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श्रीदे. चैत्वनीधर्म० संघाचारविधी ॥२१॥
परंपरायां मृगावतीकथा
काही ? ७०॥ अह भणह रक्खगे मइ सुअस्स को अप्पिसंखमो काउं?। सच्चं चिय सामिः इमं नवरं देवीइ भणियमिणं॥७॥ दूरत्थो किं करिही सामी सीमनि विनासिए कजे । जह उस्सिसगसप्पे अखमो जोअणसए विजो॥७२॥ भणइ निवो किं तत्तो मणि देवीइ जं तओ काहं । स भणइ कोसंबिपुरं समारवावेह पहु पसिउं।७।। कीरउ किमिह निवुत्ते स भणइ उजेणीइडगा बलिया। ताहिँ विसालो सालो कीरउ मनइ निवोऽवि इमं ॥७४||जओ-पुरिसोमयणविहुरिओपत्थिनंतोमणप्पियजणेण । किं किन देह किं किं करेइ नहलह असमंपि? |७|| तो काउ उभयपुरंतरंमि चउदस निवा सपरिवारा। उज्जेणीइट्ठगा तेण आणिया नरपरंपरया ॥७६॥ ताहि कओ पागारो कोसंबीए हिमालयागारो । पुण भणिओ तीइ स किं इमीइ धनाइ रहियाए ?।।७७॥ धणधन्नवत्थमाईहिं तक्रवणं तेण पूरिया तो सा । किं किं न कुणइ जीवो आसापासेण वावद्धो?॥७८।। जओनचंति य गायति य चवंति दीणं कुणति चारूणि । आसाविवसाजीवा विडवणं किंन पावंति॥७९|| दुहखाणी सुहअगणी पावलया दोसआयराजासा। सग्गापवग्गनयरप्पवेसलोहग्गला निबिडा॥८॥ आसाइजो पहुत्तं देइस दासत्तमप्पणोऽवरसं । इय सपणत्थमूला परिहरियवासया आसा।।८१॥रोहगसज्झा जाया पुरित्ति सा धीमई तओ नाउं। विप्पडिवना दाराई दाउमुवरि भडाठविआ।१८२॥जओ-उशनावेद यच्छास्त्रं,यच्च वेद बृहस्पतिः। खभावादेव तत्सर्व,स्त्रीणांबुद्धौ प्रतिष्ठितम्।।८३॥ पजोओ उ विलक्खो वेढित्ता सबओ ठिओनयरिं। चिंतइ वेरग्गगया मिगावई अन्नया एवं ॥८४॥धना गामागरनगरखेडकब्बडमडम्बदोणमुहा। विहरेइ भवियपउमे बोहितो जत्थ वीररवी॥८५|| ते धन्ना कयउन्ना सुकयत्था तिजयपूयणिजा य । दुहवास मुत्तु गिह जे बालत्तेऽवि गहियवया ॥८६।। वेरग्गतिक्खरखग्गेहि छिदिउं मोहपासए जे उ। गिव्हंति
॥२१॥
SAHENRNAL
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