILIHAR NHAPPAJIRAHIRATRAINITIANRAINIK सो निरुवमरूवा अदिट्ठपडिछंदा । पहु ! जण सयाणियरायअग्गमहिसी इमा लिहिया ।।५४|| तं असअसुंदर रूववहं सोउ इत्थिलोलो सो। पहुहकुल मिमाणो गलिअनओ मुकमजाओ ॥५५।। चित्तयरं सकारिय विसजिउं सिक्खिउं च लहु दूअं । पवए कोसंबीइ तत्थ स भणई सयाणीयं ॥५६॥ आइसई पजोओ वरभजा जा मिश्रावई तुज्झ । पेसिजमजतं हुञ्ज जुज्झकजे व लहु सञ्जो ॥५७॥ पभणइ सयाणिओ रे द्याहम तुह पह विमुक्नओ।जइजंपई अजुत्तं ता किं वुतुं तुहवि जुतं ।।५८।। किं वा-"अप्रवृत्तिगत भूपं,छदोवृत्त्या स्तुवंतिये। लक्ष्मीहतिकृतोपायाः,शत्रवस्तेन मंत्रिणः" ।।५९॥ अपिच-कि मिचोसोऽविन जो नियपहुणो उप्पह पवनस्स। नियबुद्धिघणरसेणं अवजसपंसुं उवसमेइ ।।६०॥ किंबहुणा? एवं जंपिरस्स तुह इय जुज्झइ विणासो। काउं जंचन कीरइ त नयभेउत्ति कलिऊण ॥६१शाइय निन्भत्थिय दूओ निद्धमणे गलगहेण निच्छूढो। तह कहा गंतु सपहुस्स तस्स जह वइढिओकोहो॥६२॥ तो सेणाए हयगयरहजोहसहस्मलक्खकोडीए। चलिओ तह चउदसमउडबद्धराईहिं तं पड़ | सो॥६॥ अणवस्यपयाणेहिं इंतं सोऊण तं जममरित्थं । अप्पबलो कालगओसयाणिओ अविइअइसारो ॥६४॥ चिंतइ मियावई मे घिरत्थु रूवं जओ मओ दइओ। उदयणसुओवि बालोति पाणसंसयतलारूदो ॥६५॥ एयस्स उ अणुसरणे इत्थ कलंको परत्थ दुक्खं च । ता छउमेणवि ईण्डि कालक्खेवो ममं जुत्तो ॥ ६६ ॥ तो पढियं तो गुणियं तो मुणियं तो अ वेइओ अप्पा । आवडियपिल्लियामंतिओऽवि य जहन कुणइ अकजं ॥ ६७ ॥ जओ-बरिसित्ता अमियरसं सकारिय वत्थमाइणा धरिउं। तलदोरेण सकर्ज मइम कुजा कुलालच ॥६८॥ इय चिंतिय दएणं तीए खंधारगो इमो भणिओ। सरणं तं चेव सयाणिए गए मे महाराया ॥६९।। नवरमसंपत्तवलो प्रत्तो मुक्को मए विणस्सिहिई। पच्चंतनरवईहिं तो कह रअं इमो da ॥२०॥ For Private And Personal
SR No.020306
Book TitleDevvandanbhashyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1938
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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