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|| बन्धुदत्त
कथा
श्रीदे० चैत्य श्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥२२९॥
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Acharya Shri Kaikk | बंधुं । गिहमागम्म विलक्खो भणेइ पियदंसणाइ पुरो ॥१५८॥ जइ ते छमासमझे नाणेमि पियं विसामिता अगणिं । इय विहिय| पइनो तो सो पेसइ सव्वओ सनरे ॥१५९॥ कोसंबीनागपुरीसु बंधुदत्तं पलोइउं ते उ । आगम्म कइदिणेहिं भणंति बंधू न लद्धोत्ति ॥१६०॥ चिंतेइ चंडसेणो पियविरहत्तो इमो मओ नूणं । चउरो पइन्नमासा गया विसामिहि ता अगणिं ॥१६॥ पियदंसणा उ अहवा जा पसवइ ताव ठामि तीइ सुयं । कोसंबीए नेउं पच्छा अगणिमि पविसिस्सं॥१६२॥ एवं चिंतेमाणस्स तस्स आगम्म भणइ | पडिहारी। वद्धाविज्जसि सामिय! जाओ पियदंसणाइ सुओ॥१६३।।दाऊण तुहिदाणं तीइ तओचंडसेणपल्लीसो। नामेण चंडसेणं | भणेद पउमावई देवीं ॥ १६४ ॥ जइ मासं ससुयाए कुसलं भइणीइ मे तया तुम्भं । दाहं दसनरबलिमह पणवीसदिणा सिवेण |गया ॥१६५।। तो पइदिसि तेण नरा पहिया बलिनरकए इओ तइया। सत्थे लूडिज्जंते नट्ठो बंधू सजियगाई॥१६६॥ पियविरहत्तो चिंतइ मह विरहे सा मया हविज्ज तओ । मज्झवि मरणं जुत्तं काए आसाइ जीवामि ॥ १६७|| जा सत्तछए पासं दाही ता कमि सरवरे एगं । हंसं पियविरहत्तं पिच्छइ तक्खणमिलियदइयं ।। १६८॥ तं दठ्ठ बंधुदत्तो चिंतइ मे जीवयो पियाजोगो। होइ मणियं नरोजं जीवंतोनियइ भद्दसए ॥१६९।। ता जामि नियं नयरिं धणेण रहिओ व तत्थ कह गच्छे । कोसंबीइवि पियदसणं विणा जुञ्जइ न गंतुं ॥१७०।। ता गंतुमवंतीए समाउलाओ धणं गहिय दाउं । पल्लिवइणो सपियं मोयाविय जामि नागपुरि ॥ १७१ ।। तो माउलस्स दाहं सगिहाउ धणंति चिंतिउं चलिओ। पुवमुहो विइयदिणे पत्तो ठाणे गिरिथलंमि ॥१७२ ॥ जा सो मग्गासने जक्खगिहे विसमई तहिं ताव । पत्तो पहिओ एगो सो पुट्ठो बंधुदत्तेण ॥१७३।। कत्तो तमागओ? सो भणइ अवं| तीउ तो तहिं कुसली। धणदत्तसत्थवाहोत्ति बंधुणा सो पुणवि पुट्ठो॥१७४॥ तो दीणमुहो पहिओ भणइ गए ववहरित्तु धणदत्ते ।
NATIHARMA
INNIEHIP
॥२२९॥
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