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श्रीदे चैत्य० श्रीधर्मसंधाचारविधौ | ॥२२८॥
अडविं लंघिय कस्सवि सरस्स तीरंमि आविट्ठो ॥१४१॥ तत्थढियस्स सत्थस्स तस्स रयणीइ चरिमपहरंमि । पडिया धाडी पल्ली- | बन्धुदत्त| वइस्स अह चंडसेणस्स ॥ १४२ ।। चोरेहि बिलोडित्ता तत्थ गहियं च सत्थसव्वस्सं। पियदंसणं च नेउं समप्पिया चंडसेणस्स
कथा |॥१४३।। अह दुद्धरसोगभरावरुद्धकंठक्खलंतवयणा सा । निवडंतवाहसलिलप्पवाहधोयाणणा रुयई ॥१४४॥रे दइव ! तस्स सिट्ठि|स्स जइ गिहेऽहं तए विणिम्मविया । ता कीस एरिसाऽऽवयमहण्णवे दुत्तरे खित्वा ॥१४५॥ सा कत्थ सिरी सो जयणिजणयसब्भावनिम्भरो नेहो। कह सव्वंपि पणटुं गंधव्वपुरंव वेगेण? ॥१४६।। खणमुल्लसंति उडूं खणेण निवडंति हेट्टो सहसा । खरपवणुधुयधयवडसमाई रे तुहविलसियाई ॥१४२।। इय सोयसंकुलं दीणमाणसिं पिच्छिऊण पल्लिवई । चिंतेइ झाइ करुणो नेमि इमं | किं सठाणंमि ॥१४८॥ इय चिंतंतो तप्पासवत्तिणि चेडियं स चूयलयं । पुच्छइ का एसा कस्स वत्ति? सावि य कहेइ इमं ॥१४९॥ |
कोसंबीए पियदंसणत्ति जिणदत्तसिविणो धृया । इय सोउं सो सहसा निमीलियच्छो गओ मुच्छं ॥१५०॥ सिसिरपवणाइणा तो |गयमुच्छो अहह मे कयमकज्जं । इय जपतो पुट्ठो तीए किमिणति ? सो भणइ ॥१५१॥ पियदंसणि!मा वीहसु जहऽहं जीवाविओ
तुहं पिउणा । तह सुणसु इओ कइया उ निग्गी चोरियाइ अहं ॥ १५२ ॥ पत्तो वच्छाविसए गिरिगामे निसिमुहे सचोरजुओ। पियमाणो तत्थ सुरं पत्तो आरक्खिगनरेहिं ॥१५३॥ धरिऊण माणभंगस्स निवइणो तेहिं अप्पिओ तत्तो। तेणवि हणाविओऽहं तो नीयंतो वहनिमित्तं ॥१४५॥ पोसहपज्जंते पारणाय गच्छंतएण ते पिउणा। दिट्ठो दयालुणा तो मोयाविय चित्तवत्थाणि ॥१५५॥ दाउं विसज्जिओऽहं ता आइस भइणि! किं करेमि तुह ? । सा भणइ इह विउत्तं मेलसु मे बंधुदत्तपई ॥१५६।। ओमंति भणिय सो तं गिहे सदेवि व मुत्तु भत्तीए। नीहरइ बंधुदत्तं पलोइउं चंडसेणो उ ॥१५७॥ अह भमिओ पल्लिबई तं अडविं चिरमपाविउ ||॥२२८।।
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