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Shri Mah
श्रीदे० चैत्य०श्रीधर्म० संघा - चारविधौ
॥२३०॥
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तप्पढमसुरण गिहे पियाऍ सह कीलमाणेणं ॥ १७५ ॥ कइया उ गच्छमाणो राया अवगणिओ तओ तेन । सङ्घस्सहरणओ सो खित्तो गुत्तीऍ सकुटुंबो ॥ १७६ ॥ घणदत्तेणं दत्तो दंडो सकुटुंब मोयणट्टाए । आणीय धणं सवं न पहुप्पइ एगकोडी से ॥ १७७॥ तीइ निमित्तं चलिओ स भइणिसुयबंधुदत्तपासंमि । आगच्छंतो मुको कल्लदिणे सो मए भद्द ! || १७८ || चिंते बंधुदत्तो किमहो दइवेण विहियमासा मे । अन्थासी सोऽविहु जेण पाडिओ वणजलहिंमि ॥ १७९ ॥ अन्नह चिंतेइ नरो सहरिसकंडुज्जुएण हियएण । परिणमए अन्नहच्चिय कज्जारंभो विहिवसेण ॥ १८० ॥ होउ इहेव ठिओच्चिय मिलेमि नियमाउलस्स तस्सऽस्थ । साहिस्सं नागपुरी गओति चिंतिय ठिओ तत्थ ।। १८१ ॥ पंचमदिवसे सत्थेण तत्थ अह आगओ कइसहाओ । धणदत्तो जक्खगिहासनंमि ठिओ तमालतले || १८२ ।। उवलक्खेउं तं भणइ बंधुदत्तो समागया कत्तो ? । गमिहिद कत्थ व ? स भणइ अवंतिओ जामि नागपुरिं । ॥१८२॥ तत्थ त्थि बंधुदत्तो मे भइणिसुउत्ति अह भणइ बंधू । सो मज्झ बंधुदत्तो मित्तो अहमविय तत्थगमी ॥ १८४ ॥ नाउं स माउलं तं गोवंतो अप्पयं तओ बंधू । तत्थ ठिओ तेण समं मिलिओच्चिय भुंजई सुयइ || १८५ || अह बंधू सोयत्थं गओ पभाए नईऍ पासे । भूमिं कयंबगहणे रयणच्छायाएं रत्तरजं ।। १८६ ॥ जा खणइ तं भुवं सो ताव करंडं निएइ संबमयं । रयणविभूसणभरियं तं गहिय भणेइ धणदत्तं ॥ १८७ ॥ कप्पडियाउ पवित्ती तुह लद्धा मिचमाउल ! मया ता। गिन्हसु सपुनलद्धं इमंति तं गंतुमुखेणिं ॥ १८८ ॥ मोसु माणुसाणि य नागपुरिं जा स भणइ धणदत्तो । पिच्छिस्सं तुह मित्तं पढमं तो सोच्चिय पमाणं ।। १८९ || अह नमिय बंधुदत्तो नियवृत्तंतं कहे जहवित्तं । धणदत्तो भणइ दहा विसमदसं कहमिमं पत्तो १ । १९० ।। मोएयता मिल्लेहिं बच्छ ! पढमं अणेण तुज्झ पिया । इय भणइ जाव सो ता उदाउदा निवडा पत्ता || १९१ ।। सबै पहिया धरिया तत्थवि घातेहिं चोर
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बन्धुदत्तकथा
॥२३०॥